देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक राष्ट्रीय न्यूज चैनल को इंटरव्यू दिया था. उस में बड़ी बेशर्मी के साथ कहते नजर आए कि ‘आप को यह जान कर हैरानी होगी कि मैं ने 35 साल भिक्षा मांग कर खाया है.’ जैसे भिक्षा मांगना इंटरनैशनल महान कार्य किया हो. इस देश में भीख मांगने को सदा उच्च माना गया है, आदरणीय माना गया है. कई धर्मग्रंथों में लिखा है कि ब्राह्मणों को भिक्षा देना पुण्य का कार्य है. ब्राह्मणों के छोटेछोटे बच्चों को शास्त्रों का हवाला दे कर भिक्षावृत्ति में धकेला गया. उन को बताया गया कि तुम्हारे ऋषिमुनि, महात्मा भी भिक्षा मांग कर जीवनयापन करते थे, इसलिए वे महान थे. इस महान संस्कृति को आगे बढ़ाना तुम्हारा कर्तव्य है. यही कारण है कि आज बेशर्मी के साथ मांगने की वृत्ति रगरग में समा गई है. साल 1962 में चीन में त्रासदी आई.

ब्रिटेन के एनजीओ ने राहत सामग्री से भरा जहाज भेजा था. चीन के लोगों ने उस जहाज पर यह लिख कर वापस कर दिया कि भूखों मर जाएंगे मगर भीख स्वीकार नहीं करेंगे. ब्रिटेन की संसद में 31 मई 1962 में एम पी नोएल बेकर की अपील पर प्रधानमंत्री ने कहा था कि चीन ने बाहर से बड़े पैमाने पर खाद्यान्न खरीदा है और शायद वे सहायता न लें. भारत में इस तरह मदद पहुंचती तो जहाज के कैप्टन का मालाओं से स्वागत होता, पंडितजी स्वागत में नारियल फोड़ते. हम बेशर्म लोग हैं. हम ने भीख को आत्मसात कर के, आदर दे कर इस को महान संस्कृति का स्वरूप दे दिया है. आज 10-12 साल के बच्चे तिलक लगा कर, चोटी बना कर पंडालों में प्रवचन देते हैं कि जीवन के आवागमन से मुक्ति का रास्ता कैसे प्राप्त किया जा सकता है, मोक्ष कैसे मिलेगा. जिंदगी की दहलीज पर कदम रखा है अभी और अभी से ही मौत पर निशाना. जवानी तो दूर की बात है, अभी तो बचपन भी नहीं जिया,

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उस से पहले ही बूढ़े हो गए, बूढ़ों की सोच घर कर गई. मरुस्थलीय पौधे कीकर के भी कोंपल फूटती है, फूल आते हैं, फल लगते हैं. मगर भारत के मनुष्यों के जीवन में कोई रस नहीं है. कोई कली नहीं खिलती, न फूल आते हैं न फलों का आगमन होता है. पौधा पैदा हुआ और सूखे की मार पड़ जाती है. बच्चा पैदा हुआ कि धर्म की आड़ में मौत से रूबरू करवा दिया जाता है. जिंदगी क्षणभंगुर है, आसपास सबकुछ मोहमाया है. तू इस से मुक्ति का मार्ग ढूंढ़. दुनिया बेगानी घोषित की हुई है और बच्चों को भिखारी बना दिया गया है, बच्चों को बूढ़ा बना दिया गया है. यह भिखारियों की संस्कृति वाला देश है. यह बूढ़ों का देश है. यहां जवानी पैदा नहीं होती है. अगर आप भौतिक रूप से देखोगे तो हुक्मरान सही कह रहे हैं कि यह युवा देश है. हमारे पास 65 करोड़ युवाओं की संख्या है. मगर युवा सोच, स्टेट औफ माइंड, स्पिरिट के रूप में देखोगे तो ये 65 करोड़ मिट्टी के पुतले हैं. जिस देश की आधी से ज्यादा आबादी युवा हो उस देश की इतनी दयनीय हालत हो सकती है? दरिद्रता का ढेर हो सकता है?

समस्याओं का अंबार हो सकता है? कदमकदम पर अन्याय व अत्याचार है मगर कहीं कोई बगावत, विरोध, विद्रोह की कोई आवाज नहीं. क्या युवा देश में यह संभव है? जवान आदमी कोई भीख मांगता है तो हम कह देते हैं कि जवान हो कर भीख मांगता है. बूढ़ा भीख मांगे तो कोई अचरज नहीं क्योंकि वह पैदा नहीं कर सकता. मगर धर्म/संस्कृति/दान/पुण्य का तड़का लगा दिया जाए तो न मांगने वाले को शर्म आती है और न देने वाले को. मांगने वाला भी गर्व के साथ मांगता है क्योंकि यह उस की महान विरासत है जिसे वह संभाल रहा है और देने वाले के मन में भी कोई सवाल खड़ा नहीं होता कि जवान को क्यों दूं? बल्कि उसे भी गर्व की अनुभूति होती है कि भीख दे कर उस ने भी महान कार्य किया है. इस तरह हम ने हजारों सालों से भिखारियों की फौज खड़ी कर ली है. अनुत्पादक लोगों का जमघट तैयार कर लिया. जो थोड़ेबहुत उत्पादक लोग हैं उन की ऊर्जा व श्रम इन अनुत्पादक लोगों को पालने में व्यर्थ जा रहा है.

देश में कोई रैडिकल प्रोग्रैस नहीं हो रही है. बस, खुद द्वारा तैयार बो?ा ही खुद के कंधों पर उठाए घूम रहे हैं. यहां के धर्मगुरु सम?ा रहे हैं कि ‘क्या ले के आया बंधु, क्या ले के जाएगा!’ पैदा होते ही बुढ़ापे की चादर ओढ़ा दी जाती है. जिंदगी को मौत की ट्रेन के इंतजार करने का वेटिंगरूम बना दिया है. बस, मौत आने वाली है. यहीं शौच कर लो, कूड़ा बिखेर दो. हमारे साथ क्या चलने वाला है? सृजन करने की, निर्माण करने की क्या जरूरत है? हम तो खाली हाथ आए थे और खाली हाथ जाना है, इसलिए कुछ करने की जरूरत नहीं है. गलती से कुछ हाथ लग गया है तो वह भी इन भिखारियों को दे दो. इसी वृत्ति के कारण, इसी भीख मांगने की सोच के कारण यह देश हजारों सालों से दरिद्रता का, भुखमरी का, गरीबी का दर्द ?ोल रहा है. इसी वृत्ति के कारण यह देश हजारों साल गुलाम रहा है.

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इसी महान भिखमंगी वृत्ति के कारण हम आज भी कटोरा ले कर कभी अमेरिका, कभी रूस, कभी ब्रिटेन, कभी फ्रांस की तरफ भाग रहे हैं. दुनिया की सब से ज्यादा उपजाऊ भूमि हमारे पास है. दुनिया के सब से ज्यादा खनिज पदार्थों का भंडार हमारे पास है. प्राकृतिक विविधताओं का अद्भुत संगम है. मानव संसाधन का दुनिया का सब से बड़ा युवा भंडार है. मगर युवाओं की सोच में हम ने बुढ़ापा भर दिया है. यही कारण है कि पंडालों में, मसजिदों में, चर्चों में बालबह्मचारी तो पैदा हो रहे हैं, मगर भगतसिंह कहीं पैदा नहीं हो रहे. भारत के राजनेता युवाओं को दिशा देने के बजाय भटका रहे हैं. कुछ युवा मूढ़ताओं, मूर्खताओं से आजिज आते हैं तो उन की बगावती, हिंसक वृत्ति को तोड़फोड़ में लगा देते हैं. क्या तोड़ना है, वह युवाओं को सम?ा में नहीं आ रहा है, इसलिए जो नेताजी इशारा कर देते हैं वे वो ही तोड़ने लग जाते हैं. भटका हुआ युवा भारत के युवाओं को अंधविश्वास व पाखंड की बेडि़यां तोड़नी हैं, भिखमंगों की वृत्ति तोड़नी है, गुंडेमवालियों की कमर तोड़नी है, बेईमान राजनेताओं के बंगले व गाडि़यां तोड़नी हैं, विकास की राहों के हर अवरोधक को तोड़ना है जबकि वे तोड़ रहे हैं कालेज की खिड़कियां, टेबलकुरसियां, सार्वजनिक परिवहन की बसें, रेलें, आमजन के व्हीकल आदि. राजनेता भी यही चाहते हैं कि युवा यही तोड़ते रहें. धर्मगुरु भी यही चाहते हैं युवा यही तोड़ते रहें क्योंकि इसी युवा भटकाव पर इन के साम्राज्य खड़े हैं.

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