धर्म का काम धर्म के दुकानदारों का पेट भरना है, न कि आम लोगों को सही तरह जीवन जीने की राह सुझाना. भक्ति को भगवान से कुछ पाने का रास्ता न बना कर हमारे प्रवचनकर्ता भक्ति को ही अंतिम लक्ष्य बनाने में बेहद सफल हैं.
एक प्रवचन में बताया जाता है कि भगवान का खुद कहना है कि उन्हें पाने के लिए सब से पहले ??.............?? यानी ब्राह्मïणों के चरणों में बिछ जाएं. वैराग्य पैदा करें यानी जो कमायाधमाया है वह किसी को बांट दें और वह पाने वाला कोई और नहीं, बाह्मïण देवता है. वैराग्य से तुम में धर्म के प्रति प्रेम पैदा होगा, भगवानों की बेसिरपैर की लीलाओं में विश्वास हो जाएगा और उन के कामुक व्यवहार को अनदेखा कर के तुम भगवान के एजेंटों को देते रहोगे.
ये लोग बराबर कहते हैं कि राजनीतिक दल समाप्त हों और वैदिक कार्यक्रम लागू हो, साथ ही, मनुस्मृति की जातिव्यवस्था को संसद, विधानमंडलों, नगर निकायों को हटा कर लागू किया जाए. अर्थात, सारा राजपाठ भगवा तिलकधारियों को सौंप दो, देश का प्रमुख कोई शंकराचार्य हो.
अङ्क्षहदुओं के प्रति विद्वेष भरने को भक्ति के साथ जोड़ कर देशभर में प्रवचनकर्ता देश व समाज की चूलें हिलाने में लगे हैं और उन्हें बहके लोगों का खास समर्थन मिल रहा है. ये भक्ति प्रवाचक अङ्क्षहदुओं को ङ्क्षहदू बस्तियों में रहने देने को गैरधाॢमक बताने लगे हैं. उन का ऐसा कहना खतरनाक है और देश का विभाजन करने वाला भी.
स्वर्गनर्क की कल्पना के जाल बुन कर आम लोगों को बेवकूफ बनाना आज ज्यादा आसान हो गया है क्योंकि अब टीवी, वैबसाइट, ऐप, यूट्यूब, फेसबुक, ट्विटर भी उपलब्ध हैं जिन का इस्तेमाल धर्म के दुकानदार भरपूर कर रहे हैं. उन के प्रवचनों में कहीं भी अनुशासन की बात नहीं होती, नई सोच की नहीं होती, बचत की नहीं होती, पर्यावरण की नहीं होती, भ्रष्टाचार की नहीं होती, उत्पादकता की नहीं होती, औरतों के प्रति बढ़ते अत्याचारों की नहीं होती. वे सभी दानपुण्य की बात करते हैं.