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सुबह, दोपहर और शाम : भाग 2

काव्या मौका तलाशने लगी. समय शायद इस बार काव्या के पक्ष में ही चल रहा था. अगले ही महीने काव्या ने खुशखबरी दी कि घर में तीसरी पीढ़ी का आगमन होने वाला है. सास ने बलाएं लीं… भारी काम करने से मना किया… ससुर हर समय चहकने लगे… और अभय के तो मिजाज ही निराले लग रहे थे… पत्नी पर बादलों सा उमड़घुमड़ कर प्यार आने लगा… दोस्तों में उठनाबैठना कम हो गया… खिलौने से कमरे में जगह कम पड़ने लगी. मनुहार करकर के खिलानेपिलाने लगा… काव्या के पांव जमीन पर नहीं पड़ रहे थे… इस हंसीखुशी के बीच कहीं न कहीं साजिशों के बीज भी अंकुरण की जगह तलाश रहे थे.

8 महीने पूरे हुए. काव्या की गोद भराई की रस्म के बाद अब कल उसे अपने मायके जाना है. पूरी रात अभय की हिदायतों का लैक्चर जारी था- यह करना, यह मत करना… ऐसे बैठना… ऐसे सोना… अभय बोले जा रहा था. काव्या सुनने का दिखावा करती लेटी थी. दिमाग में तो अलग ही खिचड़ी पक रही थी.

गर्भ का समय पूरा हुआ और काव्या ने एक नन्हे फरिश्ते को जन्म दिया. दोनों परिवारों में खुशी की लहर दौड़ गई. टोकरे भरभर कर मिठाई और बधाइयों का आदानप्रदान हो रहा था. पोते को देखने के लिए दादादादी सिर के बल चले आए. अभय के पांव भी कहां रुकने वाले थे. बिना किसी की परवाह किए सीधे काव्या के पास पहुंचा.

‘‘बेसब्रा कहीं का,’’ कह कर मां मुसकराईं, लेकिन देखा जाए तो खुद उन्हें भी कहां सब्र था. खैर, अभय ने जैसे ही अपने अंश को अंक में भरने की चेष्टा की, काव्या ने उसे अपने कलेजे से लगा लिया. अभय ने अपनी प्रश्नवाचक दृष्टि उस पर गड़ा दी. ‘‘इतनी आसानी से नहीं सैयांजी… पहले एक वादा करना होगा…’’  काव्या इठलाई.

‘‘इस अनमोल रत्न के बदले जो चाहे मांग ले रानी…’’ अभय भी नौटंकी करने में कहां कम था.‘‘झूठ बोले कौआ काटे… देखो, सच्चे मर्द हो तो झूठे वादे मत करना…’’ काव्या ने उस के पौरुष को ललकारा.‘‘प्राण जाए पर वचन न जाए…’’ अभय ने भी चुनौती स्वीकार कर ली और इस के साथ ही काव्या ने अर्थपूर्ण ढंग से मुसकराते हुए नन्हा फरिश्ता पिता की गोद में डाल दिया.

अभय तो उसे छूते ही निहाल हो गया. कभी उस का गाल अपने गाल से सटाता… कभी उस की नन्हीनन्ही उंगलियों में अपनी उंगलियां फंसाता… ‘‘मोगंबो खुश हुआ… कहो क्या मांगती हो?’’ अभय ने बच्चे के चेहरे को निहारते हुए पूछा. ‘‘एक अलग दुनिया… जिस में सिर्फ हम 3 ही हों…’’ काव्या ने सपाट स्वर में कहा.

अभय के हाथपांव कांप गए. क्षणभर में ही दशरथ और पुत्र बनवास का सा एहसास हो गया. बच्चे पर पकड़ ढीली पड़ने ही वाली थी कि मां ने आ कर संभाल लिया. शायद उन्होंने काव्या की बात सुन भी ली थी. अभय आंखें चुराता हुआ बाहर निकल गया.

लुटे मुसाफिर की तरह तीनों गए. बच्चे के जन्म की खुशी फीकी पड़ गई. महीनाभर होने को आया. पतिपत्नी की बातचीत में ठंडापन आ गया. न चुहल… न मानमनौअल..न रूठनामनाना… न शिकवाशिकायत… सबकुछ मशीनी… मां अलग परेशान… अभय अलग परेशान… कहीं किसी मध्यमार्ग की गुंजाइश ही नजर नहीं आ रही थी.

अभय की ससुराल से बच्चे के नामकरण का न्योता आया… सब गए भी… लेकिन बुझेबुझे से… नाम रखा गया ‘विभू.’ ‘‘बहू, अभय ने ट्रांसफर ले लिया है… बच्चे को ले कर अब तुम्हें वहीं उस के साथ जाना है…’’ रवानगी से पहले सास के मुंह से झरते अमृत वचनों पर सहसा काव्या विश्वास नहीं कर पाई. उस ने पति की तरफ देखा जो मुंह लटकाए खड़ा था.

अभी तो उदास हो रहे हो सैयांजी… जब खुली हवा में पंख पसारोगे तब पता चलेगा कि आसमान कितना विशाल है…’’ काव्या ने पति की तरफ भरोसा दिलाने की गरज से देखा.3 महीने के विभू को ले कर काव्या ने अपने सपनों की दुनिया में पहला पांव रखा. नहींनहीं यह जमीन नहीं थी यह तो आसमान था… काव्या की ख्वाहिशों को पंख उग आए थे. ‘हम दो हमारा एक’ कल्पना करती काव्या खुशी से दोहरी हुई जा रही थी. उस ने पर्स एक तरफ पटका… विभू को पालने में लिटाया और पूरे घर में घूमघूम कर ‘स्वीट होम’ वाली फीलिंग लेने लगी.

‘‘एक तरह से देखा जाए तो यह मेरा गृहप्रवेश ही है… क्यों न आज कुछ खास बनाया जाए…’’ अपनी जीत की खुशी मनाते हुए काव्या ने रसोई का रुख किया. सामान खंगाला तो कुछ विशेष हाथ नहीं लगा.‘‘छड़ों की रसोई ऐसी ही होती है,’’ काव्या मुसकरा दी. सूजी का हलवा बनाने के लिए कड़ाही चढ़ाई ही थी कि विभू रोने लगा. अभय बाथरूम में था. काव्या बच्चे को देखने की जल्दी में रसोई से बाहर लपकी तो गैस बंद करना भूल गई और जब वापस आई तो रसोई की हालत देख कर सिर पीट लिया. कड़ाही के घी ने आग पकड़ ली थी. वह तो अभय ने तुरंत सिलैंडर बंद कर के कड़ाही परे फेंक दी वरना कुछ भी अनर्थ हो सकता था. खैर, किसी तरह कच्चापक्का पका कर अभय को औफिस रवाना किया.

दोपहर के 2 बजने को आए, लेकिन अभी तक काव्या को नहाने तक का समय नहीं मिला. जैसे ही विभू की आंख लगती और काव्या बाथरूम की तरफ जाने को होती, पता नहीं कैसे शैतान को पता चल जाता और वह फिर कुनमुनाने लगता.‘‘वहां तो कोई न कोई होता इसे देखने के लिए…’’ काव्या के जेहन में सारा की छवि घूम गई.

‘गुलाब चाहिए तो कांटे भी स्वीकार करने होंगे काव्या रानी,’ काव्या ने अपने निर्णय को जस्टीफाई किया. इतनी जल्दी वह पराजय स्वीकार कैसे कर लेती. फिर उस ने एक जुगाड़ लगाया, विभू का पालना बाथरूम के दरवाजे से सटा कर रख दिया और आननफानन 2 कप शरीर पर डाल कर नहाने की औपचारिकता पूरी की. फटाफट गाउन पहना और 2-4 कौर निगले… तब तक विभू महाराज फिर से कुलबुलाने लगे… काव्या उसे ले कर बिस्तर पर लेट गई. दिन की पहली सीढ़ी ही पार हुई है… पिक्चर अभी बाकी है मेरे दोस्त…

शाम को अभय लौटा तो काव्या तुड़ेमुड़े गाउन में अलसाई सी बैठी थी. विभू अभी भी उस की गोद में था. बच्चे को अभय के हाथों में थमा कर चाय बना लाई और पीतेपीते दिनभर का दुखड़ा रो दिया. अभय ने उस में कोई खास दिलचस्पी नहीं दिखाई.

सुबह, दोपहर और शाम : भाग 1

लेखिका- आशा शर्मा 

‘‘मैंपरेशान हो गई हूं इस रोजरोज की चिकचिक से… न मन का खा सकते और न ही पहन सकते… हर समय रोकटोक… आखिर कोई सहन करे भी तो कितना…’’ दोपहर के 2 बज रहे थे और आदत के अनुसार लंच कर के काव्या पलंग पर पसर गई. कमर सीधी करतेकरते ही बड़ी बहन नव्या को फोन लगाया और फिर दोनों बहनें शुरू हो गईं अपनाअपना ससुरालपुराण पढ़ने.

‘‘अरे, क्यों सहन करती है तू सास की ज्यादती? अभय से क्यों नहीं कहती? मैं तो तेरे जीजू से कोई बात नहीं छिपाती… हर रात सोने से पहले उन की मां का कच्चा चिट्ठा खोल कर रख देती हूं… जब तक वे मेरी हां में हां नहीं मिलाते, हाथ भी नहीं लगाने देती…’’  नव्या ने अपने अनुभव के सिक्के बांटे.

‘‘दीदी, अभय तो बिलकुल ममाज बौय हैं… अपनी मां के खिलाफ एक शब्द भी नहीं सुनते. उलटे मुझे ही एडजस्ट करने की नसीहत देने लगते हैं… सच दीदी, ससुराल के मामले में तुत बहुत खुशहाल निकलीं… जीजाजी तुम्हारी उंगलियों पर नाचते हैं… पता नहीं मेरे अच्छे दिन कब आएंगे…’’ काव्या ने एक गहरी सांस भरी.

‘‘वह तो है… अच्छा चल रखती हूं… तेरे जीजू का 2 बार फोन आ चुका है… मेरे बिना चैन नहीं उन्हें भी,’’ नव्या इतराई.‘‘चल ठीक है… थोड़ी देर में सास महारानीजी की चाय का समय हो जाएगा… मुझे तो दो घड़ी चैन की नींद भी नहीं मिलती…’’ अपने को कोसते हुए काव्या ने फोन काट दिया और फिर एसी की कूलिंग थोड़ी और बढ़ा कर चादर  ओढ़ कर सो गई.

काव्या की अभय से शादी को मात्र 3 वर्ष हुए हैं. अभय एक प्राइवेट फर्म में मैनेजर है. सैलरी ठीकठाक है. मांपापा के साथ रहने से मकान का किराया, पानीबिजली, राशन आदि का कोई खर्चा उसे जेब से नहीं देना पड़ता… जो भी पैसा खर्च होता है वह स्वयं और काव्या के निजी शौकों और जरूरतों पर ही होता है. शादी से पहले काव्या ने सपनों सी जिंदगी का कल्पना की थी, जिस में सिर्फ पति के साथ मौजमस्ती ही थी. उस के सपनों की दुनिया में सासससुर नामक खलनायक नहीं थे…

‘एक बंगला बने न्यारा…’ वाले अरमानों के साथ काव्या ने ससुराल की देहरी लांघी थी, लेकिन जब पता चला कि जनाब अभय को अकेले रह कर शादीशुदा जिंदगी के मजे लेने का कोई शौक नहीं है तो वह बुझ सी गई. जबतब अपनी मां के सामने अपना दुखड़ा रो कर मन हलका करने की कोशिश करती, लेकिन मां ने कभी उस की बातों को सीरियसली नहीं लिया और न ही कभी अलग गृहस्थी बसाने के उस के सपने को पोषित किया.

‘‘ससुराल गैंदे के फूल सा होता है… कोई पंखुड़ी छोटी तो कोई बड़ी… लेकिन जब सब मिल कर आपस में गुंध जाती हैं तो फूल की छवि देखने लायक होती है,’’ मां हमेशा उसे समझाती थीं. लेकिन काव्या के कानों पर जूं तक नहीं रेंगती थी. इसीलिए वह आजकल मां से बस नपीतुली बात ही करती है. हां, लेकिन बड़ी बहन से बिना नागा बात करती है और उस से ससुराल से अलग घर ले कर रहने से संबंधित सलाह भी मांगती रहती है.

यहां तक तो फिर भी सब ठीक था, लेकिन आग में घी डालने का काम किया सामने वाले घर में किराए पर रहने आए दंपती ने. ये नवल और रिया थे. नवल भी अभय की तरह एक प्राइवेट फर्म में जौब करता है, लेकिन रिया का ठसका तो देखो. कभी जींस.. कभी कैपरी… कभी शौर्ट्स तो कभी कोई और दिल जलाने वाली वैस्टर्न पोशाक… काव्या देखती तो कलेजे पर सांप लोट जाता… ऊपर से स्टाइलिश हैयर कट और मेकअप से पुता चेहरा. काव्या के दिलोदिमाग में हलचल मचाए रहता.

‘क्या जिंदगी है… इसे कहते हैं जिंदगी के असली मजे लूटना… मैं ने पता नहीं कौन सो बुरे कर्म किए थे… तभी तो ये बेडि़यां मेरे पांवों में डल गईं…’ काव्या सोचसोच कर दुबली होने लगी. पेट में पचने वाली तो बात थी ही नहीं… बहन को नमकमिर्च लगा कर बताया.

‘‘अरे तो बावल कुआं तेरे पास है और तू है कि प्यासी घूम रही है… रिया से दोस्ती गांठ और ले ले शाही जिंदगी जीने के…’’ नव्या ने हाथोंहाथ सलाह दे डाली.बस फिर क्या था. काव्या रिया से नजदीकियां बढ़ाने लगी. रिया तो खुद जैसे उसी की पहल का इंतजार कर रही थी. हायहैलो से शुरू हुई बातचीत धीरेधीरे अंतरंग होने लगी और जल्द ही दोनों घीखिचड़ी सी घुलमिल गईं. कभी रिया काव्या के पास तो कभी काव्या रिया के साथ…

‘‘देखो काव्या, पति नामक जीव को अपने इशारों पर नचाना हो तो लटकेझटके दिखाने ही होंगे… तुम सारा दिन सूटसाड़ी में लिपटी रहती हो… बेचारे अभय का भी मन करता होगा न तुम्हें मौडल सी सजीधजी देखने का… कभी कुछ बोल्ड पहनो… नया ट्राई करो… फिर देखो कैसे अभय तुम पर लट्टू हुआ जाता है…’’ रिया ने भी वही सलाह दे डाली जो नव्या दिया करती है.

‘‘क्या खाक बोल्ड पहनूं… अभय से पहले तो उस के मांपापा देखेंगे… फिर जो कुहराम मचेगा उस का पूरा महल्ला फ्री में मजा लेगा…’’ काव्या ने मुंह बनाया.‘‘फिर तो बन्नो एक ही उपाय है… कोपभवन… जैसे कैकेयी ने दशरथ से अपनी शर्तें मनवाई थीं वैसे ही तुम भी कोई नाजुक सा मौका तलाश करो… पहले ढील दो और फिर खींच लो डोरी… पतंग न कटे तो मेरा नाम बदल देना…’’  रिया ने मंथरा की भूमिका निभाई.

 

सुबह, दोपहर और शाम

फेस्टिवल स्पेशल: ऐसे बनाएं डौलर कबाब, भरवां त्रिकोण और चीज चिली कौर्नटोस्ट

फेस्टिवल के समय में अगर आप कुछ खास तरह की रेसिपी अपने घर पर ट्राई करना चाहती हैं तो नीचे दिए गए टिप्स को यूज कर सकती हैं.

  1. डौलर कबाब

डौलर कबाब वेज कबाब की ही तरह से होता है. इस को काले चने की जगह पर सफेद चने से तैयार किया जाता है.

सामग्री :

1/2 कप सफेद चना, 2 चम्मच चने की दाल भीगी हुई. पानी में भीगी हुई 2 ब्रैड स्लाइस, 1/2 कप मैदा, 1 इंच दालचीनी, 3-4 लौंग, 2 लहसुन बारीक कटे हुए, 1 छोटा टुकड़ा अदरक, नमक स्वादानुसार, 1 छोटा चम्मच काली मिर्च, तेल जरूरत के अनुसार, 1/4 कप दूध.

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विधि :

सब से पहले चने की दाल, चना, लौंग, काली मिर्च, अदरक, दालचीनी, लहसुन और 2 कप पानी डाल कर उबालें. जब यह ठंडा हो जाए तो इसे मिक्सी में पीस लें. इस के साथ ही ब्रैड भी पीस लें. एक कटोरे में 2 चम्मच दूध और उस में मैदा मिला कर गाढ़ा घोल तैयार कर लें. इस के बाद कबाब के मिश्रण से टिक्कियां बना लें. टिक्कियां सीधी न बना कर डिजाइनदार बनाएं. अब इन में दूध और मैदे के मिश्रण को हलका सा लगाएं और इन को तवे पर सेंकें. दोनों साइड ब्राउन होने तक हलका फ्राई करें. प्लेट में पुदीने की पत्तियां, हरी मिर्च, कटी प्याज, हरा धनिया और कटे टमाटर के साथ सजा कर सर्व करें.

2. भरवां त्रिकोण

सामग्री :

2-3 बेसन के लड्डू, 5-6 मोतीचूर के लड्डू, 1 बड़ा चम्मच बारीक पिसे मेवे, आवश्यकतानुसार देसी घी.

रोटी के लिए :

1 कटोरी मैदा, 1 कटोरी गेहूं का आटा, दूध गूंधने के लिए.

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विधि :

दोनों तरह के लड्डुओं को चूरा कर के मेवे मिला लें. दोनों आटे मिला कर दूध मिला कर नरम गूंध लें. लोइयां बना कर पतला बेलें और आयताकार लंबी पट्टियां काट लें. एक पट्टी पर लड्डू का भरावन रखें. दूसरी पट्टी से भरावन को ढक कर किनारे अच्छी तरह से दबा दें ताकि मिश्रण बाहर न निकले. सारी पट्टियां इसी प्रकार से बना लें. गरम तवे पर देसी घी लगाते हुए उन पट्टियों को सुनहरा सेंक लें. काट कर गरमागरम परोसें.

3. चीज चिली कौर्नटोस्ट

सामग्री :

चीज चिली कौर्नटोस्ट बनाने के लिए 10 ब्रैड, 200 ग्राम अमेरिकन बेबीकौर्न, 200 ग्राम अमूल चीज, 3 से 4 हरी मिर्चें और हरा धनिया बारीक कटा हुआ और नमक स्वादानुसार.

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विधि :

सब से पहले बेबीकौर्न और चीज को आपस में मिक्स कर के महीन पेस्ट सा बना लें. यह मक्खन जैसा बन जाएगा. हरा धनिया, मिर्च और नमक को भी मिक्स कर लें. अब 1-1 ब्रैड को फोल्ड कर के टोस्ट की तरह सेंक लें. टोस्ट के ऊपर कौर्न और चीज का तैयार पेस्ट ठीक से फैला दें. एकएक कर के ब्रैड को दोबारा से टोस्ट कर लें. तैयार कौर्न टोस्ट कटी हुई गाजर, खीरा, नीबू, टमाटर और शलगम से सजा कर प्लेट में रख कर सर्व करें. इस के साथ टोमैटो और चिली

Crime Story : लाल कंघी

सौजन्य- मनोहर कहानियां

सर्दी की रात थी. साढ़े 9 बजे लखनऊ के थाने में औसानगंज रोड पर एक लड़की की गोली मार कर हत्या किए जाने की सूचना मिली. पुलिस दल ने मौके पर पहुंच कर सुनसान हो चुके इलाके का मुआयना किया. फिर लाश की शिनाख्त में जुट गए. गोरीचिट्टी, इकहरे बदन की खूबसूरत नाकनक्श वाली करीब 25 वर्षीय युवती को किसी ने पीछे से गोली मारी थी.

जांच के दौरान मौके से एक लाल रंग की कंघी मिली. युवती के पास एक बैग भी था. युवती के बैग से एक मोबाइल फोन मिला. उसी से उस के घर का पता चला. उस के घर सूचना दे दी गई. वह देवयानी थी. इसी मोहल्ले की रहने वाली. उस की मौत घटनास्थल पर ही हो चुकी थी, फिर भी उसे डाक्टर की पुष्टि के लिए अस्पताल भेज दिया गया. वहीं से लाश को पोस्टमार्टम के लिए भी भेजा गया, ताकि कुछ और जानकारियां मिल सकें.

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सूचना पा कर मृतका की मां भागीभागी अस्पताल आईं. उन्होंने बताया कि उस के पति की हाल में ही हार्ट की बाइपास सर्जरी हुई थी. परिवार के लोग पहले से ही परेशान चल रहे थे. उस पर ये हादसा. 2 छोटे भाईबहनों और पूरे परिवार के देखभाल की जिम्मेदारी अकेली देवयानी पर ही थी. उस की मां ने बताया कि औफिस के काम की वजह से वह घर अकसर लेट आती थी. पुलिस ने देवयानी की मां से उस के औफिस का पता ले कर देवयानी के बारे में कुछ और सवाल पूछे. किसी पर शक, उस के प्रेम प्रसंग, किसी से दोस्ती या दुश्मनी, चालचलन, फेसबुक फ्रैंड आदि के बारे में सवाल किए गए.

कई सवालों पर देवयानी की मां नाराज हो गई. उस ने सख्ती से बताया कि उन की बेटी के चालचलन पर किसी भी तरह का शक नहीं किया जा सकता. पुलिस ने देवयानी की मां की भावनाओं की कद्र करते हुए जांच आगे बढ़ाई. आसपास के सीसीटीवी कैमरे खंगाले गए, हालांकि वे खराब थे. कोई सुराग हाथ नहीं लगा. अज्ञात के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज कर जांच के लिए अगले ही रोज पुलिस देवयानी के औफिस पहुंच गई. औफिस में जिस ने भी देवयानी की आकस्मिक मौत की खबर सुनी, सन्न रह गया. वहीं सुपरवाइजर से मालूम हुआ कि मौत के दिन देवयानी समय पर औफिस से निकली थी. इस की पुष्टि अटेंडेंस की बायोमैट्रिक जांच से भी हो गई.

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इस आधार पर उस की मां का यह कहना गलत हो गया कि वह उस रोज काम निपटा कर देर से लौटती थी.
इसी बीच पुलिस को कमल नामक युवक के बारे में जानकारी मिली. उस वक्त कमल दिल्ली में था. बुलाने पर उस के 2 दिन बाद थाने आते ही पुलिस ने उस से सीधा सवाल दागा, ‘‘तुम देवयानी को कब से जानते हो?’’ ‘‘जी, पिछले एक साल से,’’ कमल डरते हुए बोला. ‘‘तुम्हारा उस के साथ क्या रिश्ता था?’’ पुलिस ने अगला सवाल किया. ‘‘सर, हम दोस्त थे,’’ कमल बोला. ‘‘सिर्फ दोस्त या कुछ और भी..?’’
यह सुन कर कमल थोड़ा सहमा. फिर झिझकते हुए पूछा, ‘‘जी, मैं कुछ समझा नहीं.’’

‘‘साफसाफ बताओ, वरना ठीक नहीं होगा.’’ पुलिसिया घुड़की से कमल कुछ और सहम गया.
‘‘मुझे पता है मर्डर के दिन तुम्हारी उस से एक बार बात हुई थी. झूठ नहीं बोलना, क्या तुम्हारे उस के साथ जिस्मानी संबंध थे?’’ पुलिस ने पूछा. ‘‘यह क्या कह रहे हैं सर! बिना शादी के यह कैसे? हां, उस ने मुझ से एक बार बात जरूर की थी.’’ ‘‘क्या बात हुई थी?’’‘‘वह नौकरी से खुश नहीं थी. कहती थी वहां का माहौल ठीक नहीं है. कर्मचारी ठीक नहीं हैं.’’ कमल ने बताया.पुलिस ने उस से और अधिक कुछ नहीं पूछा. एक हिदायत के साथ जाने दिया कि देवयानी के बारे में जो भी जानकारी मिले, तुरंत हमें बताए.

जांच अधिकारी ने एक बार फिर देवयानी की मां से पूछताछ शुरू की. उस से सवाल किया, ‘‘आप ने बताया था कि देवयानी के कोई बौयफ्रैंड नहीं है, तब कमल कहां से आ टपका? कुछ और बात जानती हैं तो बताइए, वरना हत्यारा नहीं पकड़ा जाएगा.’’ देवयानी की मां अब यह झेंपती हुई बोली, ‘‘मुझे सिर्फ इतना ही पता था कि उस रोज वह देर से घर आएगी.’’

‘‘देवयानी की और भी किसी से दोस्ती थी?कोई और बौयफ्रैंड भी था?’’
यह सुन कर देवयानी की मां बिफर पड़ी, ‘‘आप ने समझ क्या रखा है मेरी बेटी को? बदचलन बनाने पर तुले हुए हैं?’’इस तरह की कुछ और पूछताछ महज बहस बन कर रह गई. कोई नतीजा नहीं निकला.
पुलिस यह मान कर चल रही थी कि देवयानी घर की एकमात्र कमाऊ सदस्या होने का फायदा भी जरूर उठाती होगी. उस ने परिवार के लोगों की नजरें बचा कर जरूर किसी के साथ गहरे संबंध बना रखे होंगे.
खैर, कुछ दिनों में ही पोस्टमार्टम रिपोर्ट भी आ गई. उस से कुछ सवालों के जवाब मिल गए. इस के बाद पुलिस को जांच में फ्रैंडशिप और लव अफेयर से ले कर सैक्स रिलेशन तक का खुलासा हो गया.

रिपोर्ट के अनुसार, उसे गोली तमंचे से मारी गई थी और वह गर्भवती भी थी. चौंकाने वाली इस जानकारी के आधार पर पुलिस अब सीधे हत्यारे तक पहुंचने की कोशिश में जुट गई. सादे कपड़ों में कुछ पुलिसकर्मियों को देवयानी के घर के आसपास लगा दिया गया. जांच की सुई एक बार फिर कमल की ओर घूम गई. हालांकि उस से पहले पुलिस उस के खिलाफ कुछ सबूत जुटाना चाहती थी. एक हफ्ते तक पुलिस इधरउधर हाथ मारती रही, परंतु कोई सुराग हाथ नहीं लगा. सिर्फ इतना पता चल पाया कि देवयानी का औफिस के किसी पूर्व कर्मचारी विशाल के साथ अफेयर था. वह विवाहित था. उम्र भी उस से 10 साल अधिक 35 के करीब थी. यह जानकारी पुलिस के लिए अहम थी.

इस दिशा में जांच से पता चला कि विशाल इन दिनों बाराबंकी स्थित एक कंपनी में नौकरी कर रहा है. बाराबंकी लखनऊ के करीब होने के कारण विशाल का देवयानी से मिलनाजुलना आसानी से संभव था.
विशाल को थाने बुला कर पूछताछ की गई. उस ने देवयानी के साथ काम करने की बात स्वीकार ली. किंतु उस की हत्या की सूचना से एकदम से चौंक गया. सख्ती से पूछताछ के बावजूद वह बहुत ज्यादा जानकारी नहीं दे पाया. उस ने बताया कि उसे नौकरी छोड़े 6 महीने बीत गए हैं. इस बीच देवयानी के साथ क्या हुआ, उसे कुछ भी नहीं मालूम.

बातचीत के सिलसिले में पुलिस ने विशाल का मोबाइल फोन ले लिया. उस की गैलरी देखी. उस में विशाल और देवयानी के अंतरंग संबंध की एक तसवीर दिख गई. मौल में ली गई एक सेल्फी में देवयानी के साथ एक और महिला भी थी. विशाल से पूछने पर उस ने उसे अपनी पत्नी बताया. विशाल को कुरेदने के लिए ये तसवीरें काफी थीं. पुलिस ने विशाल पर सख्ती दिखाते हुए कहा, ‘‘देवयानी गर्भ से थी. तुम ने ही उस की जिंदगी बरबाद की और उस की हत्या भी कर डाली…’’ यह सुनते ही विशाल के चेहरे का रंग फीका पड़ गया. किंतु बारबार कहता रहा कि ऐसी घिनौनी हरकत वह नहीं कर सकता. उस का देवयानी के साथ पारिवारिक संबंध थे. पत्नी भी देवयानी की अच्छी सहेली थी.

इस पर जांच अधिकारी ने विशाल को देवयानी के बारे में वे सारी बातें बताने को कहा, जो अभी तक छिपाए हुए था. सर्विलांस से पुलिस को विशाल और देवयानी की मां के बीच फोन पर हुई बातचीत की जानकारी मिल चुकी थी. अब विशाल के साथसाथ देवयानी की मां से भी एक ही लाइन में पूछताछ होने लगी. देवयानी की मां और विशाल दोनों ने इस की पुष्टि कर दी.

देवयानी की मां ने जो बताया, वह भी कुछ कम राज की बात नहीं थी. उन्होंने कहा कि विशाल के साथ उस के पारिवारिक संबंध थे. वह कई बार अपनी पत्नी के साथ उस के घर आ चुका था. यहां तक कि विशाल की बहन की शादी में वह सपरिवार शामिल भी हो चुकी थी. पूछताछ में ही देवयानी की मां ने कह डाला कि उस की मौत के 2 दिन बाद भी विशाल से बात हुई थी. यह सुन कर जांच अधिकारी चौंक पड़े, क्योंकि विशाल खुद को देवयानी की मौत से अनजान बता चुका था.

पूछताछ में देवयानी की मां ने विशाल से बातचीत के मुद्दे के बारे में बताया कि उन्होंने उस से कुछ रुपए की मदद मांगी थी. उस के घर की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं थी. पहले भी विशाल उस के पति की बाईपास सर्जरी के लिए 3 लाख रुपए दे चुका था. फिर भी उसी दिन विशाल ने एक बार फिर 50 हजार रुपए ट्रांसफर कर दिए थे. जांच अधिकारी सोच में पड़ गए कि देवयानी की मौत के बारे में जानने के बावजूद उस ने पैसे क्यों दिए? आखिर उस की मदद के पीछे क्या राज हो सकता है? इन्हीं सवालों के जवाब जानने के लिए विशाल को थाने बुला कर फिर से पूछताछ की गई.

जांच अधिकारी ने डांटते हुए उस से पूछा, ‘‘तुम ने देवयानी की मौत के बाद उस की मां से फोन पर बातचीत और उसी दिन पैसे ट्रांसफर की बात क्यों छिपाई, जबकि मैं ने सारी बातें तुम से बताने को कहा था. पैसा देने के पीछे तुम्हारा क्या मकसद था?’’ ‘‘हांहां, कुछ बातें मैं ने नहीं बताईं. बताना जरूरी नहीं समझा… देवयानी की मौत के बाद भी मैं ने उस की मां को पैसे की मदद की, क्योंकि वह मुसीबत में थी.’’ विशाल ने बौखलाहट के साथ जवाब दिया. पुलिस समझ चुकी थी कि उस के पास कोई ठोस जवाब नहीं है. उन्होंने डपटते हुए पूछा, ‘‘सचसच बताओ, पूरा माजरा क्या है?’’

जवाब में उस ने चुप्पी साध ली. इसी बीच जांच अधिकारी ने अपनी जेब से एक लाल कंघी निकाली. उसे देखते ही विशाल तपाक से बोल उठा, ‘‘अरे, यह तो मेरी कंघी है, आप को कहां मिली?’’
‘‘देवयानी की लाश के पास से.’’ यह सुनना था कि विशाल के चेहरे का रंग फीका पड़ गया. उस के बाद विशाल खुद को काबू में नहीं रख पाया. उस ने जो कुछ बताया उस से न केवल हत्या का राज खुल गया, बल्कि उस के पीछे के कारणों में अनैतिक प्रेम, अवैध संबंध और ब्लैकमेल भी उजागर हो गया. विशाल ने देवयानी के साथ संबंधों का खुलासा कुछ इस प्रकार किया—

देवयानी पहली बार औफिस में काम करने आई थी. उसे देखते ही मैं उस के रूपरंग और मदमस्त यौवन का दीवाना बन गया था. वह बहुत जल्द मेरे जाल में फंस गई थी, क्योंकि उसे काम सिखाना मेरे ही जिम्मे था. बहुत जल्द ही वह मेरे काफी करीब आ गई थी. हम ने सीमा रेखा लांघ ली थी. उस पर परदा डालने के लिए मैं ने अपनी बीवी से उस की दोस्ती करवा दी. इस तरह सब की नजरों में देवयानी के साथ मेरा पारिवारिक संबंध था. बीवी को भी मेरे और देवयानी के साथ गहरे संबंधों की भनक नहीं थी.

कुछ दिनों बाद मैं बाराबंकी चला आया, लेकिन देवयानी से मिलनाजुलना जारी रहा. संयोग से वहां भी मेरे एक महिला से संबंध बन गए. इस की जानकारी देवयानी को हो गई. इस पर उस ने जबरदस्त आपत्ति की. एक बार तो बाराबंकी आ कर उस ने मुझ से खूब झगड़ा किया. तभी मालूम हुआ कि वह गर्भ से है.
उस ने मुझ से शादी की जिद भी की. जब मैं ने इनकार किया, तब उस ने हमारी अंतरंग तसवीरें और बातचीत के औडियो जगजाहिर करने की धमकी दी. मैं इसी डर से उस का मुंह बंद रखने के लिए उस की आर्थिक मदद करता रहा. पहले उस के पिता के इलाज के लिए पैसे दिए. इस बीच उस पर गर्भ गिराने के लिए दबाव भी डाला, लेकिन वह नहीं मानी.

उस ने मेरी बीवी को सारी बात बता दी. तमाम तसवीरें दिखा दीं. नाराज बीवी ने मुझ से डाइवोर्स की मांग कर दी. बीवी की डाइवोर्स की बात पर मैं ने एक बार फिर देवयानी को गर्भ गिराने और संबंध हमेशा के लिए खत्म करने की मिन्नत की, लेकिन वह शादी की रट लगाए रही. अंतत: मैं ने उसे हमेशा के लिए खत्म करने का निर्णय ले लिया.

घटना के बारे में विशाल ने बताया कि मैं ने उसे एक रेस्टोरेंट में उसे बुलाया था. उस ने समझा कि शायद मैं उस की बात मानने के लिए तैयार हो गया हूं. इसलिए वह रेस्टोरेंट में पहुंच गई. मैं ने उसे एक बार फिर समझाने की कोशिश की कि वह गर्भ गिरा दे. इस पर वह कहने लगी कि वह मुझे भूल नहीं सकती. अगर मैं ने बात नहीं मानी तो वह मुझे कोर्ट तक घसीटेगी. कोर्ट की बात पर ही मुझे काफी गुस्सा आ गया. मैं उठ खड़ा हुआ. उस ने भी कुरसी छोड़ दी और मोबाइल बैग में रखते हुए रेस्टोरेंट से तेजी से बाहर निकल गई.

मैं ने उस का पीछा किया. सुनसान जगह पर जब वह पहुंची तो तमंचे से उसे पीछे से गोली मार दी. मैं पूरी तैयारी के साथ आया था. उस के बाद तमंचा छिपाने की हड़बड़ी में मेरी जेब से मेरी कंघी गिर गई.
इस तरह से विशाल ने अपना जुर्म कुबूल कर लिया था.

फसल अवशेष और इसका प्रबंधन

लेखक-डा. संदीप कुमार, डा. शैलेश कुमार सिंह, डा. सोमेंद्र नाथ, डा. अश्विनी कुमार सिंह, प्रो. रवि प्रकाश मौर्य

कृषि में संसाधन संरक्षण तकनीक स्थायी रूप से दीर्घकालीक खाद्य उत्पादन में सहायक होता है, परंतु मशीनों के अधिक प्रयोग से मृदा उर्वरता में कमी आने लगती है. धानगेहूं फसल प्रणाली में आधुनिक व बड़े आकार के फार्म मशीनरी जैसे कंबाइन हार्वेस्टर, रोटावेटर, सीड ड्रिल वगैरह की संख्या दिनोंदिन बढ़ती ही जा रही है. इस प्रकार की कृषि प्रणाली में ज्यादातर किसान फसल अवशेषों को जला दे रहे हैं, जो वातावरण के लिए एक गंभीर समस्या है. नवीन और नवीकरण ऊर्जा मंत्रालय के अनुसार, भारत में हर साल 500 मिलियन टन फसल अवशेषों का उत्पादन होता है और दूसरे प्रदेशों की तुलना में उत्तर प्रदेश में सब से ज्यादा 60 मिलियन टन फसल अवशेषों का उत्पादन होता है,

जिस का उपयोग घरेलू और औद्योगिक क्षेत्रों में किया जा सकता है. अगर फसलों की बात की जाए, तो सब से ज्यादा खाद्यान्न फसलों (धान, गेहूं, मक्का इत्यादि) से तकरीबन 70 फीसदी फसल अवशेष प्राप्त होता है. फसल अवशेष जलाने के हानिकारक प्रभाव पोषक तत्त्वों का अधिक मात्रा में नुकसान : फसल अवशेषों को जलाने से उस में पाए जाने वाले पोषक तत्त्वों का काफी मात्रा में नुकसान हो जाता है. एक शोध के अनुसार एक टन धान की पराली जलाने से 5.5 किलोग्राम नाइट्रोजन, 2.3 किलोग्राम फास्फोरस, 25 किलोग्राम पोटैशियम और 1.2 किलोग्राम सल्फर के अलावा कार्बनिक पदार्थों की हानि होती है. इसी तरह पंजाब प्रांत में स्टडी के मुताबिक, पराली जलाने से 100 प्रतिशत कार्बन व 90 फीसदी नाइट्रोजन का हृस होता है. मृदा जीवों पर गलत असर : अवशेषों को बारबार जलाने से मृदा का तापमान काफी बढ़ जाता है, जिस से उस में निवास करने वाले लाभदायक जीव खासकर विभिन्न प्रकार के जीवाणुओं का नुकसान होने लगता है. भूमि के ऊपरी हिस्से में जीवांश कार्बन और नाइट्रोजन का स्तर कम होने लगता है, जिस से फसलों का विकास अच्छा नहीं होता है.

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मृदा में जो भी खाद व उर्वरकों का प्रयोग किया जाता है, वह लाभदायक जीवाणुओं की हालत में ही पोषक तत्त्वों के रूप में पौधों को प्राप्त होता है. इस के अलावा अन्य लाभदायक जीव जैसे राइजोबियम, एजोस्पाइरिलम, ट्राइकोडर्मा और मृदा में रहने वाले केंचुए अधिक तापमान के कारण नष्ट हो जाते हैं. हानिकारक गैसों का उत्सर्जन : पराली जलाने पर उस में मौजूद कार्बन का 70 फीसदी हिस्सा कार्बनडाईऔक्साइड के रूप में, 7 फीसदी कार्बनमोनोऔक्साइड और 0.66 प्रतिशत हिस्सा मीथेन के रूप में उत्सर्जित होता है. ग्रीन हाउस और अन्य गैसें जैसे सल्फरडाईऔक्साइड, नाइट्रोजन औक्साइड का उत्सर्जन होने से ओजोन परत को नुकसान पहुंच रहा है, जिस से हमारे पर्यावरण को काफी नुकसान हो रहा?है. फसल की कटाई के पश्चात अवशेषों को जलाने से हवा में विषैला रसायन डाईऔक्सिन की मात्रा 33-270 गुना बढ़ जाती है, जिस का प्रभाव वातावरण में अधिक समय तक रहता है और मनुष्य व पशुओं की त्वचा पर जमा हो जाता है,

जिस से खतरनाक बीमारियां होती हैं. इस के अलावा फसल अवशेषों को जलाने से पशुओं के लिए चारे की कमी हो जाती है, इस प्रकार फसल अवशेषों का प्रबंधन कर के पशु चारे की कमी को दूर किया जा सकता?है और मल्चिंग के द्वारा मृदा की जल धारण क्षमता को बढ़ा कर फसल उत्पादन में वृद्धि की जा सकती है. फसल अवशेषों का प्रबंधन फसल अवशेषों को अंधाधुंध जलाने से मृदा स्वास्थ्य, कार्बनिक पदार्थों की मात्रा, पौधों के गौण एवं सूक्ष्म पोषक तत्त्वों के अलावा मृदा के सूक्ष्म जीवों पर हानिकारक प्रभाव पड़ता है, इसलिए उचित फसल अवशेष प्रबंधन की रणनीत पर्यावरण हितैषी और कृषि को बढ़ाने वाली है. संरक्षित जुताईगुड़ाई, मृदा संरक्षण का कार्य, शून्य जुताई व फसल अवशेष मल्चिंग, पशुओं का चारा और कंपोस्ट तैयार करना इत्यादि फसल अवशेष प्रबंधन तकनीकों को अपनाया जा सकता है. मृदा के भौतिक गुणों में सुधार : भारी मशीनों जैसे प्लांटर, जीरो टिल, रीपर व कंबाइन हार्वेस्टर के प्रयोग से मृदा सख्त हो जाती है, जिस से मृदा के भौतिक गुणों जैसे अंत:स्पंदन गति, हवा का आवागमन और जल धारण क्षमता पर विपरीत असर पड़ता है.

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यदि मृदा में दलहनी व अन्य फसलों के अवशेषों को मृदा में मिलाते हैं तो इस से मृदा के भौतिक गुणों में सुधार होता है. इस के अलावा अवशेषों को मृदा में मिलाने से फसलों की वृद्धि व विकास अच्छा होता है और जड़ क्षेत्र में पोषक तत्त्वों की उपलब्धता बढ़ जाती है. धान आधारित फसल प्रणाली में फसल अवशेषों का प्रयोग व संरक्षित जुताईगुड़ाई करने से मृदा कणों और कार्बन एकत्रीकरण में सुधार होता है. रासायनिक गुणों में सुधार : फसल अवशेष प्रबंधन मृदा के रासायनिक गुणों जैसे पीएच, विद्युतीय चालकता, धनायन आदानप्रदान क्षमता व इस के अलावा मुख्य और गौण पोषक तत्त्वों का रूपांतरण इत्यादि में प्रभावी तौर पर सुधार होता है. मृदा उत्पादकता में सुधार : फसल अवशेषों को मृदा में कुशल प्रबंधन करने से मृदा उत्पादकता एवं पोषक तत्त्व पुनरावर्तन वृद्धि की जा सकती है और केंचुओं की संख्या में बढ़ोतरी होती है, जिस से मृदा की उर्वराशक्ति में वृद्धि होती है.

खरीफ, रबी व जायद की फसलों की कटाई के उपरांत खेत में 20 किलोग्राम यूरिया प्रति एकड़ की दर से प्रयोग करने के बाद मिट्टी पलटने वाले हल से/तवे वाले हल से व रोटावेटर से जुताई कर देने से फसल अवशेष 20-25 दिन के अंदर सड़ कर मृदा में मिल जाते हैं, जिस से मृदा में कार्बनिक पदार्थों व अन्य तत्त्वों की बढ़ोतरी होती है. इस के अलावा संसाधन संरक्षण तकनीकी के अंतर्गत हैप्पी सीडर, सुपर सीडर, मल्चर व चापर का प्रयोग कर के फसल अवशेषों को मृदा में मिला कर मिट्टी की उर्वराशक्ति को बढ़ाया जा सकता है. किसानों की आय का स्रोत विभिन्न प्रकार के फसल अवशेषों द्वारा ओएस्टर, दूधिया और बटन मशरूम की खेती कर के एक अच्छी आय प्राप्त कर सकते हैं.

फसल अवशेष की गांठों को बायोगैस प्लांट, बायोमास प्लांट अथवा एथेनाल प्लांट में पहुंचा कर प्रति एकड़ 6,000-7,000 रुपए प्राप्त कर सकते हैं. इस के अलावा फसल अवशेषों के द्वारा बायोचार, जो एक प्रकार का कच्चा कोयला होता है, को बना कर भूमि में प्रयोग करने से उत्पादन में वृद्धि होती है. जैविक खेती को बढ़ावा देने के उद्देश्य से विभिन्न प्रकार के कंपोस्ट को बनाने के बाद उस की पैकिंग कर के बेचने से आय प्राप्त कर सकते हैं और आसपास की राइस मिल, गत्ता फैक्टरी, पेपर मिल, कौच व सैनेटरी सामग्री पैकिंग उद्योग व दूसरे जरूरत के सामानों को कारखानों को बेच कर आमदनी बढ़ा सकते हैं.

मैं इस बात से काफी परेशान हूं, मन करता है कि सुसाइड कर लूं?

सवाल

मैं 45 वर्षीय सरकारी नौकरी में कार्यरत हूं. मेरे 2 बच्चे हैं. मां व पिता की मृत्यु के बाद मेरी बहनों की भी जिम्मेदारी मेरे कंधों पर आ गई है, जिस कारण घर में काफी विवाद रहता है. पिछले कुछ महीनों से मुझे बोलने में काफी दिक्कत होती है जिस के कारण सब के सामने शर्मिंदगी महसूस होती है. अब तो मन करता है कि अपना जीवन ही समाप्त कर लूं?

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जवाब

आप समस्याओं को खुद पर इतना अधिक हावी न होने दें कि आप को आत्महत्या करने के बारे में सोचें. माना कि आप पर परिवार की ढेरों जिम्मेदारियां हैं जिन्हें आप को अकेले ही निभाना है, लेकिन आप घबराएं नहीं, बल्कि हिम्मत से पत्नी के सहयोग से आगे बढ़ कर परिवार की जिम्मेदारियां निभाएं, और रही बात बोलने में दिक्कत की, तो हो सकता है गले में कोई दिक्कत हो. इसे तुरंत डाक्टर को दिखाएं. यकीन मानिए, स्पीच थेरैपी से आप की समस्या हल हो जाएगी और फिर आप को किसी के सामने शर्मिंदगी महसूस नहीं होगी.

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अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz

सब्जेक्ट में लिखें- सरिता व्यक्तिगत समस्याएं/ personal problem 

लाइलाज बीमारियों का इलाज ‘स्टैम सैल’

आने वाले समय में अगर आप कैंसर, एड्स या ब्रेन ट्यूमर जैसी लाइलाज बीमारी के शिकार होंगे तो आप बेखौफ हो कर डाक्टर के पास जाएंगे और उसे अपनी बीमारी के बारे में बताएंगे. डाक्टर भी आप की बात शांति से सुनेगा और आप को कुछ दिनों के लिए अस्पताल में एडमिट हो जाने की सलाह देगा. आप बड़े सुकून से घर की ओर रवाना होंगे और घर वालों को डाक्टर के साथ हुई बातचीत के बारे में बताएंगे. घर वालों को आप की बीमारी के बारे में मालूम है लेकिन वे बिलकुल शांत हैं, उन्हें मालूम है कि यह कोई बड़ी बात नहीं. आप एक छोटे से औपरेशन के बाद पूरी तरह ठीक हो जाएंगे.

जी हां, यह सब शेखचिल्ली की खयाली बातें नहीं बल्कि आने वाले सालों में मैडिकल साइंस की तसवीर है, जिस में आज के दौर की लाइलाज बीमारियों को बेहद आसान इलाज से खत्म किया जा सकेगा. यह सब मुमकिन होगा और इसे मुमकिन बनाने में विशेष भूमिका होगी ‘स्टैम सैल’ की. जी हां, हम उन्हीं स्टैम सैल की बात कर रहे हैं जिन के बारे में पिछले कई सालों से कई किस्म के समाचार और उन से जुड़ी खोजों की खबरें सुनने और देखने को मिलती रही हैं.

स्टैम सैल का योगदान अब मैडिकल साइंस के क्षेत्र में सिर्फ खबरों तक ही सीमित नहीं रह गया है बल्कि इस से अंगों के प्रत्यारोपण संबंधी कामों को सफलतापूर्वक अंजाम दिया जाने लगा है.

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स्टैम सैल के जरिए मैडिकल साइंस के क्षेत्र में कई ऐसे कामों को अंजाम दिया जाने लगा है जिन के बारे में आज से तकरीबन 50 वर्ष पहले तक कल्पना भी नहीं की जा सकती थी. स्टैम सैल से अब कटे हुए अंगों को दोबारा विकसित किया जा रहा है.

अमेरिका में कई मैडिकल संस्थानों में ऐसे प्रयोग किए गए हैं जिस में किसी दुर्घटना में अपना हाथ या पैर खो चुके लोगों को स्टैम सैल के जरिए नया जीवन दिया गया. इन लोगों के हाथ और पैर दोबारा विकसित किए गए. सुनने में यह सब कहानी जैसा ही लगता है लेकिन इस में पूरी सचाई है. भारत में भले ही स्टैम सैल को ले कर इस स्तर पर काम न हो रहा हो लेकिन यहां भी स्टैम सैल से ऐसेऐसे प्रयोग हो रहे हैं जिन्हें मैडिकल साइंस की दुनिया में किसी चमत्कार से कम नहीं माना जा सकता है.

अब 35 वर्षीय अभिषेक शर्मा को ही ले लें. 24 वर्ष की उम्र में कंजेक्टिवाइटिस से पीडि़त हुए अभिषेक की दोनों आंखों की रोशनी चली गई. जवानी की राह पर आगे बढ़ रहे अभिषेक की तो जैसे पूरी दुनिया ही अंधकारमय हो गई. जीने की ख्वाहिश छोड़ चुके अभिषेक न जाने कितने बड़े और नामी नेत्र विशेषज्ञों के पास भटकते रहे लेकिन कहीं से भी उन्हें उम्मीद की किरण नजर नहीं आई. हर तरह से उम्मीद खो चुके अभिषेक से उन के किसी नजदीकी ने अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान, दिल्ली (एम्स) में भी दिखाने की सलाह दी. अभिषेक पहले तो निराशा के कारण कहीं भी जाने को राजी नहीं हुए लेकिन घर वालों के दबाव के चलते उन्हें एम्स जाना पड़ा. एम्स के डाक्टरों ने अभिषेक को स्टैम सैल डिपार्टमैंट में भेज दिया. अभिषेक के रेटिना की अच्छी तरह जांचपड़ताल के बाद उन्हें इस बात का भरोसा दिलाया गया कि वे एक बार फिर से देख सकेंगे और जल्द ही यह सच भी हो गया. स्टैम सैल के जरिए अभिषेक के कौर्निया को पुनर्जीवित किया गया. स्टैम सैल से पूरी तरह क्षतिग्रस्त हो चुके कौर्निया को पुनर्जीवित करने की प्रक्रिया को अंजाम देना एम्स के लिए कोई नई बात नहीं थी.

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एम्स की ही तरह हैदराबाद के एलवी प्रसाद संस्थान ने इस तरह के सैकड़ों मामलों को सफलतापूर्वक हल किया है. स्टैम सैल के जरिए आंखों की रोशनी लौट आना तो बहुत छोटी बात है. देश में स्टैम सैल से हृदय प्रत्यारोपण जैसे जटिल काम को भी बड़ी आसानी से अंजाम दिया जा रहा है.

1960 में जब अर्नेस्ट ए मैक्यूलोच और जेम्स ई टिल ने टोरंटो यूनिवर्सिटी में अपने शोध के दौरान स्टैम सैल के गुणों की पहचान की, उस दौरान किसी ने यह सोचा भी नहीं होगा कि स्टैम सैल मैडिकल साइंस के लिए किसी वरदान से कम साबित नहीं होगी.

इस समय पूरी दुनिया में स्टैम सैल यानी कि वंश कोशिकाएं मानव शरीर के लिए किसी इंजीनियर की तरह काम करती हैं. ये न सिर्फ शरीर में हुई टूटफूट को दुरुस्त करने की क्षमता रखती हैं बल्कि इन से पूरी तरह क्षतिग्रस्त हो चुके अंगों को सही करने के साथसाथ जरूरत पड़ने पर नए अंगों का निर्माण भी किया जा सकता है. इन्हें शरीर की गुप्त जैविक सुधार व्यवस्था का काम करने योग्य माना जाता है. ये ऐसी सुपर मैकेनिक हैं, जिन के पास हर वह चीज है जिस की जरूरत मानव शरीर को नया बनाने के लिए पड़ सकती है.

स्टैम सैल से इतनी बीमारियों का इलाज होने लगा है कि इसे मैडिकल साइंस के क्षेत्र में क्रांति के रूप में देखा जा रहा है.

इस समय भारत में मधुमेह, हृदय व स्नायु संबंधी विकार, जले हुए अंग, घाव, गठिया से ले कर आंख और लिवर संबंधी विकारों की चिकित्सा के लिए स्टैम सैल ट्रीटमैंट का प्रयोग किया जा रहा है. लेकिन दुनिया के अन्य देशों जैसे अमेरिका, ब्रिटेन, कनाडा, चीन और आस्ट्रेलिया में शोधार्थी स्टैम सैल से कैंसर और ब्रेन ट्यूमर जैसी लाइलाज बीमारियों का इलाज खोज निकालने के बेहद करीब पहुंच चुके हैं.

कैंसर का इलाज करने के लिए हार्वर्ड मैडिकल स्कूल के शोधकर्ताओं ने कुत्ते पर प्रयोग किया. ब्रेन कैंसर से पीडि़त कुत्ते के दिमाग में वयस्क स्टैम सैल इंजैक्ट कराई गई. सैल के इंजैक्ट कराने के थोड़े ही समय बाद कुत्ते में ब्रेन कैंसर के लक्षणों में कमी नजर आने लगी.

ब्रेन कैंसर एक ऐसी बीमारी है जो बहुत तेजी से इंसान को अपनी चपेट में लेती है और थोड़े ही समय में उसे मौत की नींद सुला देती है. ब्रेन कैंसर पर अपने शोध के दौरान वैज्ञानिकों ने पाया कि प्रभावित हिस्से में ह्यूमन न्यूरल स्टैम सैल इंजैक्ट करने के कुछ ही दिनों बाद वंश कोशिकाएं प्रभावित हिस्से में फैल जाती हैं. कैंसर से पीडि़त हिस्से में स्टैम सैल ‘साइटोसाइन डीमाइनैस’ नाम का एंजाइम उत्पन्न करती हैं. यह एंजाइम नौन टौक्सिक प्रोड्रग का निर्माण करता है. यह ड्रग कैंसर वाले हिस्से को 81 प्रतिशत तक नष्ट कर देती है. यह स्टैम सैल कैंसर की कोशिकाओं को खत्म करने का काम करती है. अभी इस तरह के प्रयोग सिर्फ शोध का ही हिस्सा बने हुए हैं लेकिन उम्मीद की जा रही है कि कुछ ही सालों के भीतर हर प्रकार के कैंसर का सफल इलाज स्टैम सैल से संभव हो सकेगा.

ब्रेन स्ट्रोक और दिमाग से जुड़ी कई लाइलाज बीमारियों को जड़ से खत्म करने के लिए स्टैम सैल की मजबूत भूमिका जल्द ही हमारे सामने होगी. दिमागी बीमारियों की चपेट में आने के बाद व्यक्ति के दिमाग में मौजूद न्यूटोन को सब से ज्यादा नुकसान पहुंचता है. एक स्वस्थ दिमाग में न्यूरल स्टैम सैल होती हैं. ये सामान्य स्टैम सैल की संख्या को नियंत्रित करने के लिए कई हिस्सों में बंट जाती हैं. इस समय स्टैम सैल से पार्किंसन और अल्जाइमर जैसी बीमारियों का इलाज होना शुरू हो चुका है. ब्रेन स्ट्रोक के इलाज को सफल बनाने के लिए शोधकर्ता अभी बड़े स्तर के प्रयास में लगे हुए हैं.

स्पाइनल कौर्ड से जुड़ी बीमारियों के सफल इलाज के लिए कोरिया के वैज्ञानिकों ने इस बीमारी से पीडि़त एक व्यक्ति के अमबिलिकल कौर्ड ब्लड में मल्टीपोटैंट एडल्ट स्टैम सैल्स ट्रांसप्लांट की. यह मरीज पिछले 20 सालों से बिस्तर पर था और हिल भी नहीं पाता था. इस प्रयोग के कुछ ही समय बाद वह मरीज सहारा ले कर अपने पैरों पर खड़ा होने लगा और अब तो वह अच्छी तरह दौड़भाग भी कर सकता है.

यह तो कुछ भी नहीं, स्टैम सैल से जल्द ही लकवे का शिकार हो चुके लोगों को पूरी तरह ठीक किया जा सकेगा.

हृदय संबंधी बीमारियों के इलाज में स्टैम सैल की योग्यताओं ने कमाल कर दिखाया है. अब तो आलम यह है कि पूरा का पूरा हार्ट ट्रांसप्लांट हो जाता है. ऐसा स्टैम सैल के जरिए संभव हो सका है.

स्टैम सैल से अब रक्त कोशिकाओं का भी निर्माण किया जाने लगा है. शरीर के तंत्रिका तंत्र को मजबूत बनाने के लिए भी स्टैम सैल का इस्तेमाल हो रहा है. इस के अलावा पूरी तरह से विकसित लाल रक्त कणिकाओं को वैकल्पिक रूप से बनाने के लिए भी स्टैम सैल का इस्तेमाल किया जा रहा है. स्टैम सैल से तैयार खून को प्राकृतिक खून से कहीं ज्यादा बेहतर माना जा रहा है. इस का इस्तेमाल अभी बड़े स्तर पर नहीं हो रहा है लेकिन आने वाले समय में किसी भी रोगी की मृत्यु कम से कम खून न मिलने के कारण तो नहीं होगी.

स्टैम सैल से मैडिकल सिस्टम किस स्तर पर पहुंच जाएगा, इस की सीमा को जान पाना तो मुश्किल है. पर आने वाला समय मैडिकल टैक्नोलौजी में काफी कुछ बदलाव ले कर आएगा इस में जरा भी संदेह नहीं है. स्टैम सैल की दुनिया तेजी से विकसित हो रही है. इसे मैडिकल सिस्टम के अलावा सौंदर्य प्रसाधनों में भी इस्तेमाल किया जाने लगा है.

सौंदर्य प्रसाधनों के अलावा गंजेपन, गायब हो चुके दांत, बहरेपन, बांझपन जैसी समस्याओं को दूर करने के लिए भी अब स्टैम सैल का बड़े स्तर पर  इस्तेमाल किया जाने लगा है. स्टैम सैल के प्रयोगों को सफल बनाने और जल्द से जल्द इस के परिणामों से अवगत होने के लिए दुनिया के कई देश युद्ध स्तर पर प्रयास कर रहे हैं. चीन इस मामले में बेहद तेजी से आगे बढ़ रहा है.

ज्यादातर देशों में मैडिकल से जुड़े किसी भी शोध के लिए जानवरों पर प्रयोग करने का नियम है. इंसानों पर शुरुआती स्तर का प्रयोग करने के लिए वैज्ञानिकों को सरकार से इजाजत लेनी होती है. लेकिन चीनी सरकार ने अपने वैज्ञानिकों को इस बात की खुली छूट दे रखी है कि अगर वे अपने शोध को ले कर आश्वस्त हैं तो मानव शरीर पर भी उस का परीक्षण कर सकते हैं. इस स्तर के प्रयासों से चीन के वैज्ञानिकों ने स्टैम सैल के क्षेत्र में काफी तरक्की कर ली है. चीन की तरह ही मैक्सिको में भी क्लीनिकल लेवल पर स्टैम सैल को ले कर काफी शोध किए जा रहे हैं. अमेरिका के वैज्ञानिकों में तो स्टैम सैल को ले कर इस कदर जनून है कि वे आएदिन इस क्षेत्र में कुछ न कुछ नया प्रयोग कर रहे हैं. यह बात तय है कि स्टैम सैल से मैडिकल सिस्टम की काया अवश्य पलट जाएगी.

 

उत्पीड़न: अब सोनू सूद पर आयकर विभाग की रेड

ऐसा पहली बार नहीं है कि सत्ता को उस की खामियों का एहसास कराने वाले किसी व्यक्ति को जांच एजेंसियों के उत्पीड़न से गुजरना पड़ा हो. हर्ष मंदर, यूथ कांग्रेस के श्रीनिवास बीवी, सिद्दीक कप्पन जैसे बहुतेरे नाम हैं. कोरोनाकाल में लौकडाउन लगने पर महानगरों और अन्य शहरों से पैदल ही अपने गांवकसबों की तरफ पलायन करने के लिए मजबूर लाखों प्रवासी मजदूरों के लिए अभिनेता सोनू सूद मदद के लिए सड़कों पर उतरे थे और उन्हें उन के गंतव्य तक पहुंचाने में मदद की थी. उन्होंने कई लोगों के रहने और खाने के साथ काम का भी इंतजाम किया था.

प्रवासी मजदूरों को घरवापसी कराने के अभियान के तहत उन्होंने नीति गोयल के साथ मिल कर 75 हजार प्रवासी मजदूरों को अपने घर भिजवाया, लौटवाया. इन में ओडिशा, असम, पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड और उत्तराखंड के प्रवासी मजदूर थे. इस के अलावा बड़ी संख्या में दक्षिण भारत के प्रवासी मजदूरों को भी भेजा गया. इतना ही नहीं, प्रवासी मजदूरों के सामने रोजगार की समस्या खड़ी हुई तो उन्हें रोजगार दिलाने के लिए प्रवासी रोजगार ऐप भी शुरू किया था. उन दिनों अखबारों के पन्ने, टीवी चैनलों के स्क्रीन सोनू सूद की तारीफों से पट गए थे. कौन ऐसा होगा जिस ने सोनू सूद की तारीफ न की होगी, चाहे वह पक्ष हो या विपक्ष. सोनू सूद की दरियादिली और गरीबों के प्रति उन की भावनाओं के चर्चे इस कदर हुए कि कुछ राजनीतिक पार्टियों ने, जिन में भाजपा भी शामिल थी,

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उन को राजनीति में आने का औफर दिया. उन्हें राज्यसभा सीट पर भेजने की बातें हुईं, मगर सोनू सूद ने मना कर दिया और अपनी समाजसेवी संस्था के माध्यम से जनता की सेवा में लगे रहे. पिछले दिनों वे दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के साथ एक मंच पर नजर आए. सूद को अरविंद केजरीवाल की अगुआई वाली दिल्ली सरकार ने ‘देश के मेंटोर’ कार्यक्रम का ब्रैंड एंबेसडर बनाया है. इस कार्यक्रम के जरिए स्कूली बच्चों को भविष्य के बारे में मार्गदर्शन दिया जाएगा. इसी की घोषणा के समय वे अरविंद केजरीवाल के साथ बैठे मीडिया के कैमरों में कैद हुए. फिर क्या था, सोनू सूद को केजरीवाल के साथ देख कर राजनीतिक पार्टियों में हलचल मच गई. सोनू सूद की पैदाइश पंजाब के मोगा जिले की है. 5 महीने बाद पंजाब में विधानसभा चुनाव होने हैं. ऐसे में केजरीवाल के साथ सोनू सूद की मुलाकात भाजपा के लिए बड़े खतरे की घंटी बन गई क्योंकि अगर केजरीवाल को सोनू सूद का साथ मिल गया तो पंजाब में उन की पार्टी की हालत सुधर सकती है. सो, जैसे ही सोनू सत्ता के लिए खतरा बनते दिखे, सत्ता ने अपने खतरे को निबटाना शुरू कर दिया और सोनू सूद के घर, दफ्तर, एनजीओ सब जगह आयकर विभाग के छापे पड़ने लगे. आयकर विभाग ने उन के मुंबई, लखनऊ, कानपुर, जयपुर, दिल्ली और गुरुग्राम सहित 28 ठिकानों पर 3 दिनों की रेड के बाद 20 करोड़ की टैक्स चोरी का आरोप लगाया.

अधिकरियों ने कहा, ‘‘जांच में सामने आया है कि सोनू सूद ने विदेशी डोनर्स से 2.1 करोड़ की नौन-प्रौफिट फंडिंग जुटाई, जो इस तरह के लेनदेन को नियंत्रित करने वाले कानून का उल्लंघन है. तलाशी के दौरान 1.8 करोड़ रुपए की नकदी जब्त की गई है और 11 लौकरों पर प्रतिबंध लगाए गए हैं.’’ सोनू सूद पर इस रेड के बाद मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने ट्वीट किया- ‘सचाई के रास्ते पर लाखों मुश्किलें आती हैं, लेकिन जीत हमेशा सचाई की ही होती है. ञ्चस्शठ्ठह्वस्शशस्र जी के साथ भारत के उन लाखों परिवारों की दुआएं हैं जिन्हें मुश्किल घड़ी में सोनूजी का साथ मिला था.’ केआरके यानी कमाल राशिद खान, जो अदाकारी से ज्यादा अपनी चुटीली टिप्पणियों के लिए मशहूर हैं- ने अपने आधिकारिक ट्विटर हैंडल से किए गए ट्वीट में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के चहेते कलाकार अक्षय कुमार पर अप्रत्यक्ष निशाना साधते हुए लिखा, ‘भाई, सोनू सूद की गलती यह है कि उन्होंने मोदीजी का इंटरव्यू नहीं किया.

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मोदीजी से यह नहीं पूछा कि वे आम कैसे खाते हैं. काट कर या चूस कर. अगर यह पूछ लिया होता तो फिर लंदन, कनाडा में कितना भी माल पार कर देते, कोई दिक्कत ही नहीं थी.’ सोशल मीडिया पर विजय कुमार नाम के एक यूजर ने लिखा, ‘सरकार को इस बात का गुस्सा भी है कि जब सोनू सूद लोगों की मदद कर रहे थे तब सरकार मदद करने के बजाय अपना झोला भरने के लिए दान मांग रही थी. जब सरकार ने कोई मदद नहीं की, तो सोनू सूद ने मदद क्यों की?’ कुल जमा यह कि इधर सोनू सूद पर आयकर विभाग की कार्रवाई शुरू हुई और उधर जनता ने सरकार को ट्रोल करना शुरू कर दिया. ऐसा इस देश में पहली बार देखने को मिला. इंतेखाब नाम के यूजर लिखते हैं, ‘सभी को पता है कि जो काम सरकार को करना था वह सोनू सूद ने किया. बस, उसी का बदला लिया जा रहा है.

’ जानेमाने पत्रकार और ब्लौगर यूसुफ किरमानी अपनी बात बड़ी तफ्सील से रखते हैं. वे लिखते हैं- ‘विदेशी फंड पर दोहरा मापदंड क्यों? सीबीडीटी (सैंट्रल बोर्ड औफ डायरैक्ट टैक्सेज) यानी इनकम टैक्स विभाग ने कहा है कि सोनू सूद ने 20 करोड़ रुपए की टैक्स चोरी की है. इस में विदेश से सोनू सूद को प्रवासी मजदूरों और गरीबों के लिए भेजे गए 2.1 करोड़ रुपए का फंड भी शामिल है. सवाल है कि भाजपा, आरएसएस, वीएचपी, विवेकानंद फाउंडेशन को विदेश से जो फंड आता है, उस की जांच कौन करेगा? कब होगी यह जांच? सरकार चलाने वाली पार्टी और उस के संगठन पहले अपने गिरेबान में तो झांकें. इस छापामारी पर सोनू सूद ने बड़ी शालीनता से अपना पक्ष रखते हुए कहा है- ‘जब आईटी औफिसर आए थे तो मैं ने उन से कहा कि आप जब भी जाएंगे, एक अलग अनुभव ले कर जाएंगे. सभी औफिसर ने देखा है, घर के नीचे मदद मांगने वाले लोग खड़े रहते हैं. उन को छापे की कार्रवाई में जो डौक्युमैंट्स मिले हैं वे किडनी, लिवर ट्रांसप्लांट के ही मिले हैं.’ सोनू सूद कहते हैं, ‘‘जिन लोगों ने मुझे पैसा दिया, मेरी सब से बड़ी जिम्मेदारी थी कि उस पैसे को सही जगह पर खर्च करना है.

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मैं जितने ब्रैंड के ऐड करता हूं उन से कहता हूं कि कोशिश करें कि आप उस का मेजर अमाउंट फाउंडेशन में दें ताकि हम लोगों की मदद कर सकें. कई हौस्पिटलों में मेरे पैसे पड़े हुए थे, जिन से मैं कह देता था कि मैं मरीज भेजूंगा, आप एडमिट कर लेना और हम ने बहुत मरीजों को उन अस्पतालों में भेजा है.’’ सोनू सूद ने विजयवाड़ा के बच्चों के दिए हुए पिगी बैंक भी मीडिया को दिखाए. जिन से अभी एक रुपया भी खर्च नहीं हुआ है. सूद का कहना है कि ये सालों से पड़ा हुआ पैसा नहीं है, बल्कि यह वह पैसा है जो पिछले 3 या 4 महीनों में आया है. हम ने 2 करोड़ रुपया खर्च किया है, यह आयकर विभाग ने मीडिया को सही बताया. लेकिन अगर किसी के पास पैसा आता है तो उसे सही काम में खर्चने में टाइम लगता है.

मेरे साथ देश के वे लोग जुड़े हैं जिन्हें यह विश्वास है कि वे ऐसे आदमी हैं जो उन की सोच को सही लोगों की मदद तक पहुंचाएगा. ऐसा पहली बार नहीं हुआ है कि सत्ता को उस की खामियों का एहसास कराने वाले किसी व्यक्ति को जांच एजेंसियों के जरिए उत्पीडि़त किया गया. इस से पहले हर्ष मंदर, यूथ कांग्रेस के श्रीनिवास बीवी, सिद्दीक कप्पन जैसे न जाने कितने नाम हैं, जिन्होंने जबजब सरकार को चेताने की कोशिश की, उन पर पुलिस और जांच एजेंसियों की गाज गिरी. विरोधी विचार रखने वाले लोगों को डराने और अगर मुमकिन हो तो उन का मुंह बंद कराने के लिए उन के पीछे सरकारी एजेंसियों को छोड़ देने जैसा दमनकारी कदम उठाने का चलन भाजपा सरकार में खूब है.

दीवार – भाग 3 : इंस्पेक्टर जड़ेजा का क्या मकसद था

लेखक- अमित अरविंद जोहरापुरकर

महाराज गाड़ी ले कर दीवार के पास पहुंचे, जहां इंस्पेक्टर जड़ेजा गिरे थे उस जगह बैरिकेड लगे हुए थे और बगल में एक कांस्टेबल कुरसी डाले बैठा हुआ था.इंद्रपुरी महाराज यहां जब आते थे, तब बावरिया देवी के मंदिर में शहर में कोई अनुष्ठानपूजा हो तो वहीं जा कर सीधा निकल जाते थे.

इस बस्ती में वह कब आए, उन्हें खुद भी याद नहीं आ रहा था. उन का जो मठ था, वहीं आते थे. इसीलिए ऐसी विचित्र परिस्थितियों में इस बस्ती में आते हुए उन के दिल पर एक बड़ा बोझ आ गया था. वह दीवार पार कर पगडंडी पर चलते हुए बस्ती में घुस गए. शुरू में एकदो मंजिल के मकान थे. बस्ती के बाकी मकानों की अपेक्षा यह थोड़ा ठीकठाक बनावट का लग रहा था.

घर के अंदर से गिटार बजाने की आवाज आ रही थी. बावरा लोग और गीतसंगीत, यह चोलीदामन का जोड़, फिर भी इन सुरों में अलग मजा था, उस से वह दो पल के लिए सब भूल गए. दरवाजे पर खटखटाहट सुन कर एक औरत चिल्लाते हुए बाहर आई, लेकिन महाराज को सामने खड़ा देख उस ने अपना पल्लू सिर पर ओढ़ लिया.

“बापू आप… आइए, अंदर आइए,” वह बोली. महाराज अंदर गए. उस कमरे में एक बड़ा सा सीएफएल बल्ब लगा हुआ था. भड़कीले रंग का एक सोफा सेट और उस के बगल में एक बड़ी चारपाई. उस पर बैठ कर 2 लड़के गिटार और ड्रम बजा रहे थे. “मालिक तो काम पर गए हैं, बापू. वह कालूपुर में चोखा बाजार में काम करते हैं,”  उस औरत ने कहा.

महाराज सोफे पर बैठ गए. वैसे, उस ने बच्चों को उन के पैर छूने का इशारा किया और खुद भी झुक कर महाराज के पैर छुए. उन्हें आशीर्वाद दे कर महाराज बोले, “दोनों तुम्हारे ही बेटे हैं?” “जी हां बापू. यह बड़ा बेटा जिगर और छोटा बेटा भावेश. जाओ, तुम लोग अंदर जा कर बजाओ.”

बच्चों के नाम सुन कर महाराज सोचने लगे कि यह लोग समाज की मुख्यधारा में समाहित होने की कितनी कोशिश कर रहे हैं, लेकिन उन के सिर पर जो गुनाहगारी का अभिशाप लगा है, वह कब जाएगा? दोनों बच्चे तुरंत उठ कर अंदर चले गए. “उम्र के हिसाब से बच्चे बहुत अच्छा बजा लेते हैं,” महाराज बोले.

“जी हां. यहां रात को कुछ भले घर के लोग उन के लिए स्कूल चलाते हैं. उस में जिस को जो अच्छा लगे, वह हुनर सिखाते हैं. काफी वक्त कहीं बाहर भी ले जाते हैं. यह गिटार भी उन्हीं लोगों ने दी है. वैसे, बावरा और गानाबजाना यह कुछ जुदा नहीं,” वह औरत बोली.

“सही बात है,” महाराज बोल कर थोड़ा सोचने लगे. फिर खांस कर वह बोले, “यहां सुबह क्या हुआ, तुम्हें पता ही होगा. अगर चौबीस घंटे में गुनाहगार को पकड़ कर हाजिर नहीं किया गया, तो सरकार यह बस्ती खाली करवाने की धमकी दे रही है.”

“हम तो जन्म से ही गुनाहगार पैदा होते हैं, बापू. सरकार ने आप को यह बताने के लिए भेजा है? आप तो हमारे महंत हो, गोर हो. आप हमें बेघर करोगे?” वह गुस्से से लाल होते हुए बोली. “नहीं बेटा, मैं तो ऐसा न होने दूंगा, इस की कोशिश कर रहा हूं,”  वह शांति से बोले. दिनभर की थकान से महाराज त्रस्त हो गए थे. उस औरत के चिल्लाने से उन्हें और भी थकावट महसूस होने लगी. लेकिन शायद उस ने स्थिति को समझा और एक कटोरी में थोड़ा सा गुड़ और लोटे में पानी भर कर महाराज के सामने रख दिया.

गुड़ और पानी लेने के बाद महाराज बोले,  “ऊपर की मंजिल पर कौन रहता है? किराए से दिया है क्या किसी को?””नहीं बापू, बच्चे ही कुछ करते रहते हैं,” वह औरत बोली, “यहां नजदीक हमारे बच्चों के लिए कोई स्कूल नहीं है. दूर एक स्कूल में पहले जाते थे, लेकिन बाकी बच्चे तंग करने लगे तो इन्होंने स्कूल जाना ही बंद कर दिया. लेकिन कुछ लोग रात को पास में ही एक खुली जगह पर इन्हें गानाबजाना, नाटक और कुछ अंगरेजी वगैरह पढ़ाते हैं. रास्ते पर भटकने से तो ये दिनभर बजाते हैं, वही ठीक है,” महाराज को ऊपर ले जाते हुए वह बोली.

उस बस्ती की तुलना में वह घर काफी अच्छा लग रहा था. ऊपर एक बड़ा कमरा और बालकनी थे. “मकान काफी अच्छा बनवाया है आप लोगों ने,” महाराज ने कहा. “मालिक काम करते हैं. वह सब कड़िया काम के माल की ही दुकान है. उन का सेठ खुद कौंट्रैक्टर है. हमें काफी सामान मुफ्त में मिल गया. इसलिए थोड़ी मेहनत कर के हम ने घर बना लिया,” वह बोली.

“यहां पुलिस तंग करती है?” उन्होंने पूछा. “हम बावराओं को तो पुलिस जन्म से ही पकड़ती रही है, बापू. लेकिन मालिक कहते हैं, जंगल में जैसे खरगोश शेर से बचते हुए रहते हैं, वैसे बावरा के बेटे को पुलिस से बच के जीना सीखना पड़ता है.” “कितने लोगों की बस्ती है यहां?” महाराज ने पूछ लिया, लेकिन वह इन लोगों के महंत होने के बावजूद इन की जिंदगी से कितने अलिप्त और अज्ञात है, यह सोच के वह मन में ही शर्मसार हो गए. लेकिन शायद वो बावराओं के गोर या महंत थे, इसीलिए इन मुश्किलों से परे थे. ऐसी सोच में वह थे, तभी दीवार की उस ओर से रास्ते पर बजता हुआ लाउडस्पीकर उन्हें सुनाई दिया. पहले हिंदी में, फिर गुजराती में एक बंदा सरकारी फरमान सुना रहा था कि अगर गुनाहगार पकड़ा नहीं गया, तो यह बस्ती खाली करा दी जाएगी. ऐसा ही वह कह रहा था.

दीवार जहां से शुरू हो रही थी, वहां अब कुछ लोग इकट्ठा हो कर चिल्ला रहे थे. “मैं जरा उन से बात करता हूं,” महाराज नीचे उतरते हुए बोले. सुबह उन्हें जो युवती नजर आई थी, वह अब खड़ी हो कर लोगों से शांति की अपील कर रही थी. एक आदमी शराब के नशे में लग रहा था, चिल्ला रहा था, “तुम लोग मुझे घर से निकालोगे, तो मैं तुम्हें दुनिया से निकाल दूंगा.”

उस शराबी के हाथ में एक छुरा था, जो दिखा कर वह चिल्ला रहा था.महाराज को आते देख कुछ लोगों ने उसे घेर कर थोड़ा दूर कर दिया.महाराज उस युवती के पास गए. उन के पीछे आई हुई उस मकान मालकिन ने उन के बारे में उस युवती को बताया.यह सुन कर उस युवती ने महाराज को नमस्कार किया और शुद्ध गुजराती में बोली,  “अच्छा हुआ, बापू आप आ गए. अब इन लोगों को संभालने की और समझाने की जरूरत है. वैसे भी पुलिस तो इन्हें मारने पर तुली है.

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