हर इनसान कला व सिनेमा प्रेमी होता है. सिनेमा यानी फिल्में हर इनसान की कमजोरी हैं. जनता की इस कमजोर नस को नेता भलीभांति समझते हैं. नतीजतन, किसी महत्वपूर्ण कुरसी पर बैठते ही नेताओं का सिनेमा प्रेम कुछ ज्यादा ही तेजी से जागृत हो जाता है और फिर ‘सिनेमा और सिनेमा के माध्यम से संस्कृति’ के विकास के नाम पर जनता के पैसे और उन की श्रम शक्ति का दुरुपयोग करने का तमाशा शुरू करने में देरी नहीं करते हैं.
यों तो मुंबई में बौलीवुड का अपना अस्तित्व है. बौलीवुड यानी मुंबई व उस से सटे इलाकोें में सरकारी फिल्मसिटी के साथ ही कई निजी फिल्म स्टूडियो भी हैं, पर अब उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने उत्तर प्रदेश में ‘फिल्मसिटी’ बनाने की घोषणा करने के साथ ही इस योजना पर काम भी शुरू कर दिया है.
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इस घोषणा के मुताबिक, यह ‘फिल्मसिटी’ गौतम बुद्ध नगर में यमुना एक्सप्रेसवे इंडस्ट्रियल डवलपमैंट अथौरिटी से लगी 1,000 एकड़ भूमि में बनेगी.
मुख्यमंत्री योगी का कथन
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा, ‘‘यहां विश्वस्तरीय तकनीकी सुविधाओं के साथ 50 साल आगे की सोच रखते हुए ‘फिल्मसिटी’ का निर्माण किया जाएगा. यह भारत को अंतर्राष्ट्रीय फिल्म मानचित्र पर मजबूती से जमा देगी.
“यह ‘फिल्मसिटी’ कई माने में बहुत अहम होगी, क्योंकि यहां से नई दिल्ली और एशिया के सब से बड़े प्रस्तावित जेवर इंटरनेशनल एयरपोर्ट की दूरी बमुश्किल एक घंटे की होगी. यहां से आगरा का ताजमहल और भगवान श्रीकृष्ण की नगरी मथुरा भी नजदीक हैं.’’
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उन्होंने अपनी बात को स्पष्ट करने के साथसाथ भारतीय संस्कृति से जोड़ते हुए कहा, ‘‘उत्तर प्रदेश भारतीय संस्कृति, सभ्यता और समृद्ध परंपरा का सब से महत्वपूर्ण केंद्र है. यमुना एक्सप्रेसवे क्षेत्र में जहां यह ‘फिल्मसिटी’ विकसित करने का विचार है, वह भारत के ऐतिहासिक, पौराणिक इतिहास से संबद्ध है. यह हस्तिनापुर का क्षेत्र है. हमारे दिव्यभव्य कुंभ से पूरी दुनिया आह्लादित है. ‘फिल्मसिटी’ भी सभी की उम्मीदों को पूरा करने वाली होगी.’’
योगी की फिल्मकारों के साथ बैठक
इतना ही नहीं, उन्होंने तत्परता दिखाते हुए कुछ निर्माता, निर्देशकों, कलाकारों, नोएडा व ग्रेटर नोएडा के सीईओ के साथ 22 सितंबर, 2020 को एक बैठक कर मुलाकात कर डाली.
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मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से मुलाकात के लिए कुछ फिल्म बिरादरी के सदस्य लखनऊ पहुंचे थे, जबकि अनुपम खेर और परेश रावल जैसे दिग्गज कलाकार एक वीडियो कौंफ्रेंस में बातचीत में शामिल हुए थे. मगर भाजपा की सांसद हेमा मालिनी व मनोज तिवारी ने दूरी बनाए रखी.
इस बैठक में अभिनेता व एक्टिंग स्कूल चला रहे अनपुम खेर ने कहा, ‘‘प्रस्तावित फिल्म शहर को वैश्विक पहचान मिलनी चाहिए. इसी के साथ फिल्म विधा व अभिनय के प्रशिक्षण पर भी जोर दिया जाना चाहिए.’’
फिल्म निर्माता और अभिनेता सतीश कौशिक, जो मूलतः हरियाण से हैं और हरियाणा में फिल्म नीति बनवा कर हिंदी फिल्मों की हरियाणा में फिल्माई जाने वाली फिल्म को 2 करोड़ रुपए तक की सब्सिडी देने की नीति बनवा चुके हैं.
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उन्होंने अपनी फिल्म ‘कागज’ की शूटिंग उत्तर प्रदेश में की है. उन्होंने कहा कि राज्य ने फिल्म पेशेवरों और उम्मीदवारों के लिए एक बढ़िया विकल्प पेश किया है.
उन्होंने आगे कहा, ‘‘प्रस्तावित ‘फिल्मसिटी’ का विशाल स्थान उत्तरी क्षेत्र के बड़े भूगोल और जनसांख्यिकी को पूरा करता है.‘‘
गीतकार मनोज मुंतशिर ने हिंदी फिल्म उद्योग को हिंदी भाषी बेल्ट में ले जाने के लिए राज्य सरकार के कदम का स्वागत करते हुए कहा, ‘‘अगर उत्तर प्रदेश में फिल्म इंस्टीट्यूट और संगीत अकादमी बनाई जाए तो स्थानीय लोकाचार और पच्चीकारी संस्कृति को और बढ़ावा मिलेगा.‘‘
शिव सेना समर्थक नितिन देसाई की पेशकश
सब से बड़ी हैरानी की बात यह रही कि इस में ‘शिव सेना’ समर्थक और शिव सेना सुप्रीमो स्व. बाल ठाकरे के काफी करीबी माने जाने वाले मशहूर कला निर्देशक और मुंबई से डेढ़ सौ किलोमीटर दूर कर्जत में ‘‘एनडी स्टूडियो’’ स्थापित करने वाले नितिन देसाई भी इस में रुचि ले रहे हैं.
उन्होंने मुंबई के पास कर्जत में स्थापित ‘एनडी स्टूडियो’ की ही तर्ज पर उत्तर प्रदेश में भी एक पूरी ‘फिल्मसिटी’ स्थापित करने की पेशकश कर डाली.
राजू श्रीवास्तव पर मेहरबान मुख्यमंत्री योगी
योगी आदित्यनाथ के साथ इस बैठक में उत्तर प्रदेश फिल्म ‘‘बंधु’’ के अध्यक्ष व अभिनेता राजू श्रीवास्तव ने कहा, ‘‘उत्तर प्रदेश में ‘फिल्मसिटी’ की परिकल्पना छोटेछोटे शहरों की अद्भुत प्रतिभाओं के हौसलों, सपनों को पंख देने वाली होगी. मैं हर समय, पूरी क्षमता के साथ सेवा के लिए प्रस्तुत रहूंगा.’’
सूत्र बता रहे हैं कि राजू श्रीवास्तव पर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ कुछ ज्यादा ही मेहरबान हैं. राजू श्रीवास्तव सरकारी जमीन पर सरकार की मदद से बहराइच में ‘फिल्म यूनिवर्सिटी’ शुरू करने जा रहे हैं.
वैसे भी फिल्म “बंधु” के तहत राजू श्रीवास्तव आम जनता के टैक्स व गाढ़ी कमाई का काफी हिस्सा उन फिल्मकारों को पहले ही बांट चुके हैं, जिन्होंने उत्तर प्रदेश में अपनी फिल्मों की शूटिंग की.
मुख्यमंत्री कार्यालय के अनुसार, मुंबई फिल्म उद्योग यानी बौलीवुड में तकरीबन 80 फीसदी तकनीशियन और श्रमिक उत्तर प्रदेश से हैं. जब उत्तर प्रदेश में ‘फिल्मसिटी’ बन जाएगी, तो जनशक्ति की उपलब्धता की समस्या नहीं होगी. मगर हकीकत यह है कि यह सारा तमाशा जनता के पैसे व उन की श्रमशक्ति की बरबादी के अलावा कुछ नहीं है.
अंधा बांटे रेवड़ी
यदि देश या राज्य की सरकारों को सिनेमा की बेहतरी की चिंता होती, तो ‘फिल्मसिटी’ बनाने का तमाशा करने की बनिस्बत मूल समस्याओं के निबटारे पर ध्यान दे कर लोगों के श्रम का दुरुपयोग व उन का शोषण रोकने की दिशा में कोई ठोस कदम उठातीं, पर ऐसा नहीं हो रहा है. सभी राज्य सरकारें फिल्मों के विकास की नीति के तहत अपनेअपने राज्य में फिल्माई जाने वाली फिल्मों को सब्सिडी बांटने के नाम ‘अंधा बांटे रेवड़ी, अपनोंअपनों को दे’’ की तर्ज पर जनता के पैसे की बरबादी ही कर रही हैं.
देखिए, इस बात से कोई इनकार नहीं कर सकता कि फिल्म या सिनेमा कला के साथ पूरी तरह से व्यावसायिक मामला है. हर फिल्मकार एक ही फिल्म से करोड़ों रुपए कमा लेेने का सपना देखते हुए करोड़ों रुपए खर्च कर फिल्में बनाता है. ऐसे में इन्हें सब्सिडी के नाम पर आम जनता के पैसे की बरबादी करना किस हद तक जायज ठहराया जा सकता है?
फिल्मकारों की समस्या को किया अनदेखा
दूसरी बात यदि सरकार सही माने में सिनेमा के विकास के प्रति गंभीर है, तोे उसे सब से पहले फिल्म नीति बना कर ऐसी व्यवस्था करनी चाहिए कि फिल्मकार को बेवजह फिल्म की शूटिंग करने की इजाजत हासिल करने के लिए दरदर न भटकना पडे.
इतना ही नहीं, इस बात पर अंकुश लगना चाहिए कि फिल्म की शूटिंग के दौरान नगरपालिका या जिलाधिकारी के कार्यालय से जुड़े लोग व पुलिस उन के पास जबरन पैसा वसूली करने न पहुंचे.
श्रमिकोें की श्रमशक्ति का दुरुपयोग व शोषण से लापरवाह सरकार
तीसरी बात उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ मानते हैं कि बौलीवुड में 80 फीसदी उत्तर प्रदेश के तकनीशियन व श्रमिक काम कर रहे हैं, पर सवाल है कि क्या उन्होंने इस बात पर गौर किया कि इन तकनीशियनों व श्रमिकों की श्रमशक्ति का दुरुपयोग व इन का शोषण किस तरह से हो रहा है?
बौलीवुड में जूनियर आर्टिस्ट, जूनियर डांसर, स्पौट ब्वौय सहित तकरीबन 5 लाख श्रमिक ऐसे हैं, जिन की मेहनत की मलाई बिचौलिए खा रहे हैं. हर फिल्म की शूटिंग में इन्हें काम करने का अवसर इन के तथाकथित ठेकेदारों यानी बिचौलियों के माध्यम से ही मिलता है.
ये ठेकेदार निर्माता से प्रति जूनियर आर्टिस्ट व जूनियर डांसर हजार से पंद्रह सौ रुपए वसूलता है और बेचारे जूनियर आर्टिस्ट को महज 300 से 400 रुपए थमा कर बाकी की रकम अपनी जेब में रख लेता है. इन श्रमिकों की कहीं कोई सुनवाई नहीं है.
इस दिशा में ठोस कानून बना कर इन श्रमिकों के हितों की सुरक्षा के संबंध में कोई सरकार नहीं सोच रही है. हर सरकार को एक फिल्म से करोड़ों रुपए कमाने वाले फिल्मकारों की ही चिंता सताती है.
फिल्मकार को सब्सिडी के नाम पर लंबी रकम देने के साथ ही उत्तर प्रदेश सरकार पिछले कुछ वर्षों से लाखों रुपए कमा रहे फिल्मी हस्तियों को ही हर साल पुरस्कार देते हुए जनता का पैसा बांटती आ रही है.
बौलीवुड का बंटवारा मतलब…?
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का यह कहना सही है कि बौलीवुड में 80 फीसदी श्रमिक उत्तर भारत के हैं, मगर इसी बात को जिस तरह से कुछ भाजपा नेता और भाजपा समर्थक उत्तर प्रदेश में ‘फिल्मसिटी’ बनाने को ‘बौलीवुड का बंटवारा’ की बात कर रहे हैं, उस से भी मुख्यमंत्री की मंशा पर कई तरह के सवाल उठ रहे हैं.
सिनेमा के लिए यहां की जलवायु सही नहीं
माना कि उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की मंशा सही है, मगर उन्हें यह नहीं भूलना चाहिए कि पूरे भारत में सिनेमा के लिए उपयुक्त जलवायु मुंबई या गोवा में ही है. उत्तर प्रदेश में गरमी के दिनों में मौसम का तापमान 50 डिगरी तक पहुंच जाता है.
इतना अधिक तापमान और शूटिंग की लाइटों की गरमी के बीच शूटिंग करना असंभव है. इसी तरह उत्तर प्रदेश में हर बार बारिश अपना कहर ढाती है, तो वहीं नवंबर माह के दूसरे सप्ताह से फरवरी माह तक ठंड के मौसम में हर साल तापमान माइनस 10 डिगरी तक चला जाता है. कईकई दिनों तक सूरज नहीं निकलता. धुंध बनी रहती है. कुछ दिन ही सूरज सुबह 11 बजे से शाम 4 बजे तक नजर आता है, ऐसे में आउटडोर शूटिंग करना संभव नहीं, ठंड के दिनों में स्वेटर पहन कर शूटिंग नहीं की जा सकती. स्टूडियो के अंदर शूटिंग करनी है, तो मुंबई का फिल्म निर्माता सारा तामझाम ले कर क्यों जाएगा? इन्हीं वजहों से अतीत में नोएडा, उत्तर प्रदेश में बनी ‘फिल्मसिटी’ का हश्र पूरे देश के सामने है.
1993 की ‘नोएडा फिल्मसिटी’ का हश्र
जी हां, सब से पहले 1993 में उत्तर प्रदेश के नोएडा में ‘फिल्मसिटी’ बनाई गई थी. उस वक्त सुभाष घई, मोहित मारवाह सहित कई फिल्मकारों को प्लाट आवंटित हुए थे. मगर कोई भी फिल्मकार वहां स्टूडियो बना कर फिल्मों की शूटिंग करने आज तक नहीं गया.
हर किसी ने सरकार से अति कमतर कीमत पर प्लाट ले कर उन्हें विकसित कर दूसरी कंपनियों को किराए पर दे दिया.
वर्तमान समय में तथाकथित उस ‘नोएडा फिल्मसिटी‘ में अखबारों के दफ्तर, टैलीविजन चैनलों के दफ्तर व स्टूडियो, एक्टिंग स्कूल व अन्य कंपनियां हैं. क्या इसे जायज ठहराना सही है? इस से नुकसान तो आम जनता का ही हुआ है.
2015 की ‘फिल्मसिटी’ कहां गई?
इतना ही नहीं, 2015 में जब उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी की सरकार के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव थे, तब भी उत्तर प्रदेश में ‘फिल्मसिटी’ बनाने की योजना पर काम शुरू हुआ था. उस वक्त भोजपुरी फिल्मों के अभिनेता रविकिशन, जो कि वर्तमान समय में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के ही क्षेत्र गोरखपुर से भाजपा के सांसद हैं, वे समाजवादी पार्टी से जुड़े हुए थे. तब उत्तर प्रदेश में 2 ‘फिल्मसिटी’ बनाना प्रस्तावित हुआ था, जिस पर तत्कालीन मुख्यमंत्री अखिलेश यादव, निर्मातानिर्देशक बोनी कपूर और अभिनेता रविकिशन ने हस्ताक्षर किए थे, मगर कुछ दिन के बाद यह योजना धराशायी हो गई.
वास्तव में 2015 में अखिलेश यादव की सरकार द्वारा प्रस्तावित 2 ‘फिल्मसिटी’ में से एक ‘फिल्मसिटी’ लखनऊआगरा एक्सप्रेसवे पर और दूसरी उन्नाव के ट्रांस गंगा सिटी प्रोजैक्ट में बननी थी. सरकार ने दोनों ‘फिल्मसिटी’ के लिए 300-300 एकड़ जमीन देने का वादा किया था.
यह योजना पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप मौडल पर तैयार होनी थी, जिन में तकरीबन 700 करोड़ रुपए का निवेश होना था. मगर बोनी कपूर और रविकिशन दोनों ने ही इन प्रोजैक्ट से अपने हाथ पीछे खींच लिए थे.
उस वक्त जौनपुर, उत्तर प्रदेश के मूल निवासी अभिनेता रविकिशन (वर्तमान में गोरखपुर से भाजपा के सांसद) ने ‘फिल्मसिटी’ को जौनपुर में बनाने के लिए जमीन आवंटित करने की मांग रख दी थी, मगर इस पर मुख्यमंत्री अखिलेश यादव तैयार नहीं हुए थे, जबकि बोनी कपूर को जमीन की कीमत बहुत ज्यादा लगी थी, इसलिए उन्होंने ‘फिल्मसिटी’ में निवेश करने यानी पैसा लगाने में कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई थी.
महंगी जमीन पर ही ‘फिल्मसिटी’ क्यों?
यदि सही नीयत से ‘फिल्मसिटी’ बनाने की योजना होती तो इसे नोएडायमुना एक्सप्रेसवे के पास बनाने के बजाय बियाबान जगह पर बनाया जाना चाहिए, जिस से आसपास के सभी इलाकों का विकास हो और गरीबों का भी भला हो जाए. साथ ही, गरीबों को नए रोजगार मिल सकते हैं.
हमें याद रखना चाहिए कि अमेरिका में हौलीवुड ऐसे ही रेगिस्तानी इलाके में बनाया गया था. इतना ही नहीं, अमेरिका का ‘लास वेगास‘ बहुत चर्चित है, जहां लोग जुआ खेलने भी जाते हैं. किसी जमाने में यहां भी रेगिस्तान था. तब यह जमीन सस्ते दामों में दी गई थी. आज यहां फाइवस्टार होटल बन गए हैं और बहुत बड़ा औद्योगिक केंद्र भी हो गया है. हर वर्ष करोड़ों लोग ‘लास वेगास’ आ जाते हैं.
जनता के पैसे की बरबादी का आगाज नजर आने लगा
अब जबकि वर्तमान मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने ‘फिल्मसिटी’ बनाने का बीड़ा उठाया है, तो यह भी पिछले 2 बार की ही तरह जनता के पैसे व श्रमशक्ति की बरबादी के साथ ही सरकारी तामझाम के अलावा कुछ साबित नहीं होने वाला है.
‘फिल्मसिटी’के नाम पर कितना भ्रष्टाचार होगा, इस का अंदाजा अभी से लगाना असंभव है. मगर जिस तरह के हालात पिछले दिनों बने हैं, उस से तो यही आभास हो रहा है कि इतिहास तीसरी बार पुनः दोहराने वाला है. क्योंकि इस बार फिर निर्माताओं और निवेशकों की तरफ से मांग उठ रही है कि उत्तर प्रदेश सरकार उन्हें ‘फिल्मसिटी’ में निवेश के लिए सब्सिडी दे, जिस में जमीन की कीमतें भी शामिल हैं यानी सभी सब्सिडी के साथ सस्ती दर पर ‘फिल्मसिटी’ के प्रोजैक्ट में जमीन या प्लाट चाहिए.
सूत्र तो दावा कर रहे हैं कि बौलीवुड के चंद फिल्मकारों के साथ बैठक करने के बाद उन की इस मांग के बारे में जल्द ही उत्तर प्रदेश सरकार से फैसले की उम्मीद की जा रही है.
भारत के हर प्रदेश में ‘फिल्मसिटी‘ बन जाए और निर्मातानिर्देशकों को अपनी फिल्म की शूटिंग करने की सुविधाएं मुहैया हो जाए, तो इस से बेहतर और क्या हो सकता है? यदि राजस्थान, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश में भी ‘फिल्मसिटी’ बन जाए, तो इन प्रदेशों में रहने वाले छोटेछोटे निर्मातानिर्देशक, तकनीशियन व कलाकार मुंबई भागने के बजाय अपने निवास स्थान के नजदीक की ‘फिल्मसिटी’ में जा कर काम कर सकते हैं. इस से उस के पैसों के साथ उस की श्रमशक्ति व रचनात्मक प्रतिभा का सिनेमा की बेहतरी के लिए उपयोग हो सकेगा.
मगर सिर्फ ‘फिल्मसिटी’ बना देने से या उत्तर प्रदेश की संस्कृति के नाम पर फिल्में बनाने से कुछ नहीं होगा. सब से अहम सवाल यह है कि क्या वास्तव में जनता के श्रम व पैसे का सदुपयोग होगा? क्या उत्तर प्रदेश के गांवों में पनप रही प्रतिभाओं को सही माने में सिनेमा से जुड़ने का मौका मिलेगा? वगैरह.
जिस तरह से बौलीवुड में जूनियर आर्टिस्टों, जूनियर डांसरों व अन्य श्रमिकों के श्रम का दुरुपयोग व आर्थिक शोषण हो रहा है, वह उत्तर प्रदेश की ‘फिल्मसिटी’ में भी बदस्तूर जारी रहेगा? इस दिशा में फिलहाल मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की कोई योजना सामने नहीं आई है.