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धर्म और भ्रम में डूबा कोरोना इलाज- भाग 2: रामदेव के बयान से शर्मसार भारत

लेखक-भारत भूषण श्रीवास्तव और शैलेंद्र सिंह

कोरोनिल दवा के प्रचार में केंद्र सरकार के 2 मंत्री उस के लौंच के समय रामदेव के साथ मंच पर थे. वैसे ‘केरोनिल’ नाम का एक कंपाउंड चेन्नई की एक कंपनी 20 साल से ज्यादा समय से बना रही है पर वह इंडस्ट्रियल क्लीनर है, दवा नहीं. वह कंपनी ट्रेडमार्क को ले कर विवाद में है. मद्रास उच्च न्यायलय ने फिलहाल बिना अंतरिम राहत दिए उक्त कंपनी के मामले को दूसरी बैंच को भेज दिया है. उस मामले में पतंजलि ने स्वीकार किया कि 14 जून, 2020 को स्वामी रामदेव, जोकि ट्रस्टी हैं, ने दावा किया था कि कोरोना वायरस का क्योर कोरोनिल मैडिसिन के इन्वैंशन के साथ पा लिया गया है. रामदेव का यह दावा अब धूल खा रहा है.

पतंजलि ने स्वयं बाद में कहा कि कोरोना वायरस के उपचार की जगह इसे सिर्फ इम्यूनिटी बूस्टर की तरह इस्तेमाल किया जाए. फरवरी 21 में दिए गए पतंजलि आयुर्वेद लिमिटेड बनाम अरुद्रा इंजीनियरिंग प्राइवेट लिमिटेड के मामले में न्यायालयों के समक्ष बहुत सी चीजें साफ हुईं. इस बीच पतंजलि ने जो ‘दिव्य कोरोनिल’ दवा बनाई है उसे कोविड-19 की सहायक दवा और इम्यूनिटी बूस्टर के रूप में आयुष मंत्रालय से मान्यता मिल गई. हालांकि, बाद में यह बात सही साबित नहीं हुई. इस पर विवाद खड़ा हुआ. तब बड़ी चतुराई और सरकार के प्रभाव से कोरोनिल को दवा की कैटेगरी से बाहर कर दिया गया और कोरोनिल को फूड सप्लीमैंट की कैटेगरी में डाल दिया गया.

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विदेशों में कोरोनिल को ले कर टैस्ट हुए और कई देशों ने माना कि इस में साधारण इम्यूनिटी बढ़ाने का भी गुण नहीं है. महाराष्ट्र जैसे देश के कई राज्यों ने अपने यहां कोरोनिल के बेचने पर रोक लगा रखी है. वहीं, भाजपाशासित कई राज्य ऐसे हैं जहां कोरोनिल बिक रही है. हरियाणा में तो राज्य सरकार के साथ मिल कर पतंजलि 50 फीसदी दाम पर कोरोनिल जनता को उपलब्ध करा रही है यानी खुले और फुटकर बाजार में यह दोगुने दाम पर बेची जा रही है. बता दें कि रामदेव हरियाणा के ब्रैंड एम्बेसडर भी हैं.

जब कोरोनिल की सचाई सामने आई तो बौखलाए रामदेव ने जवाब में एलोपैथी और उस के डाक्टरों का मजाक उड़ाना शुरू कर दिया. लेकिन आपदा कानून लागू होने के बाद भी केंद्र सरकार ने रामदेव के खिलाफ मुकदमा दायर नहीं किया क्योंकि वह अपने इस चुनावी प्रचारक को मुसीबत में नहीं डालना चाहती. हिंदुत्व सुरक्षा कवच पहन रामदेव की विवादित कोरोनिल धड़ल्ले से बिकती रही. पढ़ेलिखे लोग इसे इम्यूनिटी बूस्टर की तरह लेते रहे हैं और अधपढ़े वैक्सीन की तरह कोविड के इलाज के लिए. दोनों ही कोविड की मार के शिकार हुए हैं.

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‘‘सब औक्सीजनऔक्सीजन कर रहे हैं. पूरे ब्रह्मांड में औक्सीजन भरी पड़ी है. अपने शरीर में जितनी चाहो औक्सीजन भर लो. अस्पतालअस्पताल घूमते हैं. मरने वालों में उन की संख्या अधिक है जो अस्पताल गए. एलोपैथी मूर्खतापूर्ण विज्ञान है. एलोपैथी दवाएं लेने के बाद भी लाखों लोग मर गए.’’ बाबा रामदेव का यह बयान पूरी दुनिया में आलोचना का विषय बन गया. भारत में इडियन मैडिकल एसोसिएशन ने आपत्ति दर्ज कराई. केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री डाक्टर हर्षवर्धन के पत्र लिखने के बाद रामदेव ने एक बयान जारी कर अपनी बात को वापस लेने की बात कही.

इसी बीच, एलोपैथी और डाक्टरों का मजाक उड़ाते हुए रामदेव का दूसरा वीडियो वायरल हो गया. इस में रामदेव अपने साथ योग कर रहे लोगों से कहते हैं, ‘‘तीसरा बोला मु?ो डाक्टर बनना है टर… टर… टर… टर… टर… टर बनना है… डाक्टर… एक हजार डाक्टर तो कोरोना की डबल वैक्सीन लगाने के बाद मर गए… कितने..? एक हजार डाक्टर… कल का समाचार है. अपनेआप को नहीं बचा पाए वे. कैसी डाक्टरी.’’ रामदेव इस वीडियो में आगे कहते हैं, ‘‘डाक्टर बनना है तो स्वामी रामदेव जैसा बन जिस के पास कोई डिग्री नहीं है और सब का डाक्टर है… विदाउट एनी डिग्री, विद डिविनिटी, विद डिग्निटी… आई एम अ डाक्टर.’’

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जब रामदेव के बयानों की आलोचना होने लगी तो रामदेव अपने दोनों बयानों पर खेद प्रकट करने के बजाय एलोपैथी को कठघरे में खड़ा करते हुए 25 सवाल पूछने लगे. इस संबंध में इडियन मैडिकल एसोसिएशन को पत्र लिखा. यह पत्र मीडिया में वायरल कर दिया गया. ये सवाल ठीक वैसे ही हैं जैसे पोंगापंथियों के सवाल रहते हैं. इन में आयुर्वेद को सब से भरोसे का बताने का काम किया गया. धार्मिक शैली में सवाल के जवाब में सवाल पूछने का काम किया गया. आईएमए इन सवालों के जवाब तार्किक रूप से देने की तैयारी कर रहा है. हालांकि, मूर्खतापूर्ण आरोपों का जवाब ट्रौलजीवियों ने भी नहीं दिया था. आईएमए के महासचिव डाक्टर जयेश एम लेले 25 सवाल रामदेव को भेजने वाले हैं.

जब देश के प्रधानमंत्री डाक्टरों और एलोपैथी के योगदान की भरपूर सराहना और तारीफ कर रहे हों तो रामदेव को एलोपैथी व उस के डाक्टरों की आलोचना करने का साहस अपनेआप मिल ही गया सम?ा. केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री के पत्र लिखने के बाद भी रामदेव की तरफ से हमले पर हमले जारी रहे.

रामदेव का साथ देने के लिए पतंजलि के दूसरे प्रमुख आचार्य बालकृष्ण ने ट्विटर पर सारे मसले को भारतीय संस्कृति पर हमला बताते हुए कहा, ‘‘सारे देश को ईसाई धर्म में तबदील करने के षड्यंत्र के तहत बाबा रामदेव को टारगेट किया जा रहा है और योग तथा आयुर्वेद को बदनाम किया जा रहा है.’’ इस बचकाने लेकिन पूर्वाग्रही बयान में इशारा सोनिया गांधी की तरफ ही है जिस का मकसद बेवजह का बवंडर खड़ा करना था. देश में ऐसे अंधभक्तों की कमी नहीं है जो वायरस को चीन का षड्यंत्र मानते हैं और वैक्सीन को ईसाई साजिश.

भारत में डाक्टरों की शीर्ष संस्था इंडियन मैडिकल एसोसिएशन यानी आईएमए का कहना है कि इस के पहले भी रामदेव स्वास्थ्य मंत्री की मौजूदगी में डाक्टरों को ‘हत्यारा’ बता चुके हैं. जबकि सब को पता है कि योगगुरु और उन के सहयोगी बालकृष्ण बीमारी के समय एलोपैथी का उपचार लेते रहे हैं और अब बड़े पैमाने पर जनता को गुमराह करने के लिए वे ?ाठे और निराधार आरोप लगा रहे हैं ताकि वे अपनी अवैध व अस्वीकृत दवाओं को बेच सकें.

आईएमए इस लड़ाई को लड़ना चाहता है पर केंद्र सरकार के रुख को देखते हुए वह मुखर हो कर अपना विरोध दर्ज नहीं करा पा रहा है. आईएमए जानता है कि उसे सरकार की हां में हां मिलानी पड़ेगी ही. भारत में इस तरह की संस्थाएं सरकार समर्थित व्यक्ति की आलोचना एक सीमा तक ही कर सकती हैं. यहां तो सुप्रीम कोर्ट भी तुषार मेहता के इशारे को सम?ा कर मामले को सुनता है.

रामदेव की हिम्मत और बदजबानी करने का कारण भी है. उन्हें मालूम है कि वे मोदी सरकार से कुछ भी मांग व हासिल कर सकते हैं. उन के पास अंधभक्तों का एक बड़ा तबका है जो उन के कहने पर भाजपा को वोट देता है. इसीलिए वे किसी को कुछ भी कह देते हैं फिर चाहे पढ़ेलिखे डाक्टर ही क्यों न हों. उन के कहने पर ही 25 सितंबर, 2018 को सीजीएचएस के निदेशक डा. अतुल प्रकाश ने पतंजलि योगपीठ, हरिद्वार-दिल्ली मार्ग, को सीजीएचएस का एम्पैनल्ड अस्पताल मान लिया. और इस से संबंधित औफिस मैमोरंडम में पतंजलि योगपीठ के किसी आवेदन तक का जिक्र नहीं है. यह औफिस मैमोरंडम सरकारी अस्पतालों के चीफ मैडिकल अफसरों को भेजा गया जहां अभी तक एमबीबीएस की पढ़़ाई कर के ही नौकरी मिलती है.

मेरी उम्र 31 वर्ष है,मेरी शादी को 3 साल हो गए हैं, हमें कोई संतान नहीं है, क्या हमें चिकित्सकीय सहायता की जरूरत है?

सवाल
मेरी उम्र 31 वर्ष है. मेरी शादी को 3 साल हो गए हैं. हमें कोई संतान नहीं है. क्या हमें चिकित्सकीय सहायता की जरूरत है?

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जवाब
गर्भ न धारण कर पाने के अनेक कारण हो सकते हैं. आप व आप के पार्टनर को अपनी संपूर्ण जांच करवानी चाहिए. अगर इन्फर्टिलिटी का कारण पार्टनर है, तो इस का मतलब है कि कहीं न कहीं यह समस्या पार्टनर में जरूरत से कम शुक्राणुओं के निर्माण से जुड़ी है. दूसरा कारण यह भी हो सकता है कि पार्टनर में शुक्राणु पर्याप्त मात्रा में निर्मित तो होते हैं, लेकिन वे पत्नी के अंडाणुओं तक पहुंच नहीं पाते हैं.

महिला में स्त्रीबीजजनन चक्र में गड़बड़ी भी इन्फर्टिलिटी की बहुत बड़ी वजह होती है. इस गड़बड़ी के कारण महिला के भीतर आवश्यक अंडों का निर्माण नहीं होता या फिर अंडो की निर्माण प्रक्रिया में भी गड़बड़ी हो सकती है. वे महिलाएं जो थायराइड की समस्या से ग्रस्त होती हैं, उन में स्त्रीबीजजनन प्रक्रिया बाधित हो जाती है और उन का गर्भधारण करना थोड़ा कठिन हो जाता है, मगर किसी भी नतीजे पर पहुंचने से पहले संपूर्ण जांच अति आवश्यक है.

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गर्भवती महिलाओं की सामान्य समस्याएं

गर्भावस्था के दौरान गर्भवती महिला की त्वचा में विभिन्न प्रकार के परिवर्तन आते हैं. शरीर में हार्मोन्स की बढ़ती संख्या एवं त्वचा में रक्त के उच्च प्रवाह की वजह से गर्भवती महिलाओं को त्वचा की विभिन्न समस्याओं का सामना करना पड़ता है. त्वचा की इन समस्याओं की एक अच्छी बात यह होती है कि बच्चे के जन्म के बाद ये आमतौर पर अपने आप ठीक हो जाते हैं एवं इनके लिए किसी खास उपचार की आवश्यकता नहीं होती. ऐसा इसलिए होता है क्योंकि शरीर के हार्मोनल स्तर पहले के संतुलित स्तर तक पहुंचने लगते हैं.

ऐसी महिलाओं की संख्या काफी कम है जिन्हें गर्भावस्था के दौरान अपनी त्वचा में सकारात्मक परिवर्तनों का अनुभव होता है. अधिकतर महिलाएं त्वचा की ऐसी समस्याओं से गुजरती हैं, जिनका उन्होंने पहले सामना नहीं किया होगा. इस लेख में हम गर्भावस्था के दौरान त्वचा की सामान्य समस्याओं के बारे में बात करेंगे.

गर्भावस्था के दौरान त्वचा की समस्याएं सामान्य हो या गंभीर, उसके बारे में अपने डाक्टर को अवश्य बताएं एवं अपने स्त्री रोग विशेषज्ञ से सलाह किये बिना किसी तरह की दवा का सेवन न करें. अगर आपकी त्वचा की समस्या गंभीर है तो आपकी डाक्टर आपको कुछ उपाय बताती हैं, जिनसे ये बच्चे के जन्म के बाद खुद ही ठीक हो जाते हैं.

गर्भावस्था के दौरान बाल तेजी से क्यों बढ़ते हैं?

एक्ने गर्भवती महिलाओं के सामने आने वाली त्वचा की सामान्य समस्याओं में से एक है. अगर आप किशोरावस्था के दौरान एक्ने का शिकार हो चुकी हैं, तो इस बात की संभावना है कि आपको यह समस्या गर्भावस्था के दौरान भी होगी. गर्भावस्था के दौरान एक्ने शरीर में हार्मोन के स्तर के बदलने से होते हैं एवं आप कितना भी प्रयास कर लें, बच्चे के जन्म तक इनसे पूर्ण रूप से छुटकारा प्राप्त नहीं कर सकती. ऐसी स्थितियों में सबसे अच्छा विकल्प त्वचा को एक्ने से बचाने के लिए इसकी देखभाल करना है, जिससे यह सुनिश्चित किया जा सके कि स्थिति अधिक गंभीर ना हो जाए. कभी भी एक्ने को ना फोड़ें. गर्भावस्था का समय पूरा हो जाने पर एक्ने खुद ही छोटा हो जाएगा.

सोराइसिस

सोराइसिस त्वचा की एक स्थिति है जिसकी गंभीरता गर्भावस्था की वजह से बढ़ सकती है. सोराइसिस पूरी तरह ठीक तो नहीं किया जा सकता, परन्तु इसका इलाज करके इसे काफी हद तक नियंत्रित किया जा सकता है. लेकिन गर्भावस्था के दौरान त्वचा की समस्याओं का इलाज करने के लिए अपने डाक्टर की सलाह अनुसार घरेलू नुस्खों एवं कुछ सामान्य उपचारों का पालन करना पड़ेगा. अगर आपको पहले कभी सोराइसिस नहीं हुआ है फिर भी आपको यह बीमारी गर्भावस्था के दौरान हो सकती है, पर इसकी संभावना काफी कम है.

त्वचा का रूखापन एवं खुजली

शरीर में हार्मोन्स के बदलते स्तर की वजह से त्वचा रूखी हो सकती है एवं त्वचा की अतिरिक्त संवेदनशीलता रूखी त्वचा को और भी बेचैन कर देते हैं. आमतौर पर यह समस्या चेहरे के मुकाबले शरीर की त्वचा पर अधिक देखी जाती है. गर्भावस्था के दौरान त्वचा के रूखेपन एवं खुजली का इलाज करने का श्रेष्ठ उपाय स्नान करते समय आवश्यक तेलों युक्त नहाने के नमक का प्रयोग एवं एलो वेरा जेल को शरीर पर प्रयोग करना है. इससे आपकी त्वचा में अधिक रूखापन नहीं आएगा.

गर्भावस्था की प्रुरिटिक यूर्तिकेरियल पैप्युल्स एवं प्लाक

यह त्वचा की एक गंभीर समस्या है एवं गर्भावस्था के दौरान सामने आती है. यह बीमारी त्वचा पर लाल दानों के रूप में उभरती है एवं खुजली, जलन एवं डंक का दर्द पैदा करती है जिसे सहना काफी कठिन होता है. एक बार गर्भावस्था का समय समाप्त होने पर यह खुद ही ठीक भी हो जाती है. जब ये दाने साथ मिलकर एक बड़े क्षेत्र, उदाहरणस्वरूप खाने की थाली के आकार का क्षेत्र पर फैलते हैं, तो इन्हें प्लाक कहते हैं. ये गर्भावस्था के दौरान सामान्यतः कूल्हों, पैरों, हाथों एवं पेट पर उभरते हैं.

त्वचा के रैशेस

गर्भावस्था के दौरान विभिन्न प्रकार के रैशेस होना काफी आम है. गर्भावस्था के दौरान किसी भी तरह के रैशेस को ठीक होने में या तो काफी समय लगता है या ये पूरी तरह ठीक नहीं हो पाते. अतः इस बात को सुनिश्चित करें कि आपको रैशेस का शिकार ना होना पड़े. अगर आपको रैशेस होते हैं तो शुरुआत से ही इनपर पूरी तरह ध्यान दें, जिससे इनपर समय रहते काबू प्राप्त किया जा सके.

स्ट्रेच मार्क्स

अगर आपकी त्वचा खिंची हुई है तो इसपर निश्चित रूप से स्ट्रेच मार्क्स होंगे. स्ट्रेच मार्क्स गर्भावस्था के दौरान, खासकर पेट के भाग पर भ्रूण के तेज विकास की वजह से काफी आम होते हैं. अगर आपका वजन गर्भावस्था के दौरान काफी बढ़ गया है तो आपके शरीर के अन्य हिस्सों में भी स्ट्रेच मार्क्स उभर सकते हैं. स्ट्रेच मार्क्स घाव की रेखाओं की तरह उभरते हैं एवं शुरुआत में इनका रंग बैंगनी या लाल होता है. त्वचा के प्रभावित भाग की अच्छे से देखभाल करने पर गर्भावस्था के पश्चात स्ट्रेच मार्क्स कम भी हो सकते हैं.

अति रंजकता

अति रंजकता या त्वचा का काला पड़ना त्वचा की उन सामान्य समस्याओं में शामिल है जिनका सामना गर्भवती महिलाओं को करना पड़ता है. त्वचा का रंग इसपर मौजूद मेलेनिन पिग्मेंट पर निर्भर करता है. गर्भावस्था के फलस्वरूप मेलेनिन सिंथेसिस  की गति बढ़ जाती है जिससे अति रंजकता एवं त्वचा का रंग काला होने की स्थिति उत्पन्न होती है. इस समस्या का इलाज गर्भावस्था के दौरान नहीं किया जा सकता.

अत्याधिक सूर्य संवेदनशीलता

गर्भावस्था के फलस्वरूप सूरज की किरणों के प्रति आपकी संवेदनशीलता काफी मात्रा में बढ़ जाती है. गर्भवती महिलाओं को सनटैन एवं सनबर्न का खतरा सामान्य लोगों से कहीं अधिक होता है. गर्भावस्था के दौरान सूरज के संपर्क में न्यूनतम रूप से आने पर भी त्वचा को हानि पहुंच सकती है एवं चेहरा क्षतिग्रस्त हो सकता है.

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz

सब्जेक्ट में लिखें- सरिता व्यक्तिगत समस्याएं/ personal problem 

 

 

Manohar Kahaniya: ऑनलाइन चलता सेक्स रैकेट

सौजन्या -मनोहर कहानियां

22जनवरी, 2021 की बात है. 12 साल की मानसी पास की दुकान से चिप्स लेने गई थी.जब वह काफी देर बाद भी घर नहीं लौटी तो घर वालों को उस की चिंता हुई. घर वाले उस दुकानदार के पास पहुंचे, जिस के पास वह अकसर खानेपीने का सामान लाती थी. उन्होंने उस दुकानदार से मानसी के बारे में पूछा तो दुकानदार ने बताया कि मानसी तो काफी देर पहले ही चिप्स का पैकेट ले कर जा चुकी है.जब वह चिप्स ले कर जा चुकी है तो घर क्यों नहीं पहुंची, यह बात घर वालों की समझ में नहीं आ रही थी. उन्होंने आसपास के बच्चों से उस के बारे में पूछा, लेकिन उन से भी मानसी के बारे में कोई जानकारी नहीं मिली.

घर वालों की समझ में नहीं आ रहा था कि आखिर मानसी गई तो गई कहां. उन्होंने उसे इधरउधर तमाम संभावित जगहों पर ढूंढा लेकिन उस का कहीं पता नहीं चला. तब उन्होंने इस की सूचना पश्चिमी दिल्ली के थाना राजौरी गार्डन में दे दी. चूंकि मामला एक नाबालिग लड़की के लापता होने का था, इसलिए पुलिस ने इस मामले को गंभीरता से लिया. पुलिस ने मानसी के पिता की तरफ से गुमशुदगी की सूचना दर्ज कर ली.
डीसीपी (पश्चिमी दिल्ली) उर्विजा गोयल को जब 12 वर्षीय मानसी के गायब होने की जानकारी मिली तब उन्होंने थाना पुलिस को इस मामले में तीव्र काररवाई करने के आदेश दिए. डीसीपी का आदेश पाते ही थानाप्रभारी ने इस मामले की जांच के लिए एएसआई विनती प्रसाद के नेतृत्व में एक पुलिस टीम गठित कर दी.

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एएसआई विनती प्रसाद ने सब से पहले लापता बच्ची के घर वालों से उस के बारे में विस्तार से जानकारी ली. इतना ही नहीं, उन्होंने घर वालों से यह भी जानना चाहा कि उन की किसी से कोई रंजिश तो नहीं है. घर वालों ने उन से साफ कह दिया कि उन की किसी से कोई दुश्मनी नहीं है. इस के बाद पुलिस अपने स्तर से मानसी को तलाशने लगी.

जिस जगह से मानसी गायब हुई थी, पुलिस ने उस क्षेत्र के सीसीटीवी कैमरों की फुटेज देखी. इस के अलावा स्थानीय लोगों से भी बच्ची के बारे में जानकारी हासिल की. पुलिस ने सोशल मीडिया पर भी निगरानी कर दी, लेकिन कहीं से भी मानसी के बारे में कोई सुराग नहीं मिला. पुलिस टीम को जांच करतेकरते करीब 2 महीने बीत चुके थे. जब बच्ची कहीं नहीं मिली तो पुलिस ने ह्यूमन ट्रैफिकिंग के एंगल को ध्यान में रखते हुए केस की जांच शुरू कर दी. यानी पुलिस को यह शक होने लगा कि कहीं ऐसा तो नहीं कि बच्ची जिस्मफरोशी गैंग के चंगुल में फंस गई हो.

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इस बिंदु पर जांच करतेकरते पुलिस टीम ने कई जगहों पर दबिशें दीं, लेकिन लापता बच्ची का सुराग नहीं मिला. करीब 2 महीने बाद पुलिस को सूचना मिली कि मानसी का अपहरण करने के बाद उसे दिल्ली के मजनूं का टीला इलाके में रखा गया है और वहीं पर उस से जिस्मफरोशी का धंधा कराया जा रहा है. यह सूचना रोंगटे खड़े कर देने वाली थी. क्योंकि मानसी की उम्र केवल 12 साल थी और इस उम्र में उस बच्ची के साथ जिस तरह का कार्य कराने की जानकारी मिली, वह मानवता को शर्मसार करने वाली ही थी.

जांच अधिकारी विनती प्रसाद ने यह खबर अपने उच्चाधिकारियों को दी फिर उन्हीं के दिशानिर्देश पर पुलिस टीम ने 17 मार्च, 2021 को मजनूं का टीला इलाके में एक घर पर दबिश दी. मुखबिर की सूचना सही निकली. मानसी वहीं पर मिल गई. पुलिस ने मानसी को सब से पहले अपने कब्जे में लिया. इस के बाद पुलिस ने वहां 2 महिलाओं सहित 4 लोगों को गिरफ्तार किया.

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पुलिस ने उन सभी से पूछताछ की तो उन्होंने स्वीकार किया कि वे बड़े स्तर पर एस्कौर्ट सर्विस मुहैया कराते थे और उन का धंधा ज्यादातर वाट्सऐप ग्रुप और इंटरनेट के माध्यम से चलता है. उन के पास से पुलिस ने 5 मोबाइल फोन बरामद किए. फोनों की जांच की गई तो तमाम वाट्सऐप ग्रुप में ऐसी लड़कियों के अनेक फोटो मिले, जिन से वे जिस्मफरोशी कराते थे. पुलिस ने गिरफ्तार किए हुए उन चारों लोगों से पूछताछ की तो पता चला कि उन में से संजय राजपूत और कनिका राय मजनूं का टीला के रहने वाले थे जबकि अंशु शर्मा मुरादाबाद का और सपना गोयल मुजफ्फरनगर की.

ये सभी औनलाइन सैक्स रैकेट चलाते थे. जांच में पता चला कि इन लोगों के काम करने का तरीका एकदम अलग था. यह गिरोह सोशल साइट पर ज्यादा सक्रिय था. गैंग के लोग 150 से ज्यादा वाट्सऐप ग्रुप में सक्रिय थे. एस्कौर्ट सर्विस मुहैया कराने वाली लड़की के फोटो ये वाट्सऐप ग्रुप में शेयर करते थे. इस के बाद ग्रुप से जो कस्टमर इन के संपर्क में आता था, उस से यह पर्सनल चैटिंग करने के बाद पैसों की डील फाइनल करते थे. फिर औनलाइन ही पेमेंट अपने खाते में ट्रांसफर कराने के बाद कस्टमर के बताए गए स्थान पर ये लड़की को सप्लाई करते थे.

इस तरह यह गैंग देश के अलगअलग बड़े शहरों में लड़कियों की सप्लाई करते था. इतना ही नहीं, फाइव स्टार होटलों में भी इन के पास से लड़कियां सप्लाई की जाती थीं. आरोपियों ने बताया कि उन के गैंग के सदस्य अलगअलग जगहों से लड़कियां उन के पास लाते थे. मानसी का भी गैंग के 2 लोगों ने अपहरण उस समय किया था, जब वह दुकान पर गई थी. उस का अपहरण करने के बाद वह उसे अपने घर पर ले गए थे.

उन्होंने मानसी से कहा था कि आज उन के यहां पर जन्मदिन है इसलिए वह बच्चों को इकट्ठा कर के केक काटेंगे. उन्होंने मानसी को केक खाने को दिया. केक खाते ही मानसी को नशा हो गया. इस के बाद दोनों मानसी को मजनूं का टीला ले गए, वहां पर संजय राजपूत, अंशु शर्मा, सपना गोयल और कनिका राय मिली. 12 साल की बच्ची को देख कर ये चारों खुश हो गए कि अब इस से मोटी कमाई की जा सकती है. क्योंकि वह तो उसे सोने का अंडा देने वाली मुरगी समझ रहे थे.

जब मानसी पर हल्का नशा सवार था, तभी उस के साथ रेप किया गया. होश आने पर मानसी दर्द से कराहती रही. इस के बाद भी इन लोगों को उस पर दया नहीं आई. उन्होंने उसी रात उसे किसी दूसरे ग्राहक के सामने पेश किया.इस तरह वह मानसी का शारीरिक शोषण करते रहे. जब वह विरोध करती तो ये लोग उसे प्रताडि़त करते थे. इस तरह मानसी इन लोगों के चंगुल में बुरी तरह फंस चुकी थी. वहां से निकलने का उस के पास कोई उपाय नहीं था.

आरोपियों के 2 अन्य साथी फरार हो चुके थे. पुलिस ने उन की तलाश में अनेक स्थानों पर दबिश दी, लेकिन उन का पता नहीं चला. आरोपी 35 वर्षीय संजय राजपूत, 21 वर्षीय अंशु शर्मा, 24 साल की सपना गोयल और 28 साल की कनिका राय से विस्तार से पूछताछ करने के बाद पुलिस ने उन्हें न्यायालय में पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया.

अभियुक्तों के पास से बरामद की गई 12 वर्षीय मानसी को पुलिस ने उपचार के लिए अस्पताल में भरती करा दिया. मानसी ने अपने साथ घटी सारी घटना पुलिस को बता दी.आरोपियों को जेल भेजने के बाद पुलिस गंभीरता से इस बात की जांच करने में जुट गई. इस गैंग के तार देश में किनकिन लोगों से जुड़े थे और इन्होंने अब तक कितनी लड़कियों का अपहरण किया था.

शायद बर्फ पिघल जाए- भाग 1

‘‘हमारा जीवन कोई जंग नहीं है मीना कि हर पल हाथ में हथियार ही ले कर चला जाए. सामने वाले के नहले पर दहला मारना ही क्या हमारे जीवन का उद्देश्य रह गया है?’’ मैं ने समझाने के उद्देश्य से कहा, ‘‘अब अपनी उम्र को भी देख लिया करो.’’

‘‘क्या हो गया है मेरी उम्र को?’’ मीना बोली, ‘‘छोटाबड़ा जैसे चाहे मुझ से बात करे, क्या उन्हें तमीज न सिखाऊं?’’

‘‘तुम छोटेबड़े, सब के हर काम में अपनी टांग क्यों फंसाती हो, छोटे के साथ बराबर का बोलना क्या तुम्हें अच्छा लगता है?’’

‘‘तुम मेरे सगे हो या विजय के? मैं जानती हूं तुम अपने ही खून का साथ दोगे. मैं ने अपनी पूरी उम्र तुम्हारे साथ गुजार दी मगर आज भी तुम मेरे नहीं अपने परिवार के ही सगे हो.’’

मैं ने अपना सिर पीट लिया. क्या करूं मैं इस औरत का. दम घुटने लगता है मेरा अपनी ही पत्नी मीना के साथ. तुम ने खाना मुझ से क्यों न मांगा, पल्लवी से क्यों मांग लिया. सिरदर्द की दवा पल्लवी तुम्हें क्यों खिला रही थी? बाजार से लौट कर तुम ने फल, सब्जी पल्लवी को क्यों पकड़ा दी, मुझे क्यों नहीं बुला लिया. मीना अपनी ही बहू पल्लवी से अपना मुकाबला करे तो बुरा लगना स्वाभाविक है.

उम्र के साथ मीना परिपक्व नहीं हुई उस का अफसोस मुझे होता है और अपने स्नेह का विस्तार नहीं किया इस पर भी पीड़ा होती है क्योंकि जब मीना ब्याह कर मेरे जीवन में आई थी तब मेरी मां, मेरी बहन के साथ मुझे बांटना उसे सख्त नागवार गुजरता था. और अब अपनी ही बहू इसे अच्छी नहीं लगती. कैसी मानसिकता है मीना की?

मुझे मेरी मां ने आजाद छोड़ दिया था ताकि मैं खुल कर सांस ले सकूं. मेरी बहन ने भी शादी के बाद ज्यादा रिश्ता नहीं रखा. बस, राखी का धागा ही साल भर बाद याद दिला जाता था कि मैं भी किसी का भाई हूं वरना मीना के साथ शादी के बाद मैं एक ऐसा अनाथ पति बन कर रह गया जिस का हर कोई था फिर भी पत्नी के सिवा कोई नहीं था. मैं ने मीना के साथ निभा लिया क्योंकि मैं पलायन में नहीं, निभाने में विश्वास रखता हूं, लेकिन अब उम्र के इस पड़ाव पर जब मैं सब का प्यार चाहता हूं, सब के साथ मिल कर रहना चाहता हूं तो सहसा महसूस होता है कि मैं तो सब से कटता जा रहा हूं, यहां तक कि अपने बेटेबहू से भी.

मीना के अधिकार का पंजा शादी- शुदा बेटे के कपड़ों से ले कर उस के खाने की प्लेट तक है. अपना हाथ उस ने खींचा ही नहीं है और मुझे लगता है बेटा भी अपना दम घुटता सा महसूस करने लगा है.

‘‘कोई जरूरत नहीं है बहू से ज्यादा घुलनेमिलने की. पराया खून पराया ही रहता है,’’ मीना ने सदा की तरह एकतरफा फैसला सुनाया तो बरसों से दबा लावा मेरी जबान से फूट निकला.

‘‘मेरी मां, बहन और मेरा भाई विजय तो अपना खून थे पर तुम ने तो मुझे उन से भी अलग कर दिया. मेरा अपना आखिर है कौन, समझा सकती हो मुझे? बस, वही मेरा अपना है जिसे तुम अपना कहो…तुम्हारे अपने भी बदलते रहते हैं… कब तक मैं रिश्तों को तुम्हारी ही आंखों से देखता रहूंगा.’’

कहतेकहते रो पड़ा मैं, क्या हो गया है मेरा जीवन. मेरी सगी बहन, मेरा सगा भाई मेरे पास से निकल जाते हैं और मैं उन्हें बुलाता ही नहीं…नजरें मिलती हैं तो उन में परायापन छलकता है जिसे देख कर मुझे तकलीफ होती है. हम 3 भाई, बहन जवान हो कर भी जरा सी बात न छिपाते थे और आज वर्षों बीत गए हैैं उन से बात किए हुए.

आज जब जीवन की शाम है, मेरी बहू पल्लवी जिस पर मैं अपना ममत्व अपना दुलार लुटाना चाहता हूं, वह भी मीना को नहीं सुहाता. कभीकभी सोचता हूं क्या नपुंसक हूं मैं? मेरी शराफत और मेरी निभा लेने की क्षमता ही क्या मेरी कमजोरी है? तरस आता है मुझे कभीकभी खुद पर.

क्या वास्तव में जीवन इसी जीतहार का नाम है? मीना मुझे जीत कर अलग ले गई होगी, उस का अहं संतुष्ट हो गया होगा लेकिन मेरी तो सदा हार ही रही न. पहले मां को हारा, फिर बहन को हारा. और उस के बाद भाई को भी हार गया.

‘‘विजय चाचा की बेटी का  रिश्ता पक्का हो गया है, पापा. लड़का फौज में कैप्टन है,’’ मेरे बेटे दीपक ने खाने की मेज पर बताया.

‘‘अच्छा, तुझे बड़ी खबर है चाचा की बेटी की. वह तो कभी यहां झांकने भी नहीं आया कि हम मर गए या जिंदा हैं.’’

‘‘हम मर गए होते तो वह जरूर आता, मीना, अभी हम मरे कहां हैं?’’

मेरा यह उत्तर सुन हक्काबक्का रह गया दीपक. पल्लवी भी रोटी परोसती परोसती रुक गई.

‘‘और फिर ऐसा कोई भी धागा हम ने भी कहां जोड़े रखा है जिस की दुहाई तुम सदा देती रहती हो. लोग तो पराई बेटी का भी कन्यादान अपनी बेटी की तरह ही करते हैं, विजय तो फिर भी अपना खून है. उस लड़की ने ऐसा क्या किया है जो तुम उस के साथ दुश्मनी निभा रही हो.

खाना पटक दिया मीना ने. अपनेपराए खून की दुहाई देने लगी.

‘‘बस, मीना, मैं इस बहस में नहीं पड़ना चाहता कि कल क्या हुआ था. जो भी हुआ उस का इस से बुरा परिणाम और क्या होगा कि इतने सालों से हम दोनों भाइयों ने एकदूसरे की शक्ल तक नहीं देखी… आज अगर पता चला है कि उस की बच्ची की शादी है तो उस पर भी तुम ताना कसने लगीं.’’

‘‘उस की शादी का तो मुझे 15 दिन से पता है. क्या वह आप को बताने आया?’’

‘‘अच्छा, 15 दिन से पता है तो क्या तुम बधाई देने गईं? सदा दूसरों से ही उम्मीद करती हो, कभी यह भी सोचा है कि अपना भी कोई फर्ज होता है. कोई भी रिश्ता एकतरफा नहीं चलता. सामने वाले को भी तो पता चले कि आप को उस की परवा है.’’

‘‘क्या वह दीपक की शादी में आया था?’’ अभी मीना इतना ही कह पाई थी कि मैं खाना छोड़ कर उठ खड़ा हुआ.

मीना का व्यवहार असहनीय होता जा रहा है. यह सोच कर मैं सिहर उठता कि एक दिन पल्लवी भी दीपक को ले कर अलग रहने चली जाएगी. मेरी उम्र भर की साध मेरा बेटा भी जब साथ नहीं रहेगा तो हमारा क्या होगा? शायद इतनी दूर तक मीना सोच नहीं सकती है.

शायद बर्फ पिघल जाए

शायद बर्फ पिघल जाए- भाग 2

सहसा माली ने अपनी समस्या से चौंका दिया, ‘‘अगले माह भतीजी का ब्याह है. आप की थोड़ी मदद चाहिए होगी साहब, ज्यादा नहीं तो एक जेवर देना तो मेरा फर्ज बनता ही है न. आखिर मेरे छोटे भाई की बेटी है.’’

ऐसा लगा  जैसे किसी ने मुझे आसमान से जमीन पर फेंका हो. कुछ नहीं है माली के पास फिर भी वह अपनी भतीजी को कुछ देना चाहता है. बावजूद इस के कि उस की भी अपने भाई से अनबन है. और एक मैं हूं जो सर्वसंपन्न होते हुए भी अपनी भतीजी को कुछ भी उपहार देने की भावना और स्नेह से शून्य हूं. माली तो मुझ से कहीं ज्यादा धनवान है.

पुश्तैनी जायदाद के बंटवारे से ले कर मां के मरने और कार दुर्घटना में अपने शरीर पर आए निशानों के झंझावात में फंसा मैं कितनी देर तक बैठा सोचता रहा, समय का पता ही नहीं चला. चौंका तो तब जब पल्लवी ने आ कर पूछा, ‘‘क्या बात है, पापा…आप इतनी रात गए यहां बैठे हैं?’’ धीमे स्वर में पल्लवी बोली, ‘‘आप कुछ दिन से ढंग से खापी नहीं रहे हैं, आप परेशान हैं न पापा, मुझ से बात करें पापा, क्या हुआ…?’’

जरा सी बच्ची को मेरी पीड़ा की चिंता है यही मेरे लिए एक सुखद एहसास था. अपनी ही उम्र भर की कुछ समस्याएं हैं जिन्हें समय पर मैं सुलझा नहीं पाया था और अब बुढ़ापे में कोई आसान रास्ता चाह रहा था कि चुटकी बजाते ही सब सुलझ जाए. संबंधों में इतनी उलझनें चली आई हैं कि सिरा ढूंढ़ने जाऊं तो सिरा ही न मिले. कहां से शुरू करूं जिस का भविष्य में अंत भी सुखद हो? खुद से सवाल कर खुद ही खामोश हो लिया.

‘‘बेटा, वह…विजय को ले कर परेशान हूं.’’

‘‘क्यों, पापा, चाचाजी की वजह से क्या परेशानी है?’’

‘‘उस ने हमें शादी में बुलाया तक नहीं.’’

‘‘बरसों से आप एकदूसरे से मिले ही नहीं, बात भी नहीं की, फिर वह आप को क्यों बुलाते?’’ इतना कहने के बाद पल्लवी एक पल को रुकी फिर बोली, ‘‘आप बड़े हैं पापा, आप ही पहल क्यों नहीं करते…मैं और दीपक आप के साथ हैं. हम चाचाजी के घर की चौखट पार कर जाएंगे तो वह भी खुश ही होंगे…और फिर अपनों के बीच कैसा मानअपमान, उन्होंने कड़वे बोल बोल कर अगर झगड़ा बढ़ाया होगा तो आप ने भी तो जरूर बराबरी की होगी…दोनों ने ही आग में घी डाला होगा न, क्या अब उसी आग को पानी की छींट डाल कर बुझा नहीं सकते?…अब तो झगड़े की वजह भी नहीं रही, न आप की मां की संपत्ति रही और न ही वह रुपयापैसा रहा.’’

पल्लवी के कहे शब्दों पर मैं हैरान रह गया. कैसी गहरी खोज की है. फिर सोचा, मीना उठतीबैठती विजय के परिवार को कोसती रहती है शायद उसी से एक निष्पक्ष धारणा बना ली होगी.

‘‘बेटी, वहां जाने के लिए मैं तैयार हूं…’’

‘‘तो चलिए सुबह चाचाजी के घर,’’ इतना कह कर पल्लवी अपने कमरे में चली गई और जब लौटी तो उस के हाथ में एक लाल रंग का डब्बा था.

‘‘आप मेरी ननद को उपहार में यह दे देना.’’

‘‘यह तो तुम्हारा हार है, पल्लवी?’’

‘‘आप ने ही दिया था न पापा, समय नहीं है न नया हार बनवाने का. मेरे लिए तो बाद में भी बन सकता है. अभी तो आप यह ले लीजिए.’’

कितनी आसानी से पल्लवी ने सब सुलझा दिया. सच है एक औरत ही अपनी सूझबूझ से घर को सुचारु रूप से चला सकती है. यह सोच कर मैं रो पड़ा. मैं ने स्नेह से पल्लवी का माथा सहला दिया.

‘‘जीती रहो बेटी.’’

अगले दिन पहले से तय कार्यक्रम के अनुसार पल्लवी और मैं अलगअलग घर से निकले और जौहरी की दुकान पर पहुंच गए, दीपक भी अपने आफिस से वहीं आ गया. हम ने एक सुंदर हार खरीदा और उसे ले कर विजय के घर की ओर चल पड़े. रास्ते में चलते समय लगा मानो समस्त आशाएं उसी में समाहित हो गईं.

‘‘आप कुछ मत कहना, पापा,’’ पल्लवी बोली, ‘‘बस, प्यार से यह हार मेरी ननद को थमा देना. चाचा नाराज होंगे तो भी हंस कर टाल देना…बिगड़े रिश्तों को संवारने में कई बार अनचाहा भी सहना पड़े तो सह लेना चाहिए.’’

मैं सोचने लगा, दीपक कितना भाग्यवान है कि उसे पल्लवी जैसी पत्नी मिली है जिसे जोड़ने का सलीका आता है.

विजय के घर की दहलीज पार की तो ऐसा लगा मानो मेरा हलक आवेग से अटक गया है. पूरा परिवार बरामदे में बैठा शादी का सामान सहेज रहा था. शादी वाली लड़की चाय टे्र में सजा कर रसोई से बाहर आ रही थी. उस ने मुझे देखा तो उस के पैर दहलीज से ही चिपक गए. मेरे हाथ अपनेआप ही फैल गए. हैरान थी मुन्नी हमें देख कर.

‘‘आ जा मुन्नी,’’ मेरे कहे इस शब्द के साथ मानो सारी दूरियां मिट गईं.

मुन्नी ने हाथ की टे्र पास की मेज पर रखी और भाग कर मेरी बांहों में आ समाई.

एक पल में ही सबकुछ बदल गया. निशा ने लपक कर मेरे पैर छुए और विजय मिठाई के डब्बे छोड़ पास सिमट आया. बरसों बाद भाई गले से मिला तो सारी जलन जाती रही. पल्लवी ने सुंदर हार मुन्नी के गले में पहना दिया.

किसी ने भी मेरे इस प्रयास का विरोध नहीं किया.

‘‘भाभी नहीं आईं,’’ विजय बोला, ‘‘लगता है मेरी भाभी को मनाने की  जरूरत पड़ेगी…कोई बात नहीं. चलो निशा, भाभी को बुला लाएं.’’

‘‘रुको, विजय,’’ मैं ने विजय को यह कह कर रोक दिया कि मीना नहीं जानती कि हम यहां आए हैं. बेहतर होगा तुम कुछ देर बाद घर आओ. शादी का निमंत्रण देना. हम मीना के सामने अनजान होेने का बहाना करेंगे. उस के बाद हम मान जाएंगे. मेरे इस प्रयास से हो सकता है मीना भी आ जाए.’’

‘‘चाचा, मैं तो बस आप से यह कहने आया हूं कि हम सब आप के साथ हैं. बस, एक बार बुलाने चले आइए, हम आ जाएंगे,’’ इतना कह कर दीपक ने मुन्नी का माथा चूम लिया था.

‘‘अगर भाभी न मानी तो? मैं जानती हूं वह बहुत जिद्दी हैं…’’ निशा ने संदेह जाहिर किया.

‘‘न मानी तो न सही,’’ मैं ने विद्रोही स्वर में कहा, ‘‘घर पर रहेगी, हम तीनों आ जाएंगे.’’

‘‘इस उम्र में क्या आप भाभी का मन दुखाएंगे,’’ विजय बोला, ‘‘30 साल से आप उन की हर जिद मानते चले आ रहे हैं…आज एक झटके से सब नकार देना उचित नहीं होगा. इस उम्र में तो पति को पत्नी की ज्यादा जरूरत होती है… वह कितना गलत सोचती हैं यह उन्हें पहले ही दिन समझाया होता, इस उम्र में वह क्या बदलेंगी…और मैं नहीं चाहता वह टूट जाएं.’’

विजय के शब्दों पर मेरा मन भीगभीग गया.

‘‘हम ताईजी से पहले मिल तो लें. यह हार भी मैं उन से ही लूंगी,’’ मुन्नी ने सुझाव दिया.

‘‘एक रास्ता है, पापा,’’ पल्लवी ने धीरे से कहा, ‘‘यह हार यहीं रहेगा. अगर मम्मीजी यहां आ गईं तो मैं चुपके से यह हार ला कर आप को थमा दूंगी और आप दोनों मिल कर दीदी को पहना देना. अगर मम्मीजी न आईं तो यह हार तो दीदी के पास है ही.’’

इस तरह सबकुछ तय हो गया. हम अलगअलग घर वापस चले आए. दीपक अपने आफिस चला गया.

मीना ने जैसे ही पल्लवी को देखा सहसा उबल पड़ी,  ‘‘सुबहसुबह ही कौन सी जरूरी खरीदारी करनी थी जो सारा काम छोड़ कर घर से निकल गई थी. पता है न दीपक ने कहा था कि उस की नीली कमीज धो देना.’’

‘‘दीपक उस का पति है. तुम से ज्यादा उसे अपने पति की चिंता है. क्या तुम्हें मेरी चिंता नहीं?’’

‘‘आप चुप रहिए,’’ मीना ने लगभग डांटते हुए कहा.

‘‘अपना दायरा समेटो, मीना, बस तुम ही तुम होना चाहती हो सब के जीवन में. मेरी मां का जीवन भी तुम ने समेट लिया था और अब बहू का भी तुम ही जिओगी…कितनी स्वार्थी हो तुम.’’

‘‘आजकल आप बहुत बोलने लगे हैं…प्रतिउत्तर में मैं कुछ बोलता उस से पहले ही पल्लवी ने इशारे से मुझे रोक दिया. संभवत: विजय के आने से पहले वह सब शांत रखना चाहती थी.

निशा और विजय ने अचानक आ कर मीना के पैर छुए तब सांस रुक गई मेरी. पल्लवी दरवाजे की ओट से देखने लगी.

‘‘भाभी, आप की मुन्नी की शादी है,’’ विजय विनम्र स्वर में बोला, ‘‘कृपया, आप सपरिवार आ कर उसे आशीर्वाद दें. पल्लवी हमारे घर की बहू है, उसे भी साथ ले कर आइए.’’

‘‘आज सुध आई भाभी की, सारे शहर में न्योता बांट दिया और हमारी याद अब आई…’’

मैं ने मीना की बात को बीच में काटते हुए कहा, ‘‘तुम से डरता जो है विजय, इसीलिए हिम्मत नहीं पड़ी होगी… आओ विजय, कैसी हो निशा?’’

मिनी का वैक्सीनेशन

बड़ी मुश्किल से मुंबई से दूर एक अस्पताल में मिनी ने कोरोना के वैक्सीन का रजिस्ट्रैशन क्या कराया, सालभर बाद ऐसे लगा जैसे घर में कोई उत्सव का माहौल हो. महीनों बाद मिनी घर में गाना गाते हुए झूम रही थी.

लौकडाउन के दौरान अपने घर में बंद, औफिस के औनलाइन काम की वजह से अकसर तनाव में रहने वाली मिनी के लिए यह कोई आम खुशी भी नहीं थी. यह बहुत दिनों बाद घर से निकलने की खुशी थी, भले ही मकसद अस्पताल जाना ही क्यों न हो. एक युवा लड़की ठाणे से 1 घंटे की दूरी पर अस्पताल के लिए निकलने पर इतना खुश है, तो एक मां को तो आश्चर्य होगा ही. उस पर यह कि दोस्तों के साथ जाने का प्रोग्राम अचानक बन भी गया.

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मिनी ने फरमाया, ”मां, वापस आते हुए मुझे थोड़ी वीकनैस या घबराहट हो सकती है न, तो रोहित को बोल दिया है कि वह मेरे साथ चलेगा. कार वही चला लेगा.”

मेरे कान खड़े हो गए. मां हूं उस की, समझ गई कि आउटिंग का प्रोग्राम बन रहा है दोस्तों के साथ.

मैं ने कहा, ”पर अभी किसी से मिलना ठीक है क्या?”

”मां, वह भी कोरोना को ले कर उतनी ही सावधानियां बरत रहा है जितनी हम. और उसे तो पहला डोज लग भी चुका है. वह सब के लिए फेसशील्ड ले कर आएगा और हम चारों कार में भी डबल मास्क लगा कर रखेंगे.‘’

देखा, मैं सही थी. मिनी यों ही गाना और डांस नहीं कर रही थी.

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मैं ने उसे अपनी स्पैशल मांबेटी की अच्छी बौंडिंग वाली स्माइल देते हुए कहा, ”बदल दिया न अपने वैक्सीनेशन को एक पिकनिक में… सब जाओगे न? इतने लोगों को देख कर पुलिस वाले रोकेंगे तो?”

”अरे मां… बहुत बढ़िया प्रोग्राम बन गया है. कोई भी नहीं निकला न इतने दिनों घर से. रोहित मेरी कार चलाएगा, कोई रोकेगा तो हम कहेंगे कि वैक्सीन लगवाने जा रहे हैं. पूजा को भी जा कर पता करना है वैक्सीन का. जय को तो 2 महीने पहले कोरोना हो चुका है, बोल देंगे, फौलोअप के लिए जा रहा है.

“मां, सब इतने ऐक्साइटैड हैं न… हमलोग लगभग 4 महीने बाद मिलने वाले हैं. ओह, मां, वी आर सो ऐक्ससाइटैड…’’और फिर मिनी जोर से हंस पड़ी, ”मां, पता है, रोहित और पूजा ने तो अभी से सोचना शुरू कर दिया है कि वे क्या पहनेंगे.

“मैं तो अपनी स्लीवलैस ड्रैस पहन जाउंगी, एक बार भी नहीं पहनी थी कि लौकडाउन लग गया. चलो, जल्दी से अपना कल का काम निबटा लेती हूं, नहीं तो मेरा बौस कल मुझे ऐंजौय नहीं करने देगा. और मैं ने रिमी को भी कहा है साथ चलने के लिए…’’

”अरे, रिमी…उस के पेरैंट्स को तो कोरोना हुआ है न? वे तो अस्पताल  में भरती हैं ?”

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मिनी थोड़ी उदास हुई,”हां, मां, वह आजकल अपने मामामामी के साथ रह रही है. अब जब बाहर जा ही रहे हैं तो उसे भी ले जाती हूं.‘’

अभी तक वहीं चुपचाप बैठे सारी बात सुन रहे अनिल ने मिनी के जाने के बाद कहा, ”यार, रश्मि, क्या बच्चे हैं आजकल के… ऐसा लग रहा है कि वैक्सीन के लिए नहीं, बल्कि पिकनिक पर जाने का प्रोग्राम बन रहा है.”

”हां, यार… बच्चे कैसे तरस रहे हैं एकदूसरे से मिलने के लिए. यह छोटी सी खुशी आज इन के लिए कितनी बड़ी बात हो गई है. बेचारी रातदिन लैपटौप पर बैठी काम ही कर रही है. आज कितने दिनों बाद खुश दिख रही है.

“ओह, कोरोना ने तो इन बच्चों को बांध कर रख दिया, बेचारे सच में कब से नहीं निकले हैं.”

गजब की तैयारियां हो रही थीं. सुबहसुबह ही हेयर मास्क लगाया गया, स्किन केयर हुई, शैंपू से बाल धोए गए, ड्रैस के साथ स्टाइलिश शूज निकाले गए, जो सालभर से डब्बे में ही बंद थे. तय हुआ कि मिनी ही सब को ले कर निकलेगी फिर ठाणे से बाहर जा कर रोहित कार चलाएगा.

यहां पर बाकी मम्मियों के उत्साह की भी दाद देनी पड़ेगी. मिनी ने बताया, ”एक बात बहुत अच्छी हो गई मां, सब आंटी ने कह दिया है कि बहुत दिनों बाद निकल रहे हो, तो अच्छी तरह घूमफिर कर आना, जब निकल ही रहे हो तो और ऐंजौय कर लेना.”

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लगे हाथ मैं ने भी मिनी को छेड़ा, ”क्या पता, बाकी मांओं को भी एक ब्रेक इस बहाने आज अपने बच्चों से मिल ही जाए.‘’

जैसी उम्मीद थी, ठीक वैसे ही घूरा मिनी ने मुझे इस बात पर. बोली, ”हम  1 बजे निकलेंगे, 3 से 5 का टाइम है, मेरा डिनर मत बनाना, कुछ खुला होगा तो मैं अपनी पसंद का कुछ पैक करवा कर लाऊंगी,’’ फिर उस ने अभी किए गए मेरे मजाक का बदला भी हाथ के हाथ उतार दिया, ”एक ब्रेक चाहिए मुझे भी घर के खाने से, हद हो गई है रातदिन घर का खाना खाते हुए.”

मुझे हंसी आ गई. मिनी चली गई, वहां जा कर फोन किया, ‘’1,100 लोगों का अपौइटमैंट था, लंबी लाइन है. धूप भी बहुत तेज है, रोहित को कार काफी दूर पार्क करनी पड़ी है और यहां मैं अब अकेली ही लाइन में हूं, पर अच्छा लग रहा है.”

हर समय एसी के लिए शोर मचाने वाली मिनी दोपहर के 3 बजे लाइन में खड़ी है और उसे अच्छा लग रहा है, आवाज में कोई झुंझलाहट नहीं, खिलखिलाती सी आवाज. दरअसल, यह दोस्तों के साथ का असर है जो लगातार चैट कर रहे होंगे अब. जानती हूं मैं इन बच्चों को, डायरी ऐंट्री की तरह चारों हर समय एकदूसरे को अपनी बातें बताते रहते हैं.

वैक्सीन मिनी को लग गई. फोन आ गया, ”सब हो गया मम्मी, अब थोड़ा खानेपीने की अपनी पसंद की जगहें देख लें. काश, कुछ तो खुला हो.”

हालांकि मैं ने उसे बिस्कुट और पानी दिया था, कहा था,”कुछ खा लेना.‘’

”अरे, मम्मी, यह पूजा की मम्मी ने तो उसे छोटेछोटे जूस के पैकेट्स, स्नैक्स दिए हैं, उन्हें भी यही लग रहा था कि हम आज पिकनिक पर जा रहे हैं और रोहित और जय की मम्मी ने भी ऐसे ही कुछकुछ बैग में रख दिया था. हम तो बारबार कुछ न कुछ खाते ही रहे, मां, बहुत मजा आ रहा है…चलो, अब आ कर बात करते हैं.‘’

मेरी मिनी एक अरसे बाद आज खुश थी, चहक रही थी. मेरे लिए इतना बहुत था. दिल भर सा आया. कैसा टाइम आ गया है कि दोस्तों से मिलने के लिए तरस गए सब. कहां हर तरफ, हर जगह युवा मस्ती करते दिखते थे, जहां नजर जाती थी एक मस्ती सी दिखती थी, अब कहां बंद हो गए बेचारे.

इन की क्या बात करूं, मैं ही मिनी के दोस्तों का घर आना कितना मिस करती हूं. कैसे हंसीमजाक का दौर हुआ करता था, कैसी रौनक रहा करती थी, लेकिन अब? अब कैसा अकेलापन सब के मन पर छाया रहता है, कितना डिप्रैसिंग माहौल है.

शाम को घर की घंटी बजी. मिनी आई थी. आते ही आजकल सब सामान सैनिटाइज कर के सीधे वाशरूम ही जाना होता है.

”नहा कर आती हूं मां, ”कह कर मिनी वाशरूम की तरफ चली गई. मैं ने महसूस कर लिया कि वह फिर उदास और चुप है. नहा कर निकली तो बोली,”कुछ दुकानें खुली थीं, कुछ पैक करवा कर लाई हूं, चलो, आप लोग खा लो.‘’

”तुम? भूख लगी होगी?”

फिर वही बुझी सी आवाज,” मैं ने दोस्तों के साथ खा लिया था, अब भूख नहीं है.‘’

मैं ने उसे अपने साथ लिपटा लिया, ”अरे, मिनी, फिर उदास हो गईं?अच्छा, यह बताओ, रिमी कैसी है? उस के पेरैंट्स कैसे हैं?”

मिनी इस बात पर सुबक उठी, ”वह तो डरी हुई है. बता रही थी कि हर पल उसे यही डर लगा रहता है कि उस के मम्मीपापा को कुछ हो न जाए. फोन की हर घंटी पर डरती है. उस का मन तरस रहा है कि कब उस के मम्मीपापा ठीक हो कर घर आएं तो वह उन के साथ अपने घर जाए.

“बता रही थी कि न उसे नींद आती है, न भूख लगती है, उस का वेट भी कम है गया है. हमारी जिद पर चली तो गई हमारे साथ पर पूरा दिन एक बार भी उस का चेहरा खिला नहीं. इतनी उदास, परेशान और डरी हुई है कि क्या बताऊं…

“हम ने सोचा था कि हमारे साथ थोड़ा उस का मन बहलेगा, फोन पर भी रोती ही रहती है, पर कोई बात उसे तसल्ली नहीं दे पा रही. एक डर में जी रही है वह. और मम्मी, मुझे भी आज एक लेसन मिला.‘’

“क्या?”

”यही कि मैं तो अपने औफिस के एक छोटे से स्ट्रैस पर सारा दिन परेशान होती हूं, सारा दिन चिढ़चिढ़ करती हूं, जबकि आज के टाइम में तो परेशानियां इतनी बड़ीबड़ी हैं. लोग क्याक्या झेल रहे हैं, न जाने कितने दुख देख रहे हैं और मैं घर में आराम से बैठी अपने काम को रातदिन कोस रही हूं. मुझे काम ही तो ज्यादा है मगर कोई दुख तो नहीं न…फिर भी मैं सारा दिन ऐसे उदास होती हूं कि जैसे पता नहीं क्या हो गया है.

“हमारी रिमी कितने बड़े दुख से सामना कर रही है, उसे तो पता भी नहीं कि उस के मम्मीपापा अस्पताल  से ठीक हो कर आ भी पाएंगे भी या नहीं… बेचारी कितने डर में जी रही है रात दिन और मैं कितनी छोटी बात पर दुखी रहती हूं.’’

”हां, बेटा, सही कह रही हो. यह तो सचमुच समझने वाली बात है.’’

‘’मैं आज समझ गई कि अपनी छोटीछोटी परेशानियों को नजरअंदाज करूंगी, इतनी शिकायतें ठीक नहीं,’’ उस की आंखें सचमुच भर गईं, ”कितना अच्छा लगा आज सब को देख कर, अब पता नहीं कब मिलेंगे, इतनी बातें करते रहते हैं फोन पर, मगर मिल कर तो मन ही नहीं भर रहा था.”

मैं ने उसे पुचकारा,”अरे, पूजा का वैक्सीनेशन बाकी है न? और जय का भी तो? 2 पिकनिक तो तय हैं. फिर जाना सब एकसाथ.”

मैं ने इस तरह कहा कि उसे हंसी आ गई. बोल पड़ी, ”अच्छा, चलो, फिर खाते हैं, देखो, क्याक्या ले कर आई हूं. अब तो इंतजार ही कर सकते हैं कि अगला वैक्सीनेशन किस का होगा.‘’

हम मुसकरा दिए थे और मैं लगातार सोच रही थी कि यह सचमुच कोई आम दिन नहीं था. मिनी को एक सबक मिला था जो उस की लाइफ में उस के बहुत काम आएगा.

कच्ची गली -भाग 3 : रेप की घिनौनी घटना के बारे में पढ़कर विपिन चिंतित क्यों हो रहा था

दामिनी मूर्च्छित सी अवस्था में उठने का प्रयास करने लगी. सृष्टि को ढूंढ़ते हुए वह यहां एक सुनसान कोने में पहुंच गई थी. सृष्टि का नाम पुकारती वह यहांवहां भटक रही थी कि सड़क से गुजरती एक गाड़ी में सवार कुछ लड़कों की गंदी नजर उस पर पड़ गई. अकेली औरत, चिंता में बेहाल, रुकी हुई गाड़ी की ओर बेध्यानी में बढ़ती चली गई और कुछ सशक्त हाथों ने उसे गाड़ी के भीतर घसीट लिया.

फिर इन्हीं सड़कों पर, चलती गाड़ी में, उस के साथ वही अपमानजनक, अनहोनी दुर्घटना घट गई जैसी खबरें अखबार में पढ़ते हुए विपिन का मन परेशान हो जाया करता. कौन सोच सकता था कि जवान लड़की की मां को भी वही खतरा है जिस का डर अकसर मातापिता को अपनी युवा बेटियों के लिए लगता है. ज़माना सेफ्टी पिन का हो या पेपरस्प्रे का – औरतों के लिए सुनसान गलियां हमेशा से खतरा रही थीं, आज भी हैं.

“उठो दामिनी, हिम्मत करो. घर चलो,” विपिन  दामिनी को दिलासा देने लगे. क्या औरतों के लिए घर की देहरी लांघना सदा ही लक्ष्मणरेखा का प्रश्न रहेगा? किसी भी उम्र की औरत हो, कोई भी शहर हो, कोई भी ज़माना हो – कब तक औरत की इज्जत के लिए हर गली कच्ची रहेगी? कब तक हर औरत को रेप जैसे अपमानजनक अपराध के बाद ऐसे मुंह छिपाना पड़ेगा मानो वह इस की शिकार नहीं बल्कि असली गुनाहगार है? केवल दामिनी नाम रख देने से औरत में शक्ति नहीं आती. वह फिर भी निर्बल, भेद्य, आलोचनीय, अशक्त रहती है. कब होगी वह सुबह जो सच्चा सवेरा लाएगी? कब बिखरेंगी वे किरणें जो सच्चा उजाला फैलाएंगी? दामिनी सुन्न दिलदिमाग लिए, लंगड़ाती हुई, विपिन के कंधे का सहारा लिए अपनी कार में बैठ गई.

“विपिन…,” कह दामिनी रोने लगी, “देखो न, यह क्या हो गया.” फिर स्वयं को समेटती हुई बोली, “पुलिस स्टेशन चलो, मुझे एफआईआर लिखवानी है.” विपिन ने गाड़ी को सड़क के एक ओर लगाया और दामिनी के सिर पर हाथ फेर कर उसे शांत करने लगे, “जो होना था सो हो गया. अब इन बातों से क्या होगा? इतनी रात को, यहां सुनसान कोने में कौन सी गाड़ी थी, कौन लोग थे, क्या तुम पहचान पाओगी? क्या तुम ने गाड़ी का नंबर देखा? पुलिस सब पूछेगी, तुम से सुबूत मांगेगी. उस पर जब यह खबर समाज में फैल जाएगी तो हमारे परिवार की इज्जत का क्या होगा? सब रिश्तेदार क्या कहेंगे? सृष्टि पर क्या बीतेगी… आगे चल कर उस की शादी के समय… कुछ सोचो दामिनी. भलाई इसी में है कि इस बात को यहीं खत्म कर दिया जाए. आने वाले कल के बारे में विचार करो.”

फिर दामिनी को पानी की बोतल पकड़ाते हुए विपिन आगे कहने लगे, “मैं तुम्हारी तकलीफ समझता हूं. मैं तुम्हारे साथ हूं. इस घटना के कारण तुम्हारे प्रति मेरे प्यार में कोई कमी नहीं आएगी. तुम मेरी पत्नी हो और हमेशा रहोगी. अपने मन से आज की इस रात को हमेशा के लिए मिटा दो. आज के बाद हम इस का जिक्र कभी नहीं करेंगे.” तभी विपिन का फोन बजा. स्क्रीन पर सृष्टि का नाम देख उन्होंने लपक कर फोन उठाया.

“सौरी पापा, मेरा फ़ोन स्विचऔफ हो गया था, बैटरी डैड हो गई थी. मुझे आज घर लौटने में देर हो गई. वह असल में एक फ्रेंड का बर्थडे था और पार्टी में थोड़ी लेट हो गई. पर अब मैं घर आ चुकी हूं, लेकिन मम्मा घर पर नहीं हैं. आप दोनों कहां हैं?” सृष्टि कहती जा रही थी. सृष्टि घर आ चुकी है. लेकिन  उस के कुछ समय देर से आने के कारण उस के अभिभावक इतना घबरा गए कि एक ऐसा कटु अनुभव अपने जीवन में जोड़ बैठे जिसे भूलना शायद संभव नहीं. दामिनी के मन में अब झंझावात चल रहा है. क्या करे वह? क्या उस के लिए इस दुर्घटना को भुलाना संभव होगा? क्या इतना आसान है यह? इन्हीं सब विचारों में उलझी दामिनी घर के सामने आ रुकी अपनी गाड़ी से उतरना नहीं चाह रही थी. काश, वह समय की सुई उलटी घुमा पाती और सबकुछ पहले की तरह खुशहाल हो जाता. उस की गृहस्थी, प्यारी सी बिटिया, स्नेह लुटाता पति – अब तक सबकुछ कितना स्वप्निल रहा उस के जीवन में.

विपिन की आवाज़ पर दामिनी धीरे से उतर कर घर में प्रविष्ट हो गई. “कहां गए थे आप दोनों?” सृष्टि के प्रश्न पर दामिनी से पहले विपिन बोल उठे, “तेरी मम्मा की तबीयत कुछ ठीक नहीं है. डाक्टर के पास गए थे.”

अगले 2 दिनों तक दामिनी यों ही निढाल पड़ी रही. उस का मन किसी भी काम, किसी भी बात में नहीं लग रहा था. रहरह कर जी चाहता कि पुलिस के पास चली जाए और उन दरिंदों को सज़ा दिलवाने के लिए संघर्ष करे. फिर विपिन द्वारा कही बातें दिमाग में घूमने लगतीं. बात तो उन की भी सही थी कि उस के पास पुलिस को बताने के लिए कोई ठोस बात नहीं, कोई पुख्ता सुबूत नहीं है.

इन दिनों विपिन ने घर संभाल लिया क्योंकि वे दामिनी को बिलकुल परेशान नहीं करना चाहते थे. वे उस के दिल और दिमाग की स्थिति से अंजान नहीं थे. और इसीलिए उसे सामान्य होने के लिए पूरा समय देने को तैयार थे. सृष्टि ज़रूर बर्थडे पार्टी की तैयारी में लगी हुई थी. अब पार्टी में केवल 3 दिन शेष थे. विपिन, दामिनी की मानसिक हालत समझ रहे थे, इसलिए वे पार्टी को ले कर ज़रा भी उत्साहित न थे. लेकिन सृष्टि को क्या बताते भला, इसलिए उस के सामने वे चुप ही थे.

अगली सुबह विपिन के औफिस चले जाने के बाद सृष्टि, दामिनी से अपने साथ मार्केट चलने का आग्रह करने लगी, “मम्मा, आप के लिए एक न्यू ड्रैस लेनी है. आखिर आप पार्टी की शान होने वाली हैं. सब से स्टाइलिश ड्रैस लेंगे,” सृष्टि चहक रही थी. लेकिन दामिनी का मन उचट चुका था. वह अपने मन को शांत करने में स्वयं को असमर्थ पा रही थी. सृष्टि की बात से दामिनी के घाव फिर हरे होने लगे. ‘पार्टी’ शब्द सुन दामिनी को उस रात सृष्टि द्वारा कही बात याद आने लगी कि एक दोस्त की बर्थडे पार्टी के कारण वह देर से घर लौटी थी. न सृष्टि पार्टी के चक्कर में पड़ती और न ही दामिनी के साथ यह हादसा होता.

अपने बिगड़ते मूड से दामिनी ने उस रात सृष्टि के देर से घर आने को ले कर कुछ उखड़े लहजे में कहा, “पार्टी, पार्टी, पार्टी… उस रात किस की बर्थडे पार्टी थी? क्या तुम एक फोन भी नहीं कर सकती थीं? इतनी लापरवाह कब से हो गईं तुम, सृष्टि?” अचानक नाराज़ दामिनी को देख सृष्टि चौंक गई, “वो…उस दिन…वो मम्मा… अब क्या बताऊं आप को. उस शाम मुझे कुछ ऐसी बात पता चली कि न तो मुझे समय का आभास रहा और न ही अपने डिस्चार्ज हुए फोन को चार्ज करने का होश रहा.” कुछ पल सोचने के पश्चात सृष्टि आगे कहने लगी, “पहले मैं ने सोचा था कि आप को यह बात बता कर चिंतित नहीं करूंगी पर अब सोचती हूं कि बता दूं.”

सृष्टि और दामिनी का रिश्ता भले ही मांबेटी का था लेकिन उन का संबंध दोस्तों जैसा था. सृष्टि अपनी हर बात बेझिझक अपनी मां से बांटती आई थी. आज भी उस ने अपनी मां को उस शाम हुई देरी के पीछे का असली कारण बताने का निश्चय किया. “मां, मेरी सहेली है न निधि. उस का एक बौयफ्रैंड है. निधि अकसर उस से मिलने उस के पीजी रूम पर जाया करती थी. यह बात केवल उन दोनों को ही पता थी. मुझे भी नहीं. लेकिन पिछले कुछ दिनों से निधि और उस लड़के में कुछ अनबन चल रही थी. निधि ने ब्रेकअप करने का मन बना लिया. यह बात उस ने अपने बौयफ्रैंड से कह डाली. वह निधि से अपने निर्णय पर दोबारा विचार करने की ज़िद करने लगा. फिर उस ने निधि को एक लास्ट टाइम इस विषय पर बात करने के लिए अपने पीजी रूम में बुलाया. बस, निधि से गलती यह हुई कि वह उस लड़के की बात पर विश्वास कर एक आखिरी बार उस से मिलने को राजी हो गई.”

दामिनी ध्यान से सृष्टि की बात सुन रही थी. साथ ही, उस का मन इस उलझन में गोते लगा रहा था कि क्या उसे भी सृष्टि को अपनी आपबीती सुना देनी चाहिए. “उस दिन रूम में निधि के बौयफ्रैंड के अलावा 3 लड़के और मौजूद थे, जिन्हें उस ने अपने दोस्त बताया. जब निधि ब्रेकअप के अपने निर्णय पर अडिग रही तो उन चारों ने मिल कर उस का रेप कर डाला. उस के बौयफ्रैंड को उस से बदला लेना था. उफ, कितनी घिनौनी सोच है. या तो मेरी या किसी की भी नहीं. ऊंह,” यह कह कर सृष्टि के चेहरे पर पीड़ा, दर्द, क्रोध और घिन के मिलेजुले भाव उभर आए. वह आगे बोली, “अब आप ही बताओ मम्मा, जब निधि मुझ से ये सारी बातें शेयर कर रही थी तब ऐसे में समय का ध्यान कैसे रहता?”

सृष्टि की बात सही थी. उस समय अपनी बात ढकने के लिए उस ने बर्थडे पार्टी का झूठा बहाना बना दिया था. मगर आज असलियत जानने के बाद दामिनी के पास भी कोई जवाब न था. वह चुपचाप सृष्टि का हाथ थामे बैठी रही, “निधि ने अब आगे क्या करने का सोचा है?” बस, इतना ही पूछ पाई वह.”इस में सोचना क्या है, मम्मा? जो हुआ उसे एक दुर्घटना समझ कर भुला देने में ही निधि को अपनी भलाई लग रही है. वह कहती है कि जिस नीयत से उस के बौफ्रैंड ने उस का रेप किया, वह नहीं चाहती कि वह उस में कामयाब हो. वह इस घटना को अपने वजूद पर हावी नहीं होने देना चाहती. वैसे, देखा जाए मम्मा, तो उस की बात में दम तो है. एक घटना हमारे पूरे व्यक्तित्व का आईना नहीं हो सकती. आखिर रेप को इतनी वरीयता क्यों दी जाए कि उस से पहले और बाद के हमारे जीवन में इतना बड़ा फर्क पड़े. ठीक है, हो गई एक दुर्घटना, पर क्या अब जीना ही छोड़ दें? या फिर बस मरमर कर, अफसोस करते हुए, रोते हुए ज़िंदगी गुजारें? इस बात को अपने मन में दफना कर आगे क्यों न बढ़ जाएं, वह भी पूरे आत्मविश्वास के साथ.” सृष्टि न जाने क्याकुछ कहे जा रही थी.

आज दामिनी के सामने आज की लड़कियों की केवल हिमात ही नहीं, उन के सुलगते विचार और क्रांतिशील व्यक्तित्व भी उजागर हो रहे थे. वे सिर्फ हिम्मत ही नहीं रखतीं, बल्कि समझदारी से भी काम लेती हैं. जिन बातों से अपना जीवन सुधरता हो, वे ऐसे निर्णय लेना चाहती हैं, न कि भावनाओं में बह कर खुद को परेशानी में डालने के कदम उठाती हैं. अपनी बेटी के मुंह से ऐसी बातें सुन कर दामिनी के अंदर भी कुछ बदल गया. जब सृष्टि की बात पूरी हुई तब तक मांबेटी चाय के खाली कप मेज़ पर रख चुकी थीं. “तो चल, कौन से मार्केट ले चलेगी एक शानदार सी ड्रैस खरीदने के लिए,”  दामिनी ने कहा तो सृष्टि खुशी से उछल पड़ी, “मैं ने तो शौप भी तय कर रखी है. बस, आप की ड्रैस की फिटिंग चैक करनी है मेरी प्यारी मम्मा,” कहती हुई उस ने अपनी दोनों बांहें दामिनी के गले में डाल दीं. दामिनी भी सृष्टि को बांहों में ले हंसती हुई झूम उठी.

 

 

अंतहीन- भाग 3 : कौनसी अफवाह ने बदल दी गुंजन और उसके पिता की जिंदगी?

तकिये के नीचे कुछ सख्त सा था, उन्होंने तकिया हटा कर देखा तो एक सुंदर सी डायरी थी. उत्सुकतावश रामदयाल ने पहला पन्ना पलट कर देखा तो लिखा था, ‘वह सब जो चाह कर भी कहा नहीं जाता.’ गुंजन की लिखावट वह पहचानते थे. उन्हें जानने की जिज्ञासा हुई कि ऐसा क्या है जो गुंजन जैसा वाचाल भी नहीं कह सकता?

किसी अन्य की डायरी पढ़ना उन की मान्यताआें में नहीं था लेकिन हो सकता है गुंजन ने इस में वह सब लिखा हो यानी उस मजबूरी के बारे में जिस का जिक्र प्रभव कर रहा था. उन्होंने डायरी के पन्ने पलटे. शुरू में तो तनूजा से मुलाकात और फिर उस की ओर अपने झुकाव का जिक्र था. उन्होंने वह सब पढ़ना मुनासिब नहीं समझा और सरसरी निगाह डालते हुए पन्ने पलटते रहे. एक जगह ‘मां’ शब्द देख कर वह चौंके. रामदयाल को गुंजन की मां यानी अपनी पत्नी प्रेमा के बारे में पढ़ना उचित लगा.

‘वैसे तो मुझे कभी मां के जीवन में कोई अभाव या तनाव नहीं लगा, हमेशा खुश व संतुष्ट रहती थीं. मालूम नहीं मां के जीवनकाल में पापा उन की कितनी इच्छाआें को सर्वाधिक महत्त्व देते थे लेकिन उन की मृत्यु के बाद तो वही करते हैं जो मां को पसंद था. जैसे बगीचे में सिर्फ सफेद फूलों के पौधे लगाना, कालीन को हर सप्ताह धूप दिखाना, सूर्यास्त होते ही कुछ देर को पूरे घर में बिजली जलाना आदि.

‘मुझे यकीन है कि मां की इच्छा की दुहाई दे कर पापा सर्वगुण संपन्न और मेरे रोमरोम में बसी तनु को नकार देंगे. उन से इस बारे में बात करना बेकार ही नहीं खतरनाक भी है. मेरा शादी का इरादा सुनते ही वह उत्तर प्रदेश की किसी अनजान लड़की को मेरे गले बांध देंगे. तनु मेरी परेशानी समझती है मगर मेरे साथ अधिक से अधिक समय गुजारना चाहती है. उस के लिए समय निकालना कोई समस्या नहीं है लेकिन लोग हमें एकसाथ देख कर उस पर छींटाकशी करें यह मुझे गवारा नहीं है.’

रामदयाल को याद आया कि जब उन्होंने लखनऊ की जायदाद बेच कर यह कोठी बनवानी चाही थी तो प्रेमा ने कहा था कि यह शहर उसे भी बहुत पसंद है मगर वह उत्तर प्रदेश से नाता तोड़ना नहीं चाहती. इसलिए वह गुंजन की शादी उत्तर प्रदेश की किसी लड़की से ही करेगी. उन्होंने प्रेमा को आश्वासन दिया था कि ऐसा करना भी चाहिए क्योंकि उन के परिवार की संस्कृति और मान्यताएं तो उन की अपनी तरफ की लड़की ही समझ सकती है.

गुंजन का सोचना भी सही था, तनु से शादी की इजाजत वह आसानी से देने वाले तो नहीं थे. लेकिन अब सब जानने के बाद वह गुंजन के होश में आते ही उस से कहेंगे कि वह जल्दीजल्दी ठीक हो ताकि उस की शादी तनु से हो सके.

अगली सुबह अखबार में घायलों में गुंजन का नाम पढ़ कर सभी रिश्तेदार और दोस्त आने शुरू हो गए थे. अस्पताल से आपरेशन सफल होने की सूचना भी आ गई थी फिर वह अस्पताल जा कर वरिष्ठ डाक्टर से मिले थे.

‘‘मस्तिष्क में जितनी भी गांठें थीं वह सफलता के साथ निकाल दी गई हैं और खून का संचार सुचारुरूप से हो रहा है लेकिन गुंजन की पसलियां भी टूटी हुई हैं और उन्हें जोड़ना बेहद जरूरी है लेकिन दूसरा आपरेशन मरीज के होश में आने के बाद करेंगे. गुंजन को आज रात तक होश आ जाएगा,’’ डाक्टर ने कहा, ‘‘आप फिक्र मत कीजिए, जब हम ने दिमाग का जटिल आपरेशन सफलतापूर्वक कर लिया है तो पसलियों को भी जोड़ देंगे.’’

शाम को अपने अन्य सहकर्मियों के साथ तनुजा भी आई थी. बेहद विचलित और त्रस्त लग रही थी. रामदयाल ने चाहा कि वह अपने पास बुला कर उसे दिलासा और आश्वासन दें कि सब ठीक हो जाएगा लेकिन रिश्तेदारों की मौजूदगी में यह मुनासिब नहीं था.

पसलियों के टूटने के कारण गुंजन के फेफड़ों से खून रिसना शुरू हो गया था जिस के कारण उस की संभली हुई हालत फिर बिगड़ गई और होश में आ कर आंखें खोलने से पहले ही उस ने सदा के लिए आंखें मूंद लीं.

अंत्येष्टि के दिन रामदयाल को आएगए को देखने की सुध नहीं थी लेकिन उठावनी के रोज तनु को देख कर वह सिहर उठे. वह तो उन से भी ज्यादा व्यथित और टूटी हुई लग रही थी. गुंजन के अन्य सहकर्मी और दोस्त भी विह्वल थे, उन्होंने सब को दिलासा दिया. जनममरण की अनिवार्यता पर सुनीसुनाई बातें दोहरा दीं.

सीमा के साथ खड़ी लगातार आंसू पोंछती तनु को उन्होंने चाहा था पास बुला कर गले से लगाएं और फूटफूट कर रोएं. उन की तरह उस का भी तो सबकुछ लुट गया था. वह उस की ओर बढ़े भी लेकिन फिर न जाने क्या सोच कर दूसरी ओर मुड़ गए.

कुछ दिनों के बाद एक इतवार की सुबह राघव गुंजन का कोट ले कर आया.

‘‘इस की जेब में गुंजन की घड़ी और पर्स वगैरा हैं. अंकल, संभाल लीजिए,’’ कहते हुए राघव का स्वर रुंध गया.

कुछ देर के बाद संयत होने पर उन्होंने पूछा, ‘‘यह तुम्हें कहां मिला, राघव?’’

‘‘तनु ने दिया है.’’

‘‘तनु कैसी है?’’

‘‘कल ही उस की बहन उसे अपने साथ पुणे ले गई है, जगह और माहौल बदलने के लिए. यहां तो बम होने की अफवाहों को सुन कर वह बारबार उन्हीं यादों में चली जाती थी और यह सिलसिला यहां रुकने वाला नहीं है. तनु के बहनोई उस के लिए पुणे में ही नौकरी तलाश कर रहे हैं.’’

‘‘नौकरी ही नहीं कोई अच्छा सा लड़का भी उस के लिए तलाश करें. अभी उम्र नहीं है उस की गुुंजन के नाम पर रोने की?’’

राघव चौंक पड़ा.

‘‘आप को तनु और गुंजन के बारे में मालूम है, अंकल?’’

‘‘हां राघव, मैं उस के दुख को शिद्दत से महसूस कर रहा था, उसे गले लगा कर रोना भी चाहता था लेकिन…’’

‘‘लेकिन क्या, अंकल? क्यों नहीं किया आप ने ऐसा? इस से तनु को अपने और गुंजन के रिश्ते की स्वीकृति का एहसास तो हो जाता.’’

‘‘मगर मेरे ऐसा करने से वह जरूर मुझ से कहीं न कहीं जुड़ जाती और मैं नहीं चाहता था कि मेरे जरिए गुंजन की यादों से जुड़ कर वह जीवन भर एक अंतहीन दुख में जीए.’’

अंकल शायद ठीक कहते हैं.

 

Barrister Babu : बोंदिता को मौत के कुंए में धकेल देंगी ठाकू मां, जानें क्या होगा अनिरुद्ध  का रिएक्शन

कलर्स टीवी का जाना माना सीरियल बैरिस्टर बाबू में बोंदिता अनिरुद्ध ने पति- पत्नी बनकर इस सफर की शुरुआत की थी, लेकिन बाल विवाह पर रोक लगने से बोंदिता अनिरुद्ध को अलग होना पड़ा.

लेकिन आज भी अनिरुद्ध चाहता है कि वह उसे पढ़ाए लिखाए उसे जीवन में आगे बढ़ाए जिस वजह से वह वेश बदलकर बोंदिता से मिलने चला जाता है.

अनिरुद्ध को यह पता होता है कि ठाकु मां कही न कही बोंदिता की जिंदगी बर्बाद कर देना चाहती हैं इसलिए वह ऐसा कर रही हैंं. अभी तक इस सीरियल में आपने देखा होगा कि ठाकु मां बोंदिता की शादी एक बुढ़े आदमी से करवाना चाहती हैं.

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बोंदिता की मां ठाकु मां को लाख कोशिश करती है रोकने के लिए लेकिन वह रुकती नहीं हैं. जिसके बाद जब अनिरुद्ध उसे बचाने आता है तो ठाकुर मां उसे गुड़े भेजकर मारवाती है.

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और बोंदिता को बेहोश करके रख देती हैं.  अनिरुद्ध मंदिर में जाकर जोर-जोर से घंटी बजाने लगता है, जिसके बाद से बोंदिता को होश आ जाता है. जिसके बाद से बोंदिता सभी को शादी शुदा होने का सच बता देती है.

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अब पंडित सच्चाई जानने के बाद कहता है कि उसे जंगल में जाकर शुद्ध होना होगा, अगर बच गई जंगल में तो शद्ध हो जाएगी और नहीं बची तो पूर्व जन्म होगा.

क्या बोंदिता और अनिरद्ध एक हो पाएंगे आगे चलकर , अब इसका खलासा आगे होगा. खबर ये भी है कि जल्द ही सीरियल में लीप गैप लिया जाएगा और बड़ी बोंदिता आ जाएगी.

 

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