क्या हमारा पूरा देश गुजरात की कालोनी बनता जा रहा है?  ऐसा कुछ दिखने लगा है. जिस तरह भारतीय जनता पार्टी, ज्यूडिशियरी, सरकारी मशीनरी, उद्योगों, धंधों, जमीनों की मिलकीयत पर गुजरातियों की पकड़ मजबूत हो रही है उस से लगता है कि देश में गुजरात सिर्फ राज्य भर नहीं है, वह कालोनी बनाने वाला केंद्र है जहां से तैयार कार्यकर्ता, जज, शिक्षक, प्रबंधक, उद्योग मालिक सारे देश को चलाएंगे.

भारत सरकार ने हाल में अपने यहां नई नियुक्तियां करनी शुरू की हैं  सीधे प्रतियोगिताओं के बिना. इन में गुजरातियों को नहीं भरा जाएगा, इस की क्या गारंटी है. देश में जज वे ज्यादा बन रहे हैं जिन का गुजरात से संबंध है. गुजराती कंपनी का महत्त्व तो पहले से ही था पर अब गुजराती पार्टी, गुजराती मीडिया, गुजराती फिल्ममेकर, गुजराती उद्योगपति, गुजरात के उत्पादन हा ओर  दिखने लगे हैं.

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इतने बड़े देश में एक राज्य आगे बढ़ जाए, इस में कोई आपत्ति की बात नहीं है पर जब यह सोचीसमझी चाल की तरह फैलने लगे और जन्म का स्थान व बोली-भाषा ही पूरी तरह इम्पोर्टेन्ट होने लगे तो थोड़ा डर लगने लगता है कि क्या कल को गुजराती न होना एक डिसक्वालिफिकेशन हो जाएगा.

गुजराती मृदुभाषी हैं, लड़ाकू नहीं हैं. वे व्यावहारिक हैं पर चतुर भी हैं. पर इन्हीं गुणों के कारण वे सारा पैसा गुजरात में ले जाएं, यह भी तो सहन नहीं किया जा सकता. जितनी अच्छी सडक़ें गुजरात में हैं और कही नहीं पर वे बनाई गई बिहारी मजदूरों के हाथों से हैं. गुजराती मजदूरी करने को क्यों नहीं मजबूर हैं, बिहारी ही क्यों हैं?

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आज के युवाओं को सवाल पूछना होगा कि बाकी राज्यों में वैसी ही शिक्षा क्यों न मिले जो गुजरात में मिल रही है.  उतनी इनवैस्टमैंट क्यों न हो, जितनी गुजरात में हो रही है. सरदार पटेल में ऐसी क्या खासियत थी कि उन की मूर्ति गुजरात में ही बने,  वह भोपाल और हैदराबाद में भी बनाई जा सकती थी.

बुलेट ट्रेन गुजरात में ही क्यों चले,  दिल्ली से पटना के बीच क्यों नहीं. नए पोर्ट गुजरात में ही क्यों बनें, तमिलनाडू और केरल में क्यों नहीं. सारे फैसले एक राज्य के लोग एक राज्य के लोगों के लिए लेंगे तो बाकी देश के युवाओं के भविष्य की तो छोडि़ए, वर्तमान का ही क्या होगा?

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