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एक घर उदास सा: भाग 3

अभी चाय, नाश्ता चल ही रहा था कि रवि भी दफ्तर से आ गए.
वैसे तो वे आते ही ब्रीफकेस वहीं रख कर टाई की गांठ ढीली कर सोफे पर ही पसर जाते थे, पर अचानक एक अपरिचिता को देख कर वे कुछ ठिठके. फिर परिचय करवाने पर नमस्ते का आदानप्रदान कर उन्होंने अंदर का रुख किया.
‘‘मीरा, मेरा तौलिया और कपड़े कहां हैं?’’ रवि ने पुकारा तो मैं चाय का प्याला छोड़ उन का ब्रीफकेस उठाते हुए अंदर चली गई.
मैं वापस आई तो मीनाक्षी उठ खड़ी हुई, ‘‘अब तुम अपने मियांजी की सेवाटहल करो, मैं चली,’’ उस ने एक आंख दबा कर कहा.
मैं एक बार भी उस से बैठने का आग्रह न कर सकी. सोचा, क्या पता सचमुच ही बैठ जाए. उस के कारण मेरी सारी दिनचर्या चौपट हो गई थी.
‘‘फिर कभी आऊंगी, तुम भी आना,’’ जातेजाते मुड़ कर वह बोली.
‘‘जरूर आऊंगी,’’ मैं भी मुसकरा पड़ी.
उस के जाते ही राहत की एक ठंडी सांस स्वत: ही निकल पड़ी, मानो सिर से मन भर का बोझ हट गया हो.
तीसरे दिन मीनाक्षी का फोन आया.
‘‘मीरा, आज 11 बजे तैयार रहना. नेहा के घर चलेंगे. वहां आज सावन के गीतों का प्रोग्राम है,’’ वह चहक रही थी.
प्रस्ताव काफी लुभावना था. ऐसी रासरंग की महफिलों में बरसते, हरियाले लोकगीतों की छमछम से तन तो क्या मन भी भीगभीग जाता है. लेकिन वास्तविकता पर मुझे कुछ संदेह हुआ. ऐसे रसीले प्रोग्राम की आड़ में न जाने कितनी सासों, ननदों के निंदापुराण खुलें, न जाने कितनी अनुपस्थित महिलाओं की खिल्ली उड़े.
एक बार झेली हुई उकताहट फिर मेरे ऊपर छाने लगी और अनचाहे ही मैं इनकार कर बैठी, ‘‘आज नहीं चल पाऊंगी. घर में थोड़ा काम है.’’
‘‘तुम तो बहुत बोर हो यार, घर के काम तो चलते ही रहते हैं,
कभी खत्म होते हैं क्या? तुम जैसी औरतों के कारण, जो हर घड़ी सीने से जिम्मेदारियां चिपकाए रहती हैं, सब गड़बड़ हो जाता है. सास तुम्हें देखते ही थक जाती हैं, पतिदेव को तौलिए और कपड़ों की जरूरत हो आती है, बच्चों को लोरी के बिना नींद ही नहीं आती. तुम तो भई, सिर पर पल्लू डाल कर सतीसावित्री बनी रहो,’’ वह बेशर्मी से हंसती जा रही थी.
गुस्से से मुझ से कुछ बोला न गया. मैं ने चुपचाप रिसीवर रख दिया.
कहना न होगा कि फिर मीनाक्षी से मिलने की इच्छा ही मर गई. उस ने भी शायद मेरा क्रोध भांप लिया था. तभी तो न स्वयं आई न ही फोन किया. मैं ने भी सोचा कि चलो, जान बची, नहीं तो ऐसी दोस्ती निभाना मेरे लिए तो मुश्किल हो जाता.ऐसे ही कई महीने बीत गए.
मीनाक्षी से फिर भेंट न हो सकी.
अचानक एक दिन यों ही किशोरावस्था के अल्हड़ मस्तीभरे दिनों की याद मन पर सावन के बादलों की भांति उमड़नेघुमड़ने लगी. अनायास ही मीनाक्षी की याद भी मन में कौंध गई. न जाने क्यों, उस से मिलने का मन किया.
बच्चे उस दिन स्कूल की तरफ से पिकनिक पर गए हुए थे. दोपहर का खाना जल्दी ही निबटा कर मैं डेढ़ बजे ही घर से निकल गई. मीनाक्षी के दिए पते पर मैं आसानी से पहुंच गई थी.
दरवाजे की घंटी बजाने पर स्थूलकाय, अस्तव्यस्त, उदास सी आंखों वाली एक अधेड़ स्त्री ने दरवाजा खोला. शायद मीनाक्षी की सास होंगी, मैं ने मन ही मन अनुमान लगाया.
‘‘मीनाक्षी घर पर है? मैं उस की सहेली मीरा हूं,’’ मैं ने मुसकरा कर पूछा.
‘‘मीनाक्षी तो बाहर गई है, शायद अभी आती होगी. तुम अंदर आ जाओ. थोड़ी देर इंतजार कर लो.’’
उन महिला के आमंत्रण पर मैं अंदर चली गई.
मीनाक्षी से मिलने की आतुरता में मैं यह भूल बैठी थी
कि वह महिला मंडली के साथ भी व्यस्त हो सकती है. अब न जाने कब लौटेगी. पर इतनी दूर से आ कर यों दरवाजे से ही लौटने की भी इच्छा न हुई.
अंदर हौल में सोफे पर पत्रिकाएं और कैसेट बिखरे पड़े थे. दीवान पर धुले कपड़ों का ढेर लगा था.
‘‘मैं मीनाक्षी की सास हूं,’’ उन महिला ने अपना परिचय दिया तो मैं ने हाथ जोड़ कर नमस्कार किया.
‘‘आज कामवाली आई ही नहीं, सब काम ऐसे ही पड़ा है,’’ उन्होंने अस्तव्यस्त, बिखरे हुए सामान के विषय में शायद सफाई दी. कपड़ों का ढेर उठाते हुए उन्होंने मेरे बैठने की जगह बनाई. फिर कपड़े उठा कर वे अंदर चली गईं. घर का मुख्यकक्ष ही गृहिणी की घर के प्रति उदासीनता की कहानी कह रहा था. कमरे की हर वस्तु में एक सुगृहिणी के स्पर्श का अभाव खटक रहा था.
हौल के साथ बाहर बालकनी में रखे गमलों में पौधे मुरझाए हुए थे. शायद उन में पानी नहीं डाला गया था. मैले परदे, कुशन कवर, धूल की परत से अटा फर्नीचर, यानी शानोशौकत की हर वस्तु होने के बावजूद कमरा बेजान और शुष्क लग रहा था.
‘‘तुम्हें पहले कभी नहीं देखा,’’ वे मेरे लिए पानी का गिलास ले आई थीं.
‘‘मैं मीनाक्षी से कुछ महीने पहले ही मिली हूं. असल में हम दोनों कालेज में एक साथ पढ़ती थीं,’’ मैं ने उन की समस्या का समाधान किया.
‘‘अच्छाअच्छा,’’ वे मुसकरा पड़ीं.
इतने में उढ़के हुए दरवाजे को जोर से धकेलते दो बच्चे भीतर आ गए. स्कूल से बच्चों के आगमन के साथ ही हंसी, चुहल, शोर, खिलखिलाहट का जो एक झोंका घर में अचानक ही घुस आता है, ऐसा वहां कुछ भी न था.
थके, उदास बच्चों में घर वापस पहुंचने पर कोई उत्साह न था. दोनों ने बस्ते वहीं सोफे पर पटक दिए और वहीं अपने लिए जगह बनाते हुए पत्रिकाओं के पन्ने उलटने लगे.
‘‘नंदा, नीरज, अपनी मौसी को नमस्ते करो,’’ मीनाक्षी की सास ने आदेश दिया, पर वे सुनाअनसुना करते हुए निर्विकार भाव से यों ही बैठे रहे, मां की अनुपस्थिति से उदासीन, एक अपरिचिता की उपस्थिति से तटस्थ.
‘‘कुछ खाने को दो, दादीमां, भूख लगी है.’’
‘‘अच्छा,’’ कह कर वे उठ गईं. रसोई में पहुंच कर उन्होंने तुरंत आवाज दी, ‘‘नंदा बेटी, इधर आना तो.’’
बच्ची उठ कर पैर घसीटती हुई रसोई में चली गई. हौल से ही सटी रसोई में हो रही खुसुरफुसुर साफ सुनाई दे रही थी.
‘‘तेरी मां तो आई नहीं, तू जा, यह डब्बा ले कर और सामने वाले होटल से डोसे व सांभर ले आ,’’ मीनाक्षी की सास की आवाज में याचना थी.
‘‘क्या दादीमां, रोजरोज ऐसे ही करती हो. मैं बहुत थक गई हूं. मैं नहीं जाती. कितनी जोर से तो भूख लग रही है.’’
‘‘अच्छाअच्छा, धीरे बोल, मैं तेरे दादाजी को बोलती हूं,’’ उन की आवाज में अकारण ही गुस्सा झलकने लगा था.
जब वे हौल में आईं तो उन का चेहरा और भी उदास व परेशान था.
‘‘अच्छा मांजी, अब मैं चलूंगी. बहुत देर हो गई है,’’ मैं ने उन्हें असमंजस की स्थिति से उबारने के लिए प्यारभरी मुसकराहट से देखा.
‘‘अच्छा बिटिया, फिर आना,’’ उन का स्वर थकाहारा था.
इस से पहले कि उस घर की उदासी मेरे तनमन को जकड़ लेती, मैं बाहर निकल आई. बाहर आ कर बहुत अच्छा लगा. सोचा, अगर नारी मुक्ति आंदोलन का ध्येय पारिवारिक दायित्वहीनता से है तो मैं परतंत्र ही भली. अगर आजादी का तात्पर्य परिवारजनों के क्लांत, उदास चेहरे हैं तो मैं तो घर की दासी ही भली.
बहुत ही अजीब लगा सुन कर. पति की बहन कुछ समय के लिए भाई के पास आए और भाभी अपने में मगन रहे. कब और कैसे बदल गए हमारे पारिवारिक मूल्य, सोच कर मैं हैरान हुई.

एक घर उदास सा: भाग 2

यह शायद गायत्री बोल रही थी.
प्रारंभिक परिचय और ‘हैलोहैलो’ के बाद सब छोटेछोटे समूहों में बैठ कर गपशप करने लगीं.
‘‘तुम्हारी कामवाली का क्या हाल है? क्या अभी भी उस का आदमी उसे पीटता है?’’ किसी ने पूछा.
‘‘अरे, उस की कुछ न पूछो, मैं तो उस को बोलती हूं कि घर जाओ ही नहीं. यहीं रहो, मेरा घर संभालो और बदले में खाओपीओ, पर उसे तो मार खाने की आदत है. सो, रोज भागती चली जाती है,’’ यह शायद गायत्री बोल रही थी.
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‘‘पर उस का 1 बच्चा भी तो है, उसे भी तुम रख लोगी?’’ गायत्री ने झट से प्रश्न किया.
‘‘न बाबा न, सालभर के बच्चे के साथ वह काम क्या करेगी. फिर मेरे घर में इतनी जगह भी कहां है,’’ गायत्री ने अपनी मजबूरी बताई.
‘‘तेरी पड़ोसिन गृहलक्ष्मी यानी ‘घर की रानी’ का क्या हाल है, रीना? कभी उसे भी साथ ले आ न,’’ यह सुमेधा थी.
स्त्रियों की खिलखिलाहट से गूंज उठा
‘‘पर उसे सासससुर की सेवा से फुरसत हो तब न, बच्चों का गृहकार्य देखने से और पति महाशय को रूमाल, तौलिया व जुराबें पकड़ाने से. मैं तो ऐसी गंवार औरतों को जरा भी सहन नहीं कर पाती,’’ रीना मुंह बिचका कर बोली तो सब खिलखिला कर हंसने लगीं.
‘‘अरे भई शीला, अपने मियां को बोल कर एक ‘चैरिटी शो’ करवाओ उन की फिल्म का. किसी नामी स्त्री सेवा समिति को चैक दान करते हुए बस एक फोटो छप जाए अखबार में तो सालभर तक इस समाजसेवा के चक्कर से निकल जाएंगे,’’ रीना ने अपना सोने से भी खरा सुझाव दिया.
कमरा फिर स्त्रियों की खिलखिलाहट से गूंज उठा.
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मैं ने अनुमान लगाया कि शीला के पति शायद फिल्म वितरण के व्यवसाय में हैं. ऐसे ही अनर्गल वार्त्तालाप के बीच खानेपीने का दौर चलता रहा. प्रत्येक महिला अपने साथ एक व्यंजन बना कर लाई थी या कौन जाने पास के होटल से ही खरीद लाई हो.
खानेपीने के बाद ताश की महफिल सज गई. इस बीच मैं ने उठने की कई बार कोशिश की, पर हर बार मीनाक्षी हाथ पकड़ कर रोक लेती, ‘‘बस यार, दो मिनट.’’
‘‘अरे, ऐसी भी क्या जल्दी है. अभी तो महफिल जमी भी नहीं और आप जाने की सोचने लगीं,’’ कोई न कोई टोक देती.
‘क्या अपना घर भी न दिखाओगी?
चिंतित सासससुर और स्कूल से लौटे बच्चों का वास्ता दूंगी तो फूहड़ और गंवार जान कर हंसी की पात्र बना जाऊंगी, यह सोच चुप रह जाती. पर अब साढ़े 3 बज चुके थे, स्थिति मेरे लिए असह्य हो चुकी थी.
मैं बिना कुछ बोले उठ खड़ी हुई. दरवाजे की तरफ लपकते हुए मुसकरा कर कहा, ‘‘फिर मिलेंगे, मीनाक्षी.’’
‘‘क्या अपना घर भी न दिखाओगी?’’
मुड़ कर देखा तो मीनाक्षी भी चली आ रही थी. बिना आमंत्रण वह भी साथ हो ली.
‘‘मैं ने सोचा, तुम शायद अभी ताश खेलोगी,’’ मैं ने सफाई दी.
‘‘हां, ताश की बाजी तो दिन ढलने तक चलेगी. पर आज तो शाम की चाय तुम्हारे साथ ही पीऊंगी,’’ उस ने बेबाकी से कहा.
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‘‘हांहां, जरूर.’’
शायद वह यह देखने को उत्सुक थी कि एक आज्ञाकारिणी बहू अगर बिना बताए कुछ समय बाहर बिताती है तो उस के सासससुर उस के साथ कैसा व्यवहार करते हैं, सोच कर मैं मन ही मन मुसकरा उठी.
बाहर निकलते ही मैं ने आटो कर लिया. जल्द से जल्द घर पहुंचने की उत्सुकता और आतुरता के कारण मुझ से बोला भी न जा रहा था. रास्तेभर

मीनाक्षी कुछ न कुछ बोलती रही और मैं ‘हांहूं’ के उत्तर से काम चलाती रही.
घर के गेट के पास आटो के रुकते ही पिताजी बरामदे में चक्कर काटते दिखे. उन्होंने मेरी चिंता में सारी दोपहर ऐसे ही बिताई होगी, यह सोच कर मन ग्लानि से क्षुब्ध हो उठा. परिवार के सदस्यों को ऐसी ऊहापोह और असमंजस की स्थिति में डालने से तो कहीं बेहतर था कि मैं फूहड़ और गंवार ही ठहराई जाती.
आटो को अपने गेट पर रुकता देख वे आंखों को हथेली से ढक क्षणभर को खड़े हो गए. दूर से ही उतरने वाले को पहचानने के प्रयास में उन की भृकुटि भी तन गई थीं. फिर शायद मुझे पहचानते ही वे अंदर की ओर मुड़ गए.
गेट खोलने से पहले मैं ने सिर पर साड़ी का हलका सा पल्लू रख लिया. मीनाक्षी मेरे इस अंदाज पर किंचित व्यंग्य से मुसकरा दी, मानो कह रही हो, ‘वाह री आदर्श बहू.’
‘‘बहुत देर कर दी बेटी,’’ मांजी का स्वर शांत और स्निग्ध था.
‘‘हां मां, यह मेरी सहेली मीनाक्षी मिल गई. इसी के साथ देर हो गई.’’
‘‘मैं तो इन्हें समझा रही थी कि किसी काम में देर हो गई होगी परंतु इन की आदत तो तू जानती है, सारी दोपहरी बरामदे में ही चक्कर काटते रहे.’’
फिर मीनाक्षी के नमस्ते के उत्तर में वे मुसकराईं, ‘‘तेरा गुड्डू भी पूछपूछ कर बस अभी सोया है, रुचि जागती होगी. रुचि बेटी, मां के लिए पानी ले कर आ. बाहर कितनी गरमी है. मैं भी बस अपनी कहानी ले कर बैठ गई. तुम दोनों सहेलियां गपशप करो, मैं अब सोऊंगी, थक गई हूं,’’ कहतेकहते मांजी उठ गईं.
फिर अचानक जैसे कुछ याद आने पर वापस मुड़ कर बोलीं, ‘‘तेरे लिए भी 2 रोटियां सेंक कर रखी हैं, सब्जी भी पड़ी है. 2 रोटियां और सेंक कर सहेली के साथ मिल कर खा ले.’’
‘‘मैं ने खाना खा लिया है, अब आप आराम से जा कर सो जाइए,’’ मैं हंस कर बोली.
‘‘आज आप कहां चली गई थीं?’’ पानी के 2 गिलास ले कर आई 8 साल की रुचि की आंखों और स्वर में हैरानी थी, ‘‘गुड्डू तो आप के बिना सोता ही नहीं था, मुझे भी नींद नहीं आई,’’ गिलास मेज पर रख कर मेरे गले में बांहें डाल कर वह लाड़ करने लगी.
मैं ने भी पुचकार कर उसे गोदी में उठा लिया.
ग्लानि की भावना ने एक बार फिर मुझे परेशान कर दिया कि बेकार ही वहां रुक गई और यहां सब परेशान होते रहे. बच्चों के स्कूल से लौटने के समय मैं हमेशा ही घर में रहती थी. दूर से ही वे दौड़ कर होड़ लगाते आते कि कौन मां को पहले छुएगा. फिर टांगों से लिपट कर मां के स्पर्श का सुख पा कर सबकुछ भूल जाते.
बच्चों की मीठीमीठी बातों के बीच दोपहर का खानापीना निबटता. फिर मैं दोनों को दाएंबाएं लिटा कर खुद बीच में लेट जाती. बातें करतेकरते वे कब सो जाते, मुझे स्वयं भी पता न चलता.‘‘कहां गुम हो गई?’’ मीनाक्षी ने प्रश्न किया तो मैं वर्तमान में लौट आई.
‘‘रुचि, तुम मौसी से तो मिली ही नहीं, यह मेरी सहेली है,
कालेज की,’’ मैं ने बताया तो रुचि ने क्षणभर उसे निहारा, फिर नमस्ते कर शरमा कर भाग गई. नींद से उस की आंखें भारी थीं. मेरी उपस्थिति का आश्वासन पा कर अब वह सो जाएगी, इस का मुझे भरोसा था.
‘‘यार, तुम ने तो अपने बच्चों को बहुत बिगाड़ा हुआ है,’’ मीनाक्षी के प्रश्न पर मैं हैरान रह गई. उसे क्या जवाब देती, बस मुसकरा कर रह गई.
मीनाक्षी को घर जाने की कोई जल्दी न थी. इधरउधर की बातें और बेकार की गपशप करतेकरते मैं उकता गई. सुबह उस से अचानक मिलने पर जो उत्साह मन में उठा था, वह उस के व्यवहार के कारण कब का भीतरभीतर दब चुका था. सुबह से मैं ने कुछ काम भी न किया था, फिर भी बहुत थकावट लग रही थी.
5 साढ़े 5 बजे के बीच मीनाक्षी को एक फिल्मी पत्रिका पकड़ा कर मैं बच्चों को जगाने चली गई. हाथमुंह धुला कर, दूध पिला कर उन्हें बाहर खेलने भेज कर रसोई का रुख किया. मां और पिताजी की चाय का समय कब का हो चुका था.
सुबह समोसों के लिए मैदा गूंध कर मसाला भी बना रखा था. मांजी ने मेरी अनुपस्थिति में मसाला भर कर समोसे बांध कर रख दिए थे. गैस पर एक तरफ चाय का पानी चढ़ा कर दूसरी तरफ समोसे तल लिए.
मां और पिताजी को उन के कमरे में चाय, नाश्ता दे कर अपना और मीनाक्षी का चाय, नाश्ता ले कर फिर उस के पास आ बैठी. वह पत्रिका के पृष्ठों में खोई हुई थी. मैं सोचने लगी, ‘इस के बच्चे भी कब के स्कूल से आ चुके होंगे और यह महारानी यहां कैसे निश्चिंत बैठी है.’

Crime Story: वेलेंटाइन डे का खूनी तोहफा

सौजन्या- सत्यकथा

उस दिन 15 फरवरी, 2021 सोमवार का दिन था. राजस्थान के अलवर के थाना एमआईए के थानाप्रभारी शिवराम को सुबहसुबह फोन द्वारा सूचना मिली कि कल्पतरू गोदाम, हिंद कैमिकल फैक्ट्री के पास एक युवक की खून से लथपथ लाश पड़ी है. सूचना मिलते ही एमआईए थानाप्रभारी शिवराम पुलिस टीम के साथ तत्काल घटनास्थल पर जा पहुंचे. घटनास्थल पर खून से लथपथ एक युवक की लाश पड़ी थी. मृतक के सिर, गरदन व छाती पर धारदार हथियार के गहरे चोट के निशान थे. थानाप्रभारी ने वहां मौजूद लोगों से मृतक की शिनाख्त करने को कहा. मगर कोई उस की पहचान नहीं कर सका. थानाप्रभारी ने इस घटना की खबर उच्चाधिकारियों को दे दी. खबर पा कर सीओ ओमप्रकाश मीणा, एएसपी सरिता सिंह और एसपी तेजस्विनी गौतम भी घटनास्थल पर आ पहुंचीं.

पुलिस अधिकारियों ने एफएसएल और डौग स्क्वायड को भी मौके पर बुला लिया. मृतक की तलाशी में ऐसी कोई चीज बरामद नहीं हुई, जिस से उस की शिनाख्त होती. एफएसएल टीम ने अपना काम पूरा किया. तब मृतक के शव को पोस्टमार्टम के लिए राजीव गांधी सामुदायिक केंद्र की मोर्चरी में ले जाया गया. घटना की खबर आसपास के गांवों में फैल गई. खबर पा कर देसूला खोड़ निवासी रणजीत सिंह ग्रामीणों के साथ अस्पताल पहुंचे, क्योंकि उन का 28 साल का बेटा सोहन सिंह शेखावत कल से लापता था. मोर्चरी ले जा कर पुलिस ने जैसे ही उन्हें लाश दिखाई तो उन की चीख निकल गई. क्योंकि खून से सनी वह लाश उन के बेटे की ही थी. बेटे की लाश देख कर रणजीत सिंह गश खा कर गिर पड़े. गांव वालों ने मुश्किल से उन्हें संभाला और सांत्वना दे कर चुप कराया.

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लाश की शिनाख्त हो जाने के बाद थानाप्रभारी ने रणजीत सिंह की तरफ से हत्या का मुकदमा दर्ज करा दिया. कुछ ही देर में सैकड़ों की संख्या में लोग थाने के बाहर और अस्पताल में जमा हो गए. सभी आक्रोशित थे. परिजनों और गांव वालों ने पहले पोस्टमार्टम कराने और फिर शव उठाने से इनकार कर दिया. उन की मांग थी कि जब तक हत्यारे गिरफ्तार नहीं होते, वे शव नहीं उठाएंगे. पुलिस अधिकारियों ने ग्रामीणों और परिजनों को काफी समझाया और आश्वासन दिया कि हत्यारे बहुत जल्द पकड़ लिए जाएंगे. तब परिजन मृतक का शव लेने को राजी हुए. पोस्टमार्टम के बाद मृतक का शव ले कर उस के परिजन देर शाम अपने गांव लौट आए. वहां उस का अंतिम संस्कार कर दिया गया. एसपी ने सीओ ओमप्रकाश और थानाप्रभारी शिवराम को निर्देश दे कर तत्काल हत्याकांड का परदाफाश कर हत्यारों की गिरफ्तारी के निर्देश दिए. थानाप्रभारी ने साइबर सेल की मदद से हत्याकांड के मुलजिमों की तलाश शुरू की. जांच के दौरान पुलिस टीम को पता चला कि मृतक सोहन सिंह मेरठ, उत्तर प्रदेश की एक कंस्ट्रक्शन कंपनी में सुपरवाइजर था.

वह मेरठ से एक दिन पहले ही देसूला खोड़ अपने घर आया था. सोहन सिंह 2 महीने बाद मेरठ से घर लौटा था. इसलिए दिन भर वह घर पर ही था. 14 फरवरी, 2021 वैलेंटाइन डे की शाम को करीब 7 बजे उस के मोबाइल पर किसी का फोन आया. सोहन सिंह फोन पर बात करने के बाद पत्नी कुसुम उर्फ कुमकुम चौहान से बोला, ‘‘कुसुम,मैं एक दोस्त से मिलने जा रहा हूं. 10-15 मिनट में वापस आता हूं.’’ यह कह कर वह घर से चला गया. जब वह वापस नहीं लौटा तो कुसुम को चिंता हुई. फिर सोचा कि दोस्त के साथ गपशप कर रहे होंगे. सोहन सिंह रात भर नहीं आया तब कुसुम ने अपनी ससुराल फोन कर के कहा, ‘‘कल 7 बजे किसी का फोन आने पर सोहन 10-15 मिनट में आने को कह कर गए थे. लेकिन वह अब तक नहीं लौटे. मुझे डर लग रहा है कि उन के साथ कहीं कोई अनहोनी न हो गई हो.’’ सुन कर ससुराल वालों ने कहा, ‘‘चिंता मत करो, दोस्त के पास ही रुक गया होगा. अभी फोन करते हैं कि वह है कहां.’’ इस के बाद सोहन सिंह के फोन पर उस के पिता रणजीत सिंह वगैरह ने फोन किया मगर उस का मोबाइल फोन स्विच्ड औफ था. ऐसे में उन्हें चिंता होने लगी थी. वह कुछ करते, उस से पहले ही उन के बेटे की लाश मिलने की खबर आ पहुंची थी. इस के बाद रणजीत सिंह गांव से शहर की ओर भागे आए थे. पुलिस टीम ने सोहन सिंह की पत्नी, आसपड़ोस वालों, मृतक के दोस्तों और भी कई लोगों से पूछताछ की. अपने मुखबिरों को भी लगा दिया. साइबर सेल ने मृतक के मोबाइल की काल डिटेल्स निकलवाई. पुलिस टीम को पूछताछ में पता चला कि 14 फरवरी की रात सोहन सिंह शेखावत को गुर्जर कालोनी, बख्तल की चौकी निवासी नरेश सैनी के साथ देर रात तक देखा गया था.

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पुलिस टीम ने तब नरेश सैनी को हिरासत में ले कर सख्ती से पूछताछ की. नरेश सैनी पहले तो टालमटोल करता रहा लेकिन जब पुलिस ने सख्त रुख अपनाया तो वह टूट गया. उस ने सोहन सिंह हत्याकांड का राज उगल दिया. नरेश सैनी ने पुलिस को बताया कि मृतक की पत्नी कुसुम उर्फ कुमकुम उस की फैक्ट्री दीप कैम इंडस्ट्री में काम करती थी, जिस से उस के अवैध संबंध हो गए. वे दोनों सोहन सिंह को रास्ते से हटा कर अपना निजी जीवन जीना चाहते थे. मृतक काफी समय से मेरठ में काम करता था और कभीकभार घर आता था. 14 फरवरी को पहले उसे शराब पिलाई और फिर हत्या कर दी. नरेश ने सोहन की हत्या अपने छोटे भाई नवीन उर्फ कपिल के सहयोग से की थी. तब पुलिस टीम ने मृतक की बीवी कुसुम और नवीन उर्फ कपिल सैनी को भी हिरासत में ले लिया. पूछताछ में इन दोनों ने अपना जुर्म कबूल कर लिया. पुलिस ने सोहन सिंह की हत्या में प्रयुक्त नरेश सैनी की डस्टर कार, खून सना चाकू, लकड़ी का डंडा और मृतक का मोबाइल फोन भी उन की निशानदेही पर बरामद कर लिया. चाकू और मोबाइल झाडि़यों से बरामद किया गया. वहीं डंडा डस्टर कार से बरामद किया गया था. एसपी तेजस्विनी गौतम, एएसपी सरिता सिंह, सीओ ओमप्रकाश मीणा ने सोहन सिंह के हत्यारोपियों से पूछताछ कर के हत्याकांड का 17 फरवरी को खुलासा कर दिया.

अलवर एसपी तेजस्विनी ने प्रैसवार्ता कर के हत्याकांड का खुलासा किया. सोहन सिंह की हत्या अवैध संबंधों के चलते की गई. मृतक की पत्नी और उस का प्रेमी नरेश अपने बीच में किसी तीसरे को रोड़ा नहीं बनने देना चाहते थे. वे अपना जीवन अपने हिसाब से खुल कर जीना चाहते थे. ऐसे में वैलेंटाइन डे पर जब सोहन सिंह मेरठ से घर आया तो वह पत्नी कुसुम और उस के प्रेमी नरेश की आंखों में ऐसा खटका कि उसे वैलेंटाइन डे पर मौत का तोहफा दे दिया. सोहनसिंह शेखावत हत्याकांड की जो कहानी प्रकाश में आई, वह इस प्रकार से है— राजस्थान के अलवर जिले की बानसूर तहसील के गांव गिरुड़ी के रहने वाले रणजीत सिंह शेखावत का बेटा था सोहन सिंह. सोहन ने पढ़ाई के बाद प्राइवेट नौकरी करनी शुरू कर दी. वह गांव से अलवर शहर आ गया. वहीं पर कामधंधा करने लगा. बेटा जब चार पैसे कमाने लगा तो रणजीत ने चौहान परिवार में उस की शादी कर दी. कुसुम 10वीं पास सुंदर लड़की थी. उस की शादी सोहन सिंह से हो गई. खूबसूरत गोरे रंग की बीवी पा कर सोहन सिंह अपने भाग्य पर इतराता था.

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सोहन सरल स्वभाव का शरीफ व्यक्ति था. कई दिनों तक बीवी कुसुम को गांव गिरुड़ी में रखने के बाद वह उसे अपने साथ देसूला खोड़, थाना एमआईए ले आया. देसूला खोड़ में प्लौट ले कर सोहन ने मकान बना लिया. वह अपनी बीवी कुसुम के साथ वहीं रहने लगा. आज से करीब 6 साल पहले कुसुम ने एक बेटे को जन्म दिया. सोहन अपनी बीवी एवं बच्चे से बहुत प्यार करता था. वह दिन में काम पर जाता था रात में ड्यूटी से लौट आता था. इस दौरान सब कुछ ठीकठाक था. कुसुम के आसपास के घरों की महिलाएं दीप कैम इंडस्ट्री में लेबर के रूप में काम करने जाती थीं. कुसुम घर में दिन भर अकेली रह कर बोर हो जाती थी. उस ने भी पड़ोस की महिलाओं के साथ काम करने की इच्छा पति से जताई. पति ने पहले तो मना कर दिया मगर कुसुम के बारबार यह कहने पर कि वह दिन भर अकेली घर में बोर हो जाती है. फैक्ट्री में काम करने से उस का टाइम पास भी हो जाएगा और घर खर्च भी आसानी से चलेगा. तब सोहन सिंह मान गया. कुसुम ने दीप कैम इंडस्ट्री में लेबर के रूप में काम करना शुरू कर दिया.

वह अपने बेटे को साथ ही ले जाती थी काम पर. दीप कैम इंडस्ट्री एमआईए इलाके में ही थी. यह इंडस्ट्री नरेश कुमार सैनी ने अपने एक दोस्त के साथ पार्टनरशिप में ली थी. नरेश कुमार सैनी ही इस की देखरेख करता था. कह सकते हैं कि वही इस का मालिक था. कुसुम को नरेश सैनी ने देखा तो वह उस की खूबसूरती पर मर मिटा. वह कुसुम के आगेपीछे भंवरे की तरह मंडराने लगा. इसी दौरान सोहन सिंह जिस कंस्ट्रक्शन कंपनी में काम करता था, उसे सड़क बनाने का ठेका मेरठ में मिल गया. इस के बाद सोहन सिंह मेरठ चला आया. वह वहां पर सुपरवाइजर के पद पर काम करता था. छुट्टी मिलने पर सोहन अपने बीवीबच्चों से मिलने अलवर आता रहता था. छुट्टी पूरी होने पर 5-7 दिन बाद वापस मेरठ चला जाता था. नरेश ने जब से कुसुम को अपनी फैक्ट्री में देखा था, वह उस पर मरमिटा था. नरेश उस के इर्दगिर्द मंडराते हुए उस के सौंदर्य की तारीफें करता रहता था. कहते हैं कि औरत को अपनी तारीफ अच्छी लगती है. यही कुसुम के साथ हुआ. वह अपने सौंदर्य की तारीफ के पुल बांधने वाले नरेश की तरफ खिंचती चली गई. नरेश उस से काम भी कम करवाता था. कभी छुट्टी लेती तो पगार भी नहीं काटता था. इस तरह वह नरेश को अपना समझने लगी और ऐसे में जब एक दिन नरेश ने मौका मिलने पर कुसुम को बांहों में भरा तो वह चुप रही. कुसुम की मौन स्वीकृति ने नरेश का उत्साह बढ़ा दिया.

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उस दिन दोनों तनमन से एक हो गए. एक बार वासना के दलदल में गिरे तो फिर धंसते ही चले गए. दोनों के बीच अवैध संबंध बने तो नरेश ने कुसुम को लेबर काम से हटा कर एकाउंटेंट बना दिया. कुसुम 10वीं पास थी. उस ने उस की तनख्वाह भी बढ़ा दी. सोहन सिंह को जब बीवी ने बताया कि वह एकाउंटेंट बन गई है तो वह बहुत खुश हुआ. मगर उसे यह पता नहीं था कि उस की बीवी ने तन सौंप कर यह पद हासिल किया है. इसी दौरान करीब डेढ़ साल पहले कुसुम के यहां एक बेटी हुई. वहीं नरेश की भी अपने समाज में शादी हो गई. नरेश शादीशुदा हो कर कुसुम से संबंध जारी रखे था. वह अपनी बीवी से ज्यादा कुसुम से प्यार करता था. कुसुम अपने पति से विश्वासघात कर गैरमर्द की बांहों में झूल रही थी. समय के साथ उन दोनों ने तय कर लिया कि वे आजीवन साथ रहेंगे. उन के बीच में जो आएगा वह जिंदा नहीं बचेगा. पिछले 2 महीने से सोहन सिंह मेरठ में था. इस दौरान नरेश और कुसुम ने तय कर लिया कि उन के बीच सोहन सिंह नाम का जो कांटा है, उस को देसूला खोड़ आने पर हमेशा के लिए हटा दिया जाएगा. सोहन सिंह 2 महीने बाद देसूला आने वाला था. नरेश के एक बेटी है जो इस समय करीब 4 महीने की है. सोहन सिंह मेरठ से देसूला आया तो इस की सूचना कुसुम ने नरेश को दे दी. नरेश ने 14 फरवरी, 2021 वैलेंटाइन डे की शाम करीब 7 बजे सोहन को फोन कर बुलाया. सोहन सिंह ने पत्नी कुसुम से 10-15 मिनट में आने को कहा और नरेश के पास चला गया. सोहन जब नरेश के पास पहुंचा तब वह अपनी डस्टर कार ले कर खड़ा था.

नरेश ने कहा, ‘‘सोहनसिंह जी आप को यहीं फैक्ट्री में अच्छी नौकरी दिला देते हैं.’’ ‘‘यह तो आप की मेहरबानी होगी. वैसे अगर यहां नौकरी मिल जाए तो कौन बीवीबच्चों से दूर रहना चाहेगा.’’ सोहन बोला. तब नरेश ने झांसा दिया कि आओ बात करते हैं. सोहन सिंह डस्टर कार में बैठ गया. नरेश कार में बिठा कर सोहन सिंह को तिजारा फाटक के पास शादी समारोह में ले गया. यहां सोहन सिंह को शराब में धुत कर दिया. इस के बाद नरेश ने शिव कालोनी से शादी समारोह में से अपने छोटे भाई नवीन उर्फ कपिल सैनी को साथ लिया. इस के बाद एमआईए फैक्ट्री की तरफ गाड़ी रोक कर सोहन सिंह को और शराब पिलाई. उसी समय नरेश ने अपने सगे भाई नवीन के साथ मिल कर सोहन की चाकू व लाठी से हमला कर हत्या कर दी. सोहन सिंह की गरदन पर नवीन ने चाकू से वार किए.

फिर नरेश ने सोहन के सिर पर लाठी से वार किए. शराब के नशे में धुत सोहन अपना बचाव भी नहीं कर सका. वह थोड़ी देर में ही तड़प कर मर गया. इस के बाद दोनों भाइयों ने लाश कल्पतरू गोदाम के पास फेंक दी. वहां से जाते वक्त नवीन ने चाकू और मृतक का मोबाइल झाडि़यों में फेंक दिया. जेब से आधारकार्ड और पर्स भी ले लिया. डंडे को कार में रख कर अपने घर ले गए. आरोपियों की निशानदेही पर पुलिस ने चाकू, डंडा और मोबाइल बरामद कर लिए. हत्या में प्रयोग की गई डस्टर कार भी जब्त कर ली. पुलिस ने पूछताछ के बाद कुसुम, उस के प्रेमी नरेश कुमार सैनी और नवीन उर्फ कपिल सैनी को कोर्ट में पेश कर के न्यायिक हिरासत में भेज दिया.

इस आसान विधि से बनाएं केसरिया चावल

मीठे चावल एक पारंपारिक मिठाई है जो हमारे समाज में माता सरस्वती के पूजा में भोग लगाने के लिए बनाया  जाता है. इस चावल का स्वाद काफी अच्छा होता है. इसे केसरिया चावल भी कहा जाता है.

तो आइए आज जानते हैं कैसे बनाया जाता है केसरिया चावल

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समाग्री

बासमती चावल

घी

खोया मेवा

किशमिश

हरी इलायची

लौंग

केसर

गुनगुना दूध

विधि

केसरिया चावल बनाने के लिए आप सबसे पहले चावल को 20 मिनट के लिए पानी में भिंगो दें, अब चावल को तेज आंच पर उबाले , उबलचते हुए चावल में ढ़क दें और तब तक पकाएं जब तक चावल अच्छे से पक न जाए. मीठे चावल बनाने के लिए ध्यान रखना चाहिए कि चावल खिले- खिले होने चाहिए.

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अब 4 बड़ी इलायची ले और इसका छिल्का हटा दें और दरदरा कूट लें, अब दो बड़े चम्मच दूध में केसर को भिगोएं और अलग रखें, किशमिश को भी धोकर अलग रखें.

मिले जुले मेवे और केशर में सभी ड्राई फ्रूट्स को मिलाकर रख दें, जब चावल ठंडा हो जाए उसे अलग कर दीजिए, अब चावल में लौंग और हरी इलायची डालकर 15 सेकेंड्स के लिए भूनें. अब सभी को एक साथ मिलाकर हल्के आंच पर पकने के लिए छोड़ दें. चावल और शक्कर से निकलने वाला सारा पानी शोक लें.

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अब समय है खोया मावा डालने का चम्मच से अच्छे से खोया और मावा डालकर मिलाएं. ऊपर से कूटी हुई ईलायची डालकर मिलाएं.अब आपका केसरिया चावल तैैयार है.इसे सर्व कर सकते हैं.

बिग बॉस फेम रश्मि देसाई ने क्यों बिहारी बॉय अक्षत आनंद को दी शुभकामनाएं

गायक व अभिनेता अक्षत आनंद का एक हिंदी गाना ‘आदतन‘ जी म्यूजिक के यूट्यूब चैनल पर रिलीज होते ही वायरल हो गया.अक्षत ने न सिर्फ यह गाना गाया है, बल्कि इस के म्यूजिक वीडियो में हिंडोला चक्रवर्ती के साथ नजर अभिनय भी किया है.‘आदतन‘ एक बेहद रोमांटिक गाना है,जो दिलों के तार को छूता है.इस वीडियो अलबम की लाॅचिंग हाल ही में मुंबई में धूम धाम से हुई. यशी फिल्म्स और जीम्यूजिक के इस नए म्यूजिक वीडियो ‘आदतन’ कालोकार्पण बिगबॉस फेमलोक प्रिय टीवी अभिनेत्री रश्मि देसाई ने किया था.इस मौके पर रश्मि ने बिहारी ब्वॉय अक्षत आनंद की तारीफ करते हुए उन्हें बहुत सारी शुभकामनाएं भी दी.

इस अवसर पर रश्मि देसाई ने कहा,‘अक्षत आनंद का गाना और उनका लुक मुझे काफीअच्छा लगा. अक्षत आनंद और हिन्डोला चक्रवर्ती दोनों की खूबसूरत स्माइल और बॉन्डिंग दर्शकों को काफी पसंद आयेगी. हैश टैग की दुनिया है और ‘आदतन’काफी क्यूट अलबम है. मैं अक्षत आनंद को उनके सपनों को पूरा करते हुए देखना चाहूंगी. संगीत ही हमारी दुनिया है. हम संगीत से काफी जुड़े होते हैं. यह दर्शकों को जल्द ही जोड़  कर देती है.अक्षत आनंद आने वाले समय के स्टारहैं.’’रश्मि देसाई ने म्यूजिक वीडियो ‘आदतन’ के निर्माता अभय सिन्हा का आभार जताया और कहा कि मैं अभय सिन्हा की आभारी हॅूं कि मुझे इस खास अवसर के लिए उन्होंने आमंत्रित किया. मैं उन्हे तबसे जानती हूंजब मैं इंडस्ट्रीज में आई थी.’’इस मौके पर अक्षत आनंद ने कहा-‘‘जब मैंने पहली बार ट्रैक सुना तो मैं काफी आकर्षित हुआ. भारतीय और पश्चिमी संगीत के संयोजन ने मुझे जकड़ लिया, मुझे डांसिंग बहुत पसंद है.मेरी मां का सपना था कि उनका बेटा गायक बने. मेरा भी सपना था कि मैं एक गायक बनूं. ‘आदतन’ के साथ मेरा यह सपना पूरा हुआ.’’

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बिहारी ब्वॉय अक्षत आनंद राजधानी पटना के किदवई पुरी मुहल्ले के रहने वाला है.जिनकी गायकी को ‘यषीफिल्म्स’के अभय सिन्हा और संजय सिन्हा ने पहचाना और उन्होने अक्षत आनंद के इस नए गीत का निर्माण करने की ठान ली.अक्षत के इस गाने के गीतकार और संगीतकार सीपीझा हैं.इस गाने के म्यूजिक वीडियो का फिल्मांकन विदेशी लोकेशन लंदन में जरूर की गयी है, लेकिन इसके बोल, इमोशन और अक्षत की सुमधुर आवाज पूरी तरह देसी है.गाने में जिस तरह से अक्षत ने परफॉर्म कियाहै, वह काबिले तारीफ है.इस गाने को सुनने के बाद लोग दावा कर रहे हैं कि आने वाले दिनोंमें अक्षत आनंद अपनी गायन व संगीत प्रतिभा से धमाल मचाने का पूरामाद्दा रखतेहैं.

अक्षत आनंद की तारीफ करते हुए अभय सिन्हा कहते हैं-‘‘यह बिहार के लिए गौरव की बात है कि बिहार का एक और लड़का संगीत के क्षेत्र में सकारात्मक शुरुआत कर चुका है,जिसमें ऊंचाई तक जाने की पूरी-पूरी संभावना है.’’

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गीत‘‘आदतन’’ के निर्माता अभय सिन्हा और निर्देशक रमेश नौटियाल हैं. निर्देष कर मे षनौटियाल कहतेहैं-‘‘गाना जितना अच्छा है, उतना ही शानदार प्रस्तुति में हम सफल रहे.अक्षत ने जिस तरह से हमारे गाने पर काम किया, वह काबिले तारीफ है.हम एक बेहतरीन गाना लेकर आए हैं.’’

प्रियंका और निक ने की ऑस्कार अवार्ड 2021 कि नॉमिनेशन्स, देखें लिस्ट

हर साल ऑस्कार अवार्ड की घोषणा फरवरी के महीने में कि जाती है लेकिन इस बार महामारी के कारण देर से की जा रही है. इस साल 93वें ऑस्कॉर अवार्ड्स की घोषणा प्रियंका चोपड़ा और निक जोनस ने किया. दोनों की ऑउटफिट की बात करें तो प्रियंका ब्लू रंग की गॉउन में खूबसूरत नजर आ रही थी.

वहीं निक भी गोल्डन गॉउन में किसी से कम नहीं लग रहे थें. ऑस्कार अवार्ड को दुनिया का सबसे बेहतर अवार्ड माना जाता है. नॉमिनेशन्स की बात करें तो इस लिस्ट में सपोर्टिंग एक्टर, सपोर्टिंग एक्ट्रेस के साथ अडॉप्टे़ड स्क्रीनप्ले , कॉस्टयूम डिजाइन और एनिमेटेड शॉर्ट फिल्म और लाइव शॉर्ट फिल्म शामिल है.

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हर साल इस अवार्ड कि घोषणा के बाद से ही लोग कयास लगाने शुरू कर देते हैं कि कौन सी फिल्म को ऑस्कार मिलने वाला है तथी कौन सी फिल्म के किस हीरो का नाम इस लिस्ट में शामिल है.

देश के तमाम जगहों से लोग इस अवार्ड सेरोमनी में शामिल होने के लिए आते हैं. बता दें इस बाक निक जोनस और प्रियंका चोपड़ा ने इस अवार्ड का नॉमिनेशन्स की घोषणा लंदन में किया है.

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आपको बता दें कि ऑस्कार अवार्ड सेरोमनी इस साल 25 अप्रैल 2021 को रखी गई है. जिसकी तैयारी अभी से शुरू हो गई है. ऑस्कार के लिए लोग अभी से इंतजार में बैठे हुए हैं. तो वहीं कुछ लोग अवार्ड कार्यक्रम को लेकर कुछ ज्यादा ही उत्साहित है. ऑस्कार एक ऐसा अवार्ड है जिसे मिलने के बाद किसी भी अभिनेता और अभिनेत्री का कैरियर सफल हो जाता है.

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खैर देखते हैं इस साल किसे मिलता है यह अवार्ड कौन -कौन होगा इस अवार्ड का अहम हिस्सा .

Ayushmann Khurrana ने शादी के 20 वीं सालगिरह पर पत्नी ताहिरा को दी बधाई

फिल्मी दुनिया के वो अभिनेता जिन्होंने अपने दम पर अपनी पहचान बनाई है. साथ ही फैंस के बीच में भी खास जगह बनाई है. हम बात कर रहे हैं आयुष्मान खुराना की . वह जितने अपने काम को लेकर गंभीर हैं उतना ही वह अपने निजी जीवन को लेकर भी चर्चा में बने रहते हैं.

दरअसल, आयुष्मान खुराना और उनकी पत्नी ताहिरा कश्यप के शादी को 20 साल पूरे हो चुके हैं. इस खास मौके पर आयुष्मान ने अपनी पत्नी के साथ खास पोस्ट शेयर किया है. इस पोस्ट पर आयुष्मान ने प्यार लुटाया है.

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आयुष्मान ने ताहिरा की तस्वीर को शेयर करते हुए लिखा है कि ये लड़की जिम्मेदार है, जिस वजह से मेरे 12वीं में अच्छे अंक नहीं आ सके. उन्होंने बताया कि हमने कैमेस्ट्री के इग्जाम से पहले एक -दूसरे को डेट करने की तैयारी कि थी. आगे उन्होंने कहा पीएमटी से लेकर सीइटी मेरे रिजल्ट बेहद ज्यादा बेकार थें, जिस वजह , थैक्यू माहिरा डॉक्टर न बन पाने का कारण बनना.

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उन्होंने इस खूबसूरत से पोस्ट को लिखकर अपनी पत्नी को शादी 20वी सालगिरह की बधाई दी. इससे पता चलता है कि दोनों पति -पत्नी एक-दूसरे को कितना ज्यादा प्यार करते हैं.

आपको बता दें कि आयुष्मान बॉलीवुड के उन उम्दा कलाकारों में से एक हैं. जो बॉलीवुड में अपने एक्टिंग के दम पर अपना नाम बनाया है. वर्कफ्रंट की बात करें तो वह जल्द ही वानी कपूर के साथ नजर आने वाले हैं.

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वहीं अपनी फैमली के साथ भी आयुष्मान खुराना वक्त बीताते नजर आते रहते हैं. आयुष्मान की पत्नी और बच्चें दोनों हर वक्त उन्हें सपोर्ट करते नजर आते रहते हैं.

आलिया : परवेज अचानक अब्बू का दुकान संभालने लगा-भाग 1

रहमान का नाम पूरे रैनावारी इलाके में मशहूर था. पीढ़ी दर पीढ़ी उस का दूध बेचने का काम था. उस के पिता व दादा की लोग आज भी मिसाल देते हैं. दूध में पानी मिलाना वे ठीक नहीं समझते थे. उस की दुकान का दही मानो मलाईयुक्त मक्खन हो. रहमान नमाजी था, पांचों वक्त की नमाज पढ़ता. सब से दुआसलाम करता था.

रहमान की आमदनी ज्यादा न थी. बस, रोजीरोटी ठीकठाक चल रही थी. उस के 2 बेटे, 3 बेटियां थीं. वह सभी को पढ़ाना चाहता था. रहमान को एहसास हो गया था कि आज के जमाने में दोनों बेटों में से कोई भी उस का हाथ नहीं थामेगा, उस का कारोबार उसी के साथ खत्म हो जाएगा. बड़ा बेटा परवेज यों तो पढ़नेलिखने में तेज दिमाग था लेकिन अमीर लड़कों की सोहबत के कारण बिगड़ने लगा था. कभीकभार जब भी दुकान पर आता, मौका मिलते ही गल्ले से पैसे साफ कर देता.

पहले रहमान ने सोचा कि परवेज ऐसा नहीं कर सकता. फिर एक दिन परीक्षा लेने के लिए उस ने कालेज से आते वक्त परवेज को बुलाया और कहा, ‘‘बेटे, जरा दुकान देखना, मैं सामने शाहमीरी के यहां से हिसाब कर के आता हूं.’’

पहले तो परवेज हैरान हुआ कि आज अचानक अब्बू दुकान पर उसे बैठा कर क्यों जा रहे हैं. लेकिन फिर उस ने इस खयाल को हवा में उड़ा दिया और फटाफट गल्ले से हजार रुपए निकाल लिए और दुकान के बाहर कुरसी पर बैठ गया.

अब्बू को आता देख कर फटाफट जाने के लिए उठ खड़ा हुआ और फिर चला गया.

रहमान भी जल्दी से देखने के लिए गल्ला खोल कर पैसे गिनने लगा, हजार रुपए कम देख कर उस को ठेस लगी कि उस का बेटा चोरी करने लगा है.

रहमान बुझे कदमों से रात को जब घर में घुसा, उस का चेहरा देखते ही पत्नी सलमा बोली, ‘‘क्या बात है, चेहरा क्यों उदास है?’’

‘‘कुछ नहीं.’’

‘‘अरे, कुछ तो है. बताओ न, क्या बात है?’’

रहमान खामोश ही रहा. वह अंदर ही अंदर सोचता रहा कि कैसे परवेज को ठीक करे.

समय बीतता गया और परवेज का दुकान में आनाजाना जारी रहा. लेकिन अब रहमान ने गल्ले में ताला लगा दिया था. ताला देख कर परवेज चिढ़ जाता.

तभी एक दिन जमाते इसलामी वाले आए और एक बेटे को मांगने लगे. रहमान उन की मांग को सुन कर हैरान हो गया. वह फैसला ही नहीं कर पा रहा था कि अपने बेटे को धर्म के इन ठेकेदारों के हवाले करे कि नहीं.

पिछले कई महीनों से घाटी में कुछ हरकतें हो रही थीं. जिहाद के नाम पर जुलूस, नारेबाजी रोज की बातें हो गई थीं. कई जवान लड़के घाटी से कई महीनों के लिए गायब हो जाते, मांबाप उन्हें मुजाहिद का नाम दे देते और यही कहते कि उन्होंने अपना पुत्र जिहाद के लिए दे दिया. कई लड़के पाकिस्तानी इलाकों में ट्रेनिंग ले कर वापस आते, पैसों की चमक देख कर वे कुछ भी करने को तैयार रहते.

रहमान रोज रात में सब बच्चों को देख कर अल्लाह का शुक्रिया अदा करता, हमेशा दिल में खटका रहता कि कहीं उस के द्वार पर फिर कोई उस का बेटा मांगने न आ जाए.

आखिर कब तक रहमान बचा रहता, आज अचानक दुकान पर जब मुजाहिरों को आते देखा तो सिट्टीपिट्टी गुम हो गई. दबी जबान में रहमान ने अनुरोध किया, ‘‘यहीं का कोई काम दे दो, बच्चे की पढ़ाई खराब हो जाएगी.’’

यूसुफ मौलवी ने कहा, ‘‘आखिर पढ़ कर पैसे ही कमाना है. हम भी इसे टे्रनिंग देंगे. रहा पैसों का सवाल, वे तो घर में इतने आएंगे कि तुम यह दुकान बदल कर  डेरी खोल लेना.’’

रहमान ने बुझे मन से हामी भर ली. अगले माह परवेज का निकाह हो जाने के बाद उस ने उसे ले जाने की बात कही.

अगले माह परवेज का निकाह हो गया.

शमीम दुलहन बन कर घर आ गई. शमीम चांद का टुकड़ा थी, उस का व्यवहार काफी मिलनसार था. कुछ ही दिनों में वह सब की आंखों का तारा बन गई. परवेज तो नजर बचाते ही कमरे में भाग जाता, रहमान देखदेख कर खुश होता लेकिन यूसुफ मौलवी की दी तारीख याद कर दुखी भी होता.

आखिरकार, वह दिन भी आ गया और परवेज को मुजाहिर बाजेगाजे के साथ ले गए.

कई दिनों तक घर में उदासी छाई रही. शमीम घर का सारा काम करती, सब की खिदमत करती. कभीकभार परवेज का फोन आता, सब के दिल को थोड़ी तसल्ली होती. एक दिन यूसुफ मौलवी ने एक व्यक्ति के जरिए कुछ पैसे घर भिजवाए. जाने क्यों रहमान को पैसे पा कर भी सुकून नहीं मिल रहा था, उसे लग रहा था कि जैसे हाथ पर पैसे नहीं अंगार रखे हों.

रहमान ने सलामदुआ कर मौलवी यूसुफ के व्यक्ति को विदा किया. देखतेदेखते 6 महीने बीत गए. एक रात परवेज वापस आया. उस का व्यक्तित्व पूरी तरह बदल चुका था. एके 47 उस के पास थी और बैग में नोटों की गड्डी.

रहमान ने किसी चीज की ओर ध्यान न दिया. वह सिर्फ अपने बेटे को सलामत देख कर खुश हो रहा था. उस की खुशी का तब ठिकाना न रहा जब उस ने सुना कि वह दादा बनने वाला है. वक्तबेवक्त परवेज कहीं जाता और कभी मीटिंग तो कभी ‘उन के’ द्वारा निर्देशित काम को अंजाम दे कर लौटता.

वक्त के साथसाथ घर की आर्थिक स्थिति भी बदलने लगी. परवेज का कमरा आधुनिक आरामदायक चीजों से सज गया. रहमान अपनी वही दूध की दुकान चला रहा था. कई बार परवेज ने उस दुकान को डेरी बनाने के लिए कहा लेकिन रहमान हमेशा टाल जाता. जाने क्यों जितना वह पहले चैन और सुकून से रहता था उतना ही अब वह हमेशा अशांत रहता. उसे लगता पता नहीं कब, क्या होगा. उसे अपनी 3 बेटियों की भी चिंता लगी रहती.

आलिया : परवेज अचानक अब्बू का दुकान संभालने लगा-भाग 3

वक्त गुजरता गया. लोगों से कभी भरी रहने वाली कश्मीर घाटी लगभग अब सूनी सी हो गई थी. कोई कभीकभार ही जम्मू से ट्रक ले कर अपना सामान लेने आता था. अमीर मुसलिम घरानों ने भी अपनी बहूबेटियां महफूज जगहों पर भेज दी थीं. सिर्फ गरीब और मध्यवर्गीय परिवार ही इस आतंकवाद की आग को झेल रहे थे.

एक रात कई मुजाहिद रहमान के घर में ठहरे थे. सलमा ने खाना परोसा. उन में से एक को तन की भूख सताने लगी. उसे मालूम था कि परवेज की बेवा यहीं रहती है. बंदूक की नोक पर उस ने शमीम को हासिल कर लिया. सब के सामने उस ने शमीम के तन को तारतार कर दिया. रहमान कुछ न कर सका. सलमा छाती पीटपीट कर रोती रही. लेकिन वह मुजाहिद टस से मस न हुआ, तन की भूख मिटा कर ही उठा. शमीम अधमरी कितनी ही देर तक यों ही पड़ी रही.

रहमान खुदकुशी करना चाहता था पर बेटी आलिया का सहमा, डरा चेहरा देख कर रुक गया. शमीम की बिखरी हालत देख कर उसे समझ ही नहीं आ रहा था कि वह क्या करे. कई दिनों तक वह दुकान भी न जा सका. सब पूछते तो वह क्या कहता कि मेरी आंखों के आगे बहू की अस्मत को एक मुजाहिद ने तारतार कर दिया और मैं कुछ न कर सका. लेकिन गरीब कितने दिन दुकान बंद रखता, मजबूर हो कर उसे दुकान पर जाना ही पड़ा. उसे अब अपनी जिंदगी जिंदा लाश सी लगती. हर वक्त उसे घर की फिक्र रहती.

रहमान कई बार सोचता कि वह भी परिवार को ले कर घाटी से निकल जाए लेकिन गरीबी उस के आड़े आ जाती. फिर उस ने कश्मीर में बस के सिवा कुछ न देखा था. रेलगाड़ी पर जाना तो उस के लिए अजूबा था. कभी सोचता कि सब को जहर दे दे और खुद भी खा ले पर हिम्मत न पड़ती.

अब उसे आलिया की फिक्र रहती. रातदिन उसे उस के रिश्ते की फिक्र रहती. उस की बहन एक दिन आलिया का हाथ मांगने आ गई. रहमान को मुंहमांगी मुराद मिल गई. उस ने फौरन हां कर दी,

और बहुत जल्द उस के निकाह का दिन निकाला.

घर में तैयारियां होने लगीं. शमीम पूरी तरह से शादी की तैयारियों में जुट गई. बुझीबुझी मरियल सी शमीम एक लाश बन कर सिर्फ आरिफ के लिए जी रही थी. उस भयानक हादसे के बाद सलमा और रहमान कई दिनों तक उस से आंखें न मिला सके. लेकिन शमीम ने एक दिन सब को बिठा कर कहा, ‘‘आप सब क्यों नजरें चुरा रहे हैं. यों भी मेरा जीवन अब बेकार है. मैं सिर्फ आरिफ के लिए जी रही हूं. ये तो अच्छा हुआ कि उस ने सिर्फ मुझे दागदार बनाया. मैं तो खुद बाहर आई थी क्योंकि आलिया मेरे साथ ही सो रही थी. मैं नहीं चाहती थी दरिंदे की नजर इस पर पड़े. इसलिए आप अपने को दोषी न मानें, मैं खुद बाहर आई थी.’’

रहमान और सलमा यह सुन कर हैरान रह गए. उस के बाद शमीम से उन का आमनासामना होता. उन की नजरों में वह आज भी पाकसाफ थी. हर तरह से वे कोशिश करते कि शमीम का दुख बांट सकें. शहर में रोज ही बम धमाके होते, रौकेट लौंचर चलते. कभी पुलिस गोलियां चलाती तो कभी मुजाहिद. कभीकभी शहर में मुजाहिदों के जुलूस भी निकलते जिन में बहुत लोग होते, हालांकि उतनी तो अब आबादी न बची थी पर पड़ोसी इलाकों से लोग आते और दहशतगर्दी कर के वापस चले जाते.

इधर, हफ्तेभर से शमीम को तेज बुखार था. रहमान ने कई डाक्टरों को दिखाया पर अभी तक खास आराम नहीं आ रहा था. सिरदर्द के मारे उस का बुरा हाल था. तभी पड़ोस की शाहिदा बानो ने कहा कि पंचरत्न तेल से मालिश कर दो. आलिया ने जैसे ही सुना, वह दौड़ कर दवा वाले की दुकान भागी. तेल ले कर वह आ ही रही थी कि उस के पास एक जीप रुकी और कुछ मुजाहिदों ने उसे जबरदस्ती उठा कर जीप में ठूंस दिया. वह रोतीचिल्लाती रही पर जीप दौड़ती रही. कुछ पल के बाद रुकी और आलिया को जिहादी घसीटते हुए एक मकान के अंदर ले गए और चिल्ला कर खुशी से बोले, ‘‘शाह साहब, देखिए, आप के लिए क्या गदराया मासूम माल लाया हूं. खुशियां मनाओ, मौज करो. शाह साहब, तेल इस के हाथ में है, काम आएगा.’’

वे ठहाके मार कर हंसने लगे और ‘हम भी कुछ ले आते हैं’ कह कर बाहर चले गए.

आलिया की नजर ज्यों ही सामने शाह साहब पर पड़ी, वह भौचक्की रह गई.

सामने अपने भाई शब्बीर को देख कर वह बिफर पड़ी, ‘‘आओ, ऐश करो, गौर से देखो, मैं तुम्हारी अपनी बहन हूं. इज्जत लूटना चाहते हो, आओ, मैं खुद कपड़े उतारती हूं.’’

शब्बीर ने हाथ पकड़ कर उस के गाल पर थप्पड़ मारा, ‘‘आलिया, पीछे के दरवाजे से भाग जाओ.’’

‘‘क्यों, मुझे देख कर खून क्यों ठंडा पड़ गया? किसी न किसी को तो भोगोगे ही, तुम्हीं ने अपने इन लोगों को भेजा था.’’

‘‘आलिया, खुदा के लिए खामोश हो जाओ. मैं ने तुम को लाने के लिए नहीं कहा था. आलिया, तुम्हें अम्मीअब्बू का वास्ता, भाग जाओ.’’

उसी पल आलिया को शमीम की तबीयत की याद आ गई, वह पागलों की तरह बेतहाशा घर की ओर भागने लगी. रास्ते उसे ठीक से याद न थे. उन सुनसान सड़कों पर गहरा अंधेरा छाया था. पागलों की तरह वह दौड़ रही थी तभी उसे पीछे से किसी गाड़ी की रोशनी दिखाई दी. वह वहीं रुक गई और हाथ दे कर रोकने लगी.

गाड़ी रुकी, उस में शब्बीर था. उस ने आलिया को गाड़ी में बिठाया और उसे घर पहुंचाया. घर के बाहर रहमान और सलमा परेशान खड़े थे. गाड़ी से उतरती आलिया और शब्बीर को देख कर रहमान ठिठका. उस के कुछ कहने से पहले ही शब्बीर ने अब्बू से कहा, ‘‘रात में इसे अकेले कहां भेजा था. निकाह तक इसे बाहर मत आने देना.’’

रहमान सुन कर हैरान था, ‘‘क्या तुम्हें मालूम है कि इस का निकाह होने वाला है?’’

‘‘हां, मौलवी साहब ने खबर भेजी थी. इसलिए मैं आज यहां आया हूं.’’

आलिया को मां के हवाले कर शब्बीर जाने लगा, जातेजाते बहन को गले लगा कर कान में फुसफुसाने लगा, ‘मुझे माफ करना.’

शब्बीर जीप में बैठ कर चला गया. रहमान ने भी उसे रुकने को न कहा.

सभी घर वालों ने आलिया से पूछा, ‘‘आखिर कहां चली गई थी, शब्बीर कहां मिल गया?’’

आलिया 2 मिनट रुक कर बोली, ‘‘अब्बू, दवाई वाले की दुकान से निकल कर मैं आ ही रही थी कि भाईजान उस गली पर मिल गए. आप सब का हाल पूछ रहे थे, इसीलिए देर हो गई.’’

दरअसल, आलिया हकीकत बयान कर घर वालों को नया सदमा नहीं देना चाहती थी.

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