शकुंतला सिन्हा
बढ़ती उम्र के साथ हमारे कान की बनावट में कार्टिलेज ( नरम कुरकुरी हड्डी और फाइबर ) होते हैं . ये इलास्टिक की तरह फ्लेक्सिबल स्किन होते हैं . ये विशेष प्रकार के कार्टिलेज सेल्स से बने होते हैं और मजबूत होते हैं . ये वजन वहन करने में सक्षम होते हैं और शरीर के भिन्न अंगों में इनकी अहम भूमिका है - जॉइंट्स , हड्डी , रीढ़ , लंग्स , नाक , कान आदि . बेशक कार्टिलेज का बढ़ना रुक जाता है पर एक उम्र के बाद वे टूटने लगते हैं और ग्रैविटी ( गुरुत्वाकर्षण ) के चलते कान नीचे की ओर और लटकते जाते हैं जिससे उनकी लम्बाई भी बढ़ती है . ऐसा पुरुष और महिला दोनों के साथ होता है . महिलाओं में कान के जेवर के चलते भी कान कुछ लटक सकता है .
वैज्ञानिकों के अनुसार औसतन कान की लम्बाई प्रति वर्ष 0 . 22 से 0 .5 मिलीमीटर बढ़ती है . यही चीज चेहरे के साथ भी है .अगर किसी बुजुर्ग को गौर से देखेंगे तो पाएंगे कि उसकी फेसिअल ऍपेन्डेज ( चेहरे का लटकन ) उसके युवावस्था की तुलना में ज्यादा होगी .
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नाक के साथ भी ऐसा ही होता है -
बढ़ती उम्र के साथ उसके कार्टिलेज भी टूटते हैं और वह भी सैग ( ढीला या लटकने ) करने लगता है . नाक के सैगिंग के मुख्य कारण -
कार्टिलेज के टूटने के कारण नाक की त्वचा का पतला होना
नाक की त्वचा के लचीलेपन में कमी होना
नाक के कार्टिलेज का कमजोर और मुलायम होना
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