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अंतत-भाग 2: रघुवीर और माधवी के रिश्ते क्या फिर से जुड़ पाए?

दादी कहतीं कि फूफा बेकुसूर थे. लेकिन पिताजी कहते, सारा दोष उन्हीं का था. उन्होंने ही फर्म से गबन किया था. मैं अब तक समझ नहीं पाई, किसे सच मानूं? हां, इतना अवश्य जानती हूं, दोष चाहे किसी का भी रहा हो, सजा दोनों ने ही पाई. इधर पिताजी ने बहन और जीजा का साथ खोया तो उधर बूआ ने भाई का साथ छोड़ा और पति को हमेशा के लिए खो दिया. निर्दोष बूआ दोनों ही तरफ से छली गईं.

मेरा मन उस अतीत की ओर लौटने लगा, जो अपने भीतर दुख के अनेक प्रसंग समेटे हुए था. दादी के कुल 3 बच्चे थे, सब से बड़े ताऊजी, फिर बूआ और उस के बाद पिताजी. तीनों पढ़ेपलेबढ़े, शादियां हुईं.

उन दिनों ताऊजी और पिताजी ने मिल कर एक फर्म खोली थी. लेकिन अर्थाभाव के कारण अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा था. उसी समय फूफाजी ने अपना कुछ पैसा फर्म में लगाने की इच्छा व्यक्त की. ताऊजी और पिताजी को और क्या चाहिए था, उन्होंने फूफाजी को हाथोंहाथ लिया. इस तरह साझे में शुरू हुआ व्यवसाय कुछ ही समय में चमक उठा और फलनेफूलने लगा. काम फैल जाने से तीनों साझेदारों की व्यस्तता काफी बढ़ गई थी.

औफिस का अधिकतर काम फूफाजी संभालते थे. पिताजी और ताऊजी बाहर का काम देखते थे. कुल मिला कर सबकुछ बहुत ठीकठाक चल रहा था. मगर अचानक ऐसा हुआ कि सब गड़बड़ा गया. ऐसी किसी घटना की, किसी ने कल्पना भी नहीं की थी.

अचानक ही फर्म में लाखों की हेराफेरी का मामला प्रकाश में आया, जिस ने न केवल तीनों साझेदारों के होश उड़ा दिए बल्कि फर्म की बुनियाद तक हिल गई. तात्कालिक छानबीन से एक बात स्पष्ट हो गई कि गबन किसी साझेदार ने किया है, और वह जो भी है, बड़ी सफाई से सब की आंखों में धूल झोंकता रहा है.

तमाम हेराफेरी औफिस की फाइलों में हुई थी और वे सब फाइलें यानी कि सभी दस्तावेज फूफाजी के अधिकार में थे. आखिरकार शक की पहली उंगली उन पर ही उठी. हालांकि फूफाजी ने इस बात से अनभिज्ञता प्रकट की थी और अपनेआप को निर्दोष ठहराया था. पर चूंकि फाइलें उन्हीं की निगरानी में थीं, तो बिना उन की अनुमति या जानकारी के कोई उन दस्तावेजों में हेराफेरी नहीं कर सकता था.

लेकिन जाली दस्तावेजों और फर्जी बिलों ने फूफाजी को पूरी तरह संदेह के घेरे में ला खड़ा किया था. सवाल यह था कि यदि उन्होंने हेराफेरी नहीं की तो किस ने की? जहां तक पिताजी और ताऊजी का सवाल था, वे इस मामले से कहीं भी जुड़े हुए नहीं थे और न ही उन के खिलाफ कोई प्रमाण था. प्रमाण तो कोई फूफाजी के खिलाफ भी नहीं मिला था, लेकिन वे यह बताने की स्थिति में नहीं थे कि अगर फर्म का रुपया उन्होंने नहीं लिया तो फिर कहां गया? ऐसी ही दलीलों ने फूफाजी को परास्त कर दिया था. फिर भी वे सब को यही विश्वास दिलाने की कोशिश करते रहे कि वे निर्दोषहैं और जो कुछ भी हुआ, कब हुआ, कैसे हुआ नहीं जानते.

इन घटनाओं ने जहां एक ओर पिताजी को स्तब्ध और गुमसुम बना दिया था, वहीं ताऊजी उत्तेजित थे और फूफाजी से बेहद चिढ़े थे. जबतब वे भड़क उठते, ‘यह धीरेंद्र तो हमें ही बदनाम करने पर तुला हुआ है. अगर इस पर विश्वास न होता तो हम सबकुछ इसे कैसे सौंप देते. अब जब सचाई सामने आ गई है तो दुहाई देता फिर रहा है कि निर्दोष है. क्या हम दोषी हैं? क्या यह हेराफेरी हम ने किया है?

‘मुझे तो इस आदमी पर शुरू से ही शक था, इस ने सबकुछ पहले ही सोचा हुआ था. हम इस की मीठीमीठी बातों में आ गए. इस ने अपने पैसे लगा कर हमें एहसान के नीचे दबा देना चाहा. सोचा होगा कि पकड़ा भी गया तो बहन का लिहाज कर के हम चुप कर जाएंगे. मगर उस की सोची सारी बातें उलटी हो गईं, इसलिए अब अनापशनाप बकता फिर रहा है.’

एक बार तो ताऊजी ने यहां तक कह दिया था, ‘हमें इस आदमी को पुलिस के हवाले कर देना चाहिए.’

लेकिन दादी ने कड़ा विरोध किया था. पिताजी को भी यह बात पसंद नहीं आई कि यदि मामला पुलिस में चला गया तो पूरे परिवार की बदनामी होगी.

बात घर से बाहर न जाने पाई, लेकिन इस घटना ने चारदीवारी के भीतर भारी उथलपुथल मचा दी थी. घर का हरेक प्राणी त्रस्त व पीडि़त था. पिताजी के मन को ऐसा आघात लगा कि वे हर ओर से विरक्त हो गए. उन्हें फर्म के नुकसान और बदनामी की उतनी चिंता नहीं थी, जितना कि विश्वास के टूट जाने का दुख था. रुपया तो फिर से कमाया जा सकता था. मगर विश्वास? उन्होंने फूफाजी पर बड़े भाई से भी अधिक विश्वास किया था. बड़ा भाई ऐसा करता तो शायद उन्हें इतनी पीड़ा न होती, मगर फूफाजी ऐसा करेंगे, यह तो उन्होंने ख्वाब में भी न सोचा था.

उधर फूफाजी भी कम निराश नहीं थे. वे किसी को भी अपनी नेकनीयती का विश्वास नहीं दिला पाए थे. दुखी हो कर उन्होंने यह जगह, यह शहर ही छोड़ देने का फैसला कर लिया. यहां बदनामी के सिवा अब धरा ही क्या था. अपने, पराए सभी तो उन के विरुद्ध हो गए थे. वे बूआ को ले कर अपने एक मित्र के पास अहमदाबाद चले गए.

दादी बतातीं कि जाने से पूर्व फूफाजी उन के पास आए थे और रोरो कहा था, ‘सब लोग मुझे चोर समझते हैं, लेकिन मैं ने गबन नहीं किया. परिस्थितियों ने मेरे विरुद्ध षड्यंत्र रचा है. मैं चाह कर भी इस कलंक को धो नहीं पाया. मैं भी तो आप का बेटा ही हूं. मैं ने उन्हें हमेशा अपना भाई ही समझा है. क्या मैं भाइयों के साथ ऐसा कर सकता हूं. क्या आप भी मुझ पर विश्वास नहीं करतीं?’

‘मुझे विश्वास है, बेटा, मुझे विश्वास है कि तुम वैसे नहीं हो, जैसा सब समझते हैं. पर मैं भी तुम्हारी ही तरह असहाय हूं. मगर इतना जानती हूं, झूठ के पैर नहीं होते. सचाई एक न एक दिन जरूर सामने आएगी. और तब ये ही लोग पछताएंगे,’ दादी ने विश्वासपूर्ण ढंग से घोषणा की थी.

Crime Story: मां-बेटी की अवैध भागीदारी

सौजन्या-मनोहर कहानियां

कौसर बेगैरत इंसान था, उस ने पहले दोस्त उस्मान की पत्नी मुकीश बानो से 10 सालों तक अवैध संबंध बनाए रखा. जब मुकीश की बेटी उस्मा जवान हुई तो उस ने निकाह करने के नाम पर उस से भी संबंध बना लिए. निकाह की बात टालने पर जब उस्मा ने उसे धमकी दी तो उस ने मुकीश बानो की तरफ देखा…

उस्मान और उस की पत्नी मुकीश बानो के बीच काफी समय से मनमुटाव चल रहा था. बोलचाल भी लगभग बंद थी.मुकीश बानो की तमाम कोशिशों के बाद भी वह शराब छोड़ने को राजी नहीं था. उस्मान आरोप लगाता कि उस के आचरण से आहत हो कर उस ने ज्यादा नशा शुरू किया था.मुकीश बानो ने कहा भी कि उस का चरित्र एकदम पाकसाफ है. वह नाहक उस पर शंका कर अपनी जमीजमाई गृहस्थी चौपट कर रहा है, लेकिन उस्मान पर कोई असर नहीं हुआ. उस के मन में शक का कीड़ा जन्म ले चुका था, वह जबतब कुलबुलाने लगता था.

उस रोज मुकीश ने शाम से ही सजना शुरू कर दिया था, अपने शौहर उस्मान को मनानेरिझाने के लिए. बनठन कर रात 8 बजे मुकीश बानो उस्मान के पास पहुंची. उस की आंखें नशे से सुर्ख थीं, उस ने मुकीश बानो की तरफ नजर उठा कर भी नहीं देखा. मुकीश बानो मुसकराई और उस्मान के गले में बांहें डाल कर बोली, ‘‘इतना गुस्सा! मुझ से बात भी नहीं करोगे?’’‘‘चल हट, मुझे अपना त्रियाचरित्र मत दिखा. मैं सब समझता हूं.’’ उस्मान ने मुकीश बानो को झिड़कते हुए कहा.

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‘‘ठीक है बाबा, मैं चली जाऊंगी, तुम खाना तो खा लो. गुस्सा मुझ से हो, खाने ने क्या बिगाड़ा है, जो मुंह फुला कर बिस्तर पर पड़े हो.’’ मुकीश बानो ने उसे मनाने का प्रयास करते हुए उसे हाथ पकड़ कर उठाया.
‘‘मैं ने कहा न, मेरी आंखों के सामने से दूर हट जा. मुझे तुझ से नफरत है.’’ उस्मान सख्त लहजे में बोला.
‘‘यह तुम क्या कह रहे हो. अगर तुम्हारा व्यवहार इसी तरह रहा तो एक दिन यह घर नर्क बन जाएगा.’’ फिर वह थोड़ा रुक कर बोली, ‘‘तुम्हें पत्नी नहीं, नशे का साथ चाहिए. तुम नहीं जानते कि यह कितना नुकसानदेह है. इस ने कितनों का घर बरबाद किया है. अगर तुम शराब छोड़ दो तो मैं कसम खाती हूं कि आज के बाद मैं कभी तुम्हें शिकायत का मौका नहीं दूंगी.

‘‘मैं बिलकुल पाकसाफ हूं, पर तुम शक के जाल में उलझ कर रह गए हो. इसलिए आज के बाद कौसर इस घर में नहीं आएगा. लेकिन मेरी भी एक शर्त है, तुम्हें भी कौसर से अपनी दोस्ती तोड़नी पड़ेगी. उस से बात तक नहीं करोगे, उस के साथ बैठ क र शराब नहीं पीओगे. इसी बहाने वह घर आता है. इसी बहाने पड़ोसी तुम्हारे कान भरते हैं.’’मुकीश बानो की इस बात का उस्मान पर कुछ असर हुआ. वह थोड़ा नरम पड़ा तो मुकीश ने अपने स्त्री अस्त्र से उसे हरा दिया. दोनों के गिलेशिकवे दूर हो गए. मुकीश बानो खुश थी. जहां पतिपत्नी के बीच कई दिनों से चली आ रही दूरी सिमट गई थी, वहीं उसे पति का सान्निध्य भी मिल गया.
उस्मान महानगर बरेली के थाना सुभाषनगर क्षेत्र के गांव करैली में रहता था. 22 वर्ष पहले उस का विवाह मुकीश बानो से हुआ था. विवाह के बाद दोनों एकदूसरे से खुश थे. उस्मान तो मुकीश बानो का दीवाना हो गया था. सब उसे बीवी का गुलाम कहने लगे थे.

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मुकीश बानो ने भी अपने व्यवहार से उस्मान का दिल जीत लिया था. कुछ माह बाद मुकीश बानो ने जब उसे पिता बनने की खुशखबरी दी तो वह मारे खुशी के नाच उठा. समय पूरा होने पर मुकीश बानो ने बेटे को जन्म दिया, जिस का नाम उन्होंने उम्मेद रखा. 2 साल बाद उस ने एक बेटी को जन्म दिया. उस्मान ने उस का नाम अपने नाम पर रखा-उस्मा.

उस्मान की दोस्ती करैली गांव में ही रहने वाले कौसर से थी. कौसर शादीशुदा था और उस के 2 बेटे थे. कौसर भी उस्मान के साथ काम करता था. कौसर शराब का शौकीन था. उस ने उस्मान को भी शराब का शौकीन बना दिया. उस्मान का नशा करना मुकीश बानो को नागवार लगता था.

पति नशे में पस्त पत्नी त्रस्त

मुकीश बानो ने उस्मान को काफी समझाया, लेकिन उस पर कोई असर नहीं हुआ. नशा उस के कमजोर शरीर से बरदाश्त नहीं हो पाता था. लेकिन शरीर को नजरअंदाज कर वह नशे के पीछे भागता था. यही बात वजह मुकीश बानो को कचोटती थी. कमजोर शरीर जब नशे में बहकता, तो उस्मान की रही सही ताकत भी खत्म हो जाती थी. ऐसे में मुकीश को उस के प्यार से वंचित रहना पड़ता था.इधर कौसर का उस के घर आनाजाना शुरू हुआ तो उस की नजरें मुकीश बानो के बदन पर टिकने लगीं. उस की कामनाएं मुकीश बानो में अपना ठौर तलाशने लगीं. वह किसी न किसी बहाने उस्मान के घर आनेजाने लगा.

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बातोंबातों में वह मुकीश बानो के सौंदर्य की प्रशंसा शुरू कर देता. औरत में एक बड़ी कमजोरी होती है कि अगर कोई उस की खुबसूरती की तारीफ करे तो वह फूली नहीं समाती. यही मुकीश बानो के साथ हुआ. उस के मन में खोट आने लगा. मुकीश बानो ने कौसर में दिलचस्पी लेनी शुरू कर दी. अब वह कौसर के घर आने पर उस की ज्यादा खातिरदारी करने लगी. वक्त के साथ दोनों एकदूसरे के नजदीक आते गए. अब कौसर उस्मान की गैरमौजूदगी में भी उस के घर आने लगा. कौसर मुकीश बानो से उम्र में 4 वर्ष छोटा था.
कौसर की नजरें मुकीश बानो के खूबसूरत तन पर गड़ने लगी थीं. उस के निहारने का अंदाज कुछ ऐसा होता जैसे वह मुकीश बानो को निर्वस्त्र देख रहा हो. ऐसी हरकत भला किसी औरत से छिपी रह सकती हैं. मुकीश बानो से भी न छिप सकी.

उस्मान का उस की हसरतों से मुंह फेर लेना उसे पहले ही नागवार लग रहा था, ऐसे में उस ने कौसर को अपनी तरफ आकर्षित होते देखा तो उस के कदम भी गलत राह पर बढ़ चले.जब भी कौसर मुकीश बानो से हंसीमजाक करता तो वह शरमा कर वहां से हटने के बजाय वहीं खड़ी हंसती रहती. कभीकभी मजाक के बदले खुद भी मजाक कर लेती थी. कौसर भी समझने लगा था कि मुकीश बानो के दिल में भी वही चाहत है, जो उस के दिल में है. लेकिन चाहतों का मेल तभी संभव है, जब उस का इजहार किया जाए. कौसर ने इस के लिए एक तरीका भी सोच लिया. अगले दिन कौसर मुकीश बानो के घर आया तो वह चारपाई पर लेटी आराम कर रही थी. कौसर को आया देख वह उठ कर बैठ गई. कौसर भी चारपाई पर बैठ गया और साथ में लाया गुलाबी रंग का सूट मुकीश के हाथों में दे दिया.

सूट को हाथों में ले कर मुकीश तारीफ करती हुई वह बोली, ‘‘बहुत खूबसूरत सूट है, किस के लिए लाए हो?’’ ‘‘जाहिर है, खूबसूरत चीज खूबसूरत इंसान को ही दी जाती है और तुम से खूबसूरत तो यहां कोई है ही नहीं.’’‘‘ओह तो यह मेरे लिए लाए हो, लेकिन इस की जरूरत क्या थी?’’‘‘लगता है तुम मुझे पराया मानती हो.’’‘अरे नहीं, मैं तो ऐसा सपने में भी नहीं सोच सकती.’  इस पर कौसर मुकीश बानो का हाथ अपने हाथ में ले कर बोला, ‘‘मुझे अपना मानती हो तो मेरी बांहों में आ कर मेरे सीने से क्यों नहीं लग जातीं.’’
कौसर की आतुरता देख कर मुकीश बानो बोली, ‘‘बड़े बेसब्र हो रहे हो. यह जानते हुए भी कि मैं तुम्हारे दोस्त की बीवी हूं.’’

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‘‘दोस्त की बीवी हो तो क्या, यह कमबख्त दिल है, सब इस दिल की मुश्किल है. जब दिल जिस पर आ जाए तो फिर किसी की चिंता नहीं करता. सारी दरोदीवार तोड़ कर मिलन को व्याकुल हो उठता है.’’
‘‘लेकिन यह तो उस्मान के साथ धोखा होगा.’’‘‘कोई धोखा नहीं, कुछ पलों के लिए हम दोनों अपनी हसरतें पूरी कर लें तो इस में किसी का क्या जाएगा.’’ अपनी चाहत को पूरा करने के लिए वह मुकीश बानो को शब्दों के जाल में उलझाते हुए बोला.‘कहते तो तुम ठीक हो, फिर भी हमें होशियार रहना होगा. केवल अधूरी हसरतों को पूरा करने के लिए मैं तुम्हारा साथ देने को तैयार हुई हूं.’’ मुकीश बानो ने सहमति दी तो कौसर खुश हो गया.

उस ने मुकीश बानो को बांहों में भर लिया और उसे प्यार करने लगा. उस दिन दोनों के बीच की सारी दूरियां खत्म हो गईं और दिल के साथसाथ तन भी एक हो गए. यह 10 साल पहले की बात है.इस के बाद दोनों के नाजायज संबंध अनवरत चलने लगे. उस्मान को दोनों के संबंधों पर शक हुआ, लेकिन मुकीश बानो ने अपने हथकंडों से उस का शक खत्म कर दिया.समय गुजरता गया. मुकीश बानो के दोनों बच्चे बालिग हो गए. बेटा उम्मेद काम करने के लिए हैदराबाद चला गया.

10 साल पहले जब मुकीश बानो और कौसर के संबंध बने थे, तब मुकीश बानो की बेटी उस्मा 8 साल की थी. वह कौसर को चाचा कहती थी. अब वह जवान हो गई थी. 18 साल की उम्र में वह काफी आकर्षक दिखती थी. उस के यौवन की चमकदमक में कौसर के अरमान अंगड़ाई लेने लगे. उस के अंदर का शैतान जाग उठा.

कौसर उन लोगों में था, जो औरत के जिस्म को भोग का साधन समझते हैं. उन के लिए सारे रिश्ते बेमानी होते हैं. हवस में अंधे हो कर कौसर यह भी भूल गया कि वह उस की प्रेमिका की बेटी है, उसे बेटी की ही नजर से देखना चाहिए. लेकिन हवस के शैतान कौसर को तो सिर्फ उस का जिस्म दिख रहा था.कौसर ने उस्मा को अपने जाल में फंसाना शुरू कर दिया. वह उस से हंसीमजाक करता और खानेपीने की चीजें और बढि़या से बढि़या कपड़े दिलाता. उस्मा ने जब कौसर को अपने ऊपर मेहरबान देखा तो वह भी उस की बातें मानने लगीं.

बातोंबातों में कौसर ने उस्मा के साथसाथ छेड़छाड़ करनी शुरू कर दी. कभीकभी तो वह सारी हदें पार कर देता. उस्मा भी समझ गई कि कौसर की मेहरबानियों की वजह क्या है, पर वजह जान कर भी वह पीछे नहीं हटी, उस के कदम आगे बढ़ते गए. फिर एक दिन वह भी आया, जब वह कौसर की बांहों में समा गई. यह एक साल पहले की बात है.उस ने कौसर जैसे इंसान को पहचानने में बहुत बड़ी भूल कर दी. कौसर लगभग हर रोज उस के जिस्म से खेलने लगा. इस के बदले में वह उस्मा की खुशियों का खयाल रखता. कौसर की इस घिनौनी करतूत का  मुकीश बानो को भी पता लग गया, लेकिन वह कुछ नहीं बोली.
उस्मा अपनी मां और कौसर के संबंधों से वाकिफ थी. मुकीश बानो जानती थी कि उस ने बेटी उस्मा से कुछ कहा तो वह उस के संबंधों का राज अपने पिता के सामने खोल देगी. इसलिए उस ने चुप रहना ही मुनासिब समझा. कौसर ने उस्मा से संबंध इसी शर्त पर बनाए थे कि वह उस से निकाह कर लेगा. उस्मा उस के बहकावे में आ गई थी.

समय के साथ उस्मा कौसर पर निकाह के लिए दबाव बनाने लगी. जबकि कौसर पहले से शादीशुदा था. उस ने उस्मा को फांसने के लिए निकाह कर लेने का जाल फेंका था, जिस में उस्मा फंस गई थी. उस्मा से निकाह का उस का कोई इरादा नहीं था.जब उस्मा ने कौसर को निकाह के लिए टालमटोल करते देखा तो वह उसे धमकी देने लगी कि वह उस के और मां के संबंधों के बारे में अपने पिता उस्मान और कौसर की पत्नी को बता देगी. साथ ही दुष्कर्म के आरोप में उसे जेल भिजवा देगी.

इस धमकी से कौसर और मुकीश बानो सहम गए. 10 साल पुराने संबंधों के खुलने के डर से दोनों ने उस्मा को सबक सिखाने की ठान ली. मुकीश बानो अपने संबंधों को छिपाने के लिए अपने प्रेमी कौसर के साथ अपनी बेटी की हत्या की योजना बनाने लगी. 19 अगस्त की शाम कौसर उस्मान को ले कर ढाबे पर दावत खाने गया. दोनों रात 10 बजे वापस लौट कर आए. उस्मान आते ही घोड़े बेच कर सो गया.योजनानुसार रात 2 बजे कौसर उस्मान के घर आया. मुकीश बानो ने पहले से मेन गेट खोल दिया था. कौसर घर के अंदर आ गया तो मुकीश बानो उस का इंतजार करती मिली. उस्मा आराम से सो रही थी.

कौसर और मुकीश बानो ने एकदूसरे की ओर देखा और इशारा कर पलंग के नजदीक पहुंच गए. मुकीश बानो ने उस्मा के पैर पकड़े तो कौसर ने उस्मा के गले में पड़े दुपट्टे से उस का गला घोंट दिया, उस्मा की मौत हो गई.इतना सब हो गया लेकिन उस्मान सोता रहा, उसे भनक तक नहीं लगी. बनाई गई योजना के तहत कौसर ने चाकू से मुकीश बानो के गले पर कई निशान बना दिए. फिर वह अपने घर चला गया.

हकीकत सामने आ ही गई

3 बजे के करीब मुकीश बानो ने शोर मचाना शुरू कर दिया. शोर सुन कर उस्मान और आसपड़ोस के लोग जग गए. उन के आने पर मुकीश बानो ने बताया कि एक आदमी लूट के मकसद से घर में घुस आया, उस ने उस की बेटी उस्मा की हत्या कर दी और उसे भी घायल कर दिया. यह कहने के साथसाथ उस ने अपने गले में चाकू के निशान भी दिखाए.सुबह 4 बजे करैली गांव के प्रधान के ससुर मतीन खां ने सुभाषनगर थाने में घटना की सूचना दे दी. थाने का चार्ज एसएसआई खुर्शीद अहमद के पास था. सूचना पा कर खुर्शीद अहमद पुलिस टीम के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए.हत्याकांड की खबर एसएसपी शैलेश पांडेय तक पहुंची तो उन्होंने किला और सीबीगंज थाना पुलिस को भी मौके पर जाने को कहा और स्वयं भी वहां पहुंच गए.

19 वर्षीय उस्मा की लाश पलंग पर पड़ी थी. उस के गले में कसे जाने के निशान थे. दुपट्टा उस्मा के गले में पड़ा था. शायद उसी से गला कसा गया था. मृतका की मां मुकीश बानो के गले पर चाकू लगने के निशान थे.मुकीश बानो से पूछताछ की गई तो उस ने रात में लूट के मकसद से किसी बदमाश के घर में घुस आने की बात बताई. उस का कहना था कि उस्मा की हत्या उसी ने की थी. वह उस से उलझी तो वह चाकू मार कर उसे घायल कर के भाग गया. उस से बदमाश का हुलिया पूछा गया तो वह ठीक से नहीं बता पाई. फिलहाल लाश को पोस्टमार्टम के लिए मोर्चरी भेज दिया गया.

थाने लौट कर एसएसआई खुर्शीद अहमद ने मतीन खां की लिखित तहरीर के आधार पर अज्ञात के विरुद्ध भादंवि की धारा 302/324 के तहत मुकदमा दर्ज करा दिया.लगभग 11 बजे एसएसआई अहमद को एक मुखबिर से कौसर के बारे में पता चला कि वह उस्मान का दोस्त है और उसी के घर में  ही पड़ा रहता है. इस का मतलब यह था कि मामला अवैध संबंधों का था, जिसे लूट बता कर बरगलाया जा रहा था.एसएसआई अहमद ने कौसर को उस के घर से उठा लिया और थाने ला कर जब कड़ाई से पूछताछ की गई तो उस ने हत्या करने का जुर्म स्वीकार कर लिया.

साथ ही हत्या की वजह भी बयान कर दी. इस के बाद मुकीश बानो को भी गिरफ्तार कर लिया गया. दुपट्टा उस्मा के गले में मिल गया था, मुकीश बानो को घायल करने वाले चाकू को पुलिस ने कौसर की निशानदेही पर बरामद कर लिया.दोनों का डाक्टरी परीक्षण कराने के बाद पुलिस ने उन को सीजेएम कोर्ट में पेश किया, जहां से दोनों को जेल भेज दिया गया.

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धान की फसल  रोगों एवं कीटों से बचाव 

हमारे देश में खरीफ  की प्रमुख खाद्यान्न फसल धान है. इस की खेती असिंचित व सिंचित दोनों परिस्थितियों में की जाती है. धान की फसल में विभिन्न रोगों व कीटों का प्रकोप होता है. कीट व रोग प्रबंधन का कोई एक तरीका समस्या का समाधान नहीं बन सकता. इस लिए रोग व कीट प्रबंधन के उपलब्ध सभी उपायों को समेकित ढंग से अपनाया जाना चाहिए.प्रमुख रोग?ांका (ब्लास्ट)यह रोग पिरीकुलेरिया ओराइजी नामक कवक द्वारा होता है.

इस रोग के लक्षण सब से पहले पत्तियों पर दिखाई देते हैं, परंतु इस का हमला पर्णच्छद, पुष्पक्रम, गांठों और दानों के छिलकों पर भी होता है. पत्तियों पर आंख की आकृति के छोटे, नीले धब्बे बनते हैं जो बीच में राख के रंग के और किनारे पर गहरे भूरे रंग के होते हैं, जो बाद में बढ़ कर आपस में मिल जाते हैं. इस वजह से पत्तियां ?ालस कर सूख जाती हैं. तनों की गांठें पूरी तरह या उन का कुछ भाग काला पड़ जाता है. कल्लों की गांठों पर कवक के हमले से भूरे धब्बे बनते हैं, जिन के गांठ के चारों ओर से घेर लेने से पौध टूट जाते हैं. बालियों के निचले डंठल पर धूसर बादामी रंग के क्षतस्थल बनते हैं, जिसे ‘ग्रीवा विगलन’ कहते हैं. ऐसे डंठल बालियों के भार से टूट जाते हैं, क्योंकि निचला भाग ग्रीवा संक्रमण से कमजोर हो जाता है.

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बचाव का अवरोधी प्रजातियां जैसे नरेंद्र-118, नरेंद्र-97, पंत धान-6, पंत धान-11, सरजु-52, वीएल धान-81 आदि रोग रोधी किस्मों का प्रयोग करें.* इस रोग के नियंत्रण के लिए बोआई से पूर्व बीज को ट्राईसाइक्लैजोल 2 ग्राम या थीरम और कार्बंडाजिम (2:1) की 3 ग्राम मात्रा प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचारित करें.

रोग के लक्षण दिखाई देने पर 10-12 दिन के अंतराल पर या बाली निकलते समय  2 बार जरूरत के अनुसार कार्बंडाजिम  50 फीसदी घुलनशील धूल की 1 किलोग्राम मात्रा को 700-800 लिटर पानी में घोल कर प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करना चाहिए.* रोग का अधिक प्रकोप होने की दशा में ट्राईसाइक्लैजोल की 350 ग्राम मात्रा को 700-800 लिटर पानी में घोल बना कर प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करें, साथ ही स्टीकर/सरफेक्टेंट 500 मिलीलिटर प्रति हेक्टेयर मिलाएं.

भूरी चित्ती या भूरा धब्बायह रोग हेल्मिन्थोस्पोरियम ओराइजी कवक द्वारा होता है. इस रोग के कारण पत्तियों पर गोलाकार भूरे रंग के धब्बे बन जाते हैं. पौधों की बढ़वार कम होती है. दाने भी प्रभावित हो जाते हैं, जिस से उन की अंकुरण क्षमता पर भी बुरा असर पड़ता है. पत्तियों पर धब्बे आकार व माप में बहुत छोटे बिंदी से ले कर गोल आकार के होते हैं. पत्तियों पर ये काफी बिखरे रहते हैं.

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छोटा धब्बा गाढ़ा भूरा या बैगनी रंग का होता है. बड़े धब्बों के किनारे गहरे भूरे रंग के होते हैं और बीच का भाग पीलापन लिए गंदा सफेद या धूसर रंग का हो जाता है. धब्बे आपस में मिल कर बड़े हो जाते हैं और पत्तियों को सुखा देते हैं.बचाव* उर्वरकों खासकर नाइट्रोजन की संस्तुत मात्रा का ही प्रयोग करना चाहिए, क्योंकि नाइट्रोजन की अधिक मात्रा देने से रोग का प्रकोप बढ़ जाता है.

बीजों को थीरम और कार्बंडाजिम  (2:1) की 3 ग्राम दवा प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचारित कर के बोना चाहिए.खैरायह रोग मिट्टी में जस्ते की कमी के कारण होता है. इस में पत्तियों पर हलके पीले रंग के धब्बे बनते हैं, जो बाद में कत्थई रंग के हो जाते हैं. इस रोग के लक्षण पौधशाला में और रोपाई के 2-3 हफ्ते के अंदर छोटेछोटे टुकड़ों में प्रकट होते हैं. रोगग्रस्त पौधा छोटा रह जाता है. निचली सतह पर कत्थई रंग के धब्बे बनते हैं, जो एकदूसरे से मिल कर पूरी पत्ती को सुखा देते हैं. रोगग्रस्त पौधों की जड़ों की वृद्धि रुक जाती है. ऐसे पौधों में छोटीछोटी कमजोर बालियां निकलती हैं. उपज में कमी रोग की व्यापकता पर निर्भर करती है.

खेत में तैयारी के समय 25 किलोग्राम जिंक सल्फेट प्रति हेक्टेयर की दर से मिला  देना चाहिए. फसल पर 5 किलोग्राम जिंक सल्फेट और 2.5 किलोग्राम बु?ो चूने का 1,000 लिटर पानी में घोल बना कर प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करना चाहिए. पौधशाला में जिंक के 2 छिड़काव बोआई के 10 और 20 दिन बाद करने चाहिए. बु? हुए चूने के स्थान पर 20 किलोग्राम यूरिया प्रति हेक्टेयर की दर से प्रयोग किया जा सकता है.

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पौधे की जड़ों को रोपाई से पहले  2 फीसदी जिंक औक्साइड घोल में 1 से  2 मिनट के लिए डुबोना चाहिए.आभासी कंड या कंडुवायह रोग क्लेविसेप्स ओराइजीसैटावी नामक कवक द्वारा होता है. रोग के लक्षण पौधों में बालियों के निकलने के बाद ही स्पष्ट होते हैं. रोगग्रस्त दानों के अंदर कवक, अंडाशय को एक बड़े कूटरूप में बदल देता है, जो पहले पीले रंग का और बाद में जैतूनी हरा आकार में धान के दानों से दोगुने से भी बड़ा हो जाता है. इस पर बहुत अधिक संख्या में बीजाणु चूर्ण के रूप  में होते हैं. उपज में हानि केवल रोगग्रस्त दानों से ही नहीं, बल्कि इस के ऊपर और नीचे के स्पाइकाओं में दाने न पड़ने से भी होती है.बचाव फसल कटाई से पहले ग्रसित पौधों  को सावधानी से काट कर अलग कर लें व  जला दें.

गरमी में खेत की जुताई करने से रोगजनक के स्वकेलेरोशिया नष्ट किए जा सकते हैं. रोगी खेत से बीज नहीं लेना चाहिए. रोगी दानों को कटाई से पहले अलग कर देना चाहिए या रोगी पौधों को उखाड़ कर जला देना चाहिए. बीजोपचार कार्बंडाजिमथीरम मिश्रण की 2.5 ग्राम से प्रति किलोग्राम बीज के  अनुसार करें.जिन क्षेत्रों में यह रोग अधिक लगता है, उन क्षेत्रों में पुष्पन के दौरान कवकनाशी रसायन जैसे प्रोपीकोनाजाल (टिल्ट) की 1 मिलीलिटर लिटर या क्लोरोथेलोनिल (कवच) 2 ग्राम प्रति लिटर की दर से पहला छिड़काव बाली निकलने के समय व दूसरा छिड़काव जब बाली पूरी तरह से निकल आई हो,

करने से रोग की रोकथाम की जा सकती है.जीवाणु ?लसायह रोग जैन्थोमोनास कैम्पोस्ट्रिस का स्पि. ओराइजिकोला द्वारा होता है. मुख्य रूप से यह पत्तियों का रोग है. इस रोग के कारण शुरुआत में पीले या पुआल के रंग के लहरदार धब्बे पत्ती के एक या दोनों किनारों के सिरे से शुरू हो कर नीचे की ओर बढ़ते हैं. ये धारियां शिराओं से घिरी रहती हैं और पीली या नारंगी कत्थई रंग की हो जाती हैं. मोती की तरह छोटेछोटे पीले से गेरुआ रंग के जीवाणु पदार्थ धारियों पर पाए जाते हैं,

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जो पत्तियों की दोनों सतह पर होते हैं. कई धारियां आपस में मिल कर बड़े धब्बे का रूप ले लेती हैं. इस वजह से पत्तियां समय से पहले ही सूख जाती हैं. पर्णच्छद भी चिपट जाते हैं. इस पर लक्षण पत्तियों के समान ही होते हैं. रोग की उग्र अवस्था में ग्रस्त पौधे पूरी तरह से मर जाते हैं.बचाव रोग सहिष्णु किस्में जैसे : नरेंद्र पंत-359, पंत धान 4, पंत धान 10 और मंहर आदि उगाएं.

खेत से अतिरिक्त पानी समयसमय पर निकालते रहना चाहिए और नाइट्रोजन प्रधान उर्वरकों का प्रयोग तय मात्रा से अधिक नहीं करना चाहिए.* बोने से पूर्व बीज को उपचारित कर लेना चाहिए.पर्णच्छद अंगमारी (शीथ ब्लाइट)यह रोग राइजोक्टोनिया सोलेनाई द्वारा पैदा होता है. इस रोग के लक्षण मुख्यत: पत्तियों व पर्णच्छंद पर दिखाई देते हैं. पर्णच्छद पर पत्ती की सतह से ऊपर 1 सैंटीमीटर लंबे गोल या अंडाकार हरे पुआल के रंग या मटमैले धब्बे प्रकट होते हैं, जो बाद में बढ़ कर 2-3 सैंटीमीटर लंबे व 1 सैंटीमीटर चौड़े,

अनियमित आकार क्षतस्थल बना देते हैं. क्षतस्थल बाद में बढ़ कर तने को चारों ओर से घेर लेते हैं. अनुकूल परिस्थितियों में फफूंद छोटेछोटे भूरे काले रंग के दाने पत्तियों की सतह पर पैदा करता है, जिन्हें स्क्लेरोशिया कहते हैं. ये स्क्लेरोशिया हलका ?टका लगने पर नीचे गिर जाते हैं.बचाव* फसल काटने के बाद अवषेशों को जला दें.

खेतों में अधिक पानी नहीं भरना चाहिए. पानी की निकासी का ध्यान रखें.* रोग की रोकथाम के लिए मैंकोजेब और कार्बंडाजिम का मिश्रण 2.5 ग्राम या प्रोपेकोनाजोल 1 मिलीलिटर या हेक्साकोनेजोल 2 मिलीलिटर प्रति लिटर पानी की दर से घोल बना कर 15 दिन के अंतर पर छिड़काव करना चाहिए. पहला छिड़काव रोग दिखाई देते ही और दूसरा छिड़काव 15 दिन बाद करना चाहिए.बकनी व तना विगलनयह रोग जिबरेला फ्यूजीकुरोई कवक के द्वारा होता है. यह रोग जापान में सब से पहले देखा गया. बकनी एक जापानी शब्द है, जिस का मतलब मुखी पौधे से है. इस रोग से पौधशाला में पौधे पीले, पतले व दूसरे स्वस्थ पौधों के विपरीत काफी लंबे हो जाते हैं. इस अवस्था में पौधे सूख कर मर जाते हैं.

रोग से ग्रस्त रोपित पौधे भी इसी प्रकार के लक्षण प्रदर्शित करते हैं.बचाव प्रभावित पौधों को खेत से सावधानी से उखाड़ कर नष्ट कर देना चाहिए. रोगी खेत से बीज का चुनाव नहीं करना चाहिए. बीजों को बोआई से पहले ट्राईकोडर्मा  5 ग्राम या 2.5 ग्राम कार्बंडाजिम प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचारित करना चाहिए.प्रमुख कीटतना बेधकधान की फसल में इस कीट का प्रकोप बहुत ज्यादा होता है. प्रमुख रूप से पीला तना बेधक हमला करता है. इस कीट के प्रौढ़ लंबे, पीले या सफेद रंग होते हैं. कीट की सूंडि़यां पीले या मटमैले रंग की होती हैं, जो तने को छेद कर अंदर ही अंदर खाती रहती हैं. इस के प्रकोप से पौधे का मध्य तना सूख जाता है, जिसे ‘मृत गोभ’ कहते हैं. इस कीट के हमले के बाद धान की बाली बिना दाने वाली निकलती है. बाली वाली अवस्था में प्रकोप होने पर बालियां सूख कर सफेद हो जाती है और दाने नहीं बनते हैं. ऐसी बालियां ऊपर से खींचने पर आसानी से खिंच जाती हैं, जिसे सफेद बाली कहते हैं.

इस कीट का आर्थिक हानि स्तर 5-10 फीसदी मृत केंद्र या सफेद बाली प्रति वर्गमीटर आंकी गई है.प्रबंधन* पौध की 1.5-2.0 इंच ऊपरी पत्तियों को काट कर रोपाई करें, जिस से कीट द्वारा दिए गए अंडे नष्ट हो जाते हैं. फसल पर तना बेधक और पत्ती लपेटक कीट का प्रकोप होने पर ट्राईकोग्रामा जपोनिकम नामक परजीवी (ट्राईकोकार्ड) के 1.0-1.5 लाख अंडे प्रति हेक्टेयर का प्रयोग करें.तना बेधक कीट के लिए प्रतिरोधक प्रजातियों जैसे : रत्ना, पंतधान-6, सुधा, वीएल-206 को उगाएं. 5 फीसदी नीम के तेल का छिड़काव करना चाहिए.

खेत में 20 गंध पास (फैरोमौन ट्रैप) प्रति हेक्टेयर की दर से लगा कर वयस्क कीटों को एकत्र कर नष्ट किया जा सकता है. 5 फीसदी सूखी बालियां दिखाई देने पर कारटाप हाइड्रोक्लोराइड 4 फीसदी दानेदार दवा 18 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से खेत में डाल कर पानी लगा दें या फिब्रोनिल  5 फीसदी एससी की 400-600 मिली. मात्रा को 500-600 लिटर पानी के साथ सरफेक्टेंट 500 मिलीलिटर घोल कर प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करें.पत्ती लपेटकइस का प्रकोप अगस्तसितंबर महीने में अधिक होता है.

इस कीट के कारण खेत में मुड़ी हुई बेलनाकार पत्तियां दिखाई देने लगती हैं, जिन के अंदर सूंड़ी पत्ती के हरे भाग को खाती रहती हैं. प्रभावित खेत में धान की पत्तियां सफेद व ?लसी हुई दिखाई देती हैं. कीट की इल्लियां (सूंड़ी) अंडों से निकलने के कुछ समय बाद इधरउधर विचरण कर अपनी लार द्वारा रेशमी धागा बना कर पत्ती के किनारों को मोड़ लेती हैं और वहां  रहते हुए पत्ती को खुरचखुरच कर खाती हैं. कीट के पनपने के लिए तापमान 25-30 सैंटीग्रेड और वायु में नमी 83-90 फीसदी उपयुक्त दशा है.प्रबंधन खेत में जगहजगह प्रकाश प्रपंच लगा कर वयस्क कीटों को एकत्र कर नष्ट कर दें.

2 ट्राईकोकार्ड्स प्रति हेक्टेयर की दर से 10-15 दिन के अंतराल पर 4-5 बार खेत में जगहजगह पर समान दूरी पर लगाएं.अधिक प्रकोप होने की दशा में एसीफेंट 50 एसपी की 700 ग्राम या फिप्रोनिल 5 एसपी की 600 मिलीलिटर या ट्राईजोफास 40 ईसी 400 मिलीलिटर प्रति हेक्टेयर की दर से प्रयोग करना चाहिए.गंधी बगइस का वयस्क लगभग 15 मिलीमीटर लंबा और हरेभूरे से गहरे भूरे रंग का होता है. इस कीट की पहचान इस से आने वाली दुर्गंध द्वारा आसानी से की जा सकती है. कीट के नवजात और प्रौढ़ दोनों ही दुग्धावस्था में बालियों के दूध को चूसते हैं, जिस से बालियों में दाने नहीं बन पाते हैं.

रस चूसने वाले बिंदु पर दानों में भूरा दाग बन जाता है और दाने खोखले रह जाते हैं.  इस के नियंत्रण के लिए खेतों के किनारों से खरपतवारों को समयसमय पर निकालते रहना चाहिए क्योंकि ये कीट इन पर पलते हैं तथा दूधिया दाने बनने की अवस्था में ही फसल पर आक्रमण करते हैं.प्रबंधन  खेत की मेंड़ों पर उगी हुई घासों की सफाई करें.

5 फीसदी नीम के सत का खड़ी फसल में छिड़काव करना चाहिए. कीट का प्रकोप 1 बग/?ांड से अधिक होने पर इमिडाक्लोप्रिड 300 मिलीलिटर मात्रा को 600-800 लिटर पानी में घोल बना कर छिड़काव करें.दीमकदीमक एक सामाजिक कीट है, जो  लगभग सभी फसलों में नुकसान पहुंचाता है. दीमक के परिवार में राजा, रानी श्रमिक व सैनिक सहित 4 सदस्य मौजूद रहते हैं. परिवार में रानी की संख्या केवल एक होती है, जो बच्चे देने का काम करती है. दीमक का प्रकोप बलुई मिट्टी वाले और असिंचित क्षेत्रों में अधिक होता है. दीमक उन सभी वस्तुओं को सामान्यत: नुकसान पहुंचाती है, जिन में सेल्यूलोज पाया जाता है. ये जड़ और तने को खा कर सुखा देते हैं. इस तरह के सूखे हुए पौधों को आसानी से उखाड़ा जा सकता है.??प्रबंधन* गरमी के मौसम में एक गहरी जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से करते हैं,

जिस से हानिकारक कवक, जीवाणु, कटुआ कीट की सूंडि़यां और सभी प्यूपा और अन्य कीटों की विभिन्न अवस्थाएं, जो जमीन के अंदर सुषुप्तावस्था में पड़ी रहती हैं, जमीन के ऊपर आने से तेज धूप की गरमी के कारण और चिडि़यों द्वारा नष्ट कर दी जाती हैं. कच्चे गोबर को खेत में नहीं डालें, क्योंकि इस से दीमक का प्रकोप बढ़ता है.* सिंचाई की समुचित व्यवस्था करें.दीमक के घरों को नष्ट कर रानी को मार दें. ब्यूवेरिया बोसियाना की 2.5 किलोग्राम मात्रा को 30 किलोग्राम अच्छी सड़ी हुई गोबर की खाद में मिला कर खेत की तैयारी के समय प्रति हेक्टेयर की दर से जमीन में मिला दें.

खड़ी फसल में प्रकोप होने पर क्लोरोपाइरीफास 20 ईसी 2-3 लिटर प्रति हेक्टेयर की दर से 10-20 किलोग्राम बालू में मिला कर उचित नमी पर शाम के समय बुरकाव करें.धान के फुदकेधान में अमूमन 2 तरह के फुदके आक्रमण करते हैं, उजली पीठ वाला फुदका और भूरा फुदका़ भूरे फुदके के प्रौढ़ भूरे रंग के होते हैं, जिन की लंबाई लगभग 3.5-4.5 मिलीलिटर तक होती है. इस कीट के नन्हे फुदके और प्रौढ़ दोनों ही पौधों की कोशिकाओं का रस चूसते हैं, जिस से पौधा पीला पड़ जाता है. इस के अधिक हमले की दशा में फुदका ?लसा जैसे लक्षण प्रकट होते हैं. इस में ये फसल के किसी एक स्थान से शुरू हो कर पूरे खेत में फैल जाते हैं. इस के अलावा ये कीटग्रासी स्टंट नाम के विषाणु रोग को फैलाने में भी अहम भूमिका निभाते हैं.प्रबंधन  लीफ हौपर और प्लांट हौपर के नियंत्रण में लाइकोसा प्रजाति की मकड़ी अधिक कारगर होती है. इसलिए खेत में मकड़ी की संख्या बढ़ाने के लिए मेंड़ पर जगहजगह धान की पुआल के गट्ठर डाल देने चाहिए.

उपर्युक्त तकनीक का उत्तर प्रदेश और हरियाणा के कुछ गांवों में सफलतापूर्वक क्रियान्वयन किया गया, जिस से कीट व रोगनाशी रसायनों के प्रयोग और लागत में कमी आई व उपज में वृद्धि हुई. कीट का प्रकोप होने की दशा में यूरिया का खड़ी फसल में छिड़काव बंद कर दें.फसल में मित्र कीटों और मकडि़यों का संरक्षण करना चाहिए. कीटों का अधिक प्रकोप होने की दशा में थायोमेथोक्जाम 300 ग्राम या इमिडाक्लोप्रिड 300 मिलीलिटर दवा का प्रति हेक्टेयर की दर से 600-800 लिटर पानी में घोल बना कर छिड़काव करें.धान का हिस्पा यह काले रंग का कीट होता है.

इस के शरीर पर छोटछोटे कांटेनुमा रोएं होते हैं. इस की लंबाई 5 मिलीमीटर तक होती है. इस के गिडार व वयस्क दोनों ही पत्तियों को खुरच कर उस के हरे भाग को खाते हैं, जिस से पत्तियां सूख जाती हैं.प्रबंधन* रोपाई के पहले पौध के शिरों को थोड़ा काट दें, बाद में रोपाई करें. ?ांड में 1-2 कीट प्रति ?ांड दिखाई देने पर फ्रिवोनिल 2 मिलीलिटर प्रति लिटर पानी की दर या मैथोमिल 2.0 ग्राम प्रति लिटर पानी की दर से घोल बना कर छिड़काव करें.

कैसे निबटें पैनिक डिसऔर्डर से

एक दिन सीमा अपनी गाड़ी चलाते हुए औफिस से घर जा रही थी. अचानक किसी बाइक वाले ने गलती से सीमा की गाड़ी में टक्कर मार दी. हमेशा शांत रहने वाली सीमा अचानक भरी सड़क पर बाइक वाले से लड़ने लगी. बाइक वाले द्वारा बारबार माफी मांगने पर भी वह अपना आपा खो बैठी और आधे घंटे तक लड़ती रही. दरअसल, उसे पैनिक अटैक आ गया था और उसे कुछ समय बाद एहसास हुआ, जिस से उसे बहुत शर्मिंदगी हुई, उस घटना के बाद वह हमेशा ड्राइविंग से कतराने लगी. हालांकि सिर्फ ड्राइविंग कम करने से भी यह परेशानी दूर नहीं हुई बल्कि समय के साथ उस की बेचैनी बढ़ने लगी. छोटीछोटी बातों पर वह अपना आपा खो बैठती.

यह देख कर सीमा के पति पंकज ने सीमा को बिना बताए डाक्टर से सलाह लेने की सोची और डाक्टर ने उन्हें सीमा को ठीक करने के तरीके बताए, जिस से सीमा स्वस्थ और पहले जैसी शांत महसूस करने लगी.

पैनिक डिसऔर्डर एक ऐसा मनोरोग है जिस में किसी बाहरी खतरे के बावजूद विभिन्न शारीरिक लक्षणों, मसलन, दिल की धड़कन का असामान्य हो जाना तथा चक्कर आना आदि के साथ लगातार और आकस्मिक रूप से रोगी आतंकित हो जाता है. ये आतंकित कर देने वाले दौरे, जो कि पैनिक डिसऔर्डर की पहचान हैं, तब आते हैं जब किसी खतरे पर प्रतिक्रिया व्यक्त करने की सामान्य मानसिक प्रक्रिया तथा कथित संघर्ष अनुपयुक्त रूप से जाग जाता है.

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पैनिक डिसऔर्डर से ग्रस्त अधिकतर लोग अगले अटैक की संभावना को ले कर चिंतित रहते हैं और उन स्थितियों से बचने की कोशिश करते हैं जिन में उन के अनुसार यह भय का दौरा पड़ सकता है.

शुरुआती पैनिक अटैक

आमतौर पर पहला पैनिक अटैक कभी भी हो सकता है, जैसे कार चलाते हुए या काम के लिए जाते हुए. सामान्य गतिविधियों के दौरान एकाएक व्यक्ति डराने वाले तथा तकलीफदेह लक्षणों से ग्रस्त हो जाता है. ये लक्षण कुछ सैकंड तक जारी रहते हैं लेकिन कई मिनट तक भी यह स्थिति बनी रह सकती है. ये लक्षण लगभग एक घंटे के भीतर सामान्य हो जाते हैं. जिन लोगों पर यह दौरा पड़ चुका है वे बता सकते हैं कि उन्होंने किस तरह की बेचैनी के साथ यह डर महसूस किया था कि उन्हें कोई बहुत खतरनाक जानलेवा बीमारी हो गई है या फिर वे पागल हो रहे हैं.

ऐसे कुछ लोग जिन्हें एक पैनिक अटैक या फिर कभीकभार जिन का सामना इस दौरे से हुआ हो, उन में ऐसी किसी समस्या का विकास नहीं होता जो उन के जीवन को प्रभावित करे लेकिन दूसरों के लिए इस स्थिति का जारी रहना असहनीय हो जाता है. पैनिक डिसऔर्डर में आतंकित कर देने वाले दौरे जारी रहते हैं और व्यक्ति के मन में यह डर समा जाता है कि उसे अगले दौरे का सामना कभी भी करना पड़ सकता है.

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यह भय जिसे अग्रिम बेचैनी या डर का खौफ कहते हैं, अधिकतर समय मौजूद रहता है और व्यक्ति के जीवन को गंभीर रूप से तब भी प्रभावित कर सकता है जब उस पर दौरा नहीं पड़ा हो. इस के साथसाथ उस के मन में उन स्थितियों को ले कर भयंकर फोबिया का जन्म हो जाता है जिन में उस पर दौरा पड़ा था.

उदाहरण के लिए अगर किसी को गाड़ी चलाते वक्त पैनिक अटैक हुआ हो तो वह आसपास जाने के लिए भी गाड़ी चलाने में डरता है. जिन लोगों में आतंक से जुड़े इस फोबिया का विकास हो गया हो वे उन स्थितियों से बचने की कोशिश करने लगते हैं जिन के बारे में उन्हें आशंका रहती है कि उन को दौरा पड़ सकता है. परिणामस्वरूप वे अपनेआप को लगातार सीमित करते चले जाते हैं. उन का काम प्रभावित होता है क्योंकि वे बाहर निकलना नहीं चाहते और न ही समय पर अपने काम पर पहुंचते हैं.

इन दौरों की वजह से व्यक्ति के संबंध भी प्रभावित होते हैं. नींद पर असर पड़ता है और रात में दौरा पड़ने की स्थिति में व्यक्ति आतंकित हो कर जाग जाता है. यह अनुभव इतना हिला देने वाला होता है कि कई लोग सोने से भी डरने लगते हैं और थकेथके से रहते हैं. दौरा न पड़े, तब भी डर की वजह से नींद प्रभावित होती है.

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इस सिलसिले में डाक्टर से मिलने के बाद जब यह पता चल जाता है कि जीवन पर खतरे की कोई स्थिति नहीं है तब भी इस दौरे से प्रभावित बहुत से लोग आतंक में डूबे रहते हैं. वे बहुत से चिकित्सकों के पास दिल की बीमारी या सांस की समस्या के इलाज के लिए भी जाया करते हैं. इस बीमारी के लक्षणों की वजह से बहुत से मरीज यह समझते हैं कि उन्हें कोई न्यूरोलौजिकल बीमारी या फिर कोई गंभीर गैस्ट्रौइनटैस्टाइनल समस्या हो गई है. कुछ मरीज कई चिकित्सकों से मिल कर महंगी और अनावश्यक जांच करवाते हैं ताकि यह मालूम किया जा सके कि इन लक्षणों की वजह क्या है.

चिकित्सकीय सहायता की यह खोज लंबे समय तक भी जारी रह सकती है क्योंकि इन मरीजों की जांच करने वाले बहुत से चिकित्सक पैनिक डिसऔर्डर की पहचान करने में असफल रहते हैं. जब चिकित्सक बीमारी की थाह पा भी लेते हैं तब भी कभीकभी वे इस की व्याख्या करते हुए यह सलाह दे देते हैं कि खतरे की कोई बात नहीं है और इलाज की कोई जरूरत नहीं है.

उदाहरण के लिए, चिकित्सक यह कह सकते हैं कि चिंता की कोई बात नहीं है. आप को सिर्फ पैनिक डिसऔर्डर अटैक हुआ था. हालांकि इस का उद्देश्य सिर्फ हौसलाअफजाई होता है, फिर भी ये शब्द उस चिंतित मरीज के लिए बेहद निराशाजनक होते हैं जोकि बारबार इस तरह के आतंकित करने वाले दौरों की चपेट में रहता है. मरीज को यह बताया जाना जरूरी है कि चिकित्सक अशक्त बना देने वाले पैनिक डिसऔर्डर से होने वाली परेशानी को समझते हैं और उन का मानना है कि इस का इलाज प्रभावी ढंग से किया जा सकता है.

क्या है इलाज

चिकित्सीय इलाज पैनिक डिसऔर्डर से पीडि़त मरीजों में 70 से 80 प्रतिशत को राहत पहुंचा सकता है और शुरुआती इलाज इस रोग को एगोराफोबिया की स्थिति तक नहीं पहुंचने देता. किसी भी इलाज की शुरुआत से पूर्व मरीज की पूरी चिकित्सकीय जांच की जानी चाहिए ताकि यह पता चल सके कि हताशा के इन लक्षणों की और कोई वजह तो नहीं है.

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ऐसा इसलिए आवश्यक है क्योंकि थायराइड हार्मोन से खास तरह की ऐपिलैप्सी और हृदय संबंधी समस्या बढ़ जाती है और पैनिक डिसऔर्डर से मिलतेजुलते लक्षण पैदा हो सकते हैं.

कौगनिटिव बिहेवियरल थैरेपी कही जाने वाली साइकोथैरेपी के प्रयोग और दवाओं के सेवन द्वारा पैनिक डिसऔर्डर का इलाज किया जा सकता है. इलाज का चयन व्यक्तिगत जरूरतों तथा प्राथमिकताओं के मुताबिक किया जाता है.

(लेखक सरोज सुपर स्पैशलिटी अस्पताल, नई दिल्ली में मनोचिकित्सक हैं)

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पैनिक अटैक समस्या नहीं

35 वर्षीय रोहण बैंक एग्जीक्यूटिव है. वह काम के लिए रोज दादर स्टेशन से मुंबई सीएसटी जाता था. एक दिन जब वह काम पर जा रहा था तो सीएसटी से पहले के ही स्टेशन पर उतर गया. जब वह वापस उस ट्रेन में नहीं चढ़ पाया तो दूसरी ट्रेन का सहारा ले कर औफिस लेट पहुंचा. बौस ने उसे डांटा तो वह वहीं बेहोश हो कर गिर पड़ा. थोड़ी देर बाद सबकुछ सामान्य हो गया. पर इस के बाद से जब भी बारिश होती या ट्रेन लेट आती, भले औफिस में कोई कुछ नहीं कहता, पर वह पैनिक हो जाता. उसे बेहोशी छाने लगती. दिनप्रतिदिन उस का परफौर्मेंस बिगड़ने लगा. धीरेधीरे नौबत ऐसी आ गई कि वह ट्रेन में भीड़ देख कर घबराने लगता. बैठने की जगह न हो तो परेशान हो जाता. ठंड में भी पसीने छूटने लगते. उस का खानापीना कम होने लगा. वह बीमार दिखने लगा. उस की पत्नी सीमा ने कई डाक्टरों से सलाह ली. सभी ने जांच की पर कोई समस्या नहीं दिखी. किसी दोस्त ने मनोचिकित्सक के पास ले जाने की सलाह दी. सीमा, रोहण को डा. पारुल टौक के पास ले गई. डाक्टर ने करीब 1 महीने की काउंसलिंग और दवा के जरिए रोहण को ठीक किया.

ऐसी ही एक और घटना है. 45 वर्षीय अनुराधा को हमेशा छाती में दर्द की शिकायत रहती थी. घबराहट में उसे चक्कर आने लगते थे और वह कई बार बेहोश हो कर गिर पड़ती थी. उस के पति धीरेन को अपनी पत्नी को ले कर काफी चिंता सताने लगी. उन्होंने सब से पहले कार्डियोलौजिस्ट से संपर्क किया. जांच के बाद डाक्टर को कोई भी समस्या नहीं दिखी. धीरेन पेट के डाक्टर के पास भी गए क्योंकि उन की पत्नी को पेटदर्द, बारबार दस्त का लगना आदि समस्या थी. वहां भी जांच में कुछ नहीं निकला. फिर फैमिली फिजीशियन की सलाह पर वे मनोचिकित्सक के पास गए. वहां पता चला कि अनुराधा पैनिक अटैक की शिकार है.

पैनिक अटैक के बारे में मुंबई के फोर्टिस अस्पताल और निमय हैल्थकेयर की मनोचिकित्सक डा. पारुल टौक कहती हैं, ‘‘इस तरह की समस्या किसी भी उम्र की महिला, पुरुष या युवा को हो सकती है. यही अटैक आगे चल कर फोबिया या डिप्रैशन का कारण बनता है. यह कोई बड़ी बीमारी नहीं है. इसे आसानी से और बिना अधिक खर्च किए मरीज को ठीक किया जा सकता है. लक्षणों का पता चलते ही तुरंत किसी मनोचिकित्सक से मिल कर इलाज करवाएं.’’

पैनिक अटैक आने पर क्या करें

अगर आप के परिवार में या आप के आसपास किसी व्यक्ति को पैनिक अटैक आए तो घबराएं नहीं, बल्कि उस कठिन परिस्थिति में आप उस व्यक्ति की सहायता कर सकते हैं

–       शांत रहें और पीडि़त व्यक्ति की शांत रहने में सहायता करें.

–       अगर वह व्यक्ति एंग्जाइटी की दवा लेता है तो उसे यह दवा तुरंत दें.

–       उस की समस्या को तुरंत और संक्षेप में समझने का प्रयास करें.

–       उस व्यक्ति को दोनों हाथ सिर के ऊपर सीधे उठाने में सहायता करें.

–       पैनिक होने की स्थिति में व्यक्ति को टहलाने ले जाएं, स्ट्रैचिंग या कूदने को कहें.

–       पीडि़त को धीरेधीरे सांस लेने को कहें और इस में उस की सहायता करें. नाक से लंबी सांस लें और मुंह से छोड़ें.

–       तुरंत किसी पास के अस्पताल में ले जाएं.

–       व्यक्ति को पैनिक अटैक से बचाए रखने के लिए उस को प्रोत्साहित करते रहें.

–       यदि स्थिति बिगड़ जाए तो उसे विश्वास दिलाएं कि यह कोई बड़ी बात नहीं है.

–       मातापिता हमेशा बच्चे का आत्मविश्वास बढ़ाते रहें. जैसे कुछ भी अच्छा काम करने पर तारीफ करें या कहें, हमें तुम पर नाज है.

–       नियमित तौर पर हैड मसाज देते रहें.

–       व्यक्ति से हमेशा अपने दिल की बात खुल कर बताने को कहें.

अंतत-भाग 1: रघुवीर और माधवी के रिश्ते क्या फिर से जुड़ पाए?

बैठक में तनावभरी खामोशी छा गई थी. हम सब की नजरें पिताजी के चेहरे पर कुछ टटोल रही थीं, लेकिन उन का चेहरा सपाट और भावहीन था. तपन उन के सामने चेहरा झुकाए बैठा था. शायद वह समझ नहीं पा रहा था कि अब क्या कहे. पिताजी के दृढ़ इनकार ने उस की हर अनुनयविनय को ठुकरा दिया था.

सहसा वह भर्राए स्वर में बोला, ‘‘मैं जानता हूं, मामाजी, आप हम से बहुत नाराज हैं. इस के लिए मुझे जो चाहे सजा दे लें, किंतु मेरे साथ चलने से इनकार न करें. आप नहीं चलेंगे तो दीदी का कन्यादान कौन करेगा?’’

पिताजी दूसरी तरफ देखते हुए बोले, ‘‘देखो, यहां यह सब नाटक करने की जरूरत नहीं है. मेरा फैसला तुम ने सुन लिया है, जा कर अपनी मां से कह देना कि मेरा उन से हर रिश्ता बहुत पहले ही खत्म हो गया था. टूटे हुए रिश्ते की डोर को जोड़ने का प्रयास व्यर्थ है. रही बात कन्यादान की, यह काम कोई पड़ोसी भी कर सकता है.’’

‘‘रघुवीर, तुझे क्या हो गया है,’’ दादी ने सहसा पिताजी को डपट दिया.

मां और भैया के साथ मैं भी वहां उपस्थित थी. लेकिन पिताजी का मिजाज देख कर उन्हें टोकने या कुछ कहने का साहस हम लोगों में नहीं था. उन के गुस्से से सभी डरते थे, यहां तक कि उन्हें जन्म देने वाली दादी भी.

मगर इस समय उन के लिए चुप रहना कठिन हो गया था. आखिर तपन भी तो उन का नाती था. उसे दुत्कारा जाना वे बरदाश्त न कर सकीं और बोलीं, ‘‘तपन जब इतना कह रहा है तो तू मान क्यों नहीं जाता. आखिर तान्या तेरी भांजी है.’’

‘‘मां, तुम चुप रहो,’’ दादी के हस्तक्षेप से पिताजी बौखला उठे, ‘‘तुम्हें जाना हो तो जाओ, मैं ने तुम्हें तो कभी वहां जाने से मना नहीं किया. लेकिन मैं नहीं जाऊंगा. मेरी कोई बहन नहीं, कोई भांजी नहीं.’’

‘‘अब चुप भी कर,’’ दादी ने झिड़क कर कहा, ‘‘खून के रिश्ते इस तरह तोड़ने से टूट नहीं जाते और फिर मैं अभी जिंदा हूं, तुझे और माधवी को मैं ने अपनी कोख से जना है. तुम दोनों मेरे लिए एकसमान हो. तुझे भांजी का कन्यादान करने जाना होगा.’’

‘‘मैं नहीं जाऊंगा,’’ पिताजी बोले, ‘‘मेरी समझ में नहीं आता कि सबकुछ जानने के बाद भी तुम ऐसा क्यों कह रही हो.’’

‘‘मैं तो सिर्फ इतना जानती हूं कि माधवी मेरी बेटी है और तेरी बहन और तुझे उस ने अपनी बेटी का कन्यादान करने के लिए बुलाया है,’’ दादी के स्वर में आवेश और खिन्नता थी, ‘‘तू कैसा भाई है. क्या तेरे सीने में दिल नहीं. एक जरा सी बात को बरसों से सीने से लगाए बैठा है.’’

‘‘जरा सी बात?’’ पिताजी चिढ़ गए थे, ‘‘जाने दो, मां, क्यों मेरा मुंह खुलवाना चाहती हो. तुम्हें जो करना है करो, पर मुझे मजबूर मत करो,’’ कह कर वे झटके से बाहर चले गए.

दादी एक ठंडी सांस भर कर मौन हो गईं. तपन का चेहरा यों हो गया जैसे वह अभी रो देगा. दादी उसे दिलासा देने लगीं तो वह सचमुच ही उन के कंधे पर सिर रख कर फूट पड़ा, ‘‘नानीजी, ऐसा क्यों हो रहा है. क्या मामाजी हमें कभी माफ नहीं करेंगे. अब लौट कर मां को क्या मुंह दिखाऊंगा. उन्होंने तो पहले ही शंका व्यक्त की थी, पर मैं ने कहा कि मामाजी को ले कर ही लौटूंगा.’’

‘‘धैर्य रख, बेटा, मैं तेरे मन की व्यथा समझती हूं. क्या कहूं, इस रघुवीर को. इस की अक्ल पर तो पत्थर पड़ गए हैं. अपनी ही बहन को अपना दुश्मन समझ बैठा है,’’ दादी ने तपन के सिर पर हाथ फेरा, ‘‘खैर, तू चिंता मत कर, अपनी मां से कहना वह निश्चिंत हो कर विवाह की तैयारी करे, सब ठीक हो जाएगा.’’

मैं धीरे से तपन के पास जा बैठी और बोली, ‘‘बूआ से कहना, दीदी की शादी में मैं और समीर भैया भी दादी के साथ आएंगे.’’

तपन हौले से मुसकरा दिया. उसे इस बात से खुशी हुई थी. वह उसी समय वापस जाने की तैयारी करने लगा. हम सब ने उसे एक दिन रुक जाने के लिए कहा, आखिर वह हमारे यहां पहली बार आया था. पर तपन ने यह कह इनकार कर दिया कि वहां बहुत से काम पड़े हैं. आखिर उसे ही तो मां के साथ विवाह की सारी तैयारियां पूरी करनी हैं.

तपन का कहना सही था. फिर उस से रुकने का आग्रह किसी ने नहीं किया और वह चला गया.

तपन के अचानक आगमन से घर में एक अव्यक्त तनाव सा छा गया था. उस के जाने के बाद सबकुछ फिर सहज हो गया. पर मैं तपन के विषय में ही सोचती रही. वह मुझ से 2 वर्ष छोटा था, मगर परिस्थितियों ने उसे उम्र से बहुत बड़ा बना दिया था. कितनी उम्मीदें ले कर वह यहां आया था और किस तरह नाउम्मीद हो कर गया. दादी ने उसे एक आस तो बंधा दी पर क्या वे पिताजी के इनकार को इकरार में बदल पाएंगी?

मुझे यह सवाल भीतर तक मथ रहा था. पिताजी के हठी स्वभाव से सभी भलीभांति परिचित थे. मैं खुल कर उन से कुछ कहने का साहस तो नहीं जुटा सकी, लेकिन उन के फैसले के सख्त खिलाफ थी.

दादी ने ठीक ही तो कहा था कि खून के रिश्ते तोड़ने से टूट नहीं जाते. क्या पिताजी इस बात को नहीं समझते. वे खूब समझते हैं. तब क्या यह उन के भीतर का अहंकार है या अब तक वर्षों पूर्व हुए हादसे से उबर नहीं सके हैं? शायद दोनों ही बातें थीं. पिताजी के साथ जो कुछ भी हुआ, उसे भूल पाना इतना सहज भी तो नहीं था. हां, वे हृदय की विशालता का परिचय दे कर सबकुछ बिसरा तो सकते थे, किंतु यह न हो का.

मैं नहीं जानती कि वास्तव में हुआ क्या था और दोष किस का था. यह घटना मेरे जन्म से भी पहले की है. मैं 20 की होने को आई हूं. मैं ने तो जो कुछ जानासुना, दादी के मुंह से ही सुना. एक बार नहीं, बल्कि कईकई बार दादी ने मुझे वह कहानी सुनाई. कहानी नहीं, बल्कि यथार्थ, दादी, पिताजी, बूआ और फूफा का भोगा हुआ यथार्थ.

हुंडई क्रेटा में है कुछ खास फंक्शन , घर बैठे ले सकते हैं लोकेशन

न्यू हुंडई क्रेटा में  कुछ ऐसा दिया गया है जो आपकी यात्रा को और भी ज्यादा आसान बनाता है. हुंडई क्रेटा में इकोसिस्टम – BlueLink  फंक्शन दिया गया है. जिसे आप अपने स्मार्टफोन या फिर स्मार्टवॉच के साथ कनेक्ट कर सकते हैं. आप चाहे तो इसमें आवाज भी सेट कर सकते हैं. जिससे आपको कार के बारे में पता चलता रहेगा. यह BlueLink क्रेटा के ड्राइविंग को आसान बनाता है.

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इसकी मदद से आज अपने कार को बंद या स्टार्ट कर सकते हैं. साथ ही आप अपने कार के अंदर मौजूद एयर प्यूरीफायर को भी ऑन ऑफ कर सकते हैं. यहां तक की आप कार के अंदर मौजूद सनरूफ को भी घर बैठे मैनेज कर सकते हैं. आप जब चाहे अपनी कार की लोकेशन ट्रैक कर सकते हैं कि किस लोकेशन पर आपकी कार मौजूद है. इसके अलावा और भी कई सुविधाएं इस ब्लू लिंक में दी गई है जिसका आप लाभ उठा सकते हैं. इसलिए इसे कहा गया है #RechargeWithCreta.

‘ये है मोहब्बतें’ की एक्ट्रेस हुई कोरोना का शिकार , सोशल मीडिया पर कही ये बात

कोरोना वायरस का दहशत खत्म होने का नाम नहीं ले रहा है  जहां लाखों करोड़ों लोग इसके वैक्सीन का इंतजार कर रहे हैं. वहीं न जाने कितने लोग हर रोज इस बीमारी का शिकार हो रहे हैं. इस खतरनाक बीमारी के चपेट में लगभग हर कोई आ रहा है. वहीं कई फिल्मी सितारे भी इस बीमारी के चपेट में आ रहे हैं.

हाल ही में टीवी जगत का मशहूर सीरियल ये हैं मोहब्बतें कि अदाकारा शिरीन मिर्जा भी कोरोना के चपेट में आ चुकी हैं. इनका कोरोना रिपोर्ट भी पॉजिटीव पाया गया है.  शिरीन मिर्जा ने एक रिपोर्ट से बातचीत करते हुए कहा है कि इस वक्त मैं अपने घर पर हूं और मैंने खुद को सेल्फ कोरेंटाइन कर लिया है.

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All I care about is being Happy,Fine & Paid ?

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मेरे लिए सबसे अच्छी बात यह है कि मैं इस वक्त अपने परिवार के साथ हूं मुझे काफी अच्छा लग रहा है कि मैं अपने परिवार के साथ में मुझे उनका पूरा सपोर्ट मिल रहा है.

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मैं सभी सावधानियों का पालन कर रही हूं मुझे जैसे ही इस बीमारी के बारे में पता चला मैं खुद को सेल्फ कोरेंटाइन कर लिया. मैं अपना पूरा ध्यान रख रही हूं मैं इसे फैलने से रोकने की कोशिश कर रही हूं ताकी मेरे परिवार वालों को कोई नुकसान न उठाना पडे.

 

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उसे इश्क़ था , मुझे आज भी है • ?

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कोरेंटाइन के दौरान मुझे एहसास हुआ कि मेरे पास बहुत कुछ बदलने के लिए है. मैं पूरी दुनिया से प्यार करती हूं. मुझे कुछ एक्स्ट्रा करने का मौका मिला है. एक ऐसी दुनिया जहां हम एक-दूसरे के प्रति दयालु होते हैं और किसी को कोई जज नहीं करते हैं. इन दिनों मैंने इन सभी चीजों को महसूस किया है. इस लिए मैं आप सभी से यही कहना चाहतू हूं कि आस सभी भी एक-दूसरे से प्रेम करें और दया कि भावना रखें.

इस बॉलीवुड फिल्म से डेब्यू करेंगी सुष्मिता सेन की बेटी, फैंस हुए खुश

बॉलीवुड में इन दिनों बहुत से सितारों के बच्चों ने डेब्यू किया है. इसी बीच मिस यूनिवर्स रह चुकी सुष्मिता सेन की बड़ी बेटी का नाम भी सामने आ रहा है कि जल्द ही उनकी भी फिल्म रिलीज होने वाली है.

सुष्मिता सेन की बड़ी बेटी रिनी सेन बॉलीवुड में धमाकेदार एंट्री करने वाली हैं. वह फिल्म सुट्टाबाजी से अपनी कैरियर की शुरुआत करने जा रही हैं.

बता दें कि कुछ दिन पहले ही वह 21 साल की हुई हैं. और वह अपने करियर की शुरुआत करने जा रही हैं. रिनी सेन इस बात को लेकर बहुत ज्यादा उत्साहित हैं खबरों की माने तो रिनी सेन इन दिनों अपकमिंग फिल्म की शूटिंग में व्यस्त हैं.

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Suttabaazi – coming soon! Introducing Renée Sen with Rahul Vohra (Swades, Made in Heaven) and Komal Chhabria (Padmaavat, Mardaani 2).

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फिल्म सुट्टाबाजी की कहानी लॉकडाउन पर अधारित है जिसमें मां- बेटी घर पर कैसे कैद रहती हैं उसके बारे में बताया गया है. उन दोनों की आदतें बिल्कुल अलग है. एक –दूसरे से अब देखना यह है कि मां बेटी लॉकडाउन के दौरा क्या गुल खिलाती नजर आ रही हैं.

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इस फिल्म में रिनी सेन एक जिद्दी बेटी के किरदार में नजर आएंगी. इस फिल्म की कहानी पूरी तरह से लॉकडाउन पर अधारित है.

 

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Together. Questioning the morality of cigarettes.

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फिल्म में राहुल बोहरा और कृति छाबडिया रिनी सेन के माता- पिता के किरदार में नजर आएंगे. वहीं इस फिल्म का निर्देशन कबीर खुराना कर रहे हैं. इस फिल्म का एक फोटो वायरल हो रहा है. जिसमें रिमी सेन अपने को स्टार्स के साथ नजर आ रही हैं.

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शेयर की हुई तस्वीर में तोनों कलाकार काफी खुश नजर आ रहे हैं. इन सभी कलाकारों को देखकर अंदाजा लगाया जा सकता है कि वह इस फिल्म के शूटिंग को काफी एंजाय कर रहे हैं.

वहीं अभिनेत्री सुष्मिता सेन भी इस फिल्म को लेकर बहुत ज्यादा उत्साहित हैं यह फिल्म ओटीटी पर रिलीज कि जाएगी.

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