सुबह स्कूल जाने के लिए शुभांगी तैयार हो रही थी कि टेलीफोन  की घंटी घनघना उठी. मां का फोन था. बोलीं, ‘‘अस्पताल से बोल रही हूं. तेरे बाबूजी सीढि़यों से फिसल गए हैं, कमर में चोट आ गई है.’’

शुभांगी घबरा गई. अस्पताल का पता पूछ कर फोन रख दिया और नीरज को प्रश्नवाचक नजरों से देखने लगी. उन्होंने भी जाने की मौन स्वीकृति दे दी. बच्चों को बस स्टाप पर छोड़ती हुई शुभांगी सीधी मां के पास पहुंची और पूछा तो पता चला कि डाक्टर ने फ्रेक्चर बताया है, आपरेशन करना पड़ सकता है.

‘‘आपरेशन?’’ शुभांगी ने घबरा कर पूछा तो डाक्टर ने उस के चेहरे की घबराहट देख कहा, ‘‘हां, बहुत छोटा सा आपरेशन है किंतु उन का ब्लडप्रेशर अधिक है इस कारण आज यह संभव नहीं है. तब तक इन को हम वार्ड में शिफ्ट कर देते हैं.’’

वार्ड में आते ही मां ने चिंतित होते हुए कहा, ‘‘परेश को संदेश भिजवा दो.’’

‘‘छोटा सा तो आपरेशन है, मां,’’ शुभांगी बोली, ‘‘इस में भैया को तकलीफ देने की क्या जरूरत है. फिर नीरज भी तो हैं यहां. मैं अभी उन्हें बुलवा लेती हूं.’’

जब मां ने जिद की तो आगे शुभांगी कुछ नहीं बोली. बाबूजी शांत हो बिस्तर पर लेटे रहे फिर अनमने भाव चेहरे पर लाते हुए बोले, ‘‘जैसा मां कहती हैं कर लो, बेटी. एक फोन ही तो करना है...’’

बाबूजी का ब्लडप्रेशर सामान्य नहीं हो रहा था इसलिए अगले दिन भी आपरेशन टाल दिया गया. शाम को नीरज के साथ दोनों बच्चे बाबूजी से मिलने आए. दरवाजा खुलते ही उन की नजरें उधर ही जा टिकीं. फिर धीरे से तकिए पर सिर रख कर बोले, ‘‘मैं ने समझा परेश आया है... उस को फोन तो कर दिया था न...परेश आ जाता तो अच्छा था.’’

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