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Medicines : दवाएं हो जाएंगी बेअसर

Medicines : मिशिगन स्टेट यूनिवर्सिटी और अंतर्राष्ट्रीय वैज्ञानिकों ने अपनी रिसर्च में पाया है कि पशुओं के गोबर में एंटीबायोटिक रैसिस्टेंस जीन्स भरे पड़े हैं, जो मनुष्य के स्वास्थ्य के लिए गंभीर खतरा बन रहे हैं. इस अध्ययन के नतीजे जर्नल साइंस एडवांसेज में प्रकाशित हुए हैं. यह मवेशियों के गोबर में मौजूद एंटीबायोटिक प्रतिरोधी जीनों पर किया अब तक का सब से व्यापक अध्ययन है.

14 वर्षों तक चले इस वैश्विक अध्ययन में वैज्ञानिकों ने 26 देशों से 4,000 से ज्यादा गोबर के नमूनों की जांच की है. इस दौरान गाय, सूअर और मुरगियों के गोबर का विश्लेषण किया गया. इस विश्लेषण के जो नतीजे सामने आए हैं, वो हैरान करने वाले हैं.

किसान जिस गोबर को खाद मानते हैं, वो अब धीरेधीरे मानव स्वास्थ्य के लिए एक अदृश्य खतरा बनता जा रहा है. जानवरों के इलाज में की जाने वाली गलतियां, एंटीबायोटिक दवाएं और पेड़पौधों पर डाले जाने वाले कीटनाशक भोजन के माध्यम से जानवरों के शरीर में जा रहे हैं और गोबर की खाद में पनपने वाले एंटीबायोटिक रैसिस्टेंस जीन्स इंसानों की सेहत पर भारी पड़ रहे हैं. पशुपालन से जुड़ा एक खामोश खतरा धीरेधीरे दबेपांव दुनिया में पैर पसार रहा है.

नतीजे दर्शाते हैं कि जानवरों के इलाज में इस्तेमाल होने वाली दवाओं के असर से ऐसे जीन बन रहे हैं जो इंसानी शरीर में जा कर एंटीबायोटिक्स को बेअसर कर देते हैं. ऐसे में सब से बड़ा सवाल यह है कि क्या हम उस दौर की ओर बढ़ रहे हैं जब मामूली बुखार भी जानलेवा हो सकता है.

Health Update : औरतों को मर्दों के मुकाबले ज्यादा नींद चाहिए

Health Update : नींद हमारे शरीर और दिमाग के लिए उतनी ही जरूरी है जितना कि खाना और पानी. मैंटल, फिजिकल और इमोशनल तौर से हैल्दी रहने के लिए भरपूर नींद लेना बेहद जरूरी है. लेकिन क्या आप जानते हैं कि महिलाओं को पुरुषों के मुकाबले अधिक नींद लेने की जरूरत होती है.

दरअसल मनुष्य का शरीर बिना किसी बाहरी मदद के भी अपने अंदर आई अनेक खराबियों को दुरुस्त करता रहता है और विकास के लिए लगातार काम करता है. ये सारे काम ज्यादातर नींद के दौरान ही होते हैं जब हमारी ग्रोथ हार्मोन सब से ज्यादा सक्रिय होते हैं. हाल ही में नैशनल लाइब्रेरी औफ मैडिसिन में ‘अ सोसाइटी फौर वुमन हैल्थ रिसर्च’ की एक रिपोर्ट पब्लिश की गई. इस रिपोर्ट की मानें तो महिलाओं और पुरुषों में नींद के घंटे अलगअलग होते हैं. मतलब दोनों को सोने के लिए अलगअलग घंटे चाहिए, क्योंकि महिलाएं दिनभर में पुरुषों की तुलना में ज्यादा मानसिक ऊर्जा खर्च करती हैं, जिस से उन के ब्रेन को ज्यादा रिकवरी टाइम यानी नींद की जरूरत होती है.

ब्रिटिश जर्नल औफ स्पोर्ट्स मैडिसिन की रिपोर्ट भी कहती है कि महिलाओं का दिमाग अधिक जटिल होता है और वे एक समय में कई काम करने की क्षमता रखती हैं. इस का मतलब यह हुआ कि उन का दिमाग ज्यादा मेहनत करता है और उसे ठीक से रिपेयर होने के लिए ज्यादा आराम यानी ज्यादा नींद चाहिए. महिलाओं को औसतन 7.5 से 9 घंटे की नींद की जरूरत होती है, जबकि पुरुषों के लिए 7-8 घंटे पर्याप्त हैं. इस के अलावा महिलाएं ज्यादा रैपिड आई मूवमैंट स्लीप लेती हैं, जो ड्रीमिंग और मैमोरी बूस्टिंग के लिए जरूरी होती है.

Zohran Mamdani : न्यूयौर्क में छाए भारतीय मूल के ममदानी “मध्यवर्ग की नब्ज पकड़ बने मेयर”

Zohran Mamdani : पिछले दिनों अमेरिका के सब से बड़े शहर न्यूयौर्क में जोहरान ममदानी की सफलता केवल चुनावी जीत नहीं थी, बल्कि यह बड़े राजनीतिक और सामाजिक बदलाव की शुरुआत व असली लोकतंत्र का उदाहरण है. ममदानी ने मेयर पद के लिए डैमोक्रेटिक प्राइमरी में पूर्व गवर्नर एंड्रयू कुओमो को पराजित किया.

भारतीय जड़ों वाले 33 साल के इस युवा नेता ने उन लोगों की आवाज उठाई, जो चकाचौंध से भरे न्यूयौर्क में हाशिए पर जीवन बिता रहे हैं. जोहरान ममदानी ने इन की परेशानियों पर ध्यान दिया. उन्होंने टीवी स्टूडियो, औनलाइन इंटरव्यू और महंगे विज्ञापनों से ज्यादा तवज्जुह जनता से सीधे संवाद को दी. वे सड़कों पर उतरे, गलियों में गए और आम लोगों से बातचीत कर उन की नब्ज जानी.

न्यूयौर्क का वर्किंग क्लास इस शहर में बढ़ते खर्च से परेशान है, ममदानी ने इस के समाधान का वादा किया. उन्होंने इन आम लोगों के लिए फ्री पब्लिक ट्रांसपोर्ट, किराए पर लगाम, न्यूनतम वेतन का वादा किया जो एक नजर में न्यूयौर्क जैसे शहर के एजेंडे से बाहर की चीज लगते हैं. लेकिन ममदानी की जीत से जाहिर होता है कि मध्यवर्ग की समस्या हर जगह एकजैसी है. वह चाहे भारत हो या न्यूयौर्क, इस वर्ग को ऐसे नेतृत्व की जरूरत है जो उस की परेशानियों को समझ कर उन का हल पेश कर सके.

ममदानी को प्रोग्रैसिव माना जाता है. वे उदार हैं, युवा हैं और अपनी बात स्पष्ट तरीके से रखते हैं, खासकर इजराइल व हमास जंग के मसले पर उन्होंने जहां नेतन्याहू को आड़े हाथों लिया वहीं जंग से त्रस्त आ चुकी अमेरिकी जनता का दर्द भी वे सामने लाए. यूक्रेन हो या गाजा, लड़ाई के खर्च का एक बड़ा हिस्सा इसी जनता की जेब से जा रहा है. फिर गाजा में पैदा हुई मानवीय त्रासदी ने भी इजराइली पीएम नेतन्याहू के खिलाफ गुस्सा पैदा किया है. ऐसे में ममदानी का साफ स्टैंड लेना लोगों को भा रहा. दुनियाभर के लोकतांत्रिक देशों को जोहरान ममदानी जैसे स्पष्ट बोलने वाले युवा नेतृत्व की जरूरत है.

Black Magic : तंत्रमंत्र – पूरे परिवार को जिंदा जला डाला “अंधविश्वासी लोगों की करतूत”

Black Magic : बिहार के पूर्णिया में तंत्रमंत्र के शक में एक परिवार के 5 लोगों को जिंदा जला डाला गया. यह घटना राज्य की कानून व्यवस्था के लिए जितनी चिंताजनक है, उतनी की शर्मनाक है शिक्षा व्यवस्था के लिए. एक तरफ भारत अंतरिक्ष में कदम रख संभावनाओं के नए दरवाजे खोल रहा है जबकि दूसरी तरफ इस तरह की घटनाएं बताती हैं कि समाज का एक तबका कितने गहरे अंधविश्वास में डूबा हुआ है.

जिन लोगों को गांव वालों ने जिंदा आग में भून दिया, उस परिवार की एक महिला झाड़फूंक करती थी. जब कुछ दिनों पहले गांव के एक बच्चे की मौत किसी बीमारी की वजह से हुई, तो अनपढ़ और अंधविश्वासी लोगों का शक उस महिला और उस के परिवार पर गया. इस से पहले भी इस गांव में कुछ लोगों की जान बीमारी की वजह से गई थी. लोगों को लगा कि इन सब के पीछे वही झाड़फूंक, टोनाटोटका करने वाली महिला और उस का परिवार है. उस परिवार के खिलाफ पहले पंचायत बैठाई गई.

पंचायत ने बाकायदा उस महिला को डायन घोषित किया और फिर भीड़ ने नृशंसता दिखाते हुए उस के परिवार के 5 लोगों को पूरे गांव के सामने ज़िंदा जला डाला. यह स्थिति तब है जब राज्य में ला एंड और्डर बड़ा मुद्दा बना हुआ है. पटना में बिजनैसमैन गोपाल खेमका की हत्या के बाद से सरकार अपनी छवि बचाने की कोशिश में है.

पूर्णिया बिहार के सब से पिछड़े जिलों में आता है. घटना जिस टेटगामा गांव में हुई, वह आदिवासियों का है. यहां के लोग अगर आज भी झाड़फूंक के चक्करों में फंसे हुए हैं और जादूटोने पर भरोसा करते हैं, तो इस के पीछे पिछड़ापन और अशिक्षा दोनों हैं. केंद्र की स्कूल एजुकेशन रिपोर्ट से पता चलता है कि आधुनिक शिक्षा को छोड़ दीजिए, बेसिक सुविधाओं के मामले में भी बिहार के स्कूल बाकी देश से बहुत पीछे हैं.

Social Story : रामलाल की घर वापसी

Social Story : सात आठ घंटे के सफर के बाद बस ने गांव के बाहर ही उतार दिया था . कमला को भी रामलाल ने अपने साथ बस से उतार लिया था.

“देखो कमला तुम्हारा पति जब तुम्हारे साथ इतनी मारपीट करता है तो तुम उसके साथ क्यों रहना चाहती हो ”

कमला थोड़ी देर तक खामोश बनीं रही . उसने कातर भाव से रामलाल की ओर देखा

“पर …….”

“पर कुछ नहीं तुम मेरे साथ चलो”

“तुम्हारे घर के लोग मेरे बारे में पूछेंगे तो क्या कहोगे”

“कह दूंगा  कि तुम मेरी घरवाली हो, जल्द बाजी में ब्याह करना पड़ा”.

कमला कुछ नहीं बोली .दोनों के कदम गांव की ओर बढ़ गये .

रामलाल के सामने विगत एक माह में घटा एक एक घटनाक्रम चलचित्र की भांति सामने आ रहा था .

रामलाल शहर में मजदूरी करता था . ब्याह नहीं हुआ था इसलिए जो मजदूरी मिलती उसमें उसका खर्च आराम से चल जाता . थोड़े बहुत पैसे जोड़कर वह गांव में अपनी मां को भी भैज देता .गांव में एक बहिन और मां ही रहते हैं . एक बीघा जमीन है पर उससे सभी की गुज़र बसर होना संभव नहीं था .गांव में मजदूरी मिलना कठिन था इसलिए उसे शहर आना पड़ा .शहर गांव से तो बहुत दूर था “पर उसे कौन रोज-रोज गांव आना है” सोचकर यही काम करने भी लगा था . एक छोटा सा कमरा किराए पर ले लिया था . एक स्टोव और कुछ बर्तन . शाम को जब काम से लौटता तो दो रोटी बना लेता और का कर सो जाता . दिन भर का थका होता इसलिए नींद भी अच्छी आती . वह ईमानदारी से काम करता था इस कारण से सेठ भी उस पर खुश रहता . वह अपनी मजदूरी से थोड़े पैसे सेठ के पास ही जमा कर देता

” मालिक जब गांव जाऊंगा तो आप से ले लूंगा ‘ .उसे सेठ पर भरोसा था .

साल भर हो गया था उसे शहर में रहते हुए . इस एक साल में वह अपने गांव जा भी नहीं पाया था .उस दिन उसने देर तक काम किया था . वह अपने कमरे पर देर से पहुंचा था .जल्दबाजी में उसे ध्यान ही नहीं रहा कि वो सेठ से कुछ पैसे ले ले . उसने अपनी जेब टटोली दस का सिक्का उसके हाथ में आ गया “चलो आज का खर्चा तो चल जाएगा कल सेठ से पैसे मिल ही जायेंगे” .रामलाल ने गहरी सांस ली . दो रोटी बनाई और खाकर सो गया .

सुबह जब वह नहाकर काम पर जाने के लिए निकला तो पता चला कि पुलिस वाले किसी को घर से निकलने ही नहीं दे रहे हैं . सरकार ने लांकडाउन लगा दिया है . बहुत देर तक ऐ वह इसका मतलब ही नही समझ पाया .केवल यही समझ में आया कि वो आज काम पर नहीं जा पाएगा .वह उदास कदमों से अपने कमरे पर लौट आया . मकान मालिक उसके कमरे के सामने ही मिल गया था.

“देखो रामलाल लाकडाउन लग गया है महिने भर का .कोई वायरस फैल रहा है . तुम एक काम करो कि जल्दी से जल्दी कमरा खाली कर दो”

रामलाल वैसे ही लाकडाउन का मतलब नहीं समझ पाया था उस पर वायरस की बात तो उसे बिल्कुल भी समझ में नहीं आई ।

“कमरा खाली कर दो …. मुझसे कोई गल्ती हो गई क्या ?’

“नहीं पर तुम काम पर जा नहीं पाओगे तो कमरे का किराया कैसे दोगे”

“क्या महिने भर काम बंद रहेगा “?

“हां घर से निकलोगे तो पुलिस वाले डंडा मारेंगे”.

रामलाल के सामने अंधेरा छाने लगा .उसके पास तो केवल दस का सिक्का ही है . वह कुछ नहीं बोला उदास क़दमों से अपने कमरे में आ कर जमीन पर बिछी दरी पर लेट गया .

उसकी नींद जब खुली तब तक शाम का अंधेरा फैलने लगा था . उसने बाहर निकल कर देखा . बाहर सुनसान था . उसे पैसों की चिंता सता रही थी यदि वह कल ही सेठ से पैसे ले लेता तो कम से खाने की जुगाड़ तो हो जाती . यदि वह सेठ के पास चला जाए तो सेठ उसे पैसे अवश्य दे सकते हैं . उसने कमरे से फिर बाहर की ओर झांका बहुत सारे पुलिस वाले खड़े थे. उसकी हिम्मत बाहर निकलने की नहीं हुई .वह फिर से दरी पर लेट गया . उसकी नींद जब खुली उस समय रात के दो बज रहे थे . भूख के कारण उसके पेट में दर्द सा हो रहा था .वह उठा “दो रोटी बना ही लेता हूं दिन भर से कुछ खाया कहां है” .स्टोव जला लिया पर आटा रखने वाले डिब्बे को खोलने की हिम्मत नहीं हो रही थी .वह जानता था कि उसमें थोड़ा सा ही आटा शेष है .यदि अभी रोटी बना ली तो कल के लिए कुछ नहीं बचेगा .उसने निराशा के साथ डिब्बा खोला और सारे आटे को थाली में डाल लिया . दो छोटी छोटी रोटी ही बन पाई . एक रोटी खा ली और दूसरी रोटी को डिब्बे में रख दिया .

सुबह हो गई थी .उसने बाहर झांक कर देखा .पुलिस कहीं दिखाई नहीं दी  . वह कमरे से बाहर निकल आया . उसके कदम सेठ के घर की ओर बढ़ लिए . सेठ का घर बहुत दूर था छिपते छिपाते वह उनके घर के सामने पहुंच गया था .दिन पूरा निकल आया था .यह सोचकर कि सेठ जाग गये होंगे ,उसके हाथ बाहर लगी घंटी पर पहुंच गए थे .उनके नौकर ने दरवाजा खोला था

“जी मैं रामलाल हूं सेठ के ठेके पर काम करता हूं”

“हां तो…..

“मुझे कुछ पैसे चाहिए हैं”

“हां तो ठेके पर जाना वहीं मिलेंगे, सेठजी घर पर नौकरों से नहीं मिलते”

“पर वो लाकडाउन लग गया है न तो काम तो महिने भर बंद रहेगा”

“तभी आना…”

“तुम एक बार उनसे बोलो तो वो मुझे बहुत चाहते हैं ”

“अच्छा रूको मैं पूछता हूं” . नौकर को  शायद दया आ गई थी उस पर .

नौकर के साथ सेठ ही बाहर आ गए थे .उनके चेहरे पर झुंझलाहट के भाव साफ़ झलक रहे थे जिसे रामलाल नहीं पढ़ पाया . सेठ जी को देखते ही उसने झुक कर पैर पड़ने चाहे थे पर सेठ ने उसे दूर से ही झटक दिया .

“अब तुम्हारी हिम्मत इतनी हो गई कि घर पर चले आए”

“वो सेठ जी कल आपसे पैसे ले नहीं पाया था , मेरे पास बिल्कुल भी पैसे नहीं हैं, ऊपर से लाकडाउन हो गया है इसलिए आना पड़ा” . रामलाल ने सकपकाते हुए कहा .

“चल यहां से बड़ा पैसे लेने आया है, मैं घर पर लेन-देन नहीं करता”

सेठ ने उसे खूंखार निगाहों से घूरा तो रामलाल घबरा गया .उसने सेठ जी के पैर पकड़ लिए “मेरे पास बिल्कुल भी पैसे नहीं हैं थोड़े से पैसे मिल जाते हुजूर” .

सेठ ने उसे ठोकर मारते हुए अंदर चला गया .हक्का-बक्का रामलाल थोड़ी देर तक वहीं खड़ा रहा .उसे समझ में ही नहीं आ रहा था कि वह क्या करे.तभी पुलिस की गाड़ियों के आने की आवाज गूंजने लगी . वह भयभीत हो गया और भागने लगा .छिपते छिपाते वह अपने कमरे के नजदीक तक तो पहुंच गया पर यहीं गली में उसे पुलिस वालों ने पकड़ लिया .वह कुछ बोल पाता इसके पहले ही उसके ऊपर डंडे बरसाए जाने लगे थे . रामलाल दर्द से कराह उठा . अबकी बार पुलिस वालों ने गंदी गंदी  गालियां देनी शुरू कर दी थी . तभी एक मोटरसाइकिल पर सवार कुछ नवयुवक आकर रुक गये . उन्होंने ने पुलिस वालों से कुछ बात की . पुलिस ने उन्हें जाने दिया . रामलाल भी इसी का फायदा उठा कर वहां से खिसक लिया . वह हांफते हुए अपने कमरे की दरी पर लेट गया । उसकी आंखों से आंसू बह रहे थे जिन्हें पौंछने वाला कोई नहीं था . उसे अपनी मां की याद सताने लगी.

“क्या हुआ बेटा रो क्यों रहा है”

“कुछ नहीं मां पीठ पर दर्द हो रहा है”

“अच्छा बता मैं मालिश कर देती हूं”

मां की याद आते ही उसके आंसुओं की रफ्तार बढ़ गई थी . रोते-रोते वह सो गया था . दोपहर का समय ही रहता होगा जब उसकी आंख खुली .उसका सारा बदन दुख रहा था . पुलिस वालों ने उसे बेदर्दी से मारा था  वह कराहता हुआ उठा .बहुत जोर की भूख लगी थी . वह जानता था कि डिब्बे में अभी एक रोटी रखी हुई है .

सूखी और कड़ी रोटी खाने में समय लगा .वह अब क्या करे ? उसके सामने अनेक प्रश्न थे .

मकान मालिक ने दरवाजा भी नहीं खटखटाया था सीधे अंदर घुस आया था ” तुम कमरा कब खाली कर रहे हो”

वह सकपका गया

“मैं इस समय कहां जाऊंगा, आप कुछ दिन रूक जाओ, माहौल शांत हो जाने दो ताकि मैं दूसरा कमरा ढूंढ सकूं”

रामलाल हाथ जोड़कर खड़ा हो गया था .

“नहीं माहौल तो मालूम नहीं कब ठीक होगा तुम तो कमरा कल तक खाली कर दो…. नहीं तो मुझे जबरदस्ती करनी पड़ेंगी” . कहता हुआ वह चला गया . रामलाल को समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या करे .वह चुपचाप बैठा रहा ।.अभी तो उसे शाम के खाने की भी फ़िक्र थी .

सूरज ढलने को था .रामलाल अभी भी वैसे ही बैठा था खामोश और वह करता भी क्या? . उसने कमरे का दरवाजा जरा सा खोलकर देखा . बाहर पुलिस नहीं थी , वह बाहर निकल आया . थोड़ी दूर पर उसे कुछ भीड़ दिखाई दी .वह लड़खड़ाते हुए वहां पहुंच गया .कुछ लोग खाने का पैकेट बांट रहे थे . वह भी लाईन में लग गया .हर पैकेट को देते हुए वो फोटो खींच रहे थे इसलिए समय लग रहा था . उसका नंबर आया एक व्यक्ति ने उसके हाथ में खाने का पैकेट रखा साथ के और लोग उसके चारों ओर खड़े हो गए .कैमरे का फ्लेश चमकने लगा .फोटो खिंचवा कर वो लोग जा चुके थे . रामलाल भी अपने कमरे कीओर लौट पड़ा “चलो ऊपर वाले ने सुन ली आज के खाने का इंतजाम तो हो गया, इसी में से कुछ बचा लेंगे तो सुबह का लेंगे” .

 

उसे बहुत जोरों से भूख लगी थी इसलिए कमरे में आते ही उसने पैकेट खोल लिया था . पैकेट में केवल दो मोटी सी पुड़ी थीं और जरा सी सब्जी .सब्जी बदबू मार रहीथी ,शायद वह खराब हो गई थी .हक्का-बक्का रामलाल रोटियों को कुछ देर तक यूं ही देखता रहा फिर उसने मोटी पुड़ी को चबाना शुरू कर दिया . दरी पर लेट कर वह भविष्य के बारे में सोचने लगा . वह अब क्या करें । कमरा भी खाली करना है .अपने गांव भी नहीं लौट सकता क्योंकि ट्रेने और बस बंद हो चुकी है, पैसे भी नहीं है . वह समझ ही नहीं पा रहा था कि वह करे तो क्या करें . उसने फिर से ऊपर की ओर देखा कमरे से आसमान दिखाई नहीं दिया पर उसने मन ही मन भगवान को अवश्य याद किया .

‌उसे सुबह ही पता लगा था कि सरकार की ओर से खाने की व्यवस्था की गई है इसलिए वह ढ़ूढ़ते हुए यहां आ गया था . उसके जैसे यहां बहुत सारे लोग लाईन में लगे थे . वे लोग भी मजदूरी करने दूसरी जगह से आए थे . यहीं उसकी मुलाकात मदन से हुई थी जो उसके पास वाले जिले में था .  उसे से ही उसे पता चला कि बहुत सारे मजदूर शाम को पैदल ही अपने अपने गांव लौट रहे हैं मदन भी उनके साथ जा रहा है .रामलाल को लगा कि यही अच्छा मौका है उसे भी इनके साथ गांव चले जाना चाहिए . पर क्या इतनी दूर पैदल चल पायेगा . पर अब उसके पास कोई विकल्प है भी नहीं यदि मकान मालिक ने जबरन उसे कमरे से निकाल दिया तो वह क्या करेगा .गहरी सांस लेकर उसने सभी के साथ गांव लौटने का मन बना लिया .

शाम को वह अपना सामान बोरे में भरकर निर्धारित स्थान पर पहुंच गया जहां मदन उसका इंतज़ार कर रहा था . सैंकड़ों की संख्या में उसके जैसे लोग थे जो अपना अपना सामान सिर पर रखकर पैदल चल रहे थे .इनमें बच्चे भी थे और औरतें भी .रात का अंधकार फैलता जा रहा था पर चलने वालों के कदम नहीं रूक रहे थे .कुछ अखबार वाले और कैमरा वाले सैकड़ों की इस भीड़ की फोटो खींच रहे थे . इसी कारण से पुलिस वालों ने उन्हें घेर लिया था  .वो गालियां बक रहे थे और लौट जाने का कह रहे थे .भीड़ उनकी बात सुन नहीं रही थी . पुलिस ने जबरन उन्हें रोक लिया था “आप सभी की जांच की जाएगी और रूकने की व्यवस्था की जाएगी कोई आगे नहीं बढ़ेगा” लाउडस्पीकर से बोला जा रहा था .सारे लोग रूक गये थे. एक एक कर सभी की जांच की गई .फिर सभी को इकट्ठा कर आग बुझाने वाली मशीन से दवा छिड़क दी गई . दवा की बूंदें पड़ते ही रामलाल की आंखों में जलन होने लगी थी . मदन भी आंख बंद किए कराह रहा था और भी लोगों को परेशानी हो रही थी पर कोई सुनने को तैयार ही नहीं था .दवा झिड़कने वाले कर्मचारी उल्टा सीधा बोल रहे थे . सारे लोगों को एक स्कूल में रोक दिया गया था . सैकड़ों लोग और कमरे कम . बिछाने के लिए केवल दरी थी . पानी के लिए हैंडपंप था . महिलाओं के लिए ज्यादा परेशानी थी . दो रोटी और अचार खाने को दे दिया गया था .

“साले हरामखोरों ने परेशान कर दिया” बड़बड़ाता हुआ एक कर्मचारी जैसे ही निकला एक महिला ने उसे रोक लिया “क्या बोला ….हरामखोर … अरे हम तो अच्छे भले जा रहे थे हमको जबरन रोक लिया और अब गाली दे रहे हैं” .

महिला की आवाज सुनकर और भी लोग इकट्ठा हो गए थे .

“सालों को जमाई जैसी सुविधाएं चाहिए …”

वह फिर बड़बड़या .

“रोकने की व्यवस्था नहीं थी तो काहे को रोका…दो सूखी रोटी देकर अहसान बता रहे हैं” . किसी ने जोर से बोला था ताकि सभी सुन लें . पर साहब को यह पसंद नहीं आया . उन्होंने हाथ में डंडा उठा लिया था “कौन बोला…जरा सामने तो आओ.. यहां मेरी बेटी की बारात लग रही है क्या ….जो तुम्हें छप्पन व्यंजन बनवाकर खिलवायें”.

सारे सकपका गये .वे समझ चुके थे कि उन्हें कुछ दिन ऐसे ही काटना पड़ेंगे .छोटे से कमरे में बहुत सारे लोग जैसे तैसे रात को सो लेते और दिन में बाहर बैठे रहते .बाथरूम तक की व्यवस्था नहीं थी औरतें बहुत परेशान हो रहीं थीं .कोई नेताजी आए थे उनसे मिलने .वहां के कर्मचारियों ने पहले ही बता दिया था कि कोई नेताजी से कोई शिकायत नहीं करेगा इसलिए बाकी  सारे लोग तो खामोश रहे पर एक बुजुर्ग महिला खामोश नहीं रह पाई . जैसे ही नेताजी ने मुस्कुराते हुए पूछा “कैसे हो आप लोग…. हमने आपके लिए बहुत सारी व्यवस्थाएं की है उम्मीद है आप अच्छे से होंगे”

बुजुर्ग महिला भड़क गई

“दो सूखी रोटी और सड़ी दाल देकर अहसान बता रहे हो .”

किसी को उम्मीद नहीं थी .सभी लोग सकपका गये . एक कर्मचारी उस महिला की ओर दोड़ा ,पर महिला खामोश नहीं हुई “हुजूर यहां कोई व्यवस्था नहीं है हम लोग एक कमरे में भेड़ बकरियों की तरह रह रहे हैं ”

नेताजी कुछ नहीं बोले .वे लौट चुके थे . उनके जाने के बाद सारे लोगों पर कहर टूट पड़ा था .

सरकार ने बस भिजवाई थी ताकि सभी लोग अपने अपने गांव लौट सकें . मदन और रामलाल एक ही बस में बैठ रहे थे ,तभी किसी महिला के रोने की आवाज सुनाई दी थी .उत्सुकता वश वो वहां पहुंच गया था .एक आदमी एक औरत के बाल पकड़ पीठ पर मुक्के मार रहा था . वह औरत दर्द से बिलबिला रही थी .

“इसे क्यों मार रहे हो भाई” रामलाल से सहन नहीं हो रहा था .

“ये तू बीच में मत पड़, ये मेरी घरवाली है समझ गया तू”

उसने अकड़ कर कहा

“अच्छा घरवाली है तो ऐसे मारोगे”

“तुझे क्या जा अपना काम कर”

रामलाल का खून खौलने लगा था “पर बता तो सही इसने किया क्या है”

“ये औरत मनहूस है इसके कारण ही मैं परेशान हो रहा हूं” ,कहते हुए उसने जोर से औरत के बाल खीचे .वह दर्द से रो पड़ी . रामलाल सहन नहीं कर सका . उसने औरत का हाथ पकड़ा और अपनी बस में ले आया .

“तुम  मेरे साथ बैठो देखता हूं कौन माई का लाल है जो तुम्हें हाथ लगायेगा”.

औरत बहुत देर तक सुबकती रही थी . कमला नाम बताया था उसने . उसने तो केवल यह सोचा था कि उसके आदमी का गुस्सा जब शांत हो जायेगा तो वो ही उसे ले जायेगा .पर वो उसे लेने नहीं आया “अच्छा ही हुआ उसने उसका जीवन खराब कर रखा था, पर वह यह जायेगी कहां” . प्रश्न तो रामलाल के थे पर उतर उसके पास नहीं था .बस से उतर कर उसने उसे साथ ले जाने का फैसला कर लिया था .

रामलाल के साथ कमला भी सोचती हुई कदम बढ़ा रही थी . उसे नहीं मालूम था कि उसका भविष्य क्या है पर रामलाल उसे अच्छा लगा था . वह जिन यातनाओं से होकर गुजरी है शायद उसे उनसे छुटकारा मिल जाए .

मां बाहर आंगन में बैठी ही मिल गई थी .

वह उनसे लिपट पड़ा ” मां….” उसकी आंखों से आंसू बह रहे थे . रो तो मां भी रही थी , जब से लाकडाउन लगा था तब से ही मां उसके लिए बैचेन थीं . उन्होंने उसे अपनी बाहों में जकड़ लिया था .दोनों रो रहे थे , कमला चुपचाप मां बेटे को रोता हुआ देख रही थी .अपने आंसू पौंछ कर उसने कमला की ओर इशारा किया “मां आपकी बहु…..”

चौंक गईं मां ” बहु ….. तूने बगैर मुझसे पूछे ब्याह रचा लिया ….?”

“वो मां मजबूरी थी लाकडाउन के कारण…. गांव आना था इसे कहां छोड़ता…. बेसहारा है न मां”

मां ने नजर भर कर कमला को देखा

“चल अच्छा किया”

मां ने कमला का माथा चूम लिया. Social Story

Hindi Love Stories : कायर – क्यों श्रेया ने श्रवण को छोड़ राजीव से विवाह कर लिया?

Hindi Love Stories : श्रेया के आगे खड़ी महिला जैसे ही अपना बोर्डिंग पास ले कर मुड़ी श्रेया चौंक पड़ी. बोली, ‘‘अरे तन्वी तू…तो तू भी दिल्ली जा रही है… मैं अभी बोर्डिंग पास ले कर आती हूं.’’

उन की बातें सुन कर काउंटर पर खड़ी लड़की मुसकराई, ‘‘आप दोनों को साथ की सीटें दे दी हैं. हैव ए नाइस टाइम.’’ धन्यवाद कह श्रेया इंतजार करती तन्वी के पास आई.

‘‘चल आराम से बैठ कर बातें करते हैं,’’ तन्वी ने कहा. हौल में बहुत भीड़ थी. कहींकहीं एक कुरसी खाली थी. उन दोनों को असहाय से एकसाथ 2 खाली कुरसियां ढूंढ़ते देख कर खाली कुरसी के बराबर बैठा एक भद्र पुरुष उठ खड़ा हुआ. बोला, ‘‘बैठिए.’’ ‘‘हाऊ शिवैलरस,’’ तन्वी बैठते हुए बोली, ‘‘लगता है शिवैलरी अभी लुप्त नहीं हुई है.’’

‘‘यह तो तुझे ही मालूम होगा श्रेया…तू ही हमेशा शिवैलरी के कसीदे पढ़ा करती थी,’’ तन्वी हंसी, ‘‘खैर, छोड़ ये सब, यह बता तू यहां कैसे?’’‘‘क्योंकि मेरा घर यानी आशियाना यहीं है, दिल्ली तो एक शादी में जा रही हूं.’’ ‘‘अजब इत्तफाक है. मैं एक शादी में यहां आई थी और अब अपने आशियाने में वापस दिल्ली जा रही हूं.’’

‘‘मगर जीजू तो सिंगापुर में सैटल्ड थे?’’ ‘‘हां, सर्विस कौंट्रैक्ट खत्म होने पर वापस दिल्ली आ गए. नौकरी के लिए भले ही कहीं भी चले जाएं, दिल्ली वाले सैटल कहीं और नहीं हो सकते.’’ ‘‘वैसे हूं तो मैं भी दिल्ली की, मगर अब भोपाल छेड़ कर कहीं और नहीं रह सकती.’’

‘‘लेकिन मेरी शादी के समय तो तेरा भी दिल्ली में सैटल होना पक्का ही था,’’ श्रेया ने उसांस भरी. ‘‘हां, था तो पक्का ही, मगर मैं ने ही पूरा नहीं होने दिया और उस का मुझे कोई अफसोस भी नहीं है. अफसोस है तो बस इतना कि मैं ने दिल्ली में सैटल होने का मूर्खतापूर्ण फैसला कैसे कर लिया था.’’

‘‘माना कि कई खामियां हैं दिल्ली में, लेकिन भई इतनी बुरी भी नहीं है हमारी दिल्ली कि वहां रहने की सोचने तक को बेवकूफी माना जाए,’’ तन्वी आहत स्वर में बोली.

‘‘मुझे दिल्ली से कोई शिकायत नहीं है तन्वी,’’ श्रेया खिसिया कर बोली, ‘‘दिल्ली तो मेरी भी उतनी ही है जितनी तेरी. मेरा मायका है. अत: अकसर जाती रहती हूं वहां. अफसोस है तो अपनी उस पसंद पर जिस के साथ दिल्ली में बसने जा रही थी.’’

तन्वी ने चौंक कर उस की ओर देखा. फिर कुछ हिचकते हुए बोली, ‘‘तू कहीं श्रवण की बात तो नहीं कर रही?’’ श्रेया ने उस की ओर उदास नजरों से देखा. फिर पूछा, ‘‘तुझे याद है उस का नाम?’’

‘‘नाम ही नहीं उस से जुड़े सब अफसाने भी जो तू सुनाया करती थी. उन से तो यह पक्का था कि श्रवण वाज ए जैंटलमैन, ए थौरो जैंटलमैन टु बी ऐग्जैक्ट. फिर उस ने ऐसा क्या कर दिया कि तुझे उस से प्यार करने का अफसोस हो रहा है? वैसे जितना मैं श्रवण को जानती हूं उस से मुझे यकीन है कि श्रवण ने कोई गलत काम नहीं किया होगा जैसे किसी और से प्यार या तेरे से जोरजबरदस्ती?’’

श्रेया ने मुंह बिचकाया, ‘‘अरे नहीं, ऐसा सोचने की तो उस में हिम्मत ही नहीं थी.’’‘‘तो फिर क्या दहेज की मांग करी थी उस ने?’’ ‘‘वहां तक तो बात ही नहीं पहुंची. उस से पहले ही उस का असली चेहरा दिख गया और मैं ने उस से किनारा कर लिया,’’ श्रेया ने फिर गहरी सांस खींची, ‘‘कुछ और उलटीसीधी अटकल लगाने से पहले पूरी बात सुनना चाहेगी?’’

‘‘जरूर, बशर्ते कोई ऐसी व्यक्तिगत बात न हो जिसे बताने में तुझे कोई संकोच हो.’’ ‘‘संकोच वाली तो खैर कोई बात ही नहीं है, समझने की बात है जो तू ही समझ सकती है, क्योंकि तूने अभीअभी कहा कि मैं शिवैलरी के कसीदे पढ़ा करती थी…’’

इसी बीच फ्लाइट के आधा घंटा लेट होने की घोषणा हुई. ‘‘अब टुकड़ों में बात करने के बजाय श्रेया पूरी कहानी ही सुना दे.’’‘‘मेरा श्रवण की तरफ झुकाव उस के शालीन व्यवहार से प्रभावित हो कर हुआ था. अकसर लाइबेरी में वह ऊंची शैल्फ से मेरी किताबें निकालने और रखने में बगैर कहे मदद करता था. प्यार कब और कैसे हो गया पता ही नहीं चला. चूंकि हम एक ही बिरादरी और स्तर के थे, इसलिए श्रवण का कहना था कि सही समय पर सही तरीके से घर वालों को बताएंगे तो शादी में कोई रुकावट नहीं आएगी. मगर किसी और ने चुगली कर दी तो मुश्किल होगी. हम संभल कर रहेंगे.

प्यार के जज्बे को दिल में समेटे रखना तो आसान नहीं होता. अत: मैं तुझे सब बताया करती थी. फाइनल परीक्षा के बाद श्रवण के कहने पर मैं ने उस के साथ फर्नीचर डिजाइनिंग का कोर्स जौइन किया था. साउथ इंस्टिट्यूट मेरे घर से ज्यादा दूर नहीं था.

श्रवण पहले मुझे पैदल मेरे घर छोड़ने आता था. फिर वापस जा कर अपनी बाइक ले कर अपने घर जाता था. मुझे छोड़ने घर से गाड़ी आती थी. लेने भी आ सकती थी लेकिन वन वे की वजह से उसे लंबा चक्कर लगाना पड़ता. अत: मैं ने कह दिया  था कि नजदीक रहने वाले सहपाठी के साथ पैदल आ जाती हूं. यह तो बस मुझे ही पता था कि बेचारा सहपाठी मेरी वजह से डबल पैदल चलता था. मगर बाइक पर वह मुझे मेरी बदनामी के डर से नहीं बैठाता था. मैं उस की इन्हीं बातों पर मुग्ध थी.

वैसे और सब भी अनुकूल ही था. हम दोनों ने ही इंटीरियर डैकोरेशन का कोर्स किया. श्रवण के पिता फरनिशिंग का बड़ा शोरूम खोलने वाले थे, जिसे हम दोनों को संभालना था. श्रवण का कहना था कि रिजल्ट निकलने के तुरंत बाद वह अपनी भाभी से मुझे मिलवाएगा और फिर भाभी मेरे घर वालों से मिल कर कैसे क्या करना है तय कर लेंगी.

लेकिन उस से पहले ही मेरी मामी मेरे लिए अपने भानजे राजीव का रिश्ता ले कर आ गईं. राजीव आर्किटैक्ट था और ऐसी लड़की चाहता था, जो उस के व्यवसाय में हाथ बंटा सके. मामी द्वारा दिया गया मेरा विवरण राजीव को बहुत पसंद आया और उस ने मामी से तुरंत रिश्ता करवाने को कहा.

‘‘मामी का कहना था कि नवाबों के शहर भोपाल में श्रेया को अपनी कला के पारखी मिलेंगे और वह खूब तरक्की करेगी. मामी के जाने के बाद मैं ने मां से कहा कि दिल्ली जितने कलापारखी और दिलवाले कहीं और नहीं मिलेंगे. अत: मेरे लिए तो दिल्ली में रहना ही ठीक होगा. मां बोलीं कि वह स्वयं भी मुझे दिल्ली में ही ब्याहना चाहेंगी, लेकिन दिल्ली में राजीव जैसा उपयुक्त वर भी तो मिलना चाहिए. तब मैं ने उन्हें श्रवण के बारे में सब बताया. मां ने कहा कि मैं श्रवण को उन से मिलवा दूं. अगर उन्हें लड़का जंचा तो वे पापा से बात करेंगी.

‘‘दोपहर में पड़ोस में एक फंक्शन था. वहां जाने से पहले मां ने मेरे गले में सोने की चेन पहना दी थी. मुझे भी पहननी अच्छी लगी और इंस्टिट्यूट जाते हुए मैं ने चेन उतारी नहीं. शाम को जब श्रवण रोज की तरह मुझे छोड़ने आ रहा था तो मैं ने उसे सारी बात बताई और अगले दिन अपने घर आने को कहा.

‘‘कल क्यों, अभी क्यों नहीं? अगर तुम्हारी मम्मी कहेंगी तो तुम्हारे पापा से मिलने के लिए भी रुक जाऊंगा,’’ श्रवण ने उतावली से कहा.‘‘तुम्हारी बाइक तो डिजाइनिंग इंस्टिट्यूट में खड़ी है.’’‘‘खड़ी रहने दो, तुम्हारे घर वालों से मिलने के बाद जा कर उठा लूंगा.’’‘‘तब तक अगर कोई और ले गया तो? अभी जा कर ले आओ न.’’‘‘ले जाने दो, अभी तो मेरे लिए तुम्हारे मम्मीपापा से मिलना ज्यादा जरूरी है.’’

सुन कर मैं भावविभोर हो गई और मैं ने देखा नहीं कि बिलकुल करीब 2 गुंडे चल रहे थे, जिन्होंने मौका लगते ही मेरे गले से चेन खींच ली. इस छीनाझपटी में मैं चिल्लाई और नीचे गिर गई. लेकिन मेरे साथ चलते श्रवण ने मुझे बचाने की कोई कोशिश नहीं करी. मेरा चिल्लाना सुन कर जब लोग इकट्ठे हुए और किसी ने मुझे सहारा दे कर उठाया तब भी वह मूकदर्शक बना देखता रहा और जब लोगों ने पूछा कि क्या मैं अकेली हूं तो मैं ने बड़ी आस से श्रवण की ओर देखा, लेकिन उस के चेहरे पर पहचान का कोई भाव नहीं था.

एक प्रौढ दंपती के कहने पर कि चलो हम तुम्हें तुम्हारे घर पहुंचा दें, श्रवण तुरंत वहां से चलता बना. अब तू ही बता, एक कायर को शिवैलरस हीरो समझ कर उस की शिवैलरी के कसीदे पढ़ने के लिए मैं भला खुद को कैसे माफ कर सकती हूं? राजीव के साथ मैं बहुत खुश हूं. पूर्णतया संतुष्ट पर जबतब खासकर जब राजीव मेरी दूरदर्शिता और बुद्धिमता की तारीफ करते हैं, तो मुझे बहुत ग्लानि होती है और यह मूर्खता मुझे बुरी तरह कचोटती है.’’

‘‘इस हादसे के बाद श्रवण ने तुझ से संपर्क नहीं किया?’’‘‘कैसे करता क्योंकि अगले दिन से मैं ने डिजाइनिंग इंस्टिट्यूट जाना ही छोड़ दिया. उस जमाने में मोबाइल तो थे नहीं और घर का नंबर उस ने कभी लिया ही नहीं था. मां के पूछने पर कि मैं अपनी पसंद के लड़के से उन्हें कब मिलवाऊंगी, मैं ने कहा कि मैं तो मजाक कर रही थी. मां ने आश्वस्त हो कर पापा को राजीव से रिश्ता पक्का करने को कह दिया. राजीव के घर वालों को शादी की बहुत जल्दी थी. अत: रिजल्ट आने से पहले ही हमारी शादी भी हो गई. आज तुझ से बात कर के दिल से एक बोझ सा हट गया तन्वी. लगता है अब आगे की जिंदगी इतमीनान से जी सकूंगी वरना सब कुछ होते हुए भी, अपनी मूर्खता की फांस हमेशा कचोटती रहती थी.’’

तभी यात्रियों को सुरक्षा जांच के लिए बुला लिया गया. प्लेन में बैठ कर श्रेया ने कहा, ‘‘मेरा तो पूरा कच्चा चिट्ठा सुन लिया पर अपने बारे में तो तूने कुछ बताया ही नहीं.’’‘‘दिल्ली से एक अखबार निकलता है दैनिक सुप्रभात…’’‘‘दैनिक सुप्रभात तो दशकों से हमारे घर में आता है,’’ श्रेया बीच में ही बोली, ‘‘अभी भी दिल्ली जाने पर बड़े शौक से पढ़ती हूं खासकर ‘हस्तियां’ वाला पन्ना.’’

‘‘अच्छा. सुप्रभात मेरे दादा ससुर ने आरंभ किया था. अब मैं अपने पति के साथ उसे चलाती हूं. ‘हस्तियां’ स्तंभ मेरा ही विभाग है.’’‘‘हस्तियों की तसवीर क्यों नहीं छापते आप लोग?’’‘‘यह तो पापा को ही मालूम होगा जिन्होंने यह स्तंभ शुरू किया था. यह बता मेरे घर कब आएगी, तुझे हस्तियों के पुराने संकलन भी दे दूंगी.’’‘‘शादी के बाद अगर फुरसत मिली तो जरूर आऊंगी वरना अगली बार तो पक्का… मेरा भोपाल का पता ले ले. संकलन वहां भेज देना.’’‘‘मुझे तेरा यहां का घर मालूम है, तेरे जाने से पहले वहीं भिजवा दूंगी.’’

दिल्ली आ कर श्रेया बड़ी बहन के बेटे की शादी में व्यस्त हो गई. जिस शाम को उसे वापस जाना था, उस रोज सुबह उसे तन्वी का भेजा पैकेट मिला. तभी उस का छोटा भाई भी आ गया और बोला, ‘‘हम सभी दिल्ली में हैं, आप ही भोपाल जा बसी हैं. कितना अच्छा होता दीदी अगर पापा आप के लिए भी कोई दिल्ली वाला लड़का ही देखते या आप ने ही कोई पसंद कर लिया होता. आप तो सहशिक्षा में पढ़ी थीं.’’

सुनते ही श्रेया का मुंह कसैला सा हो गया. तन्वी से बात करने के बाद दूर हुआ अवसाद जैसे फिर लौट आया. उस ने ध्यान बंटाने के लिए तन्वी का भेजा लिफाफा खोला ‘हस्तियां’ वाले पहले पृष्ठ पर ही उस की नजर अटक गई, ‘श्रवण कुमार अपने शहर के जानेमाने सफल व्यवसायी और समाजसेवी हैं. जरूरतमंदों की सहायता करना इन का कर्तव्य है. अपनी आयु और जान की परवाह किए बगैर इन्होंने जवान मनचलों से एक युवती की रक्षा की जिस में गंभीर रूप से घायल होने पर अस्पताल में भी रहना पड़ा. लेकिन अहं और अभिमान से यह सर्वथा अछूते हैं.’

हमारे प्रतिनिधि के पूछने पर कि उन्होंने अपनी जान जोखिम में क्यों डाली, उन की एक आवाज पर मंदिर के पुजारी व अन्य लोग लड़नेमरने को तैयार हो जाते तो उन्होंने बड़ी सादगी से कहा, ‘‘इतना सोचने का समय ही कहां था और सच बताऊं तो यह करने के बाद मुझे बहुत शांति मिली है. कई दशक पहले एक ऐसा हादसा मेरी मित्र और सहपाठिन के साथ हुआ था. चाहते हुए भी मैं उस की मदद नहीं कर सका था. एक अनजान मूकदर्शक की तरह सब देखता रहा था. मैं नहीं चाहता था कि किसी को पता चले कि वह मेरे साथ थी और उस का नाम मेरे से जुडे़ और बेकार में उस की बदनामी हो.

‘‘मुझे चुपचाप वहां से खिसकते देख कर उस ने जिस तरह से होंठ सिकोड़े थे मैं समझ गया था कि वह कह रही थी कायर. तब मैं खुद की नजरों में ही गिर गया और सोचने लगा कि क्या मैं उसे बदनामी से बचाने के लिए चुप रहा या सच में ही मैं कायर हूं? जाहिर है उस के बाद उस ने मुझ से कभी संपर्क नहीं किया. मैं यह जानता हूं कि वह जीवन में बहुत सुखी और सफल है. सफल और संपन्न तो मैं भी हूं बस अपनी कायरता के बारे में सोच कर ही दुखी रहता था पर आज इस अनजान युवती को बचाने के बाद लग रहा है कि मैं कायर नहीं हूं…’’

श्रेया और नहीं पढ़ सकी. एक अजीब सी संतुष्टि की अनुभूति में वह यह भी भूल गई कि उसे सुकून देने को ही तन्वी ने ‘हस्तियां’ कालम के संकलन भेजे थे और एक मनगढ़ंत कहानी छापना तन्वी के लिए मुश्किल नहीं था. Hindi Love Stories

Romantic Story In Hindi : सुबह होती है, शाम होती है

Romantic Story In Hindi : ‘‘आजफिर देर हो गई औफिस में?’’ आशिमा ने रोहन से पूछा.

‘‘हां…,’’ रोहन सिर्फ इतना बोला.

फिर आशिमा डाइनिंग टेबल पर खाना लगाने चल दी और रोहन हाथमुंह धो कर टीवी के सामने बैठ गया. इतनी संक्षिप्त बातचीत देख कर कौन कह सकता था इन की शादी को मात्र 2 वर्ष ही बीते थे. दोनों का दिन का सारा समय औफिस के काम बीतता था और जब घर लौट कर आते थे तो भी दोनों अपनेअपने लैपटौप पर ही व्यस्त रहते थे. शुरूशुरू में एकदूसरे के दफ्तर के कामकाज व कार्यप्रणाली पर दोनों में कुछ देर बातचीत हो जाया करती थी पर अब यह भी नहीं होता. एक दिन औफिस में आशिमा अपने कार्य में व्यस्त थी कि सैलफोन घनघना उठा. उस ने स्क्रीन पर पुरानी सहेली रिया का नाम देखा तो लपक कर फोन उठाया.

‘‘और भई, हाऊ इज लाइफ?’’ रिया पूरे उत्साह से बात कर रही थी.

‘‘कूल,’’ आशिमा को शायद संक्षिप्त बात करने की आदत हो गई थी.

‘‘कूल या फिर हौट?’’ रिया ने मजाकिया अंदाज में उसे छेड़ा.

‘‘अरे, क्या हौट यार. अपनीअपनी नौकरी में दोनों व्यस्त रहते हैं. आजकल तो फिल्म देखने भी नहीं जाते.’’

‘‘आशिमा, तेरी आवाज में वह बात नहीं. यार कोई बात हुई है क्या रोहन के साथ?’’ रिया पुरानी सहेली थी, आशिमा की सुस्ती को फौरन भांप गई.

‘‘नहींनहीं, ऐसा कुछ नहीं,’’ आशिमा बोली.

‘‘तो ठीक है. मैं इस वीकैंड का प्रोग्राम बना रही हूं. उस दिन सुबह 10 बजे मिलते हैं और कहीं घूमने चलते हैं.’’

आशिमा ने देर रात जब रोहन घर लौटा तो उसे रिया से मुलाकात का प्रोग्राम बताया और बोली, ‘‘तुम भी चलो न. शनिवार को तो छुट्टी है न तुम्हारी. काफी दिनों से हम कहीं गए भी नहीं हैं.’’

‘‘नहीं आशिमा इस शनिवार शायद औफिस जाना पड़ेगा.’’

‘‘तो फिर मैं रिया से मिलने का प्रोग्राम इतवार का रख लेती हूं.’’

‘‘एक दिन तो मिलेगा छुट्टी का. उस दिन मैं जी भर कर सोऊंगा. तुम अपना प्रोग्राम मेरी वजह से मत खराब करो. वैसे भी तुम्हारी सहेली है, तुम्हीं मिल आओ,’’ कह कर रोहन अपने लैपटौप पर व्यस्त हो गया. उस का रोज का यही नियम था. खाना खातेखाते डाइनिंग टेबल पर लैपटौप पर कुछ काम निबटाना और फिर टीवी में खो जाना. साढे़ 11 बजे तक आशिमा साथ बैठी टीवी पर कुछ न कुछ देखती रही. फिर वह गुडनाइट कह कर सोने चल दी.

‘‘गुडनाइट. तुम सो जाओ, तुम्हें सुबह जल्दी उठना है. मैं यह प्रोग्राम देख कर आऊंगा.’’ बिस्तर पर अकेली लेटी आशिमा अपनी शादीशुदा जिंदगी को रिवाइंड करने लगी. दोनों परिवारों ने अपने रिश्तेदारों की सहायता से रिश्ता तय किया था. पूर्णतया अजनबी होते हुए भी 2-3 मुलाकातों में ही आशिमा और रोहन एकदूसरे को पसंद करने लगे थे. दोनों की जोड़ी देखने में जितनी सुंदर लगती थी, उतनी ही दोनों के स्वभाव में भी एकरसता थी. कोर्टशिप पीरियड को दोनों ने जी भर कर ऐंजौय किया था. फिल्में देखना, मौल में शौपिंग, सैरसपाटा और बचपन से ले कर आज तक की ढेर सारी बातें. कितने मधुर दिन थे वे. अब लगता है जैसे सारी बातें तभी खत्म कर दी थीं दोनों ने. शादी के बाद कुछ महीनों तक दोनों औफिस से टाइम पर घर लौट आते. कभी दोस्तों के यहां घूम आते, तो कभी यों ही लौंग ड्राइव पर सैर को निकल जाते. और तो और सब्जी या ग्रौसरी खरीदना भी एक ऐडवैंचर सा लगता था. धीरेधीरे यही काम जिम्मेदारी लगने लगे और फिर मंदी की मार में अपनी जौब बचाए रखना एक कठिन लक्ष्य बन गया. काम और सिर्फ काम. केवल औफिस का काम ही जीवन बन कर रह गया. ‘काम’ शब्द का एक और अर्थ होता है जिसे वे जैसे भूल से गए थे. हर रात थक कर ऐसे बिस्तर पर पड़ते थे कि कब सुबह हुई पता ही नहीं चलता था. बस, समय की सूइयों ने भागभाग कर शादी के 2 साल पूरे कर डाले थे. अब तो महानगर की जिंदगी की भागदौड़, परेशानियां और स्ट्रैस से निबटना ही सुबह से रात तक का टारगेट होता था. शनिवार की शाम रिया के साथ बिता कर आशिमा एक बार फिर फै्रश हो गई. हंसीमजाक और टांगखिंचाई से पुरानी यादें ताजा हो आईं.

रात उस ने डिनर में रोहन की पसंदीदा डिश बनाई. उसे चहकता देख कर रोहन भी खुश था और काफी समय बाद आज रात दोनों ने एकदूसरे को जी भर कर प्यार किया, केवल खानापूर्ति नहीं की. इस से आशिमा को लगा कि जीवन में खुशहाली लाते रहने के लिए दोस्तों से मिलनाजुलना कितना जरूरी है. उस ने इस बात पर गौर किया और ठाना ही था कि वह पुराने दोस्तों से एक बार फिर तार जोड़ेगी कि एक दिन अचानक उस की फेसबुक पर अपने कालेज के दोस्तों मनमीत से मुलाकात हो गई. फिर फेसबुक पर दोनों ने चैटिंग की और मिलने का प्रोग्राम बनाया. घर लौट कर वह रोहन से भी यह खुशी बांटना चाहती थी, किंतु रोज की तरह रोहन फिर इतनी देर से आया कि आशिमा पर थकान व नींद हावी हो चुकी थी. एक शाम दफ्तर से निकलते समय आशिमा ने मनमीत को गेट पर खड़ा पाया.

‘‘ओह, व्हाटए सरप्राइज,’’ कह वह उछल पड़ी.

‘‘मैं ने सोचा तुम बस प्रोग्राम ही बनाती रहोगी, इसलिए मैं आज ही चला आया.’’

मनमीत बातचीत में बेबाक व मस्त था. कालेज में भी वह जिस महफिल में जाता, समां बांध देता. यथा नाम तथा गुण.

‘‘अरे सुनाओ, कैसी चल रही है शादीशुदा जिंदगी?’’ आशिना के साथ एक रैस्टोरैंट के कोने में बैठ मनमीत ने पूछा.

‘‘चल नहीं, दौड़ रही है. हम तो बस पकड़ने की कोशिश कर रहे हैं. देखो न पता भी नहीं चला कब 2 साल बीत गए,’’ आशिमा अपने दोस्त से मन की बातें बांटने लगी, ‘‘सच कहूं तो मनमीत, इतने बिजी रहते हैं हम दोनों कि एकदूसरे के लिए, अपनी भावनाओं के लिए समय ही नहीं है हमारे पास. और दुख तो इस बात का है कि दोष किसे दूं यह भी समझ नहीं आता.’’

‘‘चलो, कोई बात नहीं. इस में दिल क्यों छोटा करती हो? दोस्त कब काम आएंगे?’’ मनमीत के दिलासे पर आशिमा खुश हो गई और अपनी सहूलत अनुसार दोनों ने अगली मुलाकात में फिल्म देखने का प्रोग्राम बनाया.

उस शाम आशिमा फिर चहक रही थी. रोहन के घर में घुसते ही वह मनमीत से मुलाकात का पूरा वाकेआ तसल्ली से बयान करने लगी. रोहन भी खुश हो गया आशिमा को इतना खुश देख कर. कभीकभी रोजमर्रा की जिंदगी हमारी खुशियों की कीमत मांगने लगती है. यही तो हो रहा था आशिमा और रोहन के साथ एकदूसरे से प्यार करते हुए भी, एकसाथ एक छत के नीचे रहते हुए भी दोनों कितने अकेले जीने लगे थे.

‘‘रोहन, तुम भी चलो न मूवी देखने. मैं और मनमीत अगले वीकैंड का प्रोग्राम बना रहे हैं,’’ रोहन का उस पर विश्वास और उस के जरा भी शक्की स्वभाव न होने के कारण ही आशिमा अपना हर प्रोग्राम बेझिझक उसे बता देती थी.’’

‘‘अगले वीकैंड…,’’ कुछ सोचते हुए रोहन बोला, ‘‘सौरी आशिमा, अगले शुक्रवार तो मुझे टूर पर अहमदाबाद जाना होगा. 3-4 दिन लग जाएंगे वहां पर,’’ फिर आगे कहने लगा, ‘‘लेकिन तुम मूवी देख आओ अपने फै्रंड के साथ कालेज की मस्ती भरी यादें ताजा हो जा जाएंगी.’’

फिर  समय बीतता गया और शानिवार आ गया. मनमीत पहले से उस का इंतजार कर रहा था. वाकई कालेज के दिनों की यादों में आज भी वह शक्ति थी कि सुस्ती भरे जीवन में स्फूर्ति भर दे. दोनों ने फिल्म देखी, जी भर कर बातें कीं और डिनर के बाद मनमीत आशिमा को घर छोड़ गया. धीरेधीरे आशिमा और मनमीत अकसर मिलने लगे. इन मुलाकातों का श्रेय मनमीत को जाता, क्योंकि प्रोग्राम वही बनाता. आशिमा को उस के दफ्तर से लेता और बाद में उसे घर भी छोड़ता. 1-2 बार रोहन से भी मुलाकात हुई मनमीत की. इस बार फिर रोहन काम के सिलसिले में कई दिनों के लिए शहर से बाहर गया हुआ था. और मनमीत आशिमा को घर छोड़ने आया था. आशिमा दोनों के लिए चाय बना कर लाई तो उस ने मनमीत चेहरे पर अजीब से असमंजस व परेशानी के भाव पढ़े

‘अरे, अभी शाम को तो ठीक था इस का मूड अचानक क्या हो गया? क्या मेरी कोई बात बुरी लग गई?’ आशिमा विचार करने लगी. फिर चाय देते हुए पूछ ही बैठी, ‘‘क्या हुआ मनमीत, किन खयालों ने आ घेरा?’’

‘‘सुबह होती है, शाम होती है, उम्र यों ही तमाम होती है,’’ गंभीर भाव से मनमीत बुदबुदाया.

‘‘क्या मतलब?’’

‘‘तुम मेरे साथ खुश रहती हो न, आशिमा?’’ उस के इस अटपटे प्रश्न से आशिमा अचंभित थी.

‘‘हां, क्यों? ऐसे क्यों पूछ रहे हो?’’

‘‘मैं…मैं…आज से नहीं बल्कि कालेज के दिनों से…मुझे गलत मत समझना.’’

‘‘समझूंगी तो तब जब कुछ बोलोगे,’’ आशिमा बेफिक्री से हंस कर बोली.

‘‘आशिमा, मैं देख रहा हूं कि रोहन केवल अपने काम में मशगूल रहता है. तुम्हें तो वह समय ही नहीं देता. तुम्हारी शादी को महज 2 साल हुए हैं और तुम दोनों बासी हो गए एकदूसरे के लिए. ऐसे जिंदगी बरबाद करना क्या उचित है? एक तरफ रोहन के साथ यह घिसीपिटी जिंदगी और दूसरी तरफ मेरे साथ पूरी मौजमस्ती भरा जीवन,’’ मनमीत अपनी बात पूरी भूमिका के साथ कह रहा था.

‘‘इसीलिए तो दोस्त होते हैं, डियर,’’ आशिमा अब भी मनमीत की बात के आशय से अनभिज्ञ थी.

‘‘तुम शायद समझीं नहीं,’’ मनमीत कुछ सोचने लगा. फिर एकबारगी हिम्मत जुटा कर बोला,’’ मैं तुम्हें चाहता हूं, आशिमा. मैं यह जीवन तुम्हारे साथ, तुम्हारी खिलखिलाती हंसी के साथ, तुम्हारी जीवंत आंखों के साथ, तुम्हारे नेकदिल के साथ गुजारना चाहता हूं.’’ चाय का घूट आशिमा के गले में अटक गया. खांसी का दौरा पड़ गया उसे. आंखों से पानी बहने लगा. उस की यह हालत देख कर मनमीत दौड़ कर रसोई से पानी का गिलास लाया. पर तब तक आशिमा ने स्वयं को संभाल लिया था. उस ने पानी पीने से इनकार कर दिया. एक अजीब सी चुप्पी तैर गई कमरे की हवा में. दोनों नीचे नजरें किए बैठे रहे कुछ देर. फिर आशिमा अचानक खड़ी हो गई और बोली, ‘‘बहुत रात हो चुकी है, मनमीत, तुम अपने घर जाओ.’’

मनमीत चुपचाप चला गया. उस के जाने के बाद आशिमा फूटफूट कर रोने लगी. कुछ मनमीत की बात पर नाराजगी, कुछ ऐसी बात करने की उस की हिम्मत पर गुस्सा, अचानक रोहन की याद और आज एक अच्छा मित्र छूट जाने का गम. वह सोचती जा रही थी कि उस की किस बात से मनमीत ने यह निष्कर्ष निकाल लिया होगा कि वह रोहन के साथ खुश नहीं है? ऐसी बात कर के उस ने हमेशा के लिए अपनी देस्त खो दी थी. आशिमा फिर उदास हो गई और इस बार पहले से कहीं अधिक. 2 दिन बाद रोहन के लौटने पर भी वह खुश न हुई. सब कार्य यथावत कर रही थी किंतु उस के चेहरे पर फैली उदासी को रोहन ने फौरन भांप लिया. ‘‘क्या बात है आशिमा, ऐसे चुपचुप क्यों हो?’’ उसे बांहों में भरते हुए जैसे ही रोहन ने पूछा कि उस की भावनाओं का बांध टूट गया. वह बिलखबिलख कर रो पड़ी. रोहन घबरा गया. असमंजस में था कि आशिमा को हुआ क्या? बहलाफुसला कर उस ने आशिमा को चुप कराया, पानी पिलाया, बिस्तर पर बैठाया. शांत होने पर आशिमा ने सारी बात रोहन को बताई. उस की बात सुन कर रोहन भी गंभीर हो गया.

‘‘मुझे क्या पता था कि मेरी साफसुथरी  दोस्ती को मनमीत ऐसा रुख दे देगा. मैं तो सोच भी नहीं सकती थी कि वह मेरे बारे में ऐसे विचार पाले हुए है,’’ आशिमा अब भी मनमीत की बात से परेशान थी.

‘‘ इस में गलती मनमीत की कम और मेरी ज्यादा है,’’ रोहन की इस बात पर आशिमा हतप्रभ हो उस का मुंह देखने लगी. फिर, ‘‘क्या मतलब?’’ उस ने पूछा.

‘‘मानो न मानो आशिमा, मनमीत ने हमारी जिंदगी में पसर चुकी रोजमर्रा की उबासी को सही पकड़ा. यदि हमारे जीवन में ताजगी होती तो वह ऐसी बात कभी न सोचता. हो सकता है वह कालेज के दिनों में तुम्हें चाहता रहा हो. आखिर तुम हो ही चाहने लायक. पर आज तुम से मिल कर उसे लगा कि तुम सिर्फ जिम्मेदारियां निभा रही हो, जिंदगी नहीं जी रहीं. और इस में उसे मेरी कमी दिखाई दी.’’

‘‘कैसी बातें कर रहे हो तुम?’’ आशिमा को रोहन की बातें नागवार गुजर रही थीं.

‘‘मैं ठीक कह रहा हूं. हमें इस जिंदगी को एकदूसरे को फौर ग्रांटेड नहीं लेना चाहिए. हम जानते हैं, पढ़ते हैं कि हर रिश्ते में बासीपन आ जाता है जिसे हटाने के लिए प्रयास करते रहना चाहिए, लेकिन हम ने किया तो कुछ नहीं न.

‘‘मनमीत ने यह कहा था न कि सुबह होती है, शाम होती है, उम्र यों ही तमाम होती है. सही बात याद दिला गया वह. सुबह और शाम को तो रोक नहीं सकते हम, किंतु उम्र को यों ही तमाम नहीं होने दूंगा मैं अब,’’ फिर थोड़ी देर खामोश रहने के बाद आगे कहने लगा, ‘‘अब यही होगा कि साल में 2 बार छुट्टी ले कर हम घूमने का और हर महीने एक फिल्म का प्रोग्राम बनाएंगे. और हर रात…’’ कहतेकहते उस ने आशिमा को अपने सीने से लगा लिया. रोहन के आगोश में सिमटी आशिमा मुसकराई फिर बोली, ‘‘अरेअरे, लाइट तो बंद करने दो.’’ Romantic Story In Hindi

Family Story : अविश्वास – रश्मि ने अपने अकेलेपन को खत्म करने के लिए क्या तय किया ?

Family Story : अपने काम निबटाने के बाद मां अपने कमरे में जा लेटी थीं. उन का मन किसी काम में नहीं लग रहा था. शिखा से फोन पर बात कर वे बेहद अशांत हो उठी थीं. उन के शांत जीवन में सहसा उथलपुथल मच गई थी. दोनों रश्मि और शिखा बेटियों के विवाह के बाद वे स्वयं को बड़ी हलकी और निश्चिंत अनुभव कर रही थीं. बेटेबेटियां अपनेअपने घरों में सुखी जीवन बिता रहे हैं, यह सोच कर वे पतिपत्नी कितने सुखी व संतुष्ट थे.

शिखा की कही बातें रहरह कर उन के अंतर्मन में गूंज रही थीं. वे देर तक सूनीसूनी आंखों से छत की तरफ ताकती रहीं. घर में कौन था, जिस से कुछ कहसुन कर वे अपना मन हलका करतीं. लेदे कर घर में पति थे. वे तो शायद इस झटके को सहन न कर सकें.

दोनों बेटियों की विदाई पर उन्होंने अपने पति को मुश्किल से संभाला था. बारबार यही बोल उन के दिल को तसल्ली दी थी कि बेटी तो पराया धन है, कौन इसे रख पाया है. समय बहुत बड़ा मलहम है. बड़े से बड़ा घाव समय के साथ भर जाता है, वे भी संभल गए थे.

बड़ी बेटी रश्मि के लिए उन के दिल में बड़ा मोह था. रश्मि के जाने के बाद वे बेहद टूट गए थे. रश्मि को इस बात का एहसास था, सो हर 3-4 महीने बाद वह अपने पति के साथ पिता से मिलने आ जाती थी.

शादी के कई वर्षों बाद भी भी रश्मि मां नहीं बन सकी थी. बड़ेबड़े नामी डाक्टरों से इलाज कराया गया, पर कोईर् परिणाम नहीं निकला. हर बार नए डाक्टर के पास जाने पर रश्मि के दिल में आशा की लौ जागती, पर निराशारूपी आंधी उस की लौ को निर्ममता से बुझा जाती. किसी ने आईवीएफ तकनीक से संतान प्राप्ति का सुझाव दिया लेकिन आईवीएफ तकनीक में रश्मि को विश्वास न था.

अकेलापन जब असह्य हो उठा तो रश्मि ने तय किया कि वह अपनी पढ़ाई जारी रखेगी.

‘सुनो, मैं एमए जौइन कर लूं?’

‘बैठेबैठे यह तुम्हें क्या सूझा?’

‘खाली जो बैठी रहती हूं, इस से समय भी कट जाएगा और कुछ ज्ञान भी प्राप्त हो जाएगा.’

‘मुझे तो कोई एतराज नहीं, पर बाबूजी शायद ही राजी हों.’

‘ठीक है, बाबूजी से मैं स्वयं बात कर लूंगी.’

उस रात बाबूजी को खाना परोसते हुए रश्मि ने अपनी इच्छा जाहिर की तो एक पल को बाबूजी चुप हो गए. रश्मि समझी शायद बाबूजी को मेरी बात बुरी लगी है. अनुभवी बाबूजी समझ गए कि रश्मि ने अकेलेपन से ऊब कर ही यह इच्छा प्रकट की है. उन्होंने रश्मि को सहर्ष अनुमति दे दी.

कालेज जाने के बाद नए मित्रों और पढ़ाई के बीच 2 साल कैसे कट गए, यह स्वयं रश्मि भी न जान सकी. रश्मि ने अंगरेजी एमए की परीक्षा प्रथम श्रेणी में पास कर ली. उस के ससुर ने उसे एक हीरे की सुंदर अंगूठी उपहार में दी.

शिखा की शादी तय हो गई थी. रश्मि के लिए शिखा छोटी बहन ही नहीं, मित्र व हमराज भी थी. शिखा ने व्हाट्सऐप पर लिखा कि, ‘सच में बड़ी खुशी की बात यह है कि तुम्हारे जीजाजी का तुम्हारे शहर में अपने व्यापार के संबंध में खूब आनाजाना रहेगा. मुझे तो बड़ी खुशी है कि इसी बहाने तुम्हारे पास हमारा आनाजाना लगा रहेगा.’

व्हाट्सऐप में मैसेज देख कर और उस में लिखा पढ़ कर रश्मि खिल उठी थी. कल्पना में ही उस ने अनदेखे जीजाजी के व्यक्तित्व के कितने ही खाके खींच डाले थे, पर दिल में कहीं यह एहसास भी था कि शिखा के चले जाने के बाद मां और बाबूजी कितने अकेले हो जाएंगे.

शिखा की शादी में रमेश से मिल कर रश्मि बहुत खुश हुई, कितना हंसमुख, सरल, नेक लड़का है. शिखा जरूर इस के साथ खुश रहेगी. रमेश भी रश्मि से मिल कर प्रभावित हुआ था. उस का व्यक्तित्व ही ऐसा था. शिखा की शादी के बाद एक माह रश्मि मांबाप के पास ही रही थी, ताकि शिखा की जुदाई का दुख उस की उपस्थिति से कुछ कम हो जाए.

शिखा अपने पति के साथ रश्मि के घर आतीजाती रही. हर बार रश्मि ने उन की जी खोल कर आवभगत की. उन के साथ बीते दिन यों गुजर जाते कि पता ही न लगता कि कब वे लोग आए और कब चले गए. उन के जाने के बाद रश्मि के लिए वे सुखद स्मृतियां ही समय काटने को काफी रहतीं.

शिखा शादी के बाद जल्द ही एकएक कर 2 बेटियों की मां बन गई थी. रश्मि ने शिखा के हर बच्चे के स्वागत की तैयारी बड़ी धूमधाम और लगन से की. अपने दिल के अरमान वह शिखा की बेटियों पर पूरे कर रही थी. मनोज भी रश्मि को खुश देख कर खुश था. उस की जिंदगी में आई कमी को किसी हद तक पूरी होते देख उसे सांत्वना मिली थी.

शिखा के तीसरे बच्चे की खबर सुन कर रश्मि अपने को रोक न सकी. शिखा की चिंता उस के शब्दों से साफ प्रकट हो रही थी. उस ने तय कर लिया कि वह शिखा के इस बच्चे को गोद ले लेगी. इस से उस के अपने जीवन का अकेलापन, खालीपन तथा घर का सन्नाटा दूर हो जाएगा. बच्चे की जरूरत उस घर से ज्यादा इस घर में है. रश्मि ने जब मनोज के सामने अपनी इच्छा जाहिर की तो मनोज ने सहर्ष अपनी अनुमति दे दी.

‘शिखा, घबरा मत, तेरे ऊपर यह बच्चा भार बन कर नहीं आ रहा है. इस बच्चे को तुम मुझे दे देना. मुझे अपने जीवन का अकेलापन असह्य हो उठा है. तुम अगर यह उपकार कर सको तो आजन्म तुम्हारी आभारी रहूंगी.’ रश्मि ने शिखा से फोन पर बात की.

शाम को जब रमेश घर आया तब शिखा ने मोबाइल पर हुई सारी बात उसे बताई.

‘रश्मि मुझे ही गोद क्यों नहीं ले लेती, उसे कमाऊ बेटा मिल जाएगा और मुझे हसीन मम्मी.’ रमेश ने मजाक किया.

‘क्या हर वक्त बच्चों जैसी बातें करते हो. कभी तो बात को गंभीरता से लिया करो.’

रमेश ने गंभीर मुद्रा बनाते हुए कहा, ‘लो, हो गया गंभीर, अब शुरू करो अपनी बात.’

नाराज होते हुए शिखा कमरे से जाने लगी तो रमेश ने उस का आंचल खींच लिया, ‘बात पूरी किए बिना कैसे जा रही हो?’

‘रश्मि के दर्द व अकेलेपन को नारी हृदय ही समझ सकता है. हमारा बच्चा उस के पास रह कर भी हम से दूर नहीं रहेगा. हम तो वहां आतेजाते रहेंगे ही. ‘हां’ कह देती हूं.’

‘बच्चे पर मां का अधिकार पिता से अधिक होता है. तुम जैसा चाहो करो, मेरी तरफ से स्वतंत्र हो.’

शिखा ने रश्मि को अपनी रजामंदी दे दी. सुन कर रश्मि ने तैयारियां शुरू कर दीं. इस बार वह मौसी की नहीं, मां की भूमिका अदा कर रही थी. उस की खुशियों में मनोज पूरे दिल से साथ दे रहा था.

ऐसे में एक दिन उसे पता चला कि वह स्वयं मां बनने वाली है. रश्मि डाक्टर की बात का विश्वास ही न कर सकी.

उस ने अपने हाथों पर चिकोटी काटी.

मनोज ने खबर सुनते ही रश्मि को चूम लिया.

उसी रात रश्मि ने शिखा को फोन किया, ‘शिखा, तेरा यह बच्चा मेरे लिए दुनियाजहान की खुशियां ला रहा है. सुनेगी तो विश्वास नहीं आएगा. मैं मां बनने वाली हूं. कहीं तेरे बच्चे को गोद लेने के बाद मां बनती तो शायद तेरे बच्चे के साथ पूरा न्याय न कर पाती.’ रश्मि की आवाज में खुशी झलक रही थी.

‘आज मैं इतनी खुश हूं कि स्वयं मां बनने पर भी इतनी खुश न हुई थी. 14 साल बाद पहली बार तुम्हारे घर में खुशी नाचेगी,’ शिखा बहन की इस खुशी से दोगुनी खुश हो कर बोली.

मां और बाबूजी भी यह खुशखबरी सुन कर आ गए थे. रश्मि के ससुर की खुशी का ठिकाना ही न था.

रश्मि ने अपनी बेटी का नाम प्रीति रखा था. प्रीति घरभर की लाड़ली थी. शिखा व रमेश का आनाजाना लगा ही रहता. शिखा के तीसरा बच्चा बेटा था. रश्मि ने यही सोच कर कि घर में बेटा होना भी जरूरी है, शिखा से उस का बेटा नहीं मांगा.

रश्मि की खुशियां शायद जमाने को भायी नहीं. शिखा व रमेश रश्मि के पास आए हुए थे. उन की दूर की मौसी प्रीति को देखने आई थीं. रश्मि को बधाई देते हुए उन्होंने कहा, ‘रश्मि, तेरा रूप बिटिया न ले सकी. यह तो अपने मौसामौसी की बेटी लगती है.’

‘यह तो अपनेअपने समझने की बात है, मौसी, मैं प्रीति को अपनी बेटी से बढ़ कर प्यार करता हूं.’

मौसी का कथन और रमेश का समर्थन शिखा के दिल में तीर बन कर चुभ गए. जिन आंखों से प्रीति के लिए प्यार उमड़ता था, वही आंखें अब उस का कठोर परीक्षण कर रही थीं. प्रीति का हर अंग उसे रमेश के अंग से मेल खाता दिखाई देने लगा. प्रीति की नाक, उस की उंगलियां रमेश से कितनी मिलती हैं, तो क्या प्रीति रमेश की बेटी है? शिखा के दिल में संदेह का बीज पनपने लगा. मौसी का विषबाण अपना काम कर चुका था.

‘रश्मि बच्चे की चाह में इतना गिर सकती है और रमेश ने मेरे विश्वास का यही परिणाम दिया,’ शिखा सोचती रही, कुढ़ती रही.

घर  लौटते ही शिखा उबल पड़ी. सुनते ही रमेश सन्नाटे में आ गया. यह रश्मि की सगी बहन बोल रही है या कोई शत्रु?

‘तुम पढ़ीलिखी हो कर भी अनपढ़ों जैसा व्यवहार कर रही हो. तुम में विश्वास नाम की कोई चीज ही नहीं. इतना ही भरोसा है मुझ पर.’

‘अविश्वास की बात ही क्या रह जाती है? प्रीति का हर अंग गवाह है कि तुम्हीं उस के बाप हो. औरत सौत को कभी बरदाश्त नहीं कर पाती, चाहे वह उस की सगी बहन ही क्यों न हो.’

‘किसी के रूपरंग का किसी से मिलना क्या किसी को दोषी मानने के लिए काफी है? गर्भावस्था में मां की आंखों के सामने जिस की तसवीर होती है, बच्चा उसी के अनुरूप ढल जाता है.’

‘अपनी डाक्टरी अपने पास रखो, तुम्हारी कोई सफाई मेरे लिए पर्याप्त नहीं.’

‘डाक्टर राजेश को तो जानती हो न? उस की बेटी के बाल सुनहरे हैं, पर पतिपत्नी में से किस के बाल सुनहरे हैं? राजेश ने तो आज तक कोई तोहमत अपनी पत्नी पर नहीं लगाई.’

‘मैं औरत हूं, मेरे अंदर औरत का दिल है, पत्थर नहीं.’

बेचैनी में शिखा अपनी परेशानी मां को बता चुकी थी. उस की रातें जागते कटतीं, भूख खत्म हो गई थी. फोन करने के बाद मां कितनी बेचैन हो उठेंगी, यह उस ने सोचा ही न था.

मां अंदर ही अंदर परेशान हो उठीं. दोपहर को जब पति सोने चले गए तो उन्होंने शिखा को फोन किया, ‘‘तुम्हारी बात ने मुझे बहुत अशांत कर दिया है. रश्मि तुम्हारी बहन है, रमेश तुम्हारा पति, तुम उन के संबंध में ऐसा सोच भी कैसे सकती हो. रश्मि अगर 14 साल बाद मां बनी है तो इस का अर्थ यह तो नहीं कि तुम उस पर लांछन थोप दो. तुम्हारा अविश्वास तुम्हारे घर के साथसाथ रश्मि का घर भी ले डूबेगा. जिंदगी में सुख व खुशी हासिल करने के लिए विश्वास अत्यंत आवश्यक है. बसेबसाए घरों में आग मत लगाओ. रश्मि को इतने वर्षों बाद खुश देख कर कहीं तुम्हारी ईर्ष्या तो नहीं जाग उठी?’’

मां से बात करने के बाद शिखा के अशांत मन में हलचल सी उठी. सचाई सामने होते आंखें कैसे मूंदी जा सकती हैं. बातबात पर झल्ला जाना, पति पर व्यंग्य कसना शिखा का स्वभाव बन चुका था.

‘‘बचपना छोड़ दो, रश्मि सुनेगी तो कितनी दुखी होगी.’’

‘‘क्यों? तुम तो हो, उस के आंसू पोंछने के लिए.’’

‘‘चुप रहो, तमीज से बात करो, तुम तो हद से ज्यादा ही बढ़ती जा रही हो. जो सच नहीं है, उसे तुम सौ बार दोहरा कर भी सच नहीं बना सकतीं.’’

शिखा को हर घटना इसी एक बात से संबद्घ दिखाई पड़ रही थी. चाह कर भी वह अपने मन से किसी भी तरह इस बात को निकाल न सकी.

इधर रमेश को रहरह कर मौसीजी पर गुस्सा आ रहा था, जो उन के शांत जीवन में पत्थर फेंक कर हलचल मचा गई थीं. पढ़लिख कर इंसान का मस्तिष्क विकसित होता है, सोचनेसमझने और परखने की शक्ति आती है, पर शिखा तो पढ़लिख कर भी अनपढ़ रह गई थी.

एकदूसरे के लिए अजनबी बन पतिपत्नी अपनीअपनी जिंदगी जीने लगे. आखिर हुआ वही जो होना था. बात रश्मि तक भी पहुंच गई. सुन कर उसे गुस्सा कम और दुख अधिक हुआ. मनोज को भी इस बात का पता लगा, पर व्यक्ति व्यक्ति में भी कितना अंतर होता है. रश्मि के प्रति विश्वास की जो जड़ें सालों से जमी थीं, वे इस कुठाराघात से उखड़ न सकीं.

रश्मि ने मन मार कर शिखा को फोन कर कहा, ‘‘इसे तुम चाहो तो मेरी तरफ से अपनी सफाई में एक प्रयत्न भी समझ सकती हो. हमारा सालों का रिश्ता, खून का रिश्ता यों इतनी जल्दी तोड़ दोगी? शांत मन से सोचो, मैं तो तुम्हारा बच्चा गोद लेने वाली थी, फिर मुझे ऐसा करने की आवश्यकता क्यों होती? रमेश को मैं ने हमेशा छोटे भाई की तरह प्यार किया है, इस निश्चल प्यार को कलुषित मत बनाओ.

‘‘वैवाहिक जीवन की नींव विश्वासरूपी भूमि पर खड़ी है. अपनी बसीबसाई गृहस्थी में शंकारूपी कुल्हाड़ी से आघात क्यों करना चाहती हो? तनाव और कलह को क्यों निमंत्रण दे बैठी हो? रमेश को तुम इतने सालों में भी समझ नहीं सकी हो.’’

शिखा इन बातों से और जलभुन गई. रमेश उस की नजर में अभी भी अपराधी है. घर वह सोने और खाने को ही आता है. उस का घर से बस इतना ही नाता रह गया है. मां द्वारा पिता की उपेक्षा होते देख बच्चे भी उस से वैसा ही व्यवहार करते हैं.

शिखा ने स्वयं ऐसी स्थिति पैदा कर दी है कि आज न वह स्वयं खुश है, न उस का पति रमेश. Family Story

Family Story In Hindi : रूदन – नताशा क्यों परेशान थी ?

Family Story In Hindi : नतालिया इग्नातोवा या संक्षेप में नताशा मास्को विश्वविद्यालय में हिंदी की रीडर थी. उस के पति वहीं भारत विद्या विभाग के अध्यक्ष थे. पतिपत्नी दोनों मिलनसार, मेहनती और खुशमिजाज थे.

नताशा से अकसर फोन पर मेरी बात हो जाती थी. कभीकभी हमारी मुलाकात भी होती थी. वह हमेशा हिंदी की कोई न कोई दूभर समस्या मेरे पास ले कर आती जो विदेशी होने के कारण उसे पहाड़ जैसी लगती और मेरी मातृभाषा होने के कारण मुझे स्वाभाविक सी बात लगती. जैसे एक दिन उस ने पूछा कि रेलवे स्टेशन पर मैं उस से मिला या उस को मिला, क्या ठीक है और क्यों? आप बताइए जरा.

उस ने मुझे अपने संस्थान में 2-3 बार अतिथि प्रवक्ता के रूप में भी बुलाया था. मैं गया, उस के विद्यार्थियों से बात की. उसे अच्छा लगा और मुझे भी. मैं भी दूतावास के हिंदी से संबंधित कार्यक्रमों में उसे बुला लेता था.

नताशा मुझे दूतावास की दावतों में भी मिल जाती थी. जब भी दूतावास हिंदी से संबंधित कोई कार्यक्रम रखता, तो समय होने पर वह जरूर आती. कार्यक्रम के बाद जलपान की भी व्यवस्था रहती, जिस में वह भारतीय पकवानों का भरपूर आनंद लेती.

2-3 बार भारत हो आई नताशा को हिंदी से भी ज्यादा पंजाबी का ज्ञान था और वह बहुत फर्राटे से पंजाबी बोलती थी. दरअसल, शुरू में वह पंजाबी की ही प्रवक्ता थी, लेकिन बाद में जब विश्व- विद्यालय ने पंजाबी का पाठ्यक्रम बंद कर दिया तो वह हिंदी में चली आई.

रूस में अध्ययन व्यवस्था की यह एक खास विशेषता है कि व्यक्ति को कम से कम 2 कामों में प्रशिक्षण दिया जाता है. यदि एक काम में असफल हो गए तो दूसरा सही. इसलिए वहां आप को ऐसे डाक्टर मिल जाएंगे जो लेखापाल के कार्य में भी निपुण हैं.

हम दोनों की मित्रता हो गई थी. वह फोन पर घंटों बातें करती रहती. एक दिन फोन आया, तो वह बहुत उदास थी. बोली, ‘‘हमें अपना घर खाली करना होगा.’’

‘‘क्यों?’’ मैं ने पूछा, ‘‘क्या बेच दिया?’’

‘‘नहीं, किसी ने खरीद लिया,’’ उस ने बताया.

‘‘क्या मतलब? क्या दोनों ही अलगअलग बातें हैं?’’ मैं ने अपने मन की शंका जाहिर की.

‘‘हां,’’ उस ने हंस कर कहा, ‘‘वरना भाषा 2 अलगअलग अभि- व्यक्तियां क्यों रखती?’’

‘‘पहेलियां मत बुझाओ. वस्तुस्थिति को साफसाफ बताओ,’’ मैं ने नताशा से कहा था.

‘‘पहले यह बताइए कि पहेलियां कैसे बुझाई जाती हैं?’’ उस ने प्रश्न जड़ दिया, ‘‘मुझे आज तक समझ नहीं आया कि पहेलियां क्या जलती हैं जो बुझाई जाती हैं.’’

‘‘यहां बुझाने का मतलब मिटाना, खत्म करना नहीं है बल्कि हल करना, सुलझाना है,’’ मैं ने जल्दी से उस की शंका का समाधान किया और जिज्ञासा जाहिर की, ‘‘अब आप बताइए कि मकान का क्या चक्कर है?’’

‘‘यह बड़े दुख का विषय है,’’ उस ने दुखी स्वर में कहा, ‘‘मैं ने तो आप को पहले ही बताया था कि मेरा मकान बहुत अच्छे इलाके में है और यहां मकानों के दाम बहुत ज्यादा हैं.’’

‘‘जी हां, मुझे याद है,’’ मैं ने कहा, ‘‘वही तो पूछ रहा हूं कि क्या अच्छे दाम ले कर बेच दिया.’’

‘‘नहीं, असल में एक आदमी ने मेरे मकान के बहुत कम दाम भिजवाए हैं और कहा है कि आप का मकान मैं ने खरीद लिया है,’’ उस ने रहस्य का परदाफाश किया.

‘‘अरे, क्या कोई जबरदस्ती है,’’ मैं ने उत्तेजित होते हुए कहा, ‘‘आप कह दीजिए कि मुझे मकान नहीं बेचना है.’’

‘‘बेचने का प्रश्न कहां है,’’ नताशा बुझे हुए स्वर में बोली, ‘‘यहां तो मकान जबरन खरीदा गया है.’’

‘‘लेकिन आप मकान खाली ही मत कीजिए,’’ मैं ने राह सुझाई.

‘‘आप तो दूतावास में हैं, इसलिए आप को यहां के माफिया से वास्ता नहीं पड़ता,’’ उस ने दर्द भरे स्वर में बताया, ‘‘हम आनाकानी करेंगे तो वे गुंडे भिजवा देंगे, मुझे या मेरे पति को तंग करेंगे. हमारा आनाजाना मुहाल कर देंगे, हमें पीट भी सकते हैं. मतलब यह कि या तो हम अपनी छीछालेदर करवा कर मकान छोड़ें या दिल पर पत्थर रख कर शांति से चले जाएं.’’

‘‘और अगर आप पुलिस में रिपोर्ट कर दें तो,’’ मुझे भय लगने लगा था, ‘‘क्या पुलिस मदद के लिए नहीं आएगी?’’

‘‘मकान का दाम पुलिस वाला ही ले कर आया था,’’ उस ने राज खोला, ‘‘बहुत मुश्किल है, प्रकाशजी, माफिया ने यहां पूरी जड़ें जमा रखी हैं. यह सरकार माफिया के लोगों की ही तो है. मास्को का जो मेयर है, वह भी तो माफिया डौन है. आप क्या समझते हैं कि रूस तरक्की क्यों नहीं करता? सरकार के पास पैसे पहुंचते ही नहीं. जनता और सरकार के बीच माफिया का समानांतर शासन चल रहा है. ऐसे में देश तरक्की करे, तो कैसे करे.’’

‘‘यह न केवल दुख का विषय है बल्कि बहुत डरावना भी है,’’ मुझे झुरझुरी सी हो आई.

‘‘देखिए, हम कितने बहादुर हैं जो इस वातावरण में भी जी रहे हैं,’’ नताशा ने फीकी सी हंसी हंसते हुए कहा था.

मैं 1997 में जब मास्को पहुंचा था, तो एक डालर के बदले करीब 500 रूबल मिलते थे. साल भर बाद अचानक उन की मुद्रा तेजी से गिरने लगी. 7, 8, 11, 22 हजार तक यह 4-5 दिनों में पहुंच गई थी. देश भर में हायतौबा मच गई. दुकानों पर लोगों के हुजूम उमड़ पड़े, क्योंकि दामों में मुद्रा हृस के मुताबिक बढ़ोतरी नहीं हो पाई थी. सारे स्टोर खाली हो गए और आम रूसी का क्या हाल हुआ, वह तब पता चला जब नताशा से मुलाकात हुई.

नताशा ने मुझे बताया था कि अपने मकान से मिली राशि और अपनी जमापूंजी से वह एक मकान खरीद लेगी जो बहुत अच्छी जगह तो नहीं होगा पर सिर छिपाने के लिए जगह तो हो ही जाएगी.

‘‘क्यों नया मकान खरीदा?’’ उस के दोबारा मिलने पर मैं ने पूछा.

मेरा सवाल सुन कर नताशा विद्रूप हंसी हंसने लगी. फिर अचानक रुक कर बोली, ‘‘जानते हैं यह मेरी जो हंसी है वह असल में मेरा रोना है. आप के सामने रो नहीं सकती, इसलिए हंस रही हूं. वरना जी तो चाहता है कि जोरजोर से बुक्का फाड़ कर रोऊं,’’ वह रुकी और ठंडी आह भर कर फिर बोली, ‘‘और रोए भी कोई कितना. अब तो आंसू भी सूख चुके हैं.’’

मैं समझ गया कि मामला कुछ रूबल की घटती कीमत से ही जुड़ा होगा. मकानों के दाम बढ़ गए होंगे और नताशा के पैसे कम पड़ गए होंगे. मैं कुछ कहने की स्थिति में नहीं था, चुप रहा.

‘‘आप जानते हैं, राज्य का क्या मतलब होता है? हमें बताया जाता है कि राज्य लोगों की मदद के लिए है, समाज में व्यवस्था के लिए है, समाज के कल्याण के लिए है. यह हमारा, हमारे लिए, हमारे द्वारा बनाया गया राज्य है. लेकिन अगर आप ने इतिहास पढ़ा हो तो आप को पता चलेगा कि राज्य व्यवस्था का निर्माण दरअसल, लोगों के शोषण और उन पर शासन के लिए हुआ था? इसलिए हम जो यह खुशीखुशी वोट देने चल देते हैं, उस का मतलब सिर्फ इतना भर है कि हम अपनी इच्छा से अपना शोषण चुन रहे हैं.’’

नताशा बोलती रही, मैं ने उसे बोलने दिया क्योंकि मेरे टोकने का कोई औचित्य नहीं था और मुझे लगा कि बोल लेने से संभवत: उस का दुख कम होगा.

‘‘आप शायद नहीं जानते कि कल तक हमारे पास 80 हजार रूबल थे, जो हम ने अतिरिक्त काम कर के पेट काटकाट कर, पैदल चल कर, खुद सामान ढो कर और इसी तरह कष्ट उठा कर जमा किए थे. सोचा था कि एक कार खरीदेंगे पर जब उन हरामजादों ने हमारा मकान छीन लिया, तो सोचा कि चलो अभी मकान ही खरीदा जाए,’’ नताशा बातचीत के दौरान निस्संकोच गालियां देती थी जो उस के मुंह से अच्छी भी लगती थीं और उस के दुख की गहराई को भी जाहिर करती थीं, ‘‘पर हमें 2 दिन की देर हो गई और अब पता चला कि देर नहीं हुई, बल्कि देर की गई. हम तो सब पैसा तैयार कर चुके थे. लेकिन मकानमालिक को वह सब पता था, जो हमारे लिए आश्चर्य बन कर आया, इसलिए उस ने पैसा नहीं लिया.’’

नताशा ने रुक कर लंबी सांस ली और आगे कहा, ‘‘आप जानते हैं, यह मुद्रा हृस कब हुआ? यह अचानक नहीं हुआ, उन कुत्तों ने अपने सब रूबल डालर में बदल लिए या संपत्ति खरीद ली और फिर करवा दिया मुद्रा हृस. भुगतें लोग. रोएं अपनी किस्मत को,’’ इतना कह कर वह सचमुच रोने को हो आई, फिर अचानक हंसने लगी. बोली, ‘‘जाने क्यों, मैं, आप को यह सब सुना कर दुखी कर रही हूं,’’ उस ने फिर कहा, ‘‘शायद सहकर्मी होने का फायदा उठा रही हूं. जानते हैं न कि जिन रूबलों से मकान लिया जा सकता था वे अब एक महीने के किराए के लिए भी काफी नहीं हैं.’’

उस ने फीकी हंसी हंस कर फिर कहा, ‘‘और व्यवस्था पूरी थी. बैंक बंद कर दिए गए. लोग बैंकों के सामने लंबी कतारों में घंटों खड़े रहे. किसी को थोड़े रूबल दे दिए गए और फिर बैंकों को दिवालिया घोषित कर दिया गया. लोग सड़कों पर ही बाल नोचते, कपड़े फाड़ते देखे गए. लेकिन किसी का नुकसान ही तो दूसरे का फायदा होगा. यह दुनिया का नियम है.’’ Family Story In Hindi

USA : खब्ती डोनाल्ड का खब्ती आदेश, अमेरिका के लिए ही महंगा कर रहे कच्चा माल

USA : अमेरिकी सरकार ने डोनाल्ड ट्रंप के आदेश पर यूएसएआईडी का दफ्तर बंद कर दिया है. यह अमेरिकी सरकार की एक स्वतंत्र एजेंसी है जो अंतर्राष्ट्रीय विकास और मानवीय सहायता के लिए कार्य करती है. अमेरिकी आपदा सहायता दुनियाभर में आने वाले भूकंपों, बाढ़ों, अकालों और महामारियों से प्रभावित होने वालों की जान बचाने के काम आती थी. वर्ष 2022 में अफ्रीका के इथोपिया, केन्या और सोमालिया में अगर डेढ़ लाख टन की फूड-एड न मिलती तो 3 सालों के सूखे के कारण वहां 20-25 लाख लोग मर जाते.

2 अरब डौलर, जो प्र्रति अमेरिकी का कुछ काफियों पर होने वाला खर्र्च बचाने के लिए अमेरिकी राष्ट्रपति डौनेल्ड ट्रंप ने दुनिया के गरीब कोनों में लाखों मौतों को न्यौता दे दिया है. आज अमेरिका की अमीरी में दुनिया के हर गरीब का योगदान है क्योंकि जो कच्चा माल अमेरिकी फैक्ट्रियों और तैयार माल अमेरिकी स्टोरों में पहुंचता है, उन का कुछ न कुछ हिस्सा गरीबों के हाथों से दुनिया में कहीं भी तैयार होता है.

अमेरिकी राष्ट्रपति अपने खब्तीपन से अपने ही लिए कच्चा माल महंगा कर रहे हैं. ट्रंप की खब्तीपन की नीतियों से प्रभावित लोग सस्ता माल तैयार नहीं कर सकते न.

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