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संपत्ति के लिए साजिश- भाग 2: बख्शो की बहू के साथ क्या हुआ था?

बच्चे के पैदा होते ही नूरां की नाक पर एक कपड़ा रख दिया गया. उस कपड़े से अजीब सी गंध आ रही थी. नूरां धीरेधीरे बेहोश होने लगी. वह पूरी तरह से बेहोश तो नहीं हुई थी, लेकिन वह कुछ बोल नहीं सकती थी. उसे ऐसा लग रहा था, जैसे सपना देख रही हो. उसे ऐसी आवाजें सुनाई दे रही थीं, जैसे कोई कह रहा हो कि मां के साथ बच्चे को भी मार दो. असली झगड़े की जड़ यही बच्चा है. यह मर गया तो बख्शो लावारिस हो जाएगा.

इस के बाद उस ने सुना कि उस के बच्चे को अनाज वाले भड़ोले में डाल दिया है. नूरां पर बेहोशी छाई रही. उस के बाद हुआ यह कि जल्दबाजी में उस के कफनदफन का इंतजाम किया गया. बख्शो की भतीजियां और भतीजे इस काम में आगे रहे. वे हर काम को जल्दीजल्दी कर रहे थे.

जब नूरां को गरम पानी से नहलाया गया तो उसे कुछकुछ होश आने लगा. जब उसे चारपाई पर डाल कर कब्रिस्तान ले जाने लगे तो उसे पूरी तरह होश आ गया. उस का जीवन बचना था, इसलिए वह हाथपैर हिलाने लायक हो गई. उस के बाद कब्र में रखते समय उस ने एक आदमी का हाथ पकड़ लिया, जिस से वह डर कर भागा तो नूरां मोहल्ले के मौलवी साहब का हाथ पकड़ कर घर आई और भड़ोले से अपना बच्चा निकाला. बख्शो का एक दोस्त गांव की दूसरी दाई को ले आया. उस ने बच्चे को नहलाधुला कर साफ किया.

‘‘कुदरत ने मेरे और मेरे बच्चे पर रहम किया और हमें नई जिंदगी दी.’’ नूरां ने आसमान की ओर देख कर कहा, ‘‘अब मुझे और मेरे बच्चे को रांझे वगैरह से खतरा है. मेरे पति गुलनवाज को भी इन्हीं लोगों ने गायब किया है.’’

मैं ने पूछा, ‘‘इन लोगों पर शक करने का कोई कारण?’’

उस ने कहा, ‘‘यह सब मेरे ससुर की जायदाद का चक्कर है. उन्होंने जायदाद के लिए मेरे पति को गायब कर दिया और मुझे तथा मेरे बच्चे को मारने की कोशिश की.’’

नूरां ने यह भी बताया कि डेरा गांजा के अलावा भी मठ टवाना में उस के ससुर की काफी जमीन है. उस जमीन से होने वाली फसल का हिस्सा बख्शो के भतीजे उस तक पहुंचने नहीं देते.

मैं ने उस से कुछ बातें और पूछी और मन ही मन तुरंत काररवाई करने का फैसला कर लिया. मैं ने अपने एएसआई और कुछ कांस्टेबलों को ले कर रांझा वगैरह के घरों पर छापा मारा. वहां से मैं ने रांझा, उस के भाई दत्तो और रमजो को गिरफ्तार कर लिया. उन के 2 भाई घर पर नहीं थे. उन के घर की तलाशी ली तो 2 बरछियां और कुल्हाड़ी बरामद हुई. उन हथियारों की लिस्ट बना कर उन्हें गिरफ्तार कर लिया.

इस के बाद मैं ने दाई रोशी, भागभरी और उमरां को भी गिरफ्तार कर लिया. मैं ने महसूस किया कि वहां के लोग पुलिस के आने से खुश नहीं थे. वे पुलिस को किसी तरह का सहयोग करने को तैयार नहीं थे. मैं ने मसजिद के लाउडस्पीकर से गांव में ऐलान करा दिया कि गांव के लोग इस केस में पुलिस का सहयोग करें और कोई बात न छिपाएं.

लोग यह न समझें कि थाना यहां से दूर है, मैं झगड़ालू लोगों का जीना मुश्किल कर दूंगा. मेरे इस ऐलान से लोगों पर ऐसा डर सवार हुआ कि सब सहयोग करने पर तैयार हो गए. अब लोग आआ कर उमरां, भागभरी और दाई रोशी को बुराभला कह रहे थे. मैं ने उन के बयान लिए, सब से पहले दाई रोशी का बयान लिया.

उस ने अपने बयान में बताया कि वह काफी समय से दाई का काम करती है और उस ने नरसिंग की ट्रेनिंग खुशाब के अस्पताल से ली थी. उस ने अस्पताल से क्लोरोफार्म चुरा कर रखा था. जब कभी किसी महिला को प्रसूति के दौरान ज्यादा तकलीफ होती थी, वह क्लोरोफार्म सुंघा देती थी, जिस से उस महिला को बच्चा पैदा होने में कोई परेशानी नहीं होती थी.

‘‘सरकार, मैं लालच में आ गई थी. उमरां और भागभरी के कहने में आ कर मैं ने नूरां बीबी को थोड़ी ज्यादा क्लोरोफार्म सुंघा दी. नूरां की बेहोशी को हम ने मौत समझा. गांव के किसी भी आदमी ने उस की नाड़ी नहीं चैक की, वैसे भी हम ने अफवाह फैला दी थी कि नूरां मर गई है.’’ रोशी ने कहा.

‘‘तुम ने बच्चे को जिंदा क्यों छोड़ दिया था?’’ मैं ने पूछा.

‘‘सच कहूं तो मुझे मेरे जमीर ने डरा दिया था, इसलिए मैं ने बच्चे को भड़ोले में डाल दिया था.’’ वह रोते हुए बोली.

मैं ने क्लोरोफार्म की शीशी बरामद करा कर सीलबंद कर दी और गवाहों के हस्ताक्षर करा लिए. उमरां और भागभरी को पूछताछ के लिए बुलाया तो वे कांप रही थीं. उन्होंने कुछ बोलने के बजाय रोना शुरू कर दिया, साथ ही दोनों मेरे आगे हाथ जोड़ कर खड़ी हो गईं.

दोनों ने अपना अपराध स्वीकार कर लिया और अपने किए पर पछताने लगीं. उस के बाद मैं ने रांझा, दत्तो और रमजो को जांच की चक्की में डालने का फैसला किया. उन से सच उगलवाना आसान नहीं था. मैं सभी अपराधियों को थाने ले आया और हवालात में बंद कर दिया.

अगले दिन सभी को पुलिस रिमांड पर लेने के लिए खुशाब के मजिस्ट्रैट की अदालत में पेश किया, जहां से उन्हें 8 दिनों के रिमांड पर लिया. औरतों से तो कुछ पूछने की जरूरत नहीं थी, इसलिए उन्हें जेल भेज दिया गया. क्लोरोफार्म का लेबारेट्री में भेजा गया, जहां से रिपोर्ट आई कि वह बेहोश करने वाला कैमिकल था. लेकिन अगर अधिक मात्रा में दिया जाता तो मौत भी हो सकती थी.

बख्शो के बेटे गुलनवाज को गुम हुए 2 महीने हो गए थे. मुझे लगा कि अब वह जिंदा नहीं होगा. मैं ने रांझा, रमजो और दत्तो को पूछताछ के लिए बुलाया. मैं ने बारीबारी से तीनों से सवाल किए, लेकिन तीनों बड़े ढीठ निकले. वे कुछ बोलने को तैयार नहीं थे.

संपत्ति के लिए साजिश- भाग 1: बख्शो की बहू के साथ क्या हुआ था?

यह कहानी तब की है, जब मैं थाना मठ, जिला खुशाब में थानाप्रभारी था. सुबह मैं अपने एएसआई कुरैशी से एक केस के बारे में चर्चा कर रहा था, तभी एक कांस्टेबल ने आ कर बताया कि गांव रोड़ा मको का नंबरदार कुछ लोगों के साथ आया है और मुझ से मिलना चाहता है.

मैं नंबरदार को जानता था. मैं ने कांस्टेबल से कहा कि उन के लिए ठंडे शरबत का इंतजाम करे और उन्हें आराम से बिठाए, मैं आता हूं. शरबत को इसलिए कहा था, क्योंकि वे करीब 20 कोस से ऊंटों की सवारी कर के आए थे. कुछ देर बाद मैं ने नंबरदार गुलाम मोहम्मद से आने का कारण पूछा तो उस ने कहा कि वह एक रिपोर्ट लिखवाने आया है. मैं ने उन से जबानी बताने को कहा तो उन्होंने जो बताया, वह काफी रोचक और अनोखी घटना थी. उन के साथ एक 60 साल का आदमी बख्शो था, जिस की ओर से यह रिपोर्ट लिखी जानी थी.

बख्शो डेरा गांजा का बड़ा जमींदार था. उस के पास काफी जमीनजायदाद थी. उस का एक बेटा गुलनवाज था, जो विवाहित था. उस की पत्नी गर्भवती थी. 2 महीने पहले उस का बेटा घर से ऊंट खरीदने के लिए निकला तो लौट कर नहीं आया. थाने में उस की गुमशुदगी दर्ज कराई और अपने स्तर से भी काफी तलाश की, लेकिन वह नहीं मिला.

बख्शो के छोटे भाई के 5 बेटे थे, जो उस की जमीन पर नजर रखे थे. वे तरहतरह के बहाने बना कर उस की जायदाद पर कब्जा करने की फिराक में थे. उन से बख्शो के बेटे गुलनवाज को भी जान का खतरा था. शक था कि उन्हीं लोगों ने गुलनवाज को गायब किया है. पूरी बिरादरी में उन का दबदबा था. उन के मुकाबले बख्शो और उस की पत्नी की कोई हैसियत नहीं थी.

यह 2 महीने पहले की घटना थी, जो उस ने मुझे सुनाई थी. उस समय थाने का इंचार्ज दूसरा थानेदार था. बख्शो ने मुझे जो कहानी सुनाई, उसे सुन कर मैं हैरान रह गया. उस ने बताया कि 2-3 दिन पहले उस की बहू को प्रसव का दर्द हुआ तो उस की पत्नी ने गांव की दाई को बुलवाया. बख्शो के भाई की बेटियां और उस के बेटों की पत्नियां भी आईं.

उन्होंने किसी बहाने से बख्शो की पत्नी को बाहर बैठने के लिए कहा. कुछ देर बाद कमरे से रोने की आवाजें आने लगीं. पता चला कि बच्चा पैदा होने में बख्शो की बहू और बच्चा मर गया है. वे देहाती लोग थे, किसी ने इस बात पर ध्यान नहीं दिया कि प्रसव में बच्चे की मां कैसे मर गई.

उन के इलाके में अकसर ऐसे केस होते रहते थे. उस जमाने में शहरों जैसी सहूलियतें नहीं थीं. पूरा इलाका रेगिस्तानी था. मरने वाली के कफनदफन का इंतजाम किया गया. जनाजा कब्रिस्तान ले गए. जब मृतका को कब्र में उतारा जाने लगा तो अचानक मृतका ने कब्र में उतारने वाले आदमी की बाजू बड़ी मजबूती से पकड़ ली.

वह आदमी डर गया और चीखने लगा कि मुरदे ने उस की बाजू पकड़ ली है. यह देख कर जनाजे में आए लोग डर गए. जिस आदमी का बाजू पकड़ा था, वह डर के मारे बेहोश हो कर गिर गया. इतनी देर में मुर्दा औरत उठ कर बैठ गई. सब लोगों की चीखें निकल गईं. उन्होंने अपने जीवन में कभी मुर्दे को जिंदा होते नहीं देखा था.

बख्शो की बहू ने कहा कि वह मरी नहीं थी, बल्कि बेहोश हो गई थी. बहू ने अपने गुरु एक मौलाना को बुलाया. वह काफी दिलेर था. वह उस के पास गया तो औरत ने बताया कि उस का बच्चा गेहूं रखने वाले भड़ोले में पड़ा है. यह कह कर उस ने मौलाना का हाथ पकड़ा और कफन ओढ़े ही मौलाना के साथ चल दी. बाकी सब लोग उस के पीछेपीछे हो लिए. जो भी यह देखता, हैरान रह जाता.

घर पहुंच कर भड़ोले में देखा तो गेहूं पर लेटा बच्चा अंगूठा मुंह में लिए चूस रहा था. मां ने झपट कर बच्चे को सीने से लगाया और दूध पिलाया. इस तरह बख्शो का पोता मौत के मुंह से निकल आया और उस की बहू भी मर कर जिंदा हो गई.

बख्शो ने बताया कि उस की बहू नूरां ने उसे बताया था कि उसे उमरां और भागभरी ने जान से मारने की कोशिश की थी. बख्शो अपनी बहू और पोते को मौलाना की हिफाजत में दे कर नंबरदार के साथ रिपोर्ट लिखवाने आया था. उस ने यह भी कहा कि उस के बेटे गुलनवाज को भी बरामद कराया जाए.

मैं ने धारा 307 के तहत मुकदमा दर्ज कर लिया और गुलनवाज के गुम होने की सूचना सभी थानों को भेज दी, साथ ही उसी समय बख्शो के गांव डेरा गांजा स्थित घटनास्थल पर जाने का इरादा भी किया. एएसआई और कुछ कांस्टेबलों को ले कर मैं ऊंटों पर सवार हो कर डेरा गांजा रवाना हो गया.

ये ऊंट हमें सरकार की ओर से इसलिए मिले थे, क्योंकि वह एरिया रेगिस्तानी था. ऊंटों के रखवाले भी हमें मिले थे, जिन्हें सरकार से तनख्वाह मिलती थी. डेरा गांजा पहुंच कर हम ने जांच शुरू की. सब से पहले मैं ने नूरां को बुलाया और उस के बयान लिए.

नूरां के बताए अनुसार, बच्चा होने का समय आया तो उस के सासससुर ने गांव से दाई रोशी को बुलाया. वह अपने काम में बहुत होशियार थी. रोशी बीबी के साथ बख्शो की भतीजियां उमरां और भागभरी भी कमरे में आ गईं. रोशी ने अपना काम

शुरू किया, लेकिन उसे लगा कि उमरां और भागभरी उस के काम में रुकावट डालने की कोशिश के साथसाथ एकदूसरे के कान में कुछ कानाफूसी भी कर रही हैं.

सुविधाओं से भरपूर है नई हुंडई वरना

हुंडई वरना के बारे में आप जितना बी जानेंगे कम ही लगेगा क्योंकि इसकी खासियत ही इतनी है कि एक बार में बताया नहीं जा सकता. नई हुंडई वरना के टर्बो वेरिएंट्स में सबकुछ आपको काले और लाल रंग के डिजाइन में मिलेगी जो कार को स्पोर्टी लुक देती है.

इसके अलावा स्मार्ट टंक्र की सुविधा भी है जिससे जब आपके हाथ में सामान हो तो भी अपनी जेब में चाबी रखे होने भर से खुल जाती है. तो क्यों है ना वरना यूनिक और सुविधाजनक. इसलिए तो वरना #BetterThanTheRest है.

राममंदिर के साइड इफैक्ट्स

राममंदिर निर्माण को ले कर कुछ सवर्णों को छोड़ बाकी लोगों में 30 वर्षों पहले सा उत्साह नहीं है. कुछ लोग ही दीये जला रहे हैं. ऐसा इसलिए कि देश और समाज न केवल बंट रहे हैं बल्कि आर्थिक दौड़ में पिछड़ भी रहे हैं. पेश है बदहाली और कोरोना संक्रमण के इस दौर में राममंदिर की प्रासंगिकता पर उठते कुछ सवाल बताती यह विशेष रिपोर्ट.

देश इन दिनों जिस दौर से गुजर रहा है वह बेहद हताशाभरा है. कोरोना वायरस के खतरे के साथसाथ बेरोजगारी, ध्वस्त होती कानून व्यवस्था, डूबती अर्थव्यवस्था और सामाजिक विद्वेष ने लोगों से जीने का उत्साह छीन लिया है जो अयोध्या में 100 करोड़ रुपए के भव्य राममंदिर निर्माण के हल्ले से भी कतई प्रभावित नहीं हो रहा. उलटे, ऐसा पहली बार देखने में आ रहा है कि अधिसंख्य लोगों में इस मेगा इवैंट को ले कर तटस्थता है. नहीं तो, यह वही देश है जिस में 90 के दशक में राममंदिर निर्माण को ले कर हाहाकार मच गया था और अगड़ेपिछड़े, छोटेबड़े सभी तरह के हिंदू तब मुसलमानों के खिलाफ लामबंद हो गए थे मानो मंदिर नहीं बना, तो कोई पहाड़ टूट पड़ेगा और देश, धर्म व संस्कृति सब खतरे में पड़ कर नष्ट हो जाएंगे.

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90 का दशक न केवल राजनीति बल्कि समाज और अर्थव्यवस्था के लिहाज से भी अहम व भारी उलटफेर वाला था. 1990 में मंडल कमीशन की सिफारिशों के लागू होते ही समाज का सब से बड़ा पिछड़ा वर्ग आरक्षण का पात्र हो गया था, जिस का सवर्णों ने हिंसक विरोध किया था क्योंकि इस से उन की बादशाहत व दबदबा दोनों खत्म हो रहे थे. तब भाजपा ने कमंडल का कार्ड खेल कर एक तीर से कई निशाने साध लिए थे. फिर 1992 में नरसिम्हा राव सरकार ने आर्थिक उदारीकरण लागू किया तो एकाएक ही देश खुशहाल होने लगा, कहने का मतलब यह नहीं कि पैसों की बरसात होने लगी बल्कि हुआ यह कि लोगों की आमदनी, धीरेधीरे ही सही,  बढ़ने लगी.

भाजपा की राममंदिर निर्माण को ले कर सोमनाथ से अयोध्या तक की यात्रा का एक बड़ा मकसद धर्म के नाम पर सभी तरह के हिंदुओं को भगवा  झंडे तले लाना भी था जो तब एक हद तक कामयाब भी रहा था. इधर आरक्षण का फायदा मिलते ही पिछड़ों ने अलग राह पकड़ ली जिस का मकसद खुद को आर्थिक व सामाजिक रूप से मजबूत करना था जिस के वे हकदार भी थे. अब तक उन की गिनती धर्म के लिहाज से चौथे यानी शूद्र वर्ण में होती थी. इस बदतर हालत से उबरने की छटपटाहट भी इस वर्ग में शुरू से रही थी क्योंकि आबादी के अनुपात में वे सब से ज्यादा हैं.

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ऐसे बदले समीकरण 

यह बहुत दिलचस्प और हैरतअंगेज बात है कि आरक्षण से दलितों की हालत 70 वर्षों में भी उतनी नहीं सुधरी जितनी पिछड़ों की महज 8-10 साल में सुधर गई थी. राजनीति से इसे सम झें, तो 90 का दशक पिछड़ों के नाम रहा. मुलायम सिंह यादव , लालू प्रसाद यादव, कल्याण सिंह, नीतीश कुमार, नरेंद्र मोदी, अशोक गहलोत, शरद यादव, उमा भारती और शिवराज सिंह चौहान जैसे दर्जनों पिछड़े वर्ग के नेताओं की राजनीति इसी दौर में परवान चढ़ी. एक वक्त तो ऐसा भी आया कि सभी प्रमुख हिंदीभाषी राज्यों के मुख्यमंत्री पिछड़े होने लगे. सरकारी नौकरियों में थोक में पिछड़े भरती हुए क्योंकि इस वर्ग के महत्त्वाकांक्षी युवाओं में कुछ बन जाने की ललक भी थी और संसाधनों की भी उन के पास खास कमी न थी. सरकारी और प्राइवेट नौकरियों के लिए इस तबके की लड़कियां भी उच्च शिक्षा लेने लगीं.

भाजपा का पिछड़ाप्रेम

मंडल का डैमेज कंट्रोल करने के लिए बनिए और ब्राह्मणों की कही जाने वाली भाजपा ने सब से पहले इस वर्ग की अहमियत सम झी और इस वर्ग को गले लगा लिया. पिछड़े वर्ग के ही कल्याण सिंह और उमा भारती आज भी राममंदिर मुकदमों के अभियुक्त हैं, हालांकि, चालाकी दिखाते भाजपा यानी सवर्ण हिंदुओं ने इन्हें पहले हथियार और फिर मोहरे की तरह इस्तेमाल किया. तमाम पिछड़े इस बात से खुश थे, जो एक तरह की गलतफहमी ही साबित हो रही है कि राज उन का आ रहा है. दरअसल, भाजपा को सम झ आ गया था कि अब पिछड़ों को हिंदू मानना ही पड़ेगा और उन्हें सवर्णों से नीचे रखते मुख्यधारा से भी जोड़ना पड़ेगा, तभी बात बनेगी वरना मंडल कमीशन ने तो सवर्णों को एक तरह से अलगथलग और अल्पसंख्यक बना डाला था. इसी दौर में ब्राह्मणों और ठाकुरों की राजनीति हाशिए पर आई थी.

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मंदिर आंदोलन, दरअसल, पिछड़ों की भागीदारी के चलते ही प्रभावी रहा था, लेकिन यह उन के अगड़े होने की स्वीकृति या मान्यता नहीं थी. साल 2005 आतेआते पिछड़े अपने और आरक्षण के दम पर एक मुकाम हासिल कर चुके थे और खासा पैसा भी कमा चुके थे. यह सिलसिला 2012 तक चला, फिर धीरेधीरे थमने लगा और अब खत्म सा हो चला है. निश्चितरूप से इस की एक बड़ी वजह पिछड़ों में पसरती धर्मांधता भी है जिस ने उन्हें आर्थिक व सामाजिक रूप से खोखला करना शुरू कर दिया है. पैसा आया तो पंडोंपुरोहितों ने भी उन्हें यजमान बनाते इन की जेबें ढीली और दिमाग खाली करना शुरू कर दिया.

पोंगापंथी का हाल, देश बदहाल

इस में शक नहीं कि 1995 से ले कर 2015 तक देश खुशहाल रहा. जितनी तरक्की उस दौर में हुई उतनी आजादी के बाद भी नहीं हुई थी. प्रतिव्यक्ति औसत आय बढ़ी और जीडीपी ने भी उड़ान भरी. लेकिन नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनते ही देश फिर 1990 के पहले की सी दुर्दशा का शिकार हो चला है. इस में एक बहुत बड़ी गड़बड़ यह सम झ आती है कि बढ़ते धार्मिक जनून ने लोगों के सोचनेसम झने की ताकत छीन ली है और भव्य राममंदिर निर्माण व उस से जुड़े पोंगापंथ कहीं न कहीं लोगों, खासतौर से पिछड़ों की कर्मठता पर हावी हो रहे हैं. यही नहीं, खुद रामभक्त सवर्ण समुदाय भी धार्मिक अवसाद में डूबता नजर आ रहा है जिस से वह और उन्मादी हो रहा है.

इस अवसाद और उन्माद की तुलना नशे से की जा सकती है जिस में डूबा आदमी तो क्या, एक पूरी कौम होश में आने से घबराने लगी है. अधिकतर सवर्ण कह भले ही न पा रहे हों लेकिन सोच जरूर रहे हैं कि मुफलिसी के इस दौर में 40 किलो चांदी की ईंटों की नींव से किसे क्या हासिल होगा और राममंदिर की 100 करोड़ रुपए की लागत, जो देखते ही देखते 500 करोड़ की हो जानी है, से उन्हें क्या हासिल होगा और इस की लंबाई, चौड़ाई व ऊंचाई बढ़ाने से किस की हालत सुधरेगी? अब यह वर्ग चाह कर भी इस बात पर खुश नहीं हो पा रहा कि राममंदिर हमारे लिए है, एससीबीसी के लिए नहीं और अगर यह प्रतीकात्मक रूप में कम खर्च में बन जाता तो भी हमारी श्रद्धा और आस्था पर कोई फर्क नहीं पड़ता. हां, ब्राह्मण जरूर खुश हैं क्योंकि उन के लिए दुनिया का सब से बड़ा धार्मिक मौल बन रहा है.

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सबक सोमनाथ का

इस सोच का सोमनाथ मंदिर आंदोलन और निर्माण से सीधा कनैक्शन है, जो इसी तरह सवर्णों की जिद और सनक का नतीजा था. जैसे ही राममंदिर के शिलान्यास के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का 5 अगस्त को अयोध्या आना तय हुआ, भक्त चैनलों ने उक्त स्थिति को सोमनाथ की गाथा, सत्यनारायण की कथा और सुंदर कांड की तरह बांचना शुरू कर दिया. बहस को मोदी बनाम नेहरू बनाया गया कि कैसे पंडित जवाहरलाल नेहरू ने सोमनाथ मंदिर न बनने देने की पूरी कोशिशें की थीं लेकिन तत्कालीन गृहमंत्री सरदार वल्लभभाई पटेल और हिंदूवादी कांग्रेसी नेताओं में से एक पूर्व राष्ट्रपति डाक्टर राजेंद्र प्रसाद ने हिंदुओं की आस्था और अस्मिता की लाज रख ली थी.

इस दौर में सोमनाथ मंदिर के इतिहास के कोई खास माने नहीं हैं सिवा इस के कि हिंदूवादी संगठनों ने एक सुनियोजित साजिश के तहत इसे हिंदू अस्मिता का सवाल बना दिया था, ठीक वैसे ही जैसे 1992 में राममंदिर को बना दिया था, मुगल इतिहासकारों को छोड़ भी दें तो वर्तमान दौर की चर्चित और प्रसिद्ध इतिहासकार रोमिला थापर 2004 में अपनी लिखी किताब ‘सोमनाथ – द मैनी वौइस औफ हिस्ट्री’ में कई अहम बातों, जो हिंदू मान्यताओं, आस्था और दावेदारी के चीथड़े उड़ाती हुई हैं, के साथ सोमनाथ को एक व्यापारकेंद्र सिद्ध कर चुकी हैं. लेकिन, बावजूद तमाम बातों के इस में कोई शक नहीं कि सोमनाथ मंदिर में अथाह दौलत थी जिसे बारबार लूटा गया.

आज सोचने वाली उपयोगी इकलौती बात यह है कि भारत और भारतीयों को सोमनाथ मंदिर के पुनर्निर्माण से क्या मिला था? क्या हम एक अमीर देश हो गए थे, क्या हमारी अर्थव्यवस्था सरपट दौड़ने लगी थी और क्या दरिद्रता इस मंदिर के बनने से दूर हो गई थी? ऐसे कई सवाल आज फिर मुंहबाए खड़े हैं कि राममंदिर से आम लोगों को क्या हासिल होगा?

राममंदिर निर्माण का वादा भाजपा ने पूरा कर दिया है फिर भले ही सब से बड़ी अदालत ने फैसला सरकार के दबाव में दिया लगता हो कि जैसे भी हो बला टरकाओ. लेकिन इस के साइड इफैक्ट्स निसंदेह देश और समाज के लिए घातक सिद्ध होंगे. मसलन, अरबों रुपए के इस मंदिर से सिवा पंडेपुजारियों के, किसी को रोजगार नहीं मिलने वाला, उलटे, यह नया तीर्थ सामाजिक विद्वेष को और बढ़ावा देगा. धार्मिक पाखंड तो निर्माण से पहले ही फलनेफूलने लगे हैं कि 5 अगस्त को फलांफलां शुभ मुहूर्त हैं, ग्रहनक्षत्र ऐसे और वैसे हैं और ट्रस्ट सरकार से मदद नहीं लेगा बल्कि 10 करोड़ परिवारों से चंदा लेगा.

नुकसान इन का

ये परिवार जाहिर हैं उन सवर्णों के होंगे जो पूजापाठ में पहले से ही बरबाद हैं. मुमकिन है कुछ संपन्न पिछड़े भी जेब ढीली करें पर ये लोग वास्तव में खुद के पांव पर ही कुल्हाड़ी मारेंगे क्योंकि इन की कर्मठता पाखंडों तले दबा दी गई है. सब से ज्यादा नुकसान उन पिछड़ों का होगा जिन्होंने 90 के दशक में पैसा कमाया और समाज व राजनीति में अपनी पहचान और जगह भी बनाई. हालांकि, अब इन के पल्ले कुछ नहीं है क्योंकि इन की भूमिका सिमटने लगी है. लड़खड़ा कर गिर चुकी अर्थव्यवस्था ने इन के लिए कुछ नहीं छोड़ा है. इसी तबके के निचले पायदान पर खड़े गरीब मेहनतकश मजदूर फाके कर रहे हैं जो न तो किसी गिनती में हैं और न ही जिन की किसी को फिक्र है, जबकि यही लोग अर्थव्यवस्था की रीढ़ हैं.

इन सब से भी ज्यादा नुकसान उन युवाओं का हो रहा है जो हाथ में डिग्रियां, दिल में आस और आंखों में सपने लिए 10 हजार रुपए महीने की नौकरी भी हासिल नहीं कर पा रहे. इन युवाओं में इतनी भी हिम्मत नहीं रह गई है कि वे सरकार से यह पूछ सकें कि अनपढ़ पंडों के लिए तो मंदिर लेकिन हमारे लिए नौकरी या रोजगार क्यों नहीं? कोरोना के कहर के चलते अब तो चाय और पकौड़ों की दुकान खोलने से भी कुछ नहीं मिलने वाला.

पिछड़े वर्ग के नरेंद्र मोदी सिर्फ धार्मिक इतिहास में दर्ज होने के वास्ते शिलान्यास के लिए तैयार हो गए हैं और प्रधानमंत्री बनने के बाद से ही जवाहरलाल नेहरू के मुकाबले वल्लभभाई पटेल को आधुनिक निर्माता साबित करने की कोशिशें करते उन की तरह ही पाखंड करते व रचते रहे हैं, जिन की प्राथमिकता मंदिर और हिंदुत्व थे.

स्टैचू औफ यूनिटी इस की बेहतर मिसाल है जिस के लिए अरबों रुपए उन्होंने पानी की तरह बहा दिए और अब राममंदिर के लिए भी पंडेपुजारियों के इशारे पर नाच रहे हैं. लेकिन वे नेहरू की तरह कारखाने, बांध और सार्वजनिक उपक्रम नहीं बना पा रहे, उलटे, धड़ाधड़ बेच रहे हैं. इस से युवाओं के लिए रोजगार के मौके कम हो रहे हैं. सो, इस के और नुकसानदेह नतीजे  झेलने के लिए सभी को तैयार रहना चाहिए.

कसौटी जिंदगी 2 कि एक्ट्रेस एरिका फर्नाडिस ने कहा दिशा सालियान को भी मिलना चाहिए न्याय

सुशांत सिंह राजपूत के परिवार वालों को सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद तस्सली मिली है. सुशांत केस पर सुप्रीम कोर्ट ने सीबीआई जांच के आदेश दे दिया है. इस फैसले के बाद सुशांत के फैंस भी बहुत खुश है.  वहीं कसौटी जिंदगी 2 की एक्ट्रेस एरिका फर्नाडिस  ने सोशल मीजिया पर सुशांत को सपोर्ट करने के साथ-साथ  दिशा सालियान का नाम भी लिया है.

पोस्ट में एरिका फर्नाडिस ने हाथ जोड़ते हुए लिखा है कि सुशांत के साथ-साथ दिशा सालियान को भी न्याय मिलना चाहिए. आगे उन्होंने लिखा है कि मैं सुशांत को पर्सनली नहीं जानती लेकिन आज सुशांत के फैसले को सुनकर मेरे आंसू खुशी से छलक गए.

अब क्लियर हो चुका है कि सुशांत मामले केस में सीबीआई ही जांच करेगी. बता दें सुशांत सिंह राजपूत केस की असली लड़ाई अब शुरू होगी. इस मामले में सुशांत सिंह राजपूत के फैंस भी इंतजार में बैठे हैं.

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कुछ दिन पहले सुशांत के करीबी दोस्त गणेश हिवाकर ने बताया कि उन्हें सुशांत के केस में दिशा सालियान से जुड़े कुछ सच पता चला है. दिशा सालियान के निधन के कुछ दिन बाद ही सुशांत सिंह राजपूत के निधन की खबर आ गई है.

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वहीं सुशांत सिंह राजपूत की बहन श्वेता कृति सिंह लगातार सोशल मीडिया पर इस बात की लड़ाई कर रही थी. साथ ही सुशांत के फैंस भी इस मामले में लगातार लगे हुए थे कि सुशांत के केस की जांच सीबीआई करें.

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सुशांत आज हमारे बीच नहीं है लेकिन उन्हें भी कही न कहीं इस फैसले से खुशी मिल रही होगी कि उनके साथ न्यान हो रहा है. सुशांत सिंह राजपूत के घर वाले को उस दिन का इंतजार है जिस दिन दोषी को उसके किए कि सजा मिलेगी.

लॉकडाउन को सुअवसर में बदलते प्रभाष

कोरोना महामारी की विपत्ति काल में पिछले 5 माह से पूरी फिल्म इंडस्ट्री ठप्प पड़ी हुई है .हर कोई अपने अपने घरों में कैद हैं.सभी इस विपत्ति को दुखदाई बताकर ‘कोरोना महामारी’ और  वक्त को कोस रहे हैं. मगर ‘साहो’ और ‘बाहुबली’ फेम  अभिनेता प्रभाष ने इस विपत्ति काल को अपने लिए सुअवसर में बदल डाला.

पिछले 5 माह के दौरान अभिनेता प्रभाष लगातार काम करते रहे. 2 माह पहले प्रभाष ने बताया था कि वह दीपिका पादुकोण के साथ एक फिल्म करने वाले हैं, जिसका निर्माण ‘वैजंकी मूवीज’ कर रहा है. फिर उन्होंने एक फिल्म पूजा हेगड़े के साथ करने की घोषणा की.

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अब प्रभाष ने तीसरी फिल्म “आदिपुरुष” की घोषणा की है ,जिसका निर्देशन ‘तान्हाजी द अनस॑ग वारियर’  फेम निर्देशक ओम राऊत करेंगे तथा इसका निर्माण ‘टी सीरीज’ कंपनी के भूषण कुमार करेंगे .यह थ्री डी फीचर फिल्म एक महाकाव्य होगी.।इसकी कथा बुराई पर अच्छाई की जीत की कहानी है. ‘बाहुबली’ के बाद प्रभाष इस फिल्म में एपिक किरदार निभाएंगे .ओम रावत का दावा है कि यह फिल्म विशाल सेट पर फिल्माए जाने के साथ ही वीएफ एक्स  से सजी होगी.

भूषण कुमार के साथ प्रभाष की ‘साहो’ और ‘राधेश्याम’ के बाद यह तीसरी फिल्म है. जबकि निर्देशक ओम राउत के साथ ‘आदिपुरुष’ प्रभाष की पहली फिल्म है.

ओम राऊत की यह मैग्नम फिल्म भारतीय संस्कृति के एक अहम अध्याय पर आधारित है और यह हिंदी के साथ-साथ तेलुगु भाषा में भी बनेगी तथा इसे तमिल, मलयालम, कन्नड़ के अलावा कुछ विदेशी भाषाओं में डब किया जाएगा.

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‘आदिपुरुष’ की चर्चा करते हुए खुद प्रभाष कहते हैं -“हर किरदार अपनी चुनौतियां लेकर आता है.लेकिन इस तरह के किरदार को अभिनय से संवारना जिम्मेदारी और गर्व की बात होती है.मैं अपने इपिक के इस किरदार को निभाने को लेकर अति उत्साहित हूं. मुझे यकीन है कि हमें देश की युवा पीढ़ी का पूरा प्यार मिलेगा.”

भूषण कुमार कहते हैं-“जब ओम राउत ‘आदिपुरुष’ की पटकथा लेकर मेरे पास आए, तो इसे पढ़ने के बाद मैंने तय कर लिया कि इसके निर्माण से मैं खुद को दूर नहीं रख सकता.यह तो मेरा ड्रीम प्रोजेक्ट हैं. मेरे पिता की तरह मैं और मेरा पूरा परिवार अपनी कहानियों और इतिहास में यकीन करते हैं, जिन्हें सुनते हुए हम बड़े हुए हैं.”

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ओम राउत कहते हैं-“मैं प्रभाष का आभारी हूं कि वह इस फिल्म का हिस्सा बनने के लिए तैयार हुए. मेरे इस ड्रीम प्रोजेक्ट को बिना शर्त भूषण जी का समर्थन मिला, उसके लिए मैं उनका आभारी हूं.”

फिल्म का पोस्टर  देखकर अहसास होता है कि यह भगवान श्रीराम से प्रेरित हो सकता है.इस फिल्म की घोषणा श्री राम की जन्मभूमि अयोध्या में राम मंदिर बनाने की शुरुआत के वक्त हुई है और यदि यह फिल्म उसी दौर की हुई, तो किसी भी पौराणिक कथा पर इतने बड़े स्तर पर बनाई जाने वाली पहली फिल्म हो सकती है.

कश्मीरी पुलाव : आप बस खाते ही जाएंगे

कश्मी पुलाव का नाम तो आपने बहुत बार सुना होगा लेकिन इतना आसान तरीका आपने कही नहीं देखा होगा अगर आप भी खाना चाहते हैं कश्मीरी पुलाव तो अपनाएं ये रेसिपी.

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सामग्री:

  • 1/2 कप बासमती चावल
  • 4-5 केसर की किस्में
  • 1 टेबलस्पून दूध
  • 5-6 काजू, कटे हुए
  • 5-6 बादाम, कटे हुए
  • 1 तेज पता
  • 2 लोंग
  • 1 हरी इलायची
  • 2-इंच लंबा दालचीनी का टुकड़ा
  • 1 हरी मिर्च, लंबी कटी हुई
  • 1/2 टीस्पून कद्दूकस किया हुआ अदरक
  • 1/4 टीस्पून सोंफ पाउडर
  • 1 प्याज, लंबाई में कटा हुआ
  • 1/4 कप सेब, कटा हुआ
  • 1/4 कप अनार के दाने
  • 1/4 कप अंगूर (बीजरहित), वैकल्पिक
  • नमक – स्वाद अनुसार
  • 2 टेबलस्पून घी
  • तेल, प्याज तलने के लिये
  • 1 कप पानी

विधि:

  1. चावल को 2-3 बार पानी से धो ले और 15 मिनट तक पानी में भिगो दें. बाद में चावल मे से अतिरिक्त पानी निकालें और चावल को अलग रखें.
  2. केसर की किस्मों को 1 टेबलस्पून गरम दूध में भिगो दें.
  3. एक गहरे पैन/कड़ाही में मध्यम आंच पर 1 टेबलस्पून घी गरम करें. उसमें काजू और बादाम डालें और उन्हें हल्का सुनहरा होने तक भून लें. उन्हें थाली में निकालें.
  4. उसी पैन/कड़ाही में बाकी बचा हुआ 1 टेबलस्पून घी डाले और उसमें तेज पता, लोंग, हरी इलायची और दालचीनी का टुकड़ा डाले और 30 सेकंड तक भून लें. उसमे हरी मिर्च, कद्दूकस किया हुआ अदरक और सोंफ पाउडर डाले और फिर से 30 सेकंड के लिये भून लें|
  5. भिगोये और पानी निकाले हुए चावल डालें.
  6. 1-2 मिनट के लिये भून लें.
  7. 1 कप पानी, भिगोया हुआ केसर और नमक डालें. अच्छी तरह से मिला ले और मध्यम आंच पर उबालने रखे.
  8. जब वे उबलने लगे तब आंच को धीमी कर दे और ढक्कन लगाकर 8-10 मिनट या चावल पक जाय तब तक पकने दें. बीच में ढक्कन न खोले और चावल को भी मत हिलाये. चावल के पक जाने पर गैस बंध कर दे और बिना ढककन खोले 5-7 मिनट के लिये रहने दें. बाद में ढक्कन खोले और चावल को कांटे से फुला लें.
  9. इसी बीच दूसरे पैन में प्याज तलने के लिये 3-4 टेबलस्पून तेल को गरम करे. हाथ से प्याज के लच्छों को अलग कर ले और बाद में तेल में डाले और भूरा होने तक तले. प्याज को बीच- बीच में हिलाते रहे.
  10. पके हुए चावल में हल्के तले हुए सूखे मेवे, कटे हुए ताजे फल और हल्का तला हुआ प्याज डालें.
  11. हल्के से मिला ले और सर्विंग बाउल मे निकालें. हरे धनिये से सजाये.

गाजर में होने वाली बीमारियां

पिछले अंक में आप ने जड़ वाली फसल गाजर की तमाम किस्मों और इस की वैज्ञानिक तरीके से खेती करने के बारे में पढ़ा. इस अंक में पेश है गाजर की फसल में होने वाली बीमारियां और उन के इलाज की पूरी जानकारी.

अन्य फसलों की तरह गाजर की फसल में भी कई तरह की बीमारियों का प्रकोप होता रहता?है, जिन की वजह से किसानों को काफी नुकसान उठाना पड़ता है. यहां ऐसी ही बीमारियों की जानकारी दी जा रही है.

जड़ों की बीमारियां

जड़ों में दरारें पड़ना : गाजर की खेती वाले इलाकों में ये दरारें ज्यादा सिंचाई के बाद अधिक मात्रा में नाइट्रोजनयुक्त उर्वरकों का इस्तेमाल करने से पड़ती हैं, लिहाजा इन उर्वरकों का इस्तेमाल सोचसमझ कर करना चाहिए.

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जड़ों में खाली निशान पड़ना : जड़ों में घाव की तरह आयताकार धंसे हुए धब्बे दिखाई पड़ते हैं, जो धीरेधीरे बढ़ने लगते हैं. इसलिए जरूरत से ज्यादा सिंचाई नहीं करनी चाहिए.

अन्य बीमारियां

आर्द्र विगलन रोग : यह रोग पिथियम स्पीसीज नामक फफूंदी से होता है. इस रोग से बीज अंकुरित होते ही पौधे मुरझा जाते हैं. अकसर अंकुर बाहर नहीं निकलता और बीज सड़ जाता है.

तने का निचला हिस्सा जो जमीन की सतह से लगा होता है, सड़ जाता है. पौधे का अचानक सड़ना व गिरना आर्द्र विगलन का पहला लक्षण है. इस रोग की रोकथाम के लिए बीजों को बोने से पहले 3 ग्राम कार्बेंडाजिम से प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचारित करना चाहिए.

जीवाणुज मृदु विगलन रोग : यह रोग इर्वीनिया कैरोटोवोरा नामक जीवाणु से फैलता है, इस रोग का असर खासकर गूदेदार जड़ों पर होता है. जिस से इस की जड़ें सड़ने लगती हैं. ऐसी जमीन जिस में जल निकासी की सही व्यवस्था नहीं होती या निचले क्षेत्र में बोई गई फसल पर यह रोग ज्यादा लगता है. इस रोग की रोकथाम के लिए खेत के पानी की निकासी की सही व्यवस्था करें. रोग के लक्षण दिखाई देने पर नाइट्रोजनधारी उर्वरकों का छिड़काव न करें.

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कैरेट यलोज : यह एक विषाणुजनित रोग है, जिस के कारण पत्तियों का बीच का हिस्सा चितकबरा हो जाता है और पुरानी पत्तियां पीली पड़ कर मुड़ जाती हैं. जड़ें आकार में छोटी रह जाती हैं और उन का स्वाद कड़वा हो जाता है. इस रोग की रोकथाम के लिए 0.02 फीसदी मैलाथियान का छिड़काव करना चाहिए, ताकि इस रोग को फैलाने वाले कीडे़ मर जाएं.

सर्कोस्पोरा पर्ण अंगमारी : इस रोग के लक्षण पत्तियों, तनों व फूल वाले भागों पर दिखाई पड़ते हैं. रोगी पत्तियां मुड़ जाती हैं. पत्तियों की सतह व तनों पर बने दागों का आकार अर्धगोलाकार और धूसर, भूरा या काला होता है.

फूल वाले हिस्से बीज बनने से पहले ही सिकुड़ कर बरबाद हो जाते हैं. इस रोग की रोकथाम के लिए बीज बोते समय थायरम कवकनाशी का उपचार करें. खड़ी फसल में रोग के लक्षण दिखाई देते ही मैंकोजेब 25 किलोग्राम, कापर आक्सीक्लोराइड 3 किलोग्राम या क्लोरोथैलोनिल 2 किलोग्राम का 1000 लीटर पानी में घोल बना कर प्रति हेक्टेयर के हिसाब से छिड़काव करें.

स्क्लेरोटीनिया विगलन : पत्तियों, तनों और डंठलों पर सूखे धब्बे होते हैं. रोगी पत्तियां पीली हो कर झड़ जाती हैं. कभीकभी पूरा पौधा ही सूख कर बरबाद हो जाता है. फलों पर रोग का लक्षण पहले सूखे दाग के रूप में दिखता है, फिर कवक गूदे में तेजी से बढ़ती है और फल को सड़ा देती है.

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इस रोग की रोकथाम के लिए फसल लगाने से पहले ही खेत में थायरम 30 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से मिलाना चाहिए. कार्बेंडाजिम 50 डब्ल्यूपी कवकनाशी की 1 किलोग्राम मात्रा का 1000 लीटर पानी में घोल बनाएं और प्रति हेक्टेयर की दर से 15-20 दिनों के भीतर 3-4 बार छिड़काव करें.

चूर्ण रोग : पौधे के सभी हिस्सों पर सफेद हलके रंग का चूर्ण आ जाता है. चूर्ण के लक्षण आने से पहले ही कैराथेन 50 मिलीलीटर प्रति 100 लीटर पानी या वैटेबल सल्फर 200 ग्राम प्रति 100 लीटर पानी का छिड़काव 10 से 25 दिनों के अंतर पर लक्षण दिखने से पहले करें.

सूत्रकृमि की रोकथाम : सूत्रकृमि सूक्ष्म कृमि के समान जीव है, जो पतले धागे की तरह होते हैं, जिन्हें सूक्ष्मदर्शी से देखा जा सकता है. इन का शरीर लंबा व बेलनाकार होता है. मादा सूत्रकृमि गोल व नर सांप की तरह होते हैं. इन की लंबाई 0.2 से 10 मिलीमीटर तक हो सकती है. ये खासतौर से मिट्टी या पौधे के ऊतकों में रहते हैं. इन का फसलों पर प्रभाव ज्यादा देखा गया है. ये पौधे की जड़ों को नुकसान पहुंचाते हैं, जिस से जड़ों की गांठें फूल जाती हैं और उन की पानी व पोषक तत्त्व लेने की कूवत घट जाती है. इन के असर से पौधे आकार में बौने, पत्तियां पीली हो कर मुरझाने लगती हैं और फसल की पैदावार कम हो जाती है.

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रोकथाम : रोकथाम की कई विधियों में से किसी एक विधि से सूत्रकृमियों की पूरी तरह रोकथाम नहीं की जा सकती. इसलिए 2 या 2 से ज्यादा विधियों से सूत्रकृमियों की रोकथाम की जाती है. ये विधियां?हैं :

* गरमियों में गहरी जुताई करनी चाहिए.

* नर्सरी लगाने में पहले बीजों को कार्बोफ्यूरान व फोरेट से उपचारित करना चाहिए.

* फसल लगाने से 20-25 दिनों पहले कार्बनिक खाद को मिट्टी में मिलाना चाहिए.

* रोग प्रतिरोधी जातियों का चयन करें.

* अंत में यदि इन सब से रोकथाम न हो, तब रसायनों का इस्तेमाल करें.

रासायनिक इलाज

कार्बोफ्यूरान व फोरेट 2 किलोग्राम सक्रिय तत्त्व प्रति हेक्टेयर जमीन में मिलाएं या 3 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज दर से जरूरत के मुताबिक करें. कुछ दानेदार रसायन जैसे एल्डीकार्ब (टेमिक) को 11 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से मिट्टी में मिलाना चाहिए.

खुदाई : गाजर की खुदाई का समय आमतौर पर उस की किस्म पर निर्भर करता है, वैसे जब गाजर की जड़ों के ऊपरी सिरे ढाई से साढे़ 3 सेंटीमीटर व्यास के हो जाएं, तब खुदाई कर लेनी चाहिए.

पैदावार : गाजर की पैदावार कई बातों पर निर्भर करती है, जिन में जमीन की उर्वराशक्ति, उगाई जाने वाली किस्म, बोने की विधि और फसल की देखभाल पर निर्भर करती है, लेकिन बीज उगाने के लिए गाजर के बीजों को घना बोते हैं, ताकि गाजर में 90 से 100 दिन बाद रोपाई के लिए जडें तैयार हो सकें.

तैयार जड़ों को हम खेत से निकाल लेते हैं और पौधों को बढ़ने के लिए छोड़ दिया जाता है, गाजर की उपज में कमी न आए, इस के लिए 30 किलोग्राम नाइट्रोजन प्रति हेक्टेयर के हिसाब से हलकी सिंचाई के बाद इस्तेमाल करना ठीक रहता है. आमतौर पर प्रति हेक्टेयर 200 क्विंटल तक औसतन उपज मिल जाती है.

तन की दुर्गंध से निबटने का ये है नैचुरल तरीका

आप किसी पार्टी में गई हों और आप के शरीर से आ रही दुर्गंध के कारण सब आप से दूरदूर भागने लगें तो जरा सोचिए आप को कितनी शर्मिंदगी महसूस होगी. आप के शरीर की दुर्गंध आप की पर्सनैलिटी को प्रभावित करने के साथसाथ आप के कौन्फिडैंस को भी लूज करेगी. ऐसे में आप को ऐसी चीजें खानी चाहिए जो आप की बौडी की दुर्गंध को दूर करने का काम करें.

इस संबंध में रचना डाइट के डा. पवन शेट्टी से बात की गई तो उन्होंने बताया कि जब हमारा फ्लूड इनटेक अच्छा नहीं होता तो हमारे यूरिन का कलर चेंज होने के साथसाथ उस से दुर्गंध भी आनी शुरू हो जाती है और उस जगह को हर बार साफ न करने पर हमारे कपड़ों से बदबू आने के साथसाथ इन्फैक्शन होने का भी डर रहता है, इसलिए प्रतिदिन हर 22 से 30 मिनट पर पानी पीते रहना चाहिए.

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जब हम ट्रांसफैट जैसे जंकफूड ज्यादा लेते हैं, तो उस से पसीने के रूप में जो भी विषैले पदार्थ बाहर निकलते हैं उन में भी काफी बदबू होती है. यही नहीं ट्रांसफैट लेने के कारण हमारा लिवर फैटी तक हो जाता है, इसलिए हैल्दी खाना ही लें.

जब हम खाना अच्छी तरह नहीं खाते तो उस की वजह से भी हमारे इंटैस्टाइन में बैड बैक्टीरिया बनते हैं, जिन की वजह से भी बदबू आती है, इसलिए हर 2-3 घंटों में कुछ न कुछ हैल्दी खाती रहें और फ्लूड को भी मैंटेन रखें.

खाने में इन्हें करें शामिल

आप को बता दें कि फ्लूड को मैंटेन रखने से ब्लड क्लौट्स नहीं होते व कब्ज की समस्या से भी छुटकारा मिलता है, साथ ही यूरिन ट्रैक क्लीयर होने से इंफैक्शन नहीं होता. इसलिए प्रौपर डाइट के लिए अपने खाने में निम्न चीजों को शामिल करना न भूलें:

1.ग्रीन टी: ग्रीन टी ऐंटी औक्सीडैंट गुणों से भरपूर होती है. यह शरीर को दुर्गंध से बचाने में सब से सशक्त टूल है. यह बैड ब्रीथ पैदा करने वाले तत्त्वों को भी खत्म करती है. इसलिए दिन की शुरुआत ग्रीन टी से करें.

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2,नीबू: नीबू में ऐंटीबैक्टीरियल गुण होने के कारण यह शरीर से दुर्गंध को दूर करने का काम करता है, साथ ही इस में ऐसिडिक गुण होने के कारण यह स्किन के पीएच लैवल को भी कम करता है, जिस से बैड बैक्टीरिया को पनपने में मुश्किल होती है. इस के अलावा नीबू में विटामिन सी की मौजूदगी इम्यूनिटी को बढ़ाने का भी काम करती है. इसलिए अपने सिस्टम को इंप्रूव करने के लिए दिन की शुरुआत 1 गिलास हलके कुनकुने पानी में नीबू मिला कर पीने से करें. अंडरआर्म्स और पैरों के नीचे नीबू रगड़ने से बदबू थोड़ी ही देर में दूर हो जाती है.

3.टमाटर: टमाटर में ऐंटी बैक्टीरियल और ऐंटीसैप्टिक गुण होने के कारण ये शरीर में दुर्गंध फैलाने वाले बैक्टीरिया को खत्म करने का काम करते हैं. इन में नैचुरल ऐस्ट्रिजैंट होने के कारण ये चेहरे पर पसीना आने से भी रोकते हैं.

इसलिए डेली 1/2 कप टोमैटो जूस जरूर पीएं या फिर अपने सलाद में टमाटर भी शामिल करें. जिन जगहों में ज्यादा पसीना आता हो वहां 10-15 मिनट के लिए टमाटर लगा कर छोड़ दें. ऐसा करने पर भी पसीना आने की समस्या से छुटकारा मिलता है.

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4.दही: इस में उपयोगी जीवाणु होने के कारण यह खाने को आसानी से पचा देता है, साथ ही यह बहुत ही आसानी से शरीर से विषैले पदार्थों को भी बाहर निकालने में सक्षम है. इसलिए नियमित रूप से छाछ व दही लेती रहें.

5.इलायची: इलायची भी बहुत ही उपयोगी होती है. अगर आप चाहती हैं कि आप की बौडी से अच्छी महक आए तो खाने में 1-2 दाने इलायची के जरूर डालें, क्योंकि इस में बैड बैक्टीरिया को शरीर से बाहर निकालने की शक्ति होती है.

6.अदरक: अदरक जहां शरीर की बदबू को दूर कर आप को फ्रैश फील करवाता है वहीं यह शरीर से विषैले पदार्थों को बाहर निकालने का भी काम करता है. इसलिए करी या चाय आदि में अदरक का प्रयोग जरूर करें.

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खुद को साफसुथरा रखने के लिए डेली ऐंटीबैक्टीरियल साबुन से नहाएं और नहा कर साफसुथरे कपड़े पहनें. जब भी बाहर से आएं हाथमुंह जरूर धोएं वरना पसीना आने से दुर्गंध आने का डर बना रहता है.

हुंडई वरना यानी नो मोर कंप्रमाइज

नई हुंडई वरना आपके सफर को रोमांचक और आरामदायक बनाती है. क्योंकि इसमें ड्यूल-टोन इंटीरियर और कूल्ड सीट्स हैं. वहीं क्रूज़ कंट्रोल के साथ एक मल्टी-फंक्शन व्हील सनरूफ और स्लाइडिंग आर्मरेस्ट भी है. इस कार की बनावट ऐसी है कि आपको कॉम्प्रोमाइज करने की बिल्कुल जरूरत न पड़े.

इस कार में पीछे-सीट वाले यात्रियों का खास ध्यान रखते हुए कंफर्टेबल सीट के साथ स्पेस भी काफी अच्छा है. जिससे तीन लोग आराम से बैठ सकते हैं. साथ ही सीट-बैक एंगल परफेक्ट है और अंडर-थिंग सपोर्ट भी काफी अच्छा है. यानी सभी यात्रियों के लिए नई Hyundai Verna #BetterThanTheRest है.

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