जम्मू-कश्मीर में आर्टिकल 370 को हटे दो साल पूरे हो चुके हैं. मोदी सरकार ने 5 अगस्त 2019 को राज्य के विशेष दर्जे को समाप्त कर इसे ना सिर्फ दो भागों – जम्मू एवं कश्मीर और लद्दाख के तहत दो केंद्र शासित प्रदेशों में बांट दिया था, बल्कि धारा 370 और 35ए के तहत राज्य को मिलने वाले विशेष प्रावधान को खत्म कर पूरी दुनिया को चौंका दिया था.उस वक़्त मोदी सरकार ने दावा किया कि इस फैसले से राज्य में विकास का बयार बहेगी और वर्षों से प्रताड़ित कश्मीरी पंडितों के फिर से राज्य में लौटने का रास्ता साफ होगा. दूसरे राज्यों के लोगों को भी वहां रहने और काम करने का मौक़ा मिलेगा.
लेकिन मोदी सरकार के फैसले के दो साल बाद राज्य में आतंकवाद ने फिर सिर उठाना शुरू कर दिया है. साफ़ है कि संवैधानिक ढाँचे में बदलाव से जम्मू कश्मीर की स्थिति में कोई बदलाव नहीं आया है, बल्कि हालात और विकट होते जा रहे हैं.
गौरतलब है कि पहले जहां आतंकियों के निशाने पर सेना-सुरक्षाबलों के जवान हुआ करते थे, वहीं अब उनके निशाने पर गरीब और मजदूर प्रवासी हैं, जिनमें दहशत पैदा करके उनको ना सिर्फ वहाँ से भगाने की कवायत हो रही है बल्कि ऐसा करके मोदी सरकार को यह संदेश भी दिया जा रहा है कि जम्मू-कश्मीर के दरवाजे सबके लिए नहीं खुलेंगे.
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दो साल पहले घाटी में संवैधानिक बदलाव के वक़्त किसी तरह की कोई हिंसा और विरोध प्रदर्शन न हो, इसलिए मोदी सरकार ने राज्य के प्रमुख राजनेताओं को नजरबंद कर दिया था. जो साल भर से ज़्यादा कैद में रहे. नजरबंद होने वाले नेताओं में नेशनल कांफ्रेंस के फारूक अब्दुल्ला, उमर अब्दुल्ला, पीडीपी की महबूबा मुफ्ती जैसे प्रमुख नेता शामिल थे. उनके साथ ही हजारों अन्य लोगों को भी जेल भेज दिया गया था, जिनमें से कई अभी तक सलाखों के पीछे ही हैं. मोदी सरकार का दावा था कि ऐसा करना राज्य के लिए बेहद जरूरी था. सरकार को डर था कि अगर यह नेता बाहर रहे तो विरोध प्रदर्शन, हिंसा और आतंकी घटनाएं राज्य में होंगी. मगर इस कवायत का कोई फायदा नहीं हुआ, बल्कि अब आतंकी आम गरीब को अपना निशाना बना कर सरकार को चुनौती दे रहा है.
सॉफ्ट टारगेट किलिंग
सॉफ्ट टारगेट किलिंग घाटी में आतंकवाद का नया चैप्टर है, जिसके तहत अब तक ग्यारह मजदूर और नौ जवान आतंकियों की गोली का शिकार हो चुके हैं, कई घायल हैं और तमाम प्रवासी मजदूर जान जाने के डर से घाटी छोड़ कर भाग रहे हैं. सरकार उन्हें रोक पाने और उनकी सुरक्षा की गारंटी देने में नाकाम है. पता नहीं कब, कहाँ, कौन आतंकी की गोली का शिकार हो जाए यह डर हर तरफ पसरा हुआ है.
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निशाने पर आम नागरिक
2 अक्टूबर : श्रीनगर के कर्णनगर में माजिद अहमद गोजरी और मुहम्मद शफी डार की आतंकियों हत्या कर दी. 5 अक्टूबर : कश्मीरी हिंदू दवा विक्रेता माखन लाल बिंदरू, रेहड़ी लगाने वाले बिहार के वीरेंद्र पासवान और सूमो ड्राइवर्स एसोसिएशन के प्रधान मोहम्मद शफी लोन की हत्या कर दी गई.
7 अक्टूबर : दो शिक्षकों दीपक चंद और प्रिंसिपल सतिंदर कौर की श्रीनगर के सरकारी स्कूल में उनके आइकार्ड देख कर हत्या की गयी.
11 अक्टूबर : आतंकियों ने पुंछ के सुरनकोट वन में सेना के एक गश्ती दल पर हमला किया, जिसमें एक जेसीओ समेत सेना के पांच जवान शहीद हो गए थे. इसके बाद तलाशी अभियान चलाया गया जिसमें अब तक नौ जवान शहीद हो चुके हैं.
16 अक्टूबर : बिहार के रहने वाले अरविंद कुमार साह और उत्तर प्रदेश के सगीर अहमद की हत्या हुई. 17 अक्टूबर – बिहार के मजदूर राजा ऋषि देव और जोगिंदर ऋषि देव को गोली मार दी गयी.
टारगेट किलिंग से खौफ
डर पैदा करने के लिए टारगेट किलिंग एक आसान तरीका है. इसके लिए बड़े हथियारों और बड़े ग्रुपों की ज़रूरत नहीं है. जम्मू कश्मीर में छोटे हथियारों व छोटे ग्रुप से निहत्थे लोगों को आसानी से निशाना बना कर खौफ पैदा किया जा रहा है. आतंकियों द्वारा बकायदा रेकी करके लोगों को मौत के घाट उतारा जा रहा है.
5 अक्टूबर को कश्मीरी पंडित और श्रीनगर के जाने-माने दवा कारोबारी माखन लाल बिंदरू की उनके व्यावसायिक परिसर में गोली मारकर हत्या कर दी गयी. बिंदरू उन कुछ लोगों में शामिल थे जिन्होंने 1990 के दशक में जम्मू कश्मीर में आतंकवाद शुरू होने के बाद पलायन नहीं किया. वह अपनी पत्नी के साथ वहां रहे और लगातार अपनी फार्मेसी ‘बिंदरू मेडिकेट’ को चलाते रहे.
बिंदरू की हत्या के एक घंटे बाद ही आतंकवादियों ने हवाल क्षेत्र में एक गैर-स्थानीय रेहड़ी-पटरी विक्रेता वीरेंद्र की हत्या कर दी. बिहार का रहने वाला वीरेंद्र वहां गोल-गप्पे और भेलपूरी बेच कर अपनी आजीविका कमाता था. वह कई सालों से घाटी में रह रहा था.
7 अक्टूबर को श्रीनगर के एक स्कूल में आतंकी घुस गए. उन्होंने सभी टीचर्स और अन्य स्टाफ के परिचय पत्र देखे और उसके बाद वहां की सिख महिला प्रिंसिपल सतिंदर कौर और एक हिंदू शिक्षक दीपक चंद को बाकियों से अलग करके सबके सामने गोली मार दी.
गौरतलब है कि दीपक चंद का परिवार मूल रूप से कश्मीर का रहने वाला था. लेकिन 1990 के दशक में जब घाटी में हालात बिगड़ने शुरू हुए तो उनका परिवार भी विस्थापित हो कर जम्मू आ गया था. पढ़ाई पूरी करने के बाद दीपक ने कुछ समय जम्मू में ही नौकरी की, लेकिन 2019 में उनकी नियुक्ति केंद्र सरकार के पीएम पैकेज के तहत कश्मीर घाटी में हुई थी.
गौरतलब है कि पीएम पैकेज योजना के अंतर्गत कश्मीर घाटी के विभिन्न इलाकों में कार्यरत कश्मीरी पंडित सरकारी कर्मचारी बड़ी संख्या में जम्मू वापिस लौटे हैं, मगर अब जिस तरह आतंकी घटनाएं घाटी में बढ़ी हैं उससे उनमें जान का खौफ समाया हुआ है क्योंकि उनकी सुरक्षा की कोई गारंटी सरकार ने नहीं दी है.
16 अक्टूबर के देर शाम श्रीनगर और पुलवामा में दो गैर-कश्मीरी मजदूरों की गोली मार कर हत्या कर दी गई. मारे गए मजदूरों की पहचान उत्तर प्रदेश के सहारनपुर के सगीर अहमद और बिहार के बांका इलाके के अरविन्द कुमार के रूप में हुई है.
तीस वर्ष के अरविन्द कुमार श्रीनगर के ईदगाह इलाके में गोलगप्पे बेचते थे. घटना वाली शाम बेहद नज़दीक से उनके सिर में गोली मारी गई, उन्हें इलाज के लिए एक नज़दीकी अस्पताल ले जाया गया जहाँ उन्हें मृत घोषित कर दिया गया. इसके एक घंटे बाद ही दक्षिणी कश्मीर के पुलवामा में सगीर अहमद नाम के कारपेंटर की गोली मार कर हत्या कर दी गयी.
17 अक्टूबर को खबर लिखे जाने तक बिहार के दो और मजदूरों राजा ऋषि देव और जोगिंदर ऋषि देव के मारे जाने की खबर आ गयी. बीते एक हफ्ते में घाटी में टारगेट किलिंग में अचानक बढ़ोत्तरी हुई है. इन सभी टारगेट किलिंग की जांच में यह बात सामने आई है कि हमलावरों ने पहले रेकी कर अपने टारगेट की पूरी जानकारी जुटायी.
कम नहीं है प्रवासी मजदूरों की संख्या
घाटी में एक के बाद एक टारगेट किलिंग की घटनाओं से प्रवासी मजदूरों में दहशत का माहौल है. गौरतलब है कि बिहार, उत्तर प्रदेश, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश व ओडिशा से घाटी में हज़ारों मजदूर रोजीरोटी की तलाश में आते हैं. कई तो फलों के सीजन में यहाँ दशकों से आ रहे हैं. अनंतनाग जिले का वानपोह, जो मिनी बिहार के नाम से भी जाना जाता है, यहां काफी संख्या में प्रवासी मजदूर रहते हैं. जम्मू-श्रीनगर हाईवे पर वानपोह के लगभग सभी घरों में किराए पर मजदूर सपरिवार रहते हैं. यह खेतों में मजदूरी के साथ ही विभिन्न निर्माण कार्यों, पेटिंग, कारपेंटर, ड्राई फ्रूट और सेब के बगीचे में काम करते हैं.
काफी संख्या में यह प्रवासी मजदूरी के साथ-साथ छोटी मोटी रेहड़ी लगाकर भी कुछ पैसा कमा लेते हैं. यह उत्तरी कश्मीर से लेकर मध्य और दक्षिणी कश्मीर तक फैले हुए हैं. घाटी में जिस तरह आतंकवाद सिर उठा रहा है उससे इन मजदूरों और रेहड़ी फड़ी वालों में दहशत फ़ैल गयी है. इनमें से ज़्यादातर ने अपने घरों का रुख करना शुरू कर दिया है. हालांकि, दिवाली तथा छठ पर्व के दौरान वैसे भी बिहार व उत्तर प्रदेश के मजदूर घर लौटते हैं, लेकिन ताजा वारदातों के कारण समय से पहले ही प्रवासी मजदूर लौटने शुरू हो गए हैं. रेलवे स्टेशनों, बस स्टैंड और जगह-जगह पर मजदूर ग्रुप बनाकर अपने गृह राज्य के लिए रवाना हो रहे हैं. राजस्थान, उत्तर प्रदेश, बिहार, बंगाल, मध्य प्रदेश समेत दूसरे राज्यों के लोगों की भीड़ लगातार पलायन करती नजर आ रही है. बसें, ट्रेनें और प्राइवेट गाड़ियों में भर-भर कर लोग भाग रहे हैं.
सेना की कार्रवाई
आतंकी घटनाओं के बाद सेना ने पुंछ से क़रीब सौ किलोमीटर दूर सुरनकोट के एक गांव में चरमपंथियों के खिलाफ अपना तलाशी अभियान शुरू किया था. लेकिन इस अभियान के पहले ही दिन आतंकियों ने सेना के पांच जवानों को मार डाला, जिनमें एक जूनियर कमीशंड अफसर (जेसीओ) भी थे. चरमपंथियों के खिलाफ जारी अभियान में दो दिनों के बाद फिर से गोलीबारी हुई जिसमें सेना के दो और जवान मारे गए. सात दिनों की मुठभेड़ में अबतक सेना के दो जूनियर कमीशंड अफसर (जेसीओ) और सात जवान मारे जा चुके हैं. चरमपंथियों के खिलाफ ये ऑपरेशन पुंछ-राजौरी के घने जंगलों में अब भी जारी है. सेना ने अब तक 13 चरमपंथियों को मार गिराने का दावा किया है.
सरकारी कवायद
घाटी में एक ओर जहां चरमपंथियों और सेना के बीच एनकाउंटर चल रहा है वहीं दूसरी तरफ जम्मू-कश्मीर में देश विरोधी गतिविधियों में शामिल होने का दोष लगा कर सरकारी कर्मचारियों को नौकरी से बर्खास्त करने का अभियान भी जारी है. 16 अक्टूबर को जम्मू-कश्मीर प्रशासन ने अलगाववादी नेता सईद अली शाह गिलानी के पोते अनीस उल इस्लाम और एक अन्य शिक्षक को नौकरी से बर्खास्त कर दिया.
प्रशासन ने अपने आदेश में कहा कि राज्य की सुरक्षा के हित में ये ज़रूरी नहीं है कि इस्लाम के मामले में जांच बिठायी जाए. अनीस उल इस्लाम शेर-ए-कश्मीर इंटरनेशनल कन्वेंशन सेंटर (एसकेएसीसी) में रिसर्च ऑफिसर के पद पर तैनात था.
स्पेशल ऑपरेशन के लिए भेजी गयी टीम
आतंकी घटनाओ के बढ़ने के कारण केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने स्पेशल ऑपरेशन के लिए एक टीम कश्मीर भेजी है, जो वहां सेना और पुलिस की कार्रवाई में मदद के साथ तलाशी अभियान में तेज़ी लाएगी.
सवाल यह है कि घाटी का संवैधानिक ढांचा बदलने से क्या हासिल हुआ? क्या राज्य के हालात फिर से 90 के दशक जैसे नहीं हो रहे हैं? क्या घाटी से कश्मीरी पंडितों, अल्पसंख्यकों और मजदूरों का पलायन फिर शुरू नहीं हो गया? क्या सरकार इनको सुरक्षा और रोजगार मुहैया करा सकी? क्या डर ख़त्म कर सकी? क्या विकास की बयार बही? नहीं, ऐसा कुछ भी नहीं हुआ.
सरकार की लचर व्यवस्था और हिंसा की वजहें
90 के दशक में कश्मीरी पंडितों के खिलाफ जब बड़े पैमाने पर हिंसा और हत्याएं शुरू हुई थीं तो वे जान बचाने के लिए घर छोड़कर परिवारों के साथ घाटी से निकल गए थे. कई सालों तक वे देश के अलग-अलग हिस्सों में बतौर शरणार्थी रहे. पलायन करने वाले लोगों ने पीछे जो घर और जमीनें छोड़ीं, उन पर स्थानीय लोगों ने क़ब्ज़ा कर लिया या फिर उसे औने-पौने दाम में ख़रीद लिया.
साल 1997 में राज्य सरकार ने क़ानून बनाकर विपत्ति में अचल संपत्ति बेचने और ख़रीदने के ख़िलाफ़ क़ानून बनाया. लेकिन क़ानून के बावजूद औने-पौने दाम में सम्पत्तियाँ बिकती रहीं.
मोदी सरकार ने धारा 370 हटा कर कश्मीरी पंडितों की क़ब्ज़ा की गई अचल संपत्तियों पर उन्हें दोबारा अधिकार देने की कवायद शुरू की. जम्मू और कश्मीर सरकार ने एक पोर्टल भी शुरू किया जिसके ज़रिये घाटी से पलायन कर गए कश्मीरी पंडितों को उनकी संपत्ति वापस दिलाने की प्रक्रिया ‘ऑनलाइन’ शुरू की गयी. इस पोर्टल का विज्ञापन के ज़रिए काफी प्रचार-प्रसार हुआ.
पोर्टल का जिस दिन जम्मू और कश्मीर के उप-राज्यपाल मनोज सिन्हा ने औपचारिक उद्घाटन किया. इस पोर्टल पर 44 हज़ार परिवारों ने राज्य के राहत और पुनर्वास आयुक्त के समक्ष अपना पंजीकरण कराया. इन 44 हज़ार परिवारों में 40,142 परिवार हिंदू, जबकि 1,730 सिख और 2,684 मुसलमान परिवार शामिल हैं. अब तक ऐसे लगभग 1,000 मामलों का निपटारा करते हुए संपत्ति को वापस उनके असली मालिक के हवाले किया गया है.
कश्मीरी पंडितों की अचल संपत्ति को क़ब्ज़े से छुड़ाने की प्रक्रिया शुरू तो कर दी गयी लेकिन इसकी कोई ठोस कार्ययोजना सरकार ने नहीं बनायी. सरकार की ओर से ये भी स्पष्ट नहीं किया गया कि किस रेट पर ज़मीन वापस दिलाई जाएगी. क्या वापसी उस समय की क़ीमत के हिसाब से होगी या फिर अभी के बाज़ार भाव के हिसाब से. दूसरा यह कि संपत्ति वापस लेने वालों को सरकार ने कोई सुरक्षा भी उपलब्ध नहीं करवाई.
सरकार पर लापरवाही का आरोप
कश्मीरी पंडित संघर्ष समिति के अध्यक्ष संजय टिक्कू कहते हैं, ‘बड़गाम, अनंतनाग और पुलवामा से 500 से भी ज्यादा लोगों का पलायन हो चुका है. इनमें कई सारे गैर-कश्मीरी पंडित परिवार भी हैं जो घाटी छोड़ रहे हैं. ये 1990 की वापसी की तरह है.’ टिक्कू का कहना है कि पिछले एक साल उन्होंने समय-समय पर जम्मू और कश्मीर के उप-राज्यपाल मनोज सिन्हा को कई पत्र और मेल लिखे, जिसमें घाटी में रह रहे कश्मीरी पंडितों के बीच व्याप्त भय को लेकर उनका ध्यान खींचा गया, लेकिन उप-राज्यपाल के कार्यालय से उनके पत्रों का कोई संज्ञान नहीं लिया गया.
अक्टूबर माह में जब हिंसा की वारदात बढ़ी तो टिक्कू ने फिर उप-राज्यपाल को लिखा कि घाटी में अचानक तेज़ हुए हमलों के बाद कश्मीरी पंडितों के बीच भय का माहौल पैदा हो गया है. सभी अपनी और अपने परिवारों की सुरक्षा को लेकर चिंतित हैं. फिर भी उपराज्यपाल की ओर से कोई संज्ञान नहीं लिया गया.
उधर गुपकर गठबंधन के संयोजक और मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के नेता युसूफ़ तारीगामी का कहना कि अनुच्छेद 370 के हटाए जाने के बाद कहा गया था कि जम्मू-कश्मीर में हिंसा की घटनाओं में कमी आएगी, लेकिन जम्मू कश्मीर के प्रशासन के कई ऐसे फ़ैसले हैं, जिनके चलते समुदायों के बीच गलतफहमियां और दूरियां बढ़ने लगीं हैं. अनुच्छेद 370 हटाने के बाद यहाँ के कट्टरपंथियों में बड़ी बेचैनी थी. उनके अंदर ग़ुस्सा पनप रहा था, सरकार इसे देखने-समझने में नाकाम रही, जिसने अचानक से हिंसा की शक्ल ले ली है.
पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी की अध्यक्ष और पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती घाटी में बढ़ती हिंसा के लिए सीधे तौर पर मोदी सरकार को जिम्मेदार ठहराती हैं. उनका कहना है, ‘हालात दिन-ब-दिन बिगड़ते जा रहे हैं और इसके लिए भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व वाली सरकार जिम्मेदार है. सरकार द्वारा पांच अगस्त 2019 को अनुच्छेद 370 को निरस्त करने के बाद से और उससे पहले उठाए गए गलत कदम कश्मीर में तेजी से बिगड़ते हालात के लिए सीधे तौर पर जिम्मेदार हैं.’
बिग बॉस 15 से एक चौकाने वाली खबर सामने आ रही है, इस हफ्ते घर से कोई एक सदस्य बेघर होने वाला था, लेकिन दशहरा की वजह से इविक्शन को रोक दिया गया, सभी घर वाले इस फैसले से काफी ज्यादा खुश थें.
लेकिन यह बिग बॉस का घर है, यहां कब क्या हो जाए कोई नहीं जानता है, अचानक बिग बॉस ने मीड डे इविक्शन कर दिया, जिसके बाद से एक नहीं 2 लोग घर से बेघर हो गए.
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विधि पांड्या और डोनल विष्ट घर से बाहर हो चुकी हैं, इस बात का खुलासा एक बेवसाइट के जरिए हुआ है, इस मीड डे इविक्शन के बाद फैंस और घरवालों को जोरदार झटका लगा है, लेकिन बिग बॉस ने इस झटके के बाद घर वालों को एक और जोरदार झटका दे दिया है.
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एक रिपोर्ट में यह खुलासा हुआ है कि बिग बॉस ने घर में रहने वाले मुख्य सदस्य को जंगल में शिफ्ट कर दिया है, रिपोर्ट में यह बताया गया है कि बिग बॉस के घर में यह घटना हुई है जिसके बाद से यह कदम उठाया गया है,
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वहीं खबर यह भी थी कि इस हफ्ते सबसे कम वोट इशान सहगल को मिले हैं, लेकिन मेकर्स उन्हें निकालना नहीं चाहते थें, इसलिए उन्होंने नो एलिमिनेशन की घोषणा कर दी.
अब देखना यह है कि बिग बॉस के घर से इन दोनों को जानें के बाद अगला नंबर किसका होगा, कौनन जाएगा फिर से घर से बाहर.
क्रिकेटर युवराज सिंह के बाद से अब एक्ट्रेस युविका चौघरी को अपानजनक बयान देने के मामले में गिरफ्तार कर लिया गया है. खबर है कि पुलिस ने युविका चौधरी से करीब 3 घंटे तक पूछताछ की है. फिर औपचारिक जमानत पर उन्हें रिहा कर दिया गया.
दरअसल, युविका पर आरोप है कि उन्होंने अनुसूचित जाती पर अपमान जनक टिप्पणी की हैं, ये टिप्पणी उन्होंने मई महीने पहले की थी, जिस पर आज तक हंगामा होता दिखाई दे रहा है, एक्ट्रेस के इस बयान पर लोगों ने जममकर हांसी थाने के सामने प्रर्दशन किया है, जिसके बाद पुलिस ने युविका को बुलाकर पूछताछ कि है.
शिकायतकर्ताओं ने पुलिस को वीडियो सौंपी जिसके बाद से पुलिस इस मामले पर अपनी करवाई करनी शुरू कर दी. बीते दिन पंजाब हरियाणा हाई कोर्ट के पास युविका चौधरी को अपने दिए गए आपत्ति जनक टिप्पणी पर सफाई देनी पड़ी.
एक्ट्रेस के खिलाफ रजत कलसन ने शिकायत दर्ज करवाई थी, उन्होंने युवराज सिंह के खिलाफ भी शिकायत दर्ज करवाई थी, वहीं इसके अलावा उन्होंने तारक मेहता की मशहूर एक्ट्रेस मुनमुन दत्ता पर भी एफआईआर दर्ज करवाई थी.
मुनमुन दत्ता कई दिनों तक अपने दिए गए बयान को लेकर पछतावा कर रही थीं, खैर अब देखना यह है कि युविका चौधरी इन लोगों से मांफी मांगेगी या मामले को और भी ज्यादा आगे बढ़ाया जाएगा.
रात के एक बजे जूही ने घर में सोए मेहमानों पर नजर डाली. उस की चाची, मामी और ताऊ व ताईजी कुछ दिनों के लिए रुक गए थे. बाकी मेहमान जा चुके थे. ये लोग जूही और उस की मम्मी कावेरी का दुख बांटने के लिए रुक गए थे.
जूही ने अब धीरे से अपनी मम्मी के बैडरूम का दरवाजा खोल कर झांका. नाइट बल्ब जल रहा था. जूही ने मां को कोने में रखी ईजीचेयर पर बैठे देखा तो उस का दिल भर आया. क्या करे, कैसे मां का दिल बहलाए. मां का दुख कैसे कम करे. कुछ तो करना ही पड़ेगा, ऐसे तो मां बीमार पड़ जाएंगी.
उस ने पास जा कर कहा, ‘‘मां, उठो, ऐसे बैठेबैठे तो कमर अकड़ जाएगी.’’ कावेरी के मुंह से एक आह निकल गई. जूही ने जबरदस्ती मां का हाथ पकड़ कर उठाया और बैड पर लिटा दिया. खुद भी उन के बराबर में लेट गई. जूही का मन किया, दुखी मां को बच्चे की तरह खुद से चिपटा ले और उस ने वही किया.
कावेरी से चिपट गई वह. कावेरी ने भी उस के सिर पर प्यार किया और रुंधे स्वर में कहा, ‘‘अब हम कैसे रहेंगे बेटा, यह क्या हो गया?’’ यही तो कावेरी 20 दिनों से रो कर कहे जा रही थी. जूही ने शांत स्वर में कहा, ‘‘रहना ही पड़ेगा, मां. अब ज्यादा मत सोचो. सो जाओ.’’
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जूही धीरेधीरे मां का सिर थपकती रही और कावेरी की आंख लग ही गई. कई दिनों का तनाव, थकान तनमन पर असर दिखाने लगा था. जूही की खुद की आंखों में नींद नहीं थी.
26 वर्षीया जूही, कावेरी और पिता शेखर 3 ही लोगों का तो परिवार था. अब उस में से भी 2 ही रह गईं. 20 दिनों पहले शेखर जो रात को सोए, उठे ही नहीं. सोतेसोते कब हार्टफेल हो गया, पता ही नहीं चला. मांबेटी अकेली उन के जाने के बाद सब काम कैसे निबटाए चली आ रही हैं, वे ही जानती हैं.
रिश्तेदारों को इस दुखद घटना की सूचना देने से ले कर, उन के आने पर सब संभालते हुए जूही भी शारीरिक व मानसिक रूप से थक रही है अब. शेखर एक सफल, प्रसिद्ध बिजनैसमैन थे. आर्थिक स्थिति काफी अच्छी थी. मुंबई के पवई इलाके में उन के इस 4 बैडरूम फ्लैट में अब मांबेटी ही रह गई हैं.
एमबीए करने के बाद जूही काफी दिनों से पिता के बिजनैस में हाथ बंटा रही थी. यह वज्रपात अचानक हुआ था, इस की पीड़ा असहनीय थी. शेखर जिंदादिल इंसान थे. जीवन के हर पल को वे भरपूर जीते थे. परिवार के साथ घूमना उन का प्रिय शौक था. साल में एक बार कावेरी और जूही को ले कर कहीं न कहीं घूमने जरूर जाते थे और अब भी अगले महीने स्विट्जरलैंड जाने के टिकट बुक थे, मगर अब?
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जूही के मुंह से एक सिसकी निकल गई. पिता की इच्छाएं, उन के जीने के अंदाज, उनकी जिंदादिली, उन का स्नेह याद कर रुलाई का आवेग फूट पड़ा. मां की नींद खराब न हो जाए यह सोच कर वह बालकनी में जा कर वहां रखी चेयर पर बैठ कर देर तक रोती रही. अचानक सिर पर हाथ महसूस हुआ, तो वह चौंकी. हाथ कावेरी का था. ‘‘मम्मी, आप?’’
‘‘मुझे लिटा कर खुद यहां आ गई. चलो, आओ, सोते हैं, 3 बज रहे हैं. अब की बार बेटी को दुलारते हुए कावेरी अपने साथ ले गई. 20 दिनों से यही तो चल रहा था. कभी बेटी मां को संभाल रही थी, कभी मां बेटी को.
दोनों ने लेट कर सोने की कोशिश करते हुए आंखें बंद कर लीं. कुछ ही दिनों में बाकी मेहमान भी चले गए. मांबेटी अकेली रह गईं. घर का सूनापन, हर तरफ फैली उदासी, घर के कोनेकोने में बसी शेखर की याद. जीना कठिन था पर जीवन है, तो जीना ही था. कावेरी सुशिक्षित थीं. वे पढ़नेलिखने की शौकीन थीं. कुछ सालों से लेखन के क्षेत्र में काफी सक्रिय थीं. उन की कई रचनाएं प्रकाशित होती रहती थीं. लेखन के क्षेत्र में उन की एक खास पहचान बन चुकी थी. शेखर से उन्हें हमेशा प्रोत्साहन मिला था. अब शेखर के जाने के बाद कलम जो छूटा, उस का सिरा पकड़ में ही नहीं आ रहा था.
जूही ने औफिस जाना शुरू कर दिया था. कई शुभचिंतक उसे औफिस में भरपूर सहयोग कर रहे थे. पर घर पर अकेली उदास मां की चिंता उसे दुखी रखती. जूही ने एक दिन कहा, ‘‘मां, कुछ लिखना शुरू करो न. कुछ लिखोगी, तो ठीक रहेगा, मन भी लगेगा.’’
‘‘नहीं, मैं अब लिख नहीं पाऊंगी. मेरे अंदर तो सब खत्म हो गया है. लिखने का तो कोई विचार आता ही नहीं.’’
जूही मुसकराई, ‘‘कोई बात नहीं, कई राइटर्स कभीकभी नहीं लिख पाते. होता है ऐसा. ठीक है, ब्रेक ले लो.’’ फिर एक दिन जूही ने कहा, ‘‘मां, टिकट बुक हैं, हम दोनों चलें स्विटजरलैंड?’’
कावेरी को झटका लगा. ‘‘अरे नहींनहीं, सोचा भी कैसे तुम ने? तुम्हारे पापा के बिना हम कैसे जाएंगे. घूम लिए जितना घूमना था,’’ कह कर कावेरी सिसक पड़ी. जूही ने मां के गले में बांहें डाल दीं, ‘‘मां, सोचो, पापा का सपना था वहां जाने का, हम वहां जाएंगे तो लगेगा पापा की इच्छा पूरी कर रहे हैं. वे जहां भी हैं, हमें देख रहे हैं. मैं तो यही महसूस करती हूं. आप को नहीं लगता, पापा हमारे साथ ही हैं? मैं तो औफिस में भी उन की उपस्थिति अपने आसपास महसूस करती हूं, दोगुने उत्साह के साथ काम में लग जाती हूं. चलो न मां, हम घूम कर आएंगे.’’
कावेरी ने गंभीरतापूर्वक फिर न कर दिया. पर अगले दोचार दिन जूही के लगातार सकारात्मक सुझावों और स्नेहभरी जिद के आगे कावेरी ने हां में सिर हिलाते हुए, ‘‘जैसी तुम्हारी मरजी, तुम्हारे लिए यही सही’’ कहा, तो जूही उन से लिपट गई, बोली, ‘‘बस मां, अब सब मेरे ऊपर छोड़ दो.’’
जूही की मौसी गंगा का बेटा अजय पेरिस में अपनी पत्नी रीमा के साथ रहता था. जूही अब लगातार अजय से संपर्क कर सलाह करती रही. जिस ने भी सुना कि दोनों घूमने जा रही हैं, हैरान रह गया. कुछ लोगों ने मुंह बनाया, व्यंग्य किए. पर वहीं, कुछ लोग ऐसे भी थे जिन्होंने खुल कर मांबेटी के इस फैसले की प्रशंसा की. जूही को शाबाशी दी कि वह अपना मनोबल, आत्मविश्वास ऊंचा रखते हुए अपनी मां को कुछ बदलाव के लिए बाहर ले कर जा रही है.
उन लोगों का कहना था कि अच्छा है, दोनों घूम कर आएंगी, इतना बड़ा वज्रपात हुआ है, दोनों कुछ उबर पाएंगी.
इतनी प्रतिभावान मां हिम्मत छोड़ कर ऐसे ही दुख में डूबी रही तो क्या होगा मां का, कैसे मन लगेगा, जूही को इस बात की बड़ी चिंता थी और यह कि जिन किताबों में मां रातदिन डूबी रहती थीं, अब उन की तरफ देख भी नहीं रही थीं. बस, चुपचाप बैठी रहती थीं. इस ट्रिप से मां का मन जरूर बदलेगा. घर में तो हर समय कोई न कोई शोक प्रकट करने आता ही रहता था. वही बातें बारबार सुन कर कैसे इस मनोदशा से निकला जा सकता है. यही सब जूही के दिमाग में चलता रहता था.
शेखर का टिकट तो बहुत भारीमन से जूही कैंसिल करवा चुकी थी. औफिस का काम अपने मित्रों, सहयोगियों पर छोड़ कर जूही और कावेरी ट्रिप पर निकल गईं.
मुंबई से साढ़े 3 घंटे में कतर पहुंच कर वहां 2 घंटे रुकना था. जूही पिता को याद करते हुए उन की बातें करने में न हिचकते हुए कावेरी से उन की खूब बातें करने लगी कि पापा को ट्रैवलिंग का कितना शौक था. हर जगह का स्ट्रीटफूड ट्राई करते थे. हम भी ऐसा ही करेंगे. कावेरी भी धीरेधीरे सब याद करते हुए मुसकराने लगी तो जूही को बहुत खुशी हुई. फ्लाइट चेंज कर के दोनों साढ़े 7 घंटे में जेनेवा पहुंच गए.
जूही ने कहा, ‘‘मां, यहां रुकेंगे. ‘लेक जेनेवा’ पास से देखेंगे. पापा ने बताया था, उन्होंने डिस्कवरी चैनल में देखा था एक बार, लेक से एक तरफ स्विटजरलैंड, एक तरफ फ्रांस दिखता है. वहां ‘लोसान टाउन’ है जहां से ये दोनों दिखते हैं. वहीं ‘लेक जेनेवा’ के सामने किसी होटल में रह लेंगे.’’
‘‘ठीक है, जैसा तुम ने सोचा है, सब जानकारी ले ली है न?’’
‘‘हां, मां, अजय भैया के लगातार संपर्क में हूं.’’ रात होतेहोते बर्फ से ढके पहाड़ों पर लाइट दिखने लगी. जूही ने उत्साहपूर्ण कांपती सी आवाज में कहा, ‘‘मां, वह देखो, वह फ्रांस है.’’ होटल में रूम ले कर सामान रख कर फ्रैश होने के बाद दोनों ने कुछ खाने का और्डर किया, थोड़ा खापी कर दोनों बार निकल आईं.
लेक के आसपास कईर् परिवार बैठ कर एंजौय कर रहे थे. शेखर की याद शिद्दत से आई. कावेरी वहां के माहौल पर नजर डालने लगी. सब कितने शांत, खुश, बच्चे खेल रहे थे. आसपास काफी चर्च थे. चर्च की घंटियों की आवाज कावेरी को बड़ी भली सी लगी.
दोनों अगले दिन लोसान घूमते रहे. कैथेड्रल्स, गार्डंस, म्यूजियम बहुत थे. वहां दोनों 2 दिन रुके. वहीं एक जगह मूवी ‘दिल वाले दुलहनिया ले जाएंगे’ की शूटिंग हुई थी. कावेरी अचानक हंस पड़ी, ‘‘जूही, याद है न, तुम्हारे पापा ने यह मूवी 4 बार देखी थी. टीवी पर तो जब भी आती थी, वे देखने बैठ जाते थे. यही सब तो उन्हें यहां देखना था, आज यह जगह देख कर वे बहुत खुश होते.’’
‘‘वे देख रहे हैं यह जगह हमारे साथ, जो हमेशा दिल में रहते हैं. वे दूर कहां हैं,’’ जूही बोली थी.
कावेरी मुसकरा दी, ‘‘मेरी मां बनती जा रही हो तुम. मेरी मां होती तो वे भी मुझे यही समझातीं. सच ही कहा गया है कि बेटी बड़ी हो जाए तो भूमिकाएं बदल जाती हैं.’’
दोनों वहां से फिर ‘इंटरलेकन’ चली गईं. वहां जा कर तो दोनों का मन खिल उठा. वहां बड़ा सा पहाड़ था. 2 लेक के बीच की जगह को इंटरलेकन कहा जाता है. सुंदर सी लेक. अचानक जूही जोर से हंस पड़ी, ‘‘मां, उधर देखो, कितने सारे हिंदी के साइन बोर्ड.’’
‘‘वाह,’’ कावेरी भी वहां हिंदी के साइनबोर्ड देख कर आश्चर्य से भर उठी. वहां से दोनों 2 घंटे का सफर कर खूबसूरत ‘टौप औफ यूरोप’ देखने गईं जो पूरे साल बर्फ से ढका रहता है. वहां से वापस आ कर आसपास की जगहें देखीं. वहां का कल्चर, खानपान का आनंद उठाती रहीं. वहां उन्हें थोड़ा जरमन कल्चर भी देखने को मिला.
ट्रिप काफी रोमांचक और खूबसूरत लग रहा था. दोनों को कहीं कोई परेशानी नहीं थी. दोनों हर जगह फैले प्राकृतिक सौंदर्य को जीभर कर एंजौय कर रही थीं. पूरी ट्रिप के अंत में उन्हें 2 दिन के लिए अजय के घर भी जाना था. अजय सब बता ही रहा था कि अब कहां और कैसे जाना है.
फिर अजय की सलाह पर दोनों वहां से
इटली में ‘ओरोपा सैंचुरी’ चले गए, जो पहाड़ों में ही है. वहां बहुत ही पुराने चर्च हैं, जहां जीसस के हर रूप को बहुत ही अनोखे ढंग से दिखाया गया है. जीसस का साउथ अफ्रीकन और डार्क जीसस और मदर मैरी का अद्भुत रूप देख कर दोनों दंग रह गईं. इंग्लिश नेस थीं. बहुत सारी धर्मशालाएं थीं. बहुत ही अद्भुत, रोमांचक अनुभव था यह.
फोन का नैटवर्क नहीं था तो हर जगह शांति थी व इतनी सुंदरता कि कावेरी ने अरसे बाद मन को इतना शांत महसूस किया. आसपास सुंदर झीलों की आवाज, प्रकृतिप्रदत्त सौंदर्य को आत्मसात करती कावेरी जैसे किसी और ही दुनिया में पहुंच गई थी. अगले दिन एक नन दोनों को ग्रेवयार्ड दिखाने ले गई.
जूही अब तक? इस नन से काफी बातें कर चुकी थी. अपने पिता की मृत्यु के बारे में भी बता चुकी थी. नन काफी स्नेहिल स्वभाव की थी. वहां पहुंच कर नन की शांत, गंभीर आवाज गूंज रही थी, ‘बस, यही सच है. जीवन का सार यही है. यही होना है. एक दिन सब को जाना ही है. बस, यही कोशिश करनी चाहिए कि कुछ ऐसा कर जाएं कि सब के पास हमारी अच्छी यादें ही हों. जितना जीवन है, खुशी से जी लें, पलपल का उपयोग कर लें. दुखों को भूल आगे बढ़ते रहें.’’ नन तो यह कह कर थोड़ा आगे बढ़ गई. कावेरी को पता नहीं क्या हुआ, वह अद्भुत से मिश्रित भावों में भर कर जोरजोर से रो पड़ी.
नन ने वापस आ कर कावेरी का कंधा थपथपाया और फिर आगे बढ़ गई. जूही भी मां की स्थिति देख सिसक पड़ी. पर जीभर कर रो लेने के बाद कावेरी ने अचानक खुद को बहुत मजबूत महसूस किया. खुद को संभाला, अपने और जूही के आंसू पोंछे. जूही को गले लगा कर प्यार किया और मुसकरा दी.
जूही अब हैरान हुई, ‘‘क्या हुआ, मां, आप ठीक तो हैं न?’’
‘‘हां, अब बिलकुल ठीक हूं, चलें?’’ दोनों आगे चल दीं.
जूही ने मां की ऐसी शांत मुद्रा बहुत दिनों बाद देखी थी, कहा, ‘‘मां, बहुत थक गई, आज जल्दी सोऊंगी मैं.’’
‘‘तुम सोना, मुझे कुछ काम है.’’
‘‘क्या काम, मां?’’ जूही फिर हैरान हुई.
‘‘आज ही रात को नई कहानी में इस ट्रिप का अनुभव लिखना है न.’’
‘‘ओह, सच मां?’’ जूही ने मां के गाल चूम लिए.
एकदूसरे का हाथ पकड़ शांत मन से दोनों ने कुछ इस तरह से आगे कदम बढ़ा दिए थे कि नन भी पीछे मुड़ कर उन्हें देख मुसकरा दी थी.
“मुकदमा चला. मुझे बरी कर दिया गया. मेरा उस को मारने का कोई इरादा नहीं था. अपनी अस्मत की रक्षा के लिए मुझे चाकू उठाना पड़ा. इसी आधार पर उस जज ने मुझे बेकुसूर माना. “इस बीच 5 साल से ज्यादा जेल में रही. जब छूटी तो मेरी दुनिया बदल चुकी थी. तब काफी सोचविचार कर काशी चली आई.’’मैं ने आत्मचिंतन किया, तो पाया कि शालिनी भाभी का क्या कुसूर था, जो इतने दुर्भाग्य के साथ जिंदगी जीने के लिए मजबूर हुईं.
मैं उस की मां को भी कुसूरवार नहीं मानती. उस का कुसूर सिर्फ इतना था कि वह स्त्री थी. क्या एक स्त्री के लिए प्रेम करना गुनाह है? अगर है तो उस पुरुष को क्यों नहीं दंड मिला, जिस ने सुंदरी का शारीरिक शेाषण कर उसे अभिशापित जिंदगी जीने के लिए छोड़ दिया. सोच कर मेरा मन भर आया.शालिनी भाभी की भी मनोदशा लगभग ऐसी ही थी. वे अपने आंचल से आंसुओं को पोंछने लगीं. इस बीच मैं ने एक निर्णय लिया.
‘‘शालिनी भाभी, आप ने बहुत दुख झेले हैं. अब आप भीख नहीं मांगेंगी. मेरे साथ रहेंगी. मेैं आप को विश्वास दिलाती हूं कि जब तक जिंदा रहूंगी, इस रिश्ते की लाज रखूंगी. “आज भले ही नए जमाने के युवाओं को बुजुर्गों की अहमियत मालूम नहीं है, मगर मुझे आप के मार्गदर्शन की हमेशा दरकार रहेगी. आप की अनुभवी छत्रछाया में रहूंगी तो मुझे भी सुकून मिलेगा,’’ सुन कर उन की आंखों से झरझर आंसू बहने लगे.
त्योहारों का मौसम आया नहीं कि पकवानों की बहार शुरू हो जाती है. खुशी के माहौल में खानपान की विविधता जायका बढ़ा देती है. तो फिर देर किस बात की. आप भी इस बार ऐसा कुछ विशेष बनाएं जो हर बार से कुछ हट कर हो. लीजिए, आपके त्यौहार को खास बनाने के लिए पेश हैं कुछ विशेष पकवान.
सामग्री
1 बड़ा चम्मच चीनी पाउडर, 11/2 बड़े चम्मच कोको पाउडर, 4 बड़े चम्मच मिल्क पाउडर, 3 बड़े चम्मच बादाम का पाउडर, 4 मैरी बिस्कुट, 2 बड़े चम्मच मलाई/क्रीम, 1/2 बड़ा चम्मच घी.
विधि
सभी सामग्री को मिला लें. क्रीम डाल कर आटे की तरह गूंध लें. हाथ में घी लगा कर इस गुंधे आटे की छोटीछोटी गोलियां बना लें. पेड़े का आकार दें या फिर अपना मनपसंद आकार दें और सर्व करें.
2. बौंबे हलवा
सामग्री
1/2 कप कौर्नफ्लोर, 1 कप चीनी, 2 कप पानी, 6-7 काजू/बादाम, 1 बड़ा चम्मच घी, 1 बड़ा चम्मच कोको पाउडर.
विधि
कौर्नफ्लोर, पानी, चीनी व कोको पाउडर को एकसाथ मिला लें. कड़ाही में काजू भून कर कौर्नफ्लोर का पेस्ट व काजू अच्छी तरह से पकाएं. इसे चलाते रहें. गाढ़ा होने पर थाली में थोड़ा घी लगा कर चिकना करें, इस में पेस्ट डालें व 1/2 घंटे के बाद ठंडा होने पर मनपसंद आकार में काट कर परोसें.
3. कौफी मूस
सामग्री
1/2 बड़ा चम्मच कौफी पाउडर, 1/2 कप नारियल का चूरा, 1 कप क्रीम, 1/2 कप चीनी पाउडर.
विधि
कौफी पाउडर को 3 बड़े चम्मच पानी में उबाल लें. ठंडा होने दें. क्रीम व चीनी को अच्छी तरह से फेंटें. इस में नारियल का चूरा व कौफी का पानी मिला लें. 1-2 घंटे फ्रिज में रखें. सर्व करते समय ऊपर से क्रीम, नारियल या ड्राई फ्रूट्स डालें.
4. फ्रूटी कस्टर्ड
सामग्री
7 बड़े चम्मच चीनी, 2 कप दूध, 3 बड़े चम्मच कस्टर्ड पाउडर, 1/2 कप उबली सेंवई, 1/2 कप मलाई/क्रीम, 1 बड़ा चम्मच चीनी पाउडर, 1 सेब (छील कर).
विधि
दूध व चीनी गरम होने रख दें. कस्टर्ड पाउडर का पेस्ट बना कर इस में डालें व गाढ़ा होने तक पकाएं. मलाई को चीनी पाउडर के साथ मिक्स करें. इस में सेंवई व सेब कद्दूकस कर के डालें. एक कप में कस्टर्ड डालें. ऊपर सेंवई व सेब की परत लगाएं, उस पर कस्टर्ड डाल कर सेब से सजा कर ठंडा कर के सर्व करें.
लेखक- उमेश त्रिवेदी
सौजन्य- सत्यकथा
पश्चिमी दिल्ली में मोहन गार्डन थाने के प्रभारी राजेश मौर्या को 72 साल की वृद्धा के लापता होने की शिकायत मिली थी. शिकायतकर्ता मोहन गार्डन में ही रामा गार्डन के रहने वाले ग्रोवर दंपति थे. वे किराए के मकान में रहते थे. लापता कविता ग्रोवर मनीष ग्रोवर की मां और मेघा की सास थीं.
थानाप्रभारी ने मामले को आए दिन की सामान्य घटना मानते हुए मनीष को समझाया कि उन की मां यहीं कहीं आसपास गई होंगी, आ जाएंगी. साथ ही सुझाव भी दिया कि वह अपनी रिश्तेदारी या जानपहचान में पता कर लें. शायद वहीं मिल जाएं! फिर भी उन्होंने मनीष की तसल्ली के लिए पूछ लिया कि उन की या घर में किसी दूसरे सदस्य की मां के साथ हालफिलहाल में कोई कहासुनी तो नहीं हुई?
मनीष ने ऐसी किसी भी बात से इनकार कर दिया. लेकिन मौर्या की निगाह जब खामोश बैठी मेघा पर गई तो उन्हें थोड़ा अजीब लगा. उन्होंने मेघा की ओर सवालिया नजरों से देखा. मेघा झट से बोल पड़ी, ‘‘सर, जब से मैं ब्याह कर आई हूं, तब से कभी भी मैं ने सास से ऊंची आवाज तक में बात नहीं की. सासूमां भी मुझे बेटी की तरह मानती थीं. वह बिना बताए ऐसे कहीं नहीं जाती थीं.’’
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‘‘आप लोगों को ऐसा क्यों लग रहा है कि कविता ग्रोवर गायब हो गई हैं? मुझे थोड़ा और विस्तार से बताइए.’’ मौर्या ने कहा. ‘‘सर, हम लोग रिश्तेदारी में एक मौत की खबर पा कर 30 जून को सिरसा चले गए थे. वहां से जब 3 जुलाई को लौटे तब घर में ताला लगा मिला. हम ने दूसरी चाबी से ताला खोला. पहले तो हम ने सोचा मां इधरउधर कहीं पड़ोस में गई होंगी. थोड़ी देर में आ जाएंगी. लेकिन…’’
मेघा बोल ही रही थी कि बीच में मनीष बोलने लगे, ‘‘सर, एक पड़ोसी ने बताया कि घर में 2 दिनों से ताला लगा हुआ था. उस के बाद से ही हमें चिंता हो गई. हम ने उन की आसपास तलाश भी की.’’ ‘‘ठीक है, आप लोग गुमशुदगी की सूचना दर्ज करवा दीजिए.’’ राजेश मौर्य ने कहा.
मनीष ने सूचना लिखवाने के बाद साथ लाई मां की एक फोटो भी उन्हें दे दी और वापस अपने घर आ गए. पुलिस ने काररवाई शुरू करते हुए गुमशुदा कविता ग्रोवर की तसवीर सभी थानों में भिजवा दी.वृद्धा की तलाश तेजी से जारी थी. 4 दिन गुजर गए थे, फिर भी कोई सुराग नहीं मिल पा रहा था. मौर्या परेशान थे. पांचवें दिन 8 जुलाई, 2021 को उन्हें मेघा का फोन आया.
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उन्हें लगा मेघा उन से फिर से अपनी सासूमां की तलाश नहीं हो पाने की शिकायत करेंगी. लेकिन मेघा ने उन्हें फ्लैट में ही कविता ग्रोवर के बारे में कुछ सुराग मिलने की जानकारी दी. यह सुन कर थानाप्रभारी भागेभागे मनीष के घर आ गए. अपने साथ एसआई अनिल कुमार और हैडकांस्टेबल रतनलाल को भी ले गए थे. मनीष बिल्डिंग में थर्ड फ्लोर पर रहते थे. वे मेघा के साथ कविता के रहने के कमरे में गए. वहां एक पलंग, एक अलमारी और बैठने के लिए 2 आरामदायक कुरसियां थीं.
‘‘कमरे के सामान को हम ने जरा भी छेड़ा नहीं है. आज जब मैं ने कमरे के बिस्तर को ध्यान से देखा. तब मुझे बिस्तर की चादर काफी सिमटी दिखी. उसे देख कर मैं कह सकती हूं कि सासूमां रात भर करवटें बदलती रही होंगी.’’ मेघा बोली.
इस पर इंसपेक्टर ने ध्यान से बिस्तर का निरीक्षण किया. उन्होंने भी अनुमान लगाया कि सामान्य तरह से सोने पर बिस्तर की सिलवटें बहुत अधिक नहीं बनती हैं. तभी उन्होंने सवाल किया, ‘‘मेघाजी, आप सास का एक बैग गायब होने की बात बता रही थीं.’’ ‘‘जी हां सर, सासूमां का एक बैग गायब है, जिस में उन की ज्वैलरी और बैंक के कागजात थे. और हां, मेरी सासूमां का मोबाइल भी नहीं मिल रहा है.’’ मेघा बोली.
इस पर थानाप्रभारी मौर्या ने गंभीरता दिखाते हुए कमरे का कोनाकोना छान मारा. इस सिलसिले में बाथरूम की दीवारें संदिग्ध लगीं. कारण दीवारों को रगड़रगड़ कर धोने के निशान साफ दिख रहे थे. ध्यान से देखने पर एकदो छोटे काले निशान अभी भी दिख रहे थे. उस की जांच के लिए फोरैंसिक टीम बुलाई गई.
जांच के लिए तमाम तरह के नमूने एकत्रित किए गए. घर के बाहर सीसीटीवी कैमरे से 30 जून और एक जुलाई की रात के फुटेज निकलवाए गए. सीसीटीवी फुटेज में 2 बड़े बैग के साथ घर से रात को निकलते हुए 2 लोग दिखे. उन की तसवीर प्रिंट करवा कर मेघा से पहचान करवाई गई. मेघा ने देखते ही कहा कि ये दोनों उन के पड़ोसी अनिल आर्या और कामिनी आर्या हैं. उन की गैरमौजूदगी में यही सासूमां का खयाल रखते थे.
पुलिस ने बताया कि ये दोनों 30 जून की रात को 11 बजे आप के घर आए थे और सुबह साढ़े 6 बजे आप के घर से निकले थे. तब उन के पास 2 बड़े बैग थे.
अब मेघा समझ चुकी थी कि जरूर कुछ गड़बड़ है. उस ने बताया कि उन की सास के पास इतना बड़ा बैग नहीं था. फिर खुद ही सवाल किया, ‘‘बैग में क्या हो सकता है, घर का सारा सामान तो यूं ही पड़ा है.’’ तहकीकात से मालूम हुआ कि आर्या दंपति गुरुद्वारा रोड पर किराए के मकान में रहते थे. पहली जुलाई के बाद से वे नहीं दिखे.
उधर फोरैंसिक जांच की रिपोर्ट से पता चला कि बाथरूम की दीवार पर वह काले निशान खून के धब्बे थे. इस का मतलब स्पष्ट था कि कविता ग्रोवर की किसी ने हत्या कर दी. आगे की जांच के लिए जांच टीम बनाई गई और हत्यारे की तलाश की जाने लगी. इस मामले में शक की सुई पूरी तरह से अनिल आर्या और उस की पत्नी कामिनी आर्या की तरफ घूम चुकी थी. सवाल यह था कि दोनों बैग ले कर कहां लापता हो गए? काफी पूछताछ के बाद मालूम हुआ कि दोनों उत्तराखंड में रानीखेत के मूल निवासी हैं. उन की तलाश के लिए पुलिस टीम रानीखेत पहुंची, लेकिन वे हाथ नहीं आए. केवल इतना पता चल सका कि 3 जुलाई, 2021 को टैक्सी स्टैंड पर दिखे थे.
इसी बीच दोनों के बारे में दिल्ली के एक आटो वाले से कुछ जानकारी मिली. उस ने बताया कि दोनों उस के परमानेंट ग्राहक थे. हमेशा उस के आटो से ही कहीं भी आतेजाते थे. आटो ड्राइवर ने बताया कि 30 जून की आधी रात को मुझे फोन कर अगले रोज सुबह आने के लिए कहा था. मैं उन के पास ठीक सवा 6 बजे पहुंच गया था. अनिल आर्या और उस की पत्नी 2 बैग घसीटते हुए ले कर आए थे. उन्होंने कहा था कि दोस्त के यहां पार्टी है, उन के लिए चिकन का बैग पहुंचाना है. और वे आटो पर सवार हो गए.
थोड़ी दूर पर ही वे नजफगढ़ के पास उतर गए. उस के बाद वे कहां गए, मालूम नहीं. पूछने पर सिर्फ इतना बताया कि उन का दोस्त यहीं गाड़ी ले कर आएगा. पुलिस ने आटो वाले से अनिल आर्या का मोबाइल नंबर ले लिया. मोबाइल से बात नहीं बनी, लेकिन आटो और दूसरे दरजनों टैक्सी वालों से पूछताछ के बाद आर्या दंपति को उत्तर प्रदेश के बरेली से 12 जुलाई को गिरफ्तार कर लिया गया. उन्हें दिल्ली लाया गया. उन से गहन पूछताछ की गई.
जल्द ही दोनों ने कविता ग्रोवर की हत्या की बात स्वीकार ली. उन्होंने जो बताया, वह किसी हैवानियत से जरा भी कम नहीं था. मानवता को शर्मसार करने वाली घटना को बड़ी क्रूरता से अंजाम दिया गया. उन्होंने स्वीकार कर लिया कि 30 जून की रात को क्याक्या हुआ था. उन्होंने कविता ग्रोवर की हत्या करने का कारण भी बताया.
इवेंट मैनेजमेंट का काम करने वाले अनिल आर्या के अनुसार उस के लालच और स्वार्थ से भरे इस हत्याकांड की नींव 2 साल पहले ही पड़ गई थी. उस ने कविता ग्रोवर से जानपहचान बढ़ा कर उन से डेढ़ लाख रुपए उधार लिए थे, जिस की मांग वह लगातार करती थीं. अनिल ने बताया कि 30 जून, 2021 को मनीष और मेघा सिरसा चले गए थे. उसी रात वह पत्नी के साथ पूरी तैयारी के साथ कविता के पास जा पहुंचा था. कविता ग्रोवर उन दोनों को अपना हितैषी समझती थीं, इसलिए देर रात को आने पर कोई सवालजवाब नहीं किया.
उन के बीच देर रात तक इधरउधर की बातें होती रहीं. इसी बीच कविता अपनी उधारी मांग बैठीं. बात बढ़ गई. कविता ने नाराजगी दिखाते हुए कह दिया कि पैसे वापस नहीं लौटाए तो वह इस बारे में अपने बहूबेटे को बता देगी. फिर क्या था. तब तक अनिल को भी काफी गुस्सा आ गया था. उस ने तुरंत कविता के मुंह पर जबरदस्त मुक्का जड़ दिया. वह बिछावन पर वहीं गिर पड़ीं. अनिल ने उन के सीने पर सवार हो कर साथ लाई नायलौन की रस्सी से गला घोंट डाला.
कविता की मौत हो जाने के बाद अनिल लाश को बाथरूम में ले गया और साथ लाए बड़े चाकू से लाश के 18 टुकड़े कर डाले. सारे टुकड़े उस ने 2 बड़ेबड़े बैगों में भरे. इस काम में उन दोनों को करीब 4 घंटे का समय लगा. उस की पत्नी कामिनी ने इस में पूरा साथ दिया और उस ने बाथरूम की दीवारें साफ कीं. फिर टुकड़े ठिकाने लगाने के लिए अपने जानपहचान के आटो वाले को फोन कर बुला लिया.
आटो से वह दोनों नजफगढ़ तक आए. आटो के जाने के बाद वहीं नाले में बैग फेंक दिए. उस के बाद वह उसी रोज कविता के घर से लाए जेवरों को मुथुट फाइनैंस में गिरवी रख आए. उस से मिले 70 हजार रुपए ले कर उन्होंने अपने कुछ जेवर छुड़वाए और रानीखेत चले गए. पकड़े जाने के डर से वह वहां 2 घंटे ही रुके. यहां तक कि अपने घर भी नहीं गए. रास्ते में ही अपने मोबाइल का सिम और हत्या में इस्तेमाल चाकू आदि सामान को फेंक दिया. फिर बरेली जा कर एक कमरा किराए पर लिया और रहने लगे.
पुलिस ने उस के बताए अनुसार न केवल थैले से लाश के टुकड़े बरामद कर लिए, बल्कि हत्या में इस्तेमाल सामान भी हासिल कर लिया. लाश के कुल 18 टुकड़े किए गए थे, जो सड़गल चुके थे. पुलिस ने मुथुट फाइनैंस से गिरवी रखे जेवर भी हासिल कर लिए. उन की शिनाख्त मेघा ग्रोवर ने कर दी.
इस तरह अनिल और कामिनी द्वारा हत्या का जुर्म स्वीकार करने के बाद अपहरण के केस को हत्या कर लाश ठिकाने लगाने की धारा 302, 201 आईपीसी में तरमीम कर दिया गया. फिर दोनों को अदालत में पेश कर तिहाड़ जेल भेज दिया गया.
लेखिका- आशा शर्मा
‘‘दिमाग फिर गया है इस लड़की का. अंधी हो रही है उम्र के जोश में. बापदादा की मर्यादा भूल गई. इश्क का भूत न उतार दिया सिर से तो मैं भी बाप नहीं इस का,’’ कहते हुए पंडित जुगलकिशोर के मुंह से थूक उछल रहा था. होंठ गुस्से के मारे सूखे पत्ते से कांप रहे थे. ‘‘उम्र का उफान है. हर दौर में आता है. समय के साथसाथ धीमा पड़ जाएगा. शोर करोगे तो गांव जानेगा. अपनी जांघ उघाड़ने में कोई समझदारी नहीं. मैं सम?ाऊंगी महिमा को,’’ पंडिताइन बोली. ‘‘तू ने सम?ाया होता, तो आज यों नाक कटने का दिन न देखना पड़ता. पतंग सी ढीली छोड़ दी लड़की. अरे, प्यार करना ही था, तो कम से कम जातबिरादरी तो देखी होती. चल पड़ी उस के पीछे जिस की परछाईं भी पड़ जाए तो नहाना पड़े. उस घर में देने से तो अच्छा है कि लड़की को शगुन के नारियल के साथ जमीन में गाड़ दूं,’’
पंडित जुगलकिशोर ने इतना कह कर जमीन पर थूक दिया. बाप के गुस्से से घबराई महिमा सहमी कबूतरी सी गुदड़ों में दुबकी बैठी थी. आज अपना ही घर उसे लोहे के जाल सा महसूस हो रहा था, जिस में से सिर्फ सांस लेने के लिए हवा आ सकती है. शगुन के नारियल के साथ जमीन में गाड़ देने की बात सुनते ही महिमा को ‘औनर किलिंग’ के नाम पर कई खबरें याद आने लगीं. उस ने घबरा कर अपनी आंखें बंद कर लीं. 21 साल की उम्र. 5 फुट 7 इंच का निकलता कद. धूप में संवलाया रंग और तेज धार कटार सी मूंछ. पहली बार महिमा ने किशोर को तब देखा था, जब गांव के स्कूल से 12वीं जमात पास कर वह अपना टीसी लेने आया था. महिमा भी वहां खड़ी अपनी 10वीं जमात की मार्कशीट ले रही थी. आंखें मिलीं और दोनों मुसकरा दिए थे. किशोर ?ोंप गया, महिमा शरमा गई. तब वह कहां जातपांत के फर्क को सम?ाती थी. धीरेधीरे बातचीत मुलाकातों में बदलने लगी और आंखों के इशारे शब्दों में ढलने लगे. महक की तरह इश्क भी फिजाओं में घुलने लगा और जबानजबान चर्चा होने लगी. इस से पहले कि चिनगारी शोला बन कर घर जलाती, किशोर आगे की पढ़ाई के लिए शहर चला गया, इसलिए उन की मुलाकातें कम हो गईं.
इधर महिमा ने 12वीं जमात पास करने के बाद कालेज जाने की जिद की. उधर, किशोर की कालेज की पढ़ाई पूरी होने वाली थी. महिमा होस्टल में रह कर कालेज की पढ़ाई करने लगी और किशोर ग्रेजुएट होने के बाद प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी में जुट गया. सही खादपानी मिलते ही दम तोड़ती प्यार की दूब फिर से हरी हो गई. मुलाकातें परवान चढ़ने लगीं. एक दिन गांव के किसी भले आदमी ने दोनों को साथसाथ देख लिया. बस, फिर क्या था तिल का ताड़ बनते कहां देर लगती है. नमकमिर्च लगी खिचड़ी पंडित जुगलकिशोर के घर तक पहुंचने की ही देर थी कि पंडितजी राशनपानी ले कर किशोर के बाप मदना के दरवाजे पर जा धमके. ‘‘सरकार ने ऊपर चढ़ने की सीढ़ी क्या दे दी, अपनी औकात ही भूल बैठे. आसमान में बसोगे क्या? अरे, चार अक्षर पढ़ने से जाति नहीं बदल जाती.
नींव के पत्थर कंगूरे में नहीं लगा करते,’’ और भी न जाने क्याक्या वे मदना को सुनाते, अगर बड़ा बेटा महेश उन्हें जबरदस्ती घसीट कर न ले जाता. ‘‘कमाल करते हो बापू. अरे, यह समय उबलने का नहीं है. जरा सोचो, अगर जातिसूचक गालियां निकालने के केस में अंदर करवा दिया, तो बिना गवाह ही जेल जाओगे. जमानत भी नहीं मिलेगी,’’ महेश ने अपने पिता को सम?ाया. पंडित जुगलकिशोर को भी अपनी जल्दबाजी पर पछतावा तो हुआ, लेकिन गुस्सा अभी भी जस का तस बना हुआ था. ‘‘पंचायत बुला कर गांव बदर न करवा दिया तो नाम नहीं,’’ पंडितजी ने बेटे की आड़ में मदना को सुनाया. पंडित जुगलकिशोर का गांव में बड़ा रुतबा था. मंदिर के पुजारी जो ठहरे. हालांकि अब पुरोहिताई में वह पहले वाली सी बात नहीं रही थी. बस, किसी तरह से दालरोटी चल जाती है, लेकिन कहते हैं न कि शेर भूखा मर जाएगा, लेकिन घास नहीं खाएगा. वही तेवर पंडितजी के भी हैं. चाहे आटे का कनस्तर रोज पैंदा दिखाता हो, लेकिन मजाल है, जो चंदन के टीके में कभी कोई कमी रह जाए.
वह तो पंडिताइन के मायके वाले जरा ठीकठाक कमानेखाने और दानदहेज में भरोसा करने वाले हैं, इसलिए समाज में पंडित जुगलकिशोर की पंडिताई की साख बची हुई है, वरना कभी की पोल चौड़े आ जाती. महिमा की पढ़ाईलिखाई का खर्चा भी उस के मामा यानी पंडिताइन के भाई सालग्राम ही उठा रहे हैं. कुम्हार का कुम्हारी पर जोर न चले, तो गधे के कान उमेठता है. पंडित जुगलकिशोर ने भी महेश को भेज कर महिमा को शहर से बुलवा कर घर में नजरबंद कर दिया. पति का बिगड़ा मिजाज देख कर पंडिताइन ने अपने भाई को तुरंत आने को कह दिया. 50 साल का सालग्राम कसबे में क्लर्की करता था. सरकारी नौकरी में रहने के चलते राजकाज के तौरतरीके और सरकार की पहुंच सम?ाता था. वह जानता था कि भले ही सरकारी काम सरकसरक कर होते हैं, लेकिन यह सरकार अगर गौर करने लगे तो फिर ऐक्शन लेने में मिनट लगाती है.
गांव से पहले घर में पंचायत बैठी. मामा को देख महिमा के जी को शांति मिली. प्यार मिले न मिले, किस्मत की बात… जान की सलामती तो रहेगी. एक तरफ पंडित जुगलकिशोर थे, तो वहीं दूसरी तरफ पूरा परिवार, लेकिन अकेले पंडितजी सब पर भारी पड़ रहे थे. रहरह कर दबी हुई स्प्रिंग से उछल रहे थे. ‘‘चौराहे पर बैठा सम?ा लिया क्या ससुरों ने? अरे, शासन की सीढि़यां चढ़ लीं तो क्या गढ़ जीत लिया? चले हैं हम से रिश्ता जोड़ने… दो निवाले दोनों बखत मिलने क्या लगे तो औकात भूल गए…’’ पंडितजी ने अपने साले को सुनाया. ‘‘समय को सम?ाने की कोशिश करो जीजाजी. अब रजवाड़ों का समय नहीं है. यह लोकतंत्र है. यहां भेड़बकरी एक घाट पर पानी पीते हैं,’’ सालग्राम ने पंडित जुगलकिशोर को सम?ाया. ‘‘मामा सही कह रहे हैं बापू. जातपांत आजकल पिछड़ी सोच वाली बात हो गई.
आप कभी गांव से बाहर गए नहीं न इसलिए आप को अटपटा लग रहा है. शहरों में आजकल दो ही जात होती हैं, अमीर और गरीब,’’ मामा की शह पा कर महेश के मुंह से भी बोल फूटे. पंडितजी ने उसे खा जाने वाली नजरों से घूरा. महेश सिर नीचा कर के खड़ा हो गया. ‘‘इस बच्चे को क्या आंखें दिखाते हो. सब सही ही तो कह रहे हैं. आप तो रामायण पढ़े हो न… भगवान राम ने केवट और शबरी को कैसा मान दिया था, याद नहीं…?’’ पंडिताइन बातचीत के बीच में कूदीं. ‘‘हां, रामायण पढ़ी है. माना कि समाज में सब का अपना महत्व है, लेकिन पैर की जूती को सिर पर पगड़ी की जगह नहीं पहना जाता,’’ पंडितजी ने पत्नी को घुड़क दिया. ‘‘चलो छोड़ो इस बहस को. बाहर चल कर चाय पी कर आते हैं,’’ सालग्राम ने एक बार के लिए घर की पंचायत बरखास्त कर दी. महिमा की उम्मीदों की कडि़यां जुड़तीजुड़ती बिखर गईं. ‘‘जीजाजी, मैं मानता हूं कि जो संस्कार हमें घुट्टी में पिलाए गए हैं,
उन के खिलाफ जाना आसान नहीं है, लेकिन मैं तो सरकारी नौकर हूं और मेरे अफसर यही लोग हैं. हमें तो इन के बुलावे पर जाना भी पड़ता है और इन का परोसा खाना भी पड़ता है. इन्हें भी अपने यहां न्योतना पड़ता है और इन के जूठे कपगिलास भी उठवाने पड़ते हैं. ‘‘अब इस बात को ले कर आप मु?ो जात बाहर करो तो बेशक करो,’’ सालग्राम के हरेक शब्द के साथ पंडित जुगलकिशोर की आंखें हैरानी से फैलती जा रही थीं. ‘‘आप छोरी की पढ़ाईलिखाई मत छुड़वाओ. उसे पढ़ने दो. हो सकता है कि वह खुद ही आप के कहे मुताबिक चलने लगे या फिर समय का इंतजार करो. ज्यादा जोरजबरदस्ती से तो गाय भी खूंटा तोड़ कर भाग जाती है,’’ सालग्राम ने कहा. वे दोनों गांव के बीचोंबीच बनी चाय की थड़ी पर आ कर बैठ गए. लड़का 2 कप चाय रख गया. तभी शोर ने उन का ध्यान खींचा. देखा तो पुलिस की गाड़ी सरपंचजी के घर के सामने आ कर रुकी थी.
2 सिपाही उतर कर हवेली में गए और वापसी में सरपंचजी हाथ जोड़े उन के साथ आते दिखे. ‘‘देखें, क्या मामला है…’’ सालग्राम ने कहा और दोनों जीजासाला तमाशबीन भीड़ का हिस्सा बन गए. सालग्राम ने पुलिस अफसर की वरदी पर लगी नाम की पट्टी को देखा और जीजा को कुहनी से ठेला मार कर उन का ध्यान उधर दिलाया. नाम पढ़ कर पंडितजी सोच में पड़ गए. ‘‘इन का यह रुतबा है. सरपंच भी हाथ जोड़े खड़ा है,’’ सालग्राम ने कहा, तो पंडित जुगलकिशोर सम?ाने की कोशिश कर रहे थे. तभी हवेली के भीतर से चायपानी आया और सरपंचजी मनुहार करकर के अफसर को खिलानेपिलाने लगे. ‘रामराम… धर्म भ्रष्ट हो गया…’ पंडितजी कहना चाह कर भी नहीं कह सके. वे साले के साथ चुपचाप वापस लौट आए. रात को घर की पंचायत में फैसला हुआ कि महिमा की पढ़ाई जारी रखी जाएगी. उसे ऊंचनीच सम?ा कर मामा के साथ वापस शहर भेज दिया गया. जब पंडित जुगलकिशोर के घर से इस चर्चा पर विराम लग गया, तो फिर किसी और की हिम्मत भी नहीं हुई बात का बतंगड़ बनाने की.
साल बीततेबीतते महिमा ग्रेजुएट हो गई और अब शहर में प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी में जुट गई. महेश ने भी शहर के कालेज में भरती ले ली थी. इस बीच न तो महिमा की जबान पर कभी किशोर का नाम आया और न ही बेटे ने कोई चोट देती खबर दी तो पंडितजी ने राहत की सांस ली. उन्हें लगा मानो यह दूध का उफान था,जो अब रूक गया है. लड़की अपना भलाबुरा सम?ा गई है. ‘‘जीजाजी, सुना आप ने… प्रशासनिक सेवाओं का नतीजा आ गया है. आप के गांव के किशोर का चयन हुआ है,’’ सालग्राम ने घर में घुसते ही कहा. यह सुनते ही पंडिताइन खिल गईं. पंडितजी के माथे पर बल पड़ गए. ‘‘हुआ होगा.. हमें क्या? बहुत से लोगों के हुए हैं,’’ पंडित जुगलकिशोर ने लापरवाही से कहा. ‘‘बावली बातें मत करो जीजाजी. समय को सम?ा. जून सुधर जाएगी कुनबे की. अरे, छोरी तो राज करेगी ही, आगे की पीढि़यां भी तर जाएंगी. बच्चों के साथ तो बाप का नाम ही जुड़ेगा न,’’ सालग्राम ने जीजा को सम?ाया. ‘‘मामा सही कह रहे हैं बापू. जिस की लाठी हो भैंस उस की ही हुआ करे. राज में भागीदारी न हो तो जात का लट्ठ बगल में दबाए घूमते रहना. कोई घास न डालने का,’’ महेश भी मामा के समर्थन में उतर आया था.
‘‘अरे, ये तो छोराछोरी के भले संस्कार हैं जो इज्जत ढकी हुई है, वरना शहर में कोर्टकचहरी कर लेते तो क्या कर लेता कोई? कानून भी उन्हीं का साथ देता,’’ पंडिताइन कहां पीछे रहने वाली थीं. ‘‘लगता है, पूरा कुनबा ही ज्ञानी हो गया, एक मैं ही बोड़म बचा,’’ पंडितजी से कुछ बोलते नहीं बना, तो उन्होंने सब को ?िड़क दिया, लेकिन इस ?िड़क में उन की ?ोंप और कुछकुछ सहमति भी ?ालक रही थी. मामला पक्ष में जाते देख पंडिताइन ?ाट भीतर से नारियल निकाल कर लाईं और जबरदस्ती पति के हाथ में थमा दिया. ‘‘छोरा गांव आया हुआ है, आज ही रोक लो, वरना गुड़ की खुली भेली पर मक्खियां आते कितनी देर लगती है,’’ पंडिताइन ने सफेद कुरताधोती भी ला कर पलंग पर रख दिए. पंडितजी कभी अपने कपड़ों को तो कभी सामने रखे मोली बंधे शगुन के नारियल को देख रहे थे. उन्होंने कुरता पहन कर धोती की लांग संवारी और नारियल को लाल गमछे में लपेट कर मदना के घर चल दिए बधाई देने.