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मेरे पति खूब खुला खर्च करते हैं, कतई बचत नहीं करते, कई बार उन्हें समझा चुकी हूं कि हमें कुछ सेविंग करनी चाहिए पर उन के कान पर जूं तक नहीं रेंगती, क्या करूं?

सवाल
मैं 28 वर्षीय विवाहिता हूं. विवाह को 9 वर्ष हो चुके हैं. मेरा दांपत्य जीवन पूरी तरह से खुशहाल है. बस एक ही परेशानी है, वह यह कि मेरे पति खूब खुला खर्च करते हैं. कतई बचत नहीं करते. कई बार उन्हें समझा चुकी हूं कि हमें अपने और अपने बच्चों के लिए कुछ न कुछ सेविंग करनी चाहिए पर उन के कान पर जूं तक नहीं रेंगती. आज हमारी अच्छी आय है. पर भविष्य में जब बच्चे बड़े होंगे, उन की जरूरतें बढ़ेंगी तब उन्हें कहां से पूरा करेंगे.

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जवाब
आप की सोच बिलकुल वाजिब है कि आदमनी चाहे जितनी भी हो व्यक्ति को भविष्य के लिए थोड़ीबहुत बचत अवश्य करनी चाहिए. बच्चों के लिए और कई बार स्वयं के लिए भी कई खर्च आ जाते हैं, जिन के लिए व्यक्ति ने पहले से नहीं सोचा होता. ऐसी जरूरतों को पूरा करने के लिए समय पर की गई बचत काफी मददगार साबित होती है. संभवतया अभी आप के पति इस सचाई को नहीं समझ पा रहे, इसलिए वे आप की सलाह पर गौर नहीं कर रहे पर समय के साथ मैच्योर होने पर और जीवन के अनुभवों से वे जरूर समझ जाएंगे.

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जहां तक आप के द्वारा उन्हें बिना बताए अकाउंट खुलवाने और बचत करने की बात है तो उस में कोई बुराई नहीं, कारण, आप ने अच्छी मंशा से ही यह कदम उठाया है. इसलिए इस के लिए आप को कतई अपराधबोध नहीं होना चाहिए. फिर भी उन का मूड देख कर आप उन से यह बात साझा कर सकती हैं. जान कर उन्हें अच्छा ही लगेगा और आप भी इस बात से चिंतामुक्त हो जाएंगी कि आप ने उन्हें विश्वास में नहीं लिया.

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz

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अडानी पर क्यों भड़के स्वामी

सुब्रमण्यम स्वामी अकसर अपनी ही सरकार पर चढ़ बैठते हैं. खूब किरकिरी करते हैं. लेकिन अब की बार वे सरकार के खासमखास पर चढ़ बैठे हैं. सरकार मौन है. ऐसा लगता है जैसे इस मौन में सरकार की स्वीकृति समाहित है. केंद्र की भाजपा सरकार के फायरब्रैंड नेता सुब्रमण्यम स्वामी अकसर बागी हो जाते हैं. अपनी ही सरकार पर चढ़ बैठते हैं. धमकियां देने लगते हैं. सरकार के सब से बड़े आलोचक दिखने लगते हैं और अपने बयानों से सरकार को कठघरे में खड़ा कर देते हैं.

यह बात और है कि सरकार की सेहत पर उन की धमकियों का असर नहीं होता और अकसर उन के विवादास्पद बयान सोशल मीडिया पर चुटकुला बन कर रह जाते हैं. स्वामी ने ट्वीट किया, ‘‘चीन की पीपुल्स लिब्रेशन आर्मी ने एलएसी के पास 30 आधुनिक टैंक खड़े कर रखे हैं ताकि वह हमारी सेना पर हमला कर सके. कोरोना वैक्सीन के उत्साह में इस ओर ध्यान नहीं दिया जा रहा है. आखिर हमें अपनी ही जमीन को वापस लेने में किस बात की िझ झक है. हम क्यों डर रहे हैं?’’ स्वामी ने सरकार को डरपोक कहा. जबकि मोदी सरकार यह कहती है,

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‘‘हमारी इंचभर जमीन भी किसी के कब्जे में नहीं है.’’ सरकार में बैठे स्वामी ने यह खुलासा किया कि चीन हमारी जमीन दाबे बैठा है. लेकिन उन के इस ट्वीट का सरकार की सेहत पर असर नहीं दिखा. किसी ने ट्वीट का जवाब तक देना गवारा न किया. स्वामी भाजपा आईटी सैल के सर्वेसर्वा अमित मालवीय के पीछे हाथ धो कर पड़े रहे. उन्हें वहां से खदेड़ कर बाहर करने की बात करते रहे. लेकिन किसी ने उन की बात पर कान नहीं धरा. कोरोना की देशी वैक्सीन की जगह विदेशी वैक्सीन को पहले मंजूरी मिलने पर उन्होंने कह दिया कि, ‘‘पीएमओ में भ्रष्ट अफसरों की भरमार है.’’

मगर सरकार ने उफ तक न की. अभी हाल में चेन्नई में एक कार्यक्रम में सुब्रमण्यम स्वामी ने देश की गिरती अर्थव्यवस्था के लिए वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण की जम कर आलोचना की. इस से पहले वे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बेहद करीबी नेताओं में शुमार रहे दिवंगत अरुण जेटली से वित्त मंत्रालय छीन लेने की बातें किया करते थे. अरुण जेटली को तो वित्त मंत्री रहते सुब्रमण्यम स्वामी ने पानी पीपी कर कोसा. लेकिन हैरत की बात यह है कि अरुण जेटली जब तक जीवित रहे, मंत्रालय के मंत्री रहे और प्रधानमंत्री ने स्वामी के खिलाफ कभी कुछ न बोला. ताजा मामला प्रधानमंत्री मोदी के चहेते उद्योगपति गौतम अडानी का है. अडानी की दिन दूनी रात चौगुनी बढ़ती संपत्ति और बैंक का कर्जा न चुकाने को इंगित करते हुए स्वामी उन पर चढ़ बैठे हैं. स्वामी ने ट्वीट किया है,

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‘‘कलाबाज अडानी पर अब बैंकों का 4.5 लाख करोड़ रुपए का एनपीए है. मु झे सही कीजिए यदि मैं गलत हूं. 2016 से अब तक उन की वैल्थ हर 2 साल में दोगुनी हो रही है. वे बैंकों को पुनर्भुगतान क्यों नहीं करते? हो सकता है कि 6 हवाई अड्डों को खरीदने के बाद वे जल्द ही उन सभी बैंकों को खरीद लें जिन से उन्होंने पैसे लिए हैं.’’ स्वामी के इस ट्वीट के बाद भी सरकार में कोई हलचल नहीं है. बस, अडानी के दफ्तर से अपनी सफाई में कुछ ट्वीट्स आए हैं. कुछ समय पहले रिजर्व बैंक औफ इंडिया ने बैंकों के एनपीए यानी नौन परफौर्मिंग असेट्स को ले कर रैड फ्लैग जारी किया था. माना जा रहा है कि सितंबर 2021 तक बैंकों का कुल एनपीए 13.5 फीसदी पर पहुंच जाएगा, जो सितंबर 2020 तक केवल 7.5 फीसदी था.

यही वजह है कि गवर्नर शक्तिकांत दास बैड बैंक बनाने पर विचार कर रहे हैं. उद्योगपति गौतम अडानी एनपीए को ले कर काफी चर्चा में हैं. स्वामी का कहना है कि अडानी की जवाबदेही तय की जानी चाहिए. बैंकों का उन पर करीब 4.5 लाख करोड़ रुपए का एनपीए है. जब वे देश के बड़ेबड़े हवाई अड्डे खरीद रहे हैं तो बैंक का कर्ज क्यों नहीं लौटा रहे हैं? इस से पहले मार्च 2018 में भी स्वामी ने अडानी को सब से अधिक एनपीए वाला औद्योगिक समूह बताया था. उन्होंने उस समय गौतम अडानी पर 72 हजार करोड़ रुपए का एनपीए होने का दावा किया था और कहा था कि इस संबंध में उन्हें सूचना मिली है और इस का खुलासा सिर्फ जांच के आधार पर ही हो सकता है. स्वामी के उस दावे में दम था, जिस की पुष्टि प्रमुख वित्तीय संस्थानों के डाटा से भी हुई थी.

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ब्लूमबर्ग के सितंबर 2017 के डेटा के अनुसार, अडानी पावर पर कुल 47,603.43 करोड़, अडानी ट्रांसमिशन पर 83,56.07 करोड़ और अडानी इंटरप्राइजेज पर 22,424.44 करोड़ रुपए का कर्ज था. उस समय अडानी के पास 11 बिलियन डौलर की संपत्ति थी और वे देश के 10वें सब से धनी व्यक्ति थे. बीते सवा तीन सालों में अडानी की संपत्ति ढाई गुना बढ़ गई है. सुब्रमण्यम स्वामी ने ट्वीट किया है, ‘‘सरकारी क्षेत्र में एनपीए के सब से बड़े कलाकार गौतम अडानी हैं. यह वक्त उन्हें जवाबदेह बनाने का है. अगर ऐसा नहीं हुआ तो वे अडानी के खिलाफ जनहित याचिका दायर करेंगे.’’ स्वामी ने कहा, ‘‘कई ऐसी चीजें हैं जिन से अडानी दूर भाग रहे हैं. कोई उन से सवाल भी नहीं पूछ रहा है. अडानी सरकार के करीबी होने की छवि बना रहे हैं. वे सरकार के लिए शर्मिंदगी का कारण बन सकते हैं.’’

गौतम अडानी आज मोदी सरकार के लिए वाकई शर्मिंदगी का कारण बन चुके हैं. देश के कृषि क्षेत्र पर कब्जा जमाने की अडानी की हवस मोदी सरकार के गले की फांस बन गई है. एक ओर देश का किसान है जो अडानी और उन की कंपनियों से अपनी जमीन व फसल बचाने के लिए डेढ़ महीने से हाड़ कंपाती ठंड व बारिश में दिल्ली की सीमाओं पर खुले आसमान के नीचे बीवीबच्चों के साथ बैठा है कि मोदी सरकार अडानी के दबाव में बने कृषि कानूनों को वापस ले ले, किसान का हक न मारे, किसानों को आत्महत्या करने को मजबूर न करे व दूसरी ओर मोदी के बेहद करीबी गौतम अडानी हैं जिन्होंने कृषि कानून बनने और संसद में पास होने से कहीं पहले देशभर में अनाज भंडारण के लिए करोड़ों रुपए मूल्य के भंडारणगृह स्थापित कर लिए, करोड़ों रुपए इस क्षेत्र में निवेश कर दिए और अब किसी भी सूरत में सरकार को कृषि कानून वापस नहीं लेने दे रहे हैं.

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देशभर का किसान आंदोलनरत है. दुनियाभर में भाजपा सरकार की भद्द पिट रही है. अडानी और किसान के बीच सरकार के मंत्री फुटबौल बने हुए हैं. किसानों के साथ 10 दौर की बेनतीजा बातचीत हो चुकी है. कृषि मंत्री के चेहरे का रंग उतर चुका है. भाजपा का वोटबैंक खतरे में है. मगर अडानी का दबाव सरकार पर किसी तरह कम नहीं हो रहा है. ऐसे वक्त में सुब्रमण्यम स्वामी का गौतम अडानी पर बैंकों के एनपीए को ले कर चढ़ बैठना और उन्हें कोर्ट में घसीटने की धमकी देना सरकार को जरूर थोड़ी राहत प्रदान कर रहा होगा. सुब्रमण्यम स्वामी बात भी ठीक कह रहे हैं. अडानी बैंकों का लोन, जो वे अपने राजनीतिक रसूख से एनपीए करा ले रहे हैं, चुका क्यों नहीं देते? आज किसानों की कर्जमाफी की बात होती है तो सरकार और उस के अर्थविशेषज्ञ इस पर सरकार को राय देने लगते हैं कि ऐसे कर्जमाफी से न केवल अर्थव्यवस्था पर असर पड़ेगा बल्कि बैंकों की सेहत पर भी बुरा प्रभाव पड़ेगा.

ऐसे में अडानी, अंबानी, माल्या, नीरव मोदी जैसे बड़ेबड़े उद्योगपतियों द्वारा उधार लिया गया लाखों करोड़ रुपया वापस क्यों नहीं मांगा जा रहा है? जो बैंकों को अरबों की चपत लगा कर देश से रफूचक्कर हो गए, उन की बात छोडि़ए, लेकिन जो मौजूद हैं उन से तो वसूली कीजिए. सुब्रमण्यम स्वामी की यह बात भी बिलकुल सही है कि अडानी, जब हर 2 साल में अपनी संपत्ति दूनी कर रहे हैं, तो उन्हें बैंकों का ऋण तो वापस कर ही देना चाहिए. लेकिन अडानी ऐसा नहीं करेंगे. उन पर प्रधानमंत्री की विशेष अनुकंपा रही है. प्रधानमंत्री हर विदेश यात्रा में उन्हें साथ लिए घूमे हैं.

अपने ही देश में नहीं, बल्कि कई अन्य देशों में उन को बड़ेबड़े प्रोजैक्ट दिलाए हैं. उपकार दोनों तरफ से हुए हैं और इन उपकारों तले आज सरकार दबीदबी सी दिख रही है. गौरतलब है कि प्रधानमंत्री मोदी और गौतम अडानी की दोस्ती तब से है जब नरेंद्र मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री हुआ करते थे. 2014 के लोकसभा चुनाव के दौरान गौतम अडानी की प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से करीबी सब ने देखी. लोकसभा चुनाव में प्रचार के दौरान नरेंद्र मोदी को अडानी समूह के हवाई जहाज का इस्तेमाल करते देखा गया. सरकार बनी, तो गौतम अडानी के कारोबार ने बुलेट ट्रेन सी रफ्तार पकड़ी.

2017 में भारत के कारोबारियों में गौतम अडानी की संपत्ति सब से तेजी से बढ़ी. और अडानी ने रिलायंस के चेयरमैन मुकेश अंबानी को भी पीछे छोड़ दिया. अडानी की संपत्ति में 124.6 फीसदी की वृद्धि हुई जबकि अंबानी की संपत्ति 80 फीसदी बढ़ी. 2016 के बाद जिस तरह से अडानी ग्रुप की रुचि खेती सैक्टर में बढ़ी और उस के बाद जिस तरह से जून 2020 में मोदी सरकार ने 3 नए कृषि कानूनों को ले कर अध्यादेश जारी किया व जिस तरह तमाम संवैधानिक मर्यादाओं और नियमकानूनों को दरकिनार कर के राज्यसभा में उन्हें पारित, फिर घोषित कर दिया गया,

उस से साफ था कि इन नए कृषि कानूनों का लाभ किसानों के बजाय अडानी को ही अधिक मिलेगा. किसान भी सम झ गया है कि उस के हित की आड़ में सरकार ने उस की जमीनों और अनाज का सौदा अडानी के साथ पक्का कर दिया है. इसीलिए किसान आज सड़क पर बैठा है. इन कानूनों की समीक्षा में लगभग सभी कृषि अर्थशास्त्री भी इस मत पर दृढ़ हैं कि ये कानून केवल और केवल कौर्पोरेट को भारतीय कृषि सैक्टर सौंपने के लिए लाए गए हैं. किसानों से दर्जनभर वार्त्ताएं कर के भी सरकार अब तक देश व किसानों को नहीं सम झा पाई है कि इन कानूनों से किसानों का कौन सा, कितना और कैसा हित सधेगा. मगर जो कानून किसानों को चाहिए ही नहीं, उस को वापस लेने की हिम्मत वह नहीं जुटा पा रही है. आखिर क्यों? क्या मजबूरी है? क्या डर है? क्या दबाव है?

इन सवालों का सिर्फ एक जवाब है – अडानी कितनी हैरान करने वाली बात है कि देश को रोटी देने वाले अन्नदाता हर साल बड़ी संख्या में आत्महत्या कर लेते हैं क्योंकि वे बढि़या फसल पैदा कर के भी गरीबी और कर्ज से नहीं उबर पाते. उन की हाड़तोड़ मेहनत से उगाई फसल कौढि़यों के दाम खरीदी जाती है, इतनी कम आमदनी कि खाद और बीज तक के पैसे नहीं निकल पाते. सरकार उन को न्यूनतम समर्थन मूल्य तक नहीं देती. कर्ज का बो झ इतना बढ़ जाता है कि फिर जान दे कर ही छुटकारा पाने का रास्ता सू झता है. साल 2019 में 10,281 कृषि से जुड़े लोगों ने आत्महत्या की है, जो देश में कुल हुई आत्महत्याओं का 7.4 फीसदी है. 2019 में देशभर में कुल 1,39,516 लोगों ने आत्महत्या की थी. यह आंकड़ा, एनसीआरबी (नैशलन क्राइम रिकौर्ड ब्यूरो) के ऐक्सिडैंटल डैथ एंड सुसाइड इन इंडिया अध्याय से लिया गया है.

साल 2019 में हुई आत्महत्याओं की संख्या साल 2018 में हुई आत्महत्याओं की संख्या 10,348 से थोड़ी ही कम है. यह भी आश्चर्यजनक तथ्य है कि आत्महत्या करने वाले किसानों में 86 फीसदी किसान वे हैं जिन के पास भूमि है और शेष 14 फीसदी भूमिहीन किसान हैं. सरकार द्वारा अडानी के दबाव में किसानों पर थोपे जा रहे 3 नए कृषि कानूनों के बाद तो किसानों की स्थिति और बदतर हो जाएगी. यही वजह है कि किसान दिल्ली की सीमा पर सरकार को घेरे बैठे हैं और सरकार को कोई रास्ता नहीं सू झ रहा है. अडानी ग्रुप द्वारा कृषि सैक्टर में भारीभरकम निवेश और गौतम अडानी का प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का बेहद करीबी होना दुनियाभर में मोदी व उन की सरकार की किरकिरी करा रहा है, जो बूढ़े और गरीब किसानों तक की कराह नहीं सुन पा रही है.

मोदी सरकार इस कदर अडानी के दबाव में है कि आंदोलनरत किसानों की मौतों पर अपनी संवेदना तक व्यक्त नहीं कर पा रही है. मोदी बड़े धर्मसंकट में घिरे हैं. एक तरफ दोस्त है, दूसरी तरफ वोट है. ऐसे कठिन वक्त में सुब्रमण्यम स्वामी का एनपीए को ले कर गौतम अडानी पर चढ़ बैठना प्रधानमंत्री को कुछ राहत तो जरूर पहुंचा रहा होगा.ं स्वामी की किसी हरकत पर, किसी बयान पर मोदी खफा नहीं हैं. स्वामी सरकार को घेर रहे हैं. स्वामी मोदी के खासमखास उद्योगपति को आईना दिखा रहे हैं, उन्हें धमकी दे रहे हैं, उन्हें कोर्ट में घसीटने की बात कर रहे हैं, मगर मोदी मौन हैं. क्या मोदी डरते हैं स्वामी से? नहीं. स्वामी तो तारणहार हैं.

बड़े ताऊजी: शुभा ससुराल में क्यों नहीं रहना चाहती थी

रिटायरमैंट के बाद अपने ही जन्मस्थान में जा कर बसने का मेरा अनमोल सपना था. जहां पैदा हुआ, जहां गलियों में खेला व बड़ा हुआ, वह जगह कितनी ही यादों को जिंदा रखे है. कक्षा 12 तक पढ़ने के बाद जो अपना शहर छोड़ा तो बस मुड़ कर देख ही नहीं पाया. नौकरी सारा भारत घुमाती रही और मैं घूमता रहा. जितनी दूर मैं अपने शहर से होता गया उतना ही वह मेरे मन के भीतर कहीं समाता गया. छुट्टियों में जब घर आते तब सब से मिलने जाते रहे. सभी आवभगत करते रहे, प्यार और अपनत्व से मिलते रहे. कितना प्यार है न मेरे शहर में. सब कितने प्यार से मिलते हैं, सुखदुख पूछते हैं. ‘कैसे हो?’ सब के होंठों पर यही प्रश्न होता है.
रिटायरमैंट में सालभर रह गया. बच्चों का ब्याह कर, उन के अपनेअपने स्थानों पर उन्हें भेज कर मैं ने गंभीरता से इस विषय पर विचार किया. लंबी छुट्टी ले कर अपने शहर, अपने रिश्तेदारों के साथ थोड़ाथोड़ा समय बिता कर यह सर्वेक्षण करना चाहा कि रहने के लिए कौन सी जगह उपयुक्त रहेगी, घर बनवाना पड़ेगा या बनाबनाया ही कहीं खरीद लेंगे.
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मुझे याद है, पिछली बार जब मैं आया था तब विजय चाचा के साथ छोटे भाई की अनबन चल रही थी. मैं ने सुलह करवा कर अपना कर्तव्य निभा लिया था. छोटी बूआ और बड़ी बूआ भी ठंडा सा व्यवहार कर रही थीं. मगर मेरे साथ सब ने प्यार भरा व्यवहार ही किया था. अच्छा नहीं लगा था तब मुझे चाचाभतीजे का मनमुटाव.
इस बार भी कुछ ऐसा ही लगा तो पत्नी ने समझाया, ‘‘जहां चार बरतन होते हैं तो वे खड़कते ही हैं. मैं तो हर बार देखती हूं. जब भी घर आओ किसी न किसी से किसी न किसी का तनाव चल रहा होता है. 4 साल पहले भी विजय चाचा के परिवार से अबोला चल रहा था.’’
‘‘लेकिन हम तो उन से मिलने गए न. तुम चाची के लिए साड़ी लाई थीं.’’
‘‘तब छोटी का मुंह सूज गया था. मैं ने बताया तो था आप को. साफसाफ तो नहीं मगर इतना इशारा आप के भाई ने भी किया था कि जो उस का रिश्तेदार है वह चाचा से नहीं मिल सकता.’’
‘‘अच्छा? मतलब मेरा अपना व्यवहार, मेरी अपनी बुद्धि गई भाड़ में. जिसे छोटा पसंद नहीं करेगा उसे मुझे भी छोड़ना पड़ेगा.’’
‘‘और इस बार छोटे का परिवार विजय चाचा के साथ तो घीशक्कर जैसा है. लेकिन बड़ी बूआ के साथ नाराज चल रहा है.’’
‘‘वह क्यों?’’
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‘‘आप खुद ही देखसुन लीजिए न. मैं अपने मुंह से कुछ कहना नहीं चाहती. कुछ कहा तो आप कहेंगे कि नमकमिर्च लगा कर सुना रही हूं.’’
पत्नी का तुनकना भी सही था. वास्तव में आंखें बंद कर के मैं किसी भी औरत की बात पर विश्वास नहीं करता, वह चाहे मेरी मां ही क्यों न हो. अकसर औरतें ही हर फसाद और कलहक्लेश का बीज रोपती हैं. 10 भाई सालों तक साथसाथ रहते हैं लेकिन 2 औरतें आई नहीं कि सब तितरबितर. मायके में बहनों का आपस में झगड़ा हो जाएगा तो जल्दी ही भूल कर माफ भी कर देंगी और समय पड़ने पर संगसंग हो लेंगी लेकिन ससुराल में भाइयों में अनबन हो जाए तो उस आग में सारी उम्र घी डालने का काम करेंगी. अपनी मां को भी मैं ने अकसर बात घुमाफिरा कर करते देखा है.
नौकरी के सिलसिले में लगभग
100-200 परिवारों की कहानी तो बड़ी नजदीक से देखीसुनी ही है मैं ने. हर घर में वही सब. वही अधिकार का रोना, वही औरत का अपने परिवार को ले कर सदा असुरक्षित रहना. ज्यादा झगड़ा सदा औरतें ही करती हैं.
मेरी पत्नी शुभा यह सब जानती है इसीलिए कभी कोई राय नहीं देती. मेरे यहां घर बना कर सदा के लिए रहने के लिए भी वह तैयार नहीं है. इसीलिए चाहती है लंबा समय यहां टिक कर जरा सी जांचपड़ताल तो करूं कि दूर के ढोल ही सुहावने हैं या वास्तव में यहां पे्रम की पवित्र नदी, जलधारा बहती है. कभीकभी कोई आया और उस से आप ने लाड़प्यार कर लिया, उस का मतलब यह तो नहीं कि लाड़प्यार करना ही उन का चरित्र है. 10-15 मिनट में किसी का मन भला कैसे टटोला जा सकता है. हमारे खानदान के एक ताऊजी हैं जिन से हमारा सामना सदा इस तरह होता रहा है मानो सिर पर उन की छत न होती तो हम अनाथ  ही होते. सारे काम छोड़छाड़ कर हम उन के चरणस्पर्श करने दौड़ते हैं. सब से बड़े हैं, इसलिए छोटीमोटी सलाह भी उन से की जाती है. उम्रदराज हैं इसलिए उन की जानपहचान का लाभ भी अकसर हमें मिलता है. राजनीति में भी उन का खासा दखल है जिस वजह से अकसर परिवार का कोई काम रुक जाता है तो भागेभागे उन्हीं के पास जाते हैं हम, ‘ताऊजी यह, ताऊजी वह.’
हमें अच्छाखासा सहारा लगता है उन का. बड़ेबुजुर्ग बैठे हों तो सिर पर एक आसमान जैसी अनुभूति होती है और वही आसमान हैं वे ताऊजी. हमारे खानदान में वही अब बड़े हैं. उन का नाम हम बड़ी इज्जत, बड़े सम्मान से लेते हैं. छोटा भाई इस बार कुछ ज्यादा ही परेशान लगा. मैं ताऊजी के लिए शाल लाया था उपहार में. शुभा से कहा कि वह शाम को तैयार रहे, उन के घर जाना है. छोटा भाई मुझे यों देखने लगा, मानो उस के कानों में गरम सीसा डाल दिया हो किसी ने. शायद इस बार उन से भी अनबन हो गई हो, क्योंकि हर बार किसी न किसी से उस का झगड़ा होता ही है.
‘‘आप का दिमाग तो ठीक है न भाई साहब. आप ताऊ के घर शाल ले कर जाएंगे? बेहतर है मुझे गोली मार कर मुझ पर इस का कफन डाल दीजिए.’’
स्तब्ध तो रहना ही था मुझे. यह क्या कह रहा है, छोटा. इस तरह क्यों?
‘‘बाहर रहते हैं न आप, आप नहीं जानते यहां घर पर क्याक्या होता है. मैं पागल नहीं हूं जो सब से लड़ता रहता हूं. मुकदमा चल रहा है विजय चाचा का और मेरा ताऊ के साथ. और दोनों बूआ उन का साथ दे रही हैं. सबकुछ है ताऊ के पास. 10 दुकानें हैं, बाजार में 4 कोठियां हैं, ट्रांसपोर्ट कंपनी है, शोरूम हैं. औलाद एक ही है. और कितना चाहिए इंसान को जीने के लिए?’’
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‘‘तो? सच है लेकिन उन के पास जो है वह उन का अपना है. इस में हमें कोई जलन नहीं होनी चाहिए.’’
‘‘हमारा जो है उसे तो हमारे पास रहने दें. कोई सरकारी कागज है ताऊ के पास. उसी के बल पर उन्होंने हम पर और विजय चाचा पर मुकदमा ठोंक रखा है कि हम दोनों का घर हमारा नहीं है, उन का है. नीचे से ले कर ऊपर तक हर जगह तो ताऊ का ही दरबार है. हर वकील उन का दोस्त है और हर जज, हर कलैक्टर उन का यार. मैं कहां जाऊं रोने? बच्चा रोता हुआ बाप के पास आता है. मेरा तो गला मेरा बाप ही काट रहा है. ताऊ की भूख इतनी बढ़ चुकी है कि …’’
आसमान से नीचे गिरा मैं. मानो समूल अस्तित्व ही पारापारा हो कर छोटेछोटे दानों में इधरउधर बिखर गया. शाल हाथ से छूट गया. समय लग गया मुझे अपने कानों पर विश्वास करने में. क्या कभी मैं ऐसा कर पाऊंगा छोटे के बच्चों के साथ? करोड़ों का मानसम्मान अगर मुझे मेरे बच्चे दे रहे होंगे तो क्या मैं लाखों के लिए अपने ही बच्चों के मुंह का निवाला छीन पाऊंगा कभी? कितना चाहिए किसी को जीने के लिए, मैं तो आज तक यही समझ नहीं पाया. रोटी की भूख और 6 फुट जगह सोने को और मरणोपरांत खाक हो जाने के बाद तो वह भी नहीं. क्यों इतना संजोता है इंसान जबकि कल का पता ही नहीं. अपने छोटे भाई का दर्द मैं ही समझ नहीं पाया. मैं भी तो कम दोषी नहीं हूं न. मुझे उस की परेशानी जाननी तो चाहिए थी.
मन में एक छोटी सी उम्मीद जागी. शाल ले कर मैं और शुभा शाम ताऊजी के घर चले ही गए, जैसे सदा जाते थे इज्जत और मानसम्मान के साथ. स्तब्ध था मैं उन का व्यवहार देख कर.
‘‘भाई की वकालत करने आए हो तो मत करना. वह घर और विजय का घर मेरे पिता ने मेरे लिए खरीदा था.’’
‘‘आप के पिता ने आप के लिए क्या खरीदा था, क्या नहीं, उस का पता हम कैसे लगाएं. आप के पिता हमारे पिता के भी तो पिता ही थे न. किसी पिता ने अपनी किस औलाद को कुछ भी नहीं दिया और किस को इतना सब दे दिया, उस का पता कैसे चले?’’
‘‘तो जाओ, पता करो न. तहसील में जाओ… कागज निकलवाओ.’’
‘‘तहसीलदार से हम क्या पता करें, ताऊजी. वहां तो चपरासी से ले कर ऊपर तक हर इंसान आप का खरीदा हुआ है. आज तक तो हम हर समस्या में आप के पास आते रहे. अब जब आप ही समस्या बन गए तो कहां जाएंगे? आप बड़े हैं. मेरी भी उम्र  60 साल की होने को आई. इतने सालों से तो वह घर हमारा ही है, आज एकाएक वह आप का कैसे हो गया? और माफ कीजिएगा, ताऊजी, मैं आप के सामने जबान खोल रहा हूं. क्या हमारे पिताजी इतने नालायक थे जो दादाजी ने उन्हें कुछ न दे कर सब आप को ही दे दिया और विजय चाचा को भी कुछ नहीं दिया?’’
‘‘मेरे सामने जबान खोलना तुम्हें भी आ गया, अपने भाई की तरह.’’
‘‘मैं गूंगा हूं, यह आप से किस ने कह दिया, ताऊजी? इज्जत और सम्मान करना जानता हूं तो क्या बात करना नहीं आता होगा मुझे. ताऊजी, आप का एक ही बच्चा है और आप भी कोई अमृत का घूंट पी कर नहीं आए. यहां की अदालतों में आप की चलती है, मैं जानता हूं मगर प्रकृति की अपनी एक अदालत है, जहां हमारे साथ अन्याय नहीं होगा, इतना विश्वास है मुझे. आप क्यों अपने बच्चों के लिए बद्दुआओं की लंबीचौड़ी फेहरिस्त तैयार कर रहे हैं? हमारे सिर से यदि आप छत छीन लेंगे तो क्या हमारा मन आप का भला चाहेगा?’’
‘‘दिमाग मत चाटो मेरा. जाओ, तुम से जो बन पाए, कर लो.’’
‘‘हम कुछ नहीं कर सकते, आप जानते हैं, तभी तो मैं समझाने आया हूं, ताऊजी.’’
ताऊजी ने मेरा लाया शाल उठा कर दहलीज के पार फेंक दिया और उठ कर अंदर चले गए, मानो मेरी बात भी सुनना अब उन्हें पसंद नहीं. हम अवाक् खड़े रहे. पत्नी शुभा कभी मुझे देखती और कभी जाते हुए ताऊजी की पीठ को. अपमान का घूंट पी कर रह गए हम दोनों.
85 साल के वृद्ध की आंखों में पैसे और सत्ता के लिए इतनी भूख. फिल्मों में तो देखी थी, अपने ही घर में स्वार्थ का नंगा नाच मैं पहली बार देख रहा था. सोचने लगा, मुझे वापस घर आना ही नहीं चाहिए था. सावन के अंधे की तरह यह खुशफहमी तो रहती कि मेरे शहर में मेरे अपनों का आपस में बड़ा प्यार है.
उस रात बहुत रोया मैं. छोटे भाई और विजय चाचा की लड़ाई में मैं भावनात्मक रूप से तो उन के साथ हूं मगर उन की मदद नहीं कर सकता क्योंकि मैं अपने भारत देश का एक आम नागरिक हूं जिसे दो वक्त की रोटी कमाना ही आसान नहीं, वह गुंडागर्दी और बदमाशी से सामना कैसे करे. बस, इतना ही कह सकता हूं कि ताऊ जैसे इंसान को सद्बुद्धि प्राप्त हो और हम जैसों को सहने की ताकत, क्योंकि एक आम आदमी सहने के सिवा और कुछ नहीं कर सकता.

सुशांत के बाद ‘MS Dhoni’ फिल्म के इस एक्टर ने भी किया सुसाइड, पत्नी से था परेशान

फिल्म इंडस्ट्री से एक और बुरी खबर आई है जिसे देखकर जानकर एक बार फिर से आप दुखी हो जाएंगे. अभिनेता संदीप नाहर ने सुसाइड कर लिया है. इस खबर के बाद से पूरे इंडस्ट्री का माहौल खराब हो गया है.

बता दें कि संदीप नाहर का शव मुंबई स्थित गोरेगांव में मिला है. जिसे देखने और जानने केे बाद लोगों की हालत खराब हो गई है. सुसाइड करने से पहले संदीप ने एक पोस्ट शेयर किया है जिसमें उन्होंने बताया था कि अब जीने की इच्छा नहीं हो रही है. लाइफ में बहुत सारे सुख और दुख देखें . हर चीज को फेस किया लेकिन अब जिस ट्रामा से गुजर रहा हूं उससे उबरना बहुत ज्यादा मुश्किल लग रहा है. उन्होंने कहा कि मुझे पता है कि सुसाइड करना गलत बात है लेकिन ऐसी जिंदगी जीने का क्या फायदा जहां अपनी सेल्फ रिस्पेक्ट ना हो.


आगे नाहर ने कहा मेरी पत्नी कंचन शर्मा और मेरी मां वीनू शर्मा दोनों ने मुझे समझने की कोशिश नहीं किया, मेरी पत्नी हाइपर नेचर की है जो मुझे कभी समझ नहीं पाई और हमारा मैच कभी नहीं खाया. रोज-रोज कलेश, सुबह -शाम कलेश अब मेरी सहने की शक्ति खत्म हो गई है इस वजह से मैं खुद को खत्म करने की कोशिश कर रहा हूं.

संदीप ने अपने पुराने दिन को याद करते हुए कहा कि मैंने जिंदगी में बहुत धक्के खाए हैं एक कमरे और किचन में 6 लोगों के साथ रहा हर तरह कि मेहनत करने से कभी पीछे नहीं हटा लेकिन शादी के बाद जीवन पूरी तरह से बदल गया है. अब मुझमें जीने की इच्छा नहीं हैं.

आगे संदीप ने कहा कि वह मेरे पास्ट को लेकर लड़ती रहती है मुझे गालियां देती रहती है और मुझे बुरा भला कहती रहती है. मैं इन सभी चीजों से तंग आकर ये कदम उठाने जा रहा हूं.

अभ्युदय योजना से प्रदेश के युवाओं को प्रतियोगी परीक्षाओं में मिलेगी मदद

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा है कि अभ्युदय योजना प्रदेश के युवाओं के उत्कर्ष का मार्ग प्रशस्त करने की राज्य सरकार की एक अभिनव योजना है. यह योजना प्रदेश के युवाओं के लिए समर्पित है. अभ्युदय योजना राज्य के युवाओं के लिए मील का पत्थर साबित होगी. जब बड़ी-बड़ी प्रतियोगी परीक्षाओं में प्रदेश का प्रतिनिधित्व बढ़ेगा, तो उसका लाभ भी प्रदेश को होगा.

मुख्यमंत्री ने अपने सरकारी आवास पर अभ्युदय योजना का शुभारम्भ करने के पश्चात इस योजना के बारे में विस्तार से जानकारी दी. उन्होंने ने कहा कि युवाओं को प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए निःशुल्क कोचिंग प्रदान करने के उद्देश्य से उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा एक अभिनव पहल करते हुए यह योजना प्रारम्भ की गयी है. अभ्युदय योजना के अन्तर्गत 16 फरवरी, 2021 को बसन्त पंचमी से प्रदेश में क्लासेज शुरू हुई. जिन युवाओं का टेस्ट के माध्यम से चयन हुआ है, उन्हें मण्डल मुख्यालय में साक्षात क्लास अटेण्ड करने का अवसर मिलेगा. शेष अभ्यर्थी वर्चुअल माध्यम से ऑनलाइन क्लास से जुड़ सकेंगे. उन्होंने कहा कि युवाओं को जिस भी फील्ड में जाना हो, उसकी शुरुआत अच्छे से करें. मजबूत बुनियाद ही मजबूत इमारत का आधार होती है. अभ्युदय योजना को लेकर यही भाव रखा गया है.

मुख्यमंत्री ने कहा कि 50 लाख से अधिक लोगों ने इस योजना में रुचि दिखायी है. 05 लाख से अधिक लोगों ने पंजीकरण कराया, जो योजना की लोकप्रियता को स्वतः दर्शाता है. अभ्युदय योजना के माध्यम से प्रतियोगी युवाओं को आईएएस, आईपीएस, आईएफएस, पीसीएस, सहित मेडिकल, आईआईटी के विशेषज्ञों का मार्गदर्शन प्राप्त होगा. अभ्युदय योजना को सफल बनाने के उद्देश्य से बेहतर फैकल्टी की व्यवस्था की जा रही है. मुख्यमंत्री ने कहा कि जीवन में यह बात सदैव याद रखनी चाहिए कि सकारात्मक सोच ही व्यक्ति को बड़ा बना सकती है. उन्होंने कहा कि आप सभी ने बेसिक शिक्षा के विद्यालयों में व्यापक परिवर्तन देखा होगा. इस परिवर्तन का आधार एक जिलाधिकारी की सोच का परिणाम है. आज प्रदेश के 90 हजार से अधिक विद्यालयों का कायाकल्प किया जा चुका है.

मुख्यमंत्री ने कहा कि अभ्युदय योजना के माध्यम से आत्मनिर्भर भारत बनाने की नींव और मजबूत होगी. अभ्युदय योजना को पहले चरण में 18 मण्डल मुख्यालयों में प्रारम्भ किया जा रहा है. आने वाले समय में इसका विस्तार जनपदों में भी किया जाएगा.

इस योजना में साप्ताहिक, मासिक टेस्ट भी होंगे, जिसके आधार पर स्क्रीनिंग की जाएगी.

मुख्यमंत्री ने कहा कि उत्तर प्रदेश में प्रतिभा की कमी नहीं है. आवश्यकता है एक योग्य मार्गदर्शक की. अभ्युदय योजना के माध्यम से इस कार्य को एक स्वरूप प्रदान किया जा रहा है. उत्तर प्रदेश में इन्फ्रास्ट्रक्चर की कोई कमी नहीं है. प्रदेश के सभी जनपदांे में विश्वविद्यालय, महाविद्यालय, इंजीनियरिंग कॉलेज या अन्य संस्थान हैं, जिनमें अभ्युदय की कोचिंग संचालित की जा सकेगी. योजना को तकनीक के साथ जोड़ना होगा. फिजिकली क्लास में 50 से 100 विद्यार्थी इसका लाभ ले सकेंगे, वहीं सरकार का लक्ष्य वर्चुअली माध्यम से एक करोड़ युवाओं को योजना से जोड़ने का है.

मुख्यमंत्री ने कहा कि अभ्युदय योजना प्रदेश के युवाओं को समर्पित योजना है. प्रदेश का युवा योजना के माध्यम से अपनी प्रतिभा का लोहा देश व दुनिया में मनवा सकेगा. वर्तमान राज्य सरकार द्वारा बड़ी संख्या में युवाओं को रोजगार के अवसर उपलब्ध कराये गये हैं. अब तक चार लाख से अधिक युवाओं को सरकारी सेवाओं में निष्पक्ष एवं पारदर्शी चयन प्रक्रिया के माध्यम से नियुक्ति प्रदान की गयी है. इस अवसर पर मुख्यमंत्री जी ने अभ्युदय योजना में 05 मण्डलों के पंजीकृत अभ्यर्थियों से संवाद किया. इसके अन्तर्गत उन्होंने जनपद वाराणसी के कपिल दुबे, जनपद गोरखपुर की साक्षी पाण्डेय, जनपद प्रयागराज की शिष्या सिंह राठौर, जनपद मेरठ के हिमांशु बंसल से वर्चुअल माध्यम से संवाद किया. जनपद लखनऊ कीप्रियांशु मिश्रा व अनामिका सिंह से मुख्यमंत्री ने साक्षात संवाद किया. पंजीकृत अभ्यर्थियों से संवाद के दौरान मुख्यमंत्री जी ने जीवन में सफल होने के कुछ मंत्र दिये. उन्होंने कहा कि सकारात्मक सोच से एकाग्रता आती है. व्यक्ति को संयमित जीवनचर्या रखनी चाहिए. विपत्ति में व्यक्ति का सबसे बड़ा मित्र धैर्य होता है.

संवाद के दौरान एक अभ्यर्थी द्वारा ओडीओपी पर पूछे गये प्रश्न का उत्तर देते हुए मुख्यमंत्री जी ने कहा कि ओडीओपी देश में परम्परागत उत्पाद को आगे बढ़ाने की एक महत्वपूर्ण योजना है. ओडीओपी योजना देश को आत्मनिर्भर बनाने में अहम भूमिका निभा रही है.

एक अन्य अभ्यर्थी के प्रश्न का उत्तर देते हुए मुख्यमंत्री जी ने कहा कि वर्तमान केन्द्र सरकार व राज्य सरकार किसानों के हितों में कार्य कर रही है. उन्होंने कहा कि आजादी के बाद पहली बार किसानों की चिन्ता का समाधान प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी द्वारा किया गया है. प्रधानमंत्री जी द्वारा मृदा स्वास्थ्य कार्ड के माध्यम से जमीन का स्वास्थ्य परीक्षण कराया गया.

मुख्यमंत्री ने कहा कि भारत की कृषि मानसून आधारित है, ऐसे में कभी-कभी कृषकांे को काफी नुकसान होता है. इसके दृष्टिगत प्रधानमंत्री जी ने प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना के माध्यम से उन्हें सम्बल प्रदान करने का कार्य किया है. कृषि को तकनीक से जोड़कर किसानों के जीवन को बेहतर बनाने का कार्य किया गया है. किसानों को एमएसपी का लाभ दिया जा रहा है. प्रधानमंत्री जी किसानों के हित में तीन नये कृषि कानून लाये हैं, जिससे किसानों को काफी लाभ होगा. उन्होंने कहा कि वर्तमान सरकार कृषि विविधीकरण को बढ़ावा दे रही है. झांसी में स्ट्रॉबेरी की खेती इसी का परिणाम है.

एक अभ्यर्थी द्वारा कोविड प्रबन्धन के विषय में पूछे गये प्रश्न का उत्तर देते हुए मुख्यमंत्री जी ने कहा कि प्रदेश सरकार द्वारा कोरोना के प्रसार को रोकने के लिए एक रणनीति तैयार की गयी थी, जिसका परिणाम था कि प्रदेश में कोरोना पर प्रभावी अंकुश लगा. जब प्रदेश में पहला कोरोना केस आया था, तब प्रदेश में कोविड-19 की जांच की लैब नहीं थी. लेकिन आज प्रदेश में प्रतिदिन 02 लाख कोरोना जांच की क्षमता विकसित की गयी है. सभी जनपदों में डेडिकेटेड कोविड हॉस्पिटल और इन्टीग्रेटेड कमाण्ड एण्ड कण्ट्रोल सेण्टर ने कोरोना को रोकने में महती भूमिका निभायी.

उप मुख्यमंत्री डॉ0 दिनेश शर्मा ने कहा कि मुख्यमंत्री जी के कुशल नेतृत्व में प्रदेश का सर्वांगीण विकास हो रहा है. उन्होंने कहा कि अभ्युदय योजना प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहे विद्यार्थियों के लिए एक अच्छा प्लैटफॉर्म है. इससे उनका आत्मविश्वास भी बढ़ेगा. उन्होंने कहा कि वर्तमान सरकार ने प्रदेश में नकलविहीन परीक्षा सम्पन्न कराने का कार्य किया है. विद्यार्थियों को प्रतियोगी परीक्षाओं में सफलता प्राप्त हो सके, इसके लिए पाठ्यक्रमों में भी व्यापक बदलाव किया गया है.

समाज कल्याण मंत्री श्री रमापति शास्त्री ने कहा कि मुख्यमंत्री जी अन्तिम पायदान पर खड़े व्यक्ति को लाभान्वित करने के लिए संकल्पित हैं. निश्चित ही अभ्युदय योजना आर्थिक रूप से कमजोर विद्यार्थियों के लिए वरदान साबित होगी.

इस अवसर पर मुख्य सचिव श्री आरके तिवारी, अपर मुख्य सचिव गृह श्री अवनीश कुमार अवस्थी, अपर मुख्य सचिव एमएसएमई एवं सूचना श्री नवनीत सहगल, पुलिस महानिदेशक श्री हितेश सी अवस्थी, प्रमुख सचिव मुख्यमंत्री एवं सूचना श्री संजय प्रसाद, मण्डलायुक्त लखनऊ श्री रंजन कुमार, आईजी रेन्ज लखनऊ श्रीमती लक्ष्मी सिंह सहित अन्य वरिष्ठ अधिकारी उपस्थित थे.

हिना खान ने शेयर कि इंगेजमेंट रिंग, फैंस ने पूछा- सगाई हो गई क्या

टीवी सीरियल अदाकारा हिना खान आए दिन सोशल मीडिया पर एक्टिव रहती हैं. रोजमर्रा के जीवन में चल रही चीजों को अपने फैंस के सामने शेयर करती रहती हैं. हाल ही में हिना खान ने एक ऐसी तस्वीर शेयर की है जिसे देखकर फैंस सवाल पूछने शुरू कर दिए हैं.

दरअसल, हिना खान ने अपनी लेटेस्ट तस्वीर में रिंग फिंगर में डायमंड रिंग पहनकर उसे फ्लॉट करते हुए शेयर किया है. इस तस्वीर में हिना खान बेहद ही ज्यादा खूबसूरत लग रही हैं. हिना खान की इस तस्वीर को देखने के बाद फैंस कयास लगाने शुरू कर दिए हैं.

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जिसमें हिना खान से पूछा जा रहा है कि क्या उन्होंने अपने ब्यॉफ्रेंड रौकी जयसवाल से चुपके से इंगेजमेंट कर लिया है या फिर ये दोनों बिना किसी को बताए शादी के बंधन में बंध गए है.

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हिना खान ने अपने बॉयफ्रेंड के साथ कुछ दिन पहले ही वेलेंटाइन डे मनाया है जिसके अगले दिन ही उन्होंने इस तस्वीर को शेयर क्या है. जिसे देखते हुए आप भी अंदाजा लगा सकते हैं कि वेलेंटाइन डे के खास दिन उन्हें अपने बॉयफ्रेंड से यह उपहार मिला है.

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वहीं कुछ लोग तो हिना के इस तस्वीर को देखकर चौक गए थें कि हिना खआन ने इतनी जल्दी सगाई कैसे कर ली. हालांकि अब यह साफ हो गया है कि यह तोहफा उन्हें बॉयफ्रेंड रॉकी जयसवाल ने दिया है.

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बता दें कि हिना खान और रॉकी जयसवाल लंबे समय से एक-दूसरे को डेट कर रहे हैं. आए दिन दोनों साथ में घूमते नजर आते हैं. अब खबर है कि जल्द ही दोनों शादी के बंधन में बंधने वाले हैं. हालांकि हिना खान ने इस बात पर कोई भी पुष्टि नहीं कि हैं. खैर ये दोनों साथ में एक-दूसरे के साथ बेहद ज्यादा खूबसूरत लगते हैं. फैंस भी चाहते हैं कि हिना और रॉकी हमेशा साथ रहें.

काश, मेरी बेटी होती

मैं 24 वर्षीय युवक हूं, बचपन से दुबला पतला हूं,मैं मोटा होना चाहता हूं लेकिन हो नहीं पा रहा हूं क्या करुं?

सवाल

मैं 24 वर्षीय युवक हूं, बचपन से ही दुबलापतला हूं. कालेज जाना शुरू किया तो जिम जाना भी शुरू कर दिया था, जिस से मेरी सेहत में सुधार आया. बौडी में मसल्स बनने लगीं, लेकिन यह प्रोसैस बहुत धीमा है. मैं चाहता हूं, मेरी बौडी साइज जल्दी से ग्रो करे. क्या करूं?

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जवाब

आप अच्छी बौडी बनाना चाहते हैं जिस के लिए जिम जाना भी शुरू कर दिया है लेकिन आप को यह पता होना चाहिए कि मस्कुलर बौडी बनाने के लिए आप को क्या खाना चाहिए. एक अच्छी बौडी या सेहत के लिए ऐक्सरसाइज के साथसाथ पूरे डाइट प्लान को फौलो करना जरूरी है. आप को अच्छी सेहत बनाने के लिए बैलेंस्ड डाइट लेना बहुत जरूरी है जिस में प्रोटीन, विटामिन, मिनरल्स और दूसरे पोषक तत्त्व शामिल हों. आप को अपनी बौडी के हरेक किलोग्राम के लिए 2 ग्राम प्रोटीन लेना चाहिए. इस से आप की बौडी की मसल्स जल्दी ग्रो होंगी और उन का साइज भी बढ़ेगा.

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प्रोटीन के लिए उबला हुआ अंडा खाएं. यह कंप्लीट नैचुरल प्रोटीन सोर्स है. एक अंडे में 6 ग्राम प्रोटीन होता है. चिकन बौडी में मसल्स का विकास करने में बहुत फायदेमंद है. 100 ग्राम चिकन में 25 ग्राम प्रोटीन होता है. इस के अलावा सोयाबीन, मूंग दाल, पनीर, दूध, दही, चना, काजू, मूंगफली में भी अच्छी क्वालिटी का प्रोटीन मिलता है. खयाल रखें जब आप अपने शरीर में बहुत ज्यादा प्रोटीन ले रहे हैं तो प्रोटीन को प्रोसैस करने का काम लिवर करता है, तो लिवर को स्वस्थ रखने के लिए भरपूर पानी पिएं. इस से आप का खाना भी अच्छे से डाइजैस्ट होता है, साथ ही पेट में गैस की प्रौब्लम नहीं होती. अच्छी बौडी बनाने के लिए अच्छी कंपनी का प्रोटीन सप्लीमैंट हैल्प करेगा. अच्छे प्रोटीन सप्लीमैंट से सही मात्रा में प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट, गुड फैट, विटामिंस, मिनरल्स, एमिनो एसिड, बीसीएए मिलता है. एक अच्छी सेहत बनाने के लिए विटामिन और मिनरल्स की टेबलेट लेते रहें. टेबलेट की सही जानकारी के लिए डाक्टर से जरूर पूछें

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz

सब्जेक्ट में लिखें- सरिता व्यक्तिगत समस्याएं/ personal problem

इक सफर सुहाना : अजीत एक समय के बाद क्यों झल्ला गया

अजीत की बड़ी बहन मीना का पत्र आया था. उसे खोल कर पढ़ने के बाद अजीत बोला, ‘‘आ गया खर्चा.’’

‘‘अरे, पत्र किस का है पहले यह तो बताओ?’’ पत्नी वीना तनिक रोष से बोली, ‘‘सीधी तरह तो बताते नहीं, बस पहेलियां बुझाने लगते हो.’’

‘‘मीना दीदी का है. बेटे की सगाई कर रही हैं. अगले महीने की 15 तारीख की शादी है. बंबई में ही कर रही हैं.’’

वीना खुश हो गई, ‘‘यह तो बहुत अच्छा हुआ. बहुत दिनों से मेरा बंबई जाने का मन हो रहा था. बच्चे भी शिकायत करते रहते हैं कि कभी समुद्र नहीं देखा. और हां, लड़की कैसी है, कुछ लिखा है?’’

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अजीत उस की बात पर ध्यान दिए बिना हिसाब लगाने लगा, हम दो, हमारे दो यानी 3 पूरी टिकट और 1 आधा, ऊपर से बहन को शादी में देने के लिए उपहार आदि.

‘‘भई, एक सप्ताह की छुट्टी तो कम से कम जरूर लेना. पहली बार बंबई जा रहे हैं. मैं ने कभी फिल्म की शूटिंग नहीं देखी. जीजाजी कह रहे थे कि फिल्म वालों से उन की खासी जानपहचान है. वे कुछ न कुछ प्रबंध करवा ही देंगे. वहां आरगंडी की साडि़यां बहुत अच्छी मिलती हैं और सस्ती भी होती है. दीदी की साडि़यां देखी हैं, कितनी सुंदर होती हैं. बच्चों के कपड़े भी वहां सस्ते और सुंदर मिलते हैं,’’ वीना धाराप्रवाह बोले जा रही थी.

अजीत झल्ला गया, ‘‘दो मिनट चुप भी रहोगी या नहीं. तुम तो बंबई का नाम सुनते ही ऐसे योजना बनाने लगी हो मानो किसी बड़े व्यापारी की पत्नी हो. मुझे समझ में नहीं आ रहा कि इतना खर्चा करेंगे कैसे. तुम ने कुछ रुपए बचा कर रखे हुए हैं क्या अपने पास?’’

वीना का जोश झाग के समान बैठ गया, ‘‘मेरे पास कहां से आएंगे. तुम्हारे बैंक में कुछ तो होंगे ही. जाना तो बहुत जरूरी है.’’

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‘‘यही तो चिंता है. अनु भी अब 14 वर्ष की होने वाली है, उस का भी पूरा टिकट लगेगा. मनु साढ़े 6 का हो गया है, इसलिए आधा टिकट उस का भी लेना पड़ेगा. आनेजाने का भाड़ा ही कितना हो जाएगा. कहां मेरठ और कहां बंबई, लिख देंगे रेल में आरक्षण नहीं मिला, इसलिए नहीं आ सकते. अब परिवार के साथ बिना आरक्षण के इतना लंबा सफर तो हो नहीं सकता या लिख देंगे कि तुम्हारी तबीयत ठीक नहीं है.’’

वीना चुप हो गई. पति भी सच्चे थे. इतना खर्चा करना आजकल हर किसी के बूते की बात तो है नहीं, पर जाए बिना भी गुजारा नहीं था. वह सोचने लगी, दीदी का 1 ही तो बेटा है, उसी के ब्याह में न पहुंचे तो जीवनभर उलाहने सुनने पड़ेंगे. वैसे बंबई जाने का लोभ वह स्वयं भी संवरण नहीं कर पा रही थी. मेरठ में रहते हुए बंबई उस के लिए लंदन, न्यूयार्क से कम नहीं था.

‘‘किसी तरह खर्चा कम नहीं किया जा सकता?’’ वह ठुड्डी पर हाथ रखती हुई बोली.

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‘‘अब रेल में दूसरे दरजे से तो कम कुछ है नहीं. हां, यह हो सकता है कि तुम अकेली ही हो आओ. मैं काम का बहाना कर लूंगा,’’ अजीत उस की उत्सुकता को भांपते हुए बोला.

अब तक दोनों बच्चों को बंबई जाने की भनक लग गई थी. अपने कमरे से ही चिल्लाए, ‘‘विनय भैया की शादी में हम जरूर जाएंगे.’’

‘‘काम की बात कभी सुनाई नहीं देती पर अपने मतलब की बात वहां बैठे भी सुनाई दे गई,’’ अजीत भन्नाया.

वीना के दिमाग में नएनए विचार आ कर उथलपुथल मचा रहे थे. अचानक अजीत के पास सरकती हुई फुसफुसाई, ‘ऐसा करते हैं, अनु का तो आधा टिकट ले लेते हैं और मनु का लेते ही नहीं. दोनों दुबलेपतले से तो हैं. अपनी उम्र से कम ही लगते हैं. अनु को साढ़े 11 वर्ष की बता देंगे और मनु को सवा 4 वर्ष का.

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अजीत ने हिसाब लगाया कि ऐसे फर्क तो काफी पड़ जाएगा. दो आधी टिकटें कम हो जाएंगी. आनेजाने का मिला कर 2 टिकटों के पैसे बच जाएंगे. वीना का विचार तो सही है.

‘‘पर अगर पकड़े गए तो?’’ उस ने धीरे से पूछा.

‘‘अरे, कैसे पकड़े जाएंगे?’’ वीना मुसकराती हुई बोली, ‘‘गाड़ी में कोई प्रमाणपत्र थोड़े ही मांगता है. इस महंगाई के जमाने में सब लोग ऐसा ही करते हैं, हम कोई निराले थोड़े ही हैं. हमारे जरा से झूठ बोलने से कौन सी रेलें चलनी बंद हो जाएंगी.’’

अजीत को बात समझ में आ गई, ‘‘पर टिकट चैकर को तुम्हीं संभालना, मुझ से इतना बड़ा झूठ नहीं बोला जाएगा.’’

‘‘ठीक है, तुम पहले आरक्षण तो करवाओ. अरे, यही पैसा खरीदारी में काम आ जाएगा. सब जाएंगे तो दीदी भी खुश हो जाएंगी,’’ वीना चहकने लगी. आखिर उसे अपना बंबई घूमने का सपना साकार होता नजर आ रहा था.

अजीत ने भागदौड़ कर के सीटें आरक्षित करवा लीं. दीदी को देने के लिए सामान भी खरीद लिया. वीना सारी तैयारी खूब सोचसमझ कर कर रही थी.

सफर पर रवाना होने से पहले उस ने अनु को एक पुरानी, छोटी हो चुकी फ्रौक पहना दी और कानों के ऊपर कस कर 2 चोटियां बना दीं.

‘‘अब इसे 10 वर्ष के ऊपर कौन मान सकता है. मनु तो दुबलापतला सा है, सो जब टिकट चैकर आएगा तो उसे मैं गोद में ले लूंगी. किसी को शक तक नहीं होगा,’’ वीना ने पति से कहा.

अगले दिन शाम को सपरिवार बंबई के लिए निकल पड़े. स्टेशन पहुंचने के बाद थोड़ी देर इंतजार के बाद ट्रेन आ गई. ट्रेन आते ही एकएक कर सभी ट्रेन में बैठ गए.

टे्रन का सफर बड़ा अच्छा कट रहा था. 3 स्टेशन निकल चुके थे और कोई टिकट चैकर नहीं आया था.

‘‘रात में तो वैसे भी कोई नहीं आएगा,’’ वीना बोली, ‘‘फिर कल सुबह तक तो बंबई पहुंच ही जाएंगे. बाहर निकलते समय कौन पूछता है यह सब.’’

शाम की चाय पी कर दोनों बाहर डूबते हुए सूरज का दृश्य निहार रहे थे. हरेभरे खेतों और उन पर फैली हुई सूरज की लालिमा को देखते हुए दोनों मुग्ध हो रहे थे.

‘‘सब कितना सुंदर लग रहा है,’’ वीना पति के कंधे पर सिर टिकाती हुई बोली.

तभी डब्बे में कुछ हलचल होने लगी.

‘‘टिकट चैकर आ रहा है,’’ अजीत बोला और जल्दी से चादर ओढ़ कर लेट गया, ‘‘टिकटें तुम्हारे पर्स में ही हैं.’’

टिकट चैकर आया तो वीना ने तीनों टिकटें दिखा दीं. चैकर ने चारों के चेहरों को ध्यान से देखा. मनु को अजीत ने अपने साथ ही लिटा लिया था.

‘‘बेटा अभी सवा 4 साल का ही है,’’ वीना मुसकराती हुई बोली, ‘‘यह इस बिटिया का आधा टिकट है.’’

अनु खिड़की से सिर टिकाए एक उपन्यास पढ़ रही थी. मां की बात सुन कर वह जरा सी हंसी और फिर अपनी पुस्तक में खो गई.

‘‘कौन सी कक्षा में पढ़ती हो, बेटी?’’ टिकट चैकर ने उस के हाथ में पकड़े उपन्यास को घूरते हुए पूछा.

वीना हड़बड़ा गई कि अब अनु कहीं सब गुड़गोबर न कर दे.

‘‘यह छठी में पढ़ती है,’’ वह जल्दी से बोली, ‘‘बड़ी होशियार है. पढ़ने का बहुत शौक है. सदा कुछ न कुछ पढ़ती रहती है. इस उम्र में ही इतनी बड़ीबड़ी पुस्तकें पढ़ने लगी है. अनु, जरा इन्हें अपना उपन्यास तो दिखाना. मैं तो मना करती रहती हूं कि चश्मा लग जाएगा. इतना मत पढ़, पर मानती ही नहीं है. आजकल के बच्चों को समझाना बड़ा कठिन है.’’

‘‘घरघर यही हाल है, बहनजी, आजकल के बच्चे किसी की नहीं सुनते. पर आप की बच्ची को अभी से पढ़ने का इतना शौक है वरना आजकल बच्चे तो पुस्तकों से कोसों दूर भागते हैं. मेरे तो तीनों बच्चे नालायक हैं. बस, फिल्मों की पूरी खबर रखते हैं. पता नहीं बड़े हो कर क्या करेंगे?’’

गाड़ी धीमी हो गई थी, शायद कोई स्टेशन आने वाला था. टिकट चैकर उठ कर दरवाजे के पास चला गया. वीना ने चैन की सांस ली. एक बड़ी मुसीबत से पार पा लिया था. ‘अब, वापसी में भी ऐसे ही आसानी से बात बन जाए तो

इस झंझट से छुटकारा मिले,’ वीना सोच रही थी.

अजीत हंसता हुआ उठ गया, ‘‘तुम ने तो उसे एकदम बुद्धू बना दिया. मुझ से न हो पाता.’’

डब्बे में एक चौकलेट बेचने वाला घूम रहा था.

‘‘मां, एक बड़ा वाला चौकलेट दिलवा दो,’’ मनु जिद करने लगा. पिता के उठते ही वह भी उठ कर बैठ गया.

‘‘अरे नहीं, बहुत महंगा है. यह ले, मैं तेरे लिए कितने बढि़या शक्करपारे बना कर लाई हूं. तुझे तो ये बहुत पसंद हैं,’’ वीना उसे प्यार से समझाती हुई बोली.

‘‘नहीं दिलाओगी क्या?’’ वह मां को घूरते हुए बोला, ‘‘ठीक है, तब मैं टिकट चैकर चाचा को बता दूंगा कि दीदी तो 14 साल की हैं और मैं 7 साल का. मैं दूसरी कक्षा में पढ़ता हूं. फिर भी इन्होंने मेरा टिकट नहीं लिया.’’

अजीत ने जल्दी से उस के मुंह पर हाथ रख दिया. गनीमत थी कि उस समय किसी ने अनु की बात नहीं सुनी. कोई सुन लेता तो कितनी बेइज्जती होती.

‘‘इधर आना भई,’’ अजीत ने चौकलेट वाले को पुकारा. जिस महंगे चौकलेट की मनु फरमाइश कर रहा था, वह उसे दिलवा दिया.

‘‘इस शैतान को सब बताने की क्या आवश्यकता थी,’’ फिर वह वीना पर बिगड़ा.

‘‘अरे, मैं ने कब बताया. जाने चोरीछिपे क्याक्या सुनता रहता है,’’ वह परेशान हो कर बोली, फिर मनु को जोर से झिंझोड़ते हुए डांटा, ‘‘अब खबरदार जो तू ने मुंह खोला.’’

पर मनु को भला इन सब बातों का कहां फर्क पड़ने वाला था हर स्टेशन पर किसी न किसी ऊलजलूल वस्तु की फरमाइश करता रहता. मना करने पर धौंस दिखाता, ‘अच्छा, मैं अभी टिकट चैकर चाचा को आप की सारी चालाकी बताता हूं.’

वीना और अजीत हार कर उस की हर फरमाइश पूरी करते जाते. उधर अनु अलग मुंह फुलाए भुनाभुना रही थी, ‘डब्बे में कहीं घूम भी नहीं सकती, इतनी छोटी सी फ्रौक पहना दी है. बाल भी गंवारों से गूंथ दिए हैं. टिकट नहीं खरीद सकते थे तो मुझे लाए ही क्यों? मेरठ में ही क्यों नहीं छोड़ दिया? आगे से आप लोगों के साथ कहीं नहीं जाऊंगी. हमें तो कहते रहते हैं कि झूठ मत बोलो और आप इतने बड़ेबड़े झूठ बोलते हैं.’

बंबई पहुंचने पर सामान उतरवाते ही अजीत बोला, ‘‘तुम लोग जरा यहां रुको, मैं अभी आया.’’

‘‘कहां भागे जा रहे हो?’’ वीना इतनी भीड़ देख कर घबरा गई, ‘‘अब तो पहले घर पहुंचने की बात करो. इतने लंबे सफर के बाद बुरी हालत हो गई है.’’

‘‘वापसी का सफर आराम से करो. उसी का प्रबंध करने जा रहा हूं. पहले इन बच्चों के टिकटे ठीक से बनवा लाऊं, हो गई बहुत बचत. आज से अपनी ‘सुपर’ योजनाएं अपने तक ही सीमित रखना, मुझे बीच में मत फंसाना.’’

वीना उत्तर में केवल सिर झुकाए खड़ी रही. इस से अधिक वह कर भी क्या सकती थी. जिस जोश से वह घर से निकली थी वह अब ठंडा पड़ चुका था.

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सौजन्या-सत्यकथा

30सितंबर, 2020 की सुबह का वक्त था. होशंगाबाद जिले के थाना पथरोड़ा की थानाप्रभारी सुश्री प्रज्ञा शर्मा पुराने मामलों की फाइल पलट रही थीं. तभी डंडे का सहारा ले कर लगभग 90 वर्षीय एक बुजुर्ग धीरेधीरे उन के औफिस में दाखिल हुए. थानाप्रभारी ने बुजुर्ग को कुरसी पर बैठने का इशारा किया. बुजुर्ग ने अपना नाम रामदास बताते हुए कहा कि वह डोव गांव में रहता है और उस का 40 साल का बेटा सुरेश उइके गांव नानपुरा पंडरी में पत्नी ममता और 2 बच्चों के साथ रहता है. सुरेश रेलवे में वेल्डर है.

वह रोज सुबह नौकरी पर अपनी मोटरसाइकिल से भौरा स्टेशन आताजाता था. लेकिन कल रात में वह काम से वापस नहीं लौटा और उस का मोबाइल भी बंद था. वह उसे खोजने के लिए जब भौरा जा रहा था तो जंगल के रास्ते में उसे अपने बेटे की मोटरसाइकिल पड़ी दिखाई दी. जिस के पास कुछ दूरी पर एक पेड़ के नीचे उस की लाश पड़ी है. रामदास ने बताया कि किसी ने उन के बेटे का सिर कुचल कर उस की हत्या कर दी है.

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थानाप्रभारी प्रज्ञा शर्मा के सामने कई ऐसे सवाल थे जिन के उत्तर रामदास दे सकता था. लेकिन पहली जरूरत मौके पर पहुंचने की थी. इसलिए उन्होंने सब से पहले एसपी होशंगाबाद संतोष सिंह गौर और एसडीपीओ महेंद्र मालवीय को घटना की जानकारी दी. फिर वह पुलिस टीम ले कर मौके पर पहुंच गई.
भौरा मार्ग से कुछ हट कर जंगल के अंदर सागौन के पेड़ के नीचे सुरेश की सिर कुचली लाश पड़ी थी. लाश के पास ही खून से सना भारी पत्थर पड़ा था, जिस से जाहिर था कि उसी पत्थर को सुरेश के सिर पर मारा गया था, जिस से उस का पूरा भेजा बाहर निकल कर चारों तरफ बिखर गया था.

सड़क पर पड़ी मोटरसाइकिल के पास भी खून के निशान थे. इस से पुलिस ने अनुमान लगाया कि संभवत: मोटरसाइकिल से घर लौट रहे सुरेश को हमलावरों ने पहले चलती बाइक पर हमला कर रोका होगा और फिर बाद में अंदर जंगल में ले जा कर उस की हत्या कर दी होगी.पुलिस ने शव को पोस्टमार्टम के लिए भेजने के साथ ही रामदास की रिपोर्ट पर हत्या का केस दर्ज कर जांच शुरू कर दी. दूसरी तरफ मामले की गंभीरता देखते हुए एसपी संतोष सिंह गौर ने एसडीपीओ महेंद्र मालवीय के निर्देशन और पथरोड़ा थानाप्रभारी प्रज्ञा शर्मा के नेतृत्व में एक टीम गठित कर दी. टीम में एएसआई भोजरात बरबडे, हेडकांस्टेबल सुरेंद्र मालवीय, अनिल ठाकुर, कांस्टेबल हेमंत, टिल्लू, विनोद, संजय आदि को शामिल किया गया.

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इस टीम ने मृतक सुरेश के बारे में गहन छानबीन की, जिस में पता चला कि सुरेश ने करीब 13 साल पहले कांदई कलां की रहने वाली ममता तोमर से प्रेम विवाह किया था. जबकि ममता के बारे में जानकारी मिली कि वह अपने एक रिश्तेदार के घर ड्राइवर की नौकरी करने वाले सईद खां से प्यार करती थी.
मृतक सुरेश के पिता रामदास आर्डिनैंस फैक्ट्री में गार्ड की नौकरी करते थे. शादी के कुछ समय बाद सुरेश को रेलवे में वेल्डर की नौकरी मिल गई, जिस के बाद वह अपनी पत्नी ममता के साथ नानपुरा पंडरी में मकान बना कर रहने लगा था.

सुरेश की ड्यूटी भौरा और कीरतगढ़ रेल सेक्शन के बीच रहती थी, इसलिए वह रोज मोटरसाइकिल से भौरा आ कर रात लगभग 8 बजे ड्यूटी खत्म कर के घर लौट जाता था. सुरेश के साथियों से भी पूछताछ की गई, लेकिन उन्होंने बताया कि सुरेश सीधासच्चा आदमी था और उस की किसी से कोई रंजिश भी नहीं थी.कहानी में मोड़ तब आया, जब पुलिस ने मृतक के पिता रामदास से पूछताछ की. उन्होंने उस की हत्या का शक अपने बेटे की पत्नी ममता पर जाहिर किया. ससुर अपनी ही बहू पर खुद उसी के पति की हत्या करने का आरोप लगा रहा था. इसलिए उन के आरोप को हलके में नहीं लिया जा सकता था. थानाप्रभारी प्रज्ञा शर्मा ने मृतक की पत्नी ममता को पूछताछ के लिए थाने बुलाने के बजाए खुद गांव जा कर उस के बयान दर्ज करने की सोची.

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दरअसल इस के पीछे थानाप्रभारी का इरादा गांव में ममता के बारे में लोगों से और जानकारी हासिल करना था. इस के लिए जब वह ममता के घर पहुंचीं तो वहां पहुंचते ही यह देख कर चौंकी कि ममता के घर के मुख्य दरवाजे के अलावा घर में कई जगहों पर सीसीटीवी कैमरे लगे थे.
सुरेश रेलवे में मामूली सी नौकरी करता था. उस के पास करोड़ों की पुश्तैनी संपत्ति भी नहीं थी और न ही उस की किसी से कोई रंजिश की बात सामने आई थी. तो उस ने घर में कई सीसीटीवी कैमरे क्यों लगवाए. उन्होंने सोचा कि कहीं ऐसा तो नहीं कि सुरेश की हत्या का संबंध उस के घर में लगाए गए सीसीटीवी कैमरों से जुड़ा हो.

उन का यह शक उस वक्त और भी गहरा गया, जब उन्हें पता चला कि सुरेश ने ये कैमरे 10-12 दिन पहले ही लगवाए थे. इसलिए ममता के बयान दर्ज करने के बाद थानाप्रभारी प्रज्ञा शर्मा ने टीम के कुछ सदस्यों को गांव में ममता के बारे में जानकारी जुटाने की जिम्मेदारी दे दी. पता चला कि ममता के मायके में रहने वाला सईद अक्सर उस समय ममता के घर आता था, जब सुरेश घर पर नहीं होता था.

पुलिस को यह जानकारी भी मिली कि सुरेश के घर में कैमरे लगने के बाद से सईद को गांव में नहीं देखा गया. दूसरी जो सब से बड़ी बात सुनने में आई, वह यह कि कोई 4 महीने पहले ममता अचानक घर से लापता हो गई थी. वह करीब एक महीने बाद घर लौटी थी, जिस के कुछ दिन बाद सुरेश ने अपने घर में कैमरे लगवाए थे. सुनने में आया था कि लापता रहने के दौरान ममता सईद खान के साथ सिवनी मालवा में रही थी.

इस जानकारी के बाद ममता के साथ सईद भी शक के घेरे में आ गया, जो ममता के मायके का रहने वाला था. पुलिस टीम ने कांदई कलां में सईद की तलाश की तो वह गांव से गायब मिला.जब सईद के मोबाइल की काल डिटेल्स निकाली गई तो पता चला कि मृतक सुरेश की पत्नी ममता के साथ उस की लगातार लंबी बातें होती थीं. जिस दिन सुरेश की हत्या हुई उस दिन भी उस ने कई बार ममता से बात की थी. दूसरी सब से बड़ी बात जो उस की काल डिटेल्स में निकल कर सामने आई, वह यह कि जिस समय सुरेश का कत्ल हुआ उस समय तक सईद का मोबाइल उसी लोकेशन पर था, जहां सुरेश की लाश मिली थी. इस से थानाप्रभारी

प्रज्ञा शर्मा के सामने पूरी कहानी साफ हो गई. सईद की काल डिटेल्स से यह भी पता चला कि घटना के पहले कुछ दिनों तक सईद ने लगातार नया बस स्टैंड नंदूबाड़ा रोड सिवनी मालवा निवासी आशू उर्फ हसरत और अरबाज के साथ न केवल कई बार फोन पर बात की थी, बल्कि घटना के समय इन दोनों के मोबाइल भी सईद के साथ घटनास्थल पर ही मौजूद थे. इसलिए एसडीपीओ महेंद्र मालवीय के निर्देश पर पुलिस टीम ने इन तीनों की तलाश शुरू कर दी.

जिस से जल्द ही सईद को बैतूल के चिचोली थाना इलाके के मउपानी से और अरबाज आशू को सिवनी मालवा से हिरासत में ले लिया. पुलिस ने इन तीनों से सख्ती से पूछताछ की.पूछताछ में तीनों ने न केवल सुरेश की हत्या की बात स्वीकार की बल्कि इस में उस की पत्नी ममता के भी शामिल होने की बात बताई.
पुलिस ने उन की निशानदेही पर घटना के समय पहने तीनों के रक्तरंजित कपड़े तथा उपयोग में लाई गई कुदाल, गला घोंटने में प्रयुक्त तार आदि भी बरामद कर सुरेश की पत्नी ममता को भी उस के गांव से गिरफ्तार कर लिया.

इस के बाद प्रेमी और पति को एक साथ खुश रखने वाली ममता द्वारा सुरेश की हत्या करवा देने की कहानी इस प्रकार सामने आई—कांदई कला में रहने वाली ममता बचपन से ही अपने चंचल स्वभाव के लिए जानी जाती थी. बताते हैं कि मिडिल में पढ़ते समय ही उस का रंगरूप कुछ ऐसा निखार आया था कि देखने वाले उसे देख रीझ जाते थे. ममता के साथ स्कूल में गांव का रहने वाला सईद भी पढ़ता था. सईद ममता का दीवाना था. वह उस से दोस्ती कर उसे पाने के सपने देखता था.

फिर नादान उम्र में ही ममता सईद के साथ प्रेम और देह के पाठ पढ़ने लगी थी. स्कूली पढ़ाई के बाद ममता ने आगे की पढ़ाई बंद कर दी. वह घर पर ही रहने लगी. उसी दौरान सुरेश उइके से उस के प्रेम संबंध हो गए. यह जानकारी जब सईद को हुई तो उसे झटका लगा. ममता के पिता गांव के बडे़ किसान थे. गांव में रहने वाले ममता के रिश्ते के एक भाई ने खेतीकिसानी के काम के लिए सईद को बतौर टै्रक्टर ड्राइवर नौकरी पर रख लिया था. इस से सईद को ममता के आसपास रहने का मौका मिलने लगा.

सईद बहुत शातिर था. उस का मकसद नौकरी के बहाने ममता से नजदीकियां बढ़ाना था, क्योंकि ममता उन दिनों सुरेश उइके से प्रेम की पींगें बढ़ा रही थी. सईद ने तिकड़म से जल्द ही ममता के पूरे परिवार का दिल जीत लिया. जिस से उस का उस के घर में बेरोकटोक आनाजाना शुरू हो गया.जब ममता को पता चला कि सईद उस की दीवानगी के चलते ही ड्राइवर की नौकरी करने आया है तो उस ने सईद की दीवानगी को भी हवा देनी शुरू कर दी.

वह पहले से ही प्यार के मामले में काफी अनुभवी थी. उस ने सईद को पूरी तरह से अपना दीवाना बना लिया. ममता एक ही समय में 2 प्रेमियों सईद और सुरेश को अपनी बांहों में प्रेम का झूला झुलाने लगी. इतना ही नहीं, उस ने सईद के संग निकाह और सुरेश के संग शादी करने का वादा भी कर रखा था जबकि वह जानती थी कि ये दोनों काम एक साथ नहीं हो सकते. बहरहाल, सईद के साथ उस का निकाह होना सुरेश के साथ शादी होने से ज्यादा मुश्किल था. इसलिए उस ने सईद को छोड़ कर सुरेश के साथ लवमैरिज कर ली.

संयोग से शादी के ठीक बाद सुरेश को रेलवे में नौकरी मिल गई, जिस के बाद वह नानपुर पंडरी में मकान बना कर अपनी पत्नी के साथ रहने लगा. बाद में ममता 2 बेटियों की मां बनी. उस की घरगृहस्थी ठीकठाक चल रही थी. सुरेश की ड्यूटी भौंरा और कीरतगढ़ के बीच थी, इसलिए वह गांव से रोज सुबह मोटरसाइकिल से आ कर शाम को वापस घर लौट आता था. दिन भर ममता घर में अकेली रहती थी. उस ने अपने इस खाली समय का उपयोग पुराने प्रेमी सईद को खुश करने के लिए करना शुरू कर दिया.
वह पति के काम पर चले जाने के बाद सईद को अपने घर बुलाने लगी, जहां दोनों दिन भर वासना का खेल खेलते. शाम को सुरेश के आने से पहले सईद अपने घर चला जाता. इस दौरान सईद ममता से किसी न किसी बहाने पैसा भी लेता रहता था.

ममता को सईद का आना अच्छा लगता था, इसलिए सईद के आते ही वह घर का दरवाजा बंद कर उस के साथ कमरे में कैद हो जाती थी. जल्द ही इस बात की चर्चा गांव में होने से बात सुरेश तक भी पहुंच गई.
सुरेश ने एकाध बार इशारे में ममता से इस बारे में बात की, जिस से ममता समझ गई कि अब सईद को घर बुलाने में खतरा है. इसलिए जब उस ने इस बारे में सईद से बात की तो उस ने उसे साथ भाग चलने को कहा. ममता सईद के साथ भागने को तैयार हो गई.

फिर 8 अगस्त, 2020 के दिन ममता को ले कर सईद सिवनी मालवा आ गया, जहां उस के दोस्त और रिश्तेदार अरबाज तथा आशू ने दोनों के रहने की व्यवस्था पहले से ही कर दी थी.

ममता के भाग जाने से सुरेश पागल सा हो गया. उसे जरा भी भरोसा नहीं था कि उस के साथ प्रेम विवाह करने वाली ममता उसे और बच्चों को इस तरह से धोखा देगी. इस से सुरेश का दिल टूट गया.
इधर एक महीने तक ममता द्वारा घर से लाए गए पैसों पर ऐश करने के बाद सईद ने उसे वापस सुरेश के पास भेज दिया.

एक महीने बाद घर लौटी पत्नी को सुरेश अपनाना तो नहीं चाहता था, लेकिन बच्चों की खातिर उस ने ममता को माफ कर दिया. आगे ऐसा न हो, इसलिए सुरेश ने घर में कई सीसीटीवी कैमरे लगवा दिए. वह ड्यूटी पर रहते हुए मोबाइल के माध्यम से घर पर नजर रखने लगा.

इस से सईद और ममता समझ गए कि अब उन का वासना का खेल खत्म हो गया है. इसलिए उन्होंने फोन पर चर्चा कर सुरेश का ही खेल खत्म करने की योजना बना ली, जिस में सईद ने अपने दोनों दोस्त अरबाज और आशू को भी शामिल कर लिया. फिर तीनों ने मिल कर 30 सितंबर, 2020 की रात ड्यूटी से लौट रहे सुरेश को रोक लिया और साथ लाए तार से गला घोंट दिया. फिर भारी पत्थर से उस का सिर कुचल दिया.
सईद और उस की प्रेमिका ममता का सोचना था कि मामला शांत हो जाने के बाद वे दोनों फिर पहले की तरह अय्याशी कर सकेंगे. लेकिन पथरोड़ा थानाप्रभारी प्रज्ञा शर्मा ने 4 दिन में ही सभी आरोपियों को सलाखों के पीछे पहुंचा दिया.

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