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दहशत- भाग 1 : कालोनी में हो रही चोरी के पीछे आखिर कौन था

जनवरी की सर्द रात के सन्नाटे को ‘बचाओबचाओ’ की चीखों ने और भी भयावह बना दिया था. लिहाफकंबल की गरमाहट छोड़ कर ठंडी हवा के थपेड़ों की परवा किए बगैर लोग खिड़कियां खोल कर पूछ रहे थे, ‘चौकीदार, क्या हुआ? यह चीख किस की थी?’ अभिजात्य वर्ग की ‘स्वप्न कुंज’ कालोनी में 5 मंजिला, 10 इमारतें बनी थीं, उन की वास्तुशिल्प कुछ ऐसी थी कि हरेक बिल्ंिडग में जरा सी जोर की आवाज होने से पूरी कालोनी गूंज जाती थी. हरेक बिल्ंिडग में 20 फ्लैट थे. प्रत्येक बिल्ंिडग में 24 घंटे शिफ्ट में एक चौकीदार रहता था और रात को पूरी कालोनी में गश्त लगाने वाले चौकीदार अलग से थे. रात को मेनगेट भी बंद कर दिया जाता था. इतनी सुरक्षा के बावजूद एक औरत की चीख ने लोगों को दहला दिया था.

‘‘चीख की आवाज सी-6 से आई थी साहब,’’ एक चौकीदार ने कहा, ‘‘तब मैं सी बिल्ंिडग के नीचे से गुजर रहा था.’’

‘‘वह तीसरे माले पर रहने वाली प्रीति मैडम की आवाज थी साहब, मैं उन की आवाज पहचानता हूं,’’ दूसरे चौकीदार ने कहा.

‘‘लेकिन सी-6 में तो अंधेरा है,’’ एक खिड़की से आवाज आई.

‘‘ओय ढक्कन, वह बत्ती जला कर ‘बचाओबचाओ’ चिल्लाएगी,’’ किसी की फब्ती पर सब ठहाके लगाने लगे.

‘‘सब यहीं चोंचें लड़ाते रहेंगे या कोई प्रीति की खोजखबर भी लेगा?’’ एक महिला ने कड़े स्वर में कहा.

‘‘प्रीति मैडम अकेली रहती हैं, आप साथ चलें तो ठीक रहेगा मैडम,’’ चौकीदार ने कहा.

‘‘सी-5 की नेहा वर्मा को ले जाओ.’’

‘‘अपने ‘स्वप्न कुंज’ में रहने वाले सभी अपने से हैं, सो सब लोग तुरंत सपत्नीक सी-6 में पहुंचिए,’’ सोसायटी के प्रैसिडैंट भूषणजी ने आदेशात्मक स्वर में कहा. सभी तो नहीं, लेकिन बहुत से दंपती पहुंच गए. शायद इसलिए कि प्रीति को ले कर सभी के दिल में जिज्ञासा थी. किसी फैशन पत्रिका के पन्नों से निकली मौडल सी दिखने वाली प्रीति 25-30 वर्ष की आयु में ही किसी बहुराष्ट्रीय कंपनी में उच्च पद पर थी. कंपनी से गाड़ी और 3 बैडरूम का फ्लैट मिला हुआ था. पहले तो हर सप्ताहांत उस के फ्लैट पर पार्टी हुआ करती थी मगर इस वर्ष तो नववर्ष के आसपास भी कोई दावत नहीं हुई थी. कालोनी में चंद लोगों से ही उस की दुआसलाम थी. सी-6 के पास पहुंच कर सभी स्तब्ध रह गए, फ्लैट के दरवाजे में से पतली सी खून की धार बह रही थी. लगातार घंटी बजाने पर भी कोई दरवाजा नहीं खोल रहा था.

‘‘साथ में दरवाजा भी खटखटाओ,’’ सुनते ही चौकीदार और एकदो और लोगों ने दरवाजे को जोर से धक्का दिया लेकिन दरवाजा अंदर से बंद नहीं था इसलिए आसानी से खुल गया. अंदर अंधेरा और सन्नाटा था.

‘‘अंदर जाने से पहले फोन की घंटी बजाओ.’’

‘‘नंबर है किसी के पास?’’

‘‘सोसायटी के औफिस में होगा, पुलिस को बुलाने से पहले…’’ तभी अंदर से अलसाए स्वर में आवाज आई, ‘‘कौन है?’’

‘‘चौकीदार चुन्नीलाल. बाहर आइए मैडम.’’ लाइट जलते ही फिर चीख की आवाज आई, ‘‘ओह नो.’’ नाइट गाउन पहने बौखलाई सी प्रीति खड़ी थी. बगैर मेकअप और अस्तव्यस्त बालों के बावजूद वह आकर्षक लग रही थी.

‘‘आप सब यहां?’’  प्रीति ने उनींदे स्वर में पूछा, ‘‘और इस कमरे का सामान किस ने उलटापलटा है?’’

‘‘यह खून किस का है, तुम ठीक तो हो न प्रीति?’’ नेहा वर्मा ने पूछा. खून देख कर प्रीति फिर चीख उठी, ‘‘ओह नो. यह कहां से आया?’’

‘‘लेकिन इस से पहले आप क्यों चीखी थीं मैडम?’’ चुन्नीलाल ने अधीरता से पूछा.

‘‘घंटी और बोलने की आवाज सुन कर ड्राइंगरूम में आ कर बत्ती जलाई तो यह गड़बड़ देख कर…’’

‘‘उस से पहले मैडम, आप की ‘बचाओबचाओ’ की आवाज पर तो हम यहां आए हैं,’’ चुन्नीलाल ने बात काटी.

‘‘मैं ‘बचाओबचाओ’ चिल्लाई थी?’’ प्रीति चौंक पड़ी, ‘‘आप बाहर क्यों खड़े हैं, अंदर आइए और बताइए कि बात क्या है?’’ सब अंदर आ गए और भूषणजी से सब सुन कर प्रीति बुरी तरह डर गई. ‘‘आज मैं बहुत देर से आई थी और इतना थक गई थी कि सीधे बैडरूम में जा कर सो गई और अब घंटी की आवाज पर उठी हूं.’’

‘‘फिर यहां यह ताजा खून कहां से आया और सोफे वगैरा किस ने उलटे?’’ चौकीदार चुन्नीलाल ने कहा, ‘‘लगता है चोर अभी भी कहीं दुबका हुआ है, चलिए, तलाश करते हैं.’’ सभी लोग तत्परता से परदों के पीछे और कमरों में ढूंढ़ने लगे. महिलाएं सुरुचिपूर्ण सजे घर को निहार रही थीं. प्रीति संयत होने की कोशिश करते हुए भी उत्तेजित और डरी हुई लग रही थी. कहीं कोई नहीं मिला. एक बैडरूम बाहर से बंद था. ‘‘हो सकता है जब हम लोग अंदर आए तो परदे के पीछे छिपा चोर भी भीड़ में शामिल हो कर बाहर भाग गया हो क्योंकि सभी अंदर आ गए थे. दरवाजे के बाहर और नीचे गेट पर तो कोई था ही नहीं,’’ एक चौकीदार ने कहा.

‘‘लेकिन भाग कर कहां जाएगा, मेनगेट तो बंद होगा न,’’ प्रीति बोली, ‘‘लेकिन अंदर कैसे आया? क्योंकि मेरा डिनर बाहर था सो नौकरानी को शाम को खाना बनाने आना नहीं था इसलिए वह चाबी ले कर नहीं गई. चाबी सामने दीवार पर टंगी है और मैं नौकरानी के जाने के बाद औफिस गई थी, इसलिए ताला मैं ने स्वयं लगाया था.’’ ‘‘तो फिर यह उलटपलट और खून? इस का क्या राज है?’’ प्रीति के फ्लैट के ऊपर रहने वाले डा. गौरव ने गहरी नजरों से प्रीति को देखा. प्रीति उन नजरों की ताब न सह सकी. उस ने असहाय भाव से सब की ओर देखा. सभी असमंजस की स्थिति में खड़े थे.

जहां से चले थे-संध्या के लिए अपने मम्मी-पाप को भूलाना बहुत मुश्किल हो रहा था

संध्या बचपन से ही दबंग और दंभी स्वभाव की लड़की थी, इसलिए शादी के लिए आए अच्छे घरों के रिश्तों में मीनमेख निकाल कर बड़ी बेरुखी से ठुकरा देती.

मां को अग्नि के सुपुर्द कर के मैं लौटी तो पहली बार मुझे ऐसा लगा जैसे मैं दुनिया में बिलकुल अकेली रह गई हूं. श्मशान पर लिखे शब्द अभी भी मेरे दिमाग पर अंकित थे, ‘यहां तक लाने का धन्यवाद, बाकी का सफर हम खुद तय कर लेंगे.’ मां तो परम शांति की ओर महाप्रस्थान कर गईं और मुझे छोड़ गईं इस अकेली जिंदगी से जूझने के लिए.

मां थीं तो मुझे अपने चारों ओर एक सुरक्षा कवच सा प्रतीत होता था. शाम को जब तक मैं आफिस से न लौटती, उन की सूनी आंखें मुझे खोजती रहतीं और मुझे देख कर अपना सारा प्यार उड़ेल देतीं. मैं भी मां को सारे दिन के कार्यक्रमों को बता कर अपना जी हलका कर लेती. आफिस में अपनी पदप्रतिष्ठा बनाए रखने के लिए मुझे एक चेहरा ओढ़ना पड़ता था पर घर में तो मैं मां की बच्ची थी, हठ भी करती और प्यार भी. पर अब मैं बिलकुल अकेली पड़ गई थी.

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कुछ दिन बाद आफिस के केबिन में बैठ कर मैं सामने दीवार पर देखने लगी तो मन में खयाल आया कि पापा के फोटो के साथ मां की भी फोटो लगा दूं, इतने में दरवाजा खोल कर मेरे निजी सचिव ने आ कर बताया कि कुछ जरूरी कागज साइन करने हैं, जो टेबल पर ही रखे हैं.

‘‘मिश्राजी, मेरी मानसिक हालत अभी ठीक नहीं है. मैं अभी कोई भी निर्णय नहीं ले सकती. अभी तो मां को गुजरे 4 दिन भी नहीं हुए हैं और…’’ इतना कह कर मैं भावुक हो गई.

‘‘सौरी, मैडम, मुझे इस समय ऐसा नहीं कहना चाहिए था,’’ कह कर वह वापस जाने लगे.

‘‘मिश्राजी, एक मिनट,’’ कह कर मैं ने उन्हें रोका और पूछा, ‘‘अच्छा, ब्रांच मैनेजर का इंटरव्यू कब है?’’

‘‘मैडम, चेयरमैन साहब खुद इस इंटरव्यू में बैठना चाहते हैं. आप कोई भी डेट…मेरा मतलब है जब भी आप कहेंगी मैं उन्हें बता दूंगा,’’ कह कर मिश्राजी चले गए.

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हमारी मल्टीनेशनल कंपनी देश की 5 बड़ी ब्रांचों के लिए कुशल मैनेजर रखना चाहती थी. 6 महीने से चल रहे ये महत्त्वपूर्ण इंटरव्यू अब निर्णयात्मक दौर में थे. उन का वार्षिक पैकेज भी 10 लाख रुपए का था. यानी मुझ से आधा. चेयरमैन को तो इस इंटरव्यू में आना ही चाहिए.

मैं अनमने और भारी मन से एकएक पत्र देखने लगी. मन कहीं भी टिक नहीं रहा था. मां की भोली सूरत बारबार आंखों के सामने तैर जाती. मैं ने सारी फाइलें बंद कर दीं और अपने सचिव को बता कर घर चली आई.

रिश्तेदार, सगेसंबंधी सब एकएक कर के जा चुके थे. महरी अपना काम समेट कर टीवी देख रही थी. शायद उसे इस का एहसास नहीं था कि मैं घर जल्दी आ जाऊंगी. उसे टीवी के पास बैठी देख कर मैं एकदम झल्ला गई और अपना सारा गुस्सा उस पर ही उतार दिया, फिर निढाल हो कर पलंग पर पसर गई.

थोड़ी देर में महरी चाय बना कर ले आई. मुझे इस समय सचमुच चाय की ही जरूरत थी. वह चाय मेज पर रख कर बोली, ‘‘मेम साहब, आप ही बताइए, मैं सारा दिन यहां अकेली क्या करूं. मांजी और मैं इस समय टीवी ही देखा करते थे. आप को पसंद नहीं है तो अपना घर खुद ही संभालिए,’’ कह कर वह तेजी से चली गई.

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मेरे क्रोध और धैर्य की सीमा न रही. इस की इतनी हिम्मत कि मुझे कुछ कह सके, मेरी बात काट सके. वह इस बात पर मेरा काम छोड़ भी देती तो मैं उसे रोकती नहीं, चाहे बाद में मुझे कितनी ही परेशानी होती. झुक कर बात करना तो मैं ने कभी सीखा ही नहीं था. बचपन से आज तक मैं ने वही किया जो मेरे मन को भाया. जिस से सहमति नहीं बन पाती, उस से मैं किनारा कर लेती.

चाय पीने के बाद भी मुझे चैन नहीं आया. मैं बदहवास एक कमरे से दूसरे कमरे में बिना मकसद घूमती रही. मुझे लग रहा था कि मां की आकृति कहीं आसपास ही तैर रही है. मैं ने मां की तसवीर पापा की तसवीर के साथ लगा दी. उन की फोटो पर लगे गेंदे के फूल मुरझा कर पापा की तसवीर पर लगे नकली फूलों की शक्ल ले रहे थे.

मैं मां की तसवीर के पास जा कर उन्हें देखती रही और फिर बीते दिनों के ऐसे तहखाने में जा पहुंची जहां बहुत अंधेरा था. पर अंधेरा भी मैं ने ही किया हुआ था, वरना ये दोनों तो मेरे जीवन में उजाला करना चाहते थे.

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मुझे अपना खोया हुआ बचपन याद आने लगा और मैं अपने ही अतीत के पन्नों को एकएक कर पलटने लगी.

इकलौती संतान होने के कारण मां और पापा का सारा प्यार मेरे ही हिस्से में था. जब भी पापा को कोई मेरे लड़की होने का एहसास करवाता, पापा हंस कर कहते कि यही मेरा बेटा है और यही मेरी बेटी भी. उन्होंने मेरी परवरिश भी मुझे बहुत सी स्वतंत्रता दे कर अलग ढंग से की थी. मां जब भी मुझे किसी लड़के के साथ देखतीं या देर शाम को घर आते देखतीं तो अच्छाबुरा समझाने लगतीं और पापा एक सिरे से मां की बात को नकार देते.

स्कूल की पढ़ाई खत्म होते ही मैं ने प्रोफेशनल कोर्स ज्वाइन कर लिया, साथ ही दूसरे वह सभी काम सीख लिए जो पुरुषों के दायरे में आते थे. मैं किसी भी तरह खुद को लड़कों से कम नहीं समझती और न ही उन को अपने ऊपर हावी होने देती थी. मेरे इस दबंग और अक्खड़ स्वभाव के कारण कई लड़के तो मेरे पास आने से भी डरते थे.

एक बार मैं कालिज टीम के साथ टेबलटेनिस का मैच खेलने सहारनपुर गई थी. रात को खाने के समय बातोंबातों में मुझे एक लड़के ने प्रपोज किया तो उस लड़के के कंधे पर हाथ रख कर मैं बोली, ‘एक बात तुम्हें साफसाफ बता दूं कि मैं ऐसीवैसी लड़की नहीं हूं और न ही मुझे आम लड़कियों की तरह हलके में लेना. दोबारा मेरे साथ नाम जोड़ने की कोशिश भी मत करना.’

वह लड़का तो चुपचाप वहां से चला गया पर मेरी अंतरंग सहेली वंदना ने मुझ से कहा, ‘इतना गुस्सा भी ठीक नहीं है संध्या. उस ने कौन सी तेरे साथ बदसलूकी की है, प्रपोज ही तो किया है. तू विनम्रता से इनकार कर देती, बातबात पर ऐसा रौद्र रूप दिखाना ठीक नहीं है.’ यह बात हमारे कालिज में दावानल की तरह फैल गई. मेरा कद 2 इंच और बढ़ गया. उस के बाद फिर किसी लड़के ने मेरी ओर आंख उठाने की भी हिम्मत नहीं की.

एम.बी.ए. करने के बाद मुझे एक से एक अच्छे आफर आने लगे. मैं भी दिखा देना चाहती थी कि मैं किसी से कम नहीं हूं. पापा का वरदहस्त तो सिर पर था ही. जहां मेरे साथ पढ़े लड़कों को 20 हजार के आफर मिले, मुझे 45 हजार का आफर मिला था.

पापा को अब मेरी शादी की चिंता सताने लगी, पर मैं अभी ठीक से सेटल नहीं हुई थी. वैसे भी मुझे अपने लिए एक ऐसा घरवर ढूंढ़ना था जो मेरी बराबरी और विचारों के अनुकूल हो. मैं पापा के अनुरोध को टालना भी नहीं चाहती थी और शादी कर के अपना आने वाला सुनहरा कल गंवाना भी नहीं चाहती थी. इसलिए पापा जब भी कोई रिश्ता ले कर आते मैं कोई न कोई कमी निकाल कर इनकार कर देती.

एक दिन मांपापा ने मेरी पसंद और नापसंद के बीच झूलते हुए दुखी मन से कहा, ‘शादी तो तुम्हें करनी ही पड़ेगी. यही समाज का नियम है. तुम अपनी नहीं तो हमारी चिंता करो. लोग कैसीकैसी बातें करते हैं.’

पापा की जिद के सामने मुझे झुकना ही पड़ा और मैं विनम्रता से बोली कि जो आप को उचित लगे और मेरे विचारों के अनुकूल हो, आप उस से मेरा विवाह कर सकते हैं.

जल्दी ही एक जगह बात पक्की हो गई. लड़का भारतीय सेना में डाक्टर था. मुझे इस बात से संतोष था कि वह मेरे साथ नहीं रहेगा और मैं मनचाही नौकरी कर सकूंगी.

शादी के दिन मैं बड़े अनमने मन से तैयार हो रही थी. मुझे चूड़ा और कलीरें पहनना, महंगे लहंगे के साथ ढेर सारे जेवर और कोहनी तक मेहंदी रचाना आदि आडंबर लगे. मैं सोचती रही कि जल्दी से किसी तरह यह निबटे तो इस से मुक्ति मिले. हर शृंगार पर मैं पूछती कि इस के बाद तो कुछ नहीं बचा है.

‘क्यों, पति से मिलने की इतनी जल्दी है क्या?’ सहेलियों ने पूछा. कोई और अवसर होता तो मैं कभी का उन्हें भगा चुकी होती पर यह सामाजिक व्यवस्था थी उस पर मांपापा की इच्छा का भी खयाल था. जितनी देर होती रही मेरा धैर्य चुकता रहा.

उसी समय बरात आ गई. मेरी सहेलियां बरात देखने चली गईं और मैं अकेली कमरे में बैठी थी. तभी मेरे पास वाले कमरे से पापा की आवाज आई, ‘भाई साहब, हम से जो बन पड़ा है हम ने किया. कोई कमी रह गई हो तो हमें माफ कर दीजिए,’ मैं ने देखा, पापा हाथ जोड़ कर विनती कर रहे थे, ‘कार का इंतजाम इतनी जल्दी नहीं हो पाया वरना उसी में बिठा कर बेटी को विदा करता.’

‘कार की तो कोई बात नहीं, भाई साहब. बस, अपनी बेटी के महंगे गहने शादी के फौरन बाद ही उतरवा दीजिए.’

इतना सुनना था कि मेरे तेवर चढ़ गए. क्या मैं इतनी कमजोर और अनपढ़ हूं कि पापा को इतना कुछ देना पड़ रहा है. मैं ने वहीं पर तहलका मचा दिया कि इन दहेज के लालची लोगों के घर मैं नहीं जाऊंगी. चारों तरफ एक अफरातफरी का माहौल खड़ा हो गया. लड़के वालों को लोग अर्थपूर्ण नजरों से देखने लगे. पापा ने मुझे एक तरफ ले जा कर समझाने की कोशिश की, ‘बेटी, बात इतनी न बढ़ाओ कि संभालनी मुश्किल हो जाए,’ वे बोले, ‘लड़की की शादी में समाज और बिरादरी के भी कुछ नियम हैं. तुम क्या जानो कि क्या कुछ करना पड़ता है. बेटी पैदा होते ही अपना पिंजरा साथ ले कर आती है. इस में लड़के वालों की कोई गलती नहीं है.’

इतने में किसी ने पुलिस को खबर भेज दी. फिर क्या था, टीवी चैनल और प्रिंट मीडिया ने मुझे चारों तरफ से घेर लिया. मैं ने जो सुना, देखा था, थोड़ा बढ़ाचढ़ा कर कह दिया.

लड़के और उस के घर वाले तो सलाखों के पीछे पहुंच गए और मुझे रातोंरात लोग पहचानने लगे. मैं इंटरव्यू पर इंटरव्यू देती रही और वे इसे छापते रहे.

उस के बाद तो कई सामाजिक संगठन और समाजसेवी संस्थाएं आ कर मुझे मानसम्मान देने के लिए समय मांगती रहीं.

कुछ दिनों में यह बात ठंडी हो गई, पापा ने थाने में कई चक्कर लगा कर उन्हें दहेज के आरोप से मुक्त करवा दिया पर उन पर लांछन तो लग ही चुका था. पापा उस दिन के बाद अंतर्मुखी हो गए और मां भी जरूरत भर की बातें ही करतीं.

उस हादसे से पापा इतना टूट गए कि दुनिया से उन्होंने नाता ही तोड़ लिया. हां, मरने से पहले पापा बता गए थे कि लड़के वालों की तरफ से कोई दहेज की मांग नहीं थी. कार देने का वादा तो मैं ने ही किया था और गहने उतरवाने की बात पहले से ही तय थी. देर रात को मेरा इतना शृंगार कर के होटल में जाना अनचाहे तूफान से बचने का उपाय था, पर तब तक बहुत देर हो चुकी थी.

वक्त गुजरता गया और वक्त के साथसाथ मैं ऊंचाइयां छूती गई. पापा की मृत्यु के बाद तो मां ने भी चुप्पी साध ली थी. मैं उन के दुख को अच्छी तरह जानती थी. उन्हें एक ही चिंता थी कि उन के बाद मेरा कौन सहारा होगा. एक दिन मां ने समझाते हुए कहा, ‘संध्या, जवान और खूबसूरत लड़की समाज की नजरों में वैसे भी खटकती रहती है. औरत कितनी भी सबल क्यों न हो उसे मजबूत सहारे की जरूरत पड़ती ही है, जो उसे समाज की बुरी निगाहों से बचा कर रखता है…’

‘मां, छोड़ो भी यह सब बातें. मैं तुम्हें दिखा दूंगी कि मुझे किसी सहारे की तलाश नहीं है. बस, समाज को समझाने और टक्कर लेने की हिम्मत होनी चाहिए,’ यह कह कर मैं वहां से उठ गई थी.

मां के कहे शब्द दिमाग में कौंधे तो मैं चौंक कर उठ बैठी. मांपापा का जो रक्षा कवच मेरे चारों ओर था वह अब टूट चुका था, अपना झूठा दंभ कहां दिखाती. घर के सभी काम, जो सुनियोजित ढंग से चल रहे थे, अब मुझे ही संभालने थे. मुझे इन 4 दिनों में ही अपना अंधकारमय भविष्य नजर आने ले.

नाइट फ्लाइट-यश पहली बार किसी लड़की से बात करने से कतरा रहा था

मुंबई का अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा. अभी शाम के 5 भी  नहीं बजे थे. यश की फ्लाइट रात के 8 बजे की थी. वह लंबी यात्रा में किसी तरह का रिस्क नहीं लेना चाहता था. सो, एयरपोर्ट जल्दी ही आ गया था. उस ने टैक्सी से अपना सामान उतार कर ट्रौली पर रखा. हवाईअड्डे पर काफी भीड़ थी. वह मन ही मन सोच रहा था, आजकल हवाई यात्रा करने वालों की कमी नहीं है. यश ने अपना पासपोर्ट और टिकट दिखा कर अंदर प्रवेश किया.

यश ने एयर इंडिया के काउंटर से चेकइन कर अपना बोर्डिंग पास लिया. उस ने अपने लिए किनारे वाली सीट पहले से बुक करा ली थी. उसे यात्रा के दौरान विंडो या बीच वाली सीट से निकल कर वौशरूम जाने में परेशानी होती है. उस के बाद वह सुरक्षा जांच के लिए गया. सुरक्षा जांच के बाद टर्मिनल 2 की ओर बढ़ा जहां से एयर इंडिया की उड़ान संख्या ए/314 से उसे हौंगकौंग जाना था. वहां पर वह एक किनारे कुरसी पर बैठ गया. अभी भी उस की फ्लाइट में डेढ घंटे बाकी थे. हौंगकौंग के लिए और भी उड़ानें थीं पर उस ने जानबूझ कर नाइट फ्लाइट ली ताकि रात जहाज में सो कर गुजर जाए और सारा दिन काम कर सके. उस की फ्लाइट हौंगकौंग के स्थानीय समय के अनुसार सुबह 6.45 बजे वहां लैंड करती.

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थोड़ी देर बाद एक बुजुर्ग आ कर यश की बगल में एक सीट छोड़ कर बैठ गए. बीच की सीट पर उन्होंने अपना बैग रख दिया. देखने में वे किसान लग रहे थे. उन्होंने अपना बोर्डिंग पास यश को दिखाते हुए पंजाबी मिश्रित हिंदी में पूछा, ‘‘पुत्तर, मेरा जहाज यहीं से उड़ेगा न?’’

यश ने हां कहा और अपनी किताब पढ़ने लगा. बीचबीच में वह सामने टीवी स्क्रीन पर न्यूज देख लेता. लगभग आधे घंटे के बाद एक युवती आई. यश की बगल वाली सीट पर बुजुर्ग का बैग रखा था. लड़की ने यश से कहा, ‘‘प्लीज, आप अपना बैग हटा लेते, तो मैं यहां बैठ जाती.’’

यश ने मुसकराते हुए बुजुर्ग की ओर इशारा कर कहा, ‘‘यह बैग उन का है.’’

उस बुजुर्ग को हिंदी ठीक से नहीं आती थी. लड़की के समझाने पर उन्होंने अपना बैग नीचे रखा. तब लड़की ने यश की ओर देख कर कहा, ‘‘मैं थोड़ी देर में वौशरूम से आती हूं.’’

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इस बार यश ने सिर उठा कर उसे देखा और मुसकराते हुए, ‘इट्स ओके’ कहा. फिर लड़की को जाते हुए देखा. लड़की खूबसूरत थी. उस की पतली कमर के ऊपर ब्लू स्कर्ट और स्कर्ट के बाहर झांकती पतली टांगें उसे अच्छी लगी थीं. ऊपर एक सफेद टौप था. उस ने हाईहील सैंडिल पहनी थी.

करीब 10 मिनट के बाद एक हाथ में स्नैक्स और दूसरे में कोक का कैन लिए वह लड़की आ रही थी. पहले स्नैक्स खाती, फिर कोक सिप करती. यश ने देखा कि उसे हाईहील पहन कर चलने में कुछ असुविधा हो रही थी. वह जैसे ही अपनी कुरसी पर बैठने जा रही थी कि थोड़ा लड़खड़ा पड़ी. उस ने अपने को तो संभाल लिया पर कोक का कैन हाथ से छूट कर यश की गोद में जा पड़ा. कुछ कोक छलक कर उस की जींस पर गिरी जिस से जींस कुछ गीली हो गई थी.

यश ने खड़े हो कर कैन उसे पकड़ाया. लड़की बुरी तरह शर्मिंदा थी, बोली, ‘‘आई एम ऐक्सट्रीमली सौरी.’’ और बैग में से कुछ टिश्यूपेपर निकाल कर उस की जींस पोंछने लगी.

यश को यह अच्छा नहीं लगा, वह बोला, ‘‘आप रहने दें, मैं खुद कर लेता हूं.’’ और उस के हाथ से टिश्यू ले कर खुद गीलापन कम करने की कोशिश करने लगा.

थोड़ी देर बाद बोर्डिंग की घोषणा हुई. यह भी इत्तफाक ही था कि वह लड़की और बुजुर्ग दोनों यश की बगल की सीटों पर थे. बुजुर्ग को विंडो सीट और लड़की को बीच वाली सीट मिली थी.

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विमान के कैप्टन ने यात्रियों का स्वागत करते हुए कहा कि मुंबई से हौंगकौंग तक की उड़ान करीब 8 घंटे 35 मिनट की होगी. पर लगभग 2 घंटे के बाद विमान एक घंटे के लिए दिल्ली में रुकेगा. जिन यात्रियों को हौंगकौंग जाना है, कृपया अपनी सीट पर बैठे रहें. विमान परिचारिका ने सुरक्षा नियम समझाए. बुजुर्ग यात्री पहली बार हवाई जहाज से यात्रा कर रहे थे. उन्हें बैल्ट बांधने में लड़की ने मदद की. उन्होंने बताया कि वे कनाडा जा रहे हैं. वे कुछ दिन हौंगकौंग में अपनी भतीजी की शादी के सिलसिले में रुकेंगे.

फिर उन्हें हौंगकौंग से वैंकुवर जाना है. उन के बेटे ने उन का ग्रीनकार्ड स्पौंसर किया है.

निश्चित समय पर विमान ने टेकऔफ किया. बातचीत का सिलसिला यश ने शुरू किया. वह लड़की से बोला, ‘‘मैं यश मेहता, सौफ्टवेयर इंजीनियर हूं. मेरी कंपनी बैंकिंग सौफ्टवेयर बनाती है. अभी मैं एक प्रोडक्ट के सिलसिले में हौंगकौंग के बार्कले इन्वैस्टमैंट बैंक और एचएसबीसी बैंक जा रहा हूं.’’

‘‘ग्लैड टू मीट यू, मैं ऋचा शर्मा. हौंगकौंग में हमारा बिजनैस है.’’

‘‘तब तो आप अकसर वहां जाती होंगी.’’

‘‘जी नहीं, पहली बार जा रही हूं.’’

तब तक जलपान दिया गया. यश और ऋ चा ने देखा कि वे बुजुर्ग बारबार उठ कर बाथरूम जा रहे हैं जिस के चलते ऋचा को ज्यादा परेशानी हो रही थी. यश किनारे वाली सीट पर था तो वह अपने पैर बाहर की तरफ मोड़ लेता.

बुजुर्ग ने बताया कि उन्हें शुगर और किडनी दोनों बीमारियां हैं. उन की एक आदत यश और ऋ चा दोनों को बुरी लगी कि विमान परिचारिका जो भी कुछ सामान अगलबगल की सीट पर देती, वे अपने लिए भी मांग बैठते.

कुछ देर बाद विमान दिल्ली हवाई अड्डे पर उतर रहा था. करीब एक घंटे के बाद विमान ने हौंगकौंग के लिए उड़ान भरी. आधे घंटे के बाद डिनर सर्व हुआ. डिनर के बाद यश सोने की तैयारी में था. तभी ऋ चा ने अपने रिमोट से परिचारिका को बुलाने के लिए कौलबैल का बटन दबाया. थोड़ी देर में वह आई. ऋचा ने उस के कान में धीरे से कुछ कहा. परिचारिका ‘श्योर मैम, मैं देखती हूं,’ बोल कर चली गई.

कुछ ही देर बाद वह लौट कर आई. उस ने एक टिश्यू में लिपटा हुआ कुछ सामान ऋचा को दिया. बुजुर्ग ने कहा, ‘‘पुत्तर, एक मुझे भी दे दो.’’

परिचारिका बोली, ‘‘सर, यह आप के काम की चीज नहीं है.’’

‘‘तुम मुझे दो तो सही. मैं देख लूंगा, मेरे लिए है या नहीं.’’

ऋचा शरमा रही थी और अपनी हंसी भी नहीं छिपा पा रही थी. बारबार समझाने पर भी वे नहीं मान रहे थे. तब परिचारिका ने झुंझला कर कहा, ‘‘आप को भी मासिकधर्म है क्या?’’

बुजुर्ग बोले, ‘‘छि, क्या बोलती है?’’

तब जा कर उन की समझ में बात आई. यश ने कहा, ‘‘मैं देख रहा हूं आप हर चीज अपने लिए मांग रहे हैं?’’

‘‘आते समय मेरे बेटे ने समझाया था कि शर्म नहीं करना, सब चीजें जहाज में फ्री मिलती हैं.’’

यश हंस पड़ा. इसी बीच ऋचा सैनिटरी नैपकिन ले कर वौशरूम चली गई. 10 मिनट बाद वह लौट कर अपनी सीट पर आ रही थी. बगल की सीट पर बैठा यात्री सो रहा था और उस का हैडफोन नीचे गिरा था. ऋचा का पैर हैडफोन की तार में फंस गया, ऊपर से हाईहील, पैंसिल नोक वाली सैंडिल. ऋचा गिर पड़ी और उस की स्कर्ट भी कुछ इस तरह उठ गई थी कि उस का अधोवस्त्र भी झलकने लगा. वह उठने की कोशिश कर रही थी, पर दोबारा फिसल पड़ी थी. यश ने उसे सहारा दे कर अपनी सीट पर बैठाया और खुद बीच वाली सीट पर बैठ गया.

‘‘थैंक्स अ लौट,’’ ऋ चा बोली.

‘‘इट्स ओके. पर एक बात पूछूं, बुरा न मानिए.’’

ऋचा के पूछिए बोलने पर वह बोला, ‘‘आप हाईहील में सहज नहीं लगती हैं, फिर फ्लाइट में क्यों इसे पहन कर आई हैं?’’

‘‘हाईहील के बगैर मेरी हाइट 5 फुट से भी कम हो जाती है. वैसे, मैं रैगुलर इसे यूज नहीं करती.’’

थोड़ी देर बाद ऋ चा को नींद आ गई. उस ने नींद में यश के कंधे पर अपना सिर रख दिया. यश को उस का सामीप्य अच्छा लग रहा था. कंधे पर एक खुशनुमा बोझ तो था, पर उस के बदन और बालों की खुशबू यश को रोमांचित कर रही थी. वह यथावत स्थिति में बैठा रहा. उसे डर था कि कहीं हिलनेडुलने से ऋचा की नींद न टूट जाए और वह इस आनंद से वंचित रह जाए. बीच में कभी ऋचा की नींद खुलती तो वह सीधा हो कर बैठती, पर 5 मिनट के अंदर फिर यश के कंधों पर लुढ़क जाती.

इस बीच, यश ने दोनों सीटों के बीच वाले हिस्से को उठा कर खड़ा कर दिया. कभी तो ऋ चा का सिर उस के सीने पर भी आ जाता, तब उस की नींद खुलती और सौरी बोल कर सीधी हो जाती और बोलती, ‘‘मुझ से नींद बरदाश्त नहीं होती. मैं कहीं भी जाती हूं किसी तरह अपने सोनेभर की जगह बना ही लेती हूं.’’

यश ने कहा, ‘‘आप कहें तो मैं आप के लिए कुछ और जगह बना दूं. मेरे पैर पर तकिया रख कर सो लें.’’

‘‘ओह, नोनो.’’

पर 10 मिनट के अंदर उस का सिर यश के पैर पर रखे तकिए पर आ गया. यश को भी नींद आ रही थी, पर वह अपनी नींद कुरबान करने को तैयार था, बल्कि एकाध बार तो उस का दाहिना हाथ ऋ चा के बालों पर फिसलने लगता.

देखतेदेखते लैंडिंग की भी घोषणा हुई. तब यश ने धीरे से ऋचा का सिर हिला कर कहा ‘‘उठिए, बैल्ट बांधिए. हम हौंगकौंग पहुंच रहे हैं.’’

‘‘इतनी जल्दी आ गए. मुझे तो पता ही नहीं चला.’’ और फिर सीधा बैठ कर बैल्ट बांधती हुई बोली, ‘‘क्या मैं रातभर इसी तरह सोती आई? सौरी, आप को तकलीफ दी.’’

‘‘कोई बात नहीं, इट्स अ प्लेजर फौर मी. अगर सफर लंबा होता तो मुझे और खुशी होती.’’

ऋ चा मुसकरा कर रह गई. ऋ चा और यश दोनों का इमिग्रेशन और कस्टम एक ही डैस्क पर हुआ. वहीं लाइन में खड़े यश ने कहा, ‘‘आप के साथ का सफर बड़ा प्यारा रहा. क्या हम आगे भी मिल सकते हैं?’’

‘‘हां, मिलने में कोई बुराई नहीं है.’’

‘‘तो शाम को विंधम स्ट्रीट के इंडियन रैस्टोरैंट में मिलते हैं. जब हौंगकौंग आता हूं, वहां मैं अकसर डिनर करता हूं. लाजवाब स्वाद है वहां के खाने में.’’

ऋ चा हंस कर बोली, ‘‘तब तो वहां मैं जरूर मिलूंगी.’’

दोनों एयरपोर्ट से बाहर निकले. दोनों के लिए तख्तियां ले कर कार के ड्राइवर्स खड़े थे. दोनों अपनेअपने गंतव्य स्थान पर गए.

यश 2-3 घंटे होटल में आराम कर अपने काम पर चला गया. दिनभर वह शाम को ऋचा से होने वाली मुलाकात को सोच कर रोमांचित होता रहा.

यश ने शाम को उस इंडियन रैस्टोरैंट में अपने लिए टेबल बुक कर लिया था. होटल पहुंच कर वह अपने टेबल पर बैठा बारबार घड़ी देख रहा था. सोच रहा था कि ऋचा बोल कर भी क्यों नहीं आई. वह सोच ही रहा था कि तभी ऋचा एप्रन पहने सामने आ खड़ी हुई. उसे मेनू बुक देते हुए बोली, ‘‘गुड इवनिंग सर, आप खाने में क्या पसंद करेंगे?’’

यश उसे वेट्रैस की ड्रैस में देख कर घबरा गया और बोला, ‘‘तुम यहां वेट्रैस हो? यही तुम्हारा बिजनैस है?’’

‘‘रिलैक्स सर. अच्छा, आज मेरी पसंद का डिनर लें. आप को शिकायत का मौका नहीं दूंगी.’’

यश ने उस का हाथ पकड़ कर बैठाना चाहा तो वह बोली, ‘‘मैं डिनर ले कर आती हूं. दोनों साथ बैठ कर खाएंगे.’’

यश हैरानपरेशान सा बैठा था. थोड़ी देर में वह भरपूर खाना ले कर आई और एप्रन खोल कर रख दिया. दोनों खाते रहे. यश ने 2-3 बार पूछना चाहा कि क्या वह वेट्रैस है, पर हर बार वह टाल जाती.

खाना खत्म होते ही एक युवक उन के पास आया और उस ने ऋ चा से पूछा, ‘‘कुछ और चाहिए. खाना पसंद आया तुम्हारे वीआईपी गैस्ट को?’’

यश उस युवक की ओर देखने लगा. ऋ चा बोली, ‘‘मीट माई हस्बैंड, नीलेश.’’

यश भौचक्का सा कभी ऋचा, तो कभी नीलेश को देखता रहा. थोड़ी देर बाद नीलेश बोला, ‘‘हमारी शादी 2 महीने पहले इंडिया में हुई थी. इसे मायके में कुछ दिन रुकने का मन था. मैं यहां पहले चला आया. इस होटल में मेजर शेयर हमारा है. आप ने यात्रा में ऋचा की काफी सहायता की है. वह आप की बहुत तारीफ कर रही थी. दरअसल, इस टेबल की वेट्रैस आज छुट्टी पर है. ऋ चा बोली कि उस का एक खास गैस्ट आ रहा है, वह खुद मेहमाननवाजी करेगी. और आज का डिनर हमारी तरफ से कौंप्लीमैंट्री रहा.’’

यश अभी तक इस आश्चर्यजनक वाकए से उबर नहीं सका था, वह बोला, ‘‘ऋचा, आप ने पहले क्यों नहीं बताया?’’

‘‘मैं ने कहा था कि मेरा बिजनैस है. पर जब आप ने इंडियन रैस्टोरैंट का नाम लिया तो मैं ने सोचा, क्यों न सरप्राइज दिया जाए, और आप को कुछ देर और रोमांचित होने का मौका दिया मैं ने.’’

‘‘नौट फेयर ऋचा, मुझे आप ने अपने बारे में अंधेरे में रखा.’’

ऋचा ने यश की पीठ थपथपाई और कहा, ‘‘वी विल रिमेन गुड फ्रैंड्स. इस होटल में जब भी चाहो, आ जाना. बिल नहीं भी देंगे तो भी चलेगा. पर हर बार मैं सर्व नहीं कर सकूंगी. होप यू डौंट माइंड.’’

नीलेश और ऋचा दोनों होटल के बाहर तक यश को छोड़ने आए.

यश ने टैक्सी ली और वापस अपने होटल आ गया. रिलैक्स हो कर सोफे पर बैठ गया. उसे एहसास हो रहा था कि हम बिना दूसरे के बारे में जाने न जाने क्याक्या सोच बैठते हैं. ऋचा को देख उस ने न जाने क्याक्या सोच लिया था. गलती तो उसी की थी. मन तो बावरा होता है, लेकिन अपनी सोच पर तो हमारी खुद की पकड़ होती है. यश को अपनेआप पर हंसी आ गई. फिर लंबी सांस भर कर बोला, ‘‘नौट अगेन.’’

मेरी उम्र 15 साल है, मुझे पीरियड्स समय से नहीं होते, इस का क्या कारण है, क्या मुझे अपनी जांच करानी चाहिए, कृपया उचित सलाह दें?

सवाल
मेरी उम्र 15 साल है. मुझे पीरियड्स समय से नहीं होते. अकसर ये निर्धारित समय से 2-4 दिन गुजर जाने के बाद होते हैं. इस का क्या कारण है? क्या मुझे इस समस्या के लिए किसी डाक्टर के पास जा कर अपनी जांच करानी चाहिए? मेरी एक सहेली का कहना है कि यह ठीक नहीं, इस से आगे जा कर मुझे परेशानी उठानी पड़ सकती है. कृपया उचित सलाह दें?

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जवाब

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आप का यों परेशान होना ठीक नहीं. सच तो यह है कि जिस चीज को ले कर आप चिंतित हैं, वह बिल्कुल सामान्य घटना है. यह ठीक है कि ज्यादातर स्त्रियों में मासिकचक्र 28 दिन का होता है, पर यह सच भी उतना ही बड़ा है कि बहुत सी स्त्रियों में यह चक्र 26 दिन का, 27 दिन का या 29 या फिर 30 दिन का होता है.

प्रत्येक स्त्री के शरीर में बनने वाले यौन हारमोन का घटनाबढ़ना, उस के शरीर की अपनी लयताल से निर्धारित होता है जोकि उस की अपनी विशेष होती है. इतना ही नहीं, यह मासिकचक्र समयसमय पर बहुत से अंदरूनी और बाहरी तत्त्वों से प्रभावित भी हो सकता है. भौगोलिक स्थान परिवर्तन, जलवायु, व्यक्तिगत स्वास्थ्य, मानसिक स्वास्थ्य और यहां तक कि घर में या होस्टल में अन्य स्त्रियों के मासिक चक्र का भी इस पर प्रभाव होते देखा गया है.

आप का मासिकचक्र 30-32 दिन का है तो इस में कोई खास बात नहीं. इसे ले कर न तो आप को किसी डाक्टर के पास जाने की जरूरत है, न ही किसी ऐसी सहेली की सलाह से चिंतित होने की जरूरत है, जिसे मासिकधर्म के नियमों की ठीक से जानकारी नहीं. जांच की जरूरत सिर्फ तभी है जब मासिकधर्म देर से होने के साथसाथ अनियमित हो या उस में मासिक स्राव थोड़ी मात्रा में हो.

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उन दिनों रखें डाइट का ध्यान

पीरियड्स महीने के सब से कठिन दिन होते हैं. इस दौरान शरीर से विषाक्त पदार्थ निकलने की वजह से शरीर में कुछ विटामिनों व मिनरल्स की कमी हो जाती है, जिस की वजह से महिलाओं में कमजोरी, चक्कर आना, पेट व कमर में दर्द, हाथपैरों में झनझनाहट, स्तनों में सूजन, ऐसिडिटी, चेहरे पर मुंहासे व थकान महसूस होने लगती है. कुछ महिलाओं में तनाव, चिड़चिड़ापन व गुस्सा भी आने लगता है. वे बहुत जल्दी भावुक हो जाती हैं. इसे प्रीमैंस्ट्रुअल टैंशन (पीएमटी) कहा जाता है.

टीनएजर्स के लिए पीरियड्स काफी पेनफुल होते हैं. वे दर्द से बचने के लिए कई तरह की दवाओं का सेवन करने लगती हैं, जो नुकसानदायक भी होती हैं. लेकिन खानपान पर ध्यान दे कर यानी डाइट को पीरियड्स फ्रैंडली बना कर उन दिनों को भी आसान बनाया जा सकता है.

न्यूट्रीकेयर प्रोग्राम की सीनियर डाइटिशियन प्रगति कपूर और डाइट ऐंड वैलनैस क्लीनिक की डाइटिशियन सोनिया नारंग बता रही हैं कि उन दिनों के लिए किस तरह की डाइट प्लान करें ताकि आप पीरियड्स में भी रहें हैप्पीहैप्पी.

इन से करें परहेज

– व्हाइट ब्रैड, पास्ता और चीनी खाने से बचें.

– बेक्ड चीजें जैसे- बिस्कुट, केक, फ्रैंच फ्राई खाने से बचें.

– पीरियड्स में कभी खाली पेट न रहें, क्योंकि खाली पेट रहने से और भी ज्यादा चिड़चिड़ाहट होती है.

– कई महिलाओं का मानना है कि सौफ्ट ड्रिंक्स पीने से पेट दर्द कम होता है. यह बिलकुल गलत है.

– ज्यादा नमक व चीनी का सेवन न करें. ये पीरियड्स से पहले और पीरियड्स के बाद दर्द को बढ़ाते हैं.

– कैफीन का सेवन भी न करें.

अगर पीरियड्स आने में कठिनाई हो रही है तो इन चीजों का सेवन करें-

– ज्यादा से ज्यादा चौकलेट खाएं. इस से पीरियड्स में आसानी रहती है और मूड भी सही रहता है.

– पपीता खाएं. इस से भी पीरियड्स में आसानी रहती है.

– अगर पीरियड्स में देरी हो रही है तो गुड़ खाएं.

– थोड़ी देर हौट वाटर बैग से पेट के निचले हिस्से की सिंकाई करें. ऐसा करने से पीरियड्स के दिनों में आराम रहता है.

– यदि सुबह खाली पेट सौंफ का सेवन किया जाए तो इस से भी पीरियड्स सही समय पर और आसानी से होते हैं. सौंफ को रात भर पानी में भिगो कर सुबह खाली पेट खा लीजिए.

यह भी रहे ध्यान

– 1 बार में ही ज्यादा खाने के बजाय थोड़ीथोड़ी मात्रा में 5-6 बार खाना खाएं. इस से आप को ऐनर्जी मिलेगी और आप फिट रहेंगी.

– ज्यादा से ज्यादा पानी पीएं. इस से शरीर में पानी की मात्रा बनी रहती है और शरीर डीहाइड्रेट नहीं होता. अकसर महिलाएं पीरियड्स के दिनों में बारबार बाथरूम जाने के डर से कम पानी पीती हैं, जो गलत है.

– 7-8 घंटे की भरपूर नींद लें.

– अपनी पसंद की चीजों में मन लगाएं और खुश रहें.

अन्य सावधानियां

– पीरियड्स में खानपान के अलावा साफसफाई पर भी ध्यान देना बेहद जरूरी है ताकि किसी तरह का बैक्टीरियल इन्फैक्शन न हो. दिन में कम से कम 3 बार पैड जरूर चेंज करें.

– भारी सामान उठाने से बचें. इस दौरान ज्यादा भागदौड़ करने के बजाय आराम करें.

– पीरियड्स के दौरान लाइट कलर के कपड़े न पहनें, क्योंकि इस दौरान ऐसे कपड़े पहनने से दाग लगने का खतरा बना रहता है.

– पैड कैरी करें. कभीकभी स्ट्रैस और भागदौड़ की वजह से पीरियड्स समय से पहले भी हो जाते हैं. इसलिए हमेशा अपने साथ ऐक्स्ट्रा पैड जरूर कैरी करें.

– अगर दर्द ज्यादा हो तो उसे अनदेखा न करें. जल्द से जल्द डाक्टर से चैकअप कराएं.

डाइट में फाइबर फूड शामिल करना बेहद जरूरी है, क्योंकि यह शरीर में पानी की कमी को पूरा करता है. दलिया, खूबानी, साबूत अनाज, संतरा, खीरा, मकई, गाजर, बादाम, आलूबुखारा आदि खानपान में शामिल करें. ये शरीर में कार्बोहाइड्रेट, मिनिरल्स व विटामिनों की पूर्ति करते हैं.

कैल्सियम युक्त आहार लें. कैल्सियम नर्व सिस्टम को सही रखता है, साथ ही शरीर में रक्तसंचार को भी सुचारु रखता है. एक महिला के शरीर में प्रतिदिन 1,200 एमजी कैल्सियम की पूर्ति होनी चाहिए. महिलाओं को लगता है कि दूध पीने से शरीर में कैल्सियम की मात्रा पूरी हो जाती है. लेकिन सिर्फ दूध पीने से शरीर में कैल्सियम की मात्रा पूरी नहीं होती. एक दिन में 20 कप दूध पीने पर शरीर में 1,200 एमजी कैल्सियम की पूर्ति होती है, पर इतना दूध पीना संभव नहीं. इसलिए डाइट में पनीर, दूध, दही, ब्रोकली, बींस, बादाम, हरी पत्तेदार सब्जियां शामिल करें. ये सभी हड्डियों को मजबूत बनाते हैं और शरीर को ऐनर्जी प्रदान करते हैं.

आयरन का सेवन करें, क्योंकि पीरियड्स के दौरान महिलाओं के शरीर से औसतन 1-2 कप खून निकलता है. खून में आयरन की कमी होने की वजह से सिरदर्द, उलटियां, जी मिचलाना, चक्कर आना जैसी परेशानियां होने लगती हैं. अत: आयरन की पूर्ति के लिए पालक, कद्दू के बीज, बींस, रैड मीट आदि खाने में शामिल करें. ये खून में आयरन की मात्रा बढ़ाते हैं, जिस से ऐनीमिया होने का खतरा कम होता है.

खाने में प्रोटीन लें. प्रोटीन पीरियड्स के दौरान शरीर को ऊर्जा प्रदान करता है. दाल, दूध, अंडा, बींस, बादाम, पनीर में भरपूर प्रोटीन होता है.

विटामिन लेना न भूलें. ऐसा भोजन करें, जिस में विटामिन सी की मात्रा हो. अत: इस के लिए नीबू, हरीमिर्च, स्प्राउट आदि का सेवन करें. पीएमएस को कम करने के लिए विटामिन ई का सेवन करें. विटामिन बी मूड को सही करता है. यह आलू, केला, दलिया में होता है. अधिकांश लोग आलू व केले को फैटी फूड समझ कर नहीं खाते पर ये इस के अच्छे स्रोत हैं, जो हड्डियों को मजबूत बनाता है. विटामिन सी और जिंक महिलाओं के रीप्रोडक्टिव सिस्टम को अच्छा बनाते हैं. कद्दू के बीजों में जिंक पर्याप्त मात्रा में होता है.

प्रतिदिन 1 छोटा टुकड़ा डार्क चौकलेट जरूर खाएं. चौकलेट शरीर में सिरोटोनिन हारमोन को बढ़ाती है, जिस से मूड सही रहता है.

अपने खाने में मैग्निशियम जरूर शामिल करें. यह आप के खाने में हर दिन 360 एमजी होना चाहिए और पीरियड्स शुरू होने से 3 दिन पहले से लेना शुरू कर दें.

पीरियड्स के दौरान गर्भाशय सिकुड़ जाता है, जिस की वजह से ऐंठन, दर्द होने के साथसाथ चक्कर भी आने लगते हैं. अत: इस दौरान मछली का सेवन करें.

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मलाई तो राजनीति में ही है

पहले वह खोटा सिक्का था, कहीं भी चल नहीं पाया. लेकिन राजनीति में आने के बाद खरा सोना बन गया है. आजकल जनसभाओं के लिए भीड़ इकट्ठी करने की होड़ के कारण कई युवाओं को पार्टी का झंडा उठा कर सक्रिय सदस्य बनना फायदे का सौदा लग रहा है. यही वजह है, पार्टी का सदस्य बनने से समाज में लोगों के सामने उस की हनक बढ़ती है, साथ ही, पैसे के जुगाड़ का एक जरिया भी बन जाता है. पैसे से इकट्ठा हुई भीड़ को न तो नेता से कोई सरोकार होता है और न ही भीड़ को नेता से. शायद, यही वजह है कि अब नेता मंच से कार्यकर्ताओं को संबोधित करने की जगह विपक्षी दलों पर हमलावर हो कर भाषा की मर्यादा भूल जाया करते हैं.

गुंडेबदमाशों को नकारने वाला समाज आज उन्हें अपने सिरआंखों पर बिठा रहा है. पहले लोग अपराधी का हुक्कापानी बंद करने के साथ उसे समाज से बहिष्कृत कर अलग कर देते थे, रिश्तेदार रिश्ता खत्म कर लेते थे. परंतु, अब उस का उलट हो गया है. जघन्य अपराधियों को संरक्षण देने के लिए आज घरवालों के साथसाथ राजनीति बांहें फैलाए स्वागत करने को तैयार रहती है. सचाई यह है कि अपराधी आज राजनीति के संरक्षण में फलताफूलता है. छोटेमोटे जुर्म में कानून से बचने के लिए ऐसे लोगों को पहले नेताओं का संरक्षण प्राप्त होता है, फिर देखते ही देखते वे जनप्रतिनिधि बन जाते हैं. 35 वर्षीय नकुल दोस्ती निभाने के लिए एक दिन एक राजनीतिक पार्टी के विरोध प्रदर्शन में शामिल हुआ. वहां पर लाठी चली और वह पुलिस के हत्थे पड़ गया. वहां के सभासद के बीचबचाव करने की वजह से वह छूट गया. लेकिन लोगों ने उसे माला पहना कर कंधे पर बिठाया और फिर जुलूस निकाला.

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बस, तब उसे नेता बनने का चस्का लग गया. गले में माला पहन कर जब घर पहुंचा तो सब से पहले अपने मांबाप और बीवीबच्चों को समझा दिया कि यदि भविष्य में मलाई खानी है और लालबत्ती का सुख उठाना है तो थोड़ी तकलीफ तो उठानी ही पड़ेगी. घरखर्चे की कभी फिक्र रही नहीं क्योंकि पिता का बड़ा शोरूम था और काफी प्रौपर्टी थी, जिस का किराया आया करता था. अब तो उसे अपनी नेतागीरी चमकानी थी. सब से पहले लड़कों के खेलने के लिए पार्क में वौलीबौल कोर्ट बनवा दिया. अब तो लड़के उस के आगेपीछे घूमते. महल्ले के किसी लड़के के साथ कोई बात हो जाए या किसी लड़की या महिला के साथ कोई ऊंची आवाज में बात कर ले या फिर किसी रेहड़ी वाले को कोई परेशान कर रहा हो, वह अपने लड़कों की फौज के साथ पहुंच जाता. पार्षद जसवंत सिंह को उस के कामों की खबर लग गई.

उन्होंने उसे सलाह दी कि यदि नेता बनना है तो सब से पहले अपनी नैटवर्किंग मजबूत करो. राम अंकल ने गाड़ी खरीदी, उन्हें लाइसैंस बनवाना था. नकुल बड़े कौन्फिडैंस से बोला, ‘आप किसी को भेज दीजिए, बड़े बाबू अपने आदमी हैं, आप का काम हो जाएगा. एक मिठाई का डब्बा भिजवा दीजिएगा. मिठाई के डब्बे और सही कागजात के कारण काम हो गया, लेकिन क्रैडिट नकुल को मिल गया. अब तो लोग उस के घर पर चक्कर काटने लगे थे. एक रात वह गहरी नींद में था. तभी 2 बजे किसी को एंबुलैंस की जरूरत थी. वह तुरंत चप्पल पहन कर चल दिया. बुखार में तपती हुई पत्नी को उस के हाल पर छोड़ वह एकदोतीन हो चुका था. घरवाले उस की इन हरकतों से परेशान हो गए थे. अब वह अपने को कुछ स्पैशल समझने लगा था. घर में घुसते ही वह वीआईपी ट्रीटमैंट चाहता था. अपने को महाराजा से कम नहीं समझता. किसी घरेलू काम से मतलब न रखता. लेकिन चीखनेचिल्लाने में जरा भी देर न लगाता. बातें लंबीलंबी करता. पत्नी के बोलते ही लड़ाईझगड़ा शुरू कर देता व कभीकभी तो हाथ भी उठाने को तैयार हो जाता. कान पर फोन चिपका रहता और जबान से लफंगों वाली गालियां निकलतीं. वह अपने को ऐसे शो करता मानो उसी के इशारे पर दुनिया चलती है. जबतब दोचार लड़कों को ले कर आता और सब को चायनाश्ता, तो कभी खाना खिलाने के लिए कहता.

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देररात में आता लेकिन कभी फोन कर सूचना देने की जरूरत न समझता. 26 वर्षीय नरेश स्वभाव से मस्तमौला था. स्कूल के समय से डिबेट में अच्छा बोलता था. सत्तारूढ़ पार्टी के पार्षद के साथ दोस्ती हो गई. पार्टी के लोगों से जानपहचान हो गई थी. उस के भाषण की कला के कारण पार्टी में उस की हैसियत हो गई थी. छोटेमोटे कामों के लिए पार्षद अश्विनी बाबू का नाम ही काफी होता था. बड़े कामों के लिए अश्विनी बाबू थे ही. बस, जल्दी ही वह उन का दाहिना हाथ बन गया था. उसे कामकाज करवाने के तौरतरीके की अच्छी तरह जानकारी हो गई. घर पर काम करवाने वालों की भीड़ इकट्ठी होने लगी थी. अब घर पर भी उस की हनक बढ़ गई थी. जिस नरेश की घर में कोई इज्जत न थी, अब वह कमाऊ सपूत बन गया. सभासद का चुनाव वह आसानी से जीत गया था. अब विधायकजी तक उस की पहुंच हो गई थी. अब सब तरफ से उस पर पैसा बरसने लगा था. कलफदार कुरतेपाजामे के आवरण में उस का हर कानूनी व गैरकानूनी धंधे में लालच बढ़ता जा रहा था. जो पापा उसे चार बातें सुनाया करते थे, अब वह उन्हें दस बातें सुना दिया करता. बातबात में डींगें हांकना, गालियां उस की जबान से बेसाख्ता निकलने लगी थीं. उंगलियों में रंगबिरंगी अंगूठियों की संख्या बढ़ती जा रही थी. अब वह बड़ेबड़े सपने देखने लगा था.

घर में अब उस की तूती बोलने लगी थी, आखिरकार, उसे अब विधायक जो बनना था. रेबा, नीला की बचपन की सहेली थी. इन दिनों वह बहुत दुखी और परेशान सी रहती थी. ‘‘क्या बात है रेबा, परेशान दिख रही हो?’’ ‘‘अब तुम से क्या छिपाऊं, जब से नेता बन गए हैं, घर के कामों के लिए तमाम छुटभइए हैं. वे तो कभी यहां मीटिंग, तो कभी वहां. कभी दिल्ली तो कभी लखनऊ. चुनाव के दिनों में तो न दिन का पता न रात का. पहले कभी शराब को छूते नहीं थे, अब रोज रात को बोतल खाली करे बिना सोते नहीं. बस, पैसापैसा. मेरे लिए न बच्चों के लिए उन के पास समय नहीं होता. कोई रागिनी मैडम हैं, उन के यहां हाजिरी लगाना जरूरी है. मुझे तो लगता है कि बातबात पर झूठ भी बोलने लगे हैं. सुबहसुबह ही लोगों की भीड़ जमा हो जाती है. घर में घुसे नहीं कि फोन की घंटी बजने लगती है. अपने को जाने क्या समझने लगे हैं. घमंड के मारे सीधेमुंह बात भी नहीं करते हैं.

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‘दोचार लोकल अखबार वालों को कुछ देदा कर यहांवहां फोटो खिंचवा अपने को बहुत बड़ा नेता समझने लगे हैं. आज यहां प्रदर्शन, कल वहां धरना. शुरू में तो कई बार लाठीडंडा खा कर आए हैं. लेकिन अब जब से जिला अध्यक्ष बन गए हैं, पार्टी में हैसियत तो बढ़ गई है लेकिन साथ भी तो लफंगों का रहता है, इसलिए गुंडों वाली बातें करते हैं. ‘‘बाहर तो दूसरों के सामने सरजी, सरजी करते रहते हैं, तभी तो छुटभइए जीहुजूरी करते रहते हैं. ऐसे डींगें हांकेंगे जैसे प्रधानमंत्री इन्हीं से पूछ कर हर काम करते हैं. मैं तो इन से परेशान हो गई हूं.’’ नीला को कुछ समझ नहीं आ रहा था कि कैसे रेबा की परेशानी को सुलझाए. मध्य प्रदेश के भिंड में रहने वाला 23 वर्षीय राजन बेरोजगार युवक था. पिता की छोटी सी दुकान में उस का मन न लगता. उसे यहांवहां बैठ कर गपगोष्ठी में आनंद आया करता.

अपने जैसे दोचार दोस्तों के साथ बैठ कर पान मसाला का पाउच मुंह में भर हवाई बातें करा करता. घर में भाई नाराज होता, तो दुकान पर पिता लंबाचौड़ा भाषण पिला देते. उस की दोस्ती संजू से हो गई. वह पार्टी का छुटभइया नेता था. बस, वह भी उस के साथ पार्टी का झंडा उठा कर कार्यकर्ता बन गया. चुनाव के दिन थे. यहांवहां पार्टी के लिए लोगों की भीड़ जुटाना, पोस्टरबैनर लगाना, झंडियां लगाना, नेताजी के आगमन पर सारी व्यवस्थाएं करने के लिए उस जैसे ढेरों लड़कों की जरूरत होती है. इस के एवज में खानापीना, रुपयापैसा और दारू मिलती. अब तो वह व्यस्त भी और मस्त भी हो गया था. धीरेधीरे उस की पहचान बढ़ती गई और वह शहर का जानामाना नेता बन गया. वह यहांवहां दौड़धूप कर लोगों का काम करवा देता. तेज दिमाग तो था ही, सारे गुर सीख लिए थे, कमीशन फिक्स हो जाता. धीरेधीरे वह ठेकेदार बन गया. पिता को उस की नेतागीरी बिलकुल पसंद नहीं आ रही थी.

मां परेशान रहती क्योंकि हर बात पर झूठ बोलता. कोई भी किसी काम के लिए आता, तो कभी ना न करता और ऐसे दिखाता कि जैसे वह उस के काम के लिए जीजान से लगा हुआ है. शहर के नामी पैसे वाले रामेश्वरजी के परिवार के यहां गणेश परिक्रमा करता. उन की पत्नी को बहन बना कर बच्चों के लिए कुछ छोटामोटा उपहार ले कर पहुंच जाता. रामेश्वरजी को सम्मानित करवा कर मानपत्र दिलवा दिया. अस्पताल में फल बांटते हुए फोटो पेपर में प्रकाशित करवा कर उन का खासमखास बन बैठा. अब तो चंदे के नाम पर उस को लोग अपनेआप ही हजारदोहजार रुपए दे देते. वह लच्छेदार बातों से लोगों को अपने विश्वास में ले लेता. साथ में, दादागीरी भी चालू हो गई थी उस की क्योंकि अब वह समझने लगा था कि वह जो चाहे सो कर सकता है, सरकार उस की पार्टी की जो है. लोगों की जमीन पर कब्जा करना, मकान पर कब्जा कर के कागज में हेराफेरी करवा लेना उस के बाएं हाथ का खेल जैसा था. एक दिन वह एक जमीन पर रातोंरात कब्जा कर के वहां बाउंड्री बनवाने लगा था.

गालीगलौज के बाद ईंटपत्थर चल गए. दंगा भड़क गया. पुलिस आ गई. अब वह हाथपैर जोड़ने लगा. लेकिन पुलिस ने एक भी न सुनी. किसी तरह से वह 2 दिनों बाद किसी बड़े नेता के बीचबचाव के चलते छूट पाया था, परंतु अब उस का नेतागीरी का नशा ठंडा पड़ चुका था. सरकार बदल गई थी. अब रोजरोज उस की पुरानी फाइलें खोली जा रही थीं. आजकल माननीयों ने देश में जिस तरह से जातिवाद, क्षेत्रवाद, धनबल, बाहुबल की राजनीति को बढ़ावा दिया है, उस की वजह से राजनीति अपराधियों की शरणस्थली बन गई है. चुनावों में राजनीतिक दल क्षेत्रवाद व जातिवाद के आधार पर प्रत्याशियों का चयन करते हैं. उसी आधार पर जनता उन्हें विजयी भी बना देती है. हमारे माननीयों को विचार करने की आवश्यकता है कि धनबल और बाहुबल से जीत और सत्ता तो मिल सकती है परंतु इतिहास में पहचान बनाने के लिए एक आदर्श स्थापित करना होगा.

आज से ‘स्टार भारत’ पर एक बेटी की संघर्ष यात्रा-‘ तेरी लाड़ली मैं ‘

पितृसत्तात्मक सोच वाले भारतीय समाज की मान्यता है कि पारिवारिक निरंतरता और वंशावली को आगे बढ़ाने के लिए बेटा चाहिए. परिणामत हर भारतीय परिवार में बेटियों की उपेक्षा की जाती है. बेटियां की भ्रूण हत्या होती रहती हैं .जबकि यथार्थ यह है कि किसी भी परिवार को आगे बढ़ाने के लिए नारी का होना अत्यावश्यक है .लोगों को समझना होगा कि बेटियां दुनिया में एक नई इकाई को जन्म देने का कारण हैं. मगर हर लड़की अपने अधिकार की प्राप्ति के लिए संघर्ष कर रही है. इसी संघर्ष की लौ जगाने वाली एक अवांछित मूक बच्ची बिट्टी की कहानी ‘स्टार भारत ‘सीरियल ‘मैं लाड़ली तेरी’ के माध्यम से दिखाने जा रहा है .

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पैनोरमा एंटरटेनमेंट प्राइवेट लिमिटेड निर्मित यह सीरियल आज, 5 जनवरी 2021 से “स्टार भारत ” पर ही रात 8 बजे हर सोमवार से शुक्रवार को प्रसारित होगा. इस सीरियल में बेटी अपने खिलाफ खड़ी हर बाधा से लड़कर अपने पिता की स्वीकृति पाने के लिए जूझती नजर आएगी. इसमें बिट्टी के किरदार में मराठी भाषा की अदाकारा मयूरी कापड़ाने, उनकी मां के किरदार में हेमांगी कवि और पिता के किरदार में पंकज सिंह है. इसके अलावा    नीना चीमा, मेहुल निसार, विवान सिंह राजपूत, अंशु वार्ष्णेय और संगीता पंवार जैसे कलाकार प्रमुख भूमिकाओं में दिखाई देंगे.

‘तेरी लाडली मैं’ एक भावनात्मक कहानी है, जो एक मूक लड़की बिट्टी की कठिन यात्रा को बयां करता है, जिसे उसके जन्म से पहले ही अवांछित करार दे दिया जाता है.बिट्टी सकारात्मकता और उम्मीद का प्रतीक होंगी, जो कभी भी पीछे नहीं हटती और खुद को उस प्यार और विश्वास को हासिल करने के लिए प्रयासरत रखती हैं जो उसके पिता उसके भाई के प्रति दिखाते हैं

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यहसीरियल  भारतीय  मानसिकता को बदलने को लेकर अपना मजबूत संदेश देने लिए प्रयासरत है जहां लोग अभी भी विश्वास करते हैं कि एक परिवार केवल एक बेटे के जन्म के साथ पूरा होता है.

 बहुमुखी अभिनेत्री मयूरी कपाडने कहती हैं-“एक अभिनेत्री के तौर पर, आप सभी शेड्स को निभाना चाहते हैं. यह वास्तव में रोमांचक है जब आप अपने दर्शकों को अपने किसी ख़ास किरदार सेचतकरते हैं.मुझे लगा कि एक अभिनेता के हर  पहलू को देखते हुए यह अच्छा अवसर है.इस भूमिका के जरिए मैं दुनिया के लिए अपनी विश्वसनीयता साबित करना चाहती हूं. मैं इस शो में बिट्टी का किरदार निभा रही हूं.यह एक अवांछित मूक लड़की की कहानी है जो अपने पिता की स्वीकृति के लिए तरसती है. नियमित अभिनेत्री की भूमिका निभाना सभी के लिए आसान है, लेकिन अपने कम्फर्ट ज़ोन से बाहर निकलकर किसी किरदार को निभाना एक चुनौती है. मेरे इश्क दा करो गाना सबसे बड़ी चुनौती है.” 

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वहीं अभिनेत्री हेमांगी कवि कहती हैं- “मैं शो में उर्मिला यानी बिट्टी की माँ का किरदार निभा रही हूं. हर माँ की तरह मेरा किरदार भी अपनी बेटी का समर्थन करता है भले ही लोग उसके खिलाफ हों. मुझे लगता है कि मैं बहुत लकी हूँ जिसे इस तरह की महत्वपूर्ण भूमिका निभाने का अवसर मिला है और मुझे उम्मीद है कि इस शो के जरिए हम इस सामाजिक संदेश को बढ़ावा देने में सफल होंगे कि हर बच्चा अपने आप में ख़ास है चाहे वह लड़की हो या लड़का.”

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अभिनेता पंकज सिंह कहते हैं- ” मैं सुरेंद्र यादव नामक पितृसत्तात्मक पिता की महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा हूँ. वह इस बात का दृढ़ता से विश्वास रखने वाला व्यक्ति हैं कि परिवार में दूसरी लड़की नहीं होनी चाहिए.इस शो का विषय बहुत संवेदनशील और लोगों को जोड़ने वाला है. इस शो के माध्यम से मैं समाज को एक सकारात्मक संदेश देने को लेकर आशान्वित हूँ जो लड़कियों के साथ भेदभाव करते हैं.”

जाह्नवी कपूर ने 23 साल की उम्र में खरीदी करोड़ों की प्रॉपट्री, जानें क्या है कीमत

बॉलीवुड एक्ट्रेस  जाह्नवी कपूर ने हाल ही में मुंबई में अपना एक ना घर खरीदा है. इस खबर के आते ही फैंस जाह्नवी कपूर को बधाई देने शुरू कर दिए है. रिपोर्ट्स के मुताबिक इस घर की कीमत 39 करोड़ रुपय है. जाह्नवी का नया घर मुंबई के जुहू इलाके में स्थित है.

जो एक बिल्डिंग के 3 फ्लोर तक फैला हुआ है. इस घर की डील  जाह्नवी ने 7 दिसंबर को फाइनल की थी. रिपोर्ट्स की माने तो  जाह्नवी ने इस घर के लिए 78 लाख रुपये की स्टाम्प ड्यूटी भी चुकाई है. मौजूदा समय में जाह्नवी अपनी बहन खुशी कपूर और पिता बोनी कपूर के साथ लोखंडवाला में रहती हैं

 

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वह बोनी कपूर और श्री देवी की बेटी हैं. उन्होंने फिल्म धड़क से साल 2018 में डेब्यू किया था. इसके साथ कि जाह्नवी अभी कई नए प्रोजेक्ट्स पर भी काम कर रही हैं. बता दें कि  जाह्नवीकपूर अभr सिर्फ 23 साल की हैं. जाह्वी कपूर ने इतने कम समय में इतना बड़ा  मकाम  हासिल कर लिया है. यह उनके फैंस और फैमिली के लिए बड़ी बात है.

जल्द ही  जाह्नवी कपूर  फिल्म ‘दोस्ताना’ 2 और ‘रूही अफ्जाना’ में नजर आने वाली हैं. जाह्नवी कपूर के अपकमिंग फिल्म को देखने के लिए फैंस अभी से बेताब नजर आ रहे हैं.

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फिलहाल जाह्नवी अपनी फैमली और बहन के साथ ज्यादा वक्त गुजारते नजर आती हैं. वैसे जाह्नवी से पहले आलिया भट्ट और ऋतिक रौशन प्रॉपर्टी खरीदने को लेकर चर्चा में आएं थें. वहीं आलिया भट्ट ने रणबीर कपूर के घर के पास ही अपना नया घर लिया है जिससे वह रणबीर कपूर की पड़ोसन बन गई है.

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खबर है कि आलिया भट्ट और रणबीर कपूर जल्द शादी के बंधन में बंधने वाले हैं कुछ वक्त पहले आलिया रणबीर की फैमली के साथ होली डे मनाते नजर आई थी.

कोरोना गाइडलाइंस तोड़ने पर अरबाज खान, सोहेल खान और निर्वान खान के खिलाफ FIR दर्ज

सोमवार के दिन बॉलीवुड के भाईजान सलमान खान के घर में कुछ ऐसा देखने को मिला जिसे देखकर और जानकर सभी फैंस हैरान है. एक्टर अरबाज खान, सोहेल खान और उनके बेटे निर्वान खान के खिलाफ कोरोना के गाइड लाइन को तोड़ने को लेकर मुंबई पुलिस ने एफआईआर दर्ज किया था.

दरअसल, न्यू ईयर के सेलिब्रेशऩ के बाद अरबाज खान, सोहेल खान औऱ उनके बेटे निर्वान खान दुंबई से सीधे घर आ गए जबकी उन्हें कुछ दिनों तक परिवार वालों से दूर रहकर खुद को कोरेंटाइन रखऩा था. जिसकी जानकारी मिलते ही बीएमसी ने सख्त करवाई करते हुए उनके खिलाफ एफआईआर दर्ज किया है.

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अब खबर आ रही है कि सोहेल, अरबाज और उनके बेटे निर्वान ताज होटल में खुद को कोरेंटाइन कर लिया है. यह होटल बांद्रा पाली हिल के पास स्थित है. यह उनके घर से पास में ही है. उन्हें करीब 7 दिनों तक कोरेंटाइन रखा जाएगा आगे का डेट को बढ़ाया भी जा सकता है . फैसला परिस्थितियों को देखकर लिया जाएगा.

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मालूम हो कि महाराष्ट्र सरकार के गाइड लाइन थी कि कोई भी व्यक्ति अगर बाहर से आ रहा है तो वह सीधे अपने परिवार से नहीं मिलेग पहले वह खुद को कोरेंटाइन करेगा. फिर कुछ दिनों बाद वह किसी से मुलाकात करेगा.

 

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लेकिन इन दिनों ने मुंबई सरकार के नियमों का पालन नहीं किया था. एयरपोर्ट से सीधे घर चले गए. तीनों के खिलाफ धारा 188, 269 के तहत केस दर्ज किया गया था. क्योंकि अरबाज, सोहेल और निर्वान झूठ बोलकर सीधे घर चले गए थें.

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जिससे मुंबई सरकार उनसे गुस्सा होकर उनके घर पर नोटिस भेजवाकर उन्हें कोरेंटाइन करने का आदेश दिया है. वहीं इस विषय पर भाईजान यानि सलमान खान ने अभी तक कोई प्रतिक्रया नहीं दी है.

कर्तव्य पालन-भाग 3 : श्वेता को अवैध संतान क्यों समझते थे रामेंद्र

‘‘नहीं बताऊंगा.’’श्वेता आश्वस्त हो कर घर चली गई और अगले दिन से नियमित काम पर आने लगी. पर रामेंद्र के मन में श्वेता व राजेश को ले कर उधेड़बुन शुरू हो चुकी थी. आखिर राजेश की श्वेता से किस प्रकार की जानपहचान है. श्वेता उस की सिफारिश ले कर नौकरी पाने क्यों आई? उन्होंने श्वेता के घर का संपूर्ण पता व उस की योग्यता के प्रमाणपत्रों की फोटोस्टेट की प्रतियां अपने पास संभाल कर रख लीं. राजेश पूरे दिन फैक्टरी में नहीं आया. शाम को रामेंद्र ने घर पहुंचते ही अलका से उस के बारे में पूछा तो पता लगा कि वह बुखार के कारण पूरे दिन घर में ही पड़ा रहा. वे दनदनाते हुए राजेश के कमरे में दाखिल हो गए, ‘‘कैसी है तबीयत?’’ उन्होंने पूछा.

‘‘जी,’’ अचकचा कर राजेश ने उठते हुए कहा.

‘‘लेटे रहो, स्वास्थ्य का खयाल न रखोगे तो यही होगा. क्या आवश्यकता है देर तक घूमनेफिरने की?’’

‘‘कल एक मित्र के यहां पार्टी थी,’’ राजेश सफाई पेश करने लगा.

‘‘फैक्टरी का काम देखना अधिक आवश्यक है. तुम अपनी इंजीनियरिंग व एमबीए की पढ़ाई पूरी कर चुके

हो. अब तुम्हें अपनी जिम्मेदारियां समझनी चाहिए.’’

‘‘जी, जी.’’

‘‘श्वेता को कब से जानते हो?’’ उन्होंने पूछा.

‘‘जी, काफी अरसे से. वह एक दुखी व निराश्रित लड़की है, इसलिए मैं ने उसे फैक्टरी में नौकरी पाने के लिए भेजा था, पर आप को इस बारे में बताना याद नहीं रहा.’’

‘‘मैं ने उसे नौकरी दे दी है. लड़की परिश्रमी मालूम पड़ती है, पर तुम्हें इस प्रकार के छोटे स्तर के लोगों से मित्रता नहीं रखनी चाहिए.’’

‘‘जी, खयाल रखूंगा.’’

रामेंद्र के उपदेश चालू रहे. कई दिनों बाद आज उन्हें बेटे से बात करने का अवसर मिला था. सो, देर तक उसे जमाने की ऊंचनीच समझाते रहे.तभी त्रिशाला ने पुकारा, ‘‘पिताजी, चाय ठंडी हुई जा रही है. मैं ने नाश्ते में पनीर के पकौड़े बनाए हैं, आप खा कर बताइए कैसे बने हैं?’’ रामेंद्र आ कर चायनाश्ता करने लगे. त्रिशाला बताती रही कि आजकल वह बेकरी का कोर्स कर रही है, फिर दूसरा कोई कोर्स करेगी.

वे पकौड़ों की प्रशंसा करते रहे. अलका काफी देर से खामोश बैठी थी. अवसर मिलते ही उबल पड़ी, ‘‘तुम्हें बीमार बेटे से इस प्रकार के प्रश्न नहीं पूछने चाहिए. श्वेता को सिर्फ वही अकेला नहीं, बल्कि हम सभी जानते हैं. वह त्रिशाला की सखी है, इस नाते घर में आनाजाना होता रहता है. राजेश ने दयावश ही उसे अपनी फैक्टरी में नौकरी पाने हेतु आप के पास भेज दिया होगा.’’

‘‘पर मैं ने भी तो बुरा नहीं कहा. बस, यही कहा कि बच्चों को अपने स्तर के लोगों से ही मित्रता रखनी चाहिए.’’

‘‘बच्चों के मन में, छोटेबड़े का भेदभाव बैठाना उचित नहीं है.’’

‘‘ये दोनों अब बच्चे नहीं रहे, तभी तो कह रहा हूं,’’ रामेंद्र हार मानने को तैयार नहीं थे,  ‘‘देखो अलका, छोटी सी चिनगारी से आग का दरिया उमड़ पड़ता है. युवा बच्चों के कदम फिसलते देर नहीं लगती. तुम राजेश पर नजर रखा करो, उस का श्वेता जैसी लड़कियों के साथ उठनाबैठना उचित नहीं.’’ अलका पति रामेंद्र व इरा की प्रेम कहानी से भली प्रकार वाकिफ थी, इसलिए उस के मन में आया कि कह दे कि राजेश तुम्हारे जैसा नहीं है कि मछुआरिन जैसी लड़की के प्रेमपाश में बंध जाएगा. उस के लिए एक से एक बड़े घरों के रिश्ते आ रहे हैं. तुम्हें तो सिर्फ श्वेता से दोस्ती ही दिखाई दे रही है, उस के बड़े घरों के मित्र क्यों नहीं दिखाई देते? पर वह शांत बनी रही. इरा का नाम लेने से घर में फालतू का क्लेश ही उत्पन्न होता. श्वेता ने जिस खूबी से फैक्टरी का कार्य संभाला, उसे देख रामेंद्र दंग रह गए. श्वेता उन्हें राजेश व त्रिशाला से अधिक समझदार मालूम पड़ने लगी. काम पर आते वक्त अधिकतर महिला श्रमिक अपने साथ बच्चों को ले आती थीं जो इधरउधर घूम कर गंदगी फैलाते व लोगों की डांट खाते रहते थे. इस बाबत श्वेता ने सुझाव दिया, ‘‘क्यों न फैक्टरी के पीछे की खाली पड़ी जमीन पर एक टिनशेड डाल कर इन बच्चों के रहने, सोने, खेलने एवं थोड़ाबहुत पढ़नेलिखने की व्यवस्था कर दी जाए?’’ सुझाव सभी को पसंद आया. तत्काल टिनशेड की व्यवस्था कर दी गई. साथ ही, बच्चों की देखरेख के लिए एक आया व अक्षरज्ञान के लिए एक सेवानिवृत्त वृद्ध अध्यापिका की व्यवस्था कर दी गई. अपने बच्चों को प्रसन्न व साफसुथरा देख कर महिला श्रमिक दोगुने उत्साह से काम करने लगीं व सभी के मन में श्वेता के प्रति सम्मान के भाव उत्पन्न हो गए.

रामेंद्र ने श्वेता के कार्य से संतुष्ट हो कर उस का वेतन बढ़ा दिया, पर हृदय से वे उस को नापसंद ही करते रहे. उन के मन से यह कभी नहीं निकल पाया कि वह एक अवैध संतान है, जिस के पिता का कोई अतापता नहीं है. उन के मन में उस की मां के प्रति भी नफरत के भाव पनपते रहते, जिस ने अपने कुंआरे दामन पर कलंक लगा कर श्वेता को जन्म दिया था. श्वेता ने कई बार उन्हें अपने घर आने का निमंत्रण दिया पर रामेंद्र ने उन लोगों के प्रति पनपी वितृष्णा के कारण वहां जाना स्वीकार नहीं किया. वे श्वेता के मुंह से यह भी सुन चुके थे कि उस का सौतेला शराबी बाप उस की मां को मारतापीटता है, पर फिर भी उन्होंने उस के घर जाना उचित नहीं समझा.

बलात्कार-सिपाही रमेश का कोर्टमार्शल क्यों करवाना चाहती थी सकती थी

मेरी सोच में कर्नल साहब की पत्नी के चरित्र को कलंकित करना ठीक नहीं था लेकिन वहीं सिपाही रमेश का फेवर न कर मैं उस के साथ नाइंसाफी करता. मैं अजीब स्थिति में था.

मैं जब पीटी के लिए ग्राउंड पर पहुंचा तो वहां पीटी न हो कर सभी जवान और अधिकारी एक स्थान पर इकट्ठे खड़े थे. मैं ने सोचा, पीटी के लिए अभी समय है, इसलिए ऐसा है. मैं अपना स्कूटर पार्क कर के हटा ही था कि स्टोरकीपर प्लाटून का प्लाटून हवलदार, सतनाम सिंह मेरे पास भागाभागा आया और बोला, ‘‘सर, गजब हो गया.’’

मैं स्टोरकीपर प्लाटून का प्लाटून कमांडर था, इसलिए उस का इस तरह भाग कर आना मुझे आश्चर्यजनक नहीं लगा. किसी नई घटना की मुझे सूचना देना उस की ड्यूटी में था. मैं ने उस की बात को बड़े हलके से लिया और पूछा, ‘‘क्या हुआ?’’

‘‘सर, जो नया सिपाही रमेश पोस्ंिटग पर आया है न, उस की रात को अफसर मैस में ड्यूटी थी, उस ने कर्नल साहब की वाइफ का बलात्कार कर दिया.’’

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‘‘क्या…क्या बकते हो? वह ऐसा कैसे कर सकता है? इस समय वह कहां है?’’ मैं एकाएक सतनाम सिंह की बात पर विश्वास नहीं कर पाया, इसलिए उस पर प्रश्नों की बौछार कर दी.

‘‘सर, वह क्वार्टरगार्ड (फौजी जेल) में बंद है. प्रशासनिक अफसर, कंपनी कमांडर और दूसरे अधिकारी वहीं पर हैं.’’

प्रेम संबंध

‘‘ठीक है, तुम यहीं रुको, मैं देखता हूं,’’ मैं ने सतनाम सिंह से कहा और सीधा क्वार्टरगार्ड की ओर बढ़ा. मुझे अपनी ओर आते देख कर कंपनी कमांडर साहब मेरी ओर बढ़े. ‘‘साहब, आप की प्लाटून के सिपाही रमेश ने तो गजब कर दिया. कर्नल साहब की वाइफ का रेप कर दिया.’’

‘‘सर, वह ऐसा कैसे कर सकता है. उस की यह हिम्मत? सर, आप ने उस से बात की?’’

‘‘बात करने की कोशिश की थी लेकिन वह कुछ नहीं बता रहा. केवल रोए जा रहा है.’’

‘‘ठीक है, सर. यह किस ने बताया कि उस ने रेप किया है? और कर्नल साहब उस समय कहां थे?’’

‘‘कर्नल साहब की वाइफ ने फोन कर के खुद बताया. ड्यूटी पर खड़े दूसरे गार्ड ने उसे ऐसा करते देखा. कर्नल साहब तो पीटी के लिए आ गए थे.’’

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‘‘हूं, ठीक है, सर मैं देखता हूं, वह क्या कहता है.’’ मैं क्वार्टरगार्ड के पास पहुंचा तो कर्नल साहब दिखाई दिए. उन्होंने मेरी ओर निराशा से देखा, परंतु कहा कुछ नहीं. वे सकते में थे. ऐसी स्थिति में कोई कह भी क्या सकता है.

क्वार्टरगार्ड के जिस कमरे में रमेश बंद था, उस के बाहर प्रशासनिक अफसर, सूबेदार, मेजर और हवलदारमेजर खड़े थे. मुझे देखते ही मेरी ओर लपके. सभी ने एकसाथ कहा, ‘‘देखा साहब, इस लड़के ने क्या किया? ऊपर से रोए जा रहा है. कुछ बता भी नहीं रहा.’’

‘‘कोई बात नहीं, मैं देखता हूं. आप कृपया जरा बाहर चलें. मैं उस से अकेले में बात करना चाहता हूं. मैं समझता हूं, वह इस समय घबराया हुआ है और दबाव में है इसलिए रोए जा रहा है. मैं उस से प्यार से बात करूंगा तो वह अवश्य बताएगा कि वास्तव में हुआ क्या था.’’

‘‘ठीक है साहब, आप देख लें और जो कुछ बताए, हमें बताएं, तब तक मैं कंपनी कमांडर से बोल कर कोर्ट औफ इन्क्वायरी का और्डर करता हूं,’’ यह कह कर प्रशासनिक अफसर बाहर चले गए. उन के पीछे दूसरे अधिकारी भी चले गए. केवल क्वार्टरगार्ड का गार्ड कमांडर खड़ा रहा. मैं ने उसे घूरा, तो वह भी खिसक लिया.

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हाय रे पर्यटन

मैं सिपाही रमेश के पास गया. वहां रखे जग में से एक गिलास पानी ले कर उसे दिया, ‘‘लो, पानी पियो.’’ उस ने मेरे हाथ से पानी ले कर थोड़ा पिया और थोड़े से अपना मुंह धो लिया. मुंह पोंछने के लिए मैं ने उसे अपना रूमाल दिया. उस ने मेरी ओर देखा. मैं ने अनुभव किया, वह पहले से कहीं अधिक स्वस्थ लग रहा था. यही समय है उस से बात करने का. मैं ने कहा, ‘‘देखो रमेश, मैं तुम्हारा प्लाटून कमांडर हूं. तुम मुझे पहचानते हो न?’’ मेरे स्वर में बड़ी आत्मीयता थी. उस ने हां में सिर हिलाया. ‘‘गुड, देखो, जो हुआ सो हुआ. अगर तुम मुझे सच बता दोगे तो मैं वचन देता हूं कि मैं तुम्हें कुछ नहीं होने दूंगा.’’

रमेश की आंखें छलछला आई थीं, ‘‘सर, मैं गरीब आदमी हूं. मेरे वेतन पर पूरे घर का खर्चा चलता है. मुझ से गलती हुई. मुझे बचा लीजिएगा. मेरा पूरा कैरियर बरबाद हो जाएगा, सर. प्लीज, सर.’’ वह फिर रोने लगा.

‘‘तुम चिंता मत करो. तुम मुझे सचसच बताओगे, तभी मैं तुम्हारी मदद कर पाऊंगा.’’

‘‘सर, मुझ से गलती हुई पर मेरा ऐसा करने का कोईर् इरादा नहीं था. कर्नल साहब पीटी के लिए निकले तो मैं रूटीन में उन के क्वार्टर का चक्कर लगाने गया. कमरे की खिड़की खुली हुई थी. अचानक अंदर नजर गईर् तो मेमसाहब को अर्धनग्न अवस्था में देखा. गोरीगोरी सुंदर टांगें आकर्षित करने लगीं. जैसे न्योता दे रही हों कि आ जाओ. और सच मानें, सर मैं रह नहीं पाया. मेमसाहब ने भी कुछ नहीं कहा. उन्होंने भी शोर तब मचाया जब दूसरे गार्ड ने उन्हें ऐसा करते देख लिया. बस इतना ही, साहब.’’ वह फिर सुबकने लगा.

मेरे मन के भीतर एकाएक विचार आया, कहीं मेमसाहब भी तो ऐसा नहीं चाहती थीं, तभी उन्होंने शोर नहीं मचाया. उन्होंने शोर तब मचाया जब दूसरे गार्ड ने उन्हें देख लिया. मुझे किसी भी सम्माननीय नारी के प्रति ऐसा सोचने का अधिकार नहीं था. मेमसाहब के प्रति तो बिलकुल नहीं. वे सब के प्रति स्नेहशील थीं.

‘‘रमेश, तुम्हें इतना भी खयाल नहीं रहा कि मेमसाहब कमांडैंट साहब की वाइफ हैं. सब के लिए सम्मानीय. वे जवानों से कितना स्नेह और प्यार करती हैं. तुम्हें उन के साथ ऐसा कृत करते हुए शर्म नहीं आई. तुम्हारा तो कोर्टमार्शल होना चाहिए. डिसमिस फ्रौम सर्विस.’’

वह कुछ नहीं बोला. सिर्फ पहले की तरह रोता रहा. मैं फिर विचारों में खोने लगा. मानव मतिष्क में कब शैतान घुस आए, कोई भरोसा नहीं. इस में उम्र की कोई सीमा नहीं होती. यह तो युवा और कुंआरा है. ऐसी स्थिति में किसी का मन भी भटक सकता था. इस का भटकना आश्चर्य का विषय नहीं है, चाहे, यह सरासर गलत था. गलत है.

इक जरा हाथ छूटा तेरा, रास्ते ही जुदा हो गये

मैं ने कुछ क्षण सोचा, फिर फैसला कर लिया, ‘‘तुम जानते हो रमेश, कोर्ट औफ इन्क्वायरी चलेगी. तरहतरह के प्रश्न पूछे जाएंगे. अलगअलग ढंग से तुम्हें लताड़ा जाएगा. तुम पर बहुत दबाव होगा. सब से अधिक दबाव मैं डालूंगा. परंतु तुम्हें मेरी बात पर कायम रहना होगा चाहे मैं तुम्हें बाहर ले जा कर थप्पड़ भी मारूं. अब मैं जो कह रहा हूं, उस से तुम मुकरना नहीं.

‘‘मेरी बात ध्यान से सुनो, कहना, कर्नल साहब पीटी पर गए तो मेमसाहब ने मुझे बुलाया और ऐसा करने को कहा. कोई जितना मरजी दबाव डाले, तुम्हें यही कहना है. कोई अधिक जोर दे तो केवल यह जोड़ना है कि मेरी क्या हिम्मत कि मैं एक  कर्नल साहब की वाइफ के साथ ऐसा करूं. बस, इतना ही. एक शब्द भी इधरउधर नहीं. तुम्हें कुछ नहीं होगा.’’

मैं उसे उसी स्थिति में छोड़ कर क्वार्टरगार्ड से बाहर आ गया. मुझे देखते ही प्रशासनिक अफसर और कंपनी कमांडर साहब मेरी ओर आए. दोनों ने एकसाथ पूछा, ‘‘कुछ बताया, साहब?’’

‘‘जी साहब, वह तो उलटापुलटा कह रहा है. कह रहा है, कर्नल साहब के जाने के बाद मेमसाहब ने उसे बुलाया और ऐसा करने को कहा.’’

‘‘क्या? बदमाश है, बकवास करता है. कर्नल साहब की वाइफ ऐसा कैसे कह सकती हैं? क्यों कहेंगी?’’ प्रशासनिक अफसर ने कहा.

‘‘हां सर, झूठ बोल रहा है. कर्नल साहब की वाइफ ऐसा कह ही नहीं सकतीं. उन को मैं ही नहीं, पूरी यूनिट अच्छी तरह जानती है,’’ कंपनी कमांडर ने कहा.

‘‘मैं ने भी उस से यही कहा था. मैं तो उसे थप्पड़ मारने को भी हुआ परंतु वह बारबार यही कहता रहा, भला, उस की क्या हिम्मत कर्नल साहब की वाइफ के साथ ऐसा करे या ऐसा करता.’’

‘‘हूं, कोर्ट औफ इन्क्वायरी में सब पता चल जाएगा,’’ प्रशासनिक अफसर ने कहा और चलने लगे.

‘‘सर, सिपाही रमेश और कर्नल साहब की वाइफ का मैडिकल करवाना आवश्यक है,’’ कंपनी कमांडर ने कहा.

‘‘कर्नल साहब से बात कर के मैं इस का प्रबंध करता हूं,’’ कह कर प्रशासनिक अफसर चले गए. उन के पीछेपीछे कंपनी कमांडर साहब भी. मैं भी वहां से लौट आया.

पिछले एक सप्ताह से सिपाही रमेश के विरुद्ध कोर्ट औफ इन्क्वायरी चल रही है. इस से पहले उस का और कर्नल साहब की वाइफ का मैडिकल हुआ था जिस में बलात्कार साबित हो गया था. इन्क्वायरी के अध्यक्ष मेजर विमल थे. कैप्टन सविता और सूबेदारमेजर विजय सिंह मैंबर थे. प्लाटून कमांडर होने के नाते आज मेरी स्टेटमैंट रिकौर्ड होनी थी. मैं मन ही मन इस के लिए खुद को तैयार करने लगा. मुझे इस बात की सूचना मिल गई थी कि सिपाही रमेश ने वही स्टेटमैंट दी थी जैसा मैं ने कहा था. अधिक जोर देने पर भी उस ने वही बात कही थी जिस के लिए मैं ने उसे हिदायत दी थी. मेरी स्टेटमैंट पर भी बहुतकुछ निर्भर था.

मैं जब कोर्ट औफ इन्क्वायरी के समक्ष पहुंचा तो सभी मेरी प्रतीक्षा कर रहे थे. सुबह के 10 बज चुके थे. मेरे लिए इसी समय पहुंचने का आदेश था. मैं ने मेजर साहब को सैल्यूट किया और निश्चित कुरसी पर बैठ गया. कुछ समय चुप्पी छाई रही. फिर मेजर साहब ने प्रश्न करने शुरू किए.

‘‘आप कब से स्टोरकीपर प्लाटून के प्लाटून कमांडर हैं?’’

‘‘सर, पिछले वर्ष जनवरी से.’’

‘‘आप सिपाही रमेश को कब से जानते हैं?’’

‘‘एक सप्ताह पहले से, जब से वह पोस्ंिटग पर आया है.’’

‘‘आप को पता है, वह कहां से पोस्ंिटग पर आया है?’’

‘‘जी, मैटीरियल मैनजमैंट कालेज, जबलपुर से.’’

‘‘यानी, बिलकुल नया है. स्टोरकीपर की ट्रेनिंग के बाद वह सीधे यहीं आया है?’’

‘‘जी, सर.’’

‘‘आप जवानों के बीच से अफसर बने हैं. आप उन की मानसिकता को बड़ी अच्छी तरह समझते हैं, जानते हैं. क्या आप को लगता है, सिपाही रमेश बलात्कार जैसा अपराध कर सकता है?’’

‘‘मैं जानता हूं, सर सिपाही रमेश मेरे लिए नया है. मैं उसे अधिक नहीं जानता परंतु मैं यह अवश्य जानता हूं कि ट्रेनिंग सैंटरों से आए जवान अधिक अनुशासनप्रिय होते हैं, वे ऐसे अपराध कर ही नहीं सकते.’’

‘‘कहीं ऐसा तो नहीं, रमेश आप की प्लाटून का जवान है, ऐसा कह कर आप उसे बचाना चाहते हैं?’’

‘‘नहीं, सर ऐसा नहीं है. मैं जवान से अफसर बना हूं. मैं 10 वर्षों तक उन के बीच रहा हूं. मैं उन की सोच, उन की मानसिकता को बड़े करीब से जानता हूं. वे बहुत ही गरीब परिवारों से आते हैं. जिन की दालरोटी उन के वेतनों से चलती है. वे ऐसा कैसे कर सकते हैं? उन के लिए तो एक सीनियर सिपाही और लांस नायक एक बहुत बड़ा अफसर है. उन के समक्ष वे सावधान हो कर बात करते हैं. वे ऐसे जवानों के प्रति कोई अपराध की बात नहीं सोचते तो कर्नल साहब के प्रति सोचना तो बहुत दूर की बात है.’’

आठवां फेरा

‘‘अपराध तो हुआ है. मैडिकल रिपोर्ट में बलात्कार साबित हो चुका है. क्या आप को लगता है, इस में कर्नल साहब की वाइफ भी कहीं दोषी हैं? सिपाही रमेश ने भी अपने बयान में कहा है कि उन्होंने उसे बुलाया और ऐसा करने को कहा. आप के ऊपर दिए बयान से भी कहीं न कहीं यह झलकता है कि इस में कर्नल साहब की वाइफ भी दोषी हैं?’’

प्रश्न का उत्तर देना बड़ा कठिन था. किसी को भी भ्रमित कर सकता था. मेजर साहब कहीं न कहीं मेरे मुख से इस के प्रति सुनना चाहते थे, परंतु मैं जानता था, मुझे क्या कहना है. मेरी थोड़ी सी गलती सिपाही रमेश का कोर्टमार्शल करवा सकती थी. मैं ने मन में ठान ली कि मुझे गोलमोल उत्तर देना है.

‘‘सर, मैं ने यह नहीं कहा कि कर्नल साहब की वाइफ दोषी हैं. मुझे नहीं पता, वास्तव में वहां हुआ क्या था. मैं ने तो आप के प्रश्न के उत्तर में जवानों की गरीबी, अनुशासनप्रियता और उन की मानसिकता को आप के समक्ष रखा है और यह कहने की कोशिश की है कि विकट परिस्थितियों में भी ऐसे अपराधों से जवान खुद को दूर रखने का प्रयत्न करते हैं. जम्मूकश्मीर में भी ऐसे कई केसेस आए जिन में जवान बेगुनाह साबित हुए. जहां तक कर्नल साहब की वाइफ का प्रश्न है, वे बहुत ही सम्मानीय नारी हैं. मैं उन को कलंकित होते नहीं देख सकता.’’

पर कहीं न कहीं मेरे मन के भीतर यह प्रश्न भी अपने विकराल रूप में रेंग रहा था कि कर्नल साहब खुद एक चरित्रहीन व्यक्ति हैं, कहीं उन के चरित्र से प्रभावित हो कर मेमसाहब ने ऐसा तो नहीं किया?

विडंबना देखिए, सेना में जहां औरतें पहले उपलब्ध नहीं हुआ करती थीं, अधिकारी अपने जूनियर या सीनियर अधिकारियों की पत्नियों से संबंध बनाने की कोशिश किया करते थे. खुद कई पत्नियां भी इस में पीछे नहीं रहती थीं, परंतु यह सब छिपछिप कर होता था. सेना में अब महिला अफसर आने से यह छिपाव खत्म हो गया है.

महिला अफसर सदा अपने सीनियर अफसरों के प्रभाव में रहती हैं और वे अधिकारी इस का पूरा फायदा उठाते हैं. मैं समझता हूं, शायद कर्नल साहब की चरित्रहीनता ने मेमसाहब को ऐसा करने को प्रेरित किया हो कि वे ऐसा कर सकते हैं तो वह क्यों नहीं. निश्चिय ही इसी का प्रभाव रहा होगा, परंतु मैं अपनी इस सोच को शाब्दिक प्रस्तुत नहीं कर पाया.

मैं चुप हो गया था. मेजर साहब भी सोच में डूब गए. उन को महत्त्वपूर्ण निर्णय करना था. एक तरफ जहां नारी का सम्मान दांव पर था, वहीं एक जवान का भविष्य भी जुड़ा था. थोड़ी सी गलती रमेश का कैरियर बरबाद कर सकती थी.

व्यावहारिक दीपाली

वे निर्णय नहीं कर पा रहे थे. फिर उन्होंने अपनी गरदन को झटका दिया, जैसे किसी निर्णय पर पहुंच गए हों, स्पष्ट कहा, ‘‘पिछले एक सप्ताह से, जब से कोर्ट औफ इनक्वायरी चली है, मैं इसी पर सोचता आ रहा हूं. अपराध तो हुआ है, मैं मानता हूं. मैं यह भी जानता हूं किसी नारी के चरित्र पर बिना देखे लांछन लगाना, उस से बड़ा अपराध है. मैं जवानों की मानसिकता को भी बड़े करीब से जानता हूं. चाहे मैं ने सेना में सीधे कमीशन लिया है. मैं ने दूसरे अफसरों से भी बात की है. वे भी यही कहते हैं. मैं नहीं समझता इस में सिपाही रमेश अधिक दोषी है. यह सहमति सैक्स का मामला बनता है. बनता ही नहीं, बल्कि है.’’

मेजर साहब ने कोर्ट औफ इन्क्वायरी के दूसरे सदस्यों की ओर गहरी नजरों से देखा. वे चुप थे, जिस का मतलब यह भी था कि वे उन की बात से सहमत हैं.

कोर्ट औफ इन्क्वायरी का कंक्ल्यूजन लिख लिया गया जो सिपाही रमेश के फेवर में था. कर्नल साहब को इस का आभास हो गया था कि इन्क्वायरी का कंक्ल्यूजन उन के फेवर में नहीं है.

एक सप्ताह के भीतर ही उन्होंने अपना ट्रांसफर करवा लिया और चले गए. वे बात को आगे नहीं बढ़ाना चाहते थे. अगर आगे बढ़ाते तो जहां उन की बदनामी होती वहीं इंक्वायरी का कंक्ल्यूजन आड़े आता. मुझे सिपाही रमेश को बचा पाने की खुशी थी, वहीं कर्नल साहब की वाइफ के लिए हमदर्दी थी. मैं मन की गहराइयों से इस बात का फैसला नहीं कर पाया कि यह गलत हुआ या सही.

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