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हार्टबर्न हो सकता है जानलेवा

सीने में असहजता, दर्द और सांस लेने में तकलीफ जैसे लक्षण एंजाइना या हार्ट अटैक से जुड़े होते हैं. हालांकि इन लक्षणों के साथ ही व्यक्ति में हमेशा हार्टबर्न या एसिड इनडाइजेशन तथा खट्टी डकार जैसे सब से आम लेकिन अपेक्षाकृत सुरक्षित लक्षण भी देखे जाते हैं. यही वजह है कि जब व्यक्ति को हार्ट अटैक होता है तो वह एसिड रिफ्लैक्स का मामूली मामला समझते हुए इन लक्षणों से भ्रमित रहता है और गंभीर परेशानी में पड़ जाता है. इसी तरह एसिड इनडाइजेशन के कारण सीने में दर्द को ले कर भी कुछ मरीज हार्ट अटैक समझ कर भ्रमित हो सकते हैं. हम अकसर ऐसे भी मरीज देखते हैं जो एसिड रिफ्लैक्स के कारण सीने में असहजता की शिकायत करते हैं और कार्डियोलौजिस्ट के पास जा कर सुनिश्चित करना चाहते हैं कि उन के ये लक्षण गंभीर तो नहीं हैं.

सही माने में हार्टबर्न का नाम के अलावा हृदय की परेशानियों से कोई लेनादेना नहीं रहता. हार्टबर्न शब्द का प्रयोग तब किया जाता है जब किसी को एसिड इनडाइजेशन (खट्टी डकार या अपच) होता है जिस में भोजन नली प्रभावित हो जाती है. भोजन नली चूंकि शरीर में हृदय के पास ही होती है इसलिए इस से आप को सीने में असहजता महसूस हो सकती है. इस कारण हृदय संबंधी किसी परेशानी से उबरने वाले लक्षणों को भी लोग गलतफहमी में एसिडिटी जैसी समस्या ही मान लेते हैं. कुछ लोग गफलत में हार्टबर्न को भी एंजाइना की तकलीफ (हृदय में रक्त आपूर्ति की कमी के कारण यह असहजता पैदा होती है) या हार्ट अटैक मान बैठते हैं.

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हार्टबर्न व हार्ट अटैक में अंतर

हार्टबर्न एक सामान्य परेशानी है जिस में एसिड आप के पेट से ऊपर निकल कर भोजन नली में पहुंच जाता है और सीने में दर्द का कारण बनता है. ऐसी स्थिति में कई बार सांस लेने में तकलीफ भी होती है. यह अपेक्षाकृत मामूली स्थिति होती है जिसे एंटीएसिड दवाओं से संभाला जा सकता है या खानपान की आदत ठीक करने से इस से बचा जा सकता है  दूसरी तरफ, हार्ट अटैक जान के लिए खतरा बन सकता है. हृदय से जुड़ी रक्त धमनी जब संकरी या अवरुद्ध हो जाती है तो वहां से हृदय तक रक्त प्रवाह बाधित हो जाता है और यही हार्ट अटैक का कारण बनता है. इस का मतलब है कि इस औक्सीजनयुक्त रक्त की जरूरी आपूर्ति बाधित हो जाती है और यदि समय पर इस का इलाज नहीं कराया गया तो यह जान के लिए खतरा भी बन सकता है.खतरा मोल न लें

हार्ट अटैक से पीडि़त बहुत सारे लोग इसे हार्टबर्न समझने की गलती कर बैठते हैं और आखिरकार वे मौत का शिकार हो जाते हैं क्योंकि वे सही समय पर इलाज नहीं करवाते हैं. बहुत से लोग सीने में दर्द को पेट में गैस की वजह समझ लेते हैं. पहले के हार्ट अटैक के लक्षणों का उन्हें तभी पता चलता है जब वे बड़े अटैक की चपेट में आते हैं. तब तक कीमती समय जाया हो चुका होता है. अगर वे पहले ही जांच करवा लेते तो बीमारी पर बेहतर नियंत्रण किया जा सकता था. आमतौर पर हम मरीजों को बताते हैं कि यदि थोड़े समय बाद या कुछेक डकारों के बाद स्थिति सुधर जाती है तो उन्हें सुनिश्चित कर लेना चाहिए कि सीने का यह दर्द पेट में गैस के कारण ही था. हालांकि यदि सीने में असहजता बनी रहती है तो इलाज के लिए आप को समय गंवाए बगैर तत्काल किसी अस्पताल में भरती हो जाना चाहिए.

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लक्षणों की अनदेखी न करें

यदि किसी व्यक्ति को एपिगैस्ट्रिक या सीने में नीचे की तरफ इस तरह के लक्षण उभरते हैं तथा इसी तरह के लक्षण कई महीनों या सालों से उभर रहे हैं तो आमतौर पर इसे पेट या ऐसोफेगस की समस्या समझी जाती है. लेकिन यदि हाल के दिनों में ऐसी समस्या हुई है या लक्षणों की प्रकृति में किसी तरह का बदलाव आया है या टहलने, सीढि़यां चढ़ने जैसे श्रम में भी ऐसी दिक्कत उभरी है और आराम करने पर अच्छा महसूस होता है तो संभव है कि यह हृदय संबंधी समस्या हो सकती है तथा मरीज को तत्काल किसी डाक्टर से संपर्क कर ईसीजी जांच करा लेनी चाहिए. दूसरी महत्त्वपूर्ण बात यह ध्यान रखनी चाहिए कि इस तरह की तथाकथित एसिडिटी या गैस संबंधी समस्या एंटीएसिड दवा लेने के 20 मिनट बाद भी बनी रहती है तो यह भी बहुत हद तक हार्ट अटैक का लक्षण हो सकता है और मरीज को ईसीजी कराने के लिए तत्काल किसी नजदीकी अस्पताल में जाना चाहिए. सामान्य एसिडिटी या गैस की समस्या ज्यादातर अधिक भोजन करने या व्यायाम की कमी के कारण होती है. नियमित व्यायाम करने वाले हार्ट अटैक से बच सकते हैं.

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यदि सीने का दर्द बहुत कष्टदायी नहीं है लेकिन आप को आशंका है कि यह गंभीर हो सकता है तो इन लक्षणों के शांत पड़ने का इंतजार नहीं करें. एक के ऊपर दूसरा लक्षण उभरते रहने के कारण लोग अमूमन इन दोनों समस्याओं के बीच भ्रमित हो जाते हैं.  लिहाजा, डाक्टर को तुरंत दिखाएं. ऐसे लक्षणों को मामूली मान कर अनदेखी न करें ताकि बाद में पछताना न पड़े.    

– डा. टी एस क्ले
(लेखक फोर्टिस एस्कोर्ट्स हार्ट इंस्टिट्यूट ऐंड रिसर्च सैंटर, नई दिल्ली में कार्यकारी निदेशक हैं)

असमंजस-भाग 1 : आस्था ने शादी करने का निर्णय ले कर कैसे हैरत में डाल दिया

शहनाई की सुमधुर ध्वनियां, बैंडबाजों की आवाजें, चारों तरफ खुशनुमा माहौल. आज आस्था की शादी थी. आशा और निमित की इकलौती बेटी थी वह. आईएएस बन चुकी आस्था अपने नए जीवन में कदम रखने जा रही थी. सजतेसंवरते उसे कई बातें याद आ रही थीं.

वह यादों की किताब के पन्ने पलटती जा रही थी.

उस का 21वां जन्मदिन था.

‘बस भी करो पापा…और मां, तुम भी मिल गईं पापा के साथ मजाक में. अब यदि ज्यादा मजाक किया तो मैं घर छोड़ कर चली जाऊंगी,’ आस्था नाराज हो कर बोली.

‘अरे आशु, हम तो मजाक कर रहे थे बेटा. वैसे भी अब 3-4 साल बाद तेरे हाथ पीले होते ही घर तो छोड़ना ही है तुझे.’

‘मुझे अभी आईएएस की परीक्षा देनी है. अपने पांवों पर खड़ा होना है, सपने पूरे करने हैं. और आप हैं कि जबतब मुझे याद दिला देते हैं कि मुझे शादी करनी है. इस तरह कैसे तैयारी कर पाऊंगी.’

आस्था रोंआसी हो गई और मुंह को दोनों हाथों से ढक कर सोफे पर बैठ गई. मां और पापा उसे रुलाना नहीं चाहते थे. इसलिए चुप हो गए और उस के जन्मदिन की तैयारियों में लग गए. एक बार तो माहौल एकदम खामोश हो गया कि तभी दादी पूजा की घंटी बजाते हुए आईं और आस्था से कहा, ‘आशु, जन्मदिन मुबारक हो. जाओ, मंदिर में दीया जला लो.’

‘मां, दादी को समझाओ न. मैं मूर्तिपूजा नहीं करती तो फिर क्यों हर जन्मदिन पर ये दीया जलाने की जिद करती हैं.’

‘आस्था, तू आंख की अंधी और नाम नयनसुख जैसी है, नाम आस्था और किसी भी चीज में आस्था नहीं. न ईश्वर में, न रिश्तों में, न परंपराओं…’

दादी की बात को बीच में ही काट कर उस ने अपनी चिरपरिचित बात कह दी, ‘मुझे पहले अपनी पढ़ाई और कैरियर पर ध्यान देने दो. मेरे लिए यही सबकुछ है. आप के रीतिरिवाज सब बेमानी हैं.’

‘लेकिन आशु, सिर्फ कैरियर तो सबकुछ नहीं होता. न जाने भगवान तेरी नास्तिकता कब खत्म होगी.’

तभी दरवाजे पर घंटी बजी. आस्था खुशी में उछलते हुए गई, ‘जरूर रंजना मैडम का खत आया होगा,’ उस ने उत्साह से दरवाजा खोला. आने वाला विवान था, ‘ओफ, तुम हो,’ हताशा के स्वर में उस ने कहा. वह यह भी नहीं देख पाई कि उस के हाथों में उस के पसंदीदा जूही के फूलों का एक बुके था.

‘आस्था, हैप्पी बर्थडे टू यू,’ विवान ने कहा.

‘ओह, थैंक्स, विवान,’ बुके लेते हुए उस ने कहा, ‘तुम्हें दुख तो होगा लेकिन मैं अपनी सब से फेवरेट टीचर के खत का इंतजार कर रही थी लेकिन तुम आ गए. खैर, थैंक्स फौर कमिंग.’

आस्था को ज्यादा दोस्त पसंद नहीं थे. एक विवान ही था जिस से बचपन से उस की दोस्ती थी. उस का कारण भी शायद विवान का सौम्य, मृदु स्वभाव था. विवान के परिजनों के भी आस्था के परिवार से मधुर संबंध थे. दोनों की दोस्ती के कारण कई बार परिवार वाले उन को रिश्ते में बांधने के बारे में सोच चुके थे किंतु आस्था शादी के नाम तक से चिढ़ती थी. उस के लिए शादी औरतों की जिंदगी की सब से बड़ी बेड़ी थी जिस में वह कभी नहीं बंधना चाहती थी.

इस सोच को उस की रंजना मैडम के विचारों ने और हवा दी थी. वे उस की हाईस्कूल की प्रधानाध्यापिका होने के अलावा नामी समाजसेविका भी थीं. जब आस्था हाईस्कूल में गई तो रंजना मैडम से पहली ही नजर में प्रभावित हो गई थी. 45 की उम्र में वे 30 की प्रतीत होती थीं. चुस्त, सचेत और बेहद सक्रिय. हर कार्य को करने की उन की शैली किसी को भी प्रभावित कर देती.

आस्था हमेशा से ऐसी ही महिला के रूप में स्वयं को देखती थी. उसे तो जैसे अपने जीवन के लिए दिशानिर्देशक मिल गया था. रंजना मैडम को भी आस्था विशेष प्रिय थी क्योंकि वह अपनी कक्षा में अव्वल तो थी ही, एक अच्छी वक्ता और चित्रकार भी थी. रंजना मैडम की भी रुचि वक्तव्य देने और चित्रकला में थी.

आस्था रंजना मैडम में अपना भविष्य तो रंजना मैडम आस्था में अपना अतीत देखती थीं. जबतब आस्था रंजना मैडम से भावी कैरियर के संबंध में राय लेती, तो उन का सदैव एक ही जवाब होता, ‘यदि कैरियर बनाना है तो शादीब्याह जैसे विचार अपने मस्तिष्क के आसपास भी न आने देना. तुम जिस समाज में हो वहां एक लड़की की जिंदगी का अंतिम सत्य विवाह और बच्चों की परवरिश को माना जाता है. इसलिए घरपरिवार, रिश्तेनातेदार, अड़ोसीपड़ोसी किसी लड़की या औरत से उस के कैरियर के बारे में कम और शादी के बारे में ज्यादा बात करते हैं. कोई नहीं पूछता कि वह खुश है या नहीं, वह अपने सपने पूरे कर रही है या नहीं, वह जी रही है या नहीं. पूछते हैं तो बस इतना कि उस ने समय पर शादी की, बच्चे पैदा किए, फिर बच्चों की शादी की, फिर उन के बच्चों को पाला वगैरहवगैरह. यदि अपना कैरियर बनाना है तो शादीब्याह के जंजाल में मत फंसना. चाहे दुनिया कुछ भी कहे, अपने अस्तित्व को, अपने व्यक्तित्व को किसी भी रिश्ते की बलि न चढ़ने देना.’

आस्था को भी लगता कि रंजना मैडम जो कहती हैं, सही कहती हैं. आखिर क्या जिंदगी है उस की अपनी मां, दादी, नानी, बूआ या मौसी की. हर कोई तो अपने पति के नाम से पहचानी जाती है. उस का यकीन रंजना मैडम की बातों में गहराता गया. उसे लगता कि शादी किसी भी औरत के आत्मिक विकास का अंतिम चरण है क्योंकि शादी के बाद विकास के सारे द्वार बंद हो जाते हैं.

रंजना मैडम ने भी शादी नहीं की थी और बेहद उम्दा तरीके से उन्होंने  अपना कैरियर संभाला था. वे शहर के सब से अच्छे स्कूल की प्राचार्या होने के साथसाथ जानीमानी समाजसेविका और चित्रकार भी थीं. उन के चित्रों की प्रदर्शनी बड़ेबड़े शहरों में होती थी.

आस्था को मैडम की सक्रिय जिंदगी सदैव प्रेरित करती थी. यही कारण था कि रंजना मैडम के दिल्ली में शिफ्ट हो जाने के बाद भी आस्था ने उन से संपर्क बनाए रखा. कालेज में दाखिला लेने के बाद भी आस्था पर रंजना का प्रभाव कम नहीं हुआ, बल्कि बढ़ा ही.

हमेशा की तरह आज भी उन का खत आया और आस्था खुशी से झूम उठी. आस्था ने खत खोला, वही शब्द थे जो होने थे :

‘प्रिय मित्र, (रंजना मैडम ने हमेशा अपने विद्यार्थियों को अपना समवयस्क माना था. बेटा, बेटी कह कर संबोधित करना उन की आदत में नहीं था.)

‘जन्मदिन मुबारक हो.

‘आज तुम्हारा 21वां जन्मदिन है जो तुम अपने परिवार के साथ मना रही हो और 5वां ऐसा जन्मदिन जब मैं तुम्हें बधाई दे रही हूं. इस साल तुम ने अपना ग्रेजुएशन भी कर लिया है. निश्चित ही, तुम्हारे मातापिता तुम्हारी शादी के बारे में चिंतित होंगे और शायद साल, दो साल में तुम्हारे लिए लड़का ढूंढ़ने की प्रक्रिया भी शुरू कर देंगे. यदि एक मूक भेड़ की भांति तुम उन के नक्शेकदम पर चलो तो.

असमंजस-भाग 3 : आस्था ने शादी करने का निर्णय ले कर कैसे हैरत में डाल दिया

आस्था एक दिन ऐसे ही विचारों में गुम थी कि काफी अरसे बाद एक बार फिर रंजना मैडम का खत आया. यह खत पिछले सारे खतों से अलग था. अब तक जितनी गर्द उन आंधियों ने आस्था के मन पर बिछाई थी, जो पिछले खतों के साथ आई थी, सारी की सारी इस खत के साथ आई तूफानी सुनामी ने धो दी.

आस्था बारबार उस खत को पढ़ रही थी :

‘प्रिय बेटी आस्था,

‘मुझे क्षमा करो, बेटी. मैं समझ नहीं पा रही हूं कि किस हक से मैं तुम्हें यह खत लिख रही हूं. आज तक मैं ने तुम्हें जो भी शिक्षा दी, जाने क्या असर हुआ होगा तुम पर, जाने कितनी खुशियों को तुम से छीन लिया है मैं ने. लेकिन सच मानो, आज तक मैं ने तुम्हें जो भी कहा, वह मेरे जीवन का यथार्थ था. मैं ने वही कहा जो मैं ने अनुभव किया था, जिया था. मुझे सच में, स्त्री की स्वतंत्रता ही उस के जीवन की सब से महत्त्वपूर्ण उपलब्धि लगती थी, जिसे मैं ने विवाह न कर के, परिवार न बसा कर पाया था. लेकिन पिछले 4 सालों में मैं ने स्वयं को जिस तरह अकेला, तनहा, टूटा हुआ महसूस किया है उसे मैं बयां नहीं कर सकती.

‘रिटायरमैंट से पहले तक समय की व्यस्तता के कारण मुझे एकाकी जीवन रास आता था लेकिन बाद में जब भी अपनी उम्र की महिलाओं को अपने नातीपोतों के साथ देखती तो मन में टीस सी उठती. यदि मैं ने सही समय पर अपना परिवार बसाया होता तो आज मैं भी इस तरह अकेली, नीरस जिंदगी नहीं जी रही होती. यही कारण है कि पिछले कुछ सालों से तुम्हारे खतों का जवाब देने की हिम्मत ही नहीं जुटा पाती थी.

‘आखिर क्या कहती तुम्हें कि जिस रंजना मैडम को तुम अपना आदर्श मानती हो आज उस के लिए दिन के 24 घंटे काटना भी मुश्किल हो गया है. पिछले कुछ सालों ने मुझे एहसास दिला दिया है कि एक इंसान की जिंदगी में परिवार की क्या अहमियत होती है. आज जिंदगी के बयाबान में मैं नितांत अकेली भटक रही हूं, पर ऐसा कोई नहीं है जिस के साथ मैं अपना सुखदुख बांट सकूं. यह बहुत ही भयंकर और डरावनी स्थिति है, आस्था. मैं नहीं चाहती कि जीवन की संध्या में तुम भी मेरी तरह ही तनहा और निराश अनुभव करो. हो सके तो अब भी अपनी राह बदल दो.

‘जिस अस्तित्व को कायम रखने के लिए मैं ने यह राह चुनी थी अब वह अस्तित्व ही अर्थहीन लगता है. जिस समाज की भलाई और उन्नति के लिए हम ने यह एकाकीपन स्वीकार किया है उस समाज की सब से बड़ी भलाई इसी में है कि अनंतकाल से चली आ रही परिवार नाम की संस्था बरकरार रहे, सभी बेटी, बहन, पत्नी, मां, नानीदादी के सभी रूपों को जीएं. तुम यदि चाहो तो अब भी अपने शेष जीवन को इस अंधेरे गर्त में भटकने से रोक सकती हो.

‘जाने क्यों ऐसा लग रहा है कि स्त्री स्वतंत्रता के मेरे विचारों ने अब तक तुम्हारा अच्छा नहीं, बुरा चाहा था लेकिन आज मैं पहली बार तुम्हारा अच्छा चाहती हूं. चाहती हूं कि तुम अपने व्यक्तित्व के हर पहलू को जीओ. आशा है तुम निहितार्थ समझ गई होगी.

‘एक हताश, निराश, एकाकी, वृद्ध महिला जिस का कोई नहीं है.’

बारबार उस खत को पढ़ कर उस के सामने अतीत की सारी गलतियां उभर कर आ गईं. कैसे उस ने विवान का प्रस्ताव कड़े शब्दों में मना कर दिया था, किस प्रकार उस ने मांबाप को कई बार रूखे शब्दों में लताड़ दिया था, किस प्रकार उस ने अपनी बीमार, मृत्युशैया पर लेटी दादी की अंतिम इच्छा का भी सम्मान नहीं किया था. आज क्या है उस के पास, चापलूसों की टोली जो शायद पीठ पीछे उस के बारे में उलटीसीधी बातें करती होगी.

क्या वह जानती नहीं कि किस समाज का हिस्सा है वह. क्या वह जानती नहीं कि अकेली औरत के बारे में किस तरह की

बातें करते होंगे लोग. उस को जन्म देने वाले मांबाप ने अपनी विषम आर्थिक परिस्थितियों के बावजूद बेटी की पढ़ाई- लिखाई पर कोई आंच नहीं आने दी, कभी भी किसी बात के लिए दबाव नहीं डाला, सलाह दी लेकिन निर्णय नहीं सुनाया. यदि उस के मांबाप इतनी उदार सोच रख सकते हैं तो क्या उस का हमवय पुरुष मित्र उस की स्वतंत्रता का सम्मान नहीं करता.

आस्था ने निर्णय किया कि वह अपनी गलतियां सुधारेगी. उस ने मां को फोन मिलाया, ‘हैलो मां, कैसी हो?’

‘ठीक हूं. तू कैसी है, आशु. आज वक्त कैसे मिल गया?’ हताश मां ने कहा.

‘मां शर्मिंदा मत करो. मैं घर आ रही हूं. मुझे मेरी सारी गलतियों के लिए माफ कर दो. क्या हाथ पीले नहीं करोगी अपनी बेटी के?’

मां को अपने कानों पर यकीन ही नहीं हुआ, ‘तू सच कह रही है न, आशु. मजाक तो नहीं कर रही है. तुझे नहीं पता तेरे पापा यह सुन कर कितने खुश होंगे. हर समय तेरी ही चिंता लगी रहती है.’

‘हां मां. मैं सच कह रही हूं. मैं ने देर जरूर की है लेकिन अंधेरा घिरने से पहले सही राह पर पहुंच गई हूं. अब तुम शादी की तैयारियां करो.’

कुछ ही महीनों में आस्था के लिए एक कालेज प्रोफैसर का रिश्ता आया जिस के लिए उस ने हां कह दी. आज बरसों बाद ही सही, आस्था के मांपापा की इच्छा पूरी होने जा रही थी.

‘‘बेटी आस्था.’’ किसी ने आस्था को पीछे से पुकारा और वह अपने वर्तमान में लौटी. वह पलटी, पीछे रंजना मैडम खड़ी थीं. उन के चेहरे पर खुशी की चमक थी, जिसे देख कर आस्था एक अजीब से भय में जकड़ गई क्योंकि मैडम ने तो खत में कुछ और ही लिखा था, लेकिन तभी भय की वह लहर शांत हो गई जब उस ने उन की मांग में सिंदूर, गले में मंगलसूत्र, हाथों में लाल चूडि़यां देखीं.

‘‘बेटी आस्था, इन से मिलो, ये हैं ब्रिगेडियर राजेश. कुछ दिनों पहले ही मैं ने एक मैट्रिमोनियल एजेंट से अपना जीवनसाथी ढूंढ़ने की बात की थी और फिर क्या था, उस ने मेरी मुलाकात राजेश से करवा दी जोकि आर्मी से रिटायर्ड विधुर थे और अपनी जिंदगी में एकाकी थे. हम ने साथ चलने का फैसला किया और पिछले हफ्ते ही

कोर्ट में रजिस्टर्ड शादी कर ली. इन सब में इतनी व्यस्त थी कि तुम्हें बता भी नहीं पाई.’’

मैडम को ब्रिगेडियर के हाथों में हाथ थामे इतना खुश देख कर आस्था की खुशी का ठिकाना नहीं था. वह खुश थी क्योंकि शादी करने का निर्णय ले कर आखिरकार उस के सारे असमंजस खत्म हो चुके थे.

 

 

बंजर धरती में उगाया सोना

लेखक– तीलू रौतेली पुरस्कार’ विजेता बबीता रावत

24 साल की बबीता रावत से जब मैं फोन पर बात कर  रहा था, तब उन का आत्मविश्वास देखने लायक था. आज एक तरफ जब पहाड़ों की मुश्किल जिंदगी से तंग आ कर वहां की ज्यादातर नौजवान पीढ़ी मैदानी शहरों में छोटीमोटी नौकरी कर के जैसेतैसे गुजारा कर रही है, वहीं दूसरी तरफ उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जनपद के गांव सौड़ उमरेला की रहने वाली इस लड़की ने अपनी मेहनत और लगन से बंजर धरती को भी उपजाऊ बना दिया है और यह साबित कर दिया है कि सीमित साधनों का अगर दिमाग लगा कर इस्तेमाल किया जाए, तो कमाई तो कहीं भी की जा सकती है.

बबीता रावत के इस कारनामे को उत्तराखंड सरकार ने भी सराहा है. दरअसल, राज्य सरकार ने विभिन्न क्षेत्रों में बेहतरीन काम करने वाली महिलाओं का चयन प्रतिष्ठित ‘तीलू रौतेली पुरस्कार’ के लिए किया था.

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इस सिलसिले में महिला सशक्तीकरण एवं बाल विकास राज्यमंत्री रेखा आर्या ने वर्ष 2019-20 के लिए दिए जाने वाले इन पुरस्कारों के नामों की पहले घोषणा की थी और उस के बाद 8 अगस्त, 2020 को इन महिलाओं को वर्चुअल माध्यम से पुरस्कृत किया गया था.

‘तीलू रौतेली पुरस्कार’ के लिए चयनित महिलाओं को 21,000 की धनराशि और प्रशस्तिपत्र दिया जाता है, जबकि आंगनबाड़ी कार्यकर्ता को 10,000 की धनराशि और प्रशस्तिपत्र दिया जाता है.

बबीता रावत का चयन बंजर भूमि को उपजाऊ बना कर उस में सब्जी उत्पादन, पशुपालन, मशरूम उत्पादन के जरीए आत्मनिर्भर मौडल को हकीकत में बदलने के लिए किया गया था.

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बबीता रावत ने बताया, ‘मु?ो इस पुरस्कार में हिस्सा लेने की प्रेरणा बाल विकास कार्यालय से मिली. एक दिन वहां से फोन आया कि अपने कागज जमा कर लीजिए, अखबारों की कटिंग भी इकट्ठा कर लीजिए. छोटे लैवल पर जितने भी पुरस्कार मिले हैं, उन का ब्योरा एकत्र कर लीजिए. ऐसे मैं ने अपना नाम इस पुरस्कार के लिए दर्ज कराया.’

बबीता रावत की कहानी पहाड़ के लोगों के लिए प्रेरणादायी है. उन्होंने थोड़ी सी जमीन पर खेतीबारी शुरू की और धीरेधीरे अपने परिवार की आर्थिक तंगी को खत्म किया. उन की मेहनत का नतीजा है कि आज उन की रुद्रप्रयाग के कोर्ट इलाके में एक छोटी सी कैंटीन भी है, जिस में लोगों के लिए चायनाश्ता और खाना मिलता है. उस कैंटीन को बबीता रावत की उन से बड़ी बहन और पिता संभाल रहे हैं.

आज से कुछ साल पहले तक बबीता रावत के पिताजी सुरेंद्र सिंह रावत पर अपने परिवार के कुल 9 सदस्यों के भरणपोषण की जिम्मेदारी थी. 6 बेटियों और एक बेटे के पिता सुरेंद्र रावत की साल 2009 में अचानक तबीयत खराब होने से परिवार के सामने आर्थिक तंगी आ खड़ी हुई थी. तब परिवार की गुजरबसर पारंपरिक खेतीबारी से किसी तरह हो रही थी. उस समय बबीता महज 13 साल की थीं, पर ऐसे विकट हालात में भी उन्होंने हार नहीं मानी और खेतों में हल भी चलाया.

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बबीता रावत की मेहनत देख कर बहुत से लोगों ने उन का हौसला बढ़ाया, तो कइयों ने ताने भी मारे कि देखो एक लड़की हो कर खेतों  में बैल बन रही है. लेकिन बबीता ने इस बात की परवाह नहीं की.

दिन गुजरते गए और बबीता का ज्यादातर समय खेतों में ही बीतने लगा. एक समय ऐसा भी आया, जब वे हर रोज सुबहसवेरे अपने खेतों में हल चलाने के बाद 5 किलोमीटर दूर पैदल इंटर कालेज, रुद्रप्रयाग में पढ़ाई करने के लिए जाती थीं और साथ में दूध भी बेचने के लिए ले जाती थीं, जिस से परिवार का खर्च चलने लगा था.

धीरेधीरे बबीता रावत ने सोचा कि पारंपरिक खेती में मेहनत ज्यादा है और मुनाफा कम, इसलिए उन्होंने सब्जियों का उत्पादन भी शुरू किया और पिछले कुछ सालों से वे सीमित संसाधनों में मशरूम उत्पादन का भी काम कर  रही हैं.

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बबीता रावत ने बताया, ‘मैं किराए की 15-20 नाली जमीन (एक नाली बराबर 240 गज) पर ओएस्टर मशरूम का उत्पादन करती हूं और साथ ही दूसरी फसलें भी लेती हूं, जिस से मु?ो अच्छी आमदनी हो जाती है.

‘बस, एक समस्या है कि हमें मशरूम के बीज के लिए देहरादून या दिल्ली या फिर दूर की किसी जगह का मुंह ताकना पड़ता है. इस से हमारा समय बरबाद होता है और बीज मंगवाना भी महंगा पड़ता है. लोकल में यह सुविधा बिलकुल नहीं है.’

आप के मशरूम की खपत कहां होती है? इस सवाल के जवाब में बबीता रावत ने बताया, ‘हमारे ज्यादातर मशरूम रुद्रप्रयाग में ही रह रहे सरकारी मुलाजिम खरीद लेते हैं. इस के अलावा होटल और रैस्टौरैंट वाले भी इन्हें मंगवा लेते हैं.’

बबीता रावत ने एक और अहम जानकारी दी, ‘मैं ने भारतीय स्टेट बैंक ग्रामीण स्वरोजगार प्रशिक्षण संस्थान, रुद्रप्रयाग से मशरूम उत्पादन का प्रशिक्षण लिया है. लौकडाउन के दौरान मैं ने 15 से 20 लोगों को मशरूम उत्पादन और सब्जी उत्पादन का प्रशिक्षण दे कर उन का स्वरोजगार शुरू कराया है.’

इस तरह हिंदी में एमए की डिगरीधारी बबीता रावत ने खेतीकिसानी कर के अपने परिवार को आर्थिक तंगी से बाहर निकालने का जो हिम्मती काम किया है, वह वाकई काबिलेतारीफ है.

बबीता रावत ने दिनरात मेहनत कर के अपने पिता की दवा समेत खुद की पढ़ाई का खर्च भी उठाया और अपनी 3 बहनों की शादियां भी कराईं.

आज कोरोना महामारी के बुरे दौर में लौकडाउन के दौरान जहां न जाने कितने लोगों का रोजगार छिन गया है, वहीं बबीता रावत ने अपने खेतों में मटर, भिंडी, शिमला मिर्च, बैगन, गोभी समेत मशरूम जैसी नाजुक सब्जी का उत्पादन कर के दूसरों के सामने एक नई मिसाल पेश की है.

इतना ही नहीं, बबीता रावत ने बताया कि अब उन्हें देख कर दूसरे लोग भी खेती को रोजगार बनाना चाहते हैं. लौकडाउन में बहुत से लोग गांव वापस आ गए हैं. वे बबीता रावत से मिल कर खेतीबारी से जुड़े टिप्स ले रहे हैं.

पौधशाला किसी पौधे की अच्छी सेहत के लिए बहुत जरूरी होती है, जिस में वह खूब पनपती और किसान का उत्पादन बढ़ाती है. पौधशाला में पौध तैयार करते समय निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना चाहिए :

* समय से ही खेत की जुताई कर के उस में गोबर, कंपोस्ट व बालू मिला कर अच्छी तरह तैयार कर लें.

* पौधशाला की क्यारी बनाते समय ध्यान रखें कि वह जमीन से 6-8 सैंटीमीटर उठी हो और चौड़ाई 80-100 सैंटीमीटर ही रखें.

* पौधशाला में ट्राइकोडर्मा व गोबर की खाद का मिश्रण अच्छी तरह से मिलाएं.

* जीवाणु आधारित स्यूडोसैल की 25 ग्राम प्रति वर्गमीटर के हिसाब से मिट्टी में मिला कर बोआई करें.

* पौधशाला में बीजों की बोआई करते समय बीज से बीज व लाइन से लाइन व बीज की गहराई का खास ध्यान रखें.

* पौधों को जमने के बाद ट्राइकोडर्मा 10 ग्राम एक लिटर पानी में घोल बना कर तैयार करें और समय पर छिड़काव करें.

* पौधशाला में पौधे उखाड़ते समय सही नमी होनी चाहिए.

* रोपाई के एक दिन पहले पौधों को ट्राइकोडर्मा 10 ग्राम प्रति लिटर पानी के हिसाब से खेत में छायादार जगह पर एक फुट गहरा गड्ढा खोद कर उस में पौलीथिन शीट बिछा कर नाप कर पानी भर दें और जरूरत के मुताबिक ट्राइकोडर्मा मिला लें, फिर उस में पौध के गुच्छे बना कर रातभर खड़ा कर दें, जिस से निकट भविष्य में फसल में रोग लगने का डर खत्म हो जाता है.

अधिक जानकारी के लिए कृषि विज्ञान केंद्र के वैज्ञानिकों से संपर्क करें.

असमंजस-भाग 2 : आस्था ने शादी करने का निर्णय ले कर कैसे हैरत में डाल दिया

‘यदि मेरी बात एक हितैषी मित्र के रूप में मानती हो तो अपनी राह स्वयं तैयार करो. हिमालय की भांति ऊंचा लक्ष्य रखो. समंदर की तरह गहरे आदर्श. आशा करती हूं कि तुम अपनी जिंदगी के लिए वह राह चुनोगी जो तुम्हारे जैसी अन्य कई लड़कियों की जिंदगी में बदलाव ला सके. उन्हें यह एहसास करा सके कि एक औरत की जिंदगी में शादी ही सबकुछ नहीं है. सच तो यह है कि शादी के मोहपाश से बच कर ही एक औरत सफल, संतुष्ट जिंदगी जी सकती है.

‘एक बार फिर जन्मदिन मुबारक हो.

‘तुम्हारी शुभाकांक्षी,

रंजना.’

रंजना मैडम का हर खत आस्था के इस निश्चय को और भी दृढ़ कर देता कि उसे विवाह नहीं करना है. विवान और आस्था दोनों इसी उद्देश्य को ले कर बड़े हुए थे कि दोनों को अपनेअपने पिता की तरह सिविल सेवक बनना है. लेकिन विवान जहां परिवार और उस की अहमियत का पूरा सम्मान करता था वहीं आस्था की परिवार नाम की संस्था में कोई आस्था बाकी नहीं थी. उसे घर के मंदिर में पूजा करती दादी या रसोई में काम करती मां सब औरत जाति पर सदियों से हो रहे अत्याचार का प्रतीक दिखाई देतीं.

अपने पहले ही प्रयास में दोनों ने सिविल सेवा परीक्षा उत्तीर्ण कर ली थी. आस्था का चयन भारतीय प्रशासनिक सेवा में हुआ था तो विवान का भारतीय राजस्व सेवा में. बस, अब क्या था, दोनों के परिवार वाले उन की शादी के सपने संजोने लगे. विवान के परिजनों के पूछने पर उस ने शादी के लिए हां कह दी किंतु वह आस्था की राय जानना चाहता था. विवान ने जब आस्था के सामने शादी की बात रखी तो एकबारगी आस्था के दिमाग में रंजना मैडम की दी हुई सीख जैसे गायब ही हो गई. बचपन के दोस्त विवान को वह बहुत अच्छे तरीके से जानती थी. उस से ज्यादा नेक, सज्जन, सौम्य स्वभाव वाले किसी पुरुष को वह नहीं जानती थी. और फिर उस की एक आजाद, आत्मनिर्भर जीवन जीने की चाहत से भी वह अवगत थी. लेकिन इस से पहले कि वह हां कहती, उस ने विवान से सोचने के लिए कुछ समय देने को कहा जिस के लिए उस ने खुशीखुशी हां कह दी.

वह विवान के बारे में सोच ही रही थी कि रंजना मैडम का एक खत उस के नाम आया. अपने सिलैक्शन के बाद वह उन के खत की आस भी लगाए थी. मैडम जाने क्यों मोबाइल और इंटरनैट के जमाने में भी खत लिखने को प्राथमिकता देती थीं, शायद इसलिए कि कलम और कागज के मेल से जो विचार व्यक्त होते हैं वे तकनीकी जंजाल में उलझ कर खो जाते हैं. उन्होंने लिखा था :

‘प्रिय मित्र,

‘तुम्हारी आईएएस में चयन की खबर पढ़ी. बहुत खुशी हुई. आखिर तुम उस मुकाम पर पहुंच ही गईं जिस की तुम ने चाहत की थी लेकिन मंजिल पर पहुंचना ही काफी नहीं है. इस कामयाबी को संभालना और इसे बहुत सारी लड़कियों और औरतों की कामयाबी में बदलना तुम्हारा लक्ष्य होना चाहिए. और फिर मंजिल एक ही नहीं होती. हर मंजिल हमारी सफलता के सफर में एक पड़ाव बन जाती है एक नई मंजिल तक पहुंचने का. कामयाबी का कोई अंतिम चरण नहीं होता, इस का सफर अनंत है और उस पर चलते रहने की चाह ही तुम्हें औरों से अलग एक पहचान दिला पाएगी.

‘निसंदेह अब तुम्हारे विवाह की चर्चाएं चरम पर होंगी. तुम भी असमंजस में होगी कि किसे चुनूं, किस के साथ जीवन की नैया खेऊं, वगैरहवगैरह. तुम्हें भी शायद लगता होगा कि अब तो मंजिल मिल गई है, वैवाहिक जीवन का आनंद लेने में संशय कैसा? किंतु आस्था, मैं एक बार फिर तुम्हें याद दिलाना चाहती हूं कि जो तुम ने पाया है वह मंजिल नहीं है बल्कि किसी और मंजिल का पड़ाव मात्र है. इस पड़ाव पर तुम ने शादी जैसे मार्ग को चुन लिया तो आगे की सारी मंजिलें तुम से रूठ जाएंगी क्योंकि पति और बच्चों की झिकझिक में सारी उम्र निकल जाएगी.

‘यह मैं इसलिए कहती हूं कि मैं ने इसे अपनी जिंदगी में अनुभव किया है. तुम्हें यह जान कर हर्ष होगा कि मुझे राष्ट्रपति द्वारा प्रतिवर्ष शिक्षकदिवस पर दिए जाने वाले शिक्षक सम्मान के लिए चुना गया है. क्या तुम्हें लगता है कि घरगृहस्थी के पचड़ों में फंसी तुम्हारी अन्य कोई भी शिक्षिका यह मुकाम हासिल कर सकती थी?

‘शेष तुम्हें तय करना है.

‘हमेशा तुम्हारी शुभाकांक्षी,

रंजना.’

इस खत को पढ़ने के बाद आस्था के दिमाग से विवान से शादी की बात को ले कर जो भी असमंजस था, काफूर हो गया. उस ने सभी को कभी भी शादी न करने का अपना निर्णय सुना दिया. मांपापा और दादी पर तो जैसे पहाड़ टूट गया. उस के जन्म से ले कर उस की शादी के सपने संजोए थे मां ने. होलीदीवाली थोड़ेबहुत गहने बनवा लेती थीं ताकि शादी तक अपनी बेटी के लिए काफी गहने जुटा सकें लेकिन आज आस्था ने उन से बेटी के ब्याह की सब से बड़ी ख्वाहिश छीन ली थी. उन्हें अफसोस होने लगा कि आखिर क्यों उन्होंने एक निम्नमध्य परिवार के होने के बावजूद अपनी बेटी को आसमान के सपने देखने दिए. आज जब वह अर्श पर पहुंच गई है तो मांबाप की मुरादें, इच्छाओं की उसे परवा तक नहीं.

विवान ने भी कुछ वर्षों तक आस्था का इंतजार किया लेकिन हर इंतजार की हद होती है. उस ने शादी कर ली और अपनी जिंदगी में व्यस्त हो गया. दूसरी ओर आस्था अपनी स्वतंत्र, स्वैच्छिक जिंदगी का आनंद ले रही थी. सुबहशाम उठतेबैठते सिर्फ काम में व्यस्त रहती थी. दादी तो कुछ ही सालों में गुजर गईं और मांपापा से वह इसलिए बात कम करने लगी क्योंकि वे जब भी बात करते तो उस से शादी की बात छेड़ देते. साल दर साल उस का मांपापा से संबंध भी कमजोर होता गया.

वह घरेलू स्त्रियों की जिंदगी के बारे में सोच कर प्रफुल्लित हो जाती कि उस ने अपनी जिंदगी के लिए सही निर्णय लिया है. वह कितनी स्वतंत्र, आत्मनिर्भर है. उस का अपना व्यक्तित्व है, अपनी पहचान है. बतौर आईएएस, उस के काम की सारे देश में चर्चा हो रही है. उस के द्वारा शुरू किए गए प्रोजैक्ट हमेशा सफल हुए हैं. हों भी क्यों न, वह अपने काम में जीजान से जो जुटी हुई थी.

‘बिग बॉस 14’ के बेडरूम को देखकर फैंस हुए हैरान, तोड़े गए कोरोना के गाइडलाइंस

सलमान खान का सबसे चर्चित शो बिग बॉस 14 का प्रीमियम होने में बस कुछ वक्त ही बचा हुआ है. इसी बीच दर्शकों का उत्साह भी ज्यादा बढ़ गया है. शो से जुड़े कई प्रोमो लगातार रिलीज किए जा रहे हैं. हाल ही में इस शो के निर्माता ने बिग बॉस के घर के फोटो शेयर किए हैं.

हालांकि बिग बॉस सीजन 14 का घर देखने के बाद यह किसी सपनों के घर से कम नहीं लग रहा है. सबसे अहम बात यह है कि कोरोना वायरस के इस समय में सुरक्षा का खास ख्याल रखा जा रहा है. लेकिन इस घर के बेडरूम की एक झलक देखने को मिली है जिसमें डबल बेड लगाए गए हैं.

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सबसे अहम बात यह है कि कोरोना वायरस के इस समय में सुरक्षा निर्देशों का पालन किया जा  रहा है. बेडरूम को देखते हुए यह कहना गलत नहीं होगा कि शो के मेकर्स ने कोरोना वायरस के गाइडलाइन्स की धज्जिया उड़ाई है.

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दरअसल मेकर्स ने घर के अंदर सिगल बेड की जगह डबल बेड का इंतजाम किया है. जबकी कोरोना वायरस के इस समय में मेकर्स को सिंगल बेड का ही इंतजाम करना चाहिए.

वहीं कोरोना वायरस महामारी को देखते हुए बिग बॉस के घर में स्पॉ और मॉल का भी इंतजाम किया गया है. ऐसा अभी के सीजन में पहली बार हुआ है कि बिग बॉस के घर में स्पा और मॉल बनाए गए हैं.

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बता दें कि बिग बॉस 14 का नया सीजन 3 अक्टूबर रात 9 बजे से शुरू होने जा रहा है. इस शो में रुबिना दिलाइक और अभिनव शुक्ला बतौर कपल एंट्री लेंगे. वहीं इनके अलावा भी और भी कई नाम सामने आएं हैं जो बिग बॉस के घर में एंट्री लेने वाले हैं.

एक्सपायरी डेटः प्यार,धोखा,विश्वास और प्रतिशोध की साधारण कथा

समीक्षाः
वेब सीरीजः

 रेटिंग: ढाई स्टार


निर्माताः शरद मरार
निर्देषकः शंकर के मार्तंड
कलाकार:स्नेहा उलाल,मधु शालिनी, विश्वा,अली रजा,श्रृद्धा कक्कड़ व अन्य.
अवधिः पांच घंटे सात मिनट,24 से 48 मिनट के दस एपीसोड
ओटीटी प्लेटफार्म:जी 5

प्यार,धोखा,विश्वास और प्रतिशोध के इर्द गिर्द घूमने वाली अपराध व रहस्य रोमांच कथा प्रधान वेब सीरीज ‘‘एक्सपायरी डेट’’ लेकर आए हैं फिल्मकार शंकर के मार्तंड. जिसके 24 मिनट से 48 मिनट तक के दस एपीसोड हिंदी में दो अक्टूबर से ‘‘जी 5’’पर और तेलगू में नौ अक्टूबर से देखा जा सकता है.

एक दंपति की शादी की सालगिरह के दिन ऐसा अजीब मोड़ आता है कि सच्चा प्यार,नफरत और हत्या मंे बदल जाता है.फिर शुरू होता है अपराधी और पुलिस के बीच चूहे बिल्ली का खेल.हर एपीसोड में कुछ अप्रत्याशित मोड़ आते हैं,मगर ‘सोनी टीवी पर ‘‘क्राइम पेट्ोल’’देखने वालों को कुछ भी नया नही लगेगा.कुछ एपीसोड  24 से 28 मिनट के हंै,तो कुछ एपीसोड 39 व 48 मिनट के भी हैं.पूरी सीरीज खत्म करने के लिए पांच घ्ंाटे सात मिनट का वक्त चाहिए.

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कहानीः
कहानी शुरू होती है साफ्टवेअर कंपनी ‘‘वी सोल्यूशन’’के युवा मालिक विश्वा(टोनी लुक)के आफिस से.आफिस में ही पता चलता है कि विश्वा ने दिशा(मधु शालिनी) से प्रेम विवाह किया है और आज उनकी शादी की सालगिरह है,जिसके लिए रात्रि भोज के लिए दिषा ने एक होटल में टेबल बुक किया है.वहीं पता चलता है कि दिशा अक्सर आकाश को फोनकर लंबी रकम अपने खाते में ट्ांसफर करवाती रहती है.आकाश,विश्वा का बचपन का दोस्त है और साथ में काम करता है.उस दिन बारह लाख रूपए ट्ांसफर होते हैं.शादी की सालगिरह का जश्न मनाकर होटल से निकलते समय पार्किंग लाॅट में एक मोटर बाइक सवार से दिशा का झगड़ा हो जाता है.वह मोटर बाइक सवार दिशा को धमकी देकर चला जाता है,जिससे रात भर विश्वा को नींद नहीं आती.सुबह जब वह अपने घर से अपनी गाड़ी में बैठकर निकल रहा होता है,तो देखता है कि रात वाला बाइक सवार उसी के घर जा रहा है.विश्वा आफिस जाने की बजाय वापस अपने घर लौटता है,तो उसे सबसे बड़ा सच पता चलता है कि रात वाला युवक दिशा का प्रेमी सनी(अली रजा)है.विश्वा छिपकर अपनी आॅंखो से सनी के संग दिशा को शारीरिक/सेक्स संबंध बनाते हुए आनंद विभोर होेते देखता है.इससे उसे बड़ी कोफ्त होती है.उसका सच्चा प्यार नफरत में बदल जाता है.वह आत्महत्या करने का प्रयास करता है,पर कुछ लोग बचा लेते हैं.आफिस में अपनी सेके्रटरी मोनिका से दुःख बांटते हुए अपने जीवन की घटना को एक दोस्त की घटना बताता है.इस पर मोनिका कहती है कि उनके दोस्त को आत्महत्या नही ंकरनी चाहिए,बल्कि मरना तो उसकी पत्नी को चाहिए.

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अब विश्वा,दिशा को मौत के घट उताकर कर उसकी मौत के लिए सनी को आरोपी बनाकर जेल भिजवाने की योजना बनाता है.उधर दिशा,सनी के साथ मिलकर विश्वा को हमेशा के लिए खत्म करने की योजना बनाते हैं.दिशा,विश्वा को बताती है कि 17 दिसंबर को उसकी दोस्त अग्रवाल की पुणे में शादी है,जहंा उसे जाना है.तो विश्वा 17 दिसंबर को ही दिशा को नींद में सुलाने की योजना बना लेता है.सब कुछ ठीक ही चल रहा होता है.पर अचानक पुणे के लिए निकलते समय दिशा व विश्वा के बीच बहस हो जाती है और कुछ ऐसा होता है,कि दिशा मर जाती है.तभी दरवाजे पर दिशा की बहन निशा आ जाती है,पर निशा को घर के अंदर आने देने से पहले विश्वा,दिशा की लाश को छिपा देता है.फिर चपुचाप रात के अंधेरे में लोनावला के अपने फार्म हाउस में जाकर दफना देता है.दूसरे दिन जब विश्वा व निशा बांदरा पुलिस स्टेशन में दिशा के गायब होने की रपट लिखाने जाते हैं,तो वहां पर सनी की पत्नी सुनीता(स्नेहा उलाल )अपने पिता के साथ सनी के गायब होने की रपट लिखाने आयी होती है.विश्वा दूसरे दिन सुनीता से मिलता है और उससे सनी का सच उगलवाता है,फिर सनी की लाश को भी सुनीता के ही साथ जाकर अपने फार्म हाउस में दफनवा देता है.डीसीपी देवा मामले की जांच करता है.सुनीता व विश्वा सहित कुछ लोगों के बयान व सनी व दिशा के  फोन की जानकारी के आधार पर  पाया जाता है कि सनी व दिशा के बीच प्रेम संबंध रहे हैं,इसलिए दोेनों एक साथ गायब.तब पुलिस जाॅंच बंदं हो जाती है..इसके बाद पता चलता है कि विश्वा व सुनीता ने जो कुछ किया है,उसकी जानकारी सबूतोें के साथ एक काॅटै्क्ट किलर को है.वह उसे चुपचाप रहने के लिए लाखांे रूपए देते हैं.इसी बीच पुलिस को गाड़ी के अलावा फार्म हाउस से दिशा व सनी की लाश मिलती है.मामला तेजी से कई मोड़ लेता है.अंततः काॅट्ैक्ट किलर व विश्वा मारे जाते हैं.

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निर्देशनः
जो दर्शक हर दिन सोनी टीवी पर ‘‘क्राइम पेट्ोल’’जैसा अपराध पर आधारित कार्यक्रम देखते हैं,उन्हे वेब सीरीज ‘‘एक्सपायरी डेट’’ के शुरूआती एपीसोड काफी ढीले,सुस्त व निराशाजनक लगेंगे.उसके बाद दो चार एपीसोड कुछ रोचक हैं.मगर अहम सवाल यह है कि क्या इंसानी रिश्तों,पति पत्नी के बीच के रिश्तों की भी किसी वस्तु की भंाति ‘‘एक्सपायरी डेट’’होती है?मगर यह अपराध कथा तो रिश्तांे की एक्सपायरी डेट की ही बात कर रही है.कहानी कई जगह भटक गयी है. कहानी वही घिसी पिटी एक्सट्रा मार्शल अफेयर के ऊपर है जिस पर हजारों फिल्मेंं बन चुकी हैं.पटकथा और निर्देशन भी कमजोर है.यहा  तक कि कैमरामैन भी अपना कौशल दिखाने में असफल रहे हैं.

अभिनयः

जहां तक अभिनय का सवाल है,तो सुनीता के किरदार में स्नेहा उलाल न सिर्फ खूबसूरत लगी हैं,बल्कि एक मासूम चेहरे के पीछे की कुटिलता व साजिशकर्ता के रूप मंे बेहतरीन अभिनय किया है.टोनी लुक,मधुशालिनी व अली रजा का अभिनय ठीक ठाक है.

‘कसौटी जिंदगी 2’ के आखिरी एपिसोड में होगी इस शख्स की मौत, क्या एक हो पाएंगे अनुराग-प्रेरणा?

इस बात की जानकारी सभी को है ‘कसौटी जिंदगी 2’ के कलाकार इस सीरियल के आखिरी एपिसोड की शूटिंग खत्म कर चुके हैं. वहीं इस सीरियल के आखिरी में खूब सारा ड्रामा देखने को मिलने वाला है. इस सीरियल में दिखाया जाएगा कि सीरियल के आखिरी में अनुराग और प्रेरणा के बीच चल रही गलतफेमी दूर हो जाएगी औऱ सच्चाई सबके सामने आ जाएगी.

आखिरी के कुछ दिनों में खूब सारा ड्रामा दिखाया जा रहा है. ऐसे में कोमोलिका ने ठान लिया है कि वह अपने रास्ते से प्रेरणा को हटाकर ही मानेगी. वहीं दूसरी तरफ यह दिखाया जा रहा है कि प्रेरणा को समझ आ गया है कि अनुराग और उसके बीच में कोमोलिका की वजह से ही गलतफहमियां पैदा हुई है.

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एकता कपूर के इस शो के आखिरी में बहुत ही ज्यादा फिल्मी अंदाज में दिखाया जाएगा. वहीं बीते दिनों ही खबर आई थी कि सभी कलाकारों ने इस सीरियल के शो के आखिरी शो की शूटिंग खत्म कर ली है.

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गौरतलब है कि कलाकारों ने इस सीरियल की आखिरी एपिसोड को खास बनाने के लिए खूब मेहनत की है.

ऐसे में दर्शकों के मन में भी कई तरह के सवाल चल रहे हैं कि शो के आखिरी में क्या होगा. किसकी मौत होगी. वहीं एक रिपोर्ट में बताया गया है कि शो के आखिरी एपिसोड में दिखाया जाएगा कि कोमोलिका गुस्से से लाल होती नजर आ रही है.

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बासु खानदान के सामने कोमोलिका चाकू लेकर धमकाते हुए नजर आ रही है. इसी दौरान उसने यह भी खुलासा किया है कि विराज को उसने मौत के घाट सुलाया था. गुस्से में कोमोलिका प्रेरणा से कह रही है कि वह अनुराग को उसके साथ नहीं देख सकती.

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इसके बाद वह प्रेरणा को मारने की कोशिश करती है, इतने में मिस्टर बजाज सामने आ जाते हैं. इसके बाद अनुमान यह लगाया जा रहा है कि कोमोलिका के हाथ से मिस्टर बजाज की मौत हो जाएगी.

वहीं कुछ दिन पहले यह भी खबर आई थी कि शो के आखिरी में कोमोलिका की मौत हो जाएगी ऐसे में अंदाजा लगाना मुश्किल है कि मौत किसकी होगी. खैर वो तो सीरकियल देखने के बाद ही पता चलेगा.

उत्तर प्रदेश में ‘फिल्मसिटी’ : सरकार का तमाशा,जनता के पैसे व शक्ति की बरबादी

हर इनसान कला व सिनेमा प्रेमी होता है. सिनेमा यानी फिल्में हर इनसान की कमजोरी हैं. जनता की इस कमजोर नस को नेता भलीभांति समझते हैं. नतीजतन, किसी महत्वपूर्ण कुरसी पर बैठते ही नेताओं का सिनेमा प्रेम कुछ ज्यादा ही तेजी से जागृत हो जाता है और फिर ‘सिनेमा और सिनेमा के माध्यम से संस्कृति’ के विकास के नाम पर जनता के पैसे और उन की श्रम शक्ति का दुरुपयोग करने का तमाशा शुरू करने में देरी नहीं करते हैं.

यों तो मुंबई में बौलीवुड का अपना अस्तित्व है. बौलीवुड यानी मुंबई व उस से सटे इलाकोें में सरकारी फिल्मसिटी के साथ ही कई निजी फिल्म स्टूडियो भी हैं, पर अब उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने उत्तर प्रदेश में ‘फिल्मसिटी’ बनाने की घोषणा करने के साथ ही इस योजना पर काम भी शुरू कर दिया है.

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इस घोषणा के मुताबिक, यह ‘फिल्मसिटी’ गौतम बुद्ध नगर में यमुना एक्सप्रेसवे इंडस्ट्रियल डवलपमैंट अथौरिटी से लगी 1,000 एकड़ भूमि में बनेगी.

मुख्यमंत्री योगी का कथन

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा, ‘‘यहां विश्वस्तरीय तकनीकी सुविधाओं के साथ 50 साल आगे की सोच रखते हुए ‘फिल्मसिटी’ का निर्माण किया जाएगा. यह भारत को अंतर्राष्ट्रीय फिल्म मानचित्र पर मजबूती से जमा देगी.

“यह ‘फिल्मसिटी’ कई माने में बहुत अहम होगी, क्योंकि यहां से नई दिल्ली और एशिया के सब से बड़े प्रस्तावित जेवर इंटरनेशनल एयरपोर्ट की दूरी बमुश्किल एक घंटे की होगी. यहां से आगरा का ताजमहल और भगवान श्रीकृष्ण की नगरी मथुरा भी नजदीक हैं.’’

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उन्होंने अपनी बात को स्पष्ट करने के साथसाथ भारतीय संस्कृति से जोड़ते हुए कहा, ‘‘उत्तर प्रदेश भारतीय संस्कृति, सभ्यता और समृद्ध परंपरा का सब से महत्वपूर्ण केंद्र है. यमुना एक्सप्रेसवे क्षेत्र में जहां यह ‘फिल्मसिटी’ विकसित करने का विचार है, वह भारत के ऐतिहासिक, पौराणिक इतिहास से संबद्ध है. यह हस्तिनापुर का क्षेत्र है. हमारे दिव्यभव्य कुंभ से पूरी दुनिया आह्लादित है. ‘फिल्मसिटी’ भी सभी की उम्मीदों को पूरा करने वाली होगी.’’

योगी की फिल्मकारों के साथ बैठक

इतना ही नहीं, उन्होंने तत्परता दिखाते हुए कुछ निर्माता, निर्देशकों, कलाकारों, नोएडा व ग्रेटर नोएडा के सीईओ के साथ  22 सितंबर, 2020 को एक बैठक कर मुलाकात कर डाली.

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मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से मुलाकात के लिए कुछ फिल्म बिरादरी के सदस्य लखनऊ पहुंचे थे, जबकि अनुपम खेर और परेश रावल जैसे दिग्गज कलाकार एक वीडियो कौंफ्रेंस में बातचीत में शामिल हुए थे. मगर भाजपा की सांसद हेमा मालिनी व मनोज तिवारी ने दूरी बनाए रखी.

इस बैठक में अभिनेता व एक्टिंग स्कूल चला रहे अनपुम खेर ने कहा, ‘‘प्रस्तावित फिल्म शहर को वैश्विक पहचान मिलनी चाहिए. इसी के साथ फिल्म विधा व अभिनय के प्रशिक्षण पर भी जोर दिया जाना चाहिए.’’

फिल्म निर्माता और अभिनेता सतीश कौशिक, जो मूलतः हरियाण से हैं और हरियाणा में फिल्म नीति बनवा कर हिंदी फिल्मों की हरियाणा में फिल्माई जाने वाली फिल्म को 2 करोड़ रुपए तक की सब्सिडी देने की नीति बनवा चुके हैं.

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उन्होंने अपनी फिल्म ‘कागज’ की शूटिंग उत्तर प्रदेश में की है. उन्होंने कहा कि राज्य ने फिल्म पेशेवरों और उम्मीदवारों के लिए एक बढ़िया विकल्प पेश किया है.

उन्होंने आगे कहा, ‘‘प्रस्तावित ‘फिल्मसिटी’ का विशाल स्थान उत्तरी क्षेत्र के बड़े भूगोल और जनसांख्यिकी को पूरा करता है.‘‘

गीतकार मनोज मुंतशिर ने हिंदी फिल्म उद्योग को हिंदी भाषी बेल्ट में ले जाने के लिए राज्य सरकार के कदम का स्वागत करते हुए कहा, ‘‘अगर उत्तर प्रदेश में फिल्म इंस्टीट्यूट और संगीत अकादमी बनाई जाए तो स्थानीय लोकाचार और पच्चीकारी संस्कृति को और बढ़ावा मिलेगा.‘‘

शिव सेना समर्थक नितिन देसाई की पेशकश

सब से बड़ी हैरानी की बात यह रही कि इस में ‘शिव सेना’ समर्थक और शिव सेना सुप्रीमो स्व. बाल ठाकरे के काफी करीबी माने जाने वाले मशहूर कला निर्देशक और मुंबई से डेढ़ सौ किलोमीटर दूर कर्जत में ‘‘एनडी स्टूडियो’’ स्थापित करने वाले नितिन देसाई भी इस में रुचि ले रहे हैं.

उन्होंने मुंबई के पास कर्जत में स्थापित ‘एनडी स्टूडियो’ की ही तर्ज पर उत्तर प्रदेश में भी एक पूरी ‘फिल्मसिटी’ स्थापित करने की पेशकश कर डाली.

राजू श्रीवास्तव पर मेहरबान मुख्यमंत्री योगी

योगी आदित्यनाथ के साथ इस बैठक में उत्तर प्रदेश फिल्म ‘‘बंधु’’ के अध्यक्ष व अभिनेता राजू श्रीवास्तव ने कहा, ‘‘उत्तर प्रदेश में ‘फिल्मसिटी’ की परिकल्पना छोटेछोटे शहरों की अद्भुत प्रतिभाओं के हौसलों, सपनों को पंख देने वाली होगी. मैं हर समय, पूरी क्षमता के साथ सेवा के लिए प्रस्तुत रहूंगा.’’

सूत्र बता रहे हैं कि राजू श्रीवास्तव पर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ कुछ ज्यादा ही मेहरबान हैं. राजू श्रीवास्तव सरकारी जमीन पर सरकार की मदद से बहराइच में ‘फिल्म यूनिवर्सिटी’ शुरू करने जा रहे हैं.

वैसे भी फिल्म “बंधु” के तहत राजू श्रीवास्तव आम जनता के टैक्स व गाढ़ी कमाई का काफी हिस्सा उन फिल्मकारों को पहले ही बांट चुके हैं, जिन्होंने उत्तर प्रदेश में अपनी फिल्मों की शूटिंग की.

मुख्यमंत्री कार्यालय के अनुसार, मुंबई फिल्म उद्योग यानी बौलीवुड में तकरीबन 80 फीसदी तकनीशियन और श्रमिक उत्तर प्रदेश से हैं. जब उत्तर प्रदेश में ‘फिल्मसिटी’ बन जाएगी, तो जनशक्ति की उपलब्धता की समस्या नहीं होगी. मगर हकीकत यह है कि यह सारा तमाशा जनता के पैसे व उन की श्रमशक्ति की बरबादी के अलावा कुछ नहीं है.

अंधा बांटे रेवड़ी

यदि देश या राज्य की सरकारों को सिनेमा की बेहतरी की चिंता होती, तो ‘फिल्मसिटी’ बनाने का तमाशा करने की बनिस्बत मूल समस्याओं के निबटारे पर ध्यान दे कर लोगों के श्रम का दुरुपयोग व उन का शोषण रोकने की दिशा में कोई ठोस कदम उठातीं, पर ऐसा नहीं हो रहा है. सभी राज्य सरकारें फिल्मों के विकास की नीति के तहत अपनेअपने राज्य में फिल्माई जाने वाली फिल्मों को सब्सिडी बांटने के नाम ‘अंधा बांटे रेवड़ी, अपनोंअपनों को दे’’ की तर्ज पर जनता के पैसे की बरबादी ही कर रही हैं.

देखिए, इस बात से कोई इनकार नहीं कर सकता कि फिल्म या सिनेमा कला के साथ पूरी तरह से व्यावसायिक मामला है. हर फिल्मकार एक ही फिल्म से करोड़ों रुपए कमा लेेने का सपना देखते हुए करोड़ों रुपए खर्च कर फिल्में बनाता है. ऐसे में इन्हें सब्सिडी के नाम पर आम जनता के पैसे की बरबादी करना किस हद तक जायज ठहराया जा सकता है?

फिल्मकारों की समस्या को किया अनदेखा

दूसरी बात यदि सरकार सही माने में सिनेमा के विकास के प्रति गंभीर है, तोे उसे सब से पहले फिल्म नीति बना कर ऐसी व्यवस्था करनी चाहिए कि फिल्मकार को बेवजह फिल्म की शूटिंग करने की इजाजत हासिल करने के लिए दरदर न भटकना पडे.

इतना ही नहीं, इस बात पर अंकुश लगना चाहिए कि फिल्म की शूटिंग के दौरान नगरपालिका या जिलाधिकारी के कार्यालय से जुड़े लोग व पुलिस उन के पास जबरन पैसा वसूली करने न पहुंचे.

श्रमिकोें की श्रमशक्ति का दुरुपयोग व शोषण से लापरवाह सरकार

तीसरी बात उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ मानते हैं कि बौलीवुड में 80 फीसदी उत्तर प्रदेश के तकनीशियन व श्रमिक काम कर रहे हैं, पर सवाल है कि क्या उन्होंने इस बात पर गौर किया कि इन तकनीशियनों व श्रमिकों की श्रमशक्ति का दुरुपयोग व इन का शोषण किस तरह से हो रहा है?

बौलीवुड में जूनियर आर्टिस्ट, जूनियर डांसर, स्पौट ब्वौय सहित तकरीबन 5 लाख श्रमिक ऐसे हैं, जिन की मेहनत की मलाई बिचौलिए खा रहे हैं. हर फिल्म की शूटिंग में इन्हें काम करने का अवसर इन के तथाकथित ठेकेदारों यानी बिचौलियों के माध्यम से ही मिलता है.

ये ठेकेदार निर्माता से प्रति जूनियर आर्टिस्ट व जूनियर डांसर हजार से पंद्रह सौ रुपए वसूलता है और बेचारे जूनियर आर्टिस्ट को महज 300 से 400 रुपए थमा कर बाकी की रकम अपनी जेब में रख लेता है. इन श्रमिकों की कहीं कोई सुनवाई नहीं है.

इस दिशा में ठोस कानून बना कर इन श्रमिकों के हितों की सुरक्षा के संबंध में कोई सरकार नहीं सोच रही है. हर सरकार को एक फिल्म से करोड़ों रुपए कमाने वाले फिल्मकारों की ही चिंता सताती है.

फिल्मकार को सब्सिडी के नाम पर लंबी रकम देने के साथ ही उत्तर प्रदेश सरकार पिछले कुछ वर्षों से लाखों रुपए कमा रहे फिल्मी हस्तियों को ही हर साल पुरस्कार देते हुए जनता का पैसा बांटती आ रही है.

बौलीवुड का बंटवारा मतलब…?

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का यह कहना सही है कि बौलीवुड में 80 फीसदी श्रमिक उत्तर भारत के हैं, मगर इसी बात को जिस तरह से कुछ भाजपा नेता और भाजपा समर्थक उत्तर प्रदेश में ‘फिल्मसिटी’ बनाने को ‘बौलीवुड का बंटवारा’ की बात कर रहे हैं, उस से भी मुख्यमंत्री की मंशा पर कई तरह के सवाल उठ रहे हैं.

सिनेमा के लिए यहां की जलवायु सही नहीं

माना कि उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की मंशा सही है, मगर उन्हें यह नहीं भूलना चाहिए कि पूरे भारत में सिनेमा के लिए उपयुक्त जलवायु मुंबई या गोवा में ही है. उत्तर प्रदेश में गरमी के दिनों में मौसम का तापमान 50 डिगरी तक पहुंच जाता है.

इतना अधिक तापमान और शूटिंग की लाइटों की गरमी के बीच शूटिंग करना असंभव है. इसी तरह उत्तर प्रदेश में हर बार बारिश अपना कहर ढाती है, तो वहीं नवंबर माह के दूसरे सप्ताह से फरवरी माह तक ठंड के मौसम में हर साल तापमान माइनस 10 डिगरी तक चला जाता है. कईकई दिनों तक सूरज नहीं निकलता. धुंध बनी रहती है. कुछ दिन ही सूरज सुबह 11 बजे से शाम 4 बजे तक नजर आता है, ऐसे में आउटडोर शूटिंग करना संभव नहीं, ठंड के दिनों में स्वेटर पहन कर शूटिंग नहीं की जा सकती. स्टूडियो के अंदर शूटिंग करनी है, तो मुंबई का फिल्म निर्माता सारा तामझाम ले कर क्यों जाएगा? इन्हीं वजहों से अतीत में नोएडा, उत्तर प्रदेश में बनी ‘फिल्मसिटी’ का हश्र पूरे देश के सामने है.

1993 की ‘नोएडा फिल्मसिटी’ का हश्र

जी हां, सब से पहले 1993 में उत्तर प्रदेश के नोएडा में ‘फिल्मसिटी’ बनाई गई थी. उस वक्त सुभाष घई, मोहित मारवाह सहित कई फिल्मकारों को प्लाट आवंटित हुए थे. मगर कोई भी फिल्मकार वहां स्टूडियो बना कर फिल्मों की शूटिंग करने आज तक नहीं गया.

हर किसी ने सरकार से अति कमतर कीमत पर प्लाट ले कर उन्हें विकसित कर दूसरी कंपनियों को किराए पर दे दिया.

वर्तमान समय में तथाकथित उस ‘नोएडा फिल्मसिटी‘ में अखबारों के दफ्तर, टैलीविजन चैनलों के दफ्तर व स्टूडियो, एक्टिंग स्कूल व अन्य कंपनियां हैं. क्या इसे जायज ठहराना सही है? इस से नुकसान तो आम जनता का ही हुआ है.

2015 की ‘फिल्मसिटी’ कहां गई?

इतना ही नहीं, 2015 में जब उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी की सरकार के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव थे, तब भी उत्तर प्रदेश में ‘फिल्मसिटी’ बनाने की योजना पर काम शुरू हुआ था. उस वक्त भोजपुरी फिल्मों के अभिनेता रविकिशन, जो कि वर्तमान समय में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के ही क्षेत्र गोरखपुर से भाजपा के सांसद हैं, वे समाजवादी पार्टी से जुड़े हुए थे. तब उत्तर प्रदेश में 2 ‘फिल्मसिटी’ बनाना प्रस्तावित हुआ था, जिस पर तत्कालीन मुख्यमंत्री अखिलेश यादव, निर्मातानिर्देशक बोनी कपूर और अभिनेता रविकिशन ने हस्ताक्षर किए थे, मगर कुछ दिन के बाद यह योजना धराशायी हो गई.

वास्तव में 2015 में अखिलेश यादव की सरकार द्वारा प्रस्तावित 2 ‘फिल्मसिटी’ में से एक ‘फिल्मसिटी’ लखनऊआगरा एक्सप्रेसवे पर और दूसरी उन्नाव के ट्रांस गंगा सिटी प्रोजैक्ट में बननी थी. सरकार ने दोनों ‘फिल्मसिटी’ के लिए 300-300 एकड़ जमीन देने का वादा किया था.

यह योजना पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप मौडल पर तैयार होनी थी, जिन में तकरीबन 700 करोड़ रुपए का निवेश होना था. मगर बोनी कपूर और रविकिशन दोनों ने ही इन प्रोजैक्ट से अपने हाथ पीछे खींच लिए थे.

उस वक्त जौनपुर, उत्तर प्रदेश के मूल निवासी अभिनेता रविकिशन (वर्तमान में गोरखपुर से भाजपा के सांसद) ने ‘फिल्मसिटी’ को जौनपुर में बनाने के लिए जमीन आवंटित करने की मांग रख दी थी, मगर इस पर मुख्यमंत्री अखिलेश यादव तैयार नहीं हुए थे, जबकि बोनी कपूर को जमीन की कीमत बहुत ज्यादा लगी थी, इसलिए उन्होंने ‘फिल्मसिटी’ में निवेश करने यानी पैसा लगाने में कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई थी.

महंगी जमीन पर ही ‘फिल्मसिटी’ क्यों?

यदि सही नीयत से ‘फिल्मसिटी’ बनाने की योजना होती तो इसे नोएडायमुना एक्सप्रेसवे के पास बनाने के बजाय बियाबान जगह पर बनाया जाना चाहिए, जिस से आसपास के सभी इलाकों का विकास हो और गरीबों का भी भला हो जाए. साथ ही, गरीबों को नए रोजगार मिल सकते हैं.

हमें याद रखना चाहिए कि अमेरिका में हौलीवुड ऐसे ही रेगिस्तानी इलाके में बनाया गया था. इतना ही नहीं, अमेरिका का ‘लास वेगास‘ बहुत चर्चित है, जहां लोग जुआ खेलने भी जाते हैं. किसी जमाने में यहां भी रेगिस्तान था. तब यह जमीन सस्ते दामों में दी गई थी. आज यहां फाइवस्टार होटल बन गए हैं और बहुत बड़ा औद्योगिक केंद्र भी हो गया है. हर वर्ष करोड़ों लोग ‘लास वेगास’ आ जाते हैं.

जनता के पैसे की बरबादी का आगाज नजर आने लगा

अब जबकि वर्तमान मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने ‘फिल्मसिटी’ बनाने का बीड़ा उठाया है, तो यह भी पिछले 2 बार की ही तरह जनता के पैसे व श्रमशक्ति की बरबादी के साथ ही सरकारी तामझाम के अलावा कुछ साबित नहीं होने वाला है.

‘फिल्मसिटी’के नाम पर कितना भ्रष्टाचार होगा, इस का अंदाजा अभी से लगाना असंभव है. मगर जिस तरह के हालात पिछले दिनों बने हैं, उस से तो यही आभास हो रहा है कि इतिहास तीसरी बार पुनः दोहराने वाला है. क्योंकि इस बार फिर निर्माताओं और निवेशकों की तरफ से मांग उठ रही है कि उत्तर प्रदेश सरकार उन्हें ‘फिल्मसिटी’ में निवेश के लिए सब्सिडी दे, जिस में जमीन की कीमतें भी शामिल हैं यानी सभी सब्सिडी के साथ सस्ती दर पर ‘फिल्मसिटी’ के प्रोजैक्ट में जमीन या प्लाट चाहिए.

सूत्र तो दावा कर रहे हैं कि बौलीवुड के चंद फिल्मकारों के साथ बैठक करने के बाद उन की इस मांग के बारे में जल्द ही उत्तर प्रदेश सरकार से फैसले की उम्मीद की जा रही है.

भारत के हर प्रदेश में ‘फिल्मसिटी‘ बन जाए और निर्मातानिर्देशकों को अपनी फिल्म की शूटिंग करने की सुविधाएं मुहैया हो जाए, तो इस से बेहतर और क्या हो सकता है? यदि राजस्थान, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश में भी ‘फिल्मसिटी’ बन जाए, तो इन प्रदेशों में रहने वाले छोटेछोटे निर्मातानिर्देशक, तकनीशियन व कलाकार मुंबई भागने के बजाय अपने निवास स्थान के नजदीक की ‘फिल्मसिटी’ में जा कर काम कर सकते हैं. इस से उस के पैसों के साथ उस की श्रमशक्ति व रचनात्मक प्रतिभा का सिनेमा की बेहतरी के लिए उपयोग हो सकेगा.

मगर सिर्फ ‘फिल्मसिटी’ बना देने से या उत्तर प्रदेश की संस्कृति के नाम पर फिल्में बनाने से कुछ नहीं होगा. सब से अहम सवाल यह है कि क्या वास्तव में जनता के श्रम व पैसे का सदुपयोग होगा? क्या उत्तर प्रदेश के गांवों में पनप रही प्रतिभाओं को सही माने में सिनेमा से जुड़ने का मौका मिलेगा? वगैरह.

जिस तरह से बौलीवुड में जूनियर आर्टिस्टों, जूनियर डांसरों  व अन्य श्रमिकों के श्रम का दुरुपयोग व आर्थिक शोषण हो रहा है, वह उत्तर प्रदेश की ‘फिल्मसिटी’ में भी बदस्तूर जारी रहेगा? इस दिशा में फिलहाल मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की कोई योजना सामने नहीं आई है.

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