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अद्भुत है वाइल्ड लाइफ फोटोग्राफी- पंकज कपूर

फोटोग्राफी भी अपनी तरह से एक कहानी बयां करती है. कहानी शब्दों में बयान होती है. फोटोग्राफी कैमरे के जरिये कहानी को व्यक्त करती है. फोटोग्राफर भी एक तरह का कहानीकार ही होता है वह कैमरे के जरीये कहानी को बयां करता है.

लखनऊ के रहने वाले पंकज कपूर एक ऐसे ही वन्यजीव फोटोग्राफर है. वह कहते है फोटोग्राफी मेरा जुनून और पेशा है, दूसरे शब्दों में कहे तो “अगर मैं क्लिक नहीं कर रहा हूं, तो मैं जीवित नहीं हूं. मैं पिछले 9 वर्षों से वन्यजीव फोटोग्राफी कर रहा हूं और मेरा क्रेज मुझे लगभग हर जगह ले गया है. इनमें प्रकृति और वन्यजीव प्रमुख है.‘

पंकज कपूर ने एक वन्यजीव फोटोग्राफर के रूप में अपनी यात्रा शुरू की. जिम कॉर्बेट, बांधवगढ़, पन्ना, कान्हा, संजय दुबरी, पेंच, तडोबा, काबिनी, दुधवा, पीलीभीत, सुंदरबन सभी जगहों पर वह फोटोग्राफी करने गये. इसके साथ ही साथ भरतपुर, किलबरी, पंगोट, भीमताल, सत्तल और कई अन्य पक्षी अभयारण्यों की भी यात्रा की.

पंकज कपूर कहते है कि तेंदुए की फोटो के लिए मुझे राजस्थान के झालाना और जवाई जाना पडा. वह कई राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय वन्यजीव और प्रकृति संरक्षण समूहों से जुडे है. इनकी फोटो को राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय फोटोग्राफी ग्रुप में भी स्थान दिया गया. वन्यजीव प्रकृति का एक अनमोल उपहार है. प्राकृतिक संतुलन को  बनाए रखने के लिए जानवर, पौधे और समुद्री प्रजातियां मनुष्यों की तरह ही महत्वपूर्ण हैं.

पंकज कपूर कहते है ‘हमारे देश में वन्यजीव भरपूर है. हमारे देश में जैविक पार्क, प्राणि उद्यान, चाय बागान, वन्यजीव अभयारण्य, शक्तिशाली पहाड़ और हरे भरे जंगल हैं. जिनमें से पन्ना टाइगर रिजर्व एक ऐसा बहुमूल्य रत्न है. पन्ना टाइगर रिजर्व भारत में मध्य प्रदेश के पन्ना और छतरपुर जिलों में स्थित है. इसे 1993 में भारत के बीसवें टाइगर रिजर्व के रूप में घोषित किया गया था. पन्ना टाइगर रिजर्व उत्तरी मध्य प्रदेश में विंध्य हिल में स्थित एक महत्वपूर्ण बाघ निवास स्थान है. पठारों और घाटियों के साथ जलमग्न झरने, भीलों, पुरातात्विक भव्यताओं, किंवदंतियों और सांस्कृतिक समृद्धि की भूमि है. यह केन नदी की भूमि भी है. जो इसे अनुपम सौंदर्य प्रदान करती है. यह प्राचीन भूमि उत्तर की तरह प्राकृतिक सीमाओं से घिरी हुई है. यह सागौन के जंगल से घिरा हुआ है. वन्य जीव फोटोग्राफी के लिहाज से बहुत अच्छी जगह है.‘

मध्यप्रदेश -बेतुके कानूनों का हो रहा विकास

युवाओं को नौकरी और रोजगार के इंतजाम नहीं कर पा रही , भ्रष्टाचार काबू नहीं कर पा रही ,बेतहाशा बढ़ते अपराधों पर अंकुश नहीं लगा पा रही , आम लोगों की बदहाली दूर नहीं कर पा रही और विकास तो रत्ती भर भी नहीं कर पा रही मध्यप्रदेश सरकार के मुखिया शिवराज सिंह चौहान ने अपनी इन और ऐसी कई नाकामियों पर से जनता का ध्यान बंटाने के लिए नए नए बेतुके कानूनों की बौछार शुरू कर दी है जिनका प्रदेश की तरक्की से कोई वास्ता है ऐसा कहने की कोई वजह नहीं उलटे इन कानूनों से राज्य का माहौल और कानून व्यवस्था पहले के मुकाबले और बिगड़ने लगे हैं .

विधानसभा की 28 सीटों के उप चुनाव में 19 सीट जीतने के बाद कांग्रेस से सत्ता छीनकर चौथी बार मुख्यमंत्री बने शिवराज सिंह की इमेज एक ऐसे नेता की रही थी जो आरएसएस के अखाड़े का पट्ठा होने के बाद भी कट्टरवाद खुलेआम नहीं थोपता और विकास कार्यों पर तवज्जुह देता है .  इसीलिए साल 2004 से जनता उन पर भरोसा भी जताती रही . लेकिन यह भरोसा अब दरकने लगा है क्योंकि वे भी उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के नक़्शे कदम पर चलते वर्ग विशेष के मुट्ठी भर लोगों को खुश करने ऐसे कानून बनाने लगे हैं जिनकी न कोई जरुरत है और न ही अहमियत है .

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दरअसल में यह भगवा गेंग का मुस्लिम और दलित विरोधी एजेंडा है जिस पर अमल करना शिवराज सिंह की मज़बूरी और ड्यूटी हो गई है नहीं तो सियासी गलियारों में यह चर्चा अक्सर होती रहती है कि उन्हें कभी भी चलता किया जा सकता है क्योंकि डेढ दशक से प्रदेश भाजपा के दूसरी पंक्ति के नरोत्तम मिश्रा , कैलाश विजयवर्गीय और नरेन्द्र सिंह तोमर जैसे आधा दर्जन कद्दावर  महत्वकांक्षी नेता मुख्यमंत्री बनने छटपटा रहे हैं .  यह और बात है कि शिवराज सिंह अपनी जुगाड़ तुगाड़ और पकड़ के चलते उन्हें कामयाब नहीं होने देते .

इमेज चमकाने बेतुके कानून –

एकाएक ही शिवराज सिंह कट्टर हो चले हैं तो इसकी इकलौती वजह आलाकमान का दबाब ही है कि सब कुछ छोड़ छाड़कर अपने हिंदुत्व विकास के एजेंडे में जुट जाओ नहीं तो ……. इस नहीं तो की गाज और अंजाम से बचने उन्होंने ऐसे कानून बनाना शुरू कर दिए हैं जो किसी के काम के नहीं और विकास और जनता के भले से तो इनका कोई ताल्लुक ही नहीं .

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इनमे पहला है गौ वंश संरक्षण के लिए गौ – अधिनियम जिसके लम्बे चौड़े मसौदे का सार और निष्कर्ष इतना ही है कि गौ वंश अब मानव वंश से ज्यादा अहम् है . गायों के प्रति अपना प्रेम और आस्था दिखाने शिवराज सिंह आये दिन गौ माता का बखान और पूजन करते रहते हैं इस पर भी कोई शक न करे इस बाबत उन्होंने गौ केबिनेट का गठन कर डाला है जो अब सिर्फ गौ वंश के विकास के लिए काम करेगा .  इस पर करोड़ों अरबों रु फूंके जायेंगे  . उल्लेखनीय बात यह भी है कि अब सरकार 4 हजार गौ शालाओं के निर्माण के लिए हर तरह की इमदाद देगी और सरकारी जमीने भी मुफ्त में बांटेगी जिसे हड़पने गौ माफिया आकार लेने लगा है .यह बात भी कम हास्यास्पद और मूर्खतापूर्ण नहीं जिसका खामियाजा माध्यम वर्ग को ज्यादा भुगतना पड़ेगा कि सरकार गाय उपकर यानी सेस भी लगाने जा रही है जिसका कोई विरोध नहीं कर पा रहा .

धार्मिक उन्माद को बढ़ावा देता एक और कानून लव जिहाद भी प्रदेश में लागू हो गया है जिसे धर्म स्वातंत्र्य अध्यादेश  2020 नाम दिया गया है .इस गैरजरूरी कानून का मसौदा उत्तरप्रदेश सरीखा ही है कि बल और छल पूर्वक धर्म परिवर्तन के मामलों में दोषी को 5 साल तक की सजा होगी और 25 हजार रु का जुर्माना भी ठोका जाएगा . महिला , नाबालिग और दलित आदिवासियों के मामलों में दोषियों को 10 साल तक जेल की सजा के अलावा 50 हजार रु तक का जुर्माना देना होगा . इस मसौदे की मुद्दे की बात यह है कि धर्म छिपाकर किसी को धोखा देकर शादी करने बालों को 10 साल की सजा होगी और शादी कराने बाले धर्म गुरु या संस्था  को भी दोषी माना जाकर सजा दी जायेगी .

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निशाने पर कौन  –

अंतर्धर्मीय शादियाँ कोई नई बात नहीं हैं जिनका विरोध भी नई बात नही क्योंकि इससे धर्म के दुकानदारों को नुकसान होता है . पिछले 2 साल से सोशल मीडिया पर हिन्दूवादियों ने हल्ला मचा रखा था कि मुस्लिम युवक नाम और धार्मिक पहचान बदलकर हिन्दू युवतियों से शादी कर उन्हें मुसलमान बनने मजबूर करते हैं और उन पर तरह तरह के कहर भी ढाते हैं . बिलाशक ऐसा हो रहा था लेकिन 7 करोड़ की आबादी बाले मध्यप्रदेश में बीते 7 साल में ऐसे 7 वास्तविक मामले भी सामने नहीं आयेंगे .

क्या इस मामूली बात जिसका जानबूझ कर बतंगड़ बनाया गया पर कानून बनाया जाना जरुरी था और क्या कानून बन जाने से समस्या दूर हो जाएगी इसकी गारंटी लेने कोई तैयार नहीं दरअसल में सरकार के निशाने पर मुस्लिम युवा और हिन्दू युवतियां ज्यादा हैं . अपनी मंशा भाजपा के कई नेताओं ने प्रगट भी कर दी है . विधानसभा के प्रोटेम स्पीकर रामेश्वर शर्मा का कहना है कि मुस्लिम लड़के धर्म बदलकर हिन्दू बहिन बेटियों को लालच देकर उनके फोटो खींचते हैं और बाद में उन्हें ब्लेकमेल करते हैं ये अकेला लव नहीं है बल्कि जिहाद है . इसमें पाकिस्तान और आइएसआई का भी हाथ है . राज्य के गृहमंत्री नरोत्तम मिश्रा भी कई बार कह चुके हैं कि मुस्लिम युवक नाम बदलकर और हिन्दू धार्मिक प्रतीक चिन्ह धारण कर हिन्दू युवतियों को फंसाते हैं .

ये कट्टर हिंदूवादी नेता शायद ही बता पाएंगे कि क्या हिन्दू युवा हिन्दू लड़कियों को इसी तरह ब्लेकमेल और शादी नहीं करते क्या हिदू युवा प्रेमिकाओं और पत्नियों को रानी की तरह रखते हैं और क्या हिन्दू होने के नाते उन्हें ऐसा करने की छूट है और अगर यह कानूनन जुर्म है तो क्या मुस्लिम युवाओं को भी ब्लेकमेलिंग की धाराओं के तहत सजा देना क्यों काफी नहीं है .

बहुत बारीकी से देखें तो इस कानून का एक मकसद आदिवासी इलाकों में धर्मान्तरण रोकना है जहाँ आदिवासी इसाई बन जाते हैं .  लेकिन इसे धर्मान्तरण नहीं कहा सकता क्योंकि आदिवासी खुद को हिन्दू नहीं मानते हैं फिर धर्म परिवर्तन का तो सवाल ही नहीं उठता .  निश्चित रूप से यह लम्बी और तथ्यात्मक बहस का गंभीर और संवेदनशील मसला है जिसमे इस कानून के जरिये भी आदिवासियों को जबरिया हिन्दू ठहराने की साजिश रची जा रही है . चंद महीनों बाद ही आदिवासी इलाकों से ये ख़बरें आना तय हैं कि बौद्ध या इसाई बने आदिवासी युवक जबरिया या धर्म छिपाकर हिन्दू आदिवासी युवतियों से शादी कर उन्हें प्रताडित कर रहे हैं .

ध्यान इधर क्यों नहीं –

इन कानूनों के बाद एक और दिलचस्प कानून नए साल के पहले दिन राज्य में वजूद में आ चुका है जिसके मुताबिक शासकीय अधिकारियों एवं कर्मचारियों के खिलाफ किसी भी तरह के भ्रष्टाचार के मामलों में पुलिस एफआईआर दर्ज नहीं कर सकती . और तो और भ्रष्टाचार के दर्ज मामलों में उनसे पूछ ताछ भी नहीं कर सकती . भ्रष्टाचार को प्रोत्साहित करने इस बाबत  सरकार ने भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम 1988 ( संशोधित ) , धारा 17 ए जोड़ दी है .

तय है अब मध्यप्रदेश में किसी और चीज का हो न हो भ्रष्टाचार का दनादन विकास होगा क्योंकि भ्रष्ट मुलाजिमों की गिरहबान पकड़ने प्रक्रिया इतनी लम्बी कर दी गई है कि उसका सिरा ही कानून की पकड़ में नहीं आने बाला . कानून वीर शिवराज सरकार को एक बार आँख से भगवा चश्मा उतारकर ट्रांसपेरेंसी इंटरनेश्नल इंडिया और लोकल सर्किल एजेंसी की दिसंबर 2019 इस रिपोर्ट को पढ़ लेना चाहिए कि राज्य में हर दूसरे नागरिक को घूस देकर काम कराना पड़ते हैं . इस रिपोर्ट के मुताबिक मध्यप्रदेश में 10 फ़ीसदी भ्रष्टाचार बढ़ा है . केवल 12 फ़ीसदी लोगों ने माना कि उनका काम बिना घूस दिए हुआ यानी 88 फ़ीसदी मुलाजिम भ्रष्ट हैं .

घूसखोरी के साथ मध्यप्रदेश में विकास बेरोजगारी का भी हो रहा है कोई 50 लाख शिक्षित युवा नौकरी और रोजगार की आस में बूढ़े हुए जा रहे हैं . जवानी की खुशियाँ और मस्ती इनसे छीनने की जिम्मेदार सरकार लव जिहाद जैसे फिजूल कानून लाकर प्यार पर भी पहरे लगा रही है . अपराधों के मामले में नेशनल क्राइम रिकार्ड ब्यूरो के आंकड़ों के मुताबिक मध्यप्रदेश टॉप 5 राज्यों में रहकर विकास के कौन से कीर्तिमान गढ़ रहा है यह राम कहीं हो तो वह जाने .

दलितों और महिलाओं के प्रति अपराधों और प्रताड़ना के मामले में भी मध्यप्रदेश अव्वल राज्य है . यह विकास सरकार के लिए चिंता का विषय नहीं है उसके लिए चिंता का विषय है गौ वंश और यदा कदा बालिगों के बीच होने बाली अंतर्धर्मीय शादियाँ जिनका विकास रोकने बेवजह के  कानून थोप कर वह जनता का पैसा और वक्त बरबाद कर रही है .

 

आहना कुमरा की फिल्म ‘बावरी छोरी’ का ट्रेलर हुआ वायरल

‘लिपस्टिक अंडर माय बुर्का’ वह ‘खुदा हाफिज ‘ जैसी कई फिल्मों और ‘सैंडविच फॉरएवर’ जैसी कई वेब सीरीज में अपने अभिनय का प्रदर्शन कर शोहरत बटोर चुकी अदाकारा आहना कुमरा अब बहुत  जल्द “इरोज नाउ” पर स्ट्रीम होने वाली फिल्म ‘बावरी छोरी’ में एक नए व जोशीले अवतार में नजर आने वाली हैं. इसका ट्रेलर वायरल हो चुका है.  ट्रेलर से इस बात का एहसास होता है कि इसमें दर्शक आहना कुमरा  की बेहतरीन अभिनय  प्रतिभा का भी आनंद ले सकेंगे . वैसे इस वेब सीरीज में आहाना कुमरा के साथ रूमाना मोल्ला, विक्रम कोचर और निक्की वालिया भी होंगी.
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इरॉस  नाऊ के आधिकारिक हैंडल ने सोशल मीडिया पर ‘बावरी छोरी’ का ट्रेलर साझा करते हुए लिखा है- राधिका के साथ जुड़ें. क्योंकि वह अपने खोए हुए पति की तलाश में है.उसे मारने के लिए.#इरोज नाउ पर # बावरी छोरी का ट्रेलर देखें.
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‘बावरी छोरी’ के ट्रेलर के अनुसार इसकी कहानी के केंद्र में राधिका (आहना कुमरा) है, जो कि अपने पति की तलाश में लंदन में भटक रही हैं. वह अपने पति को मारना चाहती है. इस बीच राधिका दोस्ती स्वतंत्रता और प्यार का एहसास भी करती है. शादी के तुरंत बाद उसका पति लंदन चला गया था. मगर उसने वहां से कभी भी राधिका को फोन नहीं किया और वह उसके पास वापस भी नहीं लौटा. जिसके चलते एक दिन राधिका कठोर निर्णय लेते हुए अपना बैग बांधकर लंदन पहुंच जाती है.
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‘बावरी छोरी’ का निर्माण अजय जी राय, मोहित छाबरा और सुदीप्तो सरकार ने किया है .जबकि इसके संगीतकार कार्तिक रामलिंगम हैं और निर्देशक अखिलेश जायसवाल हैं.

नेहा पेंडसें ने ट्रोलर्स को दिया था करारा जवाब, कहा मैं भी वर्जन नहीं हूं

बीते कुछ सालों से भाभी जी घर पर हैं कि फेमस एक्टर सौम्य टंडन सीरियल में नजर नहीं आ रही हैं इसके पीछे कि वजह है कि वह सीरियल से अलविदा लेकर अपनी फैमली को टाइम दे रही हैं. वहीं सौम्या टंडन की जगह अब नेहा पेंडसें लेने वाली हैं. इस सीरियल में काम करके नेहा अपनी एक अलग पहचान बनाएंगी.

नेहा पेंडसें को नए लुक में देखने के लिए फैंस अभी से बेताब नजर आ रहे हैं. अगर बात करें नेहा पेंडसें के एक्टिंग करियर की तो उन्हें एक्टिंग का अच्छा अनुभव है. वह कई फिल्मों में नजर आ चुकी हैं. इसके साथ ही नेहा चैनल लाइफ ओके के सीरियल May I come in madam से बहुत ज्यादा चर्चा में आई थी. नेहा के किरदार को फैंस ने खूब पसंद किया था.

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नेहा पेंडसें ने पिछले साल बिजनेसमैन शार्दुल सिंह बयास से शादी रचाई है. जिसके बाद उन्हें ट्रोलर्स का जमकर सामना करना पड़ा. नेहा के शादी के बाद कुछ लोगों ने उन्हें बधाई दी तो वहीं कुछ लोगों ने उन्हें जमकर ट्रोल करना शुरू कर दिया. दरअसल नेहा ने जिसे शादी रचाई थी उस व्यक्ति कि यह तीसरी शादी थी.

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जिसके बाद नेहा ने ट्रोलर्स का दो टुक में जवाब देते हुए कहा था कि अगर शार्दुल तलाकशुदा हैं तो मेरी भी कौन सी वर्जन हूं. इसके बाद से नेहा ने को लोग सोशल मीडिया पर ट्रोल करना बंद कर दिए थें.

मैं अपने और पति के फैसले कि सराहना करती हूं हमलोगों ने एक-दूसरे को खुले दिल से स्वीकारा है. इसके लिए आप चाहे कुछ भी कह लें हम दोनों के रिश्ते पर कोई फर्क नहीं पड़ता हैं.

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नेहा अपने पति के साथ अपनी शादी शुदा लाइफ को एंजॉय कर रही हैं. नेहा के इस फैसले से उनकी फैमली बहुत ज्यादा खुश है. नेहा नहीं चाहती लोग उनके पर्सनल लाइफ को लेकर बहुत ज्यादा सवाल खड़े करें.

बिग बॉस 14: घर से बाहर जाते ही राहुल महाजन ने राखी सावंत को लेकर दिया ये बड़ा बयान

बिग बॉस के घर में नए-नए टॉस्क होना आम बात है. ऐसे में कल रात बिग बॉस के घर में दिखाया गया पूर्व बीबी प्रतियोगिता जिसकी घोषणा एक्ट्रेस मोनालिसा ने किया. जिसके बाद राहुल महाजन को सबसे कम वोट मिले और उन्हें घर से बाहर का रास्ता दिखा दिया गया.

राहुल महाजन घर से बाहर आते ही राखी सावंत को लेकर ऐसे बयान देंगे किसी ने सोचा नहीं था. एक रिपोर्ट में बात करते हुए राहुल महाजन ने कहा कि मैं राखी सावंत को ज्यादा नहीं जानता हूं, उनसे मेरी मुलाकात आज से 10 वर्ष पहले स्वंयवर के शो पर हुआ था. जिसके बाद से अब मैं बिग बॉस में उनसे मिला हूं.

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राखी सावंत को मैं बहुत अच्छे से नहीं जानता हूं इसके अलावा मैं राखी सावंत से एक या दो बार हाल चाल लिया हुंगा. लेकिन इसके अलावा मैं उन्हें पर्सनल नहीं जानता हूं.

 

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राखी सावंत जैसे अपनी बातों को रखती हैं उसे मैं नहीं पसंद करता हूं. ना ही मैं कभी ऐसे लोगों को अपना दोस्त बनाना चाहता हूं. राहुल महाजन के इस बयान को देखऩे को बाद सभी हैरान हैं.

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एक वक्त ऐसा था जब बिग बॉस के घर में सभी लोग राखी सावंत के खिलाफ थें. तब राहुल ने उन्हें सपोर्ट किया था लेकिन अब राहुल महाजन का पलटता हुआ  व्यवहार देखकर फैंस भी परेशान है कि राहुल महाजन ऐसा क्यों कर रहे हैं.

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अब देखना है कि राखी सावंत को जब राहुल महाजन की असलियत का पत्ता चलेगा तो वह क्या रिएक्शन देंगी.

दहशत- भाग 4 : कालोनी में हो रही चोरी के पीछे आखिर कौन था

‘‘यह क्या हुआ, चौकीदार?’’ उस ने घबराए स्वर में पूछा.

‘‘जो भी हुआ है फर्स्ट फ्लोर पर ही हुआ है साहब, ऐसा लग रहा है जैसे मेरे सिर पर ही कुछ गिरा है,’’ चौकीदार ने सिर सहलाते हुए कहा.

‘‘तुम्हारे सिर पर तो डा. राघव का फ्लैट है,’’ किसी ने कहा, ‘‘चल कर देखिए डाक्टर साहब.’’

‘‘आप लोग भी चलिए न,’’ डा. राघव ने घबराए स्वर में कहा.

‘‘राजू तो घर में होगा साहब.’’

‘‘शायद नहीं, उसे खाना लाने बाजार जाना था,’’ राघव ने सीढि़यां चढ़ते हुए कहा. तभी न जाने कहां से गौरव आ गया, ‘‘क्या हुआ यार, सुना है प्रीति चावला वाला अदृश्य मानुष अपने घर में घुस आया है.’’

राघव ने डरतेडरते  ताला खोला, कमरे में अंधेरा था, ‘‘चौकीदार, टौर्च मिलेगी?’’ ‘‘डर मत यार, मैं अंदर जा कर लाइट जलाता हूं,’’ गौरव ने आगे बढ़ कर लाइट जलाई. उस के पीछे और सब भी कमरे में आ गए. कमरे में ज्यादा सामान नहीं था. डाइनिंगटेबल के पास रखा साइडबोर्ड जमीन पर औंधा पड़ा था और उस में रखे चीनी व कांच के समान के टुकड़े दूरदूर तक फर्श पर बिखरे हुए थे. ‘‘इतना भारी साइडबोर्ड अपने से तो गिर नहीं सकता. जरूर कोई इस से अंधेरे में टकराया है, कमरों में देखो, जरूर कोई छिपा हुआ होगा.’’

‘‘कमरे तो सब बाहर से बंद हैं मित्तल साहब, परदों के पीछे या किचन में होगा,’’ राघव ने कहा.

‘‘वह भाग चुका है राघव, बालकनी का दरवाजा खुला हुआ है. उस से कूद कर भाग गया,’’ गौरव ने कहा.

‘‘लेकिन कूदता हुआ नजर तो आता, बहुत लोग टहल रहे हैं कंपाउंड में.’’

‘‘मेन रोड पर, यहां हैज के पीछे अंधेरे में कौन आता है या इधर देखता भी है,’’ गौरव बोला.

‘‘लेकिन गौरव, सुबह मैं सब के बाद गया था. और मैं ने जाने से पहले बालकनी का दरवाजा भी बंद किया था,’’ राघव ने कहा.

‘‘मैं थोड़ी देर पहले आया था राघव, कुछ क्रिस्टल ग्लास टम्बलर ले कर. उन्हें राजू से धुलवा कर साइडबोर्ड में सजाने और राजू को बाजार भेजने के बाद मैं बालकनी में आ कर खड़ा हो गया था. फिर कपड़े बदलने जाने की जल्दी में मैं बगैर बालकनी बंद किए मेनगेट बंद कर के अपने घर जा रहा था कि आधे रास्ते में ही शोर सुन कर वापस आ गया,’’ गौरव ने कहा.

‘‘आप के पास भी यहां की चाबी है?’’ मित्तल ने पूछा.

‘‘आटोमैटिक लौक को बंद करने के लिए चाबी की जरूरत नहीं होती…’’ इस से पहले कि गौरव अपनी बात पूरी कर पाता, घबराई और उस से भी ज्यादा हड़बड़ाई सी प्रीति आ गई.

‘‘यह मैं क्या सुन रही हूं?’’

‘‘जो सुना वह देख भी लीजिए,’’ गौरव ने हंसते हुए फर्श पर बिखरे कांच की ओर इशारा किया.

‘‘ओह नो, मेरे यहां तो खैर कुछ नुकसान नहीं हुआ था लेकिन…’’

‘‘इस में से कुछ तो बहुत महंगा और बिलकुल नया सामान था जो गौरव ने आज ही खरीदा था और कुछ देर पहले शोकेस में सजाया था,’’ राघव ने प्रीति की बात काटी. ‘‘क्या बात है डा. गौरव, नई क्रौकरी की खरीदारी, बाहर से खाना मंगवाना कोई खास दावतवावत है?’’ एक प्रश्न उछला.

‘‘इन फालतू सवालों के बजाय हम मुद्दे की यानी चोरी की बात क्यों नहीं करते मित्तल साहब?’’ किसी ने तल्ख स्वर में कहा. ‘‘उस की बात क्या करेंगे?’’ गौरव ने कंधे उचकाए, ‘‘बालकनी का दरवाजा खुला छोड़ कर जाने की लापरवाही मैं मान ही रहा हूं, चौकीदार ने मेनगेट तभी बंद करवा दिया था, अब चोर कहां भाग कर गया, यह तो सोसायटी के कर्ताधर्ता ही सोचेंगे. हमें तो यह सोचना है कि रात के खाने का क्या करें, किचन में जाने का रास्ता तो कांच से अटा पड़ा है.’’ ‘‘फिक्र मत कर यार, राजू कुछ खाना बना गया है और कुछ ले कर आता ही होगा. आ कर टूटा हुआ कांच हटा देगा,’’ राघव ने कहा फिर सब की ओर देख कर बोला, ‘‘माफ करिएगा, आप को बैठने को नहीं कह सकते क्योंकि इतनी कुरसियां ही नहीं हैं.’’ ‘‘कोई बात नहीं, हम चलते हैं,’’ कह कर सब चलने लगे और उन के साथ ही प्रीति भी, गौरव उसे रोकने के बजाय उस के साथ ही चल दिया.

‘‘आप कहां चल दिए डा. गौरव, बगैर खाना खाए?’’ मित्तल ने पूछा.

‘‘घर कपड़े बदलने, मैं अस्पताल के कपड़ों में खाना नहीं खाता.’’

‘‘खाना खाने का मूड रहा है अब?’’ प्रीति ने धीरे से पूछा.

‘‘एक डाक्टर होने के नाते मूड के लिए न तो खुद खाना छोड़ता हूं और न किसी को छोड़ने देता हूं,’’ गौरव मुसकराया, ‘‘आप भी चेंज कर लीजिए, फिर वापस आते हैं एफ-1 में.’’

कुछ देर के बाद गौरव ने प्रीति को फोन किया. ‘‘एक प्रौब्लम हो गई है प्रीतिजी, खाना तो सब तैयार है लेकिन उसे परोसेंगे किस में? आप बुरा न मानें तो खाना यहीं मंगवा लूं मगर मेरे पास भी बरतन नहीं हैं, आप के यहां ही आना पड़ेगा.’’

‘‘तो आइए न डा. राघव और दूसरे मेहमानों से भी मेरी ओर से आने का आग्रह कीजिए.’’ ‘‘दूसरे मेहमान हमारे सीनियर डाक्टर थे, सो उन्हें असलियत बता कर राघव ने माफी मांग ली है. जो डाक्टर राघव के साथ रहते हैं उन दोनों की आज नाइट शिफ्ट है. सो, बस राघव ही आएगा. माफ करिएगा, मेहमान के बजाय आप को मेजबान बना रहा हूं.’’

‘‘माई प्लैजर डाक्टर, डू कम प्लीज.’’ कुछ देर के बाद गौरव और राघव राजू के साथ खाने का सामान उठाए हुए आ गए.

‘‘राजू को रोक लें, खाना गरम कर के सर्व कर देगा?’’

‘‘हां, फिर खुद भी खा लेगा. चलो, राजू तुम्हें बता दूं कि कहां क्या रखा है.’’ राजू को सब समझा कर प्रीति भुने पिस्ते और काजू ले कर आई, ‘‘जब तक राजू सूप गरम कर के लाता है तब तक इस से टाइमपास करते हैं.’’ ‘‘गुड आइडिया,’’ राघव ने पिस्ते उठाते हुए कहा, ‘‘वैसे आप दोनों ने इस कालोनी के लोगों को कई रोज के लिए टाइमपास का जरिया दे दिया.’’ लेकिन हंसने के बजाय प्रीति ने गंभीरता से कहा, ‘‘टाइमपास से ज्यादा बात फिक्र करने की है. आज जो हुआ है उस से तो लग रहा है कि चोर कालोनी में ही रहता है.’’ ‘‘वह तो आप के साथ हुए हादसे से ही पता चल गया था,’’ गौरव ने गौर से उस की ओर देखा. वह सहमी हुई सी लग रही थी.

‘‘आज भी उस ने यह हरकत की और मौका लगते ही फिर कर सकता है,’’ राघव बोला.

‘‘यानी हमें बहुत संभल कर रहना पड़ेगा. शुंभ से कहती हूं कोई फुलटाइम नौकरानी तलाश करे मेरे लिए जो रात में भी मेरे यहां रहे,’’ प्रीति ने चिंतित स्वर में कहा. ‘‘यह ठीक रहेगा, इस से आप का अकेलापन भी दूर होगा,’’ गौरव ने प्रीति के मनोभाव पढ़ने की कोशिश की, ‘‘थकेहारे काम से खाली घर में लौटने पर थकान और बढ़ जाती है.’’

‘‘यू कैन से दैट अगेन,’’ प्रीति ने उसांस ले कर कहा.

‘‘अकेलेपन से परेशानी है तो अकेलापन दूर करने का स्थायी प्रबंध क्यों नहीं करते आप दोनों…’’

‘‘क्यों, आप को अकेलेपन से परेशानी नहीं है?’’ प्रीति ने राघव की बात काटी.

‘‘होनी शुरू हो गई थी तभी तो मधु से उस की पढ़ाई खत्म होने से पहले ही शादी कर ली. वह लखनऊ में एमडी कर रही है, चंद महीनों में पूरी कर के यहां आएगी.’’

‘‘और तब राघव के घर में चलने वाला हमारा मैस बंद हो जाएगा,’’ गौरव ने कहा.

‘‘तो अपने घर में चला लीजिएगा, आप के 2 साथी और भी तो हैं.’’ इस से पहले कि गौरव प्रीति के सुझाव पर प्रतिक्रिया व्यक्त करता, राजू सूप ले कर आ गया और विषय बदल गया.

‘‘अच्छा लगा आप से मिल कर,’’ राघव ने चलने से पहले कहा, ‘‘मधु की मुलाकात करवाऊंगा आप से.’’

‘‘जरूर, उन की वैलकम पार्टी यहीं रख लेंगे, क्यों गौरव?’’

‘‘दैट्स एन आइडिया,’’ गौरव फड़क कर बोला. प्रीति के मुंह से अपना नाम सुन कर वह अभिभूत हो गया था. किसी भी तरह इस अनौपचारिकता को आगे बढ़ाना होगा. उसे राघव पर भी गुस्सा आया. क्यों उस ने राजू से टेबल और किचन साफ करवा दिया वरना इसी बहाने प्रीति की मदद करने को वह कुछ देर और रुक जाता. अब तो खैर जाना ही पड़ेगा मगर जल्दी ही कोई और मौका ढूंढ़ना होगा. और मौका अगले रोज ही मिल गया. सोसायटी के क्लबहाउस में शाम को इमरजैंसी मीटिंग रखी गई थी जिस में प्रत्येक फ्लैट से एक सदस्य का आना अनिवार्य था. गौरव ने प्रीति को फोन किया. ‘‘जिन हादसों से घबरा कर मीटिंग रखी गई है उन के शिकार तो हम दोनों ही हैं तो हमारा जाना तो जरूरी है. आप चल रही हैं?’’

‘‘जी हां, और आप?’’

‘‘मैं भी चल रहा हूं. इकट्ठे ही चलते हैं.’’ गौरव ने सोचा तो था कि इकट्ठे ही बैठेंगे मगर लिफ्ट में वर्मा दंपती भी मिल गए, प्रीति श्रीमती वर्मा के साथ चलते हुए उन्हीं के साथ ही अन्य महिलाओं के पास बैठ गई. प्रीति से तो किसी ने कुछ नहीं पूछा लेकिन गौरव की स्वयं की लापरवाही मानने पर भूषणजी ने कहा कि ऐसी गलती किसी से भी हो सकती है, सो बेहतर होगा कि पहले माले की सभी बालकनियों में ऊपर तक ग्रिल लगवा दी जाए और हरेक बिल्डिंग के गेट पर सीसीटीवी कैमरा. अधिकांश लोगों ने तो प्रस्ताव का अनुमोदन किया और कुछ ने महंगाई के बहाने अतिरिक्त खर्च का विरोध किया मगर सुरक्षा का कोई दूसरा विकल्प न होने से प्रस्ताव सर्वसम्मति से पास हो गया और मीटिंग खत्म. गौरव ने सुना, कुछ महिलाएं प्रीति से कह रही थीं, ‘‘चोर के बहाने उस रोज आप के यहां बढि़या पकौड़े खाने को मिल गए.’’

‘‘पकौड़ों की दावत तो आप को जब चाहे दे सकती हूं.’’ ‘‘मगर उस से पहले आप को हमारे यहां आना पड़ेगा,’’ किसी ने कहा. ‘‘बुध को मेरे यहां किटी पार्टी है न, उस में प्रीति को बुला लेते हैं,’’ श्रीमती वर्मा बोलीं, ‘‘हमारी खातिर एक रोज छुट्टी कर लेना प्रीति.’’

‘‘आप पार्टी का समय बता दीजिए, मैं आ जाऊंगी और पार्टी खत्म होने पर फिर औफिस चली जाऊंगी,’’ प्रीति हंसी.

‘‘ऐसी बात है तो आप हमारी किटी जौइन कर लीजिए न. महीने में 1 बार कुछ घंटों का बंक मारना तो चलता है.’’ ‘‘देखते हैं,’’ प्रीति ने वर्मा दंपती के साथ चलते हुए कहा. कुछ दूर जा कर वर्मा दंपती एक और बिल्ंिडग में चले गए और गौरव लपक कर प्रीति के साथ आ गया.

‘‘आप डा. राघव के साथ नहीं गए?’’

‘‘उस के साथ जा कर क्या करता? वह तो अभी मधु से चैट करेगा. खाना तो हम लोग 9 बजे के बाद खाते हैं.’’

‘‘अभी घर जा कर क्या करेंगे?’’

‘‘चैनल सर्फिंग, जब तक कुछ दिलचस्प न मिल जाए. आप क्या करेंगी?’’

‘‘वही जो आप करेंगे. उस से पहले आप को कौफी पिला देती हूं.’’

‘‘जरूर,’’ गौरव मुसकराया.

‘‘चोर के बहाने आप की तो कालोनी में जानपहचान हो गई, किटी पार्टी में जाने से और भी हो जाएगी,’’ गौरव ने कौफी पीते हुए प्रीति की ओर देखा, ‘‘खाली समय आसानी से कट जाया करेगा.’’ प्रीति के अप्रतिभ चेहरे से लगा जैसे चोरी करती रगेंहाथों पकड़ी गई हो. ‘‘उन महिलाओं का जो खाली समय होगा तब मुझे फुरसत नहीं होगी और जब मैं खाली हूंगी तो वे अपने घरपरिवार में व्यस्त होंगी,’’ प्रीति ने एक गहरी सांस खींची, ‘‘वैसे जानपहचान तो आप से भी हो गई है.’’ ‘‘और मेरे पास तो शाम को खाली वक्त भी होता है. अस्पताल से 7 बजे छुट्टी मिल जाती है. कई बार घर आ कर 9 बजे तक टाइम गुजारना मुश्किल हो जाता है. ऐसे में कभी फोन कर सकता हूं?’’ गौरव ने मौका लपका.

‘‘औफिस से जल्दी निकलने पर अकसर मैं मैडिटेशन सैंटर चली जाती हूं. सो, हो सकता है तब आप को मेरा मोबाइल बंद मिले.’’

‘‘अपने घर में सन्नाटा कम है क्या जो शांति की तलाश में मैडिटेशन सैंटर जाती हैं?’’ गौरव हंसा.

‘‘अपने पास जो होता है उस की कद्र कौन करता है?’’ प्रीति भी हंसने लगी.

‘‘यह तो है, पहले बंधन और रिश्तों से बचने के लिए अपनों को नकारते हैं और फिर भीड़ में भी अकेले रह जाते हैं.’’

‘‘सही कहा आप ने, अपनों की भीड़ तो चौराहों से अपनी राह चली जाती और आप तनहा खड़े रह जाते हैं खुद की बनाई बंद गली में.’’ ‘बंद ही नहीं, अंधेरी गली में जिस की घुटन से घबरा कर आप ने खुद सामान को गिरा कर एक काल्पनिक चोर का निर्माण किया था और दहशत का माहौल बना दिया था जिस की सचाई जानने को मैं ने अपनी और राघव की क्रौकरी तोड़ी, पहली मंजिल से कूदने का रिस्क लिया. भले ही इस सब से कालोनी वालों का आजकल के माहौल के किए उपयुक्त सुरक्षा मिल गई और आप को थोड़ी बहुत दोस्ती,’  गौरव ने कहना चाहा मगर यह सोच कर चुप रहा कि अभी यह कहना बहुत जल्दबाजी होगी. कोशिश तो यही रहेगी कि ये सब बगैर बताए ही प्रीति के करीब आ कर उस की और अपनी जिंदगी से अकेलेपन की वीरानगी और दहशत हमेशा के लिए दूर कर दें.

 

दहशत- भाग 3 : कालोनी में हो रही चोरी के पीछे आखिर कौन था

‘‘यानी वह काफी देर रहा आप के फ्लैट में?’’ ‘‘जी हां, सुबह मेरी नौकरानी जब नीचे प्रैस वाली को कपड़े देने जाती है तो दरवाजा खुला ही छोड़ जाती है, उसी समय कोई घुस आया होगा और परदे के पीछे छिप गया होगा. इत्तफाक से आज नौकरानी के वापस आने से पहले ही मैं तैयार हो गई थी. सो, ताला लगा कर नीचे चली गई और बेचारा चोर अंदर ही बंद हो गया.’’

‘‘फिर आराम से खातापीता रहा,’’ गौरव हंसा, ‘‘सुरक्षा बढ़ाने की बात हुई?’’

‘‘हां, प्रत्येक बिल्ंिडग में विजिटर्स को रजिस्टर में साइन करना होगा. सब का यही मानना है कि उस रोज कालोनी से ही कोई मेरे घर में आया था, रात को वह जो भी चाहता था उस का वह मंसूबा तो मैं ने अनजाने में चिल्ला कर सत्यानाश कर ही दिया और आप सब के आने पर वह परदे के पीछे से निकल कर भीड़ में शामिल हो गया. खैर, सिक्योरिटी को ले कर तो सभी चिंतित हैं और फिलहाल विजिटर्स बुक रखना सही कदम है. मगर सब से मजेदार थी छींटाकशी. नीलिमाजी का कहना था कि लोगों को अपने घरेलू नौकरों पर नजर रखनी चाहिए और उन की हरकतों की जिम्मेदारी भी उठानी चाहिए. उन के खयाल से किसी का घरेलू नौकर ही मेरे घर में घुसा था. शनिवार को बहुत से नौकरों की छुट्टी रहती है. इस पर ऊषाजी ने कहा कि घरेलू नौकर तो छुट्टी के रोज नींद पूरी करते हैं, लेकिन अमीर लोगों के जवान होते बच्चों को दूसरों के घरों में घुसने की बीमारी होती है, उन पर खास नजर रखनी चाहिए.

इस पर इतनी कांयकांय मची कि पूछिए मत.’’ प्रीति को खिलखिलाते देख कर गौरव को बहुत अच्छा लगा और वह भी हंस पड़ा, ‘‘आप के यहां आने से पहले एक बार गाडि़यों में से स्टीरियो और पैट्रोल चोरी होने लगा था. तब रात को कालोनी में गश्त लगाने वाले चौकीदार नहीं थे. चोर बड़ी सफाई से गाडि़यों के ताले खोलता था. एक रात कुत्ते की तबीयत खराब होने पर ऊषाजी और उन के पति कुत्ते को कारपार्किंग के पास टहला रहे थे कि अचानक अपनी गाड़ी के पास चोर को देख कर कुत्ता भौंकने लगा. ऊषाजी के पति ने लपक कर उसे पकड़ लिया. वह कालोनी में ही रहने वाले आहूजा का बेटा दिलीप था. उस के हाथ में पेचकस भी था. उस ने अपनी सफाई में कहा कि अपनी गाड़ी से निकलते समय उस के हाथ से छिटक कर पेचकस दूर जा गिरा था और अब टौर्च ले कर वह उसे ढूंढ़ने आया था. यह पूछने पर कि आधी रात को क्यों, उस ने जवाब में कहा कि जब वे आधी रात को अपना कुत्ता घुमा सकते हैं तो वह अपना स्क्रूड्राइवर क्यों नहीं ढूंढ़ सकता. खैर, ऊषाजी ने जो देखा था वह मीटिंग में बता दिया. तब श्रीमती आहूजा ने कारपार्किंग के पास कुत्तों के घुमाने पर रोक लगवानी चाही थी.’’

शुंभ कई तरह के गरम पकौड़े ले कर आया. गौरव को पकौड़े बहुत पसंद आए.

‘‘शुंभ ने बनाए हैं, ही इज एन एक्सेलैंट कुक.’’

‘‘आप ही के पास काम करता है?’’

‘‘मेरा ड्राइवर है और लोकल गार्जियन भी. कई साल से मम्मीपापा के पास खाना पकाता था. फिर मैं ने ड्राइविंग सिखवा कर अपनी कंपनी में लगवा दिया. जब भी जरूरत पड़ती है तो खाना भी बना देता है.’’ शुंभ जब खाली बरतन उठा रहा था तो फोन की घंटी बजने पर प्रीति बैडरूम में चली गई. गौरव से पकौड़ों की तारीफ सुनने पर शुंभ ने सकुचाए स्वर में कहा, ‘‘थैंक यू सर, डरतेडरते बनाए थे बहुत दिनों के बाद, किचन का काम करने की आदत छूट गई है.’’

‘‘क्यों, मैडम खाना नहीं बनवातीं?’’

‘‘जब कभी पार्टी हो तभी. और आज तो अरसे बाद पार्टी हुई है.’’

‘‘मैडम बहुत बिजी रहने लगी हैं?’’

‘‘वे तो हमेशा से ही हैं मगर अब सब सहेलियां दोस्त शादी कर के अपनीअपनी घरगृहस्थी में मगन हो गए हैं. किसी को दूसरों के घर आनेजाने की फुरसत ही नहीं है. पहले तो बगैर पार्टी के भी बहुत आनाजाना रहता था पर अब कोई बुलाने पर भी नहीं आता,’’ शुंभ के स्वर की व्यथा गौरव को बहुत गहरी लगी, ‘‘आजकल तो काम के बाद टीवी देख कर ही समय गुजारती हैं.’’ तभी प्रीति आ गई, ‘‘माफ करिएगा, आप को इंतजार करना पड़ा. लंदन से मम्मीपापा का फोन था. सो, बीच में रखना ठीक नहीं समझा.’’

‘‘आप के मम्मीपापा लंदन में हैं?’’

‘‘जी हां, मेरी डाक्टर बहन के पास. छुटकी अकेली है, सो ज्यादातर उसी के पास रहते हैं.’’

‘‘अकेली तो आप भी हैं,’’ गौरव के मुंह से बेसाख्ता निकल पड़ा. ‘‘यहां और वहां के अकेलेपन में बहुत फर्क है. वैसे यहां भी अब लोग स्वयं में ही व्यस्त रहने लगे हैं. एक कप गरम चाय और चलेगी?’’

‘‘जी नहीं, अब चलूंगा. पकौड़े बहुत खा लिए हैं, सो एफ-1 में बताना भी है कि मैं आज रात को खाना नहीं खाऊंगा. डा. राघव के यहां हम कुछ दोस्त एक नौकर से खाना बनवाते हैं.’’

‘‘खाने के बहाने दोस्तों से गपशप भी हो जाती होगी.’’

‘‘जी हां, और दोस्तों को भी बुलाते रहते हैं. एक रोज आप को भी बुलाऊंगा.’’ इस से पहले कि वह खुद को रोकता, शब्द उस के मुंह से निकल चुके थे लेकिन प्रीति ने बुरा मानने के बजाय सहज भाव से कहा, ‘‘जरूर, मुझे इंतजार रहेगा उस रोज का.’’

‘‘ठीक है, मिलते हैं फिर,’’ कह कर गौरव ने विदा ली. राघव के घर जाने से पहले गौरव ने कालोनी के 2-3 चक्कर लगाए, वह कुछ सोच रहा था और उसे अपनी सोच सही लग रही थी. अगले सप्ताहांत डा. गौरव ने प्रीति को डिनर पर बुलाया. वह इस शर्त पर आना मान गई कि वह 9 बजे के बाद आएगी. गौरव ने कहा कि वे लोग भी 8 बजे के बाद ही घर पहुंचते हैं. लेकिन साढ़े 8 बजे के करीब एफ-1 में हादसा हो गया. बहुत जोर से कुछ गिरने और कांच टूटने की सी आवाज आई. ठंड के बावजूद कई लोग डिनर के बाद टहलने निकले हुए थे. एफ-1 में रहने वाला डा. राघव तभी आया था और अपनी गाड़ी लौक कर रहा था. उस के हाथ से चाबी छूटतेछूटते बची.

दहशत- भाग 2 : कालोनी में हो रही चोरी के पीछे आखिर कौन था

‘‘सोफे और कुरसीमेजों को क्यों उलटा?’’ एक युवती ने कहा, ‘‘प्रीतिजी इन के नीचे तो कीमती सामान या दस्तावेज रखने से रहीं.’’

‘‘एक बैडरूम पर ताला है न, और अकसर लोग चाबी आजूबाजू में छिपा देते हैं, सो चाबी की तलाश में यह सब गिराया है और खून तो लगता है जैसे किसी को गुमराह करने के लिए ड्रौपर से डाला गया है…’’

‘‘तुम तो एकदम जासूस की तरह बोल रहे हो चुन्नीलाल,’’ किसी ने बात काटी.

‘‘पुलिस का सेवानिवृत्त सिपाही हूं, साहब लोगों के साथ अकसर तहकीकात पर जाता था.’’

‘‘तभी जो कह रहा है, सही है,’’ प्रीति के फ्लैट के नीचे रहने वाली नेहा वर्मा बोलीं, ‘‘अपने यहां की छतें इतनी पतली हैं कि कोई तेज कदमों से भी चले तो पता चल जाता है. फिर इतने भारी सामान के उलटनेपलटने का पता हमें कैसे नहीं चला?’’

‘‘आप सारा दिन घर में ही थीं क्या?’’ डा. गौरव ने पूछा.

‘‘सुबह कुछ घंटे पढ़ाने गई थी, 2 बजे के बाद से तो घर में ही थी.’’ ‘‘और यह उलटपलट तो प्रीतिजी के घर लौटने के बाद ही हुई है. अगर पहले हुई होती तो क्या लौटने पर उन्हें नजर नहीं आती?’’ वर्माजी ने जोड़ा, ‘‘मैं ड्राइंगरूम में बैठ कर औफिस का काम कर रहा था. मैं ने प्रीतिजी के घर में आने की आवाज सुनी थी. उस के बाद जब तक मैं काम करता रहा तब तक तो ऊपर से कोई आवाज नहीं आई.’’

‘‘आप ने कब तक काम किया?’’

‘‘यही कोई 11 बजे तक. उस के बाद मैं सो गया और फिर ‘बचाओबचाओ’ की आवाज से ही आंख खुली.’’ ‘‘उलटपलट तो मेरे आने से पहले भी हो सकती है,’’ प्रीति कुछ सोचते हुए बोली, ‘‘क्योंकि देर से आने पर यानी जब किचन से कुछ लेना न हो तो मैं बगैर ड्राइंगरूम की लाइट जलाए सीधे बैडरूम में चली जाती हूं. यहां कुछ न मिलने पर शायद इस इंतजार में रुका होगा कि मेरे आने के बाद स्टील कबर्ड खुलेगा तब कुछ हाथ लग जाए.’’ ‘‘खून का राज तो खुल गया मैडम,’’ चुन्नीलाल ने ड्राइंगरूम के दरवाजे के पीछे झांकते हुए कहा, ‘‘यह देखिए, यह चटनी की शीशी टेबल से गिर कर लुढ़कती हुई दरवाजे से टकरा कर टूटी है…’’

‘‘चिली सौस में सिरका होता है न इसलिए यह सूखी नहीं और ताजे खून सी लग रही है,’’ प्रीति बोली, ‘‘मगर टेबल क्यों गिराई, इस के नीचे क्या छिपा हो सकता था?’’

‘‘यह तो पुलिस ही चोर से पूछ कर बता सकती है,’’ किसी के यह कहने पर प्रीति सिहर उठी.

‘‘पुलिस को बुलाने की क्या जरूरत है? कोई सामान चोरी तो हुआ नहीं है.’’

‘‘और चोर तो हम में से कोई यानी इसी कालोनी का बाश्ंिदा है,’’ वर्माजी बोले, ‘‘पुलिस को बुलाने का मतलब है खुद को परेशान करना यानी पुलिस के उलटेसीधे सवालों के चक्कर में फंसना और बेकार में उन की खातिरदारी करना क्योंकि चोर तो उन के हाथ लगने से रहा.’’

‘‘वर्माजी का कहना ठीक है. हमें आपस में ही तय करना है कि सुरक्षा के लिए और क्या करें,’’ तनेजाजी ने कहा ‘‘घर तो अच्छी तरह से देख लिया है, कोई छिपा हुआ तो नहीं है.’’

‘‘यानी अब कोई खतरा नहीं है,’’ प्रीति ने जम्हाई रोकने की कोशिश करते हुए कहा, ‘‘तो फिर क्यों न अभी सब घर जा कर आराम करें, कल छुट्टी है, फुरसत से इस बारे में बात करेंगे.’’ ‘‘हां, यही ठीक रहेगा. शायद इतमीनान से सोचने पर प्रीति को याद आ जाए कि वह नींद में चिल्लाई क्यों थी. लेकिन तुम्हें अकेले डर तो नहीं लगेगा प्रीति? कहो तो मैं यहां सो जाऊं या तुम हमारे यहां चलो,’’ नेहा वर्मा ने कहा.

‘‘धन्यवाद, मिसेज वर्मा, जब घर में कोई है ही नहीं तो डर कैसा?’’ प्रीति हंसी.

‘‘तो ठीक है, कल मीटिंग रखते हैं…’’

‘‘भूषण साहब, मीटिंग क्यों न मौका-ए-वारदात यानी मेरे घर पर रखी जाए?’’ प्रीति ने बात काटी, ‘‘इसी बहाने मुझे आप सब को इतनी ठंड में जगाने के एवज में चाय पिलाने का मौका भी मिल जाएगा.’’

‘‘प्रीतिजी ठीक कह रही हैं. भूषण साहब, मीटिंग तो मौका-ए-वारदात पर ही होनी चाहिए. इस हौल में 25-30 लोग आसानी से आ सकते हैं.’’

‘‘कमेटी के सदस्य इस से कम ही हैं. लेकिन डा. गौरव, आप और वर्मा दंपती पड़ोसी होने के नाते जरूर आइएगा,’’ भूषणजी ने कहा, ‘‘तो कल फिर यहीं मिलते हैं, 4 बजे कमेटी जो तय करेगी उसे फिर संडे को जनरल बौडी मीटिंग में सर्वसम्मति से पास करवा लेंगे.’’ प्रीति या दूसरों को लिहाफ में घुसते ही नींद आई या नहीं, लेकिन डा. गौरव सो नहीं सके. न तो भूतप्रेत का सवाल था, न ही किसी और के प्रीति के फ्लैट में घुसने का. तो फिर ये सब क्या है? गौरव को न तो पड़ोस में दखलंदाजी का शौक था और न ही फुरसत लेकिन उसे मामला दिलचस्प लग रहा था. इस बारे में अधिक जानकारी प्रीति से जानपहचान बढ़ा कर ही मिल सकती थी जो मीटिंग में जाने से नहीं, अकेले में मिलने से बढ़ सकती थी और तभी मामले की गहराई में जाया जा सकता था. उस ने सोचा कि बेहतर होगा कि 6 बजे के बाद जाए ताकि तब तक मीटिंग खत्म हो चुकी हो और अगर प्रीति आग्रह कर के रोकेगी तो ठीक, वरना सौरी कह कर वापस आ जाएगा. उस के घंटी बजाने पर गले में एप्रैन बांधे नौकर ने दरवाजा खोला.

‘‘प्रीतिजी हैं?’’

‘‘जी, सर, आइए,’’ वह सम्मानपूर्वक से बोला. प्रीति डाइनिंग टेबल के पास खड़ी थी. उसे देखते ही चहकी ‘‘ओह, डा. गौरव, आइएआइए.’’

‘‘सौरी, मुझे आने में देर हो गई. मीटिंग तो लगता है खत्म हो गई, मैं चलता हूं.’’

‘‘मीटिंग में क्या हुआ, नहीं सुनना चाहेंगे?’’

‘‘जी, बताइए?’’

‘‘इत्मीनान से बैठ कर चाय पीते हुए सुनने वाली बातें हैं.’’

‘‘बैठ जाता हूं मगर चायपानी के लिए परेशान मत होइए.’’

‘‘शुंभ, हम लोगों का चायनाश्ता यहीं दे जाओ,’’ प्रीति ने आराम से बैठते हुए कहा, ‘‘मेरी परेशानी खत्म. आज सुबह जब मैं ने फ्रिज खेला तो उस में से काफी फल, जैम और ब्रैड वगैरा गायब थे.’’

लड़का चाहिए-घर वालों के दबाव में आकर सुरेंद्र को शादी करनी पड़ी

एक अदद लड़के की चाह में बेचारा सुरेंद्र बन गया बलि का बकरा. खानदान को चश्मोचिराग देने की जिम्मेदारी उसी पर टिकी थी. करता, क्या न करता, चुपचाप सब की मानता रहा…

यह सुरेंद्र का दुर्भाग्य था या सौभाग्य, क्या कहें. वह उस संयुक्त परिवार के बच्चों में सब से आखिरी और 8वें नंबर पर आता था. अब वह 21 साल का ग्रैजुएट हो चुका था व छोटामोटा कामधंधा भी करने लगा था. देखनेदिखाने में औसत से कुछ ऊपर ही था. उस के विवाह के लिए नए प्रस्ताव भी आने लगे थे. यहां तक तो उस के भाग्य में कोई दोष नहीं था परंतु उस के सभी बड़े भाइयों के यहां कुल 17 लड़कियां हो चुकी थीं और अब किसी के यहां लड़का होने की उम्मीद नहीं थी. इसी कारण वंश को आगे बढ़ाने की सारी जिम्मेदारी सुरेंद्र पर टिकी हुई थी.

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अब तक घरपरिवार और चेहरेमोहरे को देखने वाले इस परिवार ने दूसरी बातों का सहारा लेना भी शुरू कर दिया, जैसे जन्मपत्रिका मिलाना, परिवार में हुए बच्चों का इतिहास जानना आदि. पत्रिका मिलान करते समय पंडितों को इस बात पर विशेष ध्यान देने को कहा जाता कि पत्रिका में पुत्र उत्पन्न करने संबंधी योग, नक्षत्र भी हैं या नहीं.

एक पंडित से पत्रिका मिलवाने के बाद दूसरे पंडित की सैकंड ओपिनियन भी जरूर ली जाती. पंडित लोग भी मौका देख कर भारीभरकम फीस वसूल करते.

कई लड़कियां तो सुरेंद्र को अच्छी भी लगीं किंतु पंडितों की भविष्यवाणी के आधार पर रिजैक्ट कर दी गईं. एक जगह तो अच्छाखासा विवाद भी हो गया जब एक लड़की ज्योतिष के सभी परीक्षणों में सफल भी हुई, लेकिन स्त्री स्वतंत्रता की पक्षधर उस लड़की को यह सबकुछ बेहद असहज व स्त्रियों के प्रति अपमानजनक लगा.

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सुरेंद्र से एकांत में मुलाकात के समय उस ने सुरेंद्र से कहा कि जब आप के परिवार में 17 कन्याओं ने जन्म लिया है तो मुझे आप के घर के पुरुषों के प्रति संदेह है कि उन में लड़का पैदा करने की क्षमता भी है या नहीं. मेरे साथ शादी करने से पहले आप को इस बात का मैडिकल प्रमाणपत्र देना होगा कि आप पुत्र उत्पन्न करने की क्षमता रखते हैं.

जब यह बात रिश्तेदारों और जानपहचान वालों को पता चली तो कई लोग बिन मांगे सुझाव और सलाहों के साथ हाजिर हो गए. किसी ने कहा कि ऐसी लड़की का चयन करना जिस की मां को पहली संतान के रूप में पुत्ररत्न की प्राप्ति हुई हो. किसी की सलाह थी, कमर से जितने अधिक नीचे बाल होंगे, लड़का होने की संभावना उतनी ही अधिक होगी. एक सलाह यह भी थी कि पुत्र उत्पन्न करने में वे लड़कियां ज्यादा सफल होती हैं जो चलते समय अपना बायां पैर पहले बाहर रखती हैं.

यदि लड़की की नानी ने भी पहली संतान के रूप में लड़के को जन्म दिया हो, संभावनाएं शतप्रतिशत हो जाती हैं.

इसी तरह की और भी न जाने क्याक्या सलाहें मिलती रहीं.

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सुरेंद्र का परिवार सभी सलाहों पर हर मुमकिन अमल करने का प्रयास भी इस तरह से कर रहा था मानो यदि अब एक लड़की और हो गई तो वह उस की परवरिश करने में असमर्थ रहेगा. अब तो टोनेटोटके के बावजूद पैदा हुई सब से छोटी लड़की के पुराने कपड़ों को भी घर से हटा दिया गया था क्योंकि इस तरह के पुराने कपड़ों को रखना पनौती माना जाता है.

सुझावों को ध्यान में रख कर सुरेंद्र के लिए लड़कियां देखी जाती रहीं, और किसी न किसी आधार पर अस्वीकृत भी की जाती रहीं. इसी तरह 2 बरस बीत गए और कुछ रिजैक्टेड लड़कियों ने अपनी शादी के बाद अपनी पहली संतान के रूप में लड़कों को जन्म भी दे दिया.

आखिरकार, परिवार की मेहनत रंग लाई और कड़ी खोजबीन के बाद इस तरह की लड़की को खोजने में सफल हो ही गया. खोजी गई लड़की के बाल कमर से लगभग डेढ़ फुट तक नीचे जाते थे. मतलब, एक विश्वसनीय सुरक्षित लंबाई थी बालों की.

लड़की की मां, नानी, यहां तक कि परनानी ने भी पहली संतान के रूप में लड़के को ही जन्म दिया था. यानी यहां दोहरा सुरक्षाकवच मौजूद था. सोने पर सुहागा यह कि लड़की चलते समय बायां पैर ही पहले निकालती थी.

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अब तो तीनसौ प्रतिशत संभावनाएं थीं कि यह लड़की, लड़का पैदा करने में पूरी तरह सक्षम है. परंतु जो बात सब से महत्त्वपूर्ण थी वह यह कि सुरेंद्र को यह लड़की पसंद नहीं थी क्योंकि लड़की रंगरूप के मामले में औसत भारतीय लड़कियों से भी नीचे थी.

उस से भी बड़ी बात यह थी कि लड़की मुश्किल से 3 प्रयासों के बाद इंटर की परीक्षा पास कर पाई थी. सभी चीजें तो एक लड़की में नहीं मिल सकती न, ‘वंश तो लड़कों से चलता हैं न कि लड़की की पढ़ाईलिखाई या रंगरूप से’ ये बातें सुरेंद्र को समझा कर किसी ने उस की एक न सुनी.

इस तरह सभी भौतिक परीक्षाओं में पास होने के बाद लड़की की जन्मकुंडली पंडितजी को दिखाई गई. पंडितजी भी एक ही जजमान की कुंडली बारबार देख कर त्रस्त हो चुके थे. वे भी चाहते थे जैसे भी हो, इस बार कुंडली मिला ही दूंगा चाहे कोई पूजा ही क्यों न करवानी पड़े.

उन के अनुसार भी, कुंडली का मिलान भी श्रेष्ठ ही था. किंतु एक हिदायत उन्होंने भी दे दी कि लड़का होने की संभावनाएं तब ही बलवती होंगी जब संतान शादी के एक वर्ष के भीतर गोद में आ जाए.

आखिरकार सुरेंद्र की अनिच्छा के बावजूद शादी धूमधाम से हो गई. लड़की ने इंटर की परीक्षा जरूर 3 प्रयासों में पास की थी लेकिन वह इतना तो जानती ही थी कि इतनी जल्दी मातृत्व का बोझ उठाना ठीक नहीं होगा. उस ने टीवी और फिल्मों के जरिए यह जान लिया था कि शादी के शुरुआती वर्ष पतिपत्नी को एकदूसरे को समझने के लिए बहुत अहम होते हैं. ऐसे में कुछ वर्ष बच्चा नहीं होना चाहिए.

सुरेंद्र की पत्नी को पहले ही दिन से वीआईपी ट्रीटमैंट दिया जा रहा था. उसे तरहतरह के प्रलोभन दिए जा रहे थे.

सुरेंद्र पर भी दबाव डाला जा रहा था और पंडितजी की हिदायतों की समयसमय पर याद करवाई जा रही थी.

2 माह बाद आखिर वह दिन भी आ ही गया जिस का सारे परिवार को इंतजार था. सुरेंद्र की पत्नी गर्भवती हो चुकी थी. मतलब, हर नजरिए से इस परिवार को पुत्र के रूप में वारिस मिलने की संभावनाएं बहुत अधिक हो गई थीं. किसी ने सलाह दी कि यदि इस में कुछ चिकित्सकीय सहायता भी ले ली जाए तो असफलता की संभावनाएं नहीं रहेंगी.

एलोपैथिक के डाक्टरों ने तो इस प्रकार की कोई भी औषधि देने से इनकार कर दिया. तब एक परिचित की सहायता से एक प्रसिद्ध आयुर्वेदिक वैद्यजी को दिखाया गया. वे इस शर्त पर दवा देने को तैयार हुए कि बच्चे के लिए सोनोग्राफी नहीं करवाई जाएगी.

परिवार वालों ने वैद्यजी की बातों को माना और वैद्यजी की बताई गई दवाई पूर्णिमा को खिला भी दी गई.

समयसमय एलोपैथी के डाक्टर को दिखा कर बच्चे की शारीरिक प्रगति पर ध्यान दिया जाता रहा. लेकिन वैद्यजी की सलाह के अनुसार सोनोग्राफी की अनुमति नहीं दी गई. डाक्टर अपने अनुभवों के आधार पर उपचारित करते रहे. परिवार वाले भी सुरेंद्र की पत्नी की हर इच्छा को आदेश मान कर पालन करते रहे.

सुरेंद्र की पत्नी अपनेआप को किसी वीआईवी से कम नहीं समझ रही थी. विवाह के 11 महीनों के बाद आखिर वह दिन भी आ ही गया जिस का सभी को इंतजार था. सुरेंद्र की पत्नी को अस्पताल में भरती करवा दिया गया. घर पर पूजापाठहवन आदि का इंतजाम किया गया. पूरे घर में लड़का होेने की अग्रिम खुशी में उत्सव जैसा माहौल हो गया.

आखिर वह समय भी आ गया

जब परिणाम घोषित हुआ. परिणाम पिछले 17 परिणामों से अलग नहीं था.

सुरेंद्र की पत्नी ने एक स्वस्थ और सुंदर कन्या को जन्म दिया. इस घड़ी में सुरेंद्र का परिवार तो कुछ कहने की स्थिति में नहीं था परंतु बाहर के लोग तो कह ही रहे थे, कुछ हंसी में और कुछ संवेदना में. कुछ लोग तो यह सलाह देने के लिए आ रहे थे कि दूसरी संतान पुत्र कैसे हो, इस के कुछ नुस्खे उन के पास मौजूद हैं.

किंतु, गुस्से से भरा सुरेंद्र पहले की सलाह देने वालों को ढूंढ़ रहा है. आप भी तो उन में से एक नहीं है न. यदि हैं, तो बच कर रहिए.

 हरीश जायसवाल

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