‘2 साल की बेटी और 2 माह के बेटे के मातापिता कोविड के कारण नहीं रहे. इन बच्चों को अगर कोई गोद लेना चाहता है तो दिए गए मोबाइल नंबर पर संपर्क करें. ये ब्राह्मण बच्चे हैं. सभी ग्रुपों में इस पोस्ट को भेजें ताकि बच्चों को जल्दी से जल्दी मदद मिल सके.’ ऐसे मैसेज सोशल मीडिया पर वायरल हो रहे हैं. जातीयता देश का सब से बड़ा अभिशाप है. यहां अनाथ बच्चों को गोद लेते समय भी जाति देखी जाती है. सरकारी नियम से गोद लेने में जाति का पता नहीं चलता है.

इस कारण लोग कानूनीतौर पर बच्चा गोद लेने की जगह चोरी का बच्चा गोद लेना पसंद करते हैं. यही वजह है कि बच्चा चोरी करने वाला गैंग सक्रिय है. लोग कानूनीतौर पर बच्चों को गोद लें, इस के लिए जरूरी है कि गोद लेने वाले कानून को आसान किया जाए. तभी कोरोनाकाल में अनाथ हुए बच्चों को ज्यादा से ज्यादा गोद लेने के लिए लोग आगे आएंगे. ‘2 साल की बेटी और 2 माह के बेटे के मातापिता कोविड के कारण नहीं रहे. इन बच्चों को अगर कोई गोद लेना चाहता है तो दिए गए मोबाइल नंबर पर संपर्क करें. ये ब्राह्मण बच्चे हैं. सभी ग्रुपों में इस पोस्ट को भेजें ताकि बच्चों को जल्दी से जल्दी मदद मिल सके.’ ऐसे मैसेज सोशल मीडिया पर तेजी के साथ वायरल हो रहे हैं.

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कोरोनाकाल में बच्चे बहुत ज्यादा संख्या में अनाथ हुए हैं. अनाथ बच्चे वे हैं जिन के मातापिता कोरोना के कारण मर गए. उन के पीछे बच्चों की देखभाल करने वाला कोई नातेरिश्तेदार भी नहीं है. मैसेज के जरिए जब लोग संपर्क करते हैं तो उन से पैसों की वसूली भी हो जाती है. लाखों रुपए गोद लेने वाले से गोद देने के नाम पर वसूल लिया जाता है. असल में बच्चों को बेचने वाले गैंग इस तरह के मैसेज के सहारे अपना कालाधंधा चलाते हैं. बड़े शहरों के आसपास ऐसे गैंग अधिक सक्रिय होते हैं. इस की वजह यह होती है कि यहां आसानी से कोई पहचान नहीं पाता है.

गाजियाबाद में बच्चों की चोरी की घटनाएं काफी हो रही थीं. पुलिस को भी लंबे समय से शक था कि कोई गैंग इस अपराध को अंजाम दे रहा है. पुलिस ने ऐसे गैंग को पकड़ने के लिए अपना जाल बिछाया. 12 मई को लोनी, गाजियाबाद की रहने वाली फातिमा ने थाने में शिकायत दर्ज कराई कि दोपहर करीब 12 बजे एक पुरुष और एक महिला उस के घर पर किराए का मकान देखने के लिए आए थे. बातोंबातों में ही दोनों ने फातिमा को कुछ नशीला पदार्थ दे दिया और उस का 15 दिन का बच्चा ले कर फरार हो गए. बच्चा बेच देते हैं चोरी के बाद फातिमा की शिकायत पर गाजियाबाद पुलिस ने इस गैंग को पकड़ने के लिए जाल बिछाया. आखिरकार पुलिस की मेहनत रंग लाई और बच्चों की तस्करी व उन की खरीदफरोख्त करने वाले सफेदपोशों के गैंग के 11 महिलापुरुष सदस्यों को गिरफ्तार कर के इस संगीन अपराध का खुलासा कर दिया. बच्चों की तस्करी और उन्हें चुरा कर उन का सौदा मोटी रकम में करने वाले गैंग ने अबोध बच्चे को पहले तो खरीदने का प्रयास किया था लेकिन जब बात सौदे पर अटक गई तो उस गैंग के 2 बदमाशों ने बच्चे को चुरा लिया.

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इस के बाद बच्चे को लखनऊ क्षेत्र में रहने वाले एक दंपती को साढ़े 5 लाख रुपए में बेच दिया. एसएसपी अमित पाठक ने बच्चे की सकुशल बरामदगी के लिए पुलिस की टीमों का गठन किया जिस के बाद दिल्ली से साढ़े 400 किलोमीटर दूर चोरी किए गए बच्चे रमजानी को आलोक अग्निहोत्री नाम के शख्स के कब्जे से बरामद कर लिया गया. लखनऊ से गिरफ्तार आलोक अग्निहोत्री ने बेहद चौंकाने वाला खुलासा किया. उस ने पुलिस को बताया कि शादी के बाद उस की कोई औलाद नहीं थी जिस के चलते उस ने यह बच्चा 5.50 लाख रुपए में अश्मित कौर व उस के पति गुरमीत कौर से खरीदा. अश्मित और गुरमीत दोनों ही दिल्ली के रहने वाले हैं. गाजियाबाद पुलिस के सामने चुनौती थी कि आखिर बच्चा अश्मित और गुरमीत के पास कैसे पहुंचा, तो पता चला कि यह बच्चा वाहिद और तरमीम ने चोरी कर के रूबिना तथा मोनिका को दिया था. फिर इन दोनों ने बच्चे को सरोज, प्रीति और ज्योति को दिया.

इन के द्वारा यह बच्चा प्रभा, इंदु व उस के दोस्त शिवा द्वारा अश्मित कौर व उस के पति गुरमीत के पास पहुंचा था. पुलिस ने आरोपियों के पास से 5 लाख रुपए बरामद कर लिए हैं. अश्मित कौर ने बताया कि उन का मोबाइल नंबर डेली हंट नामक वैबसाइट पर पड़ा है. जिस को बच्चे की आवश्यकता होती है वह उसे फोन कर के बताता है और फिर बच्चे की व्यवस्था कर दी जाती है. पुलिस ने इस मामले में 11 आरोपियों को गिरफ्तार किया है. वाहिद, तरमीम, अश्मित कौर व गुरमीत, सरोज, प्रीति, ज्योति, मोनी उर्फ मोनिका और रूबिना को दिल्ली से गिरफ्तार किया गया है. वहीं, 3 आरोपी प्रतिभा, इंदु और शिवा इस रिपोर्ट के लिखे जाने तक फरार थे. उन की तलाश में पुलिस दबिश दे रही है. निशाने पर अनाथ बच्चे बच्चा चोरी कर बेचने के तमाम उदाहरण मिलते हैं.

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आमतौर पर अस्पतालों से ही ऐसे बच्चे गायब कर दिए जाते हैं. इन में वे बच्चे अधिक होते हैं जो सरकारी अस्पतालों में पैदा होते हैं. यहां पर गरीब मांबाप के बच्चे अधिक गायब होते हैं. इस में अस्पताल में काम करने वाले छोटे स्तर के कर्मचारी शामिल होते हैं. बच्चों को हासिल करने का दूसरा बड़ा जरिया बच्चों की चोरी करने का होता है. गरीब मांबाप अगर बच्चों को इधरउधर छोड़ कर कामधंधा करने लगते हैं तो बच्चा चोर गैंग इन को पकड़ लेता है. कोरोना संकट के दौर में अनाथ बच्चे वे हैं जिन के मातापिता कोरोना के कारण इस दुनिया में नहीं रहे और उन के बच्चों की देखभाल करने वाला कोई नहीं होता है. ऐसे बच्चों को बेच न दिया जाए, इस के लिए उत्तर प्रदेश सरकार ने अनाथ बच्चों को संरक्षण देने की योजना बना ली है. योजना के तहत सरकार ने प्राइवेट स्कूलों, महिला आयोग और बाल संरक्षण आयोग को जिम्मेदारी दी है.

ये संस्थाएं पुलिस, स्थानीय प्रशासन और चाइल्ड हैल्पलाइन की मदद से सब से पहले ऐसे बच्चों के बारे में जानकारी हासिल करेंगी. इस के बाद उन की जरूरत के अनुसार लोगों को बाल कल्याण समिति द्वारा गोद दिया जाएगा. उत्तर प्रदेश बाल संरक्षण आयोग की सदस्य डाक्टर प्रीति वर्मा कहती हैं, ‘‘अनाथ और सिंगल पेरैंट की देखभाल के लिए सरकार ने 3 तरह की योजनाएं बनाई हैं. बच्चों को उन के करीबी नातेरिश्तेदार के यहां रखा जा सकता है. अगर वहां बच्चा नहीं रहता तो उस को किसी को नियमानुसार गोद दिया जा सकता है. अगर ये दोनों काम नहीं हो सकते तो सरकार और एनजीओ द्वारा चलाए जा रहे गृहों में उन्हें रखा जा सकता है.’’ संख्या का आकलन उत्तर प्रदेश बाल संरक्षण आयोग की सदस्य डाक्टर प्रीति वर्मा कहती हैं, ‘‘अनाथ बच्चों को सरकारी नियमकानून के सहारे ही गोद लिया जा सकता है. इस के अलावा अगर कोई गोद लेता है तो वह मानव तस्करी स्तर का अपराध माना जाएगा.

बच्चा लेने और देने वाले दोनों ही अपराधी माने जाएंगे. ऐसे सोशल मीडिया पर बच्चों को गोद लेने वाले विज्ञापनों के झांसे में न आएं. गैरकानूनी काम न करें. अगर कोई ऐसी जानकारी हो, तो पुलिस को सूचित करें.’’ 22 मई तक उत्तर प्रदेश में 555 बच्चों की पहचान कर लेने की बात महिला कल्याण विभाग के निदेशक मनोज कुमार राय ने स्वीकार की है. सरकार ने सभी जिलाधिकारियों को ऐसे बच्चों की सूची बनाने के लिए कहा है. बाल आयोग ने अपने स्तर पर जो जानकारी हासिल की है, उस में लखनऊ के 5 बच्चों की सूचना मिली है. यह कार्य आगे भी जारी है. इन बच्चों के नाम जानकीपुरम के रहने वाले हरिओम चौरसिया 15 साल, अलीगंज के राहुल सैनी 17 साल, एलडीए कालोनी, कानपुर रोड के रहने वाले कार्तिकेय सक्सेना 10 साल, श्लोक सक्सेना 12 साल और अलीगंज की रहने वाली अनुभवी 13 साल की बच्ची शामिल हैं.

जातीयता हावी अनाथ बच्चों को भी गोद लेते समय लोगों के मन पर जातीयता और लड़कालड़की का भेद कायम रहता है. लोग सब से पहले अपनी जाति के बच्चे को गोद लेना चाहते हैं. इसी कारण सोशल मीडिया पर वायरल हुए वीडियो में बताया जाता है कि बच्चा ब्राह्मण जाति का है. अगर अपनी जाति का नहीं हो, तो ऊंची जाति के बच्चे को गोद लेने का प्रयास किया जाता है. कई लोग ऊंची जातियों, खासकर ब्राह्मणों के बच्चों को गोद लेना चाहते हैं क्योकि उन को लगता है कि ये सुंदर, अच्छे और योग्य बच्चे होते हैं. कानूनीतौर पर जब बच्चों को गोद लिया जाता है तब जाति, धर्म या गोद लेने वाले बच्चे का रूप व रंग नहीं देखा जाता.

इस के अलावा, कानूनीरूप से गोद लेने में तमाम तरह की परेशानियां आती हैं. यही कारण है कि लोग बच्चा बेचने वाले गैंग के पास चले जाते हैं. यहां पूरी गोपनीयता भी होती है. जबकि, सरकारी कानून से गोद लेने का काम किया जाता है तो बहुत सारे लोगों को यह पता चल जाता है. जाति और पहचान छिपाने के लिए लंबी कानूनी प्रक्रिया से बचने के लिए लोग सरकारी कानून से बच्चा गोद लेने से बचते हैं. बच्चा चोर गिरोह के पास गोपनीयता के साथ ही साथ कोई लंबीचौड़ी प्रक्रिया नहीं होने के कारण लोग चोरी का बच्चा गोद ले लेते हैं. जबकि यह गैरकानूनी होता है और इस की सजा भी भुगतनी पड़ सकती है. गाजियाबाद से गायब होने वाले बच्चे के मसले में यह बात सम झी जा सकती है. द्य बच्चा गोद लेने की प्रक्रिया सब से पहले आप को बच्चे को गोद लेने के लिए केंद्रीय संस्था सैंट्रल एडौप्शन रिसोर्स अथौरिटी यानी ‘कारा’ में रजिस्ट्रेशन करवाना होगा.

‘कारा’ भारत सरकार द्वारा संचालित संस्था है जो बच्चे को गोद लेने में लोगों की मदद करती है. रजिस्ट्रेशन के बाद सभी जरूरी दस्तावेजों को अपलोड करना होगा. इन दस्तावेजों में बच्चे को गोद लेने वाले पतिपत्नी, व्यक्ति व परिवार को जो कागजात देने पड़ते हैं उन में वर्तमान फोटो, गोद लेने वाले मातापिता का पैन कार्ड, जन्म प्रमाणपत्र या जन्मतिथि साबित करने वाले अन्य दस्तावेज, निवास प्रमाणपत्र जैसे आधार कार्ड, वोटर कार्ड, पासपोर्ट, वर्तमान बिजली बिल, आय का प्रमाण जैसे वेतन परची, सरकार विभाग द्वारा जारी आय प्रमाणपत्र, आयकर रिटर्न, डाक्टर से मैडिकल फिटनैस सर्टिफिकेट, विवाहित जोड़ा अगर बच्चे को गोद ले रहा है तो दोनों आवेदकों का मैडिकल प्रमाणपत्र अनिवार्य है.

शादी का प्रमाणपत्र, अगर तलाकशुदा हैं तो तलाक सर्टिफिकेट या न्यायालय द्वारा जारी फैसला. अगर आप अकेले बच्चे को गोद ले रहे हैं तो पति या पत्नी का मृत्यु प्रमाणपत्र होना चाहिए. गोद लेने के समर्थन में परिचितों या रिश्तेदारों से गवाही देनी होती है. अगर पहले से बच्चे हैं और उन की आयु 5 साल से अधिक है तो बच्चों की सहमति जरूरी है. इस के बाद ‘कारा’ के लोगों द्वारा गोद लेने वाले के घर की स्टडी की जाएगी जिसे ‘होम स्टडी’ कहा जाता है. स्टडी रिपोर्ट को रजिस्ट्रेशन पोर्टल में अपलोड किया जाता है. गोद लेने वाले मातापिता द्वारा भरे गए फौर्म में भरी गई प्राथमिकताओं के आधार पर आप को गोद लेने के लिए कानूनीरूप से मुक्त बच्चों के प्रोफाइल दिखाए जाएंगे. बच्चों की प्रोफाइल देखने के 48 घंटे के अंदर एक बच्चे के चयन की जानकारी देनी होती है.

बच्चे का चुनाव करने के बाद एडौप्शन कमेटी चुने गए बच्चे का फोटो से मिलान करती है और गोद लेने के इच्छुक लोगों को जानकारी देती है. जब भावी दत्तक मातापिता बच्चे को गोद लेने के लिए हामी भर देते हैं तो स्पैशलाइज्ड एडौप्शन एजेंसी कोर्ट में बच्चा गोद लेने से संबंधित याचिका डालती है जिस में सहयाचिकाकर्ता बच्चे को गोद लेने वाले व्यक्ति होते हैं. कोर्ट में याचिका पर सुनवाई के बाद कोर्ट बच्चा गोद लेने से संबंधित आदेश जारी करता है. और्डर के 8 दिनों के अंदर एजेंसी जन्म प्रमाणपत्र व आदेश की कौपी अदालत से ले कर बच्चे के दत्तक मातापिता को सौंप देती है.

गोद देने के बाद भी कारा की कमेटी बच्चे को देखने के लिए समयसमय पर घर पर विजिट करती रहती है. कौन गोद ले सकता है बच्चा गोद लेने का कानून देखने में बहुत आसन है पर इस में लंबा समय लगता है. सरकारी स्तर पर तमाम हस्तक्षेप होते हैं. अगर सरकार चाहती है कि कोरोना में अनाथ हुए बच्चों को गोद ले कर लोग उन की मदद करें तो कानून में सुधार करना जरूरी है. गोद लेने का कानून जिस समय बना था उस समय कोरोना जैसे हालात का कुछ पता नहीं था. कानूनीरूप से अनाथ बच्चा वह होता है जिसे मांबाप ने छोड़ दिया हो या जिस के मांबाप की मौत हो गई हो और बाल कल्याण समिति ने उस को गोद देना तय किया हो. ऐसे बच्चे को गोद ले सकते हैं जिसे उस के जैविक मातापिता, सौतेले मातापिता या दूसरी शादी होने पर छोड़ दिया गया हो.

भारत में बच्चा गोद लेने के लिए भारतीय निवासी होना जरूरी होता है. इस के साथ ही साथ, भारत में रहने वाले विदेशी भी पात्र होते हैं. बच्चे को गोद लेने के लिए अनिवार्य पात्रता व कुछ शर्तों को पूरा करना जरूरी है. भारत में बच्चा गोद लेने के लिए वे सभी भावी दत्तक मातापिता पात्र हो सकते हैं जो मानसिक, शारीरिक और भावनात्मक रूप से स्वस्थ, आर्थिकरूप से संपन्न हों. गोद लेने के इच्छुक मातापिता को किसी तरह का गंभीर रोग या मौत का खतरा नहीं होना चाहिए. दत्तक मातापिता व गोद लिए जाने वाले बच्चे के बीच उम्र का अंतर 25 साल से कम नहीं होना चाहिए. विवाहित होने की दशा में 2 साल का स्थिर वैवाहिक संबंध होना चाहिए. बच्चे को गोद लेने के लिए पतिपत्नी दोनों की सहमति होनी भी अनिवार्य है.

विवाहित युगल की कुल आयु 110 वर्ष से अधिक नहीं होनी चाहिए. सिंगल पेरैंट्स की आयु 55 वर्ष से अधिक नहीं होनी चाहिए. अगर आप के 2 या 2 से कम बच्चे हैं तो ही आप एक और बच्चे को गोद ले सकते हैं. अगर आप स्पैशल चाइल्ड, रिश्तेदार का बच्चा या सौतेले बच्चे को गोद ले रहे हैं तो आप 3 बच्चे होने के बावजूद एक और बच्चा ले सकते हैं. महत्त्वपूर्ण बात यह है कि अकेली महिला किसी भी लिंग के बच्चे को गोद ले सकती है. अविवाहित, अकेला या तलाकशुदा पुरुष लड़की को गोद नहीं ले सकता. भारत निवासी मातापिता, एनआरआई, विदेशी, रिश्तेदारों और सौतेली मां या बाप सभी के लिए बच्चा गोद लेने की पात्रता एक ही है. भारत के अस्थायी निवासी (एनआरआई)वविदेशी लोगों के लिए बच्चा गोद लेने से पहले वे जिस भी देश में रहे हैं वहां कम से कउन का 2 साल पूरे करना अनिवार्य है.

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