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मैला आंचल : भाग 5

‘‘नालायक, जैसा कह रहा हूं वेैसा ही कर. वहीं बूआ के यहां टिक जाना. कोई जल्दी नहीं है,’’ शिवराम के आगे उस की एक न चली.आखिरकार उसे शहर जाना पड़ा. रात का सन्नाटा. रमेश का छोटा भाई कमलेश अपने कमरे में सो रहा था. पहली बार बहू घर में अकेली थी. जाहिर है, मन विचलित था. देरे रात नींद नहीं आई. अभी नींद लगी ही थी कि किसी के दरवाजे पर खटखटाने की आवाज आई. वह सशंकित हो गई.

‘‘कौन…?’’ ‘‘बहू, मेरे घुटने में दर्द हो रहा है. तुम्हारे पास कोई दवा है,’’ बाहर से ससुर की आवाज आई. ऐसी परिस्थिति में वह मना भी नहीं कर सकती थी. लिहाजा, लाइट जला कर आयोडेक्स को खोजा. जैसे ही दरवाजें की ओट से उस ने दवा देने की कोशिश की, शिवराम फुरती से अंदर घुस आया. अभी वह संभल भी नहीं पाई थी कि उस ने उसे दबोच लिया. बहू सिसकती रही. मगर उसे जरा भी दया नहीं आई. उस के जाने के बाद वह खूब रोई.

अब सवाल उठा कि क्या इस घटना की जानकारी रमेश की दी जाए? क्या रमेश इस पर विश्वास करेगा? अपने पिता के टुकड़े पर पलने वाला रमेश इतनी आसानी से बहू की बातों में शायद ही आए? यही सोच कर उस ने इस की चर्चा किसी से न करने की सोची. मगर क्या इस से उस का मन नहीं बढ़ेगा? यही हुआ. “शिवराम ने जब दूसरी बार प्रयास करने की कोशिश की, तो बहू ने जम कर विरोध किया. उस दिन वह अपने काम में असफल रहा. मगर बहू ने निश्चय कर लिया कि इस की जानकारी रमेश को दे कर ही रहेगी. उस ने वही किया. “रमेश ने बहू की बात को मानने से इनकार कर दिया. शिवराम को पता चला कि बहू ने इस की शिकायत रमेश से की है, तो एक दिन उस के बालों को पकड़ कर आंखें तरेरीं, ’’दो कौड़ी की रंडी की औलाद. बहू बना कर तुझे मान दिया. अब कभी जबान खोली, तो काट कर गाड़ दूंगा।’’

‘‘किस को रंडी कहता है…?’’ बहू बिफरी.‘‘तेरी मां को. तुझे तो पता है न कि तू मेरी बेटी नहीं है.” ‘‘हां, मगर तुम इतनी नीचता पर उतर आओगे, मैं सोच भी नहीं सकती.’’तभी खेत से रमेश लौटा. उस के कानों में बहू के शब्द पड़े, उलटे वह उसी को मारने दौड़ा. ऐसा देख वह रोने लगी.”अगले दिन शिवराम ने बहू को मैके भेजवा दिया. गांव में खबर फैला दी कि बहू बच्चा पैदा करने लायक नहीं थी. इसलिए हमेशा के लिए मैके भेजवा दिया.”

सुंदरी ने सुना तो आगबबूला हो गई. ‘‘आने दो शिवराम को. मैं छोड़ूंगी नहीं.’’ शिवराम पूरे एक महीने बाद आया. ‘‘तू ने मेरी बेटी के साथ कुकर्म किया,’’ सुंदरी बिफरते हुए बोली. ‘‘हां किया, क्योंकि वह मेरी बेटी नहीं है.’’ ‘‘तू ने उसे बांहों में खिलाया है,’’ सुंदरी ने गुस्से में कहा. शिवराम पर इस का कोई असर नहीं हुआ.

‘‘आंइदा, इधर मत आना,’’ उस रोज के बाद शिवराम ने सुंदरी के पास जाना छोड़ दिया. आएगा भी क्यों? उस ने 2-2 जिंदगियां बरबाद की हैं.” “एक बात मेरी समझ में नहीं आई कि दोनों को इस रिश्ते को छुपाने की क्या जरूरत थी? शिवराम विधुर था, वहीं सुंदरी कुंआरी. शादी कर ही ली तो गांवसमाज के बीच आते. ऐसे तो सुंदरी की स्थिति एक रखैल से ज्यादा कुछ नहीं थी.’’

‘‘बात तो आप बिलकुल ठीक कह रही हैं. वैसे, कुछ तो वजह होगी. हो सकता है कि शिवराम ही नहीं चाहता होगा कि किसी को यह पता चले कि उस ने शहर में शादी कर ली है, वरना गांव वाले थूकेंगे,’’ शालिनी भाभी बोलीं. ‘‘या सुंदरी ही गांव जाना नहीं चाहती हो,’’ मैं ने कहा.

“फिर मैं ने अनुमान लगाया कि सुंदरी को सिर्फ अपने अवैध रिश्ते को वैध करना था. सो, शिवराम को फंसाया. मगर जिस तरीके से अपनी बेटी का रिश्ता शिवराम के बेटे से किया, वह उस के साथ अन्याय था. मन की सोच की दिशा बदली. एक तरह से सुंदरी की बेटी अवैध रिश्ते की उपज थी. वह रिश्ता ले कर जाती भी तो कहां जाती? छोटी सी दुनिया में कुछ भी छुपाना आसान नहीं था. अगर झूठ बोल कर किसी से रिश्ता करती तो उस के बुरे नतीजे भी भुगतने पड़ते. यही सब सोच कर उसे शिवराम का बेटा ठीक लगा होगा?

‘‘अब बता भी दीजिए भाभी कि सुंदरी की बेटी कौन थी?’’ मुझ से रहा न गया. कुछ देर सोचने के बाद वे बोलीं, ’’तुम्हारे सामने बैठी है.’’ एक पल के लिए मेरी नजरें उन पर ठिठक गईं. सहसा विश्वास नहीं हुआ. इतना दुख सहा शालिनी भाभी ने. एक बेकुसूर स्त्री को इतना दंड देता हेै पुरुष समाज. स्त्री सिर्फ भोगने के लिए होती है. इतनी कामुकता भरी थी शिवराम चाचा में, तो क्यों विधुर बनने का नाटक किया?

मैं आवेशित थी. सुंदरी के पापों की सजा शालिनी भाभी को मिली. दुख मुझे इसी बात का हो रहा था. ‘‘गिरी हुई स्त्री को गिरे हुए लोगों का ही सहारा मिलता है. यह मैं मां से जान चुकी थी. छद्म शराफत का आवरण ओढ़े पुरुष समाज शायद ही मां के पेट में पल रही अवैध संतान को स्वीकारेंगे? स्वीकारेंगे तो शिवराम जैसे लोग ही,’’ शालिनी भाभी ने उसांस ली.

‘‘आप को पुनःविवाह का  खयाल नहीं आया?’’ ‘‘मां को मेरे विवाह की चिंता थी. मुझे भी लगा कि अकेली जिंदगी आसान नहीं. मां कब तक जिंदा रहेगी. उन्हें गले का केैंसर हो गया. मैं और भी घबरा गई. तब मां नौकरी से रिटायर हो चुकी थीं. मैं 35 की लपेट में थी. मां कहने लगीं, ‘‘बिला वजह मेरे पापों की सजा तू भुगत रही है.’’ उन की आंखें नम थीं. ‘‘तुम फिक्र मत कर. मुझे कोई दिक्कत नहीं होगी.’’ ‘‘क्यों नहीं होगी? तेरा है ही कौन? सभी ने हमारा तिरस्कार किया,’’ मां का स्वर बिंध गया.

अस्पताल में आतेजाते मैं ने महसूस किया कि एक वार्ड ब्वाय को मुझ से सहानुभूति थी. वह मेरी मां का बेहद खयाल रखता. अचानक एक रोज मां जब चल बसी, तो मैं अपनेआप को बेहद अकेला महसूस करने लगी. अकेलेपन के साथ एक भय का माहौल मेरे आसपास बन गया. इसी भय के बीच वह वार्ड ब्वाय मेरी जिंदगी में सहारा बन कर आया और मैं ने उस से शादी कर ली. शुरू में सब ठीकठाक चल रहा था. एक दिन मेरे पति ने मुझ से कहा कि वह दवा का व्यापार करना चाहता हेेै. मगर, इस शहर में नहीं. मेरे क्यों के जवाब में उस ने कहा कि यहां उस व्यापार का ज्यादा स्कोप नहीं है.

Yeh Rishta Kya Kehlata Hai : ‘कार्तिक-नायरा’ की विदाई से नम हुई प्रोड्यूसर राजन शाही की आंखे

स्टार प्लस के जाने माने सीरियल ‘ये रिश्ता क्या कहलाता है ‘ के एक्टर मोहसिन खान और शिवांगी जोशी जल्द इस सीरियल को अलविदा कहने वाले हैं.  कार्तिक के मौत के साथ ही इस सीरियल से मोहसिन खान का सफर खत्म हो जाएगा.

ऐसे में सीरियल के सभी टीम वालों ने शिवांगी जोशी और मोहसिन खान के लिए फेयरवेल का आयोजन किया जिसमें टीम के सभी मेंबर्स के अलावा शो के प्रोड्यूसर राजन शाही भी पहुंचे.

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इसी बीच मोहसिन खान को लेकर राजन शाही ने इमोशनल बयान दिया, जिसमें उन्होंने मोहसिन खान के साथ पहले दिन के सफर को लेकर चर्चा किया है, उन्होंने लिखा कि कैसे  हमारी मुलाकात हुई तो तुम काफी ज्यादा नर्वस लग रहे थें, लेकिन तुमने हमेशा अपने काम को इमानदारी से पूरा किया और शो की टीआरपी को आगे बढ़ाते हुए इस सीरियल को तुम लोगों ने खूब आगे बढ़ाया और खूब सारे अवार्ड्स जीते.

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तुमलोगों ने हमेशा अपनी बेस्ट कोशिश की जिससे तुम्हें अच्छी पहचान मिली, राजन शाही ने अपने बुरे दिन को याद करते हुए कहा कि हमने अच्छे समय के साथ साथ बुरे समय को भी अच्छे से झेला है. लेकिन हम कभी घबराएं नहीं, हमेशा अपने काम को आगे बढ़ाते रहे. फिर राजन शाही ने कहा कि इसके लिए मैं अपनी पूरी टीम का इसके लिए धन्यवाद करना चाहता हूं.

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आगे राजन शाही ने कहा कि ये अंत नहीं है अभी तो अंत बाकी है, भले ही कुछ टीम हमें छोड़कर जा रही है लेकिन आगे हमें अपनी कहानी को आगे बढ़ाते रहना है. और ऐसे ही हम अपने काम को बुलंदियो पर लेकर जाएंगे.

Bigg Boss 15 : दूसरे हफ्ते घर से बाहर होगा ये कंटेस्टेंट! वीकेंड के वार में आएगा नया ट्विस्ट

बिग बॉस 15 का दूसरा वीकेंड का वार आ चुका है, सलमान खान आज कंटेस्टेंट से मुलाकात करने वाले हैं,  इस दौरान सलमान खान पहले तो घरवाले  की क्लास लगाएंगे, इसके साथ ही सलमान खान घर के उस एक सदस्य का नाम लेंगे जो घर से बाहर हो जाएगा.

ऐसे में इस समय बिग बॉस 15 के घर में खतरे की घंटी बज चुकी है, इस लिस्ट में जो लोग हैं एक का नाम है आकाशा सिंह, अफसाना खान और ईशान सहगल.  इन तीनों सितारों में इशान सहगल को सबसे कम वोट मिले हैं. ऐसे में कयास लगाए जा रहे हैं कि सलमान खान इशान सहगल को घर से बाहर का रास्ता दिखाने वाले हैं.

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प्रॉड्यूसर फराह खान इस बात का एलान करेंगी कि इस बार घर से बाहर कौन जाने वाला है, वहीं बिग बॉस फैन पेज के लोगों ने दावा किया है कि इस बार ईशान सहगल घर से बाहर जाने वाले हैं. ये बात सच है कि ईशान सहगल को सबसे कम वोट मिले हैं लेकिन सलमान खान शायद उन्हें एक मौका भी दे सकते हैं, खैर वो तो एलिमिनेशन के बाद पता चलेगा कि कौ रहेगा कौन जाएगा.

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हालांकि एक खबर ये भी आ रही है कि इस हफ्ते कोई भी एलिमिनेशन नहीं होने वाला है, जिससे कयास लगाए जा रहे हैं कि ईशान सहगल को एक और मौका मिल सकता है.

ईशान सहगल की बात करें तो ईशान घर में आते ही अपनी लव स्टोरी शुरू कर दी थी, ईशान और माईशा का रोमांस इन दिनों खूब चर्चा में बना हुआ है. ईशान और माईशा की लव स्टोरी सोशल मीडिया पर भी खूब सुर्खियां बटोरी है.

ईशान लाइम लाइट में रहने का एक भी मौका नहीं छोड़ते हैं,

सरकार के हेरफेर

नरेंद्र मोदी के नेतृत्व की केंद्र सरकार सीधे टैक्स लगा कर जनता के मुंह से निवाला छीनने से घबरा रही है, इसलिए वजह सरकारी कंपनियां बेच रही है. इन में एयर इंडिया, कई बंदरगाह, बीएसएनएल आदि की लंबी सूची है जिसे पूरा लिखने में पन्ने भर जाएं. इन में 42 सैनिक समान बनाने वाली कंपनियां भी हैं जिन्हें भी निजी हाथों में सौंप दिया जाएगा. अब इन सैनिक हथियार बनाने वाले कारखानों के ‘देशभक्त’ कर्मचारी भाजपा सरकार की देशभक्ति के दिखावटी नारे की पोल खोलने पर उतर आए हैं और हड़ताल पर हैं.

इस में शक नहीं है कि सरकारी कंपनियां आमतौर पर निकम्मी हैं और बेहद नुकसान में चल रही हैं. जो अगर मुनाफों में दिख रही हैं तो वे नकली खाते बनाती हैं. उन का तरीका यह है कि राज्य सरकारों और केंद्र सरकार से मनमाने दाम पर टैंडर ले लो और निजी क्षेत्र से काम टुकड़ों में करा कर बेच दो. राज्य व केंद्र सरकारें टैक्स से जमा पैसा इन निकम्मी सरकारी कंपनियों को देती हैं जहां यह नेताओं के भाईभतीजों वाली कर्मचारियों की फौज में खप जाता है. पर. उन्हें बेचने से क्या होगा?  इन के कर्मचारियों को निकाल दिया जाएगा. फैक्ट्रियां आधुनिकीकरण के नाम पर तोड़ दी जाएंगी. मोनेटाइजेशन के नाम पर फालतू की जमीन बेच दी जाएगी. फैक्ट्री या   ????……????   का सिर्फ कोई बनेगा, बाकी सब नया होगा, या खरीदार से किसी और के हाथ में जा चुका होगा.

कहने को तो सरकार इसे मोनेटाइजेशन का नाम दे रही है पर यह पुराने गहनों की बिक्री है जो फक्कड़ बनने के समय की जाती है.

निजी कंपनियां यह पैसा कहां से लाएंगी. बहुत सी कंपनियां बैंकों से कर्ज लेंगी. यह पैसा जनता का होगा जो बैंक आज ब्याज पर सरकारी मिलीभगत से अपने पास जमा कर रहे हैं. यह पैसा लौटाया ही नहीं जाएगा और एक तरह से बैंक जनता को चूस कर इस नुकसान की भरपाई करेंगे.

यह पैसा शेयर मार्केट से भी आएगा. वहां आम जनता मोटे रिटर्न के लालच में बचत का पैसा लगा रही है पर असल में लाभ उन सट्टे वालों को हो रहा है जो रोज खरीदबेच करते हैं. विदेशी भी कुछ पैसा लगाएंगे ताकि वे ईस्ट इंडिया कंपनी की तरह जनता पर छिपा हुआ टैक्स लगा सकें. ईकौमर्स कंपनियों ने पहले ही नुकसान सह रहे किराना उद्योग को नष्ट किया और अब मनमाने दाम सुविधा के नाम पर वसूल रहे हैं. यह अंतर एक तरह से टैक्स है जो इन सरकारी कंपनियों की खरीद में लगेगा.

इस ब्रिकी से लाखों कर्मचारी लगभग बेकार हो जाएंगे. वैसे उन से कोई हमदर्दी नहीं होनी चाहिए क्योंकि वे भी जनता के पैसे को लूटते थे पर इस लूट के आदी अर्धसरकारी कर्मचारी नौकरी भी खोएंगे और बहुत से घर भी.

अगर यह बेचाबेची देश में अनुशासन और कार्यकुशलता बढ़ाने के लिए की जा रही होती तो कोई एतराज न होता. पर यह तो रोजमर्रा का खर्च चलाने के लिए हो रही है. पिछले 7 सालों में आंतरिक सुरक्षा और धार्मिक निर्माणों पर टैक्स का पैसा अंधाधुंध तरीके से लगा है. यह पैसा उसी काम को और बढ़ाएगा. पुलिस वालों की गाडिय़ां नई होंगी और मंदिरों के शिखरों पर सोना चढ़ेगा, लेकिन जनता भूखी रहेगी और बेकारी बढ़ेगी.

पौराणिक काल से चले आ रहे मंदिर, मठ और आश्रम में झगड़े

नरेंद्र गिरि आत्महत्या मामला कोई नया मामला नहीं है. मंदिर, मठ और आश्रम के झगड़े काफी पहले से चलते आ रहे हैं. बदलाव यह आया है कि पहले ये झगड़े पद श्रेष्ठता के चलते होते थे, अब इन मठों में दानस्वरूप अथाह संपत्ति और धनवर्षा होने से इन का रूप दानपात्र पर नियंत्रण पाने का हो गया है. पौराणिक काल से ही मठ, मंदिरों और आश्रमों में झगड़े होते रहे हैं. पहले जमीनजायदाद बहुत मूल्यवान नहीं होती थी तो ये झगड़े प्रतिष्ठा, सम्मान और श्रेष्ठता के लिए होते थे. प्रतिष्ठा, सम्मान और श्रेष्ठता के टकराव में अलगअलग धर्म और संप्रदाय बनते गए. इन के अलगअलग देवता और मंदिर, आश्रम बनते गए. रामायाण काल की बात करें तो विश्वामित्र और वशिष्ठ के बीच टकराव श्रेष्ठता को ले कर ही था. विश्वामित्र ने ऋषि, महर्षि और राजर्षि तक की उपाधि पा ली थी लेकिन कोई उन को ब्रह्मर्षि मानने को तैयार नहीं था. ब्रह्मर्षि की उपाधि वशिष्ठ को मिली थी.

विश्वामित्र ने वशिष्ठ से वैमनस्य रखना शुरू कर दिया. ऐसे संतों की संख्या कम नहीं है. अपनी श्रेष्ठता को बनाए रखने के कारण ही 33 करोड़ देवता और तमाम धर्मसंप्रदाय बनते गए. जैसेजैसे मठ, आश्रमों और मंदिरों में धन संपदा बढ़ने लगी, इन के रूप बदलने लगे. मंदिरों में कब्जे और दानपात्र पर नियंत्रण किया जाने लगा. मंदिरों की कमेटियों में झगड़े शुरू हो गए. मंदिर में ही रखे दानपात्र में एक से अधिक ताले लगने लगे. जिस की वजह यह थी कि जब दानपात्र खुले तो हर वह आदमी वहां मौजूद रहे जिस के पास उस की चाबी होती है. ज्यादातर मठ, मंदिर और आश्रम गुरु-शिष्य परंपरा के होते हैं जहां गुरु ही अपना उत्तराधिकारी नियुक्त करता है. मठ, मंदिर और आश्रमों पर कब्जा करने के लिए गुरु यानी मंदिर के महंत को अपने पक्ष में करने के लिए शिष्य साम, दाम, दंड, भेद का प्रयोग करने लगे. अगर इस से बात न बने तो बात महंत यानी गुरु की हत्या तक पहुंच जाती है.

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प्रयागराज में अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष और बाघंबरी मठ के महंत नरेंद्र गिरि की मौत के बाद यह बात एक बार फिर से चर्चा में जरूर आ गई है, पर मठ, आश्रम और मंदिरों में जमीनजायदाद और प्रभाव को ले कर झगड़े 90 फीसदी मंदिरों में चल रहे हैं. जिन लोगों ने छोटे महंत कहे जाने वाले आनंद गिरि की लाइफस्टाइल को देखा, वे समझ रहे थे कि छोटे महंत आनंद गिरि और बड़े महंत नरेंद्र गिरि के बीच प्रभाव और श्रेष्ठता को ले कर जो झगड़ा चल रहा है वह कुछ कर गुजरेगा. यह जंग पैसों को ले कर शुरू हुई. इस के बीच की बड़ी वजह आनंद गिरि की बढ़ती महत्त्वाकांक्षा भी थी. विवाद की वजह दान के पैसे 2019 के कुंभ का आयोजन जब प्रयागराज में हुआ और भाजपा के बड़े नेताओं और मंत्रियों का वहां आनाजाना हुआ तो अपना रसूख बढ़ाने के लिए आनंद गिरि इन सब से मिलने लगा. यह बात नरेंद्र गिरी के खेमे को पसंद नहीं आ रही थी.

आंनद गिरि कई कामों की जानकारी अपने महंत नरेंद्र गिरि को भी नहीं देता था. आपसी खींचतान के बाद यह मामला एकदूसरे को मंदिर से बेदखल करने तक पहुंच गया. मंदिर की जमीन पर पैट्रोल पंप खोलने को ले कर हुए विवाद के बाद नरेंद्र गिरि ने अपने शिष्य आनंद गिरि को मठ और मंदिर से बेदखल कर दिया. इस के बाद आनंद गिरि अपने ही गुरु पर जायदाद के हेरफेर, परिवार और करीबी लोगों को मंदिर की संपत्ति को देने के साथ ही साथ उन के चरित्रहनन का काम करने वाली बातें कहने लगा. यही वह सब से बड़ा पेंच था जिस के डर से महंत नरेंद्र गिरि ने आत्महत्या कर ली. मंदिरों में जिस पैसे और जायदाद को ले कर विवाद हो रहा है वह जनता द्वारा दिया गया दान होता है. जनता को यह देखना चाहिए कि वह जो पैसा भगवान के नाम पर मंदिरों में दान देती है उस का असल उपभोग कौन कर रहा है? इस के कारण कितने झगड़े बढ़ रहे हैं? संत और महात्मा भगवान के नाम पर डरा कर जनता से पैसे वसूलते हैं.

दान के इन्हीं पैसों पर संतमहात्मा ऐश करते हैं. इस के लिए ही तमाम झगड़े होते हैं. बाघंबरी मठ और निरंजनी अखाड़ा करीब 9 सौ साल पुराने मठ हैं. इन के पास 3 हजार करोड़ रुपए से अधिक की संपत्ति है. यह कई राज्यों में फैली है. मठों का काम शिक्षा देने का होता था. मठ को राजा या सरकार जमीन और पैसा इसलिए देती थी कि वह शिक्षा के क्षेत्र में इस का प्रयोग कर सके. महंत केवल केयरटेकर की तरह होता है. वह मठ की संपत्ति का मालिक नहीं होता. लेकिन होता इस के ठीक उलटा है. महंत मालिक की तरह से काम करता है. अपने लोगों, नातेरिश्तेदारों को इस का लाभ देता है. मठों में यह नियम होता है कि दीक्षा लेने के बाद अपने परिवार से संबंध त्यागने पड़ते हैं. आज 90 फीसदी मठ के महंत अपने परिवार के लोगों के साथ संबंध रखते हैं. नरेंद्र गिरि ने जब अपने शिष्य आनंद गिरि को मठ से निकाला तो आरोप यही था कि वह अपने परिवारजनों को इस का लाभ देता है.

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यही आरोप बाद में आनंद गिरि ने अपने महंत नरेंद्र गिरि पर भी लगाया था. लोक कल्याण के नाम पर बनने वाले मठ संतों के लिए पैसे पैदा करने वाली मशीनें बन गए हैं. नरेंद्र गिरि के प्रभाव में रही सत्ता और सरकार साल 1984 नरेंद्र सिंह की मुलाकात संगम किनारे बने निरंजनी अखाड़े के संत कोठारी दिव्यानंद गिरि से होती है. नरेंद्र सिंह उन की सेवा करने लगते हैं. वे अपने घर वापस जाने को राजी नहीं हुए तो तब दिव्यानंद नरेंद्र को ले कर हरिद्वार चले गए. वहां उन का समर्पण भाव देख कर दिव्यानंद ने 1985 में उसे संन्यास की दीक्षा दी और उस का नामकरण नरेंद्र गिरि के रूप में कर दिया. इस के बाद श्रीनिरंजनी अखाड़े के महात्मा व श्रीमठ बाघंबरी गद्दी के महंत बलवंत गिरि ने गुरु दीक्षा दी. बलवंत गिरि के न रहने के बाद नरेंद्र गिरि 2004 में मठ श्रीबाछंबरी गद्दी के पीठाधीश्वर तथा बड़े हनुमान मंदिर के महंत का पद संभाला. इस के बाद वे मठ और मंदिर को भव्य स्वरूप दिलाने के लिए काम करने लगे. 2014 में उन को संतों की सब से बड़ी संस्था अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद का अध्यक्ष चुन लिया गया.

नरेंद्र गिरि मूलरूप से प्रयागराज के सराय ममरेज के करीब छतौना गांव के रहने वाले थे. उन के पिता का नाम भानुप्रताप सिंह था. वे आरएसएस में थे. पिता का प्रभाव नरेंद्र गिरि पर था. नरेंद्र सिंह 4 भाई थे. उन के भाइयों के नाम अशोक कुमार सिंह, अरविंद कुमार सिंह और आंनद सिंह थे. नरेंद्र गिरि यानी नरेंद्र सिंह ने बाबू सरजू प्रसाद इंटर कालेज से हाईस्कूल की परीक्षा पास की थी. अपने मधुर स्वभाव और मेहनती होने के कारण जल्दी ही उन का नाम अखाड़े के प्रमुख लोगों में शामिल हो गया. अखाड़े में शामिल होने के 6 साल के अंदर ही नरेंद्र गिरि पदाधिकारी बन गए. बाद में नरेंद्र गिरि ने अखाड़े के विस्तार पर काम करना शुरू किया. 1998 में नरेंद्र गिरि का नाम संतों के सब से बड़े अखाड़ा परिषद के पदाधिकारी के रूप में लिया जाने लगा.

अखाड़ा परिषद का पदाधिकारी बनने के बाद नरेंद्र गिरि की अलग पहचान बनने लगी. नरेंद्र गिरि को सब से बड़ी सफलता तब मिली जब 2014 में अयोध्या निवासी संत ज्ञानदास की जगह पर उन को संतों की सब से बड़ी संस्था अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद का अध्यक्ष चुन लिया गया. उस समय उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी की सरकार थी और नरेंद्र गिरि मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के करीबी हो गए. 2019 कुंभ के समय नरेंद्र गिरि का भाजपा के बड़े नेताओं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृहमंत्री अमित शाह, उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य से करीबी नाता हो गया. खतरा बन गया आनंद गिरि आनंद गिरि मूलरूप से उत्तराखंड के रहने वाले हैं. किशोरावस्था में ही वे हरिद्वार के आश्रम में नरेंद्र गिरि से मिले थे. इस के बाद नरेंद्र गिरि उन को प्रयागराज ले आए थे.

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2007 में आनंद गिरि निरजंनी अखाड़े से जुड़े और महंत भी बने. गुरु के करीबी होने के कारण लेटे हनुमान मंदिर के छोटे महंत के नाम से भी उन को जाना जाता था. यह मंदिर भी बाघंबरी ट्रस्ट द्वारा ही संचालित होता है. आनंद गिरि को योगगुरु के नाम से भी जाना जाता है. वे देशविदेश में योग सिखाने के लिए भी जाते रहे हैं. महत्त्वाकांक्षी आनंद गिरि ने खुद को खुद से ही नरेंद्र गिरि का उत्तराधिकारी भी घोषित कर लिया था. बाद में विवाद होने के बाद नरेंद्र गिरि ने इस का खंडन किया था. आनंद गिरि ने गंगा सफाई के लिए गंगा सेना भी बनाई थी. वे हरिद्वार में एक आश्रम भी बना रहे थे. इस के बाद नरेंद्र गिरि के साथ उन का विवाद बढ़ गया था. महत्त्वाकांक्षी आनंद गिरि दूसरे शिष्यों की आंखों में खटकता था. ऐसे में उस को ले कर सभी इस कोशिश में रहते थे कि वह नरेंद्र गिरि से दूर हो जाए. आंनद गिरि के विरोधियों को तब मौका मिल गया जब आनंद गिरि 2016 और 2018 के पुराने मामलों में अपनी ही 2 शिष्याओं के साथ मारपीट और अभद्रता को ले कर 2019 में सुर्खियों में आए थे. मई 2019 में उन को जेल भी जाना पड़ा था.

इस के बाद सितंबर माह में सिडनी कोर्ट ने उन को बाइज्जत बरी कर दिया था. इस के बाद उन का पासपोर्ट भी रिलीज कर दिया गया था. इस के बाद आनंद गिरि भारत आए थे. आनंद गिरि का हवाई जहाज में शराब पीते हुए एक फोटो भी सोशल मीडिया पर वायरल हुआ था. आंनद गिरि ने इस को शराब नहीं, जूस बताया था. आनंद गिरि शौकीन किस्म का था. महंगी कार, बाइक और ऐशोआराम का उस को शौक था. जमीन के टुकड़े को ले कर आमनेसामने आ गए गुरु और चेला नरेंद्र गिरि से पहले भी ऐसे ही विवादों के बीच ही मठ के 2 महंतों की संदिग्ध हालत में मौत हो चुकी है. नरेंद्र गिरि का अपने ही शिष्य आंनद गिरि के साथ विवाद की वजह 80 फुट चौड़ी और 120 फुट लंबी गौशाला की जमीन का टुकड़ा बना. आनंद गिरि के नाम यह जमीन लीज पर थी.

यहां पर पैट्रोल पंप बनना था. कुछ दिनों बाद महंत नरेंद्र गिरि ने इस प्रस्ताव को खारिज कर दिया कि यहां पर पैट्रोल पंप नहीं चल सकता है. उन का कहना था कि यहां पर मार्केट बना दिया जाएगा, जिस से मठ की आमदनी बढ़ेगी. आनंद गिरि का कहना था कि नरेंद्र गिरि उस जमीन को बेचना चाहते हैं. इस कारण लीज कैसिंल कराई गई थी. मठ की इस करोड़ों की जमीन को ले कर नरेंद्र गिरि और उन के शिष्य आनंद गिरि के बीच घमासान इस कदर बढ़ गया कि नरेंद्र गिरि ने आनंद गिरि को निरंजनी अखाड़े और मठ से निकाल दिया था. इस के बाद आनंद गिरि भाग कर हरिद्वार पहुंच गया था. आनंद गिरि ने इस के बाद सोशल मीडिया पर कई तरह के ऐसे वीडियो वायरल किए जिन में नरेंद्र गिरि के शिष्यों के पास करोड़ों की संपत्ति होने का दावा किया गया था. नरेंद्र गिरि ने इन मुद्दों पर सफाई देते कहा था कि ये आरोप बेबुनियाद हैं. उन की छवि को धूमिल करने के लिए यह काम किया गया है.

कुछ समय के बाद आनंद गिरि ने अपने गुरु नरेंद्र गिरि से माफी मांग ली थी. माफी मांगने के वीडियो भी वायरल हुए थे. नरेंद्र गिरि का एक और विवाद लेटे हनुमान मंदिर के मुख्य पुजारी आद्या तिवारी और उन के बेटे संदीप तिवारी के साथ भी बताया जाता है. लेनेदेन के इस विवाद की वजह से दोनों के बीच बातचीत बंद थी. जायदाद के ऐसे विवादों के अलावा भी नरेंद्र गिरि कई तरह के दूसरे विवादों में भी घिरे थे. नरेंद्र गिरि के करीबी रहे शिष्य और निरंजनी अखाड़े के सचिव महंत आशीष गिरि ने 17 नवंबर, 2019 को गोली मार कर आत्महत्या कर ली थी. आशीष गिरि ने जमीन बेचने का विरोध किया था. दारागंज स्थित अखाड़े के आश्रम में आशीष गिरि ने गोली मार कर आत्महत्या की थी. इस की वजह यह बताई जा रही थी कि 2011 और 2012 में बाघंबरी गद्दी की जमीन समाजवादी पार्टी के नेता को बेची जा रही थी. पुलिस ने आशीष गिरि की आत्महत्या का कारण डिप्रैशन बताया था. तमाम मठ और मंदिरों में हैं झगड़े नरेंद्र गिरि और आनंद गिरि कोई नए नाम नहीं है. संतमहंत, गुरुचेलों के ऐसे तमाम नाम हैं,

जिन के बीच जायदाद को ले कर झगड़े होते रहे हैं. कुछ वर्षों पहले सुल्तानपुर जिले में धनपतगंज के मझवारा स्थित संत ज्ञानेश्वर के परमभाव धाम में विवाद होता रहा है. 23 वर्षों से चल रहे विवाद में दर्जनों हत्याएं हो चुकी हैं. 2006 में हंडिया में संत ज्ञानेश्वर समेत 8 लोगों की हत्या की गई थी. पिछले कुछ सालों के आंकड़े देखें तो अयोध्या में ऐसे तमाम अपराध हो चुके हैं जो अब केवल पुलिस के दस्तावेजों तक ही सिमट कर रह गए हैं. अयोध्या में राममंदिर विवाद के बारे में सभी जानते थे. बहुत कम लोगों को पता है कि अयोध्या के तमाम मंदिरों में आपसी झगड़े चल रहे थे, जिस की वजह से हत्या और कई गंभीर अपराध होते रहे हैं. राम की नगरी ‘अयोध्या’ में कई संतोंमहंतों की हत्या हो चुकी है. हत्याओं की वजह अथाह संपत्तियों पर कब्जे की होड़ रही है. संतों की हत्या करने वाला कोई बाहरी नहीं, बल्कि उन के अपने ही होते हैं. मठों व मंदिरों की संपत्तियों पर कब्जे को ले कर पिछले कुछ वर्षों में कई घटनाएं सामने आई हैं. जिन की जांच के दौरान ज्यादातर मामलों में संपत्ति का विवाद ही सामने आया है.

ठाकुरजी के नाम पर मंदिरों की एक नहीं, कई स्थानों पर जमीन होती है. इसी को ले कर विवाद होता है. अधिकांश विवाद जमीन को ले कर हुए हैं और यह बात सामने आई है कि संतों की हत्या में उन के शिष्यों का हाथ होता है. अयोध्या के वासुदेवघाट स्थित बैकुंठ भवन के महंत अयोध्या दास के अचानक लापता होने के बाद उन की हत्या की खबर आई. बात सामने आई कि महंत की हत्या किसी और ने नहीं, बल्कि मठ में रहने वाले उन के ही चेले रामकुबेर दास ने सुपारी दे कर करवाई थी. अयोध्या के ही मुमुक्ष भवन में स्वामी सुदर्शनाचार्य की हत्या उन के ही शिष्य जितेंद्र पांडेय ने की. यह हत्या इतनी दिल दहलाने वाली थी कि अपने गुनाह को छिपाने के लिए हत्यारे शिष्य ने स्वामी सुदर्शनाचार्य के शव को भवन में ही गाड़ दिया था. अयोध्या में ही हनुमंत भवन में रामशरण भी अपनों के ही षड्यंत्र का शिकार हुए. विद्याकुंड मंदिर में महंत स्वामी रामपाल दास को भी विवाद के कारण मौत के घाट उतार दिया गया.

महंत रामाज्ञा दास, पहलवान रामपाल दास, महंत प्रह्लाद दास और हरिभजन दास की हत्या की गई. हत्या की मूल वजह महंत अपने संबंधियों को लाभ पहुंचाने के चक्कर में रहते हैं और उन का असली उत्तराधिकारी गद्दी पाने से वंचित रह जाता है. इस से आपसी द्वेष और असंतोष बढ़ता है और अपराध हो जाता है. द्य वसीयतनुमा सुसाइड नोट महंत नरेंद्र गिरि का यह सुसाइड नोट अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के लैटरहैड पर लिखा गया है. पहले 13 सितंबर, 2021 की तारीख लैटरहैड पर पड़ी थी. बाद में इस को काट कर नीचे 20 सितंबर किया गया. टूटीफटी हिंदी में यह लिखा गया है. इस में कई जगहों पर कटिंग भी हुई है. अपने सुसाइड नोट में महंत नरेंद्र गिरि ने लिखा है-

‘‘मैं, महंत नरेंद्र गिरि, मठ बाघंबरी गद्दी बड़े हनुमान मंदिर (लेटे हनुमानजी) वर्तमान में अध्यक्ष, अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद, अपने होशोहवास में बगैर किसी दबाव के यह पत्र लिख रहा हूं. जब से आंनद गिरि ने मेरे ऊपर असत्य, मिथ्या और मनगढं़त आरोप लगाए हैं, तब से मैं मानसिक दबाव में जी रहा हूं. जब भी मैं एकांत में रहता हूं, मर जाने की इच्छा होती है. आंनद गिरि, आद्या तिवारी और उन के लड़के संदीप तिवारी ने मिल कर मेरे साथ विश्वासघात किया है.

‘‘सोशल मीडिया, फेसबुक और समाचारपत्रों में आनंद गिरि ने मेरे चरित्र पर मनगढ़ंत आरोप लगाए हैं. मैं मरने जा रहा हूं. सत्य बोलूंगा. मेरा घर से कोई संबंध नहीं है. मैं ने एक भी पैसा घर पर नहीं दिया है. मैं ने एकएक पैसा मंदिर और मठ में लगाया है. 2004 में मैं महंत बना. 2004 से अब तक मंदिर मठ का जो विकास किया, सभी भक्त जानते हैं. आनंद गिरि द्वारा मेरे ऊपर जो आरोप लगाए गए उन से मेरी और मठमंदिर की बदनामी हुई है. मेरे मरने की संपूर्ण जिम्मेदारी आनंद गिरि, आद्या प्रसाद तिवारी जो मंदिर के पुजारी हैं और आद्या प्रसाद तिवारी के पुत्र संदीप तिवारी की होगी. मैं समाज में हमेशा शान से जिया. आनंद गिरि ने मुझे गलत तरह से बदनाम किया.

‘मुझे जान से मारने का प्रयास किया गया. इस से मैं बहुत दुखी हूं. प्रयागराज के सभी पुलिस अधिकारियों और प्रशासनिक अधिकारियों से अनुरोध करता हूं, मेरी आत्महत्या के जिम्मेदार उपरोक्त लोगों पर कानूनी कार्रवाई की जाए, जिस से मेरी आत्मा को शांति मिले. द्य ‘‘प्रिय बलवीर गिरि मठमंदिर की व्यवस्था का प्रयास करना, जिस तरह से मैं ने किया इसी तरह से करना. नितीश गिरि और मणि सभी महात्मा बलवीर गिरि का सहयोग करना. परमपूज्य महंत हरिगोबिंदजी एवं सभी से निवेदन है कि मठ का महंत बलवीर गिरि को बनाना. महंत रवींद्र गिरिजी (सजावटी मठी) आप ने हमेशा साथ दिया. मेरे मरने के बाद बलवीर गिरि का साथ दीजिएगा. सभी को ओम नमो नारायण.

‘‘मै, महंत नरेंद्र गिरि, 13 सितंबर को ही आत्महत्या करने जा रहा था लेकिन हिम्मत नहीं कर पाया. आज हरिद्वार से सूचना मिली कि एकदो दिनों में आनंद गिरि कंप्यूटर द्वारा मोबाइल से किसी लड़की या महिला के साथ मेरी फोटो लगा कर गलत काम करते हुए फोटो वायरल कर देगा. मैं ने सोचा कहांकहां सफाई दूंगा. एक बार तो बदनाम हो जाऊंगा. मैं जिस पद पर हूं, वह गरिमामयी पद है. सचाई तो लोगों को बाद में पता चल जाएगी लेकिन मैं तो बदनाम हो जाऊंगा. इसलिए, मैं आत्महत्या करने जा रहा हूं. द्य ‘‘बलवीर गिरि मेरी समाधि पार्क में नीम के पेड़ के पास दी जाए. यह मेरी अंतिम इच्छा है. धनजंय विद्यार्थी मेरे कमरे की चाबी बलवीर महाराज को दे देना. बलवीर गिरि एंव पंचपरमेश्वर से निवेदन कर रहा हूं कि मेरी समाधि पार्क में नीम के पेड़ के नीचे बना देना.

प्रिय बलवीर गिरि ओम नमो नारायण. मैं ने तुम्हारे नाम एक रजिस्टर्ड वसीयत की है जिस में मेरे ब्रहमलीन हो जाने के बाद तुम बड़े हनुमान मंदिर एवं मठ बाघंबरी गद्दी के महंत बनोगे. तुम से मेरा अनुरोध है कि मेरी सेवा में लगे विद्यार्थी, जैसे मिथलेश पांडेय, रामकृष्ण पांडेय, मनीष शुक्ला, शिवेष कुमार मिश्रा, अभिषेक कुमार मिश्रा, उज्ज्वल द्विवेदी, प्रज्ज्वल द्विवेदी, अभय द्विवेदी, निर्भय द्विवेदी, सुमित तिवारी का ध्यान देना. जिस तरह से हमेशा मेरी सेवा और मठ की सेवा की है उसी तरह से बलवीर गिरि महराज और मठ मंदिर की सेवा करना.

वैसे, हमें सभी विद्यार्थी प्रिय हैं लेकिन मनीष शुक्ला, शिवम मिश्रा और अभिषेक मिश्रा मेरे अति प्रिय हैं. द्य ‘‘कोरोनाकाल में जब मुझे कोरोना हुआ, मेरी सेवा सुमित तिवारी ने की. मंदिर में मालाफूल की दुकान को मैं ने सुमित तिवारी के नाम किरायानामा में रजिस्टर किया है. मिथलेश पांडेय को बड़े हनुमान रुद्राक्ष इंपोरियम की दुकान किराए पर दी है. मनीष शुक्ला, शिवम मिश्रा और अभिषेक मिश्रा को लड्डू की दुकान किराए पर दी है.’’

धूमावती

धूमावती- भाग 2 : हेमा अपने पति को क्यूं छोड़ना चाहती थी

हेमा को तरुण में अपना गुलाम नजर आया. एक जीहुजूरी करने वाला उस के शरीर और खूबसूरती पर मोहित वह लड़का, जो खुद ही हेमा का काम कर खुद को धन्य महसूस करे. बदले में हेमा उसे पढ़ाई में कई तरह से मदद कर देती. इस लेनीदेनी में दूसरे छात्र भी तरुण को भाव देने लगे.

गांव से आ कर 2 गज के बायज मेस में रह कर हाथपांव मारने वाले लड़के को अगर इतना मिल जाए, तो उस के सपने जमीन से कोंपल बन कर फूट ही पड़ेंगे. हेमा के घर में लड़कियों का राज था. भाई अभी 9वी जमात में था, और पापामम्मा की लाड़ली हेमा के लिए दुनिया उस की मुट्ठी में थी.

एक बार हेमा के आदेशानुसार तरुण उसे लोकल ट्रेन से उस के मामा की बेटी के जन्मदिन में लेबकर चला. लोकल ट्रेन में आसपास बैठे ठेलतेधकियाते लोगों के बीच समयसंजोग से हेमा और तरुण एकदम एकदूसरे से चिपकने को बाध्य हो गए.

ट्रेन से उतरते वक्त हेमा ने तरुण को कस कर पकड़ रखा था.तरुण ने हेमा के मामा का पता पूछा और हेमा उसे सीधे होटल के कमरे में ले जा कर बिस्तर पर खींच लिया.हेमा के सौंदर्य को देख वह सबकुछ विस्मृत हो गया. गांव, गोबर, भैंस, गाय, खेत, कीचड़ भुखमरी, मजदूरी, पढ़ाई और उम्मीद से भरी गांव में इंतजार करती उस की परिवार की आंखें… सब कुछ… बस दिखती थीं गगनचुंबी पहाड़ें… ढलान को उतरती वेगमती वासना की ज्वारें और शाम की बेला की यह मधुचांदनी.

यहां से निकल कर जैसेतैसे वे मामा के घर रस्म भरपाई को पहुंचे, और वापसी में मामा की गाड़ी में उन के ड्राइवर  की आंख बचा कर और उसे आगे अनदेखा कर पीछे की सीट पर दोनों फिर से एकदूसरे में व्यस्त रहे.2 साल जातेजाते हेमा की बैंक में नौकरी लग चुकी थी, लेकिन तरुण अभी भी कोशिश पर कोशिश किए जा रहा था. वह तनाव में रहता. हेमा कहीं और न शादी कर ले. हेमा के साथ बनाए उस के संबंध उस के लिए अटूट हो गए थे.

हेमा को वैसे तरुण की नौकरी की कोई परवाह नहीं थी. इसलिए नहीं कि वह तरुण को हर हाल में अपना लेती, उसे तो तरुण की ही कोई फिक्र नहीं थी. जो बीत गई सो बात गई. कुछ दिन तरुण के साथ रिश्ता बना, तो इस का मतलब हेमा के लिए यह कतई नहीं था कि वह जन्मभर के लिए उस के साथ बंध जाए, लेकिन तरुण के लिए हेमा के साथ का हर पल सच्चा और स्थाई था. उस के अंदर की सचाई की आग ने उस में इतना जुनून भर दिया कि वह एक सरकारी बैंक में चयनित हो गया.

इस से उसे 2 फायदे हुए. एक तो घर वालों की गरीबी दूर करने को उस के हाथ मजबूत हुए वहीं दूसरे हेमा के पिता से हेमा के बारे में सीधे बात कर लेने की उस में हिम्मत आ गई.हेमा के नानुकुर के बावजूद तरुण जैसे मेहनती सीधेसादे और सर्वदा हाथ बांधे रहने वाले लड़के को हेमा के पिता ने हेमा के वर के रूप में चुन लेने में अपनी और हेमा की भलाई ही समझी.

हेमा के पिता बेटी की ऊंची नाक और उस के नखरे को जानते थे. आगे गृहस्थी चलाने में तरुण जैसा युवक ही हेमा से निभा लेगा, यह दूरदर्शिता इन की शादी की मुख्य वजह बनी.शादी के बाद तरुण जितना ही खुद को आईने में देखता, हेमा को पा कर वह अपनी दसों उंगलियां घी में डूबा पाता. सारे दोस्त उस से रश्क करते. इतनी खूबसूरत, स्मार्ट बीवी, जिस की आमदनी भी तरुण से ज्यादा है, शादी में बैंक के पास पौश कालोनी में डुप्लेक्स के साथ उस की जिंदगी में आई है.

2 साल तक यानी जब तक तरुण को उस की कमाई के पैसे उस के गांव अपने पापा के पास भेजने पर हेमा की ओर से खास रोक नहीं लगाई गई, तरुण को लगता था, वह अपनी औकात से ज्यादा ही पा गया है. लेकिन धीरेधीरे हेमा का तरुण के पैसे पर हक और शिकंजा कसने लगा, तब तरुण करवट ले कर बैठा.

हालांकि उस ने घर भेजे जाने वाले रुपयों में कोई कटौती की तो नहीं, लेकिन हेमा के तानों पर उस के दिल में विष उतर जाता.सच मुहब्बत इतना आसान नहीं था, यह आग का दरिया था, और तरुण अकेला इस में हाथपांव मार रहा था.समय के साथ तरुण को हेमा का बिंदास स्वभाव, स्वार्थी सोच बहुत खलता, लेकिन अब वह ओज और ओम 2 बेटों का सिर्फ पिता ही नहीं, सेवा और प्यार की छांव देने वाला मां जैसा भी था.

कभीकभी वह महसूस करता, जैसे हेमा का तरुण के प्रति कोई प्रतिबद्धता भी न हो, और यह सिर्फ तरुण के अकेले की ही जवाबदारी हो. लेकिन वह अब बच्चों के लिए अपना मुंह बंद ही रखता.सालभर हो रहे थे, असम की गुवाहाटी से प्रभास नाम के बैंक मैनेजर हेमा के औफिस में आए थे, जिसे ले कर तरुण के विचार संदेह के घेरे में थे. मगर इस मामले में भी वह कुछ कहने लायक स्थिति में नहीं था. मजाल था कि हेमा के बारे में तरुण कोई शिकायत कर ले. सब का फिर तो वह जीना ही मुश्किल कर दे.

मैं अपने ब्वायफ्रेंड से बहुत प्यार करती हूं, पर मेरी शादी किसी और लड़के के साथ घरवालों ने तय कर दिया हैं मैं क्या करूं ?

सवाल

मैं एक युवक से बहुत प्यार करती हूं. हाल में मेरी शादी तय हो गई है पर मैं अपने बौयफ्रैंड को बहुत चाहती हूं. मैं उस से शादी की बात करती हूं तो वह मुझ से कहता है कि एक साल तक रुक जाओ. मैं बहुत दुविधा में हूं. मैं क्या करूं?

जवाब

कमाल की बात यह है कि आप की शादी की बात घर में हुई, तब भी आप ने घर में अपने बौयफ्रैंड के बारे में नहीं बताया?

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आप को अपने घर में बात करनी चाहिए और आप के बौयफ्रैंड को अपने घर में. दोनों घरों से रजामंदी के बाद समस्या नहीं रहेगी. रही बात उस के द्वारा एक साल रुकने को कहने की, तो इस की क्या वजह है? अगर वह अपने पैरों पर नहीं खड़ा और एक साल रोक कर पैरों पर खड़ा हो कर आप से शादी करना चाहता है, तो ठीक है लेकिन उसे कहें कि अपने घर में बात तो कर ले. वरना आप के रिश्ते तो आएंगे ही और मातापिता भी चाहेंगे बेटी ब्याह दें. ऐसे में आप की परेशानी ही बढ़ेगी.

अत: अपने घर वालों को हकीकत से अवगत करवाएं तथा अपने बौयफ्रैंड को जिम्मेदार बनने को कहें. समस्या नहीं रहेगी.

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बकरी पालन मोबाइल एप

बकरीपालन ऐसा व्यवसाय है, जिस में नुकसान होने की आशंका बहुत कम रहती है. किसान दूसरे कृषि कामों के साथ भी बकरीपालन शुरू कर सकते हैं. भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद, नई दिल्ली के तहत केंद्रीय बकरी अनुसंधान संस्थान ने एक ऐसा मोबाइल एप बनाया है, जहां किसानों को बकरीपालन से जुड़ी नस्लों, योजनाओं सहित पूरी जानकारी मिलती है. बकरीपालन को किसानों की आय बढ़ाने का मुख्य स्रोत कहा जाता है, क्योंकि इसे शुरू करने में बहुत ज्यादा खर्च की जरूरत नहीं पड़ती. सरकार और वैज्ञानिक इस दिशा में लगातार काम भी कर रहे हैं. इसी दिशा में केंद्रीय बकरी अनुसंधान संस्थान यानी सीआईआरजी ने बकरीपालन एप बनाया है.

बकरीपालन की शुरुआत के लिए ये मोबाइल बहुत ही कारगर साबित हो सकता है. इस मोबइल एप में भारतीय बकरी की नस्लों के बारे में काफी जानकारी दी गई है. साथ ही, यह भी बताया गया है कि आप अगर मांस के लिए ही बकरीपालन करना चाहते हैं, तो किन किस्मों का चुनाव करेंगे या रेशे और दूध के लिए कौन सी नस्लें बेहतर होंगी. कृषि उपकरण और चारा उत्पादन बकरीपालन में किनकिन कृषि उपकरणों की जरूरत पड़ती है या चारा उत्पादन कैसे करेंगे, बकरीपालन मोबाइल एप में इस की भी जानकारी दी गई है. चारा उत्पादन और खेत तैयार करने में कौनकौन से यंत्रों की जरूरत पड़ती है, इस के बारे में भी बताया गया है. सेहत और आवास प्रबंधन मोबाइल एप में बकरियों की सेहत की देखभाल कैसे करेंगे और उन के रहने के लिए आवास की व्यवस्था कैसे होगी,

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इस के बारे में भी बताया गया है. एप के जरीए बकरियों में होनी वाली बीमारियों और उन की रोकथाम के बारे में बकरीपालक जानकारी हासिल कर सकते हैं. कैसे और कहां मिलेगा बकरीपालन एप बकरीपालन एप के लिए सब से पहले गूगल प्ले स्टोर में जाना होगा. वहां जा कर टाइप करें सीआईआरजी गोट फार्ंिंमग एप मिल जाएगा. तकरीबन 80 एमबी का ये हिंदी, अंगरेजी, तमिल व तेलुगु में उपलब्ध है. एप खोलते ही भाषा को चुनने का विकल्प आता है. ठ्ठ बकरीपालन सीखने के लिए प्रशिक्षण बकरीपालन कम लागत में बढि़या मुनाफा देता है. इसे बढ़ाने के लिए केंद्र और प्रदेश सरकारें अपनेअपने लैवल पर कई योजनाएं भी चलाती हैं. जानकारों का कहना है कि बकरीपालन प्रशिक्षण लेने के बाद ही शुरू करना चाहिए. प्रशिक्षण आप केंद्रीय बकरी अनुसंधान संस्थान, मथुरा, उत्तर प्रदेश से ले सकते हैं. यह संस्थान बकरीपालन को बढ़ावा देने के लिए किसानों को ट्रेंड करता है.

राष्ट्रीय प्रशिक्षण का मुख्य उद्देश्य बकरीपालकों को जागरूक करना और उन्हें नई तकनीक के बारे में बताना है. प्रशिक्षण के दौरान वैज्ञानिक तरीके से बकरीपालन के बारे में भी बताया जाता है. प्रशिक्षण लेने वाला व्यक्ति भारत का नागरिक होना जरूरी है. प्रशिक्षण 7 दिवसीय होता है. पंजीकरण शुल्क 5,500 रुपए है. संस्थान में रुकने के लिए 50 रुपए प्रतिदिन देना होगा. खाने का खर्चा प्रतिदिन 200 रुपए देना होगा. प्रशिक्षणार्थी अपने रहने व भोजन की व्यवस्था संस्थान से बाहर भी कर सकते हैं. वैबसाइट 222.ष्द्बह्म्द्द.ह्म्द्गह्य.द्बठ्ठ पर प्रशिक्षण की तिथि प्रसारित हो जाने की दशा में ही आप प्रशिक्षण के लिए आवेदन कर सकते हैं,

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अन्यथा आवेदनपत्र स्वीकार नहीं किए जाते हैं. अधिक जानकारी के लिए दिए गए हैल्पलाइन नंबर 0565-2970999, 09682143097 पर संपर्क कर सकते हैं. इस प्रशिक्षण में पशुपालकों को बकरियों को खरीदने से ले कर आवास प्रबंधन, आहार व्यवस्था, बीमारियों और उन को बेचने की पूरी जानकारी समझाई जाती है. कैसे करें आवेदन बकरीपालन प्रशिक्षण के लिए केंद्रीय बकरी अनुसंधान संस्थान की वैबसाइट 222.ष्द्बह्म्द्द.ह्म्द्गह्य.द्बठ्ठ है. इस वैबसाइट पर आप को अधिक जानकारी मिल जाएगी. केंद्रीय बकरी अनुसंधान संस्थान का पता है : निदेशक, केंद्रीय बकरी अनुसंधान संस्थान, मकदूम, फरह, मथुरा (उत्तर प्रदेश) – 221166

अबोला नहीं : बेवजह के शक ने जया और अमित के बीच कैसे पैदा किया तनाव

क्यारियों में खिले फूलों के नाम जया याद ही नहीं रख पाती, जबकि अमित कितनी ही बार उन के नाम दोहरा चुका है. नाम न बता पाने पर अमित मुसकरा भर देता.

‘‘क्या करें, याद ही नहीं रहता,’’ कह कर जया लापरवाह हो जाती. उसे नहीं पता था कि ये फूलों के नाम याद न रखना भी कभी जिंदगी को इस अकेलेपन की राह पर ला खड़ा करेगा.

‘‘तुम से कुछ कहने से फायदा भी क्या है? तुम फूलों के नाम तक तो याद नहीं रख पातीं, फिर मेरी कोई और बात तुम्हें क्या याद रहेगी?’’ अमित कहता.

छोटीछोटी बातों पर दोनों में झगड़ा होने लगा था. एकदूसरे को ताने सुनाने का कोई भी मौका वे नहीं छोड़ते थे और फिर नाराज हो कर एकदूसरे से बोलना ही बंद कर देते. बारबार यही लगता कि लोग सही ही कहते हैं कि लव मैरिज सफल नहीं होती. फिर दोनों एकदूसरे पर आरोप लगाने लगते.

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‘‘तुम्हीं तो मेरे पीछे पागल थे. अगर तुम मेरे साथ नहीं रहोगी, तो मैं अधूरा रह जाऊंगा, बेसहारा हो जाऊंगा. इतना सब नाटक करने की जरूरत क्या थी?’’ जया चिल्लाती.

अमित भी चीखता, ‘‘बिना सहारे की  जिंदगी तो मेरी ही थी और जो तुम कहती थीं कि मुझे हमेशा सहारा दिए रहना वह क्या था? नाटक मैं कर रहा था या तुम? एक ओर मुझे मिलने से मना करतीं और दूसरी तरफ अगर मुझे 15 मिनट की भी देरी हो जाता तो परेशान हो जाती थीं. मैं पागल था तो तुम समझदार बन कर अलग हो जाती.’’

जया खामोश हो जाती. जो कुछ अमित ने कहा था वह सही ही था. फिर भी उस पर गुस्सा भी आता. क्या अमित उस के पीछे दीवाना नहीं था? रोज सही वक्त पर आना, साथ में फूल लाना और कभीकभी उस का पसंदीदा उपहार लाना और भी न जाने क्याक्या. लेकिन आज दोनों एकदूसरे पर आरोपप्रत्यारोप लगा रहे हैं, दोषारोपण कर रहे हैं. कभीकभी तो दोनों बिना खाएपिए ही सो जाते हैं. मगर इतनी किचकिच के बाद नींद किसे आ सकती है. रात का सन्नाटा और अंधेरा पिछली बातों की पूरी फिल्म दिखाने लगता.

जया सोचती, ‘अमित कितना बदल गया है. आज सारा दोष मेरा हो गया जैसे मैं ही उसे फंसाने के चक्कर में थी. अब मेरी हर बात बुरी लगती है. उस का स्वाभिमान है तो मेरा भी है. वह मर्द है तो चाहे जो करता रहे और मैं औरत हूं, तो हमेशा मैं ही दबती रहूं? अमितजी, आज की औरतें वैसी नहीं होतीं कि जो नाच नचाओगे नाचती रहेंगी. अब तो जैसा दोगे वैसा पाओगे.’

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उधर अमित सोचता, ‘क्या होता जा रहा है जया को? चलो मान लिया मैं ही उस के पीछे पड़ा था, लेकिन इस का यह मतलब तो नहीं कि वह हर बात में अपनी धौंस दिखाती रहे. मेरा भी कुछ स्वाभिमान है.’

फिर भी दोनों कोई रास्ता नहीं निकाल पाते. आधी रात से भी ज्यादा बीतने तक जागते रहते हैं, पिछली और वर्तमान जिंदगी की तुलना करते हुए मन बुझता ही जाता और चारों ओर अंधेरा हो जाता. फिर रंगबिरंगी रेखाएं आनेजाने लगती हैं, फिर कुछ अस्पष्ट सी ध्वनियां, अस्पष्ट से चेहरे. शायद सपने आने लगे थे. उस में भी पुराना जीवन ही घूमफिर कर दिखता है. वही जीवन, जिस में चारों ओर प्यार ही प्यार था, मीठी बातें थीं, रूठनामनाना था, तानेउलाहने थे, लेकिन आज की तरह नहीं. आज तो लगता है जैसे दोनों एकदूसरे के दुश्मन हैं फिर नींद टूट जाती और भोर गए तक नहीं आती.

सुबह जया की आंखें खुलतीं तो सिरहाने तकिए पर एक अधखिला गुलाब रखा होता. शादी के बाद से ही यह सिलसिला चला आ रहा था. आज भी अमित अपना यह उपहार देना नहीं भूला. जया फूल को चूम कर ‘कितना प्यारा है’ सोचती.

अमित ने तकिए पर देखा, फूल नहीं था, समझ गया, जया ने अपने जूड़े में खोंस लिया होगा. उस के दिए फूल की बहुत हिफाजत करती है न.

तभी जया चाय की ट्रे लिए आ गई. उस के चेहरे पर कोई तनाव नहीं था. सब कुछ सामान्य लग रहा था. अमित भी सहज हो कर मुसकराया है. जया के केशों में फूल बहुत प्यारा लग रहा था. अमित चाहता था कि उसे धीरे से सहला दे, फिर रुक गया, कहीं जया नाराज न हो जाए.

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अमित को मुसकराते देख जया मन ही मन बोली कि शुक्र है मूड तो सही लग रहा है.

तैयार हो कर अमित औफिस चला गया. जया सारा काम निबटा कर जैसे ही लेटने चली, फोन की घंटी बजी. जया ने फोन उठाया. अमित का सेक्रेटरी बोल रहा था, ‘‘मैडम, साहब आज आएंगे नहीं क्या?’’

जया चौंक गई, अजीब सी शंका हुई. कहीं कोई ऐक्सीडैंट… अरे नहीं, क्या सोचने लगी. संभल कर जवाब दिया, ‘‘यहां से तो समय से ही निकले थे. ऐसा करो मिस कालिया से पूछो कहीं कोई और एप्वाइंटमैंट…’’

सेक्रेटरी की आवाज आई, ‘‘मगर मिस कालिया भी तो नहीं आईं आज.’’

जया उधेड़बुन में लग गई कि अमित कहां गया होगा. सेक्रेटरी बीचबीच में सूचित करता रहा कि साहब अभी तक नहीं आए, मिस कालिया भी नहीं.

बहुत सुंदर है निधि कालिया. अपने पति से अनबन हो गई है. उस की बात तलाक तक आ पहुंची है. उसे जल्द ही तलाक मिल जाएगा. इसीलिए सब उसे मिस कालिया कहने लगे हैं. उस का बिंदास स्वभाव ही सब को उस की ओर खींचता है. कहीं अमित भी…

सेके्रटरी का फिर फोन आया कि साहब और कालिया नहीं आए.

यह सेके्रटरी बारबार कालिया का नाम क्यों ले रहा है? कहीं सचमुच अमित मिस कालिया के साथ ही तो नहीं है? सुबह की शांति व सहजता हवा हो चुकी थी.

शाम को अमित आया तो काफी खुश दिख रहा था. वह कुछ बोलना चाह रहा था, मगर जया का तमतमाया चेहरा देख कर चुप हो गया. फिर कपड़े बदल कर बाथरूम में घुस गया. अंदर से अमित के गुनगुनाने की आवाज आ रही थी. जया किचन में थी. जया लपक कर फिर कमरे में आ गई. फर्श पर सिनेमा का एक टिकट गिरा हुआ था. उस के हाथ तेजी से कोट की जेबें टटोलने लगे. एक और टिकट हाथ में आ गया. जया गुस्से से कांपने लगी कि साहबजी पिक्चर देख रहे थे कालिया के साथ और अभी कुछ कहो तो मेरे ऊपर नाराज हो जाएंगे. अरे मैं ही मूर्ख थी, जो इन की चिकनीचुपड़ी बातों में आ गई. यह तो रोज ही किसी न किसी से कहता होगा कि तुम्हारे बिना मैं बेसहारा हो जाऊंगा.

तभी अमित बाथरूम से बाहर आया. जया का चेहरा देख कर ही समझ गया कि अगर कुछ बोला तो ज्वालामुखी फूट कर ही रहेगा. अमित बिना वजह इधरउधर कुछ ढूंढ़ने लगा. जया चुपचाप ड्राइंगरूम में चली गई. धीरेधीरे गुस्सा रुलाई में बदल गया और उस ने वहीं सोफे पर लुढ़क कर रोना शुरू कर दिया.

अमित की समझ में कुछ नहीं आ रहा था, फिर अब दोनों के बीच उतनी सहजता तो रह नहीं गई थी कि जा कर पूछता क्या हुआ है. वह भी बिस्तर पर आ कर लेट गया. कैसी मुश्किल थी. दोनों ही एकदूसरे के बारे में जानना चाहते थे, मगर खामोश थे. जया वहीं रोतेरोते सो गई. अमित ने जा कर देखा, मन में आया इस भोले से चेहरे को दुलार ले, उस को अपने सीने में छिपा कर उस से कहे कि जया मैं सिर्फ तेरा हूं, सिर्फ तेरा.

मगर एक अजीब से डर ने उसे रोक दिया. वहीं बैठाबैठा वह सोचता रहा, ‘कितनी मासूम लग रही है. जब गुस्से से देखती है तो उस की ओर देखने में भी डर लगने लगता है.’

तभी जया चौंक कर जग गई. अमित ने सहज भाव से पूछा, ‘‘जया, तबीयत ठीक नहीं लग रही है क्या?’’

‘‘जी नहीं, मैं बिलकुल अच्छी हूं.’’

तीर की तरह जया ड्राइंगरूम से निकल कर बैडरूम में आ कर बिस्तर पर निढाल हो गई. अमित भी आ कर बिस्तर के एक कोने में बैठ गया. सारा दिन कितनी हंसीखुशी से बीता था, लेकिन घर आते ही… फिर भी अमित ने सोच लिया कि थोड़ी सी सावधानी उन के जीवन को फिर हंसीखुशी से भर सकती है और फिर कुछ निश्चय कर वह भी करवट बदल कर सो गया.

दोनों के बीच दूरियां दिनोंदिन बढ़ती ही जा रही थीं, लेकिन वे इन दूरियों को कम करने की कोई कोशिश ही नहीं करते. कोशिश होती भी है तो कम होने के बजाय बढ़ती ही जाती है. यह नाराज हो कर अबोला कर लेना संबंधों के लिए कितना घातक होता है. अबोला की जगह एकदूसरे से खुल कर बात कर लेना ही सही होता है. लेकिन ऐसा हो कहां पाता है. जरा सी नोकझोंक हुई नहीं कि बातचीत बंद हो जाती है. इस मौन झगड़े में गलतफहमियां बढ़ती हैं व दूरी बढ़ती जाती है.

लगभग 20-25 दिन हो गए अमित और जया में अबोला हुए. दोनों को ही अच्छा नहीं लग रहा था. लेकिन पहल कौन करे. दोनों का ही स्वाभिमान आड़े आ जाता.

उस दिन रविवार था. सुबह के 9 बज रहे होंगे कि दरवाजे की घंटी बजी.

‘कौन होगा इस वक्त’, यह सोचते हुए जया ने दरवाजा खोला तो सामने मिस कालिया और सुहास खड़े थे.

‘‘मैडम नमस्ते, सर हैं क्या?’’ कालिया ने ही पूछा.

बेमन से सिर हिला कर जया ने हामी भरी ही थी कि कालिया धड़धड़ाती अंदर घुस गई, ‘‘सर, कहां हैं आप?’’ कमरे में झांकती वह पुकार रही थी.

सुहास भी उस के पीछे था. तभी अमित

ने बालकनी से आवाज दी, ‘‘हां, मैं यहां हूं. यहीं आ जाओ. जया, जरा सब के लिए चाय बना देना.’’

नाकभौं चढ़ाती जया चाय बनाने किचन में चली गई. बालकनी से अमित, सुहास और कालिया की बातें करने, हंसने की आवाजें आ रही थीं, लेकिन साफसाफ कुछ भी समझ में नहीं आ रहा था. जया चायबिस्कुट ले कर पहुंची तो सब चुप हो गए. किसी ने भी उसे साथ बैठने के लिए नहीं कहा. उसे ही कौन सी गरज पड़ी है. चाय की टे्र टेबल पर रख कर वह तुरंत ही लौट आई और किचन के डब्बेबरतन इधरउधर करने लगी.

मन और कान तो उन की बातों की ओर लगे थे.

थोड़ी देर बाद ही अमित किचन में आ कर बोला, ‘‘मैं थोड़ी देर के लिए इन लोगों के साथ बाहर जा रहा हूं,’’ और फिर शर्ट के बटन बंद करते अमित बाहर निकल गया.

कहां जा रहा, कब लौटेगा अमित ने कुछ भी नहीं बताया. जया जलभुन गई. दोनों के बीच अबोला और बढ़ गया. इस झगड़े का अंत क्या था आखिर?

हफ्ते भर बाद फिर कालिया और सुहास आए. कालिया ने जया को दोनों कंधों से थाम लिया, ‘‘आप यहां आइए, सर के पास बैठिए. मुझे आप से कुछ कहना है.’’

बुत बनी जया को लगभग खींचती हुई वह अमित के पास ले आई और उस की बगल में बैठा दिया. फिर अपने पर्स में से एक कार्ड निकाल कर उस ने अमित और जया के चरणों में रख दिया और दोनों के चरणस्पर्श कर अपने हाथों को माथे से लगा लिया.

‘‘अरे, अरे, यह क्या कर रही हो, कालिया? सदा खुश रहो, सुखी रहो,’’ अमित बोला तो जया की जैसे तंद्रा भंग हो गई.

कैसा कार्ड है यह? क्या लिखा है इस में? असमंजस में पड़ी जया ने कार्ड उठा लिया. सुहास और निधि कालिया की शादी की 5वीं वर्षगांठ पर होने वाले आयोजन का वह निमंत्रणपत्र था.

निधि कालिया चहकते हुए बोली, ‘‘मैडम, यह सब सर की मेहनत और आशीर्वाद का परिणाम है. सर ने कोशिश न की होती तो आज 5वीं वर्षगांठ मनाने की जगह हम तलाक की शुरुआत कर रहे होते. हम ने लव मैरिज की थी, लेकिन सुहास के मम्मीपापा को मैं पसंद नहीं आई. मेरे मम्मीपापा भी मेरे द्वारा लड़का खुद ही पसंद कर लेने के कारण अपनेआप को छला हुआ महसूस कर रहे थे. बिना किसी कारण दोनों परिवार अपनी बहू और अपने दामाद को अपना नहीं पा रहे थे. उन्होंने हमारे छोटेमोटे झगड़ों को खूब हवा दी, उन्हें और बड़ा बनाते रहे, बजाय इस के कि वे लोग हमें समझाते, हमारी लड़ाइयों की आग में घी डालते रहे. छोटेछोटे झगड़े बढ़तेबढ़ते तलाक तक आ पहुंचे थे.

‘‘सर को जब मालूम हुआ तो उन्होंने एड़ीचोटी का जोर लगा दिया ताकि हमारी शादी न टूटे. 1-2 महीने पहले उन्होंने हमें अलगअलग एक सिनेमा हाल में बुलाया और एक फिल्म के 2 टिकट हमें दे कर यह कहा कि चूंकि आप नहीं आ रहीं इसलिए वे भी फिल्म नहीं देखना चाहते. टिकटें बेकार न हों, इसलिए उन्होंने हम से फिल्म देखने का आग्रह किया. भले ही मैं और सुहास अलग होने वाले थे, लेकिन हम दोनों ही सर का बहुत आदर करते हैं, इसलिए दोनों ही मना नहीं कर पाए.

‘‘फिल्म शुरू हो चुकी थी इसलिए कुछ देर तो हमें पता नहीं चला. थोड़ी देर बाद समझ में आया कि सिनेमाहाल करीबकरीब खाली ही था. लेकिन सिनेमाहाल के उस अंधेरे में हमारा सोया प्यार जाग उठा. फिल्म तो हम ने देखी, सारे गिलेशिकवे भी दूर कर लिए. हम ने कभी एकदूसरे से अपनी शिकायतें बताई ही नहीं थीं, बस नाराज हो कर बोलना बंद कर देते थे. जितनी देर हम सिनेमाहाल में थे सर ने हमारे मम्मीपापा से बात की, उन्हें समझाया तो वे हमें लेने सिनेमाहाल तक आ गए. फिर हम सब एक जगह इकट्ठे हुए एकदूसरे की गलतफहमियां, नाराजगियां दूर कर लीं. मैं ने और सुहास ने भी अपनेअपने मम्मीपापा और सासससुर से माफी मांग ली और भरोसा दिलाया कि हम उन के द्वारा पसंद की गई बहूदामाद से भी अच्छे साबित हो कर दिखा देंगे.

‘‘उस के बाद से कोर्ट में चल रहे तलाक के मुकदमे को सुलहनामा में बदलने में सर ने बहुत मदद की. आज इन की वजह से ही हम दोनों फिर एक हो गए हैं, हमारा परिवार भी हमारे साथ है, सब से बड़ी खुशी की बात तो यही है. परसों हम अपनी शादी की 5वीं वर्षगांठ बहुत धूमधाम से मनाने जा रहे हैं, केवल सर के आशीर्वाद और प्रयास से ही. आप दोनों जरूर आइएगा और हमें आशीर्वाद दीजिएगा.’’

निधि की पूरी बात सुन कर जया का तो माथा ही घूमने लगा था कि कितना उलटासीधा सोचती रही वह, निधि कालिया और अमित को ले कर. लेकिन आज सारा मामला ही दूसरा निकला. कितना गलत सोच रही थी वह.

‘‘हम जरूर आएंगे. कोई काम हो तो हमें बताना,’’ अमित ने कहा तो निधि और सुहास ने झुक कर उन के पांव छू लिए और चले गए.

जया की नजरें पश्चात्ताप से झुकी थीं, लेकिन अमित मुसकरा रहा था.

‘आज भी अगर मैं नहीं बोली तो बात बिगड़ती ही जाएगी,’ सोच कर जया ने धीरे से कहा, ‘‘सौरी अमित, मुझे माफ कर दो. पिछले कितने दिनों से मैं तुम्हारे बारे में न जाने क्याक्या सोचती रही. प्लीज, मुझे माफ कर दो.’’

अमित ने उसे बांहों में भर लिया, ‘‘नहीं जया, गलती सिर्फ तुम्हारी नहीं मेरी भी है. मैं समझ रहा था कि तुम सब कुछ गलत समझ रही हो, फिर भी मैं ने तुम्हें कुछ बताने की जरूरत नहीं समझी. न बताने के पीछे एक कारण यह भी था कि पता नहीं तुम पूरी स्थिति को ठीक ढंग से समझोगी भी या नहीं. अगर मैं ने तुम्हें सारी बातें सिलसिलेवार बताई होतीं, तो यह समस्या न खड़ी होती.

‘‘दूसरे का घर बसातेबसाते मेरा अपना घर टूटने के कगार पर खड़ा हो गया था. लेकिन उन दोनों को समझातेसमझाते मुझे भी समझ में आ गया कि पतिपत्नी के बीच सारी बातें स्पष्ट होनी चाहिए. कुछ भी हो जाए, लेकिन अबोला नहीं होना चाहिए. जो भी समस्या हो, एकदूसरे से शिकायतें हों, सभी आपसी बातचीत से सुलझा लेनी चाहिए वरना बिना बोले भी बातें बिगड़ती चली जाती हैं. पहले भी हमारे छोटेमोटे झगड़े इसी अबोले के कारण विशाल होते रहे हैं. वादा करो आगे से हम ऐसा नहीं होने देंगे,’’ अमित ने कहा तो जया ने भी स्वीकृति में गरदन हिला दी.

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