कुछ दिनों पहले सुनीता मुंबई में अपनी एक सहेली सारिका के यहां उस की 16 वर्षीया बेटी की बर्थडे पार्टी में गई. उस की बेटी बेहद स्मार्ट और आत्मविश्वास से भरपूर किशोरी थी. आधुनिक लिबास और टै्रंडी हेयर स्टाइल में वह किसी मौडल से कम नहीं लग रही थी. सुनीता ने उसे बर्थडे विश किया और उस से थोड़ी कैजुअल बातें की. वह उस के कम्युनिकेशन स्किल और इंग्लिश ऐक्सैंट की कायल हो गई. वैसे वहां पार्टी में आईर् हुई सभी लड़कियों की ऐसी ही पर्सनैलिटी थी.

तभी उस की नजर पार्टी हौल के कोने में बैठी एक लड़की पर पड़ी. वह दिखने में बिलकुल साधारण सी थी. सिंपल कपड़े, लंबी चोटी, छोटे शहर की आम लड़की जैसा दबाढका सा व्यक्तित्व. सारिका से पूछने पर पता चला कि वह उस की भतीजी शालिनी है जो कल ही उत्तर प्रदेश के एक छोटे से कसबे खतौली से आई है.

यह सुन कर सुनीता मन ही मन सहेली की बेटी और भतीजी में तुलना करने लगी. कहां यह मुंबई की स्मार्ट हाईफाई लड़की और कहां ये बेचारी कोने में दुबकी बैठी छोटे शहर की लड़की. सच ही है, व्यक्तित्व और सोच पर जगह का कितना असर पड़ता है. मैट्रो शहरों में रहने वाली लड़कियों की पर्सनैलिटी हाय ऐक्स्पोजर और आजादी की वजह से कितनी निखरी हुई होती है. ऐसी लड़कियों के सामने छोटे शहरों की लड़कियां कितनी दब्बू, कितनी साधारण लगती हैं.

सुनीता यों ही शालिनी से बातचीत करने लगी, ‘बेटा, सभी लड़कियां डांस कर रही हैं, आप नहीं कर रही हो?’ उस ने जवाब दिया, ‘‘नहीं आंटीजी, मुझे डांस करना पसंद नहीं.’’ उस की बोलचाल भी आम उत्तर भारतीय कसबाई लड़कियों जैसी थी. सुनीता ने आगे पूछा, ‘‘तुम मुंबई घूमने आई हो या बूआ से मिलने?’’

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