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रिश्तों की हकीकत दिखाती वृद्धाश्रमों में बढ़ती बुजुर्गों की तादाद

उत्तर प्रदेश के संतकबीर नगर जिले की रहने वाली 65 वर्षीया उमलिया देवी का 7 कमरों का मकान है. लेकिन, वे बस्ती जिले में सरकार द्वारा संचालित एक वृद्धाश्रम में जीवन गुजारने को मजबूर हैं.

वृद्धाश्रम में जीवन गुजार रहीं उमलिया देवी से वृद्धाश्रम में जीवन गुजारने का कारण पूछा, तो उन्होंने बताया कि उन के पति गन्ना महकमे में अधिकारी थे. अचानक उन की मौत हो गई तो उन्होंने ने परिवार संभाला और महकमे से मिले पैसों से उन्होंने बेटे व बहू के लिए 7 कमरों का मकान बनवा दिया. कुछ दिनों बाद बहू ने उन के पति की मौत के बाद महकमे से मिले पैसे अपने बैंकखाते में ट्रांसफर करवा लिए. और फिर बहू ने उन के साथ दुर्व्यवहार करना शुरू कर दिया.

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बहू न तो उमलिया देवी को खाना देती थी और न ही सही से बात करती थी. इसी बीच, उन के बेटे की मौत हो गई. बेटे की मौत के बाद उमालिया देवी की बहू और पोतों ने उन्हें घर से निकाल दिया.

बुढ़ापे में घर से निकाले जाने के बाद उमलिया ने कुछ दिन सड़कों पर गुजारे. कई रातें भूखे पेट काटी. फिर एक दिन किसी ने उन्हें वृद्धाश्रम में ला कर छोड़ दिया. तब से वे वहीं की हो कर रह गई हैं. बुढ़ापे में जब उमलिया को अपनों के प्यार और देखभाल की ज्यादा जरूरत थी तो उन्हीं लोगों ने उन्हें सड़क पर छोड़ दिया.

अपनों के दिए इस दर्द को बतातेबताते उमलिया की आंखों में आंसू आ जाते हैं.

वृद्धाश्रमों में जीवन गुजार रहे ज्यादातर लोगों की कहानी उमलिया जैसी ही है. वे अपने बेटे, बहू और बेटियों के दुत्कार के चलते अपना अंतिम समय वृद्धाश्रमों में काटने को मजबूर हैं.

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एकल परिवार बन रहे हैं वजह

जिन बुजुर्गों को बुढ़ापे में सहारे की ज्यादा जरूरत होती है उन्हीं बुजुर्गों को उन के अपने इसलिए वृद्धाश्रमों में छोड़ रहे हैं क्योंकी उन की उपस्थिति परिवार में खटकने लगी है. इस का एक कारण एकल परिवारों की बढ़ती संख्या है. इन परिवारों में बेटेबहू मांबाप के सवालों और देखभाल से दूर भाग रहे हैं. जबकि बेटेबहुओं को यह पता होता है जिस तरह का व्यवहार वे अपने मांबाप के साथ कर रहे हैं, एक दिन वे भी बुढ़ापे  का शिकार होंगे और उन्हें भी इसी तरह घर की बेकार चीज समझ कर दरकिनार कर दिया जाएगा.

जिस ने मजदूरी कर पाला उन से ही किनारा

मांबाप अपने बच्चों को दिनरात मेहनतमजदूरी कर अच्छी से अच्छी शिक्षा व देखभाल देने की कोशिश करते हैं. यही बच्चे पढ़लिख कर जब किसी लायक हो जाते हैं तो बूढ़े हो चले मांबाप उन पर भार लगने लगते हैं. बातबात में बहुओं की जलीकटी बातें सुननी पड़ती हैं. बारबार शर्मिंदा होने के बजाय ये लोग वृद्धाश्रमों में रहना ज्यादा पसंद करते हैं.

एक वृद्धाश्रम में जीवन काट रहे राधेश्याम तिवारी और राम सुमेर ने बताया कि उन्होंने अपनी जवानी में बच्चों को पालपोस कर काबिल बनाया और जब उन्हें बच्चों की ज्यादा जरूरत थी तो उन्हें घर से दूर वृद्धाश्रम में अपना जीवन काटना पड़ रहा है.

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संपत्ति की लालच भी एक वजह

बस्ती जिले के एक वृद्धाश्रम में रह रहीं हरिशांति देवी एक बड़े व्यवसायी परिवार से हैं. इन के पास लाखों रुपए की संपत्ति थी. उस के बावजूद वे वृद्धाश्रम में जीवन गुजारने को मजबूर हैं. इन के सगेसंबंधियों ने इन की संपत्ति पर कब्जा कर इन्हें घर से निकाल दिया. घर से निकाले जाने के बाद कुछ दिनों तक इन्होंने इधरउधर अपनी रातें किसी तरह से काटीं. आखिर इन्हें किसी ने वृद्धाश्रम में जाने की सलाह दी. तब से ये  इसी वृद्धाश्रम में जीवन के दिन गिन रही हैं. यही हाल तारामती देवी का भी है. तारामती बस्ती के सुर्तीहट्टा महल्ले की रहने वाली हैं. वे एक बड़े व्यवसायी कृष्ण दयाल की पत्नी हैं. पति की मौत के बाद उन की करोड़ों की संपत्ति पर उन के भाई व भतीजों ने कब्जा कर उन्हें घर से निकाल दिया. आज वे वृद्धाश्रम में अपने जीवन की अंतिम घड़ियां गिन रही हैं.

देश में बढ़ रही है वृद्धाश्रमों संख्या

देश में जिस तेजी से वृद्धाश्रमों की संख्या में इजाफा हुआ है वह बेहद चिंताजनक है. अगर अकेले उत्तर प्रदेश की बात करें, तो लगभग सभी 75 जिलों में सरकार द्वारा वृद्धाश्रम संचालित किए जा रहे हैं. जबकि कई निजी वृद्धाश्रम भी हैं. कभी बड़े शहरों में संचालित होने वाले वृद्धाश्रमों ने छोटे शहरों में भी पांव पसार लिया है. इस से एक बात साफ है कि इन वृद्धाश्रमों की उपयोगिता बढ़ रही है. परिवार में बुजुर्गों के सम्मान के गिरते ग्राफ का ही परिणाम है कि वृद्धाश्रमों में क्षमता से अधिक लोग निवास कर रहे हैं. इन की बढ़ती संख्या, इन की बढ़ती उपयोगिता यह बताने के लिए काफी है कि घर में बुजुर्ग मांबाप की क्या हैसियत रह गई है.

बुजुर्गों की बच्चों से दूरी बन रही घातक

हम अपने दादादादी और नानानानी के किस्से सुनते रहे हैं. लेकिन देश में बढ़ रही वृद्धाश्रम संस्कृति ने इस पर ग्रहण लगाना शुरू कर दिया है. लोग अपने घरों के बुजुर्गों के पास अपने बच्चों को जाने से रोकते हैं. जबकि, वास्तविकता यह है कि इन बड़ेबुजुर्गों के लिए इन के पोतीपोते जीवन का आधार होते हैं. इन के सान्निध्य में आ कर बड़ेबुजुर्ग अपने सारे दुखदर्द भूल जाते हैं. वहीं, छोटे बच्चों के लिए बुजुर्गों का सान्निध्य बहुत जरूरी है. इन के पास रह कर बच्चे न केवल संस्कार सीखते हैं बल्कि इन में मानवीय संवेदनाओं के विकास के साथ ही बुजुर्गों के प्रति सम्मान भी बढ़ता है. ऐसे में ये बच्चे बड़े हो कर अपने मांबाप के बुढ़ापे का सहारा भी बनते हैं. इसलिए हमें अपने बच्चों को दादादादी के प्यार से महरूम होने से रोकना होगा. और यह तभी संभव है जब हम उन्हें घर में उचित सम्मान देंगे.

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बुजुर्गों की देखभाल पर बनीं नीतियां फेल

अपनों द्वारा बुजुर्गों की की जा रही उपेक्षा को देखते हुए सरकार द्वारा नीतियां और कानून बनाए गए हैं. लेकिन ये प्रभावी होते नहीं दिख रहे. क्योंकि जब इन बजुर्गों के साथ ऐसी परिस्थितियां पैदा होती हैं तब ये बुजुर्ग कोर्टकचहरियों के चक्कर लगाने की स्थिति में नहीं होते हैं. ऐसे में सरकार को नीतियों में संशोधन कर उन्हें प्रभावी बनाने की आवश्यकता है.

बदली सोच बुजुर्गों पर पड़ रही भारी

बस्ती और संतकबीर नगर जिलों में वृद्धाश्रम संचालन से जुड़े शुभम प्रसाद शुक्ल बताते हैं कि जो लोग बहूबेटों की उपेक्षा के चलते वृद्धाश्रमों में जीवन गुजार रहे हैं उन्हीं मांबाप ने बचपन में बड़े नाज से इन बच्चों को पाला और अपनी उंगली का सहारा दे कर चलना सिखाया, कंधे पर बिठा कर दुनिया दिखाई, जब भी बच्चे बीमार हुए, सिरहाने बैठ कर पूरी रात बिता दी.  लेकिन वक्त बदलने के साथ जब यही बच्चे जवान होते हैं और मांबाप बूढ़े, तो ये बच्चे उन्हे सहारा देने के बजाय उन्हें बेगाना समझ कर घर से दूर वृद्धाश्रमों में सिसकने के लिए छोड़ जाते हैं.

वृद्धाश्रमों में जीवन काट रहे लोगों के सवाल पर शुभम प्रसाद शुक्ल का कहना है कि जो बुजुर्ग यहां रहने को आते हैं उन में से ज्यादातर बेटेबहू के तिरस्कार के शिकार होते हैं. इन बुजुर्गों को परिवार में बेकार की वस्तु समझ कर एक कोने में घुटघुट कर मरने के लिए छोड़ दिया जाता है. न तो परिवार के इन बुजुर्गों को समय से खाना दिया जाता है और न ही बीमारियों आदि की दशा में दवाएं दी जाती हैं.

ऐसे में अकसर लोग वृद्धाश्रमों में शरण ले रहे हैं. वृद्धाश्रमों में न केवल बुजुर्गों की सही से देखभाल की जाती है बल्कि उन्हें समय से चाय, नाश्ता और भोजन भी दिया जाता है. वृद्धाश्रमों में जीवन गुजार रहे लोगों के स्वास्थ्य की देखभाल के लिए नियमित डाक्टर भी नियुक्त किए जाते हैं, जिस से बीमार पड़ने की दशा में बुजुर्गों को समय पर इलाज मिल जाता है.

वृद्धाश्रमों में जीवन काट रहे जितने भी वृद्धों से बात की गई, तकरीबन सभी का कहना है कि उन्हें घर में कबाड़ से भी बदतर समझा जाता है. जब तक शरीर में दम होता है तब तक परिवार में इज्जत मिलती है. जैसे ही शरीर काम करना बंद कर देता है उन्हें  घर की खूबसूरती में दाग समझा जाने लगता है.

भारी बजट के बावजूद अव्यवस्था से जूझ रहे वृद्धाश्रम

वृद्धों के कल्याण के मुद्दे पर काम करने वाली गैरसरकारी संस्था हेल्पएज इंडिया के अनुसार, देश में करीब 1500 वृद्धाश्रम हैं, जिन में करीब 70 हजार से भी अधिक  वृद्ध रहते हैं. इन में से ज्यादातर वृद्धाश्रम साल 2007 में लागू वृद्धजन भरणपोषण एक्ट के तहत केंद्र व राज्य सरकारों के साझे उपक्रम के तहत  भारीभरकम  आर्थिक सहयोग से एनजीओ से संचालित कराए जा रहे हैं. इस के तहत एक वृद्धाश्रम में 150 वृद्धों के रखने की क्षमता पर लगभग 75 लाख से 1 करोड़ रुपए का बजट सरकार द्वारा दिया जाता है. वहां वृद्धों को निशुल्क रहने की व्यवस्था के साथसाथ हर रोज अलगअलग मीनू के हिसाब से खाना, साफ़सुथरे बिस्तर, हर 4 लोगों पर एक शौचालय, कूलर, पंखे, बिजली जनरेटर व इनवर्टर के साथ ही सभी के लिए खाने के बरतन का सैट व बक्से, टीवी, फ्रिज, आरओ, वाशिंग मशीन, कंप्यूटर, टेलीफोन सहित मनोरंजन के सभी साजोसामान होना जरूरी है.

इस के अलावा, वृद्धों के स्वास्थ्य की देखभाल के लिए एमबीबीएस डाक्टर व मनोविज्ञानी को रखने का प्रावधान किया गया है. लेकिन सरकार द्वारा संचालित ज्यादातर वृद्धाश्रमों की हालत बदतर है. सरकार द्वारा लाखों रुपए एनजीओ को दिए जाते हैं. लेकिन इन वृद्धाश्रमों में न ही मीनू के हिसाब से खाना दिया जाता है और न ही साफ़सफाई की पर्याप्त व्यवस्था की जाती है.

वृद्धाश्रमों में जीवन काट रहे बुजुर्गों को गरमी में टूटेफूटे पंखों के बीच रखा जा रहा है. इन के बिस्तर पर बिछाई जाने वाली चादर हफ्तों तक न ही बदली जाती है और न ही साफ़ की जाती है. वृद्धाश्रमों में रह रहे तमाम ऐसे लोगों, जो अपने जीवन की अंतिम घड़ियां गिन रहे हैं, को भी अपने जूठे बरतन खुद ही धुलने को मजबूर किया जाता है.

इन वृद्धाश्रमों में रहे लोगों में से जब कोई बीमार पड़ता है तो उस का  स्थानीय लैवल पर किसी झोलाछाप डाक्टर से इलाज करा दिया जाता है. जिस से एमबीबीएस डाक्टर के ऊपर आने वाले मासिक खर्चे को एनजीओ संचालक पूरी तरह से डकार जाते हैं. वृद्धाश्रमों में लोग इसलिए आते हैं कि वहां अपने बेटेबहू के तानों से उन्हें नजात मिलेगी, लेकिन यहां भी उन्हें नारकीय जीवन जीने को मजबूर होना पड़ता है.

जब कभी सरकारी महकमे से जुड़ा कोई अधिकारी यहां जांच के लिए आता है तो उस दिन मानक पूरा करने के लिए ज्यादातर चीजें किराए पर मंगा ली जाती हैं. अगर अधिकारी वृद्धाश्रमों में कमियां पकड़ता भी है तो रिश्वत दे कर उस का मुंह बंद कर दिया जाता है.

दान और चंदे से चलता है वृद्धाश्रम, सरकारी धन तो संचालक खाते हैं

वृद्धाश्रम संचालन से जुड़े एक कर्मचारी ने अपना नाम न छापने की शर्त पर बताया कि वृद्धाश्रमों के संचालन के लिए सरकार द्वारा मिलने वाले धन को एनजीओ संचालक खा जाते हैं. क्योंकि इन वृद्धाश्रमों में आएदिन कोई न कोई अपना जन्म दिन मनाने या दान करने आ ही जाता है. इस तरह वृद्धाश्रमों को इन से नकद रुपए के साथ ही साजोसामान, खानेपीने की वस्तुएं आदि फ्री में मिल जाती हैं.

ऐसे दान का वृद्धाश्रमों द्वारा कोई रिकौर्ड नहीं रखा जाता है. इस के अलावा वृद्धों के घर वालों की तरफ से भी नकद धन दान में मिलता रहता है.

वृद्धाश्रमों को इतना दान मिलता है कि उस से भी अच्छीखासी रकम की बचत हो जाती है. ऐसे में संचालन के लिए मिलने वाले धन से सिर्फ कर्मचारियों को सैलरी ही दी जाती है, बाकी धन संचालक खुद  खा जाते हैं.

पेशे से चिकित्सक और सामाजिक कार्यकर्ता डा. नवीन सिंह का कहना है, “बुजुर्गों को बेटेबहुओं द्वारा सताया जा रहा है. ऐसे में हिंसा और तिरस्कार सहने के बजाय ये बुजुर्ग वृद्धाश्रमों में रहना  बेहतर समझते हैं. वहां इन वृद्धों की तरह सताए अपने जैसे ही तमाम लोग मिल जाते हैं. वहां ये लोग अपने दुखदर्द आपस में साझा करते हैं और हंसतेगाते हैं. ऐसे में इन का दर्द काफी हद तक कम हो जाता है.” डा. नवीन आगे कहते हैं कि लोगों को आधुनिकता की अंधी दौड़ से बाहर निकलना होगा और जिन बुजुर्गों ने हमें काबिल बनाया है, उन का सम्मान करना सीखना होगा. बुढ़ापे के दौरान उन के साथ बैठ कर प्यारभरी बातें करनी होंगो. उन को समय से खानादवा आदि देने का ध्यान रखना होगा. हम कोशिश करें कि बुजुर्गों को कभी भी अकेलेपन का एहसास न होने दें, तभी हम वृद्धाश्रमों की बढ़ती तादाद पर रोक लगा पाएंगे.

वेबसीरीजः‘‘आपके कमरे में कोई रहता है‘‘ को मिला एक स्टार

समीक्षाः

वेबसीरीजः ‘‘आपके कमरे में कोई रहता हैः हॉरर होते हुए भी डराती नही है..’’

रेटिंग: एक स्टार

निर्माताः थिंकिंग हैट्स इंटरटेन मेंटसोल्युषन

लेखक व निर्देषकःगौरव सिन्हा

कलाकारःस्वराभास्कर,सुमितव्यास,अषीषवर्मा,अमोलपाराषर, निमिषामेहता,नवीनकस्तूरिया, इष्ताक खान व अन्य

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अवधिःपांच एपीसोड, कुलअवधि एक घंटा 38 मिनट

ओटीटीप्लेटफार्मः एमएक्सप्लेअर्स

‘एमएक्सप्लेअर’’पर पांच एपीसोड की एक हॉरर वेब सीरीज ‘‘आपके कमरे में कोई रहता है’’में प्रतिभाषाली कलाकारों की लंबी चैड़ी फौज है,मगर दर्शकों को निराशा ही हाथ लगती है.

कहानीः यह कहानी है चार कुंवारे दोस्तों निखिल (सुमीत व्यास), सुब्बू (नवीन कस्तूरिया), कवि (अमोल पाराशर) और सनकी (आशीष वर्मा) की,जो कि भारत के अलग-अलग शहरों से आकर मुंबई की एक कंपनी में एक साथ काम रहे हैं.यह सभी किराए के मकान के लिए जद्दो जहद कर रहे हैं. इन्हें मुंबई शहर में एक निर्माणाधीन इमारत में पूरी तरह से साजोसमान से सुसज्जित चार बेडरूम का फ्लैट मामूली किराए पर मिल जाता है.पर इन्हें यह नहीं पता था कि वे इस में पहले से ही रह रहे भूत के साथ अद्भुत नए फ्लैट को साझा करेंगें. इन सभी का जीवन उस वक्त्त जटिल हो जाता है,जब सुंदर मौसम (स्वरा भास्कर)दीवाली पार्टी के लिए आती है, जिसके बाद भयावहता की शुरुआत होती है.इस दीवाली पार्टी की रात इनके एक साथी कवि की मौत हो जाती हे ओर कवि की प्रेतात्मा का वास मोसम के अंदर हो जाता है.फिर कई घटनाक्रम तेजी से बदलते हैं.

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लेखन व निर्देशनः इस हॉरर वेब सीरीज की सबसे बड़ी कमजोर कड़ी कहानी व पटकथा है.हॉरर व हास्य के दृष्य पैदा करने के लिए उलजलूल तरह के दृष्यों की भरमार है.पर यह वेब सीरीज डराती तो बिल्कुल नही है,कुछ दृष्य जरुर हंसा देते हैं.कहानी को बेवज हरबरकी तरह खींचा गया है.निर्देशक के तौर पर गौरव सिन्हा अपनी प्रतिभा को साबित नही कर पाते हैं.

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अभिनयः निर्देषक ने इसमें प्रतिभावान कलाकारों की भीड़ जरुर इकट्ठा कर दी है,मगर कहानी ,पटकथा व चरित्र चित्रण सही न होने के चलते सभी कलकारों का अभिनय प्रभावहीन है.ऐसा लगता है जैसे कि यह कलाकार अभिनय नहीं, सिर्फ किसी तरह से समय बिता रहे हैं.इस वेबसीरीज में स्वराभास्कर क्यासोचकर अभिनय किया,यह बात समझ से परे है.

द कपिल शर्मा शो: कीकू और कृष्णा के बीच नहीं है लड़ाई, जानें क्या है सच्चाई

कॉमेडियन कृष्णा अभिषेक और उनके मामा गोविंदा के बिगड़ते रिश्ते के बारे में लगभग हर कोई जानता है. ऐसे में कपिल शर्मा के एक एपिसोड़ में कीकू शारदा ने गोविंदा को लेकर कुछ माजाक कर दिया कृष्णा अभिषेक से जिसके बाद दोनों की लड़ाई की खबरे बाहर आने लगी. जबकी ऐसा बिल्कुल भी नहीं था.

कई जगहों पर कीकू और कृष्णा अभिषेक की लड़ाई की खबर छप गई, जिसके बाद एक रिपोर्ट से बातचीत करते हुए कीकू शारदा ने कहा कि हमारे बीच कोई लड़ाई नहीं हुई है. हम बच्चे थोड़े हैं जो छोटी-छोटी बातों पर लड़ाई करेंगे.

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हमने जो भी कृष्णा को कह वो स्क्रिपटेड था, हमने जानबुझकर कुछ नहीं कहा था किसी को, हमारी दोस्ती आज भी वैसे ही हैं जैसे पहले हम दोनों एक-दूसरे के साथ थे, आगे मुझे नहीं लगता है कि हमें किसी को कोई सफाई देने की जरुरत है.

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बाकी मेरी लोगों से रिक्वेस्ट है कि प्लीज ऐसी गलत खबर को ना फैलाएं. बता दें कि कीकू और कृष्णा अच्छा बॉन्ड शेयर करते हैं. बाकी लोगों का काम है अफवाह बनाना जिसपर ज्यादा ध्यान नहीं देना चाहिए.

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वैसे कपिल शर्मा शो में कीकू और कृष्णा की जोड़ी को लोग खूब प्यार देते हैं. इन्हें लोग देखने के लिए बेताब रहते हैं. वहीं कपिल शर्मा शो की बात करे तो देश ही नहीं विदेशों में भी इस शो के बहुत लोग दीवाने हैं. आए दिन शो पर फिल्मी सितारे अपने शो के प्रमोशन के लिए आते रहते हैं.

बिग बॉस 14 : जैस्मिन भसीन की दोबारा होगी घर में वापसी, फैंस को है इंतजार

बिग बॉस 14 के घर में कंटेस्टेंट के आने और जानें का सिलसिला इस बार खत्म होने का नाम ही नहीं ले रहा है. इस बार घर के अंदर एक बार फिर जैस्मिन भसीन की एंट्री होने वाली है. कई ऐसे कंटेस्टेंट है जो घर से बार बाहर जाने के बाद दूबारा घर के अंदर आए हैं. उसमें एक नाम अब जैस्मिन भसीन का भी आ रहा है.

लेकिन अगर आप ये सोच रहे है कि जैस्मिन घर में रहने के लिए आ रही है तो आप बिल्कुल गलत है, जैस्मिन अपने दोस्त एली गोनी से मिलने आ रही हैं. वीकेंड पर वह घर के अंदर भी आएंगी कुछ देर के लिए फिर वापस चली जाएंगी.

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घर के अंदर आने से पहले जैस्मिन एक सप्ताह तक कोरेंटाइन रखेगी खुद को उसके बाद घर के अंदर एंट्री होगी. दर्शकों को जैस्मिन भसीन और एली गोनी की जोड़ी शानदार लगी थी जिसके बाद लोगों ने शो के मेकर्स से रिक्वेस्ट किया था दोनों को एक साथ देखने के लिए.

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जैस्मिन और एली गोनी एक-दूसरे के भरोसेमंद सपोर्ट सिस्टम है. हरवक्त दों एक-दूसरे का साथ देते जर आते हैं. शायद यही वजह है जिससे दोंनों को दर्शक ज्यादा पसंद करते हैं. एली गोनी को लोगों से बहुत ज्यादा प्यार भी मिल रहा है. तो वहीं एक खबर ये भी आ रही थी कि एली गोनी और जैस्मिन घर से बाहर आने के बाद शादी करेंगे तो वहीं कुछ लोगों  का कहना है कि जैस्मिन के पापा एली को पसंद हीं करते हैं.

वहीं जैस्मिन भसीन के रिएंट्री से रुबीना दिलाइक को बड़ा झटका लगा है.

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शायद इस वजह से इनके रिश्ते में दरार आ सकता है. वहीं जब जैस्मिन के मम्मी पापा बिग बॉस के घर में आएं थे तब भी उन्होंने इशारे में कह दिया था कि खुद पर ध्यान दो दूसरो पर नहीं इससे उनका साफ मतलब था एली गोनी की तरफ.

नई जिंदगी-भाग 1: रघुवीर भैया अपनी पत्नी पर क्यों चीखते थे

‘‘कहां मर गई हो, कितनी देर से आवाज लगा रहा हूं. जिंदा भी हो या मर गईं?’’ रघुवीर भैया एक ही गति से निरंतर चिल्ला रहे थे.

‘‘क्या चाहिए आप को?’’ गीले हाथ पोंछते हुए इंदु कमरे में आ कर बोली.

‘‘मेरी जुराबें कहां हैं? सोचा था, पढ़ीलिखी बीवी घर भी संभालेगी और मेरी सेवा भी करेगी, लेकिन यहां तो महारानीजी के नखरे ही पूरे नहीं होते. सुबह से साजशृंगार यों शुरू होता है जैसे किसी कोठे पर बैठने जा रही हो,’’ कितनी देर तक भुनभुनाते रहे.

थोड़ी देर बाद फिर चीखे, ‘‘नाश्ता तैयार है कि होटल से मंगवाऊं?’’

इंदु गरमगरम परांठे ले आई. तभी ऐसा लगा, जैसे कोई चीज उन्होंने दीवार पर दे मारी हो. शायद कांच की प्लेट थी.

‘‘पूरी नमक की थैली उड़ेल दी है परांठे में. आदमी भूखा चला  जाए तो ठूंसठूंस कर खाएगी खुद.’’

‘‘अच्छा, सादा परांठा ले आती हूं,’’ इंदु की आवाज में कंपन था.

‘‘नहीं चाहिए, कुछ नहीं चाहिए. अब शाम को मैं इस घर में आऊंगा ही नहीं.’’

‘‘कैसी बातें कर रहे हैं आप? यों भूखे घर से जाएंगे तो मेरे गले से तो एक निवाला भी नहीं उतरेगा.’’

‘‘मरो जा कर,’’ उन्होंने तमाचा इंदु के गाल पर रसीद कर दिया और पिछवाड़े का दरवाजा खोल कर गाड़ी यों स्टार्ट की जैसे किसी जंग पर जाना हो. ऐसे मौके पर अकसर वे गाड़ी तेज गति से ही चलाते थे.

अम्माजी सहित पूरा परिवार सिमट आया था आंगन में. नन्हा सौरभ मेरे पल्लू से मुंह छिपाए खड़ा था. अकसर रघुवीर भैया की चीखें सुन कर परिवार के सदस्य तो क्या, आसपड़ोस के लोग भी जमा हो जाते. पर क्या मजाल जो कोई एक शब्द भी कह जाए.

एक बार फिर आशान्वित नजरों से मैं ने दिवाकर की ओर देखा था. शायद कुछ कहें. पर नहीं, अपमान का घूंट पीना उन्हें भली प्रकार आता था. उधर, अम्माजी को देख कर यों लगता जैसे तिरस्कृत होने के लिए यह बेटा पैदा किया था.

चिढ़ कर मैं ने ही मौन तोड़ा, ‘‘एक दिन आप का भाई उस भोलीभाली लड़की को जान से मार डालेगा लेकिन आप लोग कुछ मत कहिएगा? न जाने इतना अन्याय क्यों सहा जाता है इस घर में?’’

क्रोध से मेरी आवाज कांप रही थी. उधर, इंदु सिसक रही थी. मैं सोचने लगी, अब शाम तक यों ही वह भूखीप्यासी अपने कमरे में लेटी रहेगी. और रघुवीर भैया शाम को लौटेंगे जैसे कुछ हुआ ही न हो.

एक बार मन में आया, उस के कमरे में जा कर प्यार से उस का माथा चूम लूं, सहानुभूति के चंद बोल आहत मन को शांत करते हैं. पर इंदु जैसी स्वाभिमानी स्त्री को यह सब नहीं भाता था. होंठ सी कर मंदमंद मुसकराते रहना उस का स्वभाव ही बन गया था. क्या मजाल जो रघु भैया के विरोध में कोई कुछ कह जाए.

ब्याह कर के जब घर में आई थी तो बड़ा ही अजीब सा माहौल देखा था मैं ने. रघुवीर भैया और दिवाकर दोनों जुड़वां भाई थे, पर कुछ पलों के अंतराल ने दिवाकर को बड़े भाई का दरजा दिलवा दिया था. शांत, सौम्य और गंभीर स्वभाव के कारण ही दिवाकर काफी आकर्षक दिखाई देते थे.

उधर, रघुवीर उग्र स्वभाव के थे. कोई कार्य तो क्या, शायद पत्ता भी उन की इच्छा के विरुद्ध हिल जाता तो यों आंखें फाड़ कर चीखते मानो पूरी दुनिया के स्वामी हों. अम्माजी और दिवाकर उन्हें नन्हे बालक के समान पुचकारते, सफाई देते, लेकिन वे तो जैसे ठान ही चुके होते थे कि सामने वाले का अनादर करना है.

अम्माजी तब अपने कमरे में सिमट जाया करती थीं और बदहवास से दिवाकर घर छोड़ कर बाहर चले जाते. मैं अपने कमरे में कितनी देर तक थरथर कांपती रहती थी. उस समय क्रोध अपने पति और अम्माजी पर ही आता था, जिन्होंने उन पर अंकुश नहीं रखा था. तभी तो बेलगाम घोडे़ की तरह सरपट भागते जाते थे.

नई जिंदगी-भाग 3 : रघुवीर भैया अपनी पत्नी पर क्यों चीखते थे

‘मैं आप की तरह नहीं जो बीवी को सिर पर चढ़ा कर रखूं. मेरे मुंह से निकला शब्द पत्थर की लकीर होता है.’

दिवाकर में न जाने कितना धीरज था जो अपने भाई का हर कटु शब्द शिरोधार्य कर लेते थे. मुझे तो रघु भैया किसी मानसिक रोगी से कम नहीं लगते थे.

जैसेतैसे तैयार हो कर नई बहू जनवासे में पहुंच गई. लेकिन ऐसा लग रहा था मानो उस ने उदासी की चादर ओढ़ी हुई हो. बाबुल का अंगना छोड़ कर ससुराल में आते ही पिया ने कैसा स्वागत किया था उस का.

हंसीखुशी के माहौल में सब काम सही तरीके से निबट गए. दूसरे दिन वे दोनों कश्मीर के लिए चल दिए थे. वहां जा कर इंदु ने हमें पत्र लिखा. ऐसा लगा, जैसे अपने मृदु व कोमल स्वभाव से हमसब को अपना बनाना चाह रही हो. शुष्क व कठोर स्वभाव के रघु भैया तो उसे ये औपचारिकताएं सिखाने से रहे. उन्हें तो अपनों को पराया बनाना आता था.

उस दिन रविवार था. हमसब शाम को टीवी पर फिल्म देख रहे थे. दरवाजे की घंटी बजाने का अंदाज रघु भैया का ही था. द्वार पर सचमुच इंदु और रघु भैया ही थे.

इंदु हमारे बीच आ कर बैठ गई. हंसती रही, बताती रही. रघु भैया अपने परिजनों, स्वजनों से सदैव दूर ही छिटके रहते थे.

मैं बारबार इंदु की उदास, सूनी आंखों में कुछ ढूंढ़ने का प्रयास कर रही थी. बात करतेकरते अकसर वह चुप हो जाया करती थी. कभी हंसती, कभी सहम जाती. न जाने किस परेशानी में थी. मुझे कुछ भी कुरेदना अच्छा नहीं लगा था.

दूसरे दिन से इंदु ने घर के कामकाज का उत्तरदायित्व अपने ऊपर ले लिया था. मेरे हर काम में हाथ बंटाती. अम्माजी की सेवा में आनंद मिलता था उसे. रघु भैया के मुख से बात निकलती भी न थी कि इंदु फौरन हर काम कर देती.

एक बात विचारणीय थी कि पति के रौद्र रूप से घबरा कर वह उस के पास पलभर भी नहीं बैठती थी. हमारे साथ बैठ कर वह हंसती, बोलती, खुश रहती थी लेकिन पति के सान्निध्य से जैसे उसे वितृष्णा सी होती थी.

कई बार जब पति का तटस्थ व्यवहार देखती तो उन्हें खींच कर सब के बीच लाना चाहती, लेकिन वे नए परिवेश में खुद को ढालने में असमर्थ ही रहते थे.

सुसंस्कृत व प्रतिष्ठित परिवार में पलीबढ़ी औरत इस धुरीविहीन, संस्कारविहीन पुरुष के साथ कैसे रह सकती है, मैं कई बार सोचती थी. इस कापुरुष से उसे घृणा नहीं होती होगी? वैसे उन्हें कापुरुष कहना भी गलत था. कोई सुखद अनुभूति हुई तो जीजान से कुरबान हो गए, मगर दूसरी ओर से थोड़ी लापरवाही हुई या जरा सी भावनात्मक ठेस पहुंची तो मुंह मोड़ लिया.

एक बार दिवाकर दौरे पर गए हुए थे. मैं अपने कमरे में कपड़े संभाल रही थी कि देवरजी की बड़बड़ाहट शुरू हो गई. कुछ ही देर में चिंगारी ने विस्फोट का रूप ले लिया था. उन के रजिस्टर पर मेरा बेटा आड़ीतिरछी रेखाएं खींच आया था. हर समय चाची के कमरे में बैठा रहता था. इंदु को भी तो उस के बिना चैन नहीं था.

‘बेवकूफ ने मेरा रजिस्टर बरबाद कर दिया. गधा कहीं का…अपने कमरे में मरता भी तो नहीं,’ रघु भैया चीखे थे.

इंदु ने एक शब्द भी नहीं कहा था. क्रोध में व्यक्ति शायद विरोध की प्रतीक्षा करता है, तभी तो वार्त्तालाप खिंचता है. आगबबूला हो कर रघु पलंग पर पसर गए.

अचानक पलंग से उठे तो उन्हें चप्पलें नहीं मिलीं. पोंछा लगाते समय रमिया ने शायद पलंग के नीचे खिसका दी थीं. रमिया तो मिली नहीं, सो उन्होंने पीट डाला मेरे बेटे को.

इंदु ने उस के चारों तरफ कवच सा बना डाला, पर वे तो इंदु को ही पीटने पर तुले थे. मैं भाग कर अपने बेटे को ले आई थी. पीठ सहलाती जा रही और सोचती भी  जा रही थी कि क्या सौरभ का अपराध अक्षम्य था. किसी को भी मैं ने कुछ नहीं कहा था. चुपचाप अपने कमरे में बैठी रही.

पति को शांत कर कुछ समय बाद इंदु मेरे कमरे में आ कर मुझ से क्षमायाचना करने लगी. मैं बुरी तरह उत्तेजित हो चुकी थी. अपनेआप को पूर्णरूप से नियंत्रित करने का प्रयास किया लेकिन असफल ही रही, बोली, ‘देखूंगी, जब अपने बेटे से ऐसा ही व्यवहार करेंगे.’

इंदु दया का पात्र बन कर रह गई. बेचारी और क्या करती. हमेशा की तरह उसे बैठने तक को नहीं कहा था मैं ने.

शाम को अपनी गलती पर परदा डालने के लिए रघु भैया खिलौना बंदूक ले आए थे. सौरभ तो सामान्य हो गया. अपमान की भाषा वह कहां पहचानता था, लेकिन मेरा आहत स्वाभिमान मुझे प्रेरित कर रहा था कि यह बंदूक उस क्रोधी के सामने फेंक दूं और सौरभ को उस की गोद से छीन कर अपने अहं की तुष्टि कर लूं.

लेकिन मर्यादा के अंश सहेजना दिवाकर ने खूब सिखाया था. उस समय अपमान का घूंट पी कर रह गई थी. दूसरे की भावनाओं की कद्र किए बिना अपनी बात पर अड़े रह कर मनुष्य अपने अहंकार की तुष्टि भले ही कर ले लेकिन मधुर संबंध, जो आपसी प्रेम और सद्भाव पर टिके रहते हैं, खुदबखुद समाप्त होते चले जाते हैं.

उस के बाद तो जैसे रोज का नियम बन गया था. इंदु जितना अपमान व आरोप सहती उतनी ही यातनाओं की पुनरावृत्ति अधिक तीव्र होती जाती थी. भावनाओं से छलकती आंखों में एक शून्य को टंगते कितनी बार देखा था मैं ने. प्रतिकार की भाषा वह जानती नहीं थी. पति का विरोध करने के लिए उस के संस्कार उसे अनुमति नहीं देते थे.

उधर, रघु भैया को कई बार रोते हुए देखा मैं ने. इधर इंदु अंतर्मुखी बन बैठी थी. कितनी बार उस की उदास आंखें देख कर लगता जैसे पारिवारिक संबंधों व सामाजिक दायित्वों का निर्वाह करने में असमर्थ हो. 1 वर्ष के विवाहित जीवन में वह सूख कर कांटा हो गई थी. अब तो मां बनने वाली थी. मुझे लगता, उस की संतान अपनी मां को यों तिरस्कृत होते देखेगी तो या स्वयं उस का अपमान करेगी या गुमसुम सी बैठी रहेगी.

एक दिन इंदु की भाभी का पत्र आया. ब्याह के बाद शायद पहली बार वे पति के संग ननद से मिलने आ रही थीं. इंदु पत्र मेरे पास ले आई और बोली, ‘‘भाभी, मेरे भाभी और भैया मुझ से मिलने आ रहे हैं.’’

इंदु का स्वर सुन कर मैं वर्तमान में लौट आई, बोली, ‘‘यह तो बड़ी खुशी की बात है.’’

‘‘आप तो जानती हैं, इन का स्वभाव. बातबात में मुझे अपमानित करते हैं. भाभीभैया को मैं ने कुछ नहीं बताया है आज तक. उन के सामने भी कुछ…’’ उस का गला रुंध गया.

‘‘दोषी कौन है, इंदु? अत्याचार करना अगर जुर्म है तो उसे सहना उस से भी बड़ा अपराध है,’’ मैं ने उसे समझाया. मैं मात्र संवेदना नहीं जताना चाह रही थी, उस का सुप्त विवेक जगाना भी चाह रही थी.

मैं ने आगे कहा, ‘‘पति को सर्वशक्तिमान मान कर, उस के पैरों की जूती बन कर जीवन नहीं काटा जा सकता. पतिपत्नी का व्यवहार मित्रवत हो तभी वे सुखदुख के साथी बन सकते हैं.’’

इंदु अवाक् सी मेरी ओर देखती रही. उस का अर्धसुप्त विवेक जैसे विकल्प ढूंढ़ रहा था. दूसरे दिन सुबह ही उस के भैयाभाभी आए थे. उन का सौम्य, संतुलित व संयमित व्यवहार बरबस ही आकर्षित कर रहा था हमसब को. उपहारों से लदेफदे कभी इंदु को दुलारते, कभी रघु को पुचकारते. कितनी देर तक इंदु को पास बैठा कर उस का हाल पूछते रहे थे.

गांभीर्य की प्रतिमूर्ति इंदु ने उन्हें अपने शब्दों से ही नहीं, हावभाव से भी आश्वस्त किया था कि वह बहुत खुश है. 2 दिन हमारे साथ रह कर अम्माजी व रघुवीर भैया से अनुमति ले कर वे इंदु को अपने साथ ले गए थे.

प्रथम प्रसव था, इसलिए वे इंदु को अपने पास ही रखना चाहते थे. रघुवीर भैया का उन दिनों स्वभाव बदलाबदला सा था. चुप्पी का मानो कवच ओढ़ लिया था उन्होंने. इंदु के जाने के बाद भी वे चुप ही रहे थे.

प्रसव का समय नजदीक आता जा रहा था. हमसब इंदु के लिए चिंतित थे. यदाकदा उस के भाई का फोन आता रहता था. रघुवीर भैया व हम सब से यही कहते कि उस समय वहां हमारा रहना बहुत ही जरूरी है. डाक्टर ने उस की दशा चिंताजनक बताई थी. ऐसा लगता था, रघु इंदु से दो बोल बोलना चाहते थे. उन जैसे आत्मकेंद्रित व्यक्ति के मन में पत्नी के लिए थोड़ाबहुत स्नेह विरह के कारण जाग्रत हुआ था या अपने ही व्यवहार से क्षुब्ध हो कर वे पश्चात्ताप की अग्नि में जल रहे थे, इस बारे में मैं कुछ समझ नहीं पाई थी.

रघु के साथ मैं व सौरभ इंदु के मायके पहुंचे थे. मां तो इंदु की बचपन में ही चल बसी थीं, भैयाभाभी उस की यों सेवा कर रहे थे, जैसे कोई नाजुक फूल हो.

अवाक् से रघु भैया कभी पत्नी को देखते तो कभी साले व सलहज को. ऐसा स्नेह उन्होंने कभी देखा नहीं था. पिछले वर्ष जब इंदु को पेटदर्द हुआ था तो दवा लाना तो दूर, वे अपने दफ्तर जा कर बैठ गए थे. यहां कभी इंदु को फल काट कर खिलाते तो कभी दवा पिलाने की चेष्टा करते. इंदु स्वयं उन के अप्रत्याशित व्यवहार से अचंभित सी थी.

3 दिन तक प्रसव पीड़ा से छटपटाने के बाद इंदु ने बिटिया को जन्म दिया था. इंदु के भैयाभाभी उस गुडि़या को हर समय संभालते रहते. इधर मैं देख रही थी, रघु भैया के स्वभाव में कुछ परिवर्तन के बाद भी इंदु बुझीबुझी सी ही थी. कम बोलती और कभीकभी ही हंसती. कुछ ही दिनों के बाद इंदु को लिवा ले जाने की बात उठी. इस बीच, रघु एक बार घर भी हो आए थे. पर अचानक इंदु के निर्णय ने सब को चौंका दिया. वह बोली, ‘‘मैं कुछ समय भैयाभाभी के पास रह कर कुछ कोर्स करना चाहती हूं.’’

ऐसा लगा, जैसे दांपत्य के क्लेश और सामाजिक प्रताड़ना के त्रास से अर्धविक्षिप्त होती गई इंदु का मनोबल मानो सुदृढ़ सा हो उठा है. कहीं उस ने रघु भैया से अलग रहने का निर्णय तो नहीं ले लिया?

स्पष्ट ही लग रहा था कि कोर्स का तो मात्र बहाना है, वह हमसब से दूर रहना चाहती है. उधर, रघु भैया बहुत परेशान थे. ऊहापोह की मनोस्थिति में आशंकाओं के नाग फन उठाने लगे थे. इंदु के भैयाभाभी ने निश्चय किया कि पतिपत्नी का निजी मामला आपसी बातचीत से ही सुलझ जाए तो ठीक है.

इंदु कमरे में बेटी के साथ बैठी थी. रघु भैया के शब्दों की स्पष्ट आवाज सुनाई दे रही थी. इंदु से उन्होंने अपने व्यवहार के लिए क्षमायाचना की लेकिन वह फिर भी चुप ही बैठी रही. रघु भैया फिर बोले, ‘‘इंदु, प्यार का मोल मैं ने कभी जाना ही नहीं. यहां तुम्हारे परिवार में आ कर पहली बार जाना कि प्यार, सहानुभूति के मृदु बोल मनुष्य के तनमन को कितनी राहत पहुंचाते हैं.

‘‘उस समय कोई 3 वर्ष के रहे होंगे हम दोनों भाई, जब पिताजी का साया सिर से उठ गया था. उन की मृत्यु से मां विक्षिप्त सी हो उठी थीं. वे घर को पूरी तरह से संभाल नहीं पा रही थीं.  ऐसे समय में रिश्तेदार कितनी मदद करते हैं, यह तुम जान सकती हो.

‘‘मां का पूरा आक्रोश तब मुझ पर उतरता था. मुझे लगता वे मुझ से घृणा करती हैं.’’

‘‘ऐसा कैसे हो सकता है. कोई मां अपने बेटे से घृणा नहीं कर सकती,’’ इंदु का अस्फुट सा स्वर था.

‘‘बच्चे की स्कूल की फीस न दी जाए, बुखार आने पर दवा न दी जाए, ठंड लगने पर ऊनी वस्त्र न मिलें, तो इस भावना को क्या कहा जाएगा?

‘‘मां ऐसा व्यवहार मुझ से ही करती थीं. दिवाकर का छोटा सा दुख उन्हें आहत करता. उन की भूख से मां की अंतडि़यों में कुलबुलाहट पैदा होती. दिवाकर की छोटी सी छोटी परेशानी भी उन्हें दुख के सागर में उतार देती.’’

‘‘दिवाकर भैया क्या विरोध नहीं करते थे?’’

‘‘इंदु, जब इंसान को अपने पूरे मौलिक अधिकार खुदबखुद मिलते रहते हैं तो शायद दूसरी ओर उस का ध्यान कभी नहीं खिंचता. या हो सकता है, मुझे ही ऐसा महसूस होता हो.’’

‘‘शुरूशुरू में चिड़चिड़ाहट होती, क्षुब्ध हो उठता था मां के इस व्यवहार पर. लेकिन बाद में मैं ने चीख कर, चिल्ला कर अपना आक्रोश प्रकट करना शुरू कर दिया. बच्चे से यदि उस का बचपन छीन लिया जाए तो उस से किसी प्रकार की अपेक्षा करना निरर्थक सा लगता है न?

‘‘हर समय उत्तरदायित्वों का लबादा मुझे ही ओढ़ाया जाता. यह मकान, यह गाड़ी, घर का खर्चा सबकुछ मेरी ही कमाई से खरीदा गया. दिवाकर अपनी मीठी वाणी से हर पल जीतते रहे और मैं कर्कश वाणी से हर पल हारता रहा.

‘‘धीरेधीरे मुझे दूसरों को नीचा दिखाने में आनंद आने लगा. बीमार व्यक्ति को दुत्कारने में सुख की अनुभूति होती. कई बार तुम्हें प्यार करना चाहा भी तो मेरा अहं मेरे आगे आ जाता था. जिस भावना को कभी महसूस नहीं किया, उसे बांट कैसे सकता था. अपनी बच्ची को मैं खूब प्यार दूंगा, विश्वास दूंगा ताकि वह समाज में अच्छा जीवन बिता सके. उसे कलुषित वातावरण से हमेशा दूर रखूंगा. अब घर चलो, इंदु.’’

रघु फूटफूट कर रोने लगे थे. इंदु अब कुछ सहज हो उठी थी. रघु भैया दया के पात्र बन चुके थे. मैं समझ गई थी कि मनुष्य के अंदर का खोखलापन उस के भीतर असुरक्षा की भावना भर देता है. फिर इसी से आत्मविश्वास डगमगाने लगता है. इसीलिए शायद वे उत्तेजित हो उठते थे. इंदु घर लौट आई थी. वह, रघु भैया और उन की छोटी सी गुडि़या बेहद प्रसन्न थे. कई बार मैं सोचती, यदि रघु भैया ने अपने उद्गार लावे के रूप में बाहर न निकाले होते तो यह सुप्त ज्वालामुखी अंदर ही अंदर हमेशा धधकता रहता. फिर विस्फोट हो जाता, कौन जाने?

नई जिंदगी-भाग 2: रघुवीर भैया अपनी पत्नी पर क्यों चीखते थे

एक दिन मैं ने दिवाकर से खूब झगड़ा किया था. खूब बुराभला कहा था रघु भैया को. दिवाकर शांत रहे थे. गंभीर मुखमुद्रा लिए अपने चेहरे पर मुसकान बिखेर कर बोले, ‘‘शालू, रघु की जगह अगर तुम्हारा भाई होता तो तुम क्या करतीं? क्या ऐसे ही

कोसतीं उसे?’’

‘‘सच बताऊं, मैं उस से संबंधविच्छेद ही कर लेती. हमारे परिवार में बच्चों को ऐसे संस्कार दिए जाते हैं कि वे बड़ों का अनादर कर ही नहीं सकते,’’ क्रोध के आवेग में बहुतकुछ कह गई थी. जब चित्त थोड़ा शांत हुआ तो खुद को समझाने बैठ गई कि मेरे पति भी इसी परिवार के हैं, कभी दुख नहीं पहुंचाया उन्होंने किसी को. फिर रघु भैया का व्यवहार ऐसा क्यों है?

एक दिन, अम्माजी ने अखबार रद्दी वाले को बेच दिए थे. रघु भैया को किसी खास दिन का अखबार चाहिए था. टूट पड़े अम्माजी पर. दिवाकर ने उन्हें शांत करते हुए कहा, ‘आज ही दफ्तर की लाइब्रेरी से तुम्हें अखबार ला दूंगा.’

पर रघु भैया की जबान एक बार लपलपाती तो उसे शांत करना आसान नहीं होता था. गालियों की बौछार कर दी अम्मा पर. वे पछाड़ खा कर गिर पड़ी थीं.

दिवाकर अखबार लेने चले गए और मैं डाक्टर को ले आई थी. तब तक रघु भैया घर से जा चुके थे. डाक्टर अम्माजी को दवा दे कर जा चुके थे. मैं उन के सिरहाने बैठी अतीत की स्मृतियों में खोती चली गई. कैसे हृदयविहीन व्यक्ति हैं ये? संबंधों की गरिमा भी नहीं पहचानते.

दिन बीतते गए. रघु भैया के विवाह के लिए अम्माजी और दिवाकर चिंतित थे. दिवाकर अपने भाई के लिए संपन्न घराने की सुंदर व सुशिक्षित कन्या चाहते थे. अम्माजी चाह रही थीं, मैं अपने मायके की ही कोई लड़की यहां ले आऊं. पर मुझे तो रघु भैया का स्वभाव कभी भाया ही नहीं था. जानबूझ कर दलदल में कौन फंसे.

एक दिन दिवाकर मुझ से बोले, ‘शालू, रघु के लिए कोई लड़की देखो.’

मैं विस्मय से उन का चेहरा निहारने लगी थी.  समझ नहीं पा रही थी, वे वास्तव में गंभीर हैं या यों ही मजाक कर रहे हैं. रघु भैया के स्वभाव से तो वही स्त्री सामंजस्य स्थापित कर सकती थी जिस में समझौते व संयम की भावना कूटकूट कर भरी हो. घर हो या बाहर, आपा खोते एक पल भी नहीं लगता था उन्हें. मैं हलकेफुलके अंदाज में बोली, ‘ब्याह भले कराओ देवरजी का पर उस स्थिति की भी कल्पना की है तुम ने कभी, जब वे पूरे वातावरण को युद्धभूमि में बदल देते हैं. मैं तो डर कर तुम्हारी शरण में आ जाती हूं पर उस गरीब का क्या होगा?’

मैं ने बात सहज ढंग से कही थी पर दिवाकर गंभीर थे. मेरे दृष्टिकोण का मानदंड चाहे जो भी हो पर दिवाकर के तो वे प्रिय भाई थे और अम्माजी के लाड़ले सुपुत्र.

दोनों की दृष्टि में उन का अपराध क्षम्य था. वैसे लड़का सुशिक्षित हो, उच्च पद पर आसीन हो और घराना संपन्न हो तो रिश्तों की कोई कमी नहीं होती. कदकाठी, रूपरंग व आकर्षक व्यक्तित्व के तो वे स्वामी थे ही. मेरठ वाले दुर्गाप्रसाद की बेटी इंदु सभी को बहुत भायी थी.

मैं सोच रही थी, ‘क्या देंगे रघु भैया अपनी अर्धांगिनी को? उन के शब्दकोश में तो सिर्फ कटुबाण हैं, जो सर्पदंश सी पीड़ा ही तो दे सकते हैं. भावों और संवेदनाओं की परिभाषा से कोसों दूर यह व्यक्ति उपेक्षा के नश्तर ही तो चुभो सकता है.’

इंदु को हमारे घर आना था. वह आई भी. 2 भाइयों की एकलौती बहन. इतना दहेज लाई कि अम्माजी पड़ोसिनों को गिनवागिनवा कर थक गई थीं. अपने साथ संस्कारों की अनमोल धरोहर भी वह लाई थी. उस के मृदु स्वभाव ने सब के मन को जीत लिया. मुझे लगा, देवरजी के स्वभाव को बदलने की सामर्थ्य इंदु में है.

विवाह के दूसरे दिन स्वागत समारोह का आयोजन था. दिवाकर की वकालत खूब अच्छी चलती थी. संभ्रांत व आभिजात्य वर्ग में उन का उठनाबैठना था. रघु भैया चार्टर्ड अकाउंटैंट थे. निमंत्रणपत्र बांटे गए थे. ऐसा लग रहा था, जैसे पूरा शहर ही सिमट आया हो.

इंदु को तैयार करने के लिए ब्यूटीशियन को घर पर बुलाया गया था. लोगों का आना शुरू हो गया था. उधर इंदु तैयार नहीं हो पाई थी. रघु भीतर आ गए थे. क्रोध के आवेग से बुरी तरह कांप रहे थे. सामने अम्माजी मिल गईं तो उन्हें ही धर दबोचा, ‘कहां है तुम्हारी बहू? महारानी को तैयार होने में कितने घंटे लगेंगे?’

मैं उन का स्वभाव अच्छी तरह जानती थी, बोली, ‘ब्यूटीशियन अंदर है. बस 5 मिनट में आ जाएगी.’

पर उन्हें इतना धीरज कहां था. आव देखा न ताव, भड़ाक से कमरे का दरवाजा खोल कर अंदर पहुंच गए. शिष्टाचार का कोई नियम उन्हें छू तक नहीं गया था. ब्यूटीशियन को संबोधित कर आंखें तरेरीं, ‘अब जूड़ा नहीं बना, चुटिया बन गई तो कोई आफत नहीं आ जाएगी. गंवारों को समय का ध्यान ही नहीं है. यहां अभी मेहंदी रचाई जा रही है, अलता लग रहा है, वहां लोग आने लगे हैं.’

अपमान और क्षोभ के कारण इंदु के आंसू टपक पड़े थे. वह बुरी तरह कांपने लगी थी. मैं भाग कर दिवाकर को बुला लाई थी. भाई को शांत करते हुए वे बोले, ‘रघु, बाहर चलो. तुम्हारे यहां खड़े रहने से तो और देर हो जाएगी.’

Crime Story: ताबीज का रहस्य  

उत्तर प्रदेश का एक जिला है मैनपुरी. इसी जिले के गांव भहलोई में रहते थे सौरभ और मूर्ति देवी. दोनों जवानी की दहलीज पर कदम रख चुके थे. इस उम्र में युवकयुवतियों का एकदूसरे के प्रति आकर्षण बढ़ जाता है. ये दोनों भी एकदूसरे के आकर्षण में बंधते चले गए.

दोनों को एकदूसरे से कब प्यार हो गया, इस का उन्हें एहसास ही नहीं हुआ. बाद में उन की स्थिति ऐसी हो गई कि जब तक वह एकदूसरे को देख नहीं लेते थे, चैन नहीं मिलता था.

मूर्ति के पिता जीतपाल सिंह किसान थे. उन के 4 बच्चों में ऋषि, मूर्ति, सुषमा व सब से छोटा बेटा सोनू था. मूर्ति और सौरभ का प्यार परवान चढ़ रहा था. धीरेधीरे उन के प्यार के चर्चे गांव में होने लगे. यह खबर जब मूर्ति के पिता जीतपाल के कानों तक पहुंची तो वे बदनामी को ले कर वह परेशान रहने लगे.

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इस से बचने के लिए उन्होंने मूर्ति की शादी करने का फैसला कर लिया. वह उस के लिए लड़का ढूंढने लगे. कोशिश रंग लाई और उन्होंने 19 वर्षीय बेटी मूर्ति की शादी 30 अप्रैल, 2018 को फिरोजाबाद जिले के कस्बा शिकोहाबाद के गांव मोहिनीपुर के रहने वाले श्याम सिंह के बेटे अर्जुन सिंह के साथ कर दी. श्याम सिंह भी खेतीकिसानी करते थे.

प्रेमिका की शादी हो जाने के बाद सौरभ मायूस हो गया. अब मूर्ति के बिना उसे गांव में अच्छा नहीं लगता था. वह मूर्ति से मिलने के लिए बेचैन हो उठा. उस ने मूर्ति से मिलने की खातिर किसी तरह अर्जुन के भाई उदयवीर से दोस्ती कर ली.

अब सौरभ कभीकभी मूर्ति की ससुराल मोहिनीपुर आने लगा. ससुराल वालों के सामने वह मूर्ति से बातचीत भी कर लेता था. धीरेधीरे सौरभ का आनाजाना बढ़ गया. वह बेहिचक घर आता और मूर्ति से घंटों हंसीठिठोली करता.ससुराल वालों को यह पता नहीं था कि सौरभ और मूर्ति का पहले से कोई चक्कर है. लिहाजा उन्होंने उन के मिलने की बात को गंभीरता से नहीं लिया. लेकिन बाद में अर्जुन को सौरभ का बारबार उस के घर के चक्कर लगाना अच्छा नहीं लगा तो अर्जुन ने सौरभ को अपने घर आने से साफ मना कर दिया.

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सौरभ बेशरम था. वह नहीं माना और मना करने के बावजूद मूर्ति से मिलने पहुंच जाता. तब अर्जुन और उस के घर वाले उसे बेइज्जत कर के भगा देते थे. 7 सितंबर, 2019 को सौरभ फिर अर्जुन के घर पहुंच गया. घर वालों के विरोध पर गांव के लोगों ने उसे पकड़ लिया और उस की पिटाई कर दी. इस के बाद उसे गांव में दोबारा न आने की नसीहत देते हुए भगा दिया.

इस पूरे मामले की जानकारी अर्जुन ने अपनी सास मोहरश्री व बड़े साले ऋषि कुमार को दी. सूचना मिलने पर दोनों 9 सितंबर को मोहिनीपुर आ गए. ससुराल वालों ने शिकायत करते हुए सौरभ के घर आने और मूर्ति से बात करने पर विरोध जताया. मोहरश्री और उस के बेटे ने मूर्ति को समझाया कि वह सौरभ से बात न करा करे. मूर्ति को समझा कर वे दोनों रात को वहीं रुके.

मूर्ति ने मां और अपने भाई से वादा तो कर लिया था कि वह आइंदा सौरभ से बात नहीं करेगी लेकिन उस के मन में अलग ही खिचड़ी पक रही थी. वह सौरभ को हरगिज छोड़ना नहीं चाहती थी. और उसी रात वह ससुराल से रहस्यमय ढंग से गायब हो गई.

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10 सितंबर की सुबह जब घर वालों की अांखें खुलीं तो इस घटना का पता चला. घर वालों ने मूर्ति की तलाश भी की, लेकिन वह नहीं मिली.अर्जुन सिंह ने पुलिस कंट्रोल रूम में फोन कर अपनी पत्नी के भाग जाने की खबर दी. कुछ ही देर में शिकोहाबाद थाने की पुलिस गांव पहुंच गई. पुलिस ने इस संबंध में अर्जुन सिंह की तरफ से सौरभ के खिलाफ पत्नी मूर्ति को आभूषण व 50 हजार की नकदी सहित बहलाफुसला कर भगा ले जाने की रिपोर्ट दर्ज करा दी.

रिपोर्ट दर्ज होने के बाद भी पुलिस ने सौरभ और मूर्ति को ढूंढने में दिलचस्पी नहीं दिखाई बल्कि उस ने इस मामले को ठंडे बस्ते में डाल दिया. मूर्ति के घर वाले ही उसे तलाश करते रहे लेकिन दोनों का कोई सुराग नहीं मिला.

फिरोजाबाद जिले का एक थाना है सिरसागंज. इस थाने के गांव भदेसरा निवासी चौकीदार रमेशचंद्र ने 20 सितंबर, 2019 की सुबह थाने में आ कर सूचना दी कि गांव में बचान सिंह के खेत में खड़ी बाजरे की फसल के बीच एक अधजली लाश पड़ी है. जो देखने में महिला की लग रही है.

तत्कालीन थानाप्रभारी सुनील कुमार तोमर ने चौकीदार से विस्तार से पूछताछ की. चौकीदार ने बताया कि वह सुबह खेतों की तरफ गया था. वहां बचान सिंह के बाजरे के खेत से एक कुत्ता एक व्यक्ति की टांग का कुछ हिस्सा ले कर बाहर निकला. इस पर जिज्ञासावश वह खेत में कुछ अंदर की तरफ गया. उस ने वहां जो दृश्य देखा तो परेशान हो गया.

वहां एक महिला के सिर के टुकड़े, बाल, दांत व एक पैर गली हुई अवस्था में पड़ा थे. इस के साथ ही पसलियों की हड्डियां व कंकाल भी खेत में पड़ा था.

इस सूचना पर थानाप्रभारी पुलिस टीम के साथ भदेसरा गांव स्थित बाजरे के खेत में पहुंच गए. यह गांव थाने से लगभग 6 किलोमीटर दूर था.

पुलिस जब वहां पहुंची तो बाजरे के खेत के बीचोंबीच एक जली हुई लाश क्षतविक्षत कंकाल के रूप में पड़ी थी. कुछ अधजले कपड़े आदि भी पुलिस ने खेत से बरामद किए. थानाप्रभारी ने यह सूचना अपने उच्चाधिकारियों को भी दे दी. बिना किसी देरी के अवशेषों को एकत्र कर उन्हें मोर्चरी भेज कर अज्ञात के खिलाफ भादंवि की धारा 302, 201 के अंतर्गत मुकदमा दर्ज कर लिया.

पुलिस को घटनास्थल के निरीक्षण से पता चला कि लाश को कई दिन पूर्व रात के समय खेत के बीचोंबीच ले जा कर जलाया गया था. इस से यह बात साफ हो गई थी कि हत्यारों ने महिला की हत्या के बाद उस के शव को यहां चोरीछिपे ला कर किसी ज्वलनशील पदार्थ से जलाया था.

लाश किस महिला की है, इस का पता लगाया जाना बहुत जरूरी था, लिहाजा पुलिस ने लाश के अस्थिपंजरों के फोटो सोशल मीडिया व अन्य माध्यमों से खूब प्रसारित किए. लेकिन पुलिस को इस में कोई सफलता नहीं मिली.

मृतका की पहचान न हो पाने तथा हत्यारे का भी पता न चलने के कारण इस मामले के विवेचक ने सुरागरसी जारी रखते हुए 8 मार्च, 2020 को मामले में फाइनल रिपोर्ट लगा दी.इस बीच 14 महीने बीत गए. सितंबर, 2020 में एसएसपी (फिरोजाबाद) सचिंद्र पटेल थाना शिकोहाबाद में निरीक्षण कर रहे थे.

इस दौरान उन की जानकारी में एक मामला आया.मामला यह था कि मोहिनीपुर के रहने वाले अर्जुन सिंह ने शिकोहाबाद में 10 सितंबर, 2019 को एक रिपोर्ट दर्ज कराई थी. इस में कहा गया था कि उस की पत्नी मूर्ति देवी सौरभ नाम के अपने प्रेमी के साथ घर से कुछ नकदी व आभूषण ले कर भाग गई है.

मामले के विवेचक ने इस संबंध में कोई काररवाई नहीं की थी. एसएसपी ने इस केस को खोलने के लिए एएसपी (ग्रामीण) राजेश कुमार के नेतृत्व में एक टीम बनाई. उन्होंने इस काम में एसओजी व सर्विलांस सैल को भी लगा दिया.

जिम्मेदारी मिलने के तुरंत बाद एसओजी प्रभारी कुलदीप सिंह चौहान की टीम ने अपना काम शुरू कर दिया.टीम ने जिले के विभिन्न थानों से इस संबंध में लापता महिलाओं की जानकारी जुटानी शुरू कर दी. जांच में पता चला कि अर्जुन सिंह द्वारा शिकोहाबाद थाने में रिपोर्ट दर्ज कराने के 10 दिन बाद ही सिरसागंज थाना पुलिस ने बाजरे के खेत से एक महिला का कंकाल बरामद किया था.

इस जानकारी के बाद पुलिस टीम थाना सिरसागंज पहुंची. टीम ने महिला के कंकाल के साथ मिले अन्य सामान को देखा. इस सामान में कंकाल से प्राप्त ताबीज, एक रुपए का छेद वाला सिक्का व अन्य सामान भी था. पुलिस ने लापता मूर्ति देवी के पिता जीतपाल सिंह निवासी मैनपुरी को बुला कर वह सारा सामान दिखाया.

जीतपाल ने ताबीज व सिक्के को देखते ही बता दिया कि यह सारा सामान उन की बेटी मूर्ति का है. वह अपने गले में काले धागे में बंधा यह ताबीज व एक रुपए का सिक्का पहनती थी. इसी के आधार पर उन्होंने बताया कि खेत में मिला कंकाल उन की बेटी मूर्ति का ही था.

मृतका की शिनाख्त होने पर एसओजी प्रभारी कुलदीप सिंह चौहान व थाना सिरसागंज के थानाप्रभारी गिरीशचंद्र गौतम को लगा कि दाल में जरूर कुछ काला है. उन्होंने जीतपाल से मूर्ति का मोबाइल नंबर ले लिया.

टीम ने इस मामले में संदिग्ध लग रहे लोगों से पूछताछ शुरू कर दी. चूंकि अर्जुन ने सौरभ के खिलाफ पत्नी को भगा कर ले जाने की रिपोर्ट दर्ज कराई थी, इसलिए पुलिस भहलोई गांव स्थित उस के घर गई. सौरभ घर से गायब मिला. पुलिस ने उस के घर वालों के फोन नंबर ले लिए. इस के बाद पुलिस ने पूछताछ के लिए मृतका के ससुराल वालों को कई बार बुलाया.

कई बार बुलाए जाने के बाद भी मृतका के ससुरालीजन यहां तक कि मृतका का पति अर्जुन भी पुलिस के सामने नहीं आया. इस से पुलिस का संदेह और मजबूत हो गया. उधर सर्विलांस टीम ने बताया कि पता चला कि जिस जगह पर कीर्ति के अस्थिपंजर मिले थे, वहां पर घटना वाले दिन कीर्ति के पति अर्जुन और जेठ उदयवीर के फोन की लोकेशन वहीं की थी.

मुखबिर की सूचना पर पुलिस ने 30 नवंबर,2020 को सुबह करीब सवा 8 बजे सोथरा चौराहा फ्लाईओवर से मृतका मूर्ति देवी के पति अर्जुन व जेठ उदयवीर को हिरासत में ले लिया. पुलिस दोनों को थाना सिरसागंज ले आई. दोनों से गहनता से पूछताछ की गई.

दोनों भाइयों ने स्वीकार कर लिया कि मूर्ति की हत्या उन्होंने ही की थी. इस के बाद उन्होंने उस की लाश ठिकाने लगा दी थी.केस का खुलासा होने के बाद एसएसपी सचिंद्र पटेल ने पुलिस लाइन सभागार में प्रैस कौन्फ्रैंस कर के हत्यारोपियों की गिरफ्तारी की जानकारी दी. इस हत्याकांड के पीछे प्रेम संबंधों की चौंकाने वाली कहानी सामने आई.

मूर्ति देवी की शादी के कुछ महीने बाद ही उस के पति अर्जुन को पता चल गया था कि शादी से पहले से ही मूर्ति के संबंध गांव के ही सौरभ से हैं. उस ने यह बात अपने बड़े भाई उदयवीर को बताई. दूसरे युवक से प्यार करने की बात ने अर्जुन के कलेजे को चीर कर रख दिया था. यह बात उसे अंदर ही अंदर खाए जा रही थी. उस के सीने में नफरत की आग सुलग रही थी. उस ने भाई उदयवीर के साथ मिल कर मूर्ति देवी को रास्ते से हटाने और बाद में दूसरी शादी करने का निर्णय लिया.

अर्जुन के बड़े भाई उदयवीर की दोस्ती मूर्ति के प्रेमी सौरभ से थी. योजना के अनुसार उन्होंने 9 सितंबर, 2019 को मूर्ति को सौरभ के साथ जाने दिया. सौरभ प्रेमिका मूर्ति को इटावा ले गया. सुबह होने पर अर्जुन ने यह बात फैला दी कि मूर्ति घर से भाग गई है. चूंकि उस के संबंध सौरभ से थे, इसलिए अर्जुन ने सौरभ के खिलाफ रिपोर्ट भी दर्ज करा दी.

कुछ दिनों बाद अर्जुन व उदयवीर ने षडयंत्र के तहत मूर्ति को सौरभ के पास से ले आए और रात में उस के गले में गमछा (अंगौछा) डाल कर उस का गला दबा दिया. जिस से उस की मौत हो गई.

हत्या करने के बाद शव को ठिकाने लगाने के लिए अर्जुन और उस के भाई उदयवीर ने पड़ोसी से मांगी गई मोटरसाइकिल पर लाश को बीच में इस प्रकार बैठाया मानो वह किसी बीमार को ले जा रहे हों.

हत्या के बाद शव को करीब 6 किलोमीटर दूर गांव भदेसरा में बाजरे के एक खेत में ले जा कर पैट्रोल छिड़क कर जला दिया था.पूछताछ के दौरान आरोपी उदयवीर ने बताया था कि मूर्ति की हत्या में सौरभ भी शामिल था.लेकिन पुलिस का मानना है कि वह ऐसा केवल सौरभ को फंसाने के लिए कह रहा है. हत्या दोनों भाइयों ने ही प्रेमी सौरभ से चलते प्रेम संबंधों को ले कर की थी.

मृतका के पिता जीतपाल के अनुसार उन की बेटी मूर्ति गर्भवती थी. हत्यारों ने उस पर जरा भी रहम नहीं किया और उस की गर्भवती बेटी को मार डाला.

घटना को अंजाम देने के बाद दोनों भाई वापस अपने गांव आ गए थे. पुलिस ने दोनों हत्यारोपियों की निशानदेही पर हत्या में प्रयुक्त गमछा तथा मोटरसाइकिल बरामद कर ली.

पूछताछ के बाद गिरफ्तार दोनों हत्यारोपियों को न्यायालय में पेश कर जेल भेज दिया गया.

घटना का परदाफाश करने वाली टीम में थानाप्रभारी गिरीशचंद्र गौतम, एसओजी प्रभारी कुलदीप सिंह चौहान, एसआई रनवीर सिंह के अलावा कांस्टेबल (एसओजी) राहुल यादव, रविंद्र कुमार, भगत सिंह, नदीम खान व थाना सिरसागंज के कांस्टेबल विजय कुमार व कुलदीप सिंह आशीष शुक्ला व मुकेश कुमार शामिल थे.

एसएसपी सचिंद्र पटेल ने इस घटना का खुलासा करने वाली टीम को 25 हजार रुपए का ईनाम दिया.

हत्यारे निश्चिंत थे कि वह अपनी योजना में पूरी तरह सफल हो गए हैं लेकिन 14 महीने बाद पुलिस ने ताबीज के जरिए इस सनसनीखेज हत्याकांड का खुलासा कर आरोपियों को जेल की सलाखों के पीछे पहुंचा दिया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

इनफार्मेशन टेक्नोलॉजी: किसानों को बनाए मजबूत

लेखक-डा. सुनील कुमार, डा. पूनम कश्यप, डा. आशीष कुमार प्रूष्टि व डा. पीयूष पूनिया भा.कृ.अनु.प.-

भारतीय कृषि प्रणाली अनुसंधान संस्थान, मेरठ, उत्तर प्रदेश किसानों को बनाए मजबूत इंफौमेंशन टैक्नोलौजी कृषि कारोबार से जुड़ी प्रमुख समस्याओं व जानकारियां, जिन पर ध्यान देना जरूरी है, जिस में किसानों को कृषि तकनीक के संबंध में जानकारी, नए अनुसंधान व आविष्कार, उन्नत फसल, गुणवत्ता वाले बीज, पोषक तत्त्व प्रबंधन और उत्पादन, कृषि विपणन, उर्वरकों का बेहतर उपयोग, फसल कीट प्रबंधन के उपाय, फसल चक्र से मिट्टी की उर्वरता को बढ़ावा, दुग्ध व्यवसाय, मधुमक्खीपालन, सूअरपालन, मुरगीपालन, मछलीपालन आदि की जानकारी व स्थानीय और क्षेत्रीय स्तर पर मौसम अनुमान आदि जानकारियां शामिल हैं.

इन सभी समस्याओं को ध्यान में रख कर आज किसान के लिए नई तकनीकी व नई सोच के साथ स्मार्टफोन में किसानी एप्स तैयार किए गए हैं, जो आसानी से उपलब्ध हो जाते हैं. इस से हमें कई तरह के फायदे होते हैं. आज ग्रामीण व शहरी तंत्र को जोड़ने में और उस के विकास में आईटी ने मुख्य भूमिका निभाई है. सूचना प्रौद्योगिकी से आज हम किसी भी तरह की सूचना को दूसरों तक पहुंचाने में कामयाब हुए हैं. किसानों के लिए ईकियोस्क, ईचौपाल, कृषि विज्ञान केंद्र व कृषि विभाग से समयसमय पर जानकारियां मिलती रहती हैं.

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किसानी एप्स इंटरनैट पर बहुत से एप्स उपलब्ध हैं, जो किसानों की खेती से जुड़ी जानकारी देते हैं. सभी एप्स एंड्रौयड मोबाइल में काम करते हैं. इफको किसान एप यह एप खेती से जुड़ी जानकारी देने में मदद करता है. इस एप्लिकेशन से किसान को अनुकूलित खेती करने में सुविधा मिलती है और इस से नवीनतम मंडी कीमतों, मौसम पूर्वानुमान, कृषि सलाहकार, सर्वोत्तम सु झाव, पशुपालन, बागबानी, फसल चक्र, फसल रोग प्रबंधन, जल प्रबंधन आदि की जरूरी जानकारी दी जाती है और यह एप 11 भारतीय भाषाओं में उपलब्ध है.

किसानों की मदद के लिए इफको ग्रीन सिम कार्ड भी इफको द्वारा मुहैया करवाती है, जिस में खेती से जुड़ी हर जानकारी मौजूद है. कृषि उन्नति एप एक सकारात्मक सोच, जो खेती को बढ़ावा देने के लिए सामाजिक मीडिया के माध्यम से खेती संबधी जानकारी और किसानों की समस्या को दूर करने के लिए बनाया गया है. आज ईमीडिया की मदद से हम फेसबुक, ह्वाट्सएप, इंटरनैट वैबसाइट की मदद से किसानों को जानकारियां दे सकते हैं.

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हमें खेती से संबंधित जानकारी, बागबानी, फूलों की खेती, डेरी प्रबंधन, फसल रोगों, उत्तम खेती प्रथाओं, जैविक खेती, मृदा स्वास्थ्य, मौसम की सूचना, औषधीय पौधों की खेती, खाद्य प्रसंस्करण की जानकारी ले सकते हैं. खेतीबारी ‘जैविक खेती’ एप यह एक ऐसा एप है, जिस में आप को खेती के सु झाव, खेती के पूर्वानुमान, कृषि उत्पादों की खरीदब्रिकी की जानकारी आसानी से मिल जाती है. इस एप का चयन 4 अलगअलग भाषाओं (हिंदी, अंगरेजी, मराठी और गुजराती) में कर सकते हैं. इस एप का प्रमुख उद्देश्य ‘जैविक खेती’ को बढ़ावा और समर्थन देना है.

किसान मित्र एप यह एप केवल किसानों के हितों को ध्यान में रख कर के बनाया गया है. इस में किसान की खरीद शक्ति बढ़ाने पर जोर दिया गया है. इस में किसानों की बुनियादी जरूरतों का ध्यान रखा गया है, इसीलिए इस एप में वर्तमान दरें, बीज, उर्वरक, कृषि उपकरणों, पशुधन की जानकारी के अलावा कृषि विशेषज्ञ द्वारा जानकारी और अन्य खेती के आवश्यक विषयों पर जानकारियां मुहैया कराई गई हैं. किसान सुविधा एप सरकार ने ‘किसान सुविधा’ के नाम से मोबाइल एप लौंच किया है. इस एप के जरीए किसान खेती, मौसम की जानकारी हासिल करने के साथसाथ कृषि वैज्ञानिकों से जुड़ कर उन से सलाह भी ले सकते हैं. किस फसल का दौर चल रहा है और किस फसल के लिए कौन सी दवा उपयुक्त रहेगी, इस से संबंधित जानकारी इस एप पर मुहैया हैं.

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