Muslim Marriage : 20 साल पहले तक मुसलिम समाज में आपसी शादियों का प्रचलन जोरों पर था. गरीब हो या अमीर, मुसलमानों के बीच खून के रिश्तों में निकाह हो जाना आम बात थी. मगर अब यह चलन कम होता जा रहा है. मुसलिम शादियों में और भी कई तरह की अड़चनें आने लगी हैं, जानें.

जावेद अंसारी 29 साल के ग्रेजुएट युवा हैं. वे 2 सालों से अलगअलग मैट्रिमोनियल वैबसाइटों पर अपने लिए लड़की ढूंढ रहे हैं लेकिन उन्हें मनमाफिक लड़की अभी तक नहीं मिली. मोतिहारी के शमीम अहमद की कहानी भी कुछ ऐसी ही है. घर के हालात खराब थे, इसलिए 18 साल की उम्र में वे गुजरात चले गए. गुजरात में रह कर शमीम ने 14 वर्षों तक लगातार मेहनत की और अपनी 4 बहनों की शादियां कीं. अब 32 वर्ष की उम्र होने पर जब खुद के लिए लड़की ढूंढ रहे हैं तो उन्हें अपने समाज में कोई लड़की नहीं मिल रही. आज मुसलिम समाज के ज्यादातर लड़कों की स्थिति जावेद और शमीम जैसी ही है.

सवाल यह है कि मुसलिम समाज में लड़कों के लिए पसंद की लड़की का अभाव अचानक से क्यों पैदा हुआ? क्या मुसलिम समाज की इस समस्या के लिए लिंगानुपात जिम्मेदार है? 2011 की जनगणना के अनुसार, मुसलिम समुदाय में प्रति 1,000 पुरुषों पर 951 महिलाएं हैं, जो राष्ट्रीय औसत (940) से भी अधिक है. इस का मतलब यह कि मुसलिम लड़कों की शादी में आने वाली अड़चन की वजह लिंगानुपात तो नहीं है. तो क्या वजह है कि मुसलिम लड़कों को शादी के लिए लड़कियां नहीं मिल रहीं? 30 से 35 साल की उम्र तक के मुसलिम लड़के कुंआरे क्यों बैठे हैं? क्या मुसलिम लड़कियों के सामने भी ऐसी परेशानियां हैं? आज हम इन्हीं सवालों का जवाब ढूंढने की कोशिश करेंगे.

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