लेखक- भारत भूषण श्रीवास्तव और शैलेंद्र सिंह  

धंधा है चंगा, स्वामी है नंगा, जो जी गया, वह तर गया, मरे को लील गई गंगा, कोई न ले पंगा.

गुजराती लेखिका पारुल खक्कर की कविता ‘शव वाहिनी गंगा’ से प्रेरि  उपरोक्त पंक्तियां आज की कोविड की स्थिति को पूरी तरह से दर्शाती हैं. बात सितंबर 2020 से शुरू करते हैं जब मेरठ में एक लौकेट धड़ल्ले से बिक रहा था. चर्चा यह थी कि उस को पहनने से कोरोना वायरस पास नहीं फटकता और उस के 2 मीटर के दायरे में आए तो मर जाता है. मेरठ के खैरनगर इलाके में सर्जिकल आइटम बेचने वालों के पास आम और खास लोग इस चमत्कारी लौकेट को खरीदने टूटे पड़ रहे थे. चीन में बना यह लौकेट कई सरकारी अधिकारियों के गले में घड़ी के पैंडुलम की तरह लटका था. और तो और भाजपा सांसद राजेंद्र अग्रवाल ने भी इसे पहना था.

जब हल्ला ज्यादा मचने लगा तो इस लौकेट की जांच हुई. जांच में यह बात सामने आई कि इफरात से बिक रहे इन लौकेटों में एक कैमिकल क्लोरीनडाईऔक्साइड का पाउडर भरा गया है जो आमतौर पर पानी साफ करने में इस्तेमाल किया जाता है. तब आईएमए के एक पदाधिकारी ने बताया था, ‘कैमिकल बैक्टीरियानाशक है जिस से कोरोना वायरस नष्ट नहीं होता, उलटे, उस के इस तरह इस्तेमाल से खुजली, कफ और सेहत संबंधी दूसरी समस्याएं पैदा हो सकती हैं.’ मेरठ के मुख्य चिकित्सा अधिकारी डाक्टर राजकुमार ने भी इसे फ्रौड करार दिया था.

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गौरतलब है कि भाजपा सांसद राजेंद्र अग्रवाल ने एमएससी फिजिक्स से किया है लेकिन इस का संबंध उन की अंधविश्वासी मानसिकता से जोड़ा जाना फुजूल की बात होगी क्योंकि देश के जो स्वास्थ्य मंत्री हर्षवर्धन गोयल ईएनटी के विशेषज्ञ हैं वे भी विज्ञान को शायद ही मानते हैं. कम ही लोग जानते हैं कि वे आधे एलोपैथिक और आधे आयुर्वेदिक डाक्टर हैं जो एलोपैथी में नाममात्र का ही भरोसा करते हैं, बल्कि उन के आदर्श तो आयुर्वेद के वर्तमान पितामह बाबा रामदेव हैं.

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