लेखक- डा. एस डी वैष्णव

सोशल डायरीज कैफे. जी हां, यही नाम था उस कैफे का. तकरीबन 8 वर्षों पहले वह ठेठ देहात से शहर के एक बड़े विश्वविद्यालय में पढऩे आया था, जहां उस की मुलाकात रूपाली से हुई थी. रूपाली ने इसी कैफे पर पहली दफा उसे मिलने के लिए बुलाया था.

इधर आप सोच रहे होंगे कि किसी कैफे का यह कैसा नाम- सोशल डायरीज कैफे. लेकिन वाकई में यह कैफे शहर में बहुत चर्चित जगह थी, खासकर युवाओं की लंबीलंबी गपशप के लिए. छात्रसंघ चुनावों में तो यहां युवाओं का जमघट लगता था. कई प्रेमी युगल घंटों यहां बैठेबैठे गुटरगुटर किया करते थे. इस दरमियान कैफे वाला समय की नजाकत को भांप कर पार्श्व में उसी अनुरूप संगीत की स्वरलहरियां छोडऩे लगता था. एक के बाद एक दिलकश नगमे…

बस, आप तो कैपुचिनो का और्डर दीजिए और उस के एकएक घूंट के साथ एकदूसरे की आंखों में आंखें डाल कर दबे होंठों से नगमे गुनगुनाते जाइए. कैपुचिनो के साथ यहां कईयों का प्रेम परवान चढ़ा, तो कईयों का धूमिल हुआ. उस समय यहां सोशल डिस्टेंसिंग और दो गज की दूरी की बाध्यता का प्रावधान भी नहीं था. बड़ा ही दिलचस्प माहौल था इस कैफे का.

ये भी पढ़ें- वृत्त – भाग 2 : अनिल में अचानक परिवर्तन के क्या कारण थे

कैफे का यह नाम कई बार भ्रम की स्थिति उत्पन्न करता था. उस दिन रूपाली ने उसे फोन पर कहा, ‘दीपक, तुम ठीक शाम 5 बजे सोशल डायरीज कैफे मुझ से मिलने आ जाना.’ इधर लडक़े तो वैसे भी लडक़ी से मिलने के नाम से ही हमेशा जल्दबाजी में रहते हैं. इसी उधेड़बुन में उस ने ठीक से सुना नहीं और सही समय पर वहां पहुंचने को ‘हां’ कर दी.

इस तरह किसी कैफे में लडक़ी से मुलाकात का उस का यह पहला अवसर था. यही सोचसोच कर उस के शरीर के रोमरोम में सिहरन पैदा हो रही थी.

वह ठहरा ठेठ देहात का. शहर में नयानया आया था. कैफे का नाम भी बाहर इंग्लिश में लिखा हुआ था- सोशल डायरीज कैफे – बड़ेबड़े, लाललाल अक्षरों में. ऊपर से ऐसे कांच लगा रखे थे जिन में अंदर से बाहर साफ देखा जा सकता था, लेकिन बाहर से अंदर कुछ नजर नहीं आता था. इधर दीपक के लिए इंग्लिश तो हिमालय की सब से ऊंची चोटी फतह करने के समान थी. वह गांव के सरकारी स्कूल से ‘थर्स्टी क्रो’ और ‘हंगरी फौक्स’ की कहानियां रटरट कर यहां तक पहुंचा था. लिहाजा, उस ने ‘डायरीज’ शब्द को ‘डेयरी’ पढ़ लिया. और वहां से आगे बढ़ गया.

वह कुछ देर तक रोड पर ही खाक छानता रहा. जब जगह नहीं मिली, तब उस ने रूपाली को फोन किया. ‘हेलो…’ वह आगे कुछ बोलता, इतने में वह बीच में ही बोल पड़ी. ‘व्हाट हेलो, 5 बजे का टाइम दिया था. तुम्हें वक्त की कोई कद्र ही नहीं है.’

ये भी पढ़ें- फौजी का प्यार

‘तुम ने कौन सी जगह बताई थी? मिल नहीं रही है. मैं कब से रोड पर चक्कर काट रहा हूं.’ ‘सोशल डायरीज कैफे. कैफे के बाहर गुलमोहर और अमलतास के बड़ेबड़े पेड़ खड़े हैं. आंखें फाड़ कर देखो.’

‘तुम कैफे के बाहर खड़ी रहो, मैं ढूंढ रहा हूं.’

वह घूमताफिरता फिर वहीं आ पहुंचा, वहां लडक़ी बाहर खड़ी उस का इंतजार कर रही थी. जहां गुलमोहर भी महक रहा था और अमलतास अपने पीले फलों की छटा बिखेर रहा था. ‘ओह, मैं यहीं से हो कर तो गुजरा था. सोशल डेयरी..नहीं..डायरी..डायरीज कैफे.’ इस बार ‘डायरीज’ शब्द पर जोर देते हुए वह अपनी मोटरसाइकिल पर बैठेबैठे मन ही मन बुदबुदाया.

रूपाली को वहां खड़ा देख कर एक बार तो वह पानीपानी हुआ. फर्स्ट इंप्रैशन इज द लास्ट इंप्रैशन. लेकिन इस बात से उसे कोई फर्क नहीं पड़ता. एक तो वह सादगीभरा जीवन जीने वाला, दूसरा वह ठेठ देहात से आया हुआ. शहर के तौरतरीके समझने में वक्त तो लगता ही है. खैर, देर आए, दुरुस्त आए. उस के आने से पहले रूपाली एक प्लेट चाउमीन उड़ा चुकी थी. वह भी उस के पीछेपीछे कैफे में चला आया. बिलिंग काउंटर के ठीक सामने दीवार पर लगी मोनालिसा की पेंटिंग एक याद ताजा कर रही थी. कैफे के अंदर खरगोश के 2 सफेद बच्चे अठखेलियां कर रहे थे. पार्श्व में पाश्चात्य संगीत की मधुर धुन बज रही थी.

उन के वहां बैठते ही वेटर ने पीने का पानी टेबल पर रखा, फिर और्डर के लिए पूछा. रूपाली ने टेबल पर रखे मैन्यू कार्ड को दीपक की ओर बढ़ाया. उस ने कार्ड को वापस रूपाली की ओर बढ़ाते हुए कहा, ‘तुम्हें जो पसंद हो, मंगवा लो.’

‘कैपुचिनो चलेगी?’

उस ने यह नाम पहली दफा सुना था. लेकिन सोचा, अगर इस से पूछूंगा कि यह क्या चीज है तो मुझे बिलकुल गंवार ही समझेगी. बेहतर है, चुप ही रहूं. जो आएगा खापी लेंगे. उस ने कहा, ‘हां, क्यों नहीं चलेगी.’

रूपाली ने वेटर को 2 कैपुचिनो लाने के लिए कहा. फिर दीपक से मुखातिब हुई.

‘तुम ने आने में बहुत देर लगा दी?’ रूपाली ने पूछा.

‘देर कहां हुई मैडम जी. कब से आ गया, लेकिन इंग्लिश का लोचा हो गया था,’ वह दबे होंठों से बड़बड़ाया.

‘क्या? मन ही मन क्या बड़बड़ा रहे हो?’ रूपाली को थोड़ा अजीब सा लगा.

‘किसी काम से लेट हो गया था,’ उस ने जवाब दिया.

‘यू नो, तुम लड़कों की न, यही प्रौब्लम है. मैं समय की बहुत पाबंद हूं. आगे से तुम भी ध्यान रखना. अंडरस्टैंड?’

‘हां, ठीक है.’

‘फेसबुक पर हो तुम?’

‘किस पर?’ लडक़े को थोड़ा आश्चर्य हुआ कि क्या पूछ रही है.

‘फेसबुक…फेसबुक पर,’ रूपाली ने अपने एंड्रौएड मोबाइल में फेसबुक खोल कर उसे बताते हुए कहा. उस के पास साधारण सा मोबाइल था. ऊपर से फेसबुक से कभी वास्ता पड़ा नहीं था. उस ने ‘न’ में सिर हिला दिया. बात आगे बढ़ती, उस से पहले वेटर ने 2 कप कैपुचिनो के ला कर उन के सामने रख दिए. झागदार कौफी सामने देख कर दीपक के मुंह में पानी आ गया. ऐसी कौफी उस ने पहले कभी नहीं पी थी.

‘अरे वाह, कौफी. मैं बेवजह परेशान हो रहा था,’ वह मन ही मन सोचने लगा.

‘फ्यूचर का क्या प्लान है?’ रूपाली ने पूछा.

‘आगे चल कर एक बेहतरीन चित्रकार बनना चाहता हूं. ग्रेजुएशन में भी मेरा यही मुख्य विषय है.’

‘आर्टिस्ट…तुम्हें लगता है तुम आगे इस में बेहतर कर पाओगे?’

‘मेरा काम काम करना है और वह मैं कर रहा हूं. भविष्य के दरवाजे के अंदर क्या है, यह मैं अभी कैसे बता सकता हूं.’

‘तुम ने क्या सोचा है?’

‘आई वांट टू बिकम आईएएस. आफ्टर ग्रेजुएशन, आई विल गो टू दिल्ली टू प्रिपेयर फौर आईएएस.’

रूपाली ने अमेरिकी टोन में अपनी बात को इतना तेजी से बोला कि पूरा वाक्य दीपक के सिर के ऊपर से निकल गया. वह मोनालिसा की ओर देखने लगा. यहां आ कर वह 2 बातें तो सीख ही गया. पहली बात, यदि आप को शहरी लडक़ी से बातचीत करनी है, तो कम से कम थोड़ीबहुत इंग्लिश तो आनी ही चाहिए. वरना इज्जत तारतार होते देर नहीं लगती. दूसरी बात, शहर में इस तरह के और कौनकौन से कैफे हैं, जहां रूपाली मिलने को बुला सकती है, उन की भी एक लिस्ट बना लेनी चाहिए.

उस ने वहीं बैठेबैठे सोचा, हां, तैयारी करूंगा, और इंग्लिश जबान पर आ ही जाएगी. कोई भाषा सीखने में बुराई ही क्या है. जब उठो तब सवेरा. उस ने अगले ही दिन से इंग्लिश की कोचिंग करने का मानस बनाया.

उन की कौफी भी खत्म हो चुकी थी. दीपक ने काउंटर पर बैठे कैफे के मालिक उज्ज्वल भाई के पास जा कर बिल अदा किया. उज्ज्वल भाई के मिलनसार और सहृदय व्यक्तित्व के कारण हमारी भी साहित्यिक चर्चाएं यहां होती रहती थीं. मुसलसल होती रहती थीं. एकएक कप कैपुचिनो के साथ कईकई घंटे विमर्शों में गुजर जाते थे.

खैर, वे दोनों कैफे से बाहर निकल आए. बाहर गुलमोहर के पेड़ से रहरह कर वसंतदूत की मधुर आवाज आ रही थी. इधर दीपक के मन के किसी खाली कोने में पड़ी गीली मिट्टी के ऊपर प्रेम का दरख्त अपनी दस्तक दे रहा था.

आसमान पूरा बादलों से गिर आया था. बारिश की संभावना लग रही थी. रूपाली ने उस से विदा ली और वह भी अपने होस्टल चला आया. कुछ दीनों तक ऐसे ही चलता रहा. दीपक ने सुबह के वक्त इंग्लिश कोचिंग की क्लास भी जौइन कर ली. इधर विश्वविद्यालय के गलियारों में छात्रसघं चुनावों के मद्देनजर छात्र नेताओं में सियासी बाजार गरम होने लगा. लेकिन वह इन चुनावों की गतिविधयों से दूर अपनी इंग्लिश कोचिंग और कैनवास पर रंग बिखेरने में व्यस्त रहा.

छात्र नेताओं में आरोपप्रत्यारोप, सभाओं और भाषणों का दौर तेज होने लगा. छात्र शहर में जगहजगह मुफ्त के भोजन और थिएटर में फिल्में देखने का लुत्फ़ उठाने लगे. सोशल डायरी कैफे तो फास्ट फूड के लिए सब की पहली पसंद था. कहीं कोई हुड़दंग न हो जाए, इसलिए थानाधिकारी हनुवंत सिंह सिसोदिया अपनी टीम के साथ चुनाव में मुस्तैदी के साथ खडे रहे.

इस बार के चुनाव में प्रतीक शर्मा सब से प्रबल दावेदार था. उस के बोलने के लहजे से ही रूपाली उस की ओर आकर्षित होने लगी थी. आखिरकार, प्रतीक शर्मा की जीत हुई. इस के बाद रूपाली लगातार उस के साथ समय व्यतीत करने लगी थी. उस ने एकाएक दीपक से किनारा कर लिया था.

दीपक को भी इस बात की भनक लग गई थी. उस ने समय रहते रूपाली के मंसूबों को भांप लिया था. उस की नजर में एक इश्क जो मुकम्मल होना चाहिए था, वह अधूरा रह गया. लेकिन इस बात की उस ने तनिक भी परवा न की. वह अपनी राह पर आगे बढ़ गया. फिर उस ने कभी रूपाली की ओर मुड़ कर न देखा.

दीपक लगातार अपने सपने को सच करने में लगा रहा. आखिरकार, उस ने इंग्लिश पर विजय पाई और उस की आर्ट कला की तारीफ भी देशविदेश में होने लगी. इटली के फ्लोरेंस शहर की आर्ट गैलरी में उस की बनाई पेंटिंग ऊंचे दामों में बिकने लगीं. इधर रूपाली सालों तक प्रतीक के प्रेमजाल में फंसी रही. वहां उस ने प्रेम में धोखा खाया. जब बातें उड़ कर उस के घर तक पहुंची, तो उस के पिताजी ने उस की शादी करवा दी. आईएएस बनने का उस का सपना ख्वाब बन कर रह गया.

बाद के वषों में दीपक फ्लोरेंस के एक विश्वविद्यालय में आर्ट का प्रोफैसर बन गया. और उस ने वहीं इटालियन लडक़ी से शादी कर ली. आर्ट में छवि का कितना महत्त्व है, यह बात वह भलीभांति जानता है. कैफे में लगी मोनालिसा की पेंटिंग कई बार उस के मानस पटल पर उभरती है, लेकिन रूपाली की छवि उस के चेतन और अवचेतन मन में कहीं नजर नहीं आती.

और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...