लेखक- रोहित

इस समय जितनी असंवेदनशील कोरोना महामारी है उतनी ही शासन व्यवस्था हो चली है. ऐसे समय में शासन द्वारा राजनीतिक कैदियों को अपने प्रियजनों से दूर करना, यातना देने से कम नहीं है. जबकि, कई तो सिर्फ और सिर्फ इसलिए बिना अपराध साबित हुए जेलों में हैं क्योंकि वे सरकार की गलत नीतियों के खिलाफ आवाज उठा रहे थे. पिछले एक साल से ऊपर जेल में बंद आंदोलनकारी नताशा नरवाल के पिता, 71 वर्षीय महावीर नरवाल का कोरोना से जू?ाते हुए 9 मई को निधन हो गया. जिस के बाद नताशा को 10 मई को कोर्ट ने पिता के अंतिम संस्कार के लिए 3 हफ्ते के लिए अंतरिम जमानत दे दी. महावीर नरवाल रोहतक अस्पताल में भरती थे, जहां तकरीबन शाम के 6 बजे उन की मौत की खबर का पता चला. वे डायबिटिक पेशेंट भी थे जिस के चलते उन पर कोरोना का अधिक प्रभाव हुआ. कोरोना के चलते औक्सीजन स्तर में गिरावट आने के बाद उन्हें सांस लेने में दिक्कत आने लगी थी. सो, उन्हें 3 मई को अस्पताल में भरती कराया गया. मात्र एक हफ्ते चले इलाज के बाद वे अपनी संघर्षशील जिंदगी से विदा हो गए. कौन हैं महावीर नरवाल महावीर नरवाल हरियाणा के रोहतक के रहने वाले थे.

वे प्रगतिशील आंदोलन के प्रति प्रतिबद्ध थे. महावीर नरवाल हरियाणा के ज्ञानविज्ञान आंदोलन और पीपल्स साइंस मूवमैंट की स्थापना के समय से ही इन से जुड़े हुए थे. वे हरियाणा विज्ञान मंच और भारत ज्ञानविज्ञान समिति, हरियाणा, के अध्यक्ष भी थे. ऐसे मौके पर ज्ञानविज्ञान आंदोलन ने महावीर की असमय मृत्यु पर खेद जताते हुए बयान जारी कर कहा, ‘‘ज्ञान विज्ञान आंदोलन के लिए डा. नरवाल का निधन एक बहुत बड़ी क्षति है. अत्यधिक दुख के इस समय आंदोलन अपने शोक संतप्त परिवार के साथ पूरी एकजुटता से खड़ा है.’’ महावीर नरवाल, चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय, हिसार से रिटायर्ड वरिष्ठ वैज्ञानिक और भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) के वरिष्ठ सदस्य थे. अपनी शुरुआती उच्चशिक्षा की पढ़ाई में ही वे आंदोलनों से जुड़ गए थे और आपातकाल के समय वे आंदोलन करते हुए कई बार जेल भी गए थे. उस दौरान वे बीएससी की पढ़ाई कर रहे थे.

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तब से ले कर आज अपनी अंतिम सांस तक उन का वैचारिक ?ाकाव प्रगतिशील विचारधारा की तरफ ही रहा. अपने पूरे जीवनकाल में वे विभिन्न सरकारों की गलत नीतियों के खिलाफ तत्पर मुखर तौर पर संघर्षरत रहे और जनआंदोलनों को प्रेरणा देने का काम करते रहे. इस मौके पर मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी ने अपने आधिकारिक ट्विटर हैंडल से महावीर नरवाल के निधन पर संवेदना जताई और इस परिस्थिति को भाजपा सरकार का आपराधिक कृत्य बताया. ट्वीट में कहा गया, ‘सीपीआईएम अपने वरिष्ठ सदस्य, कामरेड महावीर नरवाल के निधन पर गहरी संवेदना व्यक्त करती है. यह मोदी सरकार का आपराधिक कृत्य है कि उन की बेटी नताशा नरवाल को पिछले साल यूएपीए के तहत गिरफ्तार किया गया था और वह अपने पिता से भी नहीं मिली थी. लाल सलाम महावीर नरवाल.’ नताशा नरवाल मामला सीपीआईएम द्वारा भाजपा सरकार पर इस तरह के आरोप लगाना जायज भी है. फरवरी माह 2020 में हुए दिल्ली दंगों से पहले 2019-20 की सर्दी में चलाए जा रहे सीएए-एनआरसी विरोधी लंबे जन आंदोलन का सरकार द्वारा जिस बुरी तरह से दमन किया गया उसे भारत ही नहीं, पूरी दुनिया ने देखा.

इस आंदोलन की शुरुआत में ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ही आंदोलनकारियों को ‘कपड़ों से पहचान लेने’ की नसीहत दे माहौल को सांप्रदायिक बना दिया था. लेकिन इस आंदोलन का अंजाम आखिरकार सांप्रदायिक दंगों की लपटों पर जा कर खत्म होगा, यह सोच से परे था. हालांकि, इस प्रायोजित दंगे से भाजपा पर संशय होने की बात कई तरह से उठती रही. कपिल मिश्रा प्रकरण, चुनाव के दौरान भाजपा का सांप्रदायिक माहौल बनाना, शांतिपूर्ण आंदोलन में फायरिंग करना, भावी दंगों को हवा दे रहा था. असल यह कि जितना नुकसान इस दंगे ने शांतिपूर्ण चल रहे आंदोलन का किया उस से कहीं ज्यादा फायदा इस ने भाजपा सरकार को पहुंचाया. केंद्र की भाजपा सरकार के अधीन आने वाली दिल्ली पुलिस ने एकएक कर अधिकांश आंदोलनकारियों, जो इस आंदोलन में शरीक थे, पर देशद्रोही जैसे आरोप मढ़ कर यूएपीए के तहत पकड़ कर जेलों में ठूंस दिया. दिल्ली दंगों में गिरफ्तार हुए इन्हीं आरोपियों में से एक थीं नताशा नरवाल. दरअसल, दिल्ली पुलिस ने 19 अप्रैल, 2020 को नरवाल का फोन जब्त कर लिया और उसे अपना पासकोड बताने के लिए मजबूर किया.

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23 मई को उन्हें विशेष इकाई के अधिकारियों की उन से टीम ने देवांगना कलीता के साथ 2 घंटे तक पूछताछ की. पूछताछ खत्म होने के बाद ही पुलिस की एक टीम ने उन्हें उन के घर से गिरफ्तार कर लिया. नताशा नरवाल को पुलिस ने दिल्ली दंगों में उन की कथित भूमिका के आरोपों के चलते पिछले साल 23 मई को घर से गिरफ्तार किया था. उसी दौरान उन के साथ उन की साथी देवांगना कलीता और कई सीएए व एनआरसी विरोधी आंदोलनकारी छात्रों और कार्यकर्ताओं को भी पुलिस ने गिरफ्तार किया था. नताशा नरवाल को 3 हफ्ते की अंतरिम जमानत से पहले तक तिहाड़ जेल में रखा गया. जिस समय नताशा नरवाल को गिरफ्तार किया गया था उस दौरान नताशा के समर्थन में सब से पहली प्रतिक्रिया उन के पिता की ही थी. वे नताशा के साथ कंधे से कंधा मिला कर खड़े रहे. उन्होंने नताशा और बाकी आंदोलनकारियों की गिरफ्तारी को राजनीतिक साजिश का हिस्सा बताया था और सरकार की मंशा पर सवाल उठाया था. उन्होंने कहा था, ‘‘वह (नताशा) बिल्कुल निर्दोष है. मु?ो यह पता है, मु?ो विश्वास है और मु?ो उम्मीद है कि उसे अदालत से न्याय जरूर मिलेगा.’’ नताशा नरवाल के जेल जाने के बाद एक साक्षात्कार में महावीर नरवाल ने कहा था, ‘‘मानवाधिकारों की रक्षा करना महत्त्वपूर्ण है.

जेल जाने से डरने की कोई बात नहीं है,’’ महावीर को अपनी बेटी पर पूरा भरोसा था और बेटी को कैद में लिए जाने से बिलकुल भी नहीं घबराए थे. उन्होंने कहा था, ‘‘डरने की क्या बात है? वह (नताशा नरवाल) संभाल लेगी. यह व्यक्तियों के अधिकार का मामला है, जिस का केवल असंतोष के माध्यम से बचाव किया जा सकता है. मानवाधिकारों की रक्षा का कोई दूसरा तरीका नहीं है. आप को ऐसे भविष्य के बारे में चिंतित होना चाहिए जिस में असंतोष अब आप का अधिकार नहीं है.’’ महिला आंदोलनकारी नताशा महावीर नरवाल न सिर्फ जीवंत आंदोलनकारी थे बल्कि एक शानदार पिता भी थे, जिन्होंने अपनी बेटी को दबने की जगह संघर्ष करना सिखाया था. यही कारण था कि नताशा नरवाल अपने पिता की तरह मानवाधिकार आंदोलन में शामिल होती रही थीं और उन तमाम दमनकारी व रूढि़वादी नीतियों के खिलाफ संघर्षरत थीं जिन्हें दक्षिणपंथी राजनीति हवा देने का काम करती रहती है. वर्ष 2014 के बाद भारत, खासकर, उत्तर भारत में भाजपा की सरकार बनने के बाद हिंदुत्व के प्रचंड उदय के खिलाफ नताशा नरवाल का स्टैंड प्रदर्शन उन की भागीदारी के दौरान तब दिखाई दिया जब उन्होंने ‘पिंजरा तोड़’ के माध्यम से केंद्रीय महिला और बाल विकास मंत्री मेनका गांधी के महिला छात्रावासों में कर्फ्यू की समयसीमा समाप्त करने का विरोध जताया था.

 

नरवाल ने तर्क दिया कि हिंदुत्व का एजेंडा महिलाओं पर नियंत्रण रखने से है इसलिए इस का विरोध जरूरी है. देश में बढ़ते रेप और महिला उत्पीड़न की घटनाओं को ले कर कटाक्ष करते हुए उन्होंने कैंपस में नारा दिया था कि ‘भारत की माता नहीं बनेंगे हम’. यह उस दौरान अपनेआप में काफी स्ट्रौंग नारा था जो आरएसएस नीत भाजपा की राष्ट्रवादी हिंदुत्व की विचारधारा से टकरा रहा था. सीएए, एनआरसी के आंदोलन के समय नताशा धरने पर बैठीं आंदोलित महिलाओं के साथ सक्रिय थीं. वे दिल्ली के कई धरना स्थलों पर आंदोलित महिलाओं का सहयोग कर रही थीं. नताशा दिल्ली के जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय की एक शोध छात्रा थीं और भारत के आधुनिक नारीवादी संगठन ‘पिंजरा तोड़’ की फाउंडर मैंबर हैं जो दिल्ली के कालेजों के छात्रों का एक समूह है और विश्वविद्यालयों में महिलाओं के खिलाफ भेदभावपूर्ण नीतियों को समाप्त करने के अभियान में शामिल है.

नताशा ने छोटी उम्र में अपनी मां को खो दिया था, जिस के कारण उन के परिवार में उन के अलावा उन का एक भाई और पिता महावीर नरवाल ही थे. राजनीतिक कैदियों की रिहाई की मांग महावीर नरवाल अपनी बेटी की रिहाई के लिए लगातार कोर्ट का दरवाजा खटखटाते रहे. पिछले एक वर्ष में महावीर को लगातार कोरोना की इस मुश्किल घड़ी में केस के सिलसिले में दिल्ली से हरियाणा यात्रा करनी पड़ रही थी. फिर भी उन्होंने हर चरण में कानून के दायरे में रह कर बेटी को जेल से मुक्त कराने की कोशिश की. महावीर नरवाल की मौत से एक दिन पहले शनिवार को नताशा की बेल अपील पर सुनवाई होनी थी, लेकिन वह सोमवार के लिए टाल दी गई. हालांकि सोमवार को उन्हें कोर्ट से 3 हफ्ते की आंतरिक जमानत मिल गई है ताकि वे पिता के अंतिम संस्कार की प्रक्रिया विधिवत रूप से पूरी कर सकें लेकिन ऐसे समय पर नरवाल परिवार के लिए दुखद यह रहा कि नताशा नरवाल अंत समय में पिता को देख न पाईं और न ही उन के करीब रह कर उन की सेवा कर पाईं, जब उन की सब से अधिक जरूरत थी.

पिता के जाने के बाद अब एकमात्र फैमिली मैंबर भाई आकाश नरवाल इस समय खुद कोरोना संक्रमित है. नागरिक समाज समूहों ने पिछले साल भी कोरोना की शुरुआत में राजनीतिक कैदियों को कोरोना वायरस के मामलों में वृद्धि को देखते हुए जेलों से रिहा करने की मांग की थी. जिस के न पूरा होने का शिकार नरवाल परिवार को उठाना पड़ा है. इस पूरे मसले में सब से ज्यादा असंवेदनशील रवैया कोर्ट और पुलिस का यह रहा कि ऐसे समय में भी नताशा को मौत से पहले बीमार पिता का हाल जानने के लिए जमानत नहीं दी गई थी. माकपा के पोलित ब्यूरो सदस्य वृंदा करात ने नरवाल परिवार के साथ संवेदना व्यक्त की और कहा, ‘‘यह उस व्यवस्था का भयानक अन्याय है जिस में एक बेटी अपने पिता को अंतिम विदाई के लिए भी असमर्थ रही जिसे एक साल से जेल में गलत तरह से बंद किया गया है.’’

वहीं, महिला अधिकार आंदोलनकारी कविता कृष्णन ने सरकार पर कटाक्ष किया कि नारीवादियों को जेल में जबरन बंद करना अत्याचार है और तब जब उन के करीबी कोविड-19 से जान गंवा रहे हों. उन्होंने कहा, ‘‘यह बेहद क्रूर और दुखद है. जेल में बंद राजनीतिक कैदियों को महामारी के दौरान जेल में रखना यातना का एक रूप है, यह न केवल जेल भुगतने की यातना है, साथ ही, अपने करीबियों से दूर रख कर दी गई यातना है जो मर रहे हैं.’’ जाहिर है, कोरोना का यह समय सभी के लिए कुछ न कुछ दुख ले कर आया है. ऐसे में बहुत से लोग हैं जो अपने परिजनों को असमय खो रहे हैं. बहुत से परिस्थितियों के मद्देनजर देखभाल तक नहीं कर पा रहे. ऐसे समय में हर कोई चाह रहा है कि वह इस मुश्किल घड़ी में अपने परिवार के साथ रहे. पिछले साल से ही इस कारण जेलों में बंद राजनीतिक कैदियों को रिहा किए जाने की बात चल रही है. जेल में ऐसे बहुत से कैदी हैं जो अभी ट्रायल पर हैं, जिन के खिलाफ अभी तक कोई सुबूत नहीं मिल पाया है. वे बेवजह, साजिशन संगीन आरोपों, ?ाठे मुकदमों में धर लिए गए हैं. उन के खिलाफ अभी तक सही ढंग से कोर्ट प्रक्रिया तक चालू नहीं हो पाई है और न ही उन के खिलाफ कोई सुबूत मिल पाया है. ऐसे में इस समय कम से कम इन कैदियों को जमानत दे दी जानी चाहिए ताकि मुश्किल घड़ी में वे अपने परिवार के साथ समय बिता सकें. सरकार द्वारा ऐसा न किया जाना उस की मानवीय असंवेदनाओं की दर्दनाक तसवीर ही पेश करता है.

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