इंसान ही इंसान के काम आता है, यह कहना गलत नहीं है लेकिन इंसान ही इंसान को लूटता है, इस में कोई संदेह भी नहीं है.
दिल्ली की रहने वाली शोभा अकसर मैट्रो से सफर किया करती है. घर से निकलने से कालेज पहुंचने तक शोभा बहुतों का दिल जीत लिया करती थी. दूसरों के काम आना, दूसरों की मदद करना शोभा को बहुत भाता है. रास्ते में चलते नेत्रहीन लोगों की मदद करना, चलतेफिरते गरीब बच्चों को कुछ टौफीबिस्कुट दे देना उस की आदत थी.
शोभा का व्यवहार इतना अच्छा है कि सभी उस की प्रशंसा करते नहीं थकते. लेकिन ऐसा क्या हुआ कि बिना सोचेसमझे लोगों की मदद करने वाली शोभा अब अकसर ऐसे लोगों को देख कर सोच में पड़ जाती है.
दरअसल, सुबह मैट्रो के सफर के दौरान शोभा को एक आंटी मिलीं. शोभा थोड़ी जल्दी में थी, गोविंदपुरी से मंडी हाउस फिर मंडी हाउस से ब्लू लाइन वाली मैट्रो लेना और ऊपर से लोगों की भीड़. इस भीड़ में शोभा भी तेजी से चलते हुए बाकी लोगों के साथ दौड़ लगा रही थी. तभी उस भीड़ से एक आवाज आई, ‘सुनो बेटा.’ शोभा को लगा कोई किसी और को आवाज दे रहा है लेकिन तभी किसी ने उस के कंधे पर हाथ रखा. शोभा ने पीछे मुड़ कर देखा तो एक महिला खड़ी थीं. उन की उम्र 55 वर्ष रही होगी. पहनावे से महिला अच्छे घर की लग रही थीं.
महिला की आंखों में नमी थी. महिला को देखते ही शोभा समझ गई कि कोई मदद की जरूरत है. मुसकरा कर शोभा ने पूछा, ‘हां आंटी, क्या हुआ?’
महिला ने शोभा से उदास मन से कहा, ‘बेटा, मैट्रो में भीड़ थी और इस भीड़ में किसी ने मेरा पर्स निकाल लिया. मुझे गुरुग्राम जाना है. न मेरे पास मैट्रो कार्ड है, न पैसे. क्या तुम मेरी मदद कर दोगी?’ यह सुनते ही शोभा ने 100 रुपए का नोट निकाल कर उन्हें दे दिया. नोट को झट से महिला ने ले लिया और खूब सारा आशीर्वाद देने लगीं. महिला जातेजाते शोभा का मोबाइल नंबर मांगने लगीं. नंबर मांगने पर जब शोभा ने कारण पूछा तो महिला का कहना था, ‘बेटा, तुम मुझे नंबर दे दोगी तो मैं तुम्हारे अकाउंट में औनलाइन पैसे भिजवा दूंगी.’
महिला के बहुत कहने पर शोभा ने नंबर दे दिया. तभी शोभा की मैट्रो आ गई. वह उन महिला को बाय बोलते हुए मैट्रो में चढ़ गई. पूरे रास्ते शोभा महिला के लिए सोचती रही ‘कितनी अच्छी महिला थीं पैसे लौटाने के लिए नंबर ले कर गई हैं.’
कालेज से घर जाते वक्त वह पूरे समय फोन को देख रही थी. उसे यकीन नहीं हो रहा था कि क्या सच में आज के समय में लोग इतने ईमानदार होते हैं. शाम को घर पहुंचते ही उस ने सारी कहानी मां को बताई. मां ने हंसते हुए कहा, ‘मेरी भोली बेटी, तुम उस का फोन का इंतजार मत करो. उस का फोन आएगा ही नहीं.’ शोभा ने मां को गलत बोलते हुए कहा, ‘क्यों नहीं आएगा? वे नंबर ले कर गई हैं.’
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मां हंसतेहंसते बोलने लगीं, ‘अच्छा ठीक है. उस महिला का फोन आएगा तो मुझे भी बताना.’ शोभा ने उस दिन इंतजार किया. लेकिन कोई फोन आया ही नहीं. शोभा को 100 रुपए से कोई मतलब नहीं था. उसे तो बस यह देखना था कि सच में वह महिला इतनी ईमानदार हैं क्या.
कुछ दिन बीत गए, लेकिन कोई फोन नहीं आया. शोभा को लगा शायद वे आंटी भूल गई होंगी या नंबर खो गया होगा. महिला के फोन न आने पर भी शोभा ने उन के लिए सकारात्मक सोच ही रखी. लेकिन 3 महीने बाद वे महिला उस को फिर दिखीं.
रविवार के दिन शोभा अपने दोस्तों के साथ घूमने जा रही थी. हौज खास मैट्रो स्टेशन से जब शोभा और उस के दोस्त बाहर की तरफ जा रहे थे तभी वे महिला सामने आ गईं. उसी दिन की तरह मदद मांगने लगीं. यह सब देख कर शोभा हैरान थी. उस का मुंह गुस्से से लाल हो गया था. शोभा की एक दोस्त ने मदद करनी चाही, तो शोभा ने मना कर दिया. दोस्तों के सामने ही वह महिला को सुनाने लगी. शोभा आज भी लोगों की मदद करती है लेकिन जहां कोई पैसे मांगता है, वह साफ इनकार कर देती है.
लोगों की भावनात्मक्ता और मानवता को निशाना बना कर लूटने वाले भिखारियों की तादाद बढ़ती जा रही है. शोभा जैसे कई लोग इन के फैलाए जाल में हर रोज फंसते हैं. बड़े शहरों में तो पूरा शहर ही भिखारियों से आबाद है. रैड सिग्नल पर ही देख लीजिए, जैसे ही रैड लाइट होती है, ये झुंड की तरह निकलते हैं और गाडि़यों से चिपक जाते हैं. अगर आप ध्यान दें तो इन में ज्यादातर बच्चे और औरतें होती हैं.
मासूम चेहरे शातिर दिमाग
लालबत्ती पर अधिकतर महिलाएं बच्चों के साथ भीख मांगती दिखती हैं. इन में से अधिकतर महिलाएं लोगों को उल्लू बनाती हैं. गोद में बच्चों को लिए ये महिलाएं भीख तो खाने के नाम पर मांगती हैं लेकिन आप इन्हें खाना देंगे तो ये साफ इनकार कर देंगी और पैसे की मांग करेंगी. बच्चों को भी यही सिखाया जाता है, हाथ में रोटी नहीं, पैसे होने चाहिए. मासूम चेहरे पर मासूमियत तो होती है, लेकिन दिखावे की. इन बच्चों का सिर्फ एक ही मकसद होता है, पैसा बोलना, पैसा पहचानना, पैसा लाना.
ये बच्चे शक्ल से जितने मासूम लगते हैं उतने ही बदमाश होते हैं. भीख मांगने के समय ये बच्चे ऐसे दिखाते हैं जैसे सच में जिंदगी में इन्हें कितनी तकलीफ है, लेकिन हकीकत कुछ और ही है. दरअसल, ये बच्चे भीख मांगने वाले धंधे से जुड़े होते हैं. जहां इन्हें सबकुछ सिखाया जाता है.
कई बार तो आप इन की हरकतों को देख कर हैरान भी हो जाएंगे. थोड़ी देर पहले जो आप के सामने हाथ जोड़ कर भीख मांग रहे होते हैं, आप को भैयादीदी बोल कर भूखे पेट की तरफ इशारा कर रहे होते हैं, वही बच्चे आप के भीख न देने पर आप को नुकसान भी पहुंचा देते हैं. इन बच्चों से धर्म का सहारा ले कर गुल्लक भरने को कहा जाता है.
कई रिपोर्ट्स में यह बात सामने आईर् है कि बाल भिक्षावृत्ति का यह पूरा धंधा सुनियोजित ढंग से चल रहा है और भीख मांगने के लिए बच्चों को इस तरह से प्रशिक्षित किया जाता है कि वे लोगों का भावनात्मक स्तर पर फायदा उठा सकें.
धर्म, दया और गरीबी से भिखारियों का पुराना नाता रहा है. तभी तो धर्म का सहारा लिए लोग अमीरी की सीढ़ी चढ़ रहे हैं. मंदिर के बाहर तो कभी मसजिद के बाहर, कभी बच्चे, बूढ़े तो कभी अपाहिज के रूप में भिखारी आप को वेशभूषा बदलते दिखेंगे. भिखारी कोई भी हो सकता है, चाहे वह पूजा के नाम पर चंदा इकट्ठा करने वाला व्यक्ति हो या फिर गरीबी और बीमारी को दिखा कर लूटने वाला लुटेरा.
धर्म और भिखारी की मित्रता
आज के समय में भिखारियों ने हाथ फैलाना छोड़ दिया है. अब वे धर्म का सहारा ले कर अपनी झोली भरते हैं. जिस देश में गंगा बहती है उस देश में लोगों को काम करने की कोई जरूरत ही नहीं है. बस, गंगा किनारे हाथ फैला कर बैठ जाओ.
प्राचीनकाल से ही दान देने की प्रथा चली आ रही है. महाभारत में कर्ण को दानवीर कहा गया है. हम धर्म के नाम पर दान करते हैं. गरीब लोगों और भिखारियों की मदद करते हैं ताकि हमारा भला हो सके. लेकिन, यह कैसी मानसिकता है? दूसरों का भला करने से दूसरों का ही भला होता है. ब्राह्मण को गाय दान करने से दूध भी ब्राह्मण को ही मिलेगा. दान देना गलत नहीं लेकिन क्या हम जिन को दान दे रहे हैं वे लोग सही हैं? कहीं हम ऐसे लोगों को बढ़ावा तो नहीं दे रहे जो धर्म को निशाना बना कर अपनी जेबें भरते हैं?
अब त्योहारों में ही देख लीजिए, दीवाली के समय कोई हनुमान बन कर गलीगली में घूम कर पैसे कमाता है तो कोई काली का रूप ले कर. लोग इन्हें देख कर हाथ जोड़ते हैं और इन को पैसे भी देते हैं. यह सब क्या है? यह सब धर्म के नाम पर लोगों को बेवकूफ बनाना ही तो है.
आजकल तो भिखारियों ने नएनए तरीके खोज लिए हैं. वे लोगों को आसानी से बेवकूफ बना लेते हैं. पहले भिखारी फटे कपड़े पहन कर भीख मांगा करते थे. लेकिन अब अच्छेखासे परिधान पहन कर भीख मांगते भिखारी आप को दिखेंगे.
कपड़ों से धनी, जेब में नो मनी
कभी बसस्टौप, रेलवे स्टेशन, मैट्रो स्टेशन तो कभी सड़कों पर ऐसे लोग मिल जाते हैं जो लोगों से झूठ बोल कर उन्हें बेवकूफ बनाते हैं. इस में अधिकतर औरतें शामिल होती हैं. पर्स खो जाना या पैसे चोरी हो जाने का बहाना कर वे लोगों को भावुक करती हैं और उन से घर जाने के नाम पर पैसे लेती हैं. शोभा को भी ऐसी ही एक महिला ने भावुक कर के बेवकूफ बनाया था. जरूरी नहीं कि सभी लोग ऐसे हों लेकिन अधिकतर लोग इस से अपना धंधा चलाते हैं.
भारत में ऐसे कई लोग हैं जो भीख मांगने को एक प्रोफैशनल धंधे की तरह चलाते हैं. ये लोग सड़क पर आप को गरीब और लाचार दिखते हैं लेकिन जब आप इन के घर जाते हैं तो ये अच्छाखासा लाइफस्टाइल जी रहे होते हैं. आप को जान कर हैरानी होगी कि कुछ भिखारी तो महीनेभर में इतनी कमाई कर लेते हैं कि एक अच्छी नौकरी करने वाले व्यक्ति की सैलरी इन के सामने कुछ नहीं है.
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भिखारियों का अच्छाखासा समूह होता है जो अलगअलग इलाकों में बंटा होता है. इन का एक सरदार भी होता है जो लोगों को भीख मांगने के लिए नौकरी पर रखता है. बड़ेबड़े शहरों में तो ये गैंग कई बार बच्चों को किडनैप कर उन्हें भीख मांगने पर मजबूर कर देते हैं.
सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार, देश में 14 साल तक के 3,72,217 बच्चे भीख मांगते हैं और खानाबदोश की जिंदगी जी रहे हैं. भीख मांगते बच्चों के धंधे में गिरोह लिप्त हैं जो मौसम के हिसाब से लोगों की भावनाओं से खेलते हैं और भीषण गरमी व कंपकपाती ठंड में छोटेछोटे बच्चों का इस्तेमाल करते हैं.
भारत देश में भीख मांगना अपराध है लेकिन यहां भिखारी का सालाना टर्नओवर करोड़ों में है. एक रिपोर्ट के मुताबिक, ज्यादातर भिखारी प्रतिदिन कम से कम एक हजार रुपए कमा लेते हैं. शनिवार, रविवार या त्योहार के मौकों पर यह कमाई दोगुनीतीनगुनी तक हो जाती है. इन की भीख में सफेदपोशों, पुलिस वालों का भी हिस्सा होता है. इन का कोई ईमानधर्म नहीं होता है. मुसलिमबहुल इलाकों पर मुसलिम हुलिए में तो हिंदूबहुल स्थलों पर ये साधुसंन्यासियों वाली वेशभूषा धारण कर लेते हैं. उसी के अनुरूप बोलचाल, भाषा का भी इस्तेमाल करते हैं.
अधिकतर भिखारियों का निशाना महिलाएं होती हैं. जब पुरुष काम पर चले जाते हैं तब ये लोग आ कर इमोशनल अत्याचार करते हैं जिस से महिलाएं इन के जाल में फंस जाती हैं. ऐसे में इन लोगों को पहचानना बहुत मुश्किल हो जाता है. दया कर के हम इन की मदद तो कर देते हैं लेकिन इस का ये नाजायज फायदा उठाते हैं. ये लोगों को भावुक कर के उन की मानवता को ठेस पहुंचाते हैं.