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केले का छिलका -भाग 2: मसूरी के रास्ते में ईशान ने क्या देखा

‘‘मुझे क्या मालूम था…’’ लड़की फिर रो पड़ी.

‘‘धीरज से काम लीजिए,’’ ईशान ने सहानुभूति से कहा. सोचा, ‘शायद कुछ हादसा हो गया है.’

लड़की अब आंसू पोंछने लगी, फिर बोली, ‘‘क्षमा कीजिए. मेरा नाम वैरोनिका है. वैसे सब मुझे ‘रौनी’ कहते हैं.’’

ईशान मुसकराया. औपचारिकता के लिए बोला, ‘‘बड़ा अच्छा नाम है. आप बैठिए, मैं आप के लिए कुछ लाता हूं. कौफी या शीतल पेय?’’

रौनी ने झिझकते हुए कहा, ‘‘बड़ी मेहरबानी होगी, अगर आप मेरे लिए इतना कष्ट न उठाएं.’’

‘‘नहींनहीं, कष्ट किस बात का…आप ने अपनी पसंद नहीं बताई?’’ ईशान ने जोर दिया.

‘‘गरम कौफी ले आइए,’’ रौनी ने अनिच्छा से कहा.

सामने ही ‘कौफी कौर्नर’ था. ईशान

2 कप कौफी ले आया. वह कौफी पीने लगा. पर लग रहा था कि रौनी केवल होंठ गीले कर रही है.

‘‘क्या हुआ आप के मांबाप को?’’ थोड़ी देर बाद ईशान ने पूछा.

‘‘उन की हाल ही में मौत हो गई,’’ रौनी फिर रो पड़ी.

ईशान ने उस के हाथ से कप ले लिया, क्योंकि कौफी उस के अस्थिर हाथों से छलकने ही वाली थी.

‘‘माफ कीजिएगा, आप का दिल दुखाने का मेरा कतई इरादा नहीं था,’’ ईशान ने शीघ्रता से कहा.

‘‘कोई बात नहीं,’’ आंसुओं पर काबू पाते हुए रौनी ने कहा, ‘‘कोई सुनने वाला भी नहीं. मेरा दिल भरा हुआ है. आप से कहूंगी तो दुख कम ही होगा.’’

‘‘ठीक है. पहले कौफी पी लीजिए,’’ कप आगे करते हुए उस ने कहा.

जब रौनी स्थिर हुई तो बोली, ‘‘मेरी मां को कैंसर था. बहुत इलाज के बाद भी हालत बिगड़ती जा रही थी. एक दिन हम सब टीवी देख रहे थे. पर्यटकों के लिए अच्छेअच्छे स्थानों को दिखाया जा रहा था. बस, मां ने यों ही कह दिया कि काश, वे भी किसी पहाड़ की सैर कर रही होतीं तो कितना मजा आता.’’

रौनी ने कौफी खत्म कर के कप पीछे फेंक दिया. ईशान उत्सुकता से उस की कहानी सुन रहा था.

‘‘पिताजी के मन में आया कि मां की अंतिम इच्छा पूरी करना उन का कर्तव्य है. हम लोग मध्यवर्ग के हैं. फिर मां की बीमारी पर भी काफी खर्च हो रहा था. काफी रुपया उधार ले चुके थे,’’ रौनी ने गहरी सांस छोड़ी.

‘‘आप की तबीयत ठीक नहीं है,’’ ईशान ने कहा, ‘‘अभी थोड़ा आराम कर लीजिए.’’

‘‘नहीं, मैं ठीक हूं. कहने से मन हलका ही होगा,’’ रौनी ने अपने ऊपर नियंत्रण करते हुए कहा, ‘‘किसी तरह से पिताजी ने उधार ले कर और कुछ जेवर बेच कर मसूरी आने का कार्यक्रम बनाया. यहां आ कर हम तीनों एक सस्ते होटल में ठहरे.

‘‘एक दिन कैमल्सबैक गए. इतनी ऊंचाई पर जब वह पहाड़ी दिखाई दी, जो ऊंट की पीठ के आकार की थी, मां के आनंद का ठिकाना न रहा. वे बच्चों की तरह प्रसन्न हो कर किलकारियां मारने लगीं. अचानक वे अपना नियंत्रण खो बैठीं और नीचे को गिरने लगीं. पिताजी ने जैसे ही देखा, उन्हें पकड़ने की कोशिश की. पर वे स्वयं भी अपने पर नियंत्रण न रख सके. दोनों एकसाथ गिर पड़े. नीचे इतनी गहराई थी कि लाशें भी नहीं मिलीं.’’

रौनी फिर से सिसकने लगी.

ईशान ने हिम्मत कर के रौनी का हाथ अपने हाथों में ले लिया और कहा, ‘‘मुझे आप के साथ पूरी सहानुभूति है. आप का दुख समझ सकता हूं. अब क्या इरादा है?’’

‘‘कुछ नहीं. कुछ दिन और रुकूंगी. शायद कुछ पता लगे. फिर तो वापस जाना ही है,’’ रौनी ने उदास हो कर कहा, ‘‘पता नहीं क्या करूंगी?’’

‘‘घबराइए मत. कोई न कोई रास्ता निकल ही आएगा,’’ ईशान ने घड़ी की ओर देखते हुए कहा, ‘‘भूख लग रही है. चलिए, कुछ खाते हैं.’’

‘‘मेरी तो भूखप्यास ही खत्म हो गई है. आप मेरी वजह से परेशान न हों.’’

‘‘ऐसा कैसे हो सकता है? मैं खाऊं और आप भूखी रहें?’’ ईशान ने दिलेरी से कहा, ‘‘वैसे मुझे अकेले खाने की आदत भी नहीं है.’’

‘‘देखिए. मैं आप के ऊपर कोई बोझ नहीं बनना चाहती,’’ रौनी ने दयनीय भाव से कहा, ‘‘आप की सहानुभूति मिली, इसी से मुझे बड़ा सहारा मिला.’’

‘‘रौनी,’’ इस बार ईशान ने जोर दे कर कहा, ‘‘अगर तुम मेरे साथ खाना खाओगी तो यह मेरे ऊपर तुम्हारी मेहरबानी होगी.’’

‘‘ओह, आप तो बस…’’ रौनी की आंखों में पहली बार मुसकान की झलक दिखाई दी.

‘‘बस, अब उठ कर चलो मेरे साथ,’’ ईशान ने उठ कर उस की ओर हाथ बढ़ाया.

वह रौनी को एक अच्छे होटल में ले गया. दोनों ने बहुत महंगा भोजन किया. रौनी अब पिछले हादसों से उबर रही थी.

अनार की उन्नत उत्पादन तकनीक

 लेखक- दुर्गाशंकर मीना, मूलाराम और मुकुट बिहारी मीना, पिंटू लाल मीना, सहायक कृषि अधिकारी, सरमथुरा,

धौलपुर अनार भारत में उगाई जाने वाली एक महत्त्वपूर्ण फल फसल है. उपोष्ण जलवायु का फल वृक्ष होने के कारण अनार सूखे के प्रति सहनशील होने के साथसाथ कम लागत में अधिक आमदनी देता है. अनार के फल कार्बोहाइड्रेट, कैल्शियम, लौह तत्त्व और सल्फर के अच्छे स्रोत हैं. इस का प्रयोग खाने व रस के रूप में किया जाता है. दुनिया में अनार की खेती स्पेन, मोरक्को, मिस्र, ईरान, अफगानिस्तान और ब्लूचिस्तान जैसे भूमध्यसागरीय देशों में बड़े पैमाने पर की जा रही है. इस की खेती म्यांमार, चीन, अमेरिका और भारत के कुछ हिस्सों में की जाती है.

भारत दुनिया में अनार की खेती करने में प्रथम स्थान रखता है. भारत में प्रमुख अनार उत्पादक राज्य महाराष्ट्र, कर्नाटक, गुजरात, आंध्र प्रदेश, मध्य प्रदेश, तमिलनाडु और राजस्थान हैं. भारत में अनार उगाने वाले राज्यों में महाराष्ट्र अग्रणी राज्य?है. इस राज्य में अनार का कुल क्षेत्रफल 90,000 हेक्टेयर और उत्पादन 9.45 लाख मीट्रिक टन और उत्पादकता 10.5 मीट्रिक टन है. महाराष्ट्र राज्य भारत में अनार के कुल क्षेत्रफल का 78 फीसदी और देश में कुल उत्पादन में 84 फीसदी योगदान देता है. राजस्थान में अनार को जोधपुर, बाड़मेर बीकानेर, चुरू और झुंझुनूं में व्यावसायिक स्तर पर उगाया जाता है. अनार सब से पसंदीदा टेबल फलों में से एक है.

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ताजे फल का उपयोग टेबल के उद्देश्य के लिए किया जाता है और इस का उपयोग फल के रस, सिरप, स्क्वैश, जैली, रस केंद्रित कार्बोनेटेड कोल्ड ड्रिंक्स, अनारदाना की गोलियां, अम्ल आदि जैसे प्रसंस्कृत उत्पादों के तैयार के लिए भी किया जा सकता है. अनार फल पौष्टिक, खनिज, विटामिन और प्रोटीन से भरपूर होता है. कुष्ठ पीडि़त रोगियों के लिए इस का रस बहुत ही उपयोगी होता है. जलवायु अनार फल की सफलतापूर्वक खेती के लिए शुष्क और अर्धशुष्क मौसम जरूरी होता है. ऐसे क्षेत्र, जहां ठंडी सर्दियां और उच्च शुष्क गरमी होती है, उन क्षेत्रों में गुणवत्तायुक्त अनार के फलों का उत्पादन होता है. अनार का पौधा कुछ हद तक ठंड को सहन कर सकता है. इसे सूखासहिष्णु फल भी माना जा सकता?है, क्योंकि एक निश्चित सीमा तक सूखा और क्षारीयता व लवणता को सहन कर सकता?है, परंतु यह पाले के प्रति संवेदनशील होता है.

इस के फलों के विकास के लिए अधिकतम तापमान 35-38 डिगरी सैल्सियस जरूरी होता है. इस के फल के विकास व परिपक्वता के दौरान गरम व शुष्क जलवायुवीय दशाएं जरूरी होती हैं. मिट्टी जल निकास वाली गहरी, भारी दोमट भूमि इस की खेती के लिए उपयुक्त रहती है. मिट्टी की आवश्यकता को ध्यान में रखते हुए इसे कम उपजाऊ मिट्टी से ले कर उच्च उपजाऊ मिट्टी तक विभिन्न प्रकार की मिट्टी में उगाया जा सकता?है. हालांकि, गहरी दोमट मिट्टी में यह बहुत अच्छी उपज देता है. यह कुछ हद तक मिट्टी में लवणता और क्षारीयता को सहन कर सकता है. अनार की खेती के लिए मृदा का पीएच मान 6.5 से 7.5 के बीच उपयुक्त रहता है. अनार के पौधे 6.0 डेसी साइमंस प्रति मीटर तक की लवणता और 6.78 फीसदी विनिमयशील सोडियम को सहन कर सकते हैं.

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इस के अच्छे उत्पादन के लिए मिट्टी उचित जल निकास वाली होनी चाहिए. यह फल मिट्टी की नमी के उतारचढ़ाव के प्रति संवेदनशील होता है, जिस के कारण फल फटने की एक गंभीर समस्या पैदा हो जाती है, जो इस फसल की एक प्रमुख समस्या है. भूमि की तैयारी भूमि में मोल्ड बोल्ड हल से 2-3 गहरी जुताई करें. इस के तुरंत बाद हैरो से जुताई करें, ताकि मिट्टी महीन हो जाए. इस के बाद समतलीकरण कर दें. प्रवर्धन विधि अनार के पौधे को व्यावसायिक रूप से कलम, गूटी और टिश्यू कल्चर के माध्यम से प्रसारित किया जा सकता है. कलम विधि यह आसान तरीका है, लेकिन इस की सफलता दर कम?है, इसलिए यह विधि किसानों के बीच लोकप्रिय नहीं है. कटिंग या कलम के लिए 9 से 12 इंच (25 से 30 सैंटीमीटर) लंबी एक साल पुरानी शाखा, जिस में 4-5 कलियां हों, का चयन कर लें. कलम लगाने के लिए सब से उपयुक्त समय फरवरी माह होता?है. गूटी या एयर लेयरिंग विधि नए पौधों को बढ़ाने के लिए किसानों द्वारा इस का सब से आम अभ्यास है. एयर लेयरिंग विधि में सब से पहले 2-3 साल पुराने स्वस्थ पौधों का चुनाव कर लें. एयर लेयरिंग विधि में बेहतर रूटिंग के लिए 2 से 3 साल पुराने स्वस्थ पौधों का चयन करें. इस के बाद पैंसिल आकार की शाखा का चुनाव करें.

इस के बाद चुनी गई शाखा में से 2.5-3.0 सैंटीमीटर छाल को उतार लें. इस के बाद जड़ फुटान हार्मोन से 1.5-2.5 ग्राम की दर से उपचारित कर के नम मास घास या फिर कोकोपिट से छिली हुई शाखा को लपेट दें. इस के बाद 300 गेज की पौलीथिन शीट से घास या फिर कोकोपिट से लपेट दें. पौलीथिन सीट पारदर्शी होनी चाहिए, इस का फायदा यह है कि जड़ें आसानी से दिख जाती हैं. एयर लेयर या गूटी बांधने के बाद आईबीए और सेराडैक्स बी (1,500 से 2,500 पीपीएम) से उपचार करें. इस प्रकार अच्छी रूटिंग 25-30 दिन में पूरी हो जाती है. एकल पौधे से लगभग 150 से 200 गूटी पौधे हासिल किए जा सकते हैं. बारिश का मौसम गूटी के लिए सब से सही है. जड़ों के लिए लगभग 30 दिन का समय लगता है. 45 दिनों के बाद गूटी किए गए पौधों को मातृ पौधे से अलग कर देना चाहिए. जब गूटी किए गए भाग की जड़ें पूरे रंग की होने लग जाएं, तब गूटी किए भाग से तुरंत नीचे के भाग से कट लगा कर मातृ पौधे से अलग कर लेना चाहिए. इस के बाद इन्हें पौलीबैग में उगाया जाता है और शैड नैट या ग्रीनहाउस के तहत 90 दिनों तक सख्त करने के लिए रख दिया जाता है.

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ऊतक संवर्धन विधि : ऊतक संवर्धन पौधों के गुणन की एक अग्रिम और तीव्र तकनीक है. इस तकनीक का उपयोग कर के थोड़े समय के भीतर रोगमुक्त और पर्याप्त रोपण सामग्री हासिल की जा सकती है. इस विधि में अनार के पौधे को विश्वसनीय स्रोत से खरीदना चाहिए. उन्नत किस्में अनार की उन्नत किस्मों में नरम बीज वाली किस्में : गणेश, जालौर सीडलेस, मृदुला, जोधपुर रैड, जी-137 के साथसाथ वर्तमान में गहरे लाल बीजावरण वाली भागवा (सिंदूरी) किस्म पूरे भारत में उगाई जा रही हैं. गणेश किस्म के फल गुलाबी पीले रंग से लालपीले रंग के होते हैं. इस किस्म में नरम बीज होते हैं. एनआरसी हाईब्रिड-6 और एनआरसी हाईब्रिड-14 दोनों ही अनार की किस्में वर्तमान में प्रचलित किस्म भागवा से उपज व गुणवत्ता में बेहतरीन हैं.

एनआरसी हाईब्रिड-6 : इस किस्म में फल के छिलके और एरिल का रंग लाल, नरम बीज, फल का स्वाद मीठा, न्यूनतम अम्लता (0.44 फीसदी) और अधिक उपज 22.52 किलोग्राम प्रति पौधा व प्रति हेक्टेयर उपज 15.18 टन तक होती है. एनआरसी हाईब्रिड-14 : इस किस्म में फल के छिलके का रंग गुलाबी व एरिल का रंग लाल, नरम बीज, फल का स्वाद मीठा, न्यूनतम अम्लता (0.45 फीसदी) और अधिक उपज 22.62 किलोग्राम प्रति पौधा व प्रति हेक्टेयर उपज 16.76 टन तक होती है.

भागवा : अनार की भागवा किस्म उपज में बाकी अन्य किस्मों से उत्तम है. यह किस्म 180-190 दिनों में पक कर तैयार हो जाती है. इस के फल आकार में बड़े, स्वाद में मीठे, बोल्ड, आकर्षक, चमकदार और केसरिया रंग के उच्च गुणवत्ता वाले होते हैं. फल के एरिल का रंग गहरा लाल और बोल्ड आर्टिल वाले आकर्षक बीज होते हैं, जो टेबल और प्रोसैसिंग दोनों उद्देश्यों के लिए उपयुक्त होते हैं. यह किस्म दूर के बाजारों के लिए भी सही है. यह किस्म अनार की अन्य किस्मों की तुलना में फलों के धब्बों और थ्रिप्स के प्रति कम संवेदनशील पाई गई. इन सभी विशेषताओं को ध्यान में रखते हुए, महाराष्ट्र के क्षेत्रों में बढ़ते अनार में इस की खेती के लिए ‘भागवा’ किस्म की सिफारिश की जाती है.

अन्य किस्में : रूबी, फुले अरकता, बेदाना, मस्कट, ज्योति, दारू, वंडर और जोधपुर लोकल. यह कुछ महत्त्वपूर्ण किस्में हैं, जिन को व्यावसायिक स्तर पर रोपण सामग्री के रूप में काम में लिया जाता है. गड्ढे की तैयारी व रोपण 90 दिन पुराने अनार के पौधे मुख्य खेत में रोपाई के लिए तैयार हो जाते हैं. पौधों को लगाने के लिए गड्ढे का उपयुक्त आकार 60 सैंटीमीटर लंबा, 60 सैंटीमीटर चौड़ा, 60 सैंटीमीटर गहरा रखा जाता है. अनार को लगाने के लिए सब से अधिक वर्गाकार विधि काम में ली जाती है. आमतौर पर रोपण दूरी मिट्टी के प्रकार और जलवायु के आधार पर निश्चित की जाती है. किसानों द्वारा सब से ज्यादा काम में ली जाने वाली सब से आदर्श रोपण दूरी पौधों के बीच 10 से 12 फुट (3.0 से 4.0 मीटर) और पंक्तियों के बीच 13-15 फुट (4.0 से 5.0 मीटर) है. गड्ढों की खुदाई के बाद इन्हें 10-15 दिन तक धूप में खुला छोड़ दिया जाता है, ताकि गड्ढों में हानिकारक कीडे़मकोडे़ व कवक आदि मर जाएं. मानसून के दौरान गड्ढों को गोबर की खाद या कंपोस्ट या वर्मी कंपोस्ट (10 किलोग्राम), सिंगल सुपर फास्फेट (500 ग्राम), नीम की खली (1 किलोग्राम) और क्विनालफास 50-100 ग्राम से भर दिया जाता है. अनार रोपण के लिए इष्टतम समय बारिश का मौसम (जुलाईअगस्त माह) होता है. इस समय पौधों की इष्टतम वृद्धि के लिए मिट्टी में पर्याप्त नमी उपलब्ध होती है. यद्यपि, अनार को कम उपजाऊ मिट्टी में भी उगाया जा सकता है, परंतु अच्छे उत्पादन व गुणवत्ता वाले फलों के लिए कार्बनिक और रासायनिक खाद का प्रयोग किया जाता है.

अंतरासस्यन : अनार का बगीचा लगाने के बाद 1 से 2 साल अफलन अवस्था में रहता है, इसलिए किसान को इस अवधि के दौरान कोई भी अतिरिक्त आय प्राप्त नहीं होती है. इस फसल प्रणाली में कम या धीरे उगने वाली सब्जियों, दालों या हरी खाद वाली फसलों को इंटरक्रौप के रूप में लेना फायदेमंद रहता है. शुष्क क्षेत्रों में, बारिश के मौसम में ही अंतरफसल संभव है, जबकि सिंचित क्षेत्रों में सर्दियों की सब्जियां भी अंतरासस्यन के रूप में ली जा सकती हैं. इस प्रकार किसान अंतरासस्यन को अपना कर बगीचे की अफलन अवस्था पर अतिरिक्त आय कमा सकते हैं. खाद व उर्वरक खाद व उर्वरक की संस्तुत खुराक के तौर पर 600-700 ग्राम नाइट्रोजन, 200-250 ग्राम फास्फोरस और 200-250 ग्राम पोटाश प्रति पौधे के हिसाब से प्रत्येक वर्ष देनी चाहिए. इस के पश्चात खाद की मात्रा को तालिका के अनुसार दें और 5 वर्ष के बाद खाद की मात्रा को स्थिर कर दें. (बाक्स देखें) देशी खाद, सुपर फास्फेट व पोटाश की पूरी मात्रा व यूरिया की आधी मात्रा फूल आने के करीब 6 हफ्ते पहले दें. यूरिया की शेष मात्रा फल बनने पर दें. अंबे बहार के लिए उर्वरक दिसंबर माह में देना चाहिए और मृगबहार के फलों के लिए उर्वरक मई माह में देना चाहिए.

सिंचाई अनार एक सूखा सहनशील फसल है, जो कुछ सीमा तक पानी की कमी में भी पनप सकती है. इस फसल में फल फटने की एक प्रमुख समस्या है, इसलिए इस से बचने के लिए नियमित सिंचाई आवश्यक होती है. सर्दियों के दौरान 10-12 दिन के अंतराल पर सिंचाई करें, जबकि गरमियों के मौसम में 4-5 दिन के अंतराल में सिंचाई जरूर करें. सिंचाई के लिए ड्रिप पद्धति का प्रयोग करें. इस से 40 से 80 फीसदी तक पानी की बचत कर सकते हैं और पानी के साथ उर्वरक का भी प्रयोग कर सकते हैं, जिसे फर्टिगेशन के नाम से जाना जाता है. अगर पानी की सुविधा हो, तो अंबे बहार से उत्पादन लें, क्योंकि इस बहार के फल अधिक गुणवत्ता वाले होते हैं, वरना मृगबाहर से ही काम लें.

साफ पानी पीने के हैं कई फायदे वरना हो सकती हैं ये 10 गंभीर बीमारियां

साफ पानी हर व्यक्ति की बुनियादी जरूरत है. प्रदूषित पानी बेहद घातक साबित हो सकता है. साफ पानी को यूनाइटेड नेशंस द्वारा मनुष्य का मूल अधिकार माना गया है, बावजूद इस के दुनिया भर में लगभग 1.8 मिलियन लोग प्रदूषित पानी के कारण मर जाते हैं.

पानी के बारे में 4 महत्त्वपूर्ण बातें

मात्रा:

हर व्यक्ति को रोजाना पीने, खाना पकाने, सैनिटेशन और हाइजीन के लिए 20 से 50 लिटर पानी की जरूरत होती है.

विश्वसनीयता:

पानी की उपलब्धता भरोसेमंद होनी चाहिए. मौसम चाहे कोई भी हो, व्यक्ति को हर स्थिति में पानी मिलना चाहिए. अगर पानी के स्रोत भरोसेमंद न हों या मौसमी हों तो इस का असर व्यक्ति के जीवन की गुणवत्ता पर पड़ता है.

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गुणवत्ता:

पानी के वितरण के लिए उचित और भरोसेमंद प्रणाली होनी चाहिए ताकि हर परिवार को सुरक्षित और साफ पेयजल मिले.

लागत:

साफ पानी का भरोसेमंद स्रोत भी माने नहीं रखता अगर व्यक्ति उसे पा न सके. इस में पैसे और समय दोनों की बात आती है.

साफ पानी इसलिए है जरूरी

साफ पानी पोषण देता है:

मनुष्य का शरीर 60 फीसदी पानी से बना होता है. उस को पर्याप्त मात्रा में पानी पीना चाहिए ताकि उस का शरीर सभी काम ठीक से करता रहे. इस के अलावा पानी मुंह की साफसफाई बनाए रखने के लिए भी जरूरी है. यह खून की सांद्रता ठीक बनाए रखने में मदद करता है. खून के जरीए पोषक पदार्थों और औक्सीजन को शरीर की हर कोशिका तक पहुंचाता है.

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विषैले पदार्थों को शरीर से बाहर निकालने में मदद करता है:

साफ और ताजा जल शरीर से विषैले पदार्थों को बाहर निकालने में मदद करता है, फिर चाहे ये विषैले पदार्थ शरीर में बने हों या बाहर से शरीर में आ गए हों अथवा प्रदूषित पानी के साथ शरीर में आ गए हों.

शरीर में तरल पदार्थों का संतुलन बनाए रखता है:

साफ और सुरक्षित जल पीने से शरीर में तरल पदार्थों का संतुलन बना रहता है. यह खाना पचाने, इसे शरीर में सोखने में मदद करता है. शरीर का तापमान सामान्य रख उसे सेहतमंद बनाए रखता है.

पेशियों को ऊर्जा देता है:

जब पेशियों को पर्याप्त मात्रा में पानी नहीं मिलता, तो उन में दर्द और अकड़न शुरू हो जाती है. अत: पेशियों को स्वस्थ बनाए रखने के लिए पानी बहुत जरूरी है.

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पानी गुर्दों के लिए बहुत जरूरी है:

अगर व्यक्ति पर्याप्त मात्रा में पानी न पीए तो उस की किडनियों में पथरी और संक्रमण की संभावना बढ़ जाती है. खासतौर पर गरम वातावरण में. इस के अलावा पानी बालों, त्वचा और नाखूनों को सेहतमंद बनाए रखने में मदद करता है.

पानी से फैलने वाली ज्यादातर बीमारियां प्रदूषित या गंदा पानी पीने से होती है. गंदे पानी से होने वाली 10 आम बीमारियां:

डिसैंट्री:

इस बीमारी के कई लक्षण हैं- उलटी आना, पेट में ऐंठन और गंभीर डायरिया. ऐक्यूट डिसैंटरी के मामले में व्यक्ति को बुखार हो सकता है और मल के साथ खून भी आ सकता है.

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डायरिया:

डायरिया गंदे पानी से होने वाली सब से आम बीमारी है. यह अकसर पानी से फैलने वाले वायरस से होती है. इस का मुख्य लक्षण है पतला और पानी जैसा मल, जिस के कारण व्यक्ति को डिहाइड्रेशन हो सकता है. नवजात और छोटे बच्चों की तो मौत भी हो सकती है.

कौलरा:

यह बैक्टीरिया से होने वाली बीमारी है जिस में व्यक्ति गंभीर डिहाइड्रेशन और डायरिया से पीडि़त हो जाता है. वे लोग जो अपने आसपास सफाई नहीं रखते उन में इस की संभावना अधिक होती है. पानी जैसा मल आने से शरीर से तरलपदार्थ और इलैक्ट्रोलाईट निकल जाते हैं और मरीज गंभीर डिहाइड्रेशन का शिकार हो जाता है. कभीकभी गंभीर डायरिया ही इस का मुख्य लक्षण होता है.

टाइफाइड:

भोजन और पानी में मौजूद बैक्टीरिया के कारण टाइफाइड होता है. यह उन स्थानों पर आसानी से फैलता है जहां सैनिटेशन सुविधाएं न हों. तेज बुखार, पेट में दर्द, सिरदर्द, रैशेज, पेशियों में कमजोरी इस के मुख्य लक्षण हैं. कुछ गंभीर मामलों में इंटरनल ब्लीडिंग भी हो सकती है.

हैपेटाइटिस ए:

शौचालयों से आने वाले पानी से हैपेटाइटिस ए आसानी से फैलता है. सैनिटेशन यानी साफसफाई न रखने से यह बीमारी आसानी से फैलती है. इस बीमारी के लक्षण हैं- बुखार, थकान, डायरिया, उलटी, भूख न लगना, पीलिया आदि. गंभीर मामलों में लिवर फेल्योर भी हो सकता है.

हुकवर्म:

हुकवर्म ऐसा परजीवी है जो मल के माध्यम से फैलता है. हालांकि यह पानी के माध्यम से अपना नया होस्ट ढूंढ़ लेता है. अगर व्यक्ति हुकवर्म का लार्वा निगल जाए तब भी यह बीमारी हो सकती है. पेट में दर्द, ऐंठन, बुखार, भूख न लगना, रैशेज, मल में खून आना आदि इस के लक्षण हैं.

स्टमक फ्लू:

यह ऐसी बीमारी है जिस के कारण पेट और आंतों में जलन और सूजन आ जाती है. यह बैक्टीरिया या वायरस से फैलती है. इस के मुख्य लक्षण है- डायरिया और उलटी. यह बीमारी सभी आयुवर्ग के लोगों में होती है. छोटे बच्चों में तो बहुत आम है.

पोलियो:

पोलियोमाइलिटिस को आमतौर पर पोलियो कहा जाता है. यह एक्यूट वायरल संक्रमण है, जो प्रदूषित पानी से फैलता है. यह शरीर के केंद्रीय तंत्रिकातंत्र को प्रभावित करता है. इस के मुख्य लक्षण हैं- बुखार, सिरदर्द, चक्कर आना आदि. अंत में मरीज पैरालाइसिस का शिकार हो जाता है.

लैड पौइजनिंग:

लैड पौइजनिंग लैड से युक्त पानी पीने से होती है. ऐसा पानी अकसर पुरानी पाइपों या सतही प्रदूषित जल से आता है. यह बीमारी बच्चों के लिए बहुत घातक होती है. यह कई समस्याओं का कारण बन सकती है जैसे अंगों का क्षतिग्रस्त होना, तंत्रिकातंत्र पर बुरा असर, खून की कमी, हाई ब्लडप्रैशर, किडनी रोग आदि.

ई कोलाई:

छोटे बच्चों और बुजुर्गों में इस संक्रमण की संभावना अधिक होती है. अगर मांस अच्छी तरह पका न हो तो यह बिना पाश्चयुरीकृत उत्पादों के सेवन से इस की संभावना बढ़ जाती है. पानी जैसा मल, मल के साथ खून आना, पेट में दर्द और ऐंठन इस के मुख्य लक्षण हैं. मल के साथ खून आना ऐसा लक्षण है, जिस में व्यक्ति को तुरंत डाक्टर की सलाह लेनी चाहिए.

– डा. आरएसके सिन्हा, इंटरनल मैडिसिन स्पैशलिस्ट, जेपी हौस्पिटल, नोएडा

रिश्तों की हकीकत दिखाती वृद्धाश्रमों में बढ़ती बुजुर्गों की तादाद

उत्तर प्रदेश के संतकबीर नगर जिले की रहने वाली 65 वर्षीया उमलिया देवी का 7 कमरों का मकान है. लेकिन, वे बस्ती जिले में सरकार द्वारा संचालित एक वृद्धाश्रम में जीवन गुजारने को मजबूर हैं.

वृद्धाश्रम में जीवन गुजार रहीं उमलिया देवी से वृद्धाश्रम में जीवन गुजारने का कारण पूछा, तो उन्होंने बताया कि उन के पति गन्ना महकमे में अधिकारी थे. अचानक उन की मौत हो गई तो उन्होंने ने परिवार संभाला और महकमे से मिले पैसों से उन्होंने बेटे व बहू के लिए 7 कमरों का मकान बनवा दिया. कुछ दिनों बाद बहू ने उन के पति की मौत के बाद महकमे से मिले पैसे अपने बैंकखाते में ट्रांसफर करवा लिए. और फिर बहू ने उन के साथ दुर्व्यवहार करना शुरू कर दिया.

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बहू न तो उमलिया देवी को खाना देती थी और न ही सही से बात करती थी. इसी बीच, उन के बेटे की मौत हो गई. बेटे की मौत के बाद उमालिया देवी की बहू और पोतों ने उन्हें घर से निकाल दिया.

बुढ़ापे में घर से निकाले जाने के बाद उमलिया ने कुछ दिन सड़कों पर गुजारे. कई रातें भूखे पेट काटी. फिर एक दिन किसी ने उन्हें वृद्धाश्रम में ला कर छोड़ दिया. तब से वे वहीं की हो कर रह गई हैं. बुढ़ापे में जब उमलिया को अपनों के प्यार और देखभाल की ज्यादा जरूरत थी तो उन्हीं लोगों ने उन्हें सड़क पर छोड़ दिया.

अपनों के दिए इस दर्द को बतातेबताते उमलिया की आंखों में आंसू आ जाते हैं.

वृद्धाश्रमों में जीवन गुजार रहे ज्यादातर लोगों की कहानी उमलिया जैसी ही है. वे अपने बेटे, बहू और बेटियों के दुत्कार के चलते अपना अंतिम समय वृद्धाश्रमों में काटने को मजबूर हैं.

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एकल परिवार बन रहे हैं वजह

जिन बुजुर्गों को बुढ़ापे में सहारे की ज्यादा जरूरत होती है उन्हीं बुजुर्गों को उन के अपने इसलिए वृद्धाश्रमों में छोड़ रहे हैं क्योंकी उन की उपस्थिति परिवार में खटकने लगी है. इस का एक कारण एकल परिवारों की बढ़ती संख्या है. इन परिवारों में बेटेबहू मांबाप के सवालों और देखभाल से दूर भाग रहे हैं. जबकि बेटेबहुओं को यह पता होता है जिस तरह का व्यवहार वे अपने मांबाप के साथ कर रहे हैं, एक दिन वे भी बुढ़ापे  का शिकार होंगे और उन्हें भी इसी तरह घर की बेकार चीज समझ कर दरकिनार कर दिया जाएगा.

जिस ने मजदूरी कर पाला उन से ही किनारा

मांबाप अपने बच्चों को दिनरात मेहनतमजदूरी कर अच्छी से अच्छी शिक्षा व देखभाल देने की कोशिश करते हैं. यही बच्चे पढ़लिख कर जब किसी लायक हो जाते हैं तो बूढ़े हो चले मांबाप उन पर भार लगने लगते हैं. बातबात में बहुओं की जलीकटी बातें सुननी पड़ती हैं. बारबार शर्मिंदा होने के बजाय ये लोग वृद्धाश्रमों में रहना ज्यादा पसंद करते हैं.

एक वृद्धाश्रम में जीवन काट रहे राधेश्याम तिवारी और राम सुमेर ने बताया कि उन्होंने अपनी जवानी में बच्चों को पालपोस कर काबिल बनाया और जब उन्हें बच्चों की ज्यादा जरूरत थी तो उन्हें घर से दूर वृद्धाश्रम में अपना जीवन काटना पड़ रहा है.

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संपत्ति की लालच भी एक वजह

बस्ती जिले के एक वृद्धाश्रम में रह रहीं हरिशांति देवी एक बड़े व्यवसायी परिवार से हैं. इन के पास लाखों रुपए की संपत्ति थी. उस के बावजूद वे वृद्धाश्रम में जीवन गुजारने को मजबूर हैं. इन के सगेसंबंधियों ने इन की संपत्ति पर कब्जा कर इन्हें घर से निकाल दिया. घर से निकाले जाने के बाद कुछ दिनों तक इन्होंने इधरउधर अपनी रातें किसी तरह से काटीं. आखिर इन्हें किसी ने वृद्धाश्रम में जाने की सलाह दी. तब से ये  इसी वृद्धाश्रम में जीवन के दिन गिन रही हैं. यही हाल तारामती देवी का भी है. तारामती बस्ती के सुर्तीहट्टा महल्ले की रहने वाली हैं. वे एक बड़े व्यवसायी कृष्ण दयाल की पत्नी हैं. पति की मौत के बाद उन की करोड़ों की संपत्ति पर उन के भाई व भतीजों ने कब्जा कर उन्हें घर से निकाल दिया. आज वे वृद्धाश्रम में अपने जीवन की अंतिम घड़ियां गिन रही हैं.

देश में बढ़ रही है वृद्धाश्रमों संख्या

देश में जिस तेजी से वृद्धाश्रमों की संख्या में इजाफा हुआ है वह बेहद चिंताजनक है. अगर अकेले उत्तर प्रदेश की बात करें, तो लगभग सभी 75 जिलों में सरकार द्वारा वृद्धाश्रम संचालित किए जा रहे हैं. जबकि कई निजी वृद्धाश्रम भी हैं. कभी बड़े शहरों में संचालित होने वाले वृद्धाश्रमों ने छोटे शहरों में भी पांव पसार लिया है. इस से एक बात साफ है कि इन वृद्धाश्रमों की उपयोगिता बढ़ रही है. परिवार में बुजुर्गों के सम्मान के गिरते ग्राफ का ही परिणाम है कि वृद्धाश्रमों में क्षमता से अधिक लोग निवास कर रहे हैं. इन की बढ़ती संख्या, इन की बढ़ती उपयोगिता यह बताने के लिए काफी है कि घर में बुजुर्ग मांबाप की क्या हैसियत रह गई है.

बुजुर्गों की बच्चों से दूरी बन रही घातक

हम अपने दादादादी और नानानानी के किस्से सुनते रहे हैं. लेकिन देश में बढ़ रही वृद्धाश्रम संस्कृति ने इस पर ग्रहण लगाना शुरू कर दिया है. लोग अपने घरों के बुजुर्गों के पास अपने बच्चों को जाने से रोकते हैं. जबकि, वास्तविकता यह है कि इन बड़ेबुजुर्गों के लिए इन के पोतीपोते जीवन का आधार होते हैं. इन के सान्निध्य में आ कर बड़ेबुजुर्ग अपने सारे दुखदर्द भूल जाते हैं. वहीं, छोटे बच्चों के लिए बुजुर्गों का सान्निध्य बहुत जरूरी है. इन के पास रह कर बच्चे न केवल संस्कार सीखते हैं बल्कि इन में मानवीय संवेदनाओं के विकास के साथ ही बुजुर्गों के प्रति सम्मान भी बढ़ता है. ऐसे में ये बच्चे बड़े हो कर अपने मांबाप के बुढ़ापे का सहारा भी बनते हैं. इसलिए हमें अपने बच्चों को दादादादी के प्यार से महरूम होने से रोकना होगा. और यह तभी संभव है जब हम उन्हें घर में उचित सम्मान देंगे.

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बुजुर्गों की देखभाल पर बनीं नीतियां फेल

अपनों द्वारा बुजुर्गों की की जा रही उपेक्षा को देखते हुए सरकार द्वारा नीतियां और कानून बनाए गए हैं. लेकिन ये प्रभावी होते नहीं दिख रहे. क्योंकि जब इन बजुर्गों के साथ ऐसी परिस्थितियां पैदा होती हैं तब ये बुजुर्ग कोर्टकचहरियों के चक्कर लगाने की स्थिति में नहीं होते हैं. ऐसे में सरकार को नीतियों में संशोधन कर उन्हें प्रभावी बनाने की आवश्यकता है.

बदली सोच बुजुर्गों पर पड़ रही भारी

बस्ती और संतकबीर नगर जिलों में वृद्धाश्रम संचालन से जुड़े शुभम प्रसाद शुक्ल बताते हैं कि जो लोग बहूबेटों की उपेक्षा के चलते वृद्धाश्रमों में जीवन गुजार रहे हैं उन्हीं मांबाप ने बचपन में बड़े नाज से इन बच्चों को पाला और अपनी उंगली का सहारा दे कर चलना सिखाया, कंधे पर बिठा कर दुनिया दिखाई, जब भी बच्चे बीमार हुए, सिरहाने बैठ कर पूरी रात बिता दी.  लेकिन वक्त बदलने के साथ जब यही बच्चे जवान होते हैं और मांबाप बूढ़े, तो ये बच्चे उन्हे सहारा देने के बजाय उन्हें बेगाना समझ कर घर से दूर वृद्धाश्रमों में सिसकने के लिए छोड़ जाते हैं.

वृद्धाश्रमों में जीवन काट रहे लोगों के सवाल पर शुभम प्रसाद शुक्ल का कहना है कि जो बुजुर्ग यहां रहने को आते हैं उन में से ज्यादातर बेटेबहू के तिरस्कार के शिकार होते हैं. इन बुजुर्गों को परिवार में बेकार की वस्तु समझ कर एक कोने में घुटघुट कर मरने के लिए छोड़ दिया जाता है. न तो परिवार के इन बुजुर्गों को समय से खाना दिया जाता है और न ही बीमारियों आदि की दशा में दवाएं दी जाती हैं.

ऐसे में अकसर लोग वृद्धाश्रमों में शरण ले रहे हैं. वृद्धाश्रमों में न केवल बुजुर्गों की सही से देखभाल की जाती है बल्कि उन्हें समय से चाय, नाश्ता और भोजन भी दिया जाता है. वृद्धाश्रमों में जीवन गुजार रहे लोगों के स्वास्थ्य की देखभाल के लिए नियमित डाक्टर भी नियुक्त किए जाते हैं, जिस से बीमार पड़ने की दशा में बुजुर्गों को समय पर इलाज मिल जाता है.

वृद्धाश्रमों में जीवन काट रहे जितने भी वृद्धों से बात की गई, तकरीबन सभी का कहना है कि उन्हें घर में कबाड़ से भी बदतर समझा जाता है. जब तक शरीर में दम होता है तब तक परिवार में इज्जत मिलती है. जैसे ही शरीर काम करना बंद कर देता है उन्हें  घर की खूबसूरती में दाग समझा जाने लगता है.

भारी बजट के बावजूद अव्यवस्था से जूझ रहे वृद्धाश्रम

वृद्धों के कल्याण के मुद्दे पर काम करने वाली गैरसरकारी संस्था हेल्पएज इंडिया के अनुसार, देश में करीब 1500 वृद्धाश्रम हैं, जिन में करीब 70 हजार से भी अधिक  वृद्ध रहते हैं. इन में से ज्यादातर वृद्धाश्रम साल 2007 में लागू वृद्धजन भरणपोषण एक्ट के तहत केंद्र व राज्य सरकारों के साझे उपक्रम के तहत  भारीभरकम  आर्थिक सहयोग से एनजीओ से संचालित कराए जा रहे हैं. इस के तहत एक वृद्धाश्रम में 150 वृद्धों के रखने की क्षमता पर लगभग 75 लाख से 1 करोड़ रुपए का बजट सरकार द्वारा दिया जाता है. वहां वृद्धों को निशुल्क रहने की व्यवस्था के साथसाथ हर रोज अलगअलग मीनू के हिसाब से खाना, साफ़सुथरे बिस्तर, हर 4 लोगों पर एक शौचालय, कूलर, पंखे, बिजली जनरेटर व इनवर्टर के साथ ही सभी के लिए खाने के बरतन का सैट व बक्से, टीवी, फ्रिज, आरओ, वाशिंग मशीन, कंप्यूटर, टेलीफोन सहित मनोरंजन के सभी साजोसामान होना जरूरी है.

इस के अलावा, वृद्धों के स्वास्थ्य की देखभाल के लिए एमबीबीएस डाक्टर व मनोविज्ञानी को रखने का प्रावधान किया गया है. लेकिन सरकार द्वारा संचालित ज्यादातर वृद्धाश्रमों की हालत बदतर है. सरकार द्वारा लाखों रुपए एनजीओ को दिए जाते हैं. लेकिन इन वृद्धाश्रमों में न ही मीनू के हिसाब से खाना दिया जाता है और न ही साफ़सफाई की पर्याप्त व्यवस्था की जाती है.

वृद्धाश्रमों में जीवन काट रहे बुजुर्गों को गरमी में टूटेफूटे पंखों के बीच रखा जा रहा है. इन के बिस्तर पर बिछाई जाने वाली चादर हफ्तों तक न ही बदली जाती है और न ही साफ़ की जाती है. वृद्धाश्रमों में रह रहे तमाम ऐसे लोगों, जो अपने जीवन की अंतिम घड़ियां गिन रहे हैं, को भी अपने जूठे बरतन खुद ही धुलने को मजबूर किया जाता है.

इन वृद्धाश्रमों में रहे लोगों में से जब कोई बीमार पड़ता है तो उस का  स्थानीय लैवल पर किसी झोलाछाप डाक्टर से इलाज करा दिया जाता है. जिस से एमबीबीएस डाक्टर के ऊपर आने वाले मासिक खर्चे को एनजीओ संचालक पूरी तरह से डकार जाते हैं. वृद्धाश्रमों में लोग इसलिए आते हैं कि वहां अपने बेटेबहू के तानों से उन्हें नजात मिलेगी, लेकिन यहां भी उन्हें नारकीय जीवन जीने को मजबूर होना पड़ता है.

जब कभी सरकारी महकमे से जुड़ा कोई अधिकारी यहां जांच के लिए आता है तो उस दिन मानक पूरा करने के लिए ज्यादातर चीजें किराए पर मंगा ली जाती हैं. अगर अधिकारी वृद्धाश्रमों में कमियां पकड़ता भी है तो रिश्वत दे कर उस का मुंह बंद कर दिया जाता है.

दान और चंदे से चलता है वृद्धाश्रम, सरकारी धन तो संचालक खाते हैं

वृद्धाश्रम संचालन से जुड़े एक कर्मचारी ने अपना नाम न छापने की शर्त पर बताया कि वृद्धाश्रमों के संचालन के लिए सरकार द्वारा मिलने वाले धन को एनजीओ संचालक खा जाते हैं. क्योंकि इन वृद्धाश्रमों में आएदिन कोई न कोई अपना जन्म दिन मनाने या दान करने आ ही जाता है. इस तरह वृद्धाश्रमों को इन से नकद रुपए के साथ ही साजोसामान, खानेपीने की वस्तुएं आदि फ्री में मिल जाती हैं.

ऐसे दान का वृद्धाश्रमों द्वारा कोई रिकौर्ड नहीं रखा जाता है. इस के अलावा वृद्धों के घर वालों की तरफ से भी नकद धन दान में मिलता रहता है.

वृद्धाश्रमों को इतना दान मिलता है कि उस से भी अच्छीखासी रकम की बचत हो जाती है. ऐसे में संचालन के लिए मिलने वाले धन से सिर्फ कर्मचारियों को सैलरी ही दी जाती है, बाकी धन संचालक खुद  खा जाते हैं.

पेशे से चिकित्सक और सामाजिक कार्यकर्ता डा. नवीन सिंह का कहना है, “बुजुर्गों को बेटेबहुओं द्वारा सताया जा रहा है. ऐसे में हिंसा और तिरस्कार सहने के बजाय ये बुजुर्ग वृद्धाश्रमों में रहना  बेहतर समझते हैं. वहां इन वृद्धों की तरह सताए अपने जैसे ही तमाम लोग मिल जाते हैं. वहां ये लोग अपने दुखदर्द आपस में साझा करते हैं और हंसतेगाते हैं. ऐसे में इन का दर्द काफी हद तक कम हो जाता है.” डा. नवीन आगे कहते हैं कि लोगों को आधुनिकता की अंधी दौड़ से बाहर निकलना होगा और जिन बुजुर्गों ने हमें काबिल बनाया है, उन का सम्मान करना सीखना होगा. बुढ़ापे के दौरान उन के साथ बैठ कर प्यारभरी बातें करनी होंगो. उन को समय से खानादवा आदि देने का ध्यान रखना होगा. हम कोशिश करें कि बुजुर्गों को कभी भी अकेलेपन का एहसास न होने दें, तभी हम वृद्धाश्रमों की बढ़ती तादाद पर रोक लगा पाएंगे.

वेबसीरीजः‘‘आपके कमरे में कोई रहता है‘‘ को मिला एक स्टार

समीक्षाः

वेबसीरीजः ‘‘आपके कमरे में कोई रहता हैः हॉरर होते हुए भी डराती नही है..’’

रेटिंग: एक स्टार

निर्माताः थिंकिंग हैट्स इंटरटेन मेंटसोल्युषन

लेखक व निर्देषकःगौरव सिन्हा

कलाकारःस्वराभास्कर,सुमितव्यास,अषीषवर्मा,अमोलपाराषर, निमिषामेहता,नवीनकस्तूरिया, इष्ताक खान व अन्य

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अवधिःपांच एपीसोड, कुलअवधि एक घंटा 38 मिनट

ओटीटीप्लेटफार्मः एमएक्सप्लेअर्स

‘एमएक्सप्लेअर’’पर पांच एपीसोड की एक हॉरर वेब सीरीज ‘‘आपके कमरे में कोई रहता है’’में प्रतिभाषाली कलाकारों की लंबी चैड़ी फौज है,मगर दर्शकों को निराशा ही हाथ लगती है.

कहानीः यह कहानी है चार कुंवारे दोस्तों निखिल (सुमीत व्यास), सुब्बू (नवीन कस्तूरिया), कवि (अमोल पाराशर) और सनकी (आशीष वर्मा) की,जो कि भारत के अलग-अलग शहरों से आकर मुंबई की एक कंपनी में एक साथ काम रहे हैं.यह सभी किराए के मकान के लिए जद्दो जहद कर रहे हैं. इन्हें मुंबई शहर में एक निर्माणाधीन इमारत में पूरी तरह से साजोसमान से सुसज्जित चार बेडरूम का फ्लैट मामूली किराए पर मिल जाता है.पर इन्हें यह नहीं पता था कि वे इस में पहले से ही रह रहे भूत के साथ अद्भुत नए फ्लैट को साझा करेंगें. इन सभी का जीवन उस वक्त्त जटिल हो जाता है,जब सुंदर मौसम (स्वरा भास्कर)दीवाली पार्टी के लिए आती है, जिसके बाद भयावहता की शुरुआत होती है.इस दीवाली पार्टी की रात इनके एक साथी कवि की मौत हो जाती हे ओर कवि की प्रेतात्मा का वास मोसम के अंदर हो जाता है.फिर कई घटनाक्रम तेजी से बदलते हैं.

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लेखन व निर्देशनः इस हॉरर वेब सीरीज की सबसे बड़ी कमजोर कड़ी कहानी व पटकथा है.हॉरर व हास्य के दृष्य पैदा करने के लिए उलजलूल तरह के दृष्यों की भरमार है.पर यह वेब सीरीज डराती तो बिल्कुल नही है,कुछ दृष्य जरुर हंसा देते हैं.कहानी को बेवज हरबरकी तरह खींचा गया है.निर्देशक के तौर पर गौरव सिन्हा अपनी प्रतिभा को साबित नही कर पाते हैं.

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अभिनयः निर्देषक ने इसमें प्रतिभावान कलाकारों की भीड़ जरुर इकट्ठा कर दी है,मगर कहानी ,पटकथा व चरित्र चित्रण सही न होने के चलते सभी कलकारों का अभिनय प्रभावहीन है.ऐसा लगता है जैसे कि यह कलाकार अभिनय नहीं, सिर्फ किसी तरह से समय बिता रहे हैं.इस वेबसीरीज में स्वराभास्कर क्यासोचकर अभिनय किया,यह बात समझ से परे है.

द कपिल शर्मा शो: कीकू और कृष्णा के बीच नहीं है लड़ाई, जानें क्या है सच्चाई

कॉमेडियन कृष्णा अभिषेक और उनके मामा गोविंदा के बिगड़ते रिश्ते के बारे में लगभग हर कोई जानता है. ऐसे में कपिल शर्मा के एक एपिसोड़ में कीकू शारदा ने गोविंदा को लेकर कुछ माजाक कर दिया कृष्णा अभिषेक से जिसके बाद दोनों की लड़ाई की खबरे बाहर आने लगी. जबकी ऐसा बिल्कुल भी नहीं था.

कई जगहों पर कीकू और कृष्णा अभिषेक की लड़ाई की खबर छप गई, जिसके बाद एक रिपोर्ट से बातचीत करते हुए कीकू शारदा ने कहा कि हमारे बीच कोई लड़ाई नहीं हुई है. हम बच्चे थोड़े हैं जो छोटी-छोटी बातों पर लड़ाई करेंगे.

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हमने जो भी कृष्णा को कह वो स्क्रिपटेड था, हमने जानबुझकर कुछ नहीं कहा था किसी को, हमारी दोस्ती आज भी वैसे ही हैं जैसे पहले हम दोनों एक-दूसरे के साथ थे, आगे मुझे नहीं लगता है कि हमें किसी को कोई सफाई देने की जरुरत है.

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बाकी मेरी लोगों से रिक्वेस्ट है कि प्लीज ऐसी गलत खबर को ना फैलाएं. बता दें कि कीकू और कृष्णा अच्छा बॉन्ड शेयर करते हैं. बाकी लोगों का काम है अफवाह बनाना जिसपर ज्यादा ध्यान नहीं देना चाहिए.

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वैसे कपिल शर्मा शो में कीकू और कृष्णा की जोड़ी को लोग खूब प्यार देते हैं. इन्हें लोग देखने के लिए बेताब रहते हैं. वहीं कपिल शर्मा शो की बात करे तो देश ही नहीं विदेशों में भी इस शो के बहुत लोग दीवाने हैं. आए दिन शो पर फिल्मी सितारे अपने शो के प्रमोशन के लिए आते रहते हैं.

बिग बॉस 14 : जैस्मिन भसीन की दोबारा होगी घर में वापसी, फैंस को है इंतजार

बिग बॉस 14 के घर में कंटेस्टेंट के आने और जानें का सिलसिला इस बार खत्म होने का नाम ही नहीं ले रहा है. इस बार घर के अंदर एक बार फिर जैस्मिन भसीन की एंट्री होने वाली है. कई ऐसे कंटेस्टेंट है जो घर से बार बाहर जाने के बाद दूबारा घर के अंदर आए हैं. उसमें एक नाम अब जैस्मिन भसीन का भी आ रहा है.

लेकिन अगर आप ये सोच रहे है कि जैस्मिन घर में रहने के लिए आ रही है तो आप बिल्कुल गलत है, जैस्मिन अपने दोस्त एली गोनी से मिलने आ रही हैं. वीकेंड पर वह घर के अंदर भी आएंगी कुछ देर के लिए फिर वापस चली जाएंगी.

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घर के अंदर आने से पहले जैस्मिन एक सप्ताह तक कोरेंटाइन रखेगी खुद को उसके बाद घर के अंदर एंट्री होगी. दर्शकों को जैस्मिन भसीन और एली गोनी की जोड़ी शानदार लगी थी जिसके बाद लोगों ने शो के मेकर्स से रिक्वेस्ट किया था दोनों को एक साथ देखने के लिए.

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जैस्मिन और एली गोनी एक-दूसरे के भरोसेमंद सपोर्ट सिस्टम है. हरवक्त दों एक-दूसरे का साथ देते जर आते हैं. शायद यही वजह है जिससे दोंनों को दर्शक ज्यादा पसंद करते हैं. एली गोनी को लोगों से बहुत ज्यादा प्यार भी मिल रहा है. तो वहीं एक खबर ये भी आ रही थी कि एली गोनी और जैस्मिन घर से बाहर आने के बाद शादी करेंगे तो वहीं कुछ लोगों  का कहना है कि जैस्मिन के पापा एली को पसंद हीं करते हैं.

वहीं जैस्मिन भसीन के रिएंट्री से रुबीना दिलाइक को बड़ा झटका लगा है.

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शायद इस वजह से इनके रिश्ते में दरार आ सकता है. वहीं जब जैस्मिन के मम्मी पापा बिग बॉस के घर में आएं थे तब भी उन्होंने इशारे में कह दिया था कि खुद पर ध्यान दो दूसरो पर नहीं इससे उनका साफ मतलब था एली गोनी की तरफ.

नई जिंदगी-भाग 1: रघुवीर भैया अपनी पत्नी पर क्यों चीखते थे

‘‘कहां मर गई हो, कितनी देर से आवाज लगा रहा हूं. जिंदा भी हो या मर गईं?’’ रघुवीर भैया एक ही गति से निरंतर चिल्ला रहे थे.

‘‘क्या चाहिए आप को?’’ गीले हाथ पोंछते हुए इंदु कमरे में आ कर बोली.

‘‘मेरी जुराबें कहां हैं? सोचा था, पढ़ीलिखी बीवी घर भी संभालेगी और मेरी सेवा भी करेगी, लेकिन यहां तो महारानीजी के नखरे ही पूरे नहीं होते. सुबह से साजशृंगार यों शुरू होता है जैसे किसी कोठे पर बैठने जा रही हो,’’ कितनी देर तक भुनभुनाते रहे.

थोड़ी देर बाद फिर चीखे, ‘‘नाश्ता तैयार है कि होटल से मंगवाऊं?’’

इंदु गरमगरम परांठे ले आई. तभी ऐसा लगा, जैसे कोई चीज उन्होंने दीवार पर दे मारी हो. शायद कांच की प्लेट थी.

‘‘पूरी नमक की थैली उड़ेल दी है परांठे में. आदमी भूखा चला  जाए तो ठूंसठूंस कर खाएगी खुद.’’

‘‘अच्छा, सादा परांठा ले आती हूं,’’ इंदु की आवाज में कंपन था.

‘‘नहीं चाहिए, कुछ नहीं चाहिए. अब शाम को मैं इस घर में आऊंगा ही नहीं.’’

‘‘कैसी बातें कर रहे हैं आप? यों भूखे घर से जाएंगे तो मेरे गले से तो एक निवाला भी नहीं उतरेगा.’’

‘‘मरो जा कर,’’ उन्होंने तमाचा इंदु के गाल पर रसीद कर दिया और पिछवाड़े का दरवाजा खोल कर गाड़ी यों स्टार्ट की जैसे किसी जंग पर जाना हो. ऐसे मौके पर अकसर वे गाड़ी तेज गति से ही चलाते थे.

अम्माजी सहित पूरा परिवार सिमट आया था आंगन में. नन्हा सौरभ मेरे पल्लू से मुंह छिपाए खड़ा था. अकसर रघुवीर भैया की चीखें सुन कर परिवार के सदस्य तो क्या, आसपड़ोस के लोग भी जमा हो जाते. पर क्या मजाल जो कोई एक शब्द भी कह जाए.

एक बार फिर आशान्वित नजरों से मैं ने दिवाकर की ओर देखा था. शायद कुछ कहें. पर नहीं, अपमान का घूंट पीना उन्हें भली प्रकार आता था. उधर, अम्माजी को देख कर यों लगता जैसे तिरस्कृत होने के लिए यह बेटा पैदा किया था.

चिढ़ कर मैं ने ही मौन तोड़ा, ‘‘एक दिन आप का भाई उस भोलीभाली लड़की को जान से मार डालेगा लेकिन आप लोग कुछ मत कहिएगा? न जाने इतना अन्याय क्यों सहा जाता है इस घर में?’’

क्रोध से मेरी आवाज कांप रही थी. उधर, इंदु सिसक रही थी. मैं सोचने लगी, अब शाम तक यों ही वह भूखीप्यासी अपने कमरे में लेटी रहेगी. और रघुवीर भैया शाम को लौटेंगे जैसे कुछ हुआ ही न हो.

एक बार मन में आया, उस के कमरे में जा कर प्यार से उस का माथा चूम लूं, सहानुभूति के चंद बोल आहत मन को शांत करते हैं. पर इंदु जैसी स्वाभिमानी स्त्री को यह सब नहीं भाता था. होंठ सी कर मंदमंद मुसकराते रहना उस का स्वभाव ही बन गया था. क्या मजाल जो रघु भैया के विरोध में कोई कुछ कह जाए.

ब्याह कर के जब घर में आई थी तो बड़ा ही अजीब सा माहौल देखा था मैं ने. रघुवीर भैया और दिवाकर दोनों जुड़वां भाई थे, पर कुछ पलों के अंतराल ने दिवाकर को बड़े भाई का दरजा दिलवा दिया था. शांत, सौम्य और गंभीर स्वभाव के कारण ही दिवाकर काफी आकर्षक दिखाई देते थे.

उधर, रघुवीर उग्र स्वभाव के थे. कोई कार्य तो क्या, शायद पत्ता भी उन की इच्छा के विरुद्ध हिल जाता तो यों आंखें फाड़ कर चीखते मानो पूरी दुनिया के स्वामी हों. अम्माजी और दिवाकर उन्हें नन्हे बालक के समान पुचकारते, सफाई देते, लेकिन वे तो जैसे ठान ही चुके होते थे कि सामने वाले का अनादर करना है.

अम्माजी तब अपने कमरे में सिमट जाया करती थीं और बदहवास से दिवाकर घर छोड़ कर बाहर चले जाते. मैं अपने कमरे में कितनी देर तक थरथर कांपती रहती थी. उस समय क्रोध अपने पति और अम्माजी पर ही आता था, जिन्होंने उन पर अंकुश नहीं रखा था. तभी तो बेलगाम घोडे़ की तरह सरपट भागते जाते थे.

नई जिंदगी-भाग 3 : रघुवीर भैया अपनी पत्नी पर क्यों चीखते थे

‘मैं आप की तरह नहीं जो बीवी को सिर पर चढ़ा कर रखूं. मेरे मुंह से निकला शब्द पत्थर की लकीर होता है.’

दिवाकर में न जाने कितना धीरज था जो अपने भाई का हर कटु शब्द शिरोधार्य कर लेते थे. मुझे तो रघु भैया किसी मानसिक रोगी से कम नहीं लगते थे.

जैसेतैसे तैयार हो कर नई बहू जनवासे में पहुंच गई. लेकिन ऐसा लग रहा था मानो उस ने उदासी की चादर ओढ़ी हुई हो. बाबुल का अंगना छोड़ कर ससुराल में आते ही पिया ने कैसा स्वागत किया था उस का.

हंसीखुशी के माहौल में सब काम सही तरीके से निबट गए. दूसरे दिन वे दोनों कश्मीर के लिए चल दिए थे. वहां जा कर इंदु ने हमें पत्र लिखा. ऐसा लगा, जैसे अपने मृदु व कोमल स्वभाव से हमसब को अपना बनाना चाह रही हो. शुष्क व कठोर स्वभाव के रघु भैया तो उसे ये औपचारिकताएं सिखाने से रहे. उन्हें तो अपनों को पराया बनाना आता था.

उस दिन रविवार था. हमसब शाम को टीवी पर फिल्म देख रहे थे. दरवाजे की घंटी बजाने का अंदाज रघु भैया का ही था. द्वार पर सचमुच इंदु और रघु भैया ही थे.

इंदु हमारे बीच आ कर बैठ गई. हंसती रही, बताती रही. रघु भैया अपने परिजनों, स्वजनों से सदैव दूर ही छिटके रहते थे.

मैं बारबार इंदु की उदास, सूनी आंखों में कुछ ढूंढ़ने का प्रयास कर रही थी. बात करतेकरते अकसर वह चुप हो जाया करती थी. कभी हंसती, कभी सहम जाती. न जाने किस परेशानी में थी. मुझे कुछ भी कुरेदना अच्छा नहीं लगा था.

दूसरे दिन से इंदु ने घर के कामकाज का उत्तरदायित्व अपने ऊपर ले लिया था. मेरे हर काम में हाथ बंटाती. अम्माजी की सेवा में आनंद मिलता था उसे. रघु भैया के मुख से बात निकलती भी न थी कि इंदु फौरन हर काम कर देती.

एक बात विचारणीय थी कि पति के रौद्र रूप से घबरा कर वह उस के पास पलभर भी नहीं बैठती थी. हमारे साथ बैठ कर वह हंसती, बोलती, खुश रहती थी लेकिन पति के सान्निध्य से जैसे उसे वितृष्णा सी होती थी.

कई बार जब पति का तटस्थ व्यवहार देखती तो उन्हें खींच कर सब के बीच लाना चाहती, लेकिन वे नए परिवेश में खुद को ढालने में असमर्थ ही रहते थे.

सुसंस्कृत व प्रतिष्ठित परिवार में पलीबढ़ी औरत इस धुरीविहीन, संस्कारविहीन पुरुष के साथ कैसे रह सकती है, मैं कई बार सोचती थी. इस कापुरुष से उसे घृणा नहीं होती होगी? वैसे उन्हें कापुरुष कहना भी गलत था. कोई सुखद अनुभूति हुई तो जीजान से कुरबान हो गए, मगर दूसरी ओर से थोड़ी लापरवाही हुई या जरा सी भावनात्मक ठेस पहुंची तो मुंह मोड़ लिया.

एक बार दिवाकर दौरे पर गए हुए थे. मैं अपने कमरे में कपड़े संभाल रही थी कि देवरजी की बड़बड़ाहट शुरू हो गई. कुछ ही देर में चिंगारी ने विस्फोट का रूप ले लिया था. उन के रजिस्टर पर मेरा बेटा आड़ीतिरछी रेखाएं खींच आया था. हर समय चाची के कमरे में बैठा रहता था. इंदु को भी तो उस के बिना चैन नहीं था.

‘बेवकूफ ने मेरा रजिस्टर बरबाद कर दिया. गधा कहीं का…अपने कमरे में मरता भी तो नहीं,’ रघु भैया चीखे थे.

इंदु ने एक शब्द भी नहीं कहा था. क्रोध में व्यक्ति शायद विरोध की प्रतीक्षा करता है, तभी तो वार्त्तालाप खिंचता है. आगबबूला हो कर रघु पलंग पर पसर गए.

अचानक पलंग से उठे तो उन्हें चप्पलें नहीं मिलीं. पोंछा लगाते समय रमिया ने शायद पलंग के नीचे खिसका दी थीं. रमिया तो मिली नहीं, सो उन्होंने पीट डाला मेरे बेटे को.

इंदु ने उस के चारों तरफ कवच सा बना डाला, पर वे तो इंदु को ही पीटने पर तुले थे. मैं भाग कर अपने बेटे को ले आई थी. पीठ सहलाती जा रही और सोचती भी  जा रही थी कि क्या सौरभ का अपराध अक्षम्य था. किसी को भी मैं ने कुछ नहीं कहा था. चुपचाप अपने कमरे में बैठी रही.

पति को शांत कर कुछ समय बाद इंदु मेरे कमरे में आ कर मुझ से क्षमायाचना करने लगी. मैं बुरी तरह उत्तेजित हो चुकी थी. अपनेआप को पूर्णरूप से नियंत्रित करने का प्रयास किया लेकिन असफल ही रही, बोली, ‘देखूंगी, जब अपने बेटे से ऐसा ही व्यवहार करेंगे.’

इंदु दया का पात्र बन कर रह गई. बेचारी और क्या करती. हमेशा की तरह उसे बैठने तक को नहीं कहा था मैं ने.

शाम को अपनी गलती पर परदा डालने के लिए रघु भैया खिलौना बंदूक ले आए थे. सौरभ तो सामान्य हो गया. अपमान की भाषा वह कहां पहचानता था, लेकिन मेरा आहत स्वाभिमान मुझे प्रेरित कर रहा था कि यह बंदूक उस क्रोधी के सामने फेंक दूं और सौरभ को उस की गोद से छीन कर अपने अहं की तुष्टि कर लूं.

लेकिन मर्यादा के अंश सहेजना दिवाकर ने खूब सिखाया था. उस समय अपमान का घूंट पी कर रह गई थी. दूसरे की भावनाओं की कद्र किए बिना अपनी बात पर अड़े रह कर मनुष्य अपने अहंकार की तुष्टि भले ही कर ले लेकिन मधुर संबंध, जो आपसी प्रेम और सद्भाव पर टिके रहते हैं, खुदबखुद समाप्त होते चले जाते हैं.

उस के बाद तो जैसे रोज का नियम बन गया था. इंदु जितना अपमान व आरोप सहती उतनी ही यातनाओं की पुनरावृत्ति अधिक तीव्र होती जाती थी. भावनाओं से छलकती आंखों में एक शून्य को टंगते कितनी बार देखा था मैं ने. प्रतिकार की भाषा वह जानती नहीं थी. पति का विरोध करने के लिए उस के संस्कार उसे अनुमति नहीं देते थे.

उधर, रघु भैया को कई बार रोते हुए देखा मैं ने. इधर इंदु अंतर्मुखी बन बैठी थी. कितनी बार उस की उदास आंखें देख कर लगता जैसे पारिवारिक संबंधों व सामाजिक दायित्वों का निर्वाह करने में असमर्थ हो. 1 वर्ष के विवाहित जीवन में वह सूख कर कांटा हो गई थी. अब तो मां बनने वाली थी. मुझे लगता, उस की संतान अपनी मां को यों तिरस्कृत होते देखेगी तो या स्वयं उस का अपमान करेगी या गुमसुम सी बैठी रहेगी.

एक दिन इंदु की भाभी का पत्र आया. ब्याह के बाद शायद पहली बार वे पति के संग ननद से मिलने आ रही थीं. इंदु पत्र मेरे पास ले आई और बोली, ‘‘भाभी, मेरे भाभी और भैया मुझ से मिलने आ रहे हैं.’’

इंदु का स्वर सुन कर मैं वर्तमान में लौट आई, बोली, ‘‘यह तो बड़ी खुशी की बात है.’’

‘‘आप तो जानती हैं, इन का स्वभाव. बातबात में मुझे अपमानित करते हैं. भाभीभैया को मैं ने कुछ नहीं बताया है आज तक. उन के सामने भी कुछ…’’ उस का गला रुंध गया.

‘‘दोषी कौन है, इंदु? अत्याचार करना अगर जुर्म है तो उसे सहना उस से भी बड़ा अपराध है,’’ मैं ने उसे समझाया. मैं मात्र संवेदना नहीं जताना चाह रही थी, उस का सुप्त विवेक जगाना भी चाह रही थी.

मैं ने आगे कहा, ‘‘पति को सर्वशक्तिमान मान कर, उस के पैरों की जूती बन कर जीवन नहीं काटा जा सकता. पतिपत्नी का व्यवहार मित्रवत हो तभी वे सुखदुख के साथी बन सकते हैं.’’

इंदु अवाक् सी मेरी ओर देखती रही. उस का अर्धसुप्त विवेक जैसे विकल्प ढूंढ़ रहा था. दूसरे दिन सुबह ही उस के भैयाभाभी आए थे. उन का सौम्य, संतुलित व संयमित व्यवहार बरबस ही आकर्षित कर रहा था हमसब को. उपहारों से लदेफदे कभी इंदु को दुलारते, कभी रघु को पुचकारते. कितनी देर तक इंदु को पास बैठा कर उस का हाल पूछते रहे थे.

गांभीर्य की प्रतिमूर्ति इंदु ने उन्हें अपने शब्दों से ही नहीं, हावभाव से भी आश्वस्त किया था कि वह बहुत खुश है. 2 दिन हमारे साथ रह कर अम्माजी व रघुवीर भैया से अनुमति ले कर वे इंदु को अपने साथ ले गए थे.

प्रथम प्रसव था, इसलिए वे इंदु को अपने पास ही रखना चाहते थे. रघुवीर भैया का उन दिनों स्वभाव बदलाबदला सा था. चुप्पी का मानो कवच ओढ़ लिया था उन्होंने. इंदु के जाने के बाद भी वे चुप ही रहे थे.

प्रसव का समय नजदीक आता जा रहा था. हमसब इंदु के लिए चिंतित थे. यदाकदा उस के भाई का फोन आता रहता था. रघुवीर भैया व हम सब से यही कहते कि उस समय वहां हमारा रहना बहुत ही जरूरी है. डाक्टर ने उस की दशा चिंताजनक बताई थी. ऐसा लगता था, रघु इंदु से दो बोल बोलना चाहते थे. उन जैसे आत्मकेंद्रित व्यक्ति के मन में पत्नी के लिए थोड़ाबहुत स्नेह विरह के कारण जाग्रत हुआ था या अपने ही व्यवहार से क्षुब्ध हो कर वे पश्चात्ताप की अग्नि में जल रहे थे, इस बारे में मैं कुछ समझ नहीं पाई थी.

रघु के साथ मैं व सौरभ इंदु के मायके पहुंचे थे. मां तो इंदु की बचपन में ही चल बसी थीं, भैयाभाभी उस की यों सेवा कर रहे थे, जैसे कोई नाजुक फूल हो.

अवाक् से रघु भैया कभी पत्नी को देखते तो कभी साले व सलहज को. ऐसा स्नेह उन्होंने कभी देखा नहीं था. पिछले वर्ष जब इंदु को पेटदर्द हुआ था तो दवा लाना तो दूर, वे अपने दफ्तर जा कर बैठ गए थे. यहां कभी इंदु को फल काट कर खिलाते तो कभी दवा पिलाने की चेष्टा करते. इंदु स्वयं उन के अप्रत्याशित व्यवहार से अचंभित सी थी.

3 दिन तक प्रसव पीड़ा से छटपटाने के बाद इंदु ने बिटिया को जन्म दिया था. इंदु के भैयाभाभी उस गुडि़या को हर समय संभालते रहते. इधर मैं देख रही थी, रघु भैया के स्वभाव में कुछ परिवर्तन के बाद भी इंदु बुझीबुझी सी ही थी. कम बोलती और कभीकभी ही हंसती. कुछ ही दिनों के बाद इंदु को लिवा ले जाने की बात उठी. इस बीच, रघु एक बार घर भी हो आए थे. पर अचानक इंदु के निर्णय ने सब को चौंका दिया. वह बोली, ‘‘मैं कुछ समय भैयाभाभी के पास रह कर कुछ कोर्स करना चाहती हूं.’’

ऐसा लगा, जैसे दांपत्य के क्लेश और सामाजिक प्रताड़ना के त्रास से अर्धविक्षिप्त होती गई इंदु का मनोबल मानो सुदृढ़ सा हो उठा है. कहीं उस ने रघु भैया से अलग रहने का निर्णय तो नहीं ले लिया?

स्पष्ट ही लग रहा था कि कोर्स का तो मात्र बहाना है, वह हमसब से दूर रहना चाहती है. उधर, रघु भैया बहुत परेशान थे. ऊहापोह की मनोस्थिति में आशंकाओं के नाग फन उठाने लगे थे. इंदु के भैयाभाभी ने निश्चय किया कि पतिपत्नी का निजी मामला आपसी बातचीत से ही सुलझ जाए तो ठीक है.

इंदु कमरे में बेटी के साथ बैठी थी. रघु भैया के शब्दों की स्पष्ट आवाज सुनाई दे रही थी. इंदु से उन्होंने अपने व्यवहार के लिए क्षमायाचना की लेकिन वह फिर भी चुप ही बैठी रही. रघु भैया फिर बोले, ‘‘इंदु, प्यार का मोल मैं ने कभी जाना ही नहीं. यहां तुम्हारे परिवार में आ कर पहली बार जाना कि प्यार, सहानुभूति के मृदु बोल मनुष्य के तनमन को कितनी राहत पहुंचाते हैं.

‘‘उस समय कोई 3 वर्ष के रहे होंगे हम दोनों भाई, जब पिताजी का साया सिर से उठ गया था. उन की मृत्यु से मां विक्षिप्त सी हो उठी थीं. वे घर को पूरी तरह से संभाल नहीं पा रही थीं.  ऐसे समय में रिश्तेदार कितनी मदद करते हैं, यह तुम जान सकती हो.

‘‘मां का पूरा आक्रोश तब मुझ पर उतरता था. मुझे लगता वे मुझ से घृणा करती हैं.’’

‘‘ऐसा कैसे हो सकता है. कोई मां अपने बेटे से घृणा नहीं कर सकती,’’ इंदु का अस्फुट सा स्वर था.

‘‘बच्चे की स्कूल की फीस न दी जाए, बुखार आने पर दवा न दी जाए, ठंड लगने पर ऊनी वस्त्र न मिलें, तो इस भावना को क्या कहा जाएगा?

‘‘मां ऐसा व्यवहार मुझ से ही करती थीं. दिवाकर का छोटा सा दुख उन्हें आहत करता. उन की भूख से मां की अंतडि़यों में कुलबुलाहट पैदा होती. दिवाकर की छोटी सी छोटी परेशानी भी उन्हें दुख के सागर में उतार देती.’’

‘‘दिवाकर भैया क्या विरोध नहीं करते थे?’’

‘‘इंदु, जब इंसान को अपने पूरे मौलिक अधिकार खुदबखुद मिलते रहते हैं तो शायद दूसरी ओर उस का ध्यान कभी नहीं खिंचता. या हो सकता है, मुझे ही ऐसा महसूस होता हो.’’

‘‘शुरूशुरू में चिड़चिड़ाहट होती, क्षुब्ध हो उठता था मां के इस व्यवहार पर. लेकिन बाद में मैं ने चीख कर, चिल्ला कर अपना आक्रोश प्रकट करना शुरू कर दिया. बच्चे से यदि उस का बचपन छीन लिया जाए तो उस से किसी प्रकार की अपेक्षा करना निरर्थक सा लगता है न?

‘‘हर समय उत्तरदायित्वों का लबादा मुझे ही ओढ़ाया जाता. यह मकान, यह गाड़ी, घर का खर्चा सबकुछ मेरी ही कमाई से खरीदा गया. दिवाकर अपनी मीठी वाणी से हर पल जीतते रहे और मैं कर्कश वाणी से हर पल हारता रहा.

‘‘धीरेधीरे मुझे दूसरों को नीचा दिखाने में आनंद आने लगा. बीमार व्यक्ति को दुत्कारने में सुख की अनुभूति होती. कई बार तुम्हें प्यार करना चाहा भी तो मेरा अहं मेरे आगे आ जाता था. जिस भावना को कभी महसूस नहीं किया, उसे बांट कैसे सकता था. अपनी बच्ची को मैं खूब प्यार दूंगा, विश्वास दूंगा ताकि वह समाज में अच्छा जीवन बिता सके. उसे कलुषित वातावरण से हमेशा दूर रखूंगा. अब घर चलो, इंदु.’’

रघु फूटफूट कर रोने लगे थे. इंदु अब कुछ सहज हो उठी थी. रघु भैया दया के पात्र बन चुके थे. मैं समझ गई थी कि मनुष्य के अंदर का खोखलापन उस के भीतर असुरक्षा की भावना भर देता है. फिर इसी से आत्मविश्वास डगमगाने लगता है. इसीलिए शायद वे उत्तेजित हो उठते थे. इंदु घर लौट आई थी. वह, रघु भैया और उन की छोटी सी गुडि़या बेहद प्रसन्न थे. कई बार मैं सोचती, यदि रघु भैया ने अपने उद्गार लावे के रूप में बाहर न निकाले होते तो यह सुप्त ज्वालामुखी अंदर ही अंदर हमेशा धधकता रहता. फिर विस्फोट हो जाता, कौन जाने?

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