ज्योंज्यों जिंदगी टैक्निक से टैक्निकल होती जा रही है, त्योंत्यों इधर खुशियों के रूपस्वरूपों के साथसाथ डर के भी रूपस्वरूप बदलते जा रहे हैं. तकनीकी के इस युग में अनजाने लोगों से उतना डर नहीं लगता, जितना अनजाने नंबर की कौल से लगता है.
खाली जनधन खाते के सिवाय और तो मेरे पास कुछ भी नहीं, मगर फिर भी क्या पता किसी की अनजानी कौल सुनने पर वह मेरा खाली जनधन खाता और खाली कर जाए. असल में मैं ने जनधन खाता इसलिए खुलवाया था कि कम से कम उस में रसाई गैस की सब्सिडी आया करेगी, पर मजे की बात, उस में रसोई गैस की सब्सिडी कभी नहीं आई.

हे मेरी तरह के घरेलू कुत्ते उर्फ शेरो, घर के बाहर विदेशों से आयातित शेरों की तरह दहाड़ने वाले शुद्ध स्वदेशी सियारो, मैं सब के खुदा को हाजिर मान कर बयान से न बदलने वाला बयान दे रहा हूं, जिस का सोशल मीडिया जो चाहे मतलब निकाल ले, मेरा कहने का वही मतलब होगा कि मैं उतना अपनी बीवी को अटेंड करने से नहीं डरता, जितना अनजानी कौल अटेंड करने से डरता हूं. मैं उतना अपने ईमानदार, मेरे लिए समर्पित दोस्तों को अटेंड करने से भी नहीं डरता, जितना अनजानी कौल अटेंड करने से डरता हूं. इसलिए, मैं केवल उन्हीं नंबरों से आई कौल स्वीकारता हूं, जो मेरी कौंटैक्ट लिस्ट में हों. मैं अपनी बीवी तक की उसी कौल को अटेंड करता हूं, जो मेरी कौंटैक्ट लिस्ट में हो.

कल पता नहीं किस का फोन आया. मैं ने काट दिया. फिर उसी नंबर से दोबारा फोन आया, तो कुछ गुस्से से मैं ने फिर काट दिया. बाद में जब उन्होंने पुराने नंबर से फोन कर बताया तो पता चला कि गधे, ये तो अपने खास दोस्त का नया अननोन नंबर है. नंबर बदलने की परंपरा में ये उन का पांचवा नया नंबर था. पता नहीं क्यों वे उतनी जल्दी नंबर बदलते हैं, जितनी जल्दी गिरगिट भी रंग नहीं बदलता. पता नहीं क्यों वे उतनी जल्दी नंबर बदलते हैं जितनी जल्दी सांप भी केंचुली नहीं बदलता. नंबर बदलना उन का शौक है या कुछ और, वे ही जानें. चौथे दिन नंबर बदलने के पीछे आगे का राज वे ही जाने.

‘यार, मैं तुझे बारबार फोन कर रहा हूं और तू बारबार फोन काट रहा है?’ उन्होंने बेकार का सा शिकवा मुझ से किया, पर मैं ने उसे परे धकेल दिया, ‘अनजान नंबर था इसलिए…’

‘यह भी मेरा नया नंबर है.’

‘बंधु, तुम ही कहो, अब तुम्हारे कितने नंबर कैसे किसकिस नाम से सेव करूं? जब तुम्हारा मन करे, तुम नंबर बदल लेते हो,’ मैं ने अपना मोबाइल खुजलाते हुए वाजिब सा सवाल उठाया तो वे मुझे शांत कराते हुए बोले, ‘देखो दोस्त, मोबाइल है तो हर चौथे दिन नया नंबर है. आज आदमी के पास अपने मोबाइल के नंबर बदलने की ही तो बस एक औप्शन बचा है, सो बेचारा ईजीली बदल देता है. वैसे, आज आदमी आदमी न रह कर एक मोबाइल नंबर हो कर रह गया है. सो, टेक इट इजी यार.

‘देखो दोस्त, रिश्तों का अर्थ तो बहुत पहले बदल चुका था. दीनईमान का अर्थ भी बहुत पहले का बदल चुका है. इनसायित का अर्थ भी बहुत पहले बदल चुका है. नीयत का अर्थ भी बहुत पहले बदल चुका है. आदमियत का अर्थ भी बहुत पहले बदल चुका है. सच बोलने वाली जीभ भी बहुत पहले बदल चुकी है. सच सुनने वाले कान भी बहुत पहले बदल चुके हैं. समाजोपयोगी सोचने वाला दिमाग भी बहुत पहले बदल चुका है. ऐसे में अब कम से कम आदमी से नित अपने मोबाइल का नंबर बदलने का हक तो मत छीनो दोस्त… रही बात मेरा नया नंबर सेव करने की, तो तुम मेरा नया नंबर भी उसी तरह से सेव कर लो, जैसे एक आदर्श पति अपनी बीवी के तीनतीन नंबर यों सेव कर सेफ रहता है- बीवी ओल्ड, बीवी न्यू, बीवी गोल्ड, बीवी…

‘मेरा नंबर भी तुम उसी तरह सेव कर लो, जैसे हर आदर्श पत्नी अपने पति का हर नया नंबर सेव करती है- हसबेंड पुराने, हसबेंड नए, हसबेंड औफिस, हसबेंड इमर्जेंसी, हसबेंड टेंपरेरी, हसबेंड परमानेंट या फिर बेटा अपने पापा का हर नया नंबर यों सेव करता है- पापा पुराने, पापा नए, पापा घर, पापा औफिस या फिर…,’ बंधु ने 2,000 रुपए वाले नोट सी नसीहत दी, तो मैं ने अपने मोबाइल से अपना सिर फोड़ लिया. वे पास होते तो उन का भी फोड़ देता.

थैंक गौड, सिर फूटा तो फूटा, पर मोबाइल सहीसलामत रहा. सिर का क्या, जख्म हुआ तो हुआ, खून बहा तो बहा, चार दिन बाद सब ठीक हो जाएगा. न भी हुआ तो कौन सा नासूर बन जाएगा. बन भी जाए तो बन जाए, पर जो मोबाइल को कुछ हो जाता तो???

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