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हार्टअटैक में गोल्डन आवर, कार्डिएक अरैस्ट में गोल्डन सैकंड्स

जब जीवन और मृत्यु का सवाल होता है तो हर एक सैकंड माने रखता है. यही वह समय होता है जिस में व्यक्ति को तय करना होता है कि उसे क्या कदम उठाना है. जब हमारे पास किसी मरीज के लिए बेहतरीन विकल्प चुनने के लिए एक घंटे का समय होता है तब हम बहुतकुछ कर सकते हैं, लेकिन जब किसी का जीवन बचाने के लिए सिर्फ कुछ सैकंड्स का समय बचा हो तब मामला अलग होता है. इन दोनों ही स्थितियों में हमारे द्वारा उठाया गया कदम बेहद महत्त्वपूर्ण होता है.

जीवन बचाने के लिए उपलब्ध गोल्डन आवर और गोल्डन सैकंड्स के बीच का अंतर हार्टअटैक होने और किसी को अचानक कार्डिएक अरैस्ट होने के मामले में भी होता है.

इमरजैंसी में गोल्डन आवर

गोल्डन आवर का कौन्सैप्ट उन मामलों में लागू होता है जिन में मरीज को गंभीर चोट आई हो या कोई अन्य मैडिकल इमरजैंसी हुई हो. इस के बाद का पहला एक घंटा बेहद महत्त्वपूर्ण होता है, जिस में सही इलाज और प्रबंधन से मरीज की जान या उस के शरीर के अंगों को खराब होने से बचाया जा सकता है. हालांकि कोई भी कदम पत्थर की लकीर ही साबित हो, ऐसा नहीं कहा जा सकता है लेकिन ट्रौमेटिक इवैंट के बाद पहले एक घंटे के भीतर मरीज को सही मैडिकल देखभाल मिल जाए तो उस की जान बचने के अवसर कई गुना बढ़ जाते हैं.

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हार्टअटैक के मामले में अकसर यह सलाह दी जाती है कि ऐसा होने के बाद पहले एक घंटे के भीतर मरीज को इमरजैंसी केयर मिलनी चाहिए. लेकिन कार्डिएक अरैस्ट के मामले में ऐसा नहीं कहा जा सकता है.

हार्टअटैक और कार्डिएक अरैस्ट के बीच भ्रम

हार्टअटैक और कार्डिएक अरैस्ट में अंतर है. अधिकतर लोग हार्टअटैक और कार्डिएक अरैस्ट को एक ही बात समझते हैं जबकि दोनों के फर्क को बखूबी समझना बेहद जरूरी है. हार्टअटैक और कार्डिएक अरैस्ट दिल से जुड़ी 2 अलग समस्याएं हैं.

हार्टअटैक : किसी व्यक्ति को हार्टअटैक तब होता है जब उस के हृदय तक जाने वाले औक्सिजन युक्त रक्त का प्रवाह सही ढंग से नहीं होता है, जहां से रक्त पंप हो कर शरीर के अन्य हिस्सों तक पहुंचता है. हार्टअटैक के दौरान दिल की रक्त को पंप करने की क्षमता आंशिकरूप से कम हो जाती है. हार्टअटैक होने पर भी दिल रक्त को पंप करता रहता है, लेकिन इस की गति धीमी हो जाती है. हार्टअटैक होने पर व्यक्ति कुछ मिनटों अथवा कुछ घंटों के लिए जी सकता है और जीवित भी बच सकता है, लेकिन इस के लिए जरूरी है कि मरीज को जितनी जल्दी हो सके, इमरजैंसी केयर में ले जाया जाए क्योंकि शरीर के अंगों और दिमाग में भरपूर मात्रा में रक्त संचार न होने से उन अंगों में गंभीर डैमेजेज हो सकते हैं. ऐसे में स्ट्रोक हो सकता है, यहां तक कि अचानक कार्डिएक अरैस्ट भी हो सकता है.

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कार्डिएक अरैस्ट :  सवाल उठता है कि आखिर कार्डिएक अरैस्ट है क्या? कार्डिएक अरैस्ट अचानक हो सकता है बिना किसी अलर्ट अथवा वार्निंग साइन के. कार्डिएक अरैस्ट होने पर मरीज का दिल काम करना बंद कर देता है, क्योंकि ऐसे में हार्ट के इलैक्ट्रिकल सिस्टम में समस्या हो जाती है और पंपिंग की प्रक्रिया बाधित हो जाती है. इस के परिणामस्वरूप ब्रेन व शरीर के अन्य हिस्सों में रक्तप्रवाह पूरी तरह से रुक जाता है. कुछ ही सैकंड के भीतर मरीज अचेत हो जाता है और उस के पल्स गायब हो जाते हैं और अगले कुछ ही मिनटों में मरीज की मौत भी हो सकती है.

हार्टअटैक और कार्डिएक अरैस्ट में अंतर

हार्टअटैक उन तमाम कारणों में से एक है जो कार्डिएक अरैस्ट के लिए जिम्मेदार होते हैं. खराब कार्डियोवैस्कुलर हैल्थ, हार्ट डिजीज, एरिथमिया (अनियमित दिल की धड़कन) अथवा अनियमित हार्टबीट उन तमाम अन्य कारणों में शामिल हैं जिन के चलते हार्ट का इलैक्ट्रिक सिस्टम प्रभावित होता है और कार्डिएक अरैस्ट की स्थिति उत्पन्न होती है.

कार्डिएक अरैस्ट में सिर्फ गोल्डन सैकंड्स

हार्टअटैक के मामले में जहां मरीज के अटैंडैंट अथवा रैस्क्यूअर के पास मरीज को हौस्पिटल ले जाने के लिए गोल्डन आवर होता है वहीं कार्डिएक अरैस्ट के मामले में व्यक्ति के पास कुछ महत्त्वपूर्ण सैकंड्स ही होते हैं. ऐसे में कार्डिएक अरैस्ट के लक्षणों को पहचान कर तुरंत ऐक्शन लेना बेहद जरूरी होता है.

जब व्यक्ति को कार्डिएक अरैस्ट होता है तब तुरंत ऐंबुलैंस बुलानी चाहिए और साथ ही कार्डियोपल्मोनरी रीससिटेशन (सीपीआर) भी करना चाहिए. सीपीआर में मरीज की छाती पर हथेलियों से तेज दबाव बनाया जाता है. इस दौरान प्रति मिनट 120 कम्प्रैशन की स्पीड होनी चाहिए. ऐसा तब तक करना चाहिए जब तक कि मरीज को मैडिकल सहायता न मिल जाए.

हार्टअटैक और कार्डिएक अरैस्ट एक चीज नहीं हैं और इन का एकसमान प्रबंधन नहीं हो सकता है. ऐसे में हमारी यह जिम्मेदारी बनती है कि इन दोनों के बारे में संपूर्ण जानकारी रखें, न कि इन दोनों स्थितियों को इनोसैंस और इग्नोरैंस का दर्जा दे कर लापरवाही बरतें, खासतौर से कार्डिएक अरैस्ट की स्थिति में, जहां हमें जीवन बचाने के लिए कुछ गोल्डन सैकंड्स ही मिलते हैं.

– डा. वनिता अरोड़ा, कार्डिएक इलैक्ट्रोफिजियोलौजिस्ट, मैक्स  सुपर स्पैशियलिटी हौस्पिटल, साकेत, दिल्ली.

तुम देना साथ मेरा : भाग 3

‘‘ईशान, मु झे अपनी जिंदगी तुम्हारे साथ वैसे ही व्यतीत करनी है जैसी अब तक जीती आईर् हूं. खुशी से, प्यार में डूब कर और हंसतेखेलते,’’ ईशान का हाथ अपने हाथों में ले कर उस ने बात शुरू की,’’ अपने शरीर के प्रति हमारा सब से पहला कर्तव्य है और नैक्स्ट आती है हमारी फैमिली.’’

फिर उस ने अपने दोनों बेटों को पुकारा, ‘‘अर्णव, आरव, आज तुम्हें एक कहानी सुनाती हूं. तुम ने सर्कस में जगलर देखा है न. वह कैसे एकसाथ कई बौल्स उछालतापकड़ता है. वैसे ही हम सब जीवन के जगलर्स हैं. हम सब के हाथों में 5 बौल्स हैं- 3 रबड़ की और 2 कांच कीं. रबड़ की बौल्स को उछालो, गिराओ पर वे टूटेंगी नहीं, वापस बाउंस कर के हमारे हाथ में आ जाएंगी. किंतु कांच की बौल्स अगर गिरी तो टूटना तय है,’’ माहिरा अपने तीनों दर्शकों ईशान, अर्णव और आरव जो पूरी तल्लीनता से उसे देखसुन रहे थे, कि आंखों में आंखें डाल कर आगे कहने लगी, ‘‘हमारा प्रोफैशन, हमारी धनसंपदा और हमारा फ्रैंड सर्कल ये तीनों हैं रबड़ की बौल्स. एक बार छूट गईं तो इन का फिर से मिल पाना संभव है. हमारा स्वास्थ्य और हमारा परिवार ये दोनों हैं कांच की बौल्स. इन के प्रति लापरवाही बरती और यदि ये हाथ से फिसल गईं तो अपना नुकसान तय सम झो.’’

माहिरा की संजीदगी देख ईशान सम झ गया कि इस बार वह हैल्थ को ले कर काफी सीरियस है. माहिरा ने प्रिंटआउट के जरीए ईशान को शरीर में अधिक फैट जमा होने पर होने वाले नुकसानों के बारे में सम झाया, हैल्दी रहने के फायदे दिखाए, कई प्रकार के डाइट चार्ट्स भी शेयर किए.

अगली सुबह अलार्म ने नींद काफी जल्दी खोल दी. स्पोर्ट्स शूज, वाटर बोतल, हैंकी, टौवेल सबकुछ तैयार  था. माहिरा और ईशान ने रोजाना मौर्निंगवाक शुरू कर दी, साथ ही एक जिम की मैंबरशिप भी ले ली. इतनी रिसर्र्च का यह लाभ हुआ कि माहिरा डाइट में भी बदलाव लाई. अधिकतर घर का खाना, 1-2 चम्मच तेल में ही खाना पकाना, मीठे पर कंट्रोल, पोर्शन कंट्रोल, टाइम पर खाना आदि कदम उठाने से जल्द ही ईशान को अपने घुटनों के दर्द में आराम मिलने लगा. 1 साल की तपस्या से शरीर का काफी फैट उतर चुका था. माहिरा का साइज भी अब सिकुड़ कर मीडियम पर आ पहुंचा.

शादी की 20वीं वर्षगांठ की पार्टी के उपलक्ष में दोनों ने स्पैशल पोशाकें सिलवाईं.

मैरून कलर कोऔर्डिनेट कर के जब दोनों ने पार्टी में ऐंट्री की तो सारा हौल मित्रों व रिश्तेदारों की तालियों से गुंजायमान हो उठा.

कोई कहता, ‘‘तुम दोनों को देख कर कौन कह सकता तुम्हारी शादी को 20 साल हो गए हैं,’’ तो कोई कहता, ‘‘वाह, कितने यंग और फ्रैश लग रहे हो जैसे नया शादीशुदा जोड़ा.’’

प्रशंसा और कौंप्लिमैंट्स की बरसात में भीगते हुए दोनों स्टेज की ओर बढ़े.

सब के जवाब में ईशान कहने लगा, ‘‘इस का श्रेय सिर्फ और सिर्फ माहिरा को जाता है. इस के संकल्प और मेहनत का परिणाम है कि इस ने मेरा बुढ़ापा कई साल पीछे धकेल दिया है और इसी खुशी में आज मैं और माहिरा एक कपल डांस करेंगे. चलाओ मेरी रिक्वैस्ट का गाना,’’ शरमाती हुई माहिरा को बांहों में ले ईशान डांस फ्लोर पर जा पहुंचा. पीछे से गाना बज उठा-

‘‘जब कोई बात बिगड़ जाए, जब कोई मुश्किल पड़ जाए, तुम देना साथ मेरा ओ हमनवाज…’’                                   द्य

‘‘कल और आज इन 2 दिनों में उन की

जिंदादिली से दौड़ती जिंदगी को बड़ा  झटका लगा था.

इस अनुभव ने दोनों को  झक झोर दिया…’’

तिलिस्मी रोशनी के सफर में : भाग 2

लेखिका- दीपान्विता राय बनर्जी

‘‘मेरा एक दोस्त है निहार, उस ने दिया है. निहार हमेशा ही कुछ न कुछ देना चाहता है, मैं ही उसे ज्यादा भाव नहीं देती. जब हमारे होटल में आए दिन बड़ेबड़े नेता, अभिनेता, गायक और अन्य सैलिब्रिटीज आते हैं और मेरे बिना उन का काम चलता भी नहीं, मैं निहार को भाव दे कर अपना भाव क्यों गिराऊं?’’ ‘‘दी, आप से एक बात है…’’

‘‘अरे रुकरुक, अभी फोन रखती हूं, दरवाजे पर कोई है, मैं बाद में बात करूंगी,’’ पूर्बा ने फोन काटा और उठ कर दरवाजा खोलने चली गई.’’ ‘‘निहार. ड्यूटी खत्म हो गई क्या?’’ ‘‘देखो क्या लाया हूं तुम्हारे लिए. ‘लजानिया’. इटैलियन डिश मैं ने बनाई है… आज होटल मेन्यू में थी, मेरी जिम्मेदारी में, काम खत्म होते ही मैं ने इसे तुम्हारे लिए पैक किया और दौड़ा आया. चीज और सौस का बढि़या कौंबिनेशन बना कर ओवन में रख इस के कई लेयर्स डाले हैं. तुम ने एक बार खाने की इच्छी जताई थी… यह पकड़ो, मैं जा रहा रहा हूं, अभी ड्यूटी बाकी है मेरी.’’

‘‘अरे कमाल करते हो, थैंक्यू. मैं खाना आर्डर करने ही वाली थी.’’ ‘‘ड्यूटी के वक्त होटल का खाना खाती ही हो, क्यों अपने सैलिब्रिटीज सैफ के दिए माइक्रोवैव में नहीं बनाना?’’‘‘रिसैप्शन के काउंटर में 10 घंटे खड़ेखड़े हड्डी पसली चूर हो जाती है, कौन छुट्टी में खाना बनाए. ऐसे भी ड्यूटी न भी करूं तो भी खाना बनाना मु झे पसंद नहीं. ये चीजें तो शौक की वजह से लीं.’’‘‘मैं निकलता हूं, कल बताना कैसी लगी तुम्हें डिश, वैसे कल मैं व्यस्त रहूंगा, बड़ा कोई सिंगर रुक रहा है हमारे होटल में, कौंटिनैंटल डिश की जिम्मेदारी रहेगी मेरी.’’

‘‘अरे हां, उन्हें अटैंड करने की जिम्मेदारी तो मेरी ही रहेगी, ठीक है मैं फोन कर लूंगी तुम्हें.’’दोनों एक ही बड़े होटल प्रौपर्टी से जुड़े थे. इंडियन इंस्टिट्यूट औफ होटल मैनेजमैंट से पढ़ कर निकलते ही कैंपस सिलैक्शन में दोनों का एकसाथ इस बड़े होटल गु्रप में हो गया था. निहार का फूड ऐंड ब्रेवरेज डिपार्टमैंट में और पूर्बा का बतौर ट्रेनी मैनेजर. कस्टमर और सैलिब्रटी गैस्ट की ओर से अगर बढि़या फीडबैक रहा तो होटल उसे सालभर में पदोन्नति दे कर मैनेजर बना सकता है. पूर्बा आगे बढ़ने के लिए, अपने ऐशोआराम को बढ़ाते रहने के लिए हाई प्रोफाइल लोगों को खुश करने में गुरेज नहीं करती.

22 साल की सुंदर पूर्बा 5 फुट 5 इंच की हाइट और खूबसूरत फिगर के साथ इस होटल गु्रप की शान ही थी. कस्टमर उस के साथ ज्यादा वक्त बिताना चाहते और यह बात पूर्बा बखूबी सम झती थी. पूर्बा तो निहार को भी सम झती थी. आज से नहीं कालेज से ही. लेकिन चतुर पूर्बा निहार के साथ जुड़ने के आखिरी अंजाम से भी वाकिफ थी. ज्यादा से ज्यादा क्या एक बिना घूंघट वाली, बिना परदे वाली दुलहन? उस के सपने बड़े हैं. निहार मगर ज्यादा कहां सम झता था पूर्बा को? उसे बस यही लगता था कि सारी कायनात उस के लिए बारबार संयोग पैदा करती है ताकि वह अपने मनमीत से मिल सके. 23 साल का यह नौजवान अपनी रौ में इतना मतवाला था कि पूर्बा को टटोलने की भी उस ने कभी जहमत नहीं उठाई.’’

रोबदार, रसूखदार चमचमाते पैसों की खनक वाले हाई प्रोफाइल लोगों की दीवानी पूर्बा अपनी पुरानी पहचानको भुला कर तिलिस्मी रोशनी के सफर में निकल पड़ी थी.उसे गिफ्ट अच्छे लगते हैं, महंगे, बेशकीमती आधुनिक सामान की वह शौकीन है और वह भी इतना कि कोई भी कीमत इस के लिए भारी नहीं. घर की याद यानी क्लर्क पापा की तंगहाली की कहानी. घर यानी मां की दो पैसे बचाने की जद्दोजहद और निहार मतलब एक और घर एक और सम झ कर खर्च करने की कसमसाहट.

निहार उसे अब अच्छा नहीं लग रहा था. वह जानती थी एक बार वह निहार की हो गई, तो वह उस पर खर्चना बंद कर देगा, दुनियाभर की सारी रौनकें अपना रास्ता बदल लेंगी. निहार अपने गिफ्ट के बदले 2-4 बार सान्निध्य मांग लेता तो शायद पूर्बा उसे निराश नहीं करती. इतनी भी संगदिल नहीं वह और न ही संस्कार का लबादा चढ़ा रखा उस ने. उस की पसंद की जिंदगी इन राहों से हो कर गुजरती नहीं, उसे मालूम है. लेकिन निहार तो उसे ही चाहता है पूरापूरा. उसे हंसी आती है उस पर. ये छोटीछोटी मासूम अनुभूतियां अगर उसे गुलाम बना सकतीं तो वह यों बड़ेबड़े सम झौते नहीं करती. खैर, निहार की मरजी, जब तक लुटाना चाहे लुटाए.

पूर्बा का एक सिंगर के साथ आजकल कुछ ज्यादा उठनाबैठना था, इतना कि यह गायक अकसर होटल के बदले उस के फ्लैट में रुक जाता. इस की संगति में पूर्बा को महसूस हुआ कि वह अच्छा गाती भी है तो उस नामी सिंगर के अधिक निकट रहने की लालसा ने उसे भरसक गाने की प्रेरणा दी.कुछ दिनों बाद सिंगर विदेश गया, पूर्बा की लाख कोशिशों के बावजूद उस के साथ संपर्क साधा न जा सका और कुछ ही दिनों में उस गायक की शादी की खबर आई.

पूर्बा बुरी तरह  झुं झला गई, लेकिन ऐसी मनमानी तो अब उस की जीवनधारा का हिस्सा है. किनकिन पर खफा हो. जल्द ही उस गायक की यादों से उबर कर एक 50 साल के रसूखदार राजनेता के संपर्क में आ गई थी वह. हीरे की बेशकीमती हार के ले कर जिंदगी को जीने के वादे थे इस बार उस के लिए.

सपने फिर  झील में कमल की तरह खिलने लगे, इस राजनेता का जैक जगा कर इस बार मैनेजर का पद ले लेने की मंशा थी उस की, अचानक देशविदेश में कोरोना की खबरों ने चौंकाना शुरू किया. खबरें थी कि अपना देश भी बंद हो सकता है. सोशल डिस्टैंसिंग की बात के जोर पकड़ते ही उस के सारे हाईप्रोफाइल संपर्क कट गए. जो जहां था थमने लगा. उस ने कई बड़े लोगों से संपर्क करना चाहा, लेकिन हर ओर से उपेक्षा ही हाथ आई. आशाहीन अनिश्चितता  में उस ने फिलहाल घर लौटने का मन बनाया.

होटल वालों ने अपने कुछ स्टाफ को छोड़ बाकी सारे नए स्टाफ को अनिश्चित समय के लिए छुट्टी दे दी थी. अंदर की बात यह थी कि इन्हें फ्लैट भी खाली कर देने का अल्टिमेटम था. पूर्बा को 15 सौ किलोमीटर दूर घर लौटना था. 2 दिन की शुरुआती जनता कर्फ्यू लगने से पहले उस ने निहार को कौल लगाया. निहार ने फोन उठा लिया. पता चला वह घर आ गया है. ‘‘मु झे बताया नहीं,’’ उलाहना दिया पूर्बा ने. ‘‘तुम्हें फुरसत नहीं ऊंचे लोगों के बीच उठनेबैठने से, हमारी क्या बिसात. इसलिए डिस्टर्ब नहीं किया,’’ निहार का टका सा जवाब मिला उसे. सरकारी वाहन बंद थे, प्राइवेट वाहन का अतिरिक्त खर्च सहते हुए वह घर पहुंची किसी तरह.

 

तिलिस्मी रोशनी के सफर में : भाग 1

लेखिका- दीपान्विता राय बनर्जी

‘‘फिरआज जातेजाते ढाई हजार का उधार ठोंक कर गई तुम्हारी पनौती बेटी पूर्बा.’’ किराना सामान रख कर बापदादा के समय के छोटी से डाइनिंगटेबल से लगी लकड़ी की कुरसी पर बैठते हुए आशुतोष बाबू ने रूमाल से अपने चेहरे का पसीना पोंछा. पूर्बा की मां बिना कुछ कहे घर के काम में जुटी रही.

एक तो उमस भरी गरमी की शुरुआत और यह कोल्हू की चक्की. 3-4 साल जो भी बचे हैं नौकरी के, क्लर्की में ही निकलेंगे वह तो पता है, लेकिन तब तक पसीने में तब्दील होता गाढ़ी कमाई का खून कितना बचा रहेगा सवाल यह है. वही सुबह वही जरा सा अखबार और ढेर सारी मनहूस खबरें. और फिर छूटते ही बड़ा सा बाजार का थैला, नून लाओ तो तेल खत्म, तेल लाओ तो आटा, दाल, प्याजआलू. जिंदगी के साथसाथ एडि़यां घिस गईं. लेकिन चप्पलें वही चलती ही जा रही हैं, वरना खुद के लिए एक बनियान नहीं खरीद पाता.

फटी बनियान वाले बगल को कमीज के नीचे दबा कर वर्षों चला लेते हैं यहां, अच्छी चप्पलों का शौक कहां से पालें. वह बीवी बेचारी अड़ोसपड़ोस की महिलाओं के लिए साड़ी में फौल, पिको सिलने का काम कर लेती है, घर की साफसफाई, रसोई आदि में छोटी बेटी दुर्बा अपनी 12वीं की पढ़ाई के साथ हाथ बंटाती है, तो बचत के फौर्मूले और छोटीछोटी कमाई के भरोसे क्लर्की के वेतन से घर की चक्की जैसेतैसे चल रही है. छोटा बेटा अंशुल अभी 10वीं से 11वीं में गया है और इस में अगर उस के 80% आए हैं तो यह आशुतोष बाबू की छोटी बेटी दुर्बा का ही हाथ माना जाएगा. ये तो जनाब बाल संवारने और कमीज बदलबदल कर आईने के सामने खड़े होने में ही आधी जिंदगी निकाल दें.

‘‘खाना तैयार है पापा. और क्या कह रहे थे आप? दीदी ने फिर उधारी की?’’ ‘‘हफ्तेभर पहले दिल्ली जाते वक्त वह ढाई हजार के हेयर जेल, बौडी लोशन, हेयर स्प्रे कई सौ की क्रीम लिपस्टिक, दुनियाभर के चोंचले वाले प्रोडक्ट ले कर गई है. भई मु झे मालूम है वह होटल इंडस्ट्री में है, उसे रिसैप्शन में ड्यूटी बजाते वक्त इन सारी चीजों की जरूरत हो सकती है, लेकिन उसे अपने परिवार की स्थिति को सम झते हुए जरूरत से बाहर की चीजों को अभी खरीदने से बचना चाहिए. नहीं, बस दूसरों की देखादेखी उसे सबकुछ चाहिए. फिर अपने वेतन से ले न. हम बड़ी मुश्किल से यहां परिवार का खर्चा चलाते हैं जब भी आती है हम उसे खाली हाथ भी नहीं जाने देते. अभी अंशुल के स्कूल और कोचिंग की तगड़ी फीस भरनी पड़ी, आगे की पढ़ाई बची है, तेरी पढ़ाई है, शादी का खर्चा, हमारा बुढ़ापा. लेदे कर मेरे दादाजी का यह पुस्तैनी मकान हमारी शरणस्थली बनी हुई है वरना हमारी तो नैया ही डूब जाती. कुछ सम झना ही नहीं चाहती.’’

‘‘पापा, आप दीदी के खर्चे के बारे में जानते ही कितना हो? वह अपने वेतन के पैसे अपने खानेपीने, विलास वैभव, घूमनेफिरने, पार्टीशार्टी और दिखावे पर खर्च करती है, इसलिए तो नौकरी के बावजूद हमें यहां कुछ मदद करना तो दूर, महीने के जरूरी खर्चे के लिए हम से ही उम्मीद बांधती है. सालभर की नौकरी है 25 हजार उस के होटल की तरफ से दिए फ्लैट के किराए में ही चले जाते, जबकि चाहती तो दूसरों के साथ शेयर वाले फ्लैट में भी रह सकती थी. उसे कटौती नहीं खर्चे सम झ आते हैं, कर्तव्य नहीं अधिकार सम झ आते हैं.’’

‘‘रात को वीडियो कौल कर के कहना उस से कि हर बार उस के दिल्ली जाते ही यहां किराना दुकान से पता चलता है कि फलांफलां सामान की उधारी चढ़ी है. अब हम से यह बरदाश्त नहीं होगा.’’ रात वीडियो कौल तक अगर दुर्बा बिफरती रही तो दुर्बा की मां बड़ी बेटी पूर्बा की ओर से ऐसे कई तर्क रखती गईं जो पूर्बा को भी खयाल न आता. मसलन, उस की सुंदरता और सफलता पर सब जलते हैं. इस खानदान में ऐसी बेटी कभी आज तक हुई है. स्मार्ट खूबसूरत, ऊंची सोसाइटी में रहने वाली, बड़ेबड़े लोगों से मिलनेजुलने वाली. सुंदरता में मु झ पर गई है तो तुम लोगों के पापा चिढ़े रहते हैं. मैं तो कमा कर कुछ दे रही न घर में, फिर मेरी बड़ी न दे तो क्या.’’

‘दीदी सिर्फ सुंदरता में ही नहीं सबकुछ में तुम पर गई है मां,’’ मन ही मन बुदबुदा कर रह गई दुर्बा. वीडियो कौल उठा ली थी पूर्बा ने. सुंदर आधुनिक छोटे से फ्लैट में अपने बिस्तर पर पूर्बा पसरी पड़ी थी. सोने का यह कमरा आधुनिक साजोसामान से सुसज्जित था. पूर्बा अपना फोन ले कर बगल वाले हौल में गई. रसाई से लगे डाइनिंग स्पेस में नया फ्रिज दिखाते हुए उस ने बता दिया कि यह उस की तनख्वाह से है और पापा के बिना उस ने यह खरीदा है. रसोई में नया गैस चूल्हा, माइक्रोवैव, यहां तक कि नया डाइनिंग सैट जो पूर्बा ने उस के किसी हाई प्रोफाइल दोस्त के गिफ्ट चैक से लिया था, दुर्बा को दिखाया. दुर्बा की दृष्टि तेज थी, ‘‘अरे यह विंड चाइम? यह कब लिया?’’

 

Top 10 Breakfast Recipe In Hindi : टॉप 10 ब्रेकफास्ट रेसिपी इन हिंदी

Top  Ten Breakfast Recipe In Hindi : इस आर्टिकल में हम आपके लिए लेकर आएं है सरिता की Top  Ten Breakfast Recipe In Hindi. इस खास रेसिपी को आप अपने परिवार के साथ बनाकर एंजॉय कर सकते हैं. ये सभी रेसिपी आप अपने घर पर आसानी से बना सकते हैं. आपका जब भी मन करे इस रेसिपी को ट्राई कर सकती हैं. तो अगर आप भी सभी को खुश करने के लिए बनाना चाहती है ब्रेकफास्ट तो ट्राई करें Top  Ten Breakfast Recipe In Hindi

  1. स्टफ्ड मसाला इडली बनाने का आसान तरीका

स्टफ्ड मसाला इडली बनाने के लिए सबसे पहले आलू को मैश करके या फिर कद्दूकस करें. इसके बाद एक पैन गर्म करें और उसमें ऑयल डालें. जब ऑयल गर्म हो जाए तो इसमें करीपत्ता डालें. इसके बाद इसमें प्याज डालकर दो मिनट के लिए फ्राई करें. अदरक−लहसुन पेस्ट डालकर मिक्स करें. अब इसमें हल्दी व नमक डालकर मिलाएं. आखिरी में इसमें कद्दूकस किए हुए आलू डालकर  लो फलेम पर करीबन एक मिनट के लिए पकाएं. लास्ट में कट्टा हुआ धनिया पत्ता मिलाएं.

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2. बच्चों के लिए ऐसे बनाएं मैंगो टॉफी, मैंगो पल्प और मैंगो स्क्वैश

आम (मैंगो) एक ऐसा फल है, जो गरीब अमीर सभी की पहुंच में है. अधिक दिनों तक आम का मजा लेने के लिए प्रसंस्करण कर अनेक चीजें भी बनाई जाती हैं.

आम में विटामिन ए प्रचुर मात्रा में पाया जाता है. विटामिन सी भी अच्छी मात्रा में होता है. आम का प्रसंस्करण विभिन्न रूपों में होता है. जैसे स्क्वैश, जैम, टौफी, मुरब्बा, नैक्टर, रस, अचार, चटनी इत्यादि.

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3. ब्रेकफास्ट रैसिपीज : न्यूट्रीशियस बड़ा पाव

सुबह का ब्रेकफास्ट अच्छा हो तो पूरा दिन अच्छा बीतता है, ऐसे में रोज- रोज एक तरह के ब्रेकफास्ट से ऊब चुके हैं तो आप बड़ा पाव नाश्ते में ट्राई कर सकते हैं. तो आइए जानते हैं कैसे बनाएं हेल्दी ब्रेकफास्ट.

बेसन में अजवायन, नमक, हलदी और बेकिंग सोडा मिलाएं. थोड़ा पानी डाल कर पकौड़ों के घोल से थोड़ा गाढ़ा घोल तैयार कर रख लें. एक नौनस्टिक कड़ाही में 1 चम्मच तेल गरम कर के राई, जीरा, करीपत्तों का तड़का लगाएं. उबले आलुओं को हाथ से अच्छी तरह फोड़ कर छौंक दें. बाकी सभी मसाले डालें और भून कर निकाल लें.

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4. स्टफ इडली से लेकर स्टफ कचौरी तक, सफर में लीजिए इन 6 स्नैक्स का मजा

सफर का भरपूर लुत्फ तभी आता है जब खानापीना भी साथसाथ चलता रहे. इसलिए सफर में अपने साथ खाने की चीजें ले जाना न भूलें. बस, ध्यान रखें कि वे चीजें जल्दी खराब न हों. आइए, बनाएं कुछ ऐसे ही स्नैक्स जो बढ़ा दें आप के सफर का मजा दोगुना.

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5. शाम की चाय के साथ लीजिए इन 5 Snacks का मजा

चने की दाल को करीब 6 घंटे पानी में भिगोएं. पानी निथार कर दाल और लहसुन को दरदरा पीस लें.फिर बाकी सारी सामग्री इस में मिला दें. अब दोनों प्रकार का आटा मिला कर मोयन का तेल, सोडा बाई कार्ब और एकचौथाई चम्मच तेल डाल कर रोटी के आटे की तरह मुलायम गूंध लें.

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6. बारिश में घर पर ही बनाएं ये 5 टेस्टी पास्ता डिश

बच्चे कई ऐसी सब्जियां भी खा जाते हैं जिन्हें वे पसंद नहीं करते और खा कर आप की तारीफ भी करते हैं कि वाह, मम्मी, पास्ता बहुत अच्छा था. सब्जियों से विटामिंस, खनिज व रेशे की प्राप्ति होती है. आजकल गेहूं और सूजी से बना पास्ता व नूडल्स भी मिलते हैं. आप उसे कैसे पोषक बनाते हैं, यह आप के ऊपर है, जैसे सूजी में मैदा की जगह आटा या ओट्स के आटे का इस्तेमाल कर सकते हैं. नट्स जैसे अखरोट, बादाम और काजू आदि डाल सकते हैं.

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7. घर पर इस आसान रेसिपी से बनाएं पनीर चाउमीन

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अब आप हरा प्याज, गाजर , धनिया पत्ता , शिमला मिर्च , पत्ता गोभी को अच्छे से काट लें, अब सभी सब्जियों को अच्छे से धो लें, इसके बाद से एक कड़ाही में तेल गर्म करें और फिर इसमें सभी सब्जी को डालकर चलाएं. अब थोड़ी देर के लिए इसे ढ़क कर रख दें.

सब्जी में अब हल्दी और नमक डालकर चलाएं, इसके बाद से इसे थोड़ी देर में चलाए, अब चलाने के बाद इसमें पनीर डालें.

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8. इस विधि से बनाएं चीज डोसा सभी को आएगा पसंद

सबसे पहले डोसे के घोल में स्वादनुसार नमक मिलाएं, और अच्छे से फेंट लें, इसके बाद नॉन स्टीक तवे को आंच पर गरम करें, उसके बाद डोसे के घोल को अच्छे से मिलाकर उस पर डालें, लेकिन इससे पहले ध्यान रखें कि तवा गरम होते ही उस पर पानी डालकर सूखे कपड़े से पोछ लें,

अब जब डोसा एक तरफ से हो जाए तो उसे आहिस्ता- आहिस्ता किनारे से छुडाएं, और अब उसपर घिसा हुआ चीज मिलाएं, अब डोसे में घिसा हुआ चीज मिलाएं.

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9. बाटी बनाने का सबसे आसान तरीका

अब आटे में धीरे-धीरे करके दूध को मिलाकर गूंथे. आटा गूंथने के बाद उसे कुछ देर के लिए रख दें.अब इस आटे को 12 भाग में बांट लें. अब लोई को अच्छे से बना लें. अब मैने से दबाकर चिपटा बना लें. अब एक कप में करीब 5 कप गर्म पानी करें. जब पानी उबलने लगे तो उसमें बाटी डालें. फिर उसे 15 से 20 मिनट तक उबालें. जब बाटी उबल जाए तो वह नीचे की तरफ चली जाती है. इसका मतलब होता है कि बाटी अब तैयार है.

10. सर्दियों में बनाएं पालक के पराठे

 

सर्दी के मौसम में लोग ज्यादातर पालक खाना पसंद करते हैं. ऐसे में लोग पालक के कई तरह के फूड बनाकर खाना पसंद करते हैं. जैसे साग, पालक के परांठे. ऐसे में आज मैं आपरको पालक के परांठे बनाने बताउंगी. कैसे सर्दी के मौसम में पालक के परांठे बनाएं जाते हैं. घर पर आप अपने परिवाल वालों के लिए बहुत आशान तरीके और कम समय में पालक के परांठे बनाएं जा सकते हैं.

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धर्म के हाथों मारे जाते लखबीर

जब पीट-पीट कर उसकी गर्दन तोड़ दी गई, वह जिंदा था. जब उसका हाथ काटकर उसी के बाजू में टांग दिया गया, वह जिंदा था. प्राणों की भीख मांगते उस निरीह को घेरकर जब वहशी दरिंदे क्रूर अट्टहास कर रहे थे, वह जिंदा था. उसके कटे-टूटे शरीर से उसका लहू बूंद-बूंद कर टपकता रहा और वहां खड़े धर्म का ठेका लिए हत्यारे उसकी हर एक बूंद का स्वाद अपनी आँखों से चखते रहे. उसकी कमजोर पड़ती जा रही सिसकियों को चटखारे लेकर सुनते रहे और अंत में जब प्राण उसके शरीर से निकल गए तो उसकी निर्जीव देह को जमीन पर खींच-खींच कर उसका तमाशा दिखाया और फिर बेरिकेटिंग पर उलटा लटका कर उसके बगल में हथियार लहराते हुए हत्यारे “राज करेगा खालसा” के नारे लगाते रहे. ये किसी एक हत्यारे का काम नहीं था, इसमें कई हत्यारे शामिल थे, कुछ उसका शरीर काट रहे थे, कुछ निर्दयी अट्ठास कर रहे थे तो कुछ नारे लगा रहे थे. लखबीर को मारने के लिए हत्यारों का पूरा गिरोह था.

लखबीर सिंह, पुत्र दर्शन सिंह, गांव चीमा कला, थाना सराय अमानत खान, जिला तरनतारन, जो अपनी हत्या से पहले तक बहुत धार्मिक व्यक्ति था, सेवादार था, धर्म की सेवा में जीवन दिए दे रहा था, उसी लखबीर की धर्म के नाम पर हत्या कर दी गयी. 8, 10 और 12 साल की तीन मासूम बेटियों के पिता को भरे चौराहे सबके सामने काट डाला गया. उसकी पत्नी जिसने हजारों बार श्रीगुरु ग्रंथ महाराज के आगे मत्था टेककर अपने सुहाग की खुशहाली और लम्बी उम्र की प्रार्थनाएं की होंगी, उसी ग्रन्थ साहेब के अपमान का आरोप मढ़कर उसका सुहाग उजाड़ दिया गया. धर्म के भेड़ियों को मानव रक्त चखने की इच्छा हुई और उसने सबसे निरीह मेमने (दलित) को घसीट कर ‘बेअदबी’ का इलज़ाम लगा कर ज़िंदा नोच खाया.

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ये हिन्दुस्तान के भीतर घुसा तालिबान है जो मासूम लोगों की हत्या कर उनके शवों को सार्वजनिक स्थान पर लटका कर आम लोगों को डराने की कोशिश करता है. तालिबान भी पहले हाथ और पैर काटता है और फिर मरते हुए आदमी को किसी सार्वजनिक स्थान पर लटका देता है. लखबीर सिंह की लाश को सिंघु बॉर्डर से गुजरने वाली एक ऐसी सड़क पर बैरिकेड से लटकाया गया जहां से रोज सैकड़ों गाड़ियां गुजरती है.

मीडिया के सामने सीना तान कर घूम रहे धूर्तों में से एक के भी पास जवाब नहीं था कि लखबीर से आखिर ‘बेअदबी’ किस तरह हुई? उसने क्या किया जिसकी सजा ऐसी बर्बर और दर्दनाक मौत के रूप में उसको दी गयी? किसी हत्यारे ने कहा कि वह निक्कर पहन कर गुरु ग्रंथ साहिब के पास मंडरा रहा था, कोई बोला वहां माचिस पड़ी थी, उससे जला भी सकता था.

यानी सिर्फ शक की बिना पर कि ‘माचिस पड़ी थी जिसको वह जला सकता था’ उसको मार डाला. कल ये कुंद दिमाग के हत्यारे ऐसे ही किसी को भी खींचकर ज़िंदा फाड़ देंगे, बस मनोरंजन के लिए और कह देंगे कि ‘बेअदबी’ हुई. क्या समाज के अंदर ऐसे भयानक अपराधियों की कोई जगह होनी चाहिए? क्या धर्म का झंडा इनके हाथों में होना चाहिए? क्या ये किसी समाज की अगुवाई के लायक हैं?

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धर्म का झंडा उठाये धर्म के बर्बर ठेकेदारों ने एक निरीह को कैसी दर्दनाक मौत दी, वह मंजर पूरे देश ने देखा. धर्म के नाम पर मानव के क़त्ल की वीभत्स दृश्य सबके सामने हैं. जिस समय ये वीभत्स काण्ड अंजाम दिया जा रहा था, सैकड़ों की भीड़ उसका वीडियो बना कर सोशल मीडिया पर अपलोड करने में जुटी थी. लखबीर सिंह तड़पता रहा, चीखता रहा, दर्द से करहाता रहा लेकिन वहां खड़े लोगों में से एक भी आगे बढ़ कर हत्यारों का विरोध करने की हिम्मत नहीं कर पाया. धर्म के नाम पर क़त्ल हो रहा था और सब कथित धार्मिक धर्म को अपमानित होता देख रहे थे. अभी भी देख रहे हैं. पुलिस वालों की पतलूनें हत्यारों को गिरफ्तार करने में ढीली हुई जा रही हैं. कानून धर्म के आगे हाथ जोड़े कांप रहा है. अब तक मात्र एक आदमी को पुलिस अदालत के सामने पेश कर पायी है, वो भी तब जब उसने खुद सीना ठोंक कर सरेंडर किया और कहा कि मैंने मारा लखबीर को. बाकी सारे कातिल छुट्टे सांढ़ की तरह छातियाँ ताने घूम रहे हैं और पुलिस की हिम्मत नहीं कि उनकी गर्दन पकड़ें.

बाबा बलवान सिंह ने फेसबुक पर वीडियो पोस्ट करके ह्त्या की जिम्मेदारी बड़ी शान से ली. उसने अपना फ़ोन नंबर भी दिया. मगर पुलिस अभी तक उस हत्यारे को गिरफ्तार नहीं कर पायी. बाबा नारायण सिंह नाम के निहंग ने बड़े गर्व के साथ अपने फेसबुक अकाउंट पर दावा किया कि उसने लखबीर सिंह के पैर काटे. अमनदीप सिंह नाम के निहंग ने लिखा कि उसने उसके हाथ काटे. मगर पुलिस इन हत्यारों तक नहीं पहुंच पायी. यह सोच कर झुरझुरी पैदा होती है कि मानवता के हत्यारे सोशल मीडिया पर किस कदर सक्रिय हैं और देश का कानून और कानून के रक्षक इनके आगे कितने लाचार और अपंग हैं. इन खूंखार अपराधियों के आगे उनके हौसले पस्त हैं.

 

किसान आंदोलन के दौरान निहंगों ने कुंडली बॉर्डर पर पहले भी कई हिंसक घटनाओं को अंजाम दिया है. इनमें निहंगों पर मुकदमे भी दर्ज हुए हैं. 12 अप्रैल को कुंडली बार्डर पर निहंग ने एक युवक शेखर पर तलवार से जानलेवा हमला किया था. 12 जून को सेरसा गांव के पंच रामनिवास पर हमला कर उन्हें घायल किया गया. 3 अगस्त को सीआरपीएफ जवान पर जानलेवा हमला हुआ, जिसमें 10-15 अज्ञात प्रदर्शनकारियों पर मुकदमा दर्ज हुआ. 2 अक्टूबर को लंगर में दाल लेने गए युवक राजू पर तलवार से हमला कर गंभीर रूप से घायल कर दिया गया. मनौली के कार सवार किसान पर जानलेवा हमला किया और उसकी गाड़ी तोड़ दी गयी.  कुंडली के एक दुकानदार पर उसकी दुकान में घुसकर हमला किया गया. पिछले वर्ष पटियाला में भी ऐसी ही एक घटना हुई थी, जब निहंग सिखों ने एक पुलिस इंस्पेक्टर का हाथ सिर्फ इसलिए काट दिया था क्योंकि उसने उन्हें सब्जी मंडी में प्रवेश की इजाजत नहीं दी थी.

उस समय पंजाब समेत पूरे देश में लॉक डाउन था. इसी तरह जब 2020 की शुरुआत में जब दिल्ली में दंगे हुए थे, तब भी एक निहंग सिख हाथ में तलवार लेकर एक पुलिस वाले के पीछे दौड़ रहा था. इसी साल 26 जनवरी के मौके पर लाल किले के पास हिंसा हुई थी. तब भी कुछ निहंग सिखों ने आस पास खड़े लोगों को और पुलिस वालों को तलवारों से डराने की कोशिश की थी. मगर इन तमाम वारदातों से पुलिस ने खुद को दूर ही रखा. कोई एफआईआर नहीं, कोई छानबीन नहीं, कोई गिरफ्तारी नहीं. उधर किसान नेताओं ने निहंगों की वहशियाना हरकतों को शह दी. किसी ने इनकी ना तो निंदा की और ना इन नृशंस और कुंद दिमाग के लोगों को धरना स्थल खाली करने के लिए कहा गया. अब इतनी बड़ी घटना के बाद किसान नेताओं को होश आया है.

लखबीर की नृशंस ह्त्या के बाद संयुक्त किसान मोर्चा और किसान आंदोलन से जुड़े दूसरे गुटों ने खुद को तुरंत इस घटना से अलग कर लिया है. योगेंद्र यादव ने तुरंत बयान जारी कर ह्त्या की निंदा की और कहा कि ये लोग (निहंग) किसान आंदोलन का हिस्सा नहीं हैं. मीडियाकर्मियों को तुरंत संयुक्त किसान मोर्चा की तरफ से वाट्सएप मैसेज भेजे गए कि – ‘संयुक्त किसान मोर्चा इस नृशंस हत्या की निंदा करते हुए यह स्पष्ट कर देना चाहता है कि इस घटना के दोनों पक्षों, इस निहंग समूह/ग्रुप या मृतक व्यक्ति, का संयुक्त किसान मोर्चा से कोई संबंध नहीं है. हम किसी भी धार्मिक ग्रंथ या प्रतीक की बेअदबी के खिलाफ हैं, लेकिन इस आधार पर किसी भी व्यक्ति या समूह को कानून अपने हाथ में लेने की इजाजत नहीं है. हम यह मांग करते हैं कि इस हत्या और बेअदबी के षड़यंत्र के आरोप की जांच कर दोषियों को कानून के मुताबिक सजा दी जाए. संयुक्त किसान मोर्चा किसी भी कानून सम्मत कार्यवाही में पुलिस और प्रशासन का सहयोग करेगा. लोकतांत्रिक और शांतिमय तरीके से चला यह आंदोलन किसी भी हिंसा का विरोध करता है.’

सवाल उठता है कि अगर ये बर्बर निहंग आंदोलन का हिस्सा नहीं थे, तो अब तक वे सिंधु और कुंडली बॉर्डर पर क्या कर रहे थे? जब भीड़ बढ़ानी हो, सीमा पर जमावड़ा लगाना हो, तब ये आंदोलन का हिस्सा हो जाते हैं और जब ये किसी अमानवीय घटना को अंजाम दे दें तो तुरंत इनसे किनारा कर लिया जाता है? क्या ये आंदोलन का नेतृत्व करने वाले नेताओं के दोगलेपन को उजागर नहीं करता? जिम्मेदारी और जवाबदेही से बचने का ये तरीका देश के मौकापरस्त राजनीतिज्ञों की कु-प्रवृत्ति से अलग है क्या?

लखबीर सिंह को सिर्फ मारा नहीं गया, बल्कि तड़पा-तड़पा कर मारा गया. वह दलित था. हमारे देश में दलितों के नाम पर खूब राजनीति होती है. दलितों के नाम पर इस देश के नेता राजनीति करने का एक भी मौका नहीं गंवाते हैं, दलितों के नाम पर खूब वोट लूटे जाते हैं, लेकिन दलितों की हत्याओं पर सब अपनी आँखें मूँद लेते हैं. लखबीर सिंह की हत्या पर भी सब चुप हैं और अब इसमें किसी को दलित एंगल दिखाई नहीं दे रहा. दलितों के रहनुमा बने मायावती, चंद्रशेखर आज़ाद जैसे नेताओं के मुँह पर ताले पड़े हैं. दलितों के घर पूड़ी-सब्जी जीमने वाले राहुल, प्रियंका, अमित शाह, नरेंद्र मोदी के मुँह से निहंगों की बर्बरता के खिलाफ एक बोल नहीं फूटा. अभी तक वे अपने शब्दों को तोल रहे हैं कि क्या कहें जिससे इस ह्त्या का भी राजनीतिक फायदा हासिल हो. यूपी, पंजाब में विधानसभा चुनाव सामने हैं.

320 साल पुराना है निहंगों का इतिहास

निहंग सिखों का इतिहास 320 वर्ष पुराना है. वर्ष 1699 में सिखों के आखिरी गुरु, गुरु गोबिंद सिंह ने खालसा पंथ की शुरुआत की थी. खालसा पंथ के पास दो तरह के सैनिक थे – एक वो, जो साधारण कपड़े पहनते थे और दूसरे वो जो नीले रंग के कपड़े पहनते थे. नीले रंग के कपड़े पहनने वालों को ही निहंग कहा गया.

निहंग की उत्पत्ति संस्कृत के निशंक शब्द से मानते हैं, जिसका मतलब होता है निडर और शुद्ध. खालसा पंथ में निहंग सैनिकों को शामिल करने का उद्देश्य था आक्रमणकारियों से धर्म की रक्षा करना. 18वीं शताब्दी में जब अफगानिस्तान से आए अहमद शाह अब्दाली ने पंजाब पर कई बार आक्रमण किया तो उसे रोकने में निहंग सिखों की बड़ी भूमिका थी. निहंग सैनिक बहुत शानदार योद्धा माने जाते थे. इनके बारे में कई अंग्रेज़ अफसरों ने भी लिखा था कि उन्होंने कहीं भी निहंगों से बेहतर तलवारबाज़ और तीरंदाज नहीं देखे.

मुस्लिम हमलावरों से लड़ने में अहम भूमिका

महाराजा रणजीत सिंह की सेना में भी निहंगों का एक जत्था हुआ करता था, जो खतरनाक इस्लामिक आक्रमणकारियों से लड़ने में माहिर था. निहंग सिखों का धार्मिक चिह्न निशान साहिब भी नीले रंग का होता है जबकि बाकी के सिख केसरी रंग के निशान साहिब को अपना धार्मिक चिन्ह मानते हैं.

अब सवाल ये है कि जो सेनाएं एक जमाने में धर्म की रक्षा करने के लिए बनाई गई थीं, उनका आज के दौर में क्या काम है? अगर ये परंपरा का हिस्सा है तो फिर परंपरा के नाम पर इन्हें कत्ले आम की इजाजत कैसे दी सकती है?

भारत को आक्रमणकारियों से बचाने में निहंगों की भूमिका को नकारा नहीं जा सकता, लेकिन अगर इन्ही में से कोई अपने ही देश में लोगों के हाथ पांव काटने लगे और उनकी हत्याएं करने लगे तो फिर तालिबान और हमारे देश के लोकतंत्र में फर्क ही क्या रह जाएगा?

Yeh Rishta Kya Kehlata Hai से ब्रेक के बाद मोहसिन खान ने शुरू किया ये काम

टीवी सीरियल ये रिश्ता क्या कहलाता है के कलाकार मोहसिन इन दिनों लगातार सुर्खियों में छाए हुए हैं, मोहसिन खान लगातार अपने फैंस के बीच बने रहते हैं सोशल मीडिया पर , ऐसे में जब से मोहसिन ने ये रिश्ता क्या कहलाता को अलविदा कहा है तबसे फैंस उन्हें काफी ज्यादा मिस करने लगे हैं.

अब सोशल मीडिया पर एक नया वीडियो सामने आया है जिसमें वह घर पर वीडियो गेम खेलते नजर आ रहे हैं. इस वीडियो को अभी तक लोग डेढ़ लाख से ज्यादा देख चुके हैं, फैंस को मोहसिन का क्वालिटी टाइम बिताते देखकर अच्छा लग रहा है.

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मोहसिन खान गेम खेलने के दौरान कभी अपने सोफे पर उछल रहे हैं ,तो कभी पलंग पर उछलते हुए नजर आ रहे हैं. फैंस इस वीडियो पर कमेंट भी कर रहे हैं , तो वहीं कुछ फैंस मोहसिन खान की तारीफ करते हुए भी नजर आ रहे हैं.

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खबर है कि मोहसिन खान जल्द अपने नए प्रोजेक्टेस के साथ मार्केट में वापसी करने वाले हैं, जिसका इंतजार मोहसिन के फैंस को भी है, मोहसिन अपने फैंस के बीच में टाइम बीताना काफी ज्यादा पसंद करते हैं.

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कार्तिक और नायरा की जोड़ी को फैंस ने खूब ज्यादा पसंद किया था, फैंस को कार्तिक के किरदार से ज्यादा लगाव हो गया था. अब यह देखना है कि सीरियल के नए किरदार को फैंस पहले जितना प्यार दे पाते हैं या नहीं. कार्तिक और नायरा दोनों ने ही इस सीरियल को अलविदा कह दिया है.

Sidharth Shukla और Shehnazz Gill के आखिरी गाने का फर्स्ट लुक हुआ वायरल, फैंस हुए उदास

बिग बॉस 13 के विनर सिद्धार्थ शुक्ला ने 2 सितंबर के दिन इस दुनिया को अलविदा कह दिया है, ऐसे में कुछ वक्त तक सिद्धार्थ के फैंस को इस बात पर विश्वास करना थोड़ा मुश्किल हो रहा था. सिद्धार्थ शुक्ला के देहांत ने सिद्धार्थ और शहनाज कि जोड़ी को हमेशा के लिए तोड़ कर रख दिया.

जिसके बाद से लेकर अब तक शहनाज गिल सदमें से बाहर नहीं आ पाई हैं,  वहींं कुछ वक्त पहले फैंस ने सोशल मीडिया पर गुहार लगाई थी कि सिद्धार्थ और शहनाज गिल के आखिरी गाने को मेकर्स को रिलीज कर देनी चाहिए.

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इसी बीच मेकर्स ने सिद्धार्थ शुक्ला और शहनाज गिल के फैंस को एक तोहफा दे दिया है, कुछ समय पहले ही मेकर्स ने सिद्धार्थ के गाने अधूरा का फर्स्ट लुक शेयर किया है, इस म्यूजिक वीडियो को शेयर करने वाली सिंगर श्रेया घोषाल है.

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श्रेया घोषाल ने पोस्ट को शेयर करते हुए अपने सोशल मीडिया पर लिखा है कि वह एक स्टार था और हमेशा हमारे दिलों में रहेगा जिंदा. लोगों के दिलों में हमेशा चमकता रहेगा,  बदकिस्ती से ये गाना उसके लिए अधूरा है लेकिन यह गाना हमारे लिए पूरा है.

सिडनाज का यह आखिरी गाना हैं, यह गाना हर फैंस कि ख्वाहिश थी, लोगों ने इस गाने का खूब इंतजार किया है. सोशल मीडिया पर शेयर किए हुए पोस्ट में सिद्धार्थ शुक्ला शहनाज गिल का नाक पकड़ते हुए नजर आ रहे हैं.

एक फैंस ने इस पोस्टर कि तारीफ करते हुए लिखा है कि सिडनाज की जोड़ी हमेशा हमारे दिल में जिंदा रहेगी. वहीं एक यूजर ने कमेंट करते हुए लिखा है कि यह पोस्टर देखकर मेरा मन रोने को हो रहा है.

शिवराज सिंह चौहान: मोदी का भय, कुरसी से प्यार

सत्ता पाने के बाद उसे जनताजनार्दन का आशीर्वाद बताने वाले शिवराज सिंह चौहान अचानक मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री पद को नरेंद्र मोदी की कृपा समझने लगे हैं. वे इतने डरे हुए हैं कि जनता की छोड़ अपनी फिक्र करने लगे हैं. उन का अधिकांश वक्त मोदी की तारीफ में जाया हो रहा है. बीती 17 सितंबर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के 71वें जन्मदिन पर देशभर के और मध्य प्रदेश के सभी प्रमुख अखबारों में साढ़े 3 पृष्ठों के विज्ञापन छपे थे, उन में से 2 राज्य सरकार के थे. पहले विज्ञापन में नरेंद्र मोदी के रोबदार फोटो के ऊपर बड़ेबड़े लाल अक्षरों में लिखा था, ‘आप के सपने को संकल्प बना कर आत्मनिर्भरता के पथ पर अग्रसर.’ फिर संक्षिप्त 2 पैराग्राफ की गद्यरामायण मोदीजी का गुणगान करती हुई थी कि माननीय श्री नरेंद्र मोदीजी का गुजरात के मुख्यमंत्री से ले कर भारत के प्रधानमंत्री तक का 20 वर्षों का कार्यकाल जनकल्याण व सुराज की दृष्टि से मील का पत्थर साबित हुआ है.

इन अखबारों ने मुख्यमंत्री शिवराज सिंह सहित दूसरे दिग्गज भाजपाइयों के लेख भी छापे, जिन में नरेंद्र मोदी की तारीफों में कसीदे गढ़े गए थे. दूसरे पृष्ठ के विज्ञापन में शिवराज सिंह फोटो में जबरन मुसकराने की कोशिश करते ऐलान कर रहे थे कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के जन्मदिवस पर उन्हीं की प्रेरणा से मध्य प्रदेश में 17 सितंबर से 7 अक्तूबर तक जनकल्याण और सुराज अभियान मनाया जाएगा, जिस में यहयह और वहवह कार्य अमुकअमुक तारीखों में किए जाएंगे. अभियानों की इस तारीखवार लिस्ट को देख कर इस पर सियासी और गैरसियासी हलकों में हंसीमजाक में कहा यह गया कि चलो शिवराज सिंहजी 7 अक्तूबर तक तो सेफ हैं, इस के बाद जो होगा, देखा जाएगा. ठीक इसी दिन एक प्रमुख दैनिक अखबार में मुखपृष्ठ पर एक खबर प्रकाशित हुई थी कि विजय रूपाणी के सारे मंत्री बाहर, अन्य राज्यों में भी यह संभव. इस समाचार में केंद्रीय मंत्री भूपेंद्र यादव के हवाले से इशारा किया गया था कि भाजपा गुजरात के अभिनव ‘प्रयोग’ को अन्य राज्यों में भी आजमा सकती है. गुजरात प्रयोगशाला नहीं, बल्कि ‘प्रेरणा’ है (यानी प्रयोग को दोहराना ही प्रेरणा होता है).

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देश के इस नंबर वन अखबार के दफ्तरों पर पिछले दिनों ताबड़तोड़ छापे सनसनीखेज ढंग से पड़े थे मानो वाकई में अरबोंखरबों रुपयों का घोटाला हुआ हो, लेकिन एकदिवसीय हल्ले के बाद बात ‘खोदा पहाड़ और निकला चूहा’ जैसे आईगई हो गई. कुछ लोगों ने समझ लिया कि ऐसे छापे एक खास मकसद से डाले जाते हैं, जो मीडिया संस्थान सरकार का विरोध करता है उसे यों ही तंग किया जाता है, जबकि कुछ का खयाल था कि इस मामले में भी ‘डील’ हो गई. गौरतलब बात यह कि इस अखबार का सरकारी विज्ञापनों ने बहिष्कार सा किया हुआ है, इसलिए 17 सितंबर को आम राय यह बनी कि चूंकि उस को ये 3 पेज के विज्ञापन नहीं मिले या उस ने नहीं लिए, इसलिए उस ने भूपेंद्र यादव का बयान छाप कर अपनी भड़ास निकाल ली. यह खबर उक्त अखबार में न भी छपती तो भी आजकल सभी शिवराज सिंह को इतनी सहानुभूति से देखते हैं कि वे बेचारे असहज हो उठते हैं.

प्रदेशों के पंचक भाजपा आलाकमान ने एक हैरतअंगेज फैसला लेते हुए पहले तो गुजरात के मुख्यमंत्री विजय रूपाणी को उन्हीं की मरजी से चलता किया, फिर पूरे घर के बल्ब बदल डालूंगा की तर्ज पर पूरा मंत्रिमंडल ही बदल डाला. नया मुख्यमंत्री भी बनाया तो एक नएनवेले से चेहरे को जो पहली दफा विधायक बना था. नए तमाम मंत्री भी पहली बार के विधायक हैं. इस प्रयोग से अब बचेखुचे भाजपाई मुख्यमंत्री सकते में हैं कि 3 राज्यों के तो मुख्यमंत्री बदल दिए गए, अब कहीं हमारा नंबर तो नहीं. यह शुरुआत, कर्नाटक से हुई थी जब 26 जुलाई को अपनी सरकार के 2 साल पूरे होने के उपलक्ष्य में मुख्यमंत्री बी एस येदियुरप्पा ने राज्यपाल थावरचंद गहलोत को धन्यवाद नहीं बल्कि अपना इस्तीफा दिया था. इस मौके पर अपनी पीड़ा और व्यथा को उन्होंने भक्ति की चादर से ढकते हुए कहा था, ‘‘मैं दुखी हो कर इस्तीफा नहीं दे रहा हूं. मैं खुशीखुशी ऐसा कर रहा हूं. मैं नरेंद्र मोदी और अमित शाह का आभारी हूं, जिन्होंने मुझे जनता की सेवा करने का मौका दिया.’’ इस भावुक वक्तव्य से बरबस ही त्रेता युग के वानर राजा बालि की याद हो आती है, जिसे राम ने छल से मारा था.

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वाल्मीकि ने अपनी रामायण में मरते हुए बालि के मुंह से राम से ये सवाल करवाए हैं- द्य मैं तो सुग्रीव से युद्ध में तल्लीन था और आप की तरफ पीठ कर के लड़ रहा था तो मुझे मार कर आप को क्या मिला? द्य आप तो मर्यादा पुरषोत्तम कहलाते हैं. मैं अधर्मी नहीं हूं, फिर आप ने मेरा वध क्यों किया? द्य आप के इस कृत्य ने एक निर्दोष को सजा दी है, आप का लक्ष्य है वध करना, फिर वह चाहे न्यायसंगत हो या न हो और. द्य आप ने उस पर बाण चलाया जो आप से युद्ध ही नहीं कर रहा था. यह कहां तक न्यायसंगत है? बालि के इन और ऐसे कुछ और सवालों का कोई तार्किक जवाब या पाठकों की जिज्ञासा दूर करने में वाल्मीकि ने तो कोई खास कोशिश नहीं की, लेकिन तुलसीदास ने रामचरित मानस में राम के मुंह से कहलवाया- ‘‘अनुज वधु भगिनी सुत नारी. सुनु सठ कन्या सम ए चारी, इन्हहि कुदृष्टि बिलोकई जोई, ताहि बधें कछु पाप न होई.’’ अर्थात – हे मूर्ख सुन, छोटे भाई की स्त्री, बहिन, पुत्र की स्त्री और कन्या – ये चारों समान हैं.

इन्हें जो कोई बुरी दृष्टि से देखता है उसे मारने में कुछ भी पाप नहीं लगता है. (किष्किन्धा कांड) साफ दिख रहा है कि राम को महिमामंडित करने की गरज से तुलसीदास ने रिश्तों, न्याय और नैतिकता की नई परिभाषा गढ़ दी, जिस से राम जो भी कहें और करें, वह एक आदर्श के रूप में स्थापित हो जाए, वरना हर कोई जानता है कि बालि की बुरी नजर सुग्रीव की पत्नी थी. दोनों में दुश्मनी की वजह उस को ही माना गया है. बालि की पत्नी अप्सराओं जैसी सुंदर और विदुषी भी थी, जिस ने राम की बाबत उसे आगाह भी किया था. मरने के बाद उस ने सुग्रीव से शादी कर ली थी या वैराग्य धारण कर लिया था, इसे ले कर कई विरोधाभास हैं, लेकिन इस प्रसंग से और मंदोदरी विभीषण की शादी से यह तो स्पष्ट हुआ था कि बड़े भाई की पत्नी तो भोग्या हो सकती है, लेकिन छोटे भाई की पत्नी पूज्या है. यह अति तुलसीदास और अब आज के भाजपा कथावाचक ही कर सकते हैं. दोनों का मकसद राम को सही साबित करना है.

यही थ्योरी मुख्यमंत्रियों को बदले जाने के मामले में लागू हो रही है कि गलत वे ही हैं. भाजपा का तो एजेंडा ही नरेंद्र मोदी को इतना महिमामंडित कर देना है कि कोई उन के सहीगलत फैसलों पर न तो उंगली उठाए और न ही कोई तर्क करे. जैसे बालि ने राम के हाथों मरने पर उस को तरना बताया था, ठीक वैसे ही आज के येदियुरप्पा सरीखे बालि कर रहे हैं. वे तुलसी के राम से कोई सवाल नहीं करते कि हे नाथ, मुझे क्यों हटाया और वसवराज बोम्मई को क्यों सीएम की कुरसी पर बैठाया उलटे वे, सियासी तौर पर इसे मोक्ष मानते हैं. अब यह और बात है कि येदियुरप्पा अपनी नई कर्नाटक यात्रा को ले कर मोदीशाह का सिरदर्द बन रहे हैं. अभी तक बोम्मई और उन में कोई बैर नहीं था, लेकिन अब होने लगा है. कर्नाटक का मामला शांति से यानी बिना टूटफूट के सुलझ गया तो आलाकमान ने नजरें दूसरे राज्यों पर गड़ा दीं, जिस का नतीजा था बीती 14 सितंबर को मोदीशाह द्वारा हिमाचल प्रदेश के भाजपा मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर का अचानक दिल्ली तलब किया जाना जिस से लोग और चौंके थे कि अभी तो गुजरात का मामला भी पूरी तरह नहीं सुलटा है और एक और मुख्यमंत्री को बुला लिया गया.

सियासी हलकों में हैरानी इस बात को ले कर थी कि वे 2 दिनों पहले ही दिल्ली से लौटे थे. दोनों में क्या बात हुई यह तो वे दोनों ही जानें, लेकिन शिवराज सिंह की घबराहट बेवजह नहीं है, जिस पर भूपेंद्र सिंह के इशारे ने तो उन की नींद उड़ा दी है. 17 सितंबर को उन के बोले हर दूसरे वाक्य में नरेंद्र मोदी का नाम और काम वैसे ही आ रहा था जैसे अंधभक्तों के मुंह से रामराम निकलता रहता था. इस दिन उन्होंने नरेंद्र मोदी की तारीफ इतनी मात्रा में कर डाली जितनी कि रामचरित मानस में तुलसीदास ने भी राम की नहीं की होगी. मसलन, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में नए भारत का निर्माण हो रहा है, उन के नेतृत्व में मुझे कई आयामों को नजदीक से अनुभव करने का मौका मिला.

आज मोदीजी के प्रधानमंत्री रहते हुए भारत पुन: समृद्धशाली, शक्तिशाली, वैभवशाली, संपन्न और सशक्त होने का गौरव प्राप्त कर रहा है और विकास के प्रकाश को संपूर्ण भारत में पहुंचाने के यज्ञ में मध्य प्रदेश भी कदम से कदम मिला कर चल रहा है वगैरह… इस बाद उन्होंने भाजपा कार्यालय में मोदी की चित्र प्रदर्शनी का उद्घाटन करते हुए कहा कि सरकार चलाने वालो, सावधान हो जाओ. मैं न खाऊंगा, न खाने दूंगा. मोदीजी मैन औफ आइडियाज और विजिनरी लीडर हैं. यों तो हर किसी ने नरेंद्र मोदी को जन्मदिन की शुभकामनाएं दीं, जिन में से अधिकांश ने राजनीतिक शिष्टाचार निभाया, लेकिन जिन मुख्यमंत्रियों पर कभी भी हटाए जाने की तलवार लटक रही है, वे कुछ ज्यादा ही भयभीत नजर आए. हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहरलाल खट्टर ने कहा कि जिन मुद्दों पर पहले हम दूसरे देशों की तरफ देखते थे, आज आप ने उन कमियों को दूर कर देश को नई पहचान दी है. पूरी दुनिया ने तकनीक, चिकित्सा, शिक्षा और रक्षा के क्षेत्र में देश की प्रगति देखी है.

मध्य प्रदेश की तर्ज पर हरियाणा में भी 20 दिवसीय जनसंपर्क अभियान सेवा और समर्पण के नाम से शुरू हो गया. हिमाचल के जयराम ठाकुर ने इन दोनों से दौड़ में बराबरी की कोशिश में देवीदेवताओं से कामनाएं करते हुए नरेंद्र मोदी की तारीफ में लगभग वही शब्द कहे जो हर किसी ने घुमाफिरा कर कहे थे. मसलन, उन का गौरवशाली नेतृत्व… आत्मनिर्भर भारत की नींव रखने वाले… परिश्रमी, ईमानदार और दृढ़ संकल्प वाले… मोदी… मोदी के माने बात अकेले जन्मदिन की और सिर्फ मुख्यमंत्रियों की नहीं है, चापलूसी का न तो कोई मौका होता है और न ही मौसम, लेकिन एक दस्तूर जरूर है, जिसे फेरबदल में हटाए गए दिग्गज केंद्रीय मंत्रियों रविशंकर प्रसाद, डा. हर्षवर्धन, रमेश पोखरियाल निशंक’, संतोष गंगवार और प्रकाश जावडेकर के चलता कर देने के बाद भी निभाते रहते हैं. प्रकाश जावडेकर ने तो मोदी के जन्मदिन पर इंग्लिश भाषा के अखबारों में उन को महिमामंडित करते एक लेख भी छपवा दिया. यह क्या है आस्था या डर, इस सवाल का जवाब बेहद साफ है कि यह सिर्फ और सिर्फ डर है, जिस की अपनी वजहें भी हैं.

गुजरात में विजय रूपाणी को हटा कर भूपेंद्र पटेल को लाने का मतलब क्या है? असल में न तो यह कर्नाटक की तरह जातिगत समीकरण साधने की कोशिश है और न ही इस के पीछे दूसरे कोई कारण हैं, जो राजनीतिक पंडित तरहतरह से गिना रहे हैं. यह दिखाने की असफल कोशिश की जा रही है कि जो कुछ उन के जन्मदिन पर उन की उपलब्धियों के बारे में कहा गया और वह गलत नहीं है और इस के लिए वे कुछ भी कल्पनीयअकल्पनीय करने और हर योग्यअयोग्य को हटाने का जोखिम उठा सकते हैं. जब उन्हें यह समझ आया कि जनता केंद्रीय मंत्रियों को हटाए जाने से खुश नहीं हुई तो उन्होंने उत्तराखंड के बाद गुजरात से मुख्यमंत्रियों की छंटाईसफाई शुरू कर दी, क्योंकि वे केंद्रीय मंत्रियों के मुकाबले सीधे जवाबदेह होते हैं. आसानी से मान लिया गया कि विजय रूपाणी कोरोना सहित दूसरे कई मसलों पर नाकाम रहे थे, इसलिए उन्हें हटा दिया गया. यह मूल्यांकन अकेले नरेंद्र मोदी करते हैं और करते रहेंगे, जो लाख जवाहरलाल नेहरू और इंदिरा गांधी को कोसते रहें, लेकिन राजनीतिक ‘प्रेरणा’

उन्हीं से ले रहे हैं, जिन की तूती कांग्रेस में आजादी के बाद से आज भी सोनिया और राहुल गांधी जैसे वारिसों की शक्ल में बोल रही है. ये सभी सिरे से असुरक्षित रहे हैं. भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा रबर स्टांप बन कर रह गए हैं, जिन का काम डेढ़ इंची मुसकान के साथ यह बताना भर रह गया है कि आज पार्टी में इसे शामिल किया गया और उसे हटाया गया. इंदिरा गांधी को जबजब भी लगा कि जनता नाराज और नाखुश हो रही है तो उन्होंने कोई नया शिगूफा छेड़ दिया या किसी बड़े कांग्रेसी नेता को बाहर जाने को मजबूर कर दिया, जिस से फौरीतौर पर चर्चा हुई और हल्ला भी मचा कि कुछ हो रहा है. इस चालाकी में तब मीडिया उसी तरह उन के साथ होता था, जैसे आज नरेंद्र मोदी के साथ है. जैसे उस से पहले जवाहरलाल नेहरू के कामराज प्लान से बहुतों को बाहर निकाल फेंक दि था जिन में बाद में प्रधानमंत्री बने. लाल बहादुर शास्त्री भी शामिल थे. इंदिरा गांधी के इस मूड से कांग्रेसी डरे रहते थे तो आज भाजपाई नरेंद्र मोदी से डरे हुए हैं. अगर वे न डरे होते तो इतनी प्रीति वे भी न दिखाते. इस डर की व्याख्या दिग्गज और नरेंद्र मोदी से अपेक्षाकृत कम डरने और कम लिहाज करने वाले केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने गुजरात के फेरबदल के तुरंत बाद राजस्थान सरकार के एक वैबिनार में बड़े सटीक और बिंदास तरीके से की थी,

‘नानक दुखिया सब संसार…’ नेता दुखी रहते हैं. विधायक इसलिए दुखी हैं कि वे मंत्री नहीं बन पा रहे हैं, मंत्री इसलिए दुखी हैं कि उन्हें अच्छा विभाग नहीं मिल पा रहा है. जिन मंत्रियों को अच्छा विभाग मिला, वे इसलिए दुखी हैं कि मुख्यमंत्री नहीं बन पाए और मुख्यमंत्री इसलिए दुखी रहते हैं कि उन्हें पता नहीं रहता कि वे कब तक पद पर रहेंगे. इस तरह के दुखों पर बुद्ध के बाद गुरुनानक ने बहुत सोचसमझ कर कहा था कि नानक दुखिया सब संसार… अपने दौर के मशहूर व्यंग्यकार शरद जोशी के एक व्यंग का हवाला देते हुए नितिन गडकरी ने यह भी जोड़ा था कि जो राज्यों में काम के नहीं थे उन्हें दिल्ली भेज दिया, जो दिल्ली में काम के नहीं थे उन्हें राज्यपाल बना दिया और जो वहां भी काम के न थे उन्हें राजदूत बना दिया. ये बातें तब कही गई थीं जब गुजरात यानी भूपेंद्र पटेल मंत्रिमंडल बना नहीं था. अगर उस के बाद कही जातीं तो तय है गडकरी कहते, जो किसी काम के नहीं थे उन्हें मंत्री और मुख्यमंत्री तक बना दिया गया. गौरतलब है कि गुजरात के 24 मंत्रियों में से 12 मंत्रियों ने कालेज का मुंह भी नहीं देखा. इन में से भी तीन 12वीं, पांच 10वीं, तीन 8वीं पास हैं. एक मंत्रीजी तो सिर्फ चौथी क्लास तक ही पढ़े हैं.

2 मंत्री अंडरग्रेजुएट हैं. केवल 9 ही ग्रेजुएट हैं. गुजरात नरेंद्र मोदी का गृहप्रदेश है. लिहाजा, पूरे मंत्री बदले जाने के इस अनूठे ‘प्रयोग’ पर कोई चूं भी नहीं कर पा रहा. शिवराज सिंह जैसे भाजपाई मुख्यमंत्रियों का डर इसी बात को ले कर है कि अगर कल को वे भी चलता कर दिए गए तो पत्ता भी नहीं हिलने वाला. उलटे, प्रचार यह होगा कि वे कोरोना पर असफल थे, राज्य में भ्रष्टाचार बढ़ रहा था, खुद पार्टी के कुछ बड़े नेता उन से असंतुष्ट थे आदि. यह सब कहा नहीं जाएगा, बल्कि कहा जाने लगा है, इसलिए वे दुखी हैं और डरे हुए भी हैं. लेकिन उस से भी बड़ा दुख यह कि अब जाएं तो जाएं कहां? भाजपा में चारों तरफ मोदी ही मोदी हैं, इसलिए उन्हें मोदी भजन में ही सुरक्षा दिख रही है, ठीक वैसे ही जैसे आम भक्तों को भगवान में दिखती है. जिन्हें रटा दिया गया है कि वह ही दुख देता है और पूजाअर्चना करने पर उन्हें दूर भी कर देता है, इसलिए यह मत पूछो कि हे प्रभु, मुझे कष्ट क्यों दिए, बल्कि यह प्रार्थना करो कि दे दिए तो दे दिए, अब मैं पापी तुम्हारी शरण में हूं, इन्हें दूर करो. यही शिवराज सिंह और उन जैसे मुख्यमंत्री कर रहे हैं कि भक्ति इतनी करो कि ठुकराए जाने के बाद भी मन में कोई गिल्ट न रहे और भक्ति कहीं अभक्ति में न बदल जाए. प्रसंगवश एक दिलचस्प बात यह जान लेना भी जरूरी है कि मोदी को प्रधानमंत्री बनाया भी इन्हीं मुख्यमंत्रियों और नेताओं ने है.

साल 2013 और 14 की शुरुआत में शिवराज सिंह प्रधानमंत्री पद की दौड़ में मोदी की बराबरी से थे, लेकिन अब वे भी उन्हें अवतार कहने लगे हैं तो उन पर और उन जैसों की हीनता पर तरस आना स्वाभाविक बात है. नितिन गडकरी ने एक और ज्ञान की बात यह कही थी कि वे चूंकि भविष्य की चिंता नहीं करते, इसलिए खुश रहते हैं. अब शिवराज सिंह जैसों को भविष्य की चिंता खाए जा रही है तो वे दुखी हो रहे हैं और इस दुख को दूर करने के लिए भी भक्ति से मोदी को खुश करने की कोशिश कर रहे हैं. मोदी किस से खुश हुए और किस से नहीं, यह भी जल्द ही साफ हो जाना है. द्य गुनाह इन का, सजा उन को पश्चिम बंगाल का नजारा देख नरेंद्र मोदी और उन के लक्ष्मण अमित शाह भी इंदिरा गांधी की तरह घबराए हुए हैं, क्योंकि कांग्रेस भी कभी इसी तरह टूटना शुरू हुई थी. दूसरे, कोरोना कहर के बाद देशभर के लोग सरकार से नाखुश हैं. पिछले एक सवा साल से कुछ भक्तों को छोड़ रोजगार, महंगाई और स्वास्थ्य सहित शिक्षा सेवाओं और नीतियों को ले कर लोग सोचने और सवाल पूछने भी लगे हैं. उत्तर प्रदेश के चुनावी माहौल में इन सवालों के कोई संतोषजनक जवाब सरकार के पास नहीं.

लिहाजा, भाजपा की हालत खस्ता है, जिस की हर मुमकिन कोशिश कराहती व निरीह जनता को राम, धर्म और जातियों में उलझाए रखने की है, लेकिन इस में भी पश्चिम बंगाल का नतीजा और बाद के हालात आड़े आ रहे हैं. इसलिए अब मुख्यमंत्रियों को बदलने से यह जताने की कोशिश की जा रही है कि नाकाम केंद्र सरकार नहीं, बल्कि राज्य सरकारें हैं. इस में भी एक बड़ी दिक्कत उत्तर प्रदेश में अंदरूनी तौर पर उठता यह सवाल है कि फिर योगी आदित्यनाथ को क्यों नहीं बदला गया. क्या गंगा में बहती लाशें कामयाबी का प्रतीक थीं या वहां बेरोजगारी कम या खत्म हो गई है या फिर महंगाई की मार नहीं पड़ रही है. इन और ऐसे दर्जनों सवालों का जवाब राम, अयोध्या या मथुराकाशी तो कतई सभी के लिए नहीं हैं.

10 फीसदी सवर्णों को छोड़ कोई इस से संतुष्ट नहीं. इस से भी अहम दूसरी बात यह है कि वर्ष 2024 के मद्देनजर मोदीशाह अपने वर्चस्व के लिए कोई जोखिम और चुनौती नहीं चाहते हैं, इसलिए नए और नातजरबेकार मुख्यमंत्रियों को मौका दे कर एक तीर से दो शिकार कर रहे हैं. पहला यह कि भाजपा की दूसरी पंक्ति को इतना डरा दो कि कोई सिर ही न उठाए और दूसरा यह कि हम ने तो बदलाव जनता के भले के लिए किए थे, इसलिए इन नयों को एक मौका और राज्य चुनावों में दिया जाए, जिस से ये खुद को साबित कर सकें. यह तो इन का ट्रेनिंग पीरियड था.

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