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Barrister Babu : बोंदिता को मौत के कुंए में धकेल देंगी ठाकू मां, जानें क्या होगा अनिरुद्ध  का रिएक्शन

कलर्स टीवी का जाना माना सीरियल बैरिस्टर बाबू में बोंदिता अनिरुद्ध ने पति- पत्नी बनकर इस सफर की शुरुआत की थी, लेकिन बाल विवाह पर रोक लगने से बोंदिता अनिरुद्ध को अलग होना पड़ा.

लेकिन आज भी अनिरुद्ध चाहता है कि वह उसे पढ़ाए लिखाए उसे जीवन में आगे बढ़ाए जिस वजह से वह वेश बदलकर बोंदिता से मिलने चला जाता है.

अनिरुद्ध को यह पता होता है कि ठाकु मां कही न कही बोंदिता की जिंदगी बर्बाद कर देना चाहती हैं इसलिए वह ऐसा कर रही हैंं. अभी तक इस सीरियल में आपने देखा होगा कि ठाकु मां बोंदिता की शादी एक बुढ़े आदमी से करवाना चाहती हैं.

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बोंदिता की मां ठाकु मां को लाख कोशिश करती है रोकने के लिए लेकिन वह रुकती नहीं हैं. जिसके बाद जब अनिरुद्ध उसे बचाने आता है तो ठाकुर मां उसे गुड़े भेजकर मारवाती है.

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और बोंदिता को बेहोश करके रख देती हैं.  अनिरुद्ध मंदिर में जाकर जोर-जोर से घंटी बजाने लगता है, जिसके बाद से बोंदिता को होश आ जाता है. जिसके बाद से बोंदिता सभी को शादी शुदा होने का सच बता देती है.

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अब पंडित सच्चाई जानने के बाद कहता है कि उसे जंगल में जाकर शुद्ध होना होगा, अगर बच गई जंगल में तो शद्ध हो जाएगी और नहीं बची तो पूर्व जन्म होगा.

क्या बोंदिता और अनिरद्ध एक हो पाएंगे आगे चलकर , अब इसका खलासा आगे होगा. खबर ये भी है कि जल्द ही सीरियल में लीप गैप लिया जाएगा और बड़ी बोंदिता आ जाएगी.

 

Khatron Ke Khiladi 11 : स्टंट के दौरान घायल हुए Varun Sood, हॉस्पिटल में हुए एडमिट

टीवी इंडस्ट्री का सबसे मशहूर शो खतरों के खिलाड़ी 11 की शूटिंग इन दिनों केपटाउन में चल रही है. इस शो के सभी दर्शक इस शो के टेलीकास्ट होने का इंतजार कर रहे हैं. फैंस को इस शो को देखना काफी ज्यादा अच्छा लगता है. इसमें बाकी सभी शोज से कुछ अलग दिखाया जाता है.

खबर है कि खतरों के खिलाड़ी के कंटेस्टेंट वरुण सूद स्टंट के दौरान गंभीर रूप से घायल हो गए हैं. जिसके बाद उन्हें तुरंत अस्पताल ले जाया गया. रिपोर्ट में बताया गया है कि अभी उनकी हालत पहले से ठीक है.

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खबर ये भी है कि वह ठीक होकर वापस शूटिंग पर आ चुके हैं. वरुण के कलाई पर चोट लगी थी लेकिन ये अच्छी बात है कि उन्हें कोई फ्रैक्चर नहीं हुआ है.

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बीते दिनों यह भी खबर आ रही थी कि शो से राहुल वैद्या का पत्ता कट चुका है. अनुष्का सेन का कोरोना रिपोर्ट पॉजिटीव आया है जिसके बाद से वह सेल्फ आइसोलेशन में हैं. अनुष्का सेन के इस खबर के बाद से फैंस को लग रहा था कि शो पर खतरा मंडरा सकता है लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं हुआ . सभी चीजें नॉर्मल है. लोग एक-दूसरे का ख्याल रखते हुए अपने काम को आगे बढ़ा रहे हैंं.

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इस शो का प्रोमो रिलीज हो चुका है जिसके बाद से इस शो को देखने के लिए फैंस अभी से बहुत ज्यादा एक्साइटेड हैं.

अब देखना यह है कि इस शो को फैस पिछले सभी एपिसोड़ जितना प्यार दे पाते हैं या नहीं, इस शो में कई सारे सेलेब्स ज्वाइन किए  हैं.

 

संपादकीय

तृणमूल कांग्रेस के गुंडों के भारतीय जनता पार्टी के समर्थकों पर हो रहे रेपो, मारपीट, धमकाने की शिकायतें बहुत मजेदार हैं. अभी 2 मई से पहले तो पुराना पूरा बंगाल भाजपामयी हो चुका था. हर गली में भाजपा का कमल खिल चुका था. ‘दीदी…ओ…दीदी’ कह कर नरेंद्र मोदी खुद दोहराते रहे ‘2 मई दीदी गई,’  अब 2 मई के बाद क्या भाजपा के समर्थकों की हालत इतनी पतली हो गई है कि वे अपने मेंबरों की जान और आन नहीं बचा सकते और कभी सैंट्रल फौर्स मांगते हैं, कभी गवर्नर से गुहार लगाते हैं, कभी सुप्रीम कोर्ट में जाते हैं.

यह तो वे लोग करते हैं जो बहुत अल्पमत हो, 2-3′ आबादी के हों, कमजोर हों, एकजुट न हों, क्या भारती जनता पार्टी पहले सिर्फ एक गुब्बारा थी जो 2 मई को फट गया? यदि ऐसा है तो 38-39 फीसदी वोट जो उन्हें पड़ा था शायद वह भी फर्जी था.

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जिस तरह से रोते भाजपाई दिख रहे हैं उस तरह तो देश के मुसलमान भी नहीं रोते चाहे उन्हें सरेआम डंडों से पीटा जाएं, उन की दाढ़ी काट ली जाए और इतनी जुर्रत हो कि इस की वीडियो बना कर इसे राम के रावण पर विजयी होने की तरह सोशल मीडिया पर डाल दिया जाए.

तृणमूल कांग्रेस ने पहले वामपंथियों को हराया था तो वो तो ऐसे नहीं रोए थे. वामपंथियों ने उस से पहले पश्चिमी बंगाल में कांग्रेसियों को हराया था तब भी कांग्रेसी रोए नहीं थे. यह अजीब बात है जो पार्टी हर घर की है, हर ङ्क्षहदू की है, हर सभ्य जने की है, वह रोतीरोती कभी इस दरवाजे पर जाए, कभी उस दरवाजे पर.

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अगर पश्चिमी बंगाल में यह हाल है तो और कहीं हारने के बाद भी क्या यही रूयापा मचाया जाएगा? फिर तो डर है कि एक रोज भाजपा कार्यालयों में झंडों की जगह रुमाल ज्यादा दिखेंगे. मजाक छोडि़ए, असल में भाजपा के नेता भाभी तर्क समझ नहीं पा रहे कि वे हारे क्यों. ऐसा 1971 में भी हुआ था जब बलराज…..जो भारतीय जनसंघ के अध्यक्ष थे, अपने सहयोगियों के साथ बुरी तरह हारे थे. वे महीनों राग अलापते रहे थे कि बैलट पेपर या तो बदले गए हैं या फिर मोहर की स्याही में कोई जादू का कैमीकल था.

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असल में भाजपा वाले झूठझूठ सुनसुन कर इतने पक जाते हैं कि सच उन्हें सहन ही नहीं होता. वे अपने खुद के गढ़े झूठ को हमेशा सच मान लेते हैं. जैसे आज हर मंदिर ने बोर्ड लगा लिया है प्राचीन मंदिर मानो ये पौराणिक युग हो. बोर्ड लगते ही सब भक्त मानने लगते हैं कि यह तो हमेशा का सच है. पश्चिमी बंगाल में उन्हें झूठ इतना पिलाया गया कि वे 2 मई को नाचने की तैयारी कर रहे थे कि कहर टूट पड़ा. अब जब बचीखुची पार्टी भी तितरबितर हो रही है तो रोना आएगा ही.

काला साया : कब तक हिन्दू मुसलमान के नाम पर लड़ते रहेंगे हम

मेरा बचपन और युवावस्था का आरंभ लखनऊ में बीता, नवाबों के शहर की गंगाजमुनी तहजीब में. स्कूलकालेज में बिताए चुलबुले दिन, प्यारी सहेलियां अलका, मुकुल, लता, यास्मीन और तबस्सुम. हम सब मिल कर खूब मस्ती करते. साथसाथ हंसना, खेलना, खानापीना. कोई भेदभाव नहीं, हिंदूमुसलिम का भेदभाव कभी जाना ही नहीं.

18 वर्ष की होते ही मेरी शादी हो गई. मेरे पति टाटा नगर में इंजीनियर थे. सो, उन के साथ जमशेदपुर आ गई. जमशेदपुर साफसुथरा, हराभरा, चमकती सड़कों, कारखानों, मजदूरों, हर धर्म हर भाषा के लोगों और कालोनियों का शहर है. 24 घंटे बिजली, साफ पानी और यहां का साफ वातावरण मुझे भा गया. यहां का रहनसहन लखनऊ से भिन्न था. लोगों में फैशन की चमक नहीं थी, सादगी थी. कुछकुछ बंगाली संस्कृति की झलक थी.

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एक बात बड़ी अजीब लगी यहां, मुसलिम और हिंदू बस्तियां अलगअलग थीं. इस का कारण था 1964 का दंगा, जिस के बाद डर के कारण मुसलमानों ने अपनी बस्तियां बनाईं. आजाद नगर एक बड़ी मुसलिम बस्ती है. हिंदू बस्तियां बनीं. शहर टाटा कंपनी के लिए बसाया गया. यहां काम करने वालों के लिए कालोनियां बनाई गई हैं. परंतु मुसलिम दंगों के डर से कालोनियों में कम रहते हैं.

सिनियोरिटी पौइंट्स पर मकान मिलता है. मुसलिम, कुछ इलाके हैं जहां रहना चाहते हैं. सो, वहां मकान के पौइंट्स बहुत हाई हो जाते हैं. अधिकतर लोगों को बस्तियों में ही रहना पड़ता है. आजाद बस्ती मुझे पसंद नहीं आई, पतली गलियां, खुली नालियां, कूड़े के ढेर, मच्छर, कुछ गांव का सा माहौल, कुछ खपरैल के और कुछ पक्की छत वाले घर. हम लोगों ने शहर के साक्ची इलाके में किराए का घर ले लिया. यह अच्छी कालोनी थी. अड़ोसपड़ोस अच्छा था. दाएं दक्षिण भारतीय, बांए पंजाबी, सामने बंगाली यानी पूरा भारत था.

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सभी से दोस्ती हो गई. पंजाबी परिवार से कुछ ज्यादा. उन के घर में चाचाचाची और उन के बेटीबेटे रहते थे. शाम को हम लोग लौन में उन के लड़केलड़की और महल्ले के लोगों के साथ बैडमिंटन खेलते. मेरे पति के औफिस के दोस्तों के घर मेरा जानाआना रहता. होलीदीवाली और ईद साथ ही मानते. बहुत अच्छा समय बीतता.

डिलीवरी के समय मैं लखनऊ गई. मेरे यहां जुड़वां बेटियां हुईं. लखनऊ में सब ने कहा कि एक बच्ची यहीं रहने दो. 2 बच्चे कैसे पालोगी? सब जानते थे कि मैं घरगृहस्थी के मामले में कमजोर हूं. पर मैं दोनों को ले कर जमशेदपुर आ गई. यहां एक 70 साल की बूढ़ी आया मिल गईं जिन्हें हम बूआ कहते थे. वे और मैं बच्चे संभालते और काम वाली घर का काम कर देती.

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बच्चियां अब बैठने लगी थीं. यह बात 1979 की है. अचानक शहर का माहौल बिगड़ने लगा. रामनवमी आने वाली थी. कट्टरपंथियों ने सभा की, भड़काऊ भाषण दिए. उसी के बाद से शहर में अनकही सी घुटन शुरू हो गई. हर वर्ष जिस रास्ते से रामनवमी का जुलूस निकलता था उस से न निकल कर एक मसजिद के सामने से जुलूस निकालने की मांग की गई. प्रशासन राजी नहीं था. सद्भावना कमेटियां बनीं. कई मुसलिम आगे आए कि जिस रास्ते से चाहें, ले जाएं ताकि शांति बनी रहे. एक थे प्रोफैसर जकी अनवर. वे धरने पर बैठ गए कि जुलूस मसजिद के सामने से ले जाएं, हम साथ हैं. प्रशासन और हिंदुओं के बीच खींचातानी चलती रही. उस में दोनों ओर से भड़काने वाले प्रचार शुरू हो गए और दंगा होने की आशंका बढ़ गई.

हमारी पड़ोस वाली चाचीजी ने हम लोगों को समझाया, समय बड़ा खराब चल रहा है, जाने क्या हो? तुम लोग बच्चों के साथ आजाद नगर चले जाओ.

उन की बात सुन कर लगा, सच में कुछ गड़बड़ है. वे अनुभवी थीं, 1964 का दंगा देखे हुए थीं. अकसर दंगे के किस्से सुनाती थीं. हर नुक्कड़ पर रामनवमी के जुलूस को ले कर चर्चा होने लगी. शहर में तनाव बहुत बढ़ गया. दोनों ओर के दागी व संदिग्ध लोग पकड़े जाने लगे. सुबह होतेहोते कालोनी में जो 2-4 मुसलिम थे, सब अपने मित्रोंरिश्तेदारों के घर सुरक्षित जगह जा चुके थे. हम कहां जाएं? हमारा तो कोई रिश्तेदार नहीं, न किसी बस्ती में कोई दोस्त.

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लखनऊ के एक फर्नीचर वाले हमारे परिचित थे. एक बार उन के घर भी गए थे हम लोग. उन्हीं के घर चले गए. वहां हमारे जैसे कई परिवार थे. मुझे अब तक डर नहीं लगा था क्योंकि मैं ने कभी दंगा देखा नहीं था. सो, कल्पना भी नहीं कर पाई. यहां आ कर डर लगने लगा. सहमेसहमे चेहरे, रोते बच्चे. औरतेंबच्चे अंदर, मर्द बाहर.

बड़े आंगन वाला मकान, कई कमरे जिन में सब भाई रहते थे. उन सब भाइयों के रिश्तेदार और दोस्त यहां शरणार्थी थे. केवल इसी घर में नहीं, हर घर में यही हाल था. हम लोग जल्दी में कोई सामान नहीं लाए. बस, बच्चों के नैपी, कपड़े, टौवेल आदि एक झबिया में रख लिए थे. बच्चों के दूध बनाने का सामान रख लिया था. पर दूध का पाउडर खत्म हो गया था, यह ध्यान नहीं दिया. सोचा था, रामनवमी का झंडा निकल जाएगा तो शाम तक घर आ ही जाएंगे.

जिस मसजिद से जुलूस निकलना था, वह पास ही थी. सड़क के दूसरी ओर झुंड के झुंड सड़क तक जाते, हालात का जायजा लेने. बस्ती के अंदर आने वाले सभी रास्तों पर लोगों की भीड़. सड़क पर पुलिस का पहरा था.

झोपड़ा मसजिद के सामने से जुलूस निकल गया, यह खबर आई तो जान में जान आई. तभी खबर आई कि जुलूस मेन रोड पर मसजिद के सामने रुक गया है और पकड़े गए लोगों को छोड़ने की मांग की जा रही है. तभी हल्ला हुआ कि जुलूस पर किसी ने पत्थर फेंका है और दोनों ओर से मारपीट, पत्थर, गोली चल पड़ीं, पुलिस ने गोली चलाई.

लोग घायल हो कर आने लगे. डाक्टर के यहां जगह भर गई तो लोगों के बरामदों में मरहमपट्टी होने लगी.

हरहर महादेव और अल्लाहो अकबर के नारे गूंजने लगे. डर के मारे मेरे पैर कांपने लगे. मैं दोनों बच्चियों को अपने सीने से चिपकाए रोने लगी. लगता था भीड़ घर में घुस आएगी, बच्चे छीन लेगी, मेरे साथ क्या करेगी? मेरे पति को मार डालेगी, जाने क्याक्या बुरेबुरे खयाल आने लगे.

पुलिस फायरिंग और धरपकड़ पर जुलूस वापस हुआ. पूरे शहर में दंगे भड़क गए. जो लोग छिटपुट थे, वे मारे गए. घर लूटे और जलाए गए. लोगों को कैंपों में ले जाया गया. करीब के सिटी कालेज में कैंप लगा. जिन को निकाला जा सका, निकाल लिया गया, वरना मारे गए. सरकारी आंकड़ों के मुताबिक 108 लोग मारे गए. शायद इस से अधिक मरे हों. दुकाने लूटी गईं.

जकी अनवर, जो धरने पर बैठे थे कि जुलूस जिस रास्ते से चाहे जाए, हम साथ हैं, वे भी मारे गए. उन के घर में उन्हें काट कर उन के घर के कुएं में डाल दिया गया. एक एंबुलैंस में औरतोंबच्चों को भर कर कैंप ले जाया जा रहा था, रास्ते में हिंदू बस्ती में रोक कर जला दिया गया, कोई नहीं बचा. भारी त्रासदी. घरों में घुस कर मारा गया. धर्म के नाम पर लोगों को धर्म के रखवाले ऐसा भड़काते हैं कि अल्लाहभगवान का नाम ले कर एकदूसरे को मार देते हैं. इंसानियत कहां चली जाती है? जिसे देखा नहीं, उस के नाम पर जीतेजागते लोगों को मारा जाने लगता है.

जिन बच्चों ने वह दंगा देखा, उन के विकास में एक काला साया सदा उन के साथ रहेगा. कैसे किसी पर भरोसा करेंगे? जिन्होंने भुगता, वे कैसे भुलाएंगे? फिर और अलगअलग बस्तियां बनेंगी, खाई और गहरी होगी.

कर्फ्यू लग गया, घरघर तलाशी ली जाने लगी और जवान लड़के पकड़े जाने लगे. घरों में यदि कोयला तोड़ने का चापड़ भी मिला तो वह हथियार समझा गया.

दूसरे दिन यह हुआ कि यह घर, जिस में हम लोग थे, बहुत आगे था. अगर भीड़ आएगी तो पहले यहीं हमला हो सकता है. इसलिए औरतों और बच्चों को बस्ती में अंदर के घरों में भेज दिया जाए. हम लोग भी उस घरवालों के साथ उन के मिलने वालों के घर शरण लेने चल पड़े. वहां काफी लोग पहले से ही थे. बड़ा सा आंगन था. गाय, बकरी, मुरगी कुआं पूरा गांव का माहौल था. कमरे तो पहले ही भर गए थे, हम लोग बरामदे में चटाई डाल कर बैठ गए. पति हमें छोड़ कर जाने लगे तो मैं रो पड़ी. वे समझाने लगे, बस रात की बात है, कल तक सब ठीक हो जाएगा, फिर चलेंगे.

उस जमाने में मोबाइल तो था नहीं. उस घर में फोन भी नहीं था. अब हम दोनों अलग थे. रातभर हरहर महादेव और अल्लाहो अकबर के नारे लगते रहे. मैं डर के मारे कांपती रही. बच्चों का दूध समाप्त हो गया था. घर वालों ने एकएक रोटी सब को दी. बच्चों को पानी में डुबो कर रोटी खिलाई. इतने लोग कई दिनों से थे, सो राशन भी समाप्त हो रहा था. दंगे में धर्म के प्रति आस्था बढ़ जाती है, जिसे देखो नमाज पढ़ रहा या तस्बीह पढ़ रहा. मैं डर के मारे सब भूल गई, क्या पढ़ूं? अपने को इतना असहाय कभी नहीं पाया था. मन करता कैसे इस शहर से भाग कर लखनऊ चली जाऊं.

सुबह हुई, सारा दिन बीत गया, मेरे पति नहीं आए. मेरा रोरो कर बुरा हाल था. शहर से लुटेपिटे लोग आजाद नगर आने लगे और जो आता, दुखभरी कहानी सुनाता.

खाना बनना बंद हो गया. राशन खत्म हो गया. शहर से लाने का सवाल नहीं था. बस्ती में डिमांड इतनी थी कि राशन खत्म हो गया. कर्फ्यू लगा रहा, नारे लगते रहे. फिर दिन का कर्फ्यू कुछ देर के लिए खुलने लगा.

2 दिन हो गए, मेरे पति का कोई पता नहीं था. मैं ने रोरो कर अपना बुरा हाल कर लिया था. अस्पताल और थाने में कोई खबर नहीं थी. औरतें मुझे तसल्ली देने लगीं, जाने दो, अगर नहीं आए तो शहीद हुए, जन्नत में जाएंगे. यहां कितनों के शौहरबेटे मारे गए हैं, सब को देखो. मेरे आंसू सूख गए थे, निढाल हो गई थी.

क्या होगा मेरा? मेरे बच्चों का? कैसे लखनऊ जाऊंगी? लखनऊ से संपर्क नहीं हो पा रहा था. आज कर्फ्यू में 2 घंटे की ढील दी गई. मेरे पति आ गए. उन को देख कर इतनी खुशी, इतना हौसला आ गया जैसे कुछ हुआ ही नहीं. ये हमारे घर गए थे कुछ सामान लाने, स्थिति देखने, पर कर्फ्यू में फंस गए. चाची ने छिपा कर रखा था. फिर मौका देख कर जब कर्फ्यू हटा तब आ पाए.

एक लड़का 15 साल का होगा, कर्फ्यू खुलने पर अपनी मां से जिद कर के अपना घर देखने, नहाने चला गया, फिर नहीं आया. जिन पड़ोसियों को वह चाचा, अंकल कहता था, उन्होंने दौड़ादौड़ा कर मार डाला. लाश भी नहीं मिली. धर्म ने इतना अंधा बना दिया?

एक थे अहमद साहब. हमारे पीछे वाली लाइन में रहते थे. उन के बीवीबच्चे सुरक्षित बस्ती में चले गए. वे जिद कर के रह गए कि हमारे पड़ोसी बहुत अच्छे हैं, कुछ नहीं होगा. भीड़ ने मार दिया. पड़ोसी चाह कर भी कुछ न कर सके. हर दिन ऐसे ही समाचार आते. कुछ अफवाहें भी माहौल गरम रखतीं.

भारी जानमाल के नुकसान के बाद रैपिड ऐक्शन फोर्स आई और फ्लैगमार्च किया. लोगों में आत्मविश्वास आने लगा. कैंपों में सुविधाएं पहुंचाई गईं. पर हर जगह हाल बहुत बुरा था. टौयलेट एक, और लोग सौ. उलटी आ जाती थी. खाने की कमी. बच्चों को पानी में बिसकुट डुबो कर खिलाती. अगर किसी के पास कुछ खाने को आ जाता तो वे आसपास बैठी महिलाओं को देतीं. सब एकदूसरे के दुख में साझी थे. न कोई छोटा न बड़ा. कैंपों से लोग अपने गांवशहर जाने लगे. ट्रेनों में भीड़ बहुत हो गई. माहौल धीरेधीरे शांत होने लगा.

पता चला, साक्ची में, जिस घर में हम लोग रहते थे, वह भी जला दिया गया. मेरे पति देख कर आ गए. हम लोग बच गए. अगर चाची न होतीं तो हम लोग भी न बचते. आग शांत होने लगी, कब्रें सूखने लगीं. घर जल गए, लोग मर गए. किसी ने बेटा खोया, किसी ने बाप, कोई परिवार समाप्त हो गया.

जिन की दुकानें जलीं, रोजीरोटी गई. नौकरी वाले डर के मारे ड्यूटी नहीं जाते. रात की ड्यूटी वाले तो महीनों नहीं गए. उन का वेतन कटता. आर्थिक तंगी. बच्चों की किताबें जल गईं. बिना किताबों के बोर्ड परीक्षा दी. पढ़ाई का नुकसान. रोज कमानेखाने वालों की दिहाड़ी का नुकसान. सब से बड़ा नुकसान इंसानियत का हुआ. हिंदूमुसलिम दोनों का एकदूसरे से भरोसा उठ गया. आजाद नगर जैसी बस्तियां और बन गईं.

मेरी सुखद यादों पर एक काला साया पड़ गया. हम लोग किसी तरह लखनऊ आ गए. मगर कब तक लखनऊ में रहते, रोजीरोटी के कारण फिर वापस जमशेदपुर जाना पड़ा. इस बार शहर में नहीं, आजाद नगर बस्ती में किराए पर रहने लगे. गंदगी, मच्छर, लाइट का जाना, पानी का न आना, कुएं से पानी खींचना, सब के साथ ऐडजस्ट करना पड़ा. काश, यह धर्म न होता, सब इंसान होते, न हिंदू न मुसलमान.

धर्म और भ्रम में डूबा रामदेव का कोरोना इलाज- भाग 1

लेखक- भारत भूषण श्रीवास्तव और शैलेंद्र सिंह  

धंधा है चंगा, स्वामी है नंगा, जो जी गया, वह तर गया, मरे को लील गई गंगा, कोई न ले पंगा.

गुजराती लेखिका पारुल खक्कर की कविता ‘शव वाहिनी गंगा’ से प्रेरि  उपरोक्त पंक्तियां आज की कोविड की स्थिति को पूरी तरह से दर्शाती हैं. बात सितंबर 2020 से शुरू करते हैं जब मेरठ में एक लौकेट धड़ल्ले से बिक रहा था. चर्चा यह थी कि उस को पहनने से कोरोना वायरस पास नहीं फटकता और उस के 2 मीटर के दायरे में आए तो मर जाता है. मेरठ के खैरनगर इलाके में सर्जिकल आइटम बेचने वालों के पास आम और खास लोग इस चमत्कारी लौकेट को खरीदने टूटे पड़ रहे थे. चीन में बना यह लौकेट कई सरकारी अधिकारियों के गले में घड़ी के पैंडुलम की तरह लटका था. और तो और भाजपा सांसद राजेंद्र अग्रवाल ने भी इसे पहना था.

जब हल्ला ज्यादा मचने लगा तो इस लौकेट की जांच हुई. जांच में यह बात सामने आई कि इफरात से बिक रहे इन लौकेटों में एक कैमिकल क्लोरीनडाईऔक्साइड का पाउडर भरा गया है जो आमतौर पर पानी साफ करने में इस्तेमाल किया जाता है. तब आईएमए के एक पदाधिकारी ने बताया था, ‘कैमिकल बैक्टीरियानाशक है जिस से कोरोना वायरस नष्ट नहीं होता, उलटे, उस के इस तरह इस्तेमाल से खुजली, कफ और सेहत संबंधी दूसरी समस्याएं पैदा हो सकती हैं.’ मेरठ के मुख्य चिकित्सा अधिकारी डाक्टर राजकुमार ने भी इसे फ्रौड करार दिया था.

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गौरतलब है कि भाजपा सांसद राजेंद्र अग्रवाल ने एमएससी फिजिक्स से किया है लेकिन इस का संबंध उन की अंधविश्वासी मानसिकता से जोड़ा जाना फुजूल की बात होगी क्योंकि देश के जो स्वास्थ्य मंत्री हर्षवर्धन गोयल ईएनटी के विशेषज्ञ हैं वे भी विज्ञान को शायद ही मानते हैं. कम ही लोग जानते हैं कि वे आधे एलोपैथिक और आधे आयुर्वेदिक डाक्टर हैं जो एलोपैथी में नाममात्र का ही भरोसा करते हैं, बल्कि उन के आदर्श तो आयुर्वेद के वर्तमान पितामह बाबा रामदेव हैं.

जगहजगह कोरोना भगाने वाले टोनोटोटकों और आयुर्वेदिक दवाइयों का प्रचारप्रसार हो रहा है. यह वही आयुर्वेद है जो बवासीर और भगंदर से ले कर कैंसर जैसी बीमारी तक का शर्तिया इलाज करने का दावा करता है. कोरोना की आपदा को पैसा बनाने के अवसर में बदलने में नीमहकीमों और वैद्यों ने कोई चूक नहीं की. कोरोना से ठीक होने के नाम पर तबीयत से काढ़े बेचे गए. सैकड़ों तरह के इम्यूनिटी बूस्टर लौंच किए गए. पूजापाठ व यज्ञहवन के कारोबार से भी बनाने वालों ने लाखों रुपए बनाए.

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सब से ज्यादा चांदी काटी पतंजलि के कर्ताधर्ता योगगुरु के नाम से मशहूर कर दिए गए बाबा रामदेव ने, जिन्होंने एक ‘चमत्कारी’ दवा कोरोनिल पेश कर डाली. चीनी लौकेट और दूसरे उत्पादों की तरह कोरोनिल का भी कोई वैज्ञानिक या चिकित्सीय आधार नहीं है लेकिन इस के बाद भी ताबड़तोड़ प्रचार विज्ञापनों, अंधविश्वास की लहरों और सरकारी शह के दम पर 550 रुपए वाली यह किट खूब बिकी. इस का सेवन करने वाले बाद में जब अस्पतालों और एलोपैथी के डाक्टरों के चक्कर काटते नजर आए तो पोल खुलते देख बाबा न केवल ?ाल्ला उठे बल्कि लड़खड़ा भी उठे. इसी लड़खड़ाहट में उन्होंने एक नया फसाद खड़ा कर दिया.

बढ़ता बाजार

आयुर्वेद का बाजार दिनोंदिन बढ़ रहा है इसलिए नहीं कि यह फायदेमंद, विश्वसनीय या प्रामाणिक है बल्कि इसलिए कि इस में मंदिरों, पूजापाठ की सी छवि है और इस बाबत किसी की जवाबदेही जरूरी नहीं है. फुटपाथों पर खानदानी वैद्यों से ले कर पतंजलि जैसी खरबों के टर्नओवर वाली कंपनी में कोई फर्क नहीं है. सभी अपनेअपने स्तर पर लूट रहे हैं जैसे गली के कोने के मंदिर या तिरुपति मंदिर के पंडेपुजारी लूटते हैं.

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रामदेव धार्मिक अंधविश्वासों की होड़ बनाए रखने के लिए लगातार आयुर्वेद के बाजार को बढ़ाने के उपाय करते रहते हैं जो लोगों के रामकृष्ण वाले धर्म की पुष्टि करने का काम करता है. ये दोनों अंधविश्वास एकदूसरे के पूरक हैं और जनता को लूटते हैं.

कोरोनिल दवा विवादों में रहने के बाद भी 900 करोड़ रुपए का कारोबार कर गई. मजेदार बात यह है कि रामदेव को न किसी अस्पताल को बनाना पड़ा और न ही बैड व औक्सीजन की व्यवस्था करनी पड़ी. उन की तमाम दवाएं जड़ीबूटियों का घोल मात्र हैं. उन के पास न कोई प्रयोगशाला है, न कोई रिस्क, न ही घंटों का काम, उस पर दावा किया गया कि यह रिसर्च पर आधारित है. अगर रिसर्च पर आधारित है तो इस का अर्थ है कि इस का आधार चरक व सुश्रुत संहिता है ही नहीं बल्कि यह एलोपैथिक दवा है जो आयुर्वेद की तरह जम कर पैसा कमा रही है.

भारत में हैल्थ सैक्टर की सब से बड़ी कंपनी एलोपैथी में अपोलो हौस्पिटल है. इस की स्थापना 1993 में हुई थी. आज के समय में इस कंपनी का कारोबार 10,407 करोड़ रुपए सालना का है. करीब 27 साल की मेहनत व तमाम अस्पताल, बैड व दूसरी व्यवस्था करने के बाद अपोलो यहां पहुंच सका है. इस की तुलना 2006 की पतंजलि आयुर्वेद से करें तो पता चलता है कि पतंजलि का कारोबार 9,022 करोड़ रुपए सालाना तक पहुंच गया है.

अपोलो के मुकाबले पतंजलि 13 साल छोटी कंपनी है. लेकिन उस के मुनाफे में केवल 1 हजार करोड़ रुपए का ही अंतर है. इस की वजह यह है कि अपोलो को अस्पताल और दूसरे आधारभूत ढांचे को खड़ा करने में पैसों व समय का निवेश करना पड़ता है. पतंजलि को ऐसा कोई खास निवेश नहीं करना पड़ता, जिस की वजह से उस का मुनाफा अधिक है. परोक्षरूप से हर मंदिर, हर पुजारी, हर प्रवचनकर्ता रामदेव का प्रचारक है.

जब से रामदेव ने सीधे धर्म और भारतीय जनता पार्टी की सत्ता के साथ कदमताल करनी शुरू की, उन का मुनाफा दिन दूनी रात चौगुनी दर से बढ़ने लगा. 2006 से 2010 के बीच पतंजलि का सालाना कारोबार 100 करोड़ रुपए का था. 2012-13 में यह 1,184 करोड़ रुपए का हो गया. वह कांग्रेस सरकार का आखिरी साल था. तब रामदेव कांग्रेस का मुखर विरोध करते हुए कालाधन का विरोध करने के आंदोलन में भी शामिल हो चुके थे.

उन्होंने अन्ना हजारे के मुखौटे को अपने प्रचार के लिए इस्तेमाल किया. उस के बाद उन का ?ाकाव धर्म की राजनीति करने वाली भाजपा की ओर हो चला था. और तब से हर साल रामदेव की कंपनी पतंजलि अपने कारोबार व मुनाफे दोनों में जबरदस्त उछाल मार रही है. 2019 में पतंजलि का कारोबार 8,522 करोड़ रुपए का हो गया और 2020 में बढ़ कर यह 9,022 करोड़ रुपए तक पहुंच गया. जब लोग अंधविश्वासी होंगे तो ही वे अवैज्ञानिक दवाओं पर विश्वास करेंगे न, जैसे वे ‘मंदिर वहीं था’ पर विश्वास करते आए हैं.

कोरोना संक्रमण के दौरान भी उन की कंपनी की कोरोनिल दवा ने 900 करोड़ रुपए का कारोबार कर लिया. आयुर्वेद से संबंधित मैक्सीमाइज मार्केट रिसर्च के मुताबिक, भारत में आयुर्वेदिक दवाइयों का बाजार साल 2019 में तकरीबन 4.5 अरब डौलर का था जिस के 2026 तक 14.9 अरब डौलर तक पहुंचने की उम्मीद है. 2016 में हुए वर्ल्ड आयुर्वेदिक कांग्रेस के कोलकाता सम्मेलन में यह आंकड़ा लगभग 2 अरब डौलर का आंका गया था.

कोरोनाकाल में आयुर्वेदाचार्यों ने कोरोना की एबीसीडी न जानते हुए भी इस की दवाइयां पेश कर डालीं क्योंकि एलोपैथी निश्चिततौर पर कोरोना का इलाज नहीं बता पा रही थी. जो ?ाठ न बोले वही विज्ञान होता है और जो ?ाठ बोल कर छलकपट से लोगों को उल्लू बना कर पैसा बनाए वह निश्चितरूप से धर्म होता है. अब इसी थ्योरी पर चलते आयुर्वेद का बाजार दिनोंदिन बढ़ रहा है. यह चिंता की बात तो है लेकिन इस से ज्यादा चिंता व एतराज की बात आयुर्वेद की आड़ में ठगी और ज्यादा से ज्यादा पैसा कमाने के लिए एलोपैथी को कोसना, उस की विश्वसनीयता पर उंगली उठाना है और अंधभक्तों को बहका कर मौत के मुंह में ले जाना है. यह कभी पता नहीं चल पाएगा कि कितने लोगों ने मुफ्त में इलाज न कर के आयुर्वेदिक इलाज किया और हालत बिगड़ने पर अस्पताल पहुंचे और तब तक बहुत देर हो चुकी थी.

बेमकसद नहीं बवंडर

यह विज्ञान को कठघरे में खड़ी करने की भी साजिश है. धर्म के ठेकेदार सदियों से कहते रहे हैं कि जो 200 साल पहले कह दिया गया वही अंतिम सत्य है. अंदरखाने की बात यह भी है कि रामदेव ने फसाद ऐसे वक्त में खड़ा किया जब औक्सीजन की कमी से हुई मौतों को ले कर नरेंद्र मोदी की सरकार गुनाहगार ठहराई जा चुकी थी. ऐसे में यह कहना कि मौतें एलोपैथी की दवाइयों की वजह से हुईं, दरअसल, यह भगवा गैंग की साजिश है कि लोगों में यह मैसेज जाए कि औक्सीजन का इंतजाम तो था लेकिन एलोपैथी की दवाओं पर उन का वश नहीं था जो एलोपैथी के डाक्टर मरीजों को जबरन खिला रहे थे.

क्या आप जानते हैं ताजिंदगी बढ़ते हैं आपके कान और नाक

शकुंतला सिन्हा  

बढ़ती उम्र के साथ हमारे कान की बनावट में कार्टिलेज ( नरम कुरकुरी हड्डी और फाइबर ) होते हैं   . ये इलास्टिक की तरह फ्लेक्सिबल स्किन होते हैं . ये विशेष प्रकार के  कार्टिलेज सेल्स से बने होते हैं और मजबूत होते हैं  . ये वजन वहन करने में  सक्षम होते  हैं और शरीर के भिन्न अंगों में इनकी अहम भूमिका  है – जॉइंट्स , हड्डी , रीढ़ , लंग्स , नाक , कान आदि   . बेशक कार्टिलेज का बढ़ना रुक जाता है पर एक उम्र के बाद वे टूटने लगते हैं  और ग्रैविटी ( गुरुत्वाकर्षण ) के चलते कान नीचे की ओर और लटकते जाते  हैं जिससे उनकी लम्बाई भी बढ़ती है  . ऐसा पुरुष और महिला दोनों के साथ होता है  . महिलाओं में कान के जेवर के चलते भी कान कुछ लटक सकता है  .

वैज्ञानिकों के अनुसार औसतन कान की लम्बाई प्रति वर्ष 0 . 22 से  0 .5  मिलीमीटर बढ़ती है  .  यही चीज चेहरे के साथ भी है   .अगर किसी  बुजुर्ग  को गौर से देखेंगे तो पाएंगे कि  उसकी फेसिअल ऍपेन्डेज ( चेहरे का लटकन ) उसके युवावस्था की तुलना में ज्यादा होगी  .

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नाक के साथ भी ऐसा ही होता है

बढ़ती उम्र के साथ उसके कार्टिलेज भी टूटते हैं और वह भी सैग ( ढीला या लटकने ) करने लगता है   . नाक के सैगिंग के मुख्य कारण –

कार्टिलेज के टूटने के कारण नाक की त्वचा का पतला होना

नाक की त्वचा के लचीलेपन में कमी होना

नाक के कार्टिलेज का कमजोर और मुलायम होना

नाक के दोनों ओर उसके ऊपर और नीचे के कार्टिलेज के बंधन ( अटैचमेंट ) का अलगाव

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क्या इससे बचा जा सकता है

जी नहीं , इसे टाला नहीं जा सकता है   . यह एक प्राकृतिक और वैज्ञानिक क्रिया है जो अटल और अपरिवर्तनीय है   . इसके तीन उपाय हैं –

एक तो युवावस्था में वापस जाने की कोई दवा होना और  दूसरा कहीं ऐसी जगह जाना जहाँ ग्रैविटी न हो या बहुत कम हो   .ऐसी जगह धरती पर तो मिलने से रही हाँ चाँद पर मिल सकती है   . ये दोनों संभावनाएं निकट भविष्य में असम्भव  हैं  .

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एक तीसरा उपाय प्लास्टिक सर्जरी है जो डैमेज को कुछ हद तक रिपेयर कर सकता है  . जो अपने प्रोफेशन  के चलते  सुंदरता को ले कर ज्यादा चिंतित हैं वे प्लास्टिक सर्जरी कराते हैं  , जैसे मॉडल्स और एक्ट्रेस . नाक को राइनोप्लास्टी से रिपेयर करते हैं  . महिलाओं में जेवर के चलते कान के छेद का बड़ा होना या कटना ऑटोप्लास्टी से ठीक किया जाता है  .

 

घर पर ऐसे बनाएं आम का मुरब्बा और जैम

लेखक- सीमा वर्मा

फलों के राजा आम का स्वाद के मामले में अपना ही महत्त्व है. आम चाहे कच्चा हो या पका, उस से अनेक तरह के खाद्य उत्पाद बनाए जाते हैं. चाहे सूखी खटाई हो, चटनी या कच्चे आम का पना हो या मैंगो शेक या जूस, मुरब्बा, अचार यानी अनगिनत चीजें आम से बनाई जाती हैं.

यहां हम बहुत ही सरल तरीके से पके हुए आम का मुरब्बा व जैम बनाने के बारे में बता रहे हैं. इसे हम लंबे समय तक सहेज कर रख सकते हैं और बेमौसम में भी आम का मजा ले सकते हैं.

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पके  आम का जैम पके हुए दशहरी या कम रेशे वाले

आम  –     1 किलोग्राम

पीला रंग     –     इच्छानुसार

सिट्रिक एसिड –     8 से 10 बूंदें

विधि : आम को छील कर बारीक टुकड़ों में काट लें. थोड़ा पानी डाल कर उसे आग पर पकाएं. जब आम के टुकड़े गल जाएं, तो उन्हें अच्छी तरह मसल कर चिकना गूदा तैयार कर लें. अब चीनी डालें और पकाएं. जब यह काफी गाढ़ा हो जाए और चमक आ जाए, तब उस में 8 से 10 बूंदें सिट्रिक एसिड (आम की खटास के अनुसार) डाल दें. यदि रंग की जरूरत हो तो डालें और अच्छी तरह पका कर उतार लें.

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नोट : जैम पक कर तैयार हो गया है. एक कटोरी में आधा चम्मच जैम डालें, उस के ऊपर पानी की 2 बूंदें डालें. अगर जैम फैल जाता है, तो अभी और पकाने की जरूरत है. अगर वह नहीं फैलता है, तो समझें कि पक कर तैयार हो गया है. इसे गरमागरम ही कांच के बरतन में निकाल लें.

पके आम का मुरब्बा

आम  –     2 किलोग्राम

चीनी  –     2 किलोग्राम

केसर  –     2 ग्राम

पानी जरूरत के मुताबिक

काली मिर्च   –     5 ग्राम

छोटी इलायची –     10 ग्राम

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विधि : आम को छील कर उन के टुकड़े कर लें और गुठली फेंक दें. अब स्टील के बरतन में चीनी और पानी डाल कर आग पर एक तार की चाशनी तैयार करें. आम के टुकड़े चाशनी में डालें.  3 से 4 उबाल आने पर नीचे उतारें. ठंडा होने पर इलायची पीस कर डालें. काली मिर्च दरदरी पीस कर डालें. साथ में केसर भी  मिला दें. इसे ठंडा होने पर मर्तबान में भर  कर रखें.

कोरोनाकाल में सैक्स

लेखक-डा. गौतम बंगा

यौन संचारित संक्रमण या एसटीआई यानी सैक्सुअली ट्रांसमिटेड इन्फैक्शन की रोकथाम के संदर्भ में सुरक्षित सैक्स का अभ्यास करना महत्त्वपूर्ण है. संभोग करते समय यौन संचारित संक्रमण होने की आशंका होती है. आप ऐसे कदम उठा सकते हैं जो ऐसे जोखिम से बचने के लिए या उसे कम करने में कारगर साबित हों. सभी को अपने निर्णय स्वयं लेने और अपने शरीर को सुरक्षित रखने का सब से बेहतर तरीका सुनिश्चित करने का अधिकार है. हालांकि, सुरक्षित सैक्स में थोड़ा जोखिम जरूर है लेकिन कोई भी सावधानी न बरतने की तुलना में यह काफी सुरक्षित है.

सुरक्षित सैक्स का मतलब है स्वयं को और अपने साथी को एसटीडी (सैक्स ट्रांसमिटेड डिजीजेज) यौन संचारित रोगों से बचाने के उपाय करना. दूसरे शब्दों में, ऐसा यौन संबंध स्थापित करना है जिस में साथियों के बीच वीर्य, योनितरल पदार्थ या रक्त का आदानप्रदान शामिल न हो. यौन संबंध रखने की सुरक्षित प्रथाओं को अपनाना आप को स्वस्थ रखने व आप का यौन जीवन बेहतर बनाने में मददगार साबित हो सकता है.

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सैक्स या यौन स्वास्थ्य जानकारी, गलत जानकारी, मिथक और इस संदर्भ की वास्तविकताओं को वर्जित समझा जाता है और ऐसा बहुतकुछ है जिसे उजागर करने की जरूरत है. सैक्स पर लगे कलंक की वजह से लोग सैक्स या उस से संबंधित विषयों, जैसे यौन स्वास्थ्य और यौन संचारित रोगों के बारे में बात करने से बचते हैं. जब किसी संदर्भ में ढेर सारी जानकारी सर्वत्र फैली हुई हो तो सही और गलत का भेद बताना मुश्किल हो सकता है और ज्यादातर समय लोग शिकंजे में फंस कर मिथकों पर विश्वास कर लेते हैं. परिणामस्वरूप, वे अपना यौन स्वास्थ्य खो बैठते हैं और अपने समग्र स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचाते हैं.
अमेरिकन सैक्सुअल हैल्थ एसोसिएशन के मुताबिक, यौनरूप से सक्रिय 2 लोगों में से एक को 25 वर्ष की आयु तक एसटीआई जरूर होगा. इस का एक प्रमुख कारण यौन स्वास्थ्य के बारे में अज्ञानता हो सकता है.

क्या कोविड-19 यौन संचारित हो सकता है?
कोविड-19 यौन संचारित संक्रमण (एसटीआई) भी हो सकता है. हालांकि, संक्रमित व्यक्ति की लार सहित नाक और मुंह से निकलने वाली बूंदों के संपर्क में आने से यह विषाणु संक्रमित होता है. यह दूसरों के साथ निकट संपर्क के माध्यम से भी हो सकता है. इस का मतलब यह है कि जब आप यौन संबंध रखते हैं या किसी व्यक्ति के बहुत करीब होते हैं तो कोविड-19 से संक्रमित होने की संभावना बहुत ज्यादा बढ़ जाती है. इसीलिए, अगर आप या आप के साथी में कोविड-19 के लक्षण हों, जैसे बुखार, सूखी खांसी, थकान, स्वाद या गंधग्रहण की क्षमता में कमी तो आप को एकदूसरे के बीच 14 दिनों तक दूरी बनाए रखनी चाहिए ताकि विषाणु का संक्रमण न हो सके. इस अंतराल में आप को यौन संबंध बनाने या शारीरिक रूप से करीब आने, जैसे चुंबन या आलिंगन देने जैसी क्रियाओं से दूर रहना चाहिए.

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क्या कोविड-19 से संक्रमित 2 लोगों का यौन संबंध रखना सुरक्षित है?

ऐसे समय में जब आप के साथी का सौहार्द और उस की सोहबत आप के दिल का बोझ हलका करने में अहम भूमिका निभा सकते हैं तब यह भी खयाल रहे कि यौन संबंध रखने से कोविड-19 संक्रमण का खतरा हो सकता है. कोरोना विषाणु शायद यौन संचारित रोग हो भी, लेकिन अपने साथी के करीब जाने पर यह निश्चितरूप से संक्रमित कर सकता है. लेकिन अगर आप अपने साथी के साथ ही रह रहे हैं और आप दोनों में ऐसे कोई लक्षण नहीं हैं तो आप संबंध रख सकते हैं. लेकिन अगर दोनों में से एक साथी भी बाधित, लेकिन लक्षणहीन है, तो यौन संबंध कम से कम 14 दिनों (हफ्तों) तक नहीं बनाए जाने चाहिए. आदर्श रूप से यह सलाह दी जाती है कि कोविड से संक्रमित लोगों को आपस में यौन संबंध नहीं रखने चाहिए लेकिन अगर वे फिर भी ऐसा करना चाहते हैं तो उन्हें सुरक्षा के सारे नियमों का पालन करना चाहिए.

कोविड-19 महामारी के माहौल में सुरक्षित यौन संबंध कैसे रखें?

कोविड-19 नैगेटिव वाले 2 लोगों के बीच यौन संबंधों को सुरक्षित माना गया है, हालांकि कुछ एहतियाती कदम उठाने से संक्रमण का खतरा और भी कम हो सकता है. सैक्स के दौरान कंडोम या डैंटल डैम का इस्तेमाल करें. यौन संबंध रखने का सब से सही समय तब है जब दोनों साथी कोविड-19 से पूरी तरह नजात पा चुके हों. संबंध रखने के लिए कोविड-19 से संक्रमित होने के कम से कम 2 हफ्तों बाद तक रुकना चाहिए. सैक्स के बाद नहाना और शरीर के अंगों की अच्छी तरह से सफाई करने से कोरोना संक्रमण का खतरा और कम किया जा सकता है.

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क्या कोविड-19 से नपुंसकता हो सकती है?

एक हालिया इतालवी अध्ययन (वेबएमडी) से पता चला है कि कोविड-19 की वजह से स्तंभन दोष (इरैक्टाइल डिसफंक्शन या ईडी) के उत्पन्न होने का जोखिम लगभग 6 गुना बढ़ जाता है. कोविड-19 के संक्रमण को बढ़ाने वाले मधुमेह, मोटापा और धूम्रपान ईडी के लिए भी जिम्मेदार साबित हो सकते हैं. डेटा अनुमानों के अनुसार, कोरोना से संक्रमित हुए पुरुषों में स्तंभन दोष (ईडी) उत्पन्न होने के असार 5.66 गुना बढ़ जाते हैं. यह समस्या अल्पकालिक या दीर्घकालिक भी हो सकती है.

हालांकि, स्तंभन दोष से पुरुष बाधित होते हैं और इसे ‘पुरुषों वाली’ समस्या के रूप में देखा जाता है लेकिन संबंधों में मौजूद महिला पर भी इस का असर पड़ता है. एक हालिया सर्वेक्षण के अनुसार, 56 प्रतिशत पुरुष अपने संबंधों को सुधारने के लिए अपने साथियों के साथ स्तंभन दोष के बारे में चर्चा करना पसंद करते हैं जबकि स्तंभन दोष से नजात पाने के लिए अगर उन का साथी कोई कदम नहीं उठाता तो 28 प्रतिशत महिलाएं अपने साथी से अलग होना पसंद करती हैं.

(लेखक सैंटर फौर रिकंस्ट्रक्टिव यूरोलौजी एंड एंड्रालौजी, दिल्ली में रिकंस्ट्रक्टिव यूरोलौजिस्ट एंड एंड्रालौजिस्ट हैं.)

ये रिश्ता क्या कहलाता है : कार्तिक को महसूस होगा सीरत से प्यार, नायरा की यादों से आएगा बाहर

टीवी सीरियल ये रिश्ता क्या कहलाता है में बहुत ज्यादा बदलाव होने वाला है. पिछले कुछ दिनों से मेकर्स ये भूमिका बना रहे थे कि सीरत अब कार्तिक को चाहने लगी है, ऐसे में अब सीरियल में ऐसा लग रहा है कि लव ट्रेंगल वाला ट्रैक शुरू हो चुका है.

सीरत  शादी तो रणवीर के साथ की है लेकिन इन दिनों उसे ख्याल सिर्फ कार्तिक का ही आ रहा है. इससे पहले वाले एपिसोड में दिखाया गया है कि कार्तिक के तरफ से अपना ध्यान हटाने के लिए सीरत अपना पैर तोड़ लेती है.

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सीरत यह बिल्कुल भी नहीं चाहती की कार्तिक बार-बार उसकी लाइफ में आएं, लेकिन आने वाले एपिसोड में दिखाया जाएगा कि सीरत ना चाहते हुए भी कार्तिक के सामने आ ही जाएगी. इस बात का पता माउड़ी को लग जाएगा कि सीरत कार्तिक को पसंद करने लगी है. लेकिन माउडी सीरत को समझाते हुए कहेगी कि अब तो बहुत ज्यादा देर हो चुकी है. कोई फायदा नहीं है.

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सीरत और माउडी की बातों को उसी दौरान रणवीर के पापा यानि नरेंद्र चौहान सुन लेंगे, सीरत के फिलिंग्स का पता चलते ही नरेंद्र चौहान का शैतानी दिमाग काम करना शुरू कर देगा. वह अब सीरत के खिलाफ रणवीर के कान भरेगा. जिसके बाद रणवीर के मन में भी शक का बीज पनप जाएगा.

अब देखना यह है कि रणवीर सीरत और कार्तिक के बीच की सच्चाई को जानने के बाद अगला कदम क्या उठाएगा क्या उसका विश्वास कार्तिक और सीरत से टूट जाएगा.

Kumkum Bhagya : अभि और प्रज्ञा के शो में आएगा 2 साल का गैप, पूरी तरह बदल जाएगी कहानी

टीवी सीरियल कमकुम भाग्य में हमेशा अभि और प्रज्ञा के प्यार के बीच में कोई  न कोई रोड़ा बनकर आ ही जाता है. अभि और प्रज्ञा कि कहानी लड़ाई -झगड़े से शुरू हुई थी और ये लड़ाई कब प्यार में बदल गई  उन दोनों को भी इसका एहसास नहीं हुआ .

वो अलग बात है कि अभि और प्रज्ञा एक-दूसरे को प्यार करने के बावजूद भी कभी एक नहीं हो पाए हैं. हमेशा इन दोनों के प्यार में तनु रोड़ा बनकर आ जाती है. कई बार अभि और प्रज्ञा के जीवन में तनु आग लगा चकी है लेकिन हर वक्त वह नाकामयाब  रहती है.

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इन दिनों अभि और तनु की शादी का ट्रैक लोगों का ध्यान अपनी तरफ खींच रहा है. तनु की वजह से इस सीरियल की कहानी में बहुत ज्यादा बदलाव आने वाला है. ताजा मिल रही जानकारी कि माने तो इस सीरियल में लीप गैप आने वाला है.

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लीप के बाद सीरियल कुमकुम भाग्य की कहानी में बहुत ज्यादा बदलाव आने वाला है. लीप के बाद से प्रज्ञा और अभी एक बार फिर से अलग हो जाएंगे. लीप से पहले प्रज्ञा का एक्सीडेंट हो जाएगा औऱ वह लापता हो जाएगी जिसके बाद से कहानी में ट्विस्ट आएगा.

इस हादसे के बाद अभि पूरी तरह से टूट कर बिखर जाएगा जिसके बाद से 2 साल का लीप लिया जाएगा. अभी खुद को शराब के नशे में डूबो लेगा. सबकुछ होने के बाद भी अभि एक गरीब इंसान की तरह जिंदगी बिताएगा.

अब अभी ऐसा हो जाएगा कि उसका भरोसा प्यार और रिश्तों से टूट जाएगा. जिसके बाद अभी नशे में अपनी सारी प्रॉपर्टी खो देगा. अब देखना यह है कि कहानी में प्रज्ञा कि दोबारा एंट्री कैसे होती है.

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