जी हां आज के समय में योग धर्म की दुकानदारी ही हो गई है. जरा सोचिए कि क्यों आजकल बाबाओं का ताता लग रहा है? जहां, देखो वहां पर कोई न कोई बाबा योग सिखाकर पैसे कमा रहें हैं. आज कल ज्यादातर लोग फर्जी बाबा बन कर बैठे हैं. कहते हैं योग सिखा रहे हैं और लोग बस उन बाबाओं की बातों में आ जाते हैं.

जैन, पारसी, बौद्ध, ईसाई, सिख, इस्लाम हर धर्म में योग को अलग-अलग तरह से परिभाषित किया है और इसी को जरिया बनाकर हर धर्म के लोग अपने-अपने तरीके से योग की दुकान खोल कर बैठ गए हैं. मैं यहां किसी बाबा का नाम नहीं लुंगी लेकिन ये जरूर कहना चाहुंगी कि योग कोई बेचने की चीज नहीं है जिसे आज लोग दुकान बनाकर बैठे हैं.

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हर धर्म को लोग अपने-अपने तरीके से योग की कला और उसके फायदे बताते हैं अब अगर इस्लाम की बात करें तो योग और नमाज को एक ही बताया गया है. ईसाई धर्म में चेगाई सभा करके लोगों को ठीक करने का दावा किया जाता है. जैन धर्म का योग से गहरा नाता बताया गया है. योग के अंग यम और नियम ही जैन धर्म के आधार स्तंम्भ बताए गए हैं. सवाल तो ये भी उठे थे कि क्या योग केवल हिंदू धर्म में है, क्या केवल हिंदुओं को ही योग करने का हक है? लेकिन इस बात पर जोर देकर इस पर बहस करके किसी को कोई फायदा नहीं भला योग किसी एक धर्म का कैसे हो सकता है?

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