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अमेठी: किसके इशारे पर हुई हत्या

उत्तर प्रदेश का अमेठी हाल ही में पूरे देश में चर्चा का विषय रहा है. इस का कारण यह था कि अमेठी सीट पर अधिकांशत: कांग्रेस के गांधी परिवार का कब्जा रहा. पहले स्व. राजीव गांधी, फिर उन की पत्नी सोनिया गांधी और इस के बाद उन के बेटे राहुल गांधी अमेठी से सांसद चुने गए थे.

राहुल लगातार 3 बार अमेठी से सांसद चुने गए. लेकिन इस बार भाजपा की स्मृति ईरानी ने राहुल को शिकस्त दे कर अमेठी लोकसभा सीट पर कब्जा कर लिया. गनीमत यह रही कि राहुल गांधी केरल में वायनाड लोकसभा सीट पर चुनाव जीत गए, वरना कांग्रेस पार्टी को बहुत बड़ा झटका लगता. कांग्रेस अध्यक्ष की जिम्मेदारी संभालने वाले राहुल की अमेठी से पराजय को राजनीतिक नजरिए से करारा झटका माना गया.

लोकसभा चुनाव की मतगणना 23 मई, 2019 को हुई थी. शाम तक चुनाव परिणाम घोषित हो गया था. पूरे अमेठी इलाके में भाजपा की ओर से स्मृति ईरानी की जीत की खुशी का जश्न मनाया जा रहा था. दूसरी ओर कांग्रेस प्रत्याशी राहुल गांधी की पराजय से कांग्रेसियों के चेहरे पर मायूसी छाई हुई थी.

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चुनाव परिणाम आने के 2 दिन बाद ही 25 मई की रात करीब साढ़े 11 बजे अमेठी इलाके के बरौलिया गांव में पूर्व प्रधान भाजपा नेता सुरेंद्र सिंह की गोली मार कर हत्या कर दी गई. उन की हत्या सोते समय की गई थी. गरमी का मौसम होने के कारण सुरेंद्र सिंह अपने घर के बाहर अर्द्धनारीश्वर मंदिर के पास चारपाई पर सो रहे थे. हमलावर 2 बाइकों पर सवार हो कर आए थे.

सिर में गोली लगने से सुरेंद्र गंभीर रूप से घायल हो गए थे. उन्हें इलाज के लिए तुरंत जायस स्थित प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र ले जाया गया. डाक्टरों ने वहां से उन्हें रायबरेली जिला अस्पताल के लिए रेफर कर दिया.

परिजनों को लगा कि सुरेंद्र सिंह का इलाज रायबरेली के बजाए लखनऊ मैडिकल कालेज में अच्छा हो सकता है, इसलिए वे उन्हें रात को ही लखनऊ ले जा रहे थे, तभी रास्ते में उन्होंने दम तोड़ दिया. बाद में लखनऊ में ही सुरेंद्र सिंह के शव का पोस्टमार्टम किया गया.

भाजपा नेता सुरेंद्र सिंह अमेठी से नवनिर्वाचित सांसद स्मृति ईरानी के काफी नजदीकी थे. उन्होंने स्मृति को लोकसभा चुनाव जिताने के लिए काफी मेहनत की थी. इस के चलते चर्चा यह होने लगी कि सुरेंद्र सिंह की हत्या राजनीतिक कारणों से चुनावी रंजिश को ले कर की गई.

भाजपा नेता सुरेंद्र सिंह की मौत की जानकारी मिलने पर बरौलिया ही नहीं, पूरे अमेठी में रोष छा गया. लोगों ने सांसद स्मृति ईरानी और पुलिस को घटना की सूचना दी. हाईप्रोफाइल मामला होने और हत्या राजनीतिक रंजिश में किए जाने के कारण पुलिस ने पूरे इलाके में नाकेबंदी कर हत्यारों की तलाश शुरू कर दी. दिवंगत भाजपा नेता सुरेंद्र सिंह के बड़े भाई नरेंद्र सिंह की तहरीर पर 26 मई, 2019 को जामो थाने में पुलिस ने 2 सगे भाइयों नसीम और वसीम के अलावा गोलू, धर्मनाथ गुप्ता और रामचंद्र के खिलाफ षडयंत्र रच कर हत्या करने का मामला दर्ज कर लिया.

पुलिस को दी तहरीर में नरेंद्र सिंह ने बताया कि 25 मई की रात मेरे छोटे भाई सुरेंद्र और भतीजा अभय घर के बाहर सोए हुए थे. फायर की आवाज सुन कर हम लोग जागे तो देखा कि वसीम, नसीम और गोलू मेरे भाई सुरेंद्र सिंह को गोली मार कर भाग रहे थे.

सड़क पर रामचंद्र खड़ा था. पुरानी राजनीतिक रंजिश होने के कारण धर्मनाथ गुप्ता भी इस षडयंत्र में शामिल है. रामचंद्र से मेरे भतीजे अभय का पहले भी विवाद हुआ था. भाई की हत्या में अन्य लोगों का भी हाथ हो सकता है.

इन में रामचंद्र ब्लौक डेवलपमेंट काउंसिल यानी बीडीसी सदस्य है. धर्मनाथ गुप्ता ग्रामप्रधान का पूर्व प्रत्याशी है. ये सभी आरोपी कांग्रेस से जुड़े हैं. वसीम को झोलाछाप डाक्टर बताया गया था.

दूसरी ओर भाजपा के कर्मठ नेता सुरेंद्र सिंह की हत्या की जानकारी मिलने पर स्मृति ईरानी 26 मई को बरौलिया गांव पहुंच गईं. उन्होंने दिवंगत सुरेंद्र सिंह की मां, बड़े भाई, पत्नी, दोनों बेटियों और बेटे से मुलाकात कर ढांढस बंधाया और उन्हें हरसंभव मदद का वादा किया. उन्होंने कहा कि भाई सुरेंद्र सिंह के हत्यारों को सजा दिलाने के लिए वह सुप्रीम कोर्ट तक जाएंगी.

भाजपा जिलाध्यक्ष दुर्गेश त्रिपाठी ने सुरेंद्र सिंह की हत्या को ले कर यह फैसला किया कि 13 दिन तक जिले में पार्टी की जीत का किसी भी तरह का कोई जश्न नहीं मनाया जाएगा.

सुरेंद्र सिंह की हत्या को उत्तर प्रदेश सरकार ने गंभीरता से लिया. मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने पुलिस अधिकारियों को निर्देश दिए कि हत्या के आरोपियों को 24 घंटे में गिरफ्तार करें. मामला सत्तापक्ष से जुड़ा हुआ था, इसलिए पुलिस जांच में कोई कसर नहीं छोड़ना चाहती थी. पुलिस के कई उच्चाधिकारियों ने बरौलिया गांव में कैंप डाल लिया. अफसरों के निर्देशन में पुलिस ने सुरेंद्र सिंह की हत्या के आरोपियों की तलाश में लगातार कई जगह छापे मारे.

27 मई को पुलिस ने 3 आरोपियों नसीम, रामचंद्र और धर्मनाथ गुप्ता को गिरफ्तार कर लिया. पुलिस ने इन से .315 बोर का देशी तमंचा, मोबाइल फोन और एक तौलिया बरामद किया. तौलिए पर खून के निशान लगे हुए थे.

29 मई को एक अन्य आरोपी अतुल सिंह उर्फ गोलू को भी गिरफ्तार कर लिया गया. गोलू से भी एक तमंचा बरामद किया गया. बाद में पुलिस ने 30 मई की रात को पांचवें आरोपी वसीम को मुठभेड़ के बाद गिरफ्तार किया. मुठभेड़ में जामो कोतवाली प्रभारी राजीव सिंह भी घायल हुए.

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वसीम उस रात जामो से बाइक पर जगदीशपुर की ओर जा रहा था. रास्ते में सलाहापुर तिराहे पर पुलिस ने उसे रोकने की कोशिश की तो उस ने फायरिंग कर दी. मुठभेड़ में वसीम के पैर और जामो थानाप्रभारी के बाएं हाथ में गोली लगी. पुलिस ने वसीम से बाइक के अलावा तमंचा और कारतूस बरामद किए. कहा जाता है कि सुरेंद्र सिंह ने किसी मामले में सन 2013 में वसीम को जेल भिजवाया था. हत्या का एक कारण यह भी रहा.

पुलिस ने सुरेंद्र सिंह हत्याकांड में गलत ट्वीट करने के मामले में एक युवक गौरव पांधी पर 1 जून को अमेठी जिले के गौरीगंज थाने में मुकदमा दर्ज किया. इस युवक ने अपने ट्विटर एकाउंट पर लिखा था, ‘डीजीपी महोदय ने लखनऊ में प्रैस कौन्फ्रैंस में बताया कि पूर्वप्रधान सुरेंद्र सिंह की हत्या बीजेपी के नेताओं ने कराई है.’

सोशल मीडिया पर इस तरह के गलत ट्वीट से समाज में वैमनस्यता और भ्रम फैलने की आशंका में उत्तर प्रदेश के पुलिस महानिदेशक ने मामले में संज्ञान लेते हुए अमेठी के एसपी को संबंधित व्यक्ति के खिलाफ मुकदमा दर्ज करने के निर्देश दिए.

कहा जाता है कि सियासत में सुरेंद्र सिंह का बढ़ा कद ही उन की जान का दुश्मन बन गया. सुरेंद्र के बढ़ते राजनीतिक वर्चस्व को खत्म करने के लिए विरोधियों ने उन की जान ले ली.

बरौलिया गांव के साथ जामो ब्लौक की सियासत में पिछले 4 दशक से सक्रिय सुरेंद्र सिंह को पहला राजनीतिक मुकाम सन 2005 में तब मिला, जब वह बरौलिया गांव की सामान्य सीट से ग्रामप्रधान चुने गए. पिछड़ी और दलित जाति की बहुलता वाली ग्राम पंचायत के मुखिया का पद मिलने के बाद सुरेंद्र सिंह का प्रभाव जल्द ही बढ़ गया. इस से पहले वह भाजपा संगठन में जामो मंडल अध्यक्ष थे.

इस बीच सन 2010 में हुए पंचायत चुनाव में बरौलिया में प्रधान पद की सीट अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित हो गई. इस से विरोधियों को लगा कि अब सुरेंद्र सिंह की राजनीति खत्म हो जाएगी. लेकिन जब चुनाव हुए तो सुरेंद्र सिंह के खास आदमी शोभन की पत्नी सूर्यसती रिकौर्ड वोटों से प्रधान बन गई.

बाद में 2015 के चुनाव में प्रधान पद की सीट पिछड़ी जाति के लिए आरक्षित हुई तो एक बार सुरेंद्र सिंह का करीबी रामप्रकाश गांव का प्रधान बन गया.

इन 15 सालों में सुरेंद्र सिंह भी गांव की सियासत से निकल कर अमेठी की राजनीति का जानापहचाना चेहरा बन गए. इस दौरान वह भाजपा के जिला उपाध्यक्ष के पद पर भी रहे. जामो ब्लौक में पैतृत गांव अमर बोझा से 2 किलोमीटर दूर कमालनगर में अर्द्धनारीश्वर मंदिर के पास बना उन का आशियाना राजनीति का अड्डा बन गया. यहां हर आम और खास लोग बैठने लगे. यह बात उन के विरोधियों को हजम नहीं हो रही थी.

इस बार हुए लोकसभा चुनाव में सुरेंद्र सिंह भाजपा प्रत्याशी स्मृति ईरानी के प्रचार में जीजान से जुट गए. सुरेंद्र ने अपनी मेहनत से बरौलिया के अलावा आसपास के इलाके के वोट स्मृति ईरानी को दिलाने में कोई कसर नहीं छोड़ी. सुरेंद्र सिंह चुनाव प्रचार के दौरान लगातार स्मृति ईरानी के संपर्क में रहे. वैसे स्मृति के संपर्क में वह कई साल से थे.

सन 2014 के लोकसभा चुनाव में स्मृति ईरानी ने भाजपा प्रत्याशी के रूप में अमेठी से ही चुनाव लड़ा था, तब वह जीत नहीं सकी थीं. उस समय भी सुरेंद्र सिंह ने उन का पूरा साथ दिया था. सुरेंद्र की मेहनत से स्मृति ईरानी ने इन चुनावों में बरौलिया गांव से सर्वाधिक वोट हासिल किए थे.

इस का परिणाम यह रहा कि बाद में स्मृति ईरानी ने केंद्र सरकार में मंत्री बनने पर राज्यसभा सांसद मनोहर पर्रिकर को बरौलिया गांव को गोद लेने का आग्रह किया. पर्रिकर ने प्रधानमंत्री आदर्श ग्राम योजना के तहत इस गांव को गोद लिया और 5 साल में सुरेंद्र सिंह के मार्फत 16 करोड़ से ज्यादा के विकास कार्य करवाए थे. अब स्मृति ईरानी के जीतने पर यह तय था कि वह केंद्र सरकार में फिर से मंत्री बनाई जाएंगी. इस से सुरेंद्र सिंह के विरोधियों को अपनी राजनीति खत्म होती नजर आई.

इस बीच चुनाव परिणाम घोषित होने के दूसरे दिन 24 मई को भाजपा की जीत पर बरौलिया गांव में स्मृति ईरानी की जीत पर सुरेंद्र सिंह के नेतृत्व में भाजपा की ओर से बड़े जश्न का आयोजन किया गया. इस दौरान निकाले गए विजय जुलूस को देख कर सुरेंद्र सिंह के विरोधियों के सीने पर सांप लोट गया और उन्होंने सुरेंद्र को खत्म करने का निर्णय लिया.

कहा जाता है कि वारदात से पहले पांचों आरोपियों ने गांव में एक जगह बैठ कर शराब पी. इस के बाद वे सुरेंद्र सिंह की हत्या के लिए कमालनगर पहुंचे. सुरेंद्र को गोली मारे जाने की घटना से कुछ देर पहले ही गांव की बिजली गुल हो गई थी, जो वारदात के कुछ देर बाद ही आ गई.

इस तरह अचानक बिजली गुल हो जाने की बात को भी लोगों ने इस घटना से जोड़ कर देखा. हालांकि प्रशासन या बिजली विभाग की ओर से इस बारे में कुछ नहीं बताया गया, लेकिन लोगों का मानना था कि इस मामले में मिलीभगत कर बिजलीघर से कुछ देर के लिए सप्लाई बंद कराई गई.

सुरेंद्र सिंह के 90 साल के पिता शिवभवन सिंह और बूढ़ी मां कमला अभी जीवित हैं. बूढ़े शिवभवन सिंह के लिए बेटे सुरेंद्र सिंह की मौत किसी वज्रपात से कम नहीं थी.

इस से पहले उन के छोटे बेटे जितेंद्र सिंह की मौत हो गई थी. अब शिवभवन सिंह का केवल एक बड़ा बेटा नरेंद्र सिंह ही रह गया है. 2 बेटों को खो देने वाले शिवभवन सिंह चारपाई पर बेसुध पड़े रहते हैं.

दिवंगत सुरेंद्र के परिवार में उन की पत्नी रुक्मणि सिंह के अलावा 2 विवाहित बेटियां पूजा और प्रतिभा हैं. एक बेटा अभय प्रताप सिंह अभी अविवाहित है. पैतृक गांव अमरबोझा वाले मकान में सुरेंद्र के मातापिता और भाइयों का परिवार रहता है. सुरेंद्र का परिवार अमरबोझा के पास ही बरौलिया गांव के कमालनगर में रहता है.

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उत्तर प्रदेश सरकार ने सुरेंद्र सिंह की मौत के बाद उन के बेटे अभय प्रताप सिंह को पुलिस सुरक्षा मुहैया करा दी है. उन के घर पर भी सुरक्षा के लिहाज से पुलिस तैनात की गई है. सांसद स्मृति ईरानी ने घोषणा की है कि जिस जगह सुरेंद्र सिंह की हत्या की गई थी, वहां उन की भव्य प्रतिमा स्थापित की जाएगी ताकि उन की याद बनी रहे.

पुलिस ने हालांकि सुरेंद्र सिंह की हत्या के आरोप में सभी मुलजिमों को गिरफ्तार कर लिया है. लेकिन इस मामले में   पुरानी राजनीतिक रंजिश की बात भी सामने आई है, लेकिन यह स्पष्ट नहीं हुआ कि सुरेंद्र सिंह की हत्या किस के इशारे पर की गई. पुलिस इस की जांच कर रही है.

(कहानी सौजन्य- मनोहर कहानियां)

मूवी ‘कबीर सिंह’ का नायक हमारे बीच हमारे शहर!

शाहिद कपूर की फिल्म ‘कबीर सिंह’ बाक्स औफिस पर अपना कमाल दिखा रही है 200 करोड़ रुपए कमाई के क्लब में शाहिद कपूर स्टार्टर फिल्म शामिल होने जा रही है. मगर क्या आपने यह फिल्म देखी हैं या इसकी स्टोरी सुनी है. दरअसल यह मूवी एक साइको बीमारी से पीड़ित शख्स की कहानी बताती है, जो गुस्सैल है,  और महिलाओं के साथ कभी भी कैसी भी हरकत कर सकता है जिसकी आप कल्पना भी नहीं कर सकते. मूवी तो आप थिएटर में देखेंगे, मगर हम आज बात कर रहे हैं हमारे बीच, हमारे शहर में सायको पीड़ितों अर्थात मानसिक रोगियों के बारे में….

शाहिद कपूर की यह फिल्म आज के समय की सच्चाई को प्रस्तुत करती है. हमारे आस-पास भी ऐसे पात्र हैं जिन्हें हम देखते हैं और नजरअंदाज करते हैं. हम यह चिंतन करने को तैयार नहीं हैं की यह आदमी ऐसी असाधारण हरकतें क्यों कर रहा है थोड़ा सा प्यार थोड़ा सा सम्मान और देख रेख से यह साइको पीड़ित स्वस्थ हो सकता है.

संदीप रेड्डी वांगा निर्देशित इस फिल्म में सच्चाई का समावेश है, जीवन का सत्य है. इसलिए जहां शाहिद कपूर की आलोचना हो रही है वहीं बड़ी प्रशंसा भी हो रही है. मगर शाहिद कपूर इस फिल्म का रिएक्शन बड़े मजे से देख सुन नो कमेंट के मूड में है. भारतीय  फिल्म दुनिया अर्थात बौलीवुड और हौलीवुड दोनों जगह ऐसी फिल्में अक्सर बनी है महान एक्टर्स ने इनमें काम किया है और अमर हो गए हैं.

हमारे बीच भी है कबीर !

जी हां! हमारे बीच भी ‘कबीर सिंह’ मूवी सदृश्य किरदार है. विगत 28 मई 2019 को छत्तीसगढ़ के औद्योगिक नगर कोरबा के कोतवाली क्षेत्र में कुछ ऐसी ही विचित्र  घटना घटी. मामला पुलिस थाना पहुंचा और पुलिस ने रपट लिख कर छानबीन प्रारंभ कर दी,  मगर कोई सूत्र हाथ नहीं आया .
दरअसल हुआ यह कि छत्तीसगढ़ राज्य विद्युत मंडल के संयंत्र में कार्यरत मधु (काल्पनिक नाम) नामक महिला के आवास पर रात्रि 1 बजे कोई दस्तक देता है. महिला अकेली होती है, वह दरवाजा खोलती है तो देख कर दंग रह जाती है और घबरा जाती है. एक शख्स पूर्ण ” नग्न “घर के बाहर खड़ा था हाथ में चाकू है वह इंजीनियर महिला को धक्का देता है और उसके आवास में बलात, प्रविष्ट होने लगता है. महिला घबरा जाती है मगर साहस देखिए वह उसका हाथ पकड़ लेती है जिसमें वह शख्स चाकू पकड़ा हुआ है. दोनों में छीना झपटी होती है, हल्ला होता है  वह व्यक्ति महिला को धक्का देकर भाग जाता है मगर इस धक्का-मुक्की में इंजीनियर महिला को चाकू से हल्का घाव हो जाता है महिला थाना पहुंच रपट लिखाती है. पुलिस अचंभित थी की यह कैसी घटना है, आदमी नग्न वह भी हाथ में चाकू लेकर आखिर क्या करने महिला के आवास पर आया था. क्या महिला को डराना था, अस्मत लूटनी थी या उस शख्स का इरादा लूट का था? पुलिस ने मौन, मामला दर्ज कर जांच प्रारंभ कर दी मगर कई दिनों तक इसका खुलासा नहीं हो पाया.

दरअसल वह शख्स एक साइको मरीज  था,  जैसा  “कबीर सिंह” फिल्म में शाहिद कपूर अभिनय करता हुआ उस साइको पीड़ित की दास्तां बयां कर रहा है. रंग,समय, परिस्थितियां अलग हो सकती हैं मगर समस्या एक है वह है मानसिक रुग्णता.

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शाहिद के पहले दिग्गजों ने निभाए रोल

शाहिद कपूर ने कबीर सिंह में साइको पेशेंट की भूमिका निभाई है. जिसमें साइको पीड़ितों के मामले में भी देश भर में चर्चा शुरू हो गई है. केंद्र सरकार ने 2016 में साइको अर्थात मानसिक रोगियों के अधिकारों को लेकर मेंटल हेल्थ केयर बिल 2016 कानून पारित किया है जिसमें मानसिक बीमारियों से पीड़ित लोगों को सुरक्षा और इलाज का अधिकार दिया गया है अब आगे मानसिक रोगियों के साथ संवेदना के साथ बर्ताव किया जाएगा शायद यह संभव होने लगे.

शाहिद के पूर्व अभिनेता ट्रेजेडी किंग दिलीप कुमार ने फिल्म ‘अमर’ में, राजेश खन्ना ने ‘रेड रोज’ में और संजीव कुमार ने फिल्म खिलौना में साइको पीड़ित के रोल निभाए हैं. ऐसा ही  रोल कुछ कुछ शाहरुख खान ने दीवाना और डर फिल्मों में निभाया है. यहीं नहीं हौलीवुड में मार्लीन बैडो  स्ट्रीटकार नेम्ड डिजायर, गौड फादर जैसी फिल्में कर इतिहास में अमर हो गए.

आखिर पकड़ा गया कबिर सिंह

21 जून को औद्योगिक नगरी कोरबा के बुधवारी बाजार बस्ती में एक घटना घटित हुई जिसकी रिपोर्ट कोतवाली पुलिस में दर्ज हुई. कोतवाल दुर्गेश शर्मा ने पाया की एक शख्स अपनी नाबालिग बहन को छेड़ता है. यह असामान्य बात है. जब विद्युत कौलोनी की इंजीनियर महिला की रिपोर्ट देखी जाती है तो शख्स का हुलिया व्यवहार वही पाया जाता है जो अपनी बहन के साथ छेड़छाड़ कर गायब है. ऐसे में पुलिस उसकी गिरफ्तारी करती है और पूछताछ में वह शख्स टूट जाता है. महिला इंजीनियर के आमना सामना  होने पर महिला उसे पहचान जाती है.

यह व्यक्ति था अविनाश कुमार संत. दरअसल लंबे समय से यह शख्स ऐसी हरकतें करता रहा. दुर्गेश शर्मा कोतवाल हमारे संवाददाता से बातचीत में खुलासा करते हैं कि सात वर्षों से यह शख्स इसी तरह अनेक हरकतों को अंजाम दे चुका है.

मगर ऐन केन, बचता रहा. हाल में एक दफे धारा 151 के तहत उस पर प्रतिबांधत्मक कार्यवाही भी पुलिस द्वारा की गई थी. यह नशा करता है मानसिक रूप से रूग्ढ़ है और ऐसी हरकतें नशे के हालात में करता है. पुलिस ने अपना कर्तव्य निभाया या कहें औपचारिकता और अविनाश कुमार को जेल भेज दिया गया.

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क्या मानसिक रोगियों के अधिकार हैं ?

आज जब सारी दुनिया में मानवता की बात होती है. गे से लेकर गाय तक की अधिकारों की बात हो रही है, ऐसे में मानसिक रोगियों को क्या जेल भेज कर कानून अपना काम खत्म कर लेगा. देखा जाए तो समलैंगिकों के अधिकारों से छोटा अधिकार साइको पीड़ितों का नहीं है. फिल्म ‘कबीर सिंह’ के बहाने आज मानसिक पीड़ितों के अधिकारों और समाज के उनके प्रति दायित्वों की भी चर्चा होगी. क्योंकि एक साइको पीड़ित क्या कर रहा है वह नहीं जानता है, नशे और बीमारी की हालत में  किया गया अपराध वैसे भी कठोर दंड को रोकता है. आने वाले समय में ऐसे पीड़ितों को जेल भेजने की जगह मानसिक चिकित्सालय में इलाज करवा सभ्य समाज में शामिल करना भी सरकार और समाज का दायित्व है.

महिला शराबियों का टापू…

हर वर्ष 26 जून को ‘अन्तर्राष्ट्रीय नशा निरोधक दिवस ‘ मनाया जाता है. नशीली वस्तुओं जी बी एवं मदिरापान निवारण के लिए ‘सयुंक्त राष्ट्र महासंघ’ ने 7 दिसंबर 1987 को यह पारित किया था. और तब से हर साल लोगों को नशीले पदार्थों के सेवन से होने वाले दुष्परिणामों के प्रति जागरूक करने के उद्देश्य से यह दिवस मनाया जाता है.

छत्तीसगढ़ में शराब सेवन आजकल महिलाओं में भी अधिक रुप से देखने को मिल रहा है . सामान्यतः लोग यह सोचते हैं कि महिलायें आखिर शराब सेवन कैसे कर सकती हैं. वे तो एक सशक्त गृहिणी एवं कार्यों में लीन रहती हैं. परिवार, बच्चे, रिश्तेदार और घर सम्भालने में व्यस्त रहती हैं. किन्तु इस  सोंच को कुछ विकृत मानसिकता पीछे छोड़ रही हैं. पुरुष से बराबरी और कदम से कदम मिलाकर चलने का अर्थ महिलायें कुछ अन्य ही अर्थ से लगा रही हैं.

छत्तीसगढ़ के लगभग सभी 27 जिलों में महिलाओं एवं युवतियों  में शराब का सेवन अधिकतर रुप से किया जा रहा है. छत्तीसगढ़ राज्य  इसमें कताई पीछे नहीं है. यहां हर 2 घर के बाद तीसरे घर में परिवार की कम से कम 1 महिला या युवती शराब का सेवन कर रही है.

महिलाओं में शराब की बढ़ते प्रचलन के कारण व्यक्तिगत, पारिवारिक और सामाजिक जीवन में तनाव उत्पन्न हो रहा है. दाम्पत्य जीवन में प्रेम, उल्लास, उत्साह और आपसी तालमेल में कमी हो रही है जिसके कारण परस्पर विरोध और विवाद का वातावरण विद्यमान हो रहा है. अनेक  दम्पतियों के बीच मतभेद इतने बढ़ गये कि तलाक तक हो चुके हैं.

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बहुत सी महिलायें शराब को फैशन या समान्य शौक समझकर पी रही हैं. समाज में शिष्टाचार एवं आवभगत का साधन मानकर नशा कर रही है और अन्य को भी ऐसा करने पर विवश कर रही हैं. जबकि शराब महिलाओं की सेहत पर विशेषतः दिमाग पर ज्यादा दुष्प्रभाव डाल रहा है. शराबी महिलायें अपने आसपास के माहौल से अधिक मतलब नही रखती हैं. सदा अपने ख्यालों में ही रहते हैं. ऐसी महिलायें अपने समाज और परिवार से दूर होती जा रही हैं तथा कई प्रकार के दुर्घटनाओं एवं अनाचार का भी शिकार हो रही हैं. शराब सेवन कर रही आज की  महिलाओं को इस लत एवं कुकृत्य से मुक्त के लिए परिवार व स्वजनों को उसकी मनोस्थिती समझ कर उनका उचित उपचार करना चाहिए ताकि वे परस्पर प्रेम, सहयोग, अपनापन और विश्वास पाकर मय रुपी भंवर से निकल सकें.

आदिवासी अंचल में शराब की बिक्री में छूट

यहां यह बताना भी लाजमी होगा कि छत्तीसगढ़ प्रदेश में बहुतायत रूप से आदिवासी समुदाय का रहवास है एवं छत्तीसगढ़ में पांचवी अनुसूची लागू है. जिसका परिणाम यह है कि स्थिति एवं जीवन की आचार व्यवहार को ध्यान में रखकर आदिवासी समुदाय को शराब के संदर्भ में छूट मिली हुई है. नियम कहता है कि आदिवासी परिवार प्रतिदिन स्वयं के उपयोग के लिए 10 12 लीटर शराब का विनिर्माण कर सकता है, इसका परिणाम यह हुआ है कि छत्तीसगढ़ के जिला रायगढ़ कोरबा अंबिकापुर बस्तर में घर-घर शराब बन रहा है और यह काम विशेष रूप से महिलाएं करती हैं. और यही कारण है कि शराब का सेवन भी महिलाएं कर रही हैं इन्हें विधिवत रोका नहीं जा सकता. मगर इसके लिए जागरूकता अभियान चलाया जा सकता है यह भी सच है कि बहुतेरे आदिवासी शराब से दूर हैं. जिनमें एक नाम पूर्व जिला मंत्री आदिवासी छात्र नेता ननकीराम कंवर एवं बोध राम कंवर का भी है जो कि शराब का कतई सेवन नहीं करते एवं जागरूकता अभियान में भागीदारी करते रहते हैं. सामाजिक संस्थाओं एवं सरकार का यह दायित्व है कि शराब की बुरी लत से बचाने के लिए कुछ नियम बनाया जाए एवं उनका प्रचार-प्रसार हो ताकि महिलाएं मद्यपान से बचें और स्वस्थ जीवन यापन कर सकें.

सामाजिक अपराधों की जड़ बन चुका है शराब

छत्तीसगढ़ प्रदेश में शराब की बहुतायत बिक्री के परिणाम स्वरूप यहां आए दिन जघन्य अपराध घटित हो रहे हैं. हत्या बलात्कार अनाचार शोषण यह निरंतर अखबारों में सुर्खियां प्राप्त करता है इनके पीछे विश्लेषण करें तो मिलता है कि इन अपराधों की जड़ में शराब है. महिलाएं शराब का सेवन करती हैं और खुद गाहे-बगाहे इसका शिकार होते जा रही है. ऐसी एक घटना विगत दिनों जिला मुंगेली के ग्राम देवरी में घटित हुई जहां पति पत्नी दोनों ने शराब का सेवन किया और रात्रि भोजन में चावल का भात नहीं बनाए जाने के प्रश्न पर पति ने पत्नी की हत्या कारित कर दी.

ऐसा ही प्रसंग बिलासपुर जिला के पेंड्रा विकासखंड के ग्राम कुसमी में घटित हुआ जहां पति ने पत्नी की हत्या इसलिए कर दी कि वह लगातार शराब पीकर उसे हलाकान किए रहती थी.

नगरीय महिलाएं बहुत आगे निकल चुकी हैं

हमारा यह प्रसंग अधूरा जाएगा अगर हम शहरी महिलाओं के गतिविधियों पर निगाह नहीं डालते. यह सच सुबह का सामने आ चुका है कि नगर की महिलाएं शिक्षित होने के बावजूद मद्यपान की और बहुत आगे बढ़ चुकी हैं अक्सर शराब के कारण शहरी क्षेत्र में भी अपराध की घटनाएं सुर्खियों में होती हैं. विगत दिनों राजधानी रायपुर के एक विशेष टाउनशिप में एक घर में महिलाओं का जमावड़ा और शराब पार्टी के बाद हंगामा तत्पश्चात मामला पुलिस तक पहुंचा यह सारा घटनाक्रम बताता है कि राजधानी रायपुर हो या अन्य नगर महिलाओं में शराब का चलन बढ़ता चला जा रहा है और छोटी बड़ी पार्टियों में शराब का खुलकर सेवन जारी है. इस संपूर्ण घटनाक्रम में जहां महिलाएं शराब की ओर आगे बढ़ रही हैं उनमें पुरुष भी कदम से कदम मिलाकर साथ दे रहा है. यह प्रारंभिक चरण में तो बड़ा आकर्षक होता है. आगे जाकर परिवार और समाज के लिए घातक ही सिद्ध होता है यह बार-बार अपराध घटित होने के बाद लोगों को समझ में आता है मगर शायद तब तक बहुत देर हो चुकी होती है.

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संस्कारधनी कहे जाने वाले बिलासपुर शहर में महिलाओं की किटी पार्टी में शराब का सेवन एवं नृत्य गान खबर चर्चा में रही है. यह घटनाक्रम आगे चलकर के कब अपराध में बदल जाएगा कौन कह सकता है, जरूरत है मद्यपान को रोकने की… अगर महिलाओं में यह बढ़ता चला गया तो इसका सीधा असर परिवार पर पड़ेगा और आने वाले नौनिहाल इसे सीधे प्रभावित होंगे अब यह हमारे आपके हाथों में है कि हम जागरूक हो और इस बुराई से तौबा करें.

बेमानी प्यार का यही नतीजा होता है…

मौत कभीकभी बिन बुलाए मेहमान की तरह चुपके से आती है और चील की तरह झपट्टा मार कर किसी को भी साथ ले जाती है. ऐसा नहीं है कि मौत आने से पहले दस्तक नहीं देती. असल में मौत दस्तक तो देती है, पर लोग उस पर ध्यान नहीं देते. कोई नहीं जानता कि वक्त कब करवट लेगा और खुशियां गम में बदल जाएंगी. ऐसा ही कुछ योगेश के साथ भी हुआ था.

आगरा के थाना सिकंदरा क्षेत्र में एकगांव है अटूस. राजन अपने परिवार के साथ इसी गांव में रहता था. उस का गांव में ही दूध का व्यवसाय था. वह बाहर से तो दूध खरीदता ही था, उस की अपनी भी कई दुधारू भैंसे थीं. राजन गांव का खातापीता व्यक्ति था. वह अपने बच्चों को खूब पढ़ाना चाहता था.

उस का बड़ा बेटा पढ़ाई में काफी तेज था. इसलिए परिवार को उस से काफी उम्मीदें थीं. राजन के घर से कुछ ही दूरी पर रिटायर्ड फौजी नरेंद्र का घर था. एक ही गांव के होने की वजह से दोनों परिवार के लोगों में आतेजाते दुआसलाम तो हो जाती थी, पर ज्यादा नजदीकियां नहीं थीं. दोनों परिवारों के बच्चे गांव के दूसरे बच्चों की तरह साथसाथ खेल कर बड़े हुए थे. वक्त के साथ फौजी नरेंद्र की बेटी अनमोल जवान हुई तो मांबाप ने उसे समझाने की कोशिश की कि वह लड़की है और लड़की को अपनी मर्यादा में रहना चाहिए.

दरअसल, फौजी की बेटी अनमोल और राजन का बेटा योगेश एक ही कालेज में पढ़ते थे. आए दिन होने वाली मुलाकातों की वजह से दोनों एकदूसरे के करीब आने लगे थे. धीरेधीरे दोनों में दोस्ती हो गई और उन्हें लगने लगा कि उन के मन में एकदूसरे के लिए कोमल भावनाएं विकसित हो रही हैं.

दोनों बीए में में पढ़ रहे थे. एक दिन अनमोल जब आगरा जाने के लिए सड़क पर किसी वाहन का इंतजार कर रही थी तो योगेश अपनी बुलेट पर वहां आ गया. वह बाइक रोक कर अनमोल से बोला, ‘‘आओ बैठो.’’

‘‘नहीं तुम जाओ, मैं औटो से जाऊंगी.’’ जवाब में अनमोल ने कहा.

‘‘छोड़ो यार, ये क्या बात हुई. मैं भी तो कालेज ही जा रहा हूं.’’ कहते हुए योगेश बेतकल्लुफ हो गया और अनमोल का हाथ पकड़ते हुए बोला, ‘‘बैठो.’’

अनमोल उस के साथ बुलेट पर बैठ गई. उस के लिए यह एक नया अनुभव था, फिर भी वह यह सोच कर डरी हुई थी कि किसी ने देख लिया तो खबर घर तक पहुंच जाएगी. अनमोल इसी सोच में डूबी थी कि योगेश ने काफी शौप के सामने बाइक रोक दी.

‘‘बाइक क्यों रोक दी. कालेज चलने का इरादा नहीं है क्या?’’

‘‘कालेज भी चलेंगे, पहले एकएक कप कौफी पी लें.’’ कहते हुए वह अनमोल को कौफी शौप में ले गया. कौफी पीने के दौरान दोनों के बीच खामोशी छाई रही. अनमोल जहां डरी हुई थी वहीं योगेश उस से वह सब कहना चाहता था, जो काफी दिनों से उस के दिल में था.

अचानक उस ने अनमोल का हाथ पकड़ा तो वह कांप उठी. उस ने गहरी नजरों से योगेश को देखा और अपना हाथ छुड़ाने की कोशिश करने लगी. योगेश थोड़ा गंभीर हो कर बोला, ‘‘अनमोल मैं तुम से प्यार करने लगा हूं. तुम्हें हर वक्त आंखों के सामने रखना चाहता हूं.’’

अनमोल खिलखिला कर हंसते हुए बोली, ‘‘लगता है, तुम्हारी शामत आने वाली है. जानते हो मेरे पिता फौजी हैं. उन्हें पता चला तो…’’

‘‘जानता हूं, उन्हें छोड़ो तुम्हें तो पता चल गया न, तुम बताओ क्या करने वाली हो?’’

‘‘मैं क्या करूंगी, तुम तो जानते हो कि लड़कियां अपने दिल की बात आसानी से नहीं कह पातीं.’’ कहते हुए अनमोल मुसकराई तो योगेश के दिल की धड़कनें तेज हो गईं.

उस ने कहा, ‘‘मुझे तुम्हारा जवाब चाहिए था, तुम्हें मेरी मोहब्बत कुबूल है न?’’

अनमोल को योगेश अच्छा लगता था. उस ने सहजभाव से योगेश की मोहब्बत कुबूल कर ली. उस दिन के बाद तो जैसे दोनों की दुनिया ही बदल गई.

एक दिन अनमोल और योगेश ताजमहल देखने गए, जहां उन्हें देर तक पासपास बैठने का मौका मिला. उस दिन दोनों ने एकदूसरे से खुल कर बातें कीं. उस दिन के बाद धीरेधीरे दोनों की मोहब्बत परवान चढ़ने लगी.

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दोनों समाज की नजरों से छिप कर मिलने लगे. साथसाथ जीनेमरने की कसमें खा कर दोनों ने तय किया कि चाहे कुछ भी हो जाए दोनों शादी करेंगे और अपनी अलग दुनिया बसाएंगे.

हालांकि अनमोल जानती थी कि उस का फौजी पिता किसी भी सूरत में उन की मोहब्बत को मंजिल तक नहीं पहुंचने देगा. लेकिन अनमोल और योगेश ने तय कर लिया कि जमाना लाख विरोध करे, लेकिन वे अपनी मोहब्बत के रास्ते पर चल कर अपने परिजनों को यह मानने के लिए मजबूर कर देंगे कि वे एकदूसरे के लिए ही बने हैं.

प्यार में बदली दोस्ती

यह प्रेमी युगल की सोच थी लेकिन मोहब्बत की इस राह पर इतने कांटे थे कि उन के लिए मंजिल तक पहुंचना आसान नहीं था. अनमोल के पिता के भाई गांव के पूर्व प्रधान थे. इस नाते इस परिवार का इलाके में काफी दबदबा था. लेकिन उन दोनों की आशिकी को इस से कोई फर्क नहीं पड़ा था.

उन का मिलनाजुलना चलता रहा. एक दिन किसी ने नरेंद्र को बताया कि उस ने उस की बेटी को राजन के बेटे से बातचीत करते देखा है. यह सुनते ही नरेंद्र का खून गर्म हो गया. वह गुस्से में घर पहुंचा और अपनी पत्नी सरोज से अनमोल के बारे में पूछा कि वह कहां है. पत्नी ने बताया कि अनमोल अभी कालेज से नहीं लौटी है.

‘‘पता है तुम्हारी बेटी कालेज जाने के बहाने क्या गुल खिला रही है?’’ नरेंद्र ने सरोज से कहा, तो वह बोली, ‘‘क्या बात है, अनमोल ने कुछ किया है क्या? वह तो सीधीसादी लड़की है, अपनी पढ़ाई पर ध्यान देती है.’’

‘‘जानता हूं, पर आज पता चला है कि वह राजन के बेटे से दोस्ती बढ़ाए हुए है, जानता हूं कालेज में बच्चे एकदूसरे से बातें करते हैं, लेकिन सोचो बात इस से आगे बढ़ गई तो क्या करेंगे?’’

‘‘कुछ नहीं होगा. तुम चाय पियो वह आती ही होगी. पूछ लेना.’’ कह कर सरोज ने चाय का प्याला नरेंद्र के आगे रख दिया. थोड़ी देर में अनमोल आ गई. पिता को देख कर वह अपने कमरे में जाने लगी तो नरेंद्र ने टोका, ‘‘कहां से आ रही हो?’’

‘‘कालेज से.’’ अनमोल ने जवाब दिया.

‘‘ये योगेश कौन है?’’ नरेंद्र ने पूछा तो अनमोल चौंकने वाले अंदाज में बोली, ‘‘कौन योगेश?’’ अनमोल ने कहा, ‘‘पापा, कालेज में तो कई लड़के पढ़ते हें, मुझे हर किसी का नाम थोड़े ही पता है.’’

नरेंद्र समझ गया कि लड़की उतनी भी सीधी नहीं है, जितनी उसे समझा जाता है. लड़की पर ध्यान देना जरूरी है.

अपने कमरे में जा कर अनमोल ने किताबें मेज पर पटकीं और सोचने लगी कि जरूर पिता को शक हो गया है. अब सतर्क रहना होगा. वह काफी तनाव में आ गई.

अनमोल जानती थी कि जाति एक होने के बावजूद उस के मांबाप योगेश को कभी नहीं अपनाएंगे. वजह यह कि हैसियत में उस का परिवार योगेश के परिवार के मुकाबले काफी संपन्न था. देर रात फोन कर के उस ने यह बात योगेश को बता दी. योगेश ने कहा, ‘‘ठीक है, आगे क्या करना है देखेंगे.’’

निगाह रखी जाने लगी अनमोल पर दूसरी ओर नरेंद्र निश्चिंत नहीं था. अगले कुछ दिनों में उसे पता चल गया कि लड़की गलत राह पर जा रही है. इसी के मद्देनजर उस ने सरोज से कहा, ‘‘अनमोल अब घर रह कर ही पढ़ाई करेगी. इम्तिहान आएंगे तो देखेंगे क्या करना है.’’

अनमोल ने पिता की बात का विरोध करते हुए कहा, ‘‘लेकिन मैं ने किया क्या है पापा?’’

‘‘तुम अच्छी तरह जानती हो कि तुम ने क्या किया है. इस से पहले कि तुम समाज में हमारा सिर नीचा करो, मैं तुम्हारे लिए रिश्ता देख कर तुम्हारी शादी कर दूंगा.’’

लेकिन इस से पहले कि नरेंद्र अपने सिर से बोझ उतार पाता, अनमोल और योगेश ने घर मे भाग कर अपनी अलग दुनिया बसाने का फैसला कर लिया. एक दिन रात में जब सब सो रहे थे, अनमोल ने घर छोड़ दिया और योगेश के साथ चली गई. सुबह घर वालों ने देखा तो सन्न रह गए. बाहर वाला दरवाजा खुला था और अनमोल घर से लापता थी.

इस के बाद तमाम जगहों पर फोन किए गए लेकिन अनमोल का कहीं पता नहीं चला. कोई रास्ता न देख नरेंद्र अपने घर वालों के साथ योगेश के पिता राजन से मिला. उन की बात सुन कर राजन हैरान रह गया उसे कुछ भी पता नहीं था. राजन ने विश्वास दिलाया कि वह उन की बेटी को सही सलामत वापस लाएगा.

राजन जानता था कि बेटे की ये हरकत उस के परिवार को मुसीबत में डाल सकती है. उस ने अपनी रिश्तेदारियों में फोन मिलाए तो पता चला कि योगेश और अनमोल उस के एक करीबी रिश्तेदार के घर पर मौजूद हैं. उस ने अपने उस रिश्तेदार को सारी बात बता कर कहा कि वह तुरंत दोनों को साथ ले कर अटूस आ जाए.

ऐसा ही हुआ. अनमोल अपने मांबाप के घर आ गई. वह समझ गई थी कि योगेश के साथ अपनी दुनिया बसाने का सपना अब कभी पूरा नहीं होगा. अब उस पर बंदिशें भी बढ़ गईं. साथ ही नरेंद्र अनमोल के लिए लड़का भी तलाशने लगा. आखिर एक रिश्ता मिल ही गया. अनमोल का रिश्ता गाजियाबाद के भोपुरा निवासी नेत्रपाल से तय कर दिया गया.

नेत्रपाल एक दवा कंपनी का प्रतिनिधि था. 4 साल पहले अनमोल की शादी नेत्रपाल के साथ हो गई. वह रोतीबिलखती खाक हुए अपने प्यार के सपनों की राख समेटे सुसराल चली गई.

अनमोल नहीं भूली अपने प्यार को

मांबाप ने सोचा कि चलो सब कुछ ठीक हो गया. लेकिन यह उन की भूल थी. 3 साल के प्रेमसंबंधों को भला प्रेमी प्रेमिका कैसे भूल सकते थे. समाज ने उन्हें जबरन अलग किया था. सीधीसादी दिखने वाली अनमोल अब विद्रोही हो गई थी. ससुराल में उस का मन नहीं लगता था. उसे अपनी स्थिति एक कैदी जैसी लगती थी. मौका पा कर वह योगेश से फोन पर बात कर लेती थी.

अपने काम में व्यस्त रहने वाला नेत्रपाल इस सब से बेखबर था. इसी बीच अनमोल गर्भवती हो गई, लेकिन वह अपने पति के बच्चे को जन्म देने के लिए तैयार नहीं थी. उस ने एक दिन नेत्रपाल से कहा कि अभी वह बच्चे को जन्म देने की स्थिति में नहीं है. पत्नी बच्चे को जन्म देने की इच्छुक नहीं थी. न चाहते हुए भी नेत्रपाल मान गया. उस ने पत्नी का गर्भपात करा दिया.

अनमोल की शादी के बाद घर वालों के दबाव में योगेश भी एक अन्य लड़की से शादी करने को तैयार हो गया. उस की शादी वंदना के साथ हो गई. वंदना को इस बात की भनक तक नहीं थी कि उस का पति किसी दूसरी लड़की से प्यार करता था और उसे ले कर भाग भी गया था. वह खामोशी के साथ पत्नी धर्म निभाती रही. बाद में वह एक बच्चे की मां भी बनी.

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इसी बीच कंपनी ने नेत्रपाल को आगरा क्षेत्र का काम सौंप दिया. नेत्रपाल ने थाना सिकंदरा क्षेत्र की कालोनी शास्त्रीपुरम में किराए का मकान ले लिया और वहीं रहते दवा कंपनी का काम करने लगा. वह सुबह घर से निकलता और शाम को लौटता. अपनी पत्नी के प्यार से वह बेखबर था. उसे नहीं मालूम था कि पत्नी शादी से पहले किसी से प्यार करती थी.

शादी के बाद अनमोल जब तब पति के साथ मायके आती और उस के साथ ही वापस चली जाती. योगेश से मिलने का मौका ही नहीं मिलता था. लेकिन अब शास्त्रीपुरम में पति के काम पर चले जाने के बाद वह घर में अकेली रह जाती थी.

उस का अकेलापन एक ऐसे गुनाह को जन्म देगा, जिस में पूरा परिवार तबाह हो जाएगा, यह अनमोल नहीं समझ पाई. उस ने आगरा आ जाने की खबर अपने प्रेमी योगेश को फोन पर दे दी और अपना पता भी बता दिया. उस ने योगेश से मिलने की इच्छा भी व्यक्त की.

प्रेमिका के आमंत्रण ने योगेश में जोश भर दिया. वह भूल गया कि अब उस की भी शादी हो चुकी है और वह एक बच्ची का पिता है. उस ने तय कर लिया कि वह अपनी प्रेमिका से जरूर मिलेगा.

नरेंद्र ने कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि बेटी फिर से कोई गुल खिलाने वाली है. बेटा जूनियर डाक्टर था और बेटी की उस ने एक अच्छे परिवार में शादी कर दी थी. जबकि अनमोल इसी सब का फायदा उठाना चाहती थी. एक दिन दोपहर को योगेश अनमोल के पास जा पहुंचा.

दोनों ने आगापीछा नहीं सोचा. लंबे अलगाव के बाद अनमोल उस के आगोश में सिमट गई. योगेश ने अनमोल को समझाने की कोशिश की कि अब कुछ नहीं हो सकता. वह एक जिम्मेदार पिता और पति बनना चाहता है. उस ने यह बात कही जरूर लेकिन चाहता वह भी वही था जो अनमोल चाहती थी. नतीजा यह हुआ कि दोनों समाज की आंखों में धूल झोंक कर एक ऐसे रिश्ते को निभाने लगे जिस के कुछ मायने नहीं थे.

अनमोल और योगेश जिस रास्ते पर चल पड़े थे, वह फिसलन भरा था, जो धीरेधीरे दलदल बन गया. ऐसी दलदल जहां से निकल पाना मुश्किल ही नहीं, असंभव था. अनमोल का दिल दिमाग बेकाबू था. वह चाहती थी कि वह नेत्रपाल के साथ वैवाहिक बंधन से मुक्त हो कर एक बार फिर आजाद जिंदगी जिए और योगेश के साथ अपनी दुनिया बसाए.

यह अलग बात थी कि योगेश के पास अपनी निजी आय का कोई साधन नहीं था और न ही वह अपनी पत्नी और बेटी की जिम्मेदारियों से मुक्त हो सकता था. योगेश जानता था कि वह अपनी बेटी और पत्नी का गुनहगार है, लेकिन यह नहीं जानता था कि यह गुनाह उस की जिंदगी ही छीन लेगा.

18 अगस्त, 2018 की रात करीब साढ़े 8 बजे एक युवती बदहवास सी थाना सिकंदरा पहुंची. उस से थानाप्रभारी अजय कौशल से कहा, ‘‘सर, जल्दी चलिए, वो लोग उसे कार में कहीं ले गए हैं और उसे मार डालेंगे.’’ युवती थाना इंचार्ज को समझा नहीं पा रही थी कि कौन किसे मार डालेगा. अजय कौशल ने संतरी को पानी लाने को कहा. युवती ने पानी पी लिया तो अजय कौशल ने पूछा, ‘‘हां, अब बताओ क्या बात है?’’

इस के बाद युवती ने जो कुछ बताया उसे सुन कर थानाप्रभारी के होश उड़ गए. उन्होंने ड्राइवर से तुरंत गाड़ी तैयार करने को कहा और पुलिस टीम के साथ उस युवती को ले कर शास्त्रीपुरम पहुंचे. तब तक रात के साढ़े 9 बज चुके थे. इलाके में गहरा सन्नाटा था. आसपास के मकानों के दरवाजे बंद थे.

अनमोल ने दरवाजा खोला तो अजय कौशल ने अंदर जा कर देखा. कमरे का फर्श गीला था. अनमोल ने बताया कि फर्श का खून उसी ने साफ किया है. अब तक वह सामान्य हो चुकी थी.

उस ने थानाप्रभारी को फिर पूरी कहानी सुनाई कि कालेज के समय से वह योगेश से प्यार करती थी. दोनों शादी भी करना चाहते थे, लेकिन समाज के आगे उन की एक नहीं चली.

योगेश की भी शादी हो चुकी थी. दोनों का मिलनाजुलना मुश्किल हो गया था, पर जब नेत्रपाल का तबादला आगरा हो गया तो हम ने शास्त्रीपुरम में किराए का मकान ले लिया. यहां आ कर योगेश से मिलने का रास्ता भी साफ हो गया था. जब भी मौका मिलता हम मिल लेते थे. नेत्रपाल दोपहर में कम ही आता था. जब उसे आना होता था तो वह फोन करता था.

आगे की पूछताछ में जो बातें पता चलीं, उन के अनुसार, 19 अगस्त, 2018 को अनमोल ने योगेश के वाट्सऐप पर मैसेज भेजा कि वह आ जाए. योगेश अपने लिए नौकरी ढूंढ रहा था. नौकरी के लिए उस ने कई फार्म भी भरे थे. वह दोपहर को घर से यह कह कर निकला कि फार्म भरने आगरा जा रहा है. लेकिन वह गया तो वापस नहीं लौटा उस के घर वाले परेशान थे. बहरहाल, अनमोल ने पुलिस को पूरी बात बता दी. उसी के आधार पर पुलिस ने छानबीन की.

आशिक की मौत

हालांकि अनमोल के अनुसार उस ने फर्श से खून साफ कर दिया था, लेकिन दीवारों पर खून के धब्बे थे. पुलिस की क्राइम टीम ने उन धब्बों को उठा लिया.

अनमोल ने आगे जो बताया उस के अनुसार क्राइम की तसवीर कुछ इस तरह बनी.अनमोल ने योगेश को घर बुला लिया था. जब दोनों प्यार के क्षणों में डूबे थे, तभी नेत्रपाल आ गया. दरअसल उसे पिछले कुछ दिनों से पत्नी पर शक हो गया था. पति को आया देख अनमोल घबरा गई. उस ने योगेश को स्टोररूम में छिपा दिया. नेत्रपाल ने कई बार घंटी बजाई, लेकिन अनमोल ने दरवाजा नहीं खोला. वह काफी घबराई हुई थी, कपड़े अस्तव्यस्त थे.

कुछ देर बाद दरवाजा खुला तो नेत्रपाल ने पूछा, ‘‘दरवाजा खोलने में देर क्यों हुई?’’

‘‘मैं नहा रही थी.’’ अनमोल ने कहा.

‘‘ऐसा लग तो नहीं रहा.’’ नेत्रपाल ने कहा. तभी उस की नजर स्टोर के अधखुले दरवाजे पर पड़ी तो उस का शक बढ़ गया. उस ने स्टोर का दरवाजा खोलने की कोशिश की तो अंदर से जोर लगा कर किसी ने दरवाजा खोलने नहीं दिया. नेत्रपाल समझ गया कि उस का शक सही है.

तभी अनमोल ने कहा, ‘‘उसे छोड़ दो प्लीज, उसे जाने दो वह निर्दोष है. मैं ने ही उसे बुलाया था.’’ गुस्से में भरे नेत्रपाल ने अपने ससुर नरेंद्र को फोन पर सारी बात बताई. कुछ ही देर में नरेंद्र और उस के भाई का बेटा वहां पहुंच गए. इस के बाद योगेश को स्टोर से बाहर निकाला गया. तीनों सरिया और लोहे की रौड से योगेश पर टूट पड़े. अनमोल ने उसे बचाने की कोशिश की तो उस की भी पिटाई की गई. तीनों ने पिटाई से खूनोंखून हुए योगेश को देखा तो उन के होश उड़ गए. वह बेहोश हो गया था. इस बीच अनमोल को एक कमरे में बंद कर दिया गया था. उसे यह पता नहीं था कि योगेश मर गया था या जिंदा था.

8 बजे के करीब तीनों ने जब योगेश को कमरे में डाला तब वह मर चुका था. अब उन्हें पुलिस का डर सताने लगा था. कमरे का दरवाजा खोल कर अनमोल को बाहर निकाला और उस से चुप रहने को कहा गया. फिर वे चले गए. अनमोल ने कमरे से बाहर आ कर खून सना फर्श साफ किया और थाना सिकंदरा पहुंच गई.

उधर राजन और उस का बेटा शिशुपाल योगेश की तलाश कर रहे थे. दूसरी ओर पुलिस को योगेश की बुलेट मोटरसाइकिल पड़ोस के एक घर के सामने मिल गई. रात भर पुलिस तीनों को आगरा की सड़कों पर तलाशती रही. आखिर अगले दिन दोपहर को पुलिस ने एक मुखबिर की सूचना पर नेत्रपाल और नरेंद्र को दबोच लिया. पुलिस ने राजन को भी घटना को सूचना दे दी थी.

आरोपियों ने बताया कि उन्होंने योगेश को मारापीटा और बेहोशी की हालत में उसे जऊपुरा के जंगल में फेंक आए. उन की निशानदेही पर पुलिस ने योगेश का शव जऊपुरा के जंगल से बरामद कर लिया. आरोपियों ने कत्ल में इस्तेमाल सरिया और लोहे की रौड भी बरामद करा दी.

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पुलिस ने तीसरे अभियुक्त अनमोल के चचेरे भाई को भी गिरफ्तार कर लिया. बाद में तीनों को अदालत में पेश किया गया. उन के साथ अनमोल को भी अदालत में पेश किया. उस पर सबूत नष्ट करने का आरोप था. इन सभी के खिलाफ राजन ने भादंवि की धारा 302, 201, 364, 34 के अंतर्गत मुकदमा दर्ज करा दिया था. अदालत ने आरोपियों को जेल भेज दिया.

अपनेअपने जीवनसाथियों से असंतुष्ट योगेश और अनमोल ने विवाह के बाद भी टूटे सपनों को फिर से संजोने का प्रयास किया, जो गलत था. इस का नतीजा भी गलत ही निकला. इस चक्कर में कई जिंदगियां बरबाद हो गई.

 -कथा में सरोज नाम बदला हुआ है

(कहानी सौजन्य- मनोहर कहानियां)

फेसबुक के जरिए पकड़े कैश लुटेरे

राजूराम नायक एटीएम में रुपए डालने वाली एक कंपनी में काम करता था. इसलिए वह कैशवैन की सुरक्षा से संबंधित खामियों को जानता था. इसी का फायदा उठाते हुए उस ने एक दिन अपने साथियों के साथ कैश वैन से 74 लाख रुपए बड़ी आसानी से लूट लिए. काफी कोशिश के बाद पुलिस फेसबुक से लुटेरों तक पहुंच ही गई. फिर…  —

राजस्थान में नागौर जिले का एक शहर है मकराना. मकराना का मार्बल पत्थर पूरे भारत में प्रसिद्ध है. देश की कई ऐतिहासिक

और प्राचीन इमारतों में मकराना का पत्थर लगा हुआ है. मकराना के पास ही बोरावड़ कस्बा है.

बीती 22 अप्रैल की बात है. विभिन्न बैंकों के एटीएम में पैसे डालने वाली वैन दोपहर करीब 3 बज कर 50 मिनट पर बोरावड़ पहुंची. वैन में सवार लोगों ने पीएनबी के एटीएम में 18 लाख रुपए डाले. इस के बाद वैन परबतसर व बडू के एटीएम में रुपए डालने के लिए रवाना हो गई.

वैन मकराना का रहने वाला रमेश चला रहा था. वैन में पलाड़ा निवासी गार्ड प्रताप सिंह के साथ 2 अन्य कर्मचारी करतारपुरा निवासी कस्टोडियन संजू सिंह और मकराना निवासी कमल किशोर माथुर भी सवार थे. गार्ड प्रताप सिंह के पास बंदूक थी. सीएमसी इंफो सिस्टम प्राइवेट लिमिटेड कंपनी की इस वैन से मकराना बोरावड़ परबतसर आदि इलाकों में एसबीआई, पीएनबी, बैंक औफ बड़ौदा, आईसीआईसीआई बैंक और ओरियंटल बैंक औफ कौमर्स के एटीएम में रुपए डाले जाते थे.

वैन बोरावड़ से आधा किलोमीटर दूर छापर बस्ती के पास बिदियाद रोड पर पहुंची थी. चालक रमेश अपनी धुन में वैन चला रहा था. वैन में सवार गार्ड प्रताप सिंह और 2 अन्य कर्मचारी आपस में बातें कर रहे थे. तभी पीछे से एक जीप ने हौर्न बजाया.

हौर्न सुन कर रमेश ने पीछे आ रही जीप को साइड दे दी. पीछे से आई जीप ने बराबर में आते ही वैन को टक्कर मार दी. टक्कर से वैन का संतुलन बिगड़ गया. वैन पास की एक दीवार से जा टकराई.

चालक रमेश और वैन में बैठे तीनों लोग कुछ समझ पाते, इस से पहले ही जीप चालक ने अपनी गाड़ी पीछे ले कर वैन में फिर टक्कर मारी. इस के तुरंत बाद जीप से 6 लोग नीचे उतरे और वैन को चारों तरफ से घेर लिया. सभी लोगों के चेहरे ढके हुए थे.

नकाबपोश बदमाशों ने पिस्तौल दिखा कर वैन चालक रमेश, गार्ड प्रताप सिंह और दोनों कर्मचारियों को धमकाया और उन से मारपीट की. फिर उन्होंने सब से पहले गार्ड प्रताप सिंह की 12 बोर की बंदूक छीनी. एक बदमाश ने चालक रमेश से वैन की चाबी छीन ली.

इस के बाद बदमाशों ने वैन में सवार चारों लोगों के मोबाइल फोन ले लिए और उन्हें दीवार की तरफ मुंह कर के घुटनों के बल बैठा दिया. इस के बाद बदमाशों ने वैन में लोहे की जंजीरों से बंधे रुपयों से भरे बक्से की जंजीर और ताला तोड़ दिया. बक्से को अपनी जीप में रख कर बदमाश भाग गए. उस बक्से में करीब 74 लाख रुपए थे.

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इस वारदात में मुश्किल से 5-7 मिनट लगे. उस वक्त शाम के करीब 4:20 का समय था. अचानक हुई इस वारदात से वैन में सवार चारों लोग सकते में आ गए. वैन में रुपए लाना, ले जाना और बैंकों के एटीएम में रुपए डालना उन का रोजाना का काम था.

इस इलाके में पहले इस तरह की कोई वारदात भी नहीं हुई थी. सुरक्षा के तौर पर वैन के साथ बंदूकधारी गार्ड भी चलता था, लेकिन बदमाशों ने गार्ड की बंदूक छीन कर बचाव का मौका ही नहीं दिया था.

बदमाश रुपयों से भरे बक्से के साथ वैन में सवार चारों लोगों के मोबाइल भी ले गए थे. एक कर्मचारी के पास 2 मोबाइल थे, इसलिए उस का एक मोबाइल बच गया था. लुटेपिटे कर्मचारियों ने पहले अपनी कंपनी में और इस के बाद पुलिस को सूचना दी.

सूचना मिलने पर मकराना थाना पुलिस मौके पर पहुंची. वैन कर्मचारियों से 74 लाख रुपए लूटे जाने की बात सुन कर हड़कंप मच गया. तुरंत पुलिस अधिकारियों को सूचना दे कर पूरे नागौर जिले के अलावा आसपास के इलाकों में नाकेबंदी करा दी गई.

मकराना थानाप्रभारी जितेंद्र सिंह चारण और पुलिस उपाधीक्षक सुरेश कुमार सांवरिया ने मौका मुआयना करने के बाद वैन में सवार चारों लोगों को थाने ले जा कर पूछताछ की.

पूछताछ में पता चला कि एटीएम में पैसे डालने के लिए उन्होंने उसी दिन दोपहर में मकराना स्थित स्टेट बैंक औफ इंडिया की चेस्ट ब्रांच से 84 लाख रुपए निकलवाए थे.

इस के बाद उन्होंने मकराना में जयशिव चौक स्थित एसबीआई के एटीएम में 16 लाख रुपए डाले थे. फिर मकराना-बोरावड़ बाइपास पर पैट्रोलपंप के एटीएम में पैसा डालने पहुंचे. इस एटीएम का लौक खराब था, जबकि उस में रुपए भरे थे. वैन में सवार कर्मचारियों ने सुरक्षा के नजरिए से इस एटीएम में रखे 23 लाख 71 हजार 800 रुपए निकाल लिए.

बाद में उन्होंने बोरावड़ में पीएनबी के एटीएम में 18 लाख रुपए डाले. बोरावड़ से जब ये लोग परबतसर व बडू के एटीएम में रुपए डालने के लिए जा रहे थे, तभी रास्ते में लूट की वारदात हो गई. लूट की वारदात के समय वैन में 73 लाख 71 हजार 800 रुपए थे.

लूट की इस वारदात में पुलिस को सब से पहले वैन में सुरक्षा की सब से बड़ी कमी नजर आई. आमतौर पर नोटों को लाने ले जाने के लिए बख्तरबंद गाडि़यों का उपयोग किया जाता है. इस के अलावा सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम भी होते हैं.

लेकिन इस इलाके में एटीएम में रुपए डालने वाली कंपनी सीएमसी इंफो सिस्टम प्राइवेट लिमिटेड ने सुरक्षा के मानकों का ध्यान नहीं रखा था. कर्मचारियों ने बताया कि वे हमेशा इसी वैन से रुपए डालने का काम करते हैं.

बदमाशों ने इतनी बड़ी रकम लूटी थी, लेकिन उन्होंने न तो वैन के कर्मचारियों से कोई खास मारपीट की और न ही कोई गोली चलाई. दिनदहाड़े हुई इस वारदात पर पुलिस को कई तरह के संदेह भी हुए.

संदेह इस बात का भी था कि जीप के टक्कर मारते ही गार्ड ने अलर्ट हो कर गोली क्यों नहीं चलाई? एक कारण यह भी था कि चारों कर्मचारियों ने लुटेरों का किसी तरह का कोई विरोध क्यों नहीं किया? लूट का शिकार हुए 3 कर्मचारी मकराना के रहने वाले थे, इस से भी पुलिस को कई तरह के संदेह हुए.

एसपी डा. गगनदीप सिंगला ने भी घटनास्थल पर जा कर मौकामुआयना किया. उन्होंने एफएसएल की टीम बुला ली थी. एसपी सिंगला ने लूट के इस मामले को गंभीरता से लिया और हरसंभव नजरिए से जांच करने और बदमाशों का पता लगाने के लिए 5 टीमों का गठन कर दिया. इन टीमों की जिम्मेदारी पुलिस उपाधीक्षक सुरेश सांवरिया, मकराना थानाप्रभारी जितेंद्र सिंह, एसआई दिलीप सहल, कुचेर और परबतसर के थानाप्रभारियों को सौंपी गई.

पुलिस की एक टीम ने चारों कर्मचारियों से अलगअलग पूछताछ की. इस के साथ ही उन की बताई बातों की पुष्टि भी की. कर्मचारियों की बातों में कोई विरोधाभास नजर नहीं आया.

लुटेरों की तलाश में जुटी पुलिस को वारदात के कुछ घंटे बाद ही रात को सबलपुर रोड पर वह बक्सा मिल गया, जिसे बदमाश वैन से लूट कर ले गए थे. बक्सा खाली था. जिस जगह यह बक्सा मिला, वह जगह वारदात वाली जगह से करीब 5 किलोमीटर दूर थी.

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दूसरे दिन 23 अप्रैल को पुलिस ने चारों कर्मचारियों को बुला कर फिर अलगअलग पूछताछ की ताकि लुटेरों का कोई सुराग मिल सके. लेकिन ऐसा कोई सुराग नहीं मिला.

पुलिस ने बोरावड़ से ले कर घटनास्थल तक के रास्ते में लगे सीसीटीवी कैमरों के फुटेज भी खंगाले. एडीशनल एसपी नीतेश आर्य ने एटीएम में रुपए डालने वाली कंपनी के अधिकारियों से पूछताछ की.

पुलिस को इस कंपनी की लापरवाही साफ नजर आ रही थी. कंपनी ने वाणिज्यिक बख्तरबंद गाड़ी के बजाय एक साधारण निजी वैन को मोटी रकम के परिवहन के काम में लगा दिया था. नियमानुसार कैश वैन में 2 हथियारबंद सिक्योरिटी गार्ड और एक वाहन चालक के साथ 2 एटीएम अधिकारी होने चाहिए.

इन में एक सशस्त्र गार्ड को चालक के साथ आगे की सीट पर बैठना होता है, जबकि दूसरा गार्ड पीछे बैठता है. कैश वैन में जीपीएस निगरानी उपकरण और सुरक्षा अलार्म भी होना चाहिए, जो लूटी गई वैन में नहीं था.

तीसरे दिन भी एसपी और एडीशनल एसपी के साथ तमाम पुलिस अफसर जांचपड़ताल में जुटे रहे, लेकिन लुटेरों का कोई सुराग नहीं मिला. बदमाशों का पता लगाने के लिए पुलिस ने एटीएम में रुपए डालने वाली कंपनी के हाल ही नौकरी छोड़ने वाले कर्मचारियों से भी पूछताछ की.

साथ ही उन के पुराने रिकौर्ड की जानकारी भी जुटाई गई. आसपास के इलाके के बदमाशों और कुछ संदिग्ध लोगों से भी पूछताछ की गई. पुलिस ने कई जगह दबिश भी दी.

इस दौरान पुलिस ने 100 से ज्यादा सीसीटीवी के फुटेज खंगाले. इन में वैन के साथ बाइक पर 2 युवक लगातार आगेपीछे चलते हुए नजर आए. बाइक चला रहे युवक ने सफेद और पीछे बैठे युवक ने नीली चैक वाली शर्ट पहन रखी थी. बाइक चालक कलाई में कड़ा पहने हुए था. ये फुटेज लूट के शिकार कर्मचारियों को दिखाए, तो उन्होंने इन की लुटेरों के साथ होने की पुष्टि की.

बाइक स्पलेंडर थी, लेकिन मोडिफाई कर के पीछे से उसे एनफील्ड जैसा लुक दिया गया था. इस के बाद पुलिस ने करीब 3 हजार मोटरसाइकिलों का भौतिक सत्यापन कर इस इलाके के बाइक मैकेनिकों से जानकारी जुटाई.

एक मैकेनिक से इस बाइक के मालिक के बारे में सुराग मिले. बाइक मालिक की फेसबुक खंगाली तो उस की पहचान मोरेड़ निवासी मनोज पादरा के रूप में हुई. सीसीटीवी फुटेज में मनोज ने जो शर्ट पहन रखी थी, उसी शर्ट में उस की फोटो फेसबुक पर लगी थी. पुलिस ने मनोज पादरा का पता लगा कर उसे पकड़ लिया.

इस के बाद कड़ी से कड़ी जुड़ती गई. पुलिस को कुछ बदमाशों के नामपते पता चल गए. उन के मोबाइल की काल डिटेल्स और लोकेशन निकाली गई. इस के बाद लूट के तार नागौर जिले से अलवर तक जुड़ गए. पता चला कि लूट करने वाले गिरोह का सरगना अलवर के बानसूर का रहने वाला महिपाल यादव था. वारदात में बानसूर और मकराना के युवक शामिल थे.

नागौर के मकराना शहर से कुचेरा थानाप्रभारी देवीलाल के नेतृत्व में एक टीम अलवर जिले के बानसूर इलाके में भेजी गई. बानसूर में पता चला कि महिपाल और उस के कुछ साथी लूट की रकम का बंटवारा करने के लिए सीकर जिले के कस्बा नीमकाथाना गए हैं.

27 अप्रैल को कुचेरा थानाप्रभारी ने नीमकाथाना पुलिस को सूचित कर नाकेबंदी कराई. महावा गांव के पास पुलिस को देख कर विक्रम और अनिल यादव बाइक पर सवार हो कर भाग गए. विक्रम और अनिल दोनों ही बानसूर के रहने वाले थे. महिपाल यादव रुपयों से भरा बैग फेंक कर जंगल की ओर भाग निकला था.

नीमकाथाना सदर पुलिस और कुचेरा पुलिस थानाप्रभारी ने महिपाल का पीछा किया तो वह पहाड़ पर चढ़ गया. कुचेरा थानाप्रभारी देवीलाल, उन का गनमैन कजोड़मल और ड्राइवर महेश भी पहाड़ पर चढ़ गए. देवीलाल ने महिपाल को दबोच लिया तो उस ने उन के हाथ को दांतों से चबा लिया. इस से पकड़ छूटने पर महिपाल पहाड़ से उतर कर जंगल के नालों में भागने लगा. बाद में पुलिस ने घेराबंदी कर उसे पकड़ लिया.

महिपाल यादव ने जो बैग फेंक दिया था, उसे नीमकाथाना पुलिस थाने ले आई. वहां रकम की गिनती की गई तो बैग में करीब 30 लाख रुपए निकले. महिपाल की निशानदेही पर पुलिस ने बानसूर स्थित उस के घर से वारदात में इस्तेमाल की गई मेजर जीप व वैन के गार्ड प्रताप सिंह से लूटी गई बंदूक बरामद कर ली.

पुलिस दल महिपाल को मकराना ले आया. मकराना पुलिस ने महिपाल से पूछताछ के बाद उस के 8 अन्य साथियों को गिरफ्तार कर लिया. नागौर एसपी डा. गगनदीप सिंगला ने 28 अप्रैल को प्रैस कौन्फ्रैंस कर लूट की वारदात का खुलासा किया.

आरोपियों से पूछताछ में लूट की जो कहानी उभर कर सामने आई, वह इस तरह है—

एटीएम में रुपए डालने वाली कंपनी सीएमसी इंफो सिस्टम प्रा.लि. में राजूराम नायक नाम का कर्मचारी काम करता था. किन्हीं कारणों से कंपनी ने उसे हटा दिया था. लेकिन वह कंपनी के एक वाट्सएप ग्रुप से जुड़ा रहा. इसलिए उसे कंपनी की सारी सूचनाएं वाट्सएप पर मिलती रहती थीं. इस में यह सूचना भी होती थी कि वैन कहां जाएगी और उस में कितना पैसा तथा कौनकौन लोग होंगे.

राजूराम मकराना के मोरेड़ गांव का रहने वाला था. इसी गांव का कन्हैया लाल उस का दोस्त था. दोनों साथ बैठ कर शराब पीते थे. इन दोनों की दोस्ती मनोज पादरा से भी थी. वारदात से करीब दो-ढाई महीने पहले राजूराम, कन्हैया लाल और मनोज पादरा ने मिल कर कंपनी की कैश वैन लूटने की योजना बनाई. इन लोगों ने अपनी योजना में सेवाराम को भी शामिल कर लिया.

मोरेड़ गांव का रहने वाला सेवाराम बीकानेर में काम करता था. चारों ने मिल कर भले ही लूट की योजना बना ली थी. लेकिन वे बड़ी वारदात करने की हिम्मत नहीं जुटा पाए. इन के संबंध अलवर जिले के बानसूर के रहने वाले महिपाल उर्फ एमपी यादव से थे. महिपाल यादव कुख्यात अपराधी था. उस के खिलाफ विभिन्न थानों में नकबजनी, डकैती, चोरी, मारपीट आदि के कई मुकदमे दर्ज थे.

इन लोगों ने महिपाल यादव से फोन पर बात कर वारदात से करीब डेढ़ महीने पहले उसे मकराना बुलाया. महिपाल अपने कुछ साथियों के साथ पहुंच गया. उस के आने पर वैन लूटने की योजना को पुख्ता किया गया. लेकिन तय किए गए दिन वैन दूसरे रूट से चली गई. इस के बाद महिपाल और उस के साथी मकराना से वापस लौट गए.

राजूराम नायक ने महिपाल को 22 अप्रैल को मोरेड बुलाया. महिपाल अपने कुछ साथियों के साथ मेजर जीप ले कर मोरेड पहुंच गया. राजूराम नायक, मनोज पादरा, कन्हैयालाल और सेवाराम ने महिपाल और उस के साथियों के साथ बैठ कर उसी दिन कैश वैन लूटने की योजना को अंतिम रूप दिया. उस दिन सोमवार था, राजूराम को पता था कि सोमवार को वैन में ज्यादा कैश होता है.

लूट की योजना को अंतिम रूप दे कर राजूराम इन से अलग हो गया. उसे पता था कि अगर वह साथ रहा, तो वैन में कैश के साथ चलने वाले कर्मचारी उसे पहचान लेंगे. राजूराम ने कन्हैया को महिपाल के साथ उस की जीप में बैठा दिया. कन्हैया को स्थानीय रास्तों को पूरी जानकारी थी. जीप में कन्हैया के साथ महिपाल अपने साथियों के साथ ले कर बोरावड़ कस्बे के बाहर बिदियाद रोड पर सुनसान जगह पर खड़े हो गए.

मनोज पादरा और सेवाराम बाइक पर सवार हो कर बोरावड़ पहुंच कर कैश वैन की रेकी करने लगे. बोरावड़ में पीएनबी के एटीएम में रकम डालने के बाद कैश वैन जब परबतसर और बडू के लिए रवाना हुई. तो मनोज ने मोबाइल पर महिपाल को सूचना दे दी. इस के बाद मनोज व सेवाराम बाइक पर वैन के पीछे चलने लगे.

कैश वैन बोरावड़ से निकल कर छापर बस्ती के पास पहुंची तो पहले से अलर्ट खड़े महिपाल के गिरोह ने तेजी से जीप चला कर पीछे से कैश वैन में टक्कर मारी. इस से वैन एक दीवार से जा टकराई. वैन में सवार लोग जब तक कुछ समझते तब तक जीप ने वैन में दोबारा टक्कर मार दी.

इस के बाद जीप से उतरे महिपाल और उस के साथियों ने पिस्तौल दिखा कर वैन में सवार लोगों को धमकाया. महिपाल ने गार्ड प्रताप सिंह की बंदूक छीन ली. महिपाल के साथियों ने कैश वैन के कर्मचारियों के मोबाइल और उन के 2 बैग छीन लिए. फिर वैन में रखे नोटों से भरे बक्से की जंजीर तोड़ दी और उस बक्से को अपनी जीप में रख कर भाग गए.

जीप में सवार कन्हैया के बताए कच्चे रास्तों से हो कर महिपाल ने अपने साथियों की मदद से बक्से में भरे सारे नोट अलगअलग बैग में भरवाए. फिर वह खाली बक्सा सबलपुर रोड पर फेंक दिया. बाइक पर सवार मनोज पादरा व सेवाराम उन के साथ हो गए. मनोज पादरा जीप के आगे बाइक चलाते हुए महिपाल को सबलपुर, बिल्लू हुलढाणी, भावसिया, नाथ का बेरा, खानपुर, करकेड़ी व सलेमाबाद हो कर हरमाड़ा छोड़ कर चला गया.

हरमाड़ा से मनोज, सेवाराम व कन्हैया बाइक पर सवार हो कर अपने गांव मोरेड़ आ गए. महिपाल जीप से अपने साथियों के साथ नोटों से भरे बैग व गार्ड से छीनी बंदूक ले कर जयपुर होता हुआ बानसूर आ गया. बाद में सेवाराम व मनोज वगैरह सोशल मीडिया के जरिए महिपाल यादव को पुलिस की जांच पड़ताल की सूचनाएं देते रहे.

सीसीटीवी फुटेज के जरिए बाइक सवार मनोज पादरा का पता चलने के बाद पूरे गिरोह का पता चल गया. पुलिस ने लूट के इस मामले में 9 आरोपियों अलवर जिले के बानसूर निवासी महिपाल यादव, लोकेश कुमार, अगर मीणा व धर्मपाल यादव, मकराना के मोरेड़ गांव के रहने वाले राजूराम नायक, मनोज पादरा, कन्हैयालाल ब्राह्मण, सेवाराम जाट और माजरा रावत निवासी यादराम गुर्जर को गिरफ्तार कर लिया.

एसपी डा. सिंगला का कहना है कि कैश वैन लूट की इस वारदात का खुलासा करने में कांस्टेबल रामकुमार विश्नोई की अहम भूमिका रही. रामकुमार पहले मकराना थाने में तैनात था, अब कुचामन थाने में है. रामकुमार के प्रयासों से ही लूटेरों का सुराग मिला.

पुलिस ने गिरफ्तार आरोपियों को अदालत में पेश किया. अदालत ने लूट के मास्टर माइंड महिपाल यादव को 10 दिन और राजू नायक व मनोज को 5-5 दिन के रिमांड पर लिया. बाकी 6 आरोपियों को न्यायिक अभिरक्षा में जेल भेज दिया गया.

कथा लिखे जाने तक लूट की रकम में से करीब 30 लाख रुपए ही बरामद हुए थे. बाकी रकम किन लोगों के पास है, पुलिस पता लगाने की कोशिश कर रही थी. इस के अलावा वारदात में प्रयुक्त हथियारों की बरामदगी और महिपाल के फरार साथियों को पकड़ने की कोशिश भी चल रही थी. वहीं एटीएम में रकम डालने वाली कंपनी सीएमसी इंफोे सिस्टम प्रा.लि. ने बाद में बताया कि लूटी गई रकम लगभग 74 लाख नहीं बल्कि 81 लाख 71 हजार 800 रुपए थी. पुलिस लूटी गई सही रकम के बारे में जांच कर रही थी.

बहरहाल, लूट की इस वारदात में सब से बड़ी लापरवाही एटीएम में कैश डालने वाली कंपनी की रही. कंपनी ने अपने थोड़े से आर्थिक लाभ के लिए बख्तरबंद गाड़ी के स्थान पर निजी वैन को इस जोखिम भरे काम में लगा रखा था. 2 हथियारबंद गार्डों के बजाए एक ही गार्ड ही रखा था.

एक गलती यह भी रही कि जिस कर्मचारी को कंपनी ने नौकरी से निकाल दिया था, उसे कंपनी के वाट्सग्रुप से नहीं हटाया. इन्हीं सब खामियों का फायदा उठा कर बदमाशों ने इतनी बड़ी वारदात को अंजाम दे दिया.

गनीमत यह रही कि लूट की इस वारदात में किसी की जान नहीं गई. कैश वैन के कर्मचारियों ने भी कोई विरोध नहीं किया. वरना इतनी बड़ी रकम के लिए विरोध होने पर बदमाशों की ओर से किसी को गोली मार देना बड़ी बात नहीं थी.

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(कहानी सौजन्य- मनोहर कहानियां)

निखिल अग्रवाल

स्टिंग आपरेशन का खेल

इसी 22 अप्रैल की बात है. केंद्रीय संस्कृति एवं पर्यटन मंत्री डा. महेश शर्मा नोएडा के सेक्टर-27 स्थित कैलाश हौस्पिटल में बैठे थे. यह उन का खुद का अस्पताल है. लोकसभा चुनावों की वजह से डा. शर्मा काफी व्यस्त थे. वह खुद भी उत्तर प्रदेश की गौतम बुद्ध नगर लोकसभा सीट से भाजपा प्रत्याशी के रूप में चुनाव लड़ रहे थे.

हालांकि गौतम बुद्ध नगर लोकसभा क्षेत्र में 11 अप्रैल को ही मतदान हो चुका था, फिर भी डा. शर्मा की व्यस्तता इसलिए कम नहीं हुई थी कि केंद्र सरकार में मंत्री होने के नाते उन्हें पार्टी की ओर से किसी भी प्रत्याशी के चुनाव प्रचार के लिए भेजा जा सकता था. इस के अलावा वह अपने खुद के चुनाव की जीतहार का गणित भी लगा रहे थे.

दोपहर करीब 12 बजे एक युवती अस्पताल में उन के चैंबर में पहुंची. चैंबर में डा. शर्मा के पास एकदो लोग बैठे हुए थे. पतलीदुबली सी इस युवती ने पूरी आस्तीन की टीशर्ट और जींस पहन रखी थी. युवती ने डा. महेश शर्मा को नमस्ते कर के कहा, ‘‘मुझे आलोक सर ने भेजा है.’’

मंत्री डा. शर्मा ने उस युवती की ओर देखते हुए सवाल किया, ‘‘कौन आलोकजी?’’

‘‘जी, प्रतिनिधि न्यूज चैनल वाले आलोक सर.’’ युवती ने प्रभावी तरीके से जवाब दिया.

‘‘हांहां, याद आ गया चैनल वाले आलोकजी.’’ डा. शर्मा ने युवती को सामने रखी कुरसी पर बैठने का इशारा करते हुए शालीनता से कहा, ‘‘बताइए, मैं आप की क्या सेवा कर सकता हूं?’’

‘‘आलोक सर ने आप के लिए एक चिट्ठी भेजी है.’’ युवती ने यह कह कर अपने बैग से एक लिफाफा निकाल कर केंद्रीय मंत्री डा. शर्मा की ओर बढ़ा दिया.

चिट्ठी बम ने उड़ाए डा. शर्मा के होश

डा. शर्मा ने युवती से लिफाफा ले कर खोला. उस में 2 पेज की एक प्रिंटेड चिट्ठी थी. चिट्ठी पढ़ कर डा. शर्मा के चेहरे पर परेशानी के भाव उभर आए. उन्होंने अपनी टेबल पर रखे गिलास से ठंडा पानी पीया और एक बार फिर चिट्ठी को गौर से पढ़ा. सामने बैठी युवती की ओर देख कर अपनी परेशानी छिपाते हुए डा. शर्मा ने जेब से रूमाल निकाल कर चेहरा पोंछा.

दरअसल, उस चिट्ठी में ब्लैकमेलिंग और धमकी भरी कुछ ऐसी बातें लिखी थीं, जिन से डा. शर्मा का परेशान होना स्वाभाविक था. चिट्ठी में केंद्रीय मंत्री डा. शर्मा से मोटे तौर पर 3 किस्तों में 9-10 करोड़ रुपए मांगे गए थे. चिट्ठी में लिखा था कि 45 लाख रुपए आज शाम 4 बजे तक दे दें. इस के 2 दिन बाद एक करोड़ 55 लाख रुपए देने की बात लिखी थी. आलोक कुमार ने बाकी 7-8 करोड़ रुपए मई के महीने में बतौर कर्ज देने की बात लिखी थी.

चिट्ठी में दोस्ती और दुश्मनी की बातें भी लिखी थीं. इन में कहा गया था कि आप से दुश्मनी करने से कोई फायदा तो है नहीं, लेकिन अगर आप से दोस्ती कर ली जाए तो हम दोनों के लिए अच्छा रहेगा. बतौर कर्ज के लिए लिखा था कि एक नई कंपनी के लिए आप 40 प्रतिशत शेयर ले कर 7-8 करोड़ रुपए की मदद करेंगे तो अच्छा रहेगा. चिट्ठी में यह बात भी लिखी थी कि इसे आप ब्लैकमेलिंग न समझें, बल्कि इसे आपसी सहभागिता के लिए जरूरी समझें.

2 बार चिट्ठी पढ़ने के बाद यह बात साफ हो गई थी कि आलोक कुमार ने उन्हें ब्लैकमेल करने के मकसद से पत्र भेजा था. कुछ देर सोचनेविचारने के बाद उन्होंने अपने एक कर्मचारी को बुला कर युवती को दूसरे कमरे में बैठाने के लिए कह दिया.

इस के बाद डा. शर्मा ने हौस्पिटल में ही मौजूद अपने भाई अजय शर्मा को बुलाया. डाक्टर साहब को चिंता में बैठे देख कर अजय ने पूछा, ‘‘भाईसाहब, क्या बात है, कुछ परेशान नजर आ रहे हैं?’’

डा. शर्मा ने कोई जवाब देने के बजाए वह चिट्ठी पढ़ने के लिए भाई को दे दी. चिट्ठी पढ़ कर अजय शर्मा भी चिंता में पड़ गए. चिट्ठी में साफतौर पर पैसों की मांग की गई थी. यह रकम क्यों मांगी जा रही थी, यह बात स्पष्ट नहीं थी. काफी देर विचारविमर्श के बाद केंद्रीय मंत्री डा. शर्मा ने पुलिस को सूचना देने का फैसला किया. उन्होंने नोएडा के एसएसपी वैभव कृष्ण को फोन लगा कर पूरी बात बताई. एसएसपी ने कहा कि वह खुद हौस्पिटल आ रहे हैं.

कुछ ही देर में एसएसपी वैभव कृष्ण, एसपी (सिटी) सुधा सिंह और इलाके के अन्य पुलिस अधिकारी कैलाश अस्पताल पहुंच गए. एसएसपी ने डा. शर्मा से मिल कर चिट्ठी और चिट्ठी देने आई युवती के बारे में पूछा. डा. शर्मा ने उन्हें वह चिट्ठी दे दी. युवती के बारे में बताया कि वह दूसरे कमरे में बैठी है.

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एससपी ने 2 महिला कांस्टेबल भेज कर उस युवती को पुलिस की निगरानी में ले लिया. फिर उन्होंने डा. शर्मा से विस्तार से सारी बातें पूछीं. डा. शर्मा ने बताया कि करीब एक महीने पहले 24 मार्च को ऊषा ठाकुर के साथ आलोक कुमार नाम का युवक उन से मिलने आया था. डा. शर्मा ने बताया कि ऊषा ठाकुर को वह बड़ी बहन के रूप में मानते हैं, उन पर कोई आरोप नहीं लगा रहे हैं.

चुनाव प्रचार के बहाने फेंका जाल

युवक ने केंद्रीय मंत्री से खुद को रचना आईटी सोल्यूशन नाम की कंपनी का सीईओ बताया और चुनाव प्रचार में मदद करने की बात कही. युवक ने उन से कहा कि लोकसभा चुनाव प्रचार के दौरान उस की कंपनी की तरफ से वाहन, 60 मैनेजर और 300 कर्मचारी डोर टू डोर कैंपेन के लिए लगाए जाएंगे.

बातचीत के दौरान युवक ने कई बार डा. महेश शर्मा का नाम लिया. इस पर डा. शर्मा ने कथित तौर पर उस से कहा कि नाम लेने के बजाए वह कोड वर्ड में बात करे. बातचीत खत्म होने पर डा. शर्मा ने उस युवक को उन का चुनाव प्रबंधन देख रहे अपने भाई अजय शर्मा से मिलने को कहा.

इस के करीब 15 दिन बाद 9 अप्रैल को आलोक ने शर्मा को फोन कर बताया कि वह प्रतिनिधि न्यूज चैनल से बोल रहा है और उस ने उन का स्टिंग औपरेशन किया है. स्टिंग औपरेशन के बारे में पूछने पर आलोक ने डा. शर्मा को 24 मई को हुई बातचीत में कोड वर्ड में बात करने वाली बातें याद दिलाई और कहा कि उस मुलाकात के दौरान वह खुफिया कैमरों से लैस था.

इस के बाद आलोक ने अपनी आवाज में नरमी ला कर केंद्रीय मंत्री को फोन पर ही बताया कि नोटबंदी के दौरान उस का चैनल घाटे में चला गया था. इस वजह से चैनल को बंद करना पड़ा. अगर वह चैनल में अपना शेयर डाल दें या खरीद लें तो वह उसे चला देगा.

उस समय चुनाव प्रचार में व्यस्त होने के कारण डा. शर्मा ने आलोक से 11 अप्रैल को मतदान होने के बाद फुरसत में बात करने को कहा.

बाद में 21 अप्रैल को आलोक ने डा. शर्मा को मैसेज किया कि अगले दिन उस की एक प्रतिनिधि पत्र ले कर उन से मिलेगी. पत्र पढ़ कर क्या करना है, वह उसे बता देना. वरना वह स्टिंग को चैनल पर चला देगा.

डा. शर्मा ने एसएसपी को बताया कि स्टिंग में क्या है, यह उन्हें नहीं पता. उन की किसी से इस तरह की कोई आपत्तिजनक बात भी नहीं हुई है.

सारी बातें समझने के बाद एसएसपी वैभव कृष्ण ने एसपी सिटी सुधा सिंह को आलोक की चिट्ठी ले कर आई युवती से पूछताछ करने को कहा. युवती के पास एक खुफिया कैमरा और एक टैबलेट मिला.

रिकौर्डिंग डिवाइस लगे टैबलेट में 20 मिनट का एक वीडियो अपलोड था. इस में चुनाव प्रचार के लिए वाहनों का इंतजाम करने के साथ वोट दिलाने की बात कही गई थी. इस में एक जगह केंद्रीय मंत्री ने कोड वर्ड में बात करने का जिक्र किया था. आशंका यही थी कि इसी कोड वर्ड की बात को ले कर चैनल संचालक आलोक केंद्रीय मंत्री को ब्लैकमेल करना चाहता था.

पूछताछ में पता चला कि युवती का नाम निशु था. वह नोटबंदी के दौरान बंद हो चुके यूट्यूब चैनल ‘प्रतिनिधि’ की रिपोर्टर थी. इस चैनल का संचालक आलोक कुमार था. मूलरूप से बिहार की रहने वाली निशु के पिता का निधन हो चुका है. परिवार में केवल विधवा मां है. घर का खर्च चलाने के लिए वह पत्रकारिता के ग्लैमर वाले रास्ते पर चल कर कुछ साल से आलोक कुमार के चैनल में काम कर रही थी.

निशु से पता चला कि जब वह चिट्ठी देने आई थी, तब आलोक कुमार भी अस्पताल में मौजूद था. यह पता चलने पर पुलिस ने उस की तलाश की, लेकिन वह नहीं मिला. पुलिस अधिकारी निशु को थाना सेक्टर-20 ले गए और व्यापक पूछताछ की. इस में कई बातें सामने आईं.

बाद में डा. महेश शर्मा के भाई अजय शर्मा ने इस मामले में नोएडा के सेक्टर-20 पुलिस थाने में आलोक कुमार, निशु और खालिद नाम के एक शख्स के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज करवाई. रिपोर्ट दर्ज होने पर पुलिस ने निशु को गिरफ्तार कर लिया.

निशु की मैडिकल जांच कराने के बाद उसे न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया. इस मामले में पुलिस ने उसी दिन ऊषा ठाकुर से भी पूछताछ की, लेकिन बाद में उन्हें छोड़ दिया गया. ऊषा ठाकुर चिट्ठी देने की घटना के दौरान कैलाश अस्पताल में ही थीं.

ऊषा ठाकुर हिंदी के महान कवि रहे रामधारी सिंह दिनकर की नातिन हैं. बिहार के बेगूसराय जिले का सिमरिया घाट कवि दिनकर की जन्मस्थली है. ऊषा ठाकुर नोएडा इलाके की चर्चित समाजसेविका हैं. वह कई स्वयंसेवी संगठनों से जुड़ी हुई हैं. उन्होंने नोएडा के निठारी से लापता हो रहे बच्चों के परिजनों को न्याय दिलाने के लिए काफी भागदौड़ की थी.

इस के बाद जांच होने पर दिसंबर 2006 में निठारी का बहुचर्चित मानवभक्षी और पोर्नोग्राफी का मामला उजागर हुआ था. बाद में निठारी कांड में आरोपियों को सजा दिलाने में भी ऊषा ठाकुर ने काफी संघर्ष किया था.

ऊषा ठाकुर के संबंधों का फायदा उठाने की कोशिश निशु की गिरफ्तारी के बाद एसएसपी वैभव कृष्ण ने दावा किया कि आलोक का 5-6 लोगों का संगठित गिरोह था. यह गिरोह ब्लैकमेलिंग के धंधे में लगा था. चुनाव के दौरान इन लोगों ने दिल्ली और नोएडा के कई दिग्गज नेताओं के स्टिंग कर वीडियो बनाए थे. इन लोगों ने नेताओं को वीडियो दिखा कर उन से मोटी रकम हड़पी थी.

इस के बाद नोएडा पुलिस मुख्य आरोपी आलोक कुमार और उस के साथियों की तलाश में जुट गई. इस के लिए पुलिस की 3 टीमें बनाई गईं. क्राइम ब्रांच और सर्विलांस टीम का भी सहयोग लिया गया. पुलिस ने आरोपियों के ठिकानों पर दबिश दी. आलोक का पता लगाने के लिए उस के परिवार जनों से भी पूछताछ की गई. आलोक कुमार नोएडा में ही मां, पत्नी और 2 बच्चों के साथ रहता था.

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पुलिस की ओर से इस मामले में पूछताछ करने से चर्चा में आई 69 साल की ऊषा ठाकुर ने दूसरे दिन मीडिया से कहा कि आलोक कुमार उन्हें मां कह कर बोलता था. उस के पिता बिहार में आईपीएस औफिसर थे, जिन की गोली मार कर हत्या कर दी गई थी.

मिलनेजुलने के दौरान आलोक ने डा. महेश शर्मा से मिलने की इच्छा जताई थी. चूंकि वह खुद भी डा. महेश शर्मा को भाई मानती हैं और लंबे समय से उन के लिए चुनाव प्रचार भी करती आई हैं. इसलिए आलोक को वह मना नहीं कर सकीं और अपने साथ डा. महेश शर्मा से मिलवाने ले गई थीं. ऊषा ठाकुर का कहना था कि उन्हें यह बिलकुल नहीं पता था कि मुलाकात के दौरान आलोक ने स्टिंग औपरेशन किया है.

घटना के दौरान अस्पताल में मौजूदगी पर ऊषा ठाकुर का कहना था कि उस दिन सुबह रिटायर्ड डीएसपी के.के. गौतम का फोन आया था. उन्होंने कहा कि डा. महेश शर्मा उन से मिलना चाहते हैं. इस पर ऊषा ठाकुर ने गौतम से कहा कि वे अपनी बीमार मां को दिखाने कैलाश अस्पताल आएंगी तो वहां मंत्रीजी से भी मिल लेंगी.

नोएडा की सेक्टर-20 थाना पुलिस ने 24 अप्रैल को निशु को 7 दिन के रिमांड पर लिया. पुलिस उसे पूछताछ के लिए लुक्सर जेल ले  आई. निशु से पता चला कि स्टिंग का असली वीडियो आलोक कुमार के पास है. उस के पास टेबलेट में जो वीडियो मिला था, वह उस की मूल कौपी नहीं थी.

दूसरी ओर, पुलिस इस मामले में नामजद आरोपी आलोक कुमार और खालिद की तलाश में दिल्ली, गाजियाबाद व नोएडा सहित कई जगह छापे मारती रही. लेकिन दोनों का पता नहीं चला. उन के फरार होने से यह आशंका भी थी कि आलोक कुमार केंद्रीय मंत्री के स्टिंग का असली वीडियो वायरल न कर दे.

पुलिस को जांचपड़ताल में पता चला कि प्रतिनिधि चैनल के मालिक आलोक कुमार के साथ निशु के अलावा एक अन्य युवती भी जुड़ी हुई थी. उस का नाम निशा था. आलोक ने नोएडा के सेक्टर-92 में एक फ्लैट किराए पर ले रखा था.

निशु दूसरी युवती निशा और जामिया नगर में रहने वाले खालिद का ज्यादा वक्त इसी फ्लैट में गुजरता था. आलोक ने पांडव नगर में एक औफिस बना रखा था. इस औफिस में उस ने कई रिपोर्टर और अन्य कर्मचारियों को रख रखा था. पुलिस को यह औफिस बंद मिला. पुलिस को इस औफिस से ब्लैकमेलिंग से संबंधित सबूत मिलने की उम्मीद थी.

इधर, आलोक और खालिद की तलाश में पुलिस टीमें इलाहाबाद और लखनऊ भी भेजी गईं. आलोक की तलाश में पुलिस मुंबई तक की चक्कर लगा कर आई. खालिद की दिल्ली के अलावा हापुड़ में भी तलाश की गई.

बड़ा खिलाड़ी बनने की राह पर था आलोक रिमांड अवधि में निशु ने पूछताछ में बताया कि आलोक के कहने पर उस ने 3 नेताओं के स्टिंग किए थे. स्टिंग के दौरान निशु के साथ एक अन्य युवती भी थी. इन के वीडियो आलोक के पास ही हैं. उस ने बताया कि आलोक की स्टिंग करने वाली टीम में युवतियों सहित 6-10 लोग शामिल थे.

इस टीम को आलोक ही हिडन कैमरे मुहैया कराता था. निशु ने पुलिस को बताया कि आलोक ने उसे ब्लैकमेलिंग से मिलने वाली रकम में से हिस्सा देने का वादा किया था. आलोक ही अपनी स्टिंग टीम को नए मोबाइल और सिमकार्ड खरीद कर देता था. नए मोबाइल से ही स्टिंग में रिकौर्ड वीडियो व औडियो को संबंधित नेता तक पहुंचाया जाता था.

रंगदारी के पैसों के लेनदेन की बात भी नए मोबाइल से ही की जाती थी. इन नए मोबाइलों में केवल 8-10 नंबर ही होते थे. निशु के पास से भी पुलिस ने नया मोबाइल बरामद किया था. रिमांड अवधि पूरी होने पर पुलिस ने निशु को 2 मई को अदालत में पेश कर न्यायिक हिरासत में भिजवा दिया.

लगातार भागदौड़ करने के बाद सुराग मिलने पर पुलिस ने आलोक को 4 मई को कोलकाता से गिरफ्तार कर लिया. उस के साथ महिला पत्रकार निशा को भी गिरफ्तार किया गया. दोनों कोलकाता में न्यू मार्केट थाना इलाके के होटल रीगल में ठहरे हुए थे. दोनों को कोलकाता की अदालत में पेश कर 72 घंटे का ट्रांजिट रिमांड ले कर नोएडा लाया गया. नोएडा ला कर 5 मई को दोनों को अदालत में पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया.

बाद में पुलिस ने आलोक व निशा को 4 दिन के रिमांड पर लिया. पूछताछ में उस ने बताया कि सन 2017 में नोटबंदी के बाद उस का यूट्यूब चैनल ‘प्रतिनिधि’ बंद हो गया. उस पर 70 लाख रुपए का कर्ज था. कर्ज उतारने के लिए उस ने अपनी 2 कारों में एक कार बेच दी थी. इस के बाद बड़े लोगों को स्टिंग कर ब्लैकमेलिंग का रास्ता चुना. 2 साल में वह कई चर्चित नेताओं व बिजनेसमैनों  का स्टिंग कर मोटी रकम ऐंठ चुका था.

केंद्रीय मंत्री डा. महेश शर्मा से मिलने के लिए उस ने मूलरूप से बिहार की रहने वाली नोएडा में बसी चर्चित समाजसेविका ऊषा ठाकुर से संपर्क किया. उन के जरिए डा. शर्मा से मुलाकात कर लोकसभा चुनाव में मदद करने के लिए गाडि़यां और मैन पावर उपलब्ध कराने का औफर दिया.

उसी वक्त उस ने केंद्रीय मंत्री से बातचीत हिडन कैमरे के जरिए रिकौर्ड कर ली. बातचीत के बीचबीच में आलोक ने जानबूझ कर कई बार डा. महेश शर्मा का नाम लिया और कुछ ऐसी बातें कहीं, जिस पर डा. शर्मा ने उस से कोड वर्ड में बात करने को कहा.

कोड वर्ड को ले कर ही आलोक ने केंद्रीय मंत्री को ब्लैकमेलिंग करने की योजना बनाई और निशु को चिट्ठी दे कर उन के पास भेजा. वह खुद भी इस दौरान कैलाश अस्पताल पहुंच गया था. उसे उम्मीद थी कि डा. शर्मा उसे फोन कर बुलाएंगे. लेकिन बाद में जब वहां पुलिस आने लगी, तो वह वहां से खिसक गया.

यह बात भी सामने आई कि केंद्रीय मंत्री के स्टिंग का वीडियो ले कर आलोक कुमार विरोधी राजनीतिक पार्टी के पास गया था. इस वीडियो के बदले उस ने मोटी रकम की मांग की थी लेकिन विरोधी नेताओं ने उतनी रकम में वह वीडियो खरीदने से इनकार कर दिया था. इस के बाद आलोक ने खुद केंद्रीय मंत्री को फोन कर स्टिंग करने की बात बताई थी. साथ ही पैसे की बात भी कह दी थी.

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पूछताछ में पता चलने पर पुलिस ने आलोक के घर से स्टिंग में उपयोग लिए गए 2 लैपटौप, 3 हिडन कैमरे, 3 मोबाइल फोन, 10 सिमकार्ड और एक टैब आदि चीजें बरामद कीं. इन में एक लैपटौप से केंद्रीय मंत्री के स्टिंग का असली वीडियो मिला. पुलिस ने लैपटौप, मोबाइल, टैब सहित अन्य डिवाइस को जांच के लिए फोेरैंसिक लैब भेज दिया. रिमांड अवधि पूरी होने पर दोनों को 11 मई को जेल भेज दिया गया.

ऊषा की भूमिका संदेह के दायरे में

इस मामले में पुलिस ने 17 मई को ऊषा ठाकुर को सेक्टर 31 स्थित उन के घर से गिरफ्तार कर लिया. बाद में उन्हें अदालत में पेश कर उसी दिन जेल भेज दिया गया. पुलिस का कहना है कि आलोक से पूछताछ में पता चला कि ब्लैकमेलिंग के इस मामले में ऊषा ठाकुर की सक्रिय भूमिका थी. ऊषा ठाकुर और डा. महेश शर्मा का 30 साल पुराना संबंध बताया जाता है.

पुलिस का कहना है कि ऊषा ठाकुर और आलोक कुमार दोनों ही बिहार के रहने वाले हैं. आलोक अपने न्यूज चैनल पर डिबेट के लिए ऊषा ठाकुर को बुलाता था. बाद में चैनल बंद होने की कगार पर आ गया. तब एक दिन आलोक ने ऊषा को नेताओं को ब्लैकमेलिंग कर मोटी रकम कमाने के बारे में बताया.

पहले तो उन्होंने इस काम में शामिल होने से इनकार कर दिया. फिर आलोक ने एक दिन ऊषा के घर पहुंच कर साथ देने की बात कही. इस के बाद ऊषा नेताओं को ब्लैकमेल कर वसूली करने की साजिश में शामिल हो गईं. यह साजिश अगस्त 2018 में ऊषा की मौजूदगी में उन के घर पर रची गई.

इस के बाद लोकसभा चुनाव का मौका देख कर ऊषा ने ही आलोक को एक कंपनी का सीईओ बताते हुए केंद्रीय मंत्री से मिलवाया था. ऊषा ने डा. शर्मा को यह नहीं बताया कि आलोक न्यूज चैनल चलाता है, जबकि वे खुद उस के चैनल और डिबेट में जाती थीं.

पुलिस ने पहले दिन निशु से जो टेबलेट बरामद किया था, वह उस ने ऊषा के घर से ही लिया था. निशु जब आलोक की चिट्ठी ले कर वसूली करने गई थी तब ऊषा ठाकुर भी केंद्रीय मंत्री डा. शर्मा के कैलाश अस्पताल में मौजूद थीं.

कहा जाता है कि केंद्रीय मंत्री को ब्लैकमेल करने के मामले में प्रधानमंत्री कार्यालय भी नजर रखे हुए था. पहले दिन जब निशु की गिरफ्तारी के बाद ऊषा ठाकुर से पुलिस द्वारा पूछताछ की गई तो पीएमओ के अधिकारियों ने उन से खेद जताया था.

साथ ही उन से इस मामले से संबंधित सारी जानकारियां भी मांगी थी. पीएमओ के अधिकारियों ने उन से कहा था कि लोकसभा चुनाव का परिणाम आने तक वे इस मामले में चुप रहें. इस के बाद उचित काररवाई की जाएगी.

ऊषा ठाकुर ने खुद को निर्दोष बताते हुए कहा कि उन्हें 30 साल की उन की सामाजिक प्रतिष्ठा को खत्म करने के लिए इस मामले में फंसाया गया है. उन्होंने तो नोटबंदी के बाद आलोक की आर्थिक रूप से मदद की थी. कुछ जानकारों से उसे पैसे भी दिलवाए थे. दूसरी ओर पुलिस का कहना है कि ऊषा और आलोक को जेल में ही आमनेसामने बैठा कर पूछताछ की जाएगी.कथा लिखे जाने तक इस मामले में एक नामजद आरोपी खालिद को पुलिस तलाश कर रही थी.

पुलिस उस के घर की कुर्की की काररवाई की बात भी कह रही थी. पुलिस ने नोएडा में पहले तैनात रहे एक रिटायर्ड डीएसपी को भी शक के दायरे में रखा गया था. यह डीएसपी भी 22 अप्रैल को घटना के दौरान केंद्रीय मंत्री डा. महेश शर्मा के अस्पताल में मौजूद थे.

अब डा. महेश शर्मा के बारे में भी जान लें. वे नोएडा विधानसभा सीट से पहली बार विधायक बने. बाद में 2014 में वे भाजपा के टिकट पर गौतम बुद्ध नगर लोकसभा सीट से चुनाव लड़ कर जीते. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उन्हें अपनी केबिनेट में शामिल कर केंद्रीय संस्कृति एवं पर्यटन मंत्री बनाया.

राजस्थान के अलवर जिले की मुंडावर तहसील के मनेठी गांव में 30 सितंबर 1959 को पैदा हुए डा. महेश शर्मा पेशे से फिजिशियन हैं. उन के पिता अध्यापक थे. सेकेंडरी तक की पढ़ाई अलवर जिले में करने के बाद महेश शर्मा दिल्ली चले गए थे. बाद में उन्होंने डाक्टरी की डिग्री ली. उन का कैलाश ग्रुप औफ हौस्पिटल्स है.

नोएडा के अलावा उन का राजस्थान के अलवर जिले के बहरोड़ में भी कैलाश हौस्पिटल है. डा. महेश शर्मा की पत्नी डा. ऊषा शर्मा गायनेकोलौजिस्ट हैं. वे कैलाश हौस्पिटल एंड हार्ट इंस्टीट्यूट की प्रबंधन कमेटी और कैलाश हेल्थ केयर लि. की वाइस चेयनमैन हैं. इन का एक बेटा और बेटी भी मैडिकल प्रोफेशन में हैं.

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निखिल अग्रवाल 

(कहानी सौजन्य- मनोहर कहानियां) 

चक्कर 20 लाख के बीमे का

23जनवरी, 2019 की बात है. सुबह के यही कोई 9 बजे थे. लोग अपनेअपने कामधंधे पर जा रहे थे. तभी अचानक रतलाम जिले के कमेड गांव में रहने वाले हिम्मत पाटीदार के घर से रोनेचीखने की आवाजें आने लगीं. हिम्मत पाटीदार के पिता लक्ष्मीनारायण पाटीदार घर के बाहर चबूतरे पर गमगीन बैठे थे.

गांव के लोगों ने जब उन से पूछा तो उन्होंने रोते हुए बताया कि रात को किसी ने उन के बेटे हिम्मत की हत्या कर दी है. थोड़ी ही देर में यह खबर पूरे गांव में फैल गई. हिम्मत की लाश गांव से बाहर खेत में पड़ी हुई थी. कुछ ही देर में उस जगह गांव के तमाम लोग पहुंच गए.

हिम्मत को दबंग किसान माना जाता था. उस के ताऊ के बेटे संजय पाटीदार राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ में जिला स्तर के पदाधिकारी थे. हिम्मत पाटीदार भी आरएसएस से जुड़ा था, इसलिए उस की हत्या से गांव के लोगों में काफी आक्रोश था.

इस घटना की जानकारी बिलपांक थानाप्रभारी विनोद सिंह बघेल को मिली तो वह अपनी टीम के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए. हिमत की लाश उस के खेत में पड़ी हुई थी. पुलिस ने जब लाश का मुआयना किया तो देखा, उस का गला रेता हुआ था.

पहचान छिपाने के लिए हत्यारे ने उस का चेहरा जलाने की कोशिश भी की थी, जबकि उस की पहचान की दूसरी चीज मोबाइल उस के पास पड़ा था. साथ ही उस की जैकेट व पैंट की जिप खुली हुई थीं. उस की पौकेट डायरी में फोटो व दूसरे कागज रखे मिले.

थानाप्रभारी ने यह जानकारी अपने उच्चाधिकारियों को दे दी. कुछ ही देर में एडीशनल एसपी प्रदीप शर्मा, एसडीपीओ मान सिंह चौहान भी घटनास्थल पर आ गए. दोनों अधिकारियों ने भी लाश का मुआयना किया. उन्हें आश्चर्य इस बात पर हुआ कि जब हत्यारों ने मृतक की पहचान छिपाने के लिए उस के चेहरे को जलाया था तो उस की पहचान की दूसरी चीजें वहां क्यों छोड़ दीं.

मौके पर एफएसएल अधिकारी अतुल मित्तल को भी बुला लिया गया था. उन्होंने घटनास्थल से सबूत जुटाए. उसी दौरान एसपी गौरव तिवारी भी घटनास्थल पर पहुंच गए. मौकामुआयना करने के बाद एसपी गौरव तिवारी ने आईजी (उज्जैन रेंज) राकेश गुप्ता को स्थिति से अवगत कराया. इस के बाद हिम्मत पाटीदार के शव को पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया गया.

मृतक की जेब से जो पौकेट डायरी मिली, पुलिस ने उस की जांच की तो उस में एसबीआई इंश्योरेंस, एफडी, एटीएम पिन आदि की जानकारी थी.

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मोबाइल की जांच की तो वाट्सऐप मैसेज, काल रिकौर्डिंग, गैलरी की फोटो, वीडियो, हिस्ट्री आदि डिलीट मिले. जबकि उस मोबाइल पर रात को इंटरनेट यूज किया गया था.

मृतक के शरीर पर स्ट्रगल का कोई निशान नहीं था. एक चश्मदीद ने पुलिस को बताया कि हिम्मत रात को खेत पर आया तो था लेकिन उस ने पंपसेट चालू नहीं किया था. यह सारी बातें पुलिस के लिए शक पैदा करने वाली थीं.

छानबीन करने पर जहां हिम्मत पाटीदार के एक प्रेमप्रसंग की बात पता चली तो वहीं पुलिस को पता चला कि गांव से मदन मालवीय नाम का एक आदमी लापता है. मदन पहले हिम्मत के खेत पर मजदूरी किया करता था.

संघ से जुड़े लोग हिम्मत पाटीदार के हत्यारों को जल्द गिरफ्तार करने की मांग कर रहे थे. इस संबंध में पुलिस प्रशासन पर भी दबाव बनाया जा रहा था. पुलिस को डर था कि कहीं संघ से जुड़े लोग इस मामले को ले कर कोई आंदोलन खड़ा न कर दें. लिहाजा पुलिस तत्परता से जांच में जुट गई.

एसपी गौरव तिवारी ने दूसरे दिन भी घटनास्थल की बारीकी से जांच की. हिम्मत परिवार के परिजनों ने उन्हें बताया कि 22 जनवरी की रात को हिम्मत बाइक से खेतों में पानी लगाने के लिए पंपसेट चालू करने गया था. सुबह खेत में उस की लाश मिली.

पुलिस की समझ में यह बात नहीं आ रही थी कि हिम्मत जब पंपसेट चालू करने गया था तो उस ने पंपसेट चालू क्यों नहीं किया. साथ ही यह भी कि वह अपने साथ घर से पंपसेट के कमरे की चाबी भी नहीं ले कर गया था, जबकि रात को काफी ठंड थी.

एसपी गौरव तिवारी को यह जानकारी भी मिल चुकी थी कि हिम्मत पाटीदार के यहां मदन मालवीय नाम का जो नौकर काम करता था, वह भी घटना वाली रात से ही लापता है. लिहाजा उन्होंने थानाप्रभारी को मदन मालवीय के बारे में जांच करने के निर्देश दिए.

2 दिन बाद गांव में चर्चा होने लगी कि हिम्मत हत्याकांड में पुलिस हिम्मत के जिस पुराने नौकर मदन मालवीय को खोज रही है, उस की भी हत्या हो चुकी है. लोगों का मानना था कि हिम्मत के खेत में जो लाश मिली थी, वह हिम्मत पाटीदार की नहीं बल्कि नौकर मदन मालवीय की थी.

चूंकि पुलिस को पहले ही लाश की शिनाख्त पर शंका थी, इसलिए एसआई कैलाश मालवीय ने पोस्टमार्टम के समय लाश के थोड़े से अंश को डीएनए टेस्ट के लिए सुरक्षित रखवा लिया था.

पुलिस को गांव से बाहर कुछ दूरी पर एक जोड़ी जूते पड़े मिले थे. उन जूतों की पहचान मदन मालवीय के जूतों के तौर पर हुई. इस से सवाल उठा कि अगर हिम्मत पाटीदार की हत्या करने के बाद मदन मालवीय गांव से फरार हो रहा था तो अपने जूते फेंक कर नंगे पांव क्यों गया होगा.

घटना वाली रात मदन एक खेत पर सिंचाई कर रहा था, उस के जूतों पर जो गीली मिट्टी लगी मिली, वैसी ही मिट्टी हिम्मत की बाइक पर पिछले फुटरेस्ट पर लगी मिली. इस से शक हुआ कि घटना की रात मदन हिम्मत पाटीदार की बाइक पर बैठा था. पुलिस का शक बढ़ा तो उस ने मदन मालवीय के मामले की जांच तेजी से शुरू की.

पुलिस ने हिम्मत के खेत से जो लाश बरामद की थी, उस का अंडरवियर ले कर मदन के घर पहुंची. मदन के घर वालों ने उस अंडरवियर को तुरंत पहचान लिया. वह मदन का ही था. इस शिनाख्त के बाद पुलिस ने मदन के परिजनों के खून के नमूने ले कर डीएनए टेस्ट के लिए सागर स्थित लेबोरेटरी भेज दिए.

दूसरी तरफ पुलिस ने अब हिम्मत पाटीदार की जिंदगी में झांकने की कोशिश शुरू कर दी. पता चला कि हिम्मत के ऊपर 26 लाख का कर्ज हो गया था. इस से वह काफी परेशान था. लगभग महीने भर पहले ही उस ने एसबीआई लाइफ इंश्योरेंस से अपना 20 लाख रुपए का बीमा करवाया था, जिस का उत्तराधिकारी उस ने अपनी पत्नी को बनाया था.

बीमे की सिलसिलेवार जानकारी हिम्मत ने अपनी पौकेट डायरी में नोट कर रखी थी, जो घटनास्थल पर मिली थी. इस से पुलिस को यह शक हुआ कि संभव है हिम्मत ने अपनी कदकाठी के मदन की हत्या कर खुद को मृत साबित करने की कोशिश की हो ताकि उस की मौत पर पत्नी को बीमा राशि मिल जाए.

यह शक उस समय और भी पुख्ता हो गया जब 2 दिन बाद सागर लेबोरेटरी से डीएनए की जांच रिपोर्ट आ गई. इस से साफ हो गया कि खेत में मिला शव हिम्मत का नहीं, बल्कि उस के नौकर मदन मालवीय का था.

इस जानकारी के बाद पुलिस टीम गांव पहुंच गई. इस दौरान हिम्मत के परिवार वाले चिता के ठंडे होने पर अस्थि चुन कर ले लाए थे. चूंकि डीएनए जांच से उस लाश की पुष्टि मदन मालवीय के रूप में हो चुकी थी, इसलिए पुलिस ने हिम्मत के घर वालों से अस्थि कलश मदन के परिजनों को दिलवा दिया.

मदन की हत्या की पुष्टि होने पर उस गरीब के घर का माहौल गमगीन हो गया. बूढ़ी मां बेहोश हो गई तो मदन की मूकबधिर पत्नी अपना होशोहवास खो बैठी.

अब तक कहानी साफ हो चुकी थी कि हिम्मत पाटीदार ने बीमे की बड़ी रकम हड़पने के लिए अपनी कदकाठी के मदन मालवीय की हत्या करने के बाद उस के शव को अपने कपड़े पहनाए और शव के आसपास अपनी पहचान की चीजें छोड़ दीं. यानी उस ने खुद को मरा साबित करने की कोशिश की थी, इसलिए पुलिस अब हिम्मत पाटीदार की तलाश में जुट गई.

एसपी गौरव तिवारी ने हिम्मत पाटीदार की तलाश के लिए एक टीम गठित कर दी. टीम जीजान से जुट गई थी. 4 दिन की मेहनत के बाद पुलिस टीम ने हिम्मत पाटीदार को राजस्थान के प्रतापगढ़ जिले की अरनोद तहसील स्थित प्रसिद्ध होरी हनुमान मंदिर के पास एक धर्मशाला से गिरफ्तार कर लिया. बिलपांक थाने ला कर उस से पूछताछ की गई तो पूरी कहानी इस प्रकार सामने आई—

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कमेड निवासी हिम्मत पाटीदार खुद को बड़ा नेता समझता था. उस के शाही खर्च थे, जबकि आमदनी सीमित थी. धीरेधीरे हिम्मत पर 26 लाख रुपए का कर्ज हो गया. इस कर्ज के चलते वह पिछले 2 सालों से काफी परेशान था. कर्ज से छुटकारा पाने का उसे कोई रास्ता नजर नहीं आ रहा था.

इसी बीच करीब 6 महीने पहले हिम्मत ने टीवी पर एक ऐसा क्राइम सीरियल देखा, जिस में एक व्यक्ति खुद को मरा साबित करने के लिए अपनी ही कदकाठी के एक दूसरे युवक की हत्या कर उस का चेहरा बिगाड़ने के बाद लाश को खुद के कपड़े पहना कर फरार हो जाता है. इस तरह वह पुलिस और समाज की नजरों में मर जाता है.

इस सीरियल को देख कर हिम्मत का दिमाग घूम गया. उसे लगा कि वह भी ऐसा कर के कर्ज से छुटकारा पा सकता है. लेकिन इस से कोई फायदा नहीं होने वाला था, क्योंकि वह मृत साबित तो हो जाता लेकिन उस का कर्ज तो यूं का यूं ही रह जाता, इसलिए सोचविचार के बाद उस ने एक महीने पहले एसबीआई लाइफ इंश्योरेंस से अपना 20 लाख रुपए का बीमा करवा लिया.

यह पैसा हिम्मत की मौत के बाद उस की पत्नी को मिलने वाला था. इतना करने के बाद उस ने एक डायरी बना कर उस में वे तमाम बातें सिलसिलेवार लिख दीं, जिन की मदद से उस के बाद पत्नी और परिवार वाले आसानी से उस के मरने का लाभ उठा सकें.

अब हिम्मत को तलाश थी, किसी एक ऐसे व्यक्ति की जिस की कदकाठी उस से मिलतीजुलती हो, ताकि अपनी जगह वह उस की हत्या कर सके. इस के लिए उस ने गांव में कल्लू नाम के एक युवक का चयन कर उस से दोस्ती बढ़ा ली.

वह अकसर उसे रात के समय अपने खेत पर पार्टी के लिए बुलाने लगा, लेकिन कल्लू और हिम्मत में एक अंतर था. हिम्मत अपने बाल छोटे रखता था, जबकि कल्लू के बाल काफी बड़े थे. सो हिम्मत ने प्रयास कर के कल्लू के बाल कटवा कर अपनी तरह के करवा दिए.

सारी व्यवस्था बना कर 22 जनवरी की रात को उस ने कल्लू का कत्ल करने की योजना बना ली. वह रात एक बजे घर से खेत की सिंचाई करने की बात कह कर बाइक ले कर निकल गया. खेत पर पहुंच कर उस ने कल्लू को फोन किया, लेकिन कल्लू ने उस का फोन रिसीव नहीं किया.

हिम्मत ने कल्लू के अलावा इस काम के लिए अपने पुराने नौकर मदन मालवीय का भी दूसरे नंबर पर चयन कर रखा था. मदन की कदकाठी भी हिम्मत जैसी ही थी. मदन आजकल दूसरे किसान के खेत पर काम करता था, लेकिन उस के पास मोबाइल नहीं था. इसलिए हिम्मत बाइक ले कर मदन को लेने खुद ही उस के खेत पर पहुंच गया.

हिम्मत के कहने पर मदन मालवीय उस के साथ बाइक पर बैठ कर उस के खेत पर आ गया. मौका देख कर हिम्मत ने तलवार से मदन मालवीय की गरदन काट कर हत्या कर दी.

फिर उस का चेहरा जलाने के बाद उस के शव को अपने कपड़े जूते पहना दिए. इस के बाद अपनी पहचान के कागज उस की जेब में ठूंस कर वह वहां से फरार हो गया.

हिम्मत की योजना थी कि पत्नी को बीमा का पैसा मिल जाने के बाद उसे ले कर कहीं दूर जा कर बस जाएगा, लेकिन पुलिस टीम ने हिम्मत पाटीदार की पूरी योजना पर पानी फेर दिया.

(कहानी सौजन्य- मनोहर कहानियां)

तीसरे पति की चाहत में

वह अपनी सांसों को दुरुस्त करते हुए बोला, ‘‘सर, जल्दी चलिए, हमारे मकान में एक महिला की हत्या कर दी गई है.’’

हत्या शब्द सुनते ही एसओ चौंके. उन्होंने उस व्यक्ति से पूछा, ‘‘महिला की हत्या किस ने की, पूरी बात बताओ.’’

‘‘सर, मेरा नाम अमित राजपूत है और मैं मतैयापुरवा में रहता हूं. मेरे मकान में राजू नाम का युवक किराए पर रहता था. उसी ने अपनी पत्नी आरती की हत्या कर दी और फरार हो गया.’’

एसओ राजीव सिंह जिस काम के लिए निकलने वाले थे, वहां जाने के बजाय वह अमित राजपूत को साथ ले कर उस के गांव मतैयापुरवा के लिए निकल गए. मौके पर निकलने से पहले उन्होंने हत्या की जानकारी अपने उच्चाधिकारियों को दे दी थी.

जब वह अमित को ले कर उस के घर पहुंचे तो वहां गांव वालों की भीड़ जुटी हुई थी. जिस कमरे में महिला की लाश पड़ी थी, उस के दरवाजे पर ताला पड़ा था. खिड़की से देखा तो महिला की लाश फर्श पर पड़ी दिखाई दी. उस के कपड़े अस्तव्यस्त थे. अमित ने बताया कि इस कमरे में राजू अपनी पत्नी आरती के साथ रहता था, अब राजू लापता है.

पुलिस ने वहां मौजूद लोगों की मौजूदगी में दरवाजे का ताला तोड़ा और कमरे का निरीक्षण किया तो वहां टूटी हुई चूडि़यां मिलीं. इस से पता चला कि मृतका ने अपनी जान बचाने के लिए विरोध किया था.

मृतका की उम्र यही कोई 35 साल थी. लाश के पास ही 3 पेज का एक नोट मिला. यह मृतका आरती के पति राजू की तरफ से लिखा गया था. उस नोट में राजू ने पत्नी की बेवफाई का जिक्र किया था. इस नोट को पुलिस ने सुरक्षित रख लिया.

एसओ राजीव सिंह अभी निरीक्षण कर ही रहे थे कि उसी समय एसपी (वेस्ट) संजीव सुमन तथा सीओ (स्वरूपनगर) अजीत सिंह चौहान भी वहां पहुंच गए. पुलिस अधिकारियों ने मौके पर फोरैंसिक टीम को भी बुलवा लिया था. टीम ने मौके से जरूरी सबूत जुटाए.

उसी दौरान सीओ अजीत सिंह ने मकान मालिक अमित राजपूत से पूछताछ की तो उस ने बताया कि आरती की हत्या उस के पति राजू ने ही की है. यह बात उसे राजू के दोस्त निर्मल ने बताई थी. उन्होंने एसओ राजीव सिंह को निर्देश दिए कि वह निर्मल श्रीवास्तव को हिरासत में ले कर पूछताछ करें.

इस के बाद एसओ ने मौके की काररवाई पूरी कर लाश पोस्टमार्टम के लिए लाला लाजपतराय चिकित्सालय भेज दी. निर्मल श्रीवास्तव भी घटनास्थल पर आ गया था. एसओ राजीव सिंह ने उसे हिरासत में ले लिया और पूछताछ के लिए थाने ले आए.

पूछताछ करने पर निर्मल ने बताया कि वह राजू का दोस्त है. दोनों साथ काम करते हैं. राजू के घर उस का आनाजाना था. आतेजाते ही राजू की पत्नी से उस के प्रेम संबंध हो गए. कुछ दिनों पहले वह राजू को छोड़ कर उस के साथ रहने लगी थी. बाद में दोनों ने प्रेम विवाह कर लिया था. राजू ने आज आरती को किसी बहाने से बुलाया और उसे मार डाला.

निर्मल के बयानों से स्पष्ट था कि आरती की हत्या नाजायज रिश्तों के चलते राजू ने ही की थी. अत: एसओ राजीव सिंह ने मकान मालिक अमित राजपूत को वादी बना कर राजू के खिलाफ धारा 302 आईपीसी के तहत रिपोर्ट दर्ज कर ली.

चूंकि वह फरार था, इसलिए पुलिस ने उसे ढूंढना शुरू कर दिया. पता चला कि राजू मूलरूप से गोंडा के कटरी बाजार का रहने वाला था. एसपी (वेस्ट) संजीव सुमन ने एक विशेष टीम गोंडा भेजी. टीम ने गोंडा के कटरी बाजार स्थित राजू के घर पर छापा मारा. लेकिन वह घर पर नहीं मिला. इस के बाद पुलिस टीम ने अनेक संभावित स्थानों पर उसे तलाशा, लेकिन राजू हाथ नहीं लगा.

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4 मार्च, 2019 की सुबह 10 बजे एसओ राजीव सिंह को उन के खास मुखबिर से सूचना मिली कि हत्यारोपी राजू इस समय रावतपुर रेलवे स्टेशन पर है. सूचना मिलते ही एसओ पुलिस टीम के साथ रावतपुर स्टेशन पहुंच गए. राजू स्टेशन पर मिल गया. वह कहीं जाने के लिए वहां ट्रेन का इंतजार कर रहा था. उसे हिरासत में ले कर राजीव सिंह थाना काकादेव लौट आए.

थाने में जब उस से आरती की हत्या के संबंध में पूछा गया तो उस ने बड़ी आसानी से आरती की हत्या का जुर्म स्वीकार कर लिया. यही नहीं, उस ने घर में छिपा कर रखा गया वह दुपट्टा भी बरामद करा दिया, जिस से उस ने आरती का गला घोंटा था.

राजू से की गई पूछताछ के आधार पर एक ऐसी औरत की कहानी सामने आई, जिस ने तीसरे पति की चाहत में अपनी जान गंवा दी.

उत्तर प्रदेश के हरदोई जिले के संडीला कस्बे से 7 किलोमीटर दूर एक छोटा सा गांव है नैपुरवा. इसी गांव में जयशंकर अपने परिवार के साथ रहता था. उस के परिवार में 3 बेटियां आरती, पार्वती, शांति तथा एक बेटा गौरव था.

जयशंकर के पास 3 बीघा खेती की जमीन थी. जमीन उपजाऊ थी, इसलिए किसी तरह से उस के घर का गुजारा चल रहा था. जयशंकर की आर्थिक स्थिति तो मजबूत नहीं थी, लेकिन वह व्यवहारकुशल था.

जयशंकर की बड़ी बेटी आरती ने गांव के ही जूनियर स्कूल से 8वीं की परीक्षा पास की. वह आगे पढ़ाई करना चाहती थी, लेकिन गांव के माहौल को देखते हुए मां ने उसे गांव से बाहर पढ़ाने को मना कर दिया. इस के बाद वह मां के साथ घरेलू काम में हाथ बंटाने लगी. समय बीतते आरती सयानी हुई तो वह उस के लिए लड़का देखना शुरू किया. जयशंकर को अपने एक रिश्तेदार के माध्यम से रमेश नाम के युवक के बारे में जानकारी मिली.

रमेश मूलरूप से गोंडा जिले के गांव रसूलपुर का रहने वाला था. उस के मातापिता की मौत हो चुकी थी. उस का बड़ा भाई उमेश गांव में रहता था, जबकि रमेश लखनऊ शहर में रहता था. वह राजमिस्त्री था.

रमेश सांवले रंग का जरूर था, लेकिन उस का व्यवहार अच्छा था. जयशंकर ने रमेश को देख कर उसे अपनी बेटी आरती के लिए पसंद कर लिया. हालांकि रमेश की उम्र आरती से काफी ज्यादा थी, लेकिन अपनी कमजोर आर्थिक स्थिति के कारण जयशंकर ने इन बातों पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया. बहरहाल, आरती का विवाह रमेश से कर दिया.

शादी से पहले आरती रमेश से नहीं मिली थी. उस ने रमेश को पहले फोटो में ही देखा था. शादी के समय जब उस ने पहली बार रमेश को देखा तो उस के अरमानों पर पानी फिर गया.

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विदा हो कर वह ससुराल चली तो गई लेकिन वहां बेमन से रही. आरती कुछ माह ससुराल में रही फिर रमेश उसे लखनऊ ले आया. वहां गोमतीनगर में उस ने किराए पर कमरा ले रखा था. लखनऊ में वह रमेश के साथ रहने लगी. आरती को शराब से नफरत थी, जबकि रमेश शराब का आदी था. शराब पीने को ले कर दोनों में अकसर तकरार होती रहती थी.

बढ़ते समय के साथ आरती 2 बच्चों की मां बन गई. 2 बच्चों की मां बनने के बावजूद उस के शरीर की कसावट बनी हुई थी. वह बनसंवर कर रहती थी, जिस से वह पहले से अधिक सुंदर दिखने लगी थी.

रमेश राजमिस्त्री था. दिन भर धूपछांव में काम कर के जब वह शाम को घर आता तो इतना थका होता कि खाना खा कर निढाल हो कर सो जाता. आरती उसे झिंझोड़ती तो कभी वह बेमन से उस की इच्छा पूरी करता.

पति की उपेक्षा से आरती परेशान थी. यूं तो आरती का दांपत्य सामान्य नहीं था. भले ही रास रंग में अब रमेश की पहले जैसी रुचि नहीं रह गई थी, मगर आरती की ख्वाहिशों का जलजला कम नहीं हुआ था. तभी अचानक उस के जीवन में राजू नाम का युवक आया.

राजू मूलरूप से गोंडा के ही कटरा बाजार का निवासी था. लखनऊ में रह कर वह मजदूरी करता था. गोमतीनगर स्थित जिस बहुमंजिला इमारत के निर्माण में रमेश राजमिस्त्री का काम करता था, उसी में राजू मजदूरी करता था.

रमेश और राजू दोनों ही गोंडा के रहने वाले थे, इसलिए दोनों में खूब पटती थी. काम खत्म करने के बाद दोनों शराब के ठेके पर साथ बैठ कर शराब पीते थे. शराब के लिए पैसे राजू ही देता था.

एक शाम दोनों के कदम शराब ठेके पर जा कर रुके तो रमेश बोला, ‘‘यार राजू, तुम अकसर अपने पैसों से मुझे शराब पिलाते हो, लेकिन आज मैं तुम्हें शराब की दावत दूंगा. शराब के साथ आज का खाना तुम मेरे घर पर ही खाओगे.’’

राजू इस के लिए राजी हो गया. रमेश यह सोच कर खुश था कि दोस्ती में उस ने यह नेक काम किया है. लेकिन यही उस की सब से बड़ी गलती थी.

उसी शाम राजू रमेश के घर पहुंचा तो पहली बार आरती से सामना हुआ. नजरें मिलीं तो मानो उलझ कर रह गई. राजू के मन में विचार आया कि आरती कहां रमेश के पल्ले पड़ गई.

रमेश अधेड़ उम्र का कालाकलूटा और आरती खूबसूरत. इसे तो मेरे नसीब में होना चाहिए था. दूसरी तरफ आरती के दिल में भी राजू को देख कर हलचल मच गई थी. आरती की नजरों में राजू सच में ऐसा पुरुष था, जैसी उस ने कल्पना की थी.

उस रोज राजू ने आरती के हाथ का बना खाना खाया तो उस ने उस की जम कर तारीफ की. खानेपीने के दौरान कई बार राजू और आरती की आंखें चार हुईं. इस अल्प अवधि में ही राजू और आरती में आंखों के जरिए नजदीकियां बन गईं.

दोनों के अंदर आग एक जैसी थी, इसलिए संपर्क बनाए रखने के लिए उन्होंने एकदूसरे के मोबाइल नंबर ले लिए. इस के बाद वे आपस में बातचीत करने लगे. कुछ दिनों तक औपचारिक बातचीत हुई, फिर यही बातचीत प्यारमोहब्बत तक पहुंच गई.

एक दिन दोपहर को राजू मौका निकाल कर रमेश के घर जा पहुंचा. उस समय रमेश साइट पर था और बच्चे स्कूल गए थे. घर में आरती अकेली थी. आरती के सौंदर्य को देख कर राजू खुद को रोक न सका और उस ने आगे बढ़ कर आरती को अपनी बांहों में भर लिया. आरती ने दिखावे के लिए छूटने का प्रयास किया, लेकिन छूट न सकी.

राजू की बांहों में आरती जो सुख महसूस कर रही थी, वह उस सुख से काफी समय से वंचित थी. उस की तमन्नाएं अंगड़ाई लेने लगीं. फिर वह भी अमरबेल की तरह राजू से लिपट गई. इस के बाद दोनों ने मर्यादाएं लांघ कर अपनी हसरतें पूरी कीं.

उस दिन के बाद आरती राजू के प्यार में इतनी ज्यादा दीवानी हो गई कि वह पति से ज्यादा प्रेमी राजू का खयाल रखने लगी. राजू भी अपनी कमाई आरती पर खर्च करने लगा. रमेश शराब का लती था. उस की इस कमजोरी का राजू ने भरपूर फायदा उठाया. वह हर शाम शराब की बोतल ले कर उस के घर पहुंच जाता. वह खुद कम पीता और रमेश को अधिक पिला कर नशे में चूर कर देता. जब रमेश सो जाता, तब आरती और राजू वासना का खेल खेलते.

एक रात रमेश की नींद खुल गई. उस ने आरती व राजू को आपत्तिजनक स्थिति में देखा तो क्रोध से पगला गया. गालीगलौज कर के उस ने राजू को भगा दिया. इस के बाद उस ने आरती की खूब पिटाई की. मौके की नजाकत भांप कर आरती ने रमेश से वादा किया कि आइंदा वह राजू से किसी तरह का संबंध नहीं रखेगी.

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आरती ने पति से यह वादा कर तो लिया लेकिन 2-4 दिन बाद ही उसे राजू की याद सताने लगी. वहीं राजू को भी चैन नहीं था. लिहाजा मौका देख कर आरती राजू को फोन लगा देती और दोनों बात कर लेते.

एक दिन रमेश साइट पर गया, लेकिन किसी कारणवश काम बंद था. अत: वह वापस घर पहुंच गया. कमरा अंदर से बंद था. तभी उसे कमरे के अंदर से पत्नी के हंसने की आवाज सुनाई दी. उस ने दरवाजा खुलवाने के बजाए दरवाजे की झिर्री से अंदर झांका तो अंदर का दृश्य देख कर सन्न रह गया. कमरे में आरती राजू के साथ मौजमस्ती कर रही थी.

दोस्त के साथ पत्नी को एक बार फिर देख कर रमेश का खून खौल उठा. लेकिन वह बोला कुछ नहीं. कुछ देर वह जड़वत खड़ा रहा. उस के बाद दरवाजा खुलवाया तो अपराधबोध से आरती व राजू कांपने लगे. दोनों ने रमेश से माफी मांगी. पर उस ने माफ नहीं किया. रमेश ने राजू को फटकार लगाई, ‘‘आस्तीन के सांप, भाग जा घर से वरना मैं तेरा गला घोंट दूंगा.’’

राजू बिना कुछ बोले वहां से चला गया.

इस के बाद रमेश ने सारा गुस्सा आरती पर उतारा. वह आरती को तब तक पीटता रहा, जब तक वह थक नहीं गया. आरती कई दिन तक चारपाई पर पड़ी रही. लेकिन आरती की इस पिटाई ने आग में घी का काम किया. वह पति से नफरत करने लगी. उस ने घर में कलह भी शुरू कर दी. आरती जान गई थी कि अब उस का ऐसे जुल्मी पति के साथ गुजारा संभव नहीं है.

अत: उस ने एक दिन राजू से मुलाकात की और उसे बताया कि यदि वह उसे सच्चा प्यार करता है तो उसे अपने साथ ले चले, वरना वह अपनी जान दे देगी. राजू भी यही चाहता था. अत: उस ने आरती को समझाया कि वह धैर्य रखे. शीघ्र ही वह उसे अपना जीवनसाथी बना लेगा. आश्वासन पा कर आरती खुश हो गई.

आरती अब घर में खुश रहने लगी थी. पति की बात भी मानने लगी थी. इतना ही नहीं, उस ने घर में लड़ना भी बंद कर दिया था. घर का सारा काम भी वह समय पर करने लगी थी. पत्नी में आए इस बदलाव से रमेश हैरान था. वह यही सोच रहा था कि आरती को अपनी गलती का अहसास हो गया है, जिस से वह सुधर गई है.

लेकिन एक दिन जब शाम को रमेश घर आया तो बच्चे भूख से बिलबिला रहे थे. पूछने पर बच्चों ने बताया कि वे जब स्कूल से घर वापस आए तो मम्मी घर में नहीं थीं. उन्होंने पासपड़ोस में खोजा, लेकिन वह नहीं मिली.

बच्चों की बात सुन कर रमेश का माथा ठनका. उस ने घर में नजर दौड़ाई तो संदूक का ताला खुला था. संदूक में रखे पैसे गायब थे. संदूक में रखे आरती के कपड़े भी गायब थे. उस ने सोचा कि आरती कहीं बच्चों को छोड़ कर भाग तो नहीं गई. लेकिन उसे लगा कि आरती बच्चों को छोड़ कर नहीं जा सकती.

रमेश के मन में तरहतरह के विचार आ ही रहे थे कि तभी उस की निगाह अलमारी में रखे एक कागज पर पड़ी. उस कागज को खोल कर रमेश ने पढ़ा तो उस के होश उड़ गए. कागज में लिखा था, ‘मैं तुम जैसे राक्षस के साथ जिंदगी नहीं बिता सकती. इसलिए राजू के साथ जा रही हूं. मुझे खोजने की कोशिश मत करना. बच्चे तुम ने पैदा किए हैं, इसलिए उन्हें तुम्हारे पास ही छोड़ रही हूं.’

इधर राजू आरती को साथ ले कर लखनऊ से कानपुर आ गया. वहां उस ने विजय नगर कच्ची बस्ती में एक मकान किराए पर ले लिया और आरती के साथ रहने लगा. एक महीने बाद दोनों ने शास्त्रीनगर स्थित काली मंदिर में एकदूसरे को जयमाला पहना कर प्रेम विवाह कर लिया. प्रेम विवाह करने के बाद दोनों सुखमय जीवन व्यतीत करने लगे. राजू और आरती दोनों एकदूसरे को टूट कर चाहते थे. राजू आरती को हर तरह से खुश रखने में लगा रहता था. आरती भी अपने दूसरे पति का भरपूर खयाल रखती थी.

हंसीखुशी 3 साल बीत गए. उस के बाद आरती का मन राजू से भर गया. अब वह राजू से दूरियां बनाने लगी. दरअसल, राजू की आर्थिक स्थिति अब कमजोर हो गई थी. उस की कमाई का आधा हिस्सा आरती अपने शृंगार व कपड़ों पर ही खर्च कर देती थी. फिर मकान का किराया और गृहस्थी के अन्य खर्चों की वजह से पैसे का अभाव हो जाता था. इसे ले कर आरती और राजू में झगड़ा होने लगा था.

राजू का एक दोस्त निर्मल श्रीवास्तव था. वह भी राजू के साथ मजदूरी करता था. दोनों में खूब पटती थी. कभीकभी शाम को राजू के घर दोनों की महफिल भी जम जाती थी. वह राजू की आर्थिक मदद भी करता रहता था. इसलिए राजू निर्मल के अहसानों तले दबा रहता था. निर्मल आरती को मन ही मन चाहता था, लेकिन आरती से अपनी बात कह नहीं पाता था.

कहते हैं औरत की निगाह पारखी होती है. आरती जानती थी कि निर्मल उसे मन ही मन चाहता है. अत: आरती ने अपने कदम निर्मल की तरफ बढ़ा दिए. आरती निर्मल के साथ होने वाली हंसीमजाक की सीमाएं भी लांघने लगी.

निर्मल श्रीवास्तव कमाता तो था लेकिन तनहा जिंदगी व्यतीत कर रहा था. उसे औरत की कमी खलती थी. आरती ने जब उसे भाव देना शुरू किया तो वह आरती के प्रेम में डूबता चला गया. निर्मल ने अब राजू की गैरमौजूदगी में भी उस के घर आना शुरू कर दिया. निर्मल जब भी आता, आरती के लिए कुछ न कुछ उपहार जरूर लाता.

एक दोपहर निर्मल घर आया तो उस ने आते ही आरती को अपनी बांहों में भर लिया और प्रणय निवेदन करने लगा. आरती उस की बांहों में कसमसाते हुए बोली, ‘‘बाहर का दरवाजा खुला है. कोई देख लेगा तो बिना मतलब फजीहत होगी.’’

निर्मल ने आरती को बाहुपाश से मुक्त किया और बाहर का दरवाजा बंद कर फिर उसे बांहों में जकड़ लिया. आरती भी निर्मल का साथ देने लगी. इस के बाद दोनों ने अपनी हसरतें पूरी कीं.

इस के बाद निर्मल और आरती का मिलन अकसर होने लगा. आरती निर्मल की ऐसी दीवानी बन गई कि उस ने उसे तीसरे पति के रूप में चुन लिया. यही नहीं, उस ने राजू को बिना बताए कामेश्वर मंदिर, विजय नगर में निर्मल से प्रेम विवाह भी कर लिया. अब आरती और निर्मल गुपचुप तरीके से पतिपत्नी की तरह रहने लगे.

राजू को जब निर्मल और आरती के संबंधों की बात पता चली तो उस का गुस्सा सातवें आसमान पर पहुंच गया और उस ने आरती की जम कर पिटाई की तथा निर्मल को भी भलाबुरा कहा. इस के बाद राजू ने विजय नगर वाला मकान छोड़ दिया और काकादेव थानांतर्गत मतैयापुरवा में अमित राजपूत के मकान में किराए पर रहने लगा. यह बात अगस्त 2018 की है.

आरती, राजू के साथ मतैयापुरवा वाले मकान में रहने जरूर लगी, लेकिन उस ने निर्मल का साथ नहीं छोड़ा. राजू घर से काम पर चला जाता तो आरती सजसंवर कर निर्मल के पास पहुंचा जाती. फिर मौजमस्ती कर वापस आ जाती. राजू को आरती पर शक रहने लगा था, इसलिए निर्मल को ले कर दोनों में अकसर झगड़ा होने लगा था. झगड़े के दौरान ही एक दिन आरती ने बता दिया कि उस ने निर्मल से ब्याह रचा लिया है और अब वह निर्मल की पत्नी बन कर उस के साथ ही रहेगी.

आरती की बात सुन कर राजू सन्न रह गया. उस ने आरती को बहुत समझाया लेकिन वह नहीं मानी. इस के बाद वह राजू का साथ छोड़ कर निर्मल के साथ विजय नगर में रहने लगी.

पत्नी की बेवफाई से राजू टूट गया. वह परेशान रहने लगा तथा शराब भी ज्यादा पीने लगा. पत्नी की बेवफाई में उस ने कई पत्र लिखे. आखिर में राजू ने आरती को बेवफाई की सजा देने का निश्चय कर लिया.

26 फरवरी, 2019 की दोपहर राजू ने आरती से मोबाइल पर बात की और उस से घर आने का आग्रह किया. आरती ने पहले तो मना कर दिया लेकिन राजू के बारबार आग्रह से वह पिघल गई.

लगभग 2 बजे आरती राजू के मतैयापुरवा वाले कमरे पर पहुंची. राजू ने आरती को मना कर फिर से उस की जिंदगी में लौट आने की मिन्नत की. लेकिन आरती ने दो टूक जवाब दे दिया. इस के बाद बेवफाई को ले कर आरती और राजू में तीखी बहस शुरू हो गई.

इसी बहस के दौरान राजू अचानक ही दुपट्टे से आरती का गला कसने लगा. बचाव में आरती की चूडि़यां भी टूट गईं और कपड़े भी अस्तव्यस्त हो गए. आरती ने जान बचाने की पूरी कोशिश की लेकिन सफल नहीं हो सकी. राजू के हाथ तभी ढीले पड़े, जब उस ने आरती का काम तमाम कर दिया.

आरती की हत्या के बाद राजू ने निर्मल को फोन के जरिए जानकारी दी कि उस ने आरती को मार दिया है, उस की लाश उस के कमरे में पड़ी है, आ कर लाश ले जाए. इस के बाद राजू कमरे में ताला लगा कर फरार हो गया.

इधर निर्मल बदहवास हालत में राजू के कमरे पर पहुंचा तो कमरे में ताला लगा था. उस ने खिड़की से झांक कर देखा तो आरती की लाश पड़ी थी. निर्मल ने शोर मचाया तो मकान मालिक अमित कुमार आ गया. इस के बाद अमित कुमार थाना काकादेव पहुंचा और आरती की हत्या की सूचना दी. सूचना पाते ही थानाप्रभारी राजीव सिंह घटनास्थल पर पहुंचे और शव को कब्जे में ले कर जांच शुरू की.

3 मार्व, 2019 को थाना काकादेव पुलिस ने अभियुक्त राजू को कानपुर कोर्ट में रिमांड मजिस्ट्रैट के समक्ष पेश किया, जहां से उसे जिला कारागार भेज दिया गया. मृतका आरती के प्रेमी (पति) निर्मल श्रीवास्तव का हत्या में कोई हाथ नहीं था इसलिए पुलिस ने उसे छोड़ दिया.

   —कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

(कहानी सौजन्य- मनोहर कहानियां)

 

कौलसेंटर: ठगी के ठिकाने

इंटरनेट पर दुनिया भर की जानकारियां एकत्र हैं, जो चाहिए कुछ बटन दबा कर हासिल कर लीजिए. इन जानकारियों से हर विधा बहुत आसान तो हो गई है, लेकिन इंटरनेट का दुरुपयोग करने वालों ने नएनए उपकरणों के माध्यम से जानकारियां एकत्र कर के देशविदेश के लोगों को ठगने के रास्ते भी निकाल लिए हैं. ये लोग हर महीने करोड़ों…

सूचना प्रौद्योगिकी में आई क्रांति ने हर इंसान की जिंदगी को आसान बना दिया है. महानगरों से ले कर छोटेबडे़ शहरों में रहने  वाले अब जेब में ज्यादा नकदी नहीं रखते. इन की जेब में रखे पर्स अब कई तरह के कार्ड से भरे होते हैं. इन में डेबिट क्रैडिट कार्ड से ले कर और भी न जाने कितनी तरह के कार्ड होते हैं.
इस के अलावा लोगों में औनलाइन बैंकिंग और औनलाइन शौपिंग का भी प्रचलन तेजी से बढ़ा है. औनलाइन लेनदेन में और खरीदारी ने भले ही लोगों को एक नई सुविधा दी है, लेकिन कई मायनों में इस से उन की परेशानियां भी बढ़ गई हैं. एटीएम और क्रैडिट कार्ड से धोखाधड़ी के रोजाना नएनए मामले सामने आते रहते हैं. जालसाज एटीएम कार्ड हैक कर ग्राहकों का डेटा चुरा रहे हैं.
एटीएम कार्ड के क्लोन बना कर ठगी की जा रही है. पिछले कुछ सालों से औनलाइन शौपिंग करने वाले ग्राहकों के डेटा भी चोरी किए जाने लगे हैं. बैंक व बीमा उपभोक्ताओं के डेटा भी गुपचुप तरीकों से चुराए जा रहे हैं. यही कारण है कि अब हत्या, लूट और डकैती से ज्यादा साइबर अपराध के मामले सामने आ रहे हैं.

बिहार और झारखंड जैसे राज्यों में तो कुछ जगहों पर साइबर अपराध के बाकायदा अघोषित स्कूल भी चल रहे हैं. इन स्कूलों में युवाओं को साइबर अपराधों के नित नए पैंतरे सिखाए और बताए जाते हैं. साइबर अपराधों के मास्टरमाइंड आम जनों से ठगी करने के रोजाना नए तरीके ईजाद कर रहे हैं.
पिछले कुछ सालों से देश में कालसेंटरों की बाढ़ सी आ गई है. इन में तीनचौथाई कालसेंटर किसी न किसी तरह का फरजीवाड़ा कर रहे हैं. ग्राहकों के चुराए गए डेटा इन्हीं फरजी कालसेंटर चलाने वालों को बेचे जाते हैं.

ऐसा केवल भारत में ही नहीं, बल्कि दुनिया के अधिकांश विकसित देशों में हो रहा है. विभिन्न तरीकों से ग्राहकों के डेटा चुरा कर दूसरे देशों को बेचे जा रहे हैं. हालात यह हैं कि भारत के ग्राहकों के डेटा अमेरिका, इंग्लैंड, चीन, आस्ट्रेलिया, मलेशिया, फिलिपींस, सिंगापुर, यूक्रेन, रोमानिया, फ्रांस, बेल्जियम, पोलैंड आदि देशों तक पहुंच रहे हैं.

दूसरी तरफ तमाम देशों के डेटा भारत में आ रहे हैं. इन डेटा के जरिए भारत में बैठ कर फरजी कालसेंटर से अमेरिका, ब्रिटेन सहित अन्य देशों में नएनए तरीकों से ठगी की जा रही है. वहीं, अमेरिका और ब्रिटेन के साइबर ठग भारत सहित अन्य देशों के लोगों से ठगी कर रहे हैं.

हैरानी की बात यह है कि भारत में फरजी कालसेंटरों पर काम करने वाले 10वीं-12वीं पास युवक लिखी हुई स्क्रिप्ट के आधार पर फर्राटेदार अंगरेजी बोल कर अमेरिका और ब्रिटेन जैसे देशों के नागरिकों को ठग रहे हैं. हालांकि इन कालसेंटरों में काम करने वाले युवक केवल मोहरे होते हैं. जबकि फरजी कालसेंटरों के संचालक मास्टरमाइंड होने के साथसाथ आईटी में तकनीकी रूप से दक्ष होते हैं.

इसी साल मार्च के तीसरे सप्ताह की बात है. राजस्थान पुलिस मुख्यालय की राज्य विशेष शाखा से जयपुर के पुलिस कमिश्नरेट के अधिकारियों को सूचना मिली कि जयपुर में कई जगह फरजी कालसेंटर चल रहे हैं.

इन सेंटरों के संचालक अवैध रूप से विदेशी नागरिकों का डेटा हासिल कर उन से संपर्क करते हैं. फिर उन नागरिकों को या तो टैक्स जमा कराने के नाम पर धमकाया जाता है या लोन स्वीकृत कराने का प्रलोभन दिया जाता है. इस तरह विदेशियों से ठगी की जा रही है.
इस सूचना पर जयपुर पुलिस कमिश्नरेट के तेजतर्रार अधिकारियों की टीम गठित कर ऐसे फरजी कालसेंटरों का पता लगाने की जिम्मेदारी सौंपी गई. जांच में सूचना सही मिलने पर पुलिस मुख्यालय की इंटेलीजेंस टीम और पुलिस कमिश्नरेट के अधिकारियों के नेतृत्व में 4 टीमें बनाई गईं. इन टीमों ने 27 मार्च की रात को सादे कपड़ों में निजी वाहनों से पहुंच कर एक साथ 4 जगह दबिश डाली.

पहली टीम ने जयपुर में स्वेज फार्म स्थित दीप नगर में एक मकान पर रेड डाली तो दूसरी टीम ने गुर्जर की थड़ी पर मैट्रो पिलर नंबर 67 और 68 के बीच न्यू सांगानेर रोड पर रेड डाली. तीसरी टीम ने श्यामनगर थाने के पास एक गेस्टहाउस पर और चौथी टीम ने न्यू सांगानेर रोड पर लजीज होटल के सामने चल रहे फरजी कालसेंटर पर रेड डाली.

चारों रेड में 2 युवतियों सहित 34 लोगों को गिरफ्तार किया गया. इन चारों कालसेंटर के सरगना हार्दिक पटेल, राहुल बादल, विवेक राणा और भोपा भाई गुजरात के अहमदाबाद के निवासी थे, जबकि गौरव जांगिड़ जयपुर का रहने वाला था.

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गिरफ्तार आरोपियों में 20 युवक गुजरात के अहमदाबाद के और 2 जामनगर के रहने वाले निकले. 2 युवतियों सहित 4 युवक मेघालय, 4 नागालैंड, एक पश्चिम बंगाल, एक त्रिपुरा और 2 युवक जयपुर के रहने वाले थे. पुलिस ने इन कालसेंटरों से बड़ी संख्या में कंप्यूटर, 10 लैपटौप, 33 मोबाइल फोन, राउटर, मोडम, विशेष उपकरण मैजिक जैक, डायलर एवं नेटवर्किंग के उपकरण, अमेरिकी बैंक टौम मारेना के फरजी चैक और बिटकौइन के दस्तावेज जब्त किए.
इन फरजी कालसेंटरों के संबंध में आरोपियों के खिलाफ महेश नगर और श्याम नगर थाने में 2-2 मुकदमे दर्ज किए गए.

आरोपियों से पूछताछ में पता चला कि अमेरिका के लोगों को लोन के लिए बैंक खाते की लिमिट बढ़ाने का झांसा दे कर और बकाया इनकम टैक्स के नाम पर धमका कर ये लोग 4 महीने से ठगी कर रहे थे. इन 4 महीनों में ये करीब ढाई करोड़ रुपए की ठगी कर चुके थे. गिरफ्तार आरोपियों में कई 10वीं और 12वीं पास थे. कुछ युवक सौफ्टवेयर इंजीनियर भी थे. संचालक द्वारा कालसेंटर में काम करने वाले युवाओं को 12 से 15 हजार रुपए महीने के हिसाब से वेतन दिया जाता था.

इस गिरोह का नेटवर्क अमेरिका, चीन, हांगकांग सहित कई देशों में फैला हुआ था. भारत में इस गिरोह ने जयपुर के अलावा गुजरात, मेघालय व त्रिपुरा में अपना नेटवर्क बना रखा था.

कालसेंटरों के संचालकों ने विदेशी लोगों से बात करने के लिए अपने कर्मचारियों को पहले बाकायदा ट्रेनिंग दी थी. विदेशियों को फंसाने के लिए कालसेंटर संचालक पहले स्क्रिप्ट तैयार करते थे. इसी स्क्रिप्ट के आधार पर कालसेंटर के कर्मचारी विदेशियों को काल कर उन से बात करते थे.

विभिन्न देशों के समय के अनुसार कालसेंटर पर अलगअलग शिफ्टों में कर्मचारियों की ड्यूटी लगाई जाती थी. भारत और अमेरिका के समय में करीब साढ़े 10 घंटे का अंतर रहता है. ऐसे में भारत में इन कालसेंटरों में काम करने वाले कर्मचारी दोपहर 12 बजे की शिफ्ट में काम पर आते थे. उस समय अमेरिका में रात के साढ़े 10 बज रहे होते थे. कोई अमेरिकी नागरिक सुबह उठ कर अपना कंप्यूटर या लैपटौप चैक करता, तब उसे इन ठगों का ईमेल मिलता था.

कालसेंटर संचालक अमेरिका के लोगों को ठगने के लिए वहां के निवासियों के डेटा औनलाइन खरीदते थे. यह डेटा .95 डौलर प्रति व्यक्ति के हिसाब से खरीदा जाता था. इस डेटा में अमेरिका के लोगों के नाम, मोबाइल नंबर व ईमेल आदि होते थे.

फरजी कालसेंटरों से अमेरिका के लोगों को जो ईमेल भेजा जाता था, उस में लिखा होता था कि सस्ती दर पर लोन चाहिए तो नीचे लिखे नंबर पर फोन करें. कुछ जरूरतमंद लोग उस ईमेल में लिखे मोबाइल नंबर पर फोन करते थे.

फोन पर बातचीत के दौरान कालसेंटर में बैठे कर्मचारी उस विदेशी की बैंक की डिटेल्स ले लेते थे. कालसेंटर के लोग जल्दी ही रिटर्न काल करने की बात कहते थे. फिर उस विदेशी को फोन कर बैंक खाते में क्रैडिट स्कोर कम होने की बात कह कर क्रैडिट लिमिट बढ़ाने का झांसा देते थे. इस के लिए ये लोग कमीशन मांगते थे.

सौदा तय हो जाने पर ये लोग उस विदेशी के खाते में फरजी चैक भेज देते और चैक की फोटो उस के खाते में अपलोड कर देते थे. जयपुर के पुलिस अधिकारियों का दावा है कि अमेरिका में औनलाइन चैक भेजने पर एक बार संबंधित ग्राहक के खाते में उस चैक की राशि की एंट्री हो जाती है. बाद में अगर चैक में कोई गड़बड़ी पाई जाती है तो उस ट्रांजैक्शन को निरस्त कर दिया जाता है.

बैंक में पैसा जमा होने की एंट्री होने पर ये लोग कमीशन के एवज में वेस्टर्न यूनियन मनी ट्रांसफर, आईट्यून गिफ्ट कार्ड, मनीग्राम वालमार्ट कार्ड, बिटकौइन आदि के रूप में धनराशि लेते. यह रकम अमेरिकी बैंकों के खातों में ही ली जाती थी. फिर उस राशि को विदेशों में बैठे दलालों के माध्यम से हवाला से भारत में मंगवा लेते थे. इस तरह इन के द्वारा जयपुर में बैठ कर अमेरिका के लोगों से ठगी की जा रही थी.

ये लोग ठगी का दूसरा तरीका भी अपनाते थे. जयपुर में कालसेंटर में बैठे लोग मैजिक जैक की मदद से अमेरिका में लोगों को फोन करते. मैजिक जैक के जरिए अमेरिका में बैठे लोगों के मोबाइल पर अमेरिका का नंबर ही प्रदर्शित होता था.

ये लोग अमेरिका के व्यक्ति को इनकम टैक्स डिपार्टमेंट में टैक्स बकाया होने की बात कह कर गिरफ्तारी वारंट जारी होने की धमकी देते थे. फिर गिरफ्तारी से बचाने के लिए ये लोग उस अमेरिकी नागरिक से मोटी रकम वसूलते थे. इनकम टैक्स डिपार्टमेंट के मामले में ये लोग फरजी ईमेल करते थे.
मैजिक जैक एक हार्डवेयर है, जिसे कंप्यूटर से जोड़ा जाता है. इस के जरिए यह ऐप मोबाइल में डाउनलोड हो जाता है. ऐप डाउनलोड होने पर एक नंबर मिल जाता है.

अमेरिका के लोगों से बात करने के लिए ये लोग इस ऐप को डाउनलोड कर के यूनाइटेड स्टेट का नंबर ले लेते थे. इस से अमेरिका में काल होने पर अमेरिका का नंबर ही प्रदर्शित होता था. इस ऐप से फ्री इंटरनैशनल कालिंग हो सकती है.

डेटा बेचने वालों की कहानी भी हैरतंगेज है. नोएडा में एसटीएफ ने इसी साल मार्च महीने के आखिरी दिन फरजी कालसेंटरों को आम लोगों का डाटा बेचने वाले गिरोह के सरगना नंदन राव पटेल को गिरफ्तार किया.

वह बिहार के कैमूर जिले के भभुआ का रहने वाला था. एसटीएफ ने नंदन राव के पास से विभिन्न औनलाइन शौपिंग कंपनियों से संबंधित 14 लाख ग्राहकों का डेटा बरामद किया था. इस के अलावा कई मोबाइल फोन, 4 डेबिट कार्ड, 6 चैकबुक आदि भी बरामद की गईं. राव का गिरोह करीब 200 करोड़ रुपए की ठगी कर चुका है.

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नंदन राव ने एनिक वर्ल्ड नामक कंपनी खोल रखी है. वह इस कंपनी का डायरेक्टर है. यह कंपनी औनलाइन प्रमोशन, डिजिटल मार्केटिंग, वेबसाइट डेवलपमेंट व बल्क एसएमएस सुविधा उपलब्ध कराती है. नंदन राव ने कई शौपिंग कंपनियों के कर्मचारियों से सांठगांठ कर रखी थी.

राव का गिरोह औनलाइन शौपिंग करने वाले लोगों के डेटा इन कर्मचारियों के माध्यम से 3 रुपए प्रति व्यक्ति के हिसाब से खरीदता था. फिर वह इस डेटा को 5-6 रुपए प्रति व्यक्ति के हिसाब से फरजी कालसेंटरों को बेच देता था.

यह डेटा दिल्ली-एनसीआर सहित राजस्थान, बिहार, पंजाब, महाराष्ट्र आदि राज्यों के कालसेंटरों को बेचा जाता था. भारत के अलावा वह सिंगापुर के कालसेंटर संचालकों को भी यह डेटा बेचता था. कालसेंटरों से विभिन्न माध्यमों से लोगों को झांसा दे कर उन के बैंक और डेबिट कार्ड की डिटेल्स हासिल कर ली जाती थी. इस के बाद उन के खाते से रकम ट्रांसफर कर ठगी की जाती थी.

गिरफ्तार नंदन राव ने एसटीएफ को पूछताछ में बताया था कि गिरोह कैश ट्रांजैक्शन के लिए बैंक कर्मचारियों के साथ मिल कर फरजी नामपते से खोले गए बैंक खाते किराए पर लेता था. मिलीभगत के कारण बैंक कर्मचारी अपना कमीशन काट कर खातों में जमा रकम निकलवा देते थे.
इसी तरह पेटीएम क्यूआर कोड, फोन पे, तेज और भीम ऐप पर भी किराए के एकाउंट ले कर उन में ठगी की रकम ट्रांसफर की जाती थी.

नंदन राव औनलाइन शौपिंग वेबसाइट फ्लिपकार्ट, अमेजन, मिंट्रा, पेटीएम, स्नैपडील जैसी 18 कंपनियों की वेबसाइट से एप्लीकेशन व साफ्टवेयर को हैक करवा कर भी उन के ग्राहकों का डेटा चोरी कराता था.
कुछ महीने पहले नोएडा में कालसेंटरों की धरपकड़ होने पर पुलिस से छिपने के लिए नंदन राव सिंगापुर चला गया था. बाद में वह वापस आ कर नोएडा से ही डेटा बेचने और खरीदने का काम करने लगा.

एसटीएफ ने उसे साइबर क्राइम थाना सैक्टर-36 नोएडा को सौंप दिया. पुलिस ने नंदन राव से बरामद मोबाइल व लैपटौप फोरैंसिक जांच के लिए भेज दिए.

उस के गिरोह के सदस्यों के नामपते पुलिस को मिल गए हैं. उन्हें पकड़ने की कोशिश की जा रही है. नंदन राव से उस के भारतीय और विदेशी ग्राहकों के बारे में पता लगाया जा रहा है. औनलाइन शौपिंग कंपनियों के उन कर्मचारियों का भी पता लगाया जा रहा है, जो ग्राहकों के डेटा चोरी कर नंदन को बेचते थे.
पिछले साल दुनिया की नामी सौफ्टवेयर कंपनी माइक्रोसौफ्ट के नाम पर ठगी करने के मामले भी सामने आए थे. इस में कंपनी के अधिकारियों ने गुरुग्राम और नोएडा पुलिस में शिकायत की थी. पुलिस में जाने से पहले माइक्रोसौफ्ट कंपनी ने उपभोक्ताओं की शिकायत की जांच कराई थी. जांच में पता चला कि माइक्रोसौफ्ट का सौफ्टवेयर उपयोग करने वाले कंप्यूटर उपभोक्ताओं को उन के कंप्यूटर स्क्रीन पर वार्निंग का मैसेज भेजा जा रहा है. मैसेज में उन के कंप्यूटर में वायरस आने और इस का समाधान करवाने की बात कही जाती थी. इस के लिए माइक्रोसौफ्ट कंपनी का हेल्पलाइन नंबर भी दिया जाता था. जैसे ही उपभोक्ता इस नंबर पर संपर्क करता तो उस के कंप्यूटर को रिमोट पर ले लिया जाता था.

रिमोट लाइन से जोड़ते ही कालसेंटर में बैठे कर्मचारी उस कंप्यूटर से उपभोक्ता की निजी जानकारी निकाल लेते थे. फिर उस जानकारी को वापस करने के एवज में मोटी रकम की मांग की जाती थी.
नोएडा से कालसेंटरों के जरिए विदेशी नागरिकों के कंप्यूटर स्क्रीन पर पौपअप मैसेज भेजा जाता था. इस मैसेज को ऐसा बनाया जाता था कि यह वायरस की तरह लगता था. इस के बाद उसी मैसेज में दिए गए चैट औप्शन के जरिए लोगों से रकम मंगवाई जाती थी. माइक्रोसौफ्ट कंपनी की शिकायत पर गुरुग्राम पुलिस ने ऐसे 8 कालसेंटरों का भंडाफोड़ कर 8 लोगों को गिरफ्तार किया था. नोएडा पुलिस ने भी 9 कालसेंटरों का परदाफाश कर 27 लोगों को गिरफ्तार किया था.

राजस्थान, हरियाणा, दिल्ली और उत्तर प्रदेश पुलिस की ओर से फरजी कालसेंटरों के संबंध में की गई छापेमारी के बाद जांचपड़ताल में यह बात उभर कर सामने आई कि इन का नेटवर्क यूएई से चल रहा था. यूएई में काम कर रहे गिरोह का नेटवर्क अमेरिका सहित कई देशों में है.

यह नेटवर्क अलगअलग गिरोह के लोग चला रहे हैं. ये लोग ठगी की रकम मंगाने के लिए भारत के बैंक एकाउंट नंबर नहीं देते. ये लोग अमेरिका के गेटवे से उसी देश के बैंक खातों में विदेशियों से रकम मंगवाते हैं, पीडि़त नागरिक जिस देश का रहने वाला होता है. अमेरिका व अन्य देशों के बैंक खातों में आई रकम 2 तरीकों से भारत में मंगवाई जाती है. एक तरीका यह है कि अमेरिका या अन्य देश के एजेंट उस रकम को पहले यूएई और फिर भारत भेजते हैं. दूसरा तरीका है हवाला के जरिए यह रकम दिल्ली पहुंचती है.

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पुलिस की जांच में सामने आया है कि भारत में ऐसे करीब 40 फरजी कालसेंटर अलगअलग शहरों में चल रहे हैं. इन कालसेंटरों के जरिए हर महीने 8 से 15 करोड़ रुपए तक की ठगी की जा रही है. हर 2-4 महीने में कुछ फरजी कालसेंटरों का भंडाफोड़ भी होता है. इस में सेंटर संचालक और कर्मचारी पकड़े जाते हैं.

कुछ दिन बाद ये लोग जमानत पर छूट कर फिर किसी दूसरे शहर में अपना ठिकाना बना कर कालसेंटर शुरू कर देते हैं. हर बार ये लोग विदेशियों से ठगी के नए तरीके अपनाते हैं. नोएडा को छोड़ कर बाकी उत्तर भारत में इन फरजी कालसेंटरों के संचालक गुजरात के रहने वाले लोग हैं.

मानव अंगों का कालाबजार

मनुष्य के किडनी और लीवर जैसे अंग कई कारणों से खराब हो जाते हैं. ये ऐसे अंग हैं, जिन के बिना जिंदगी की कल्पना नहीं की जा सकती.

संगीता मूलरूप से बांदा जिले के तिंदवारी कस्बे से सटे गांव बड़ी पिपराही की रहने वाली थी.

कानपुर शहर में वह अपने पति राजेश कश्यप के साथ साकेत नगर स्थित प्लास्टिक गोदाम में रहती थी. राजेश कश्यप इलैक्ट्रीशियन था. वह किदवई नगर में बिजली की एक दुकान में काम करता था. इस काम से होने वाली आय से वह परिवार का खर्च चलाता था.

राजेश कश्यप का एक दोस्त श्याम तिवारी उर्फ श्यामू था. पेशे से ड्राइवर श्यामू जूहीलाल कालोनी में रहता था. दोस्त होने की वजह से श्यामू का उस के घर आनाजाना बना रहता था. एक दिन श्याम तिवारी एक व्यक्ति के साथ उस के यहां आया. श्यामू ने उस का परिचय अपने दोस्त मोहित निगम के रूप में दिया और बताया, ‘‘यह नौबस्ता के हनुमंत विहार में रहता है. इस के घर पर बिजली का कुछ काम होना है, तुम कर देना.’’

राजेश कश्यप हंस कर बोला, ‘‘श्यामू भाई, मोहित तुम्हारा दोस्त तो मेरा भी दोस्त है. बिजली का जो भी काम होगा, मैं कर दूंगा.’’

राजेश ने उन दोनों की खातिरदारी की. इतना ही नहीं, राजेश की पत्नी संगीता ने उन्हें बिना खाना खाए नहीं जाने दिया. खाना खाने के बाद श्यामू और मोहित ने संगीता के बनाए खाने की बहुत तारीफ की. दूसरे दिन राजेश मोहित निगम के घर गया और बिजली का काम कर आया. इस के बाद मोहित का भी राजेश के यहां आनाजाना होने लगा.

एक दिन मोहित घर आया तो उस समय संगीता घर में अकेली थी. उस ने इधरउधर नजर दौड़ाई फिर बोला, ‘‘भाभी, आप खाना बहुत स्वादिष्ट बनाती हैं. आप की जो पाक कला है, इस से अच्छाखासा पैसा कमा सकती हैं.’’

‘‘वह कैसे?’’ संगीता ने पूछा.

‘‘भाभी, बड़े घरों में खाना पका कर. दिल्ली जैसे बड़े शहर में आप को आसानी से नौकरी मिल जाएगी और रहने के लिए आवास भी मिल जाएगा. आप जहां नौकरी करोगी, वहीं रहने और खानेपीने का बंदोबस्त हो जाएगा. इस से आप की पूरी तनख्वाह बच जाया करेगी.’’

‘‘पर वहां मेरी नौकरी लगवाएगा कौन?  मैं तो किसी को जानती तक नहीं हूं.’’ संगीता ने सवाल किया.

‘‘भाभी, मेरा एक दोस्त है जुनैद. उस की दिल्ली में बड़े घरानों में पहुंच है. वह आप की नौकरी आसानी से लगवा सकता है. बस आप नौकरी के लिए राजेश को तैयार करो.’’

इस के बाद श्याम, मोहित और संगीता ने राजेश पर दबाव डाला तो राजेश ने संगीता को नौकरी करने की इजाजत दे दी. फिर मोहित निगम ने राजेश व उस की पत्नी संगीता को जुनैद से मिलवाया. जुनैद ने संगीता को नौकरी दिलाने का भरोसा दिया.

25 नवंबर, 2018 को जुनैद संगीता व उस के पति राजेश को कानपुर से गाजियाबाद लाया और दोनों को एक होटल में ठहरा दिया. जुनैद खुद भी उसी होटल में रुका. दूसरे दिन जुनैद संगीता को दिल्ली के सर गंगाराम अस्पताल ले गया और उस की कई छोटीबड़ी शारीरिक जांच करवाईं.

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इन जांचों से संगीता का माथा ठनका. उस ने जांच के संबंध में जुनैद से पूछा तो वह बोला, ‘‘भाभी, काम देने वाले बड़े लोग हैं. जांच करवा कर वह आश्वस्त होना चाहते हैं कि तुम शारीरिक रूप से फिट हो और तुम्हें कोई रोग नहीं है.’’ संगीता उस की बात से संतुष्ट हो गई.

राजेश्य कश्यप को जुनैद ने एक तरह से कैद कर लिया था. वह उसे होटल के कमरे से बाहर नहीं जाने देता था. तीसरे दिन जुनैद, संगीता को आधार कार्ड में नाम बदलवाने के लिए एक दुकान पर ले गया. वहां उस ने आधार में संगीता का नाम सकीना करा दिया. नाम बदलने को ले कर संगीता का दुकान पर ही झगड़ा होने लगा.

तब जुनैद ने संगीता को समझाया कि दरअसल नौकरी देने वाला मुसलिम परिवार है. वह किसी मुसलिम औरत को ही नौकरी पर रखना चाहता है, इसलिए नाम बदलवाया है. संगीता ने इस बात पर विरोध जताया और कहा कि वह धर्म बदल कर नौकरी नहीं करना चाहती. उसे नौकरी नहीं चाहिए, वह वापस कानपुर जाना चाहती है. वहां से संगीता जुनैद के साथ होटल में अपने कमरे पर पहुंच गई.

उसी रात संगीता ने जुनैद को फोन पर बतियाते सुना तो उस के पैरों तले से जमीन खिसक गई. वह किसी से किडनी के बारे में बात कर रहा था. इस से संगीता समझ गई कि वह मानव अंग तस्कर गिरोह के जाल में फंस गई है. उस ने यह बात अपने पति राजेश को बताई तो वह भी घबरा गया. इस के बाद संगीता ने वापस कानपुर जाने का फैसला कर लिया.

डरीसहमी संगीता ने किसी तरह जुनैद के बैग से अपना असली व फरजी आधार कार्ड तथा अन्य कागजात निकाल कर अपने पास रख लिए. फिर 28 नवंबर, 2018 की शाम को वह अपने पति राजेश के साथ वापस कानपुर लौट आई.

एक महीने तक जुनैद ने संगीता से संपर्क नहीं किया. उस के बाद जुनैद ने संगीता से कहा कि वह अपनी किडनी ट्रांसप्लांट करा ले तो उस के एवज में उसे 5 लाख रुपए मिल जाएंगे. लेकिन संगीता रुपयों के लालच में नहीं आई, उस ने साफ मना कर दिया.

संगीता ने मना किया तो जुनैद ने फोन पर उस से कहा, ‘‘अस्पताल की जांच और होटल का खर्च 50 हजार रुपया बना है. यह रुपया देना पड़ेगा.’’

संगीता के पास रुपया कहां था. इसलिए उस ने कह दिया कि वह रुपए नहीं दे सकती. इस के बाद जुनैद तथा उस के साथी करन व राजकुमार उर्फ राजू संगीता को धमकी देने लगे कि या तो किडनी ट्रांसप्लांट करा लो या फिर रुपया दो. वरना तुम्हें या तुम्हारे पति को जान गंवानी पड़ सकती है. तुम घर से भले ही न निकलो, लेकिन तुम्हारा पति तो घर से निकलता है.

संगिता जुनैद व उस के साथियों की धमकी से डर गई. अब वह रातदिन परेशान रहने लगी. आखिर उस ने इस धमकी की बाबत पति राजेश से विचारविमर्श किया. दोनों ने फैसला किया कि इस तरह डर कर कब तक रहा जाएगा. लिहाजा उन्होंने धमकी देने वालों के विरुद्ध थाने में रिपोर्ट दर्ज कराने का फैसला लिया.

पहली फरवरी, 2019 को संगीता अपने पति राजेश कुमार कश्यप के साथ थाना बर्रा जा पहुंची. थाने पर उस समय थानाप्रभारी अतुल कुमार श्रीवास्तव मौजूद थे. संगीता ने उन्हें आपबीती सुनाई. थानाप्रभारी समझ गए कि मामला गंभीर है इसलिए संगीता की तहरीर पर उन्होंने जुनैद, मोहित निगम, श्याम तिवारी उर्फ श्यामू, राजकुमार राव उर्फ राजू तथा करन के विरुद्ध ह्यूमन आर्गन ट्रांसप्लांटेशन एक्ट 1994 के तहत रिपोर्ट दर्ज कर ली.

रिपोर्ट दर्ज करने के बाद थानाप्रभारी अतुल कुमार श्रीवास्तव ने एसपी (साउथ) रवीना त्यागी को इस की जानकारी दे दी. एसपी रवीना त्यागी ने संगीता को बुला कर उस से विस्तृत जानकारी हासिल की. संगीता की जानकारी से उन्हें लगा कि कोई बड़ा गिरोह है, जो मानव अंगों का अवैध कारोबार कर रहा है.

एसआई विशेष कुमार ने एजेंट की तलाश शुरू की तो पनकी निवासी राजेश से उन का संपर्क हो गया. उन्होंने खुद को किडनी डोनर बता कर बात की तो राजेश उन के झांसे में आ गया. राजेश किडनी डोनर एजेंट था और सीनियर सदस्य गौरव मिश्रा के लिए काम करता था.

विशेष कुमार राजेश से मिले और पैसों की बेहद जरूरत बताई. विशेष कुमार ने किडनी बेचने के लिए 5 लाख रुपए मांगे लेकिन सौदा 3 लाख में तय हो गया.

9 फरवरी को एजेंट राजेश दरोगा विशेष कुमार को दिल्ली ले गया और पहाड़गंज के एक होटल में ठहराया. दरोगा के साथ 2 पुलिसकर्मी अमित चौहान व कमल भी थे. विशेष कुमार को एजेंट ने एक दिन के लिए होटल में ठहराया और इस दौरान अन्य साथियों की मदद से तैयारियां पूरी कर लीं.

11 फरवरी को दिल्ली के पहाड़गंज स्थित डा. लाल पैथ लैब्स से उन की प्राथमिक जांच यानी ब्लड गु्रप, लीवर ऐंड किडनी पैनल, सीरम, सीबीसी आदि की जांच कराईं. इस की रिपोर्ट मिलने पर एजेंट राजेश ने फोटो खींच कर गौरव मिश्रा को भेजी.

गौरव मिश्रा ने विशेष कुमार को मिलने के लिए एजेंट के साथ साकेत मैट्रो स्टेशन बुलाया. वहां सभी ने एक घंटे तक इंतजार किया लेकिन गौरव नहीं आया. गौरव शातिर था. उस ने स्टेशन पहुंच कर सामने आने के बजाय दरोगा विशेष कुमार व एजेंट के क्रियाकलाप देखे.

उस के बाद गौरव ने राजेश को फोन कर मुलाकात और अन्य काररवाई आगे बढ़ाने की बात की. इस के बाद एजेंट व दरोगा विशेष कुमार अपने सहयोगी पुलिसकर्मियों के साथ कानपुर वापस आ गए. विशेष कुमार ने इस औपरेशन की जानकारी एसपी रवीना त्यागी को दे दी.

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16 फरवरी, 2019 को गौरव मिश्रा व राजकुमार राव उर्फ राजू पैसे के लेनदेन के अलावा मोटीवेशन के लिए कानपुर आए. दोनों राजेश के माध्यम से दरोगा विशेष कुमार से मिले. तभी विशेष कुमार ने अपना असली रूप दिखाते हुए दोनों को गिरफ्तार कर लिया.

एसपी रवीना त्यागी ने थाना नौबस्ता पहुंच कर पूछताछ की तो दोनों टूट गए. उन्होंने कानपुर क्षेत्र में सक्रिय गिरोह के अन्य सदस्यों के नाम बता दिए. इस के बाद रवीना त्यागी ने नौबस्ता, बर्रा व गोविंद नगर थाना पुलिस को सतर्क कर दबिश के लिए 2 और टीमें बनाईं.

इन टीमों ने ताबड़तोड़ छापे मार कर गिरोह के 4 अन्य सदस्यों को नीलम गेस्टहाउस, बर्रा से गिरफ्तार कर लिया. सभी को थाना बर्रा लाया गया. गिरोह के पास से पुलिस टीम को दरजनों फरजी कागजात बरामद हुए.

पुलिस ने गिरोह के सरगना सहित 6 सदस्यों को तो पकड़ लिया था. लेकिन नामजद आरोपी श्याम तिवारी उर्फ श्यामू, मोहित निगम, जुनैद तथा करन अभी पकड़ में नहीं आए थे. पुलिस टीम उन्हें पकड़ने के लिए छापेमारी कर रही थी. सूचना मिलने पर एसपी (साउथ) थाना बर्रा पहुंचीं और पकड़े गए गिरोह के सदस्यों से पूछताछ की.

पुलिस ने जिन आरोपियों को पकड़ा था, उन में टी. राजकुमार राव उर्फ राजू गिरोह का सरगना था. वह कोलकाता के राजाराट थाना अंतर्गत शिपतला का रहने वाला था. गौरव मिश्रा उत्तर प्रदेश के लखीमपुर खीरी जिले के मैगलगंज शिवपुरी का रहने वाला था.

शैलेश सक्सेना दिल्ली के जैतपुर एक्सटेंशन पार्ट-1 का निवासी था. सबूर अहमद लखनऊ के प्रेम नगर का रहने वाला था. शमशाद अली लखनऊ के गली साधड़ा विक्टोरिया चौक का निवासी था. विक्की सिंह कानपुर के पनकी गंगागंज भाग-2 में रहता था.

गिरोह के पास से पुलिस को 3 खाली पासबुक, डीएम, एडीएम, एसडीएम, थाना, बैंक व अस्पतालों की फरजी मोहरें, विवाह प्रमाण पत्र की फरजी मोहरें, 9 एटीएम कार्ड, 14 आधार कार्ड, 8 निर्वाचन पहचान पत्र, 5 पैन कार्ड, कई मार्कशीट, 8 स्मार्टफोन, मरीज और डोनर के साथ ही उन लोगों के परिजनों के फरजी शपथ पत्र, पीएसआरआई (पुष्पावती सिंघानिया रिसर्च इंस्टीट्यूट) से संबंधित मरीज व डोनर से जुड़े गोपनीय दस्तावेज बरामद हुए. इन सभी को पुलिस ने जांच हेतु काररवाई में शामिल कर लिया.

पकड़े गए गिरोह के सदस्यों ने बताया कि गिरोह के हर सदस्य का काम अलगअलग बंटा हुआ था. गिरोह का सरगना टी. राजकुमार उर्फ राजू डोनर मरीज को अस्पताल ले जा कर कोऔर्डिनेटर से मुलाकात कराता था, जबकि गौरव मिश्रा डोनर व मरीज को तैयार कर उन की मुलाकात गिरोह के सरगना टी. राजकुमार राव से कराता था.

शैलेश सक्सेना डोनर व मरीज से मिल कर फरजी दस्तावेज तैयार कराता था. सबूर अहमद लखनऊ से डोनर व मरीज को तैयार कर गौरव व टी. राजकुमार राव के पास ले जाता था. इन लोगों ने अपनेअपने क्षेत्र में दरजनों एजेंट बना रखे थे, जो झुग्गीझोपडि़यों, शराब के ठेकों व मलिन बस्तियों में पैसों का लालच दे कर डोनर खोजते थे.

गिरफ्तार आरोपियों ने कुछ डोनरों की भी जानकारी दी थी. पुलिस ने ऐसे 4 किडनी डोनरों शोएब, वरदान चंद, अजय व ऋषभ को हिरासत में लिया. इन डोनरों ने अभियुक्तों की पहचान की तथा अपने छले जाने की भी व्यथा बताई. पुलिस ने इन डोनरों की कांशीराम ट्रामा सैंटर में जांच कराई तो किडनी निकाले जाने की पुष्टि हुई. इन को पुलिस ने अपना सरकारी गवाह बना लिया.

चूंकि पकड़े गए गिरोह के सदस्यों ने अपना जुर्म कबूल कर लिया था, अत: थाना बर्रा पुलिस ने गौरव मिश्रा, टी. राजकुमार राव, विक्की सिंह, शैलेश सक्सेना, शमशाद अली तथा सबूर अहमद के खिलाफ ह्यूमन आर्गन ट्रांसप्लांटेशन एक्ट 1994 के तहत रिपोर्ट दर्ज कर ली.

चूंकि इन आरोपियों के पास से पुलिस को फरजी दस्तावेज भी बरामद हुए थे, इसलिए इन के खिलाफ एक अन्य मुकदमा भादंवि की धारा 420, 467, 468, 471 के तहत भी दर्ज किया.

किडनी व लीवर ट्रांसप्लांट गैंग के सदस्यों के पकड़े जाने की खबर जब एसएसपी अनंत देव को लगी तो उन्होंने इसे बेहद गंभीरता से लिया.

उच्चस्तरीय जांच के लिए उन्होंने स्पैशल इनवैस्टीगेशन टीम का गठन किया. इस टीम में सीओ (गोविंद नगर) आर.के. चतुर्वेदी, सीओ (अनवरगंज) शफीफुर्रहमान, थानाप्रभारी (बर्रा) अतुल कुमार श्रीवास्तव, क्राइम ब्रांच प्रभारी गंगा सिंह, सर्विलांस प्रभारी अजय अवस्थी, थानाप्रभारी (नौबस्ता) समर बहादुर सिंह के अलावा एक दरजन तेजतर्रार सबइंसपेक्टर व सिपाहियों को शामिल किया गया. इस टीम को एसपी (साउथ) रवीना त्यागी के निर्देशन में काम करना था.

एसआईटी ने किडनी, लीवर ट्रांसप्लांट गिरोह के पकड़े गए सदस्यों से पूछताछ की तो चौंकाने वाली जानकारियां मिलीं. पूछताछ से पता चला कि गिरोह का जाल देश में ही नहीं, बल्कि विदेशों तक फैला है.

गिरोह के सदस्य मरीज से किडनी का सौदा 20 से 25 लाख में तय करते थे, जबकि डोनर को मात्र 3 से 5 लाख देते थे. उस में भी ये लोग घपला कर लेते थे. ये लोग झुग्गीझोपडि़यों, मजदूर वर्ग, शराब के ठेकों, ढाबों आदि पर डोनरों की तलाश करते थे.

गिरोह के मुखिया टी. राजकुमार राव उर्फ राजू ने बताया कि वह दिल्ली के 3 बड़े अस्पतालों के संपर्क में रहता था. वहां के कुछ लोगों से उसे काम की जानकारियां मिलती रहती थीं. इस के बाद वह आगे की तैयारी करता था.

टी. राजकुमार राव ने यह भी बताया कि वह दिल्ली के एक बड़े डाक्टर के संपर्क में रहता था. वह दिल्ली में कहां रहता है, इस का उसे पता नहीं था, लेकिन मानव अंगों का सौदा करने वाले इस डाक्टर का जाल नेपाल, टर्की और श्रीलंका तक फैला था.

विदेशों में वह मरीज से किडनी का सौदा 70 लाख से 1 करोड़ रुपए में तय करता है. जरूरत पड़ने पर वह उसे बाजार, रेस्टोरेंट, मौल या फिर मैट्रो स्टेशन पर बुलाता था. महंगी कार रखना उस का शौक है. डोनर की काउंसलिंग वह स्वयं करता था. डोनर को विदेश भेजने की सारी व्यवस्था भी वही करता था.

आरोपी शैलेश सक्सेना तथा गौरव मिश्रा ने भी जांच टीम को अहम जानकारियां दीं. शैलेश सक्सेना फरजी कागजात तैयार कराता था. यह काम वह दिल्ली के मयूर विहार के रहने वाले संजय पांडेय व उस के सहयोगी आसिम की मदद से करता था. शैलेश सक्सेना ने एक पद्मविभूषित डाक्टर का नाम भी बताया, जो इस रैकेट से जुड़ा था.

जांचपड़ताल से पता चला कि किडनी और लीवर ट्रांसप्लांट के नियम काफी सख्त हैं. नियम के मुताबिक 2 स्थितियों में किडनी ट्रांसप्लांट की जा सकती है. पहली स्थिति खून का रिश्ता. अगर बेटा, मांबाप और बहन में से कोई किसी को किडनी डोनेट करता है तो सब से पहले रिसीवर और डोनर का डीएनए और एचएलए मिलान कराया जाता है.

इस के बाद अस्पताल डायरेक्टर समेत 20 सदस्यीय डाक्टरों की टीम डोनर से राजी होने के बाद पूछताछ करती है. पूरी संतुष्टि के बाद किडनी ट्रांसप्लांट की जाती है.

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दूसरी स्थिति रिश्तेदार से रिश्तेदार के लिए लागू होती है. इस में भी डोनर तथा रिसीवर का डीएनए और एचएलए मिलान कराया जाता है. अस्पताल की 20 सदस्यीय टीम के साथ डीएम की संतुष्टि के बाद ही किडनी ट्रांसप्लांट हो सकती है.

लेकिन किडनी रैकेट के लोग इन सारे नियमों को धता बता कर अस्पताल के कोऔर्डिनेटरों की मदद से किडनी ट्रांसप्लांट करा देते थे. दरअसल गिरोह के सदस्य डोनर को फरजी दस्तावेज के आधार पर रिसीवर के परिवार का सदस्य (बेटा, भाई, मां, बाप, बहन) बताते थे.

इस के बाद किसी बड़े अस्पताल में डोनर का मैडिकल होता था. वहां डीएनए मिलान के लिए जांच रिपोर्ट बदल दी जाती थी. डोनर की जगह रिसीवर के परिजन की रिपोर्ट कमेटी के पास जाती थी, जिस से सब सही पाया जाता था.

जांच से यह बात भी सामने आई कि पकड़े गए सभी आरोपियों ने पहले खुद किडनी डोनेट की थी, उस के बाद वे गिरोह के सदस्य बने थे. एसआईटी ने रिपोर्टकर्ता से भी पूछताछ की तथा कुछ की शिनाख्त भी कराई. आरोपियों ने एसआईटी के समक्ष कुछ ऐसे नामों का भी खुलासा किया जो प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रूप में उन की मदद करते थे. पुलिस टीम ने ऐसे 16 आरोपियों की लिस्ट तैयार की.

इन में कानपुर निवासी श्याम तिवारी, श्याम दूबे उर्फ भूरा (खाडेपुर योगेंद्र विहार), मोहित निगम (हनुमंत विहार, नौबस्ता), संजय पाल (कर्रही चौराहा नौबस्ता), जुनैद (पुलिस लाइंस लखनऊ), राजा व रामू पांडेय, आनंद (लखनऊ), सिप्पू राय (आजमगढ़), करन (चंडीगढ़), संजय पांडेय और आसिम सिकंदर वगैरह शामिल थे.

एसआईटी की पूछताछ के बाद बर्रा थानाप्रभारी अतुल कुमार श्रीवास्तव ने पकड़े गए आरोपी टी. राजकुमार राव उर्फ राजू, गौरव मिश्रा, शैलेश सक्सेना, सबूर अहमद, शमशाद अली तथा विक्की सिंह को कानपुर कोर्ट में रिमांड मजिस्ट्रैट के समक्ष पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया.

किडनी कांड की गहनता से जांच कर रही एसआईटी की लिस्ट में दिल्ली के कई नाम शामिल थे. इन सभी से पूछताछ करने के लिए टीम ने दिल्ली में डेरा डाल दिया. यहां टीम ने कुछ डाक्टरों और उन के सहयोगियों से कई राउंड पूछताछ की तथा अस्पतालों के रिकौर्ड खंगाले, जिन में ये कार्यरत थे.

टीम ने अस्पताल में किडनी ट्रांसप्लांट कराने वाले डोनर व मरीजों से भी पूछताछ की तथा उन के बयान दर्ज किए. टीम ने कई नामचीन डाक्टरों से भी पूछताछ की. पुलिस टीम ने अस्पताल की 13 फाइलों का निरीक्षण किया तथा 26 लोगों के बयान दर्ज किए.

टीम ने दिल्ली के मयूर विहार निवासी संजय पांडेय व उस के सहयोगी आसिम सिकंदर को पकड़ने के लिए जाल बिछाया लेकिन वे पकड़ में नहीं आ सके. ये दोनों गिरोह के लिए फरजी कागजात तैयार करते थे. पुलिस की पकड़ में न आने पर टीम ने उस का दुकान पर छापा मार कर दरजनों फरजी कागजात बरामद किए, जहां फरजी कागजात तैयार किए जाते थे.

दिल्ली में पुलिस टीम कई दिनों तक डेरा डाले रही लेकिन कोई आरोपी पुलिस के हत्थे नहीं चढ़ा, तब पुलिस टीम वापस कानपुर लौट आई. दरअसल पुलिस अपनी फजीहत नहीं कराना चाहती थी क्योंकि गिरफ्तारी बड़े लोगों की होनी थी.

पुलिस अधिकारी चाहते थे कि जिन बड़े लोगों के इस केस में नाम आ रहे हैं, पुलिस पहले उन के खिलाफ मजबूत सबूत हासिल कर ले ताकि कोर्ट में किसी तरह से केस कमजोर न पड़े.

दिल्ली से लौटने के बाद एसआईटी ने कानपुर, लखनऊ व आजमगढ़ के आरोपियों को पकड़ने के लिए शिकंजा कसा और ताबड़तोड़ छापे मार कर लखनऊ से राजू पांडेय तथा कानपुर से श्याम तिवारी व राजा को पकड़ लिया.

श्याम तिवारी को उस के घर जूहीलाल कालोनी से तथा राजा को किदवई नगर चौराहे से पकड़ा गया. श्याम तिवारी ने ही इस केस की वादी संगीता को अपने दोस्त मोहित निगम व जुनैद को मिलवाया था. पूछताछ के बाद तीनों को कानपुर कोर्ट में पेश कर जेल भेज दिया गया.

किडनी रैकेट का सरगना टी. राजकुमार राव उर्फ राजू मूलरूप से आंध्र प्रदेश का रहने वाला है, लेकिन वह कोलकाता शहर में थाना राजाराट के अंतर्गत शिपतला में रहता था. वह पढ़ालिखा तथा तेज दिमाग था. हिंदी, अंगरेजी तथा बांग्ला भाषा पर उस की अच्छी पकड़ थी. उस ने अपना कैरियर मैडिकल में एमआर बन कर शुरू किया था, लेकिन यह काम उसे पसंद नहीं आया.

इस के बाद वह दिल्ली आ गया. यहां उस ने रेडीमेड कपड़ों का व्यवसाय शुरू किया, लेकिन अनुभव न होने के कारण उसे व्यापार में घाटा हो गया. रकम डूब जाने से वह परेशान रहने लगा.

इसी दौरान उस की मुलाकात किडनी रैकेट के एक सदस्य से हो गई. उस के मार्फत टी. राजकुमार राव ने चेन्नै के अस्पताल में 80 हजार रुपए में अपनी किडनी बेच दी. किडनी उस ने बोकारो की शालिनी उर्फ ज्योति को डोनेट की थी. यह बात सन 2006 की है.

इस के बाद वह खुद भी किडनी और लीवर का दलाल बन गया. धीरेधीरे उस ने अपना जाल कई राज्यों में फैला लिया. शातिर दिमाग टी. राजकुमार राव गूगल पर सर्च कर यह पता लगाता था कि देश के किन अस्पतालों में किडनी व लीवर का प्रत्योरोपण होता है. इस के बाद वह मरीज व डोनर की तलाश करता था. डोनर बिचौलियों की मदद से मिल जाते थे.

लखीमपुर खीरी का गौरव मिश्रा, लखनऊ का जुनैद, कानपुर का सत्यप्रकाश उर्फ आशू, संजय पाल, मोहित निगम, श्याम तिवारी उर्फ श्यामू, भूरा आदि उस के सक्रिय सदस्य थे, जो उसे डोनर मुहैया कराते थे. सन 2016 में अपोलो किडनी कांड में भी वह पकड़ा गया था, जमानत मिलने के बाद वह फिर से इसी धंधे में सक्रिय हो गया.

टी. राजकुमार राव का दाहिना हाथ गौरव मिश्रा साधारण परिवार से है. उस के पिता बृजकिशोर मिश्रा किसान हैं. गौरव शादीशुदा हैं. उस की 2 बेटियां हैं. वह गांव में मातापिता से अलग रहता था. गौरव की संदिग्ध गतिविधियों के चलते उस के मातापिता ने उसे अपनी संपत्ति से बेदखल कर दिया था.

गौरव मिश्रा लखनऊ मैडिकल कालेज में नौकरी करता था. नौकरी के दौरान वह अंग प्रत्यारोपण गिरोह के संपर्क में आ गया था. वह पहले डोनर प्रोवाइड करता था. पूरा कारोबार समझने के बाद उस ने बड़े अस्पतालों में पैठ बनाई, जिस के बाद वह डोनर और मरीज को कोऔर्डिनेटर से मिलाने का काम करने लगा.

उस ने दिल्ली में भी अस्थाई निवास बना लिया था. सन 2006 में वह अपोलो किडनी रैकेट में भी पकड़ा गया था. जमानत मिलने पर उस ने नौकरी छोड़ दी और टी. राजकुमार राव के साथ जुड़ गया था. वह डोनर व मरीज के परिजनों के फरजी कागजात बनवाता था. यह काम वह संजय पांडेय व आसिम सिकंदर के सहयोग से करता था.

लखनऊ निवासी सबूर अहमद व शमशाद अली पहले खून बेचने के काले धंधे से जुड़े थे. बाद में वे जुनैद व गौरव के संपर्क में आ गए. दोनों किडनी डोनर की तलाश में रहने लगे.

ये दोनों डोनर को वे जुनैद के संपर्क में लाते थे. जुनैद उन्हें दिल्ली ले जा कर गौरव से मिलवाता था. सबूर अहमद स्वयं भी अपनी किडनी डोनेट कर चुका था. उस ने बिहार के नागेंद्र यादव का सगा भाई सोनू यादव बन कर किडनी डोनेट की थी.

पनकी गंगागंज निवासी विक्की सिंह ने सन 2014 में अपनी किडनी 4 लाख रुपए में डोनेट की थी. उस के बाद वह गिरोह का सक्रिय सदस्य बन गया था. विक्की सिंह डोनर तलाशने के बाद उसे जुनैद को सौंप देता था. जुनैद डोनर को गौरव के पास ले जाता था.

जुनैद, गौरव मिश्रा का विश्वासपात्र सदस्य था. वह मूलरूप से हमीरपुर का रहने वाला था. उस के पिता शोएब लखनऊ में एचसीपी थे और वह पुलिस लाइंस में रहते थे. जुनैद ने अपना ठिकाना लखनऊ व कानपुर में बना रखा था.

सन 2015 में किडनी कांड में उसे जालंधर सिटी थाने की पुलिस ने पकड़ा था. जमानत पर आने के बाद उस ने तेजी से डोनर तलाशे. जुनैद का कानपुर में अच्छा नेटवर्क था.

कानपुर में उस के श्याम तिवारी, मोहित निगम, संजय पाल, श्याम सिंह जैसे दरजनों लोग थे, जो उस के लिए काम करते थे. श्यामू और मोहित निगम की मार्फत ही जुनैद संगीता को गाजियाबाद ले गया था.

सरकारी गवाह बने कुछ किडनी डोनरों ने भी अपनी दर्दभरी व्यथा बताई. लखनऊ के सदर बाजार निवासी वरदान चंद ने बताया कि उस की बेटी पीहू के दिल में छेद था और जन्म से एक वौल्व भी नहीं था.

तबीयत खराब रहने के चलते उसे एम्स में भरती कराया गया तो डाक्टरों ने औपरेशन कर छेद बंद करने तथा वौल्व डालने का खर्च ढाई लाख बताया. इलाज की रकम जुटाने के लिए उस ने सबूर अहमद से चर्चा की तो उस ने किडनी डोनेट करने का सुझाव दिया.

सबूर अहमद किडनी रैकेट से जुड़ा था. मजबूर वरदान चंद बेटी की जिंदगी बचाने को राजी हो गया. सौदा 4 लाख रुपए में तय हुआ, लेकिन उसे 2 लाख 30 हजार ही दिए गए.

इस के बाद वरदान चंद ने मधुकर गोयल को उस का फूफा बन कर किडनी डोनेट कर दी. लेकिन अस्पताल में ही गिरोह के सदस्यों ने उस के सारे पैसे पार कर दिए.

इलाज के लिए उसे कर्ज लेना पड़ा. फिर भी वह बेटी को बचा नहीं पाया. कर्ज का रुपया वापस करने के लिए उस ने पत्नी तनु की किडनी बेचने का फैसला किया. सभी तैयारियां हो चुकी थीं, लेकिन उस के पहले ही भांडा फूट गया.

लखनऊ का ही रहने वाला 18 वर्षीय शोएब होटल में काम करता था, सबूर अहमद वहां खाना खाने आता था. आर्थिक मदद का भरोसा दिला कर सबूर ने दिसंबर 2018 में उस की किडनी बुलंदशहर के 65 वर्षीय मरीज अनिल अग्रवाल को डोनेट करा दी.

इस के लिए अनिल के भतीजे संस्कार अग्रवाल के नाम से फरजी कागजात तैयार कराए गए. सौदा 4 लाख रुपए में तय हुआ था, लेकिन दिए गए 2 लाख 40 हजार.

बहरहाल, एसआईटी कथा संकलन तक जुनैद, मोहित निगम, संजय पाल, श्याम दूबे उर्फ भूरे (सभी कानपुर) दिल्ली निवासी संजय पांडेय, आसिम सिकंदर तथा चंडीगढ़ निवासी करन को गिरफ्तार नहीं कर सकी.

यह तो समय ही बताएगा कि पुलिस इन्हें गिरफ्तार कर पाएगी या ये कोर्ट में सरेंडर करेंगे. दूसरी बात यह भी देखनी है कि एसआईटी अस्पतालों के कोऔर्डिनेटर्स व संदेह के घेरे में आए कुछ अन्य डाक्टरों को गिरफ्तार करने की हिम्मत जुटा भी पाती है या नहीं.

(कहानी सौजन्य- मनोहर कहानियां)

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