Download App

आहटें -भाग 1: क्या हुआ शिखा की ताकझांक करने की आदत का नतीजा?

पड़ोस के घर की घंटी की आवाज सुनते ही शिखा लगभग दौड़ती हुई दरवाजे के पास गई और फिर परदे की ओट कर बाहर झांकने लगी. अपने हिसाबकिताब में व्यस्त सुधीर को शिखा की यह हरकत बड़ी शर्मनाक लगी. वह पहले भी कई बार शिखा को उस की इसी आदत पर टोक चुका है, लेकिन वह अपनी आदत से बाज नहीं आती.

ज्यों ही आसपास के किसी के घर की घंटी बजती शिखा के कान खड़े हो जाते. कौन किस से मिलजुल रहा है, किस पतिपत्नी में कैसा बरताव चल रहा है, इस की पूरी जानकारी रखने का मानो शिखा ने ठेका ले रखा हो.

सुधीर ने कभी ऐसी मनोवृत्ति वाली पत्नी की कामना नहीं की थी. अपना दर्द किस से कहे वह… कभी प्रेम से, कभी तलखी से झिड़कता जरूर है, ‘‘क्या शिखा, तुम भी हमेशा पासपड़ोसियों के घरों की आहटें लेने में लगी रहती हो… अपने घर में दिलचस्पी रखो जरा ताकि घर घर जैसा लगे…’’

सुधीर की लाई तमाम पत्रपत्रिकाएं मेज पर पड़ी शिखा का मुंह ताकती रहतीं… शिखा अपनी आंखें ताकझांक में ही गड़ाए रखती.

मगर आज तो सुधीर शिखा की इस हरकत पर आगबबूला हो उठा और फिर परदा इतनी जोर से खींचा कि रौड सहित गिर गया.

‘‘लो, अब ज्यादा साफ नजर आएगा,’’ सुधीर गुस्से से बोला.

शिखा अचकचा कर द्वार से हट गई. देखना तो दूर वह तो अनुमान भी न लगा पाई कि जतिन के घर कौन आया और क्योंकर आया.

सुधीर के क्रोध से कुछ सहमी जरूर, पर झेंप मिटाने हेतु मुसकराने लगी. सुधीर का मूड उखड़ चुका था. उस ने अपने कागज समेट कर अलमारी में रखे और तैयार होने लगा.

शिखा उसे तैयार होते देख चुप न रह सकी. पूछा, ‘‘अब इस वक्त कहां जा रहे हो? शाम को मूवी देखने चलना है या नहीं?’’

‘‘तुम तैयार रहना… मैं आ जाऊंगा वक्त पर,’’ कह कर सुधीर कहां जा रहा है, बताए बिना गाड़ी स्टार्ट कर निकल गया.

गुस्से से भरा कुछ देर तो सुधीर यों ही सड़क पर गाड़ी दौड़ाता रहा. वह मानता है कि थोड़ीबहुत ताकझांक की आदत प्राय: प्रत्येक व्यक्ति में होती है पर शिखा ने तो हद कर रखी है. 1-2 बार उसे ताना भी मारा कि इतनी मुस्तैदी से अगर किसी अखबार में न्यूज देती तो प्रतिष्ठित संवाददाता बन जाती. लेकिन शिखा पर किसी शिक्षा का असर ही नहीं पड़ता था.

पिछले हफ्ते की ही बात है. वह शाम को औफिस से काफी देर से लौटा था. वह ज्यों ही घर में घुसा कि कुछ देर में ही शिखा का रिकौर्ड शुरू हो गया. बच्चों को पुलाव खिला कर सुला चुकी थी. उस के सामने भी दही, अचार, पुलाव रख शुरू कर दिया राग, ‘‘आजकल अमनजी औफिस से 1-2 घंटे पहले ही घर आ जाते हैं. मेरा ध्यान तो काफी पहले चला गया था इस बात पर… इधर उन की माताजी प्रवचन सुनने गईं और उधर से उन की गाड़ी गेट में घुसती. दोनों लड़कियां तो स्कूल से सीधे कोचिंग चली जाती हैं और 7 बजे तक लौटती हैं… अमनजी के घर में घुसते ही दरवाजेखिड़कियां बंद…’’

‘‘अरे बाबा मुझे कोई दिलचस्पी नहीं है दूसरों के दरवाजों में… तुम पापड़ तल कर दे सको तो दे दो.’’

सुधीर की नाराजगी देख शिखा को चुप हो जाना पड़ा वरना वह आगे भी बोलती.

खाना खा कर सुधीर टीवी देखने लगा. शिखा रसोई निबटा कर उस के पास आ कर बैठी तो सुधीर को बड़ा सुखकर लगा. छोटी सी गृहस्थी जोड़ ली है उस ने… शिखा भी पढ़ीलिखी है. अगर यह भी अपने समय का सदुपयोग करना शुरू कर दे तो घर में अतिरिक्त आय तो होगी ही खाली समय में इधरउधर ताकनेझांकने की आदत भी छूट जाएगी.

‘धीरेधीरे स्वयं समझ जाएगी,’ सोचते हुए सुधीर भावुकता में शिखा को गले लगाने के लिए उठा ही था कि शिखा चहक उठी, ‘‘अरे यार, वह अमनजी का किस्सा तो अधूरा ही रह गया… मैं समझ तो गई थी पर आज पूरा राज खुल गया… खुद उन की पत्नी आशा ने बताया नेहा को कि लड़कियां बड़ी हो गई हैं… तो एकांत पाने का यह उपाय खोजा है अमनजी ने…’’ कह कर शिखा ने ऐसी विजयी मुसकान फेंकी मानो किला जीत लिया हो.

किंतु सुन कर सुधीर ने तो सिर थाम लिया अपना. उस ने ऐसी पत्नी की भी कल्पना नहीं की थी. वह तो आज भी यही चाहता है उस की शिखा परिवार के प्रति समर्पण भाव रखते हुए पासपड़ोसियों का भी खयाल रखे, उन के सुखदुख में शामिल हो. पर यह नामुमकिन था.

नामुमकिन शब्द सुधीर को हथौड़े सा लगा. ‘भरपूर प्रयास करने पर तो हर समस्या का हल निकल आता है,’ सोच कर सुधीर को कुछ राहत मिली. उस ने घड़ी देखी. शो का वक्त हो चुका था, मगर आज शिखा के नाम से चिढ़ा था…

सुधीर घर न जा कर एक महंगे रेस्तरां में अकेला जा बैठा. रविवार होने की वजह से ज्यादातर लोग बीवीबच्चों के संग थे… उसे अपना अकेलापन कांटे सा चुभा… बैठे या निकल ले सोच ही रहा था कि नजरें कोने की टेबल पर पड़ते ही सकपका गया. उस के पड़ोसी दस्तूर अपनी पत्नी और बेटी के संग बैठे खानेपीने में मशगूल थे. सुधीर तृषित नजरों से क्षण भर उस परिवार को देखता रह गया.

शैतानी दिमाग की साजिश

10 सितंबर, 2018 को लुधियाना के जिला एडिशनल सेशन जज अरुणवीर वशिष्ठ की अदालत में अन्य दिनों की अपेक्षा कुछ ज्यादा भीड़ थी. वजह यह थी कि उस दिन लुधियाना शहर के एक ऐसे दोहरे मर्डर केस का फैसला सुनाया जाना था, जिस ने पूरे शहर में सनसनी फैला दी थी. इस में हतप्रभ कर देने वाली बात यह थी कि आरोपी रिशु ग्रोवर मृतकों के परिवार का ही सदस्य था और उस परिवार की हर तरह से देखरेख करता था.

इस के बावजूद उस ने मां और बेटी की इतनी वीभत्स तरीके से हत्या की थी कि उन की लाशें देख कर पुलिस तक का कलेजा कांप उठा था. यह केस लगभग 5 सालों तक न्यायालय में चला, जिस में 23 गवाहों ने अपने बयान दर्ज कराए.

ये भी पढ़ें- Crime Story: खुद पोंछा बेटी का सिंदूर

इन गवाहों में एक गवाह ऐसा भी था, जिस ने आरोपी को घटनास्थल से फरार होते देखा था. अभियोजन पक्ष ने इस केस में पुलिस वालों, फोटोग्राफर, फिंगरप्रिंट एक्सर्ट्स, पोस्टमार्टम करने वाले डाक्टरों आदि के बयान भी अदालत में दर्ज कराए थे.

निर्धारित समय पर जिला एडिशनल सेशन जज अरुणवीर वशिष्ठ के अदालत में बैठने के बाद जिला अटौर्नी रविंदर कुमार अबरोल ने कहा कि आरोपी रिशु ग्रोवर ने अपनी ताई और उन की बेटी की खंजर से बेहद क्रूरतम तरीके से हत्या की थी. लिहाजा ऐसे आरोपी को फांसी की सजा मिलनी चाहिए. वहीं बचाव पक्ष के वकील ने कहा कि ये दोनों मर्डर किसी और ने किए हैं. हत्याएं करने के बाद हत्यारा खून से दीवार पर एक नाम भी लिख कर गया था.

खून से दीवार पर जिस का नाम लिखा गया था, पुलिस को उस शख्स से सख्ती से पूछताछ करनी चाहिए थी. लेकिन पुलिस ने उस शख्स को बचा कर सीधेसादे रिशु ग्रोवर को फंसा कर जेल में डाल दिया. रिशु पर लगाए गए सारे आरोप निराधार हैं. लिहाजा उसे इस केस से बाइज्जत बरी किया जाना चाहिए.

ये भी पढ़ें- Crime Story: एक हत्या ऐसी भी – प्रतिभा के साथ सतनाम ने क्या किया

जिला एडिशनल सेशन जज ने तमाम गवाहों के बयान, सबूतों और वकीलों की जिरह के बाद आरोपी रिशु ग्रोवर को दोषी करार दिया और सजा सुनाने के लिए 13 सितंबर, 2018 का दिन नियत कर दिया.

आखिर ऐसा क्या हुआ था कि इस हत्याकांड के फैसले पर लुधियाना के लोगों के अलावा वकीलों और मीडिया तक की निगाहें जमी थीं. सनसनी फैला देने वाले इस केस को समझने के लिए हमें घटना की पृष्ठभूमि में जाना होगा.

लुधियाना के बाबा थानसिंह चौक के निकट मोहल्ला फतेहगंज में बलदेव राज अपने परिवार के साथ रहते थे. उन के परिवार में पत्नी ऊषा के अलावा 2 बेटियां आशना व हिना एक बेटा राहुल था. बड़ी बेटी आशना की वह शादी कर चुके थे. शादी के लिए 2 बच्चे और बचे थे. वह उन की शादी की भी तैयारी कर रहे थे, लेकिन इस से पहले ही उन की मृत्यु हो गई.

ये भी पढ़ें- Crime Story: अधूरी रह गई डौन बनने की चाहत

बलदेव राज की मृत्यु के बाद घर की जिम्मेदारी ऊषा के ऊपर आ गई थी. खेती की जमीन से वह परिवार की गुजरबसर करने लगीं. पंजाब के तमाम लोग विदेशों में काम कर के अच्छा पैसा कमा रहे हैं. ज्यादा पैसे कमाने की चाह में राहुल भी अपने एक जानकार की मदद से आस्ट्रेलिया चला गया. वहां उसे अच्छा काम मिल गया था.

राहुल के आस्ट्रेलिया जाने के बाद लुधियाना में उस के घर में 55 वर्षीय मां ऊषा और 21 वर्षीय बहन हिना ही रह गई थीं. राहुल ने अपनी बहन आशना और बहनोई विकास मल्होत्रा का खयाल रखने को कह दिया था. इस के अलावा उस ने अपने चाचा के बेटे रिशु ग्रोवर से भी मांबहन का ध्यान रखने को कहा था.

रिशु टिब्बा रोड के इकबाल नगर में रहता था. वैसे भी ऊषा का घर बाबा थानसिंह चौक पर ऐसी जगह रास्ते में था कि रिशु आतेजाते अपनी ताई ऊषा का हालचाल जान लिया करता था.

जब रिशु ऊषा के यहां आनेजाने लगा तो ऊषा उस से घर के छोटेमोटे काम कराने लगीं. इस में रिशु के मातापिता को भी कोई ऐतराज नहीं था. कुछ समय और बीता तो ताई के कहने पर रिशु कभीकभी रात को भी उन के घर रुकने लगा.

ये भी पढड़ें-दो प्रेमियों की बेरहम जुदाई : जब प्यार बन गया जहर

इसी बीच एक यह परेशानी सामने आई कि बाबू नाम का एक लड़का हिना के पीछे पड़ गया. बाबू का सेनेटरी का काम था. हिना जब भी घर से बाहर निकलती, बाबू उस का रास्ता रोक कर उस से छेड़छाड़ करता था. इस से परेशान हो कर हिना ने इस की शिकायत पहले रिशु से की और बाद में यह बात अपनी बहन और जीजा को भी बता दी.

रिशु ने अपने तरीके से बाबू को समझाने की कोशिश की, लेकिन वह नहीं माना. कोई हल न निकलता देख हिना के बहनोई विकास ने इस की शिकायत थाना डिवीजन नंबर-3 में कर दी. पुलिस ने बाबू को थाने बुला कर धमका दिया. इस के बावजूद वह अपनी हरकतों से बाज नहीं आया. यह सन 2012 की बात है.

इस बीच राहुल आस्ट्रेलिया से लुधियाना लौटा तो यह बात उसे भी पता चली. लगभग 2 महीने लुधियाना में रहने के बाद जब वह वापस आस्ट्रेलिया लौटा तो अपनी मां ऊषा और बहन हिना की जिम्मेदारी फिर से रिशु को सौंप गया. आगे चल कर यही राहुल की सब से बड़ी भूल साबित हुई.

रिशु एक आवारा, बदचलन और बेहद गिरा हुआ इंसान था. सिगरेट, शराब, जुए से ले कर कोई ऐसा गलत ऐब नहीं बचा था, जो रिशु में नहीं था. ऊषा और हिना का ध्यान रखने की आड़ में वह ऊषा के घर पर ही अपना डेरा जमा कर बैठ गया. दरअसल, रिशु के खुराफाती दिमाग में एक भयानक षड्यंत्र ने जन्म ले लिया था. उस का सीधा निशाना हिना थी जो इस बात से बिलकुल अनजान थी.

नाजायज रिश्ते, नाजायज तरीके. कब किसी इंसान को गुनाह के रास्ते पर ला कर खड़ा कर दें, कोई अंदाजा नहीं लगाया जा सकता. जिस भाई को राहुल मां और बहन की देखभाल की जिम्मेदारी सौंप गया था, उसी भाई के मन में एक अपराध ने जन्म ले लिया था.

अपने स्वार्थ की पूर्ति के लिए रिशु ने अपनी ताई की बेटी हिना को अपने जाल में फंसाना शुरू कर दिया. जल्दी ही वह अपने मकसद में कामयाब भी हो गया. उस ने हिना के साथ नाजायज रिश्ता कायम कर लिया. बाद में वह इसी नाजायज रिश्ते की आड़ ले कर उसे ब्लैकमेल कर पैसे ऐंठने लगा. उस से मिले पैसों का इस्तेमाल वह अपने सपने पूरे करने में खर्च करता था.

ताज्जुब की बात यह थी कि उसी घर में रहते हुए भी ऊषा को इस सब की भनक तक नहीं लग पाई थी. इस की वजह यह थी कि रिशु अपनी ताई को खाने में नींद की गोलियां दे देता था. गोलियों के नशे को ऊषा अपनी उम्र का रोग समझती थीं.

शुरूशुरू में तो हिना रिशु के आकर्षण में फंस गई थी पर जब तक उसे उस की नीयत का पता चला, तब तक बहुत देर हो चुकी थी. लेकिन अब पछताने से कोई फायदा नहीं था. क्योंकि वह सिर से ले कर पांव तक रिशु के चंगुल में फंसी हुई थी, जहां से अकेले बाहर निकलना उस के बूते की बात नहीं थी.

अंत में हार कर हिना ने अपने भाई राहुल को आस्ट्रेलिया फोन कर के यह बात बता दी. यहां हिना ने एक बार फिर बड़ी गलती की. वह राहुल से अपने और रिशु के शारीरिक संबंधों और रिशु द्वारा ब्लैकमेल करने की बात छिपा गई थी. यह बात फरवरी 2013 की है.

अपनी बहन की बात सुन राहुल आस्ट्रेलिया से लुधियाना आया और उस ने रिशु को आड़े हाथों लिया. रिशु के मातापिता ने भी उस की अच्छी खबर ली. आखिर अपनी करनी से शर्मिंदा हो कर रिशु ने राहुल के अलावा अन्य सभी रिश्तेदारों से माफी मांग ली.

बात तो यहीं खत्म हो गई थी पर राहुल कोई रिस्क नहीं लेना चाहता था. उस ने हिना की शादी करने के लिए लड़के की तलाश शुरू कर दी. लड़का मिल भी गया. राहुल ने लुधियाना के पखोवाल रोड निवासी सौरव के साथ हिना की मंगनी कर के शादी पक्की कर दी.

शादी की तारीख 20 नवंबर, 2013 तय हुई. इस बार राहुल ने बहन की शादी की जिम्मेदारी अपनी बहन आशमाऔर जीजा विकास मल्होत्रा को सौंपी.

यह सब कर के वह 24 अप्रैल, 2013 को आस्ट्रेलिया लौट गया. आस्ट्रेलिया जा कर उस ने वहां से 4 लाख रुपए और करीब 100 डौलर अपनी मां को भेजे. मां ने शादी की तैयारियां शुरू कर दी थीं. राहुल समयसमय पर अपनी मां को फोन कर के बात करता रहता था.

21 मई, 2013 को राहुल ने आस्ट्रेलिया से अपनी मां को फोन कर के हालचाल पूछना चाहा तो मां का फोन बंद मिला. उस ने 2-3 बार मां को फोन मिलाया, पर हर बार फोन बंद ही मिला. उस ने 22 मई को फिर से मां को फोन किया. उस दिन भी उन का फोन स्विच्ड औफ था. बहन हिना का फोन भी बंद था.

राहुल परेशान था कि दोनों के फोन क्यों नहीं मिल रहे. फिर उस ने अपने जीजा विकास मल्होत्रा को फोन कर कहा, ‘‘जीजाजी, पता नहीं क्यों मां और हिना का फोन नहीं मिल रहा है. मैं कल से कोशिश कर रहा हूं. आप वहां जा कर पता तो करें, क्या बात है?’’

‘‘ऐसी तो कोई बात नहीं है. मैं और आशमा कल रात को वहीं थे. हो सकता है वे लोग सो रहे हों या कोई सामान खरीदने बाजार गए हों. फिर भी मैं जा कर देखता हूं.’’ विकास ने कहा. उस के बाद विकास अपनी पत्नी आशमा को ले कर ससुराल गया.

दोनों ने वहां जा कर देखा तो मकान का मुख्य दरवाजा बंद जरूर था पर उस में कुंडी नहीं लगी थी. असमंजस की हालत में विकास ने अंदर जा कर देखा तो नीचे वाले कमरे में बैड पर सास ऊषा की खून से लथपथ लाश पड़ी थी.

मां की लाश देख कर आशमा की चीख निकल गई. विकास भी घबरा गया और सोचने लगा कि हिना कहां है. इस के बाद उस ने ऊपर के फ्लोर पर जा कर देखा तो बाथरूम के बाहर हिना की भी खून सनी लाश पड़ी थी. उस की लाश के पास दीवार पर खून से ‘बाब’ लिखा हुआ था. बाब यानी बाबू.

विकास को यह समझते देर नहीं लगी थी कि ये दोनों हत्याएं बाबू सेनेटरी वाले ने ही की है. क्योंकि वह हिना को अकसर परेशान करता था. विकास ने इस की सूचना थाना डिवीजन-3 को दे दी. साथ ही उस ने फोन द्वारा राहुल को भी बता दिया.

सूचना मिलते ही इंसपेक्टर बृजमोहन, एसआई प्रीतपाल सिंह, एएसआई राजवंत पाल, हवलदार वरिंदर पाल सिंह, सरजीत सिंह और सिपाही राजिंदर सिंह के साथ बताए गए पते की तरफ रवाना हो गए.

घटनास्थल पर पहुंच कर उन्होंने लाशों का मुआयना किया तो पता चला कि उन की हत्या किसी धारदार हथियार से की गई थी. मौके पर उन्होंने क्राइम टीम को बुलवाया. कई जगह से फिंगरप्रिंट और खून के सैंपल लिए और दोनों लाशों को पोस्टमार्टम के लिए सिविल अस्पताल भेज दिया.

प्राथमिक पूछताछ में विकास मल्होत्रा से यह बात भी पता चली थी कि वारदात को अंजाम देने के बाद हत्यारे घर में रखे 4 लाख रुपए, 100 डौलर और सोने की एक चेन भी ले गए थे. विकास के बयानों के आधार पर पुलिस ने इस दोहरे हत्याकांड का मुकदमा आईपीसी की धारा 302, 460 के तहत दर्ज कर के तफ्तीश शुरू कर दी.

विकास ने इस हत्याकांड का शक बाबू पर जाहिर किया था और दीवार पर भी खून से ‘बाब’ लिखा हुआ था, इसलिए इंसपेक्टर बृजमोहन ने बाबू को हिरासत में ले कर पूछताछ शुरू कर दी.सख्ती से पूछताछ करने पर भी बाबू इस हत्याकांड के बारे में कुछ नहीं बता पाया था. उस का कहना था कि वह हिना का पीछा जरूर करता था पर इन हत्याओं में दूरदूर तक भी उस का कोई हाथ नहीं है.

अचानक पुलिस को शक हुआ कि कहीं पैसों के लालच में विकास ने ही तो इस घटना को अंजाम नहीं दिया क्योंकि उसे भी पता था कि घर में इतना कैश रखा है. फोरेंसिक रिपोर्ट में यह बताया गया था कि घटनास्थल से मिले खून के सैंपल के साथ एक किसी तीसरे आदमी का भी खून था, जो शायद हत्यारे का था.

इन्हीं आशंकाओं को देखते हुए पुलिस ने विकास से पूछताछ की. विकास ने भी खुद को बेकसूर बताया. उस से की गई पूछताछ के बाद भी पुलिस को हत्यारों से संबंधित कोई सुराग नहीं मिला.

संभावनाओं का पिटारा पुलिस के सामने खुला हुआ था. लेकिन अभी तक कोई ठोस लीड नहीं मिल रही थी. तफ्तीश के दौरान पुलिस को एक ऐसा शख्स मिला, जिस ने हत्यारे को घर से निकलते देखा था और वह उसे अच्छी तरह से पहचानता भी था.

इस के बाद पुलिस ने अन्य सबूत जुटाने के लिए हिना के मोबाइल फोन की काल डिटेल्स निकलवा कर खंगाली. उस में कई संदिग्ध नंबर थे. उन सभी नंबरों में एक नंबर ऐसा भी था जिस पर हिना की सब से ज्यादा बातें होती थीं. वह नंबर हिना के चचेरे भाई रिशु ग्रोवर का था.

इस हत्याकांड के 2 दिन बाद राहुल भी आस्ट्रेलिया से आ गया. 25 मई को ही वह इंसपेक्टर बृजमोहन से मिला. राहुल ने बताया कि रिशु ने उस की बहन हिना से नाजायज संबंध बना लिए थे. इतना ही नहीं वह हिना को ब्लैकमेल कर उस से पैसे भी ऐंठता रहता था.

राहुल के बयानों ने इस केस का पासा पलट दिया और कातिल सामने आ गया. पता चला कि हिना और ऊषा का हत्यारा कोई और नहीं बल्कि रिशु ग्रोवर था.

पुलिस ने रिशु को हिरासत में ले लिया. रिशु के खून की जांच कराई गई तो वह उसी खून से मैच कर गया जो घटनास्थल पर मृतकों के अलावा मिला था. रिशु से सख्ती से पूछताछ की गई तो उस ने अपना जुर्म कबूल कर लिया. उस की निशानदेही पर इंसपेक्टर बृजमोहन ने नाले से हत्या में इस्तेमाल खंजर, प्लास्टिक के दस्ताने और एक रूमाल बरामद किया.

पुलिस ने हत्या के बाद लूटे हुए पैसों में से 2 लाख 11 हजार रुपए और 100 डौलर भी बरामद कर लिए. काररवाई पूरी करने के बाद रिशु को न्यायिक हिरासत में जेल भेज दिया गया था.

तफ्तीश पूरी करने के बाद इंसपेक्टर बृजमोहन ने एक महीने बाद इस केस की चार्जशीट अदालत में दाखिल कर दी थी. पुलिस ने अदालत में तमाम गवाह पेश किए. उन में एक ऐसी महिला गवाह थी जिस ने इस हत्याकांड को अंजाम देने के बाद रिशु को घटनास्थल से फरार होते देखा था. दरअसल वह महिला रोज तड़के ढाई बजे सेवा करने के लिए गुरुद्वारा साहिब जाती थी. उसी समय उस ने रिशु को ऊषा के घर से निकलते देखा था.

अदालत ने उस महिला की गवाही को अहम माना. तमाम गवाहों और सबूतों के आधार पर एडिशनल सेशन जज अरुणवीर वशिष्ठ ने रिशु ग्रोवर को दोषी ठहराया.

रिशु को दोषी ठहराने के बाद लोगों के जेहन में एक ही सवाल घूम रहा था कि पता नहीं 13 सितंबर को जज साहब उसे कौन सी सजा सुनाएंगे. लोगों के 3 दिन इसी ऊहापोह की स्थिति में गुजरे. आखिर वो दिन भी आ गया जो माननीय जज ने सजा सुनाने के लिए मुकर्रर किया था.

13 सितंबर को तमाम लोग बड़ी बेताबी के साथ कोर्टरूम में पहुंच गए थे. सुबह ठीक 10 बजे माननीय जज अदालत में बैठे. उन्होंने केस फाइल पर नजर डालते हुए कहा कि जिला अटौर्नी रविंदर कुमार अबरोल की दलीलों, गवाहों के बयानों और मौके पर मिले अन्य साक्ष्यों से यह बात पूरी तरह साबित हो जाती है कि रिशु ग्रोवर ने अपनी ताई और हिना को खंजर से ताबड़तोड़ वार कर के बेरहमी से मार डाला था.

रिशु चचेरी बहन से अवैध संबंध बना कर उसे ब्लैकमेल कर पैसे वसूलता था, जबकि 6 महीने बाद उस की शादी होनी थी. लिहाजा ब्लैकमेलिंग का धंधा व पैसा मिलना बंद होने की रंजिश में उस ने ही दोहरे हत्याकांड को अंजाम दिया था और हिना की शादी के लिए घर में रखा सारा पैसा लूट लिया था.

रिशु इतना शातिरदिमाग था कि दोहरे हत्याकांड को अंजाम देने के बाद उस ने पुलिस को गुमराह करने के लिए घर में रखे गहने व कैश भी गायब कर दिए थे. साथ ही दीवार पर खून से ‘बाब’ लिख दिया था, जिस से पुलिस उस तक न पहुंच सके.

दोषी की घृणित मानसिकता से यह बात भी स्पष्ट हो जाती है कि उस ने जघन्यतम अपराध किया है. ऐसे आदमी को समाज में रहने का कोई अधिकार नहीं है. अभियोजन पक्ष ने अपनी चार्जशीट में आरोपी पर जो आरोप लगाए हैं, वह उन्हें पूरी तरह से साबित करने में सक्षम रहा है.

आरोपी का दोष पूरी तरह से साबित होता है, लिहाजा भारतीय दंड संहिता की धारा 302 के अंतर्गत दोषी रिशु ग्रोवर को अदालत मृत्युदंड की सजा सुनाती है. अपना फैसला सुनाने के बाद न्यायाधीश अरुणवीर वशिष्ठ ने अपनी कलम की निब तोड़ दी और उठ कर अपने चैंबर में चले गए. रिशु ग्रोवर को फांसी की सजा सुनाए जाने पर आशमा और उस के पति विकास ने संतोष व्यक्त किया.

अपनी दुधारू गाय खुद तैयार कीजिए-भाग 7 

 लेखक– डा. संजीव कुमार वर्मा, प्रधान वैज्ञानिक (पशु पोषण)

भा. कृ. अनु. प. – केंद्रीय गौवंश अनुसंधान संस्थान, मेरठ

गाय के गर्भकाल के 8 महीने

छठे अंक में आप ने पढ़ा था : गाय जब पहली बार हीट में आती है, तो इंतजार करना चाहिए. इस के तीसरे महीने के बाद दोबारा हीट में आने के बाद किसी अच्छे सांड़ से गाभिन करवा देना है. इस में पहले से दूध के अनुपात में गाय को उस के महीनों के हिसाब से पोषण वाला चारा देना चाहिए. जब

8 महीने पूरे हो जाएं तब… 

अब आप की गाय के गर्भकाल के 8 महीने पूरे हो चुके हैं. 9वां महीना शुरू हो चुका है और यही समय है जब आप को अपनी गाय का दूध निकालना बंद कर देना है.

ये भी पढ़ें- बंजर धरती में उगाया सोना

इस समय तक गाय का दूध उस के उच्चतम उत्पादन का तकरीबन एकतिहाई रह गया है और अब आप को चाहिए कि उस का दूध निकालना बंद कर दिया जाए. दूध निकालना बंद करने की 2 अहम वजहें हैं :

पहली वजह तो यह कि इस समय गर्भ की बढ़वार तेजी से हो रही होती है तो उसे अधिक पोषण चाहिए. अगर गाय से दूध निकाला जाता रहा तो गर्भ की बढ़वार ठीक से नहीं होगी.

वहीं दूसरी वजह यह कि गाय को बच्चा देने से पहले अपने अयन की मरम्मत करने के लिए कम से कम 40 दिन का समय चाहिए, तभी अगले ब्यांत के लिए अयन और थन तैयार हो सकेंगे.

ये भी पढ़ें- अदरक की वैज्ञानिक विधि से खेती

कुछ माहिरों का कहना है कि इस समय गाय का दूध निकालना धीरेधीरे बंद करना चाहिए, मगर अनुसंधानों से यह पता चला है कि दूध निकालना एकदम से बंद कर देना चाहिए. अगर दूध निकालते रहेंगे तो थनों के प्रवेश द्वार पर किरेटिन प्रोटीन का जो प्लग बनना चाहिए, वह नहीं बनेगा और थनों से दूध आता ही रहेगा और अयन और थनों को आराम मिलेगा ही नहीं.

जैसे ही आप दूध का दुहान बंद करेंगे तो वहां एक खास तरह का प्रोटीन आ कर जम जाएगा और थन को बंद कर देगा. थनों के अंदर जो दूध है, वह पशु के शरीर द्वारा वापस सोख लिया जाएगा.

9वें महीने में खानपान

इस समय गाय को उतना ही पोषण देना है, जितना उस के गर्भ की बढ़वार के लिए और गाय की शरीर रक्षा के लिए जरूरी है. बहुत ज्यादा पोषण देने से यह समस्या आएगी कि दूध का उत्पादन होता रहेगा और गाय का दूध सुखाने में समस्या आएगी. इस समय भी वही

ये भी पढ़ें- गन्ने के खास गुण

3 स्थितियां हो सकती हैं :

* आप के पास हरा चारा बहुत कम है और जो हरा चारा उपलब्ध है, वह गैरदलहनी चारा है और आप के पास पर्याप्त भूसा और प्रचुर मात्रा में रातिब मिश्रण उपलब्ध है.

* आप के पास हरा चारा भी पर्याप्त मात्रा में है और भूसा भी और रातिब मिश्रण भी.

* आप के पास दलहनी और गैरदलहनी हरा चारा पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध है, भूसा भी है, मगर रातिब मिश्रण लिमिटेड है या बिलकुल नहीं है.

स्थिति 1 : इस स्थिति में 8 महीने गर्भ के पूरे कर चुकी गर्भवती गाय को 4 किलोग्राम गैरदलहनी हरा चारा, 6.5 किलोग्राम भूसा और 3.25 किलोग्राम 16 फीसदी क्रूड प्रोटीन वाला रातिब मिश्रण देना होगा. चूंकि इस में रातिब मिश्रण की मात्रा अधिक है, इसलिए यह अधिक  महंगा साबित होगा और उत्पादन लागत बहुत अधिक होगी.

ये भी पढ़ें- युवाओं ने की पहल तो खेती में मिली सफलता

इस स्थिति में गाय के भरणपोषण का खर्च व अन्य खर्चे मिला कर कुल खर्च 194 रुपए प्रतिदिन होगा.

16 फीसदी क्रूड प्रोटीन वाला 100 किलोग्राम रातिब मिश्रण बनाने के लिए मक्का 40 किलोग्राम, गेहूं का चोकर 40 किलोग्राम, सरसों की खली 17 किलोग्राम, अच्छी गुणवत्ता का विटामिन मिनरल मिक्सचर 2 किलोग्राम और साधारण नमक 1 किलोग्राम को भलीभांति मिलाने की जरूरत होगी.

स्थिति 2 : इस स्थिति में 8 महीने गर्भ के पूरे कर चुकी गर्भवती गाय को 2.5 किलोग्राम दलहनी चारा, 6.5 किलोग्राम गैरदलहनी हरा चारा, 6 किलोग्राम भूसा और 2.25 किलोग्राम 16 फीसदी क्रूड प्रोटीन वाला रातिब मिश्रण प्रतिदिन देंगे.

इस स्थिति में गाय के भरणपोषण का खर्च व दूसरे खर्चों को मिला कर कुल खर्च 178 रुपए प्रतिदिन होगा.

स्थिति 3 : इस स्थिति में 8 महीने गर्भ के पूरे कर चुकी गर्भवती गाय को 6.5 किलोग्राम दलहनी हरा चारा, 6.5 किलोग्राम गैरदलहनी हरा चारा, 6 किलोग्राम भूसा और 1.25 किलोग्राम 16 प्रतिशत क्रूड प्रोटीन वाला रातिब मिश्रण प्रतिदिन देने से भी सभी पोषण जरूरतें पूरी हो जाएंगी और यह सब से सस्ता भी होगा.

इस स्थिति में गाय के भरणपोषण का खर्च व दूसरे खर्चों को मिला कर कुल खर्च 165 रुपए प्रतिदिन होगा.

यही भरणपोषण तब तक जारी रखना है, जब तक कि आप की गाय बच्चा न दे दे. इस के बाद फिर वही चक्र चालू होगा, जो इस गाय का हुआ था. ब्याने के तुरंत बाद उस के दूध के उत्पादन के अनुसार भरणपोषण करते रहना होगा.

इस के अलावा यही वह समय है, जो तय करेगा कि आप की गाय अगले दुग्धकाल में कितना दूध देगी और उस को मैस्टाइटिस होगा या नहीं, क्योंकि मैस्टाइटिस ब्याने से पहले भी हो सकता है और ब्याने के तुरंत बाद में भी.

8 महीने आतेआते आप की गाय का दूध एकतिहाई रह जाएगा. अगर इस की मात्रा अभी 5 किलोग्राम तक भी है तो भी कोई बात नहीं, आप दूध का दुहान एकदम से बंद कर दीजिए.

एक बार दुहान बंद करने के बाद फिर दुहान नहीं करना है. दुहान बंद होते ही थनों में किरेटिन का प्लग बन जाएगा और जो दूध अंदर है, वह वापस सोख लिया जाएगा.

अब यह प्लग तभी होगा, जब गाय बच्चा दे चुकी होगी. अगर यह प्लग न बना या बच्चा देने से पहले हट गया तो गाय को मैस्टाइटिस होने के चांस बढ़ जाएंगे.

अगर दूध की मात्रा एकतिहाई नहीं पहुंची हो तो बताए गए पोषण प्लान को चालू करते ही दूध की मात्रा अपनेआप घट जाएगी और आप को दूध सुखाने में कोई दिक्कत नहीं होगी.

दूध की मात्रा कम करने के लिए पानी पिलाना कम कर देना उचित नहीं है. इस हालत में गाय को पानी की कमी नहीं होनी चाहिए.

इस समय आप को एक काम और करना है कि दूध निकालना बंद करने के बाद गाय को किसी भी तरह का तनाव नहीं होना चाहिए, खासकर गरमी का तनाव. अगर मौसम गरम है तो आप को गाय को ठंडक देने की कोशिश करनी होगी. वह चाहे छाया कर के, पंखे या स्प्रिंकलर लगा कर करनी हो.

अगर इस समय गाय हीट स्ट्रैस में रही तो उस के अयन के टिशूज का विकास अच्छी तरह नहीं होगा और आने वाले दुग्धकाल में वह ज्यादा दूध नहीं दे सकेगी.

इस समय अगर आप की गाय दूसरी गायों के साथ ही रहती है तो आप को उसे दूसरी गायों की टक्कर से बचा कर रखना है. अगर झुंड में कोई भी पशु ऐसा है जो हमलावर है तो या तो उस पशु को अलग कर देना है या इस गर्भवती गाय को.

एक बार और इस समय गाय को अलग से कोई कैल्शियम या फास्फोरस नहीं देना है. जितना चारे और रातिब में मौजूद है, वही ठीक है. अगर इस समय ज्यादा कैल्शियम दिया तो बच्चा देने के बाद गाय को मिल्क फीवर होना ही होना है.

9 महीने का समय पूरा होने के बाद गाय कभी भी बच्चा दे सकती है.

ट्रम्प-मोदी : दोस्त कैसे कैसे

अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प और भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र दामोदरदास मोदी एक दूसरे के ‘बेस्ट फ्रेंड’ होने का दावा करते हैं. दोनों को एक दूसरे का साथ पसंद आता है. दोनों एक सी सोच रखते हैं, एक सी बातें करते हैं. दोनों की ही नीति-अनीति, शोहरत-बदनामी, कृत्य-अकृत्य लगभग सामान हैं. ट्रम्प और मोदी दोनों की प्रवृत्ति एक सी है और कोई भी आदमी अपने जैसी ही प्रवृत्ति वाले आदमी से दोस्ती गांठता है, इसलिए भले ही दोनों की पारिवारिक पृष्ठभूमि एक दूसरे से बिलकुल भिन्न हो मगर यह दोस्ती कुछ असामान्य नहीं है.

दरअसल मोदी और ट्रम्प इमोशनल दोस्त से इतर ‘राजनितिक फ्रेंड’ या ‘पोलिटिकल फ्रेंड’ ज़्यादा हैं. उनकी दोस्ती राजनितिक लक्ष्यों को पाने के स्वार्थ में रची-बसी है. वो अपने अपने राजनितिक फायदों के लिये एक दूसरे से गलबहियां भी करते हैं और एक दूसरे के सिर आरोप भी मढ़ते हैं. वे एक दूसरे की तारीफ भी करते हैं और वक़्त पड़े तो नीचा भी दिखा सकते हैं, जैसा कि ट्रम्प साहब के हालिया कृत्यों और आरोपों से सिद्ध भी होता है. ऐसे दोस्त जो एक दूसरे को धमकाएं भी और प्यार भी करें. राजनीति की बिसात पर कब-कब, कैसी-कैसी चालें चलनी हैं, यह बात दोनों बखूबी जानते हैं.

ये भी पढ़ें- भगवा ब्रिगेड के निशाने पर अब खेती-किसानी

याद होगा कि जब कोरोना से बचाव की दवा हाइड्रोक्लोरोक्वीन की बड़ी चर्चा हो रही थी और माना जा रहा था कि कोरोना वायरस के खात्मे में यह दवा कारगर है और दुनिया भर में इसकी बड़ी मांग हो रही थी, तब भारत द्वारा अमेरिका को सप्लाई भेजने में हुई देरी पर ट्रम्प ने कैसे मोदी को धमकाया था. फिर जब मोदी सरकार ने दवा की खेप भेज दी तो कैसे ट्रम्प लहरा-लहरा कर मोदी को अपना प्यारा दोस्त बताने लगे थे. ये ऐसी दोस्ती है जिसे राजनीति के लिए कभी लताड़ा जा सकता है तो कभी दुलारा जा सकता है.

आरोपों की ओट में नाकामी छुपाने की कोशिश

अमेरिका में फिलहाल राष्ट्रपति चुनाव की बेला है. ट्रम्प की किस्मत दांव पर लगी है और ट्रम्प अपने चार साल के प्रशासन की खामियां और कमियां छिपाने के लिए चीन और रूस सहित भारत सरकार और मोदी पर आरोपों की बौछार कर रहे हैं, बिलकुल वैसे ही जैसे मोदी अपनी नाकामियों को कांग्रेस के पूर्व प्रधानमंत्रियों के मत्थे मढ़ते हैं. इस चुनाव में ट्रम्प ने अपने करीबी प्रतिद्वंदी जो बिडेन से बहस के दौरान भारत पर कोरोना संक्रमितों और कोरोना से हुई मौतों का आंकड़ा छिपाने का आरोप लगाया है क्योंकि वे खुद अमेरिका में कोरोना के बढ़ते मामलों पर अंकुश लगा पाने में असफल साबित हुए हैं. अपनी नाकामी पर पर्दा डालने के लिए ट्रम्प अपने ‘बेस्ट फ्रेंड’ को संकट में डालने से नहीं चूके. मगर मोदी ने भी दोस्ती की लाज रखी और ट्रम्प के आरोपों के ज़हर को नीलकंठ की तरह पी गए.

ये भी पढ़ें- हठधर्मी भगवा सरकार का सदन पर कब्जा

तो ऐसे ‘बेस्ट फ्रेंड’ जो अपने राजनितिक लक्ष्यों को साधने के लिए दोस्त की इमेज की धज्जियां उड़ा दें, सिर्फ राजनिति के मैदान में ही पाए जाते हैं. गौरतलब है कि ट्रम्प के आरोपों से भारत में मोदी सरकार की काफी किरकिरी हुई है. कोरोना के मामले में सरकार द्वारा बताई जा रही कोरोना संक्रमितों और मरने वालों की सही संख्या पर संशय पैदा हो गया है. विपक्षी दलों ने इस पर मोदी सरकार को आड़े हाथों लिया है.

धर्म और राष्ट्रवाद भुनाने में माहिर

देखा जाए तो मोदी और ट्रम्प एक दूसरे से काफी भिन्न पृष्ठभूमि वाले परिवारों से आते हैं. ट्रम्प जहाँ अमेरिका में एक दिग्‍गज प्रॉपर्टी कारोबारी के बेटे हैं, वहीं, नरेंद्र मोदी गरीब परिवार से आते हैं जिन्‍होंने बचपन में चाय तक बेची है. यह अलग बात है कि राजनीती की बिसात पर दोनों शीर्ष नेताओं में कई समानताएं हैं. 74 साल के ट्रम्प और 70 साल के मोदी की जबर्दस्‍त लोकप्रियता है. राजनीतिक दलों के कैंपेन में इनके चेहरे मुख्‍य आकर्षण होते हैं. नस्लवादी, दक्षिणपंथी, छद्म राष्ट्रवाद के प्रचारक जैसे आरोप दोनों पर लगते रहे हैं. ट्रम्प प्रशासन का फोकस जहाँ प्रवासियों को अमेरिका में आने से रोकना हैं, वहीँ मोदी भी संघ के इशारे पर मुसलामानों के खिलाफ खड़े दिखते हैं. ट्रम्प ने कई देशों के नागरिकों पर अमेरिका में घुसने पर रोक लगाईं जिसका असर मुस्लिम बहुल देशों पर खास तौर से पड़ा. वहीं, मोदी नागरिकता कानून के जरिये मुस्लिक प्रवासियों के साथ भेदभाव करना चाहते हैं. दोनों अपने-अपने देशों में राष्‍ट्रीयता को बढ़चढ़ कर बढ़ावा देते हैं. जहां ट्रम्प ने ”अमेरिका फर्स्‍ट” के जरिये इस मुहिम को आगे बढ़ाया है, वहीं, मोदी ने ”मेक इन इंडिया” के जरिये इसको प्रमोट किया है. दोनों को अपने-अपने देशों में दक्षिण पंथियों का जोरदार समर्थन मिला हुआ है. दोनों धर्म और राष्ट्रवाद जैसी भावुकता को भुनाना भलीभांति जानते हैं. जिस तरह 2016 में डोनाल्ड ट्रम्प ने मुसलमानों के प्रति अपने नजरिये को जाहिर करते हुए राष्ट्रपति बनते ही अमेरिका में उनकी एंट्री पर पाबंदी लगाने का वादा किया था, दुनियाभर का सेक्युलर और लिबरल वर्ग उन्हें एक सनकी उम्मीदवार मान रहा था, बावजूद इसके राष्ट्रवाद की कश्ती में सवार होकर ट्रम्प चुनाव जीत गए थे. इस्लामोफोबिया का सहारा लेकर डोनाल्ड ट्रम्प दुनिया की सबसे ताकतवर गद्दी पर काबिज होने में सफल हो गए. बिलकुल उसी तरह जैसे मोदी 2002 में हुए गुजरात दंगों का सहारा लेकर तीन बार गुजरात की सत्ता पर काबिज़ हुए और फिर इसी छद्म राष्ट्रवाद की कश्ती में बैठ कर केंद्र तक पहुंच गए और दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र की कमान अपने हाथ में ले ली. जिस तरह मोदी ने 2014 में ‘अच्छे दिन’ का वादा किया, ठीक उसी तरह डोनाल्ड ट्रंप ‘मेक अमेरिका ग्रेट अगेन’ (अमेरिका को एक बार फिर महान बनाने) का दावा किया. जिस तरह मोदी ने आजादी के बाद से अब तक 60 साल के कांग्रेस राज को निशाना बनाते हुए देश की गरीबी और पिछड़ेपन के लिए कांग्रेस के दिए प्रधानमंत्रियों को जिम्मेदार ठहराया,

ये भी पढ़ें-  संविधान भक्त कोर्ट के कठघरे में

ठीक उसी तरह डोनाल्ड ट्रम्प ने डेमोक्रैट पार्टी और डेमोक्रैटिक राष्ट्रपतियों को अमेरिका की शक्ति कम करने के लिए जिम्मेदार ठहराया. 2014 के चुनावों में भाजपा ने अपने चुनावी घोषणापत्र में बांग्लादेश से असम और अन्य उत्तर-पूर्वी राज्यों में शरणार्थियों की समस्या उठाते हुए दावा किया था कि सत्ता में आते ही वह भारत-बांग्लादेश सीमा पर कटीले तारों की रेखा खींच कर बांग्लादेशियों द्वारा सीमा लांघने की कोशिश को पूरी तरह से रोक देंगे. ठीक उसी तरह डोनाल्ड ट्रम्प ने अमेरिका में क्राइम और ड्रग ट्रैफिकिंग के लिए मेक्सिको से आ रहे गैरकानूनी शरणार्थियों को जिम्मेदार ठहराते हुए राष्ट्रपति बनने पर अमेरिका-मेक्सिको सीमा पर ऊंची दीवार खड़ी करवाने का दावा किया था. मोदी-ट्रम्प के बीच यही तमाम बातें हैं जो दोनों के अच्‍छे रिश्‍तों की एक बड़ी वजह हैं. साल 2016 में सारे अनुमानों के विपरीत डोनाल्ड ट्रंप अमरीका के राष्ट्रपति बने. बीते चार सालों में उनका इस पद पर होना हर तरीक़े से चुनौतीपूर्ण रहा.

कोरोना पर घिरे तो क्या बोले ट्रम्प

अमेरिका में राष्ट्रपति चुनाव की सरगर्मियां तेज़ हैं. ऐसे में अभी कई राउंड की बहस ट्रम्प और उनके प्रतिद्वंदी जो बिडेन के बीच होगी. इन बहसों के दौरान ट्रम्प अपने प्रशासन की कमियां और खामियां छुपाने के लिए अपने ‘बेस्ट फ्रेंड’ मोदी को और कितने संकट में डालेंगे कहा नहीं जा सकता. ट्रम्प के प्रतिद्वंदी जो बिडेन अमेरिका में कोरोना संक्रमण और अर्थव्यवस्था के मुद्दे पर ट्रम्प को बुरी तरह घेरे हुए हैं. नस्लभेद के मुद्दे और शहरी हिंसा के मामलों पर भी बात करने को लेकर ट्रम्प बचते रहे हैं. कोरोना वायरस महामारी हमेशा से ही राष्ट्रपति ट्रम्प के बोलने के लिए मुश्किल विषय रहा है. जो बिडेन के साथ बहस में यह विषय शुरू से ही काफी गर्म रहा. डोनाल्ड ट्रम्प को यह बताना था कि उन्होंने कोरोना महामारी से लड़ने के लिए क्या किया, जिससे अमरीका में अब तक दो लाख से ज़्यादा लोगों की मौत हो चुकी हैं. मगर ट्रम्प के पास इस पर बोलने या अपने बचाव के लिए कुछ नहीं था. लिहाज़ा उन्होंने अपनी नाकामियां छिपाते हुए बात को घुमा कर संक्रमितों की सही संख्या ना बताने का दोष चीन और रूस के साथ-साथ भारत के सिर भी मढ़ दिया. जी हाँ, अपने उसी ‘बेस्ट फ्रेंड’ को ट्रम्प ने झूठा करार दे दिया जिन्होंने भारत में ट्रम्प के सम्मान में ‘नमस्ते ट्रम्प’ का आयोजन बड़े जोर शोर से किया था. ट्रम्प महाशय ने भारत सरकार पर कोरोना वायरस महामारी के संक्रमितों और मौत के आंकड़ों की विश्वसनीयता पर उंगली उठा दी और प्रेसिडेंशियल डिबेट के दौरान चीन और रूस के साथ भारत पर भी इस महामारी के आंकड़े छिपाने के आरोप लगा दिया. यही नहीं इस बहस में उन्होंने इन्ही तीन देशो पर सबसे अधिक वायु प्रदूषण करने का भी आरोप लगाया.

ये भी पढ़ें- राजनीति अमेरिका में उपराष्ट्रपति पद की उम्मीदवार भारतीय मूल की कमला हैरिस

ना योजना ना नीति

उल्लेखनीय है कि ट्रम्प के कार्यकाल में जहाँ अमेरिका कमज़ोर हुआ है, बीमार हुआ है, ग़रीब हुआ है, पहले से ज़्यादा विभाजित दिखता है और पहले से ज़्यादा हिंसक भी हो गया है, यही बातें मोदी सरकार के कार्यकाल में भारत के अंदर भी देखने को मिलती हैं. अपने-अपने देशों में बढ़ते कोरोना केसेस और गिरती इकॉनमी से निपटने का कोई रास्ता ना डोनाल्ड ट्रम्प के पास है और ना नरेंद्र मोदी के पास. दोनों बस राष्ट्रवाद और धर्म का नाम लेकर जन समर्थन बटोर रहे हैं.
उल्लेखनीय है कि अमेरिका में 70 लाख लोग कोरोना वायरस से संक्रमित हुए हैं लेकिन राष्ट्रपति ट्रम्प के पास इससे निपटने की कोई योजना न थी, ना है. वहीँ भारत में कोरोना केस 63 लाख से ऊपर पहुंच गए हैं मगर ताली-थाली और दीया-बत्ती के अलावा मोदी सरकार के पास इस बढ़ते संक्रमण को रोकने का कोई उपाय नहीं है.

सही समय पर नहीं उठाया सही कदम

वायरस संक्रमण अपने आप में महामारी नहीं होते. वे बचाव व नियंत्रण के सही क़दम सही वक़्त पर न उठाने के कारण महामारी बन जाते हैं. कोरोना महामारी के सन्दर्भ में भी यह बात स्पष्ट रूप से देखी जा सकती है. 30 जनवरी को भारत में कोरोना संक्रमण का पहला मामला सामने आया था. उसी दिन विश्व स्वास्थ्य संगठन ने कोरोना को “पूरी दुनिया के लिए स्वास्थ्य की एक चिन्ताजनक समस्या” करार दिया था. भारत सरकार समेत दुनिया की कई सरकारों को विश्व स्वास्थ्य संगठन ने लिखित चेतावनियाँ भेजीं थीं कि तत्काल अन्तरराष्ट्रीय यात्रियों व पर्यटकों की एयरपोर्ट पर ही जाँच व क्वारंटाइन करें, जहाँ कहीं भी पहला मामला सामने आया हो, उसमें संक्रमित व्यक्ति से सम्पर्क में आये सभी लोगों की जाँच व क्वारंटाइनिंग करें, व्यापक पैमाने पर परीक्षण, पहचान व उपचार की तत्काल शुरुआत करें. लेकिन भारत सरकार ने इनमें से कुछ भी नहीं किया. उल्टे इसी दौरान बड़े-बड़े राजनितिक समारोहों में लाखों की संख्या में लोगों को एकजुट किया गया. 24 फरवरी, 2020 को अहमदाबाद में ‘नमस्ते ट्रम्प’ का आयोजन हुआ और दोस्त ट्रम्प के स्वागत में लाखों की भीड़ को इकट्ठा किया गया. इसी दौरान मध्य प्रदेश में शिवराज सिंह चौहान के शपथ ग्रहण समारोह में भी लोगों का भारी जमावड़ा बिना मास्क और सोशल डिस्टेंसिंग के लगा.

इसके बाद जब कोरोना केसेस बढ़ने शुरू हुए तब तब्लीगी जमात के दिल्ली कार्यक्रम के लिए भी पहले दिल्ली पुलिस ने सबकुछ जानते हुए इजाज़त दी, फिर उन्ही को कोरोना संक्रमण का जिम्मेदार ठहराते हुए उनकी धरपकड़ करने लगे और संक्रमण फैलाने का सारा ठीकरा मुसलमानो के सिर फोड़ दिया.
मोदी सरकार कोरोना को कंट्रोल करने में पूरी तरह नाकाम रही, इसके कई कारण हैं. जिस वक़्त देश के गृहमंत्री और स्वास्थ मंत्रालय को कोरोना की गंभीरता को समझते हुए व्यापक कदम उठाने चाहिए थे उस समय मोदी-शाह की सरकार एनआरसी व सीएए पर चल रहे प्रदर्शनों का दमन करने में लगी रही. मध्यप्रदेश के विधायकों को ख़रीदने-तोड़ने और डराने-धमकाने के लिए भाजपा पैसे जुटा रही थी ताकि कमलनाथ की सरकार को गिराया जा सके; ट्रम्प के स्वागत के लिए ‘नमस्ते ट्रम्प’ कार्यक्रम के लिए मोदी सरकार जी-जान से लगी थी, क्योंकि उस पर कई व्यापारिक समझौते निर्भर थे, जो भारत के पूँजीपति वर्ग के लिए मौजूदा संकट के दौर में ज़रूरी थे. ट्रम्प भी अपनी भारत यात्रा को लेकर बहुत ज़्यादा उत्साहित थे. वो उस भीड़ को देखना चाहते थे जो मोदी ने उनके लिए जुटायी थी. भीड़ जिसको ना सोशल डिस्टेंसिंग की परवाह थी ना मास्क लगाने की.

इसी बीच मोदी सरकार पूँजीपतियों के लिए निजीकरण की आँधी चलाने में भी व्यस्त थी; मज़दूरों के हक़ों को छीनने के लिए यूनीफ़ॉर्म लेबर कोड पर भी इसी समय मोदी सरकार का काम जारी था; दिल्ली में हिंसा, दंगे और हिन्दू मुस्लिम ध्रुवीकरण की मुहीम भी चल रही थी. जनता का पैसा चोरी करके भागने वाले मेहुल चौकसी आदि का क़र्ज़ा माफ़ करवाने की योजनाएँ भी इसी समय बन रही थीं. यानी कि भारत के बड़े पूँजीपति वर्ग ने जिस काम के लिए मोदी को सत्ता में बिठाया, मोदी सरकार उन कामों को करने में व्यस्त थी. कोरोना काल शुरू हो चुका था मगर देश की जनता को कोरोना से बचाने के रास्ते ढूंढने की बजाय मोदी सरकार दूसरे कामों में व्यस्त थी. कोरोना संक्रमण को महामारी बनने से रोकने के लिए मोदी सरकार ने कोई तैयारी नहीं की, कोई नीति नहीं बनाई और जब मामला हाथ से निकल गया और कोरोना संक्रमण के मामलों में तेज़ी से बढ़ोत्तरी होने लगी, तो आनन-फ़ानन में देश की जनता पर लॉकडाउन थोप दिया गया.

क्या लॉक डाउन समस्या का समाधान था

गौरतलब है कि लॉकडाउन अपने आप में समस्या का समाधान नहीं कर सकता, बल्कि वह केवल कुछ वक़्त देता है जिसमें कि वायरस के फैलने की दर को कम किया जा सके, ताकि स्वास्थ्य सेवाओं पर अतिरेकपूर्ण दबाव न पड़े, जिसमें कि आक्रामक तरीक़े से जाँच, पहचान, क्वारंटाइनिंग व इलाज के ज़रिये संक्रमण को समाप्त किया जाये. इसके बिना लॉकडाउन का अर्थ केवल संक्रमण के फैलने की गति को कुछ समय के लिए कम करना मात्र होता है. जैसे ही लॉकडाउन हटता है, वैसे ही संक्रमण पहले से दोगुनी गति से फैलता है. यही भारत में हुआ है.

लॉक डाउन तो लगा दिया, जो जहां था उसको वहीँ कैद कर दिया मगर इस दौरान ना तो पर्याप्त संख्या में जाँचें हुईं और न ही क्वारंटाइनिंग व उपचार की कोई व्यापक सरकारी व्यवस्था की गयी. लॉक डाउन से समस्या का समाधान होने की बजाये समस्या ने तब विकराल रूप धारण कर लिया जब भूख से बेहाल प्रवासी मजदूर अपने अपने गाँव कस्बों को जाने के लिए लाखों की संख्या में पैदल ही निकल पड़े.
मोदी सरकार अगर योजनाबद्ध तरीके से लॉक डाउन देश की जनता पर लगाती तो उसकी सही रणनीति यह होनी चाहिए थी कि सरकार कुछ समय का लॉकडाउन करने से पहले सभी प्रभावित मज़दूरों के रहने, खाने-पीने की पूरी व्यवस्था करती, लोगों को भी तैयारी करने के लिए थोड़ा वक़्त देती. फिर इस लॉकडाउन की अवधि में व्यापक पैमाने पर जाँच, पहचान व इलाज करती और फिर क्रमिक प्रक्रिया में लॉकडाउन को हटाती. लेकिन लम्बे समय तक कुछ न करने के कारण बीमारी के फैल जाने के बाद मोदी सरकार के हाथ-पाँव फूल गये, उसे कुछ समझ नहीं आया कि करना क्या है और उसने अचानक लॉकडाउन कर दिया और उसे बढ़ाती गयी. यह अर्थव्यवस्था के लिए भारी नुक़सानदेह साबित हुआ. लॉकडाउन के दौरान व्यापक प्रवासी मज़दूर आबादी, ग़रीब आबादी, रोज़ कमाने-खाने वाली आबादी के लिए खाद्यान्न राशनिंग, नक़द वितरण, स्वास्थ्य व सफ़ाई की उचित व्यवस्था मुहैया कराने के लिए मोदी सरकार ने कोई काम नहीं किया. नतीजतन, लॉक डाउन अपने आप में मज़दूर वर्ग के लिए एक अभूतपूर्व त्रासदी बन गया. यदि लॉक डाउन को सही तैयारी और योजना के साथ और उसके साथ उठाये जाने वाले सारे क़दमों के साथ लागू किया जाता, तो संक्रमण के इस चरण में वह एक सही क़दम होता. लेकिन ऐसा नहीं हुआ, जिसकी क़ीमत देश के मेहनतकश-मज़दूर और पूरी आबादी आज चुका रही है.

अर्थव्यवस्था की बर्बादी

गौरतलब है कि कोरोना वायरस के भारत में पहुंचने से पहले ही देश की अर्थव्यवस्था की हालत चिंताजनक थी. कोविड-19 का संक्रमण ऐसे वक़्त में फैला है जब भारत की अर्थव्यवस्था मोदी सरकार के साल 2016 के नोटबंदी के फ़ैसले की वजह से आई सुस्ती से अभी उबर ही नहीं पाई थी. नोटबंदी के ज़रिए सरकार कालाधन सामने लाने की बात कह रही थी, मगर ऐसा हुआ नहीं, उलटे भारत जैसी अर्थव्यवस्था जहां छोटो-छोटे कारोबार कैश पेमेंट पर ही निर्भर थे, इस फैसले से उनकी कमर टूट गई. अधिकतर धंधे नोटबंदी के असर से तबाह हो गए, अनेक छोटे व्यापारी इससे उबरने की कोशिश कर रहे थे कि इसी बीच कोरोना वायरस की मार पड़ गई. गौरतलब है कि भारत में असंगठित क्षेत्र देश की करीब 94 फ़ीसदी आबादी को रोज़गार देता है और अर्थव्यवस्था में इसका योगदान 45 फ़ीसदी है. कोरोना के कारण हुए लॉक डाउन की वजह से असंगठित क्षेत्र पर बुरी मार पड़ी क्योंकि रातोंरात लोगों का रोज़गार छिन गया. करोड़ों लोग बेरोज़गार हो गए.

कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी इसके लिए केंद्र सरकार और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को दोषी मानते हैं जिनकी गलत नीतियों और बिना सोचे समझे लॉक डाउन लगा देने से अर्थव्यवस्था की गाड़ी पूरी तरह पटरी से उतर गयी. राहुल करारा हमला बोलते हैं, ‘पीएम मोदी की बनाई आपदाओं के कारण भारत बर्बाद हो रहा है. जीडीपी के नीचे गिरने से लेकर और सीमा पर तनाव जैसी समस्याएं पीएम मोदी की वजह से हैं. जीडीपी में ऐतिहासिक -23.9 फीसदी की गिरावट, 45 साल में सबसे ज्यादा बेरोजगारी, 12 करोड़ नौकरियां जाना, राज्यों को जीएसटी का बकाया ना देना, भारत में कोरोना के सबसे ज्यादा केस और मौतें, हमारी सीमाओं पर बाहरी आक्रामकता और तनाव इन सबके लिए मोदी जिम्मेदार हैं.’

दरअसल अर्थव्यवस्था की बर्बादी नोटबंदी से शुरू हुई थी और उसके बाद से मोदी सरकार द्वारा एक के बाद एक गलत नीतियां अपनाई हैं जिसके चलते आज हमारी जीडीपी -23.9 प्रतिशत नीचे गिर चुकी है. इसे वापस पटरी पर लाने में अब कितने साल लगेंगे कहना मुश्किल है.

हुंडई क्रेटा अब तक की सबसे बेहतर कार

हुंडई क्रेटा का 1.4 लीटर टर्बो पेट्रोल इंजन का पावरट्रेन अब तक का सबसे बेहतर माना जा रहा है. इसके साथ ही इसे 7 स्पीड डीसीटी के साथ जोड़ा गया है जो कि ब्लिस्टरिंग परफॉर्मेंस देता है.

ये भी पढ़ें- क्रेटा के डीजल इंजन में है यह पॉवर जिससे ट्रैफिक में नहीं होगी परेशानी
140 बीएचपी और 24.7 किलोमीटर का टार्क हाइवे पर ड्राइव को आसान बनाता है. आपको ये जानकर हैरानी होगी कि ट्रैफिक के दौरान भी कार को किसी तरह की कोई परेशानी नहीं होगी. इसलिए इसे कहते हैं #RechargeWithCreta.

बाहुबली एक्ट्रेस तमन्ना भाटिया हुई कोरोना की शिकार, फैंस ने कहीं ये बात

साउथ फिल्म की अदाकारा तमन्ना भाटिया के चाहने वालों के लिए एक बुरी खबर सामने आ रही है. एक्ट्रेस तमन्ना भाटिया कोरोना की शिकार हो गई हैं. जिसके बाद उन्हें हैदराबाद के एक अस्पताल में भर्ती कराया गया है. सामने आ रही खबरों की माने तो तमन्ना भाटिया अपनी फिल्म की शूटिंग में बिजी थीं. इसी दौरान उन्हें कोरोना के लक्षण महसूस होने लगें.

जिसके बाद अदाकारा की जांच रिपोर्ट पॉजिटीव पाई गई. फिलहाल तमन्ना भाटिया का इलाज हैदराबाद के निजी अस्पताल में चल रहा है. बता दें कि कुछ दिनों पहले तमन्ना भाटिया ने खुलासा किया था कि उनके माता –पिता भी कोरोना पॉजिटीव पाए गए थें. आगे उन्होंने खुलासा करते हुए लिखा था मैं और मेरे स्टॉफ पॉजिटीव पाएं गए हैं. उन्होंने कहा था कि इसकी जानकारी हमने प्रशासन को दे दी है. भगवान की दुआ से हम सुरक्षित हैं.

ये भी पढ़ें- ‘बिग बॉस 14’ के बेडरूम को देखकर फैंस हुए हैरान, तोड़े गए कोरोना के

बता दें कि हैदराबाद जानें से पहले तमन्ना भाटिया मुंबई के एक सैलून में स्पॉट कि गई थीं. बाहुबली अदाकारा तमन्ना भाटिया जल्द ही फिल्म ‘सीटीमार’ में नजर आएंगी. अदाकारा के एक्टिंग के लाखों दीवाने हैं. इस फिल्म में वह ज्वाला रेड्डी के किरदार में नजर आएंगी.

ये भी पढ़ें- एक्सपायरी डेटः प्यार,धोखा,विश्वास और प्रतिशोध की साधारण कथा

 

View this post on Instagram

 

#challengeaccepted Thank you @neeta_lulla @shrutzhaasan @billymanik81 @tanaaz for nominating me . STRONG WOMEN UPLIFT EACH OTHER ???

A post shared by Tamannaah Bhatia (@tamannaahspeaks) on

इसी बीच अदाकारा के फैंस उनकी सलामति के लिए दुआ कर रहे हैं. सभी चाहते हैं कि वह जल्द ठीक होकर वापस घर आ जाए. फिलहाल तमन्ना भाटिया ठीक हैं लेकिन उनका इलाज अस्पताल में ही चल रहा है. तमन्ना भाटिया कई फिल्मों में अपनी एक्टिंग से लोगों का दिल जीत चुकी हैं. वहीं तमन्ना भाटिया को सबसे ज्यादा बाहुबली फिल्म में पसंद किया गया था. इस फिल्म के बाद वह काफी ज्यादा चर्चा में आ गई थीं.

ये भी पढ़ें- ‘कसौटी जिंदगी 2’ के आखिरी एपिसोड में होगी इस शख्स की मौत, क्या एक हो

 

View this post on Instagram

 

A post shared by Tamannaah Bhatia (@tamannaahspeaks) on

फिलहाल वह कई फिल्मों की शूटिंग में व्यस्त है, अभी सभी एक ही चीज जानने की कोशिश कर रहे हैं कि वह जल्द ठीक हो जाएं.

‘ये रिश्ते हैं प्यार’ के सेट पर शूटिंग के आखिरी दिन इमोशनल हुई मिष्ठी

कोरोना के समय में कई सारे टीवी सीरियल्स बंद हो चुके हैं. कई नाम अभी- अभी लिस्ट में शामिल किए गए हैं. ऐसे में सीरियल ‘ये रिश्ते हैं प्यार के’ का नाम भी चर्चा में आ गया है. लगातार गिर रही टीआरपी को देखते हुए सो के मेकर्स ने यह फैसला लिया है कि इस सीरियल्स को भी ऑफ एयर किया जाए.

खबर है कि इस सीरियल के आखिरी एपिसोड को 17 अक्टूबर को ऑन एयर किया जाएगा.  ऐसे में सीरियल के आखिरी दिन की शूटिंग को पूरी कर ली गई है. इसके आखिरी दिन की शूटिंग के दिन सीरियल में लीड रोल में नजर आने वाली अदाकारा रिया शर्मा काफी भावुक नजर आ रही थीं. रिया शर्मा ने एक रिपोर्ट में बात करते हुए अपने इस सफर के सफर को काफी शानदार बताया है. वह इस सीरियल के साथ- साथ अपने साथ बहुत ज्यादा खूबसूरत यादें लेकर जा रही हैं. उन्हें खुद पर गर्व है कि वह इस सीरियल का हिस्सा बन पाई हैं.

ये भी पढ़ें- ‘बिग बॉस 14’ के बेडरूम को देखकर फैंस हुए हैरान, तोड़े गए कोरोना के

शूटिंग के आखिरी दिन रिया शर्मा के साथ-साथ बाकी अन्य सितारे भी निराश नजर आ रहे थें. सभी के चेहरे पर एक अलग तरही की अदासी नजर आ रही थी. सोशल मीडिया पर वायरल हो रही तस्वीर इस बात का जीता- जागता सबूत है कि सीरियल के सारे सितारे कितने दुखी थें.

ये भी पढ़ें- एक्सपायरी डेटः प्यार,धोखा,विश्वास और प्रतिशोध की साधारण कथा

बता दें कि सीरियल ‘ये रिश्ते है प्यार के’ को लास्ट ईयर मार्च में ऑनएयर किया गया था. जिसके बाद से लगातार उन्हें इस सीरियल के लिए कई तरह से चर्चा का विषय बन चुका है. इस सीरियल में लोगों ने खूब पसंद किया गया सारे कास्ट को. खैर दर्शकों को इस बात का दुख है कि यह सीरियल सिर्फ एक साल ही मनोरंजन कर पाया दर्शकों का.

ये भी पढ़ें- ‘कसौटी जिंदगी 2’ के आखिरी एपिसोड में होगी इस शख्स की मौत, क्या एक हो पाएंगे अनुराग-प्रेरणा?

ये भी पढ़ें- उत्तर प्रदेश में ‘फिल्मसिटी’ : सरकार का तमाशा,जनता के पैसे व शक्ति की बरबादी

हालांकि दर्शक कुछ दिन पहले इस बात का कयाल लगा रहे थे कि यह सीरियल टीआरपी में आ गया है इसके साथ ही वह बहुत ज्यादा लोगों के द्वारा पसंद भी किया जा रहा है तो इसे बंद होने के चांस खत्म हो गए थें.

डॉ. स्मिता सिंह की मेहनत लाई रंग, 31 साल बाद सच हुआ सपना, हासिल की PhD की डिग्री

नई दिल्ली. कहते हैं कि सपनों को हकीकत में बदलना नामुमकिन नहीं है, अगर कोई भी व्यक्ति पूरी मेहनत और लगन के साथ उसे सच करने की ठान ले तो वो कभी असफल नहीं हो सकता है. इसका ताजा उदाहरण पेश किया है उत्तर प्रदेश राज्य औद्योगिक विकास प्राधिकरण की क्षेत्रीय प्रबंधक डॉ. स्मिता सिंह ने. जिन्होंने 31 साल के लंबे अंतराल के बाद आखिरकार पीएचडी की उपाधि प्राप्त कर ली है. लेकिन खास बात ये है कि उन्होंने पीएचडी करने के सपने को छोड़ा नहीं और जिसका नतीजा है कि उनकी कड़ी मेहनत रंग लाई है और करीब 31 साल बाद उन्होंने अपने सपने को हकीकत में बदलकर दिखाया है.

अगर डॉ. स्मिता की शिक्षा की बात करें तो वह इलाहाबाद यूनिवर्सिटी से मैनेजमेंट में गोल्ड मेडलिस्ट रह चुकी हैं और उन्होंने पीएचडी करने के लिए साल 1990 में ही यूजीसी नेट क्वालीफाई भी कर लिया था, जिसके बाद वे पब्लिक सर्विस में आ गईं. इसके अलावा उन्होंने इस्पात उद्योग में सेल व टाटा स्टील को रिसर्च में रखते हुए इसकी तैयारी की.

लेकिन सबसे बड़ी बात ये है कि डॉ. स्मिता को काम के दौरान जब भी समय मिलता था वह तैयारी में जुटी रहती थी. भले ही उन्हें पीएचडी की उपाधि को पाने में लंबा वक्त लगा हो, लेकिन इसके मिलने की खुशी उन्हें उतनी ही है जितनी की एक छात्र को परीक्षा में मिलनेवाली असाधारण सफलता पर मिलती है. वहीं डा. स्मिता सिंह ने कहा कि नाम के आगे डॉक्टर लिखा जाना अपने आप में गर्व की बात है.

ये वही डॉ. स्मिता सिंह हैं जिन्होंने अपनी कार्यशैली से यूपी के औद्योगिक शहर गाजियाबाद का व्यापार के क्षेत्र में काया पलट कर दी है. स्थानीय व्यापरी स्मिता सिंह के कुछ इस तरह कायल हुए हैं कि,  वह स्पष्ट कहते हैं कि, अधिकारी हो तो ऐसा. लोगों का मानना है कि, स्मिता सिंह के पास जो भी अपनी समस्या लेकर गया, निराश होकर नहीं लौटा, सबकी समस्या का समाधान उन्होंने पूरी ईमानदारी से किया.

Crime Story: खुद पोंछा बेटी का सिंदूर

5 अक्तूबर, 2018 सुबह करीब 9 बजे वोराले गांव की रहने वाली मालन म्हमाणे अपने घर की सफाई कर रही थी, तभी उसे 2 खत मिले. मालन म्हमाणे ने वह खत ला कर अपने बेटे बालासाहेब म्हमाणे को देते हुए पढ़ कर सुनाने को कहा.

बालासाहेब म्हमाणे ने जब खतों को पढ़ा तो वह परेशान हो उठा. उस के चेहरे पर पसीना आ गया, क्योंकि वे दोनों खत उस की भांजी अनुराधा के द्वारा लिखे हुए थे. वह उन के यहां ही रह रही थी और एक दिन पहले ही अपनी मां के साथ अपने घर लौट गई थी. दोनों खतों में अनुराधा ने अपने पिता और सौतेली मां से अपनी जान को खतरा और अपनी हत्या का संदेह जताया था.

ये भी पढ़ें- Crime Story: एक हत्या ऐसी भी – प्रतिभा के साथ सतनाम ने क्या किया

बेटे को परेशान देख कर मां मालन म्हमाणे भी घबरा गईं. उन्होंने बालासाहेब का कंधा हिलाते हुए पूछा, ‘‘क्या हुआ तुझे, यह खत किस के हैं, जो तू इतना परेशान हो गया?’’

बालासाहेब म्हमाणे ने लंबी सांस लेते हुए कहा, ‘‘मां यह खत अनुराधा के हैं और इन में कुछ अच्छा नहीं लिखा है. उस के साथ कुछ गलत होने वाला है.’’

यह सुन कर मालन म्हमाणे के होश उड़ गए.

अनुराधा कैसी है, यह जानने के लिए मां ने उसी समय उसे फोन किया तो दूसरी ओर से किसी ने फोन नहीं उठाया. इस के बाद तो उन का और ज्यादा परेशान होना स्वाभाविक था. लिहाजा उन दोनों ने अनुराधा के गांव जाने की तैयारी कर ली.

ये भी पढ़ें- Crime Story: अधूरी रह गई डौन बनने की चाहत

उसी समय किसी ने उन्हें फोन कर के अनुराधा के बारे में जो बताया, उसे सुन कर मांबेटे के पैरों तले से जमीन खिसक गई. उन्हें बताया गया कि अचानक तबीयत खराब हो जाने के कारण अनुराधा की मौत हो गई और रात में ही उस का अंतिम संस्कार भी कर दिया गया.

मालन म्हमाणे ने अपने दामाद यानी अनुराधा के पिता को फोन किया तो उन्होंने भी अनुराधा की डेंगू से मौत हो जाने की पुष्टि की. यह बात मालन के गले नहीं उतरी थी. अनुराधा को भला ऐसी कौन सी बीमारी हो गई थी, जब वह यहां से गई थी तो भलीचंगी थी.

अपनी नातिन की मौत की बात मालन के गले नहीं उतर रही थी. आश्चर्य की बात यह थी रिश्तेदारों को कोई खबर दिए बिना उस का दाह संस्कार भी कर दिया गया था.

ये भी पढ़ें- दो प्रेमियों की बेरहम जुदाई : जब प्यार बन गया जहर

मालन को अनुराधा के मांबाप पर संदेह होने लगा. अनुराधा का मातम मनाने के लिए उस के घर न जा कर वह सीधे मंगलमेढ़ा पुलिस थाने पहुंच गई. थानाप्रभारी प्रभाकर मोरे की सारी बातें बता कर उन्होंने अनुराधा के दोनों खत थानाप्रभारी को सौंप दिए.

मामला संदिग्ध भी था और सनसनीखेज भी. मंगलमेढ़ा थानाप्रभारी प्रभाकर मोरे ने मामले की गंभीरता को देखते हुए उन की शिकायत दर्ज कर इस की जानकारी अपने वरिष्ठ अधिकारियों के साथसाथ पुलिस कंट्रोल रूम और फोरैंसिक टीम को दे दी. इस के बाद वह असिस्टेंट इंसपेक्टर वैभव मार्कंड, सिपाही दत्तात्रेय तोंदले, संजय गुंटाल को साथ ले कर घटनास्थल की ओर रवाना हो गए.

अनुराधा की अचानक मौत और उस के दाह संस्कार करने की खबर जब गांव में फैली तो गांव वाले हैरान रह गए. देखते ही देखते गांव के तमाम लोग अनुराधा के घर के सामने इकट्ठे हो गए.

पुलिस टीम ने अनुराधा के परिवार वालों और गांव वालों से उस के बारे में पूछताछ शुरू की. थोड़ी देर में जानकारी पा कर एसपी (ग्रामीण) मनोज पाटिल, एसडीपीओ दिलीप जगदाले भी फोरैंसिक टीम के साथ पहुंच गए. लोगों से बातचीत कर के और थानाप्रभारी को दिशानिर्देश दे कर अधिकारी अपने औफिस लौट गए.

अपने वरिष्ठ अधिकारियों के जाने के बाद थानाप्रभारी प्रभाकर मोरे उस जगह पर पहुंचे, जहां अनुराधा का अंतिम संस्कार किया गया था. वहां से उन्होंने अनुराधा के शव की राख का सैंपल लिया. जब अनुराधा के कमरे की तलाशी ली गई तो वहां जहरीले पदार्थ की एक शीशी मिली.

दोनों को परीक्षण के लिए प्रयोगशाला भेज दिया गया. विस्तृत पूछताछ के लिए पुलिस अनुराधा के मांबाप को थाने ले आई. उन से सख्ती से पूछताछ की गई तो उन्होंने स्वीकार कर लिया कि अनुराधा ने उन के सामने ऐसे हालात पैदा कर दिए थे, जिस से उन्हें उस की हत्या करने के लिए मजबूर होना पड़ा. अनुराधा की हत्या की उन्होंने जो कहानी बताई, वह इस प्रकार निकली—

20 वर्षीय अनुराधा देखने में जितनी खूबसूरत थी, उतनी ही चंचल और महत्त्वाकांक्षी भी थी. जो उसे देखता था, अपने आप उस की तरफ खिंचा चला जाता था. लेकिन अनुराधा जिस की तरफ खिंची चली गई, वह उस के बचपन का दोस्त श्रीशैल विराजदार था.

अनुराधा के पिता विट्ठल विराजदार महाराष्ट्र के सोलापुर जिले के तीर्थस्थल पंढरपुर, तालुका मंगलमेढ़ा, गांव सलगर के रहने वाले थे. तालुका मंगलमेढ़ा में उन की गिनती एक रसूखदार किसान के रूप में होती थी. उन की समाज में काफी इज्जत और प्रतिष्ठा थी.

एक अच्छे काश्तकार होने के साथसाथ वह मंगलमेढ़ा विद्या मंदिर हाईस्कूल में क्लर्क थे. वह इज्जतदार सामाजिक व्यक्ति थे, जबकि अनुराधा का स्वभाव अपने पिता से एकदम अलग था. वह खुले दिमाग की थी. उस के स्वभाव में इंसानियत भी थी और दया भी. वह ऊंचनीच, अमीरगरीब के भेदभाव को नहीं मानती थी.

अनुराधा अपनी बहन और भाई से बड़ी थी. जब वह 2-3 साल की थी, तभी उस की मां की मृत्यु हो गई थी. मां की मौत के बाद पिता के सामने बच्चों की देखभाल और काश्तकारी की वजह से समस्या खड़ी हो गई. इस समस्या के चलते वह किसी पर भी ध्यान नहीं दे पा रहे थे.

तब विट्ठल विराजदार ने अपने नातेरिश्तेदारों और परिवार वालों से सलाहमशविरा कर के दूसरी शादी करने का फैसला किया और पास के गांव की रहने वाली श्रीदेवी से दूसरा विवाह कर लिया.

श्रीदेवी ने विट्ठल विराजदार की गृहस्थी को संभल लिया. अपनी काश्तकारी संभालने के लिए विट्ठल ने कर्नाटक के सिंदगी के रहने वाले चिन्नप्पा विराजदार को अपने यहां नौकरी पर रख लिया. इस के बाद विट्ठल विराजदार की गाड़ी पटरी पर आ गई.

श्रीशैल विराजदार और अनुराधा हमउम्र थे. श्रीशैल जब कभी अपने पिता से मिलने आता तो अनुराधा उस से घुलमिल जाती थी. उस समय वह यह नहीं जानती थी कि वह उन के नौकर का बेटा है.

कुछ दिनों तक तो श्रीदेवी अपनी सौतन के बच्चों की ठीक से देखभाल करती रही, लेकिन जब वह स्वयं मां बनी तो सौतन के बच्चों के प्रति उस का व्यवहार बदल गया. इसी बीच संदिग्ध परिस्थितियों में अनुराधा की छोटी बहन की मौत हो गई, जिस से अनुराधा को काफी दुख हुआ.

4 साल की हो चुकी अनुराधा को मां और सौतेली मां के बीच के फर्क का अंदाजा होने लगा था. यह फर्क भारी दरार में न बदल जाए, इसलिए विट्ठल विराजदार ने उसे कुछ दिनों के लिए वोराले गांव में उस की नानी और मामा के यहां भेज दिया.

वोराले गांव में अपनी नानी और मामा के साथ रह कर अनुराधा काफी होशियार और समझदार हो गई थी. उस ने जब 10वीं क्लास अच्छे अंकों से पास करती तो आगे की पढ़ाई के लिए विट्ठल विराजदार अनुराधा को अपने गांव ले आए और अच्छे कालेज में दाखिला दिलवा दिया.

अनुराधा डाक्टर बनना चाहती थी. उस की पढ़ाई में रुचि और मेहनत देख कर विट्ठल अनुराधा को डाक्टर के रूप में देखने लगे थे.

अनुराधा ने भी अपने पिता के सपनों को पूरा करने के लिए जीतोड़ मेहनत की, जिस से 12वीं की परीक्षा में उस ने 99 प्रतिशत अंक हासिल किए. इस के बाद अनुराधा ने कर्नाटक के सिंदगी मैडिकल कालेज में एडमिशन ले लिया और कालेज के हौस्टल में रह कर मैडिकल की पढ़ाई करने लगी.

विट्ठल विराजदार की खेती संभालने वाला चिन्नप्पा विराजदार सिंदगी का रहने वाला था. उस का बेटा श्रीशैल अनुराधा का बचपन का दोस्त था. सिंदगी मैडिकल कालेज में आ जाने के बाद श्रीशैल कभीकभी अनुराधा से मिलने आने लगा.

वह उस का पूरा ध्यान रखता था. कभीकभी अनुराधा भी श्रीशैल के घर पहुंच जाती थी. श्रीशैल के परिवार वाले अपने मालिक की बेटी की हैसियत से उस का आदरसत्कार करते थे.

छुट्टी के दिनों में श्रीशैल अनुराधा को ले कर इधरउधर घुमाने के लिए निकल जाता था. दोनों की बचपन की दोस्ती कब प्यार में बदल गई, उन्हें पता ही नहीं चला.

जैसेजैसे समय बीत रहा था, वैसेवैसे उन के प्यार का रंग भी गहरा होता जा रहा था. एक समय ऐसा भी आया जब अनुराधा और श्रीशैल ने एकदूसरे के साथ जीनेमरने की कसमें खा लीं.

किसी माध्यम से जब इस बात की जानकारी अनुराधा के पिता विट्ठल विराजदार को हुई तो उन का खून खौल उठा. उन्होंने अनुराधा को ले कर जो सपना देखा था, वह टूट कर बिखरता हुआ नजर आया.

मामला काफी नाजुक था. मौका देख कर पतिपत्नी दोनों ने अनुराधा को काफी समझाया. उसे अपनी मानमर्यादा के बारे में सचेत किया. लेकिन श्रीशैल के प्यार में आकंठ डूबी अनुराधा पर उन की किसी बात का असर नहीं हुआ.

अनुराधा पर अपनी बातों का असर न होता देख विट्ठल विराजदार और उन की पत्नी श्रीदेवी परेशान हो उठे. उन्होंने श्रीशैल और अनुराधा को एकदूसरे से दूर करने के लिए अपने यहां काम कर रहे श्रीशैल के पिता को यह कह कर काम से निकाल दिया कि वह अपने बेटे को समझा दे. अगर उस ने उन की इज्जत से खेलने की कोशिश की तो परिणाम अच्छा नहीं होगा.

इस के साथसाथ उन्होंने अनुराधा को मैडिकल कालेज के हौस्टल से बुला कर घर पर पढ़ाई करने को कहा. इस के बावजूद श्रीशैल ने अनुराधा का पीछा नहीं छोड़ा तो विट्ठल विराजदार ने अपने सगेसंबंधियों के साथ श्रीशैल को काफी मारापीटा.

उन लोगों ने परिवार वालों को यह धमकी भी दी कि वह उसे उन की बेटी अनुराधा से दूर रखें. विट्ठल विराजदार और सगेसंबंधियों के खिलाफ श्रीशैल के परिवार वालों ने बीजापुर एसीपी औफिस में जा कर शिकायत की.

कहते हैं इश्क बगावत कर बैठे तो दुनिया का रुख मोड़ दे, महलों में आग लगा दे. यही हाल अनुराध और श्रीशैल का था. परिवार की सख्तियों के बावजूद उन के प्यार में कोई कमी नहीं आई थी. बल्कि उन का प्यार और मजबूत हो गया था. दोनों एकदूसरे को छोड़ने के लिए तैयार नहीं थे. उन की मुश्किलें अब पहले से जरूर ज्यादा बढ़ गई थीं, लेकिन अब वे सावधानी बरतने लगे थे.

श्रीशैल और अनुराधा अमीरगरीब, मानसम्मान की सीमाएं खत्म कर एक हो जाना चाहते थे. उन्हें तलाश थी तो सिर्फ एक मौके की. यह मौका उन्हें पहली अक्तूबर, 2018 को मिल गया. उस दिन कालेज के एक पेपर के बहाने अनुराधा घर से निकली तो वापस नहीं आई. उस ने अपने प्रेमी श्रीशैल के साथ बीजापुर जा कर कोर्टमैरिज कर ली. वहां से वह श्रीशैल के साथ उस के घर चली गई.

इस बात की जानकारी जब विट्ठल विराजदार और श्रीदेवी को हुई तो उन का खून खौल उठा. अनुराधा ने अपने से कम हैसियत और कम पढ़ेलिखे नौकर के बेटे के साथ कोर्टमैरिज कर उन के अहं और मानसम्मान को जो ठेस पहुंचाई थी, वह उन की बरदाश्त के बाहर था. उन्हें अनुराधा से नफरत हो गई.

2 अक्तूबर, 2018 को विट्ठल विराजदार अनुराधा की ससुराल गए, वहां उन्होंने ठंडे दिमाग से उस के घर वालों और श्रीशैल से बातचीत की और शादी की कुछ रस्मों को निभाने के बहाने अनुराधा को अपने साथ ले आए. लेकिन वह अनुराधा को अपने घर लाने के बजाए अपनी ससुराल वोराले गांव ले कर गए. वहां अनुराधा के मामा और नानी को सारी बातें बता कर उसे समझाने के लिए कहा.

वह 2 दिनों तक अपनी ननिहाल में मामा और नानी के साथ रही, लेकिन डरी और सहमी सी. मामा और नानी ने उसे काफी समझाया, लेकिन अनुराधा के मन से पिता और सौतेली मां का भय कम नहीं हुआ.

उस ने 2 दिनों में अपने पिता और सौतेली मां के खिलाफ 2 लंबे खत लिखे, जिस में उस ने अपनी मौत हो जाने की जिम्मेदारी उन के ऊपर डाली और वह खत किचन में रख दिए, जो बाद में उस की नानी के हाथ लग गए थे.

4 अक्तूबर, 2018 को एक खतरनाक योजना बना कर विट्ठल विराजदार अपनी ससुराल आया और अपनी सास व साले से यह कह कर अनुराधा को अपने साथ ले गया कि उसे पेपर दिलवाने कालेज ले कर जाना है. अनुराधा की मौत से अनभिज्ञ उस की नानी और मामा ने उसे विट्ठल विराजदार के साथ भेज दिया.

घर के अंदर अनुराधा की सौतेली मां श्रीदेवी ने उस की मौत का सारा इंतजाम पहले ही तैयार कर रखा था. गांव आ कर विट्ठल विराजदार और श्रीदेवी ने अनुराधा पर श्रीशैल से रिश्ता खत्म करने का दबाव बनाया, जिसे अनुराधा ने नकार दिया. इस से नाराज विट्ठल विराजदार और श्रीदेवी ने अनुराधा को जबरन जहरीला पदार्थ पिला दिया, जिस की वजह से सुबह 4 बजे अनुराधा की मौत हो गई.

पुलिस के शिकंजे से बचने के लिए विट्ठल रात में ही अनुराधा के शव को अपने खेत में ले गया और जला दिया. सुबह को उस ने गांव में यह अफवाह फैला दी कि अनुराधा की डेंगू के कारण अचानक मौत हो गई थी. इसलिए उस ने रात में ही उस का दाह संस्कार कर दिया. इस तरह सिर्फ 5 दिन की दुलहन अनुराधा खोखली प्रतिष्ठा और अहं की आग में जल कर राख हो गई थी.

अनुराधा की मौत की खबर जब टीवी द्वारा श्रीशैल और उस के परिवार वालों को मिली तो उन पर वज्रपात सा हुआ. अनुराधा के मातापिता श्रीशैल को भी मारने वाले थे, मगर वह बच गया.

जांच अधिकारी सहायक इंसपेक्टर वैभव मार्कंड ने विट्ठल विराजदार और श्रीदेवी से पूछताछ कर उन के खिलाफ हत्या का केस दर्ज कर लिया. बाद में दोनों को कोर्ट में पेश कर जेल भेज दिया. इस के साथ ही पुलिस ने अनुराधा की छोटी बहन की संदिग्ध स्थिति में हुई मौत की जांचपड़ताल भी शुरू कर दी थी.

  कोरोना का कुप्रबंधन

अब यह तो साफ दिख रहा है कि भारत पर कोरोना का कहर लंबा और गहरा ही नहीं, देर तक चलने वाला है. अपने टीवी भाषण में नरेंद्र मोदी ने हांक दिया था कि जैसे महाभारत का युद्ध 17 दिनों में जीत लिया गया था वैसे ही उन के कमाल से कोरोना पर 21 दिनों में जीत हासिल कर ली जाएगी. उस खोखले दावे के पीछे, दरअसल, असलियत यह थी कि तब तक कोरोना कैसेकितना फैलता है, यह पता नहीं था और मोदी की सरकार ने किसी तरह की तैयारी नहीं की थी.

महाभारत का युद्ध न तो प्राकृतिक आपदा से था न विदेशियों से. वह अपनों से था, उन लोगों से था जिन के साथ कृष्ण, युधिष्ठिर, अर्जुन, भीम साथ खेल कर बड़े हुए थे. कौरवों और पांडवों के पुराने साथी, संबंधी थे. उन के बीच हुए युद्ध को महिमामंडित करना ही गलत है पर यह इस देश की अनूठी परंपरा है कि अपनों के साथ युद्धों या अपनों के साथ विवादों को करने वालों को भगवानों तक का दर्जा दिया जाता है.

कोरोना वायरस का फैलाव, अब तक की जानकारी के अनुसार, चीन से शुरू हुआ था. उस की प्रकृति का हमें पता नहीं था और सारा देश इस बहकावे में आ गया कि यह तो 21 दिनों की बात है. ये तो बीत जाएंगे. फिर जिंदगी पहले की तरह चलनी शुरू हो जाएगी. सरकार ने 21 दिन लोगों को अपने ऊपर ही छोड़ दिया. सारे मंत्री, मुख्यमंत्री, उन के मंत्री, मुख्य सचिव, वरिष्ठ सरकारी अफसर, जज, वकील, व्यापारी, शिक्षक दुबक कर खटियों में जा छिपे कि आने वाला शत्रु उन्हें देख नहीं पाएगा और भाग जाएगा.

ये भी पढ़ें-   कांग्रेस में चिट्ठी बम

लेकिन, कोरोना तो गंगा के पानी से भी ज्यादा विषैला साबित हुआ जो बाढ़ आने पर कोनेकोने में घुस सकता है, चाहे जितनी गंगा आरतियां की हों, शंख बजाए हों, ढोल पीटे हों. इस मानसिकता का नुकसान यह हुआ कि सरकार ने 21 दिनों के कष्टों और उस के बाद की तैयारी ही नहीं की. जो लाखों मजदूर बड़े शहर छोड़ कर घरों के लिए पैदल निकल पड़े, वे ज्यादा होशियार निकले. उन्हें आभास हो गया कि यह किस्सा 21 दिनों का नहीं, महीनों का है. वे अनपढ़ मजदूर तो प्रधानमंत्री, व्यापारियों, डाक्टरों से ज्यादा सम झदार निकले.

सरकार ने तब महाभारत के युद्ध की तरह अपनों से लड़ाई शुरू कर डाली. पुलिस ने मजदूरों पर डंडे बरसाने शुरू कर दिए. तबलीगी जमात को कठघरे में खड़ा कर के सारा ठीकरा उस के सिर थोपने की कोशिश कर डाली. प्रवचनों को सुन कर बहकने को आमादा अंधविश्वासी लोग उन टीवी चैनलों की सुनने लगे जो अपने ‘आराध्य देवता’ को बचाने के लिए ढूंढ़ढूंढ़ कर तरहतरह के बहाने तब भी ला रहे थे और आज भी ला रहे हैं. नतीजा आज सामने है.

 ये भी पढ़ें- पुरानी शिक्षा का नया संस्करण

देश में कोरोना के संक्रमण से प्रभावित होने वालों की संख्या आधा करोड़ यानी 50 लाख से ज्यादा हो चुकी है और लगातार बढ़ती ही जा रही है. जबकि, हमारा जनमानस सुशांत सिंह राजपूत की आत्महत्या के पीछे छिपे राजों को खोजने में लगा है. कोरोना से लड़ाई तो कब की भुला दी गई है. युद्ध में कृष्ण बने रहें, बस, यही सब की कोशिश रह गई है. कोरोना चाहे फैल जाए, धर्मराज को चोट न पहुंचे.

कोरोना से लड़ाई मैनेजमैंट से की जा सकती है, सरकार के खोखले बयानों से नहीं. कारखानों से ले कर प्रयोगशालाओं तक, दिल्ली, मुंबई शहरों से ले कर दूरदराज गांवों के घरों तक सामान कैसे पहुंचे, उत्पादन कैसे चालू रहे, लोग भूख से कैसे न मरें, कोरोना का शिकार हुए लोगों के परिवारों को ज्यादा तकलीफ न हो, इस का सही प्रबंधन हो. अस्पताल चलें, डाक्टर खुश रहें, नर्सें मिलती रहें, कोरोना से लड़ने के लिए सैनिक तैयार होते रहें, अर्थव्यवस्था चलती रहे, इस का प्रबंधन चांद पर रौकेट भेजने से अधिक मुश्किल है. पर इस का प्रबंधन करने की जगह केंद्र सरकार राजस्थान में सरकार परिवर्तन और राममंदिर के पूजापाठी शिलान्यास में लग गई.

ये भी पढ़ें- पुरानी शिक्षा का नया संस्करण

कोरोना का असर गहरा होगा. यह देश को लंगड़ा बना कर छोड़ेगा. अफसोस यह है कि देश भी खोजबीन में नहीं, धर्म व संस्कृत के मंत्रों में इलाज ढूंढ़ता है.

पुलिस की क्रूरता

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पुलिस अकादमी के आईपीएस प्रोबैशनर्स से हाल ही में अपने लंबे भाषण में यह भी कहा कि उन्हें ‘सिंघम’ फिल्म की तरह पुलिस का भय जनता में पैदा नहीं करना चाहिए, उन में दया व सहृदयता का भाव भी होना चाहिए और उन की छवि उसी तरह की होनी चाहिए.

सिंघम जैसी फिल्मों में पुलिस अफसरों को अकसर ऐसा दिखाया जाता है कि जनता के हितों की रक्षा करने के लिए वे दबंगों का खुल कर मुकाबला करते हैं और इस के लिए नेताओं की धमकियों से नहीं डरते. मजेदार बात यह है कि इन्हीं फिल्मों में अकसर वरिष्ठ अफसरों को नेताओं और मंत्रियों की जीहुजूरी करते भी दिखाया जाता है जो अपने सिंघम अफसरों पर लगाम लगाते रहते हैं.

पुलिस का कहर हमारे देश में ही नहीं है, लगभग पूरी दुनिया में है.

अपराधियों से जू झतेजू झते पुलिस वाले खुद अपराधी बन जाते हैं और वे हर तरह के सम झौते करतेकरते क्रूर व वहशी बन जाते हैं. हाल में रिलीज हुई वैब सीरीज ‘आश्रम’ में पुलिस वाले एकदूसरे से राजनीति करते दिखाए गए हैं, जाति का कहर ढाते दिखाए जाते हैं. और फिर, वे मुख्यमंत्री, मंत्री की चिरौरी करते भी नजर आते हैं.

ये भी पढ़ें- आर्थिक हालत ठीक नहीं

भारत के प्रधानमंत्री पुलिस अफसरों से निवेदन करें कि वे सहृदयी हों, यह कुछ जमता नहीं. उन्हें तो आदेश देना चाहिए. वे गुजारिश न कर के नियम बनाएं कि हद से ज्यादा बढ़ने वाले पुलिस वालों से सख्ती से निबटा जाएगा और सिर्फ लाइनहाजिर होने की सजा उन के लिए काफी नहीं होगी.

लेकिन, किसी प्रधानमंत्री के लिए ऐसा आदेश देना संभव नहीं है. पुलिस की सहायता हर प्रधानमंत्री से ज्यादा उस की पार्टी को चाहिए होती है. यदि पुलिस का सहयोग न होता तो 1993 में अयोध्या की बाबरी मसजिद गिरती नहीं. केंद्र सरकार ने पर्याप्त सुरक्षा कर रखी थी पर पुलिस वालों ने उस समय, जो भी कारण रहा हो, उद्दंड हिंदू भीड़ को नियंत्रित नहीं किया.

पिछले 2 दशकों में पुलिस में धर्म और जाति को ले कर एक अजीब भावना बैठ गई है जिस का खुला प्रदर्शन तब देखने को मिला जब भूखे, फटेहाल मजदूर बिना शांति भंग किए बड़े शहरों से अपने गांवों में लौकडाउन के बाद लौट रहे थे. ऐसा आज भी दोहराया जा रहा है, पर चूंकि टीवी मीडिया को रिया चक्रवर्ती के पीछे लगा दिया गया है, असल खबरें छिपा दी जा रही हैं.

अमेरिका में ‘ब्लैक लाइव्स मैटर’ आंदोलन गोरे पुलिसमैनों का हर काले को अपराधी मानने की देन है. पश्चिम एशिया में पुलिस का नाम सुनते ही नागरिकों का दिल कांप जाता है. नाजी जरमनी और कम्युनिस्ट चीन व रूस में पुलिस का मतलब रक्षक नहीं रहा. रक्षा तो वे सत्ता की करते हैं.

पुलिस फोर्स कहने को जनता को अपराधियों से बचाती है पर असल में वह सत्ता को नागरिकों से बचाती है. नागरिक मेहनत कर के पैसे कमा कर टैक्स देते रहें, यह सत्ता का उद्देश्य है और कानून व्यवस्था इसे ही लागू करवाती है.

प्रधानमंत्री ने वल्लभभाई पुलिस अकादमी के प्रोबैशनर्स से जो कहा वह ठीक है परंतु पुलिस की प्रकृति और प्रवृत्ति नहीं बदल सकती.

सरकारी अंधविश्वास

परिश्रम करने के बाद भी कारोबार ठप रहे या धन आए लेकिन खर्च हो जाए तो यह टोटका काम में लें- चंद्रमा के किसी शुभदिन सुबहसवेरे हरे रंग की छोटी थैली तैयार करें. उस में 7 मूंग, साबुत धनिया, रुद्राक्ष, चांदी का एक रुपया, 2 सुपारी रखें. इस के बाद गणेश की मूर्ति के आगे संकटनाशक गणेशमंत्र का पाठ करें. और फिर थैली को तिजोरी में रख दें. ऐसा करने से आर्थिक स्थिति में शीघ्र सुधार आएगा.

यह उपाय मंत्रतंत्र का प्रचार करने वाले एक औनलाइन स्रोत से मिला है. भारत सरकार भी कुछ ऐसा ही कर रही है, देश की आर्थिक स्थिति देख कर तो लगता यही है. इस में संदेह नहीं है कि भारत सरकार के प्रधानमंत्री, मंत्री, नीतिनिर्धारक, भाजपाशासित राज्यों के मुख्यमंत्री, और यहां तक कि श्रीहरिकोटा स्थित इसरो के प्रमुख तक इस तरह की बातों में अगाध विश्वास करते रहे हैं.

देश की आर्थिक स्थिति अगर डांवांडोल हो रही है तो इन्हीं के कारण. यही सोच है जो सरकार को तार्किक फैसले लेने से रोकती है जबकि नोटबंदी करने, जीएसटी लगाने, लौकडाउन थोपने, कोरोना को 21 दिनों में हरा लेने, राफेल विमान पर सतिया बनाने, बेजान रामलला के आगे लोट जाने, मंदिर बनाने आदि को प्राथमिकता देना सिखाती है. देश की गरीबी अधिक से अधिक उत्पादन करने से दूर होगी, जबकि सत्ताधारी नेता उत्पादन और तकनीक के अलावा सबकुछ कर रहे हैं. उन को तो यह ‘अंधविश्वासी’ उम्मीद है कि पूजापाठ, नारों, यज्ञों, हवनों, तीर्थों से धनधान्य बढ़ता है जैसाकि उन्होंने सैकड़ों प्रवचनों में सुना है.

3 सितंबर को अमेरिकाभारत स्ट्रैटेजिक पार्टनरशिप फोरम की औनलाइन मीटिंग

में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भारत की 130 करोड़ जनता का हवाला तो दिया पर यह नहीं बताया कि यह जनता बेहद धर्मभीरु और पूजापाठी है जो उम्मीद करती है कि ऊपर वाले टोटकों से आर्थिक प्रगति हो जाती है. प्रधानमंत्री ने लोकतंत्र और विविधता की बात की है, पर यह नहीं बताया कि यहां हर बड़ेछोटे उद्योग में मंदिर अवश्य बनना है (मसजिद और चर्च नहीं) क्योंकि यहां की 35 वर्ष की आयु से कम वाली

65 प्रतिशत युवा वर्कफोर्स भी दकियानूसी बनाई जा रही है, खोजी नहीं.

हमारे नेता थैलियों में इस तरह का विश्वास रखते हैं कि वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ब्रीफकेस की जगह लाल कपड़े की अभिमंत्रित पोटली में बजट पेश कर के सोचती हैं कि देश का कल्याण तो अपनेआप हो जाएगा. बड़ों को देख कर धार्मिक पाखंडरूपी यह बीमारी घरघर पहुंच सकती है. जब मुकेश अंबानी, अमिताभ बच्चन और नरेंद्र मोदी अंधविश्वासों को चिपकाए रखें और मंदिरों में दर्शन करते समय अपनी तसवीरें खिंचवाएं तो आम जनता ऐसा करने में क्यों पीछे रहेगी?

2014 के बाद लगातार गिरती अर्थव्यवस्था का अप्रैलजून 2020 तिमाही में रिकौर्ड 25 प्रतिशत गिर जाना आश्चर्य नहीं है क्योंकि सरकार तो इस अंधविश्वास में थी कि तालीथाली बजाने से कोरोना गायब हो जाएगा और आर्थिक आंच नहीं आएगी. मोदी के कहने पर लोगों ने खुशीखुशी यह काम किया मानो वैक्सीन खोज ली हो. अब नतीजा सामने है, कोरोना ऊपर है, व्यापार नीचे. ऐसे में कौन भारत आएगा?

हां, लोग भारत में निवेश करेंगे, पर भारत को लूटने के लिए. गरीबों की बस्तियों में भी सूदखोरों का धंधा खूब चलता है. सहारा जैसी कंपनियां वहीं से पैसा बटोरती हैं और महाजन वहीं उधार देते हैं 40 से 100 प्रतिशत ब्याज की दर पर. भोली, कुंठित, अंधी, भक्त जनता सदियों से बहकाई जाती रही है. और ऐसी कल्पना उस जनता की रगों में आज भी बह रही है. हमारे नेता उस का लाभ उठा रहे हैं. उस में सुधार करने की उन की कोई इच्छा नहीं है.

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें