Download App

किसानों को लुभा नहीं सकी ‘आंकड़ों की खेती’

हमारे देश में बड़े कोरोना संकट के दौरान जिन करोड़ों किसानों ने रातदिन मेहनत कर के अन्न भंडारों को भर दिया था, उन को मोदी सरकार के इस बार के आम बजट ने बेहद निराश किया. संसद में भी इसे ले कर काफी चर्चा हुई और किसानों में भी.

बजट सत्र का पहला चरण 29 जनवरी से 13 फरवरी के बीच चला. लेकिन अब संसद की कृषि संबंधी स्थायी समिति  22 और 23 फरवरी के दौरान कृषि एवं किसान कल्याण, कृषि अनुसंधान एवं शिक्षा विभाग, मत्स्यपालन, डेरी एवं पशुपालन और खाद्य प्रसंस्करण के शीर्ष अधिकारियों को बजट की अनुदान मांगों पर तलब कर रही है. इस में भी बजट को ले कर काफी गंभीर चर्चा होगी और इस की रिपोर्ट बजट सत्र के दूसरे चरण में संसद में रखी जाएगी.

ये भी पढ़ें-शामली में किया काले चावल का उत्पादन

तीन कृषि कानूनों के खिलाफ पंजाब के किसानों ने जो आंदोलन शुरू किया था, उस का दायरा पश्चिमी उत्तर प्रदेश और राजस्थान होते हुए देश के तमाम हिस्सों में फैल चुका है. सरकारी स्तर पर आंदोलन को खत्म करने की सारी कोशिशें नाकाम रहीं.

हालांकि आम बजट किसान असंतोष को दूर करने का बेहतरीन मौका था, लेकिन सरकार इस में भी सफल नहीं हो सकी. देश के सभी प्रमुख किसान संगठनों ने इस बजट को बेहद निराशाजनक माना है.

संसद के बजट सत्र के पहले चरण में किसान असंतोष के साथ खेती की अनदेखी और निराशाजनक खास चर्चा में रहा.

ये भी पढ़ें-अजोला की खेती और दुधारू जानवरों का चारा

राष्ट्रपति के अभिभाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव और बजट पर सामान्य चर्चा में कई सांसदों ने कृषि और ग्रामीण विकास मद में धन आवंटन को असंतोषजनक माना. चंद योजनाओं को छोड़ दें, तो कृषि और संबद्ध क्षेत्र का आवंटन निराशाजनक रहा. सब्सिडी में

कमी के साथ सरकार ने कृषि ऋण का लक्ष्य 16.5 लाख करोड़ रुपए तक पहुंचा दिया है.

घाटे की खेती कर रहे किसानों को इस से आंशिक राहत भले ही मिले, लेकिन कर्ज के दलदल से बाहर आने का कोई रास्ता उन को नहीं दिखता है. इस नाते कृषि और ग्रामीण भारत के कायाकल्प का दावा फिलहाल इस बजट से दूरदूर तक पूरा होता नहीं दिख रहा है.

साल 2014 के बाद मोदी सरकार ने कृषि मंत्रालय का नाम बदल कर कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय करने के साथ साल 2022 तक किसानों की आय दोगुनी करने के लिए लंबे लक्ष्य तय किए. पीएम किसान, किसान मानधन, प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई परियोजना, प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना, जैविक खेती, मृदा स्वास्थ्य कार्ड से ले कर जैविक खेती जैसी कई पहल की.

ये भी पढ़ें-आम के प्रमुख कीट और उनका प्रबंधन

दूसरी हरित क्रांति और प्रोटीन क्रांति के दावे के साथ वंचित क्षेत्रों के विकास और उचित भंडारण व्यवस्था से ले कर एमएसपी के बाबत स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशें लागू करने का भी दावा किया गया.

बीज से बाजार तक कई अहम घोषणाएं हुईं और किसानों की आय बढ़ाने के लिए बड़े निवेश और 10,000 नए किसान उत्पादक संगठन यानी एफपीओ की स्थापना का लक्ष्य रखा गया. लेकिन ये सारे काम आधेअधूरे मन से हुए. खुद कृषि संबंधी स्थायी समिति ने अहम योजनाओं में आवंटन और प्रगति को असंतोषजनक माना है.

आंकड़ों के लिहाज से देखें, तो साल 2009 से 2014 तक यूपीए ने कृषि बजट में 1,21,082 करोड़ रुपए खर्च किए, जबकि मोदी सरकार के पांच सालों में 2014-19 के दौरान 2,11,694 करोड़ रुपए हो गए. लेकिन कृषि संकट के दौर में जब और मदद की दरकार थी, तो कृषि और ग्रामीण विकास बजट कम हो गया.

कृषि और संबद्ध गतिविधियों के लिए बजट आवंटन 2021-22 में 1,48,301 करोड़ रुपए कर दिया गया, जबकि इस मद में

2020-21 में 1,54,775 करोड़ रुपए का प्रावधान था.

इसे संशोधित अनुमान में घटा कर 1,45,355 करोड़ रुपए कर दिया गया. ग्रामीण विकास मद में भी अहम योजनाओं में कटौती कर दी गई. सब से बड़ी योजना मनरेगा का संशोधित बजट अनुमान 2020-21 में 1,11,500 करोड़ रुपए था, जिसे 2021-22 के बजट में घटा कर 73,000 करोड़ रुपए कर दिया गया.

राष्ट्रीय सामाजिक सहायता कार्यक्रम, जिस का संशोधित अनुमान वर्ष 2020-21 में 42,617 करोड़ रुपए था, उसे 2021-22 में घटा कर 9,200 करोड़ रुपए कर दिया गया.

मनरेगा योजना कोरोना संकट में वरदान बन कर उभरी थी, लेकिन सरकार ने जो आवंटन किया है, उस से लगता है कि गांव में रोजगार की अब दिक्कत नहीं रही.

खेती के उपयोग में आने वाली वस्तुओं की कीमतें लगातार बढ़ रही हैं. श्रम लागत, बीज, उर्वरक, कीटनाशकों, रसायनों से ले कर पेट्रोल और डीजल तक महंगे हुए हैं. ऐसे में खेती का बजट कम होने से इन की चुनौती और बढ़ी है.

किसानों की रासायनिक खाद मद में सब्सिडी घटा दी गई. इस मद में 2021-22 में 79,530 करोड़ रुपए का प्रावधान किया गया है, जबकि 2020-21 का संशोधित अनुमान 1,33,947 करोड़ रुपए रहा. पेट्रोलियम पदार्थों पर दी जाने वाली सब्सिडी का भी कम होने का असर कृषि क्षेत्र पर दिखेगा.

खुद खाद्य सब्सिडी मद में 2021-22 में 2,42,836 करोड़ रुपए का प्रावधान किया गया, जबकि इस मद में 2020-21 में 4,22,618 करोड़ रुपए का संशोधित अनुमान था. इस का असर गरीबों पर पड़ना तय है.

इस समय कृषि क्षेत्र में केवल प्रधानमंत्री किसान योजना ही ऐसी है, जिस को कहा जा सकता है कि यह एक मददगार योजना है. लेकिन सीमित मायनों में यह चुनावी लाभ के लिए आरंभ की गई थी. इस मद में 2019-20 में 48,714 करोड़ रुपए का बजट आवंटन था, जो जिस का संशोधित अनुमान 2020-21 में 65,000 करोड़ रहा. इतना ही आवंटन  2021-22 में किया गया है और अगर पश्चिम बंगाल भी इस योजना में शामिल हो जाता है, तो पैसा कम पड़ेगा.

राज्यसभा में कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने माना कि आरंभ में योजना में 14.5 करोड़ किसानों का

आकलन किया गया था, लेकिन तमाम प्रयासों के बावजूद 10 करोड़, 75 हजार किसान ही रजिस्टर्ड हो सके हैं. ऐसे में 65 हजार करोड़ रुपए में काम चलेगा.

इस बजट में प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना का आवंटन बढ़ा कर 16,000 करोड़ रुपए किया गया. यह योजना अभी किसानों को रि?ा नहीं पा रही है, वहीं किसानों को मिलने वाले छोटी अवधि के कर्जों की ब्याज सब्सिडी के लिए 19,468 करोड़ रुपए का प्रावधान है.

कृषि शिक्षा और अनुसंधान के लिए बजट 2021-22 में मामूली बढ़ा कर 8,514 करोड़ रुपए पर लाया गया है, वहीं खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र को बढ़ावा देने के लिए आरंभ की गई प्रधानमंत्री किसान संपदा योजना का बजट 700 करोड़ रुपए तक सीमित है. इस पर 2019-20 में 819 करोड़ रुपए का वास्तविक खर्चा हुआ था.

इस बजट में 2018-19 में घोषित 22,000 ग्रामीण हाटों के विकास की कोई दिशा नहीं है, जो छोटे किसानों के लिए सब से मददगार बन सकती थी. 29 जनवरी, 2021 को राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने अपने अभिभाषण में 10 करोड़ छोटे और सीमांत किसानों पर ही अपने भाषण का फोकस रखा था.

सरकार की मंशा है कि आजादी के 75वें साल में किसानों की आमदनी दोगुनी हो जाए. लेकिन आमदनी बढ़ाने के लिए नीति निर्माताओं को जिन रास्तों पर संसाधन देना था, वह नहीं दिया गया है.  प्रधानमंत्री की एक बहुप्रचारित योजना 10 हजार किसान उत्पादक संगठनों या एफपीओ के गठन की रही है. इस से छोटे किसानों के जीवन को बदलने के लिए काफी उम्मीद जताई गई थी. लेकिन इस मद में इस साल 700 करोड़ रुपए का प्रावधान रखा गया है. 2020-21 में 500 करोड़ रुपए का प्रावधान हुआ था, जिसे घटा कर 250 करोड़ रुपए कर दिया गया.

हकीकत यह है कि उत्पादकता बढ़ाने और खेती की लागत घटाने के साथ कई पक्षों पर अभी बहुत काम करने की जरूरत है. किसानों ने रिकौर्ड अन्न उत्पादन कर पुराने कीर्तिमानों को तोड़ा है. लेकिन अगर हरियाणा, पंजाब और पश्चिमी उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों के किसान सड़क पर हैं, तो इस हकीकत को सम?ाना होगा कि खेती किस चुनौती से जू?ा रही है. खुद भाजपा ने साल 2019 में अपने संकल्पपत्र में जो वायदा किया था, वह इस बजट में नजर नहीं आता.

राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय द्वारा जारी सकल घरेलू उत्पाद के प्रथम अग्रिम अनुमान के मुताबिक, कोरोना संकट के बावजूद कृषि और संबद्ध क्षेत्र का जीवीए में हिस्सा 19.9 फीसदी तक पहुंच गया है. 2020-21 में इस क्षेत्र में वृद्धि का अनुमान 3.4 फीसदी है, वहीं 2011-12 के आधार मूल्य पर 2014-15 में यह 0.2 फीसदी, 2015-16 में 0.6 फीसदी, 2016-17 में 6.3 फीसदी, 2017-18 में  5 फीसदी, 2018-19 में 2.7 फीसदी रही थी.

इस बात को दरकिनार नहीं किया जा सकता है कि कृषि, उद्योग और सेवाएं अर्थव्यवस्था के सब से अहम क्षेत्र हैं और आपस में जुड़े हैं. वे एकदूसरे को प्रभावित करते हैं. इस नाते केवल आंकड़ों की बाजीगरी से कृषि क्षेत्र की चुनौतियों से पार पाना आसान नहीं दिखता है.

संसद की कृषि संबंधी स्थायी समिति की हाल ही में एक रिपोर्ट में कई अहम मसलों को उठाया गया है. समिति ने माना है कि बजट में कटौती की गई और प्रधानमंत्री किसान सम्मान योजना में अपेक्षित किसान जोड़े नहीं जा सके.

पूर्वोत्तर भारत में पंचायती और सरकारी भूमि पर खेती करने वाले और बंटाई पर खेती करने वालों को इस के दायरे में नहीं लाया जा सका, वहीं पूर्वोत्तर जैविक खेती मिशन के दायरे में 71,492 हेक्टेयर भूमि लाई जा सकी, जबकि लक्ष्य एक लाख हेक्टेयर का था.

प्रधानमंत्री किसान मानधन योजना के तहत वृद्ध किसानों को 3 हजार रुपए तक पेंशन योजना के दायरे में कुल 20.35 लाख किसान शामिल होने को समिति ने निराशाजनक माना.

अपने अपने जज्बात : भाग 3

‘मैडम, मैं आप से कुछ कहना चाहता हूं, मगर न तो शब्द साथ दे रहे हैं, न जबान.’

‘65 साल के व्यक्ति को अपनी बात कहने में झिझक हो रही है,’ मैं हंस पड़ी.

ट्रेन आ गई, सामान रख कर मैं खिड़की से टिकी.

‘आप मुझ से शादी करेंगी?’

यह सुन कर क्षणभर को मैं अवाक् रह गई पर उन के मजाकिया स्वभाव से चिरपरिचित होने के कारण बेतहाशा हंस पड़ी. ट्रेन चल पड़ी और मुझे हंसता देख खलील साहब के चेहरे का रंग उड़ने लगा. ट्रेन ने प्लेटफौर्म छोड़ दिया मगर खलील साहब देर तक खड़े हाथ हिलाते रहे. खलील साहब के प्रपोजल को मैं ने मजाक में लिया.

आगरा से लौट कर मैं व्यस्त हो गई और खलील साहब के प्रपोजल को लगभग भूल ही गई. इस बीच, बेटे की नौकरी लग गई और बेटी ग्रेजुएशन करने लगी.

आज खलील साहब के टैलीफोन ने ठहरे हुए पानी में पत्थर फेंका. बीते वक्त की सब परतें खुल कर सामने आ गईं. उन की खनकती आवाज फिर मेरे कानों के रास्ते जेहन को खुरचने लगी.

‘‘ये तो बहुत लंबा वक्त हो जाएगा.’’

‘‘क्यों?’’

‘‘दरअसल, आप ने कहा था कि मैं लिखनेपढ़ने में दिल लगाऊं. मैं ने मैथ्स का एक पेपर तैयार कर के अमेरिका भेजा था. वह सलैक्ट हो गया है. मुझे अमेरिका बुलाया गया है कौन्फ्रैंस में पेपर पढ़ने के लिए. मैं ने अपने साथ आप का नाम भी दे दिया है वीजा के लिए.’’

‘‘लेकिन मैं आप के साथ कैसे जा सकती हूं और आप ने अपने साथ मेरा नाम क्यों दिया?’’ मैं बौखलाई.

‘‘बाकायदा शादी कर के, लीगल तरीके से,’’ उन की आवाज में वही बर्फानी ठंडक थी.

मगर मेरे जेहन में अलाव दहकने लगे. उम्र के आखिरी पड़ाव में खलील साहब को शादी की जरूरत क्यों पड़ रही है? क्या जिस्मानी जरूरत के लिए? या किसी महिला के साथ दुखसुख बांटने के लिए? या बच्चों के तल्ख रवैये से खुद को अलग कर सहारा तलाशने के लिए? या तनहाई की सुलगती भट्ठी की आंच से खुद को बचाने के लिए? किसलिए शादी करना चाहते हैं? हजारों सवाल एकदूसरे में गुत्थमगुत्था होने लगे.

‘‘माफ कीजिएगा खलील साहब, अभी मेरी जिम्मेदारियां पूरी नहीं हुईं.’’

‘‘मैं यही तो चाहता हूं कि आप की तमाम जिम्मेदारियां, तमाम फर्ज हम दोनों साथ मिल कर निभाएं.’’

‘‘लेकिन खलील साहब, जिंदगी के 25 साल तनहा रह कर सारी मुसीबतें झेली हैं. इस उम्र में शादी का फैसला मुझे समाज में रहने लायक न छोड़ेगा.’’

‘‘आप जैसी बोल्ड लेडी समाज और बच्चों से डरती हैं. जिम्मेदारी की आड़ में अपनी जरूरतों, अपनी ख्वाहिशों का हर पल गला घोंटती हैं. क्यों कतरा रही हैं आप अपनेआप से?’’ खलील साहब की आवाज में चुनौती की तीखी चुभन थी, ‘‘मेरा फैसला गलत नहीं है, मैडम, आप ऐसा कह कर मेरे जज्बातों का मजाक उड़ा रही हैं,’’ उन की आवाज का खुरदरापन मुझे छीलने लगा.

‘‘खलील साहब, अगर आप इजाजत दें तो मैं किसी जरूरतमंद खातून की तलाश करूं जो हर लिहाज से आप के माकूल हो?’’

‘‘दूसरी खातून क्यों? आप क्यों नहीं?’’ मेरी बीवी की मौत से पहले और मौत के बाद आप ने मुझे जितना समझा उतना एक गैर औरत समझ पाएगी भला?’’

‘‘लेकिन आप मुझे नहीं समझ पाए, खलील साहब. मैं जानती हूं आप किसी से भी निकाह कर लें आप कभी भी उसे अपनी पहली बीवी का मकाम नहीं दे पाएंगे. उस की खासीयत में आप अपनी पहली बीवी की खूबियां ढूंढ़ेंगे. नहीं मिलने पर उस की खूबियां भी आप को कमियां लगेंगी. जरूरत की मजबूरी में किसी के साथ दिन गुजारना और सहज रूप से बगर्ज हो कर किसी के साथ जिंदगी बिताने में बड़ा फर्क होता है. और जिंदगी के उतारचढ़ाव, हालात के थपेड़ों ने मुझ में इतना ठहराव, हिम्मत और हौसला भर दिया है कि अब मुझे किसी सहारे की जरूरत नहीं, बल्कि मैं अपने चांदी होते बालों का तजरबा बांट कर टूटे हुए लोगों को संबल दे कर सुकून हासिल करना  चाहती हूं. मैं ने अपनी जरूरतों को खुद पर हावी नहीं होने दिया, मैं जिंदगी को अकेले ही खुशगवार बनाने के लिए सांस के आखिरी लमहे तक कोशिशमंद रहूंगी.’’

‘‘आप की यह सोच ही तो मेरे दिलोदिमाग के अंधेरे को मिटा कर मुझे रोशनी देगी. जिंदगी के कुछ बचे लमहों को किसी मकसद के लिए जीने की राह दिखाएगी. मैं अब अपने लिए नहीं आप के और आप के बच्चों के लिए जीना चाहता हूं, क्या अब भी आप का जवाब नहीं में होगा?’’

‘‘यकीनन, न में होगा, खलील साहब, मैं आप के खयालात की कद्र करती हूं, आप के जज्बातों का दिल से एहतराम करती हूं मगर दोस्त की हैसियत से. दुनिया के तमाम रिश्तों से अफजल दोस्ती का निस्वार्थ रिश्ता हमारी सांसों को खुशनुमा जिंदगी की महक से भर देगा और हमें टूटे, बिखरे, भटके लोगों को जिंदगी के करीब लाने की कोशिश करने का हौसला देगा.’’

दूसरी तरफ से खलील साहब की हिचकियों की मद्धम आवाज सीने में उतरती चली गई और मैं ने मोबाइल बंद कर के बोतलभर पानी गटगट कलेजे में उतार लिया.

क्या मर्द इतना निरीह, इतना कमजोर हो जाता है. पैदा होने से ले कर मरने तक मां, बहन, बीवी, बेटी के सहारे अपने दर्दोगम भुलाना चाहता है. क्यों नहीं जी सकता अपनी पूरी संपूर्णता के सहारे, अकेले.

6 महीने के बाद शिबा के पापा का फोन आया था, उन के शब्द थे कि अब्बू की दिनचर्चा ही बदल गई है. दिन के वक्त चैरिटी स्कूल में पढ़ाते हैं, शाम को मरीजों की खैरियत पूछने अस्पताल जाते हैं और दोपहर को एक वृद्धाश्रम की बिल्ंिडग बनवाने की कार्यवाही पूरी करने में गुजारते हैं.

अपने अपने जज्बात : भाग 2

महीनों बाद खलील साहब ने धीरेधीरे मरहूम बीवी की खूबसूरत यादों की किताब का एकएक सफा खोलना शुरू किया. गुजरे हसीन लमहों की यादें, उन की आंखों में समंदर उतार लातीं, कतराकतरा दाढ़ी भरे गालों से फिसल कर सफेद झक कुरते का दामन भिगोने लगते. शिबा की अम्मी कौफी का प्याला थमाते हुए याचनाभरी निगाहों से मुझे देखतीं, ‘आंटी, आप प्लीज रोज आया कीजिए. अब्बू अम्मी की जुदाई का गम बरदाश्त नहीं कर पाए तो…’

अब खलील साहब पोती को छोड़ने के लिए स्कूल आने लगे थे. दोपहर को बाजार भी हो आते और कभीकभी किचन के काम में हाथ बंटाने लगे थे बहू का. शिबा के अब्बू रोज शाम अपने अब्बू को टहलने के लिए साथ ले जाया करते.

उस दिन स्कूल बंद होने से शिबा की अम्मी का फोन आया, ‘मैडम, स्कूल छूटते ही घर आइएगा, प्लीज.’

‘मगर क्यों?’ मैं ने विस्मय से पूछा.

‘आज सुबह से अब्बू बिस्तर पर पड़ेपड़े रो रहे हैं.’

‘क्यों रो रहे हैं?’

‘आज पूरे 3 महीने हो गए अम्मी की मृत्यु को.’

‘ओह,’ आज का दिन खलील साहब के लिए काफी गमगीन साबित हो रहा होगा.

घर जा कर मैं ने धीरे से आवाज लगाई, ‘खलील साहब,’ मेरी आवाज सुन कर थोड़ा सा कसमसाए, फिर मेरा खयाल करते हुए उठ कर बैठने की कोशिश करने लगे. मैं ने उन्हें थाम कर फिर लिटा दिया और उन के पास बैठ गई. बिस्तर की सिलवटें खलील साहब की बेचैनी की दास्तान बयान कर रही थीं. सफेद झक तकिए पर आंसुओं के निशान वफादारी की गजल लिख गए थे. मुझे देखते ही बेसाख्ता रो पड़े खलील साहब. मैं ने धीरे से उन के पैरों पर हथेली रख कर कहा, ‘खलील साहब, आप मर्द हो कर बीवी की याद में इतना रो रहे हैं. मुझे देखिए, मैं औरत हो कर भी अपनी पलकें भिगोने की सोच भी नहीं सकी.’

‘तो क्या आप के शौहर…?’

‘जी, 5 साल हो गए.’

‘लेकिन आप ने पहले कभी बताया नहीं.’

‘जी, मैं आप के मुहब्बतभरे सुनहरे पलों को अपना गमगीन किस्सा सुना कर बरबाद नहीं करना चाहती थी. शौहर ने 2 बच्चों की जिम्मेदारी मुझ पर छोड़ी है. उस को पूरा करने की जद्दोजहद में मैं अपने अकेले होने के दर्द को आंखों के रास्ते भी न बहा सकी. कितना मुश्किल होता है खलील साहब, खुद पर काबू रख कर बच्चों के आंसू पोंछना. घर की हर चीज में उन का साया नजर आता है, उन का वजूद हर वक्त मेरे आसपास रहता है. कैसे खुद को बहलाती हूं, यह मेरा दिल ही जानता है. अगर मैं भी आप की तरह रोती रहती तो क्या नौकरी, घर, और बच्चों की जिम्मेदारी उठा पाती? कितनी मुश्किल से उन के बगैर जीने का हौसला बनाया है मैं ने, खलील साहब,’ शौहर की जुदाई का दर्द मेरी आंखों में समा गया.

खलील साहब बिस्तर पर ही टिक कर बैठ गए और मुझे अपलक हैरतभरी निगाहों से देखते रहे.

धीरेधीरे हिम्मत कर के उठे, मेरे सिर पर हाथ रखा और बाथरूम की तरफ बढ़ गए. बाथरूम में से निकले तो बाहर जाने के लिए तैयार थे. मैं ने दिल ही दिल में       राहत की सांस ली और अपने घर की तरफ जाने वाली सड़क की तरफ मुड़ गई.

दूसरे का दर्द कम करने की इंसान पूरी कोशिश करता है, हमदर्दीभरे शब्द दूसरों से नजदीकियां बढ़ा देते हैं मगर वह खुद अपने से दूर चला जाता है. पिछले कई महीनों से मैं बिलकुल भूल गई थी कि शौहर की असामयिक मौत, 2 बच्चों की पूरी जिम्मेदारी, दूसरी जरूरतों की लंबी फेहरिस्त मेरी छोटी सी तनख्वाह कैसे पूरी कर पाएगी. मेरे आत्मविश्वास का पहाड़ धीरेधीरे पिघल रहा था मेरी मजबूरियों की आंच में. कैसे सामना कर सकूंगी अकेली जीवन के इस भीषण झंझावात का. पके फोड़े पर कोई सूई चुभा दे, सारा मवाद बाहर आ जाए. ऐसा कोई शख्स नहीं था मेरे आसपास जिस के सामने बैठ कर अपने अंदर उठते तूफान का जिक्र कर के राहत महसूस करती. मेरे साथ थी तो बस बेबसी, घुटन, छटपटाहट और समाज की नजरों में अपनी खुद्दारी व अहं को सब से ऊपर रखने के लिए जबरदस्ती होंठों से चिपकाई लंबी चुप्पी.

खलील साहब की स्थिति मुझ से बेहतर है. कम से कम अपनी शरीकेहयात की जुदाई का दर्द वे रिश्तेदारों, दोस्तों के सामने बयान कर के अपनी घुटन और चुभन को कम तो कर लेते हैं. मैं कहां जाती? बस, तिलतिल कर यों ही रात के वीराने में चुपचाप जलना मेरी मजबूरी है.

खलील साहब अब सामान्य होने लगे थे. पैंशन के सिलसिले में उन्हें जबलपुर वापस जाना पड़ा. अकसर फोन पर बातें होती रहतीं. अब उन की आवाज में उमड़ते बादलों का कंपन नहीं था, बल्कि हवाओं की ठंडक सा ठहराव था. जान कर सुकून मिला कि अब उन्होंने लिखनापढ़ना, दोस्तों से मिलनाजुलना भी शुरू कर दिया है.

कुछ दिनों के बाद शिबा के अब्बू का ट्रांसफर आगरा हो गया. मैं अपनी जिम्मेदारियों में उलझी बीमार रहने लगी थी. चैकअप के लिए आगरा गई तो स्टेशन पर शिबा के अब्बू से मुलाकात हो गई. इच्छा जाहिर कर के वे मुझे अपने घर ले गए. शिबा मुझ से लिपट गई और जल्दीजल्दी अपनी प्रोग्रैस रिपोर्ट और नई बनाई गई ड्राईंग, नई खरीदी गई जींस टौप, दिखाने लगी. सर्दी की शामों में सूरज बहुत जल्दी क्षितिज में समा जाता है. मैं वापसी की तैयारी कर रही थी कि कौलबैल बज उठी, दरवाजा खुला तो एक बेलौस ठहाका सर्द हवा के झोंके के साथ कमरे में घुस आया. खलील साहब कोटपैंट और मफलर में लदेफंदे आंखों पर फोटोक्रोमिक फ्रेम का चश्मा लगाए सूटकेस लिए दरवाजे के बीचोंबीच खड़े थे.

‘ओ हो, खलील साहब, आप तो बहुत स्मार्ट लग रहे हैं,’ मेरे मुंह से एकाएक निकल गया.

यह सुन कर शिबा की मम्मी होंठों ही होंठों में मुसकराईं.

‘आप की तबीयत खराब है और आप ने खबर तक नहीं दी. यह तो दोस्ताना रिश्तों की तौहीन है,’ खलील साहब ने अधिकारपूर्वक कहा.

‘खलील साहब, यह दर्द, यह बीमारी, बस यही तो मेरी अपनी है. इसे भी बांट दूंगी तो मेरे पास क्या रह जाएगा जीने के लिए,’ मैं कहते हुए हंस पड़ी लेकिन खलील साहब गंभीर हो गए.

स्टेशन तक छोड़ने के लिए खलील साहब भी आए. स्वभावतया बच्चों की पढ़ाई और दूसरे मसलों पर बात करने लगे. ट्रेन आने का एनाउंसमैंट होते ही कुछ बेचैन नजर आने लगे.

 

संपादकीय

एक मामले में एक युवा दलित लडक़ी की हत्या कर दी गई क्योंकि उसने एक लडक़े को ओरल सैक्स में सहयोग नहीं दिया और एक और मामले में 48 साल की मां की गोली मार कर हत्या कर दी गई क्योंकि उस ने अपनी बेटी के छेडऩे वालों से बचाने की कोशिश की. दोनों मामलों में पुलिस ने रस्मी कारवाई तो की है पर कहीं भगवा गैंग नहीं दिखा कि ङ्क्षहदू औरतें खतरे में हैं, संस्कृति नष्ट हो रही है, अनाचार बढ़ रहा है, देशद्रोही गलीगली में घूम रहे हैं.

इस देश में जहां फंडा उलटा पडऩे पर लोगों की यातनाए आहत हो जाती हैं वहां अलीगढ़ के पास गांव की दलित लडक़ी की हत्या या पटना के पास जुग्गू……. की घटनाओं पर किसी की भावनाएं आहत नहीं हुईं. ये 2 मामले अकेले नहीं हैं. हर रोज सैंकड़ों मामले ऐसे होते हैं पर जहां भी अपराधी को कपड़ों से पहचाना जा सके कि वह मुसलमान है, तुरंत देश खतरे में आ जाता है, ङ्क्षहदू खतरे में हो जाता है.

ये भी पढ़ें- संपादकीय

हमारे देश में कानून की व्याख्या बदल डाली गई है. वृद्धों, औरतों, लड़कियों, आम आदमियों के प्रति जघन्य उपराध करने वाले अगर ङ्क्षहदू है तो यह सामान्य अपराध है जिस में अपराधी को जमानत भी मिल जाए तो कोई हर्ज नहीं. अगर अपराधी कहीं भगवा गैंग से जुड़ा है, चाहे रिश्ता दूर का हो तो भी, एफआईआर तक नहीं लिखी जाएगी. पर जैसे ही मामला विधर्मी को ले कर हो, ङ्क्षहदू धर्म की पोल खोलने वाला हो, मंदिर की इज्जत का सवाल हो, सत्तारूढ़ पार्टी के नेता की बात हो, तुरंत देशद्रोह का शब्द लोगों के मुंह और पुलिस की कलम में आ जाता है.

यहां औरतों को तो अब और पापयोनि माना जाने लगा है. वर्षों से ङ्क्षहदू औरतों की सामाजिक सुधार की कोई नीति नहीं बनी है. छेडख़ानी के प्रति केंद्र व राज्य सरकारें लगभग चुप हैं. ज्यादा से ज्यादा वे टीवी व सोशल मीडिया को दोष दे कर इतिश्री कर लेती हैं.

ये भी पढ़ें- गुजरात का वर्चस्व

वस्तुस्थिति यह है कि आज फिर देश की अधिकांश औरतें अब सूरज ढलने से पहले घर में घुस जाती हैं क्योंकि अब बाहर कोई औरत लडक़ी सुरक्षित नहीं है. घरघर चंदा मांगने जाने वाले और मकानों पर निशान लगाने वाले वृद्धों की सेवा के लिए कभी आगे नहीं आते. डंडे में कभी भगवा और कभी तिरंगा लगाने वाले डंडे का उपयोग औरतों के प्रति अत्याचार करने वालों के खिलाफ कभी नहीं करते. इसीलिए सारे देश में अपराधियों की हिम्मत बढ़ गई है और बलात्कारों के मामले बढऩे लगे हैं.

ये भी पढ़ें- धर्म की आड़ में

महाराष्टï्र में जलगांव में तो राज्य सरकार के चलाए जा रहे औरतों के एक शैल्टर होम में पुलिसकॢमयों के सामने वहां रह रही लड़कियों को नंगा हो कर नाचने की बात तक सामने आई. इस मामले में भी किसी ङ्क्षहदूवादी संगठन का खून नहीं खौला है. यह कैसा धर्म है, साफ है.

अगर आपको भी हो रही है लीवर की समस्या तो इन पांच चीजों को अपने डाइट में करें शामिल

अगर आप लीवर की समस्या से परेशानी है तो आप अपने खाने में इन चीजों को शामिल करें, जो आपके लीवर के लिए बहुत ज्यादा फायदेमंद हैं. आइए जानते हैं क्या करें खाने में शामिल . जिससे आपके लीवर में नहीं आएगा कोई दिक्कत.

ये भी पढ़ें- इस आसान विधि से बनाएं केसरिया चावल

  1. कलौजी का तेल– यह शरीर में एंटीऑक्सीडेंट की तरह काम करता है यह हमारे शरीर को हर तरह के रोगों से बचाता है. एंटीऑक्सीडेंट हमारे लीवर को स्ट्रांग बनाए रखते हैं.
  2. अदरक– अदरक हमारे लीवर को ऐसा तत्व देता है, जिससे हमारे शरीर की क्षमता बढ़ जाती है. ऐसे में लीवर को स्ट्रांग बनाए रखने के लिए खाने में अदरक का इस्तेमाल जरुर करना चाहिए.
  3. नींबू- नींबू आपके पेट और पाचन को तंदरुस्त रखने के लिए सबसे ज्यादा फायदेमंद होता है. यह हमारे शरीर के रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाता है. इसमें विटामिन सी भी भरपूर मात्रा में पाया जाता है.
  4. हल्दी– हल्दी का उपयोग भारतीय सब्जियों को सुंदर बनाने के लिए किया जाता है लेकिन इसमें एंटीबैक्टेरियल गुण होते हैं जो आपको एकदम स्वस्थ्य रखता है.
  5. चुकंदर-अगर आपके शरीर में हिमोग्लोबिनकी कमी हो गई हो तो ऐसे में चुकंदर से बेहतर कुछ और नहीं हो सकता है. चुकंदर आपको कई गुना ज्यादा ताकतवर बनाता है.

ये भी पढ़ें- ‘लू’ से बचाता है यह शरबत

Bigg Boss 15 का हिस्सा बनेगी अनीता हसनंदानी ,बेटे के साथ करेंगी एंट्री

ये है मोहब्बतें फेम एक्ट्रेस अनीता हसनंदानी  बीते महीने ही मां बनी हैं. इन दिनों अनीता हसनंदानी अपने पति रोहित रेड्डि के साथ अपने बेटे की देखभाल कर रही हैं. समय मिलत ही अनीते हसनंदानी अपने बेटे और पति के साथ सोशल मीडिया पर शेयर करती रहती है.

हाल ही में रोहित रेड्डि ने बिग बॉस 13 विनर सिद्धार्थ शुक्ला का वीडियो शेयर किया था. जिसे देखकर फैंस ने कमेंट कि बरसात कर डाली. इश वीडियो पर आए कमेंट को देखकर अनीता हसनंदानी काफी ज्यादा चौक गई थी.

ये भी पढ़ें- बिग बॉस फेम रश्मि देसाई ने क्यों बिहारी बॉय अक्षत आनंद को दी शुभकामनाएं

 

View this post on Instagram

 

A post shared by Rohit Reddy (@rohitreddygoa)

इसके साथ ही अनीता ने यह फैसला किया कि वह बिग बॉस 15 का हिस्सा बनेंगी. ताकी वह अपने फैंस के साथ अपनी लोकप्रियता हासिल कर सकें. खबर है कि अनीता अपने पति रोहित को टाटा बॉय बोलकर अपने बेटे आराव के साथ शो में हिस्सा लेंगी.

ये भी पढ़ें- प्रियंका और निक ने की ऑस्कार अवार्ड 2021 कि नॉमिनेशन्स, देखें लिस्ट

अनीता ने फैंस के कमेंट को देखते हुए लिखा कि इतने सारे कमेंट को देखकर मैं एक बात कहूंगी कि मैं इस शो का हिस्सा बन रही हूं अपने बेटे के साथ रोहित को बॉय. फैंस इस कमेंट को पढ़ने के बाद खुशी से झूम उठें.

वहीं फैंस अनीता के इस कमेंट को देखने के बाद काफी ज्यादा उतावले नजर आ रहे हैं. अगर वर्कफ्रंट कि बात करें तो इन दिनों अनीता हसनंदानी अपनी फैमली के साथ क्वालिटी टाइम बिता रही हैं. अनीता अपने बच्चें और पति के साथ खुश नजर आ रही हैं. अनीता के बेटे के आने के बाद से उनके जीवन में खुशियां डबल हो गई हैं. वहीं अनीता अपने लाइफ को खुलकर एंजॉय भी करती रहती हैं.

ये भी पढ़ें- Ayushmann Khurrana ने शादी के 20 वीं सालगिरह पर पत्नी ताहिरा को दी बधाई

हालांकि इस बात पर अभी तक कोई ऑफिशियल जानकारी नहीं आई है कि क्या सच में अनीता हसनंदानी इस शो का हिस्सा बन रही हैं.

नच बलिए 10 का हिस्सा बनेंगी राखी सावंत, पति के साथ आएंगी नजर

बिग बॉस 14 में अपने जलवे से धमाल मचा चुकी राखी सावंत जल्द ही अपने फैंस को एक और नया सरप्राइज देने वाली हैं. राखी सावंत अक्सर अपने पर्सनल लाइफ को लेकर चर्चा में बनी रहती हैं. बिग बॉस 14 के घर में भी राखी सावंत ने अपने पति रितेश के नाम के किस्से को खूब भुनाया था.

राखी सावंत ने इस बात का दावा किया था कि उनके पति रितेश इस शो में उनसे मिलने जरुर आएंगे. लेकिन राखी के लाख कोशिश करने के बावजूद भी ऐसा नहीं हो पाया था. वह शो में अपने पति को यादकर खूब आंसू भी बहाई थी.

ये भी पढ़ें-बिग बॉस फेम रश्मि देसाई ने क्यों बिहारी बॉय अक्षत आनंद को दी शुभकामनाएं

 

View this post on Instagram

 

A post shared by Rakhi Sawant (@rakhisawant2511)

अब कयास लगाए जा रहे हैं कि राखी सावंत नच बलिए 10 में जल्द नजर आने वाली हैं. एक इंटरव्यू में राखी सावंत ने इशारों इशारों में अपनी बात को कह दी है. राखी ने अपने इंटरव्यू में कहा कि हमें एक बड़ा रियलिटी शो मिला है. जिसमें मैं अपने पति रितेश के साथ हिस्सा लेने वाली हूं. आपको भी जानकर इस बात की खुशी होगी. मेकर्स रितेश से बात कर रहे हैं लेकिन वह बहुत बड़ा बिजनेसमैन है

ये भी पढ़ें- प्रियंका और निक ने की ऑस्कार अवार्ड 2021 कि नॉमिनेशन्स, देखें लिस्ट

. आगे पति कि तारीफ करते हुए राखी ने कहा कि वह एक शो के लिए अपना बड़ा सा बिजनेस नहीं छोड़ सकता है. खैर अगर मान जाता है तो सभी के लिए अच्छा होगा. राखी के इस जवाब को सुनकर फैंस एक बार फिर से उनके पति से मिलने के लिए एक्साइटेड हो गए हैं.

ये भी पढ़ें- Ayushmann Khurrana ने शादी के 20 वीं सालगिरह पर पत्नी ताहिरा को दी बधाई

 

View this post on Instagram

 

A post shared by Rakhi Sawant (@rakhisawant2511)

वहीं बिग बॉस 14 के घर में राखी सावंत ने अपने पति से जुड़े कई खुलासे किए थें, उन्होंने बताया था किराहुल वैद्या से इस बात का खुलासा किया था कि वह शादीशुदा हैं. लेकिन वह अपने पति कि इन गंदी हरकतों की वजह से परेशान रहती हैं. रितेश नाम के शख्स का नाम लेकर राखी सावंत हमेशा बिग बॉस के घर में जिक्र करती नजर आती थी.

संपादकीय

राजस्थान के बूंदी शहर में एक एक्टीविस्ट की पहल पर दायर किए गए केस में एक अदालत ने बूंदी के पूर्व डिस्ट्रेक्ट कलेक्टर व टाटा कंपनी के कुछ वरिष्ठ अधिकारियों को शहर की सडक़ें खराब बनाने के अपराध में 3 माह की जेल सुनाई है.

टाटा कंपनी को सडक़ बनाने का ठेका प्राप्त हुआ था पर उन्होंने सडक़ बनाने के दौरान बड़े गड्डे छोड़ दिए, बिजली और टेलिफोन लाइनें खराब कर दीं, खराब सीवर सिस्टम बनाया. मार्च 2018 में महावीर मीना ने मुकदमा दायर किया था पर जून 2018 के अदालत के आदेश के बावजूद टाटा प्रोजैक्ट लिमिटेड न काम समय पर पूरा किया न ढंग से किया.

ये भी पढ़ें- गुजरात का वर्चस्व

ठेकेदारों की आम जनता को परेशान करने की एक आदत बन गई है. वे खिलापिला कर, मेहनत मशक्कत कर के ठेका लेने के बाद जनता को भूल जाते हैं. भूल जाते हैं कि पैसा जनता के हित के लिए जनता की जेब से आ रहा है. उन्हें काम ऐसेतैसे कर के अपने बिल अफसरों से पास कराने की लगी रहती है और काम अच्छा है या खराब इस का कोई निर्णायक नहीं होता.

डरपोक जनता और डरपोक मीडिया इन मामलों में चुप रहते हैं. लोगों को मंदिर मसजिद के बारे में तो हर जरा सी बात पर उक्सा लिया जाता है पर खराब सरकारी काम पर 4 जने जमा नहीं होते. काम के दौरान अक्सर बेतरतीबी से सामान पड़ा रहता है. जो काम 2 दिन में पूरा कर के जनता को काम चलाऊ राहत दी जा सके वहां भी 2 महीने और 2 साल भी सामान के ढेर पड़े रह जाएं तो बड़ी बात नहीं.

ये भी पढ़ें- धर्म की आड़ में

नगर निकायों के और केंद्रीय निर्माण कंपनियों के अफसर आतेजाते रहते हैं, एमएलए, एसपी गुजरते हैं पर उन की निगाह ठेकेदारों से मिलने वाले पैसे पर होता है काम की क्वालिटी पर नहीं. काम के दौरान और बाद में सामान समेटने की तो आदत ही इस देश में नहीं है.

ये भी पढ़ें- संपादकीय

महावीर मील जो भी हों, उन्होंने स्थानीय अदालत में मामला ले जा कर दर्शाया है कि अफसरों को और ठेकेदारों को झंझोडऩे के लिए अदालतों का सहारा लिया जा सकता है. देश की अदालत जनता को राहत के लिए भी बनी हैं हालांकि सरकार आजकल उन्हें जनता को प्रताणित करने का आसान टूल समझ बैठी है. ज्यादातर कनिष्ठ न्यायिक अधिकारी अपने अधिकारों की महत्ता न समझते हुए पुलिस द्वारा लाए हर मुजरिम को बिना जाचेपरखे जेल भेजने में लगी रहती है. छोटी अदालते देश में लोकतंत्र के लिए बहुत कुछ कर सकती हैं. उन के आदेश को ऊंची अदालत में चुनौती दी जा सकती है पर इस दौरान गलती करने वाले को सबक मिल जाता है. आज एमएलए, एसपी तो कठपुतली बन गए हैं. वे तो अपने आका की शक्ल देखकर ही मुंह खोलते हैं.

एक घर उदास सा : भाग 1

बह का काम जल्दीजल्दी निबटा कर जब मैं सुपर मार्केट पहुंची तो  12 बज चुके थे. स्कूल से बच्चों के वापस आने से पहले घर भी पहुंचना था. जल्दीजल्दी सूची से सामान मिलाते हुए मैं टोकरी में डालती जा रही थी कि अचानक मीनाक्षी दिख गई.
मीनाक्षी कितनी मोटी हो गई थी
हां, मीनाक्षी ही तो थी. पर पहले से कितनी मोटी हो गई थी. फिर भरी दोपहरी में मेकअप से पुता उस का चेहरा और जोगिया रंग का रेशमी सूट आंखों को दूर से ही खटक रहा था.
उस ने भी देखा तो मेरी तरफ दौड़ पड़ी, ‘‘अरे मीरा, तुम यहां कैसे?’’ गले मिलते हुए उस ने प्रश्न किया.
‘‘शादी के बाद से तो यही शहर मेरा घर है,’’ मैं ने बताया, ‘‘पर तुम कब से यहां हो?’’
‘‘मैं भी 1 साल से यहीं डेरा डाले हूं. पर देखो, मिल आज रहे हैं,’’ वह हंस कर बोली.
कालेज के दिनों का साथ था हमारा. पढ़ाई खत्म होते ही शादी के बाद कालेज के संगीसाथी सब पीछे छूट गए थे. नया घर, नया परिवार, नया शहर सब अपने हो गए थे.
ये भी पढ़ें-कितना सहेगी आनंदिता: भाग 2
मीनाक्षी को लगभग 10 साल के बाद देखा
मीनाक्षी को लगभग 10 साल के बाद देख कर पिछले मस्तीभरे दिनों की याद ताजा हो गई. तब चाहे वह मेरी अभिन्न मित्र न रही हो पर उस से मिल कर ऐसा लगा मानो मैं अपनी अंतरंग सखी से मिल रही हूं.
चंद मिनट भूलीबिसरी यादों को ताजा कर, एकदूसरे से अपनेअपने पतों का आदानप्रदान कर के मैं अपनी खरीदारी की तरफ लपकी.
लेकिन अचानक पलट कर मीनाक्षी ने मेरा हाथ थाम लिया, ‘‘आज तुम मेरे साथ चलो,’’ हाथ में पकड़े थैले में उस ने जूस के 10-15 पैकेट रखे हुए थे.‘‘क्यों, आज घर में कोई पार्टी है क्या?’’ मैं ने जिज्ञासा प्रकट की.
महिला मंडली की मीटिंग है
‘‘नहीं, आज हमारी महिला मंडली की मीटिंग है, यहीं पास में ही वीणा के घर,’’ उस ने मेरी जिज्ञासा का समाधान करते हुए कहा.
‘‘ओहो, तो तुम समाजसेविका बन गई हो. सच, कुछ सार्थक कार्य तो करना ही चाहिए. मुझे तो बस घर के कामों से ही फुरसत नहीं मिलती. पता नहीं क्यों, हमेशा भागमभाग लगी रहती है. अभी भी तुम्हारे साथ चलना मुश्किल है, स्कूल से बच्चों के लौटने का वक्त हो गया है. अब घर ही भागूंगी,’’ मैं जल्दी से बोली.
‘‘क्यों, घर में ताला लगा कर आई हो क्या?’’
‘‘नहींनहीं, मेरे सासससुर हैं घर में. लेकिन बच्चों को खाना देना है, फिर मां और पिताजी के खाने का भी समय हो रहा है. सब्जी बना कर आई हूं. बस, गरमगरम रोटियां सेंकूंगी और सलाद काटूंगी,’’
मैं ने अपनी व्यस्तता बताई.
‘‘अब छोड़ो भी, आज रोटियां सेंकने और सलाद काटने का काम अपनी सास को ही करने दो. फिर एक दिन उन्होंने अपने पोतेपोती की खातिर कुछ काम कर भी दिया तो कौन सी बड़ी बात हो जाएगी. वे बच्चों से लाड़प्यार कर के उन्हें बिगाड़ने के लिए ही हैं क्या?’’ मीनाक्षी ने कटाक्ष किया.
‘‘नहीं बाबा, मैं न चल पाऊंगी. मांजी देर होने से चिंता करेंगी.’’
सास का परेशान होना भी स्वाभाविक ही है.
‘‘तो यों कहो न कि घर में सासूमां की तानाशाही है. तुम अपनी मरजी से कहीं आजा नहीं सकतीं,’’ उस ने बिना किसी लागलपेट के मेरी सास पर सीधा आक्षेप किया और मेरी स्वतंत्रता को चुनौती दी.
पता नहीं, सखी सरीख सास पर लगे आक्षेप के कारण या अपने स्वतंत्र अस्तित्व के आगे प्रश्नचिह्न को मिटाने के लिए मैं उस के साथ चलने को तैयार हो गई. वैसे उसे यह समझाना मुश्किल ही लग रहा था कि जिस तरह बेटी के देर से घर लौटने पर मां चिंतित हो जाती हैं, उसी भांति बहू के बिना बताए अधिक देर बाहर रुकने पर सास का परेशान होना भी स्वाभाविक ही है.
ये भी पढ़ें-दूरदर्शिता
सुपर मार्केट से निकल कर 10 मिनट लगे वीणा के घर तक पहुंचने में.  इस बीच मीनाक्षी का एकतरफा संवाद जारी रहा, ‘‘मैं तो भई, चौबीस घंटे घरपरिवार की हो कर, बंध कर बैठ नहीं सकती. हर नई जगह पर देरसवेर अपना एक गु्रप बन ही जाता है. फिर समाजसेवा तो एक शगल है. छोटीमोटी सामाजिक समस्याओं पर भाषण देने के बाद हम सभी गपबाजी करती हैं, साथ मिलबैठ कर खातीपीती हैं. फिर ताश की बाजी जम जाती है और इस तरह सूरज ढलने के बाद ही घर पहुंचते हैं.’’
पारिवारिक मूल्य? सोच कर मैं हैरान हुई.
मीनाक्षी ने बिना किसी झिझक के सचाई से अवगत कराते हुए आगे भाषण जारी रखा, ‘‘फिर घर में जितना ज्यादा काम करो, अपेक्षाएं उतनी अधिक होती जाती हैं. मैं तो मस्ती में दिन काटती हूं. घर में सासससुर तो हैं ही. खुद भी खाएंगे, मेरे बच्चों को भी खिला देंगे. फिर आजकल तो मेरी दिल्ली वाली ननद भी आई हुई हैं, सबकुछ मिलजुल कर निबटा ही लेंगे ठीकठाक.’’
बहुत ही अजीब लगा सुन कर पति की बहन कुछ समय के लिए भाई के पास आए और भाभी अपने में मगन रहे. कब और कैसे बदल गए हमारे पारिवारिक मूल्य? सोच कर मैं हैरान हुई.
ये भी पढ़ें-कितना सहेगी आनंदिता: भाग 3
मीनाक्षी ने अपनी सखियों से परिचय कराया, ‘‘यह रीना, यह शीला, यह मधु, यह सुमेधा, यह गायत्री, यह राधिका वह सब से मिलवाती जा रही थी. मैं अपने पारंपरिक विचारों को परे झटक बदले में हाथ जोड़ कर मुसकराती रही.
‘‘यह है कालेज के दिनों की मेरी सहेली, मीरा,’’ अंत में उस ने मेरा भी सब को परिचय दिया.
मेकअप में सजेसंवरे चेहरे, रंगीन परिधान, विदेशी इत्र की भीनीभीनी महक, ऐसे वातावरण में मैं अचानक अपनी सूती साड़ी के प्रति ज्यादा सचेत हो ठी.
अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें