Download App

कर्तव्य पालन-भाग 2 : श्वेता को अवैध संतान क्यों समझते थे रामेंद्र

‘मुझे दुलहन बना कर अपने घर कब ले जाओगे?’ इरा पूछती.

‘बहुत जल्दी,’ वे इरा का मन रखने को कह देते, पर अपने घर वालों की कट्टरता भांप कर सोच में पड़ जाते. फिर बात बदल कर गंभीरता से कह उठते, ‘इरा, तुम मछली खाना बंद क्यों नहीं कर देतीं? क्या सब्जियों की कमी है जो इन मासूम प्राणियों का भक्षण करती रहती हो?’

यह सुन वह हंस पड़ती, ‘सभी बंगाली खाते हैं.’

‘पर हमारे घर में मांसाहार वर्जित है.’

‘पहले शादी तो करो. मैं मछली खाना बंद कर दूंगी.’ एक दिन ननिहाल वालों ने उन की चोरी पकड़ कर उन्हें खूब डांटाफटकारा. इरा को भी काफी जलील किया गया. घबरा कर वे प्यारव्यार भूल कर ननिहाल से भाग आए. मामामामी ने उन के मातापिता को पत्र लिख कर संपूर्ण वस्तुस्थिति से अवगत करा दिया. पत्र पढ़ते ही घर में तूफान जैसी स्थिति उत्पन्न हो गई. मां ने रोरो कर आंखें लाल कर लीं. पिताजी क्रोध से भर कर दहाड़ उठे, ‘वह गंवई गांव की मछुआरिन क्या हमारे घर की बहू बनने के लायक है? आइंदा वहां गए तो तुम्हारी टांगें तोड़ कर रख दूंगा.’ उस के बाद पिताजी जबरदस्ती उन्हें अपनी फैक्टरी में ले जा कर काम में लगाने लगे. उधर, मां ने उन के रिश्ते की बात शुरू कर दी. एक दिन टूटीफूटी लिखावट में इरा का पत्र मिला. लिखा था, ‘मैं तुम्हारे बच्चे की मां बनने वाली हूं…आ कर ले जाओ.’ वे तड़प उठे व मातापिता की निगाहों से छिप कर नानी के गांव जा पहुंचे, पर उन के वहां पहुंचने से पूर्व ही इरा के घर वाले उसे ले कर कहीं लापता हो चुके थे. घर पर ताला लगा देख उन्होंने लोगों से पूछताछ की तो पता लगा कि अविवाहित बेटी के गर्भवती होने की बदनामी के डर से उन्होंने हमेशा के लिए गांव छोड़ दिया. वे पागलों की भांति इधरउधर भटक कर उस की तलाश करने लगे परंतु कहीं कुछ पता न चला. उधर, उन के मातापिता ने जबरदस्ती उन का विवाह बिरादरी की एक लड़की अलका के साथ संपन्न कर दिया. तभी अलका ने करवट बदली. बिस्तर हिलने से इरा की तसवीर फिसल कर फिर से नीचे जा गिरी. ‘‘सोए नहीं अभी तक?’’ अलका आंखें खोल कर असमंजस से पूछने लगी, ‘‘तुम अभी तक राजेश की चिंता में जाग रहे हो? क्या वह आया नहीं अभी तक?’’ अलका चिंतित हो उठ कर बैठ गई.

‘‘वह आ चुका है और कमरे में सो रहा है.’’‘‘तुम भी सो जाओ, नहीं तो बीमार पड़ जाओगे,’’ अलका ने कहा और फिर अलमारी खोल कर नींद की एक गोली ला कर उन्हें थमा दी.

पानी के साथ गोली निगल कर वे सोने की कोशिश करने लगे. अलका कहती रही, ‘‘जब बाप के पैर का जूता बेटे के पैरों में सही बैठने लगे तो बाप को बेटे के कार्यों में मीनमेख न निकाल कर, उसे मित्रवत समझाना चाहिए.’’ पर रामेंद्र का ध्यान कहीं और अटका हुआ था. सुबह बिस्तर से उठ कर वे स्नान, नाश्ते से निबट कर फैक्टरी जाने हेतु कार की तरफ बढ़े तो पाया कि राजेश अभी भी सो रहा है. अलका ने कहा कि वह राजेश को फैक्टरी भेज देगी, ताकि उस को जिम्मेदारी निभाने की आदत पड़ जाए. रामेंद्र जैसे ही फैक्टरी के दफ्तर में प्रविष्ट हुए तो वहां पहले से उपस्थित एक अनजान लड़की को बैठा देख कर चकित रह गए.

लड़की ने उठ कर उन्हें नमस्ते किया.

‘‘कौन हो तुम? क्या चाहती हो?’’ वे रूखेपन से बोले.

‘‘मेरा नाम श्वेता है. नौकरी पाने की उम्मीद ले कर आई हूं.’’

‘‘हमारे यहां कोई रिक्त स्थान नहीं है. तुम जा सकती हो,’’ कह कर वे अंदर जा कर काम देखने लगे. कुछ देर बाद जब वे किसी कार्यवश बाहर निकले तो लड़की को उसी अवस्था में बैठी देख कर हतप्रभ रह गए, ‘‘तुम गईं नहीं?’’ उन्होंने पूछा.

‘‘मुझे राजेश ने भेजा है.’’

‘‘तुम उसे कैसे जानती हो?’’

‘‘मैं आप की बेटी त्रिशाला की सहेली हूं,’’ कहतेकहते श्वेता का स्वर आर्द्र हो उठा, ‘‘मैं अपने सौतेले बाप व सौतेले भाइयों से बेहद परेशान हूं. आप मुझे नौकरी दे कर मुझ पर बहुत बड़ा एहसान करेंगे. मैं व मेरी मां दोनों भूखों मरने से बच जाएंगी.’’

‘‘सौतेला बाप,’’ उन के मन में जिज्ञासा पनपी.

श्वेता ने कुछ झिझक के साथ कहा, ‘‘मेरी मां ने प्रेमी से धोखा खाने के पश्चात 2 बेटों के बाप, विधुर डेविड से शादी की थी. मैं मां के प्रेमी की निशानी हूं.’’

छि:छि:…रामेंद्र का मन घिन से भर उठा. कहीं अवैध संतान भी किसी की सगी होती है. जी चाहा अभी इस लड़की को धक्के दे कर फैक्टरी से बाहर निकाल दें पर श्वेता के चेहरे की दयनीयता देख उन की कठोरता बर्फ की भांति पिघल गई. उस का सूखा चेहरा बता रहा था कि उस ने कई दिनों से पेटभर कर भोजन नहीं किया है. सहानुभूतिवश उन्होंने श्वेता को थोड़े वेतन पर महिला श्रमिकों की देखरेख पर रख लिया. श्वेता उन के समक्ष नतमस्तक हो उठी व कुछ संकोच के साथ बोली, ‘‘सर, अपने बारे में मैं ने जो कुछ आप को बताया है उसे अपने तक ही सीमित रखें. राजेश व त्रिशाला को भी न बताएं.’’

भाई जब पार्टी झंडा धारी बन जाये‘

आजकल जनसभाओं के लिये भीड़ इकट्ठी करने की होड़ के कारण अनेक युवाओं को पार्टी का झंडा उठा कर सक्रिय सदस्य बनना फायदे का सौदा प्रतीत हो रहा है . यही वजह है पार्टी का सदस्य बनने से समाज में लोगों के सामने उसकी हनक बढती है और पैसे के जुगाड़ का भी जरिया बन जाता है .

पैसे से इकट्ठा हुई भीड़ को न तो नेता से कोई सरोकार होता है और न ही भीड़ को नेता से …. शायद य़ही वजह है कि अब नेता मंच से कार्यकर्ताओं को संबोधित करने की जगह विपक्षी दलों पर हमलावर हो कर भाषा की मर्यादा भी भूल जाया करते हैं .

ये भी पढ़ें- 5 राज्य चुनाव: राम, वाम या काम

गुंडे बदमाशों को नकारने वाला समाज आज इन्हें अपने सिर आंखों पर बिठा रहा है . पहले अपराधी को लोग हुक्का पानी बंद करके समाज से बहिष्कृत कर  उसे समाज से अलग कर देते थे . रिश्तेदार रिश्ता खत्म कर लेते थे परंतु अब उसका उलट हो गया है . घर वालों के साथ साथ जघन्य अपराधियो को संरक्षण देने के लिये राजनीति बाहें फैलाये स्वागत् करने को तैयार रहती है .

सच्चाई  तो यह है कि अपराधी राजनीति के संरक्षण में फलता फूलता है . छोटे मोटे जुर्म में कानून से बचने के लिये ऐसे लोगों को पहले नेताओं का संरक्षण प्राप्त होता है और देखते ही देखते वह जनप्रतिनिधि बन जाते हैं .

ये भी पढ़ें- तीरथ सिंह बने मुख्यमंत्री, ‘अपना पत्ता’ किया फिट

35 वर्षीय  नकुल एक दिन दोस्ती निभाने के चक्कर में एक पार्टी के विरोध प्रदर्शन में शामिल हुआ , वहां पर लाठी चली और वह पुलिस के हत्थे पड़ गया … वहां के सभासद के बीच बचाव करने की वजह से वह छूट गया  लेकिन लोगों ने उसे माला पहनाकर  अपने कंधे पर बिठा कर जुलूस निकाला …बस अब तो उसे नेता बनने का चस्का लग गया था.

गले में माला पहन कर  जब घर पहुंचा तो सबसे पहले  अपनेमां बाप और बीबी बच्चों को समझा दिया कि यदि भविष्य में मलाई खाना है और लाल बत्ती का सुख उठाना है तो थोड़ी तकलीफ तो उठानी ही पड़ेगी .घर खर्चे की कभी फिक्र रही नहीं क्योंकि पिता का बड़ा शो रूम था और काफी प्रापर्टी थी , जिसका किराया आया करता था . अब तो उसे अपनी नेतागिरी चमकानी थी . सबसे पहले लड़कों के खेलने के लिये पार्क में बॉलीवाल कोर्ट बनवा दिया . अब तो लड़के उसके आगे पीछे घूमते . मोहल्ले के  किसी लड़के के साथ कोई बात हो जाये या किसी लड़की या महिला के साथ कोई ऊंची आवाज में बात कर ले  या फिर किसी रेहड़ी वाले को कोई परेशान कर रहा है , बस अपने लड़कों की फौज के साथ पहुंच जाता .

पार्षद जसवंत सिंह  को उसके कामों की खबर लग गई बस उन्होंने सलाह दी कि यदि नेता बनना है तो  सबसे पहले अपनी नेटवर्किंग मजबूत करो ….  शर्मा अंकल ने गाड़ी खरीदी , उन्हें लाइसेंस बनवाना था . नकुल जी बड़े कॉन्फिडेंस से बोले  ,आप किसी को भेज दीजिये …. बड़े बाबू अपने आदमी हैं … आपका काम हो जायेगा ….एक मिठाई का डब्बा लेते जाइयेगा . मिठाई के डब्बे और सही कागजात के कारण काम हो गया लेकिन क्रेडिट नकुल जी को मिल गया .

ये भी पढ़ें- इंटरनैट शटडाउन: विरोधों को रोकने का जरिया

अब तो लोग उनके घर पर चक्कर काटने लगे थे . एक रात में वह गहरी नींद में थे तभी रात के दो बजे किसी को एम्बुलेंस की जरूरत थी …. वह तुरंत पैरों में चप्पल पहन कर चल दिये थे . बुखार में तपती हुई पत्नी को उसके हाल पर छोड़ वह एक दो तीन  हो चुके थे . घर वाले उनकी इन हरकतों से परेशान हो गये थे.अब  वह अपने को कुछ स्पेशल समझने लगा था .घर में घुसते ही वह वी. आई. पी. ट्रीटमेंट चाहता था . अपने को महाराजा से कम नहीं समझता … किसी घरेलू कामों  से कोई  मतलब नहीं रखता लेकिन चीखने चिल्लाने में जरा देर नहीं लगती . बातें लंबी लंबी करता ….. पत्नी के बोलते ही लड़ाई झगड़ा शुरू कर देता … कभी कभी तो हाथ भी उठाने को तैयार हो जाता …कान पर फोन चिपका रहता या फिर जुबान पर लफंगों वाली गालियां निकलने लगती . घर के कामों से लापरवाह… ऐसे शो करता मानो उसी के इशारे पर दुनिया चलती है . जब तब दो चार लड़कों को लेकर आता और सबको चाय नाश्ता तो कभी खाना खिलाने के लिये कहता . देर रात में आता लेकिन कभी फोन करने की जरूरत  नहीं समझता .

26 वर्षीय नरेश स्वभाव से मस्तमौला था . स्कूल के समय से डिबेट में अच्छा बोलता था . सत्तारूढ दल के पार्षद के साथ दोस्ती हो गई . पार्टी के लोगों से जान पहचान हो गई थी . उसके भाषण की कला के कारण पार्टी मे उसकी हैसियत हो गई थी.छोटे मोटे कामों के लिये पार्षद अश्विनी बाबू का नाम ही काफी होता था बड़े कामों के लिये अश्विनी बाबू थे ही , बस जल्दी ही वह उनका दाहिना हाथ बन गया था . उन्हें   कामकाज करवाने के तौर तरीके  की अच्छी तरह जानकारी  हो गई .. घर पर काम करवाने वालों की भीड़ इकट्ठी होने लगी थी .

ये भी पढ़ें- दिल्ली किस की बिल की या दिल की?

अब घर पर भी उनकी हनक बढ गई थी . जिस  नरेश की घर में कोई इज्जत नहीं थी  अब वह कमाऊ सपूत बन गया  . सभासद का चुनाव वह आसानी से जीत गया था और विधायक जी तक उनकी पहुंच हो गई थी .अब सब तरफ से उन पर लक्ष्मी बरसने लगी थी . कलफदार कुर्ते पायजामें के आवरण में  वह हर कानूनी गैर कानूनी धंधे में उनकी लालच बढती जा रही थी . जो पापा उन्हें चार बातें सुनाया करते थे अब वह उन्हें दस बातें सुना दिया करता . बात बात में डींगें हांकना  . गालियां उनकी जुबान से बेसाख्ता निकलने लगी थी . उंगलियों में रंग बिरंगी अंगूठियों की संख्या बढती जा रही थी . अब वह बड़े बड़े सपने देखने लगा था . घर में अब उसकी तूती बोलने लगी थी आखिर कार उसे अब विधायक जो बनना  था .

रेबा नीला की बचपन की सहेली थी . इन दिनों वह बहुत दुखी और परे शान सी रहती थी .“क्या बात है रेबा … परेशान दिख रही हो ?’’ “अब तुमसे क्या छिपाऊं…. जब से नेता बन गये हैं ….घर के कामों के लिये तमाम छुटभइये हैं . वह तो कभी यहां मीटिंग तो कभी वहां …. कभी दिल्ली तो कभी लखनऊ … चुनाव के दिनों में तो न दिन  का पता न रात का …. पहले कभी शराब को छूते नहीं थे …अब रोज रात को बोतल खाली करे बिना सोते नहीं .. बस पैसा.. पैसा…  न मेरे लिये न बच्चों के लिये  उनके पास समय ही नहीं होता  … कोई रागिनी मैडम हैं .. उनके यहां हाजिरी लगाना जरूरी है  … मुझे तो लगता है कि बात बात पर झूठ बोलने लगे हैं . सुबह सुबह ही लोगों की भीड़ जमा हो जाती है  …. घर में घुसे नहीं कि फोन की घंटी बजती रहती है  . अपने को जाने क्या समझने लगे हैं …. घमंड के मारे सीधे मुंह बात भी नहीं करते हैं ….

दो चार लोकल अखवार वालों को कुछ दे दा कर  यहां वहां फोटो खिंचवाकर अपने को बहुत बड़ा नेता समझने लगे हैं . आज यहां प्रदर्शन , कल वहां धरना … शुरू में तो कई बार लाठी डंडा खाकर चोट भी खाकर आये हैं लेकिन अब जब से जिला अध्यक्ष बन गये हैं पार्टी में हैसियत तो बढ गई है लेकिन साथ  भी तो लफंगों का रहता है , इसलिये गुंडों वाली बातें करते हैं .

ये भी पढ़ें- अरविंद का रामराज्य

बाहर तो दूसरों के सामन सर जी … सर जी करते रहते हैं तभी तो छुटभइये जी हुजूरी करते रहते हैं . ऐसे डींगें हांकेंगें जैसे प्रधानमंत्री इन्हीं से पूछ कर हर काम करते हैं . मैं तो इनसे परेशान हो गई हूं . नीला को कुछ समझ नहीं आ रहा था कि कैसे रेबा की परेशानी को सुलझाये ….

मध्यप्रदेश के भिंड में रहने वाला 23 वर्षीय राजन बेरोजगार युवक था . पिता की छोटी सी दुकान में उसका मन नहीं लगता . उसे यहां वहां बैठ कर गप्प गोष्ठी में बहुत आनंद आया करता  . उसके जैसे 2- 4 दोस्तों के साथ बैठ कर पान मसाला का पाउच मुंह में भर कर हवाई बातें करा करते …..

घर में भाई नाराज होता तो ,दुकान पर पिता  लंबा चौड़ा भाषण पिला देते … उसकी दोस्ती संजू से हो गई , वह पार्टी का छुटभइया नेता था  … बस वह भी उसके साथ पार्टी का झंडा उठा कर कार्यकर्ता बन गया . चुनाव के दिन थे … यहां वहां पार्टी के लिये लोगों की भीड़ जुटाना ….. पोस्टर बैनर लगाना , झंडियां लगाना … नेता जी के आगमन पर सारी व्यवस्थाएँ  बनाने के लिये उस जैसे ढेरों लड़कों की जरूरत होती , उसके एवज में खाना पीना , रुपया पैसा और दारू  … अब तो वह व्यस्त भी और मस्त भी ….

धीरे धीरे उसकी पहचान बढती गई और वह शहर में जाना माना नेता बन गया  ….. वह यहां वहां दौड़ धूप कर लोगों का काम करवा देता …. तेज दिमाग तो था ही …. सारे गुर सीख लिये थे …कमीशन फिक्स  हो जाता   … धीरे धीरे वह ठेकेदार बन गया .पिता को उसकी नेतागिरी बिल्कुल पसंद नही आ रही थी . मां परेशान रहती क्यों कि हर बात पर झूठ बोलता … कोई भी किसी काम के लिये आता तो ना कभी न करता और ऐसे दिखाता कि वह उसके काम के लिये जी जान से लगा हुआ है . शहर के नामी पैसे वाले रामेश्वर जी के परिवार  के यहां गणेश परिक्रमा  करता उनकी पत्नी को बहन बना कर  बच्चों के लिये कुछ छोटा मोटा उपहार लेकर पहुंच जाता .

रामेश्वर जी को सम्मानित करके मानपत्र दिलवा दिया , अस्पताल में फल बांटते हुये फोटो पेपर में प्रकाशित करवा के उनका खासमखास बन बैठा और  अब तो चंदे के नाम पर उसको लोग अपने आप ही हजार दो हजार दे देते . वह लच्छेदार बातों से लोगों को अपने विश्वास में ले लेता .

साथ में दादागिरी भी चालू हो गई थी क्योंकि अब वह समझने लगा था कि वह जो चाहे  सो कर सकता है क्योंकि सरकार उनकी है … लोगों की जमीन पर कब्जा करना , मकान पर कब्जा करके कागज में इधर उधर करवा लेना …. एक दिन एक जमीन पर रातों रात कब्जा करके वहां बाउंड्री बनवाने लगा  था … गाली गलौज के बाद के ईंट पत्थर चल गये …दंगा भड़क गया …. पुलिस आ गई , अब वह हाथ पैर जोड़ने लगा लेकिन पुलिस ने एक भी न सुनी . किसी तरह  से वह दो दिन बाद किसी बड़े नेता के बीच बचाव के बाद छूट पाया था  परंतु अब उसका नेतागिरी का नशा ठंडा पड़ चुका था .

सरकार बदल गई थी अब रोज रोज उसकी पुरानी फाइलें खोली जा रही थी .आजकल माननीयों ने देश में जिस तरह से जातिवाद , क्षेत्रवाद , धनबल, बाहुबल  की राजनीति को बढावा दिया है  , इसी कारण से राजनीति अपराधियों की शरणस्थली बन गई है . आजकल चुनावों में राजनीतिक दल क्षेत्रवाद और जातिवाद के आधार पर अपने प्रत्याशियों का चयन करते हैं … इसी आधार पर जनता उन्हें विजयी भी बना देती है .

हमारे माननीयों को विचार करने की आवश्यकता है कि धनबल और बाहुबल से जीत और सत्ता तो मिल सकती है , परंतु इतिहास में पहचान बनाने के लिये एक आदर्श स्थापित करना होगा .

 

आखिर क्यों तांत्रिकों और बाबाओं के चक्कर में फंसती हैं महिलाएं

सूचना और संचार क्रांति के आधुनिक युग में भी हमारी सोच में कोई बदलाव नहीं आया है. यही बजह है कि हमारे देश में लोग लोग अक्सर ही टोना  टोटका और चमत्कारों के पीछे भागते हैं. अंधविश्वास और चमत्कारों के चक्कर में सबसे ज्यादा महिलाएं आ जाती हैं. गांव, कस्बों से लेकर  शहरों तक की महिलाएं ढोंगी बाबाओं ,संत , महात्माओं की काली करतूतों का शिकार हो ही जाती हैं.जीवन में आने वाली समस्याओं को सही सोच और समझ से हल न कर पाने के कारण ही महिलाएं धर्म और उनके ठेकेदारों के फैलाए जाल में फंस जाती है.

एक ऐसा ही बाकया जबलपुर शहर की पढ़ी लिखी महिला के साथ घटित हुआ है.जबलपुर के गढ़ा पुरवा में भद्रकाली दरबार के  बाबा संजय उपाध्याय के परचे पूरे जबलपुर शहर में बांटे जाते थे.  परचे में छपे विज्ञापन में दावा किया गया था कि केवल दरबार में एक नारियल चढ़ाकर सभी प्रकार की समस्याओं का समाधान किया जाता है.संजय बाबा के इसी गलत प्रचार प्रसार के झांसे में जबलपुर शहर की 52 साल की एक महिला अनीता( परिवर्तित नाम) भी आ जाती है. पीड़ित महिला का अपने पति से अलगाव चल रहा है ,जिसकी वजह से वह मानसिक रूप से परेशान रहती थी.बाबा द्वारा किए जा रहे प्रचार-प्रसार में आकर वह गत वर्ष नवंबर 2019 में भद्रकाली दरबार पहुंची थी. दरबार के पंडा संजय उपाध्याय ने उसे  बताया कि पूजा-पाठ एवं मंत्र जाप करने से तुम्हारा पति तुम्हारे वश में हो जाएगा और तुम्हारा दाम्पत्य जीवन फिर से सुखमय हो जाएगा. हैरान परेशान अनीता को तांत्रिक संजय बाबा ने अपने झांसे में ले लिया.

ये भी पढ़ें- वृद्धाश्रमों में बढ़ रही बुर्जुगों की तादाद

संजय बाबा के द्वारा बताए गए दिन जब सुनीता मंदिर पहुंची तो पूजापाठ के बहाने संजय महाराज उसे दरबार के नीचे बने एक यैसे कमरे में ले गया, जो एकांत में होने के साथ आलीशान सुख सुविधाओं से सजा हुआ था. संजय बाबा ने पूजा पाठ के पहले उसे  जल पीने के लिए दिया. जल में कुछ नशीला पदार्थ मिला हुआ था, जिस कारण वह बेहोशी की हालत में चली गई.उसी दौरान संजय बाबा ने उसके साथ दुराचार कर  मोबाइल से वीडियो भी बना लिया.  इस घटना के बाद बाबा अनीता को वीडियो दिखाकर ब्लेक मेल करने लगा. इसके बाद तो बाबा का जब मन  होता वह अनीता को वीडियो वायरल करने की धमकी देते हुए उसे अपने पास बुला लेता . संजय बाबा द्वारा कई बार उसका शारीरिक शोषण किया गया.  बाबा के दुराचार से परेशान होकर वह गुमसुम रहने लगी . परिवार के लोगों ने जब उससे कारण पूछा तो अनीता ने रो धोकर अपने साथ हुए दुर्व्यवहार की पूरी कहानी  बता दी.

अनीता के परिवार के लोगों ने  उसे हिम्मत बंधाते हुए   22 जुलाई 2020 की रात को जबलपुर के कोतवाली पुलिस थाने ले जाकर पूरी कहानी बताई और उसके साथ संजय  बाबा द्वारा किए गए दुराचार की रिपोर्ट दर्ज करा दी . पीड़ित महिला की  रिपोर्ट पर पुलिस ने सक्रियता से जब मामले की जांच की तो संजय उपाध्याय की काली करतूतें सामने आ गयीं.बाबाओं     एवं तांत्रिकों के चक्कर में फँसकर अपनी इज्जत एवं पैसे गँवाने की इस घटना में भद्रकाली दरबार के हाईप्रोफाइल तांत्रिक पर महिला के रेप व ब्लैकमेलिंग का मामला दर्ज कर लिया. शातिर बाबा को गिरफ्तार करने पुलिस ने  आरोपी संजय उपाध्याय को नाटकीय अंदाज में थाने का वास्तु दिखाने एवं शिकायत की जाँच के बहाने पुलिस थाने बुलाकर गिरफ्तार कर लिया  .

ये भी पढ़ें- धर्म और राजनीति के वार, रिश्ते तार तार

बाबा लेता था हर माह 20 हजार रुपए

जबलपुर के कोतवाली थाना प्रभारी अनिल गुप्ता ने जानकारी दी है कि करीब 52 साल की महिला का अपने पति से अनबन होने से वह मायके में रह रही थी.परेशान महिला जब भद्रकाली मंदिर के संजय उपाध्याय के पास एक नारियल लेकर पहुँची तो बाबा ने तांत्रिक क्रिया के नाम पर उसे नशीला पदार्थ पिलाया और जब वह बेहोश हो गई तो उसकी बेहोशी का फायदा उठाकर उसके साथ रेप किया. इसके बाद महिला का वीडियो बनाकर ब्लैकमेल एवं उसका दैहिक शोषण करने लगा. पिछले काफी दिनों से ब्लेकमेलिंग का यह सिलसिला चल रहा था और तांत्रिक संजय उपाध्याय महिला से हर माह उसके पति को वीडियो भेजने की धमकी देकर 20 हजार रुपये रखवा लेता था . परेशान महिला को वह अपने दरबार में काम के लिए भी घंटों बैठाए रखता था.

विजय नगर क्षेत्र की रहने वाली महिला से जुड़ी एक और युवती से भी इसी तरह की घटना की शिकायत भी  तसदीक पुलिस कर रही है.तांत्रिक के खिलाफ पहले भी कई महिलाओं ने शिकायतें की थीं तथा वीडियो भी वायरल हुए थे. इसके बाद भी तांत्रिक अपनी हरकतों से बाज नहीं आ रहा था. एक युवती के माता-पिता ने तो संजय उपाध्याय पर लिखित में भी गंभीर आरोप लगाये थे. लेकिन हर बार वह अपने सम्पर्कों का सहारा लेकर बच जाता था.

ये भी पढ़ें- सोशल मीडिया: डिजिटल माध्यमों के लिए केंद्र सरकार के दिशा निर्देश

आखिर क्यों जाल में फंस जाती महिलाएं

ढोंगी बाबाओं और पंडे पुजारियों द्वारा लोगों के साथ ठगी और महिलाओं के साथ यौनाचार की आए दिन होने वाली ये घटनाएं बताती हैं कि महिलाएं इनसे कोई सबक नहीं ले‌ रहीं हैं. आखिर महिलाएं क्यों इनके झांसे में आ जाती हैं. आशाराम बापू,राम रहीम और संत रामपाल जैसे धर्म गुरुओं ने कितनी महिलाओं की इज्जत को तार तार किया है. समाज में आज भी यैसे बाबाओं,पीर, फकीरों की कमी नहीं है जो रोगों के इलाज के नाम पर तो कहीं महिलाओं की सूनी गोद भरने के नाम पर महिलाओं को बहला फुसलाकर अपनी हवस मिटाते हैं.

आखिर महिलाओं को यह बात समझ क्यों नहीं आती कि औलाद होने के लिए पति-पत्नी के बीच स्वस्थ सेक्स संबंधों का होना जरूरी है. औलाद न होने पर डाक्टरी सलाह लेकर पति-पत्नी अपनी जांच करवाकर अपनी यौन दुर्बलता को दूर कर संतान सुख प्राप्त कर सकते हैं. औलाद किसी बाबा,संत महात्माओं के चमत्कारी प्रभाव से उत्पन्न नहीं होती.

ये भी पढ़ें- लेडीज टौयलेट की कमी क्यों?

महिलाओं को इस बात पर विचार करना चाहिए कि पति को प्यार और विश्वास से मनाकर उसके दिल पर राज किया जा सकता है. एक तरफ महिलाएं बाबाओं और तांत्रिकों को अपना सब कुछ समर्पित करने तैयार हो जाती है, परन्तु पति और उसके परिवार की खुशियों के लिए अपने अहम को सर्वोपरि मान कर पति की बात मानने तैयार नहीं होती . इसी तरह शारीरिक और मानसिक परेशानियों  का इलाज भी डाक्टरी सलाह और दबाइयों से किया जा सकता है. महिलाओं को सोच समझकर निर्णय लेकर ऐसे ढोंगी बाबाओं के चक्कर में फंसने से बचना होगा.

किसान जेपी सिंह ने विकसित की बीजों की सैकड़ों प्रजातियां

जज्बा होता है कुछ करगुजरने का, यों ही नहीं लोग मिसाल बनते हैं यह शेर एक ऐसे किसान पर सही बैठता है, जिस ने कृषि के क्षेत्र में मिसाल कायम की है. 10वीं क्लास तक पढ़े बनारस के किसान जय प्रकाश सिंह ने बीजों की सैकड़ों तरह की उन्नत किस्मों की प्रजातियां विकसित की हैं.

प्रगतिशील किसान जय प्रकाश सिंह के बेटे सुभाष सिंह ने बताया कि उन के पिता 10वीं क्लास में फेल हो गए, तो उन्हें लगा कि अब क्या किया जाए? तब उन्होंने फैसला किया कि किसान हूं तो क्यों न किसानी में हाथ आजमाऊं, कुछ नया करूं. यही सोच कर उन्होंने बुजुर्गों का आशीर्वाद लिया और लग गए बीजों को विकसित करने के काम में. जय प्रकाश सिंह ने बताया कि उन्होंने अब तक गेहूं की 120 प्रजातियां, अरहर की 60 और धान की लगभग सैकड़ों प्रजातियां ढूंढ़ निकाली हैं.

ये भी पढ़ें- जैविक गुड़ से मुनाफा

राष्ट्रपति के हाथों 2 बार सम्मानित किसान जय प्रकाश सिंह बनारसइलाहाबाद रोड पर स्थित राजा तालाब के पास टडियां गांव के रहने वाले हैं. उन के पास कोई कृषि डिगरी नहीं होते हुए भी वे एक तरह से किसान वैज्ञानिक बन गए हैं. उन्हें कई राज्य सरकारों ने भी सम्मानित किया है. उन्होंने बीज चुनने का काम पारंपरिक तरीके से किया. इस काम में उन के बुजुर्गों का तजरबा भी काम आया. इस समय किसानों की आय दोगुनी करने वाली सरकार द्वारा बनाई गई 37 सदस्यों की कमेटी के एक सदस्य जेपी सिंह ने बताया कि वे उत्तर प्रदेश के बीज प्रमाणीकरण बोर्ड में शोध सलाहकार के तौर पर भी काम कर चुके हैं. अरहर की किस्में अरहर की 60 किस्मों में से एमपी 09 किस्म अरहर बीज को एक बार बो देने से अगले 2-3 साल तक उस से अरहर और जानवरों के लिए चारा मिल सकता है. 1 एकड़ के लिए 2 किलोग्राम बीज लगता है और अधिक उत्पादन मिलता है.

15 फुट तक बढ़ने वाली इस बहुवर्षीय अरहर से किसानों को बहुत ही लाभ पहुंच रहा है. सूखाग्रस्त और कम बारिश वाले इलाकों में यह अरहर किसानों के लिए वरदान साबित हुई है. अरहर की यह किस्म 280 दिन में तैयार हो जाती है. इस की कच्ची फली बेच कर भी किसान अच्छा पैसा कमा सकते हैं. 65 दिन वाली मूंग जय प्रकाश सिंह ने 6 किलोग्राम बीज से 65 दिन में तैयार होने वाली मूंग की प्रजाति खोज निकाली है. यह बैसाखी मूंग गरमी के मौसम में किसानों के लिए बहुत ही फायदेमंद साबित हुई है. इस से पैदावार भी अधिक मिल रही है. जिस किसान के पास गरमी के मौसम में एक या 2 सिंचाई देने की व्यवस्था है, उस के लिए मूंग का यह बीज बहुत ही कारगर सिद्ध हुआ है.

ये भी पढ़ें- दुधारू पशुओं में गर्भनिदान जांच की अहमियत

गेहूं की प्रजातियां गेहूं की प्रजातियों में जेपी-168, जेपी-151, जेपी-161, जेपी-8661 बहुत ही कारगर सिद्ध हुई हैं. इन से किसानों की उपज और आमदनी भी बढ़ी है. धान की प्रजातियां किसान जय प्रकाश सिंह ने धान की तकरीबन 480 प्रजातियां खोज निकाली हैं, जिन पर संशोधन कर किसानों के लिए उन्नति का रास्ता मजबूत किया है. इस से लाखों किसान अपने खेतों में पैदावार बढ़ा रहे हैं. खेती को लाभदायक बनाने के लिए किस तरह से उन्नतशील बीजों का इस्तेमाल कर के पैदावार बढ़ाई जा सकती है, इस की उन से जानकारी ली जा सकती है. जय प्रकाश सिंह का कहना है कि उन के द्वारा संशोधित किए हुए गेहूं, धान, अरहर के बीज को लैब में टैस्ट कीजिए, खेत में लगाइए और नतीजा देखिए.

ये भी पढ़ें- सेहत के लिए घातक रासायनिक कीटनाशक

उन के संशोधित गेहूं के बीज में सामान्य गेहूं से 12 फीसदी अधिक आयरन पाया गया है. सही माने में जय प्रकाश सिंह किसानों को आत्मनिर्भर बनाना चाहते हैं. एक बार बीज लगा कर खुद के बीज का इस्तेमाल खुद ही कर के हर साल बीज के होने वाले बहुत बड़े खर्चे से किसान बच भी सकते हैं और बीजों के बारे में आत्मनिर्भर बन सकते हैं. अधिक जानकारी के लिए किसान जय प्रकाश सिंह से उन के मोबाइल फोन नंबर 9450047855, 6394451006 पर बात कर सकते हैं या उन के ईमेल पर संपर्क कर सकते हैं :

कर्तव्य पालन-भाग 1 : श्वेता को अवैध संतान क्यों समझते थे रामेंद्र

भोजन की मेज पर राजेश को न पा कर रामेंद्र विचलित हो उठे, बेमन से रोटी का कौर तोड़ कर बोले, ‘‘आज फिर राजेश ने आने में देरी कर दी.’’

‘‘मित्रों में देरी हो ही जाती है. आप चिंता मत कीजिए,’’ अलका ने सब्जी का डोंगा उन की तरफ बढ़ाते हुए कहा.

‘‘राजेश का रात गए तक बाहर रुकना उचित नहीं है. 10 बज चुके हैं.’’

‘‘मैं क्या कर सकती हूं. मैं ने थोड़े ही उसे बाहर रुकने को कहा है,’’ अलका समझाने लगी.

‘‘तुम्हीं ने उस की हर मांग पूरी कर के उसे सिर चढ़ा रखा है. आवश्यकता से अधिक लाड़प्यार ठीक नहीं होता.’’

क्रोध से भर कर अलका कोई कड़वा उत्तर देने जा रही थी, पर तभी यह सोच कर चुप रही कि रामेंद्र से उलझना व उन पर क्रोध प्रकट करना बुद्धिमानी नहीं है. नाहक ही पतिपत्नी की मामूली सी तकरार बढ़ कर बतंगड़ बन जाएगी. फिर हफ्तेभर के लिए बोलचाल बंद हो जाना मामूली सी बात है. मन को संयत कर के वह पति को समझाने लगी, ‘‘राजेश बुरे रास्ते पर जाने वाला लड़का नहीं है, आप अकारण ही उसे संदेह की नजर से देखने लगे हैं.’’ रामेंद्र ने थोड़ा सा खा कर ही हाथ खींच लिया. अलका भी उठ कर खड़ी हो गई. त्रिशाला का मन क्षुब्ध हो उठा. आज उस ने अपने हाथों से सब्जियां बना कर सजाई थीं, सोचा था कि मातापिता दोनों की राय लेगी कि उस की बनाई सब्जियां नौकर से अधिक स्वादिष्ठ बनी हैं या नहीं. पर दोनों की नोकझोंक में खाने का स्वाद ही खराब हो गया. वह भी उठ कर खड़ी हो गई.

नौकर ने 3 प्याले कौफी बना कर तीनों के हाथों में थमा दी. परंतु रामेंद्र बगैर कौफी पिए ही अपने शयनकक्ष में चले गए और बिस्तर पर पड़ गए. बिस्तर पर पड़ेपड़े वे सोचने लगे कि अलका का व्यवहार दिनप्रतिदिन उन की तरफ से रूखा क्यों होता जा रहा है? वह पति के बजाय बेटे को अहमियत देती रहती है. रातरात भर घर से गायब रहने वाला बेटा उसे शरीफ लगता है. वह सोचती क्यों नहीं कि बड़े घर का इकलौता लड़का सभी की नजरों में खटकता है. लोग उसे बहका कर गलत रास्ते पर डाल सकते हैं. कुछ क्षण के उपरांत अलका भी शयनकक्ष में दाखिल हो गई. फिर गुसलखाने में जा कर रोज की तरह साड़ी बदल कर ढीलाढाला रेशमी गाउन पहन कर पलंग पर आ लेटी.

रामेंद्र ने निर्विकार भाव से करवट बदली. बच्चों के प्रति अलका की लापरवाही उन्हें कचोटती रहती थी कि ब्यूटीपार्लरों में 4-4 घंटे बिता कर अपने ढलते रूपयौवन के प्रति सजग रहने वाली अलका आखिर राजेश की तरफ ध्यान क्यों नहीं देती? अलका के शरीर से उठ रही इत्र की तेज खुशबू भी उन के मन की चिंता दूर नहीं कर पाई. वे दरवाजे की तरफ कान लगाए राजेश के आगमन की प्रतीक्षा करते हुए बारबार दीवारघड़ी की ओर देखने लगे. डेढ़ बज के आसपास बाहर लगी घंटी की टनटनाहट गूंजी तो रामेंद्र अलका को गहरी नींद सोई देख कर खुद ही दरवाजा खोलने के उद्देश्य से बाहर निकले, पर उन के पहुंचने के पूर्व ही त्रिशाला दरवाजा खोल चुकी थी. राजेश उन्हें देख कर पहले कुछ ठिठका, फिर सफाई पेश करता हुआ बोला, ‘‘माफ करना पिताजी, फिल्म देखने व मित्रों के साथ भोजन करने में समय का कुछ खयाल ही नहीं रहा.’’ बेटे को खूब जीभर कर खरीखोटी सुनाने की उन की इच्छा उन के मन में ही रह गई क्योंकि राजेश ने शीघ्रता से अपने कमरे में दाखिल हो कर दरवाजा अंदर से बंद कर लिया था.

उस के स्वर की हड़बड़ाहट से वे समझ चुके थे कि राजेश शराब पी कर घर लौटा है. सिर्फ शराब ही क्या, कल को वह जुआ भी खेल सकता है, कालगर्ल का उपयोग भी कर सकता है. मित्रों के इशारे पर पिता की कठिन परिश्रम की कमाई उड़ाने में भी उसे संकोच नहीं होगा. उद्विग्नतावश उन्हें नींद नहीं आ रही थी. बारबार करवटें बदल रहे थे. फिर मन बहलाने के खयाल से उन्होंने किताबों के रैक में से एक किताब निकाल कर तेज रोशनी का बल्ब जला कर उस के पृष्ठ पलटने शुरू कर दिए. तभी किताब में से निकल कर कुछ नीचे गिरा. उन्होंने झुक कर उठाया तो देखा, वह इरा की तसवीर थी, जो न मालूम कब उन्होंने पुस्तक में रख छोड़ी थी. तसवीर पर नजर पड़ते ही पुरानी स्मृतियां सजीव हो उठीं. वे एकटक उस को निहारते रह गए. ऐसा लगा जैसे व्यंग्य से वह हंस रही हो कि यही है तुम्हारी सुखद गृहस्थ पत्नी, बेटा. कोई भी तुम्हारे कहने में नहीं है. तुम किसी से संतुष्ट नहीं हो. क्या यही सब पाने के लिए तुम ने मेरा परित्याग किया था… लगा, इरा अपनी मनपसंद हरी साड़ी में लिपटी उन के सिरहाने आ कर बैठ गई हो व मुसकरा कर उन्हें निहार रही हो. कल्पनालोक में गोते लगाते हुए वे उस की घनी स्याह रेशमी केशराशि को सहलाते हुए भर्राए कंठ से कह उठे, ‘सबकुछ अपनी पसंद का तो नहीं होता, इरा. मैं तुम्हें हृदय की गहराइयों से चाहता था, पर…’

इरा अचानक हंस पड़ी, फिर रोने लगी, ‘तुम झूठे हो, तुम ने मुझे अपनाना ही कहां चाहा था.’ उन की आंखों की कोरों से भी अश्रु फूट पड़े, ‘इरा, तुम मेरी मजबूरी नहीं समझ पाओगी.’ दरअसल, रामेंद्र अपनी पढ़ाई समाप्त कर के छुट्टियां बिताने अपने ननिहाल कलकत्ता के नजदीक एक गांव में गए. एक दिन जब वे नहर में नहाने गए तो वहां कपड़े धोती हुई सांवली रंगत की बड़ीबड़ी आंखों वाली इरा को ठगे से घूरते रह गए. वह उन की नानी के घर के बराबर में ही रहती थी. दोनों घरों में आनाजाना होने के कारण रामेंद्र को उस से बात करने में कोई मुश्किल पेश नहीं आई. सभी गांव वालों का नहानाधोना नहर पर होने के कारण वहां मेले जैसा दृश्य उपस्थित रहता था. वे अपने हमउम्र साथियों के साथ वहीं मौजूद रहते थे, इधरउधर घूम कर प्राकृतिक सौंदर्य का आनंद लूटते रहते. इरा नहर में कपड़े धो कर जब उन्हें आसपास के झाड़झंकार पर सूखने के लिए डालने आती तो वहां पर पहले से मौजूद रामेंद्र चुपके से उस की तसवीरें खींच लेते. कैमरे की चमक से चकित इरा उन की तरफ घूरती तो वे मुंह फेर कर इधरउधर ताकने लगते. इरा के आकर्षण में डूबे वे जब बारबार नानी के गांव आने लगे तो सब के कान खड़े हो गए. लोग उन दोनों पर नजर रखने लगे, पर दुनिया वालों से अनजान वे दोनों प्रेमालाप में डूबे रहते.

कर्तव्य पालन-भाग 5 : श्वेता को अवैध संतान क्यों समझते थे रामेंद्र

उधर, वे इस वक्त श्वेता को भी निकालने के लिए तैयार नहीं थे. कारण कि उस ने जिस खूबी से काम संभाला था वह हर किसी के वश का नहीं था. वे सोचने लगे कि हो सकता है राजेश व श्वेता के प्रति मैं भारी गलतफहमी का शिकार होऊं, अलका सही कह रही हो. अगले दिन उन्होंने अवसर पाते ही श्वेता के मन को टटोलना शुरू कर दिया, ‘‘तुम शादी क्यों नहीं कर लेतीं? तुम्हारी आयु की लड़कियां कभी का घर बसा चुकी हैं.’’ श्वेता के चेहरे पर भांतिभांति के भाव तैर उठे. वह आवेश से भर कर बोली, ‘‘अपनी मां की दुर्दशा देख कर भी क्या मैं विवाह के बारे में सोच सकती हूं? आप मर्द हैं, नारी मन को क्या समझ पाएंगे. मेरी मां ने अपने प्रेमी से धोखा खा कर किस प्रकार से मुझे जीवित रखा, पढ़ालिखा कर अपने पैरों पर खड़ा किया. इतनी लंबी जीवनयात्रा में किस प्रकार वे आधा पेट खा कर रहीं, समाज से कितनी अधिक मानसिक प्रताड़ना सहन कीं, उन के अतिरिक्त कौन समझ सकता है. मुझे नफरत है उस पुरुष से जो मेरी मां को मौत के कगार पर छोड़ गया. उसे पिता मानने को मैं कतई तैयार नहीं हूं,’’ यह कहने के साथ श्वेता की आंखें बरस पड़ीं. वह फिर बोली, ‘‘और वह मेरा सौतेला बाप, कितना घिनौना इंसान है, शराब पी कर मेरी व मेरी मां की जानवरों की भांति पिटाई करता है. क्या वह बाप कहलाने के योग्य है? मुझे नफरत हो चुकी है मर्द जाति से.’’

‘‘सभी मर्द एकजैसे नहीं होते. मैं व राजेश क्या ऐसे हैं?’’

‘‘आप मालिक हैं. आप की दी नौकरी से हमारा गुजारा चल रहा है. मैं आप के बारे में क्या कह सकती हूं.’’‘‘राजेश के बारे में तो कह सकती हो?’’

‘‘वह आयु में मुझ से छोटा है. बात, व्यवहार में बिलकुल लापरवाह. बच्चों जैसा भोला मालूम पड़ता है. उस के बारे में मैं क्या कह सकती हूं. मालिक तो वह भी है. आप दोनों की बदौलत ही हमें दो वक्त की रोटी मिलने लगी है.’’ श्वेता के उत्तर से रामेंद्र संतुष्ट नहीं हुए. वे उसे डांट कर स्पष्ट कह देना चाहते थे कि वह राजेश से बात करना बिलकुल बंद कर दे पर कह नहीं पाए. फिर आकस्मिक रूप से श्वेता 2 दिन तक काम पर नहीं आई तो वे चिंतित हो उठे. तीसरे दिन उस के घर जानकारी हेतु किसी को भेजना ही चाहते थे कि वह आ कर खड़ी हो गई. उस के चेहरे पर खरोंचों के निशान व सूजन थी. हाथपैरों में भी चोटों के निशान थे. ‘‘यह क्या हाल बना रखा है?’’ वे पूछ बैठे. फैक्टरी के कर्मचारी भी आ कर कारण जानने हेतु उत्सुक हो उठे थे. श्वेता ने रोरो कर बताया कि उस के सौतेले बाप व भाइयों ने मारमार कर बुरा हाल कर दिया. वे नहीं चाहते कि मैं अपने वेतन में से कुछ रुपए भी मां के इलाज पर खर्च करूं. मां बीमार रहती हैं व सरकारी अस्पताल की दवा से कुछ फायदा नहीं होता. वे लोग मेरा पूरा वेतन खुद हड़पना चाहते हैं.

‘‘तुम खुद स्वावलंबी हो, उस घर को छोड़ क्यों नहीं देतीं?’’

‘‘मैं यही कहने आप के पास आई हूं कि आप हम दोनों मांबेटी को यहां टिनशेड के नीचे रहने की इजाजत दे दें.’’

मैनेजर ने भी श्वेता की बात का समर्थन किया कि यहां काफी जगह खाली पड़ी है, मांबेटी आराम से गुजरबसर कर लेंगी. रात में सुरक्षा की दृष्टि से पहरेदार रहते ही हैं. रामेंद्र सोच में पड़ गए कि फैक्टरी के नियम सभी कर्मचारियों पर समानरूप से लागू होते हैं. यदि आज श्वेता को जगह दी तो कल अन्य महिला श्रमिक भी जगह मांगने लग जाएंगी. इसलिए उन्होंने इस की इजाजत नहीं दी. उन्होंने कहा कि शहर में किराए के मकानों की कमी तो नहीं है. सो, उन्होंने श्वेता को मकान खोजने हेतु 2 दिनों का अवकाश प्रदान कर दिया. श्वेता के प्रति उन की असहनीय कठोरता पर अलका कई दिन तक व्यग्र बनी रही व उन्हें सुनाती रही कि पता नहीं, उस लड़की में तुम ने कौन सी बुराइयां देख ली हैं, जो उस के प्रति सीमा से अधिक निर्दयी बनते जा रहे हो. यदि उसे घर के पिछवाड़े का सर्वेंट क्वार्टर ही दे देते, तब भी मांबेटी चैन से रह लेतीं. पूरी दुनिया में उन का हमारे अतिरिक्त और कोई दूसरा सहारा भी तो नहीं है. पर रामेंद्र पत्थर बने रहे. फैक्टरी के कर्मचारियों पर फालतू की दया दिखाना उन्होंने सीखा नहीं था. उधर, श्वेता ने 2 दिन की छुट्टी में किराए का मकान ले कर उस में अपना सामान जमा कर लिया. तीसरे दिन से फिर से उस का नौकरी पर आना शुरू हो गया.  वह रामेंद्र से कहती रहती, ‘‘मां आप की बेहद कृतज्ञ हैं. वे आप से मिलना चाहती हैं.’’ रामेंद्र टाल जाते. सोचते, खामखां इन साधारण लोगों को मुंह लगाने से क्या लाभ.

2 हफ्ते पश्चात श्वेता फिर से गंभीर रहने लगी तो रामेंद्र ने उस से कारण पूछा तो वह बोली, ‘‘वे लोग नहीं चाहते कि हम अलग घर में चैन से जीएं,’’ उस का आशय अपने सौतेले बाप व भाइयों से था.

‘‘क्यों?’’

‘‘उन्हें मेरा वेतन चाहिए.’’

‘‘यह तो घोर अन्याय है. वे इंसान हैं या हैवान.’’

अपने प्रति पहली बार रामेंद्र की सहानुभूति पा कर श्वेता की आंखें बरस पड़ीं, ‘‘सर, आप ही कुछ कीजिए न, आप जा कर कुछ सख्ती दिखाएंगे तो वे लोग दोबारा सिर नहीं उठा पाएंगे.’’

‘‘ठीक है, मैं प्रयास करूंगा,’’ रामेंद्र ने आश्वासन दे दिया पर गए नहीं.

एक दिन राजेश ने उन्हें उन की बात याद दिलाई, ‘‘पिताजी, आप को श्वेता के बाप, भाई को सबक सिखाने जाना था.’’

उन की भवों पर बल पड़ गए, ‘‘तुम्हें मतलब?’’

पर राजेश उन की भावभंगिमा से विचलित नहीं हुआ. उसी स्वर में बोला, ‘‘आप कहें तो मैं जा कर उन लोगों को हड़का आऊं?’’

‘‘नहीं, तुम इस मामले में मत पड़ो.’’

‘‘तो कौन पड़ेगा? आप को तो उस की चिंता ही नहीं है,’’ राजेश तैश में भर गया.

‘‘ठीक है, मैं देखूंगा,’’ उन्होंने उस को शांत करने को कह दिया पर गए नहीं.

तीसरे दिन श्वेता फिर देर से आई और आते ही गंभीरता से बोली, ‘‘मुझे आप से अति आवश्यक बातें करनी हैं, सर.’’

‘‘बोलो.’’

‘‘आप मेरे पिता समान हैं, इसलिए आप मुझे उचित सलाह ही देंगे. मैं ने एक निर्णय लिया है.’’

‘‘कैसा?’’

‘‘मैं विवाह कर रही हूं.’’

रामेंद्र चौंके, ‘‘यह अकस्मात बदलाव कैसे आया? तुम्हें तो मर्दों से नफरत थी?’’

‘‘मेरा मन बदल गया है. मां भी बारबार कहती हैं कि सभी मर्द एकजैसे नहीं होते. हम अकेली, असहाय औरतों को वे लोग चैन से जीने नहीं देंगे. सो, सुरक्षा की दृष्टि से एक मर्द तो होना ही चाहिए.’’

‘‘तो कौन है वह?’’

‘‘वह लाखों में एक है. उस से विवाह कर के मुझे वह सभी हासिल हो सकेगा जिस की चाहत प्रत्येक लड़की को होती है. घर, सम्मान, पैसा, जीवन की सभी सुखसुविधाएं. फिर मुझे आप की नौकरी करने की आवश्यकता भी नहीं रहेगी.’’

‘‘पर वह है कौन?’’ वे व्यग्र हो उठे.

 

उस ने झिझक के साथ कहा, ‘‘वह हमारे ही मोहल्ले का है. दीपक नाम है.’’

यह सुनते ही मानो रामेंद्र के सिर से बहुत बड़ा बोझ उतर गया हो. वे राहत की सांस ले कर बोले, ‘‘ठीक है, तुम शादी तय करो, हम अवश्य आएंगे.’’

‘‘सर, आप को एक वादा करना पड़ेगा, तभी मैं शादी कर पाऊंगी.’’

‘‘कौन सा वादा?’’

‘‘आप को मेरा कन्यादान करना होगा,’’ श्वेता की आंखें भर आईं.

रामेंद्र का मन भी भर आया, बोले, ‘‘तुम चिंता मत करो. जब तुम ने मुझे पिता बनाया है तो मैं अवश्य कन्यादान करूंगा.’’

‘‘धन्यवाद, सर.’’

‘‘सर-वर नहीं, पिताजी कह कर पुकारो.’’

‘‘पिताजी…’’

‘‘अब तुम घर जा कर शादी की तैयारियां करो. वेतन कटने की चिंता मत करना. अब तुम हमारी कर्मचारी नहीं, बेटी हो,’’ रामेंद्र मुसकराए.

फिर खुद गाड़ी निकाल कर श्वेता को उस के घर छोड़ने चले गए. उस की मां से खूब बातचीत कर व खाना खा कर लौटे.

अलका, त्रिशाला, राजेश सभी उन के बदले व्यवहार से चकित थे. अलका ने इस का कारण पूछा तो रामेंद्र हंसते हुए बोले, ‘‘मैं उसे इस घर की बहू बनाने के विरुद्ध था, बेटी बनाने के लिए नहीं. मैं उसे बेटी बना कर बहुत खुश हूं. बड़ी बुद्धिमान, परिश्रमी बेटी है वह.’’ फिर उन्होंने खूब धूमधाम से श्वेता व दीपक का विवाह संपन्न कराया. कन्यादान करते वक्त उन्हें लग रहा था, जैसे वे इरा व अपनी अवैध संतान के प्रति समाज के डर से मुक्त हो कर कर्तव्य का पालन कर रहे हों. उन के मन में इरा व अपनी संतान को खोज कर उन्हें सुख पहुंचाने की कामना और अधिक बलवती हो उठी थी. वे श्वेता का अंजाम देख चुके थे. क्या मालूम इरा भी अपनी संतान सहित इसी प्रकार के कष्ट भोग रही हो.

 

कर्तव्य पालन-भाग 4 : श्वेता को अवैध संतान क्यों समझते थे रामेंद्र

ऐसे निम्नश्रेणी के लोगों के पचड़े में पड़ना उन्हें कतई स्वीकार नहीं था. एक दिन अलका व त्रिशाला घूमने के उद्देश्य से फैक्टरी में आईं तो श्वेता को घर आने का निमंत्रण दे गईं. छुट्टी के दिन कुछ संकोच के साथ श्वेता घर आई व औपचारिक बातचीत के पश्चात तुरंत जाने को उद्यत हुई मगर त्रिशाला ने जिद कर के उसे रोक लिया व उस के सामने मेज पर चाय के प्याले व भांतिभांति का नाश्ता लगा दिया. रामेंद्र मन मसोस कर देखते रहे कि घर के लोग किस प्रकार विशिष्ट अतिथि की भांति श्वेता को खिलापिला रहे हैं.

फिर तीनों लौन में जा कर बैडमिंटन खेलने लगे. श्वेता के लंबेलंबे हाथों में तैरता रैकेट हवा में उड़ता नजर आ रहा था. वह कभी राजेश के साथ तो कभी त्रिशाला के साथ देर तक खेलती रही. फिर राजेश रात हो जाने के कारण श्वेता को छोड़ने उस के साथ चला गया. उस के जाते ही रामेंद्र पत्नी पर बरस पड़े, ‘‘फैक्टरी की साधारण सी नौकर को घर में बुला कर आवश्यकता से अधिक मानसम्मान करना क्या उचित है?’’

‘‘वह त्रिशाला के साथ पढ़ी हुई, उस की सहेली भी तो है.’’

‘‘इस वक्त वह हमारी नौकर है. उस के साथ नौकरों जैसा ही व्यवहार करना चाहिए.’’

‘‘ठीक है, मैं त्रिशाला को समझा दूंगी.’’

‘‘इसी वक्त समझाओ. बुलाओ उसे,’’ रामेंद्र क्रोध से सुलग रहे थे.

अलका ने कमरे में आराम कर रही त्रिशाला को आवाज दे कर बुलाया. जब वह कमरे में आई तो रामेंद्र अलका के कहने से पूर्व ही उसे डांटने लगे कि उस ने श्वेता से फालतू की मित्रता क्यों कर रखी है. आइंदा कभी उस से बात करने की आवश्यकता नहीं है.

त्रिशाला ने सहम कर कहा, ‘‘ठीक है, मैं आगे से श्वेता से दूर रहूंगी.’’ राजेश वापस लौटा तो रामेंद्र ने उसे भी डांटा कि वह श्वेता को कार से छोड़ने क्यों गया? उस के लिए किराए का आटोरिकशा क्यों नहीं कर दिया.

जब सिर उठा कर राजेश ने अपनी गलती की माफी मांगी तभी रामेंद्र संतुष्ट हो पाए. पर शयनकक्ष में अलका ने उन्हें आड़े हाथों लिया, ‘‘यह तुम्हारे अंदर ऊंचनीच का भेदभाव कब से पनप उठा? तुम्हारी फैक्टरी की गाडि़यां भी तो श्रमिकों को लाने, ले जाने का काम करती हैं. कई बार तुम ने गाडि़यों से महिला श्रमिकों को उन के घर व अस्पताल पहुंचाया है.’’ कोई उत्तर न दे कर रामेंद्र विचारों के भंवरजाल में डूबतेउतराते रहे कि अलका कहां समझ पाएगी कि श्वेता में व अन्य महिला श्रमिकों में जमीनआसमान का अंतर है. श्वेता खूबसूरत है, उच्च शिक्षित है. उस में राजेश जैसे लड़कों को अपनी तरफ आकर्षित करने की क्षमता है. राजेश फैक्टरी में आने लगा, यह देख कर रामेंद्र संतुष्ट हुए कि वह काम में रुचि लेने लगा है. पर जब उन्होंने उसे चोरीछिपे श्वेता से बातें करते देखा तो उन का माथा ठनक गया. उन्हें दाल में काला नजर आया. वे शुरू से अब तक की कडि़यां जोड़ने लगे तो उन्हें ये सब राजेश की गहरी चाल नजर आई.

उन्हें लगा, वह फैक्टरी में श्वेता के कारण ही आता है. जरूर दोनों में गहरा प्यार है, जिसे दोनों अभी प्रकट नहीं करना चाहते. वक्त आने पर अवश्य प्रकट करेंगे. कहीं दोनों छिप कर ‘कोर्ट मैरिज’ न कर लें. कहीं ऐसा तो नहीं, श्वेता ही राजेश को अपने रूपजाल में फंसा रही हो. कोठी, कार, दौलत का लालच कम तो नहीं होता. मन का संदेह उन्होंने अलका के सामने प्रकट किया तो वह बिगड़ उठी, ‘‘अपनी युवावस्था में तुम जैसे रहे हो, बेटे को भी वैसा ही समझते हो. पता नहीं क्यों तुम्हारे मन में इकलौते बेटे के प्रति बुराइयां पनपती रहती हैं? तुम उसे गलत समझते हो, जबकि वह श्वेता को बहन के अतिरिक्त और कुछ नहीं समझता. तुम ऐसा करो कि श्वेता को नौकरी से ही निकाल दो. न रहेगा बांस, न बजेगी बांसुरी,’’ कह कर वह मुंह फेर कर सो गई.

अलका के व्यवहार से रामेंद्र के मन को भारी ठेस लगी. यदि उन्होंने इरा से प्यार कर के गलती की तो क्या बेटे को भी वही गलती करने की छूट दे दें? मन रोंआसा हो कर फिर से इरा के इर्दगिर्द जा पहुंचा. वे फिर विचारों में खो गए कि पता नहीं कहां होगी इरा. उस की कोख में पलने वाले उन के खून का क्या हुआ. क्या मालूम जीवित भी है या नहीं. यदि राजेश फैक्टरी की जिम्मेदारी संभाल ले तो वे एक बार फिर से उस की खोज करने जाएंगे. अपने बच्चे का पता करेंगे. हो सका तो उसे अपनाने का प्रयास भी करेंगे ताकि इरा के मन से उन के प्रति वर्षों का जमा मैल निकल जाए. उस के सारे दुख, लांछन, सुख में बदल जाएं. वे उस वक्त अपने मातापिता व समाज से डरने वाले कायर युवक थे, पर अब एक जिम्मेदार पुरुष हैं. लाखों के मालिक हैं. इरा को अलग से एक मकान में रख कर उस का संपूर्ण खर्चा उठा सकते हैं अपने पुराने विचारों से निकल कर वे सोचने लगे कि राजेश अब विवाहयोग्य हो चुका है, उस का विवाह कर देना ही उचित रहेगा. पत्नी आ कर उस पर अंकुश रखेगी तो वह सही रास्ते पर आ जाएगा.

संतोष सिवन की फ़िल्म ‘मुम्बईकर’ का पोस्टर हुआ वायरल

2021 फ़िल्म इंडस्ट्री के लिए एक नया उत्साह और नयी ऊर्जा लेकर आया है. कम से कम फिल्म इंडस्ट्री से जुड़े सभी लोग इस बात को दिखलाते हुए नए उत्साह व जोश के साथ अपने-अपने काम में जुट गए हैं.नये साल के ख़ास मौके पर एस. एस. राजामौली और करण जौहर ने फ़िल्म ‘मुम्बईकर’ का पहला पोस्टर लॉन्च किया. मुम्बई में रहनेवाले लोगों के जज़्बे को सलाम करती फ़िल्म ‘मुम्बईकर’ एक एक्शन प्रधान रोमांचक फिल्म है.
फिल्म ‘ मुंबईकर’ के निर्माताओं का दावा है कि ‘स्लमडॉग मिलेनियर’ और ‘गली बॉय’ के बाद यह फ़िल्म एक ऐसी फ़िल्म साबित होगी ,जो मुम्बई में रहनेवाले विभिन्न तरह के किरदारों के अंतर-संबंधों और उनकी जटिलताओं को प्रभावी ढंग से पेश करेगी. इस फ़िल्म के ज़रिए लोगों के आपसी रिश्तों के काले-उजले दोनों पक्षों को रेखांकित किया जायेगा.
ये भी पढ़ें-सना खान के पति ने शेयर की शादी की अनदेखी तस्वीर , पत्नी के लिए लिखा ये
 
देश के एक प्रबुद्ध निर्देशक के तौर पर अपनी पहचान रखनेवाले और अलहदा किस्म‌ की फ़िल्में बनाने के लिए जाने-जानेवाले संतोष सिवन मूलतः मशहूर सिनेमाटोग्राफ़र हैं. ऐसे में उम्मीद की जा सकती है की उनकी पैनी नज़र से मुम्बई की विविधता बेहद असरकारक तरीके से लोगों के सामने आएगी.
 
अपनी फ़िल्म के पोस्टर लॉन्च के ख़ास मौके पर संतोष सिवन ने कहा, “हर शहर का अपना एक अलग जज़्बा होता है .मुम्बई  शहर भी अपने अनूठे किस्म के जज़्बे के लिए देशभर में जाना जाता है.मुम्बई में एक तरह का चुम्बकीय आकर्षण है, जो देशभर के सभी धर्मों और क्षेत्रों को लोगों को अपनी ओर खींचता है. लोगों के लिए यह शहर सपनों, उम्मीदों का शहर है. इस शहर की चकाचौंध कइयों के लिए जादुई एहसास से कम नहीं होती है.
ये भी पढ़ें-अमिताभ बच्चन की नातिन से शादी करना चाहते हैं मिजान जाफरी , रिलेशन के बारे में खुलकर की बात
यहां एक अजनबी भी आपकी ज़िंदगी को बदल सकता है. शहर के कंक्रीटनुमा जंगल में दिलों की धड़कनें भी सुनाई देती हैं, जो लोगों के दिलों पर मरहम की तरह काम करती हैं. मुम्बई भले ही एक महानगर हो, लेकिन मुम्बईकर यह शब्द किसी जज़्बात से कम नहीं है. यही वजह है कि हमने फ़िल्म का शीर्षक ‘मुम्बईकर’ रखा  है.  हम इस फिल्म उन प्रतिभाशाली कलाकारों को शामिल करेंगे, इस फ़िल्म को एक नयी ऊंचाई प्रदान करेगी.जी हां ! “इस फ़िल्म में देशभर के उम्दा कलाकार जैसे कि विक्रांत मेस्सी, विजय सेतुपति, तान्या मनिकटला, संजय मिश्रा, रणवीर शौरी, हृदू हारून, सचिन खेडेकर अनोखे अंदाज़ में नज़र आयेंगे.”
ये भी पढ़ें-सोनू सूद की मां के नाम पर रखा गया सड़क का नाम, बताई अब तक की सबसे
 
फिल्म’मुम्बईकर’ के निर्देशक व कैमरामैन संतोष सिवन  हैं, वहीं इस फ़िल्म को प्रस्तुत करेंगे रिया शिबू.

अमिताभ बच्चन की नातिन से शादी करना चाहते हैं मिजान जाफरी , रिलेशन के बारे में खुलकर की बात

बॉलीवुड के महानयाक अमिताभ बच्चन की नातिन नव्या नवेली ने हाल ही में अपने इंस्टाग्राम अकाउंट को पब्लिक किया है. उनकी फोटोज सोशल मीडिया पर बिना वक्त लिए वायरल हो रही है. कुछ वक्त पहले से नव्या नवेली का नाम जावेद जाफरी के बेटे मिजान जाफरी के साथ जोड़ा जा रहा है.

दोनों अपने रिलेशनशिप को लेकर आएं दिन चर्चा में बने रहते हैं. हाल ही में एक इंटरव्यू में मिजान ने नव्या के साथ रिलेशन से लेकर शादी तक की बात कही है. मिजान से एक इंटरव्यू के दौरान पूछा गया कि अगर आपको मरने , शादी करने और हुकअप करने के लिए सारा अली खान, नव्या नवेली और अन्नया पाडें को दिया जाएं तो आप इन तीनों में से किसको चुनेंगे. इस पर मिजान ने कहा कि वह शादी नव्या नवेली के साथ करना चाहेंगे हुकअप सारा अली खान के साथ करना चाहेंगे और मरना वह अन्नया पांडे के साथ चाहेंगे.

 

View this post on Instagram

 

A post shared by Navya Naveli Nanda (@navyananda)

ये भी पढ़ें- इरफान खान की आख़री फ़िल्म”द सॉन्ग ऑफ स्कॉर्पियन्स” होगी रिलीज

इसी इंटरव्यू में मिजान के साथ नव्या का नाम जोड़ा जाने लगा. उन्होंने कहा कि हम किसी रिलेशनशिप में नहीं है हमदोनों के बीच दोस्ती भी एक रिलेशनशिप हैं. सिर्फ डेटिंग करना ही रिलेशऩशिप नहीं होता है.

ये भी पढ़ें- सोनू सूद की मां के नाम पर रखा गया सड़क का नाम, बताई अब तक की सबसे

बता दें कि मिजान और नव्या न्यूयार्क में पढ़ाई कर रहे थें उन्हें साल 2019 में एक फिल्म डेट पर एख साथ देखा गया था.

ये भी पढ़ें- रणथंबोर में फैमिली के साथ वेकेशन मना रही है आलिया भट्ट, फैंस ने दी बधाई

जिसके बाद उनके लिंकअप कि खबरे आने लगी थीं. मिजान इसी साल अपना बॉलीवुड डेब्यू किया था वह फिल्म ‘ मलाल ’ में नजर आएं थें.

बता दें कि इससे पहले भी नव्या का नां शाहरुख खान के बड़े  बेटे आर्यन के साथ जुड़ चुका है. हालांकि मिजान के साथ रिलेशन को लेकर अभी तक किसी ने कुछ खुलकर नहीं कहा है. देखते हैं आगे इस रिश्ते कि सच्चाई क्या होती है.

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें