Download App

Emotional Story : लंच बौक्स – क्या हुआ विजय के बेटे के साथ?

Emotional Story : सूरज ढलने को था. खंभों पर कुछ ही समय बाद बत्तियां जल गईं. घर में आनेजाने वालों का तांता लगा हुआ था. अपनेअपने तरीके से लोग विजय को दिलासा देते, थोड़ी देर बैठते और चले जाते. मकान दोमंजिला था. ग्राउंड फ्लोर के ड्राइंगरूम में विजय ने फर्श डाल दिया था और सामने ही चौकी पर बेटे लकी का फोटो रखवा दिया गया था. पास में ही अगरबत्ती स्टैंड पर अगरबत्तियां जल रही थीं.

लोग विजय को नमस्ते कर, जहां भी फर्श पर जगह मिलती, बैठ जाते और फिर वही चर्चा शुरू हो जाती. रुलाई थी कि फूटफूट आना चाहती थी. दरवाजे पर पालतू कुत्ता टौमी पैरों पर सिर रख कर चुपचाप बैठा था, जरा सी आहट पर जो कभी भूंकभूंक कर हंगामा बरपा देता था, आज शांत बैठा था. दिल पर पत्थर रख मन के गुबार को विजय ने मुश्किल से रोक रखा था.

‘‘क्यों, कैसे हो गया ये सबकुछ?’’

‘‘सामने अंधेरा था क्या?’’

‘‘सीटी तो मारनी थी.’’

‘‘तुम्हारा असिस्टैंट साथ में नहीं था क्या?’’

‘‘उसे भी दिखाई नहीं दिया?’’

एकसाथ लोगों ने कई सवाल पूछे, मगर विजय सवालों के जवाब देने के बजाय उठ कर कमरे में चला गया और बहुत देर तक रोता रहा. रोता भी क्यों न. उस का 10 साल का बेटा, जो उसे लंच बौक्स देने आ रहा था, अचानक उसी शंटिंग इंजन के नीचे आ गया, जिसे वह खुद चला रहा था. बेटा थोड़ी दूर तक घिसटता चला गया. इस से पहले कि विजय इंजन से उतर कर लड़के को देखता कि उस की मौत हो चुकी थी.

‘‘तुम्हीं रोरो कर बेहाल हो जाओगे, तो हमारा क्या होगा बेटा? संभालो अपनेआप को,’’ कहते हुए विजय की मां अंदर से आईं और हिम्मत बंधाते हुए उस के सिर पर हाथ फेरा. मां की उम्र 75 साल के आसपास रही होगी. गजब की सहनशक्ति थी उन में. आंखों से एक आंसू तक नहीं बहाया. उलटे वे बहूबेटे को हिम्मत के साथ तसल्ली दे रही थीं. मां ने विजय की आंखों के आंसू पोंछ डाले. वह दोबारा ड्राइंगरूम में आ गया.

‘पापापापा, मुझे चाबी से चलने वाली कार नहीं चाहिए. आप तो सैल से जमीन पर दौड़ने वाला हैलीकौप्टर दिला दो,’ एक बार के कहने पर ही विजय ने लकी को हैलीकौप्टर खरीद कर दिलवा दिया था.

कमरे में कांच की अलमारियों में लकी के लिए खरीदे गए खिलौने थे. उस की मां ने सजा रखे थे. आज वे सब विजय को काटने को दौड़ रहे थे. एक बार मेले में लकी ने जिस चीज पर हाथ रख दिया था, बिना नानुकर किए उसे दिलवा दिया था. कितना खुश था लकी. उस के जन्म के 2 दिन बाद ही बड़े प्यार से ‘लकी’ नाम दिया था उस की दादी ने. ‘देखना मां, मैं एक दिन लकी को बड़ा आदमी बनाऊंगा,’ विजय ने लकी के नन्हेनन्हे हाथों को अपने हाथों में ले कर प्यार से पुचकारते हुए कहा था. लकी, जो अपनी मां की बगल में लेटा था, के चेहरे पर मुसकराते हुए भाव लग रहे थे.

‘ठीक है, जो मरजी आए सो कर. इसे चाहे डाक्टर बनाना या इंजीनियर, पर अभी इसे दूध पिला दे बहू, नहीं तो थोड़ी देर में यह रोरो कर आसमान सिर पर उठा लेगा,’ विजय की मां ने लकी को लाड़ करते हुए कहा था और दूध पिलाने के लिए बहू के सीने पर लिटा दिया था. अस्पताल के वार्ड में विजय ने जच्चा के पलंग के पास ही घूमने वाले चकरीदार खिलौने पालने में लकी को खेलने के लिए टंगवा दिए थे, जिन्हें देखदेख कर वह खुश होता रहता था. एक अच्छा पिता बनने के लिए विजय ने क्याक्या नहीं किया… विजय इंजन ड्राइवर के रूप में रेलवे में भरती हुआ था. रनिंग अलाउंस मिला कर अच्छी तनख्वाह मिल जाया करती थी उसे. घर की गाड़ी बड़े मजे से समय की पटरियों पर दौड़ रही थी.

उसे अच्छी तरह याद है, जब मां ने कहा था, ‘बेटा, नए शहर में जा रहे हो, पहनने वाले कपड़ों के साथसाथ ओढ़नेबिछाने के लिए रजाईचादर भी लिए जा. बिना सामान के परेशानी का सामना करना पड़ेगा.’ ‘मां, क्या जरूरत है यहां से सामान लाद कर ले जाने की? शहर जा कर सब इंतजाम कर लूंगा. तुम्हारा  आशीर्वाद जो साथ है,’ विजय ने कहा था. वह रसोई में चौकी पर बैठ कर खाना खा रहा था. मां उसे गरमागरम रोटियां सेंक कर खाने के लिए दिए जा रही थीं. विजय गांव से सिर्फ 2 पैंट, 2 टीशर्ट, एक तौलिया, साथ में चड्डीबनियान ब्रीफकेस में रख कर लाया था.

कोयले से चलने वाले इंजन तो रहे नहीं, उन की जगह पर रेलवे ने पहले तो डीजल से चलने वाले इंजन पटरी पर उतारे, पर जल्द ही बिजली के इंजन आ गए. विजय बिजली के इंजनों की ट्रेनिंग ले कर लोको पायलट बन गया था.ड्राइवर की नौकरी थी. सोफा, अलमारी, रूम कूलर, वाशिंग मशीन सबकुछ तो जुटा लिया था उस ने. कौर्नर का प्लौट होने से मकान को खूब हवादार बनवाया था उस ने.  शाम को थकाहारा विजय ड्यूटी से लौटता, तो हाथमुंह धो कर ऊपर बैठ कर चाय पीने के लिए कह जाता. दोनों पतिपत्नी घंटों ऊपरी मंजिल पर बैठेबैठे बतियाते रहते. बच्चों के साथ गपशप करतेकरते वह उन में खो जाता. लकी के साथ तो वह बच्चा बन जाता था. स्टेशन रोड पर कोने की दुकान तक टहलताटहलता चला जाता और 2 बनारसी पान बनवा लाता. एक खुद खा लेता और दूसरा पत्नी को खिला देता.

विजय लकी और पिंकी का होमवर्क खुद कराता था. रात को डाइनिंग टेबल पर सब मिल कर खाना खाते थे. मन होता तो सोने से पहले बच्चों के कहने पर एकाध कहानी सुना दिया करता था.मकान के आगे पेड़पौधे लगाने के लिए जगह छोड़ दी थी. वहां गेंदा, चमेली के ढेर सारे पौधे लगा रखे थे. घुमावदार कंगूरे और छज्जे पर टेराकोटा की टाइल्स उस ने लगवाई थी, जो किसी ‘ड्रीम होम’ से कम नहीं लगता था.  मगर अब समय ठहर सा गया है. एक झटके में सबकुछ उलटपुलट हो गया है. जो पौधे और ठंडी हवा उसे खुशी दिया करते थे, आज वे ही विजय को बेगाने से लगने लगे हैं. घर में भीड़ देख कर पत्नी विजय के कंधे को झकझोर कर बोली, ‘‘आखिर हुआ क्या है? मुझे बताते क्यों नहीं?’’

विजय और उस की मां ने पड़ोसियों को मना कर दिया था कि पत्नी को मत बताना. लकी की मौत के सदमे को वह सह नहीं पाएगी. मगर इसे कब तक छिपाया जा सकता था. थोड़ी देर बाद तो उसे पता चलना ही था. आटोरिकशा से उतर कर लकी के कटेफटे शरीर को देख कर दहाड़ मार कर रोती हुई बेटे को गोदी में ले कर वहीं बैठ गई. विजय आसमान को अपलक देखे जा रहा था. पिंकी लकी से 3 साल छोटी थी. वह समझ नहीं पा रही थी कि हुआ क्या है? मां को रोते देख वह भी रोने लगी.

‘‘देख, तेरा लकी अब कभी भी तेरे साथ नहीं खेल पाएगा,’’ विजय, जो वहीं पास बैठा था, पिंकी को कहते हुए बोला. उसे कुछ भी नहीं सूझ रहा था. पिंकी को उस ने अपनी गोद में बिठा लिया. रहरह कर ढेर सारे बीते पलों

के चित्र उस के दिमाग में उभर रहे थे, जो उस ने लकी और पिंकी के साथ जीए थे. उन चित्रों में से एक चित्र फिल्मी सीन की तरह उस के सामने घट गया. इंजन ड्राइवर होने के नाते रेल के इंजनों से उस का निकट का रिश्ता बन गया था. वर्तमान आशियाने को छोड़ कर वह बाहर ट्रांसफर पर नहीं जाना चाहता था, इसलिए प्रशासन ने नाराज हो कर उसे शंटिंग ड्राइवर बना दिया. रेलवे का इंजन, डब्बे, पौइंटमैन और कैबिनमैन के साथ परिवार की तरह उस का रिश्ता बन गया. विजय दिनभर रेलवे क्रौसिंग के पास बने यार्ड में गाडि़यों की शंटिंग किया करता और डब्बों के रैक बनाया करता. लालहरी बत्तियों और झंडियों की भाषा पढ़ने की जैसे उस की दिनचर्या ही बन गई. सुबह 8 बजे ड्यूटी पर निकल जाता और दिनभर इंजन पर टंगा रहता, रैक बनाने के सिलसिले में. अचानक उस के असिस्टैंट को एक लड़का साइकिल पर आता दिखाई दिया, जो तेजी से रेलवे बैरियर के नीचे से निकला. इस से पहले कि विजय कुछ कर पाता, उस ने इंजन की सीटी मारी, पर लड़का सीधा इंजन से जा टकराया. ‘यह तो लकी है…’ विजय बदहवास सा चिल्लाया.

लकी जैसे ही इंजन से टकराया, उस ने पैनल के सभी बटन दबा दिए. वह इंजन को तुरंत रोकना चाहता था. उस के मुंह से एक जोरदार चीख निकल गई. सामने लकी की साइकिल इंजन में उलझ गई और सौ मीटर तक घिसटती चली गई. लकी के शरीर के चिथड़ेचिथड़े उड़ गए. ‘बचाओ, बचाओ रे, मेरे लकी को बचा लो,’ विजय रोता हुआ इंजन के रुकने से पहले उतर पड़ा. लकी, जो पापा का लंच बौक्स देने यार्ड की तरफ आ रहा था, वह अब कभी नहीं आ पाएगा. चैक की शर्ट जो उस ने महीनेभर पहले सिलवाई थी, उसे हाथ में ले कर झटकाया. वहां पास ही पड़े लकी के सिर को उस की शर्ट में रख कर देखने लगा और बेहोश हो गया. शंटिंग ड्राइवर से पहले जब वह लोको पायलट था, तो ऐसी कितनी ही घटनाएं लाइन पर उस के सामने घटी थीं. उसे पता है, जब एक नौजवान ने उस के इंजन के सामने खुदकुशी की थी, नौजवान ने पहले ड्राइवर की तरफ देखा, पर और तेज भागते हुए इंजन के सामने कूद पड़ा था. उस दिन विजय से खाना तक नहीं खाया गया था. जानवरों के कटने की तो गिनती भी याद नहीं रही उसे. मन कसैला हो जाया करता था उस का. मगर करता क्या, इंजन चलाना उस की ड्यूटी थी. आज की घटना कैसे भूल पाता, उस के जिगर का टुकड़ा ही उस के हाथों टुकड़ेटुकड़े हो गया.

बेटे, जो पिता के शव को अपने कंधों पर श्मशान ले जाते हैं, उसी बेटे को विजय मुक्तिधाम ले जाने के लिए मजबूर था.

Romantic Story : चाय पे बुलाया है – जब टूटा मनीष का दिल

Romantic Story : यह मेरी नजरों का धोखा था या मैं वाकई निराश होता जा रहा था. क्या करूं, उम्र भी तो हो चली थी. 38 वर्ष की आयु तक पहुंचते हुए मैं ने अच्छीखासी प्रोफैशनल उन्नति प्राप्ति कर ली थी. कई प्रतियोगी परीक्षाओं में भाग लेते हुए मैं ने बैंक में प्रोबेशनरी औफिसर का पद प्राप्त कर लिया. अब एक प्रतिष्ठित सरकारी बैंक में ब्रांच प्रबंधक के तौर पर पदासीन था. अपना घर भी बना लिया और बड़ी गाड़ी भी ले ली थी. अच्छीखासी शक्लसूरत भी थी, घरपरिवार भी संपन्न था पर शादी नहीं हुई. सभी पूछते, कब सुना रहे हैं खुशखबरी, साहब? क्या कहता? कोई उत्तर नहीं, कोई कारण भी नजर नहीं आता था. पता नहीं बात क्यों नहीं बनी थी अब तक. हंस कर टाल जाता कि जब सलमान खान शादी करेगा, तब मैं भी खुशखबरी सुना दूंगा. पर अब लगने लगा था कि शायद मैं सलमान खान को पीछे छोड़ दूंगा.

कुछ दिनों से देख रहा था कि सामने वाली बिल्ंिडग में रहने वाली सुंदरसुकोमल लड़की मुझे देख मुसकराती थी. आखिर रोजरोज तो गलतफहमी नहीं हो सकती थी.

एक दिन दफ्तर जाने के लिए जब नीचे उतरा तब भी देखा था कि वह अपनी बालकनी में खड़ी मुझे देख रही थी. अगले दिन भी और उस के अगले दिन भी. हिरनी सी बड़ी, कजरारी आंखों में मृदुल सौम्यता, कोमल कपोलों पर छिटका गुलाबी रंग और रसभरे होंठों पर खेलती हलकी मुसकान, इतना लावण्य किसी की दृष्टि से छिप सकता था भला. जाहिर था, मैं ने भी देखा. एक और खास बात होती है दृष्टि में, चाहे कोई हमारी पीठ पर अपनी नजरें गड़ाए हुए हो, हमें पता चल जाता है. हम घूम कर उस देखने वाले को देख लेते हैं. यह प्रकृति का कैसा अनूठा रहस्य है, इसे मैं आज तक समझ नहीं पाया. तभी तो तीसरी मंजिल से मुझे देखती उस सुंदरी तक मेरी दृष्टि खुद ही पहुंच गई थी.

मैं झिझकता रहा और उस की हलकी, अधूरी मुसकान का कोई प्रतिउत्तर नहीं दे पाया था. परंतु उस दिन तो हद हो गई. वह मेरे दफ्तर जाने वाले समय पर लिफ्ट में भी साथ ही आ गई.

‘‘हैलो,’’ अपनी जानलेवा मुसकान के साथ वह मुझ से बोल उठी. अभी तक सिर्फ सूरत देखी थी पर कहना पड़ेगा, जितनी मोहक सूरत उतनी ही कातिल शारीरिक संरचना भी थी. ऊंची आकर्षक कदकाठी, सुडौल बदन, कमर तक लंबे बाल.

मर्दों की एक विशेषता होती है कि वे एक ही नजर में औरत के सौंदर्य को नापने की क्षमता रखते हैं. मैं ने जल्दी उस पर टिकी अपनी दृष्टि हटा ली और अपनी विस्फारित आंखों को भी नियंत्रण में किया. कहीं मेरा गलत प्रभाव न पड़ जाए उस पर.

‘‘हैलो,’’ मैं ने हौले से कहा. मुझे डर था कि कहीं मेरा उतावलापन उसे डरा न दे. बस, एक हलकी सी मुसकराहट रखी चेहरे पर. फिर वह सब्जी लेने दुकान में चली गई और मैं गाड़ी में सवार हो अपने दफ्तर. पर सारे रास्ते आज सिर्फ मेरा रेडियो नहीं चला, पूरा गला खोल कर हर प्रेमभरा गीत मैं ने भी गाया रेडियो के साथ. एक अजीब सा रोमांच छा रहा था मेरे ऊपर. बैंक में भी लोगों ने पूछ डाला, ‘‘क्या बात है, साहब, आज आप बहुत प्रसन्न लग रहे हैं?’’ क्या बताऊं कि क्या बात थी. पर खुश तो था मैं.

देर शाम घर लौटते समय दिल हुआ कि आइसक्रीम लेता चलूं. घर पर मां भी हैरान हुई थीं, ‘‘आज आइसक्रीम?’’

‘‘यों ही, बस.’’

‘‘क्या बात है, बहुत खुश लग रहा है. काम बढ़ गया है इसलिए?’’ मां ने तंज किया था. मुझे घर वाले वर्कोहोलिक पुकारते. अब तक मेरी शादी न होने का जिम्मेदार भी वे मेरे काम, काम और बस काम करने को ही ठहराते थे.

‘‘कहा न, यों ही. मैं आइसक्रीम नहीं ला सकता क्या?’’ मेरे जोर देने पर अब मां चुप हो गई थीं.

‘‘तेरे लिए एक रिश्ता आया है,’’ उन्होंने बात बदलते हुए कहा था.

‘‘कहां से?’’

‘‘वह मन्नो मौसी हैं न, उन की रिश्तेदारी में है लड़की. नौकरी नहीं करती है. मैं ने कह दिया है कि वैसे तो मनीष को नौकरी वाली लड़की चाहिए पर फिर भी तसवीर भिजवा दो. तेरे ईमेल पर भेजी होगी. खुद भी देख ले और हमें भी दिखा दे जरा.’’

वह फोटो वाली लड़की उतनी सुंदर नहीं थी जितनी वह बालकनी वाली. पर यों हवा में, बस मुसकराहट के आदानप्रदान के बदले रिश्ता तो भिजवाया नहीं जा सकता. क्या बताता मां को? बस, मन्नो मौसी वाली लड़की की फोटो दिखला दी. मां को पसंद भी आ गई थी. ‘‘घर में तो ऐसी ही लड़कियां जंचती हैं,’’ मां अब मेरी शादी और टालने के मूड में नहीं थीं.

‘‘थोड़े दिन रुक सकती हो तो रुक जाओ.’’

‘‘क्या होगा थोड़े दिनों में?’’

मैं आशान्वित था कि शायद यहीं इसी सोसाइटी में बात बन जाए. ‘‘अभी काफी काम है दफ्तर में. फिर तुम कहोगी समय निकाल, मिलने चलना है वगैरा.’’ फिलहाल मैं ने बात टाल दी थी.

अगली सुबह फिर लिफ्ट में मिल गई थी वह. ‘‘हैलो,’’ वही कर्णप्रिय स्वर.

‘‘हैलो,’’ आज मेरी मुसकराहट कुछ और फैली हुई थी.

‘‘मेरा नाम सुलोचना है. हम हाल ही में सोसाइटी में शिफ्ट हुए हैं. आप यहां कब से रह रहे हैं?’’

‘‘मैं मनीष हूं. यहां कई वर्षों से रह रहा हूं. वहां छठवीं मंजिल पर, अपने मम्मीपापा के साथ. और आप?’’ मेरे लिए जानना आवश्यक था कि सुलोचना शादीशुदा है या नहीं. नए जमाने की लड़कियां कोई भी शादी का चिह्न नहीं धारण करती हैं, फिर गलतफहमी हो जाए तो किस की गलती.

‘‘मैं भी अपने मम्मीपापा के साथ रहती हूं. कभी घर पर चाय पीने आइए न. बाय,’’ सुकोमल हाथ हिलाती हुई  वह सब्जी लेने दुकान में चली गई थी और मैं गाड़ी में सवार हो, अपने दफ्तर की ओर चल दिया था.

सारे रास्ते मेरे कानों में उसी के सुर गूंजते रहे…कभी घर पर चाय पीने आइए न…मेरे मुंह से खुद ही गीत निकल पड़ा, ‘शायद मेरी शादी का खयाल दिल में आया है, इसीलिए मम्मी ने तेरी मुझे चाय पे बुलाया है…’ क्या सचमुच चला जाऊं उस के घर चाय के बहाने? सोचता रहा पर निष्कर्ष पर नहीं पहुंच पाया था.

अगली सुबह बैंक जाते समय जब सुलोचना फिर लिफ्ट में मुझ से टकराई थी तो कुछ शिकायती लहजे में बोली थी, ‘‘आप कल आए क्यों नहीं चाय पर? कितना इंतजार किया मैं ने?’’

मुझे कानों पर विश्वास नहीं हो रहा था. अब तक मैं शादी के लिए तरसता रहा था और अब यों अचानक एक सुंदरी मुझे चाय पे बुला रही थी, मेरे न आने पर मुझ से रूठ रही थी. उफ, मैं गदगद हो उठा था. ‘‘आज शाम मैं पक्का आऊंगा, यह वादा रहा,’’ कहते हुए मुझे लगा जरा ज्यादा फिल्मी हो गया है. पर अब तो तीर कमान से निकल चुका था. अपनी बात पर हंस कर मैं आगे बढ़ गया.

शाम को बैंक से जल्दी निकल कर, घर जा कर फ्रैश हो कर मैं सुलोचना के घर पहुंच गया. अच्छेभले लोग लगे. बातचीत में सभ्य, चाय के साथ जिद कर के पकौड़े भी परोसे. ‘‘सुलोचना ने बनाए हैं,’’ उस की मम्मी का कहना मुझे बहुत अच्छा लगा था. मम्मी और सुलोचना तो काफी हंसबोल रहे थे. बस, उस के पापा जरा गंभीर थे. मानो मेरे पूछने को प्रतीक्षारत थे, फौरन बिफर पड़े थे, ‘‘अरे जनाब, यह मोदी सरकार के फैसले ने जो डीमोनेटाइजेशन किया है उस ने जीना हराम कर दिया है. अब बताइए, पैसा होते हुए भी हम पैसेपैसे को मुहताज हो गए हैं. क्या फायदा नौकरी कर सारी उम्र बचत करने का? ‘‘आज जब जरूरत है तो हम अपना ही पैसा नहीं इस्तेमाल कर सकते. बैंकों की लंबीलंबी कतारों में खड़े होने की हिम्मत सब में तो है नहीं. और फिर इन कतारों में खड़े हो कर भी कितना पैसा निकाल पाएंगे? जरूरत ज्यादा की हो तो कोई क्या करे?’’

‘‘आप चिंता न करें. मुझे बताएं, मैं जो भी मदद कर सकता हूं, करूंगा. मैं बैंक से आप के लिए पैसे निकलवा दूंगा. हां, एक भारतीय नागरिक होने के नाते नियमकानून मेरे ऊपर भी वही लागू हैं जो आप के ऊपर, इसलिए निर्धारित सीमा से अधिक रुपए नहीं निकाल पाऊंगा पर आप को कतार में खड़े होने की आवश्यकता नहीं. और हां, यदि अत्यधिक आवश्यकता हो तो मैं अपने पास से भी कुछ राशि आप को दे सकता हूं.’’ मेरी बात से वे पूरी तरह आश्वस्त हो गए थे. चायपकौड़े की पार्टी कर मैं अपने घर लौट आया.

‘‘सोसाइटी में किस से इतनी जानपहचान हो गई रे तेरी?’’ मां अचंभित अवश्य थीं.

‘‘हैं एक. बताऊंगा,’’ बात टालते हुए मैं अपने कमरे में चला गया. सोचा, पहले बात कुछ आगे तो बढ़े.

उस दिन के बाद हफ्तेभर मैं ने सुलोचना के परिवार की भरसक सहायता की. वे लोग मुझ से बेहद खुश थे. आनाजाना काफी बढ़ गया था. मैं बेधड़क उन के घर जाने लगा था. सुलोचना के मम्मीपापा मुझ से बहुत घुलमिल गए थे. मैं मन ही मन मोदी सरकार के फैसले का धन्यवाद करते नहीं थकता था. मां बारबार मन्नो मौसी वाले रिश्ते के बारे में पूछतीं. मैं ने सोचा अब मां को सुलोचना के मम्मीपापा से मिलवा देने का समय आ गया है.  अगले ही दिन मैं सुलोचना के घर पहुंच गया था. थोड़ी देर हलकीफुलकी बातचीत करने के बाद मैं मुद्दे की बात पर आया, ‘‘आंटीजी, मैं सोच रहा था कि क्यों न आप को अपनी मम्मी से मिलवा दूं? मेरा मतलब है…’’

‘‘मैं तो खुद ही यह सोच रही थी, बेटा. हम दोनों तुम्हारे घर आने ही वाले हैं. बस, सुलोचना की शादी के कार्ड छप कर आ जाएं. फिर सब से पहला कार्ड तुम्हें ही देंगे. तुम मदद न करते तो इस की शादी की तैयारी के लिए राशि एकत्रित करना जटिल हो जाता,’’ सुलोचना की मम्मी ने मेरे ऊपर वज्रपात कर दिया था. सुलोचना की शादी? तो क्या इसीलिए मुझ से दोस्ती की थी? सोसाइटी में सभी जानते थे कि मैं बैंक में उच्चपदाधिकारी हूं. आज तक शादी न होने से मुझे इतनी पीड़ा नहीं हुई थी जितनी आज अपने स्वप्नमहल के टूटने से हुई.

मैं उदासीन हो घर लौट आया था. धम्म से सोफे पर बैठ समाचार सुनने लगा. देखने वालों को लग रहा था कि मैं समाचार सुनने में खोया हूं परंतु उस समय मेरी कोई भी इंद्रिय जागरूक अवस्था में नहीं थी. न तो मेरे कान कुछ सुन रहे थे और न ही मेरी आंखें कुछ देख पा रही थीं. मन दहाड़ें मार रहा था. शुक्र है मन की दहाड़ किसी को सुनाई नहीं दे सकती. उस दिन मां भी अलग ही रूप में थीं. बड़बड़ाती जा रही थीं, ‘‘जब देखो तब काम. शादी कब करेगा यह लड़का. वैसे ही रिश्ते आने कम होते जा रहे हैं, ऐसे ही चलता रहा तो कहां से लाऊंगी इस के लिए लड़की…अब मैं तेरी एक नहीं सुनूंगी. मैं ने फैसला कर लिया है कि मन्नो मौसी वाले रिश्ते को हां कर दूंगी. तेरी नजर में कोई है तो बता दे, वरना मैं इस सर्दी में तेरी शादी करवा दूंगी.’’ मेरे चुप रहने में ही मेरी भलाई थी.

Credit Card : इस देश में नहीं इस्तेमाल होता क्रैडिट कार्ड

Credit Card : क्रैडिट कार्ड के प्रयोग में कनाडा सब से आगे है. वहां करीब 83 फीसदी लोग क्रेडिट कार्ड का प्रयोग कर रहे हैं. इस के बाद इजराइल 80 फीसदी, आइसलैंड 74 फीसदी, हांगकांग 72 फीसदी और जापान में 70 फीसदी है. विश्वगुरु भारत में केवल 4.62 फीसदी लोग ही क्रैडिट कार्ड का प्रयोग कर रहे हैं. मजेदार बात यह है कि अफगानिस्तान में क्रैडिट कार्ड इस्तेमाल करने वालों की संख्या जीरो है.

जैसेजैसे क्रैडिट कार्ड का प्रयोग बढ़ रहा है वैसेवैसे ही डिफौल्टर लोगों की संख्या में बढ़ावा हो रहा है. अमीर देशों में क्रैडिट कार्ड का प्रयोग ज्यादा होता है. उन को पता होता है कि खर्च करने के बाद वह भुगतान कर सकते हैं. क्रैडिट कार्ड देश की आर्थिक मजबूती को नापने का पैमाना भी हो सकता है.

भारत में भले ही ग्रोथ हो रही है लेकिन यहां पर प्रति व्यक्ति आय कम है. इस वजह से ही क्रैडिट कार्ड का प्रयोग भी कम हो रहा है. यहां के लोगों को लगता है कि खर्च ज्यादा हो गया तो भुगतान कैसे होगा? देश में अमीर और गरीब के बीच की दूरी बढ़ रही है.

देश में एक तरफ वह लोग हैं जो अमीर हैं, दूसरी तरफ वह लोग हैं जो बेहद गरीब हैं. इस वजह से 80 लाख से अधिक लोगों को खाने के लिए मुफ्त अनाज सरकार को देना पड़ रहा है. जनता लोकतंत्र में भरोसा कर के वोट नहीं दे रही वह मुफ्त सरकारी योजनाओं के नाम पर वोट दे रही है.

Office : बौस की आंख का तारा बनें

Office : ”मिनी सिंह, मिनी सिंह और बस मिनी सिंह, मेरे तो कान पक गए यह नाम सुनसुन कर. लगता है जैसे उन के अलावा पूरे स्कूल में कोई और टीचर काम ही नहीं करती है. जो कुछ होता है सब मिनी सिंह ही करती है.” स्टाफ रूम में अमृता रावत दो अन्य टीचरों के साथ अपने मन की भड़ास निकाल रही थी. वे किसी तरह मिनी सिंह को प्रिंसिपल की नजरों में गिराने की साजिश में लगी थीं.

दरअसल मिनी सिंह ने अभी कुछ महीने पहले ही स्कूल ज्वाइन किया था. उम्र ज्यादा नहीं थी. कोई 26-27 साल की ऊर्जा और उत्साह से भरी लड़की थी. बीएससी, बीएड कर के आई थी और एक्स्ट्रा एक्टिविटीज जैसे डांस, सिंगिंग, एक्टिंग, क्राफ्टवर्क आदि में बड़ी माहिर थी. आमतौर पर अधिक उम्र की टीचर्स इन साड़ी एक्टिविटीज से दूर ही रहती हैं, जबकि बच्चों को इन एक्टिविटीज में अधिक इंट्रैस्ट होता है.

स्कूल के एनुअल डे के लिए मिनी सिंह ने बच्चों के एक समूह को डांस और एक समूह को एक छोटी नाटिका का प्रशिक्षण दे कर जब स्टेज पर उतारा तो दर्शक जिस में बच्चों के पेरेंट्स और कुछ विशेष अतिथि शामिल थे, बच्चों की परफौर्मेंस देख कर अभिभूत हो गए. प्रिंसिपल तो मिनी सिंह की कायल हो गई. इतना अच्छा डांस तो इतने छोटे बच्चों से इस से पहले कोई टीचर नहीं करवा पाई जैसा मिनी सिंह ने करवा लिया.

इस के अलावा स्टेज का पूरा डैकोरेशन, अतिथियों का स्वागत भाषण आदि में भी मिनी सिंह की अहम भूमिका रही. इस प्रोग्राम के बाद तो मिनी सिंह प्रिंसिपल की आंख का तारा बन गई. हर एक्टिविटी में उस की राय ली जाने लगी और कई महत्वपूर्ण प्रोजैक्ट उस को दिए गए. यह सब देख कर अन्य टीचर्स जलभुन कर बैंगन हो गईं.

साल भर के भीतर मिनी सिंह साधारण टीचर से प्रिंसिपल की पीएस बन गई. उस की सैलरी में तीन गुना बढ़ोत्तरी हो गई. यह सब उस को अपनी मेहनत, ज्ञान और कौशल से हासिल हुआ जो अन्य निकम्मी और कामचोर टीचर्स कभी हासिल नहीं कर सकतीं. मिनी सिंह के खिलाफ वे कितनी भी साजिशें करतीं मगर प्रिंसिपल उन की शिकायतों को एक कान से सुन कर दूसरे से निकाल देती क्योंकि मिनी सिंह की मेहनत वह साफसाफ देख रही थीं.

प्रत्येक कार्यालय, कंपनी, व्यवसाय आदि में एक न एक व्यक्ति मालिक का बहुत विश्वसनीय होता है. वह अन्य लोगों की अपेक्षा ज्यादा मेहनत करता है, संस्थान को ज्यादा समय देता है और सब से अधिक बेहतर परिणाम लाता है. स्वाभाविक रूप से, उस के साथ अलग तरह से व्यवहार भी किया जाता है. उस का मानसम्मान समयसमय पर होता है. उस की तनख्वाह में बढ़ोतरी होती है और इस के कारण स्वाभाविक रूप से वह कुछ लोगों की ईर्ष्या का शिकार भी बनता है. ईर्ष्यालु लोग सोचते हैं कि मालिक का ये व्यवहार गलत है कि किसी को इतना मान दें और अन्य को न दें.

अनेक संस्थानों में ऐसे एक या कई व्यक्ति हो सकते हैं जो सच्चे मन से संस्थान का हित चाहते हैं और उन की मेहनत के कारण ही संस्थान उन्नति करता है. दूसरा समूह उन कर्मचारियों का होता है जो बस घड़ी देख कर काम करते हैं, उन को संस्थान की उन्नति से कोई मतलब नहीं होता है, वे सिर्फ टाइम पर अपनी तनख्वाह चाहते हैं. यह वह समूह है जो कभी मालिक का प्रिय नहीं बन सकता. यह समूह तरक्की भी नहीं करता. यह बस चुगलखोरी और ईर्ष्या में लिप्त रहता है. इस के विलाप से न तो इस का कोई फायदा होता है और न ही इस के नियोक्ता का. इसलिए अगर जीवन में तरक्की करनी है तो किसी भी व्यक्ति का लक्ष्य पहले समूह में शामिल होने का रहना चाहिए.

New Trend : इंटीरियर में बढ़ रहा लकड़ी का प्रयोग

New Trend : इंटीरियर में लकड़ी का प्रयोग मंहगा होने के बावजूद ट्रेंड में है. अब लकड़ी के प्रकार और डिजाइन भी बदल रहे हैं.

घर और लकड़ी का बहुत पुराना साथ है. अब पुराने रिश्ते को नए तरह से देखा जा रहा है. घर को बनाने के लिए लकड़ी सब से पुरानी वस्तुओं में से एक है. जब घर बनाने के लिए कोई दूसरी सामाग्री मौजूद नहीं होती थी तब लकड़ी ही अकेला सहारा होती थी. लकड़ी से घर ही नहीं बनाए जाते हैं फर्नीचर से ले कर दूसरी उपयोगी वस्तुएं तैयार होती थी. लकड़ी मजबूत और टिकाऊ होती है. यह लंबे समय तक चलने वाला विकल्प बन जाती है.

आज के दौर में कमर्शियल लकड़ी की पैदावार बढ़ रही है. ऐसे पेड़ लग रहे हैं जिस का प्रयोग लकड़ी के रूप में किया जा रहा है. पेशेवर बिल्डर अब इस का प्रयोग करते हैं. इन में ऐश, पाइन, सागौन, ओक, बीच, महोगनी और भी बहुत कई किस्म के पेड़ों की लकड़ी का जिक्र किया जा सकता है. हर प्रकार की लकड़ी में विशेष प्रकार का गुण होता है. इन की अपनी अलग शैली होती है. लकड़ी एक प्राकृतिक सामग्री है. यह वातावरण के अनुकूल होती है. जैसे यह गरमी को भी रोकती है और सर्दी को भी.

इंटीरियर डिजाइनर और मम गृहम की प्रमुख नीना मिश्रा कहती हैं, ‘आज के दौर में जलवायु परिर्वतन की बात बहुत होती है. सब को इस की चिंता है. ऐसे में लकड़ी का प्रयोग फिर से चलन में हो रहा है. अब लकड़ी को टैक्नोलौजी के जरीए बेहतर बनाया जा रहा है. इस से लकड़ी का बेहतर प्रबंधन किया जा रहा है. इंटीरियर डिजाइन और सजावट में लकड़ी बेहतर हो रही है. इस तरह की मशीनें, एडहेसिव और भी तमाम सामाग्री मौजूद है, जिस से लकड़ी को और उपयोगी बनाया जा रहा है. इस वजह से इंटीरियर डिजाइनिंग में लकड़ी का उपयोग बढ़ रहा है.’

कंकरीट से ऊब गए लोग

प्लास्टिक का प्रयोग अब लकड़ी के विकल्प के रूप में नहीं सहयोगी के रूप में होने लगा है. इस से लकड़ी को और भी अधिक उपयोगी बनाया जा रहा है. इंटीरियर डिजाइनर और आर्किटैक्ट लंबे समय के बाद लकड़ी का वापस उपयोग करने लगे हैं. इंटीरियर डिजाइनिंग में पौधे और लकड़ी का प्रयोग बढ़ रहा है. इस से कारण भी लकड़ी उपयोगी हो गई है. कई तरह की रिसर्च से पता चलता है कि लकड़ी और पेड पौधों हैल्थ के लिए ठीक होते हैं. जिस तरह से इनडोर पौधे तनाव को कम करने में मदद कर सकते हैं, उसी तरह लकड़ी का उपयोग करने से शारीरिक स्वास्थ्य में भी सुधार हो सकता है.

82 प्रतिशत कर्मचारी जो अपने औफिस में 8 या उस से अधिक लकड़ी के फर्नीचरी का प्रयोग करते थे, वह अपने काम से या तो संतुष्ट थे या बहुत संतुष्ट थे. इस के विपरीत जिस औफिस में लकड़ी का प्रयोग कम होता था, वहां केवल 53 प्रतिशत कर्मचारी ही अपने काम से संतुष्ट थे. लकड़ी के गुण, रंग और तत्व कर्मचारियों की संतुष्टि में सुधार का कारण है. लकड़ी रचनात्मकता को प्रोत्साहित करती हैं.

अब लकड़ी का हर हिस्सा उपयोग में लाया जा रहा है. पहले लकड़ी का बडा हिस्सा जलाने के काम आता था. अब लकड़ी का हर हिस्सा किसी न किसी रूप से प्रयोग में आने लगा है. इस का बुरादा भी अब लकड़ी के रूप में तैयार होने लगा है. अब कई तरह के रंग और वार्निष प्रयोग में आने लगे हैं जो लकड़ी की लाइफ और उस की सुदंरता को बढ़ा देती है. जिस से लकड़ी का घरेलू और व्यावसायिक दोनों जगहों उपयोग बढ़ने लगा है. लकड़ी के नए पेड़ जल्दी तैयार हो रहे हैं जिस से लकड़ी मंहगी नहीं लगती है.

टैक्नोलौजी ने बनाया लकड़ी को उपयोगी

लकड़ी का प्रयोग डेकिंग से ले कर क्लैडिंग और फ्लोरिंग तक होने लगा है. लकड़ी से मशीनों के जरिए बेहतर उपयोगी डिजाइन तैयार होने लगे हैं. लकड़ी को पौलिश किया जा सकता है, रेत से साफ किया जा सकता है, रंगा जा सकता है और जरूरत पड़ने पर चमकदार फिनिश दी जा सकती है. इंटीरियर में पुराना, मौसम से प्रभावित, खलिहान जैसा लुक है जो इंटीरियर देहाती एहसास सुखद करता है. लकड़ी में बिना कोई बदलाव किए ही इस से कई डिजाइन तैयार किए जा सकते थे.

लकड़ी का प्रयोग फर्श के रूप में होने लगा है. लकड़ी के फर्श से घर में शान और मौसम का एहसास होता है. फर्श के साथ लकड़ी की दीवारों और पैनलिंग का उपयोग भी किया जा रहा है. बेडरूम या डाइनिंग रूम के लिए घर के अंदर हो, या बाहर बरामदे पर लकड़ी की क्लैडिंग का प्रयोग हो रहा है. लकड़ी के फर्नीचर अपनी अनोखी डिजाइन के लिए पसंद किए जा रहे हैं. पुराने समय में लकड़ी की छतें बनती थीं, जिन में लकड़ी के ही बीम और पटरे का प्रयोग किया जाता था. नए समय में भी इन का प्रयोग इंटीरियर में होने लगा है. आज की लकड़ी की छतों को इस तरह से तैयार किया जा रहा है कि धूप और पानी उस का नुकसान न कर सके.

कांच या प्लास्टिक प्रयोग करने के लिए भी लकड़ी से बने ढांचे का उपयोग किया जाने लगा है. अब लकड़ी की सीढ़ियों का भी विकल्प बनने लगा है. लकड़ी की सीढ़ियां शानदार और कम रखरखाव वाली होती हैं. यह सालोंसाल चलती है. लकड़ी की दीवारें मौसम की मार से घर को बचाती है. अब इन के लिए थर्मोवुड आने लगा है. इस के प्रयोग से दीवारें ठंडी रहती हैं और छूने पर गरम नहीं होती है.

कंकरीट के प्रयोग से परेशान हो चुके लोग अब लकड़ी को पंसद करने लगे हैं. वह घर के आसपास के वातावरण को नैचुरल तो रखना ही चाहते हैं घर के अंदर भी सकून के लिए लकड़ी का प्रयोग करने लगे हैं.

Happiness Tips : शादी या बच्चे जिंदगी की खुशी का पैमाना नहीं

Happiness Tips : ‘अब तुम्हारी उम्र हो गई है शादी की’ ‘उम्र निकल गई, तो अच्छी लड़की या लड़का नहीं मिलेगा एडजस्ट करना पड़ेगा’, ‘चौइस नहीं बचेगी’ आदिआदि. सिर्फ पेरैंट्स ही नहीं, सोसायटी भी ये डायलौग बोलबोल कर शादी का प्रैशर बनाना शुरू कर देते हैं. क्या सच में शादी के बिना जीवन व्यर्थ है?

हमारे समाज में आज भी 25 क्रौस करते ही इंडियन पेरैंट्स को अपने बच्चों की शादी की चिंता सताने लगती है. आज भी अधिकांश लोग सोचते हैं जिंदगी का मकसद शादी कर के घर बसाना और बच्चेआ पैदा करना है. प्रोफैशनली सेटल होने के बाद उन का नैक्स्ट टारगेट बच्चों की शादी होता है वे ऐसा इसलिए करते हैं क्योंकि उन का मानना है कि समय से शादी फिर समय से बच्चे लाइफ का एक जरूरी हिस्सा है, जिस के बिना उन के बच्चों की जिंदगी सेटल नहीं मानी जाएगी.

भले ही उन की अपनी शादी में अनेक प्रौब्लम्स हों. वे यह बात समझ नहीं सकते कि लाइफ शादी के बिना भी खूबसूरत हो सकती है. दरअसल वे शादी और बच्चों को खुश होने का पैमाना, जिंदगी में सेटल होने का पैरामीटर और बुढ़ापे का सहारा मानते हैं. उन्होंने खुद शादी इस डर से की होती है कि बुढ़ापे में मेरा क्या होगा, मेरी प्रौपर्टी का क्या होगा, अकेले जीवन कैसे बीतेगा.

शादी एक पर्सनल डिसीजन

शादी करने में कोई बुराई नहीं है लेकिन ये पूरी तरह पर्सनल निर्णय होना चाहिए कि कोई शादी करना चाहता है या नहीं. दरअसल, शादी समाज द्वारा दिया गया एक लेबल है और आप जरूरत या इच्छा न होने पर भी अगर शादी करते हैं तो यह एक अपराध है क्योंकि तब आप अपने साथसाथ जिस से शादी करते हैं उस व्यक्ति के जीवन के दुख का रीजन भी बनेंगे.

सोशल मीडिया पर प्रीवेडिंग शूट, शादी, हनीमून, बेबी शावर की फोटोज देखने में बहुत लुभावनी लगती हैं, लेकिन रियल लाइफ में इन सब सामाजिक रीतिरिवाजों से गुजरने के बाद जब रियलटी सामने आती है तो सारे सपने हवा हो जाते हैं और तब शादी बच्चे सब किसी बोझ से कम नहीं लगते.

शादी जिंदगी का हिस्सा हो सकती है, खुशी की गारंटी नहीं

प्रैशर में आ कर, फ्यूचर के बारे में सोचसोच कर शादी के बारे में सोच कर प्रैशर में आने से अच्छाक है कि अपने सपनों के बारे में सोचा जाए. अपनी जरूरतों को समझा जाए, अपनी पहचान के बारे में सोचा जाए क्योंकि केवल शादी, पतिपत्नी और बच्चे ही आप की पहचान नहीं. किसी के साथ शादी के बंधने का निर्णय तभी लेना चाहिए जब आप उस के साथ पूरा जीवन बिताने को तैयार हों.

शादी करना आसान है लेकिन शादी के बाद वह रिश्ता निभा पाना उतना ही मुश्किल है. समझिए कि, एक अनहैप्पी मैरिज से बेहतर हैप्पिली सिंगल रहना है. शादी सिर्फ इसलिए न करें कि समाज क्या कहेगा या दूसरे लोग शादी कर रहे हैं.

शादी करना कहीं गले की फांस न बन जाए

अगर कोई शादी करने के बारे में सोच रहा है तो उसे अच्छी तरह ये जान लेना चाहिए कि आप जिस वजह से शादी करने का फैसला ले रहे हैं वो सही है भी या नहीं क्योंकि गलत वजह से शादी करना न केवल आप के लिए भारी पड़ सकता है बल्कि आप के होने वाले पार्टनर की भी जिंदगी को मुश्किल बना सकता है. विवाह दो लोगों उन के परिवार को एक साथ जोड़ता है. ये किसी की भी लाइफ का एक बेहद जरूरी फैसला होता है, जिसे बड़े सोचविचार के बाद लेना चाहिए. कभीकभी जल्दबाजी में, प्रैशर में या किन्हीं गलत कारणों से भी शादी करने का फैसला कर लेते हैं, जिस पर बाद में पछताना पड़ता है.

शादी अपनी मर्जी या इच्छा से करें प्रैशर में नहीं

शादी करने का फैसला कभी भी किसी प्रैशर में नहीं लेना चाहिए. फिर चाहे वह प्रैशर परिवार, दोस्तों या समाज का ही क्यों न हो. आप को हमेशा अपने दिल की सुननी चाहिए. परिवार की इच्छा पूरी करने के लिए शादी करना कोई वजह नहीं होनी चाहिए. अगर कोई भी लड़का या लड़की शादी करने के लिए तैयार नहीं हैं या उसे शादी जरूरी नहीं लगती तो उसे शादी नहीं करनी चाहिए.

पैसा, शादी की सक्सेस का राज नहीं

कुछ पेरैंट्स अपने बच्चों पर शादी का प्रैशर इसलिए भी बनाते हैं कि सामने वाले के पास बहुत पैसा है और इस से उन्हें फायदा होगा, पैसा उन के बच्चों को खुश रखेगा. ऐसा बिल्कुल न सोचें क्योंकि ये शादी करने की बिल्कुल गलत वजह है. एक सफल शादी प्यार, सम्मान और समझ पर चलती है, न कि सामने वाले के पैसे या स्टेटस पर.

अकेलापन दूर करने के लिए

लोग मानते हैं कि शादी करने से आप को जीवनभर के लिए एक साथी मिल जाता है. अकेलापन दूर होता है लेकिन अगर आप का लाइफ पार्टनर आप की पसंद का नहीं हो, दोनों के विचार न मिलते हों तो शादी करने के बाद भी आप को अकेलापन ही मिलेगा. इसलिए अकेलापन दूर करने के लिए शादी करना शादी करने की सही वजह या गारंटी नहीं है कोई भी शादी तभी सफल होती है जब शादी करने वाले दो दोनों लोग एकदूसरे से प्यार करते हैं और एकदूसरे की कंपनी को एन्जौय करते हैं.

शादी बच्चे के लिए, बुढ़ापे के सहारे के लिए

अगर कोई शादी सिर्फ बच्चे की चाह में अपना परिवार बढ़ाने के लिए कर रहा है, कि बच्चे बुढ़ापे में उन का सहारा बनेंगे तो ये शादी करने की बिल्कुल भी सही वजह नहीं है. बच्चे की परवरिश एक बहुत बड़ी जिम्मेदारी होती है और उस जिम्मेदारी को पूरी करने के बदले ये एक्सपेक्ट करना कि बुढ़ापे में बच्चे उन की केयर करेंगे उन का सहारा बनेंगे ये सही नहीं है. इस बात की क्या गारंटी है कि जिस वजह से आज आप शादी और उस के बाद बच्चे को दुनिया में लाने का निर्णय ले रहा है वह वजह पूरी होगी, यह अपेक्षा रखना ही गलत है.

मूव औन करने के लिए शादी

कुछ लोग सिर्फ इसलिए भी शादी करना चाहते हैं क्योंकि वे अपने एक्स को भूलना चाहते हैं या उस से मूव औन करना चाहते हैं. ऐसा बिल्कुल न करें. ऐसा करने से आप के साथसाथ आप जिस से शादी कर रहे हैं दोनों की जिंदगी नरक बन सकती है.

शादी का रिश्ता अब सात जन्मों का नहीं रहा

हिंदू धर्म में शादी का रिश्ता केवल एक जन्म का नहीं बल्कि सात जन्मों का माना जाता है, जिस में दो लोग एक साथ जीवनभर साथ रहने और परिवार शुरू करने का फैसला करते हैं. यह बंधन कई तरह के नियमों, रीतिरिवाजों, विश्वासों और व्यवहारों द्वारा नियंत्रित होता है, जिस में दो लोग एकदूसरे के हर दुख और सुख में एक साथ खड़े होने, एकदूसरे की कमियों को पूरा करने का वचन देते हैं लेकिन अपने आसपास अगर गौर से देखा जाए तो सचसच बताइएगा कि आप को कितने खुशहाल वैवाहिक रिश्ते दिखाई दे रहे हैं.

देख कर हैरानी होती है कि अब शादियां सात जन्म तो छोड़िए 7 साल, 7 महीने, 7 दिन और कुछ तो 7 घंटे भी नहीं चल पा रहीं. छोटी सी बात पर हुई तकरार अलगाव का कारण बन रही है. दिनोंदिन तलाक, धोखाधड़ी, पार्टनर के मर्डर जैसे मामले देखने में आ रहे हैं.

शादी से जरूरी खुद की खुशी जरूरी

सोसाइटी, फैमिली के प्रैशर में शादी कर के परिवार शुरू करने से ज्यादा जरूरी आप का खुश रहना है. यदि आप को लगता है आप किसी से शादी कर के खुश रह सकते हैं, तो जरूर शादी करिए. लेकिन यदि आप को लगता है कि आप अकेले ज्यादा खुश रह सकते हैं, तो आप शादी बिना के भी जीवन बिता सकते हैं खुश रह सकते हैं.

बढ़ रही है युवाओं में शादी नहीं करने की सोच

आजकल के युवा शादी करने में विश्वास नहीं कर रहे हैं. खासतौर पर वे युवा जो हाइली एजुकेटेड हैं, अच्छी सैलरी या अच्छी इनकम है, फिर चाहे वह लड़का हो या लड़की. इस के अलावा, वे जब अपने आसपास के बिगड़ते रिश्तों के उदाहरण देखते हैं, बढ़ती महंगाई के कारण अपनी छोटीछोटी खुशियों के लिए लोगों को स्ट्रगल करते देखते और अपने कंफर्ट और आजादी को खोते देखते हैं, तो वे शादी के बंधन में न बंधना ही बेहतर समझते हैं. वे बुढ़ापे में अकेले होने की कल की चिंता के वजह से आज की आजादी और अपनी मर्जी से जिंदगी जीने की चाहत से बिल्कुल भी समझौता नहीं करना चाहते हैं.

अगर नहीं करनी शादी

अगर किसी को लगता है कि शादी उसे खुशी नहीं देगी, वह बिना शादी के भी खुश रह सकता है और उस ने शादी न करने का निर्णय ले लिया है तो उसे अपना सोशल सर्कल बढ़ाना चाहिए, प्रोफैशनल और पर्सनल दोनों. दोस्त बनाने चाहिए फिर चाहें वे दोस्त मैरिड हों या अनमैरिड.

बैचलर्स के लिए फ्रैंड्स बनाना ईजी

अनमैरिड लोगों के लिए फ्रैंड्स बनाना और निभाना दोनों आसान है क्योंकि तब कोई उन से यह पूछने वाला, टोकाटाकी करने वाला नहीं होता. “इतनी रात को कहां थे, किस दोस्त के साथ थे, कब आ रहे हो, रोज क्यों जाते हो.”

Muslim Marriage : मुसलिम लड़कों की शादी में अड़चन क्यों?

Muslim Marriage : 20 साल पहले तक मुसलिम समाज में आपसी शादियों का प्रचलन जोरों पर था. गरीब हो या अमीर, मुसलमानों के बीच खून के रिश्तों में निकाह हो जाना आम बात थी. मगर अब यह चलन कम होता जा रहा है. मुसलिम शादियों में और भी कई तरह की अड़चनें आने लगी हैं, जानें.

जावेद अंसारी 29 साल के ग्रेजुएट युवा हैं. वे 2 सालों से अलगअलग मैट्रिमोनियल वैबसाइटों पर अपने लिए लड़की ढूंढ रहे हैं लेकिन उन्हें मनमाफिक लड़की अभी तक नहीं मिली. मोतिहारी के शमीम अहमद की कहानी भी कुछ ऐसी ही है. घर के हालात खराब थे, इसलिए 18 साल की उम्र में वे गुजरात चले गए. गुजरात में रह कर शमीम ने 14 वर्षों तक लगातार मेहनत की और अपनी 4 बहनों की शादियां कीं. अब 32 वर्ष की उम्र होने पर जब खुद के लिए लड़की ढूंढ रहे हैं तो उन्हें अपने समाज में कोई लड़की नहीं मिल रही. आज मुसलिम समाज के ज्यादातर लड़कों की स्थिति जावेद और शमीम जैसी ही है.

सवाल यह है कि मुसलिम समाज में लड़कों के लिए पसंद की लड़की का अभाव अचानक से क्यों पैदा हुआ? क्या मुसलिम समाज की इस समस्या के लिए लिंगानुपात जिम्मेदार है? 2011 की जनगणना के अनुसार, मुसलिम समुदाय में प्रति 1,000 पुरुषों पर 951 महिलाएं हैं, जो राष्ट्रीय औसत (940) से भी अधिक है. इस का मतलब यह कि मुसलिम लड़कों की शादी में आने वाली अड़चन की वजह लिंगानुपात तो नहीं है. तो क्या वजह है कि मुसलिम लड़कों को शादी के लिए लड़कियां नहीं मिल रहीं? 30 से 35 साल की उम्र तक के मुसलिम लड़के कुंआरे क्यों बैठे हैं? क्या मुसलिम लड़कियों के सामने भी ऐसी परेशानियां हैं? आज हम इन्हीं सवालों का जवाब ढूंढने की कोशिश करेंगे.

अचानक मुसलिम लड़कों को शादी में दिक्कतें क्यों पैदा होने लगीं?

20 साल पहले तक मुसलिम समाज में आपसी शादियों का प्रचलन जोरों पर था. गरीब हो या अमीर, मुसलमानों के बीच खून के रिश्तों में निकाह हो जाना आम बात थी. मुसलिम परिवार में पैदा हुए किसी लड़के के लिए मौसी की लड़की, बूआ की लड़की, चाचा की लड़की या मामा की लड़की से रिश्ता उस के बचपन में ही तय हो जाता था और फिर एक दिन यह रिश्ता शादी में बदल जाता था. तब के दौर में बड़े परिवार हुआ करते थे जिस में लड़के या लड़की की मरजी का कोई सवाल ही नहीं था. घरवालों ने जो तय कर दिया वही पत्थर की लकीर बन जाती थी. 17 साल के लड़के के हाथ में 14 साल की लड़की का हाथ थमा कर 2 नाबालिगों के हाथों में परिवार बनाने की जिम्मेवारी सौंप दी जाती थी. उस दौर का यही प्रचलन था.

आज परिस्थितियां बदल गईं हैं. खून के रिश्तों में शादियों का प्रचलन अब पहले जैसा नहीं रहा. मुसलिम समाज में होने वाले बाल विवाह में काफी कमी आई है. आज का मुसलिम युवा परिवार में शादियों को पसंद नहीं करता. गांव हो, कसबा हो या फिर शहर, मुसलिम समाज में परिवार में शादी करने का रिवाज पहले जैसा नहीं है. राइनी, इदरीसी, नाई, मिरासी, मुकेरी, बारी, घोसी, तेली और जोलाहा जैसे पसमांदा समझे जाने वाले मुसलमानों की लगभग हर जाति ने इस रिवाज से दूरी बनाई है तो सय्यद, शेख, पठान और मीर जैसी अशरफ जातियों में भी बाल विवाह और परिवार में शादियों का प्रचलन कम हुआ है. यह एक बड़ी वजह है जिस से मुसलिम लड़कों को शादी में परेशानियां खड़ी हो रही हैं.

मुसलिम लड़कियों की सामाजिक स्थिति में आया बदलाव

आज लड़कियां पढ़ रही हैं, नौकरियां कर रही हैं फिर भी लड़कियों के प्रति समाज की आम सोच में ज्यादा अंतर नहीं आया है. 3 बच्चों के किसी परिवार में यदि 2 लड़का और एक लड़की हो तो आमतौर पर ऐसा परिवार अपने दोनों बेटों को प्राइवेट स्कूल में और बेटी को सरकारी स्कूल में पढ़ाता है.

सरकारी स्कूल में पढ़ने वाली लड़की अपनी असाधारण योग्यता के बल पर यदि उच्च शिखर तक पहुंचती है तो घर वालों की ओर से ज्यादा रुकावटें पैदा नहीं की जातीं लेकिन औसत लड़कियों के साथ ऐसा नहीं होता. पढ़ाईलिखाई में औसत रही लड़कियों के मार्ग में हर कदम पर रुकावटें पैदा की जाती हैं. यही वजह है कि 10वीं पास करने वाली 100 लड़कियों में मात्र 17 ही ग्रेजुएशन तक पहुंच पाती हैं. इस के उलट, 10वीं पास करने वाले 100 मुसलिम लड़कों में 47 लड़के ग्रेजुएशन तक पहुंचते हैं. इन आंकड़ों में आधे से भी ज्यादा का अंतर है. यही अंतर मुसलिम लड़कों की शादी में अड़चन बन कर खड़ा हो गया है. एक ग्रेजुएट लड़का किसी 10वीं पास लड़की से शादी नहीं करना चाहता. यह एक बड़ी वजह है जिस से मुसलिम लड़कों की शादियों में बाधाएं पैदा होने लगी हैं.

मुसलिम लड़कों की शादी में बड़ी बाधा है आर्थिक असमानता

देश में पहले से ही शिक्षा और कैरियर के क्षेत्र में अवसरों की कमी है जिस का खमियाजा मुसलिम युवा भी भुगतता है. जौब ही नहीं तो शिक्षा किस काम की? इस मानसिकता की वजह से मुसलिम युवाओं का शिक्षा से मोहभंग हो जाता है जिस के कारण उच्च शिक्षण संस्थाओं में मुसलिम युवाओं की भागीदारी नगण्य नजर आती है. ज्यादातर मुसलिम युवा नौकरी के लिए खाड़ी देशों का रुख करते हैं या देश मे रह कर अपनी हुनरमंदी पर भरोसा कर छोटेमोटे काम में लग जाते हैं लेकिन आज के दौर में कोई भी काम ऐसा नहीं है जिस में कंपीटिशन न हो.

कारीगरी का पुराना तौरतरीका बदल चुका है. किसी भी क्षेत्र में खुद को स्थापित करना आसान नहीं रह गया. बहुत समय और मेहनत के बाद ही कामयाबी मिलती है. कठिन परिश्रम के बाद जो युवा कामयाब हो जाते हैं वो अपवाद हो जाते हैं और जो अपवाद हो जाते हैं वो हर तरह से आजाद हो जाते हैं. लेकिन ज्यादातर मुसलिम नौजवान स्ट्रगल में लगे होते हैं जिस से उन के ऊपर परिवार का दबाव बना रहता है. ऐसे युवा अपनी पसंद के जीवनसाथी को चुनने में स्वतंत्र नहीं रह पाते और घरवालों की मरजी के आगे मजबूर हो कर शादी कर लेते हैं.

क्या मुसलिम लड़कियों की शादी में भी ऐसी समस्याएं हैं?

मुसलिम लड़कियों के मामले में समस्याएं अलग हैं. गरीब मुसलिम परिवारों में जन्म लेने वाली लड़कियों के साथ ढेरों समस्याएं भी जन्म लेती हैं. लड़की के घरवालों के लिए बेटी खुद एक समस्या होती है, इसलिए बेटी को पराया धन समझ कर ही पाला जाता है. 15 साल की उम्र में लड़की जवान समझी जाती है और इसी उम्र के साथ उसे ससुराल भेजने का जतन शुरू हो जाता है. निकाह से पहले तक जितना पढ़ पाई वह उस की कामयाबी. एक बार ससुराल पहुंच गई तो परिवार की जिम्मेदारी खत्म. मुसलिम लड़कियों के पास कोई औप्शन ही नहीं होता, इसलिए बुरी परिस्थितियों को समय का फेर मानते हुए वे ताउम्र झेलने को तैयार की जाती हैं.

गरीब तबके की मुसलिम लड़कियों के लिए आज भी वह सब हराम है जो एलीट क्लास की मुसलिम ख़्वातीन बड़े शौक से करती हैं- गाना, डांस करना, हंसना, पराए मर्द से बात करना या ऊंची आवाज में बोलना. हकीकत तो यही है कि आज भी करोड़ों मुसलिम लड़कियां जीवनभर तंग गलियों की किसी बंद चारदीवारी से बाहर नहीं निकल पातीं. इन में वो लाखों लड़कियां भी हैं जो पढ़ना चाहती हैं, घूमना चाहती हैं, अपने सपनों की उड़ान भरना चाहती हैं लेकिन चाह कर भी वे ऐसा नहीं कर सकतीं क्योंकि उन के पंख इसलाम ने कतरे हुए हैं. उन के पैरों में हदीसों की बेड़ियां हैं जिन्हें तोड़ना उन के बस में नहीं. अरमानों पर उलेमाओं ने मोटे ताले जड़ दिए हैं जिन्हें तोड़ पाना उन लड़कियों के लिए नामुमकिन है.

मध्यवर्ग की मुसलिम लड़कियों को कुछ आजादी हासिल हो गई है जैसे वे पढ़ने में रुचि रखती हैं तो उन्हें अपनी मरजी से पढ़ने दिया जाता है लेकिन शादी के मामले में मुसलिम समाज इतना प्रगतिशील नहीं हुआ है. इस मामले में आज भी लड़की की मरजी वर्जित है. लड़की को किस से शादी करनी है, यह फैसला परिवार का होता है. प्यार की कोई गुंजाइश नहीं. ऐसे में मुसलिम लड़कियां अपने ऊपर जबरन थोपे गए रिश्तों को ढोती है.

कुल मिला कर बात यह है कि मुसलिम समाज में शादी और तलाक के मसले अब पहले जैसे नहीं रहे. लड़की हो या लड़का, दोनों की शादियों में समस्याएं पैदा हो रही हैं. फिर भी यह दौर पहले से बेहतर है. आज लड़का और लड़की शादी जैसे रिश्तों को समझते हैं. अब रिश्तों को झेलना मुश्किल है. शादी न चले तो तलाक में कोई बुरी बात नहीं. तलाक के माने यह नहीं कि रिश्ता टूट गया बल्कि तलाक का सही अर्थ यह है कि जीवन को नए सिरे से जोड़ा जा सकता है.

मुसलिम युवाओं की शादी में जातियों का अड़ंगा

ऊपरी तौर पर देखें तो इसलाम में कोई जातीय भेद नहीं है. एक इमाम के पीछे नमाज अदा करने वाली भीड़ में कौन किस जाति से संबंध रखता है, यह कोई नहीं पूछता. लेकिन यह भाईचारा महज मसजिद तक ही कायम रहता है. सामाजिक स्तर पर मुसलिमों में कठोर जातिवाद कायम है. जब बात शादी की हो तब यह जातिवाद और भी ज्यादा कठोर हो जाता है. मुसलिम समाज में जाति से अलग शादी करने पर औनर किलिंग तक की घटनाएं देखने को मिलती हैं. यों तो देश की जनसंख्या का 14 फीसदी यानी 19 करोड़ मुसलमान हैं लेकिन जब बात शादीब्याह की हो तब यह बड़ी मुसलिम आबादी जाति में सिमट कर बहुत छोटी हो जाती है. किसी भी आर्थिक वर्ग के एक मुसलिम नौजवान को अपनी जाति के अंदर ही शादी करनी होती है जिस से मुसलिम लड़के को अपनी शादी के लिए लड़की को चुनने का दायरा बेहद संकीर्ण हो जाता है.

मुसलिम युवाओं की शादी में जातिवाद से बड़ी एक और अड़चन है जिसे फिरकापरस्ती कहते हैं. किन्हीं परिस्थितियों में 2 अलग मुसलिम जातियों के बीच शादी का रिश्ता सम्भव है परंतु दो अलग फिरकों में शादी मुमकिन नहीं.

जाति और फिरके की यह नाजायज घेरबंदियां मुसलिम युवाओं की शादी में बड़ी रुकावटें साबित होती हैं. यदि दो युवा दिलों के बीच ये नफरती दीवारें न होतीं तो आज जावेद और शमीम को अपनी शादी के लिए मुश्किलों का सामना न करना पड़ता.

Easy Life : मौन का मूलमंत्र, जिंदगी को बनाए आसान

Easy Life : हम बचपन में बोलना तो सीख लेते हैं मगर क्या बोलना है और कितना बोलना है, यह सीखने के लिए पूरी उम्र भी कम पड़ जाती है. मौन रहना आज के दौर में ध्यान केंद्रित करने की तरह ही है.

दफ्तर की मीटिंग हो या घर में कोई गैदरिंग, अंशु बिना मांगे सलाह देना शुरू कर देती है. ननद की बेटी की शादी में कपड़ों की खरीदारी से ले कर लेनदेन में भी अंशु बढ़चढ़ कर हिस्सा ले रही थी. शादी के दौरान और बाद में जिस भी रिश्तेदार का मुंह फूला, सब का ठीकरा अंशु के सिर पर था. लगातार बोलने के कारण अंशु को खुद भी ध्यान नहीं था कि उस ने किस रिश्तेदार के सामने क्या बोला है. अंशु का पति मनुज उस से अलग नाराज था कि उस के कारण उसे अपनी दीदी और जीजाजी से अलग बातें सुननी पड़ी हैं.

कबीर कक्षा 1 का विद्यार्थी है और बेहद शरारती है. चारु जब अपने बेटे कबीर की पीटीएम पर उस के स्कूल गई. जब टीचर ने कबीर की स्कूल में प्रोग्रैस रिपोर्ट बतानी चाही तो चारु ने टीचर को बोलने का मौका ही नहीं दिया. वह लगातार कबीर की तरफदारी करती रही थी. टीचर ने आगे कोई बात नहीं की.

हर बात पर रिऐक्शन देना आज की एक बहुत बड़ी समस्या बन गई है. हर बात हमारे ढंग से हो, बहुत जल्दी हो. हर छोटीछोटी चीज हमें इरिटेट कर देती है. आप कुछ भी बोलने से पहले 1 मिनट का मौन अवश्य रखें. बहुत बार 1 मिनट के मौन के बाद आप को कुछ बोलने की जरूरत ही नहीं पड़ती.

हम बचपन में बोलना तो अवश्य सीख लेते हैं, मगर क्या बोलना है और कितना बोलना है, इस के लिए पूरी उम्र भी कम पड़ जाती है.

मौन ऐसी कुंजी है जो आप के दफ्तर में, आप के घर में, दुनियादारी में और रिश्तों में बहुत महत्त्वपूर्ण है. बहुत सारे रिश्ते बिना सोचेसमझे बोले गए शब्दों के कारण खराब हो जाते हैं. घर पर एक खुशनुमा माहौल बनाए रखने के लिए मौन का बड़ा महत्त्व है. दफ्तर में भी उन्हीं कर्मचारी की बातों को अधिक महत्त्व दिया जाता है जो कम बोलते हैं.

एक चुप हजार को हराता है, यह यों ही नहीं कहा जाता है. कोई आप को कितना भी उकसाए, अगर आप चुप रहेंगे तो वह आप की जीत होगी. मौन रहने के लिए आप को लगातार अभ्यास करना होता है क्योंकि बचपन से हमें हर बात पर रिऐक्ट करने की आदत होती है. हर सिचुएशन में खुद को कंट्रोल करने में बहुत अधिक ऊर्जा लगती है क्योंकि बिना सोचेसमझे रिऐक्शन देना सब से आसान है.

मौन रहना आजकल के दौर में व्यायाम की तरह ही है. आइए अब कुछ मूल बिंदुओं द्वारा यह जानते हैं कि मौन रहने के क्या फायदे हैं और मौन के कारण आप अपनी जिंदगी को कैसे आसान बना सकते हैं.

दिन की शुरुआत मौन के साथ

रोज सुबह उठ कर पहले 5 मिनट मौन में गुजारें. विचारों को शून्य करें. शब्दों को भी बाहर न निकालें. एक बार महसूस करें, मौन कितना बलशाली और खूबसूरत है. सुबह 5 मिनट मौन में रहने से आप का आने वाला दिन आप के अनुसार ही बीत जाएगा. आप दिन के क्रियाकलापों में जाने से पहले मौन द्वारा खुद को तैयार कर लेते हैं.

गुस्सा आने पर मौन है अमृत

बहुत बार गुस्सा आने पर हम ऐसे शब्द अपने मुख से निकाल देते हैं जिन का बाद में हमें जीवनभर पछतावा होता है. गुस्सा आने पर पहले 5 मिनट मौन रखें और उस के बाद कुछ कहें. 90 प्रतिशत केसेस में आप देखेंगे, आप का गुस्सा ही गायब हो गया है.

हर परिस्थिति में 2 मिनट मौन रहें

कोई भी बात हो, कैसी भी परिस्थिति हो चाहे अच्छी या बुरी, अगर आप को हर तरह की परिस्थिति में हीरो बनना है तो पहले 2 मिनट मौन रखें, फिर प्रतिक्रिया दें. ये 2 मिनट आप के दिमाग को सजग करते हैं और आप अपने पर अच्छे से काबू पाने में सक्षम हो जाते हैं.

दफ्तर में अपनाएं मौन का मूलमंत्र

यह मूलमंत्र आप के दफ्तर के कार्य के लिए बेहद कारगर है. किसी भी नए कार्य के आने पर मौन रह कर पहले अच्छे से प्लानिंग करें. अधिकतर देखा जाता है, बहुत अधिक बोलने पर दफ्तर का माहौल विषैला हो जाता है और आप जितना अधिक बोलेंगे उतनी ही अपनी ऊर्जा खर्च करेंगे.

परिवार में मौन करता है बड़ा काम

बहुत बार देखने में आता है कि परिवार में झगड़ा होने पर चुप रहने के बजाय खुद को सही साबित करने के चक्कर में हम बोलते चले जाते हैं जिस कारण बात बिगड़ जाती है. अगर आप को बात को बनाना है तो कभीकभी चुप रहना ही बेहतर होता है.

मौन कमजोरी की नहीं, ताकत की निशानी

हर छोटीबड़ी बात पर प्रतिक्रिया दे कर खुद को परिस्थिति का गुलाम मत बनाएं. एक बात याद रखें, बोलने में, चिल्लाने में आप को कोई ताकत नहीं चाहिए होती है, बल्कि मौन रहने के लिए ताकत चाहिए होती है.

मौन रखने से होता है खुद से साक्षात्कार

जब आप मौन रहते हैं तो खुद से साक्षात्कार कर सकते हैं. अपनी अच्छाई, अपनी बुराई, अपनी कमजोरी को हम एकांत में मौन रह कर ही पहचान सकते हैं. अपनी बात को कहने के लिए हमेशा शब्दों की जरूरत नहीं होती है. मौन ऐसा हथियार है जो बिना कुछ कहे ही बहुतकुछ कह देता है. जरूरी है आप इसे अपने जीवन का आधार बना लें.

लेखिका : ऋतु वर्मा

Elon Musk : राजनीतिक मंचों पर एलन मस्क अपने बच्चों के साथ क्यों दिखते हैं

Elon Musk : 2 शादियां, 3 गर्लफ्रैंड से उत्पन्न 13 बच्चों के पिता एलन मस्क यदि सार्वजनिक मंचों और महत्वपूर्ण राजनीतिक कार्यक्रमों में अपने नन्हेनन्हे बच्चों के साथ नजर आते हैं तो यह सिर्फ पिता का प्रेम नहीं, बल्कि इस के पीछे उन की अच्छी और मिलनसार राजनीतिक छवि गढ़ने की मंशा छिपी है.

पिछले दिनों भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अमेरिका दौरे पर थे. वे अमेरिका के राष्ट्रपति यानी ‘दोस्त ट्रंप’ से मुलाकात के बाद वाइट हाउस के ओवल औफिस में ट्रंप के सब से बड़े कारोबारी सहयोगी, दुनिया की सब से बड़ी बैटरी कार कंपनी टेस्ला, एक अंतरिक्ष कंपनी के मालिक, सोशल मीडिया प्लेटफौर्म ट्विटर (एक्स) सहित और कई अन्य कारोबार चलाने वाले एलन मस्क के बच्चों के साथ बातचीत करते और उन से तोहफों का आदानप्रदान करते भी दिखाई दिए.

तस्वीरों में देखा गया कि मोदी अमेरिकी राष्ट्रपति भवन में एलन मस्क के साथ टैक्नोलौजी और इनोवेशन से जुड़े मुद्दों पर औपचारिक बातचीत कर रहे हैं और वहीं जमीन पर बिछे कार्पेट पर मस्क के दो छोटे बच्चे अपने खेल के बीच उस बातचीत में भी शामिल हैं. बच्चों की उम्र 4 और 6 साल की है. आखिर दो देशों के महत्वपूर्ण पदों पर बैठे व्यक्तियों के बीच चल रही अंतर्राष्ट्रीय स्तर की वार्ता में इतने छोटे बच्चों का क्या काम था? मगर इन तस्वीरों को सोशल मीडिया और समाचार पत्रों चैनलों पर काफी वायरल किया गया.

गंभीर वार्ता के बीच बच्चों के होने से एक घरेलू वातावरण प्रस्तुत हुआ. ऐसा लगा है जैसे मोदी अंकल किसी गंभीर मुद्दे पर बात करने के लिए नहीं बल्कि मस्क के बच्चों के साथ मनोरंजन और हलकीफुलकी बातों का लुत्फ उठाने के लिए वहां गए हैं और उन्हें तोहफे और चौकलेट भेंट कर के खुद भी बहुत खुश हो रहे हैं.

बताते चलें कि एलन मस्क के 3 अलगअलग महिला पार्टनरों से 12 बच्चे हैं और अब वे तेरहवें बच्चे का बाप बनने का ऐलान कर चुके हैं, जो उन की एक गर्लफ्रैंड से होने वाला है. उन के जिन बच्चों को सार्वजनिक जगहों पर देखा जाता है उन में एक्स, एई, ए-12 और ‘लिटिल एक्स’ शामिल हैं. मस्क अपने बच्चों के लिए ‘लगभग जुनूनी’ से नजर आते हैं. वह हमेशा अपने बच्चों को अपने आसपास रखना पसंद करते हैं. कई बार तो वे सार्वजनिक मंचों पर बच्चों को अपने कंधों पर बिठा कर मीडिया के सवालों का जवाब देते भी दिखाई दिए.

सार्वजानिक स्थानों पर, महत्वपूर्ण राजनीतिक वार्ताओं के बीच, बड़े मंच जहां राजनेताओं के भाषण चल रहे होते हैं, एलन मस्क अपने छोटेछोटे बच्चों के साथ खेलते और लोगों से उन को मिलवाते हुए देखे जाते हैं. राष्ट्रपति ट्रंप को भी इस पर कोई ऐतराज नहीं होता यदि मस्क के बच्चे उन के भाषण के दौरान मंच पर इधर से उधर दौड़ लगाएं या श्रोताओं का सारा ध्यान अपनी तरफ खींच लें.

विदेशी नेताओं के साथ मुलाक़ात से ले कर स्पेसएक्स लौंच के कंट्रोल रूम तक, मस्क के बच्चे तकनीक, कारोबार और अब राजनीतिक मंचों पर अपने पिता के साथ लगातार दिख रहे हैं. अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने जब से टेक अरबपति और टेस्ला के सह संस्थापक एलन मस्क को नए सरकारी विभाग डीओजीई (डिपार्टमेंट गवर्नमेंट एफिशिएंसी) का नेतृत्व सौंपा है, तब से मस्क के बच्चे अकसर राष्ट्रपति भवन में देखे जा रहे हैं. जब मस्क प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ टैक्नोलौजी और इनोवेशन से जुड़े मुद्दों पर चर्चा कर रहे थे, तब ‘लिटिल एक्स’ और उन के दो और भाईबहनों ने भारतीय पीएम के साथ तोहफों का आदानप्रदान किया.

अमेरिका में ट्रंप प्रशासन का हिस्सा बनने से पहले भी मस्क को अकसर अपने बच्चों के साथ देखा गया है. जैसे तुर्की के राष्ट्रपति के साथ बैठक में, औशविट्ज कन्सनट्रेशन कैंप में एक मेमोरियल सर्विस के दौरान और साल 2021 में मस्क को पर्सन औफ द ईयर का खिताब देने वाली टाइम मैगजीन के समारोह में भी. लेकिन मस्क इतनी अहम जगहों पर अपने बच्चों के साथ क्यों जाते हैं?

दरअसल इस के पीछे एक सोचीसमझी मंशा है. सार्वजनिक कार्यक्रमों में बच्चों को शामिल करना एक राजनेता का उठाया गया राजनीतिक कदम है. ताकि वह जनता में बहुत मिलनसार दिखाई दे. उस की छवि एक प्रेम करने वाले पिता के रूप में जनता के सामने उभरे. जनता की नजर में वह अधिक संवेदनशील, जिम्मेदार और मानवीय दृष्टिकोण अपनाने वाला लगे. बच्चों को साथ रखने पर कुछ चीजों पर ध्यान खींचने और बाकी चीजों से ध्यान हटाने की कोशिश भी होती है.

अमेरिकी राष्ट्रपति को एलन मस्क के बच्चों से कोई परेशानी नहीं है क्योंकि उन को जानबूझ कर सार्वजनिक मौकों में शामिल किया जाता है. ये एक ऐसा भटकाव है, जो मस्क और ट्रंप दोनों के लिए फायदेमंद है. मस्क के बच्चों का बारबार दिखाई देना और इस को वायरल मोमेंट बनाना, ट्रंप के लिए फायदेमंद है. बच्चों के कारण मंच पर अधिक से अधिक हलचल नजर आती है और इस के चलते ट्रंप पर ध्यान कम हो जाता है.

राजनीति में आने से बहुत पहले, मस्क ने अपने बच्चों को साथ ले कर चलना शुरू कर दिया था. एक दशक पहले, जब वह अपनी पहचान बना रहे थे और अपनी इलैक्ट्रिक वाहन बनाने वाली कंपनी टेस्ला की ओर ध्यान खींचने के लिए उत्सुक थे, तो उन्हें कई कार्यक्रमों में उन के बच्चों के साथ देखना सामान्य हुआ करता था. साल 2015 में जब विश्लेषक और रिपोर्टर सिलिकोन वैली में टेस्ला के खुलने का इंतज़ार कर रहे थे, उस वक्त मस्क के 5 बच्चों को कंपनी के परिसर में एकदूसरे के पीछे भागते, हंसते, चीखते और पुकारते देखा गया था. तस्वीरें वायरल हुई थीं. लोग वहां घंटों से इंतज़ार कर रहे थे मगर मस्क बच्चों की उपस्थिति से आरामदायक और खुशी भरा माहौल बनाने में जुटे थे. ये आमतौर पर कंपनियों के उन कड़े और औपचारिक कार्यक्रमों के आयोजन से एकदम अलग था, जहां किसी संस्थापक के बच्चों का दिखना अजीब सा होता है.

अभी जब ट्रंप ने राष्ट्रपति भवन के अपने दफ्तर, ओवल ऑफिस में मीडिया से बात की, तो वहीं बगल में एलन मस्क खड़े हुए थे, जिन्होंने अपने बेटे को अपने कंधों पर चढ़ा कर रखा था, और मीडिया के सवालों के जवाब वे उसी अंदाज में दे रहे थे. उन के बच्चे राष्ट्रपति के टेबल के आसपास खेल रहे थे, मस्क की गोद और गर्दन पर चढ़े हुए थे, और बगल में बैठे राष्ट्रपति मस्क को जवाब देते भी सुन रहे थे. यह एक बहुत ही अनोखा, अटपटा और असाधारण दृश्य था.

गौरतलब है कि एलन मस्क अपने फैसलों को ले कर काफी सख्त और क्रूर हैं, लेकिन अपनी इस छवि को उन्होंने अपने नन्हेनन्हे बच्चों को सामने रख कर बैलेंस कर रखा है. मस्क के बच्चों का इस्तेमाल ट्रंप भी अपनी अच्छी छवि गढ़ने के लिए कर रहे हैं. इसलिए उन्हें इस बात से ऐतराज नहीं होता कि जब वे किसी मंच पर भाषण दे रहे हैं या मीडिया के सवालों का जवाब दे रहे हैं तो मस्क के बच्चे वहां खेल रहे हों या उधम मचा रहे हों.

इस से पहले अमेरिका के राष्ट्रपति रहे बराक ओबामा भी अकसर अपनी पत्नी मिशेल ओबामा और दोनों बेटियों – मालिया और साशा के साथ देखे जाते थे. वे अतिथियों के बीच बेटियों पर प्यार लुटाते और उन को चूमते नजर आते थे. बच्चियां अकसर उन की गोद में चढ़ी रहती थीं और वे देश विदेश के नेताओं से उसी स्थिति में गंभीर वार्ता करते दिखते थे. ये दृश्य ओबामा को एक अच्छे, जिम्मेदार, भावुक, संवेदनशील, पारिवारिक और सौम्य व्यक्ति होने की छवि प्रदान करता था, जो आज भी लोगों की नजरों में बसी हुई है.

अमेरिका में कई ऐसे राष्टपति हुए जिनकी छवि बड़ी क्रूर नेता की रही और उस छवि के चलते वे बहुत जल्दी राजनीति के परदे से अदृश्य हो गए जबकि सौम्य और पारिवारिक छवि के नेताओं ने बारबार जनता के दिलों पर राज किया.

राष्ट्रपति बराक ओबामा ने 2009 में पदभार संभाला था तब मालिया और साशा क्रमशः सिर्फ 10 और 7 साल की थी. साशा जेएफके जूनियर के बाद व्हाइट हाउस में रहने वाली सब से कम उम्र की बच्ची थी. व्हाइट हाउस में आठ वर्षों के दौरान और दुनिया भर में, बराक ओबामा ने अपने परिवार की हजारों तस्वीरें सार्वजनिक कीं. उन्होंने अपनी बेटियों के साथ हजारों पोज दिए. कहीं बाग़ में खेलते हुए, कहीं स्विमिंग पूल में. कहीं लिफ्ट में, सीढ़ियों पर, व्हाइट हाउस के दक्षिणी लौन में नए खेल के मैदान के झूले पर खेलते हुए, कभी ओवल औफिस में लुकाछिपी की तस्वीरें, जो नितांत अंतरंग क्षणों की निजी तस्वीरें थीं मगर उन को सार्वजनिक किया गया और इन तस्वीरों ने बराक ओबामा की एक बहुत सुंदर छवि गढ़ी.

बच्चों के जरिये जनता के बीच अपनी बेहतर राजनितिक छवि गढ़ने में कुछ भारतीय राजनेता भी कम नहीं हैं. लोकसभा चुनाव के बीच समाजवादी पार्टी सुप्रीमो अखिलेश यादव की बेटी अदिति यादव को मातापिता के साथ चुनाव प्रचार में भाग लेते देखा गया. प्यारी मोहक अदिति यादव ने मैनपुरी में अपनी मां डिंपल यादव के लिए चुनाव प्रचार किया. वह मां के ससंदीय क्षेत्र में घूमघूम कर सपा के लिए समर्थन जुटाती रहीं और फिर अपने पिता अखिलेश यादव के प्रचार के लिए कन्नौज पहुंचीं. बाप बेटी की जोड़ी ने जनता का मन मोह लिया. अदिति यादव लोगों के बीच जाजा कर 13 मई को साइकिल का बटन दबाने की अपील की. कई जगहों पर तो उसने जनसंपर्क और चौपाल लगा कर पिता के पक्ष में वोट मांगे.

चुनाव के दौरान कई नेताओं की पत्नियां और बच्चे उन के साथ दिखने लगते हैं ताकि वे आसानी से जनता के साथ कनेक्ट हो सकें और जनता के दिल में उन की छवि एक पारिवारिक और संवेदनशील व्यक्ति की बने.

Indian Law : पीएमएलए कानून का दुरुपयोग दहेज कानून की तरह – सुप्रीम कोर्ट

Indian Law : दहेज कानून का दुरुपयोग तो खैर पत्नियां करती हैं, जिस के कारण उन के पति और पति के नातेदार सालोंसाल जेल की सलाखों में कैद रहते हैं. मगर पीएमएलए कानून का दुरुपयोग खासकर सत्ताधारी पार्टी करती है ताकि अपने विरोधियों को अधिक से अधिक समय तक जेल में रख सके.

दहेज उत्पीड़न के मामलों में महिलाओं द्वारा बिना सबूत के ससुराल वालों को फंसाने की बढ़ती प्रवृत्ति पर देश के कई हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट चिंता व्यक्त करते आए हैं. सुप्रीम कोर्ट ने तो एक दशक पहले यहां तक कह दिया था कि 498ए की धाराओं में ससुरालियों के खिलाफ दर्ज कराये जा रहे 99 फीसदी मामले फर्जी होते हैं. पिछले दिनों पुणे में पत्नियों द्वारा दहेज प्रताड़ना और घरेलू हिंसा के फर्जी मामलों में फंसाए गए 75 हजार पतियों ने जुलूस निकाल कर अपनी वेदना सामने लाने की कोशिश की.

दहेज कानून का दुरुपयोग तो खैर पत्नियां करती हैं, जिस के कारण उन के पति और पति के नातेदार सालों साल जेल की सलाखों में कैद रहते हैं. केस लड़तेलड़ते उन की घर, व्यवसाय, नौकरी, धन, इज्जत सब नष्ट हो जाता है. सुप्रीम कोर्ट के बार बार कहने के बाद बड़ी मुश्किल से इस कानून के दुरुपयोग में कुछ हद तक कमी आई है. अब अगर कोई महिला पति और ससुरालियों पर दहेज उत्पीड़न या घरेलू हिंसा का आरोप लगाती है तो 498ए की धाराओं में केस दर्ज करने से पहले डिप्टी एसपी रैंक के अधिकारी को इसकी पूरी पड़ताल करनी पड़ती है कि आरोपों में कुछ सच्चाई और सुबूत हैं अथवा नहीं. मगर अब सुप्रीम कोर्ट एक और कानून के दुरुपयोग को ले कर परेशान है. यह कानून है मनी लौन्ड्रिंग का, जिस में सत्ताधारी पार्टी प्रवर्तन निदेशालय जैसी केंद्रीय जांच एजेंसी के माध्यम से अपने राजनीतिक विरोधियों को डराने और उन्हें जेल में डालने के लिए इस कानून का जबरदस्त दुरुपयोग करती है.

हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने मनी लौन्ड्रिंग के एक मामले की सुनवाई करते हुए कहा कि पीएमएलए (धन शोधन निवारण अधिनियम) का बारबार लोगों को जेल में रखने के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है. प्रवर्तन निदेशालय की खिंचाई करते हुए पीठ ने कहा कि इस कानून का बिलकुल ‘दहेज कानून की तरह दुरुपयोग हो रहा है.’

सुप्रीम कोर्ट में अभय एस ओका और औगस्टीन जौर्ज मसीह की दो जजों की पीठ ने छत्तीसगढ़ के पूर्व आबकारी अधिकारी अरुण पति त्रिपाठी को मनी लौन्ड्रिंग के मामले में जमानत देते हुए कहा कि पीएमएलए के प्रावधानों का इस्तेमाल किसी को हमेशा के लिए जेल में रखने के लिए नहीं किया जा सकता है.

उल्लेखनीय है कि त्रिपाठी पर छत्तीसगढ़ शराब घोटाला मामले में धन शोधन का आरोप लगाया गया था और उन्हें 2023 में गिरफ्तार किया गया था. ईडी जांच के नाम पर लगातार उन की जमानत का विरोध कर रहा था मगर केस में कोई प्रगति नहीं थी. हालांकि अब जबकि सुप्रीम कोर्ट ने त्रिपाठी को जमानत दे दी है फिर भी उन्हें रिहा नहीं किया जा सकेगा क्योंकि उन्हें आर्थिक अपराध शाखा द्वारा दर्ज एक अन्य मामले का सामना भी करना पड़ रहा है.

कानून के दुरुपयोग को ले कर सुप्रीम कोर्ट ने केंद्रीय एजेंसियों की आलोचना की है और राजनीतिक नेताओं समेत आरोपियों को बिना सबूत के जेल में रखने के लिए उन की खिंचाई की है. सुप्रीम कोर्ट बारबार इस पर जोर देता रहा है कि ‘बेल नियम है, जेल अपवाद’. यह हाईकोर्ट से ले कर निचली अदालतों तक को यही संदेश देता रहा है कि बेवजह लम्बे समय तक आरोपी को जेल में रखने का कोई औचित्य नहीं है. यदि बाहर रह कर वह सबूतों और गवाहों से छेड़छाड़ नहीं करता तो उसे नियमानुसार जमानत दी जानी चाहिए. गौरतलब है कि भारत के पूर्व मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ भी बारबार जमानत की बात पर जोर देते थे.

न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ ने आबकारी नीति मामले में आम आदमी पार्टी के नेता संजय सिंह को भी जमानत देते हुए कहा था कि “कुछ भी बरामद नहीं हुआ है… ‘साउथ ग्रुप’ को शराब लाइसेंस आवंटित करने के लिए आप द्वारा कथित तौर पर रिश्वत के रूप में प्राप्त धन का कोई निशान नहीं है.”

गौरतलब है कि धन शोधन निवारण अधिनियम या पीएमएलए गैरजमानती है, क्योंकि अन्य कानूनों के विपरीत, इस के तहत आरोपी को यह साबित करना होता है कि वह दोषी नहीं है. किसी अभियुक्त को जमानत तभी मिलती है जब अदालत इस बात से संतुष्ट हो जाती है कि यह मानने के लिए उचित आधार मौजूद हैं कि वह अपराध का दोषी नहीं है, तथा जमानत पर रहते हुए उस के द्वारा कोई और अपराध करने की संभावना नहीं है.

अक्तूबर 2024 में अनिल टुटेजा की जमानत याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने प्रवर्तन निदेशालय को फटकार लगाई थी. कोर्ट ने जांच एजेंसी से कहा था कि अनुच्छेद 21 देश में सभी के लिए है और मनी लौन्ड्रिंग के मामलों में जिस तरह से लोगों को परेशान किया जा रहा है, वो ठीक नहीं है. किसी भी आरोपी के साथ उस के मौलिक अधिकारों का हनन नहीं होना चाहिए. जस्टिस अभय एस ओका और जस्टिस औगस्टीन जौर्ज मसीह की पीठ ने पूर्व आईएएस अधिकारी अनिल टुटेजा को जल्दबाजी में समन और गिरफ्तार करने पर नाराजगी जताई थी.

कोर्ट ने कहा था कि अनिल टुटेजा को जब ईडी ने बुलाया था तब वो भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो (एसीबी) के दफ्तर में पूछताछ के लिए मौजूद थे. ईडी ने उन्हें तुरंत पेश होने को कहा. जब टुटेजा तय समय पर हाजिर नहीं हुए तो ईडी ने कुछ घंटों बाद दूसरा समन भेज दिया. जब व्यक्ति पूछताछ के लिए एक एजेंसी के पास है तो वह तुरंत ईडी की समक्ष कैसे पहुंच सकता है? जाहिर है ईडी की मंशा उसे गिरफ्तार करने की ही थी.

पिछले साल आम आदमी पार्टी के संयोजक और दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की जमानत के मामले में सुनवाई करते हुए भी सुप्रीम कोर्ट की एक अन्य बेंच ने कानून के दुरुपयोग पर अहम टिप्पणी की थी. जस्टिस संजीव खन्ना और जस्टिस दीपांकर दत्ता की पीठ ने कहा था कि हम ने गिरफ्तारी की ज़रूरत और अनिवार्यता का अतिरिक्त आधार उठाया है. जस्टिस खन्ना ने कहा था, ‘गिरफ्तारी की नीति क्या है, इस का आधार क्या है, हम ने उल्लेख किया है.

सुप्रीम कोर्ट ने कहा, ‘गिरफ़्तारी, आखिरकार, मनमाने ढंग से और अधिकारियों की मर्जी और मिजाज पर नहीं की जा सकती है. इसे कानून द्वारा निर्धारित मापदंडों को पूरा करते हुए वैध ‘विश्वास करने के कारणों’ के आधार पर किया जाना चाहिए.’

पीएमएलए की धारा 19, जो गिरफ्तारी से संबंधित है, कहती है कि ईडी अधिकारी किसी व्यक्ति को गिरफ्तार कर सकता है, यदि उस के पास मौजूद सामग्री के आधार पर उस के पास यह विश्वास करने का कारण है कि कोई व्यक्ति इस अधिनियम के तहत दंडनीय अपराध का दोषी है. न्यायालय ने इस बात पर जोर दिया कि चूंकि पीएमएलए के तहत जमानत के लिए मानदंड सख़्त हैं, इसलिए गिरफ्तारी का अधिकार भी सख़्त और नियंत्रित होना चाहिए.

अदालत ने साफ कहा कि ईडी को यदि पीएमएलए के तहत गिरफ्तारी करनी हो तो उसे विशेष अदालत से संपर्क करना होगा और उसको बताना होगा कि वह आरोपी को हिरासत में लेना चाहती है. यानी ईडी को गिरफ्तारी से पहले अदालत की मंजूरी लेनी होगी.

पिछले साल अगस्त में दिल्ली के पूर्व उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया को भी जमानत देते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि अगर आरोपी ने लंबे समय तक जेल में सजा काटी है तो जमानत देने की सख्त ‘दोहरी शर्तों’ में ढील दी जा सकती है. त्वरित सुनवाई के उन के अधिकार पर विचार करते हुए अदालत ने कहा था कि भविष्य में मुकदमे के पूरा होने की दूरदूर तक कोई संभावना नहीं है, इसलिए जमानत दी जाती है.

दरअसल सीबीआई हो या ईडी, दोनों ही केंद्रीय एजेंसियां केंद्र सरकार के हाथ का खिलौना हैं. सीबीआई को तो सुप्रीम कोर्ट सरकार का तोता तक कह चुका है. इन दोनों ही एजेंसियों का इस्तेमाल केंद्र सरकार चुनावों के वक्त सब से ज्यादा करती है और विरोधी पार्टियों के नेताओं को किसी न किसी केस में उठा कर जेल भिजवा देती है ताकि वह अपनी पार्टी के चुनाव प्रचार से दूर हो जाए, उस की छवि वोटरों के आगे बिगड़ जाए और उस की पार्टी का मनोबल टूट जाए.

याद होगा उत्तर प्रदेश में पिछले विधानसभा चुनाव के वक़्त कैसे कांग्रेस नेता प्रियंका वाड्रा गांधी के पति रोबर्ट वाड्रा को ईडी अधिकारी पूछताछ के लिए बार बार तलब कर रहे थे. प्रियंका वाड्रा गांधी सुबह पति को ईडी दफ्तर छोड़ने के बाद चुनाव प्रचार के लिए निकलती थीं. यह नजारा अनेकों बार देखा गया. प्रियंका को चुनाव प्रचार से दूर रखने के लिए सारा ड्रामा चल रहा था. मगर प्रियंका ने भी हार नहीं मानी. चुनाव खत्म होते ही रोबर्ट वाड्रा को ईडी द्वारा बुलाना भी बंद हो गया.

ऐसा ही कुछ दिल्ली की पिछली आम आदमी पार्टी की सरकार को हटाने और मिटाने की साजिश के तहत बीते कई सालों से हो रहा है. ईडी और सीबीआई ने आम आदमी पार्टी के सभी पहली पंक्ति के नेताओं को लम्बेलम्बे समय तक जेल की सलाखों में रखने में कामयाबी पाई और अंततः भाजपा ने आम आदमी पार्टी को सत्ता से हटाने और उस के नेताओं का मनोबल तोड़ने में सफलता हासिल कर ही ली.

सर्वोच्च न्यायालय वर्तमान में कई याचिकाओं पर सुनवाई कर रहा है, जिन में आरोप लगाया गया है कि धन शोधन निवारण अधिनियम, 2002 (पीएमएलए) का राजनीतिक लाभ के लिए दुरुपयोग किया जा रहा है.

पीएमएलए क्या है

पीएमएलए मनी लौन्ड्रिंग को रोकने और उससे प्राप्त संपत्ति से निपटने के लिए कानून है. मनी लौन्ड्रिंग का मतलब है हथियारों की तस्करी और ड्रग्स के व्यापार जैसे गैरकानूनी तरीकों से प्राप्त धन को इस तरह से परिवर्तित करना कि ऐसा लगे कि यह वैध स्रोतों से प्राप्त किया गया है. रियल एस्टेट में निवेश, विदेशी बैंकों में लेन-देन आदि मनी लौन्ड्रिंग के कुछ तरीके हैं.

पीएमएलए के तहत ‘मनी लौन्ड्रिंग’ का आरोप किस पर लगाया जा सकता है?

कोई भी व्यक्ति जो मनी लौन्ड्रिंग की प्रक्रिया में सीधे तौर पर शामिल है या किसी भी चरण में सहायता करता है, वह अधिनियम के तहत उत्तरदाई है. वह व्यक्ति संपत्ति को छिपाने, रखने, खरीदने, इस्तेमाल करने, पेश करने या दावा करने में शामिल हो सकता है.

पीएमएलए किन अपराधों को कवर करता है?

कई अपराधों को पीएमएलए के दायरे में लाया गया है. पीएमएलए की अनुसूची में उन अपराधों की सूची दी गई है जो मनी लौन्ड्रिंग की प्रक्रिया में हो सकते हैं. इस में कर चोरी, आईपीसी अपराध जैसे आपराधिक साजिश, भारत सरकार के खिलाफ युद्ध छेड़ना या छेड़ने का प्रयास करना आदि शामिल हैं, साथ ही नारकोटिक ड्रग्स और साइकोट्रोपिक पदार्थ अधिनियम 1985, विस्फोटक पदार्थ अधिनियम 1908, विस्फोटक पदार्थ अधिनियम 1908 आदि जैसे विशिष्ट अधिनियमों के तहत अपराध भी शामिल हैं. हालांकि, पीएमएलए के तहत अपराध माने जाने के लिए, कथित अपराध के साथ ‘पूर्वानुमानित अपराध’ भी होना चाहिए.

‘पूर्ववर्ती अपराध’ वह अपराध है जो किसी बड़े अपराध का हिस्सा बनता है. कुछ उदाहरणों में नशीली दवाओं की तस्करी, मानव तस्करी, कर चोरी, भ्रष्टाचार, जालसाजी, हत्या, तस्करी, अवैध वन्यजीव तस्करी आदि शामिल हैं. ऐसी अवैध गतिविधियों से प्राप्त ‘मौद्रिक आय’ का उपयोग संपत्ति खरीदने या निवेश करने के लिए किया जा सकता है. इस तरह से अर्जित संपत्ति या निवेश को ‘वैध या बेदाग संपत्ति’ के रूप में पेश किया जा सकता है. यह मनी लौन्ड्रिंग है.

पीएमएलए अपराधों की जांच के लिए कौन से प्राधिकारी जिम्मेदार है?

वित्तीय खुफिया इकाई केंद्रीय राष्ट्रीय एजेंसी है जो संदिग्ध वित्तीय लेनदेन से संबंधित जानकारी प्राप्त करने, प्रसंस्करण, विश्लेषण और प्रसार के लिए जिम्मेदार है. वे आर्थिक अपराधों पर अंकुश लगाने के लिए राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर विभिन्न जांच एजेंसियों का समन्वय करते हैं. यह वित्त मंत्री की अध्यक्षता वाली आर्थिक खुफिया परिषद को रिपोर्ट करता है.

प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) विशेष रूप से पीएमएलए अपराधों की जांच करता है. वे अन्य अनुसूचित अपराधों की आगे की जांच के लिए सीबीआई, सीमा शुल्क विभाग आदि जैसी अन्य एजेंसियों से भी सहायता ले सकते हैं.

जब किसी पर धनशोधन का आरोप लगाया जाता है तो क्या होता है?

मनी लौन्ड्रिंग का मामला शुरू होने पर ईडी प्रवर्तन मामला सूचना रिपोर्ट (ई.सी.आई.आर.) दर्ज करता है. यह आपराधिक मामलों में पुलिस स्टेशन में दर्ज की जाने वाली प्राथमिकी रिपोर्ट के समान है. ईडी अपनी जांच पूरी करने के बाद, विशेष रूप से नामित ‘पीएमएलए अदालतों’ को रिपोर्ट सौंपता है. वे शामिल व्यक्ति/व्यक्तियों की संपत्ति जब्त करने या बैंक खातों को फ्रीज करने का आदेश दे सकते हैं. इस के अलावा, वे मनी लौन्ड्रिंग की प्रक्रिया में प्राप्त ‘दागी संपत्ति’ की कुर्की का आदेश भी दे सकते हैं. यदि न्यायालय आरोपी को धन शोधन का दोषी पाता है तो वह उसे 3 से 7 वर्ष तक के कठोर कारावास और जुरमाने से दंडित कर सकता है.

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें