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Satyakatha: जब प्रेमिका ने किया प्रेमी पर एसिड अटैक

पहली मंजिल पर रह रहे किराएदार के कमरे से सुबहसुबह तेज चीखने की आवाज भूतल पर रह रहे मकान मालिक सुरेशचंद्र की पत्नी ने सुनी. आवाज सुन कर एक बार तो वह सोच में पड़ गईं. लेकिन दूसरे ही पल लगातार आ रही चीखों को सुन कर वह एक ही सांस में सीढि़यां चढ़ कर किराएदार नर्स सोनम पांडेय के कमरे में पहुंच गईं. क्योंकि चीख उसी के कमरे से आ रही थी. वहां का दृश्य देख कर उन की आंखें आश्चर्य से फटी रह गईं. पीछेपीछे मकान मालिक सुरेशचंद्र भी वहां पहुंच गए.

कमरे के फर्श पर सोनम और देवेंद्र झुलसे हुए पड़े थे. वहीं पर एक स्टील का डब्बा पड़ा था. कमरे में तेजाब की तेज दुर्गंध आ रही थी. दोनों ही तेजाब की जलन और दर्द से तड़प रहे थे. उस समय सुबह के यही कोई 7 बज रहे थे. इसी बीच झुलसी हालत में ही देवेंद्र ने अपने दोस्त शिवम को फोन किया.

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कुछ ही देर में शिवम आटो ले कर वहां पहुंच गया. वह आननफानन में घायल देवेंद्र को आटो में ले कर अस्पताल जाने लगा. इस पर मकान मालिक सुरेशचंद्र ने उस से कहा कि वह घायल सोनम को भी साथ ले जाए. क्योंकि इलाज की उसे भी जरूरत है. तब शिवम ने कहा, ‘‘मैं पहले देवेंद्र को अस्पताल में भरती करा दूं वह ज्यादा झुलस गया है. इस के बाद सोनम को ले जाऊंगा.’’ इस तरह वह देवेंद्र को वहां से ले कर चला गया.

जब शिवम सोनम को काफी देर तक लेने नहीं आया तो सुरेशचंद्र ने इस की सूचना थाना हरीपर्वत के थानाप्रभारी अरविंद कुमार को दे दी. थानाप्रभारी सूचना मिलते ही मौके पर पहुंच गए. उन्होंने तेजाब से झुलसी सोनम को एक निजी अस्पताल में भरती कराया. वहीं अस्पताल में भरती 80 फीसदी झुलसे देवेंद्र की उपचार के दौरान दोपहर करीब ढाई बजे मौत हो गई.पुलिस ने मरने से पहले देवेंद्र के मजिस्ट्रैट के सामने बयान दर्ज करा लिए थे. उस ने अपने बयान में सोनम पांडेय को एसिड अटैक के लिए जिम्मेदार बताया था. देवेंद्र के घर वालों को जब यह जानकारी उस के दोस्त शिवम ने दी तो उस के घर में रोना शुरू हो गया. वह 5 बहनों के बीच अकेला भाई था, रोतेरोते मां और बहनों की हालत बिगड़ गई. दरअसल, यह मामला उत्तर प्रदेश के आगरा शहर के थाना हरीपर्वत क्षेत्र स्थित शास्त्रीनगर का है.

देवेंद्र ने अपने बयान में बताया था कि 25 मार्च, 2021 की सुबह सोनम ने उसे अपने कमरे में लगे पंखे को ठीक करने के लिए बुलाया था. जैसे ही देवेंद्र कमरे में आया तो सोनम ने स्टील के डब्बे में रखा तेजाब उस के ऊपर उड़ेल दिया. अचानक हुए इस हमले से वह खुद को बचा नहीं सका.एसिड अटैक के दौरान नर्स सोनम पर भी तेजाब गिर गया था, जिस से वह भी झुलस गई थी. अब प्रश्न यह था कि सोनम ने देवेंद्र के ऊपर एसिड अटैक क्यों किया?

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पुलिस ने मकान मालिक सुरेशचंद्र से बात की तो उन्होंने पुलिस को बताया कि सोनम पहले शास्त्रीनगर में ही स्थित किसी दूसरे मकान में रहती थी. 5 महीने से वह उन के मकान में किराए पर रह रही थी. देवेंद्र को वह अपना पति बताती थी. वह कमरे पर उस के पास 10-12 दिनों में आता और 1-2 दिन रुक कर चला जाता था. उस का कहना था कि पति बाहर काम करते हैं.वहीं सूचना पा कर अस्पताल पहुंचे देवेंद्र के घर वालों ने इन सब बातों से अनभिज्ञता जताई. उन का कहना था कि सोनम के देवेंद्र से संबंध होने की उन्हें जानकारी नहीं थी. उन्होंने बताया कि देवेंद्र अविवाहित था और उस की 28 अप्रैल को शादी होने वाली थी. देवेंद्र की मां कुसुमा ने सोनम पांडेय पर बेटे की हत्या का आरोप लगाया.

सोनम के कमरे की तलाशी के दौरान पुलिस ने स्टील का एक डब्बा बरामद किया. संभवत: इस एक लीटर वाले डब्बे में दूध लाया जाता होगा. इस में ही तेजाब रखा हुआ था. इस डब्बे की तली में तेजाब भी मिला. वहीं कमरे से देवेंद्र के जले हुए कपड़े व जूते भी मिले. पुलिस ने इन साक्ष्यों को जब्त कर जरूरी काररवाई के बाद फोरैंसिक लैब भेज दिया.घटना की जानकारी मिलने पर एसपी (सिटी) रोहन प्रमोद बोत्रे ने घटनास्थल का निरीक्षण किया व अस्पताल भी गए. उन्होंने पत्रकारों को बताया कि सोनम और देवेंद्र के बीच प्रेम संबंध थे. आरोपी युवती को गिरफ्तार कर लिया गया है. चूंकि वह भी एसिड की चपेट में आ कर झुलसी है, इसलिए इलाज के लिए उसे अस्पताल में भरती कराया गया है.

पुलिस ने जरूरी काररवाई करने के बाद देवेंद्र के शव को पोस्टमार्टम के लिए मोर्चरी भेज दिया. पुलिस ने मामले की गहनता से जांच की. जांच में पता चला कि सोनम पांडेय मूलरूप से उत्तर प्रदेश के औरैया जिले के भागूपुर की रहने वाली शादीशुदा युवती है. सोनम की शादी करीब 10 साल पहले गुजरात में हुई थी. शादी के कुछ दिनों बाद ही पतिपत्नी के बीच लड़ाईझगड़ा रहने लगा. इस दौरान वह एक बेटे की मां भी बन गई. शादी के 2 साल बाद ही वह अपने बेटे को ले कर अपने मायके आ गई.कुछ समय बाद वह आगरा आ कर नर्स की नौकरी करने लगी थी. वह सिकंदरा बाईपास स्थित एक अस्पताल में नर्स थी. बेटा ननिहाल में ही रह रहा था. सोनम ने अब तक अपने पति से तलाक नहीं लिया था. उस ने अपने साथी कर्मचारियों को भी अपने शादीशुदा होने के बारे में नहीं बताया था.

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28 वर्षीय देवेंद्र राजपूत मूलरूप से उत्तर प्रदेश के कासगंज जिले के सहावर क्षेत्र के गांव बाहपुर का रहने वाला था. देवेंद्र चिकित्सा क्षेत्र में बचपन से ही रुचि रखता था. इसलिए उस ने लैब टैक्नीशियन का कोर्स किया था.सुनहरे भविष्य की तलाश में वह आगरा आ गया था और पिछले 8 साल से लाल पैथ लैब में सहायक के पद पर काम कर रहा था. वह आगरा के ही खंदारी इलाके में किराए पर रहता था.
चूंकि सोनम और देवेंद्र एक ही फील्ड से जुड़े थे, एक दिन काम के दौरान दोनों की जानपहचान हो गई. साथसाथ काम करते पहले दोनों में दोस्ती हुई, जो बाद में प्यार में बदल गई.

पिछले 3 सालों से दोनों लिवइन रिलेशन में रह रहे थे. सोनम ने अपने मकान मालिक को बता रखा था कि देवेंद्र उस का पति है. इस तरह देवेंद्र का जब मन होता, वह सोनम से मिलने उस के कमरे पर चला जाता था. इसी बीच सोनम को पता चला कि देवेंद्र की शादी कहीं और तय हो गई है.इस जानकारी से सोनम का गुस्सा सातवें आसमान पर पहुंच गया. क्योंकि वह देवेंद्र पर शादी करने का दबाव बना रही थी. सोनम ने घटना से कुछ दिन पहले देवेंद्र से कहा, ‘‘मैं तुम से बहुत प्यार करती हूं और तुम से शादी करना चाहती हूं.’’
देवेंद्र को सोनम के बारे में पता चल चुका था कि वह शादीशुदा है और उस के एक बच्चा भी है. देवेंद्र तो सोनम के साथ पिछले 3 साल से केवल टाइम पास कर रहा था. देवेंद्र ने उसे समझाते हुए कहा,‘‘सोनम तुम शादीशुदा हो. तुम्हारे एक बेटा भी है. और तुम ने अब तक अपने पति से तलाक भी नहीं लिया है. ऐसे में हम शादी कैसे कर सकते हैं? ऐसी स्थिति में मेरे घर वाले भी शादी के लिए तैयार नहीं होंगे. फिर मेरी भी शादी तय हो चुकी है.’’

देवेंद्र की इन बातों ने आग में घी डालने का काम किया. सोनम अपना आपा खो बैठी. उस ने मन ही मन तय कर लिया कि वह अपने प्रेमी को किसी और का हरगिज नहीं होने देगी. अपने खतरनाक मंसूबे की भनक उस ने देवेंद्र को नहीं लगने दी.इस बीच देवेंद्र ने सोनम के कमरे और उस से मिलनाजुलना भी बंद कर दिया. अपनी योजना को अंजाम देने के लिए सोनम ने 25 मार्च, 2021 की सुबह देवेंद्र को फोन कर कमरे का पंखा ठीक करने के बहाने अपने पास बुलाया था.देवेंद्र सोनम के कमरे पर पहुंचा तो उन दोनों के बीच शादी की बात को ले कर गरमागरमी हुई. इस के बाद सोनम ने स्टील के डब्बे में पहले से लाए तेजाब से देवेंद्र पर अटैक कर दिया, जिस से वह गंभीर रूप से सिर से पैर तक झुलस गया.

जानकारी मिलने पर घटना के दूसरे दिन सोनम के पिता आगरा आ गए. उन्होंने घायल बेटी को एस.एन. मैडिकल कालेज में भरती कराया. वहां उपचार होने से उस की हालत में सुधार हुआ. हालांकि उस समय तक उस के बयान दर्ज नहीं हो सके थे.प्रेमिका के तेजाबी हमले ने एक साथ 3 परिवारों के अरमानों को झुलसा दिया. 5 बहनों में इकलौता भाई और एक मां से उस का घर का चिराग छीन लिया. मां और बहनें देवेंद्र के सिर पर सेहरा बांधने की तैयारी में जुटी थीं. शादी के कार्ड भी छप गए थे.

शादी में बुलाने वालों को कार्ड भेजने की तैयारी चल रही थी. वहीं कासगंज की रहने वाली जिस युवती से देवेंद्र का रिश्ता तय हो गया था और एक महीने बाद दोनों को फेरे लेने थे, उस के अरमानों को भी तेजाब से हमेशा के लिए झुलसा दिया.पोस्टमार्टम के बाद देवेंद्र का शव रात 9 बजे जब घर पहुंचा तो बेटे का शव देख कर मां बेहोश हो गईं. वहीं पांचों बहनें अपने छोटे भाई के शव से लिपट कर रोने लगीं. पूरे गांव में शोक का माहौल था. उधर जिस घर में देवेंद्र की बारात जानी थी वहां उस की मौत की खबर पहुंचने से कोहराम मच गया.

दूसरे दिन शुक्रवार की सुबह देवेंद्र का शोकपूर्ण माहौल में अंतिम संस्कार किया गया. सभी का कहना था कि देवेंद्र की हत्यारोपी को सख्त से सख्त सजा मिलनी चाहिए. कहानी लिखे जाने तक प्रेमिका का इलाज चल रहा था. ठीक होने पर उसे जेल जाना पड़ेगा.देश भर में हर साल एसिड अटैक की तमाम घटनाएं होती हैं, वह भी तेजाब पर बैन लगाए जाने के बाद. एसिड अटैक एक खतरनाक अपराध है, जो महिला हो या पुरुष सभी की जिंदगी तबाह कर देता है. सुप्रीम कोर्ट के सख्त आदेशों के बाद भी देश में गैरकानूनी रूप से होने वाली एसिड की बिक्री पर रोक नहीं लगाई जा सकी है.

एसिड बिक्री को ले कर जो कानून हैं, उन्हें सख्ती के साथ जमीन पर उतारा जाना बेहद जरूरी है. एसिड अटैक से पीडि़त व्यक्ति के निजी, सामाजिक, पारिवारिक और आर्थिक जीवन पर बेहद बुरा प्रभाव पड़ता है.

Romantic Story : दीमक- अविनाश के प्यार में क्या दीपंकर को भूल गई नम्रता?

ऐंटीटर्माइटका छिड़काव हो रहा था. उस की अजीब सी दुर्गंध सांसों में घुली जा रही थी. एक बेचैनी और उदासी उस फैलते धुएंनुमा स्प्रे के कारण उस के भीतर समा रही थी. उफ, यह नन्ही सी दीमक किस तरह जीवन की गति में अवरोध पैदा कर देती है. हर चीज अस्तव्यस्त…कमरे, रसोई, हर अलमारी और पलंगों को खाली करना पड़ा है…खूबसूरत कैबिनटों पर रखे शोपीस, किताबें सब कुछ इधरउधर बिखरा पड़ा है.

हर 2-3 महीने में यह छिड़काव कराना जरूरी होता है. जब दिल्ली से फरीदाबाद आए थे तो किसे पता था कि इस तरह की परेशानी उस की जिंदगी की संगति को ही बिगाड़ कर रख देगी. अगर अपना मकान बनाना एक बहुत बड़ी सिरदर्दी और टैंशन का काम लगता है तो बनाबनाया मकान लेने की चाह भी चैन छीनने में कोई कसर नहीं छोड़ती है. जबउस में आ कर रहो तभी छूटी हुई खामियां जैसे छिपी दरारें, दरकती दीवारें आदि 1-1 कर सामने आने लगती हैं. पर इस जमाने में दिल्ली में 600 गज की कोठी खरीदना किसी बहुत बड़े सपने से कम नहीं है और आसपास एनसीआर इतने भर चुके हैं कि वहां भी कीमत आसमान रही है. ऐसे में फरीदाबाद का विकल्प ही उन के पास बचा था जहां बजट में कोठी मिल गई थी. तब तो यही सोचा था कि फरीदाबाद कौन सा दूर है, इसलिए यह कोठी खरीद ली थी.

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हालांकि वह दिल्ली छोड़ कर आना नहीं चाहती थी, पर उस के पति दीपंकर की जिद थी कि उन्हें स्टेटस को मैंटेन करने के लिए कोठी में रहना ही चाहिए. आखिर क्या कमी है उन्हें. पैसा, पावर और स्टेटस सब है उस का सोसायटी में. फिर जब कारें घर के बाहर खड़ी हैं तो दिल्ली कौन सी दूर है. रोजरोज दिल्ली आनेजाने के झंझट के बारे में सोच उस के माथे पर शिकन उभर आई थी, पर बहस करने का कोई औचित्य नहीं था.

‘‘मैडम, हम ने स्प्रे कर दिया है, पर 3 महीने बाद आप को फिर करवाना होगा. दीमक जब एक बार फैल जाती है, तो बहुत आसानी से पीछा नहीं छोड़ती है जब तक कि पूरी तरह अंदर तक फैली उस की सुरंगें नष्ट न हो जाएं. दीमक लकड़ी में एक के बाद एक सुरंग बनाती जाती है. बाहर से पता नहीं चलता कि लकड़ी को कोई नुकसान पहुंच रहा है, पर उसे वह अंदर से बिलकुल खोखला कर देती है. अच्छा होगा कि आप साल भर का कौंट्रैक्ट हमारी कंपनी के साथ कर लें. फिर हम खुद ही आ कर स्प्रे कर जाया करेंगे. आप को बुलाने का झंझट नहीं रहेगा,’’ स्मार्ट ऐग्जीक्यूटिव, अपनी कंपनी का बिजनैस बढ़ाने में कोई कसर नहीं छोड़ना चाहता था.

यहीं आने पर पता चला था फरीदाबाद में मेहंदी की खेती होती है, इसलिए दीमक बहुत जल्दी जगहजगह लग जाती है. स्प्रे की गंध उसे अभी भी अकुला रही थी. लग रहा था जैसे उलटी आ जाएगी. भीनीभीनी मेहंदी की सुगंध कितनी भाती है, पर जब उस की वजह से दीमक फैलने लगे, तो उस की खुशबू ही क्या, उस का रंग भी आंखों को चुभने लगता है. एक नन्ही सी दीमक किस तरह से घर को खोखला कर देती है. ठीक वैसे जैसे छोटीछोटी बातें रिश्ते की मजबूत दीवारों को गिराने लगती हैं. वे इतनी खोखली हो जाती हैं कि उस शून्यता और रिक्तता को भरने के लिए पूरी जिंदगी भी कम लगने लगती है.

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‘‘ठीक है, आप कौंट्रैक्ट तैयार कर लें. पेपर तैयार कर कल आ जाएं. मैं इस समय बिजी हूं,’’ वह किसी भी तरह से उसे वहां से टालने के मूड में थी.

हर तरफ सामान बिखरा हुआ था और उसे शाम को अवनीश से मिलने जाना था. मेड को हिदायतें दे कर वह थोड़ी देर बाद ही सजधज कर बाहर निकल गई. अवनीश से मिलने जाना है तो ड्राइवर को नहीं ले जा सकती, इसलिए खुद ही दिल्ली तक ड्राइव करना पड़ा. जब से अवनीश उस की जिंदगी में आया था, उस की दुनिया रंगीन हो गई थी. शादी को 2 साल हो गए हैं, पर दीपंकर से उस की कभी नहीं बनी. रोमांस और रोमांच तो जैसे क्या होता है, उसे पता तक नहीं है. वह तो शुरू से ही बिंदास किस्म की रही है. घूमनाफिरना, पार्टियां अटैंड कर मौजमस्ती करना उस की फितरत है. दीपंकर के पास तो कभी उस के लिए टाइम होता ही नहीं है, बस पैसा कमाने और अपने बिजनैस टूअर में बिजी रहता है. हमेशा एक गंभीरता सी उस के चेहरे पर बनी रहती है.

दूसरी तरफ अवनीश है. स्मार्ट, हैंडसम और उसी की तरह मौजमस्ती करना पसंद करने वाला. हमेशा हंसता रहता है. उस की हर बात पर ध्यान देता है जैसे उसे कौन सा कलर सूट करता है, उस का हेयरस्टाइल आज कैसा है या कब उस ने कौन से शेड की लिपस्टिक लगाई थी. यहां तक कि उसे यह भी पता है कि वह कौन सा परफ्यूम पसंद करती है. दीपंकर को तो यह भी पता नहीं चलता कि कब उस ने नई ड्रैस खरीदी है या कौन सी साड़ी में वह ज्यादा खूबसूरत लगती है. हां, पैसे देने में कभी कटौती नहीं करता न ही पूछता कि कहां खर्च  कर रही हो?

‘‘हाय मेरी जान, बला की खूबसूरत लग रही हो…कितनी देर लगा दी. तुम्हारा इंतजार करतेकरते सूख गया मैं,’’ अवनीश की इसी अदा पर तो मरती है वह.

‘‘ट्रैफिक प्रौब्लम… ऐनी वे बताओ आज का क्या प्रोग्राम है?’’

‘‘शाम ढलने को है, प्रोग्राम क्या होना चाहिए, तुम ही सोचो,’’ अवनीश ने उसे आंख मारते हुए कहा तो वह शरमा गई.

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अवनीश अकेला था और कुंआरा भी. अपने दोस्त के साथ एक कमरा शेयर कर के रहता था. दोनों के बीच आपस में पहले से ही तय था कि जब वह नम्रता को वहां ले जाएगा तो वह देर आएगा. अवनीश की बांहों से जब नम्रता मुक्त हुई तो बहुत खुश थी और अवनीश तो जैसे हमेशा उसे पा लेने को आतुर रहता था.

‘‘तुम ने मुझे दीवाना बना दिया है नम्रता. अच्छा आजकल सेल चल रही है, क्या खयाल है तुम्हारा कल कुछ शौपिंग करें?’’

‘‘मेरे होते हुए तुम्हें सेल में खरीदारी करने की क्या जरूरत?’’ कह नम्रता निकल गई और अवनीश उस के लाए हुए परफ्यूम को लगाने लगा.

‘‘सही मुरगी हाथ लगी है तेरे. बहुत ऐश कर रहा है,’’ अवनीश के दोस्त ने परफ्यूम से महकते कमरे में घुसते हुए कहा.

‘‘तू क्यों जल रहा है? फायदा तो तेरा भी होता है. मेरी सारी चीजों का तू भी तो इस्तेमाल करता है?’’ अवनीश बेशर्मी से मुसकराया.

अगले दिन नम्रता ने अवनीश के लिए ढेर सारी शौपिंग की. कुछ और भी

खरीदना है, कह कर उस ने नम्रता से उस का कै्रडिट कार्ड ले लिया. वह जानता था कि नम्रता अपने पति को पसंद नहीं करती है, इसलिए उस की भावनाओं का खूब फायदा उठा रहा था.

पति से नाखुश होने के कारण उस के अंदर संवेदनशीलता की कमी बनी रहती थी, क्योंकि वह नहीं चाहती थी कि अवनीश से उस का साथ छूटे. उसे डर लगा रहता था कि कहीं वह शादी न कर ले. कभीकभी भावुक हो वह उस के सामने रो भी पड़ती थी.

3 महीने बाद जब फिर से ऐंटीटर्माइट स्प्रे करने कंपनी के लोग आए, तो उन्होंने कहा लकड़ी को गीला होने से बचाना चाहिए. उसे पता चला कि  दीमक नमी वाले स्थानों में अधिक पाई जाती है. जहां कहीं भी गली हुई लकड़ी मिलती है, वह तुरंत वहां अपनी पैठ बना लेती है. उस ने तो इस बात पर ध्यान ही नहीं दिया था कि अवनीश धीरेधीरे उस के जीवन में पैठ बना कर उसे खोखला बनाता जा रहा है.

‘‘तुम्हारे पति की बहुत पहुंच है, उन से कह कर मेरे बौस का यह काम करवा दो न,’’ अवनीश ने एक दिन नम्रता के गालों को चूमते हुए कहा तो वह बोली, ‘‘तुम ने कह दिया, समझो हो गया. दीपंकर मेरी कोई बात नहीं टालते हैं. अच्छा चलो आज लंच किसी बढि़या होटल में करते हैं.’’

नम्रता सोचती थी कि अवनीश की वजह से उस की जिंदगी में बहार है…तितली की तरह उस के चारों ओर मंडराती रहती. उस के मुंह से अपनी प्रशंसा सुन बादलों में उड़ती रहती. दूसरी ओर अवनीश की मौज थी. उस का शरीर, पैसा और हर तरह की ऐश की मौज लूट रहा था.

जब नम्रता ने बताया के दीपंकर बिजनैस ट्रिप पर हफ्ते भर के लिए सिंगापुर जा रहा है, तो उस ने भी नम्रता से किसी हिल स्टेशन पर जाने के लिए प्लेन का टिकट बुक कराने के लिए कहा. दोनों ने वहां बहुत ऐंजौय किया, पर पहली बार उसे अवनीश का खुले हाथों से पैसे खर्चना अखरा.

वह समझ ही नहीं पा रही थी कि अवनीश नामक दीमक उस के और दीपंकर के रिश्ते के बीच आ उसे भुरभुरा कर रहा है. उसे क्या पता था कि दीमक अपना घर बनाने के लिए लकड़ी को खोखला नहीं करती है, बल्कि लकड़ी को ही चट कर जाती है और इसीलिए उस के लग जाने का पता नहीं चलता, क्योंकि वह अपने पीछे किसी तरह का बुरादा तक नहीं छोड़ती है. जब तक लकड़ी का वजूद पूरी तरह से खत्म नहीं हो जाता, दीमक लगने का एहसास तक नहीं हो पाता है. आसानी से उस का पता नहीं लगाया जा सकता, इसलिए उस से छुटकारा पाना भी कभीकभी असंभव हो जाता है. यहां तक कि उसे हटाने के लिए जो छिड़काव किया जाता है, वह उसे भी अपने में समा लेती और अधिक जहरीली हो जाती है.

कुछ दिनों से वह महसूस कर रही थी कि अवनीश की मांगें निरंतर बढ़ती जा रही हैं. जबतब उस का क्रैडिट कार्ड मांग लेता. दीपंकर उस से कहता नहीं है, पर कभीकभी लगता कि मेहनत से कमाए उस के पैसे वह अवनीश पर लुटा कर अच्छा नहीं कर रही है. दीपंकर की सौम्यता और उस पर अटूट विश्वास उसे अपराधबोध से भरने लगा था. माना अवनीश बहुत रोमांटिक है, पर दीपंकर ने कभी यह एहसास तो नहीं कराया कि वह उस से प्यार नहीं करता है. उस का केयर करना क्या प्यार नहीं है और अवनीश है कि बस जब भी मिलता है किसी न किसी तरह से पैसे खर्चवाने की बात करता है. क्या यह प्यार होता है? नहीं अवनीश उसे प्यार नहीं करता है. उस ने कहीं पढ़ा था कि दीमक घास के ऊपर या नमी वाली जमीन पर एक पहाड़ी सी भी बना लेती है जो दूर से देखने में बहुत सुंदर लगती है और एहसास तक नहीं होता कि उसे छूने भर से हाथों में एक अजीब सी सिहरन तक दौड़ सकती है.

पास जा कर देखो तब पता लगता है कि असंख्य दीमक उस के अंदर रेंग रही है और तब एक लिजलिजा सा एहसास मन को घेर लेता है. उसे समझ नहीं आ रहा था कि उस के मन और शरीर पर हावी होती जा रही अवनीशरूपी दीमक पर वह किस स्प्रे का छिड़काव करे… दीपंकर को धोखा देने के कारण मन लकड़ी के बुरादे सा भुरभुरा और खोखला होता जा रहा है…क्षणक्षण कुछ दरक जाता है…न जाने मन के कपाट इस सूरत में कितने समय तक बंद रह सकते हैं. डरती है वह कहीं कपाट खुल गए तो संबंधों की कड़ी ही न ढीली पड़ जाए. जब मजबूती न रहे तो टूटने में बहुत देर नहीं लगती किसी भी चीज को…फिर यह तो रिश्ता है. नम्रता को एहसास हुआ कि अपने पति की कमियों और रिश्ते से नाखुश होने के कारण उस के भीतर से जो संवेदनाओें का बहाव हो रहा है, उस की नमी में दीमक ने अपना घर बना लिया है. अवनीश के सामने उस ने दिल के दरवाजे खोल दिए हैं उस ने भी तो…उस की आंसुओं की आर्द्रता से मिलती नमी में पनपने और जगह बनाने का मौका मिल रहा है उसे.

अचानक उसे महसूस हुआ कि दीमक उस के घर में ही नहीं, उस की जिंदगी में भी लगी हुई है. धीरेधीरे वह किस तरह बिखर रही है…बाहर से सब सुंदर और अच्छा लगता है, पर अंदर ढेरों सुरंगें बनती जा रही हैं, जिन्हें बनने से अभी न रोका गया तो बाहर आना मुश्किल हो जाएगा. दीमक उस के जीवन को किसी बुरादे में बदल दे, उस से पहले ही हर जगह छिड़काव कराना होगा.‘‘दीमक कुछ ज्यादा ही फैल रही है, आप तुरंत किसी को भेजें. मुझे इसे पूरी तरह से हटाना है,’’ नम्रता नेघर में स्प्रे करवाने के लिए कंपनी में समय से पहले ही फोन कर उन्हें आने को कहा. ‘‘पर मैडम, अभी तो स्प्रे किए 2 ही महीने हुए हैं, 3 महीने बाद इसे करना होता है.’’

‘‘आप ऐक्स्ट्रा पैसे ले लेना. दीमक और फैल गई, तो सब बिखर जाएगा. आज ही भेज दो आदमी को, दीमक फैल रही है,’’ फोन तो कब का कट चुका था, पर वह लगातार बुदबुदा रही थी, ‘‘दीमक को फैलने से रोकना ही होगा.’’ उस के मोबाइल पर अवनीश का फोन आने लगा था. यह पहली बार हुआ था जब उस ने दूसरी घंटी भी बजाने दी थी. फिर तो रिंग होती ही रही. मोबाइल हाथ में ही था. जब उसे अहसास हुआ तो 10 मिनट बीत चुके थे. अवनीश की 5 मिस्ड काल्स थीं. उस ने मोबाइल साइलैंट मोड पर कर दिया और कपड़ों की अलमारी से कपड़े निकालने लगी, जो कपड़े अवनीश के साथ खरीदे थे उन में तो बुरी तरह दीमक लग चुकी थी. उन्हें बाहर ले जा कर जला डालना ही ठीक होगा.

Top 10 Best Family Stories in Hindi: टॉप 10 बेस्ट फैमिली कहानियां हिंदी में

Family Stories in Hindi: इस आर्टिकल में हम आपके लिए लेकर आए हैं सरिता की 10 Best Family Stories in Hindi 2021. इन कहानियों में परिवार, समाज और रिश्तों से जुड़ी कई दिलचस्प कहानियां हैं जो आपके दिल को छू लेगी और रिश्तों को लेकर एक नया नजरिया और सीख भी देगी. इन Family Stories से आप कई अहम बाते भी सीख सकते हैं जो जिंदगी और रिश्तों के लिए आपका नजरिया भी बदल देगी. तो अगर आपको भी है संजीदा कहानियां पढ़ने का शौक तो यहां पढ़िए सरिता की Best Family Stories in Hindi.

1. मुझे बच्चा नहीं चाहिए

 

Family Story in Hindi

‘क्या… मतलब क्या है तुम्हारा? ये घर नहीं होटल है?’ आदिल चिल्लाया.

‘हां, होटल ही है… चमचमाता हुआ होटल… कभी देखा है उन घरों को जहां बच्चे होते हैं… कैसे होते हैं वह घर… वहां हर तरफ खिलौने बिखरे होते हैं, चॉकलेट-टॉफियां बिखरी पड़ी रहती हैं. घर वह होता है जहां बच्चों की किताबें पड़ी होती हैं…  उनके कपड़े यहां वहां सूख रहे होते हैं… कहीं वह खेल रहे होते हैं… कहीं खाना खा कर फैला रहे होते हैं तो कहीं पॉटी करके बैठे होते हैं… वो होता है घर, जहां जिन्दगी होती है, जहां हलचल होती है, शोर-शराबा, हंसी-मजाक होता है… ऐसा नहीं जैसा यहां है… फिनाइल की महक से भरा सन्नाटा… सिर्फ सन्नाटा… अंदर भी और बाहर भी… मुझे होटल में बच्चा पैदा नहीं करना है… तुम चाहो तो मुझे तलाक दे दो…’ पूरी कहानी पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें…

2. स्वीकृति एक बहू को कैसे मिली ससुराल में उसकी सही जगह

 

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‘अम्मां, दोनों भाभियां मुझ से उम्रमें बड़ी हैं, इसलिए उन के बारे में कुछ नहीं कहता पर मीता तो थोड़ाबहुत घरगृहस्थी के कामों में हाथ बंटा सकती है. कभी आप ने सोचा है, आप के लाड़- प्यार से वह कितनी बिगड़ती जा रही है. इसे भी तो दूसरे घर जाना है. क्या यह ठीक है कि घर की सभी औरतें हाथ पर हाथ धरे बैठी रहें और बेचारी नीरा ही घर के कामों में जुटी रहे?’

‘मीता की तुलना नीरा से करने का अधिकार किसने दे दिया तुझे. वह किसी छोटे घर की बेटी नहीं है,’ बेटे के सधे हुए आग्रह के स्वर को तिरस्कार की पैनी धार से काटती हुई अम्मां चीखीं. विभू उस के बाद एक पल भी नहीं रुके थे. स्तंभित नीरा को लगभग घसीटते हुए घर से चले गए थे. पूरी कहानी पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें…

3. खुली छतकैसे पति-पत्नी को करीब ले आई घर की छत

 

Family Story in Hindi

खुली छत पर मंदमंद हवा के बीच चांदनी छिटकी हुई थी. आधा चंद्रमा आकाश के बीचोंबीच मुसकरा रहा था. रमेश अपनी दरी बिछा कर सो गया. उस ने अपनी खुली आंखों से आकाश को, चांद को और तारों को निहारा. आज 20-25 वर्षों बाद वह ऐसे खुले आकाश के नीचे लेटा था. वह तो यह भी भूल चुका था कि छिटकी हुई चांदनी में आकाश और धरती कैसे नजर आते हैं.

बिजली जाने के कारण ए.सी. और पंखों की आवाज भी बंद थी. चारों ओर खामोशी छाई हुई थी. उसे अपनी सांस भी सुनाई देने लगी थी. पूरी कहानी पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें…

4. तमाचा- सानिया ने किस तरह लिया अपने पति से बदला

 

Family Story in Hindi

‘‘कहीं सानिया को नादिर की हरकतों का पता न चल जाए,’’ ससुर की आवाज सुन कर सानिया के कदम दरवाजे पर ही ठहर गए.

‘‘पता चल जाएगा, तो कौन सी कयामत आ जाएगी. आखिर हम एक गरीब घर की लड़की इसीलिए तो लाए हैं. उसे अपनी जबान बंद रखनी होगी. उस का काम सिर्फ इस घर का वारिस पैदा करना है,’’ सास ने कठोर आवाज में कहा.

सासससुर की बातें सुन कर सानिया हैरान रह गई. उस ने सपने में भी नहीं सोचा था कि इतने ऊंचे घराने के लोगों के खयाल इतने नीचे होंगे. उस की सेवा, त्याग और प्यार का उन की नजरों में कोई मोल नहीं था. ‘मैं भी दिखा कर रहूंगी कि मैं क्या कर सकती हूं,’ सानिया ने मन ही मन सोचा. पूरी कहानी पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें…

5. कुंआरे बदन का दर्द

 

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‘‘जिंदगी भर साथ चलने का वादा था लेकिन तुम ने ही मुझे तलाक दे कर घर से निकाल दिया. जब तुमने तलाक दिया तो मैं अपने मांबाप के पास गई. वे इस सदमे को बरदाश्त नहीं कर सके और 6 महीने के अंदर ही दोनों चल बसे. मैं तो उन की कब्र पर भी नहीं जा सकी क्योंकि औरतों का कब्रिस्तान में जाना सख्त मना है.

उसके बाद मैं भाई के पास रही थी. भाई तो कुछ नहीं बोलता था, लेकिन भाभी के लिए मैं बोझ बन गई थी. वह रातदिन मेरे भाई के पीछे पड़ी रहती और मुझे जलील करते हुए कहती थी कि इस की दूसरी शादी कराओ, नहीं तो किसी के साथ भाग जाएगी. तुम नहीं जानते कि कोई मर्द तलाकशुदा औरत से शादी नहीं करता. सब को कुंआरी लड़की और कुंआरा बदन चाहिए. पूरी कहानी पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें…

6. नई सुबह- शीला क्यों गलत धंधे में पड़ गई थी?

 

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शीला क्या करती. शौक से तो नहीं आई थी इस धंधे में. उसके पति ने उसे तनहा छोड़ कर किसी और से शादी कर ली थी. हालातों से मजबूर होकर शीला ने अपना शरीर बेचना शुरू कर दिया था. एक से दूसरे, दूसरे से तीसरे. इस तरह वह कई लोगों के साथ सो कर दाम वसूल कर चुकी थी. उस की दादी को इस बात की खबर थी, पर वह बूढ़ी जान भी क्या करती. काश, उस की शादी नवीन के साथ हुई होती. नवीन कितना अच्छा लड़का था. वह उस से बहुत प्यार करता था. वह यादों के गलियारों में भटकते हुए धीरेधीरे आगे बढ़ने लगी. पूरी कहानी पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें…

7. हरी लाल चूड़ियां

 

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“मैं नोटिस करती थी कि अक्सर झाड़ू-पोछा करते वक्त सुकुमारी मेरी ड्रेसिंग टेबल के शीशे के सामने चंद सेकेंड रुक कर अपने को जरूर निहारती थी. मैं उसे देखकर मन ही मन मुस्कुरा देती थी. जवान लड़की थी, मन में भविष्य के रंगीन सपने डोलते होंगे. हर लड़की के मन में इस उम्र में सपनों की तरंगें डोलती हैं. ड्रेसिंग टेबल के कोने में रखे चूड़ीदान में लटकी रंग-बिरंगी चूड़ियों की तरफ भी सुकुमारी का विशेष आकर्षण दिखता था.

कभी-कभी मैं सोचती कि सुन्दरी खुद तो इतनी साज-संवार के साथ रहती थी, उसकी बहू भी पूरा श्रृंगार करके आती थी, मगर बेटी के कान में सस्ती सी बाली तक नहीं डाली थी उसने.” पूरी कहानी पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें…

8. सूखा पत्ता- पराए मर्द के चक्कर में क्या हुआ संगीता का हाल?

 

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संगीता ने देखा, रवि मोटरसाइकिल पर सवार था और पीछे एक औरत बैठी हुई थी. इसका मतलब रवि ने दूसरी शादी कर ली. उसका इंतजार भी नहीं किया. इससे पहले कि वह कुछ सोच पाती, मोटरसाइकिल फर्राटे से उस के बगल से हो कर निकल गई. तभी वहां एक साइकिल सवार गुजरा. संगीता ने उसे रोका, ‘‘चाचा, अभी रवि के साथ मोटरसाइकिल पर बैठ कर गई वह औरत कौन है?’’

‘‘अरे, उसे नहीं जानती बेटी? लगता है कि इस गांव में पहली बार आई हो. वह तो रवि बाबू की नईनवेली दुलहन है.’’ ‘‘नई नवेली दुलहन?’’ ‘‘हां बेटी, वह रवि बाबू की दूसरी पत्नी है. पहली पत्नी बड़ी चरित्रहीन निकली. अपने पुराने प्रेमी के साथ भाग गई. वह बड़ी बेहया थी. इतने अच्छे परिवार को ठोकर मार कर भागी है. कभी सुखी नहीं रह पाएगी,’’  पूरी कहानी पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें…

9. दैहिक भूख

 

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संध्या तकरीबन हर रोज मनोज से पैसे मांगने लगी थी. कभीकभी मनोज मना कर देता, तो उस दिन संध्या मुंह फुला कर कालेज जाती. कालेज के बाद या कभीकभी कालेज से छुट्टी कर के लड़केलड़कियां हाथ में हाथ डाले मुंबई के बीच पर घूमते नजर आते. कई बार थोड़े अमीर परिवार के लड़के लड़कियों को अच्छे रैस्टोरैंट में ले जाते, तो कभी फिल्म दिखा कर भी लाते.

मनोज तो संध्या की जरूरत पूरी करने में नाकाम था, सो अब संध्या भी उन लड़कों के साथ घूमने लगी थी. किसी लड़की को बांहों में बांहें डाल कर घुमानाफिराना इस उम्र के लड़कों के लिए बड़े गर्व की बात होती है और लड़कियां सोचती हैं कि यह प्यार है और वह लड़का उन की खूबसूरती का दीवाना है. संध्या की दूसरी सहेलियां भी ऐसे ही लड़कों के साथ घूमती थीं. लेकिन एक दिन… पूरी कहानी पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें…

10. मत जाओ मां

 

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शुभांगी को भैयाभाभी का यह व्यवहार न्यायसंगत नहीं लगा था. वह कर भी क्या सकती थी. जब किसी के अंदर अपने बड़ों के प्रति भावना न हो तो उसे उस में ठूंसा तो नहीं जा सकता. बचपन की खट्टीमीठी यादों की छाया में पली शुभांगी का मन बरबस मांबाबूजी में रमा रहा. ‘क्यों परेश इस उम्र में उन्हें इस तरह अकेला छोड़ कर चला गया. इतनी मिन्नतों के साथ यहां लाया था. भला बाबूजी को क्या कमी थी वहां. कितना दुख हुआ होगा उन्हें बरसों पुराने पासपड़ोसियों का, संगीसाथियों का साथ छोड़ते हुए…शायद उस से भी ज्यादा अब…’ पूरी कहानी पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें…

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प्रदेश के निजी विद्यालय सूचना अधिकार अधिनियम के दायरे में

उत्तर प्रदेश के सभी निजी विद्यालय सूचना अधिकार अधिनियम के दायरे में माने जाएंगी. अब निजी विद्यालय सूचना अधिकार अधिनियम के अन्तर्गत मांगी गयी सूचना देने के लिए बाध्य होंगे. राज्य सूचना आयुक्त श्री प्रमोद कुमार तिवारी ने आज श्री संजय शर्मा बनाम ज0सू0अधिकारी/मुख्य सचिव उ0प्र0 शासन, लखनऊ के विषय में योजित अपील के निस्तारण में यह व्यवस्था दी है. उन्होंने मुख्य सचिव उ0प्र0 शासन को यह संस्तुति की है कि जन सूचनाओं की महत्ता को देखते हुए निजी विद्यालयों प्रबन्धकों को भी जन सूचना अधिकारी घोषित करने की व्यवस्था करें.

उल्लेखनीय है कि अपीलार्थी श्री संजय शर्मा ने ज0सू0अ0/मुख्य सचिव, उ0प्र0 शासन, लखनऊ से लखनऊ के दो प्रतिष्ठित निजी विद्यालयों के विषय में आर0टी0आई0 एक्ट के तहत राज्य सूचना आयोग लखनऊ में द्वितीय अपील योजित की थी. यदि निजी विद्यालयों को विद्यालय की स्थापना हेतु रियायती दरों पर विकास प्राधिकरण द्वारा भूमि उपलब्ध करायी गयी है तो मा0 सर्वोच्च न्यायालय द्वारा डी0ए0वी0 कालेज ट्रस्ट एण्ड मैनेजमेंट सोसायटी एवं अन्य बनाम डायरेक्टर ऑफ पब्लिक इंन्सट्रक्शन एवं अदर्स में प्रतिपादित विधि अनुसार ऐसे विद्यालय राज्य द्वारा पर्याप्त रूप से वित्त पोषित समझे जायेंगे. उल्लेखनीय है कि निजी विद्यालय सूचना का अधिकार अधिनियम-2005 के तहत इस आधार पर सूचना नहीं देते थे कि वे राज्य द्वारा वित्त पोषित नहीं है एवं वे अधिनियम की परिधि से बाहर हैं.

आयोग ने इस वाद में यह भी प्रतिपादित किया कि वर्ष 2009 में निःशुल्क और अनिवार्य बाल शिक्षा अधिकार अधिनियम के पारित होने के बाद ऐसे समस्त विद्यालय जो उपरोक्त अधिनियम से आच्छादित है, अधिनियम एवं उ0प्र0 निःशुल्क और अनिवार्य बाल शिक्षा अधिकार नियमावली-2011 के प्रपत्र-1 एवं 2 में वर्णित कतिपय सूचनाएं जिला शिक्षाधिकारी को सूचनाएं देना अपेक्षित है. ऐसी स्थिति में जिला शिक्षाधिकारी उक्त प्रपत्रों में उल्लिखित सूचनाओं को धारित करते हैं, एवं वे प्रपत्रों में वर्णित समस्त सूचनाओं को आर0टी0आई0 एक्ट की धारा-6(1) के तहत मांगे जाने पर याची को देने के लिए बाध्य है.

प्रदेश में 1.15 करोड़ लोगों के पास हैं गोल्‍डन कार्ड

प्रदेश के करोड़ों गरीब परिवारों के लिए राहत भरी खबर है. प्रदेश सरकार 26 जुलाई से आयुष्‍मान भारत योजना के तहत गोल्‍डन कार्ड बनाने के लिए विशेष अभियान चलाने जा रही है.  कोरोना काल के दौरान इलाज में गोल्‍डन कार्ड ने लोगों को काफी राहत दी थी. आयुष्‍मान योजना के तहत अस्‍पतालों में गोल्‍डन कार्ड धारकों को 5 लाख रूपए तक नि:शुल्‍क इलाज की सुविधा दी जाती है.

कोरोना काल के दौरान प्रधानमंत्री जन अरोग्‍य आयुष्‍मान योजना आर्थिक रूप से कमजोर परिवारों के लिए संबल बनी थी. आयुष्‍मान योजना के तहत बने गोल्‍डन कार्ड के जरिए लाखों लोगों को पांच लाख रूपए तक नि:शुल्‍क इलाज की सुविधा दी गई है. गोल्‍डन कार्ड के जरिए लोग सरकारी व सरकार की ओर से अधिकृत निजी अस्‍पताल में अपना नि:शुल्‍क इलाज करा सकते हैं.  इससे पहले 30 अप्रैल तक गोल्‍डन कार्ड बनाए गए थे. प्रदेश सरकार अब फिर से विशेष अभियान चलाकर गोल्‍डन कार्ड बनाने जा रही है. मुख्‍यमंत्री के निर्देश पर 26 जुलाई से प्रदेश भर में आयुष्‍मान योजना के तहत गोल्‍डन कार्ड बनने के लिए जन सुविधा केन्‍द्र या फिर नजदीकी सरकारी अस्‍पताल में जाकर लोग कार्ड के लिए आवेदन कर सकते हैं.

यूपी में बने 1.15 करोड़ गोल्‍डन कार्ड

केन्‍द्र सरकार की आयुषमान योजना के तहत प्रदेश में 1 करोड़ 18 लाख गरीब परिवारों को 5 लाख रुपए का चिकित्‍सा बीमा कवर की सुविधा दी जा चुकी है. इसके अलावा आयुष्‍मान योजना से 6 करोड़ 47 लाख लोगों को लाभांवित किया जा चुका है. यूपी में अब तक 1.15 करोड़ गोल्‍डन कार्ड बनाए जा चुके हैं. इसके अलावा मुख्‍यमंत्री जनआरोग्‍य योजना में 42.19 लाख पात्रों को लाभांवित किया जा चुका है.

ये रिश्ता क्या कहलाता से जल्दी होगी करण कुंद्रा की विदाई, फैंस से कही ये बात

कुछ समय पहले ही टीवी सीरियल ये रिश्ता क्या कहलाता है में करण कुंद्रा की एंट्री हुई थी, जिसके बाद से लगातार शो के टीआरपी को बढ़ाने के लिए मेकर्स प्रयास कर रहे थे और सीरियल में लव ट्रेंगल आ गया था.

अब खबर आ रही है कि इस सीरियल से जल्द करण कुंद्रा का पत्ता साफ होने वाला है. इस खबर से करण क्रुंदा के फैंस को धक्का तो लगा है साथ ही करण कुंद्रा ने इस विषय पर सफाई देते हुए कहा है कि मेरे पास और भी ज्यादा प्रोजेक्ट्स थे और मुझे छोटा रोल ही चाहिए था. इसलिए मैं अपने रोल से खुश हूं.

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अब मेकर्स कहानी को उस मोड़ पर ला रहे हैं जहां करण के किरदार को खत्म किया जा सके. अब देखना यह है कि मेकर्स इस सीरियल में करण को मार देंगे या फिर कुछ ऐसा करेंगे जिससे करण बाहर हो जाएंगे और सीरियल की कहानी में एक अलग मोड़ आएगा.

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वैसे इन दिनों तो सीरियल में लगातार लव ट्रेंगल पर फोक्स किया जा रहा है. वैसे बता दें कि जबसे करण कुंद्रा की एंट्री इस सीरियल में हुई है तबसे लगातार सोशल मीडिया पर करण कुंद्रा को लगातार  ट्रोल किया जा रहा था.

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इस सीरियल को देखने वाले फैंस को बेसब्री से इंतजार है कि इस सीरियल में अब आगे क्या होने वाला है. जिसका इंतजार  है.

वैसे भी कुछ वक्त पहले इस सीरियल में दिखाया जा रहा था कि शिवांगी जोशी को करण कुंद्रा से प्यार पहले था लेकिन अब वह अपना हमसफर मोहसिन खान को चुनना चाहती हैं.

मेरी समस्या यह है कि शरीर के अन्य अंगों की अपेक्षा मेरी गरदन पर अधिक कालापन है?

सवाल

मैं 20 वर्षीय युवती हूं. मेरी समस्या यह है कि शरीर के अन्य अंगों की अपेक्षा मेरी गरदन पर अधिक कालापन है. मैं ऐसा क्या करूं, जिस से गरदन की रंगत में सुधार आ जाए?

जवाब

दरअसल, हम त्वचा की देखभाल करते समय गरदन की सफाई की अनदेखी करते हैं, जिस के कारण धीरेधीरे वह काली और बदरंग होती जाती है. आप गरदन की रंगत को निखारने के लिए नीबू का रस व गुलाबजल बराबर मात्रा में मिला कर गरदन पर लगाएं व 10-15 मिनट बाद सादे पानी से धो लें.

इस के अतिरिक्त आप संतरे के सूखे छिलकों के पाउडर में बेसन मिला कर कच्चा दूध डाल कर पेस्ट बनाएं और उसे गरदन की स्क्रबिंग करें. सूखने पर 10 मिनट बाद धो लें. आप चाहें तो प्रभावित स्थान पर बेकिंग सोडा में पानी मिला कर पेस्ट बना कर उसे भी लगा सकती हैं. यह पेस्ट स्किन के हाइपर पिगमैंटेशन व पैची स्किन को हटाने में मदद करेगा.

 

अगर आप भी इस समस्या पर अपने सुझाव देना चाहते हैं, तो नीचे दिए गए कमेंट बॉक्स में जाकर कमेंट करें और अपनी राय हमारे पाठकों तक पहुंचाएं.

 

 

नौकरशाही: आईएएस अफसरों का दर्द

भ्रष्टाचार को सहज ढंग से लेने की मानसिकता दरअसल एक साजिश है जिस का विरोध एक आईएएस अधिकारी ने किया तो उसे तरहतरह से प्रताडि़त किया गया ताकि भविष्य में कोई दूसरा आपत्ति न जताए. पेश है खोखली होती प्रशासनिक व्यवस्था का सच बयां करती यह खास रिपोर्ट. नए शहर और नए घर में आ कर अभी सलीके से सामान भी नहीं जमा पाए थे कि एक बार फिर तबादले का फरमान आ गया. हम बात कर रहे हैं मध्य प्रदेश के युवा आईएएस अधिकारी लोकेश जांगिड़ की जो बीती 16 जून तक बड़वानी जिले के अपर कलैक्टर हुआ करते थे. इस शाम मध्य प्रदेश सामान्य प्रशासन विभाग की प्रमुख सचिव दीप्ति गौड़ मुखर्जी ने लोकेश को फोन पर राज्य शिक्षा केंद्र में तबादले की सूचना दी तो उन्हें कोई खास हैरानी नहीं हुई लेकिन दिल और दिमाग जरूर खटास व भड़ास से भर गए.

पहली नियुक्ति के बाद 2014 के बैच के अधिकारी लोकेश का 54 महीनों में यह 9वां तबादला था जिस का अंदेशा उन्हें कुछ दिनों पहले से ही एक खास वजह के चलते था. सो, उन्होंने सप्ताहभर पहले ही अपने गृहराज्य महाराष्ट्र में प्रतिनियुक्ति पर जाने के लिए राज्य सरकार को आवेदन दिया था. दीप्ति गौड़ से उन्होंने तबादले की वजह पूछी तो जवाब मिला, ‘भोपाल आ जाओ, फिर बात करते हैं.’ लोकेश ने इस बातचीत को रिकौर्ड कर लिया और अपने कुछ सीनियर्स को फौरवर्ड कर दिया जो कथित तौर पर लीक भी हुई. रात होतेहोते राज्य के राजनीतिक और प्रशासनिक गलियारों में खासा हल्ला मच गया क्योंकि एक व्हाट्सऐप चैट भी वायरल हो चुकी थी. आईएएस अधिकारियों के एक सोशल मीडिया ग्रुप की इस वायरल चैट में लोकेश ने लिखा था, ‘‘मेरे रहते बड़वानी कलैक्टर शिवराज वर्मा पैसा नहीं खा पा रहे थे, इसलिए मु झे हटाया गया है. उन्होंने शिवराज सिंह चौहान के कान भर दिए.

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ये दोनों एक ही समाज से आते हैं- किरार समाज- जिस की सैक्रेटरी कलैक्टर की पत्नी हैं और सीएम शिवराज सिंह की पत्नी किरार समाज की प्रैसिडैंट हैं.’’ आगे लोकेश ने लिखा, ‘‘मैं रिटायरमैंट के बाद एक किताब लिखूंगा और उस में सभी तथ्यों को लिखूंगा क्योंकि अभी मेरे हाथ घटिया सेवा नियमों से बंधे हुए हैं. मैं किसी से नहीं डरता हूं, इसलिए सब खुलेआम बोल रहा हूं. कोई मु झे सम झाने की कोशिश न करे. मध्य प्रदेश में कार्यकाल की स्थिरता और सिविल सर्विस बोर्ड नामक संस्था एक चुटकुला है. बिहार में ऐसे अधिकारियों को कलैक्टर नहीं बनाया जाता जो पैसे बनाने में लगे रहते हैं. मध्य प्रदेश में इस मामले में जितना कहा जाए, कम है. दिलचस्प बात यह है कि जो लोग हर तरह के माफिया से पैसे निकालते हैं उन का एक क्षेत्र से दूसरे क्षेत्र में ट्रांसफर होता है और त्रुटिहीन ईमानदार लोग स्थानांतरण पर सचिवालय में फेंक दिए जाते हैं.’’

ये वे बातें हैं जिन्हें हर कोई जानतासम झता है लेकिन लोकेश जांगिड़ जैसे जनूनी युवा अधिकारी जब नजदीक से देख कर इन का खुलासा करते हैं तो उन का स्वागत कम, विरोध ज्यादा होता है. विरोध भी ज्यादा उल्लेखनीय बात नहीं, अफसोस तब होता है जब सारे बेईमान लठ ले कर उन पर पिल पड़ते हैं. आगे वही हुआ जो आमतौर पर ऐसे मामलों में होता है कि लोकेश को कारण बताओ नोटिस थमा दिया गया. सत्तापक्ष ने उन की इस हरकत को अनुशासनहीनता बताया तो विपक्ष ने उन की वकालत की. यह थी हकीकत लोकेश जांगिड़ का एक बड़ा गुनाह यह था कि उन्होंने बड़वानी कलैक्टर शिवराज वर्मा द्वारा कोरोना की दूसरी लहर के दौरान औक्सीजन कंसंट्रेटर की खरीद में हुए भ्रष्टाचार को उजागर कर दिया था. पूरे देश में जब प्रशासनिक अधिकारियों सहित प्राइवेट और सरकारी अस्पतालों के नर्स और वार्डबौय तक लोगों की जिंदा रहने की मजबूरी को भुना रहे थे तब बड़वानी भी इस से अछूता नहीं रहा था. 39 हजार रुपए मूल्य के कंसंट्रेटर 60 हजार रुपए प्रति नग के हिसाब से खरीदे गए थे जिस की सीधी जिम्मेदारी कलैक्टर की होती है. दूसरे कई उपकरणों की खरीद में भी घोटाले हुए थे.

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लोकेश बड़वानी के कोरोना इंचार्ज भी थे और इस घोटाले का हिस्सा बनने के बजाय वे उसे उजागर कर रहे थे. सो, यह तो होना ही था. जनता के पैसे की बंदरबांट में शामिल न होना उन की बड़ी गलती थी जिसे ज्यादा देर तक वे बरदाश्त नहीं कर पाए और सबकुछ, जो सच का आधा हिस्सा ही है, उजागर कर दिया. रातोंरात वे सुर्खियों में आ गए और उन की तुलना हरियाणा के आईएएस अशोक खेमका से की जाने लगी. लोकेश की पहली तैनाती मध्य प्रदेश के चंबल इलाके के जिले श्योपुर में बतौर एसडीएम नवंबर 2016 में हुई थी. उस के बाद उन का तबादला गुना कर दिया गया. वहां भी उन की पटरी आला अफसरों से नहीं बैठी तो उन्हें सीईओ बना कर हरदा और फिर शहडोल भेज दिया गया. नियुक्ति से पहले उन्होंने अपना ट्रेनिंग पीरियड सीहोर जिले में पूरा किया था. चुनाव आयोग ने उन्हें प्रतिनियुक्ति पर भी लिया था. कुछ महीने बाद ही वे भोपाल राज्य शिक्षा केंद्र के अपर मिशन संचालक बना कर लूपलाइन में पटक दिए गए. यहां से उन्हें अपर कलैक्टर, बडवानी बना कर भेजा गया और हालिया विवाद के बाद वापस राज्य शिक्षा केंद्र स्थानांतरित कर दिया गया.

राजस्व विभाग में अपर सचिव और नगरीय प्रशासन विभाग में उपसचिव भी वे रह चुके हैं. हरियाणा कैडर के अशोक खेमका अपनी बेबाक बयानी के लिए कुख्यात हैं. नवंबर 2019 में उन का 53वीं बार तबादला हुआ था. वजह थी, महाराष्ट्र का राजनीतिक घटनाक्रम जिस पर उन्होंने ट्वीट किया था, ‘‘विधायकों की खरीदफरोख्त, उन्हें बंधक बनाना सभी जनसेवा के लिए किया जाता है. जनसेवा जैसा सुअवसर छोड़ा नहीं जाता, वंचित रहने से हृदय में पीड़ा होती है. होने दो खूब द्वंद्व होने दो. सा झेदारी में तो मिलबांट कर जनसेवा की जाएगी.’’ इस ट्वीट के बाद तबादला हुआ तो 27 नवंबर, 2019 को उन्होंने फिर ट्वीट किया, ‘‘फिर तबादला, लौट कर फिर वहीं, कल संविधान दिवस मनाया गया. आज सर्वोच्च न्यायालय के आदेश और नियमों को एक बार फिर तोड़ा गया. कुछ प्रसन्न होंगे, अंतिम ठिकाने जो लगा.

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ईमानदारी का ईनाम जलालत.’’ ईमानदारी और संघर्षोंभरी जिंदगी लगभग यही लोकेश ने सोशल मीडिया पर अपने स्टेटस पर लिखा जिसे दर्द या भड़ास कुछ भी कहा जा सकता है. उन्होंने भोपाल आने के बाद लिखा, ‘‘ईमानदारी एक महंगा शौक है. यह हर किसी के बस की बात नहीं.’’ लेकिन अशोक खेमका और लोकेश जांगिड़ में बड़ा फर्क भी है. शायद यह नौकरी दांव पर लगाने का जोखिम उठाने और तजरबे का हो. खेमका अकसर राजनेताओं से टकराए, लेकिन झुके नहीं. लोकेश में अभी इतनी हिम्मत आई नहीं दिखती. इस प्रतिनिधि ने जब उन से बात की तो वे बहुत से मुद्दों पर कतराते दिखे. खासतौर से इस सवाल पर कि आप को शिकायत किस से है नरेंद्र मोदी और शिवराज सिंह चौहान से या फिर पूरी भाजपा से? वे कहते हैं, ‘‘मेरा किसी से विरोध या बगावत नहीं है.

यदि क्रांति के विचार पौजिटिव हों तो बुरी बात नहीं. मैं अभी मिले नोटिस का लीगल स्टेटस देख रहा हूं. अपनी बात कहने का हक सभी को है. सर्विस रूल पब्लिक फोरम पर बात कहने से रोकते हैं लेकिन निजी फोरम पर बात कही जा सकती है.’’ हालांकि, तबादले के तीसरे दिन ही उन्हें धमकी मिलने की भी रस्म पूरी हो गई थी. एक अज्ञात नंबर से फोन कर उन्हें कहा गया कि ‘साधना भाभी (मुख्यमंत्री शिवराज सिंह की पत्नी) का नाम ले कर तू ने मौत को बुलाया है. तू नहीं जानता, तू ने किस से पंगा लिया है. तु झे अपनी और बेटे की परवा है तो 6 महीने की छुट्टी पर चला जा. मीडिया से बात करना बंद कर दे.’

चंबल के डाकुओं की शैली में मिली इस धमकी की शिकायत आला पुलिस अफसरों से करते लोकेश ने सुरक्षा की मांग की जो कि उन्हें नहीं दी गई. गरीब ब्राह्मण परिवार के लोकेश की जिंदगी संघर्षों से भरी पड़ी है. जब वे महज 6 साल के थे तब उन के पिता रामचंद्र जांगिड़ का निधन हो गया था. उन की परवरिश उन के दादा ने की जो सालों पहले रोजगार की तलाश में महाराष्ट्र के परभणी में आ कर बस गए थे. यहीं उन की स्कूली शिक्षा हुई. पढ़ाई में अव्वल रहे लोकेश ने 2008 में कंप्यूटर साइंस से बीटैक किया और प्लेसमैंट होने के बाद कुछ साल टीसीएस कंपनी में नौकरी भी की. कुछ कर गुजरने की ख्वाहिश उन्हें दिल्ली ले गई जहां उन्होंने आईएएस की कोचिंग ली और 2 बार असफल रहने के बाद यूपीएससी के कड़े इम्तिहान में 2014 में 68वीं रैंक हासिल की जो उन का सपना था.

दिल्ली में रहते उन्होंने जेएनयू में भी एमए समाजशास्त्र में दाखिला लिया था. राजनेताओं में इंदिरा गांधी को अपना रोलमौडल मानने वाले पढ़ने और घूमनेफिरने के शौकीन इस युवा अधिकारी का शौक मध्य प्रदेश सरकार ने तबादले कर कर के पूरा किया, जिस पर उन्हें कोई गिलाशिकवा नहीं है. दिन का अधिकतर वक्त सोशल मीडिया पर बिताने वाले लोकेश की शादी बनारस घराने के मिश्र परिवार की दिव्या शर्मा से हुई जो मौजूदा दौर की प्रतिभाशाली और लोकप्रिय शास्त्रीय गायिका हैं. इन दोनों का 4 साल का एक बेटा है. फुरसत मिलने पर अपने हाथ से पसंदीदा डिशेज भी लोकेश बनाते हैं और गजल सुनने का अपना शौक पूरा करते हैं. श्योपुर में बिताए वक्त को वे अपनी नौकरी का सब से अच्छा वक्त बताते हैं जहां उन्हें आदिवासियों की जिंदगी को नजदीक से देखने का मौका मिला.

भ्रष्टाचार देख कर घबरा गए लोकेश महाराष्ट्र जाने की बात अपने 87 साल के बुजुर्ग दादा, जो इस उम्र की कई बीमारियों से ग्रस्त हैं, से की और 57 साल की अपनी डायबिटीज की मरीज विधवा मां की देखभाल के लिए कर रहे हैं या फिर तबादलों व धमकियों से डर कर जाना चाहते हैं, यह कह पाना मुश्किल है. ताजा तबादला और मामला अब फिल्मी ज्यादा हो गया था जिस में उल्लेखनीय 2 बातें हैं- मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान का किरार होने के नाते कलैक्टर, बड़वानी, शिवराज वर्मा को मिला संरक्षण और दूसरा, एक आईएएस अधिकारी ने पब्लिक फोरम पर बात क्यों रखी है. पब्लिक फोरम पर एतराज क्यों इस मामले में मुद्दे की अहम बात यही है कि आईएएस अधिकारी, जिन्हें आजादी के पहले ही वल्लभभाई पटेल ने स्टील फ्रेम औफ इंडिया कहा था, अपनी बात पब्लिक फोरम पर क्यों नहीं कह सकते, सर्विस रूल्स के नाम पर उन से यह हक छीनने से फायदा किसे है. जाहिर है सत्ता को जिस का सच बड़ा वीभत्स और कुरूप भी होता है. लोकेश के उदाहरण ने इसे, छोटे स्तर पर ही सही, उजागर किया है कि भ्रष्टाचार की गंगा कहांकहां से हो कर गुजरती है. एक आईएएस अधिकारी ही बेहतर बता सकता है कि भ्रष्टाचार कैसेकैसे होता है. इसे बताने के कई फायदे हैं.

मसलन, सरकार चुनने वाले आम लोग जान पाते हैं कि उन के पैसे का बेजा इस्तेमाल कैसे होता है और ब्यूरोक्रेट्स व नेता आमतौर पर एक ही थैली के चट्टेबट्टे होते हैं. कोरोना के हालिया कहर के दौरान लोगों ने जो नारकीय यंत्रणाएं झेलीं उन की बड़ी वजह इन दोनों की मिलीभगत थी. ऐसे में कोई ईमानदार अफसर दुखी हो कर सच बोलता है तो उसे तबादले और दूसरी कई परेशानियां उठानी पड़ती हैं. देश के हर युवा की पहली प्राथमिकता आईएएस अफसर बनने की ही होती है जिस में रुतबा है, अधिकार हैं, आकर्षक सैलरी के साथसाथ कुछ कर गुजरने के मौके भी हैं. लेकिन आईएएस अधिकारी बन जाना आसान काम नहीं है. इस के लिए 3 से 5 साल तक हाड़तोड़ दिनरात मेहनत करनी होती है. कोचिंग और स्टेशनरी सहित खानेपीने व रहने पर ही कम से कम 6 लाख रुपए साल का खर्चा आता है. इस पर भी कड़ी स्पर्धा के चलते सलैक्शन की गारंटी नहीं होती. एक अंदाजे के मुताबिक, हर साल 10 लाख युवा यूपीएससी का फौर्म भरते हैं जिन में से चयन लगभग एक हजार का होता है यानी एक हजार प्रतिभागियों में से एक आईएएस अधिकारी बन पाता है. ये युवा कई सपने ले कर इस नौकरी में आते हैं जिन के टूटने का सिलसिला 2 वर्षों में ही शुरू हो जाता है.

जिसे सिस्टम यानी व्यवस्था कहा जाता है उसे बदलने की हिम्मत हर कोई नहीं कर पाता. नतीजतन, अधिकतर इस से सम झौता कर लेते हैं, कुछ इस का हिस्सा बन जाते हैं और कुछेक सच बोलते हैं तो उन की शामत आ जाती है. अभी और बढ़ेगी शामत नरेंद्र मोदी सरकार आईएएस अधिकारियों की मुश्कें कसने का कोई मौका नहीं चूक रही है. केंद्र सरकार ने एक ताजे फरमान में रिटायर्ड अफसरों को धौंस दे ही दी है कि उन्होंने उलटासुलटा कुछ लिखा तो उन की पैंशन रोक ली जाएगी. यह नोटिफिकेशन मिनिस्ट्री औफ पब्लिक ग्रीवैंस एंड पैंशन के तहत आने वाले डिपार्टमैंट औफ पर्सनल एंड ट्रेनिंग (डीओपीटी) ने जारी किया है. अभी भले ही यह हुक्म सुरक्षा संबंधित संस्थानों के लिए हो पर प्रशासनिक हलकों में यह चर्चा आम है कि जल्द ही इस की जद में आईएएस अधिकारी भी होंगे. इस बाबत प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ) और डीओपीटी के बीच लगातार गुफ्तगू चल रही है. नाम न छापने की शर्त पर भोपाल के एक वरिष्ठ आईएएस अधिकारी का कहना है, ‘‘इस बात से देशभर के आईएएस अधिकारी डरे हुए हैं.

पश्चिम बंगाल के मुख्य सचिव अलपन बंदोपाध्याय और पीएमओ के विवाद से मोदी के अहंकार या स्वाभिमान जो भी सम झ लें, को ठेस लगी है, इसलिए वे आईएएस अधिकारियों के पर कुतर सकते हैं.’ गौरतलब और दिलचस्प बात यह है कि पश्चिम बंगाल के मुख्यसचिव अलपन बंदोपाध्याय पीएमओ द्वारा बुलाई गई आपदा प्रबंधन की मीटिंग में 15 मिनट देर से पहुंचे थे और 2 मिनट बाद बिना कोई प्रेजैंटेशन दिए चले गए थे. बाद में मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने उन का बचाव किया था और केंद्र सरकार पर यह आरोप भी लगाया था कि वह उन के आईएएस अधिकारी को परेशान कर रही है. अब सोचने की बारी लोकेश जैसे अधिकारियों की है कि वे जब सर्विस में रहते नहीं कह पा रहे, तो अपनी बात रिटायरमैंट के बाद किताब के जरिए कैसे कहेंगे.

इस मिजाज के अफसर अगर निजाम या सिस्टम बदलना चाहते हैं तो उन्हें रूस में पनाह लिए अमेरिका की राष्ट्रीय सुरक्षा एजेंसी (एनएसए) के पूर्व उपसंचालक एडवर्ड स्नोडेन का यह वाक्य रट लेना चाहिए कि ‘मेरा मकसद समाज को बदलना नहीं था. मैं समाज को मौका देना चाहता था कि वह तय करे कि क्या वह बदलना चाहता है.’ लोकेश जांगिड़ के मामले में सुखद बात उन्हें मिला, थोड़ा ही सही, समर्थन था जिसे देख लगता है कि हां लोग बदलना चाहते हैं. अब सोचने की बारी सरकार की है कि वह ईमानदार अधिकारियों को भ्रष्टाचार उजागर करने की न केवल छूट दे बल्कि इस के दोषियों को सजा दे कर उन्हें प्रोत्साहित भी करे क्योंकि भ्रष्टाचार एक ऐसा रोग है जो छिपाने से और बढ़ता है.

Romantic Story in Hindi – अधिकार – भाग 3 : कुशल का मन क्यों कड़वाहट से भर गया था?

‘‘हां, मैं ने कहा था और अब भी मैं ही कह रहा हूं कि उस से रिश्ता बांधना चाहता हूं.’

‘‘वह तो विधवा है, भला उस से तुम्हारा रिश्ता कैसे?’’

‘‘क्या विधवा का पुनर्विवाह नहीं हो सकता?’’

‘‘हो क्यों नहीं सकता, मैं तो हमेशा इस पक्ष में रहा हूं.’’

‘‘तो फिर आप आशा के खिलाफ क्यों हैं?’’

‘‘क्योंकि तुम इस पक्ष में कभी नहीं रहे. तुम अपनी मां से इतनी नफरत करते हो. जानते हो न उस का कारण क्या है? उस का पुनर्विवाह ही इस घृणा का कारण है. जो इंसान अपनी मां के साथ न्याय नहीं कर पाया, वह अपनी पत्नी से इंसाफ कैसे करेगा?’’

मैं ने हिम्मत कर के कुछ कहना चाहा, मगर तब तक ताऊजी जा चुके थे. मैं सोचने लगा, क्यों ताऊजी आशा को मुझ से दूर करना चाहते हैं? किस अपराध की सजा देना चाहते हैं?

तभी कंधे पर किसी ने हाथ रखा. मुड़ कर देखा, आशा ही तो सामने खड़ी थी.

‘‘यह क्या हो गया?’’ उस ने हैरानी से पूछा.

मेरा जी चाहा कि उस की गोद में समा कर सारी वेदना से मुक्ति पा लूं. लेकिन वह पास बैठी ही नहीं, थोड़ी देर सामने बैठ कर चली गई.

एक दिन आशा का पीछा करते मैंने उस का घर देख लिया. दूसरे दिन सुबहसवेरे उस का द्वार खटखटा दिया. वह मुझे सामने पा कर हैरान रह गई. मैं ने जल्दी से कहा, ‘‘नाराज मत होना. नाश्ता करने आया हूं.’’

‘‘मैं यहां अकेली रहती हूं, कोई क्या सोचेगा. आप यहां क्यों चले आए?’’

‘‘तुम भी तो मेरे पास चली आती थीं, मैं ने तो कभी मना नहीं किया.’’

‘‘वह मेरी भूल थी. मेरा पागलपन था.’’

‘‘और यह मेरा पागलपन है. मुझे तुम्हारी जरूरत है. मैं तुम्हारे साथ एक रिश्ता बांधना चाहता हूं. चाहता हूं, तुम हमेशा मेरी आंखों के सामने रहो,’’ समीप जा कर मैं ने उस की बांह पकड़ ली, ‘‘तुम से पहले मेरा जीवन आराम से चल रहा था, कहीं कोई हलचल न थी. मुझे ज्यादा नहीं चाहिए. बस, थोड़ा सा ही प्यार दे दो. देखो आशा, मैं तुम्हारे किसी भी अधिकार में हस्तक्षेप नहीं करूंगा. तुम अगर अपने दिवंगत पति के साथ मुझे बांटना न चाहो, तो मत बांटो.’’

‘‘जानते हो, मुझे अभी भी पागलपन के दौरे पड़ते हैं,’’ वह मेरी आंखों में झांकते हुए बोली.

‘‘पागल लोग बैंक में इतनी अच्छी तरह काम नहीं कर सकते. तुम पागल नहीं हो. तुम पागल नहीं…’’

मेरे हाथ से बांह छुड़ा कर वह भीतर चली गई.

मैं भी तेज कदमों से उस के पीछेपीछे गया और तनिक ऊंची आवाज में कहा, ‘‘मुझे जो कहना था, कह दिया. अब चलता हूं, नाश्ता फिर किसी दिन.’’

‘‘कुशल,’’ आशा ने पुकारा, परंतु मैं रुका नहीं.

मैं शाम तक बड़ी मुश्किल से खुद को रोक पाया. मुझे फिर सामने पा कर आशा एक बार फिर तनाव से भर उठी. पर खुद को संभालते हुए बोली, ‘‘आइए. बैठिए. मैं चाय ले कर आती हूं…’’

‘‘नहीं, तुम मेरे पास बैठो, चाय की इच्छा नहीं है.’’

आशा मेरे पास बैठ गई. मैं अपने विषय में सबकुछ बताता रहा और वह सुनती रही.

‘‘तुम्हीं कहो, अगर मैं तुम से शादी करना चाहूं तो गलत क्या है? 25 साल पहले अगर ताऊजी मेरी मां का पुनर्विवाह करा सकते थे, तो अब तुम नया जीवन आरंभ क्यों नहीं कर सकतीं?’’

‘‘आप के साथ जो हुआ, वह मां के पुनर्विवाह की वजह से ही हुआ न? आप अपनी मां का सम्मान नहीं कर पाते, उन के पति को अपना पिता स्वीकार नहीं करते. इस अवस्था में आप मेरा सम्मान कैसे करेंगे?

‘‘अगर आप पुनर्विवाह को बुरा नहीं मानते तो पहले अपनी मां का सम्मान कीजिए, उन से नाता जोडि़ए.’’

मैं आशा की दलील पर खामोश था. उस की दलील में दम था और उस का तुरंत कोई तोड़ मेरी समझ में न आया. आशा के मोह में बंधा, बस, इतना ही कह पाया, ‘‘अगर तुम चाहती हो, तो उन लोगों से नाता जोड़ने में मुझे कोई परेशानी नहीं है.’’

‘‘मेरी इच्छा पर ही ऐसा  क्यों…क्या आप अपने मन से ऐसा नहीं चाहते?’’

‘‘मैं ने कहा न कि मैं इतना तरस चुका हूं कि कोई इच्छा अब जिंदा नहीं रही. मां ने जो भी किया, हो सकता है, उस की गृहस्थी के लिए वही अच्छा हो. यह सच ही है कि अतीत के भरोसे जीवन नहीं कटता और न ही मरने वाले के साथ इंसान मर ही सकता है. जो भी हुआ होगा, शायद अच्छे के लिए ही हुआ होगा, मगर इस सारे झमेले में मैं तो कहीं का नहीं रहा.’’

मेरे कंधे पर पड़ा शौल सरक गया था. एकाएक आशा बोली, ‘‘अरे, आप की बांह अभी भी…’’

‘‘हां, 3 हफ्ते का प्लास्टर है न.’’ मुझे ऐसा लगा, जैसे उस ने कुछ नया ही देख लिया, झट पास आ कर उस ने शौल मेरी पीठ से भी सरका दी, ‘‘आप के कपड़ों पर तो खून के धब्बे हैं.’’

फिर वह डबडबाई आंखों से बोली, ‘‘इतनी तकलीफ में भी आप मेरे पास चले आते हैं?’’

‘‘दर्द कम करने ही तो आता हूं. तुम छूती हो तो….’’

‘‘ऐसा क्या है मेरे छूने में?’’

‘‘वह सबकुछ है जो मुझ जैसे इंसान को चाहिए. मगर यह सत्य है, इसे वासना नहीं कहा जा सकता, जैसा शायद ताऊजी ने समझा था.’’

बांह का प्लास्टर खुलने को 2 हफ्ते बाकी थे. इस दौरान आशा ने मुझे संभाल लिया था. वह हर शाम मेरे घर आती और भोजन का सारा प्रबंध करती.

जिस दिन मैं ने प्लास्टर कटवाया, उस दिन सीधा आशा के पास ही चला गया. मुझे स्वस्थ पा कर उस की आंखें भर आईं.

सहसा आशा को छाती से लगा कर मैं ने उस के माथे पर ढेर सारे चुंबन अंकित कर दिए. वह मुझ से लिपट कर फूटफूट कर रो पड़ी. आशा के स्पर्श में एक अपनापन था, एक विश्वास था.

प्लास्टर के खुलते ही मैं अस्पताल जाने लगा, मेरी दिनचर्या फिर से शुरू हो गई. एक दिन ताऊजी मिलने चले आए. उन्होंने ही बताया कि मेरी मां के दूसरे पति को दिल का दौरा पड़ा है. तीनों बच्चे अमेरिका में हैं और ऐसी हालत में वह अकेली है. वे सोचते हुए से बोले, ‘‘कुशल, तुम्हें अपने पिता से मिलना चाहिए.’’

Romantic Story in Hindi : बरसों का साथ- भाग 3

लेकिन मांबाप की मौत के बाद ईश्वर ने घरपरिवार से नाता लगभग खत्म सा कर लिया था. आनेजाने की कौन कहे, कभी कोई चिट्ठीपत्री भी नहीं आती थी. उन दिनों शहरों में भी कम ही लोगों के यहां फोन होते थे. अपना फर्ज निभाने के लिए प्रशांत के पिता ने विदाई की तारीख तय कर के बहन से ईश्वर को संदेश भिजवा दिया था.

जब इस बात की जानकारी प्रशांत को हुई तो वह खुशी से फूला नहीं समाया. विदाई से पहले ईश्वर की बहन को दुलहन के स्वागत के लिए बुला लिया गया था. जिस दिन दुलहन को आना था, सुबह से ही घर में तैयारियां चल रही थीं.

प्रशांत के पिता सुबह 11 बजे वाली टे्रन से दुलहन को ले कर आने वाले थे. रेलवे स्टेशन प्रशांत के घर से 6-7 किलोमीटर दूर था. उन दिनों बैलगाड़ी के अलावा कोई दूसरा साधन नहीं होता था. इसलिए प्रशांत बहन के साथ 2 बैलगाडि़यां ले कर समय से स्टेशन पर पहुंच गया था.

ट्रेन के आतेआते सूरज सिर पर आ गया था. ट्रेन आई तो पहले प्रशांत के पिता सामान के साथ उतरे. उन के पीछे रेशमी साड़ी में लिपटी, पूरा मुंह ढापे मजबूत कदकाठी वाली ईश्वर की पत्नी यानी प्रशांत की भाभी छम्म से उतरीं. दुलहन के उतरते ही बहन ने उस की बांह थाम ली.

दुलहन के साथ जो सामान था, देवनाथ के साथ आए लोगों ने उठा लिया. बैलगाड़ी स्टेशन के बाहर पेड़ के नीचे खड़ी थी. एक बैलगाड़ी पर सामान रख दिया गया. दूसरी बैलगाड़ी पर दुलहन को बैठाया गया. बैलगाड़ी पर धूप से बचने के लिए चादर तान दी गई थी.

दुलहन को बैलगाड़ी पर बैठा कर बहन ने प्रशांत की ओर इशारा कर के कहा, ‘‘यह आप का एकलौता देवर और मैं आप की एकलौती ननद.’’

मेहंदी लगे चूडि़यों से भरे गोरेगोरे हाथ ऊपर उठे और कोमल अंगुलियों ने घूंघट का किनारा थाम लिया. पट खुला तो प्रशांत का छोटा सा हृदय आह्लादित हो उठा. क्योंकि उस की भाभी सौंदर्य का भंडार थी.

कजरारी आंखों वाला उस का चंदन के रंग जैसा गोलमटोल मुखड़ा असली सोने जैसा लग रहा था. उस ने दशहरे के मेले में होने वाली रामलीला में उस तरह की औरतें देखी थीं. उस की भाभी तो उन औरतों से भी ज्यादा सुंदर थी.

प्रशांत भाभी का मुंह उत्सुकता से ताकता रहा. वह मन ही मन खुश था कि उस की भाभी गांव में सब से सुंदर है. मजे की बात वह दसवीं तक पढ़ी थी. बैलगाड़ी गांव की ओर चल पड़ी. गांव में प्रशांत की भाभी पहली ऐसी औरत थीं. जो विदा हो कर ससुराल आ गई थीं. लेकिन उस का वर तेलफुलेल लगाए उस की राह नहीं देख रहा था.

इस से प्रशांत को एक बात याद आ गई. कुछ दिनों पहले मानिकलाल अपनी बहू को विदा करा कर लाया था. जिस दिन बहू को आना था, उसी दिन उस का बेटा एक चिट्ठी छोड़ कर न जाने कहां चला गया था.

उस ने चिट्ठी में लिखा था, ‘मैं घर छोड़ कर जा रहा हूं. यह पता लगाने या तलाश करने की कोशिश मत करना कि मैं कहां हूं. मैं ईश्वर की खोज में संन्यासियों के साथ जा रहा हूं. अगर मुझ से मिलने की कोशिश की तो मैं डूब मरूंगा, लेकिन वापस नहीं आऊंगा.’

इस के बाद सवाल उठा कि अब बहू का क्या किया जाए. अगर विदा कराने से पहले ही उस ने मन की बात बता दी होती तो यह दिन देखना न पड़ता. ससुराल आने पर उस के माथे पर जो कलंक लग गया है. वह तो न लगता. सब सोच रहे थे कि अब क्या किया जाए. तभी मानिकलाल के बडे़ भाई के बेटे ज्ञानू यानी ज्ञानेश ने आ कर कहा, ‘‘दुलहन से पूछो, अगर उसे ऐतराज नहीं हो तो मैं उसे अपनाने को तैयार हूं.’’

दुर्भाग्य के भंवरजाल में फंसी नवोदा के लिए ज्ञानू का यह कथन डूबते को तिनके का सहारा की तरह था. उस ने ज्ञानू से शादी कर ली थी. प्रशांत का भी मन ज्ञानू बनने का हो रहा था. लेकिन अभी वह छोटा था. उस की उम्र महज 13 साल थी. दुलहन को घर में बैठा कर पिया का इंतजार करने के लिए छोड़ दिया गया.

अगले दिन इंतजार की घडि़यां खत्म हुईं. ईश्वर भैया शाम की गाड़ी से आ गए. लेकिन आते ही उन्होंने फरमान सुना दिया कि वह इस दुलहन को नहीं रखेंगे. लोगों ने समझायाबुझाया पर वह किसी की नहीं माने.

पति का फरमान सुन कर भाभी रोने लगीं. सुबह भाभी का चेहरा उतरा हुआ था. आंखें इस तरह लाल और सूजी थीं, जैसे वह रात भर रोई थीं. प्रशांत ने इस बारे में पूछा तो उन्होंने कोई जवाब नहीं दिया. रूपमती की चुप्पी पर प्रशांत ने अगला सवाल किया, ‘‘भाभी, दिल्ली से भैया आप के लिए क्या लाए हैं?’’

‘‘मौत.’’ रूपमती ने प्रशांत को संक्षिप्त सा जवाब दिया.

भाभी के इस जवाब पर प्रशांत को गहरा आघात लगा. उस ने कहा, ‘‘लगता है भाभी आप रात में बहुत रोई हैं. क्या हुआ है, कुछ बताओ तो सही.’’

‘‘भैया, अभी यह सब तुम्हारी समझ में नहीं आएगा. दूसरे के दुख में आप क्यों दुखी हो रहे हैं. मेरे भाग्य में जो है वही होगा.’’ कह कर भाभी फफक कर रो पड़ी. दिल का बोझ थोड़ा हलका हुआ तो आंचल से मुंह पोंछ कर बोली, ‘‘आप के भैया बहुत बड़े अधिकारी हैं. मैं उन के काबिल नहीं हूं. उन्हें खूब पढ़ीलिखी पत्नी चाहिए. इसीलिए वह मुझे साथ रखने को तैयार नहीं हैं.’’

रूपमती के साथ जो हुआ था. वह ठीक नहीं हुआ था. लेकिन प्रशांत कुछ नहीं कर सकता था. उसी दिन ईश्वर चला गया. जाने से पहले उस ने प्रशांत के पिता से कहा, ‘‘काका, मुझे यह औरत नहीं चाहिए. इस देहाती गंवार औरत को मैं अपने साथ हरगिज नहीं रख सकता.’’

ईश्वर के जाने के बाद रूपमती ननद के गले लग कर रोते हुए कहने लगी, ‘‘अगर इस आदमी को ऐसा ही करना था तो मुझे विदा ही क्यों कराया गया. विदा करा कर मेरी जिंदगी क्यों बरबाद की गई. अब कौन मुझे कुंवारी मानेगा. मैं न इधर की रही न उधर की.’’

अब सवाल था रूपमती को मायके पहुंचाने का. मामला तलाक का था. इसलिए घर का कोई बड़ा रूपमती को मायके ले जाने के लिए राजी नहीं था. जब कोई बड़ाबुजुर्ग रूपमती को ले जाने के लिए राजी नहीं हुआ तो उसे मायके ले जाने की जिम्मेदारी प्रशांत की आ गई.

रेलवे स्टेशन से रूपमती का घर ज्यादा दूर नहीं था. कोई संदेश मिला होता तो शायद स्टेशन पर कोई लेने आ जाता. प्रशांत और रूपमती पैदल ही घर की ओर चल पडे़. सामान स्टेशन पर ही एक परिचित की दुकान पर रख दिया गया था.

राह चलते हुए अपनी व्यथा व्यक्त करने की खातिर गांव के ज्ञानेश उर्फ ज्ञानू के बारे में बता कर प्रशांत ने कहा, ‘‘आज मुझे अपने देर से पैदा होने पर अफसोस हो रहा है भाभी. अगर मैं 8-10 साल पहले पैदा हुआ होता तो…’’

दुख की उस घड़ी में भी रूपमती के चेहरे पर मुसकान आ गई. मासूम देवर के कंधे पर हाथ रख कर उस ने कहा, ‘‘तो फिर मैं तुम्हारे बड़े होने की राह देखूं?’’

प्रशांत झेंप गया. गांव आया, फिर घर. गौने गई लड़की के चौथे दिन मायके आने पर उसे देखने के लिए आसपड़ोस की औरतें इकट्ठा हो गईं. उस समय दिल पर पत्थर रख कर रूपमती मुसकराती रही. उस के इस भोलेभाले देवर को ताना न सुनना पड़े, इस के लिए उस ने किसी से कुछ नहीं बताया.

प्रशांत उसी दिन शाम की गाड़ी से लौट आया. रूपमती गांव के बाहर तक उसे छोड़ने आई. विदा करते समय उस ने कहा, ‘‘इस जन्म में फिर कभी मुलाकात हो, तो देवरजी पहचान जरूर लेना. इन चार दिनों में तुम ने जो दिया,’’ प्रशांत का हाथ पकड़ कर सीने पर रख कर कहा, ‘‘इस में समाया रहेगा.’’

इतना कहते हुए रूपमती की आंखों में जो आंसू आए थे, देवनाथ उन्हें आज तक नहीं भूल सका था. इस के बाद से देवनाथ को हमेशा लगता रहा कि जिंदगी में कहीं कुछ छूटा हुआ है, जो तमाम तलाशने पर भी नहीं मिल रहा है.

धीरेधीरे यह प्रसंग मन के किसी कोने में दबता गया और इस के मुख्य पात्रों की स्मृति धुंधली होती गई. इस की मुख्य वजह यह थी कि दोनों ओर से संबंध लगभग खत्म हो गए थे. बदल रही जीवन की घटनाओं के बीच यह दु:सह याद उस ने अंतरात्मा के किसी कोने में डाल दी थी.

प्रशांत को सोच में डूबा देख कर रूपमती ने कहा, ‘‘आप बड़े तो हो गए, पर किया गया वादा भूल गए, निभा नहीं पाए.’’

‘‘भाभी, आप ने भी तो मेरी राह कहां देखी.’’

‘‘देखी देवरजी, बिलकुल देखी. बहुत दिनों तक देखी. आप का इंतजार आज तक करती रही. राह आंख से नहीं, दिल से देखी जाती है देवरजी.’’

प्रशांत आगे कुछ कहता, उस के पहले ही रूपमती ने उठते हुए बहुओं से कहा, ‘‘सुधा बेटा, तुम्हारे यह चाचाजी, मेरे सगे देवर हैं, तुम इन के पास बैठो. इन के लिए आज मैं खुद खाना बनाऊंगी और सामने बैठ कर खिलाऊंगी. बरसों की अधूरी साध आज पूरी करूंगी.’’

 

 

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