Download App

Best Hindi Story : मेरी सोलो यात्रा – जिंदगी में नई उर्जा भरती यात्रा की कहानी

Best Hindi Story : मेरी यात्राएं मेरे लिए ऊर्जा के समान हैं. उदासी को पीछे छोड़ खुद को खोजने की कोशिश में निकल पड़ती हूं अकेली, अनजान रास्तों पर.

यों तो मैं ने कई यात्राएं कीं लेकिन मेरी यह यात्रा अन्य से बहुत अलग थी. यात्राएं मेरे लिए हील करने का सफल व आसान उपचार हैं. जब भी मु झे अवसाद घेरने लगता है, मैं यात्राओं पर निकल जाती हूं.

यात्राओं से मु झे एक अलग ही स्तर की ऊर्जा मिलती है. कभीकभी आत्ममंथन करने पर मैं समझ नहीं पाती, क्या मैं परेशानियों, पीड़ाओं या स्वयं से डर कर यात्राओं के अंक में छिप जाना चाहती हूं या यात्राओं के माध्यम से दूर ऐसी जगह निकल जाना चाहती हूं जहां मु झे कोई न पहचाने, पीड़ा मु झे छू तक न पाए, अवसाद के काले बादल मु झ पर बरस न पाएं? लेकिन हमेशा निरुत्तर ही रह जाती हूं.

यह यात्रा भी कुछ ऐसी ही थी. जीवन में कुछ अच्छा नहीं चल रहा था. प्रेम राह भटके बादल की तरह आया और कुछ बूंदें बरसा, मेरे तृप्त जीवन को अतृप्त कर न जाने कहां अदृश्य हो गया. अभी पीड़ा कम भी न हुई थी कि सब से नजदीकी इंसान ने पीठ पर जबरदस्त वार कर घायल कर दिया.

प्रेम का दावा करने वालों के प्रेम का भयावह चेहरा देख आहत हुई. समाज द्वारा स्त्रियों पर लांछन लगाए जाते हैं लेकिन यहां तो उस के द्वारा लगाए गए, जो मेरे प्रति सम्मान की बात करता था. वह बहुत दुखद वक्त था मेरे लिए. मैं कुछ सम झ नहीं पा रही थी. मु झे कोई अपना नहीं दिख रहा था. मैं चिल्लाना चाहती थी, चीखचीख कर रोना चाहती थी, किसी के सीने से लग जाना चाहती थी.

तब, तब मु झे यात्रा याद आई. मैं खुशी की तलाश में निकल जाना चाहती थी या इन सब परिस्थितियों से कायरों की तरह निकल कर भाग जाना चाहती थी, नहीं जानती. कभीकभी जीवन के संघर्ष में कायर बन जाने में कोई बुराई नहीं. इस तरह मेरी सोलो ट्रिप और पहली हवाई यात्रा की पृष्ठभूमि तैयार हुई.

बेटे और बेटी ने मेरे लिए ग्वालियर का हवाई टिकट बुक कर दिया और मेरी झोली में खुशी का टुकड़ा डाल मेरे साथ ट्रिप की रूपरेखा तैयार करने लगे. मैं उन का यह सान्निध्य सम झ रही थी. वे इन सब बातों से जता देना चाहते थे कि मैं अकेली नहीं हूं और वे मु झ से बहुत प्रेम करते हैं जो कि मैं अच्छे से जानती थी.

तीसरे दिन मैं अपनी उड़ान भरने के लिए घर से निकल पड़ी. यात्रा की खुशी और पहली बार हवाई यात्रा के उत्साह के सम्मुख जो कुछ हुआ था उस की पीड़ा गौण हो गई. अचानक मानो मेरे पंख उग आए हों और मैं उड़ने लगी. सारी औपचारिकताएं मैं ने पहली हवाई यात्रा होने के बावजूद पूरे आत्मविश्वास के साथ पूरी कीं और अपने टर्मिनल पर समय से पहले पहुंच गई.

मेरे मनमस्तिष्क में अनेक विचार समंदर की लहरों के समान हिलोरें मार रहे थे. उन का आवागमन निरंतर चल रहा था. मैं किसी एक को धप्पा कह पकड़ लेना चाहती थी.

मैं सोचने लगी, आत्मनिर्भर और खुद कमाने वाली कितनी महिलाएं यों किसी यात्रा पर निकल सकती हैं? सोलो तो छोडि़ए, वे अपने दोस्तों के ग्रुप में भी नहीं निकल पातीं. उन के लिए घर की दहलीज पार करना चांद पर पहुंचने जितना ही कठिन है. उन्हें कभी फैमिली से इतर कोई विचार ही नहीं आता होगा. घर, औफिस और बच्चे, इस से आगे उन्हें सोचने ही नहीं दिया जाता जबकि मर्द घर और बच्चों से बिलकुल निश्ंिचत हो कर दोस्तों के साथ हैंगआउट, पार्टी और ट्रिप करते ही रहते हैं.

घरगृहस्थी की थकानभरी जिंदगी व औफिस की परेशानियों से पुरुष अपने दोस्तों के साथ मिल कर, 2 कश साथ में सिगरेट के खींच कर व छोटेमोटे गेटटुगेदर कर खुद को रिफ्रैश कर लेते हैं. लेकिन महिलाओं के कितने दोस्त होते हैं? यदि वर्किंग है तो औफिस में कुछ औफिशियल बातें शेयर कर लीं, बस.

सब से अधिक तो घरेलू सहायिकाएं हैं जो बेजान सी उठ कर पहले खुद के घर के उबाऊ घरेलू काम खत्म करती हैं और फिर चल देती हैं अन्य घरों में उबाऊथकाऊ काम करने जिस में कोई ऊर्जा नहीं, प्रमोशन का चांस नहीं, कोई छुट्टी नहीं, टीए- डीए कुछ नहीं, केवल यांत्रिक जीवन.

कुछ पुरुष हम से बोलते हैं कि अपनी दशा सुधारने के लिए औरतों को खुद क्रांति करनी होगी जबकि मेरे अनुसार उन की क्रांति की राह में सब से बड़ी बाधा विवाह संस्था व परिवार है. कुछ औरतों द्वारा इस का बहिष्कार करने के कारण यही तथाकथित प्रगतिशील पुरुष त्राहिमाम करने लगे हैं. यदि अन्य महिलाएं ऐसा करेंगी तब क्या ये प्रगतिशील पुरुष उन के सहयोगी बनेंगे? किसी ने कहा था कि जब तक विवाह संस्था जीवित है तब तक महिलाएं आजाद नहीं हो पाएंगी. यदि आप मंथन करेंगे तो पाएंगे कि कुछ न कर पाने की असमर्थता का मूल कारण परिवार ही होता है.

मैं अभी इन लहरों के उतारचढ़ाव में बह ही रही थी कि मेरे फोन की रिंग ने समंदर की इन गहराइयों से मु झे बाहर खींच लिया. मैं ने फोन देखा और बिना किसी भाव के फोन काट दिया. मैं जिस से भाग रही थी वह फोन के माध्यम से मेरे पीछेपीछे हवाई अड्डे आ पहुंचा था और मैं उसे अपनी यात्रा का अतिक्रमण नहीं करने देना चाहती थी, इसीलिए फोन को फ्लाइट मोड पर डाल दिया.

तभी चैक-इन की घोषणा हुई और मैं इतने वेग से भागी मानो वे मु झे छोड़ जाएंगे. पलक झपकते ही मैं अपनी विंडो सीट पर थी, ऊर्जा से भरी और सभी परेशानियों को उसी टर्मिनल पर छोड़ कर. प्लेन धीरेधीरे रेंगने लगा और मेरी धड़कन बढ़ने लगी. कई तरह के नकारात्मक और सकारात्मक विचार मेरे दिमाग में डूबने और तैरने लगे लेकिन मैं खुश थी, बहुत खुश.

कुछ ही देर में हम बादलों के बीच में थे. जो बादल धरती से दिखाई देते थे, मैं आज उन के बीच थी. मन करता किसी तरह स्पर्श कर लूं, जोकि असंभव था. एकाएक कालिदास की मेघदूतम स्मृतिपटल में घूमने लगी. मन कल्पनाओं के बादल में उड़ने लगा, क्या ये बादल भी किसी का प्रेमसंदेश ले कर उड़ रहे हैं? क्या ये मेरे दूत बनेंगे? क्या ये मेरे कहने पर उसे प्रेमवर्षा में भिगो कर सराबोर करेंगे? मैं अधेड़ उम्र में एक षोडशी की भांति खुद से ही शरमा गई और खुद को संभालने की कोशिश करने लगी. किसी ने सच ही कहा है कि ‘प्रेम वही जो प्रौढ़ावस्था में किशोरावस्था ला दे.’ अब उस के स्मृतिमेघ मु झ पर मूसलाधार बरसने लगे और मैं बाहर उन बादलों को देखदेख न जाने कब तक उस वर्षा में भीगती रही.

ये श्वेत मेघ हिम से ढके हिमालय के शिखर जान पड़ते थे. मानो चहुंओर बर्फ ने संपूर्ण हिमालय को अपने अंक में समेट लिया हो. कहींकहीं पर बादलों के बीच में नीला आकाश यों नजर आता था जैसे हिमखंडों के बीच नीले निर्मल पानी का सरोवर.

मैं इन बादलों में विचरण कर ही रही थी कि नीचे छोटेछोटे घर, खेतखलिहान व बारीक धागे की डोर सी नदी नजर आने लगी और इस तरह प्लेन के साथसाथ मेरी कल्पनाओं की भी लैंडिंग हो गई.

एयरपोर्ट से बाहर निकलते ही दिल्ली की ही तरह गरमी बहुत अधिक थी, गरमी से बुरा हाल था. मैं जल्द से जल्द किसी होटल में पहुंच फ्रैश हो कर घूमने निकल जाना चाहती थी. एयरपोर्ट के बाहर टैक्सी पंक्तियों में खड़ी थीं. मैं ने उन पंक्तियों को पार किया और सहूलियत के अनुसार एक औटो ले लिया और उसे उचित दर के होटल में ले चलने को कहा.

थोड़ी देर में हम एक होटल के बाहर थे. मैं ने औटो का किराया दे कर औटो वाले को फारिग कर दिया. बैग और सूटकेस घसीटते मैं होटल के अंदर पहुंची. रिसैप्शन पर बैठे आदमी से रूम के बारे में पूछा. उस ने मु झे घूरा, पूछा, ‘‘अकेली हो?’’ मैं ने भी लापरवाही और विश्वास के साथ जवाब दिया, ‘‘हां, क्यों?’’ उस ने क्यों का जवाब दिए बिना बेरुखी से 1,500 रुपए बताए और कड़ी आवाज में बोला, ‘‘तीसरी मंजिल है और हां, लिफ्ट नहीं है.’’ मानो वह रूम न देना चाहता हो और साथ ही, चाहता हो कि मैं खुद ही मना कर दूं.

मैं चाहती तो उस से मोलभाव कर किराया कम करवा सकती थी लेकिन मु झे नीरस, रूखे और खड़ूस लोग बिलकुल नहीं पसंद. मैं ने मन ही मन निर्णय लिया कि यहां रूम 500 रुपए में भी मिल जाए तो भी मैं लेने वाली नहीं. मैं होटल से निकल कर चिलचिलाती धूप में दूसरा होटल खोजने निकल पड़ी. कुछ आगे जा कर एक होटल मिला जो बहुत सही लगा. सो, दोचार सीढि़यां चढ़ी ही थी कि अंदर से एक कर्मचारी तुरंत आया और मेरे हाथ से बैग ले लिया व दूसरे ने गेट खोल दिया.

रिसैप्शन पर बैठे व्यक्ति ने मुझ से वही सवाल दागा, ‘‘आप अकेली हैं?’’ अब मैं थोड़ा चिढ़ गई और बिना जवाब दिए उस पर सवाल का पलटवार करते हुए पूछा, ‘‘क्यों, क्या ग्वालियर में औरतों के अकेले आने पर बैन है?’’ वह हंसने लगा और रूम का किराया वही 1,500 रुपए बताया.

मेरे दिमाग में सभी पढ़े हुए यात्रा वृत्तांत घूमने लगे. हमें कम से कम खर्चीली यात्रा करनी चाहिए. यदि सभी सुविधाएं चाहिए तो यात्रा का क्या मजा. मेरा ध्यान सिर्फ सुरक्षा पर केंद्रित था. मैं ने उस से मोलभाव करना शुरू किया तो अंत में वह 1,000 रुपए पर मान गया. इस दौरान उस ने बताया कि प्रतियोगी परीक्षा के कारण रूम मिलना मुश्किल है.

यह समस्या मैं अपनी नैनीताल की यात्रा के दौरान भुगत चुकी थी. मैं ने सुरक्षा की दृष्टि से रूम और होटल का मुआयना किया और चैकइन कर लिया. उन्होंने मु झे होटल का नंबर दिया कि कभी बाहर कोई प्रौब्लम हो तो इस नंबर पर कौल करना, अपने होटल का नाम याद रखना वगैरहगैरह. मानो उन पर मैं एक जिम्मेदारी की भांति लद गई हूं, मानो उन के कंधों पर टनों भार रख दिया गया हो.

दुनिया कुछ पाशविक मर्दों के कारण असुरक्षित हुई और कैद महिलाएं हुईं या उन्हें एक जिम्मेदारी के रूप में स्थापित कर दिया गया. मानो वे मानवी न हो कर मात्र एक जिम्मेदारी हैं. बस, किसी भी तरह से निभ जाए. मैं अपना बैग उठा कर अपने रूम में जा ही रही थी कि एक कर्मचारी ने मु झ से बैग ले लिया और रूम में ले गया. जो भी हो, इस होटल का स्टाफ मिलनसार तो था. अब तक 2 बज चुके थे और मैं धूप में ही घूमने निकल पड़ी.

मैं किसी यात्रा पर निकलती हूं तो उस पर पूरा शोध कर के निकलती हूं. मैं ने निश्चय किया था कि अन्य जगहों पर घूम पाऊं या नहीं, गोपाचल पर्वत जरूर जाना है. गोपाचल पर्वत पर 7वीं से 15वीं शताब्दी के मध्य प्रकृति की गोद में पर्वतों के शीर्ष पर चट्टानों को काट कर मूर्तियां बनाई गई हैं. यह स्मारक बनने से पहले यहां घास के मैदान हुआ करते थे जहां ग्वाले गाय चराने आते थे. माना जाता है कि संभवतया इसीलिए इस का नाम गोपाचल पर्वत पड़ा. यहां पहुंचने का रास्ता बाद में कभी बने जैन मंदिर के पास से गुजरता है.

मैं औटो से वहां पहुंची. मु झे देख मंदिर का एक व्यक्ति आया और उस ने मु झे बताया कि गोपाचल मंदिर 5 बजे खुलेगा, अभी बंद है. मेरे होमवर्क के अनुसार, मंदिर बंद नहीं होना चाहिए था. मु झे उस के बोलने के तरीके में कुछ पूर्वाग्रह टाइप भी लग रहा था. मैं कहीं न कहीं उस के टालने का मूल कारण सम झ रही थी. उसे शायद मेरे पाश्चात्य पोशाक से परेशानी थी. फिर मु झे लगा मैं शायद ज्यादा सोच रही हूं, सो, अपने जूते पहन निकल गई वहां से. वापस होटल जाती तो थकान से नींद आ जाती और मेरा आज का दिन व्यर्थ हो जाता.

मैं ने चिडि़याघर जाने का निश्चय किया क्योंकि फोर्ट थोड़ा दूर था और बंद होने का समय हो रहा था. धूप बहुत थी. आसपास पानी की दुकानें नहीं थीं. बोतल का पानी खत्म हो चुका था. लेकिन मेरे घुमक्कड़ मन ने हार न मानी.

नीचे उतर कर कुछ दूर पैदल चल मेन रोड पर आ गई. वहां से शेयरिंग औटो रिकशा में बैठी जिस में कुछ लड़कियां थीं. मैं ने उन से बातचीत शुरू कर दी और वहां के बारे में पूछा. वे बहुत मिलनसार प्यारी लड़कियां थीं. उन्होंने बड़े उत्साह से वहां के पर्यटन स्थलों के बारे में बताया. अपने गंतव्य स्थान पर पहुंच कर उन्होंने विदा ली और रिकशे वाले ने रिकशा चिडि़याघर की ओर मोड़ लिया.

चिडि़याघर पहुंच कर मालूम चला कि शुक्रवार को वह बंद ही रहता है. अब थोड़ी झुं झलाहट हुई. 5 बजे तक कहीं भी समय व्यतीत करना था जिस में समय का दुरुपयोग नहीं बल्कि सदुपयोग हो. रिकशे वाले ने मु झे गूजरी महल जाने की राय दी जोकि ग्वालियर किले का हिस्सा था और जिस चोटी के शीर्ष पर किला था उसी के तल में गूजरी महल भी था. मैं ने मस्तिष्क में सभी योजना बना ली, गूजरी महल देख कर गोपाचल जाऊंगी और किला भ्रमण कल करूंगी. मैं वापस रिकशे में बैठ गई और गूजरी महल पहुंच किराया दे कर टिकट लेने पहुंची.

अंदर पहुंच कर मैं गूजरी महल में रखे पुरातन मूर्तिकला और स्मारक देख अलग ही कल्पनाओं में खो गई. तभी एक युवक आ कर उन प्रतिमाओं से संबंधित जानकारी देने लगा और मैं पूर्ण ध्यान लगा सुन रही थी. दोचार प्रतिमाओं से संबंधित जानकारी देने के बाद उस ने बताया कि मु झे आगे अकेले ही सब देखना होगा या फिर उसे गाइड के रूप में नियुक्त करना होगा. यह कुछ ऐसा था जैसे किसी को पहले नशे का आदी बनाया जाए और फिर नशीले पदार्थों से कमाया जाए. खैर, मु झे सब जानने का उत्साह था, इसीलिए मैं ने हामी भर दी.

हम ने विभिन्न कालों की विभिन्न प्रकार की मूर्तियां, कलाकृतियां देखीं जिन में 5वीं सदी की नायिकाओं की अलगअलग प्रकार की केशसज्जा दिखाई गई थी. मैं देख कर विस्मित थी, कितनी अद्भुत रचनात्मकता थी उस काल में भी. उस में खूबसूरत शालभन्जिका की प्यारी सी मुसकान वाली प्रतिमा भी थी.

आज हम कई नवीन उपकरणों का प्रयोग करते हैं और तब उन्होंने सीमित उपकरणों से ये आश्चर्यचकित कर देने वाले चमत्कार कर दिए. गूजरी महल का पूरा संग्रहालय देखने के पश्चात अब हम महल देखने लगे. गाइड ने बताया कि राजा मान सिंह तोमर की 9वीं रानी मृगनयनी थी जो गूजर जाति से संबंधित होने के कारण गूजरी भी कहलाती थी.

बताया जाता है कि एक बार राजा मान सिंह तोमर शिकार के लिए जा रहे थे. रास्ते में राई गांव में 2 भैंसें आपस में लड़ रही थीं. कोई भी उन्हें हटा नहीं पा रहा था. यहां तक कि राजा के सैनिकों व योद्धाओं ने भी प्रयत्न कर छोड़ दिया. तभी भीड़ को चीरती हुई एक कन्या आई जिस के सिर पर पानी का मटका था. उस कन्या ने एक हाथ से मटका संभालते हुए अपनी बुद्धिमत्ता व साहस से उन दोनों भैंसों को अलग कर दिया. यह देख राजा अचंभित हो गए और कन्या के प्रेम में पड़ गए.

इतिहास में कई ऐसी कहानियां दफन हैं जिन में लड़कियों के साहस व बुद्धिमानी के कारण बड़ेबड़े योद्धा या राजेमहाराजे बड़ेबड़े युद्ध तो जीत गए लेकिन प्रेम में हार गए. लड़की पर आसक्त राजा ने विवाह प्रस्ताव भिजवाया जिसे उस लड़की ने 3 शर्तों के साथ स्वीकार कर लिया.

पहली शर्त यह थी कि वह उन की अन्य 8 रानियों के साथ नहीं रहेगी, सो, उसे अलग से महल चाहिए, जो आज गूजरी महल के नाम से प्रसिद्ध है. दूसरी शर्त के अनुसार राजा कहीं भी जाएंगे वह भी उन के साथ जाएगी. तीसरी व अंतिम शर्त यह थी कि वह अपने ही गांव का पानी पिएगी यानी राई गांव का ही पानी पिएगी. तीसरी शर्त कठिन थी परंतु राजा ने उस काल की अत्याधुनिक तकनीक प्रयोग कर प्रेम में यह कार्य भी सरल कर दिखाया.

हम पूरा महल घूम चुके थे और गाइड का भी काम खत्म हो चुका था. मैं ने उस की पेमैंट की और अब अकेले ही किला घूम रानी व उस की सखियों की अठखेलियां, कल्लोल, आनंद क्रीड़ाएं व उस प्रेम की उपस्थिति महसूस करने लगी. उस युग को जीने की कोशिश करने लगी. अकेले घूमने का रत्तीभर भी पछतावा नहीं था. मैं ने वहां कुछ वीडियोज बनाए व फोटोज क्लिक कीं ताकि जब मन करे, इन पलों को फोटो के माध्यम से फिर से जी पाऊं. वक्त अब फिर से गोपाचल जाने का संकेत कर रहा था, सो, मैं बाहर निकली और एक औटो ले लिया.

गोपाचल पहुंच मैं ऊपर पर्वत पर पहुंचने के लिए उत्साहित थी. जल्दीजल्दी जूते खोले ही थे कि सुबह वाला मंदिर का वह व्यक्ति फिर आ गया और बोला कि आज मंदिर बंद है (जबकि वह कोई मंदिर नहीं है). बस, अब मेरी सहनशीलता की सीमा समाप्त हो चुकी थी. मैं ने उस से थोड़ी ऊंची आवाज में पूछा, ‘‘आप झूठ बोल रहे हैं न? आप को मेरे पाश्चात्य कपड़ों से शायद कुछ परेशानी है जो मैं सुबह ही भांप चुकी थी. मैं वापस नहीं जाने वाली.’’ इस तरह मैं उस पर प्रश्नों के वार पर वार करते जा रही थी, साथ ही, अनजान शहर में अकेले होते हुए इस तरह झगड़ने के कारण मन ही मन डर भी रही थी.

मुझे लगता है कि निडर से निडर इंसान को भी डर लगता है. लेकिन जो इस डर पर जय पा जाए वही निडर कहलाता है. शोरशराबा सुन मंदिर के अन्य लोग भी आ गए. अब मैं ने अपनी सुरक्षा हेतु वीडियो भी बनाना शुरू कर दिया और सभ्यता के साथ प्रश्नों की बौछार किए जा रही थी. मंदिर के महासचिव द्वारा किसी व्यक्ति को मु झे जाने देने का संदेश दे कर भेजा गया और मैं बहुत खुश हुई.

अब मैं पर्वत पर चढ़ने लगी. प्राकृतिक सुंदरता चारों ओर बिखरी हुई थी. यदि सक्षम होती तो वह मनोहर खूबसूरत दृश्य समेट कर रख लेती. प्राकृतिक सौंदर्य का आंखों द्वारा मधुर पान करते हुए मैं शीर्ष पर पहुंच गई. वहां का दृश्य देख मैं कुछ देर निस्तब्ध अवाक खड़ी रही. पर्वतों को काट कर बनाए गए उन मंदिरों को देख मेरे होश उड़ गए. वहां एक अलग ही शांति का वास था. सुकून ही सुकून पसरा हुआ था.

वहां 26 गुफाएं थीं जिन में मंदिरों का निर्माण किया गया था. चट्टानों पर सुंदरसुंदर नक्काशी मन मोह रही थी. मैं ने खुद को ऊपर आने की लड़ाई लड़ने के लिए शाबाशी दी. यदि मैं ने जिद न की होती तो मैं ये आश्चर्यचकित कर देने वाली कृतियां कभी न देख पाती. कुछ देर वहां की प्राकृतिक शांति को अपने अंदर समेट कर व उन कृतियों की सुंदरता को आंखों में बसा कर मैं वहां से निकल गई.

नीचे पहुंची तो मेरे लिए महासचिव से मिलने का संदेश था. मैं चाहती तो अस्वीकार कर सकती थी लेकिन मेरी जिज्ञासु प्रवृत्ति ने मु झे ऐसा करने से रोक लिया. मैं उन के औफिस में पहुंची तो उन्होंने बड़ी शालीनता और मृदुभाषी बन मेरा परिचय लिया और फिर संस्कृति पर मोरल पौलिसिंग करने लगे. मैं ने भी उन से हार न मानी और लिंगभेद पर प्रश्न दागने लगी कि आखिर क्यों पुरुष का नग्न शरीर प्राकृतिक है और औरत की देह अश्लील? उन के पास इस का कोई उत्तर नहीं था. बस, नियम थे जो युगों से औरतों के लिए बने थे.

उन्होंने बताया कि जैनी महापुरुष बेशक नग्न रहते हैं लेकिन महिलाओं के लिए 6 गज (अच्छे से याद नहीं शायद इस से भी अधिक हो) के बड़े से कपड़े का प्रावधान है जिसे वह कमर से ऊपर ही बांधती हैं. मु झे लगा कि धर्म पर बहस करना व्यर्थ है, सो, मैं ने जाने की आज्ञा मांगी और उन्होंने दोबारा आने के लिए बोल कर आज्ञा दे दी.

होटल आ कर मैं ने अपना खाना और्डर किया और कल की यात्रा का ढांचा तैयार करने लगी. मु झे गूजरी महल में मिले एक युवक का ध्यान आया जो ड्राइवर और गाइड दोनों ही था. अपने दिमाग पर जोर देते हुए मैं ने उस का नाम याद किया और अपने फोन पर नाम ढूंढ़ ही रही थी कि उस का मैसेज दिख गया. यह पहली बार था जब मैं ने यात्रा के दौरान अपना फोन बहुत ही कम चैक किया, इसीलिए मालूम ही नहीं चला कि कब यह मैसेज आया. उस ने भी कल की योजना के बारे में पूछा था कि क्या वह तैयार रहे, क्या उसे बुक किया जा रहा है?

मैं ने उसे फोन किया और उस ने मु झे ग्वालियर फोर्ट के चार्ज बताए. मैं ने उसे पूरा ग्वालियर घुमाने का पूछा और वहां के पर्यटन स्थल के बारे में जानकारी ली. उस ने मु झे बताया कि अगर ऐसा है तो वह कल पहले सिंधिया महल दिखाएगा जो अब होटल में परिवर्तित हो चुका है. मैं ने उस से कहा, ‘‘मु झे सिंधिया महल नहीं देखना जहां अब कोई प्राचीनता नहीं और न ही प्राकृतिकता. फिर मैं क्यों 250 रुपए दे कर पूंजीपतियों की पूंजी बढ़ाने में मदद करूं. हम ने कल के घूमने की योजना तैयार कर ली. इतने में खाना आ गया, खाना खा कर मैं ने कुछ पृष्ठ पुस्तक के पढ़े और सो गई.

दूसरे दिन गाइड वक्त से गाड़ी के साथ हाजिर हो गया. मैं भी तैयार बैठी थी. हम लोग निकल पड़े अपनी आगे की यात्रा पर. हम पहले सूर्य मंदिर गए जोकि बहुत ही खूबसूरत था, तेली मंदिर, तानसेन और उन के गुरु के मकबरे, रानी लक्ष्मीबाई की समाधि होते हुए हम अब ग्वालियर फोर्ट के रास्तों पर थे. इस दौरान मेरी गाइड से अच्छी दोस्ती हो गई. उस का नाम शिवा था. शिवा अपने प्रोफैशन के बारे में बता रहा था. उस ने अपनी पूर्व प्रेमिका, जोकि विदेशी थी, की वीडियो फोटो दिखाई, उस के बारे में बात की.

आगे का अंश बौक्स के बाद 

================================================================================================

इन्हें आजमाइए

  • हर महीने अपनी आय और खर्च का हिसाब रखें. इस से आप समझ पाएंगे कि पैसा कहां जा रहा है और फुजूलखर्ची कैसे रोकनी है.
  • वर्किंग कपल दिनभर की भागदौड़ में थोड़ा वक्त निकाल कर साथ बैठें, जैसे चाय पिएं, फिल्म देखें या टहलने जाएं. ये छोटे पल रिश्ते को गहरा करते हैं.
  • प्रैग्नैंसी के दौरान मानसिक शांति के लिए ध्यान, गहरी सांस या पसंदीदा काम करें. तनाव बच्चे और मां दोनों के लिए नुकसानदेह हो सकता है.
  • मीडिया और इंटरनैट का इस्तेमाल सोचसमझ कर करें. अनजान लोगों से बात न करें और अपनी निजी जानकारी (जैसे फोटो या पता) शेयर करने से बचें ताकि सुरक्षित रहें.
  • गरमी में चेहरे पर सनस्क्रीन जरूर लगाएं और पसीने से बचने के लिए बारबार चेहरा धोएं. गरमी में रैशेज या जलन से बचने के लिए कौटन के कपड़े पहनें.
  • टीनऐज में दोस्तों का असर बहुत पड़ता है. ऐसे दोस्त बनाएं जो पौजिटिव सोच रखते हों और अच्छे कामों के लिए प्रेरित करें.
  • यूनीक गार्डनिंग के लिए ऐक्सरसाइज गार्डन, हर्ब गार्डन, बटरफ्लाई गार्डन या मिनी जंगल तैयार करें.

================================================================================================

उस ने बताया कि ओरछा में उस का दोस्त रहता है, जिस ने विदेशी से शादी की और वहीं सैटल हो गया. उस ने बताया, ओरछा के उस गांव में अधिकतर लड़के विदेशी लड़कियों से शादी कर विदेशों में ही बस गए हैं. मु झे यह सोच कर आश्चर्य हो रहा था कि लड़कियों को जरा सी बात पर गोल्ड डिगर की उपाधि दे दी जाती है लेकिन यह सामान्य है. यदि भारतीय लड़की गलती से लड़के के साथ अलग रहने लगे तो क्रूर कहलाई जाती है, यहां तो लड़कों के परिवार वाले गर्व के साथ बताते हैं कि उन के बेटे बाहर उन की बहुओं के साथ रहते हैं. नैतिकता और नियम भी परिस्थिति और सुविधाओं पर निर्भर रहते हैं. उस ने बताया कि वह भी जल्द ही विदेश में बस जाएगा और इस तरह धीरेधीरे हम अच्छे हमसफर और दोस्त बन गए.

अब हमारी गाड़ी ग्वालियर फोर्ट की जिगजैग सड़कों पर दौड़ रही थी. जल्द ही हम ने टिकट लिए और ग्वालियर फोर्ट घूमने लगे. यह फोर्ट कम से कम 12 किलोमीटर में फैला हुआ है.

मध्य प्रदेश के किलों की यह विशेष खासीयत है कि इन के स्तंभों, दीवारों और छतों को बहुत ही सुंदर नक्काशी से अलंकृत किया गया है. यहां के छोटे से छोटे पत्थर भी मानो अपने अलंकरण पर इतरा रहे हों. किले, दीवारें, छत, खंडित मूर्तियां, खंडहर की ओर बढ़ते भवन एवं पत्थर तक अपनी सुंदरता के मद में फूलते हुए और खूबसूरत बन पड़ते हैं. मैं उन खूबसूरत नक्काशियों को स्पर्श कर, उन शिल्पकारों की भावनाओं को तलाश रही थी जिन्होंने आज भी इन पत्थरों को अपने शिल्प के माध्यम से जीवंत रखा हुआ था. उन्होंने जब पहली बार अपना संपूर्ण शिल्प कौशल देखा होगा तो क्या महसूस किया होगा, कितने भावुक होंगे?

मैं इन सब बातों की कल्पना कर बहुत अचंभित थी. मैं ने देखा कि गार्ड लोगों से अब किला खाली करने का आग्रह कर रहा है. मु झे यों लगा जैसे समय आज अपनी गति से दोगुने वेग से बढ़ रहा है. हम वहां से सासबहू मंदिर पहुंचे जो उस के ही निकट था. जिस का एक नाम सहस्त्रबाहू भी है. संभव है कि सासबहु, सहस्त्रबाहू का अपभ्रंश रूप हो. यह 11वीं सदी में निर्मित विष्णु का मंदिर है. खूबसूरत नक्काशीदार इस मंदिर को काफी क्षति पहुंचाई गई है. इस मंदिर में अभी कोई भी मूर्ति नहीं और न ही यहां पूजा होती है. मैं ने शिवा से अब चाय की मांग की. वहां से निकल कर हम चाय पीने के लिए सुंदर और प्यारीप्यारी वनस्पतियों के बीच बनी छोटी सी दुकान पर चाय पीने लगे.

8 बजने को थे. पेड़पौधे खुशनुमा मौसम की खुशी में झूम रहे थे. हम चाय पी कर फोर्ट से शहर का नाइटव्यू देखने के बाद चौपाटी जाने की योजना बना ही रहे थे कि फोन फिर बज उठा. अनजान नंबर देख एक बार तो न उठाने का निर्णय लिया क्योंकि मैं कभी अनजान नंबर नहीं उठाती, फिर मु झे याद आया कि मैं तो एक चलतीफिरती जिम्मेदारी हूं, होटल वालों का हो सकता है और यह उन्हीं का फोन था. उन्होंने कहा कि 8 बज चुके हैं, उन्हें फिक्र हो रही थी, इसीलिए फोन कर लिया. मैं ने उन का आभार प्रकट किया और थोड़ी देर बाद पहुंचने को कह दिया.

मुझे उन का फोन करना थोड़ा ठीक भी लगा. खैर, हम ने नाइटव्यू देखा और चौपाटी से खापी कर होटल को निकल गए. ग्वालियर में यह मेरी अंतिम रात थी. कल सुबह की फ्लाइट थी. शिवा ने मु झे आश्वासन दिया कि कल वह वक्त से होटल पहुंचेगा और मु झे एयरपोर्ट छोड़ेगा. मैं ने उस से कहा कि कोई प्रैशर नहीं है छोड़ने का, वह चाहे तो अपने लिए टूरिस्ट देख सकता है. लेकिन उस ने कहा कि वह सच में एक दोस्त को छोड़ने जाना चाहता है. हम ने एकदूसरे से शुभरात्रि कह अलविदा लिया.

दूसरे दिन सुबह जल्दीजल्दी पूरी पैकिंग कर टाइम से होटल का हिसाबकिताब किया ही था कि शिवा की गाड़ी आ पहुंची. पहली बार किसी शहर को छोड़ते हुए कुछ छूटता सा महसूस हो रहा था. होटल के सभी स्टाफ से मैं ने विदा ली और सभी स्टाफ वाले यों पंक्ति से खड़े थे मानो घर से कोई करीबी मेहमान जा रहा हो. सब ने बारीबारी अलविदा कहा. सच में, मैं ने इस से पहले कभी ऐसा महसूस नहीं किया और न ही किसी होटल ने मु झे ऐसा महसूस करवाया. उन्होंने मेरा बैग गाड़ी में रखवाया और हम एयरपोर्ट के लिए निकल पड़े. हम ने रास्ते में बहुत बातें कीं. एयरपोर्ट पहुंच कर यादों में सहेजने के लिए सैल्फी ली और शिवा से भी विदा ली. उस ने कहा कि वह दिल्ली आएगा तो हम मिलेंगे.

मेरा एक सफर समाप्त हो चुका था. मैं फ्लाइट के लिए निकल पड़ी एक नए सफर के लिए.

लेखिका : कशिश नेगी

Social Media का सतही ज्ञान, माहौल को बनाता है खतरनाक

Social Media : सोशल मीडिया और टीवी चैनलों पर भारतपाक टकराव की खबरों को इस तरह से दोहराया गया जैसे पौराणिक कथाओं में एक ही बात को बारबार दोहराया जाता है और लोग उसे सच मान लेते हैं.

भारत और पाकिस्तान के बीच टकराव के समय सोशल मीडिया और टीवी चैनलों ने जिस तरह से माहौल का खतरनाक बनाया वह अद्भुत था. सोशल मीडिया पर सतही ज्ञान साफसाफ दिख रहा था. जिन को युद्व की परिभाषा, कूटनीति, अंतरराष्ट्रीय कानून, दो देशों के बीच संबंध उन के आपसी समझौतों का नहीं पता वह सोशल मीडिया पर इस तरह से बोल रहे थे जैसे यह उन के लिए मूलीगाजार खरीदने जैसा काम हो. जिस ने कभी घर के बाहर मोहल्ले की लड़ाई नहीं देखी, गोली नहीं चलाई वह न्यूक्लियर वार पर ऐसे ज्ञान दे रहा हो जैसे परमाणु बम उस की जेब में पड़ा हो.

टीवी चैनल इस तरह से युद्व की कमेंट्री कर रहे थे जैसे युद्ध न हो कर वह आईपीएल मैच हो. देश में पहली बार सोशल मीडिया के जमाने में भारतपाक के बीच टकराव टीवी चैनलों और सोशल मीडिया पर दिख रहा था. टीवी चैनलों ने भारतीय सेना को पाकिस्तान में घुसा दिखा दिया. नेवी का कराची बंदरगाह पर हमला दिखा दिया.

पाकिस्तान सेना के प्रमुख जनरल आसिम मुनीर को हटाने और नया सेना प्रमुख शमशाद मिर्जा को बनवा दिया. पाकिस्तान के प्रधानमंत्री को ले कर खबरें देने लगे. ऐसा लगा जैसे रात में ही पाकिस्तान में तख्तापलट हो जाएगा.

पहलगाम में आतंकी हमले के भारत ने पाकिस्तान में आतंकी हमलावरों और उन के ठिकानों को खत्म करने की बात कही थी. भारत ने पाकिस्तान को भारत में मिलाने, पाकिस्तान से युद्व करने जैसी कोई बात नहीं कही थी. सोशल मीडिया और टीवी चैनलों ने ऐसा नैरेटिव बना दिया जैसे भारत व पाकिस्तान का युद्व खतम हुआ हो.

इस की तुलना 1971 के युद्व से की जाने लगी और पूछा जाने लगा कि पाकिस्तान के चार टुकड़े क्यों नहीं किए गए? सवाल यह भी उठने लगा कि सीजफायर क्यों हुआ? अमेरिका के राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप और भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को ले कर तमाम सवाल होने लगे. यह लोग इस को अभिव्यक्ति की आजादी से जोड़ देते हैं.

अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता

1987 अनुच्छेद 19 अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार देता है. यह बोलने, सुनने और राजनीतिक, कलात्मक और सामाजिक जीवन में भाग लेने का अधिकार है. इस में ‘जानने का अधिकार’ भी शामिल है. जब आप अपने विचार औनलाइन या औफलाइन देते हैं तो आप अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अपने अधिकार का प्रयोग कर रहे होते हैं. जब आप अपनी सरकार की उस के वादों पर खरा न उतरने के लिए आलोचना करते हैं, तो आप अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अपने अधिकार का प्रयोग कर रहे होते हैं.

जब आप धार्मिक, राजनीतिक, सामाजिक या सांस्कृतिक प्रथाओं पर प्रश्न उठाते हैं या बहस करते हैं, तो आप अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अपने अधिकार का प्रयोग कर रहे होते हैं. जब आप किसी शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शन में भाग लेते हैं या उस का आयोजन करते हैं, तो आप अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अपने अधिकार का प्रयोग कर रहे होते हैं.

जब आप कोई कलाकृति बनाते हैं तो आप अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अपने अधिकार का प्रयोग कर रहे होते हैं. जब आप किसी समाचार लेख पर टिप्पणी करते हैं चाहे आप उस का समर्थन कर रहे हों या उस की आलोचना कर रहे हों. तो आप अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अपने अधिकार का प्रयोग कर रहे होते हैं.

अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता राजनीतिक असहमति, विविध सांस्कृतिक अभिव्यक्ति, रचनात्मकता और नवाचार के साथसाथ आत्मअभिव्यक्ति के माध्यम से व्यक्ति के व्यक्तित्व के विकास के लिए मौलिक है. अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता संवाद को सक्षम बनाती है, समझ का निर्माण करती है और सार्वजनिक ज्ञान को बढ़ाती है.

जब हम विचारों और सूचनाओं का स्वतंत्र रूप से आदानप्रदान कर सकते हैं, तो हमारा ज्ञान बढ़ता है, जिस से हमारे समुदायों और समाजों को लाभ होता है. अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता हमें अपनी सरकारों से सवाल पूछने में भी सक्षम बनाती है, जो उन्हें जवाबदेह बनाए रखने में मदद करती है.

सवाल पूछना और बहस करना स्वस्थ है. इस से बेहतर नीतियां और अधिक स्थिर समाज बनते हैं. यहां यह भी समझना जरूरी है कि सवाल किस तरह से पूछे जाएं? मखौल उड़ाते हुए और अपमानजनक, शब्द, विचार और फोटो या वीडियो अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की सीमाओं का उल्लघंन करते हैं.

सोशल मीडिया ने बदल दिया माहौल

पहले जब चौराहों पर चर्चा होती थी तब इन का दायरा 8-10 लोग होते थे. चर्चा आपस में होती थी दोनों पक्ष एकदूसरे से तर्क कर लेते थे. बात एक सीमित दायरे में रहती थी. समाचार पत्रों में जो लेख प्रकाशित होते थे उन के साथ भी लोग सहमत और असहमत होते रहते थे. इस के लिए वह संपादक के नाम पत्र में इस बात का जिक्र करते थे. वह अपने तर्क देते थे जिन को समाचार पत्रों में प्रकाशित भी किया जाता था. तर्क लिख कर देने होते थे तो तर्क देने वाला किताबों से पढ़ कर तर्क जुटा लेता था.

सोशल मीडिया पर चर्चा एक पक्षीय होती है. सोशल मीडिया पर पोस्ट करने वाला जरूरी नहीं कि अपनी सफाई दे या जो उस की पोस्ट के विपरीत जो बातें हैं उन के जवाब दे. सोशल मीडिया पर तर्क की जगह कुर्तक ज्यादा होते हैं. कई बार ऐसे लोग तर्क देने लगते हैं जिन को उस विषय में पता ही नहीं होता है. ताजा उदाहरण भारत व पाकिस्तान टकराव के समय देखने को मिला.

कई ऐसे फोटो और वीडियों दोनो ही पक्षों ने बना कर पोस्ट और फारवर्ड किए जो बेहद आपत्तिजनक हैं. सूचनाएं बेहद भ्रामक हैं. यह अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की सीमाओं का उल्लघंन है.

इन में सोशल मीडिया से भी बड़ी भूमिका टीवी चैनलों की रही है. अर्नब गोस्वामी ने रिपब्लिक भारत पर कहा ‘अमेरिका कौन होता है सीजफायर कराने वाला?’ वह अपने अलगअलग कार्यक्रमों में इस तरह की बातें करते रहे जिन का कोई जमीनी आधार नहीं है.

सीजफायर पर बात करते अर्नब गोस्वामी ने कहा कि ‘पाकिस्तान और अमेरिका ने एक प्रेम कहानी मिल कर लिखी है. जिस में चीन कह रहा कि मोहब्बत उस से और कहानी अमेरिका से’. यह बात केवल रिपब्लिक भारत की बात नहीं है.

दूसरे चैनलों ने भी इसी तरह की रिपोर्ट पेश की गई. जिस का कोई आधार नहीं था. इन में श्वेता सिंह, चित्रा त्रिपाठी और रूबिका लियाकत जैसे कई एंकरों ने 7 मई की रात जिस तरह से पाकिस्तान के बारें में खबरें दी उन की सुबह कोई खबर नहीं थी.

कई खबरें तो चैनलों से हट गई. खबरों में कुछ होता था और उन के थंबनेल पर कुछ और लिखा होता था. इस तरह से दर्शक पूरी तरह से भ्रमित थे. उन को समझ नहीं आ रहा था कि वह क्या करें?

टीवी के एंकर जिस तरह से एक तरफ से दूसरी तरफ कूदकूद कर बता रहे थे उसे देख कर यह नहीं लग रहा था कि कोई युद्ध की रिपोर्ट दिखाई दे रही. उस को देख कर लग रहा था जैसे आईपीएल क्रिकेट मैच या फिर चुनावी मतगणना चल रही थी.

टीवी चैनलों पर होड़ लगी थी कि कौन कितनी बड़ी झूठ फेंक सकता है. किसी ने कराची बंदरगाह उड़वा दिया तो किसी ने इस्लामाबाद कब्जा करा दिया.

कुछ चैनलों ने पाकिस्तान के सेना प्रमुख आसिफ मुनीर को हटवा शमशाद अहमद को सेना प्रमुख बना दिया. पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ का तख्ता पलट करा दिया.

कुछ चैनलों ने इस बात को फैलाने का काम भी किया जैसे आसिफ मुनीर को पकड़ लिया गया है और उस को भारत लाया जा रहा है. उस पूरी रात ऐसा माहौल पूरे देश में बना दिया जैसे सुबह भारत व पाकिस्तान में अपना झंडा फहरा देगा. इस तरह की रिपोर्टिंग दोनों ही तरफ से हुई. हिंदू जैसे अखबार ने एक गलत खबर अपने डिजिटल एडीशन में पोस्ट की बाद में उस को हटाया और माफी मांग ली.

खराब हुआ माहौल

टीवी, सोशल मीडिया और डिजिटल मीडिया ने पूरे देश का महौल खराब कर दिया. देश को लगा जैसे भारत व पाकिस्तान युद्ध हो रहा है. 1971 की तरह भारत व पाकिस्तान के कम से कम 2 टुकड़े ब्लूचिस्तान और पीओके तो कर ही देगा. इन खबरों की वजह से देश की जनता को भी यह उम्मीद जग गई. वह यह भूल ही गए कि यह युद्व नहीं है. यह भारत की आतंकियों के खिलाफ जंग थी. जिस का पाकिस्तान की सेना से कोई मतलब नहीं था. यह सारे हमले मिसाइल के जरिए हो रहे थे. सेनाएं आमनेसामने नहीं थी.

8 मई को जब देश ने देखा कि सोशल मीडिया और टीवी चैनलों ने देश में युद्ध सा माहौल बना दिया तो भारत सरकार की तरफ से इस की एक गाइडलाइन जारी हुई. जिस के तहत कहा गया कि कोई भी टीवी चैनल अपनी खबरों को दिखाते समय युद्व का सायरन नहीं बजाएगा.

युद्ध के वीडिया बिना सच्चाई जाने नहीं दिखाएगा. इस तरह से खबरें न दिखाई जाएं जिस से देश का माहौल खराब हो. इस के बाद भी जनता यह मान चुकी थी कि भारत व पाकिस्तान युद्ध हो रहा है. इन खबरों का असर यह हुआ कि जब दोनों देशों के बीच हमले रोकने के बात हुई तो जनता को बेहद निराशा हुई.

जो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी एक दिन पहले तक हीरो थे उन को लोग बुराभला कहने लगे. इन की शिकायत एक थी कि बिना पाकिस्तान के टुकड़े किए युद्व विराम क्यों हुआ? युद्व विराम की घोषणा अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने क्यों की? इस की सफाई देने के लिए 2 बार सेना ने प्रेस कान्फ्रैंस की और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राष्ट्र के नाम अपना संदेश भी दिया.

इस के बाद भी जनता के सवाल कायम है कि सीजफायर अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के कहने पर क्यों किया? यही नहीं जनता ने यह खोज निकाला है कि गौतम अडानी को लाभ दिलाने के लिए नरेंद्र मोदी ने युद्व को बीच में रोक दिया.

यह हालात बनाने में सोशल मीडिया के सतही ज्ञान और टीवी चैनलों की गैर जिम्मेदारी भरी रिपोर्टिंग रही है. इस ने जनता के मन पर इतना गहरा असर डाला कि लोग उसे ही सही मानने लगे हैं. जिस तरह से पौराणिक कथाओं में बारबार एक ही बात दोहराई जाती है जिस को लोग सच मान लेते हैं उसी तरह से टीवी चैनलों और सोशल मीडिया की खबरों को सच मान लिया गया.

अब सवाल मोदी और ट्रंप की दोस्ती पर उठ रहे हैं. यह कहा जा रहा है कि ट्रंप ने मोदी को धोखा दिया है. डिप्लोमेसी को न समझने वाले लोग भी डिप्लोमेसी की बात बता रहे हैं.

हमारा समाज पौराणिक काल से तर्क की जगह सुनीसुनाई बातों पर यकीन करने वाला रहा है. रामायण में धोबी की कही सुनी बात पर राजा राम ने अपनी पत्नी सीता का घर से निकाल कर जंगलों में भेज दिया. आज भी सच से ज्यादा तेज अफवाहें फैलती हैं. कहीं आदमी पत्थर का बन जाता है तो कहीं मूर्तियां दूध पीने लगती हैं.

सोशल मीडिया के जमाने में इस तरह की अफवाहें खूब फैल रही हैं. टीवी चैनल कभी स्वर्ग में सीढ़ी लगा रहे हैं तो कभी 2 हजार के नोट में चिप लगा रहे हैं. युद्ध काल में इस तरह की खबरें न केवल भ्रम फैलाती हैं बल्कि सेना के मनोबल पर भी असर डालती हैं.

Hindi Poem : माना जीवन इतना आसान नहीं

Hindi Poem : माना जीवन में अँधियारा है.
जुगनू कब रातों से हारा है.
माना रास्ता आसान नहीं है.
गिरना तेरी पहचान नहीं.

वक्त की ठोकरे बहुत हैं.
समय की पाबंदी भी है साथ तेरे.
कठिन रास्ता अनजान सफर है.
मंजिल अभी दूर बहुत है.

कितनी दूर कितनी पास.
इसका हिसाब कौन रखेगा.
तेरे साथ कौन चलेगा.
चलना तुझे अकेले ही होगा.

मंजिल पर पहुंच कर.
मुस्कुराना भी तुझे ही होगा.
अभी अपने हट को बांध कर रख.
अपने इरादों पर नजर रख.

सफर की कहानी रोचक होगी.
आगे इतिहास की कहानी वही होगी.
सपनों की उड़ान बड़ी ऊंची होगी.
खुद से ही लड़ाई होगी.

खुद की कहानी होगी.
खुद से ही हार कर जीत की जुबानी होगी.

लेखिका : Anupama Arya

Hindi Kahani : फेसबुक – क्या राशी और श्वेता भी हो गई धोखाधड़ी का शिकार ?

Hindi Kahani : कालेज में फ्री पीरियड में जैसे ही श्वेता ने अपनी सहेली अमिता और राशी को अपने बौयफ्रैंड रोहन के बारे में बताया तो राशी हैरान होते हुए बोली, ‘‘तू बड़ी छिपीरुस्तम निकली, पिछले 6 महीने से तुम दोनों का चक्कर चल रहा है और हमें तू आज बता रही है.’’

‘‘तो तुम ने कौन सा अपने जयपुर वाले बिजनैसमैन बौयफ्रैंड संचित से हमें अभी तक मिलवाया है,’’ श्वेता ने पलट कर जवाब दिया.

‘‘प्लीज, दोनों लड़ो मत. चलो, कैंटीन चलते हैं, बाकी बातें वहीं कर लेना,’’ अमिता दोनों को चुप कराते हुए बोली.

तीनों क्लास रूम से उठ कर कैंटीन की तरफ चल दीं.

राशी ने 3 बर्गर और हौट कौफी और्डर करते हुए श्वेता से पूछा, ‘‘चल छोड़, अब यह बता, तुम मिले कहां? रोहन के परिवार में कौनकौन है? हमें उस से कब मिलवा रही है?’’

‘‘क्या एक के बाद एक सवालों की बौछार कर रही है, आराम से एकएक कर के पूछ,’’ अमिता ने राशी को टोका.

‘‘अभी तो मैं ही रोहन से नहीं मिली तो तुम्हें कैसे मिलवाऊं,’’ श्वेता ने मजबूरी जताई.

‘‘तो पिछले 6 महीने से तुम एक बार भी नहीं मिले,’’ राशी ने हैरानी से पूछा.

‘‘तो तुम कौन सा संचित से मिली हो,’’ श्वेता ने उसी लहजे में राशी से पूछा.

‘‘संचित बिजनैस के सिलसिले में अकसर विदेश जाता है, उस ने तो मुझे अपने साथ सिंगापुर चलने के लिए कहा था, पर मैं ने ही मना कर दिया. शादी के बाद उस के साथ दुनिया घूमूंगी,’’ राशी चहकते हुए बोली.

‘‘चलो, चलो, बर्गर खाओ, ठंडा हो रहा है,’’ अमिता ने कहा.

‘‘अच्छा, यह तो बता रोहन दिखता कैसा है, उस का कोई फोटो तो दिखा,’’ राशी श्वेता का मोबाइल उठाते हुए बोली.

‘‘अभी उस की आर्मी की ट्रेनिंग पूरी नहीं हुई है, इसलिए उस ने कोई फोटो नहीं भेजा,’’ श्वेता ने जवाब दिया, ‘‘सुनो, कल उस का बर्थडे है, मैं तुम सब को ट्रीट दूंगी,’’ उस ने आगे कहा.

‘‘क्या तू ने रोहन के लिए कोई गिफ्ट नहीं भेजा,’’ अमिता ने श्वेता से पूछा.

‘‘क्यों नहीं, मैं ने उस की मनपसंद घड़ी कोरियर से एक हफ्ते पहले ही भेज दी थी,’’ श्वेता बोली.

‘‘पिछले महीने तेरे बर्थडे पर रोहन ने क्या दिया,’’ राशी ने उत्सुकता से पूछा.

‘‘उस ने कहा कि वह ट्रेनिंग खत्म होते ही दिल्ली आएगा और मुझे मनपसंद शौपिंग कराएगा,’’ श्वेता चहकते हुए बोली.

‘‘ग्रेट,’’ राशी ने कहा.

‘‘एक मिनट, मुझे तो तुम दोनों के बौयफ्रैंड्स में कुछ गड़बड़ लग रही है,’’ अमिता परेशान होते हुए बोली.

‘‘तेरा कोई बौयफ्रैंड नहीं है, इसलिए तू हम से जलती है,’’ राशी तुनक कर बोली.

तीनों कैंटीन से आ कर क्लास रूम में बैठ गईं, पर अमिता का मन पढ़ने में नहीं लग रहा था, वह यही सोचती रही कि जिन लड़कों को इन्होंने देखा नहीं, उन से मिली नहीं, उन के सपनों में खो कर अपना कीमती समय बरबाद कर रही हैं. कहीं ऐसा तो नहीं कि इन दोनों को एक ही लड़का बेवकूफ बना रहा हो, लेकिन इन्हें समझाना बहुत मुश्किल है. उस ने मन ही मन एक प्लान बनाया और कालेज की छुट्टी के समय दोनों से बोली, ‘‘सुनो, तुम दोनों संडे को मेरे घर आ जाओ, मैं घर पर अकेली हूं, मम्मीपापा कहीं बाहर जा रहे हैं.’’

राशी और श्वेता दोनों संडे को 11 बजे अमिता के घर पहुंच गईं. अमिता दोनों के लिए गरमागरम मैगी बना कर लाई. इसी बीच अमिता अपना लैपटौप भी उठा लाई और दोनों से बोली, ‘‘चलो, आज रोहन और संचित से चैटिंग करते हैं.’’

यह सुन कर श्वेता ने जल्दी से अपना फेसबुक अकाउंट ओपेन किया और रोहन से चैटिंग करने लगी.

‘‘सुन, तू उसे यह मत बताना कि मेरी सहेलियां भी साथ हैं. उस से उस के कुछ फोटो मंगा,’’ अमिता ने श्वेता को सलाह दी.

‘‘6 महीने में रोहन को पूरा विश्वास हो गया था कि श्वेता उस के जाल में पूरी तरह फंस चुकी है, इसलिए उस ने अपने कुछ फोटो उसे भेज दिए.’’

फोटो देखते ही राशी चौंक उठी और बोली, ‘‘ये तो संचित के फोटो हैं.’’

अमिता उसे शांत करते हुए बोली, ‘‘चौंक मत, संचित और रोहन अलग न हो कर एक ही शख्स है, यह न तो आर्मी में है और न ही बिजनैसमैन. यह तुम दोनों को अपने अलगअलग नामों से बेवकूफ बना रहा है.’’

‘‘यह तू क्या कह रही है, क्या तू इसे जानती है?’’ राशी ने अमिता से पूछा.

उस ने हंसते हुए कहा, ‘‘तुम ही सोचो, तुम ने अपने बौयफ्रैंड्स को महंगे गिफ्ट भेजे, लेकिन उन्होंने तुम्हें कुछ नहीं दिया, मिलने के मौकों को टाला, यह तो अच्छा है कि तुम दोनों समय रहते बच गईं.’’

‘‘आजकल सोशल नैटवर्किंग साइट्स पर आएदिन ऐसे किस्से सुनने को मिल रहे हैं. इसलिए इन सब से सावधान रहना चाहिए,’’ उस ने आगे कहा.

‘‘पर मुझे तो रोहन ने अपना एड्रैस दिया था, जिस पर मैं ने गिफ्ट भेजे हैं,’’ श्वेता ने कहा.

‘‘मेरी भोली सहेली, जब तक तुम उस का पता करने उस के एड्रैस पर पहुंचोगी तब तक वह शातिर वहां से भाग चुका होगा, ऐसे लोग बहुत शातिर होते हैं, इसलिए कभी भी वे एक एड्रैस पर लंबे समय तक नहीं ठहरते. बस, अपना उल्लू सीधा किया और नौदो ग्यारह हो गए.’’ अमिता ने कहा.

‘‘कम औन, पहले अपनी ग्रैजुएशन पूरी करो फिर बौयफ्रैंड बनाना,’’ उस ने दोनों को सुझाव दिया.

‘‘तू ठीक कहती है अमिता, तू ने हमें हकीकत से परिचित करवा कर समय रहते बचा लिया, न जाने यह हमें कितना बेवकूफ बनाता,’’ राशी बोली.

‘‘चलो, तुम दोनों किसी अनहोनी से बच गईं अन्यथा ताउम्र उन्हें इस का खमियाजा भुगतना पड़ता. आओ, इसी बात पर पकौड़े बनाते हैं,’’ कह कर अमिता दोनों सहेलियों को ले कर किचन की ओर बढ़ गई.

Hindi Story : प्रोतिमा – गौरी का अपनी मां से ही क्यों उठ गया था विश्वास ?

Hindi Story : श्लोक ध्वनि ने गौरी को बिस्तर से उठने को मजबूर कर दिया. आज थोड़ी देर और सोने वाली थी फिर उसे याद आया कि आज ही तो प्रधान मूर्तिकार आने वाले हैं, मां की प्रतिमा के लिए मिट्टी लेने. आज सोनागाछी की गलीगली में गणिकाएं सुबह से ही केशों से स्नान कर उन की बाट जोहती रहेंगी. कहते हैं, दुर्गा ने अपनी परम भक्त वैश्या को वरदान दिया था कि तुम्हारे हाथ से ली गई गंगा की चिकनी मिट्टी से ही मेरी प्रतिमा बनेगी. दुर्गा ने अपनी भक्त को सामाजिक तिरस्कार से बचाने के लिए ही ऐसा किया. तब से ही सोनागाछी की मिट्टी से देवी की प्रतिमा बनाने की शुरुआत हुई, ऐसा प्रचलित है.

‘सच में, मां दुर्गा ने कितनी खुशी दी हम गणिकाओं को,’ गौरी का मन खुशियों से भर उठा.

आज वह भी पवित्र जल से स्नान करेगी और माथे पर सिंदूर की एक लाल बिंदी लगाएगी. कल ही बिडन स्ट्रीट से रसगुल्ले की हांड़ी ले कर आई है. सब को मन भर कर खिलाएगी. तभी ढाक के स्वर से गलीआंगन भर गया. ढाक बजाते हुए ढाक वाला और पीछे मूर्तिकार. गौरी और सभी गणिकाएं किनारे खड़ी रहीं. आज समाज से परित्यक्त हुई इन नारियों के भाग्य जागे हैं. मां की पूजा की शुरुआत यहीं से होगी. यहां से मिट्टी जाएगी, मां की प्रतिमा का आरंभ होगा और फिर षष्ठी के दिन आधी बनी मूर्ति को चक्षुदान किया जाएगा. मां देखेंगी संसार में फैली असमानता और अन्याय.

गौरी का मन अचानक कसैला हो आया. याद आया उसे अपना गांव, अपना घर, धान के खेतों में काम करते उस के खेतिहर पिता, घर में धान कूटती मेहनतकश मां. फिर भी पेट की पीड़ा से बचने के लिए प्राण प्यारी संतान को काम के लिए कोलकाता भेज दिया. घर के काम के लिए लाए थे राखाल दादा, मगर देह के काम में लगा दिया. जिन मातापिता को सुख पहुंचाने के लिए इस दलदल में फंसी थी उन्होंने ही मुंह फेर लिया. अब वे इस नापाक बेटी को देखना भी नहीं चाहते थे.

धीरे से आंखों से छलक आए आंसुओं को पोंछ लिया गौरी ने. क्यों मन मैला करे. वह भी पूजा बाजार करेगी. नई साड़िया खरीदेगी. बालों में गजरा लगा कर पूजा देखने जाएगी और धूनी नाच भी नाचेगी. उस की मां ने मुंह फेरा है तो क्या हुआ दुर्गा मां तो उस की हैं न, उन की प्रतिमा में ही अपनी मां देखेगी गौरी.

गौरी ने अपनी अलमारी खोल कर देखा अपनी छिपी हुई पोटली को, कितने पैसे जमा कर पाई है वह. कोठे की मालकिन को देने के बाद खर्चों से जो बचा है वही उस की बचत है. उसे मालूम है कि उस के पेशे में सिर्फ युवा देह की कीमत है इसलिए बाकायदा बैंक में खाता खोल कर नियमित बचत करती है. इस के अलावा कुछ मिल जाए तो अपनी इसी पोटली में रख देती है. कांथे की कढ़ाई में उस का हाथ बहुत साफ है.दिन के समय वह कांथा वर्क की साड़ियां काढ़ती रहती है. उस की इच्छा है कि बाद में वह अपना बुटीक खोले जहां हाथ से कढ़ी साड़ियां बेचेगी वह.

विचारों में डूबी गौरी ने देखा कि शाम हो चली है. रंगमहल सज चुके थे और व्यापार शुरू हो गया था. गौरी भी इस बाजार में बिकने उतर चली. दूसरे दिन दोपहर में उस ने पूजा का बाजार करने की ठानी. एक गुलाबी जामदानी उस के मन को बहुत भा गई थी. उस ने वह खरीद ली. इधरउधर दुकानें देखते हुए दिन ढल गया था. गौरी अपने घर की तरफ चल दी. वही तो था उस का घर, उस की दुकान. सबकुछ उस का वही तो
था.

जैसे ही वह अपनी गली में मुड़ी एक नौजवान लड़की आ कर उस से लिपट गई,”मुझे बचा लो दीदी, गुंडे मेरे पीछे पड़े हैं,” लड़की फुसफुसाई.

गौरी उसे घसीट कर कोने वाले मकान के बरामदे में ले गई और दोनों एक अंधेरे कोने में छिप गईं. थोड़ी देर में कुछ दौड़ते कदमों की आहट सुनाई पड़ी. खतरनाक दिखते 2-3 लोग थे.

‘’कहां गई? इधर ही आई थी,” उन में से एक बोला.

“उस्ताद, नहीं मिली तो पैसे गए हाथ से.”

“अरे कहां जाएगी. चलो आगे की गलियों में ढूंढ़ते हैं,” कुछ देर ढूंढ़ने के बाद वे चले गए.

लड़की अभी भी हांफ रही थी. गौरी ने कहा,”तुझे पीछे की गली से निकाल दूंगी. यहां का सारा रास्ता मेरा जानापहचाना है.”

लड़की बोली,”दीदी, कहां जाऊंगी, मेरी सगी मां ने ही पैसों के लिए मुझे बेच दिया है. अब मरने के अलावा कुछ चारा नहीं है, क्या करूं?”

गौरी कुछ पल सोचती रही फिर बोली,”सुनो, जहां मैं रहती हूं वहां तुझे नहीं ले जा सकती. वह तो इस से भी बड़ा कुआं है. वहां तो तुझे रोज दरिंदे खाएंगे.”

“फिर क्या करूं मैं?” लड़की की आवाज में हताशा थी.

“सुन, मेरी जानपहचान की एक टीचर हैं. यही से तीसरे मकान में. उन के पास छोड़ देती हूं, आगे तेरी किस्मत,“ गौरी बोली.

गौरी ने जा कर मजुमदार मैडम का दरवाजा खटखटाया. उन से जानपहचान अचानक ही हुई थी. एक बार मंदिर के सामने मजुमदार मैडम गिर गई थीं और गौरी ने ही उन्हें उठाया था और घर पहुंचाया था. लेकिन गौरी उन्हें अपना परिचय देने का साहस नहीं कर पाई थी. मैडम ने उसे बताया था कि वे रिटायर्ड टीचर हैं.

दरवाजा मैडम ने खोला. वे गौरी को पहचान गई थीं. गौरी ने उन से उस लड़की को शरण देने की विनती की. मैडम ने ध्यान से लड़की को देखा और पूछा,”नाम क्या है तुम्हारा?” गौरी तो भागदौड़ में नाम पूछना ही भूल गई थी.

लड़की ने जवाब दिया,” मेरा नाम नमिता है.”

“ठीक है, यहां छोड़ सकती हो. मैं देखूंगी क्या करना है,” मैडम ने कहा.

गौरी ने धन्यवाद देते हुए कहा, “आप के पास इसीलिए लाई हूं कि कहीं गलत जगह न फंस जाए.”

“ठीक है,” कह कर मैडम ने गौरी को विदा किया.

आज गौरी को चैन की नींद आई थी कि उस ने किसी की जिंदगी खराब होने से बचा ली.

2 महीने इसी तरह बीत गए. एक बार गौरी का मन हुआ की वह मजुमदार मैडम के घर पर जा कर हालचाल पूछ ले लेकिन कई बार जाने पर भी उस ने वहां ताला ही लगा पाया. गौरी ने सोचा शायद वह नमिता को अपने साथ किसी दूसरी जगह ले गई हैं.

दोपहर को कोठे की मालकिन के कमरे से काफी शोरशराबा आ रहा था. वह किसी को धमका रही थी और किसी लड़की की रोने की आवाज़ आ रही थी,”सुनो, इस को समझा, नहीं तो इस का क्या हाल होगा बता दो.”

गौरी ने सुना, वह जानती थी क्या हाल होता है जब जानवर शरीर को बोटियों की तरह चिंचोरते हैं, बारबार के बलात्कार से तन के साथ मन कैसे टूटता है, गौरी को पता है. वह आदमी लड़की को घसीटते हुए निकला. गौरी एक कोने में खड़ी हो गई, रोती हुई लड़की ने चेहरा उठाया तो कांप गई गौरी, यह तो नमिता थी.

“तू यहां?”

“दीदी, आप जिसे प्रतिमा बनाने दे आई थीं उस ने ही इसे तोड़ दिया. मां के बाद मैडम ने बेच दिया.”

गौरी का सिर चकराने लगा था. वह धीरे से अपने कमरे में आ कर बैठ गई. ढाक की आवाज गली के सिरहाने से आ रही थी. उसे लगा जैसे यह उस के सिर पर ही बज रहा हो. यहां की मिट्टी से ही प्रतिमा की शुरुआत होती है और उसी प्रतिमा को पूजने वाले हम जैसी जीवित प्रतिमाओं को किस तरह तोड़ डालते हैं? क्या इस का कोई जवाब है किसी के पास?

आज विसर्जन का दिन है और सिंदूर खेला का दिन, लेकिन गौरी का मन उदास है. धीरेधीरे दिन निकल गया है और शाम को तो गौरी जरूर जाएगी मां को विदा देने के लिए. घाट पर किनारे खड़ी है गौरी, मां की प्रतिमा को विसर्जित होते देख रही है.

वैश्यालय की मिट्टी से निर्मित प्रतिमा धूमधाम से जा रही है लेकिन जहां की मिट्टी है वहां की जीतीजागती प्रतिमाएं अंधेरों के कुएं से कभी नहीं निकल पाएंगी. ऐसे ही टूटती रहेंगी यह प्रतिमाएं, बदनामी की कालिख में लिपटी.

Love Story : अंतिम मुस्कान – क्यों शादी नहीं करना चाहती थी प्राची?

Love Story : ‘‘एकबार, बस एक बार हां कर दो प्राची. कुछ ही घंटों की तो बात है. फिर सब वैसे का वैसा हो जाएगा. मैं वादा करती हूं कि यह सब करने से तुम्हें कोई मानसिक या शारीरिक क्षति नहीं पहुंचेगी.’’

शुभ की बातें प्राची के कानों तक तो पहुंच रही थीं परंतु शायद दिल तक नहीं पहुंच पा रही थीं या वह उन्हें अपने दिल से लगाना ही नहीं चाह रही थी, क्योंकि उसे लग रहा था कि उस में इतनी हिम्मत नहीं है कि वह अपनी जिंदगी के नाटक का इतना अहम किरदार निभा सके.

‘‘नहीं शुभ, यह सब मुझ से नहीं होगा. सौरी, मैं तुम्हें निराश नहीं करना चाहती थी परंतु मैं मजबूर हूं.’’

‘‘एक बार, बस एक बार, जरा दिव्य की हालत के बारे में तो सोचो. तुम्हारा यह कदम उस के थोड़े बचे जीवन में कुछ खुशियां ले आएगा.’’

प्राची ने शुभ की बात को सुनीअनसुनी करने का दिखावा तो किया पर उस का मन दिव्य के बारे में ही सोच रहा था. उस ने सोचा, रातदिन दिव्य की हालत के बारे में ही तो सोचती रहती हूं. भला उस को मैं कैसे भूल सकती हूं? पर यह सब मुझ से नहीं होगा.

मैं अपनी भावनाओं से अब और खिलवाड़ नहीं कर सकती. प्राची को चुप देख कर शुभ निराश मन से वहां से चली गई और प्राची फिर से यादों की गहरी धुंध में खो गई.

वह दिव्य से पहली बार एक मौल में मिली थी जब वे दोनों एक लिफ्ट में अकेले थे और लिफ्ट अटक गई थी. प्राची को छोटी व बंद जगह में फसने से घबराहट होने की प्रौब्लम थी और वह लिफ्ट के रुकते ही जोरजोर से चीखने लगी थी. तब दिव्य उस की यह हालत देख कर घबरा गया था और उसे संभालने में लग गया था.

खैर लिफ्ट ने तो कुछ देर बाद काम करना शुरू कर दिया था परंतु इस घटना ने दिव्य और प्राची को प्यार के बंधन में बांध दिया था. इस मुलाकात के बाद बातचीत और मिलनेजुलने का सिलसिला चल निकला और कुछ ही दिनों बाद दोनों साथ जीनेमरने की कसमें खाने लगे थे. प्राची अकसर दिव्य के घर भी आतीजाती रहती थी और दिव्य के मातापिता और उस की बहन शुभ से भी उस की अच्छी पटती थी.

इसी बीच मौका पा कर एक दिन दिव्य ने अपने मन की बात सब को कह दी, ‘‘मैं प्राची के साथ शादी करना चाहता हूं,’’ किसी ने भी दिव्य की इस बात का विरोध नहीं किया था.

सब कुछ अच्छा चल रहा था कि एक दिन अचानक उन की खुशियों को ग्रहण लग गया.

‘‘मां, आज भी मेरे पेट में भयंकर दर्द हो रहा है. लगता है अब डाक्टर के पास जाना ही पड़ेगा.’’ दिव्य ने कहा और वह डाक्टर के पास जाने के लिए निकल पड़ा.

काफी इलाज के बाद भी जब पेट दर्द का यह सिलसिला एकदो महीने तक लगातार चलता रहा तो कुछ लक्षणों और फिर जांचपड़ताल के आधार पर एक दिन डाक्टर ने कह ही दिया, ‘‘आई एम सौरी. इन्हें आमाशय का कैंसर है और वह भी अंतिम स्टेज का. अब इन के पास बहुत कम वक्त बचा है. ज्यादा से ज्यादा 6 महीने,’’ डाक्टर के इस ऐलान के साथ ही प्राची और दिव्य के प्रेम का अंकुर फलनेफूलने से पहले ही बिखरता दिखाई देने लगा.

आंसुओं की अविरल धारा और खामोशी, जब भी दोनों मिलते तो यही मंजर होता.

‘‘सब खत्म हो गया प्राची, अब तुम्हें मुझ से मिलने नहीं आना चाहिए.’’ एक दिन दिव्य ने प्राची को कह दिया.

‘‘नहीं दिव्य, यदि वह आना चाहती है, तो उसे आने दो,’’ शुभ ने उसे टोकते हुए कहा. ‘‘जितना जीवन बचा है, उसे तो जी लो वरना जीते जी मर जाओगे तुम. मैं चाहती हूं इन 6 महीनों में तुम वह सब करो जो तुम करना चाहते थे. जानते हो ऐसा करने से तुम्हें हर पल मौत का डर नहीं सताएगा.’’

‘‘हो सके तो इस दुख की घड़ी में भी तुम स्वयं को इतना खुशमिजाज और व्यस्त कर लो कि मौत भी तुम तक आने से पहले एक बार धोखा खा जाए कि मैं कहीं गलत जगह तो नहीं आ गई. जब तक जिंदगी है भरपूर जी लो. हम सब तुम्हारे साथ हैं. हम वादा करते हैं कि हम सब भी तुम्हें तुम्हारी बीमारी की गंभीरता का एहसास तक नहीं होने देंगे.’’

बहन के इस ऐलान के बाद उन के घर का वातावरण आश्चर्यजनक रूप से बदल

गया. मातम का स्थान खुशी ने ले लिया था. वे सब मिल कर छोटी से छोटी खुशी को भी शानदार तरीके से मनाते थे, वह चाहे किसी का जन्मदिन हो, शादी की सालगिरह हो या फिर कोई त्योहार. घर में सदा धूमधाम रहती थी.

एक दिन शुभ ने अपनी मां से कहा, ‘‘मां, आप की इच्छा थी कि आप दिव्य की शादी धूमधाम से करो. दिव्य आप का इकलौता बेटा है. मुझे लगता है कि आप को अपनी यह इच्छा पूरी कर लेनी चाहिए.’’

मां उसे बीच में ही रोकते हुए बोलीं, ‘‘देख शुभ बाकी सब जो तू कर रही है, वह तो ठीक है पर शादी? नहीं, ऐसी अवस्था में दिव्य की शादी करना असंभव तो है ही, अनुचित भी है. फिर ऐसी अवस्था में कौन करेगा उस से शादी? दिव्य भी ऐसा नहीं करना चाहेगा. फिर धूमधाम से शादी करने के लिए पैसों की भी जरूरत होगी. कहां से आएंगे इतने पैसे? सारा पैसा तो दिव्य के इलाज में ही खर्च हो गया.’’

‘‘मां, मैं ने कईर् बार दिव्य और प्राची को शादी के सपने संजोते देखा है. मैं नहीं चाहती भाई यह तमन्ना लिए ही दुनिया से चला जाए. मैं उसे शादी के लिए मना लूंगी. फिर यह शादी कौन सी असली शादी होगी, यह तो सिर्फ खुशियां मनाने का बहाना मात्र है. बस आप इस के लिए तैयार हो जाइए.

‘‘मैं कल ही प्राची के घर जाती हूं. मुझे लगता है वह भी मान जाएगी. हमारे पास ज्यादा समय नहीं है. अंतिम क्षण कभी भी आ सकता है. रही पैसों की बात, उन का इंतजाम भी हो जाएगा. मैं सभी रिश्तेदारों और मित्रों की मदद से पैसा जुटा लूंगी,’’ कह कर शुभ ने प्राची को फोन किया कि वह उस से मिलना चाहती है.

और आज जब प्राची ने शुभ के सामने यह प्रस्ताव रखा तो प्राची के जवाब ने शुभ को निराश ही किया था परंतु शुभ ने निराश होना नहीं सीखा था.

‘‘मैं दिव्य की शादी धूमधाम से करवाऊंगी और वह सारी खुशियां मनाऊंगी जो एक बहन अपने भाई की शादी में मनाती है. इस के लिए मुझे चाहे कुछ भी करना पड़े.’’ शुभ अपने इरादे पर अडिग थी.

घर आते ही दिव्य ने शुभ से पूछा, ‘‘क्या हुआ, प्राची मान गई क्या?’’

‘‘हां मान गई. क्यों नहीं मानेगी? वह तुम से प्रेम करती है,’’ शुभ की बात सुन कर दिव्य के चेहरे पर एक अनोखी चमक आ गई जो शुभ के इरादे को और मजबूत कर गई.

शुभ ने दिव्य की शादी के आयोजन की इच्छा और इस के लिए आर्थिक मदद की जरूरत की सूचना सभी सोशल साइट्स पर पोस्ट कर दी और इस पोस्ट का यह असर हुआ कि जल्द ही उस के पास शादी की तैयारियों के लिए पैसा जमा हो गया.

घर में शादी की तैयारियां धूमधाम से शुरू हो गईं. दुलहन के लिए कपड़ों और गहनों का

चुनाव, मेहमानों की खानेपीने की व्यवस्था, घर की साजसजावट सब ठीक उसी प्रकार होने लगा जैसा शादी वाले घर में होना चाहिए.

शादी का दिन नजदीक आ रहा था. घर में सभी खुश थे, बस एक शुभ ही चिंता में डूबी हुई थी कि दुलहन कहां से आएगी? उस ने सब से झूठ ही कह दिया था कि प्राची और उस के घर वाले इस नाटकीय विवाह के लिए राजी हैं पर अब क्या होगा यह सोचसोच कर शुभ बहुत परेशान थी.

‘‘मैं एक बार फिर प्राची से रिक्वैस्ट करती हूं. शायद वह मान जाए.’’ सोच कर शुभ फिर प्राची के घर पहुंची.

‘‘बेटी हम तुम्हारे मनोभावों को बहुत अच्छी तरह समझते हैं और हम तुम्हें पूरा सहयोग देने के लिए तैयार हैं पर प्राची को मनाना हमारे बस की बात नहीं. हमें लगता है कि दिव्य के अंतिम क्षणों में, उसे मौत के मुंह में जाते हुए पर मुसकराते हुए वह नहीं देख पाएगी, शायद इसीलिए वह तैयार नहीं है. वह बहुत संवेदनशील है,’’ प्राची की मां ने शुभ को समझाते हुए कहा.

‘‘पर दिव्य? उस का क्या दोष है, जो प्रकृति ने उसे इतनी बड़ी सजा दी है? यदि वह इतना सहन कर सकता है तो क्या प्राची थोड़ा भी नहीं?’’ शुभ बिफर पड़ी.

‘‘नहीं, तुम गलत सोच रही हो. प्राची का दर्द भी दिव्य से कम नहीं है. वह भी बहुत सहन कर रही है. दिव्य तो यह संसार छोड़ कर चला जाएगा और उस के साथसाथ उस के दुख भी. परंतु प्राची को तो इस दुख के साथ सारी उम्र जीना है. उस की हालत तो दिव्य से भी ज्यादा दयनीय है. ऐसी स्थिति में हम उस पर ज्यादा दबाव नहीं डाल सकते.

‘‘फिर हमें समाज का भी खयाल रखना है. शादी और उस के तुरंत बाद ही दिव्य की मृत्यु. वैधव्य की छाप भी तो लग जाएगी प्राची पर. किसकिस को समझाएंगे कि यह एक नाटक था. यह इतना आसान नहीं है जितना तुम समझ रही हो?’’ प्राची की मां ने शुभ को समझाने की कोशिश की.

उस दिन पहली बार शुभ को दिव्य से भी ज्यादा प्राची पर तरस आया लेकिन यह उस की समस्या का समाधान नहीं था. तभी उस के तेज दिमाग ने एक हल निकाल ही लिया.

वह बोली, ‘‘आंटी जी, बीमारी की वजह से इन दिनों दिव्य को कम दिखाई देने लगा है. ऐसे में हम प्राची की जगह उस से मिलतीजुलती किसी अन्य लड़की को भी दुलहन बना सकते हैं. दिव्य को यह एहसास भी नहीं होगा कि दुलहन प्राची नहीं, बल्कि कोई और है. यदि आप की नजर में ऐसी कोई लड़की हो तो बताइए.’’

‘‘हां है, प्राची की एक सहेली ईशा बिलकुल प्राची जैसी दिखती है. वह अकसर नाटकों में भी भाग लेती रहती है. पैसों की खातिर वह इस काम के लिए तैयार भी हो जाएगी. पर ध्यान रहे शादी की रस्में पूरी नहीं अदा की जानी चाहिए वरना उसे भी आपत्ति हो सकती है.’’

‘‘आप बेफिक्र रहिए आंटी जी, सब वैसा ही होगा जैसा फिल्मों में होता है, केवल दिखावा. क्योंकि हम भी नहीं चाहते हैं कि ऐसा हो और दिव्य भी ऐसी हालत में नहीं है कि वह सभी रस्में निभाने के लिए अधिक समय तक पंडाल में बैठ भी सके.’’

शादी का दिन आ पहुंचा. विवाह की सभी रस्में घर के पास ही एक गार्डन में होनी थीं. दिव्य दूल्हा बन कर तैयार था और अपनी दुलहन का इंतजार कर रहा था कि अचानक एक गाड़ी वहां आ कर रुकी. गाड़ी में से प्राची का परिवार और दुलहन का वेश धारण किए गए लड़की उतरी.

हंसीखुशी शादी की सारी रस्में निभाई जाने लगीं. दिव्य बहुत खुश नजर आ रहा था. उसे देख कर कोई यह नहीं कह सकता था कि यह कुछ ही दिनों का मेहमान है. यही तो शुभ चाहती थी.

‘‘अब दूल्हादुलहन फेरे लेंगे और फिर दूल्हा दुलहन की मांग भरेगा.’’ जब पंडित ने कहा तो शुभ और प्राची के मातापिता चौकन्ने हो गए. वे समझ गए कि अब वह समय आ गया है जब लड़की को यहां से ले जाना चाहिए वरना अनर्थ हो सकता है और वे बोले, ‘‘पंडित जी, दुलहन का जी घबरा रहा है. पहले वह थोड़ी देर आराम कर ले फिर रस्में निभा ली जाएं तो ज्यादा अच्छा रहेगा.’’ कह कर उन्होंने दुलहन जोकि छोटा सा घूंघट ओढ़े हुए थी, को अंदर चलने का इशारा किया.

‘‘नहीं पंडित जी, मेरी तबीयत इतनी भी खराब नहीं कि रस्में न निभाई जा सकें.’’ दुलहन ने घूंघट उठाते हुए कहा तो शुभ के साथसाथ प्राची के मातापिता भी चौक उठे क्योंकि दुलहन कोई और नहीं प्राची ही थी.

शायद जब ईशा को प्राची की जगह दुलहन बनाने का फैसला पता चला होगा तभी प्राची ने उस की जगह स्वयं दुलहन बनने का निर्णय लिया होगा, क्योंकि चाहे नाटक में ही, दिव्य की दुलहन बनने का अधिकार वह किसी और को दे, उस के दिल को मंजूर नहीं होगा.

आज उस की आंखों में आंसू नहीं, बल्कि उस के होंठों पर मुसकान थी. अपना सारा दर्द समेट कर वह दिव्य की क्षणिक खुशियों की भागीदारिणी बन गई थी. उसे देख कर शुभ की आंखों से खुशी और दुख के मिश्रित आंसू बह निकले. उस ने आगे बढ़ कर प्राची को गले से लगा लिया.

यह देख कर दिव्य के चेहरे पर एक अनोखी मुसकान आ गई. ऐसी मुसकान पहले किसी ने उस के चेहरे पर नहीं देखी थी. परंतु शायद वह उस की आखिरी मुसकान थी, क्योंकि उस का कमजोर शरीर इतना श्रम और खुशी नहीं झेल पाया और वह वहीं मंडप में ही बेहोश हो गया.

दिव्य को तुरंत हौस्पिटल ले जाना पड़ा जहां उसे तुरंत आईसीयू में भेज दिया गया. कुछ ही दिनों बाद दिव्य नहीं रहा परंतु जाते समय उस के होंठों पर मुसकान थी.

प्राची का यह अप्रत्याशित निर्णय दिव्य और उस के परिवार वालों के लिए वरदान से कम नहीं  था. वे शायद जिंदगी भर उस के इस एहसान को चुका न पाएं. प्राची के भावी जीवन को संवारना अब उन की भी जिम्मेदारी थी.

Romantic Story : पहेली – दिल के तारों को झंकृत करती कहानी

Romantic Story : ‘‘हैलो, आई एम कनिका सिंह, फ्रौम राजस्थान.’’ इस खनकती आवाज ने अमित का ध्यान आकर्षित किया तो देखा, सामने एक असाधारण सुंदर युवती खड़ी है. क्लासरूम से वह अभी अपने साथियों के साथ ‘टी ब्रेक’ में बाहर आया था कि उस का परिचय कनिका से हो गया.

‘‘हैलो, मैं अमित शर्मा, राजस्थान से ही हूं,’’ अमित ने मुसकरा कर अपना परिचय दिया.

कनिका वास्तव में बहुत सुंदर थी. आकर्षक व्यक्तित्व, उम्र लगभग 26-27 की रही होगी. लंबा कद किंतु भरापूरा शरीर, तीखे नयननक्श उस की सुंदरता में और वृद्धि कर रहे थे. ‘टी ब्रेक’ खत्म होते ही सभी वापस क्लासरूम में पहुंच गए.

भारत के एक ऐतिहासिक शहर हैदराबाद में 1 माह के प्रशिक्षण का आज पहला दिन था. देश के अलगअलग प्रांतों से संभागियों के पहुंचने का क्रम अभी भी जारी था. कनिका भी दोपहर बाद ही पहुंची थी. पहले दिन की औपचारिक कक्षाएं खत्म होते ही सभी प्रशिक्षुओं को लोकसंगीत और नृत्य कार्यक्रम में शामिल होना था.

खुले रंगमंच में सभी लोग जमा हो चुके थे. कार्यक्रम शुरू हो गया था. लोककलाकार अपनीअपनी कला का बेहतरीन प्रदर्शन कर रहे थे. संयोग से अमित के पास की सीट खाली थी. कनिका वहां आ गई तो अमित ने मुसकराते हुए उसे पास बैठने का इशारा किया. कनिका बैठते ही अमित से बातचीत करने लगी. उस ने बताया कि वह मनोविज्ञान की प्राध्यापक है. अमित ने कहा कि वह इतिहास विषय का है. कनिका ने बताया कि इतिहास उस का पसंदीदा विषय रहा है और वह चाहती है कि इस विषय का गहन अध्ययन करे. फिर हंसते हुए उस ने पूछा, ‘‘आप मुझे पढ़ाएंगे क्या?’’

अमित ने भी मजाक में उत्तर दिया, ‘‘अरे, मेरा विषय तो नीरस है. लड़कियां तो वैसे ही इस से दूर भागती हैं.’’

कनिका अपने कैमरे से कलाकारों की फोटो खींचने लगी. अमित के मन में उस के लिए न जाने क्यों एक खास आकर्षण पैदा हो चुका था. छोटी सी मुलाकात ने ही उसे बहुत प्रभावित कर दिया था. कनिका के उन्मुक्त व्यवहार से वह मानो उस के प्रति खिंचा जा रहा था.

होस्टल में अमित के दाईं ओर तमिलनाडु और बाईं ओर उड़ीसा के संभागी प्राध्यापक थे. इस अनोखे सांस्कृतिक समागम ने एकदूसरे को जानने और समझाने का भरपूर अवसर प्रदान किया था. इसी होस्टल के ग्राउंड फ्लोर पर महिला संभागियों के रुकने की व्यवस्था थी. कुल 80 लोगों में 40 महिलाएं थीं जो भारत के विभिन्न राज्यों का प्रतिनिधित्व कर रही थीं.

रात्रि भोज के बाद सभी संभागियों का अपना सांस्कृतिक कार्यक्रम चलता था. हाल में सभी लोग जमा थे. इस कार्यक्रम में सभी को भाग लेना अनिवार्य था. कनिका ने राजस्थानी लोकगीत सुनाए जिस से उस की एक और प्रतिभा का पता चला कि वह संगीत में भी खासा दखल रखती थी.

दूसरे दिन सुबह चाय के समय कनिका ने अमित को अपने लैपटाप पर वे सारी फोटो दिखाईं जो उस ने रात्रि सांस्कृतिक कार्यक्रम में खींची थीं.

क्लासरूम में अमित बाईं ओर पहली कतार में बैठता था. आज उस ने नोट किया कि दाईं ओर की पहली कतार में असम और तमिलनाडु की महिला संभागियों के साथ कनिका भी बैठी है. पूरे दिन अमित ने जब भी कनिका को देखा, उसे अपनी ओर देखते, मुसकराते ही पाया. उस के दिल में एक सुखद एहसास जागृत हो रहा था.

लंच में अमित ने कनिका को अपने साथ खाने के लिए आमंत्रित किया. उस मेज पर उस के कुछ तमिल दोस्त भी थे. कनिका बिना किसी झिझक के पास की कुरसी पर बैठ कर खाना खाने लगी.

बातचीत में कनिका ने अमित से पूछा, ‘‘सर, आप की फैमिली में कौनकौन हैं?’’

अमित अब खुल चुका था सो उस ने विस्तार से अपने परिवार के बारे में बताया कि उस की पत्नी सरकारी नौकरी में किसी दूसरे शहर में नियुक्त है. एक छोटी 4 साल की बेटी है जो अपनी मम्मी के साथ ही रहती है. अमित ने कनिका से भी पूछा किंतु वह बात टाल गई और हंसीमजाक में मशगूल हो गई.

रात के 11 बजे थे. होस्टल के हाल में सांस्कृतिक कार्यक्रम चल रहा था. अचानक अमित के मोबाइल पर एक अनजान नंबर से कौल आई. उत्सुकता के चलते अमित ने उस काल को रिसीव किया.

‘‘हैलो सर, पहचाना?’’ अमित अभी असमंजस में था कि आवाज फिर आई, ‘‘मैं कनिका बोल रही हूं. आप 2 मिनट के लिए लौन में आ सकते हैं?’’

अमित फौरन बाहर आया. कनिका बाहर कैंपस में खड़ी थी. यद्यपि बाहर इस समय और भी महिलापुरुष संभागी बातचीत में व्यस्त थे. किंतु अमित को अजीब महसूस हो रहा था, फिर कनिका ने पूछा, ‘‘सर, क्या आप के पास सिरदर्द की दवा है? आज मेरी तबीयत ठीक नहीं है.’’

अमित ने घबरा कर कहा, ‘‘ज्यादा खराब हो तो डाक्टर के पास चलें?’’

कनिका के मना करने पर अमित तुरंत अंदर से अपनी मेडिकल किट ले आया और कुछ जरूरी दवाएं निकाल कर कनिका को दे दीं. कनिका ने धन्यवाद दिया और अपने कमरे में चली गई.

प्रशिक्षण के दिन खुशीखुशी बीत रहे थे. शुरू में 1 माह की अवधि बहुत लंबी लग रही थी किंतु अमित को अब लग रहा था कि जीवन का एकएक पल अमूल्य है जो बीता जा रहा है. कनिका के प्रति उस का लगाव बढ़ता जा रहा था. दूसरे दिन अमित इस उम्मीद में अपना मोबाइल देख रहा था कि शायद फिर से फोन आए. रात के 10 बज चुके थे. उस का मन सांस्कृतिक संध्या में नहीं लग रहा था. कुछ समय बाद काल आई. अमित तो जैसे इसी के इंतजार में था, तपाक से उस ने काल रिसीव की. फिर वही मधुर आवाज सुनाई पड़ी, ‘‘परेशान कर दिया न सर, आप को.’’

अमित ने भी मजाक में पूछ लिया, ‘‘क्यों, नींद नहीं आ रही है क्या? शायद किसी की याद आ रही होगी?’’

कनिका ने खिलखिला कर हंसते हुए कहा, ‘‘क्यों मजाक बनाते हो…मुझे आप से ही बात करनी थी,’’ फिर आगे बात बढ़ाते हुए बोली, ‘‘मुझे कोई याद नहीं करता, मैं इतनी खास तो नहीं कि कोई…’’ उस ने अपना वाक्य अधूरा छोड़ दिया. फिर पूछा, ‘‘आप ने कल वाले प्रोजेक्ट वर्क की क्या तैयारी की है?’’

अमित उसे प्रोजेक्ट वर्क के बारे में समझाने लगा. फिर उस ने कनिका से पूछा कि उसे उस के फोन नंबर कैसे मिले. कनिका ने उस की जिज्ञासा शांत की और बताया कि रजिस्टे्रशन रजिस्टर में से मोबाइल नंबर लिए थे.

अमित को बहुत अच्छा लग रहा था कि कनिका उसे इतना महत्त्व दे रही है जबकि प्राय: सभी पुरुष संभागी उस से बातचीत करने और मेलजोल बढ़ाने के लिए लालायित थे.

कुछ दिन बाद आउटिंग का कार्यक्रम था. 2 रातें घने जंगल में औषधीय पौधों के अध्ययन में बितानी थीं. वहां बने रेस्टहाउस में सब के रहने की व्यवस्था थी. यात्रा में कनिका के हंसीमजाक ने पिकनिक जैसा माहौल बना दिया था. वहां पहुंचते ही फील्ड आफिसर ने सभी लोगों को 2 घंटे का समय लंच और थोड़ा आराम करने के लिए दिया. जिस का उपयोग सभी ने उस सुरम्य प्राकृतिक स्थल को और नजदीक से देखने में किया.

अमित अपना लंच ले कर साथियों के साथ झरने के टौप पर था कि नीचे उस की नजर कनिका पर पड़ी जो अपनी सहेलियों के साथ खड़ी उसे इशारे से नीचे बुला रही थी. उस का मन तो बहुत था लेकिन वह अपने दोस्तों में टारगेट बनना नहीं चाहता था.

कनिका के आमंत्रण को उस ने नजरअंदाज कर दिया. कुछ समय बाद जब वह मिली तो उस ने स्वाभाविक ढंग से शिकायत जरूर की, ‘‘आप आए क्यों नहीं, सर? बहुत अच्छा लगता.’’

बेचारा अमित मन मसोस कर रह गया. विषय बदलने के लिए उस ने कहा, ‘‘आज आप की राजस्थानी बंधेज की साड़ी बहुत सुंदर लग रही है.’’

कनिका खनकती आवाज में बोली, ‘‘सिर्फ साड़ी?’’

अमित ने कहा, ‘‘नहीं, और भी बहुत कुछ, ये वादियां, अमूल्य वनस्पति और आप.’’

कनिका ने मुसकराते हुए कहा, ‘‘सर, आप बातों को इतना घुमाफिरा कर क्यों कहते हैं?’’

अमित क्या कहता. वह मन की बातों को अंदर दबा जाता था.

पौधों के बारे में जानकारी दी जा रही थी. सभी लोग नोटबुक थामे व्यस्त थे. यह पहला मौका था जब अमित को कनिका के स्पर्श का अनुभव हुआ. ग्रुप में वह सट कर खड़ी मुसकरा रही थी. उस की कुछ खास तमिल सहेलियां अमित से अंगरेजी में पौधों के बारे में पूछ रही थीं और वह उन्हें अंगरेजी में ही समझ रहा था. कनिका पहली बार अमित को धाराप्रवाह अंगरेजी बोलते हुए सुन रही थी. अब कनिका अपने ग्रुप से अलग हो कर पास के कैक्टस के पौधों की ओर चली गई. अमित को भी आवाज दे कर उस ने अपने पास बुला लिया और बोली, ‘‘देखिए सर, यह इस जगह की सब से जीवट वनस्पति है. हम चाहे इसे सौंदर्य की प्रतिमूर्ति न मानें किंतु यह हमें जीना सिखाती है.’’

अमित उस की बात को समझाने का प्रयास कर रहा था. बाकी ग्रुप आगे बढ़ चुका था. तभी एक फोटोग्राफर ने उन दोनों का फोटो ले लिया. अमित को लगा शायद फोटोग्राफर उस के दिल की भावनाओं को जानता है.

कनिका फिर बोली, ‘‘आप को ऐसा नहीं लगता कि ये हमें संदेश दे रहे हैं…सब के बीच हमारा अपना अस्तित्व है और हमें उसे खोने का डर नहीं.’’

रेस्टहाउस में कनिका ने अमित के सामने प्रस्ताव रखा कि क्यों न हम आज रात्रि में झरने के  किनारे चलें. मैं अपनी कुछ सहेलियों के साथ रात का नजारा देखना चाहती हूं. अमित तो जैसे पहले से ही अभिभूत था.

रात्रि विहार ने अमित को कनिका के और नजदीक आने का अवसर दिया. कारण, कनिका ने उसे आज वह सब बताया था जो किसी अनजान पुरुष को बताना संभव नहीं. पहली बार अमित को लगा, कनिका वैसी बिंदास नहीं है जैसी वह दिखती है.

कनिका ने बताया कि 4 साल पहले उस का विवाह हो चुका है. एक 3 साल का बेटा भी है. किंतु जीवन में उसे वह दुखद अनुभव भी झेलना पड़ा है जो एक स्त्री के लिए बहुत दुखद होता है. उस का पति एक बिगड़ा रईस निकला, जिस ने उस की कोई इज्जत नहीं की. कानूनन अब तलाक ले कर वह उस से मुक्ति पा चुका था. कनिका ने इस कठोर यथार्थ को स्वीकार किया और  जीवन को रोरो कर नहीं बल्कि मुसकरा कर जीने का फैसला किया.

ऐतिहासिक जगहों को घूमने वाले दिन कनिका बस में अमित के पास वाली सीट पर बैठी थी. अमित यह सोच कर बहुत खुश था कि आज कनिका पूरे दिन उस के साथ रहने वाली है. वे दोनों अंगरेजी भाषी ग्रुप में थे, जहां भीड़ कम थी, अत: पूरा दिन मौजमस्ती में बीत गया. अमित ने पहली बार आज कनिका को एक गिफ्ट दिया, जिसे बहुत मुश्किल से उस ने स्वीकार किया. आज कनिका ने बहुत फोटो लिए थे.

आखिर टे्रनिंग खत्म होने का अंतिम दिन आ ही गया. सभी के मन उदास थे. अमित आज कनिका से बहुत बातें करना चाहता था. तभी रात को कनिका का फोन आ गया. उस ने पूछा कि क्या वह एक दिन और नहीं रुक सकता. इधर बहुत सारे पर्यटक स्थल देखने को बचे हैं. अमित का तो जाने का मन ही नहीं था. इसलिए वह एक दिन और रुकने को तैयार हो गया. दोनों ने खूब बातें कीं.

औपचारिक विदाई समारोह के समय सभी बहुत भावुक हो गए. अनजान लोग इतने करीबी हो चुके थे कि बिछुड़ने का दुख सहन नहीं हो रहा था. ग्रुप फोटो मधुर यादों का हिस्सा बनने जा रहा था. फोटो तो इतने हो चुके थे कि अलबम ही तैयार हो गया था. भारी मन से गले लग कर सब विदा हुए.

अमित ने कनिका की डायरी में अपने हस्ताक्षर कर अपना संदेश लिखा. न जाने क्यों वह अभी भी अपने मन की बात कनिका को कह नहीं पाया था. कनिका ने भी अमित की डायरी में लिखा, ‘‘मैं इतिहास से बहुत प्यार करती हूं…बहुत… बहुत ज्यादा, लेकिन इतिहास नहीं दोहराती.’’ – कनिका सिंह.

इस विचित्र इबारत का अर्थ अमित की समझ में नहीं आया था.

कनिका के आग्रह पर अमित होटल में एक कमरा बुक करवा कर कल का इंतजार करने लगा. शाम को उस की कनिका से लंबी बातें हुईं, दूसरे दिन उस ने घूमने का कार्यक्रम बनाया था. अमित सोच रहा था, कल वह अवश्य ही कनिका को अपने दिल की बात बता देगा. सारी रात वह सो नहीं पाया.

दूसरे दिन 10 बजे वह तैयार हो कर कनिका से मिलने के लिए रवाना हुआ. 11 बजे कनिका ने चारमीनार के पास मिलने को कहा था. 11 बज गए. अमित की बेचैनी बढ़ने लगी. थोड़ा और समय बीता. वह अधीर हो गया. करीब साढ़े 11 बजे कनिका का फोन आया :

‘‘हैलो सर, आई एम वैरी सौरी. मैं आप को कैसे कहूं. मुझे तो समझ ही नहीं आ रहा…सर, सुबह पापा का फोन आया था, इमरजेंसी है मुझे वापस घर जाना पड़ रहा है. सौरी, प्लीज आप कांटेक्ट बनाए रखना. मैं कभी आप को नहीं भूलूंगी… मैं कल आप को फोन करूंगी.’’

अमित का मूड उखड़ चुका था. समP में नहीं आ रहा था कि क्या जवाब दे. कल रात का ट्रेन का आरक्षण वह कैंसिल करा चुका था और अब सारा दिन वह अकेला क्या करेगा. उस ने फ्लाइट पकड़ी और अपने शहर रवाना हो गया.

दूसरे दिन भी कनिका का कोई फोन नहीं आया. वह बहुत परेशान हो गया. उस की उदासी बढ़ती जा रही थी. किसी भी काम में उस का मन नहीं लग रहा था.

अमित ने खुद कनिका को फोन लगाया तो वज्रपात हुआ क्योंकि जो नंबर उस के पास था वह सिम अब डेड हो चुकी थी. असम से एक मैडम का फोन आया तो अमित को पता कि कल उस के पास कनिका का फोन आया था. ऐसी ही बात उस की एक तमिल सहेली ने भी बताई.

अमित का दिल टूट गया. दोनों के साथ के फोटो अमित के सामने पड़े थे. वह निर्णय नहीं कर पा रहा था कि अब वह ट्रेनिंग के दिनों को याद करे या भूलने का प्रयास करे. कनिका तो वैसे ही उस के लिए एक गूढ़ पहेली बन गई थी. अचानक उस की नजर अपनी डायरी पर पड़ी, धड़कते दिल से उस ने प्रथम पृष्ठ पढ़ा. उस पर कनिका का वह संदेश लिखा था जो उस ने विदाई के समय लिखा था : ‘‘मैं इतिहास से बहुत प्यार करती हूं… बहुत…बहुत ज्यादा लेकिन इतिहास नहीं दोहराती,’’ – कनिका सिंह.

आज अमित को उपरोक्त पंक्तियों का सही अर्थ समझ में आ रहा था लेकिन दिल अभी भी संतुष्ट नहीं था. अगर ऐसा ही था तो उस ने नजदीकी ही क्यों बढ़ाई. उस के दिमाग में कई संभावनाएं आजा रही थीं. अचानक अमित को कनिका के कहे वे शब्द याद आ रहे थे जो उस ने कईकई बार उस से कहे थे, ‘‘सर, मैं आप को कभी भुला नहीं पाऊंगी. आप भी मुझे याद रखेंगे न, कहीं भूल तो नहीं जाएंगे?’’

अमित उन शब्दों का अर्थ खोजता रहा लेकिन कनिका उस के लिए अब एक  अनसुलझी पहेली बन चुकी थी.

Social Story : चौराहे की काली – पंड़ित को धर्म सिंह ने कैसे सिखाया सबक

Social Story : ‘‘मेरी बीवी बहुत बीमार है पंडितजी…’’ धर्म सिंह ने पंडित से कहा, ‘‘न जाने क्यों उस पर दवाओं का असर नहीं होता है. जब वह मुझे घूर कर देखती है तो मैं डर जाता हूं.’’ ‘‘तुम्हारी बीवी कब से बीमार है?’’ पंडित ने पूछा.

‘‘महीनेभर से.’’ ‘‘पहले तुम मुझे अपनी बीवी से मिलवाओ तभी मैं यह बता पाऊंगा कि वह बीमार है या उस पर किसी भूत का साया है.’’

‘‘मैं अपनी बीवी को कल सुबह ही दिखा दूंगा,’’ इतना कह कर धर्म सिंह चला गया. पंडित भूतप्रेत के नाम पर लोगों को बेवकूफ बना कर पैसे ऐंठता था. इसी धंधे से उस ने अपना घर भर रखा था.

अगली सुबह धर्म सिंह के घर पहुंच कर पंडित ने कहा, ‘‘अरे भाई धर्म सिंह, तुम ने कल कहा था कि तुम्हारी बीवी बीमार है. जरा उसे दिखाओ तो सही…’’ धर्म सिंह अपनी बीवी सुमन को अंदर से ले आया और उसे एक कुरसी पर बैठा दिया.

पंडित ने उसे देखते ही पैसा ऐंठने का अच्छा हिसाबकिताब बना लिया. सुमन के बाल बिखरे हुए और कपड़े काफी गंदे थे. उस की आंखें लाल थीं और गालों पर पीलापन छाया था. जो भी उस के सामने जाता, वह उसे ऐसे देखती मानो खा जाएगी.

पंडित सुमन की आंखें देख कर बोला, ‘‘अरे धर्म सिंह, मैं देख रहा हूं कि तुम्हारी बीवी पर बड़े भूत का साया है.’’ ‘‘कैसा भूत पंडितजी?’’ धर्म सिंह ने हैरानी से पूछा.

‘‘तुम नहीं समझ पाओगे कि इस पर किस किस्म का भूत है,’’ पंडित बोला. ‘‘क्या भूतों की भी किस्में होती हैं?’’

‘‘क्यों नहीं. कुछ भूत सीधे होते हैं, कुछ अडि़यल, पर तुम्हारी बीवी पर…’’ पंडित बोलतेबोलते रुक गया. ‘‘क्या बात है पंडितजी… जरा साफसाफ बताइए.’’

‘‘यही कि तुम्हारी बीवी पर सीधेसादे भूत का साया नहीं है. इस पर ऐसे भूत का साया है जो इनसान की जान ले कर ही जाता?है,’’ पंडित ने हाथ की उंगली उठा कर जवाब दिया. ‘‘फिर तो पंडितजी मुझे यह बताइए कि इस का हल क्या है?’’ धर्म सिंह कुछ सोचते हुए बोला.

पंडित ने हाथ में पानी ले कर कुछ बुदबुदाते हुए सुमन पर फेंका और बोला, ‘‘बता तू कौन है? यहां क्या करने आया है? क्या तू इसे ले कर जाएगा? मगर मेरे होते हुए तू ऐसा कुछ नहीं कर सकता.’’ ‘‘पंडितजी, आप किस से बातें कर रहे हैं?’’ धर्म सिंह ने पूछा.

‘‘भूत से, जो तेरी बीवी पर चिपटा है,’’ होंठों से उंगली सटा कर पंडित ने धीरे से कहा. ‘‘क्या भूत बोलता है?’’ धर्म सिंह ने सवाल किया.

‘‘हां, भूत बोलता है, पर सिर्फ हम से, आम आदमी से नहीं.’’ ‘‘तो क्या कहता है यह भूत?’’

‘‘धर्म सिंह, भूत कहता है कि वह भेंट चाहता है.’’ ‘‘कैसी भेंट?’’ यह सुन कर धर्म सिंह चकरा गया.

‘‘मुरगे की,’’ पंडित ने कहा. ‘‘पर हम लोग तो शाकाहारी हैं.’’

‘‘तुम नहीं चढ़ा सकते तो मुझे दे देना. मैं चढ़ा दूंगा,’’ पंडित ने रास्ता सुझाया. ‘‘पंडितजी, मुझे एक बात बताओ?’’

‘‘पूछो, क्या बात है?’’ ‘‘मेरी बीवी पर कौन सी किस्म का भूत है?’’

पंडित ने सुमन की तरफ उंगली उठाते हुए कहा, ‘‘इस पर ‘चौराहे की काली’ का असर है.’’ ‘‘क्या… ‘चौराहे की काली’,’’ धर्म सिंह की आंखें डर के मारे फैल गईं, ‘‘मेहरबानी कर के कोई इलाज बताएं पंडितजी.’’

‘‘जरूर. वह काली कहती है कि तुझे एक मुरगा, एक नारियल, 101 रुपए, बिंदी, टीका, कपड़ा और सिंदूर रात को 12 बजे चौराहे पर रख कर आना पड़ेगा.’’ ‘‘इतना सारा सामान पंडितजी?’’ धर्म सिंह ने कहा.

‘‘हां, अगर ऐसा नहीं हुआ तो तेरी बीवी गई काम से,’’ पंडित तपाक से बोला. ‘‘जी अच्छा पंडितजी, पर इतना सामान और वह भी रात के समय, यह मेरे बस की बात नहीं है,’’ धर्म सिंह ने कहा.

‘‘तेरे बस की बात नहीं है तो मैं रख आऊंगा…’’ पंडित ने कहा, ‘‘शाम को सारा सामान लेते आना. मैं शाम को आऊंगा.’’ धर्म सिंह तैयारी करने में लग गया. हालांकि उस ने बीवी को डाक्टर से दवा भी दिला दी, पर वह पंडित को भी मौका देना चाहता था इसीलिए चौराहे पर जाने से मना कर दिया.

रात को पंडित पूरा सामान ले कर चौराहे पर रखने के लिए चल दिया. हवा के झोंके, झींगुरों का शोर और उल्लुओं की डरावनी आवाजें रात के सन्नाटे को चीर रही थीं.

पंडित जैसे ही चौराहे से 30 फुट की दूरी पर पहुंचा, उसी समय वहां 15-16 फुट ऊंची मीनार सी मूर्ति नजर आने लगी. वह कभी छोटी हो जाती तो कभी बड़ी. उस में से घुंघरू की खनखनाती आवाज भी आ रही थी. पंडित यह सब देख कर बुरी तरह घबरा गया. हिम्मत कर के उस ने पूछा, ‘‘क… क… कौन है तू?’’

‘‘मैं चौराहे की काली हूं,’’ मीनार से घुंघरूओं की झंकार के साथ एक डरावनी आवाज निकली. ‘‘तू… तू… क्या चाहती है?’’

‘‘मैं तुझे खाना चाहती हूं,’’ मीनार में से फिर आवाज आई. ‘‘क… क… क्यों? मेरी क्या गलती है?’’ पंडित ने डरते हुए पूछा.

‘‘क्योंकि तू ने लोगों से बहुत पैसा ऐंठा है. अब मैं तेरे खून से अपनी प्यास बुझाऊंगी,’’ कहतेकहते काली धीरेधीरे नजदीक आ रही थी. पंडित के हाथों से सामान तो पहले ही छूट चुका था. ज्यों ही उस ने मुड़

कर पीछे की तरफ भागना चाहा, उस का पैर धोती में अटक गया और वह

गिर पड़ा. जब पंडित को होश आया तो उस ने अपनेआप को बिस्तर पर पाया. वह उस समय भी चिल्लाने लगा, ‘‘बचाओ… बचाओ… चौराहे की काली मुझे खा जाएगी…’’

‘‘कौन खा जाएगी? कैसी काली पंडितजी?’’ पंडित के कानों में धर्म सिंह की आवाज गूंजी. पंडित ने आंखें खोलीं तो अपने सामने धर्म सिंह व गांव के तमाम लोगों को खड़ा पाया. पंडित फिर बोला, ‘‘चौराहे की काली.’’

‘‘नहीं पंडितजी, आप बिना वजह ही डर गए हैं. वह काली नहीं थी,’’ धर्म सिंह ने पंडित को थपथपाते हुए कहा. ‘‘तो फिर कौन थी वह?’’

‘‘वहां मैं था पंडितजी, आप तो यों ही डर रहे हैं,’’ धर्म सिंह ने कहा. ‘‘पर वह तो… कभी छोटी तो कभी बड़ी और घुंघरुओं की आवाज…’’ पंडित बड़बड़ाया, ‘‘न… न… नहीं, तुम नहीं हो सकते.’’

‘‘क्यों नहीं हो सकता? मैं वही नजारा फिर दिखा सकता हूं,’’ इतना कह कर धर्म सिंह काला कपड़ा लगा लंबा बांस, जिस में घुंघरू लगे थे, ले आया. उस ने बांस से कपड़ा कभी ऊंचा उठाया तो कभी नीचा किया और खुद को बीच में छिपा लिया. तब जा कर पंडित को यकीन हुआ कि वह काली नहीं थी.

धर्म सिंह ने पंडित से कहा, ‘‘इस दुनिया में न तो भूत हैं और न ही चुड़ैल. यह सारा चक्कर तो सरासर मक्कारी और फरेब का है.’’

Family Story : हल – आखिर नवीन इरा से क्यों चिढ़ता था ?

Family Story : इरा कल रात के नवीन के व्यवहार से बेहद गुस्से में थी. अब मुख्यमंत्री की प्रैस कौन्फ्रैंस हो और वह मुख्य जनसंपर्क अधिकारी हो कर जल्दी कैसे घर आ सकती थी. पर नहीं. नवीन कुछ भी सुनने को तैयार नहीं था. माना लौटने में रात के 11 बज गए थे, लेकिन मुख्यमंत्री को बिदा करते ही वह घर आ गई थी. नवीन के मूड ने उसे वहां एक भी निवाला गले से नीचे नहीं उतारने दिया. दिनभर की भागदौड़ से थकी जब वह रात को भूखी घर आई, तो मन में कहीं हुमक उठी कि अम्मां की तरह कोई उसे दुलारे कि नन्ही कैसे मुंह सूख रहा है तुम्हारा. चलो हम खाना परोस दें. लेकिन कहां वह कोमलता और ममत्व की कामना और कहां वास्तविकता में क्रोध से उबलता चहलकदमी करता नवीन. उसे देखते ही उबल पड़ा, ‘‘यह वक्त है घर आने का? 12 बज रहे हैं?’’

‘‘आप को पता तो था आज सीएम की प्रैस कौन्फ्रैंस थी. आप की नाराजगी के डर से मैं ने वहां खाना भी नहीं खाया और आप हैं कि…’’ इरा रोआंसी हो आई थी.

‘‘छोड़ो, आप का पेट तो लोगों की सराहना से ही भर गया होगा. खाने के लिए जगह ही कहां थी? हम ने भी बहुत सी प्रैस कौन्फ्रैंस अटैंड की हैं. सब जानते हैं महिलाओं की उपस्थिति वहां सिर्फ वातावरण को कुछ सजाए रखने से अधिक कुछ नहीं?’’

‘‘शर्म करो… जो कुछ भी मुंह में आ रहा है बोले चले जा रहे हो,’’ इरा साड़ी हैंगर में लगाते हुए बोली.’’

‘‘इस घर में रहना है, तो समय पर आनाजाना होगा… यह नहीं कि जब जी चाहा घर से चली गई जब भी चाहा चली आई. यह घर है कोई सराय नहीं.’’

‘‘क्या मैं तफरीह कर के आ रही हूं? तुम इतने बड़े व्यापारिक संस्थान में काम करते हो, तुम्हें नहीं पता, देरसबेर होना अपने हाथ की बात नहीं होती?’’ इरा को इस बेमतलब की बहस पर गुस्सा आ रहा था.

गुस्से से उस की भूख और थकान दोनों ही गायब हो गई. फिर कौफी बना कप में डाल कर बच्चों के कमरे में चली गई. दोनों बच्चे गहरी नींद में सो रहे थे.

इरा ने शांति की सांस ली. नवीन की टोकाटाकी उस के लिए असहनीय हो गई थी.

फोन किसी का भी हो, नवीन के रहते आएगा तो वही उठाएगा. फोन पर पूरी जिरह करेगा क्या काम है? क्या बात करनी है? कहां से बोल रहे हो?

लोग इरा का कितना मजाक उड़ाते हैं. नवीन को उस का जेलर कहते हैं. कुछ लोगों की नजरों में तो वह दया की पात्र बन गई है.

इरा सोच कर सिहर उठी कि अगर ये बातें बच्चे सुनते तो? तो क्या होती उस की छवि बच्चों की नजरों में. वैसे जिस तरह के आसार हो रहे हैं जल्द ही बच्चे भी साक्षी हो जाएंगे ऐसे अवसरों के. इरा ने कौफी का घूंट पीते हुए

निर्णय लिया, बस और नहीं. उसे अब नवीन के साथ रह कर और अपमान नहीं करवाना है. पुरुष है तो क्या हुआ? उसे हक मिल गया है

उस के सही और ईमानदार व्यवहार पर भी आएदिन प्रश्नचिन्ह लगाने का और नीचा दिखाने का…अब वह और देर नहीं करेगी. उसे जल्द से जल्द निर्णय लेना होगा वरना उस की छवि बच्चों की नजरों में मलीन हो जाएगी. इसी ऊहापोह में कब वह वहीं सोफे पर सो गई पता ही नहीं चला.

अगले दिन बच्चों को स्कूल भेजा. नवीन ऐसा दिखा रहा था मानो कल की रात रोज गुजर जाने वाली सामान्य सी रात थी. लेकिन इरा का व्यवहार बहुत सीमित रहा.

इरा को 9 बजे तक घर में घूमते देख, नवीन बोला, ‘‘क्या आज औफिस नहीं जाना है? आज छुट्टी है? अभी तक तैयार नहीं हुई.’’

‘‘मैं ने छुट्टी ली है,’’ इरा ने कहा.

‘‘तुम्हारी तबीयत तो ठीक लग रही है, फिर छुट्टी क्यों?’’ नवीन ने पूछा.

‘‘कभीकभी मन भी बीमार हो जाता है इसीलिए,’’ इरा ने कसैले स्वर में कहा.

‘‘समझ गया,’’ नवीन बोला, ‘‘आज तुम्हारा मन क्या चाह रहा है. क्यों बेकार में अपनी छुट्टी खराब कर रही हो, जल्दी से तैयार हो जाओ.’’

‘‘नहीं,’’ इरा बोली, ‘‘आज मैं किसी हाल में भी जाने वाली नहीं हूं,’’ इरा की आवाज में जिद थी. नवीन कार की चाबी उठाते हुए बोला, ‘‘ठीक है तुम्हारी मरजी.’’

बच्चों और पति को भेजने के बाद वह देर तक घर में इधरउधर चहल कदमी करती रही. उस का मन स्थिर नहीं था. अगर नवीन की नोकझोंक से तंग आ कर नौकरी छोड़ भी दूं तो क्या भरोसा कि नवीन के व्यवहार में अंतर आएगा या फिर बात का बतंगड़ नहीं बनाएगा… लड़ने वाले को तो बहाने की भी जरूरत नहीं होती. नवीन के पिता के इसी कड़वे स्वभाव के कारण ही उस की मां हमेशा घुटघुट कर जी रही थीं. पैसेपैसे के लिए उन्हें तरसा कर रखा था नवीन के पिता ने.

अपनी मरजी से हजारों उड़ा देंगे. नवीन की नजरों में उस के पिता ही उस के आदर्श पुरुष थे और मां का पिता से दब कर रहना ही नवीन के लिए मां की सेवा और बलिदान था.

इरा जितना सोचती उतना ही उलझती जाती, उसे लग रहा था अगर वह इसी तरह मानसिक तनाव और उलझन में रही तो पागल हो जाएगी. हर जगह सम्मानित होने वाली इरा अपने ही घर में यों प्रताडि़त होगी उस ने सोचा भी न था. असहाय से आंसू उस की आंखों में उतर आए. अचानक उस की नजर घड़ी पर पड़ी. अरे, डेढ़ बज गया… फटाफट उठ कर नहाने के लिए गई. वह बच्चों को अपनी पीड़ा और अपमान का आभास नहीं होने देना चाहती थी. नहा कर सूती साड़ी पहन हलका सा मेकअप किया. फिर बच्चों के लिए सलाद काटा, जलजीरा बनाया, खाने की मेज लगाई.

दोनों बेटे मां को देख कर खिल उठे. बिना छुट्टी के मां का घर होना उन के लिए कोई पर्व सा बन जाता है. तीनों ने मिल कर खाना खाया. फिर बच्चे होमवर्क करने लग गए.

5 बजे के लगभग इरा को याद आया कि उस की सहेली मानसी पाकिस्तानी नाटक का वीडियो दे कर गई थी. बच्चे होमवर्क कर चुके थे. इरा ने उन्हें नाटक देखने के लिए आवाज लगाई. दोनों बेटे उस की गोदी में सिर रख कर नाटक देख रहे थे. अजीब इत्तफाक था. नाटक में भी नायिका अपने पति की ज्यादतियों से

तंग आ कर अपने अजन्मे बच्चे के संग घर छोड़ कर चली जाती है हमेशा के लिए.

इरा की तरफ देख कर अपूर्व बोला, ‘‘मां, आप ये रोनेधोने वाली फिल्में मत देखा करो. मन उदास हो जाता है.’’

‘‘मन उदास हो जाता है इसीलिए नहीं देखनी चाहिए?’’ इरा ने सवाल किया.

‘‘बेकार का आईडिया है एकदम,’’ अपूर्व खीज कर बोला, ‘‘इसीलिए नहीं देखनी चाहिए?’’

‘‘अपूर्व,’’ इरा ने कहा, ‘‘समझो इसी औरत की तरह अगर हम भी घर छोड़ना चाहें तो तुम किस के साथ रहोगे?’’

‘‘कैसी बेकार की बातें करती हैं आप भी मां,’’ अपूर्व नाराजगी के साथ बोला, ‘‘आप ऐसा क्यों करेंगी?’’

‘‘यों समझो कि हम भी तुम्हारे पापा के साथ इस घर में नहीं रह सकते तो तुम किस के साथ रहोगे?’’ इरा ने पूछा.

‘‘जरूरी नहीं है कि आप के हर सवाल का जवाब दिया जाए,’’ 13 वर्ष का अपूर्व अपनी आयु से अधिक समझदार था.

‘‘अच्छा अनूप तुम बताओ कि तुम क्या करोगे?’’ इरा ने छोटे बेटे का मन टटोला.

अनूप को बड़े भाई पर बड़प्पन दिखाने का अवसर मिल गया. बोला, ‘‘वैसे तो हम

चाहते हैं कि आप दोनों साथ रहें? लेकिन अगर आप जा रही हैं तो हम आप के साथ चलेंगे. हम आप को बहुत प्यार करते हैं,’’ अनूप बोला, ‘‘चल झूठे…’’ अपूर्र्व बोला, ‘‘मां, अगर पापा आप की जगह होते तो यह उन्हीं को भी यही जवाब देता.’’

‘‘नहीं मां, भैया झूठ बोल रहा है. यही पापा के साथ जाता. पापा हमें डांटते हैं. हमें नहीं रहना उन के साथ. आप हमें प्यार करती हैं. हम आप के साथ रहेंगे,’’ अनूप प्यार से इरा के गले में बांहें डालते हुए बोला.

‘‘डांटते तो हम भी है,’’ इरा ने पूछा, ‘‘क्या तब तुम हमारे साथ नहीं रहोगे?’’

‘‘आप डांटती हैं तो क्या हुआ, प्यार भी तो करती हैं, फिर आप को खाना बनाना भी आता है. पापा क्या करेंगे?’’ अगर नौकर नहीं होगा तो? अनूप ने कहा.

‘‘अच्छा अपूर्व तुम जवाब दो,’’ इरा ने अपूर्व के सिर पर हाथ रख कर उस का मन फिर से टटोलना चाहा.

इरा का हाथ सिर से हटा कर अपूर्र्व एक ही झटके में उठ बैठा. बोला, ‘‘आप उत्तर चाहती हैं तो सुन लीजिए, हम आप दोनों के साथ ही रहेंगे.’’

इरा हैरत से अपूर्व को देखने लगी. फिर पूछा, ‘‘अरे, ऐसा क्यों?’’

‘‘जब आप और पापा 15 साल एकदूसरे के साथ रह कर भी एकदूसरे के साथ नहीं रह सकते, अलग होना चाहते हैं तब हम तो आप के साथ 12 साल से रह रहे हैं. हमें आप कैसे जानेंगे? आप और पापा अगर अलग हो रहे हैं तो हमें होस्टल भेज देना, हम आप दोनों से ही नहीं मिलेंगे,’’ अपूर्व तिलमिला उठा था.

‘‘पागल है क्या तू?’’ इरा हैरान थी, ‘‘नहीं बिलकुल नहीं. इतने वर्षों साथ रह कर भी आप को एकदूसरे का आदर करना, एकदूसरे को अपनाना नहीं आया, तो आप हमें कैसे अपनाएंगे.

‘‘पापा आप का सम्मान नहीं करते तभी आप को घर छोड़ कर जाने देंगे. आप पापा को और घर को इतने सालों में भी समझा नहीं पाईं तभी घर छोड़ कर जाने की बात कर सकती हैं. इसलिए हम आप दोनों का ही आदर नहीं कर सकेंगे और हम मिलना भी नहीं चाहेंगे आप दोनों से,’’ अपूर्व के चेहरे पर उत्तेजना और आक्रोश झलक रहा था.

इरा ने अपूर्व के कंधे को कस कर पकड़ लिया. उस का बेटा इतना समझदार होगा उस ने सोचा भी नहीं था. नवीन से अलग हो कर उस ने सोचा भी नहीं था कि अपने बेटे की नजरों में वह इतनी गिर जाएगी. अगर नवीन उसे सम्मान नहीं दे रहा, तो वह भी अलग हो रही है नवीन का तिरस्कार कर के. इस से वह नवीन को भी तो अपमानित कर रही है. परिवार टूट रहा है, बच्चे असंतुलित हो रहे हैं. वह विवाहविच्छेद नहीं करेगी. उस के आशियाने के तिनके उस के आत्मसम्मान की आंधी में नहीं उड़ेंगे. उसे नवीन के साथ अब किसी अलग ही धरातल पर बात करनी होगी.

अकसर ही नवीन झगड़े के बाद 2-4 दिन देर से घर आता है. औफिस में अधिक काम

का बहाना कर के देर रात तक बैठा रहता.

इरा उस की इस मानसिकता को अच्छी तरह समझती है.

इरा ने औफिस से 10 दिनों का अवकाश लिया. नवीन 2-4 दिन तटस्थता से इरा का रवैया देखता रहा. फिर एक दिन बोला, ‘‘ये बेमतलब की छुट्टियां क्यों ली जा रही हैं?’’

छुट्टियां खत्म हो जाएंगी तो हाफ पे ले लूंगी, जब औफिस जाना ही

नहीं है तो पिछले काम की छुट्टियों का हिसाब पूरा कर लूं,’’ इरा ने स्थिर स्वर में कहा.

‘‘किस ने कहा तुम औफिस छोड़ रही हो?’’ नवीन ने ऊंचे स्वर में कहा, ‘‘मैडम, आजकल नौकरी मिलती कहां है जो तुम यों आराम से लगीलगाई नौकरी को लात मार रही हो?’’

‘‘और क्या करूं?’’ इरा ने सपाट स्वर में कहा, ‘‘जिन शर्तों पर नौकरी करनी है वह मेरे बस के बाहर की बात है.’’

‘‘कौन सी शर्तें?’’ ‘‘नवीन ने अनजान बनते हुए पूछा.’’

‘‘देरसबेर होना, जनसंपर्क के काम में सभी से मिलनाजुलना होता है, वह भी तुम्हें पसंद

नहीं. कैरियर या होम केयर में से एक का चुनाव करना था. सो मैं ने कर लिया. मैं ने नौकरी छोड़ने का निर्णय कर लिया है,’’ इरा ने अपना फैसला सुनाया.

‘‘क्या बच्चों जैसी जिद करती हो,’’ नवीन झल्लाई आवाज में बोला, ‘‘एक जने की सैलरी में घरखर्च और बच्चों की पढ़ाई कैसे होगी?’’

‘‘पर नौकरी छोड़ कर तुम सारा दिन करोगी क्या?’’ नवीन को समझ नहीं आ रहा था कि वह किस तरह इरा का निर्णय बदले.

‘‘जैसे घर पर रहने वाली औरतें खुशी से दिन बिताती हैं. टीवी, वीडियो, ताश, बागबानी, कुकिंग, किटी पार्टी हजार तरह के शौक हैं. मेरा भी टाइम बीत जाएगा. टाइम काटना कोई समस्या नहीं है,’’ इरा आराम से दलीलें दे रही थी.

‘‘तुम्हारा कितना सम्मान है, तुम्हारे और मेरे सर्किल में लोग तुम्हें कितना मानते हैं. कितने लोगों के लिए तुम प्रेरणा हो, सार्थक काम कर रही हो,’’ नवीन ने इरा को बहलाना चाहा.

‘‘तो क्या इस के लिए मैं घर में रोजरोज कलहकलेश सहूं, नीचा देखूं, हर बात पर मुजरिम की तरह कठघरे में खड़ी कर दी जाऊं बिना किसी गुनाह के?

‘‘क्यों सहूं मैं इतना अपमान इस नौकरी के लिए? इस के बिना भी मैं खुश रह सकती हूं. आराम से जी सकती हूं,’’ इरा ने बिना किसी तनाव के अपना निर्णय सुनाया.

‘‘इरा आई एम वैरी सौरी, मेरा मतलब तुम्हें अपमानित करने का नहीं था. जब भी तुम्हें आने में देर होती है मेरा मन तरहतरह की आशंकाओं से घिर जाता है. उसी तनाव में तुम्हें बहुत कुछ उलटासीधा बोल दिया होगा. मुझे माफ कर दो. मेरा इरादा तुम्हें पीड़ा पहुंचाने या अपमानित करने का नहीं था,’’ नवीन के चेहरे पर पीड़ा और विवशता दोनों झलक रही थीं.

‘‘ठीक है कल से काम पर चली जाऊंगी. पर उस के लिए आप को भी वचन देना होगा कि इस स्थिति को तूल नहीं देंगे. मैं नौकरी करती हूं. मेरे लिए भी समय के बंधन होते हैं. मुझे भी आप की तरह समय और शक्ति काम के प्रति लगानी पड़ती है. आप के काम में भी देरसबेर होती ही है पर मैं यों शक कर के क्लेश नहीं करती,’’ कहतेकहते इरा रोआंसी हो उठी.

‘‘यार कह दिया न आगे से ऐसा नहीं करूंगा. अब बारबार बोल कर क्यों नीचा दिखाती हो,’’ इरा का हाथ अपने दोनों हाथों में थाम कर नवीन ने कहा.

इरा सोच रही थी कि रिश्ता तोड़ कर अलग हो जाना कितना सरल हल लग रहा था. लेकिन कितना पीड़ा दायक. परिवार के टूटने का त्रास सहन करना क्या आसान बात थी. मन ही मन वह अपने बेटे की ऋणी थी, जिस की जरा सी परिपक्वता ने यह हल निकाल दिया था, उस की समस्या का.

Parenting Tips : दो बच्चों का सिंगल पेरैंट हूं, बेटी पहली क्लास में गई है

Parenting Tips : 2 महीने हो गए हैं. अकसर सिर में दर्द की शिकायत करती है. डाक्टर को दिखा दिया. एमआरआई रिपोर्ट ठीक आई है फिर भी सिरदर्द हो रहा है. बेटा नर्सरी में है. मेरी मां ही बच्चों की देखभाल करती है. मैं बच्चों का पूरा ध्यान रखता हूं. बेटी की इस समस्या से परेशान हूं?

जवाब : आप की बेटी के सिरदर्द की शिकायत के कई कारण हो सकते हैं भले ही रिपोर्ट सामान्य हो. 6 साल की उम्र में बच्चे कई बार शारीरिक या मानसिक कारणों से ऐसी शिकायतें करते हैं.

क्या आप की बेटी पर्याप्त नींद ले रही है? बच्चों को 9 से 11 घंटे की नींद चाहिए. नींद पूरी न होने पर सिरदर्द हो सकता है. डिहाइड्रेशन भी सिरदर्द का कारण हो सकता है. सुनिश्चित करें कि वह दिनभर पर्याप्त पानी पी रही हो. कभीकभी आंखों का नंबर या तनाव सिरदर्द का कारण बनता है. एक बार आंखों का टैस्ट करवा लें. असंतुलित खानपान या लंबे समय तक भूखे रहने से भी सिरदर्द हो सकता है. उस का खानपान नियमित और पौष्टिक रखें.

आप ने बताया कि आप सिंगल पेरैंट हैं और आप की मां बच्चों की देखभाल करती हैं. आप की बेटी शायद मां की कमी महसूस करती हो या घर के माहौल में कोई तनाव हो. बच्चे कई बार भावनाओं को शब्दों में व्यक्त नहीं कर पाते और सिरदर्द जैसी शिकायत करते हैं. आप का बेटा भी है, हो सकता है कि बेटी को लगता हो कि उसे कम ध्यान मिल रहा है. बच्चे अनजाने में शारीरिक शिकायतों के जरिए ध्यान मांगते हैं.

वह स्कूल जाती है तो वहां का कोई तनाव (जैसे पढ़ाई, दोस्तों के साथ झगड़ा) भी कारण हो सकता है. उस से बातचीत करें. उस से प्यार से पूछें कि वह स्कूल, दोस्तों या घर में कैसा महसूस करती है.

अगर सिरदर्द की शिकायत बारबार हो रही है और कोई शारीरिक कारण नहीं मिल रहा, तो हां, एक बाल मनोवैज्ञानिक से मिलना अच्छा रहेगा. वे बच्चे के व्यवहार और भावनाओं को सम झ कर सही सलाह दे सकते हैं. आप अकेले पेरैंटिंग कर रहे हैं जो आसान नहीं है. अपनी मां से भी बात करें कि क्या वे बेटी के व्यवहार में कुछ असामान्य देखती हैं. धैर्य रखें और बेटी को अतिरिक्त समय व प्यार दें

अपनी समस्‍याओं को इस नंबर पर 8588843415 लिख कर भेजें, हम उसे सुलझाने की कोशिश करेंगे.

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें