तीसरी बीवी आयरीन निसंतान थी. खर्चीले इलाज से पता चला कि प्रजनन करने वाली गर्भाशय कि एक नली बंद है. मास्साब ने तीनों बीवियों की कमाई और जमा पूंजी से शहर से दूर 10 एकड़ जमीन खरीद कर सीनियर सैकंडरी स्कूल की तामीर का काम शुरू कर दिया. उन का लाखों का अलगअलग बैंकों में बैंकबैलेंस, शेयर, सोने की गिन्नियां लौकर्स में महफूज थीं.
सईद मास्साब का रिटायरमैंट भी गुपचुप तरीके से हो गया. खानदान में कैजुअल्टी हो गई है, हमारा जश्न मनाना इंसानियत के खिलाफ है,’ कह कर मास्साब ने बड़ी खूबसूरती से रिटायरमैंट के फंड्स का बंटवारा रोकने की सोचीसमझी प्लानिंग के तहत सारे मंसूबे हल कर दिए. तीनों बीवियों, बच्चों को अपनी बीमा पौलिसीज और जमा धनराशि से दूर रखने के लिए अपनी जायदाद का किसी को वारिस नहीं बनवाया. हां, छोटे भाई के नाम वसीयत कर के अपनी पूरी जायदाद का मालिकाना हक उसे दे दिया.
सईद मास्साब की तमाम मसरूफियतें धीरेधीरे कम होने लगीं. महफिल, मजलिसों, जलसों में कभीकभी ही बुलाया जाने लगा. कहां चौबीस घंटों में सिर्फ 6 घंटे नींद के लिए होते थे, कहां अब पूरा दिन ही नींद के लिए मिल गया. पहली बीवी भी एक साल बाद रिटायर्ड हो कर घर पर रहने लगी. हमेशा बोलते रहने की उन की आदत सईद मास्साब को घर पर टिकने न देती. बाकी तीनों बीवियां नौकरी की वजह से शाम को ही खाली रहती थीं.
एक शाम में तीनों के पास जाना अब उन के लिए संभव नहीं होता, तो उन्होंने दिन बांट लिए. सईद मास्साब ने इतनी चालाकी से चारों बीवियों के लिए टाइम बांटा था कि किसी को भी शक नहीं हुआ. लेकिन रिटायरमैंट के बाद हर बीवी यह उम्मीद करने लगी कि अब तो वे रिटायर्ड हो गए हैं, अब उन्हें पूरे वक्त उन के पास रहना चाहिए. अगर वे अभी भी अपना पूरा वक्त उसे नहीं देते हैं तो दिन के बाकी के वक्त में वे रहते कहां हैं?
खोजबीन और जासूसी शुरू हुई तो सालों तक छिपाया गया सईद मास्साब का झूठ नमक के ढेर की तरह भरभरा कर गिर गया. सईद मास्साब बेनकाब. चारों बीवियों के पैरोंतले से जमीन खिसक गई. सारी पिछली बातें, खर्च की रकम का हिसाब लगातेलगाते चारों कमाऊ बीवियों ने उन पर उन्हें कंगाल कर के खुद ऐश करने की तोहमत लगा दी. सईद मास्साब का जीना हराम हो गया. अखबारों और मीडिया ने प्याज के छिलकों की तरह उन के दबेछिपे किरदार की एकएक परत उतार कर रख दी. रुसवाइयों की आंधी सईद मास्साब के बुढ़ापे के दिनों को दागदार कर गई.
उस दिन जोरदार बिजली कड़क रही थी. मूसलाधार बारिश हो रही थी कि अचानक सईद मास्साब के पेट में तेज दर्द उठा. चारों बीवियों में से किसी ने भी सईद मास्साब को अपने पास पनाह नहीं दी. डाक्टर ने चैक किया, अंतडि़यों का कैंसर. मास्साब की आंखों के सामने अंधेरा छा गया. औपरेशन होना था. प्राइवेट अस्पताल में अकेले बैड पर लेटे सईद मास्साब मौत और जिंदगी से जूझते रहे थे. दूर तक फैली खामोशी. नर्स वक्त पर दवाइंजैक्शन लगा जाती. पूरा दिन अपनों से घिरे रहने वाले मास्साब अकेलेपन का अवसाद झेल रहे थे.
तीनों बीवियों ने अपनेअपने ढंग से उन पर अपनी जिंदगी बरबाद करने की तोहमत लगा कर उन से किनारा कर लिया.
पूरे 2 महीने सईद मास्साब जिंदगी और मौत के बीच झूलते रहे. भाई ने खिदमत की. तबीयत कुछ संभली तो लोकलाज के लिए रफीका मैडम न चाहते हुए भी उन्हें अपने घर ले गईं. दवा, परहेजी खानापीना और कीमोथेरैपी के लिए खर्च होने वाली मोटी रकम को ले कर रफीका मैडम हमेशा ताने देतीं, ‘अपनी कमाई तो तीनतीन बीवियों पर लुटा दी. अब जब कंगाल हो गए तो मुझे लूटने आए हैं. शादी तो कर ली मुझ से, मगर मां के खिताब से हमेशा महरूम रखा.
‘तीनतीन बार एबौर्शन करवा दिया मेरा. फिर मैं क्यों करूं खिदमत आप की? वैसे भी, मैं 8 घंटे कालेज में रहती हूं. नर्स रख भी ली तो मैं पराई औरत के भरोसे घर नहीं छोड़ सकती. सरपरस्ती तो मिली नहीं आप की, जो थोड़ाबहुत सरमाया जरूरत के लिए रखा है, वह भी चोरी चला जाएगा. बेहतर होगा आप अपनी दूसरी बीवियों के पास चले जाएं. आखिर उन का भी तो कोईर् फर्ज बनता है शौहर के लिए.
दूसरी बीवी जुलेखा के पास पहुंचे तो वह उन्हें देख कर नाकमुंह सिकोड़ने लगी. वह रिटायरमैंट के पैसों और अपने दिए गए पैसों का हिसाब मांगते हुए उन का खाना खराब करती रही. सईद मास्साब तीसरी बीवी के पास जा नहीं सकते थे क्योंकि तीसरी बीवी आयरीन ने सईद मास्साब की तीनतीन बीवियों की खबर मिलते ही संबंधविच्छेद कर लिया था और खुला (मुसलिम औरत के द्वारा खुद पति से मांगी गई तलाक) के लिए नोटिस भेज दिया था. वह सईद मास्साब से आधी उम्र की थी, साथ ही, अपने अब्बू की जायदाद की अकेली वारिस थी. सईद मास्साब ने उसे मां बनने से महरूम रखा था. इसलिए वह सईद मास्साब से तलाक ले कर दूसरे निकाह के मंसूबे बनाने लगी.
सईद मास्साब की पहली बीवी को जब उन के तीन और निकाह किए जाने की खबर मिली तो सदमा बरदाश्त नहीं कर पाई. रात को बिस्तर पर सोई, तो फिर उठ न सकी.
सईद मास्साब के लिए बीवियों ने तो दरवाजे बंद कर लिए. छोटा भाई, जो उन का स्कूल चला रहा था, उन्हें अपने घर ले आया. बरामदे में लोहे का पलंग डाल कर लिटा दिया. प्लास्टिक के स्टूल पर दवाइयां रख दीं. उस की बीवी भी नौकरीपेशा थी. सुबह के नाश्ते के साथ दवाइयां ले कर सईद मास्साब दिनभर अकेले बिस्तर पर दर्द सहते हुए पड़े रहते. हर 5वें मिनट पर 2 सिम वाले मोबाइल पर कौल रिसीव करने वाले सईद मास्साब कैंसर की बीमारी के साथसाथ डिप्रैशन का शिकार होने लगे.
सिर के बाल झड़ने लगे. कीमोथेरैपी भी वक्त पर नहीं होती थी. पेट में तेज दर्द रहता था. अब खाना भी नहीं पचता था. मोती जैसे चमकते दांत एकएक कर के गिरने लगे थे. चेहरा बेनूर, बेरौनक हो गया था. लाखों के बैंकबैलेंस और तमाम दूसरी जायदाद के मालिक सईद मास्साब पूरी जिंदगी में अपना सच्चा हमदर्द नहीं खरीद सके. डाक्टर तो हर बार कहते, ‘बस, 2-4 महीने के मेहमान हैं. लेकिन पता नहीं कौन सी डोर थी जो सईद मास्साब को सांसों के साथ बांधे हुए थी.
हालांकि छोटे भाई ने गिरती हालत को देख कर उन के लिए एक नर्स का इंतजाम कर दिया था, फिर भी लंबे समय तक लेटे रहने की वजह से बैडसोर हो गए. तीमारदारी की लापरवाही से बैडसोर के जख्मों में कीड़े बिलबिलाने लगे. कीड़ों को देख कर नर्स ने उन की खिदमत करने से साफ मना कर दिया और काम छोड़ कर चली गई. मास्साब पूरी रात दर्द से चीखते. छोटा भाई अपने परिवार के साथ एसी की ठंडी हवा में सुख की नींद सोता, लेकिन मास्साब पंखे की गरम, लपटभरी हवा में जानलेवा दर्द सहते खुले सहन में पड़े रहते.
शहर के नामी सईद मास्साब गुमनामी की अंधेरी गली के बाश्ंिदे हो गए. पीठ के जख्म और पेट की अंतडि़़यों का दर्द उन के इर्दगिर्द आहों, कराहों और आंसुओं का सैलाब उठाता रहता. बहुत मजबूर और कमजोर सईद मास्साब टौयलेट के लिए भी नहीं उठ पाते थे. अब उन के पलंग के इर्दगिर्द मक्खियों के झुंड भिनभिनाने लगे थे.
उन की दूसरी बीवी जुलेखा कभीकभी देखने आती तो दूर से ही मुंह पर दुपट्टा लपेटे दूर कुरसी डाल कर कुछ देर बैठती, फिर बिना कुछ कहेसुने चुपचाप उठ कर चली जाती.
सईद मास्साब का लंबाचौड़ा जिस्म सूख कर लकड़ी जैसा होता चला जा रहा था. आलमारी में पड़े उन के ढेर सारे ईनाम, उन के कीमती कपड़े, सबकुछ जहां के तहां पड़े उन के आलीशान दिनों के साक्षी बन कर उन की विवशता की खिल्ली उड़ाते.
सईद मास्साब ने 2 बीवियों के साथसाथ भाई के लिए भी अपने पैसों से मकान बनवा दिया था. भाई के लिए ली गई गाड़ी, लौकर में सोने की गिन्नियां, बीघों में फैला स्कूल सब मास्साब की बेबसी पर ठहाका मार कर हंसते. बुरे वक्त में अपनों की बेरुखी रिश्तों के सीने पर खुदगरजी मूसल ले कर चढ़ जाती. मौकापरस्ती रिश्तों के मुंह पर कालिख मल देती.
वक्त और हालात की झुलसा देने वाली गरमी राहतों की यादों के मुंह में अंगारे ठूंसने लगती. मास्साब की कराहें उन के बीते दिनों के कहकहों पर संगीनें तानने लगतीं. मास्साब के बैडसोर के कीड़े उन के हाथों की सदाकत की रेखाओं को कुतरकुतर कर मिटाने लगे थे. अड़ोसपड़ोस की नींद मास्साब की दर्दनाक चीखों से उचटने लगी थीं. एक दिन महल्ले के माईक पर आवाज गूंजी, ‘सईद मास्साब दुनिया छोड़ गए हैं.’
कफन तैयार, डोला तैयार…बेजान जिस्म को कब्रिस्तान तक ले जाने के लिए महल्ले वाले, दोस्त, रिश्तेदार तो थे पर वे नहीं थे जिन के साथ सईद मास्साब ने अपनी जिंदगी के एकएक लमहे को बांटा था. इसलाम में एक से ज्यादा शादियों की छूट ने इंसानी जिंदगियों को हवस की कठपुतलियां बना कर रख दिया. सही गलत के बीच झूलती कई जिंदगियां… दरबदर फिरती जिंदगियां.