भ्रष्टाचार को सहज ढंग से लेने की मानसिकता दरअसल एक साजिश है जिस का विरोध एक आईएएस अधिकारी ने किया तो उसे तरहतरह से प्रताडि़त किया गया ताकि भविष्य में कोई दूसरा आपत्ति न जताए. पेश है खोखली होती प्रशासनिक व्यवस्था का सच बयां करती यह खास रिपोर्ट. नए शहर और नए घर में आ कर अभी सलीके से सामान भी नहीं जमा पाए थे कि एक बार फिर तबादले का फरमान आ गया. हम बात कर रहे हैं मध्य प्रदेश के युवा आईएएस अधिकारी लोकेश जांगिड़ की जो बीती 16 जून तक बड़वानी जिले के अपर कलैक्टर हुआ करते थे. इस शाम मध्य प्रदेश सामान्य प्रशासन विभाग की प्रमुख सचिव दीप्ति गौड़ मुखर्जी ने लोकेश को फोन पर राज्य शिक्षा केंद्र में तबादले की सूचना दी तो उन्हें कोई खास हैरानी नहीं हुई लेकिन दिल और दिमाग जरूर खटास व भड़ास से भर गए.

पहली नियुक्ति के बाद 2014 के बैच के अधिकारी लोकेश का 54 महीनों में यह 9वां तबादला था जिस का अंदेशा उन्हें कुछ दिनों पहले से ही एक खास वजह के चलते था. सो, उन्होंने सप्ताहभर पहले ही अपने गृहराज्य महाराष्ट्र में प्रतिनियुक्ति पर जाने के लिए राज्य सरकार को आवेदन दिया था. दीप्ति गौड़ से उन्होंने तबादले की वजह पूछी तो जवाब मिला, ‘भोपाल आ जाओ, फिर बात करते हैं.’ लोकेश ने इस बातचीत को रिकौर्ड कर लिया और अपने कुछ सीनियर्स को फौरवर्ड कर दिया जो कथित तौर पर लीक भी हुई. रात होतेहोते राज्य के राजनीतिक और प्रशासनिक गलियारों में खासा हल्ला मच गया क्योंकि एक व्हाट्सऐप चैट भी वायरल हो चुकी थी. आईएएस अधिकारियों के एक सोशल मीडिया ग्रुप की इस वायरल चैट में लोकेश ने लिखा था, ‘‘मेरे रहते बड़वानी कलैक्टर शिवराज वर्मा पैसा नहीं खा पा रहे थे, इसलिए मु झे हटाया गया है. उन्होंने शिवराज सिंह चौहान के कान भर दिए.

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ये दोनों एक ही समाज से आते हैं- किरार समाज- जिस की सैक्रेटरी कलैक्टर की पत्नी हैं और सीएम शिवराज सिंह की पत्नी किरार समाज की प्रैसिडैंट हैं.’’ आगे लोकेश ने लिखा, ‘‘मैं रिटायरमैंट के बाद एक किताब लिखूंगा और उस में सभी तथ्यों को लिखूंगा क्योंकि अभी मेरे हाथ घटिया सेवा नियमों से बंधे हुए हैं. मैं किसी से नहीं डरता हूं, इसलिए सब खुलेआम बोल रहा हूं. कोई मु झे सम झाने की कोशिश न करे. मध्य प्रदेश में कार्यकाल की स्थिरता और सिविल सर्विस बोर्ड नामक संस्था एक चुटकुला है. बिहार में ऐसे अधिकारियों को कलैक्टर नहीं बनाया जाता जो पैसे बनाने में लगे रहते हैं. मध्य प्रदेश में इस मामले में जितना कहा जाए, कम है. दिलचस्प बात यह है कि जो लोग हर तरह के माफिया से पैसे निकालते हैं उन का एक क्षेत्र से दूसरे क्षेत्र में ट्रांसफर होता है और त्रुटिहीन ईमानदार लोग स्थानांतरण पर सचिवालय में फेंक दिए जाते हैं.’’

ये वे बातें हैं जिन्हें हर कोई जानतासम झता है लेकिन लोकेश जांगिड़ जैसे जनूनी युवा अधिकारी जब नजदीक से देख कर इन का खुलासा करते हैं तो उन का स्वागत कम, विरोध ज्यादा होता है. विरोध भी ज्यादा उल्लेखनीय बात नहीं, अफसोस तब होता है जब सारे बेईमान लठ ले कर उन पर पिल पड़ते हैं. आगे वही हुआ जो आमतौर पर ऐसे मामलों में होता है कि लोकेश को कारण बताओ नोटिस थमा दिया गया. सत्तापक्ष ने उन की इस हरकत को अनुशासनहीनता बताया तो विपक्ष ने उन की वकालत की. यह थी हकीकत लोकेश जांगिड़ का एक बड़ा गुनाह यह था कि उन्होंने बड़वानी कलैक्टर शिवराज वर्मा द्वारा कोरोना की दूसरी लहर के दौरान औक्सीजन कंसंट्रेटर की खरीद में हुए भ्रष्टाचार को उजागर कर दिया था. पूरे देश में जब प्रशासनिक अधिकारियों सहित प्राइवेट और सरकारी अस्पतालों के नर्स और वार्डबौय तक लोगों की जिंदा रहने की मजबूरी को भुना रहे थे तब बड़वानी भी इस से अछूता नहीं रहा था. 39 हजार रुपए मूल्य के कंसंट्रेटर 60 हजार रुपए प्रति नग के हिसाब से खरीदे गए थे जिस की सीधी जिम्मेदारी कलैक्टर की होती है. दूसरे कई उपकरणों की खरीद में भी घोटाले हुए थे.

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लोकेश बड़वानी के कोरोना इंचार्ज भी थे और इस घोटाले का हिस्सा बनने के बजाय वे उसे उजागर कर रहे थे. सो, यह तो होना ही था. जनता के पैसे की बंदरबांट में शामिल न होना उन की बड़ी गलती थी जिसे ज्यादा देर तक वे बरदाश्त नहीं कर पाए और सबकुछ, जो सच का आधा हिस्सा ही है, उजागर कर दिया. रातोंरात वे सुर्खियों में आ गए और उन की तुलना हरियाणा के आईएएस अशोक खेमका से की जाने लगी. लोकेश की पहली तैनाती मध्य प्रदेश के चंबल इलाके के जिले श्योपुर में बतौर एसडीएम नवंबर 2016 में हुई थी. उस के बाद उन का तबादला गुना कर दिया गया. वहां भी उन की पटरी आला अफसरों से नहीं बैठी तो उन्हें सीईओ बना कर हरदा और फिर शहडोल भेज दिया गया. नियुक्ति से पहले उन्होंने अपना ट्रेनिंग पीरियड सीहोर जिले में पूरा किया था. चुनाव आयोग ने उन्हें प्रतिनियुक्ति पर भी लिया था. कुछ महीने बाद ही वे भोपाल राज्य शिक्षा केंद्र के अपर मिशन संचालक बना कर लूपलाइन में पटक दिए गए. यहां से उन्हें अपर कलैक्टर, बडवानी बना कर भेजा गया और हालिया विवाद के बाद वापस राज्य शिक्षा केंद्र स्थानांतरित कर दिया गया.

राजस्व विभाग में अपर सचिव और नगरीय प्रशासन विभाग में उपसचिव भी वे रह चुके हैं. हरियाणा कैडर के अशोक खेमका अपनी बेबाक बयानी के लिए कुख्यात हैं. नवंबर 2019 में उन का 53वीं बार तबादला हुआ था. वजह थी, महाराष्ट्र का राजनीतिक घटनाक्रम जिस पर उन्होंने ट्वीट किया था, ‘‘विधायकों की खरीदफरोख्त, उन्हें बंधक बनाना सभी जनसेवा के लिए किया जाता है. जनसेवा जैसा सुअवसर छोड़ा नहीं जाता, वंचित रहने से हृदय में पीड़ा होती है. होने दो खूब द्वंद्व होने दो. सा झेदारी में तो मिलबांट कर जनसेवा की जाएगी.’’ इस ट्वीट के बाद तबादला हुआ तो 27 नवंबर, 2019 को उन्होंने फिर ट्वीट किया, ‘‘फिर तबादला, लौट कर फिर वहीं, कल संविधान दिवस मनाया गया. आज सर्वोच्च न्यायालय के आदेश और नियमों को एक बार फिर तोड़ा गया. कुछ प्रसन्न होंगे, अंतिम ठिकाने जो लगा.

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ईमानदारी का ईनाम जलालत.’’ ईमानदारी और संघर्षोंभरी जिंदगी लगभग यही लोकेश ने सोशल मीडिया पर अपने स्टेटस पर लिखा जिसे दर्द या भड़ास कुछ भी कहा जा सकता है. उन्होंने भोपाल आने के बाद लिखा, ‘‘ईमानदारी एक महंगा शौक है. यह हर किसी के बस की बात नहीं.’’ लेकिन अशोक खेमका और लोकेश जांगिड़ में बड़ा फर्क भी है. शायद यह नौकरी दांव पर लगाने का जोखिम उठाने और तजरबे का हो. खेमका अकसर राजनेताओं से टकराए, लेकिन झुके नहीं. लोकेश में अभी इतनी हिम्मत आई नहीं दिखती. इस प्रतिनिधि ने जब उन से बात की तो वे बहुत से मुद्दों पर कतराते दिखे. खासतौर से इस सवाल पर कि आप को शिकायत किस से है नरेंद्र मोदी और शिवराज सिंह चौहान से या फिर पूरी भाजपा से? वे कहते हैं, ‘‘मेरा किसी से विरोध या बगावत नहीं है.

यदि क्रांति के विचार पौजिटिव हों तो बुरी बात नहीं. मैं अभी मिले नोटिस का लीगल स्टेटस देख रहा हूं. अपनी बात कहने का हक सभी को है. सर्विस रूल पब्लिक फोरम पर बात कहने से रोकते हैं लेकिन निजी फोरम पर बात कही जा सकती है.’’ हालांकि, तबादले के तीसरे दिन ही उन्हें धमकी मिलने की भी रस्म पूरी हो गई थी. एक अज्ञात नंबर से फोन कर उन्हें कहा गया कि ‘साधना भाभी (मुख्यमंत्री शिवराज सिंह की पत्नी) का नाम ले कर तू ने मौत को बुलाया है. तू नहीं जानता, तू ने किस से पंगा लिया है. तु झे अपनी और बेटे की परवा है तो 6 महीने की छुट्टी पर चला जा. मीडिया से बात करना बंद कर दे.’

चंबल के डाकुओं की शैली में मिली इस धमकी की शिकायत आला पुलिस अफसरों से करते लोकेश ने सुरक्षा की मांग की जो कि उन्हें नहीं दी गई. गरीब ब्राह्मण परिवार के लोकेश की जिंदगी संघर्षों से भरी पड़ी है. जब वे महज 6 साल के थे तब उन के पिता रामचंद्र जांगिड़ का निधन हो गया था. उन की परवरिश उन के दादा ने की जो सालों पहले रोजगार की तलाश में महाराष्ट्र के परभणी में आ कर बस गए थे. यहीं उन की स्कूली शिक्षा हुई. पढ़ाई में अव्वल रहे लोकेश ने 2008 में कंप्यूटर साइंस से बीटैक किया और प्लेसमैंट होने के बाद कुछ साल टीसीएस कंपनी में नौकरी भी की. कुछ कर गुजरने की ख्वाहिश उन्हें दिल्ली ले गई जहां उन्होंने आईएएस की कोचिंग ली और 2 बार असफल रहने के बाद यूपीएससी के कड़े इम्तिहान में 2014 में 68वीं रैंक हासिल की जो उन का सपना था.

दिल्ली में रहते उन्होंने जेएनयू में भी एमए समाजशास्त्र में दाखिला लिया था. राजनेताओं में इंदिरा गांधी को अपना रोलमौडल मानने वाले पढ़ने और घूमनेफिरने के शौकीन इस युवा अधिकारी का शौक मध्य प्रदेश सरकार ने तबादले कर कर के पूरा किया, जिस पर उन्हें कोई गिलाशिकवा नहीं है. दिन का अधिकतर वक्त सोशल मीडिया पर बिताने वाले लोकेश की शादी बनारस घराने के मिश्र परिवार की दिव्या शर्मा से हुई जो मौजूदा दौर की प्रतिभाशाली और लोकप्रिय शास्त्रीय गायिका हैं. इन दोनों का 4 साल का एक बेटा है. फुरसत मिलने पर अपने हाथ से पसंदीदा डिशेज भी लोकेश बनाते हैं और गजल सुनने का अपना शौक पूरा करते हैं. श्योपुर में बिताए वक्त को वे अपनी नौकरी का सब से अच्छा वक्त बताते हैं जहां उन्हें आदिवासियों की जिंदगी को नजदीक से देखने का मौका मिला.

भ्रष्टाचार देख कर घबरा गए लोकेश महाराष्ट्र जाने की बात अपने 87 साल के बुजुर्ग दादा, जो इस उम्र की कई बीमारियों से ग्रस्त हैं, से की और 57 साल की अपनी डायबिटीज की मरीज विधवा मां की देखभाल के लिए कर रहे हैं या फिर तबादलों व धमकियों से डर कर जाना चाहते हैं, यह कह पाना मुश्किल है. ताजा तबादला और मामला अब फिल्मी ज्यादा हो गया था जिस में उल्लेखनीय 2 बातें हैं- मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान का किरार होने के नाते कलैक्टर, बड़वानी, शिवराज वर्मा को मिला संरक्षण और दूसरा, एक आईएएस अधिकारी ने पब्लिक फोरम पर बात क्यों रखी है. पब्लिक फोरम पर एतराज क्यों इस मामले में मुद्दे की अहम बात यही है कि आईएएस अधिकारी, जिन्हें आजादी के पहले ही वल्लभभाई पटेल ने स्टील फ्रेम औफ इंडिया कहा था, अपनी बात पब्लिक फोरम पर क्यों नहीं कह सकते, सर्विस रूल्स के नाम पर उन से यह हक छीनने से फायदा किसे है. जाहिर है सत्ता को जिस का सच बड़ा वीभत्स और कुरूप भी होता है. लोकेश के उदाहरण ने इसे, छोटे स्तर पर ही सही, उजागर किया है कि भ्रष्टाचार की गंगा कहांकहां से हो कर गुजरती है. एक आईएएस अधिकारी ही बेहतर बता सकता है कि भ्रष्टाचार कैसेकैसे होता है. इसे बताने के कई फायदे हैं.

मसलन, सरकार चुनने वाले आम लोग जान पाते हैं कि उन के पैसे का बेजा इस्तेमाल कैसे होता है और ब्यूरोक्रेट्स व नेता आमतौर पर एक ही थैली के चट्टेबट्टे होते हैं. कोरोना के हालिया कहर के दौरान लोगों ने जो नारकीय यंत्रणाएं झेलीं उन की बड़ी वजह इन दोनों की मिलीभगत थी. ऐसे में कोई ईमानदार अफसर दुखी हो कर सच बोलता है तो उसे तबादले और दूसरी कई परेशानियां उठानी पड़ती हैं. देश के हर युवा की पहली प्राथमिकता आईएएस अफसर बनने की ही होती है जिस में रुतबा है, अधिकार हैं, आकर्षक सैलरी के साथसाथ कुछ कर गुजरने के मौके भी हैं. लेकिन आईएएस अधिकारी बन जाना आसान काम नहीं है. इस के लिए 3 से 5 साल तक हाड़तोड़ दिनरात मेहनत करनी होती है. कोचिंग और स्टेशनरी सहित खानेपीने व रहने पर ही कम से कम 6 लाख रुपए साल का खर्चा आता है. इस पर भी कड़ी स्पर्धा के चलते सलैक्शन की गारंटी नहीं होती. एक अंदाजे के मुताबिक, हर साल 10 लाख युवा यूपीएससी का फौर्म भरते हैं जिन में से चयन लगभग एक हजार का होता है यानी एक हजार प्रतिभागियों में से एक आईएएस अधिकारी बन पाता है. ये युवा कई सपने ले कर इस नौकरी में आते हैं जिन के टूटने का सिलसिला 2 वर्षों में ही शुरू हो जाता है.

जिसे सिस्टम यानी व्यवस्था कहा जाता है उसे बदलने की हिम्मत हर कोई नहीं कर पाता. नतीजतन, अधिकतर इस से सम झौता कर लेते हैं, कुछ इस का हिस्सा बन जाते हैं और कुछेक सच बोलते हैं तो उन की शामत आ जाती है. अभी और बढ़ेगी शामत नरेंद्र मोदी सरकार आईएएस अधिकारियों की मुश्कें कसने का कोई मौका नहीं चूक रही है. केंद्र सरकार ने एक ताजे फरमान में रिटायर्ड अफसरों को धौंस दे ही दी है कि उन्होंने उलटासुलटा कुछ लिखा तो उन की पैंशन रोक ली जाएगी. यह नोटिफिकेशन मिनिस्ट्री औफ पब्लिक ग्रीवैंस एंड पैंशन के तहत आने वाले डिपार्टमैंट औफ पर्सनल एंड ट्रेनिंग (डीओपीटी) ने जारी किया है. अभी भले ही यह हुक्म सुरक्षा संबंधित संस्थानों के लिए हो पर प्रशासनिक हलकों में यह चर्चा आम है कि जल्द ही इस की जद में आईएएस अधिकारी भी होंगे. इस बाबत प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ) और डीओपीटी के बीच लगातार गुफ्तगू चल रही है. नाम न छापने की शर्त पर भोपाल के एक वरिष्ठ आईएएस अधिकारी का कहना है, ‘‘इस बात से देशभर के आईएएस अधिकारी डरे हुए हैं.

पश्चिम बंगाल के मुख्य सचिव अलपन बंदोपाध्याय और पीएमओ के विवाद से मोदी के अहंकार या स्वाभिमान जो भी सम झ लें, को ठेस लगी है, इसलिए वे आईएएस अधिकारियों के पर कुतर सकते हैं.’ गौरतलब और दिलचस्प बात यह है कि पश्चिम बंगाल के मुख्यसचिव अलपन बंदोपाध्याय पीएमओ द्वारा बुलाई गई आपदा प्रबंधन की मीटिंग में 15 मिनट देर से पहुंचे थे और 2 मिनट बाद बिना कोई प्रेजैंटेशन दिए चले गए थे. बाद में मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने उन का बचाव किया था और केंद्र सरकार पर यह आरोप भी लगाया था कि वह उन के आईएएस अधिकारी को परेशान कर रही है. अब सोचने की बारी लोकेश जैसे अधिकारियों की है कि वे जब सर्विस में रहते नहीं कह पा रहे, तो अपनी बात रिटायरमैंट के बाद किताब के जरिए कैसे कहेंगे.

इस मिजाज के अफसर अगर निजाम या सिस्टम बदलना चाहते हैं तो उन्हें रूस में पनाह लिए अमेरिका की राष्ट्रीय सुरक्षा एजेंसी (एनएसए) के पूर्व उपसंचालक एडवर्ड स्नोडेन का यह वाक्य रट लेना चाहिए कि ‘मेरा मकसद समाज को बदलना नहीं था. मैं समाज को मौका देना चाहता था कि वह तय करे कि क्या वह बदलना चाहता है.’ लोकेश जांगिड़ के मामले में सुखद बात उन्हें मिला, थोड़ा ही सही, समर्थन था जिसे देख लगता है कि हां लोग बदलना चाहते हैं. अब सोचने की बारी सरकार की है कि वह ईमानदार अधिकारियों को भ्रष्टाचार उजागर करने की न केवल छूट दे बल्कि इस के दोषियों को सजा दे कर उन्हें प्रोत्साहित भी करे क्योंकि भ्रष्टाचार एक ऐसा रोग है जो छिपाने से और बढ़ता है.

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