Artifical Intelligence : अमेरिका के आर्टिफिशियल इंटैलिजैंस सौफ्टवेयर, जैसे चैट जीपीटी, ओपन एआई, जैमिनाई और चीन के डीपसीक से भारत को परेशान होने की जरूरत नहीं है. अमेरिका और चीन आजकल कंप्यूटिंग पावर में एकदूसरे के प्रबल प्रतिद्वंद्वी बन रहे हैं और उन के प्रोग्राम व सौफ्टवेयर लाखोंकरोड़ों की गिनतियां सैकंडों में करने के काबिल हैं.
अमेरिका को जो गरूर अपने सैम औल्टमैन के ओपन एआई पर हो रहा था उसे चीन के लियांग वानफेंग ने पंचर कर दिया है. उस ने बहुत सस्ते में एआई टूल बना कर निविदिया कंपनी के शेयर को भारी टक्कर मार दी है और 2 दिनों में अमेरिका की हाईटैक एआई कंपनियां स्टौक मार्केट में अरबों डौलर खो चुकी हैं.
भारत को चिंता नहीं है क्योंकि हम तो यह खोज में ही लगे हैं कि कौन सी मसजिद के नीचे मंदिर है और वहां पर भी सब से ऊंचा, मंदिर बनाया जाए. साथ ही, कुंभ स्नान को कैसे वर्ल्ड रिकौर्ड होल्डर बनाया जाए. ये सब काम हमारे लिए प्राथमिकता रखते हैं जो मानवता को मूर्ख बना कर चढ़ावे में नोट/वोट दोनों जमा कर रहे हैं. चीन और अमेरिका इन दोनों मामलों में फिसड्डी हैं हालांकि डोनाल्ड ट्रंप की सरकार के अब के कार्यकाल में मोदीनुमा कुछ कामों के होने की संभावना है जिन से गोरों की जिंदगी और उन के चर्च सुधरें.
एआई चाहे एक खतरनाक टूल हो जो अरबों की नौकरियां खा जाए पर यह भी संभव है कि वह रोटी, कपड़ा, मकान, स्वास्थ्य इतना सस्ता और सुलभ कर दे कि नौकरी से निकाले गए लोगों के पास भी भरपूर पैसा व सुविधाएं बनी रहें. चीन इस मामले में आगे निकल गया है तो कोई आश्चर्य की बात नहीं है क्योंकि वहां न चर्च है, न गोरोंकालों का भेद और न ही टैक कंपनियों के मालिक प्रैसिडैंट के तलवे चाटते नजर आते हैं.
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