दिल्ली का जीमखाना क्लब न केवल प्रधानमंत्री के निवास के निकट है, इस क्लब के सदस्य भी प्रधानमंत्रियों के निकट वाले ही होते हैं. इस क्लब की सदस्यता को एक खास स्टेटस सिंबल माना जाता है और भारत जैसी संस्कृति में जहां पद और पैदाइश दोनों में गहरा संबंध है, इस क्लब की सदस्यता सरकारी अफसरों के बच्चों तक ही सीमित है. इस के सदस्यों ने नियमकानून ऐसे बना रखे हैं कि आम लोगों को सदस्यता भूल कर भी न मिले.

लेकिन जैसा हर दरबार में होता है. उस क्लब में भी भयंकर राजनीति है और तरहतरह के मठाधीश है. कुछ आईएएस अफसरों में से हैं, कुछ मिलिट्री को कुछ पुलिस को, कुछ पिछले राजनीतिबाजों के पुत्रों के. हर मठ दूसरे को नीचा दिखाने में लगा रहता है. चाय 12 रुपए की हो या 20 रुपए की, इस पर घंटों जनरल काउंसिल बहस करती है.

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इस क्लब पर सैंकड़ों मुकदमें चले हैं. चूंकि मोटी एंट्री फीस है, क्लब के पास पैसे की कमी नहीं है. शादीब्याहों के लिए दिए जाने वाली जगह से अच्छी आमदनी है. अब शहद है तो मक्खियां भी आएंगी ही.

इस क्लब पर अब नैशनल कंपनी..... ट्रिव्यूनल ने केंद्र सरकार का एक अफसर बैठा दिया है और चुनी हुई जनरल काउंसिल हवा हो गई है.

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यह साबित करना है कि इस देश की नौकरशाही कितनी गैर जिम्मेदार है कि वह अपने सुरक्षित क्लब को भी आंतरिक विवादों से बचा कर नहीं रख सकती. इस क्लब के सदस्य तंगदिल और ऊंचे एइम के शिकार तो हैं ही, वे एक संस्था को नष्ट करने में जरा सी देर नहीं लगाते. जब वे उस जगह को नष्ट कर सकते हैं जहां वे बुढ़ापे में कुॢसयों में घंटों पड़े रह सकते हैं, वे देश का क्या हाल कर रहे होंगे, क्या सोचने की बात है?

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