उत्तर प्रदेश के बाद दूसरे सब से बड़े भाजपाशासित राज्य मध्य प्रदेश में भी धर्मांतरण और अंतर्धर्मीय शादियों पर सरकारी लगाम लगाने के लिए ‘मध्य प्रदेश धार्मिक स्वतंत्रता अध्यादेश 2020’ वजूद में आ गया है. इस अध्यादेश के मसौदे में कोई नई खास बात नहीं है बल्कि यह पुराने कई कानूनों का खिचड़ी संस्करण है जिस का इकलौता मकसद यह जताना है कि भाजपा अपने हिंदू राष्ट्र के उस एजेंडे पर कायम है जिस का बड़ा रास्ता दलितों के साथसाथ मुसलमानों और ईसाईयों को डराने से हो कर जाता है. आमतौर पर कानूनों का मकसद अपराधियों को सजा दिलाना और न्याय व्यवस्था में आम लोगों का भरोसा कायम रखना होता है. जबकि, यह नया कानून इन पैमानों पर खरा उतरने के बजाय दहशत फैलाता हुआ लगता है.
धर्मांतरण और अंतर्धर्मीय शादियां हमेशा से ही हिंदू धर्म के ठेकेदारों की बड़ी परेशानी और सिरदर्दी रहीं है. लेकिन इन ठेकेदारों ने यह सोचने की जहमत कभी नहीं उठाई कि क्यों खासतौर से निचले तबके के हिंदू यानी दलित ही इसलाम, बौद्ध या ईसाई धर्म कुबूल कर लेते हैं और खासतौर से ही हिंदू लड़कियां शादी के लिए धर्म बदलने को आसानी से राजी हो जाती हैं.
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इस सवाल का जवाब या समस्या का हल नएनए कानूनों से नहीं मिलना क्योंकि जो हिंदू, वजह कुछ भी हो, धर्म परिवर्तित करते हैं वे, दरअसल, वर्णव्यवस्था, जातिगत भेदभाव, शोषण और प्रताड़ना से इतने आजिज आ चुके होते हैं कि उन्हें समाज में रहने में घुटन महसूस होने लगती है. दलित दूल्हे को घोड़ी पर बरात निकालने पर मारा गया, दलित को मंदिर में प्रवेश करने पर कूटा गया, दलित को कुएं से पानी नहीं भरने दिया गया, नाई ने दलित के बाल काटने से इनकार किया और सिंह सरनेम लिखने पर दलितों की हुई धुनाई जैसी कई वेरायटियों वाली खबरें रोजमर्रा की बाते हैं.
उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ के मुख्यमंत्री बनने के कुछ दिनों बाद ही मुरादाबाद के कोई 50 दलितों ने इसलाम अपना लिया था जिस से भगवा खेमे में सनाका खिंच गया था. 13 मई, 2017 को इन दलितों ने साफतौर पर कहा था कि योगी सरकार में दलितों पर अत्याचार हो रहे हैं और चूंकि भाजपा कार्यकर्ता ही कर रहे हैं, इसलिए उन का हिंदू धर्म से मोहभंग हो गया है. इन दलितों ने अपने घरों में रखी हिंदू देवीदेवताओं की मूर्तियों को नदी में बहा दिया था.
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ऐसी छिटपुट घटनाएं अकसर होती रहती हैं. लेकिन पिछले साल फरवरी के दूसरे हफ्ते में तमिलनाडु के कोयम्बटूर में एकसाथ 400 दलितों ने इसलाम ग्रहण कर लिया था. तब तमिल पुलीगल काची नाम के एक दलित संगठन के बैनर तले सभी दलितों ने हलफनामे के जरिए स्वेच्छा और बिना किसी दबाब या प्रलोभन के इसलाम कुबूल करने की बात कही थी. दलित से मुसलमान बने पंगुडी ने बानू नाम लेने के बाद मार्के की बात यह कही थी कि हिंदू धर्म से आजादी, जातिगत भेदभाव और छुआछूत को दूर करने का इकलौता रास्ता यही है. बाद में किस्तों में मुसलमान बने दलितों की तादाद 3 हजार तक पहुंच गई थी.
नए कानून, नई दहशत
ऐसे मामलों से हिंदुत्व के ठेकेदार कोई सबक लेते सुधरते नहीं, फिर उन से यह उम्मीद करना तो बेकार की बात है कि वे कभी इस तथ्य पर गौर करेंगे कि उन के धर्म में दूसरे धर्म के लोग क्यों शामिल नहीं होते. यहीं से उन की तिलमिलाहट शुरू होती है और अपनी कमजोरियों व खामियों को ढकने के लिए वे हिंदू राष्ट्र का राग आलापना शुरू करते गिनाने लगते हैं कि पहले अंग्रेजों और फिर मुगलों ने सोने की चिड़िया वाले उन के देश को लूटा, मंदिर तोड़े, औरतों की आबरू लूटी और हमारे महान धर्म व संस्कृति को तहसनहस कर डाला.
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गुजरे कल की आधेअधूरे सच वाली इन बातों का बदला लेने को अब भगवा गैंग अचानक हरकत में आ गया है. नया लव जिहाद कानून इस बात का सुबूत है, जिस का मकसद अल्पसंख्यकों में महज दहशत फैलाना और सवर्ण हिंदुओं को इस खुशफहमी में रखना है कि सब्र रखो, देश अब सनातन धर्म के मार्ग पर चल पड़ा है और जल्द ही सबकुछ हमारा होगा.
धर्मांतरण और अंतर्धर्मीय शादियों का हल लव जिहाद कानून के जरिए ढूंढने की कोशिश एक फुजूल बात है क्योंकि, दरअसल, समस्या कुछ और है जिस से लोगों का ध्यान भटकाया जा रहा है. बात मध्य प्रदेश की करें, तो धार्मिक स्वंतत्रता अध्यादेश खामियों से भरा पड़ा है. इस की धारा 2(1)(क) कहती है कि, “प्रलोभन से अभिप्रेत है और इस में सम्मिलित है, नकद अथवा वस्तु के रूप में कोई दान या परितोषण या भौतिक लाभ या रोजगार किसी धार्मिक निकाय द्वारा संचालित विद्यालय में शिक्षा बेहतर जीवनशैली दैवीय प्रसाद या उस का वचन या अन्यथा के रूप में किसी प्रलोभन देने का कोई कार्य.”
मुरादाबाद और कोयम्बटूर के मामलों में दलितों ने साफसाफ धर्मांतरण की वजह बताई थी कि वे क्यों मुसलमान बन रहे हैं. इस पूरे अध्यादेश में कहीं इस बात का जिक्र नहीं है कि अगर कोई प्रताड़ना और शोषण के चलते धर्म परिवर्तन करता है तो उस धर्म के मुखियाओं को भी कोई सजा दी जाएगी. यहां सरकार यह भी स्पष्ट नहीं कर पाई है कि बेहतर जीवनशैली से उस का अभिप्राय क्या है और किसी धार्मिक संस्था द्वारा संचालित स्कूलों में शिक्षा से उसे क्या एतराज है और ये बातें किस लिहाज से लालच के दायरे में आती हैं.
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जल्दबाजी और हड़बड़ाहट में बनाए गए इस कानून के नियम ही नहीं बनाए गए हैं जिस से यह समझ आए कि इस पर अमल कैसे होगा. लेकिन मौटेतौर पर 2 बातें लोगों को समझ आईं कि अब धर्मांतरण से पहले संबंधितों को 2 महीने पहले डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट को सूचना देनी होगी और अगर कोई शादी के मकसद से धर्म बदल रहा है तो यह अपराध होगा, यानी, अब धर्मांतरण काफी कठिन बना दिया गया है.
सब से ज्यादा दिलचस्प बात जो लोग चाहते थे वह यह है कि धर्म छिपा कर शादी करने वालों को सजा दी जाए तो उस के बारे में धारा 5 में कहा गया है कि,
“परंतु यह कि जो कोई भी उस के द्वारा माने जाने वाले धर्म से भिन्न किसी धर्म के व्यक्ति से विवाह करना चाहता है और अपना धर्म इस प्रकार छिपाता है कि अन्य व्यक्ति, जिस से वह विवाह करना चाहता है, विश्वास करता है कि उस का धर्म वास्तव में वही है जो कि उस का है, को कारावास 3 वर्ष से कम का न होगा, यह 10 वर्ष तक का भी हो सकता है तथा जुर्माने का भी दायी होगा जो 50 हजार रुपए से कम का नहीं होगा, दंडित किया जाएगा.”
बोलचाल की भाषा में इस का मतलब यह है कि कोई असलम नाम का युवक अमर नाम रख कर जनेऊ धारण कर, भगवा कपड़े पहन और टीका लगा कर आशा नाम की युवती को धोखा दे कर उस से शादी करेगा तो वह अपराधी होगा. यह लव जिहाद कानून का पूरा सार है और इसीलिए यह कानून गढ़ा गया है. सोशल मीडिया पर बीते 3 सालों से इस तरह की पोस्टें प्रवाहित हो रहीं थीं या जानबूझ कर की जा रहीं थी, एक ही बात है कि मुसलिम लड़के धार्मिक पहचान बदल कर हिंदू लड़कियों को अपने प्रेम जाल में फंसाते हैं और फिर उन से शादी कर उन्हें मुसलमान बनने पर मजबूर करते हैं और वे नहीं मानतीं तो उन्हें शारीरिक रूप से प्रताड़ित करते हैं.
यह नई बात नहीं है. यह पहले भी अपराध था और किसी असलम को फूल माला नहीं पहनाई जा रही थी बल्कि कानून के तहत दोषी पाए जाने पर सजा ही दी जा रही थी. इस में कोई शक नहीं कि ऐसा हो रहा था लेकिन यह इतना छिटपुट था कि उस के लिए अलग से कानून बनाना बेतुकी और गैरजरूरी बात है और उस पर होहल्ला मचाने का मकसद मुसलमानों को डराना भर है जिस से वे हिंदू लड़की से प्यार और शादी की बात ही न सोचें.
आजादी पर पहरा
इस कानून के जरिए शिवराज सरकार ने मुसलिम युवकों से ज्यादा हिंदू युवतियों की आजादी पर अंकुश लगाने की कोशिश की है क्योंकि वे जागरूक होते जातपांत, रूढ़ियों और धर्म की बंदिशें तोड़ने लगी हैं. नए दौर की शिक्षित युवतियां आर्थिक और सामाजिक रूप से भी आत्मनिर्भर हो चली हैं, इसलिए खुद की जिंदगी से जुड़े अहम फैसलों के लिए, धर्म तो दूर की बात है, वे अपने अभिभावकों की भी मुहताज नहीं रह गईं हैं. भोपाल के नामी नूतन कालेज में पढ़ी एक छात्रा आरती रैकवार (आग्रह पर बदला हुआ नाम) की मानें तो कोई 5 साल पहले उस की एक ब्राम्हण सहेली ने किसी की परवा न करते हुए एक मुसलिम लड़के से शादी कर ली थी.
थोड़ा बवंडर सहेली के परिवारजनों ने मचाया पर चूंकि दोनों वयस्क और नौकरीपेशा थे, इसलिए कुछ खास हल्ला नहीं मचा. अब वह युवती एक बच्चे की मां है और पति के साथ खुशीखुशी रह रही है. इस युवती को खुशी इस बात की भी है कि उस ने अपनी मरजी से पसंद का जीवनसाथी चुना. लेकिन कुछ रुक कर आरती कहती है कि, “अब इस कानून के लागू होने के बाद युवाओं में दहशत है क्योंकि कई हिंदू लड़कियां मुसलमान लड़कों को और कई मुसलमान युवतियां हिंदू लड़कों को चाहती हैं.”
बकौल आरती, दहशत इस बात की कि हिंदू संगठन के लोगों ने हुड़दंग मचा रखा है. यह एक तरह से दोनों धर्मों के युवाओं को खुली धौंस है कि वे आपस में प्यार और शादी का ख़याल दिल से निकाल दें. ये हुड़दंगी आएदिन पार्कों, मौल्स और रैस्टोरैंट्स वगैरह में रेकी किया करते हैं कि कहीं कोई प्यार तो नहीं कर रहा. एकाध मामले में कोई हिंदू लड़की मुसलमान लड़के के साथ पकड़ी, यानी, साथ बैठी पाई गई, तो इन लोगों ने शहर सिर पर उठा लिया. मामला बीती 9 सितंबर का है जब संस्कृति बचाओ मंच के कार्यकर्ताओं ने जौहरी होटल पर धावा बोलते कुछ लड़केलड़कियों को पकड़ा था और आरोप यह लगाया था कि यहां लव जिहाद हो रहा था. अब तो न केवल भोपाल, बल्कि देशभर में यह हुड़दंग रोज की बात हो चली है. आरती दावे से कहती है कि “ये लोग इस वेलैंटाइन डे पर खूब हुड़दंग मचाएंगे.”
अभिभावक भी हैं इन के साथ
असल में हिंदू मांबाप भी अपनी लड़कियों को ले कर इस चिंता में रहते हैं कि उन की लाड़ली कहीं अपनी मरजी से शादी न कर ले. इसलिए कोई भी हिंदूवादी संगठनों के हुड़दंग का विरोध नहीं करता. आरती आगे कहती है, ““अब तो कानून भी इन के साथ है. अब तक लव जिहाद के महज 2 मामले कथित रूप से सामने आए हैं, उन में अहम रोल इन्हीं लोगों का है. आज अगर मेरी सहेली शादी करती तो यह मुमकिन ही नहीं हो पाता क्योंकि पहले उसे डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट को खबर देनी पड़ती और आर्य समाज मंदिर, जहां से उस ने शादी की थी, के कर्ताधर्ता भी शादी कराने से इनकार कर देते.”
यानी, अब गोपनीयता की गारंटी खत्म हो गई है. कौन, कहां, किस से शादी करने वाला है, यह बात प्रशासन की तरफ से भी लीक हो सकती है और शादी कराने वाले धर्मस्थलों से भी, क्योंकि इन्हें भी नया कानून बाध्य करता है कि वे धर्मांतरण और अंतर्धर्मीय शादी की पूर्व सूचना दें नहीं तो सजा भुगतने को तैयार रहें. अधिनियम की धारा 10(2) में निर्देश है कि, “कोई धर्माचार्य और / या कोई व्यक्ति जो धर्म संपरिवर्तन का आयोजन करना चाहता है उसे जिले के जिला मजिस्ट्रेट को, जहां ऐसा धर्म संपरिवर्तन किया जाना प्रस्तावित है, ऐसे प्रारूप में जैसे कि विहित किया जाए, 60 दिवस पूर्व सूचना देगा.”
अब डर यह भी है कि इस नए कानून को हथियार बनाते धड़ल्ले से मांबाप अपनी मरजी से शादी करने वाली बेटी के अरमानों का गला घोंटेंगे क्योंकि अधिकांश सवर्ण हिंदू तो यह भी नहीं चाहते कि उन की बेटी, मुसलमान और ईसाई तो दूर की बात है, अपने से छोटी जाति वाले लड़के से भी शादी करे. अब होगा यह कि लड़की अगर छोटी जाति वाले लड़के के साथ भागी तो वे उसे अपहरण बताते लड़के को मुसलमान बताएंगे. पकड़े जाने के बाद लड़के की जो पूजा हवालात में होगी, उस से उसे ज्ञान प्राप्त हो जाएगा कि यह इश्कविश्क बेकार की बात है. शादी बराबरी वालों यानी अपनी ही जाति में करना ठीक रहता है. खुद को बजाय असलम के अमर साबित करने में उसे पसीने छूट जाने हैं.
प्यार और आजादी पर पहरा बिठाने वाले इस कानून ने मुख्यमंत्री शिवराज सिंह की इमेज कट्टरवादी हिंदू नेता की बना दी है जिस से वे युवाओं की नजर में भी विलेन बन गए हैं. लेकिन उन की मजबूरी ऊपर से आए आदेशनिर्देश हैं कि जैसे भी हो और जितना भी हो, ऊंची जाति वाले हिंदुओं को खुश करने वाले फैसले लो. सो, वे ले रहे हैं, वरना उन्हें चलता कर देने में कोई लिहाज भगवा खेमा नहीं करेगा. इसी जल्दबाजी में शिवराज सिंह यह भूल गए कि नया अधिनियम शुद्धि को भी प्रतिबंधित करता हुआ है.
आर्य समाज बनाम आरएसएस
जिन युवाओं के अभिभावक मरजी से उन्हें शादी नहीं करने देते, आर्य समाज मंदिर उन के लिए बेहद मुफीद और सस्ते साबित होते हैं (और अब तक सुरक्षित भी थे) क्योंकि वहां कम खर्च में मान्यताप्राप्त शादी हो जाती है. भोपाल के 10 नंबर मार्केट स्थित आर्य समाज मंदिर की कर्ताधर्ता अर्चना सोनी बताती हैं कि, “अकेले भोपाल के 3 आर्य समाज मंदिरों में औसतन प्रतिदिन 5 शादियां होती हैं जिन में से 3 में युवा घर, जाति या समाज वालों से विद्रोह कर शादी कर रहे होते हैं.”
एक वरिष्ठ समाजसेवी धर्मेंद्र कौशल मानते हैं कि लव जिहाद कानून से आर्य समाज पद्धति से होने वाली शादियों की संख्या कम होगी जिस के कई दुष्परिणाम भी सामने आएंगे क्योंकि आर्य समाज के नाम पर फर्जीवाड़ा भी होने लगा है. अकेले भोपाल में ही कई आर्यसमाजियों ने शादी कराने की दुकानें खोल ली हैं. अंतर्धर्मीय शादियां कराने वाले सहूलियत के चलते इन के पास जाने को मजबूर होंगे क्योंकि ये लोग डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट को अंतर्धर्मीय शादियों की सूचना न देने के पैसे भी जोड़ों से वसूलेंगे. बकौल धर्मेन्द्र, कई मुसलमान युवक हिंदू युवती से शादी करने के लिए खुद हिंदू बन जाते हैं जिन की शुद्धि आर्य समाज मंदिर में की जाती है. नए कानून में यह भी कहा गया है कि, “पैतृक धर्म में वापसी धर्मांतरण नहीं माना जाएगा, लेकिन, इस में शुद्धिकरण की बात नहीं की गई है.”
शुद्धिकरण के इतिहास के बारे में नई पीढ़ी तो यह बिलकुल भी नहीं जानती कि इसे आर्य समाज के संस्थापक स्वामी दयानंद सरस्वती ने शुरू किया था और स्वामी श्रद्धानंद ने इसे एक मुहिम की शक्ल दी थी. 20वीं सदी से शुरू हुए शुद्धि आंदोलन का असल मकसद उन दलित आदिवासियों को हिंदू धर्म में वापस लाना था जो मुरादाबाद और कोयम्बटूर के दलितों की तरह प्रताड़ना, छुआछूत के चलते ईसाई या मुसलमान हो गए थे. यह अभियान बड़े पैमाने पर चला था जिस का विरोध ईसाईयों और मुसलमानों के अलावा ऊंची जाति वाले हिंदुओं ने भी किया था क्योंकि उन की नजर में दक्षिणा न चढ़ा पाने वाले शूद्र पशुतुल्य हुआ करते थे.
आर्य समाज हिंदू धर्म में व्याप्त उन कुरीतियों की भी मुखालफत करता है जिन में बलि, दानदक्षिणा, मूर्तिपूजा, बालविवाह, तीर्थयात्रा, पूर्वजों की पूजा, जातिव्यवस्था आदि शामिल हैं जिन से सदियों से ब्राह्मणों की रोजीरोटी चल रही है. पंडेपुजारियों को आर्य समाजी सिद्धांत, जो मूलतया सुधारवादी थे, कभी फूटी आंख नहीं सुहाए.
अब यह टकराव नई शक्ल में देखने में आ रहा है जिसे आरएसएस बनाम आर्य समाज कहे जाने में किसी लिहाज की जरूरत नहीं. लव जिहाद कानून में शुद्धि की बात इसीलिए जानबूझ कर उड़ाई गई है क्योंकि आरएसएस वाले हिंदू शुद्धि में यकीन ही नहीं करते लेकिन हिंदुओं की घटती आबादी का रोना हर कभी रोते इसे राष्ट्रवाद के लिए खतरा जरूर बताते रहते हैं. दिक्कत तो यह है कि यह वर्ग वे सब बुराइयां नहीं छोड़ना चाहता जिन का आर्य समाज विरोध करता है.
यह श्रेष्ठि वर्ग चाहता है कि शादियां भी सनातनी रीतिरिवाजों से हों, इसलिए आर्य समाजी शादियों को लव जिहाद कानून के जरिए हतोत्साहित किया जा रहा है. लेकिन धर्मेंद्र कौशल इसे आर्य समाज और आरएसएस का टकराव नहीं मानते, क्यों?, इस सवाल का जवाब भोपाल के ही एक आर्यसमाजी आर सी श्रीवास्तव यह कहते देते हैं कि, “असल में इन दिनों हर कोई भगवा रंग में रंगा जा रहा है. तूती उन लोगों की बोल रही है जिन्होंने हिंदू धर्म का नाश करने में कोई कसर न पहले छोड़ी थी, न आज छोड़ रहे हैं. ये लोग नहीं चाहते कि जातिगत रूप से हिंदू एक हों.” बकौल आर सी श्रीवास्तव, हालत तो यह है कि संघियों ने आर्य समाज के उन कई स्थलों पर कब्जा कर रखा है जिन्हें शाखा चलाने को मित्रवत दे दिया गया था.
यह मतभेदों की शुरुआत है क्योंकि आरएसएस और भाजपा जिस एजेंडे पर चल रहे हैं वह हिंदुओं में फूट डाल कर राज करते रहना है. अब यह कब तक चलेगा और इस का हश्र क्या होगा, यह कह पाना मुश्किल है लेकिन अमेरिका में जिस तरह रिपब्लिकन पार्टी और डोनाल्ड ट्रंप खारिज कर दिए गए, उसे देख महसूस तो यही होता है कि लोकतंत्र में कट्टरवाद की उम्र बहुत ज्यादा नहीं होती. लव जिहाद जैसे कानून एक अनूठे तरीके से कट्टरता को बढ़ावा दे रहे हैं जबकि जरूरत इस बात की है कि अंतर्धर्मीय और अंतरजातीय शादियों को ज्यादा से ज्यादा प्रोत्साहन मिले.
हो इस का उलटा रहा है जो युवाओं से उन की प्राइवेसी, खुशी और हक छीन रहा है.