नरेंद्र गिरि आत्महत्या मामला कोई नया मामला नहीं है. मंदिर, मठ और आश्रम के झगड़े काफी पहले से चलते आ रहे हैं. बदलाव यह आया है कि पहले ये झगड़े पद श्रेष्ठता के चलते होते थे, अब इन मठों में दानस्वरूप अथाह संपत्ति और धनवर्षा होने से इन का रूप दानपात्र पर नियंत्रण पाने का हो गया है. पौराणिक काल से ही मठ, मंदिरों और आश्रमों में झगड़े होते रहे हैं. पहले जमीनजायदाद बहुत मूल्यवान नहीं होती थी तो ये झगड़े प्रतिष्ठा, सम्मान और श्रेष्ठता के लिए होते थे. प्रतिष्ठा, सम्मान और श्रेष्ठता के टकराव में अलगअलग धर्म और संप्रदाय बनते गए. इन के अलगअलग देवता और मंदिर, आश्रम बनते गए. रामायाण काल की बात करें तो विश्वामित्र और वशिष्ठ के बीच टकराव श्रेष्ठता को ले कर ही था. विश्वामित्र ने ऋषि, महर्षि और राजर्षि तक की उपाधि पा ली थी लेकिन कोई उन को ब्रह्मर्षि मानने को तैयार नहीं था. ब्रह्मर्षि की उपाधि वशिष्ठ को मिली थी.

विश्वामित्र ने वशिष्ठ से वैमनस्य रखना शुरू कर दिया. ऐसे संतों की संख्या कम नहीं है. अपनी श्रेष्ठता को बनाए रखने के कारण ही 33 करोड़ देवता और तमाम धर्मसंप्रदाय बनते गए. जैसेजैसे मठ, आश्रमों और मंदिरों में धन संपदा बढ़ने लगी, इन के रूप बदलने लगे. मंदिरों में कब्जे और दानपात्र पर नियंत्रण किया जाने लगा. मंदिरों की कमेटियों में झगड़े शुरू हो गए. मंदिर में ही रखे दानपात्र में एक से अधिक ताले लगने लगे. जिस की वजह यह थी कि जब दानपात्र खुले तो हर वह आदमी वहां मौजूद रहे जिस के पास उस की चाबी होती है. ज्यादातर मठ, मंदिर और आश्रम गुरु-शिष्य परंपरा के होते हैं जहां गुरु ही अपना उत्तराधिकारी नियुक्त करता है. मठ, मंदिर और आश्रमों पर कब्जा करने के लिए गुरु यानी मंदिर के महंत को अपने पक्ष में करने के लिए शिष्य साम, दाम, दंड, भेद का प्रयोग करने लगे. अगर इस से बात न बने तो बात महंत यानी गुरु की हत्या तक पहुंच जाती है.

ये भी पढ़ें- मौताणा: मौत के मुआवजे की घिनौनी प्रथा

प्रयागराज में अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष और बाघंबरी मठ के महंत नरेंद्र गिरि की मौत के बाद यह बात एक बार फिर से चर्चा में जरूर आ गई है, पर मठ, आश्रम और मंदिरों में जमीनजायदाद और प्रभाव को ले कर झगड़े 90 फीसदी मंदिरों में चल रहे हैं. जिन लोगों ने छोटे महंत कहे जाने वाले आनंद गिरि की लाइफस्टाइल को देखा, वे समझ रहे थे कि छोटे महंत आनंद गिरि और बड़े महंत नरेंद्र गिरि के बीच प्रभाव और श्रेष्ठता को ले कर जो झगड़ा चल रहा है वह कुछ कर गुजरेगा. यह जंग पैसों को ले कर शुरू हुई. इस के बीच की बड़ी वजह आनंद गिरि की बढ़ती महत्त्वाकांक्षा भी थी. विवाद की वजह दान के पैसे 2019 के कुंभ का आयोजन जब प्रयागराज में हुआ और भाजपा के बड़े नेताओं और मंत्रियों का वहां आनाजाना हुआ तो अपना रसूख बढ़ाने के लिए आनंद गिरि इन सब से मिलने लगा. यह बात नरेंद्र गिरी के खेमे को पसंद नहीं आ रही थी.

आंनद गिरि कई कामों की जानकारी अपने महंत नरेंद्र गिरि को भी नहीं देता था. आपसी खींचतान के बाद यह मामला एकदूसरे को मंदिर से बेदखल करने तक पहुंच गया. मंदिर की जमीन पर पैट्रोल पंप खोलने को ले कर हुए विवाद के बाद नरेंद्र गिरि ने अपने शिष्य आनंद गिरि को मठ और मंदिर से बेदखल कर दिया. इस के बाद आनंद गिरि अपने ही गुरु पर जायदाद के हेरफेर, परिवार और करीबी लोगों को मंदिर की संपत्ति को देने के साथ ही साथ उन के चरित्रहनन का काम करने वाली बातें कहने लगा. यही वह सब से बड़ा पेंच था जिस के डर से महंत नरेंद्र गिरि ने आत्महत्या कर ली. मंदिरों में जिस पैसे और जायदाद को ले कर विवाद हो रहा है वह जनता द्वारा दिया गया दान होता है. जनता को यह देखना चाहिए कि वह जो पैसा भगवान के नाम पर मंदिरों में दान देती है उस का असल उपभोग कौन कर रहा है? इस के कारण कितने झगड़े बढ़ रहे हैं? संत और महात्मा भगवान के नाम पर डरा कर जनता से पैसे वसूलते हैं.

दान के इन्हीं पैसों पर संतमहात्मा ऐश करते हैं. इस के लिए ही तमाम झगड़े होते हैं. बाघंबरी मठ और निरंजनी अखाड़ा करीब 9 सौ साल पुराने मठ हैं. इन के पास 3 हजार करोड़ रुपए से अधिक की संपत्ति है. यह कई राज्यों में फैली है. मठों का काम शिक्षा देने का होता था. मठ को राजा या सरकार जमीन और पैसा इसलिए देती थी कि वह शिक्षा के क्षेत्र में इस का प्रयोग कर सके. महंत केवल केयरटेकर की तरह होता है. वह मठ की संपत्ति का मालिक नहीं होता. लेकिन होता इस के ठीक उलटा है. महंत मालिक की तरह से काम करता है. अपने लोगों, नातेरिश्तेदारों को इस का लाभ देता है. मठों में यह नियम होता है कि दीक्षा लेने के बाद अपने परिवार से संबंध त्यागने पड़ते हैं. आज 90 फीसदी मठ के महंत अपने परिवार के लोगों के साथ संबंध रखते हैं. नरेंद्र गिरि ने जब अपने शिष्य आनंद गिरि को मठ से निकाला तो आरोप यही था कि वह अपने परिवारजनों को इस का लाभ देता है.

ये भी पढ़ें- भिक्षावृत्ति महानवृत्ति

यही आरोप बाद में आनंद गिरि ने अपने महंत नरेंद्र गिरि पर भी लगाया था. लोक कल्याण के नाम पर बनने वाले मठ संतों के लिए पैसे पैदा करने वाली मशीनें बन गए हैं. नरेंद्र गिरि के प्रभाव में रही सत्ता और सरकार साल 1984 नरेंद्र सिंह की मुलाकात संगम किनारे बने निरंजनी अखाड़े के संत कोठारी दिव्यानंद गिरि से होती है. नरेंद्र सिंह उन की सेवा करने लगते हैं. वे अपने घर वापस जाने को राजी नहीं हुए तो तब दिव्यानंद नरेंद्र को ले कर हरिद्वार चले गए. वहां उन का समर्पण भाव देख कर दिव्यानंद ने 1985 में उसे संन्यास की दीक्षा दी और उस का नामकरण नरेंद्र गिरि के रूप में कर दिया. इस के बाद श्रीनिरंजनी अखाड़े के महात्मा व श्रीमठ बाघंबरी गद्दी के महंत बलवंत गिरि ने गुरु दीक्षा दी. बलवंत गिरि के न रहने के बाद नरेंद्र गिरि 2004 में मठ श्रीबाछंबरी गद्दी के पीठाधीश्वर तथा बड़े हनुमान मंदिर के महंत का पद संभाला. इस के बाद वे मठ और मंदिर को भव्य स्वरूप दिलाने के लिए काम करने लगे. 2014 में उन को संतों की सब से बड़ी संस्था अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद का अध्यक्ष चुन लिया गया.

नरेंद्र गिरि मूलरूप से प्रयागराज के सराय ममरेज के करीब छतौना गांव के रहने वाले थे. उन के पिता का नाम भानुप्रताप सिंह था. वे आरएसएस में थे. पिता का प्रभाव नरेंद्र गिरि पर था. नरेंद्र सिंह 4 भाई थे. उन के भाइयों के नाम अशोक कुमार सिंह, अरविंद कुमार सिंह और आंनद सिंह थे. नरेंद्र गिरि यानी नरेंद्र सिंह ने बाबू सरजू प्रसाद इंटर कालेज से हाईस्कूल की परीक्षा पास की थी. अपने मधुर स्वभाव और मेहनती होने के कारण जल्दी ही उन का नाम अखाड़े के प्रमुख लोगों में शामिल हो गया. अखाड़े में शामिल होने के 6 साल के अंदर ही नरेंद्र गिरि पदाधिकारी बन गए. बाद में नरेंद्र गिरि ने अखाड़े के विस्तार पर काम करना शुरू किया. 1998 में नरेंद्र गिरि का नाम संतों के सब से बड़े अखाड़ा परिषद के पदाधिकारी के रूप में लिया जाने लगा.

अखाड़ा परिषद का पदाधिकारी बनने के बाद नरेंद्र गिरि की अलग पहचान बनने लगी. नरेंद्र गिरि को सब से बड़ी सफलता तब मिली जब 2014 में अयोध्या निवासी संत ज्ञानदास की जगह पर उन को संतों की सब से बड़ी संस्था अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद का अध्यक्ष चुन लिया गया. उस समय उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी की सरकार थी और नरेंद्र गिरि मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के करीबी हो गए. 2019 कुंभ के समय नरेंद्र गिरि का भाजपा के बड़े नेताओं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृहमंत्री अमित शाह, उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य से करीबी नाता हो गया. खतरा बन गया आनंद गिरि आनंद गिरि मूलरूप से उत्तराखंड के रहने वाले हैं. किशोरावस्था में ही वे हरिद्वार के आश्रम में नरेंद्र गिरि से मिले थे. इस के बाद नरेंद्र गिरि उन को प्रयागराज ले आए थे.

ये भी पढ़ें- हमेशा से अपने होने का अर्थ ढूंढ़ती रही नारी

2007 में आनंद गिरि निरजंनी अखाड़े से जुड़े और महंत भी बने. गुरु के करीबी होने के कारण लेटे हनुमान मंदिर के छोटे महंत के नाम से भी उन को जाना जाता था. यह मंदिर भी बाघंबरी ट्रस्ट द्वारा ही संचालित होता है. आनंद गिरि को योगगुरु के नाम से भी जाना जाता है. वे देशविदेश में योग सिखाने के लिए भी जाते रहे हैं. महत्त्वाकांक्षी आनंद गिरि ने खुद को खुद से ही नरेंद्र गिरि का उत्तराधिकारी भी घोषित कर लिया था. बाद में विवाद होने के बाद नरेंद्र गिरि ने इस का खंडन किया था. आनंद गिरि ने गंगा सफाई के लिए गंगा सेना भी बनाई थी. वे हरिद्वार में एक आश्रम भी बना रहे थे. इस के बाद नरेंद्र गिरि के साथ उन का विवाद बढ़ गया था. महत्त्वाकांक्षी आनंद गिरि दूसरे शिष्यों की आंखों में खटकता था. ऐसे में उस को ले कर सभी इस कोशिश में रहते थे कि वह नरेंद्र गिरि से दूर हो जाए. आंनद गिरि के विरोधियों को तब मौका मिल गया जब आनंद गिरि 2016 और 2018 के पुराने मामलों में अपनी ही 2 शिष्याओं के साथ मारपीट और अभद्रता को ले कर 2019 में सुर्खियों में आए थे. मई 2019 में उन को जेल भी जाना पड़ा था.

इस के बाद सितंबर माह में सिडनी कोर्ट ने उन को बाइज्जत बरी कर दिया था. इस के बाद उन का पासपोर्ट भी रिलीज कर दिया गया था. इस के बाद आनंद गिरि भारत आए थे. आनंद गिरि का हवाई जहाज में शराब पीते हुए एक फोटो भी सोशल मीडिया पर वायरल हुआ था. आंनद गिरि ने इस को शराब नहीं, जूस बताया था. आनंद गिरि शौकीन किस्म का था. महंगी कार, बाइक और ऐशोआराम का उस को शौक था. जमीन के टुकड़े को ले कर आमनेसामने आ गए गुरु और चेला नरेंद्र गिरि से पहले भी ऐसे ही विवादों के बीच ही मठ के 2 महंतों की संदिग्ध हालत में मौत हो चुकी है. नरेंद्र गिरि का अपने ही शिष्य आंनद गिरि के साथ विवाद की वजह 80 फुट चौड़ी और 120 फुट लंबी गौशाला की जमीन का टुकड़ा बना. आनंद गिरि के नाम यह जमीन लीज पर थी.

यहां पर पैट्रोल पंप बनना था. कुछ दिनों बाद महंत नरेंद्र गिरि ने इस प्रस्ताव को खारिज कर दिया कि यहां पर पैट्रोल पंप नहीं चल सकता है. उन का कहना था कि यहां पर मार्केट बना दिया जाएगा, जिस से मठ की आमदनी बढ़ेगी. आनंद गिरि का कहना था कि नरेंद्र गिरि उस जमीन को बेचना चाहते हैं. इस कारण लीज कैसिंल कराई गई थी. मठ की इस करोड़ों की जमीन को ले कर नरेंद्र गिरि और उन के शिष्य आनंद गिरि के बीच घमासान इस कदर बढ़ गया कि नरेंद्र गिरि ने आनंद गिरि को निरंजनी अखाड़े और मठ से निकाल दिया था. इस के बाद आनंद गिरि भाग कर हरिद्वार पहुंच गया था. आनंद गिरि ने इस के बाद सोशल मीडिया पर कई तरह के ऐसे वीडियो वायरल किए जिन में नरेंद्र गिरि के शिष्यों के पास करोड़ों की संपत्ति होने का दावा किया गया था. नरेंद्र गिरि ने इन मुद्दों पर सफाई देते कहा था कि ये आरोप बेबुनियाद हैं. उन की छवि को धूमिल करने के लिए यह काम किया गया है.

कुछ समय के बाद आनंद गिरि ने अपने गुरु नरेंद्र गिरि से माफी मांग ली थी. माफी मांगने के वीडियो भी वायरल हुए थे. नरेंद्र गिरि का एक और विवाद लेटे हनुमान मंदिर के मुख्य पुजारी आद्या तिवारी और उन के बेटे संदीप तिवारी के साथ भी बताया जाता है. लेनेदेन के इस विवाद की वजह से दोनों के बीच बातचीत बंद थी. जायदाद के ऐसे विवादों के अलावा भी नरेंद्र गिरि कई तरह के दूसरे विवादों में भी घिरे थे. नरेंद्र गिरि के करीबी रहे शिष्य और निरंजनी अखाड़े के सचिव महंत आशीष गिरि ने 17 नवंबर, 2019 को गोली मार कर आत्महत्या कर ली थी. आशीष गिरि ने जमीन बेचने का विरोध किया था. दारागंज स्थित अखाड़े के आश्रम में आशीष गिरि ने गोली मार कर आत्महत्या की थी. इस की वजह यह बताई जा रही थी कि 2011 और 2012 में बाघंबरी गद्दी की जमीन समाजवादी पार्टी के नेता को बेची जा रही थी. पुलिस ने आशीष गिरि की आत्महत्या का कारण डिप्रैशन बताया था. तमाम मठ और मंदिरों में हैं झगड़े नरेंद्र गिरि और आनंद गिरि कोई नए नाम नहीं है. संतमहंत, गुरुचेलों के ऐसे तमाम नाम हैं,

जिन के बीच जायदाद को ले कर झगड़े होते रहे हैं. कुछ वर्षों पहले सुल्तानपुर जिले में धनपतगंज के मझवारा स्थित संत ज्ञानेश्वर के परमभाव धाम में विवाद होता रहा है. 23 वर्षों से चल रहे विवाद में दर्जनों हत्याएं हो चुकी हैं. 2006 में हंडिया में संत ज्ञानेश्वर समेत 8 लोगों की हत्या की गई थी. पिछले कुछ सालों के आंकड़े देखें तो अयोध्या में ऐसे तमाम अपराध हो चुके हैं जो अब केवल पुलिस के दस्तावेजों तक ही सिमट कर रह गए हैं. अयोध्या में राममंदिर विवाद के बारे में सभी जानते थे. बहुत कम लोगों को पता है कि अयोध्या के तमाम मंदिरों में आपसी झगड़े चल रहे थे, जिस की वजह से हत्या और कई गंभीर अपराध होते रहे हैं. राम की नगरी ‘अयोध्या’ में कई संतोंमहंतों की हत्या हो चुकी है. हत्याओं की वजह अथाह संपत्तियों पर कब्जे की होड़ रही है. संतों की हत्या करने वाला कोई बाहरी नहीं, बल्कि उन के अपने ही होते हैं. मठों व मंदिरों की संपत्तियों पर कब्जे को ले कर पिछले कुछ वर्षों में कई घटनाएं सामने आई हैं. जिन की जांच के दौरान ज्यादातर मामलों में संपत्ति का विवाद ही सामने आया है.

ठाकुरजी के नाम पर मंदिरों की एक नहीं, कई स्थानों पर जमीन होती है. इसी को ले कर विवाद होता है. अधिकांश विवाद जमीन को ले कर हुए हैं और यह बात सामने आई है कि संतों की हत्या में उन के शिष्यों का हाथ होता है. अयोध्या के वासुदेवघाट स्थित बैकुंठ भवन के महंत अयोध्या दास के अचानक लापता होने के बाद उन की हत्या की खबर आई. बात सामने आई कि महंत की हत्या किसी और ने नहीं, बल्कि मठ में रहने वाले उन के ही चेले रामकुबेर दास ने सुपारी दे कर करवाई थी. अयोध्या के ही मुमुक्ष भवन में स्वामी सुदर्शनाचार्य की हत्या उन के ही शिष्य जितेंद्र पांडेय ने की. यह हत्या इतनी दिल दहलाने वाली थी कि अपने गुनाह को छिपाने के लिए हत्यारे शिष्य ने स्वामी सुदर्शनाचार्य के शव को भवन में ही गाड़ दिया था. अयोध्या में ही हनुमंत भवन में रामशरण भी अपनों के ही षड्यंत्र का शिकार हुए. विद्याकुंड मंदिर में महंत स्वामी रामपाल दास को भी विवाद के कारण मौत के घाट उतार दिया गया.

महंत रामाज्ञा दास, पहलवान रामपाल दास, महंत प्रह्लाद दास और हरिभजन दास की हत्या की गई. हत्या की मूल वजह महंत अपने संबंधियों को लाभ पहुंचाने के चक्कर में रहते हैं और उन का असली उत्तराधिकारी गद्दी पाने से वंचित रह जाता है. इस से आपसी द्वेष और असंतोष बढ़ता है और अपराध हो जाता है. द्य वसीयतनुमा सुसाइड नोट महंत नरेंद्र गिरि का यह सुसाइड नोट अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के लैटरहैड पर लिखा गया है. पहले 13 सितंबर, 2021 की तारीख लैटरहैड पर पड़ी थी. बाद में इस को काट कर नीचे 20 सितंबर किया गया. टूटीफटी हिंदी में यह लिखा गया है. इस में कई जगहों पर कटिंग भी हुई है. अपने सुसाइड नोट में महंत नरेंद्र गिरि ने लिखा है-

‘‘मैं, महंत नरेंद्र गिरि, मठ बाघंबरी गद्दी बड़े हनुमान मंदिर (लेटे हनुमानजी) वर्तमान में अध्यक्ष, अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद, अपने होशोहवास में बगैर किसी दबाव के यह पत्र लिख रहा हूं. जब से आंनद गिरि ने मेरे ऊपर असत्य, मिथ्या और मनगढं़त आरोप लगाए हैं, तब से मैं मानसिक दबाव में जी रहा हूं. जब भी मैं एकांत में रहता हूं, मर जाने की इच्छा होती है. आंनद गिरि, आद्या तिवारी और उन के लड़के संदीप तिवारी ने मिल कर मेरे साथ विश्वासघात किया है.

‘‘सोशल मीडिया, फेसबुक और समाचारपत्रों में आनंद गिरि ने मेरे चरित्र पर मनगढ़ंत आरोप लगाए हैं. मैं मरने जा रहा हूं. सत्य बोलूंगा. मेरा घर से कोई संबंध नहीं है. मैं ने एक भी पैसा घर पर नहीं दिया है. मैं ने एकएक पैसा मंदिर और मठ में लगाया है. 2004 में मैं महंत बना. 2004 से अब तक मंदिर मठ का जो विकास किया, सभी भक्त जानते हैं. आनंद गिरि द्वारा मेरे ऊपर जो आरोप लगाए गए उन से मेरी और मठमंदिर की बदनामी हुई है. मेरे मरने की संपूर्ण जिम्मेदारी आनंद गिरि, आद्या प्रसाद तिवारी जो मंदिर के पुजारी हैं और आद्या प्रसाद तिवारी के पुत्र संदीप तिवारी की होगी. मैं समाज में हमेशा शान से जिया. आनंद गिरि ने मुझे गलत तरह से बदनाम किया.

‘मुझे जान से मारने का प्रयास किया गया. इस से मैं बहुत दुखी हूं. प्रयागराज के सभी पुलिस अधिकारियों और प्रशासनिक अधिकारियों से अनुरोध करता हूं, मेरी आत्महत्या के जिम्मेदार उपरोक्त लोगों पर कानूनी कार्रवाई की जाए, जिस से मेरी आत्मा को शांति मिले. द्य ‘‘प्रिय बलवीर गिरि मठमंदिर की व्यवस्था का प्रयास करना, जिस तरह से मैं ने किया इसी तरह से करना. नितीश गिरि और मणि सभी महात्मा बलवीर गिरि का सहयोग करना. परमपूज्य महंत हरिगोबिंदजी एवं सभी से निवेदन है कि मठ का महंत बलवीर गिरि को बनाना. महंत रवींद्र गिरिजी (सजावटी मठी) आप ने हमेशा साथ दिया. मेरे मरने के बाद बलवीर गिरि का साथ दीजिएगा. सभी को ओम नमो नारायण.

‘‘मै, महंत नरेंद्र गिरि, 13 सितंबर को ही आत्महत्या करने जा रहा था लेकिन हिम्मत नहीं कर पाया. आज हरिद्वार से सूचना मिली कि एकदो दिनों में आनंद गिरि कंप्यूटर द्वारा मोबाइल से किसी लड़की या महिला के साथ मेरी फोटो लगा कर गलत काम करते हुए फोटो वायरल कर देगा. मैं ने सोचा कहांकहां सफाई दूंगा. एक बार तो बदनाम हो जाऊंगा. मैं जिस पद पर हूं, वह गरिमामयी पद है. सचाई तो लोगों को बाद में पता चल जाएगी लेकिन मैं तो बदनाम हो जाऊंगा. इसलिए, मैं आत्महत्या करने जा रहा हूं. द्य ‘‘बलवीर गिरि मेरी समाधि पार्क में नीम के पेड़ के पास दी जाए. यह मेरी अंतिम इच्छा है. धनजंय विद्यार्थी मेरे कमरे की चाबी बलवीर महाराज को दे देना. बलवीर गिरि एंव पंचपरमेश्वर से निवेदन कर रहा हूं कि मेरी समाधि पार्क में नीम के पेड़ के नीचे बना देना.

प्रिय बलवीर गिरि ओम नमो नारायण. मैं ने तुम्हारे नाम एक रजिस्टर्ड वसीयत की है जिस में मेरे ब्रहमलीन हो जाने के बाद तुम बड़े हनुमान मंदिर एवं मठ बाघंबरी गद्दी के महंत बनोगे. तुम से मेरा अनुरोध है कि मेरी सेवा में लगे विद्यार्थी, जैसे मिथलेश पांडेय, रामकृष्ण पांडेय, मनीष शुक्ला, शिवेष कुमार मिश्रा, अभिषेक कुमार मिश्रा, उज्ज्वल द्विवेदी, प्रज्ज्वल द्विवेदी, अभय द्विवेदी, निर्भय द्विवेदी, सुमित तिवारी का ध्यान देना. जिस तरह से हमेशा मेरी सेवा और मठ की सेवा की है उसी तरह से बलवीर गिरि महराज और मठ मंदिर की सेवा करना.

वैसे, हमें सभी विद्यार्थी प्रिय हैं लेकिन मनीष शुक्ला, शिवम मिश्रा और अभिषेक मिश्रा मेरे अति प्रिय हैं. द्य ‘‘कोरोनाकाल में जब मुझे कोरोना हुआ, मेरी सेवा सुमित तिवारी ने की. मंदिर में मालाफूल की दुकान को मैं ने सुमित तिवारी के नाम किरायानामा में रजिस्टर किया है. मिथलेश पांडेय को बड़े हनुमान रुद्राक्ष इंपोरियम की दुकान किराए पर दी है. मनीष शुक्ला, शिवम मिश्रा और अभिषेक मिश्रा को लड्डू की दुकान किराए पर दी है.’’

और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...