हमारे देश में लोगों की नसों में खून के साथ जातियां बहती हैं. समाज टुकड़ेटुकड़े हो चुका है. दलितों, पिछड़ों और अल्पसंख्यकों की पिटाई, हत्या, बलात्कार व उत्पीड़न का सिलसिला थम नहीं रहा है. इन हालात में समाज में जातिवाद की खाई बढ़ती जा रही है और इस को पाटना मुश्किल होता जा रहा है.

22 मई को मुंबई में टीएन टोपीवाला नैशनल मैडिकल कालेज में 26 साल की गाइनोकोलौजी की छात्रा डा. पायल तड़वी ने आत्महत्या कर ली. कहा जा रहा है कि मैडिकल कालेज में डा. पायल तड़वी को उन की जाति को ले कर प्रताडि़त किया जा रहा था. पायल तड़वी भील समाज से थीं. इस समाज के अनुयायियों की आबादी इस देश में 80 लाख के करीब है.

अनुसूचित जनजाति में जन्मी

डा. पायल तड़वी उत्तरी महाराष्ट्र के जलगांव की रहने वाली थीं और उन्होंने पश्चिम महाराष्ट्र के मीराज-सांगली से एमबीबीएस की पढ़ाई पूरी की थी. आरक्षण कोटे के तहत डौक्टरेट करने के लिए पायल ने पिछले साल ही इस अस्पताल में दाखिला लिया था. वे जलगांव में अपने समाज की सेवा के लिए एक अस्पताल खोलना चाहती थीं. 30 वर्षों बाद इस पिछड़े दलित समाज से कोई लड़की डाक्टर बनने वाली थी, मगर देश में फैले जाति के जहर ने उस की इहलीला समाप्त कर दी.

ऊंची जाति की 3 डाक्टर डा. हेमा आहूजा, डा. अंकिता खंडेलवाल और डा. भक्ति मेहर को इस मामले में गिरफ्तार किया गया है. महिला डाक्टरों पर आरोप है कि वे पायल की सामाजिक पृष्ठभूमि के कारण उसे लगातार प्रताडि़त कर रही थीं. आत्महत्या वाले दिन भी औपरेशन थिएटर में उस के साथ बुरा बरताव हुआ था और वह रोती हुई वहां से बाहर निकली थी. पायल की मां आबेदा तड़वी कहती हैं कि उन की बेटी को कई महीने से जातिसूचक गालियां दी जा रही थीं. उसे लगातार कमतरी का एहसास कराया जा रहा था.

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