रो रो कर माधुरी अचेत हो गई थी. समीप बैठी रोती कलपती मां ने उस का सिर अपनी गोद में रख लिया और उसे झकझोरने लगीं, ‘‘होश में आ, बेटी.’’ एक महिला दौड़ कर गिलास में पानी भर लाई. कुछ छींटे माधुरी के मुंह पर मारे तो धीरेधीरे उस ने आंखें खोलीं. वस्तुस्थिति का ज्ञान होते ही वह फिर विलाप करने लगी थी, ‘‘तुम मुझे छोड़ कर नहीं जा सकते. मैं तुम्हें नहीं जाने दूंगी. मां, उन्हें उठाओ न. मैं ने तो कभी किसी का बुरा नहीं किया, फिर मुझ पर यह कहर क्यों टूटा? क्यों मुझे उजाड़ डाला...’’ उसे फिर गश आ गया था.

आंगन में बैठी मातमपुरसी करने आईं सभी महिलाओं की आंखें नम थीं. हादसा ही ऐसा हुआ था कि जिस ने भी सुना, एकबारगी स्तब्ध रह गया. माधुरी का पति विवेक व्यापार के सिलसिले में कार से दूसरे शहर जा रहा था. सामने से अंधी गति से आते ट्रक ने इतनी बुरी तरह से रौंद डाला था कि कार के साथसाथ उस का शरीर भी बुरी तरह क्षतविक्षत हो गया. ट्रक ड्राइवर घबरा कर तेजी से वहां से भाग निकलने में सफल हो गया.

ये भी पढ़ें-माटी की गंध के परे

‘‘कहां है?’’ अचानक होश में आते ही माधुरी ने चौंकते हुए पूछा.

‘‘गुडि़या सोई हुई है,’’ बड़ी बहन ने धीरे से कहा.

‘‘उसे दूध...’’‘‘मैं ने पिला दिया है.’’

कुछ न करने की मजबूरी से तड़प रहे थें

बड़ी बहन बंबई से आई थी. उस का पति व इकलौता 5 वर्षीय बेटा भी साथ था. विवेक की असमय दर्दनाक मृत्यु से पूरा परिवार भीतर तक हिल गया था. मांबाप अपने सीने पर पत्थर रख बेटी को विदा करते हैं. अगर वही कलेजे का टुकड़ा 2 वर्षों में ही उजड़ कर उन की आंखों के समक्ष आ खड़ा हो तो मांबाप की कारुणिक मनोदशा को सहज ही समझा जा सकता है. पिछले 10 दिनों से रोरो कर उन के आंसू भी सूख चुके थे. बेटी के जीवन में अकस्मात छा गए घटाटोप अंधेरे से वे बुरी तरह विचलित हो गए थे. बेबसी, लाचारी और कुछ न कर पाने की अपनी मजबूरी से वे स्वयं भीतर ही भीतर तड़प रहे थे.

आगे की कहानी पढ़ने के लिए सब्सक्राइब करें

डिजिटल

(1 साल)
USD10
 
सब्सक्राइब करें

डिजिटल + 24 प्रिंट मैगजीन

(1 साल)
USD79
 
सब्सक्राइब करें
और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...