केरल के मुख्यमंत्री पिनारायी विजयन का अपने दूसरे मंत्रिमंडल में पूर्व स्वास्थ्य मंत्री कुमारी शैलजा को न लेने पर बहुत सी आंखें चौड़ी हुई हैं. पर यह बहुत गलत कदम नहीं. केरल ने एक बड़े अच्छे ढंग से स्वास्थ्य समस्या का सामना किया था और पहले कोविड दौर में शैलजा के खूबखूब वाहवाही मिली थी. सब को विश्वास था कि माक्र्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी दोबारा सत्ता में आने पर शैलजा को तो बरकरार ही रखेंगी. उन्हें ड्रौय कर देना आश्चर्य पैदा करता है पर यह कदम बुरा भी नहीं है.

आमतौर पर एक बार मंत्री तो हमेशा मंत्री का सिद्धंात बारबार चुनाव जीतने वाली पाॢटयों के साथ चलता है और यही लोकतंत्र के लिए खतरनाक होता है. लोकतंत्र में राजनीति का एक मात्र उद्देश्य मंत्री बन कर बने रहना ही हो जाता है और फिर हर तरह की हेरफेर की जाती है. जब एक मत्री को मालूम हो कि उस का कार्यकाल तो एक बार का है तो वह अपनी पहचान तो छोडऩा चाहता है पर कहीं किसी से समझौता नहीं करता. वह राजनीति में आजाद रहना है जो राजनीति की पहली आवश्यकता है.

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हर मंत्री को आम चुने हुए सांसद या विधायक की तरह बैठने की आदत हो तो सरकार के फैसले सही होते हैं और उन में बेइमानी की गुंजाइश कम हो जाती है. जब यह मालूम हो कि जो भी करोगे वह आने वाले की नजर में तो पड़ेगा ही तो कोई भी गलत काम नहीं किया जाता. अच्छे काम तो वैसे ही जनता को पता चल जाते हैं. जैसे शैलजा का कोविड प्रबंध सब को पता चला. जो मंत्री जब भी कुछ अच्छा करता है जनता हाथोंहाथ तुरंत लेती है और उसे बारबार पद देना जरूरी नहीं होता.

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