एक मामले में एक युवा दलित लडक़ी की हत्या कर दी गई क्योंकि उसने एक लडक़े को ओरल सैक्स में सहयोग नहीं दिया और एक और मामले में 48 साल की मां की गोली मार कर हत्या कर दी गई क्योंकि उस ने अपनी बेटी के छेडऩे वालों से बचाने की कोशिश की. दोनों मामलों में पुलिस ने रस्मी कारवाई तो की है पर कहीं भगवा गैंग नहीं दिखा कि ङ्क्षहदू औरतें खतरे में हैं, संस्कृति नष्ट हो रही है, अनाचार बढ़ रहा है, देशद्रोही गलीगली में घूम रहे हैं.

इस देश में जहां फंडा उलटा पडऩे पर लोगों की यातनाए आहत हो जाती हैं वहां अलीगढ़ के पास गांव की दलित लडक़ी की हत्या या पटना के पास जुग्गू....... की घटनाओं पर किसी की भावनाएं आहत नहीं हुईं. ये 2 मामले अकेले नहीं हैं. हर रोज सैंकड़ों मामले ऐसे होते हैं पर जहां भी अपराधी को कपड़ों से पहचाना जा सके कि वह मुसलमान है, तुरंत देश खतरे में आ जाता है, ङ्क्षहदू खतरे में हो जाता है.

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हमारे देश में कानून की व्याख्या बदल डाली गई है. वृद्धों, औरतों, लड़कियों, आम आदमियों के प्रति जघन्य उपराध करने वाले अगर ङ्क्षहदू है तो यह सामान्य अपराध है जिस में अपराधी को जमानत भी मिल जाए तो कोई हर्ज नहीं. अगर अपराधी कहीं भगवा गैंग से जुड़ा है, चाहे रिश्ता दूर का हो तो भी, एफआईआर तक नहीं लिखी जाएगी. पर जैसे ही मामला विधर्मी को ले कर हो, ङ्क्षहदू धर्म की पोल खोलने वाला हो, मंदिर की इज्जत का सवाल हो, सत्तारूढ़ पार्टी के नेता की बात हो, तुरंत देशद्रोह का शब्द लोगों के मुंह और पुलिस की कलम में आ जाता है.

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