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Romantic Story : ऐसा भी होता है बौयफ्रैंड

Romantic Story : सफेद कपड़े पहने होने के बावजूद उस का सांवला रंग छिपाए नहीं छिप रहा था. करीब जा कर देखने से ही पता चलता था कि उस के गौगल्स किसी फुटपाथी दुकान से खरीदे गए थे. बालों पर कई बार कंघी फिरा चुका वह करीब 20-22 साल की उम्र का युवक पिछले एक घंटे से बाइक पर बैठा कई बार उठकबैठक लगा चुका था यानी कभी बाइक पर बैठता तो कभी खड़ा हो जाता. काफी बेचैन सा लग रहा था. इस दौरान वह गुटके के कितने पाउच निगल चुका, उसे शायद खुद भी न पता होगा. गहरे भूरे रंग के गौगल्स में छिपी उस की निगाहों को ताड़ना आसान नहीं था. अलबत्ता जब भी उस ने उन्हें उतारने की कोशिश की, तो साफ जाहिर था कि उस की निगाहें गर्ल्स स्कूल की इमारत के दरवाजे से टकरा कर लौट रही थीं. तभी उस दरवाजे से एक भीड़ का रेला निकलता नजर आया. अब तक बेपरवाह वह युवक बाइक को सीधा कर तन कर खड़ा हो गया.

इंतजार के कुछ ही पल बेचैनी में गुजरे, तभी पसीनापसीना हुए उस लड़के के चेहरे पर मुसकराहट खिल उठी. उस ने एक बार फिर बालों पर कंघी फिराई और गौगल्स ठीक से आंखों पर चढ़ाए. मुंह की आखिरी पीक पिच्च से थूकते हुए होंठों को ढक्कन की तरह बंद कर लिया.

तेजी से अपनी तरफ आती लड़की को पहचान लिया था, वह प्रिया ही थी. प्रिया खूबसूरत थी और उस के चेहरे पर कुलीनता की छाप थी. खूबसूरत टौप ने उस में गजब की कशिश पैदा कर दी थी. बाइक घुमाते हुए उस ने पीछे मुड़ कर देखने की कोशिश नहीं की, लेकिन उसे एहसास हो गया था कि प्रिया बाइक की पिछली सीट पर बैठ चुकी है. तभी उसे अपनी पीठ पर पैने नाखून चुभने का एहसास हुआ और हड़बड़ाया स्वर सुनाई दिया, ‘‘प्लीज, जल्दी करो, मेरी सहेलियों ने देख लिया तो गजब हो जाएगा?’’

‘‘बाइक पर किक मारते ही लड़के ने पूछा, ‘‘कहां चलना है, सिटी मौल या…’’

फर्राटा भरती बाइक के शोर में लड़के को सुनाई दे गया था, ‘‘कहीं भी…जहां तुम ठीक समझो?’’

‘‘कहीं भी?’’ प्रिया की आवाज में घुली बेचैनी को वह समझ गया था. फिर भी मजाकिया लहजे में बोला. ‘‘तो चलें वहीं, जहां पहली बार…’’ बाकी शब्द पीठ पर चुभते नाखूनों की पीड़ा में दब गए. लेकिन इस बार उस के कथन में मजाक का पुट नहीं था… ‘‘तो फिर सिटी मौल चलते हैं?’’

‘‘नहीं, वहां नहीं,’’ प्रिया जैसे तड़प कर बोली, ‘‘तुम समझते क्यों नहीं दीपक, मुझे तुम से कुछ जरूरी बात करनी है.’’

तभी दीपक ने अपना एक हाथ पीछे बढ़ा कर लड़की की कलाई थामने की कोशिश की तो उस ने अपना गोरा नाजुक हाथ उस के हाथ में दे दिया और उस की पीठ से चिपक गई? दीपक को बड़ी सुखद अनुभूति हुई, तभी बाइक जोर से डगमगाई. उस ने फौरन लड़की का हाथ छोड़ दिया और बाइक को काबू करने की कोशिश करने लगा.

‘‘क्या हुआ?’’ लड़की घबरा कर बोली. अब वह दीपक की पीठ से परे सरक गई.

‘‘बाइक का पहिया बैठ गया मालूम होता है,’’ दीपक बोला, ‘‘शायद पंचर है,’’ उस ने बाइक को सड़क के किनारे लगाते हुए खड़ी कर दी. अब तक वे शहर से काफी दूर आ चुके थे. यह जंगली इलाका था और आसपास घास के घने झुरमुट थे.

तब तक प्रिया उस के करीब आ गई थी. उस ने आसपास नजर डालते हुए कहा, ‘‘अब वापस कैसे चलेंगे?’’ उस के स्वर में घबराहट घुली थी. लड़के ने एक पल चारों तरफ नजरें घुमा कर देखा, चारों तरफ सन्नाटा पसरा था. दीपक ने प्रिया की कलाई थाम कर उसे अपनी तरफ खींचा. प्रिया ने इस पर कोई एतराज नहीं जताया, लेकिन अगले ही पल अर्थपूर्ण स्वर से बोली, ‘‘क्या कर रहे हो?’’

‘‘तनहाई हो, लड़कालड़की दोनों साथ हों और मिलन का अच्छा मौका हो तो लड़का क्या करेगा?’’ उस ने हाथ नचाते हुए कहा.

प्रिया छिटक कर दूर खड़ी हो गई. ‘‘ये सब गलत है, यह सबकुछ शादी के बाद, अभी कोई गड़बड़ नहीं. अभी तो वापसी की जुगत करो,’’ प्रिया ने बेचैनी जताई, ‘‘कितनी देर हो गई? घर वाले पूछेंगे तो उन्हें क्या जवाब दूंगी?’’

दीपक ने बेशर्मी से कहा, ‘‘यह तुम सोचो,’’ इस के साथ ही वह ठठा कर हंस पड़ा और लपक कर प्रिया को बांहों में भर लिया, ‘‘ऐसा मौका बारबार नहीं मिलता, इसे यों ही नहीं गंवाया जा सकता?’’

‘‘लेकिन जानते हो, अभी मेरी उम्र शादी की नहीं है. अभी मैं सिर्फ 15 साल की हूं, इस के लिए तुम्हें 3 साल तक  इंतजार करना होगा,’’ प्रिया ने उस की गिरफ्त से मुक्त होने की कोशिश की.

‘‘लेकिन प्यार करने की तो है,’’ और उस की गिरफ्त प्रिया के गिर्द कसती चली गई. प्रिया का शरीर एक बार विरोध से तना, फिर ढीला पड़ गया. घास के झुरमुटों में जैसे भूचाल आ गया. करीब के दरख्तों पर बसेरा लिए पखेरू फड़फड़ कर उड़ गए.

करीब एक घंटे बाद दोनों चौपाटी पहुंचे और वहां बेतरतीब कतार में खड़े एक कुल्फी वाले से फालूदा खरीदा. गिलास से भरे फालूदा का हर चम्मच निगलने के बाद प्रिया दीपक की बातों पर बेसाख्ता खिलखिला रही थी. उन के बीच हवा गुजरने की भी जगह नहीं थी, क्योंकि दोनों एकदूसरे से पूरी तरह से सटे बैठे थे.

सलमान खान बनने की कोशिश में दीपक आवारागर्दी पर उतर आया था और उस ने प्रिया के गले में अपनी बांह पिरो दी थी. लेकिन इस पर प्रिया को कोई एतराज नहीं था. उस ने फालूदा खा कर गिलास ठेले वाले की तरफ बढ़ा दिया. प्रिया के पर्स निकालने और भुगतान करने तक दीपक कर्जदार की तरह बगलें झांकता रहा. उस ने ऐसे मौकों पर मर्दों वाली तहजीब दिखाने की कोई जहमत नहीं उठाई.

3 युवक एक मोटरसाइकिल पर आए और प्रिया के पास आ कर रुके. शायद ये दीपक के यारदोस्त थे. उन्होंने हाथ तो उस की तरफ हिलाया, लेकिन असल में सब प्रिया की तरफ देख रहे थे. प्रिया ने उड़ती सी नजर उन पर डाली और दूसरी तरफ देखने लगी.

उन्होंने दीपक का हालचाल पूछा तो वह उन की तरफ बढ़ा और दांत निपोरने के साथ ही मोटरसाइकिल पर पीछे बैठे लड़के की पीठ पर धौल जमाया, ऐसे ही मूड बन गया था यार, आइसक्रीम खाने का..’’

‘‘बढि़या है…बढि़या है यार…’’ इस बार वह लड़का बोला जो बाइक चला रहा था. वह प्रिया से मुखातिब हो कर बोला, ‘‘मैं, आप के फ्रैंड का जिगरी दोस्त.’’

यह सुन प्रिया मुसकराई. उस के चेहरे पर आए उलझन के भाव खत्म हो गए. लड़के ने उस की तरफ बढ़ने के लिए कदम बढ़ाए, लेकिन एकाएक ठिठक कर रह गया. प्रिया कंधे पर रखा बैग झुलाती हुई सामने पार्किंग में खड़ी अपनी स्कूटी की तरफ बढ़ी. उस लड़के ने खास अदा के साथ हाथ हिलाया. प्रिया एक बार फिर मुसकराई और स्कूटी से फर्राटे से आगे बढ़ गई.

यह देख चंदू निहाल हो गया. उस ने हकबकाए से खड़े दीपक पर फब्ती कसी. ‘‘अबे, क्यों बुझे हुए हुक्के की तरह मुंह बना रहा है? लड़की तू ने फंसाई तो क्या हुआ? दावत तो मिलबैठ कर करेंगे न?’’ तब तक दीपक भी कसमसा कर उन के बीच में सैंडविच की तरह ठुंस गया. बाइक फौरन वहां से भाग निकली. चंदू के ठहाके बाइक के शोर में गुम हो चुके थे.

2 महीने बाद… पुलिस स्टेशन के उस कमरे में गहरा सन्नाटा पसरा हुआ था. पैनी धार जैसी नीरवता पुलिस औफिसर के सामने बैठी एक कमसिन लड़की की सिसकियों से भंग हो रही थी. उस का चेहरा आंसुओं से तरबतर था. वह कहीं शून्य में ताक रही थी. शायद कुरसी पर बैठे उस के मातापिता थे, उन के चेहरे सफेद पड़ चुके थे. शर्म और ग्लानि के भाव उन पर साफ दिखाई दे रहे थे. पुलिस औफिसर शायद प्रिया की आपबीती सुन चुका था. उस का चेहरा गंभीर बना हुआ था. उन्होंने सवालिया निगाहों से प्रिया की तरफ देखा, ‘‘तुम्हारी उस लड़के से जानपहचान कैसे हुई?’’

प्रिया का मौन नहीं टूटा. इस बार औफिसर की आवाज में सख्ती का पुट था, ‘‘जो कुछ हुआ तुम्हारी नादानी से हुआ, लेकिन अब मामला पुलिस के पास है तो तुम्हें सबकुछ बताना होगा कि तुम्हारी उस से मुलाकात कैसे हुई?’’

प्रिया ने शायद पुलिस औफिसर की सख्ती भांप ली थी. एक पल वह उलझन में नजर आई, फिर मरियल सी आवाज में बोली, ‘‘एक बार मैं शौप पर कुछ खरीद रही थी, लेकिन जब पैसे देने लगी तो हैरान रह गई, मेरा पर्स मेरी जेब में नहीं था. उधर, दुकानदार बारबार तकाजा कर कह रहा था, ‘कैसी लड़की हो? जब पैसे नहीं थे तो क्यों खरीदा यह सब.’ मुझे याद नहीं रहा कि पर्स कहां गिर गया था, लेकिन दुकानदार के तकाजे से मैं शर्म से गड़ी जा रही थी. तभी एक लड़का, मेरा मतलब, दीपक अचानक वहां आया और दुकानदार को डांटते हुए बोला, ‘कैसे आदमी हो तुम?’ लड़की का पर्स गिर गया तो इस का मतलब यह नहीं हुआ कि तुम उसे इस तरह बेइज्जत करो? अगले ही पल उस ने जेब से पैसे निकाल कर दुकानदार को थमाते हुए कहा, ‘यह लो तुम्हारे पैसे.’ इस के साथ ही वह मुझे हाथ पकड़ कर बाहर ले आया.’’

प्रिया ने डबडबाई आंखों से पुलिस औफिसर की तरफ देखा और बात को आगे बढ़ाया, ‘‘यह सबकुछ इतनी अफरातफरी में हुआ कि मैं उसे न तो पैसे देने से रोक सकी और न ही उस से अधिकारपूर्वक हाथ पकड़ कर खुद को शौप से बाहर लाने का कारण पूछ सकी.’’

‘‘फिर क्या हुआ?’’ पुलिस औफिसर ने सांत्वना देते हुए पूछा, ‘‘फिर अगली मुलाकात कब हुई और यह मुलाकातों का सिलसिला कैसे चल निकला.’’

इस बार वहां बैठे दंपती एकटक बेटी की ओर देख रहे थे. उन की तरफ से आंखें चुराते हुए प्रिया ने बातों का सूत्र जोड़ा, ‘‘फिर यह अकसर स्कूल की छुट्टी के बाद मुझ से मिलने लगा. हम कभी आइसक्रीम शौप जाते, कभी मूवी या फिर घंटों गार्डन में बैठे बतियाते रहते.’’

‘‘मतलब वह लड़का पूरी तरह तुम्हारे दिलोदिमाग पर छा गया था?’’

प्रिया ने एक पल अपने मातापिता की तरफ देखा. उन का हैरत का भाव प्रिया से बरदाश्त नहीं हुआ, लेकिन पुलिस औफिसर की बातों का जवाब देते हुए उस ने कहा, ‘‘हां, मुझे यह अच्छा लगने लगा था. वह जब भी मिलता, मुझे गिफ्ट देता और कहता, ‘बड़ी हैसियत वाला हूं मैं, शादी तुम्हीं से करूंगा.’’

‘‘अभी शादी की उम्र है तुम्हारी?’’ पुलिस औफिसर के स्वर में भारीपन था. प्रिया चाह कर भी बहस नहीं कर सकी. उस ने सिर झुकाए रखा, ‘‘दरअसल, सहेलियां कहती थीं कि जिस का कोई बौयफ्रैंड नहीं उस की कोई लाइफ नहीं. बस, मुझे दीपक को पा कर लगा था कि मेरी लाइफ बन गई है.’’

‘‘क्योंकि तुम्हें बौयफ्रैंड मिल गया था, इसलिए,’’ पुलिस औफिसर ने बीच में ही बात काटते हुए कहा, ‘‘क्या उस से फ्रैंडशिप का तुम्हारे मातापिता को पता था? जब तुम देरसवेर घर आती थी तो क्या बहाने बनाती थी?’’ पुलिस औफिसर ने तीखी निगाहों से दंपती की तरफ भी देखा, लेकिन वे उन से आंख नहीं मिला सके.

उस की मम्मा ने अपना बचाव करते हुए कहा, ‘‘हम से तो इतना भर कहा जाता था कि आज सहेली की बर्थडे पार्टी थी या ऐक्स्ट्रा क्लास में लेट हो गई या फिर…’’ लेकिन पति को घूरते देख उस ने अपने होंठ सी लिए.

पुलिस औफिसर ने बात काटते हुए कहा, ‘‘कैसे गैरजिम्मेदार मांबाप हैं आप? लड़की जवानी की दहलीज पर कदम रख रही है, उस के आनेजाने का कोई समय नहीं है, और आप को उस की कतई फिक्र नहीं है, लड़की की बरबादी के असली जिम्मेदार तो आप हैं. मेरी नजरों में तो सजा के असली हकदार आप लोग हैं.’’

लड़की को घूरते हुए पुलिस औफिसर ने बोला, ‘‘बौयफ्रैंड का मतलब भी समझती हो तुम? बौयफ्रैंड वह है जो हिफाजत करे, भलाई सोचे. तुम पेरैंट्स को बेवकूफ बना रही थी और लड़का तुम को  इमोशनली बेवकूफ बना रहा था.’’

पुलिस औफिसर के स्वर में हैरानी का गहरा पुट था, ‘‘कैसा बौयफ्रैंड था तुम्हारा कि उस ने तुम्हारे साथ इतना बड़ा फरेब किया? तुम्हें बिलकुल भी पता नहीं लगा. विश्वास कैसे कर लिया तुम ने उस का कि उस ने तुम्हारी आपत्तिजनक वीडियो क्लिपिंग बना ली और तुम्हें जरा भी भनक नहीं लगी?’’

‘‘वह कहता था कि मेरा फिगर मौडलिंग लायक है, मुझे विज्ञापन फिल्मों में मौका मिल सकता है, लेकिन इस के लिए मुझे बस थोड़ी झिझक छोड़नी पड़ेगी. काफी नर्वस थी मैं, लेकिन कोल्डड्रिंक पीने के बाद कौन्फिडैंस आ गया था.’’

झल्लाते हुए पुलिस औफिसर ने कहा, ‘‘नशा था कोल्डड्रिंक में क्या, और उस कौन्फिडैंस में तुम ने क्या कुछ गंवा दिया, पता नहीं है तुम्हें?’’ क्रोध से बिफरते हुए पुलिस औफिसर ने लड़की को खा जाने वाली नजरों से देखा.

खुश्क होते गले में प्रिया ने जोर से थूक निगला. उस ने बेबसी से गरदन हिलाई और चेहरा हथेली से ढांप कर फफक पड़ी. उस की सिसकियां तेज होती चली गईं. अपनी ही बेवकूफी के कारण उसे यह दिन देखना पड़ा था. दीपक पर उस ने आंख मूंद कर भरोसा कर लिया था, इसलिए उस के इरादे क्या हैं, यह नहीं समझ सकी. काश, उस ने समझदारी से काम लिया होता. पर अब क्या हो सकता था.

Online Hindi Story : जीत – क्यों नहीं था उसे फैसले लेने का अधिकार

Online Hindi Story : विद्युत विभाग में जूनियर इंजीनियर प्रियंका जब विभागीय प्रमोशन के बाद पहली बार अधिकारी की कुरसी पर बैठी तो लगा मानो सारे विभाग की पावर उस के हाथों में आ गई. एक नई ऊर्जा, नए जोश और ईमानदार सोच के साथ जब उस ने 7 साल पहले जूनियर इंजीनियर के रूप में जौइन किया था तो कुछ ही दिनों में विभाग में फैले भ्रष्टाचार व कर्मचारियों में फैली कामचोरी की आदत ने उस के कोमल मन को बेहद आहत कर दिया था.

जूनियर होने के नाते उस के पास अपने फैसले लेने के अधिकार नहीं थे और नई होने या फिर शायद महिला होने के नाते भी उसे अधिक जिम्मेदारी वाले काम भी नहीं दिए जाते थे, इसलिए भी वह मन मसोस कर रह जाती थी. उन्हीं दिनों उस ने ठान लिया था कि जिस दिन उस के पास अधिकार और फैसले लेने की पावर आ जाएगी उसी दिन से वह आम लोगों में अति भ्रष्ट विभाग की छवि के नाम से कुख्यात इस विभाग की कालिख को धोने का प्रयास करेगी.

7 साल के लंबे इंतजार के बाद उसे यह प्रमोशन मिला है और सीट भी वह जिसे विभागीय भाषा में मलाईदार कहा जाता है. जाहिर सी बात है कि घर में खुशी का माहौल था. पति शेखर ने अपने खास दोस्तों और नजदीकी रिश्तेदारों के लिए एक छोटी सी पार्टी का आयोजन किया. सभी यारदोस्त बधाइयों के साथसाथ विद्युत विभाग में अटके अपने काम करवाने के लिए सिफारिश भी कर रहे थे. साथ ही साथ, विभाग के भ्रष्ट अधिकारियों व कर्मचारियों को भी कोस रहे थे.

रात को शेखर ने प्रियंका को बाहों में भरते हुए कहा, ‘‘तो भई, हम भी अफसर बीवी के पति हो गए अब. हमारा भी कुछ तो रुतबा बढ़ा ही होगा. आप को मलाई मिलेगी तो कुछ खुरचन हमारे भी हिस्से में आएगी ही.’’

पति की महत्त्वाकांक्षा और ऊंचे सपने देख कर प्रियंका सोच में पड़ गई, ‘लगता है युद्ध की शुरुआत घर से ही करनी पड़ेगी.’ यह सोचतेसोचते उसे नींद आ? गई.

सुबह साढ़े 9 बजे तक औफिस की गाड़ी नहीं आई तो प्रियंका ने ड्राइवर को फोन लगाया तो ड्राइवर बोला, ‘‘बस मैडम, रास्ते में ही हूं. अभी पहुंच रहा हूं.’’

‘पूरे कुएं में ही भांग घुली हुई है,’ ड्राइवर का उत्तर सुन कर प्रियंका खीझ उठी. लगभग 10 बजे ड्राइवर गाड़ी ले कर आया तो प्रियंका ने सख्ती से कहा, ‘‘विभाग ने यह गाड़ी 24 घंटे के लिए अनुबंधित की है. मुझे 9 बजे गाड़ी घर के सामने चाहिए, याद रहे, वरना सिर्फ एक नोटिस पर गाड़ी हटा दूंगी.’’

औफिस में, जैसा कि वह शुरू के दिनों से देखती आई थी, अभी तक कोई कर्मचारी नहीं पहुंचा था. मगर तब उस के पास अधिकार नहीं था उन पर सख्ती करने का. आज वक्त बदल चुका था. उस ने चपरासी से हाजिरी रजिस्टर अपने पास मंगवा लिया. 11 बजतेबजते कर्मचारियों का एकएक कर आना शुरू हुआ. जब सब आ चुके तो उस ने स्पष्ट शब्दों में चेतावनी दी, ‘‘चूंकि आज मेरे साथ आप का पहला दिन है इसलिए समझा रही हूं. कल से जिसे औफिस टाइम में अगर कोई पर्सनल काम हो तो कैजुअल लीव ले कर आराम से अपने काम करे और जिसे ड्यूटी करनी है वह समय से औफिस आ जाए.’’

अब तक सरकारी कार्यालय को आरामगाह समझते आए कर्मचारियों के लिए यह 440 वोल्ट का झटका था. कुछ वरिष्ठ कर्मचारी तो यह भी हजम नहीं कर पा रहे थे कि इतनी कम उम्र की बौस और वह भी एक महिला. सभी तिलमिला गए. रोष में भरे कामचोर कर्मचारी प्रियंका के खिलाफ गुटबाजी करने लगे. ऐसा नहीं था कि सभी लोग भ्रष्ट और कामचोर थे, कुछ ईमानदार लोग भी थे मगर उन्हें दूसरे कर्मचारी ‘विभाग का चमचा’ कह कर पथभ्रष्ट करने की कोशिश करते थे, उन्हें चिढ़ाते थे. उन्होंने प्रियंका की निष्ठा और लगन का सम्मान किया. शायद, वे बरसों से ऐसे ही किसी अधिकारी की तलाश कर रहे थे जिस के साथ काम कर के वे अपने जमीर को जवाब दे सकें, मन की संतुष्टि पा सकें.

प्रियंका के औफिस का तकनीकी सहायक राकेश भी उन्हीं में से एक था. तकनीकी प्रशिक्षण प्राप्त राकेश अपने काम में बेहद होशियार था. यही नहीं, औफिस के अन्य रूटीन काम भी वह बखूबी कर लेता था. एक सौम्य मुसकान हमेशा उस के चेहरे पर रहती थी. उस के पास काम करने के कई तरीके होते थे, न करने का कोई बहाना नहीं. जल्दी ही प्रियंका का भरोसा जीत लिया था उस ने.

धीरेधीरे सारा स्टाफ 2 खेमों में बंट गया. एक काम करने वालों का और एक काम को अटकाने वालों का. मगर राकेश का साथ मिलने से प्रियंका का हौसला मजबूत होता गया और काम न करने वालों को अकसर मुंह की खानी पड़ती.

एक दिन प्रियंका के पास एक फोन आया. उस व्यक्ति ने अपनी परेशानी बताते हुए कहा, ‘‘मैडम, पिछले एक महीने से आप के कर्मचारी मेरी फैक्टरी को विद्युत कनैक्शन नहीं दे रहे. मैं रिश्वत नहीं देता, इसलिए वे फाइल पर बारबार औब्जैक्शन लगा कर वापस भेज देते हैं. अगर मैं रिश्वत नहीं दूंगा तो क्या मेरा काम नहीं होगा?’’

‘‘आप कल सुबह अपनी फाइल ले कर मेरे औफिस आइए,’’ प्रियंका ने संयत स्वर में कहा.

प्रियंका ने पूरी फाइल को ध्यान से पढ़ा और उस में जो औपचारिक कमियां थीं वे उसे समझाईं. साथ ही, कहा कि इन्हें दूर कर के फाइल मेरे पास लाइए. आप का काम हो जाएगा.

2 दिनों बाद वह व्यक्ति फाइल कंपलीट कर के हाजिर हुआ. प्रियंका ने स्टाफ को कनैक्शन जारी करने के आदेश दिए मगर चूंकि स्टाफ पहले भी इस तरह के काम के लिए रिश्वत लेता रहा है इसलिए बिना पैसे काम करना उन्हें बहुत अखर रहा था. एक तरह से उस व्यक्ति के सामने वे अपनेआप को बेइज्जत सा महसूस कर रहे थे. स्टाफ में किसी ने तबीयत खराब होने का बहाना बनाया तो किसी ने जरूरी काम का बहाना बना कर आधे दिन की छुट्टी ले ली. प्रियंका परेशान हो गई. तभी राकेश ने कहा, ‘‘आप फिक्र न करें, मैं हूं न. मैं करवा दूंगा.’’

‘‘मगर तुम अकेले कैसे करोगे? जानते हो न कि कितना रिस्की काम है. बिजली किसी की दोस्त नहीं होती, जरा सी चूक जान पर भारी पड़ सकती है,’’ प्रियंका ने कहा.

‘‘मैं पूरी सेफ्टी के साथ काम करूंगा,’’ राकेश ने उसे आश्वस्त किया.

पता नहीं क्यों जब तक राकेश का फोन नहीं आया कि काम हो गया है तब तक उस की सांसें अटकी रहीं. जैसे ही राकेश का फोन आया, उस ने राहत की सांस ली. काम होने के बाद प्रार्थी ने प्रियंका को धन्यवाद देते हुए फोन किया और कहा, ‘‘मैं ने इस विभाग में पहली बार ऐसा अफसर देखा है. आप अपनी यह सोच बनाए रखें.’’ सुन कर प्रियंका मुसकरा दी.

ऐसे न जाने कितने ही नाजुक मौकों पर राकेश प्रियंका के विश्वास पर खरा उतरा था. प्रियंका उसे थैंक्यू कहती और राकेश बस मुसकरा देता. एक बेनाम से रिश्ते की कोंपलें फूट रही थीं दोनों के दिलों में.

नया काम, नई जिम्मेदारियां, औफिस का पहले से बिगड़ा हुआ ढर्रा और स्टाफ के असहयोगात्मक रवैये से प्रियंका परेशान हो जाती थी. घर पहुंचते ही बच्चों की फरमाइशें और फिर रात में पति की इच्छाएं. सबकुछ इतना थका देने वाला होता था कि कभीकभी सोचने लगती, ‘प्रमोशन के नाम पर अच्छी मुसीबत गले पड़ गई. इस से तो जूनियर ही ठीक थी. कम से कम दिल का सुकून तो था.’ मगर अगले ही दिन फिर उसी जोश और हिम्मत के साथ काम पर जुट जाती.

औफिस में काफीकुछ व्यवस्थित हो चला था. हर रिकौर्ड, हर फाइल अपडेट हो गई थी. सिर्फ एक कर्मचारी रामदेव के अलावा सब अपनाअपना काम भी जिम्मेदारी से करने लगे थे. कुल मिला कर प्रियंका को संतोषजनक लग रहा था.

दीवाली का त्योहार नजदीक आ गया. सभी विद्युत लाइनों और ट्रांसफौर्मरों की सालाना मेंटेनैंस करवानी थी. दिनभर शहर में घूमतेघूमते प्रियंका थक जाती थी.

एक दिन वह अपनी टीम को साइट पर भेज कर खुद औफिस के आवश्यक कागजात निबटा रही थी. अपनी मदद के लिए उस ने राकेश को भी रोक लिया था. काम निबटातेनिबटाते बाहर अंधेरा सा हो गया. वह अपने चैंबर में थी और राकेश अपनी सीट पर. तभी राकेश

2 कप कौफी ले आया. उसे सचमुच इस की बहुत जरूरत थी. राकेश ने कहा, ‘‘आप इतना टैंशन न लिया करें. सरकारी कामकाज ऐसे ही चलते रहते हैं. यों बेवजह परेशान होती रहीं तो कोई बीमारी पाल लेंगी. अगर आप को मुझ पर भरोसा हो तो बाहर के काम आप मुझे सौंप सकती हैं.’’

अचानक राकेश उठा और स्नेह से उस के कंधे पर हाथ रख कर बोला, ‘‘आप घर जाइए, सुबह आप को ये सारे कागजात तैयार मिलेंगे.’’ न जाने क्या था उन आंखों में कि प्रियंका ने अपना सिर उस भरोसेमंद हाथ पर टिका दिया.

दीवाली वाले दिन सुबहसुबह ही शिकायत मिली कि वाल्मीकि बस्ती में ट्रांसफौर्मर जल गया. प्रियंका इस इमरजैंसी को अटैंड कर के घर लौटी तो डाइनिंग टेबल पर ढेर सारे पटाखे, मिठाइयां और कई गिफ्ट देख कर चौंक गई. शेखर ने मुसकराते हुए कहा, ‘‘भई, इतने दिनों में आज पहली बार लग रहा है कि सरकारी अफसर के अलग ही ठाठ होते हैं. तुम्हारे जाते ही ठेकेदारों की लाइन लग गई. और देखो, घर गिफ्ट से भर गया.’’

‘‘हमें इस में से कुछ भी नहीं रखना है,’’ कहते हुए प्रियंका ने एकएक कर सारे ठेकेदारों को फोन कर के सारा सामान वापस ले जाने की सख्त हिदायत दे दी. शेखर को पत्नी से ऐसी उम्मीद न थी. उस ने उसे काफी भलाबुरा सुना दिया. बच्चों के मुंह उतर गए, सो अलग. त्योहार का सारा मजा किरकिरा हो गया. बच्चे तो खैर थोड़ी देर में सबकुछ भूल गए मगर शेखर ने अगले कई दिनों तक उस से सीधेमुंह बात नहीं की.

दीवाली निबटते ही मौजूदा वित्तीय वर्ष के बकाया टारगेट पूरे करने का प्रैशर बनने लगता है. प्रियंका को भी स्पैशल विजिलैंस चैकिंग के टारगेट दिए गए. राकेश भी उस के साथ ही होता था. एक दिन चैकिंग करतेकरते शहर से बाहर बने एक बड़े से फार्महाउस के बाहर उन्होंने गाड़ी रोकी. साफसाफ बिजली चोरी का केस था. प्रियंका ने विजिलैंस शीट भर कर 5 लाख रुपए का जुर्माना लगा दिया. फार्महाउस का मालिक शहर के विधायक का रिश्तेदार था. विधायक ने फोन पर प्रियंका को मामला

रफादफा करने के लिए दबाव डाला. प्रियंका ने इनकार कर दिया. बात उच्च अधिकारियों तक पहुंची तो उन्होंने भी प्रियंका को समझाया कि पानी में रह कर मगरमच्छ से बैर ठीक नहीं. शेखर ने भी डराया कि कहीं दूरदराज ट्रांसफर न हो जाए. मगर उस पर तो ईमानदारी का जनून सवार था.विधायक के रिश्तेदार ने पैनल्टी जमा नहीं करवाई तो प्रियंका ने फार्महाउस का कनैक्शन काटने का आदेश जारी कर दिया. कर्मचारियों ने विधायक के डर से वहां जाने से मना कर दिया तो राकेश के साथ पुलिस प्रोटैक्शन ले कर प्रियंका स्वयं गई. वहां मौजूद विधायक के आदमियों ने प्रियंका से बदतमीजी करने की कोशिश की. पुलिस चुपचाप खड़ी उन की आपसी बहस देख रही थी. तभी एक गुंडाटाइप आदमी आगे बढ़ा और प्रियंका के दुपट्टे की तरफ हाथ बढ़ाया. राकेश ने उसे प्रियंका तक पहुंचने से पहले ही मजबूती से पकड़ लिया. प्रियंका को जीप में बैठने का इशारा किया और ड्राइवर के साथ गाड़ी रवाना कर दी. प्रियंका की आंखें छलछला उठीं मगर उन आंसुओं में राकेश के प्रति अनुराग भी शामिल था.

यह केस अभी लोगों में चर्चा का विषय बना ही हुआ था कि अचानक जैसे प्रियंका की जिंदगी में तूफान आ गया. उस का कर्मचारी रामदेव एक ठेकेदार की टैंडर फाइल पास करने के एवज में रिश्वत लेते हुए रंगेहाथों पकड़ा गया. पुलिस को दिए अपने बयान में उस ने कहा कि यह काम वह प्रियंका मैडम के लिए करता है. उस के बयान के आधार पर प्रियंका को भी गिरफ्तार कर लिया गया. विभागीय नियमानुसार उसे निलंबित कर दिया गया. अखबारों ने सुर्खियों में इस खबर को प्रकाशित किया. महल्ले वाले कनखियों से देखदेख कर मुसकराते. सामने तो सहानुभूति दिखाते मगर पीठपीछे कई तरह की बातें करते. कोई कहता, ‘बड़ी ईमानदार बनती थी, आ गई न असलियत सामने.’ किसी ने कहा, ‘जितना रिश्वत ले कर कमाया था, सारा कोर्टकचहरी की भेंट चढ़ जाएगा, बदनामी हुई सो अलग.’ जितने मुंह उतनी बातें. कहते हैं न कि ‘मारने वाले का हाथ पकड़ा जा सकता है मगर बोलने वाले की जबान नहीं.’

बच्चों के दोस्त उन्हें स्कूल में चिढ़ाते. शेखर के औफिस में भी सब चटकारे लेले कर बातें करते. प्रियंका बुरी तरह से आहत थी. तन से भी और मन से भी. कुल मिला कर अब वह खुद भी इसे अपनी ईमानदारी और काम के प्रति निष्ठा की सजा मानने लगी थी. शेखर को भी सारा दोष उसी में दिखाई देता था. आएदिन उसे ताना देता था कि क्या जरूरत थी हरिशचंद्र की औलाद बनने की. अच्छीभली घर में आती कमाई का अपमान किया. यह उसी का नतीजा है. आपसी नाराजगी के चलते शेखर और उस के रिश्ते में भी ठंडापन आ गया था. आजकल उन में आपस में भी बहुत कम बात होती थी.

दम तोड़ती हुई मछली सी प्रियंका के लिए राकेश जैसे पानी की बूंद बन कर आया. शेखर के लाख मना करने के बावजूद, एक बड़े वकील से मिल कर उस ने प्रियंका से उस के निलंबन के खिलाफ कोर्ट में याचिका दाखिल करवाई. व्यक्तिगत प्रयास कर के उन तमाम उपभोक्ताओं और ठेकेदारों से प्रियंका के पक्ष में गवाही दिलवाई जिन के अटके हुए काम और लटके हुए बिलों का भुगतान प्रियंका ने बिना रिश्वत लिए करवाए थे. उसी के समझाने पर स्टाफ में भी कई लोगों ने अपनी अधिकारी के पक्ष में बयान दिए.

उन्हीं बयानों में यह बात भी निकल कर सामने आई कि रामदेव आदतन इस तरह की हरकतें करता है. वह अकसर मैडम के खिलाफ साजिशें रचता रहता था. यही नहीं, प्रियंका से पहले भी वह कई अधिकारियों को परेशान कर चुका था. स्वयं रामदेव अदालत में प्रियंका के खिलाफ सुबूत नहीं पेश कर सका. काफी लंबी कानूनी लड़ाई चली. सभी गवाहों को सुनने और सुबूतों को देखने के बाद कोर्ट की कार्यवाही तो पूरी हो गई थी मगर कोर्ट ने अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था.

आज प्रियंका की याचिका पर फैसले का दिन है. राकेश ने उसे कोर्ट जाने के लिए मना कर दिया क्योंकि वह जानता था कि अगर कोर्ट का फैसला प्रियंका के हक में नहीं आया तो वह बिखर जाएगी. सचाई और ईमानदारी पर से उस का विश्वास उठ जाएगा. राकेश वकील के साथ कोर्ट गया.

दोपहर के लगभग 3 बजे दरवाजे की घंटी बजने पर प्रियंका ने सेफ्टीहोल से झांक कर देखा. राकेश का उतरा हुआ चेहरा देख कर उस के पांव वहीं जम गए. दोबारा घंटी बजने पर उस ने बुझे मन से दरवाजा खोला. राकेश चुपचाप खड़ा था. उस ने कोर्ट का फैसला उसे थमा दिया. प्रियंका ने कांपते हाथों में पकड़ कर डबडबाई आंखों से उसे पढ़ा. यह क्या, कोर्ट ने मुझे बेकुसूर मानते हुए बाइज्जत बरी कर दिया. पढ़तेपढ़ते प्रियंका फूटफूट कर रो पड़ी. राकेश ने उसे बांहों में थाम लिया. प्रियंका ने भी आज अपनेआप को रोका नहीं. न जाने कितना दर्द, कितना लावा था जिसे आज बहना था. आज जीत हुई थी, सचाई की, विश्वास की, ईमानदारी की, दोस्ती की.

Love Story : मन की थाह – बुढ़ापे में क्यों की उसने शादी?

Love Story : रामलाल बहुत हंसोड़ किस्म का शख्स था. वह अपने साथियों को चुटकुले वगैरह सुनाता रहता था. वह अकसर कहा करता था, ‘‘एक बार मैं कुत्ते के साथ नई दिल्ली रेलवे स्टेशन पर गया. वहां आदमियों का वजन तोलने के लिए बड़ी मशीन रखी थी. मैं ने एक रुपया दे कर उस पर अपने कुत्ते को खड़ा कर दिया. मशीन में से एक कार्ड निकला जिस पर वजन लिखा था 35 किलो और साथ में एक वाक्य भी लिखा था कि आप महान कवि बनेंगे.’’ यह सुनते ही सारे दोस्त हंसने लगते थे.

रामलाल जितना मजाकिया था, उतना ही दिलफेंक भी था. उम्र निकले जा रही थी पर शादी की फिक्र नहीं थी. शादी न होने की एक वजह घर में बैठी बड़ी विधवा बहन भी थी. गणित में पीएचडी करने के बाद वह इलाहाबाद के डिगरी कालेज में प्रोफैसर हो गया और वहीं बस गया. उस के एक दोस्त राधेश्याम ने दिल्ली में नौकरी कर घर बसा लिया. एक बार राधेश्याम को उस से मिलने का मन हुआ. काफी समय हो गया था मिले हुए, इसलिए उस ने अपनी पत्नी से कहा, ‘‘मैं 3-4 दिनों के लिए इलाहाबाद जा रहा हूं. रामलाल से भी मिलना हो जाएगा. काफी सालों से उस की कोई खबर भी नहीं ली है. आज ही फोन कर के उसे अपने आने की सूचना देता हूं.’’

राधेश्याम ने रामलाल को अपने आने की सूचना दे दी. इलाहाबाद के रेलवे स्टेशन पर पहुंचते ही राधेश्याम ने रामलाल को खोजना शुरू कर दिया. पर जो आदमी एकदम उस के गले आ कर लिपट गया वह रामलाल ही होगा, ऐसा उस ने कभी सोचा भी नहीं था क्योंकि रामलाल कपड़ों के मामले में जरा लापरवाह था. पर आज जिस आदमी ने उसे गले लगाया वह सूटबूट पहने एकदम जैंटलमैन लग रहा था. राधेश्याम के गले लगते ही रामलाल बोला, ‘‘बड़े अच्छे मौके पर आए हो दोस्त. मैं एक मुसीबत में फंस गया हूं.’’

‘‘कैसी मुसीबत? मुझे तो तुम अच्छेखासे लग रहे हो,’’ राधेश्याम ने रामलाल से कहा. इस पर रामलाल बोला, ‘‘तुम्हें पता नहीं है… मैं ने शादी कर ली है.’’ इस बात को सुनते ही राधेश्याम चौंका और बोला, ‘‘अरे, तभी कहूं कि 58 साल का बुड्ढा आज चमक कैसे रहा है? यह तो बड़ी खुशी की बात है. पर यह तो बता इतने सालों बाद तुझे शादी की क्या सूझी? अब पत्नी की जरूरत कैसे पड़ गई? हमें खबर भी नहीं की…’’

इस पर रामलाल फीकी सी मुसकराहट के साथ बोला, ‘‘बस यार, उम्र के इस पड़ाव पर जा कर शादी की जरूरत महसूस होने लगी थी. पर बात तो सुन पहले. मैं ने जिस लड़की से शादी की है, वह मेरे कालेज में ही मनोविज्ञान में एमए कर रही है.’’ ‘‘यह तो और भी अच्छी बात है,’’ राधेश्याम ने हंसते हुए कहा.

‘‘अच्छीवच्छी कुछ नहीं. उस ने आते ही मेरे ड्राइंगरूम का सामान निकाल कर फेंक दिया और उस में अपनी लैबोरेटरी बना डाली, ‘‘बुझी हुई आवाज में रामलाल ने कहा. ‘‘तब तो तुम्हें बड़ा मजा आया होगा,’’ राधेश्याम ने चुटकी ली.

‘‘हांहां, शुरूशुरू में तो मुझे बड़ा अजीब सा लगा, पर आजकल तो बहुत बड़ी मुसीबत आई हुई है,’’ दुखी आवाज में रामलाल बोला. ‘‘आखिर कुछ बताओगे भी कि हुआ क्या है या यों ही भूमिका बनाते रहोगे?’’ राधेश्याम ने खीजते हुए कहा.

‘‘सब से पहले उस ने मेरी बहन के मन की थाह ली और अब मेरी भी…’’ राधेश्याम ने हंसते हुए कहा, ‘‘भाई रामलाल, तुम ने बहुत बढि़या बात सुनाई. तुम्हारे मन की थाह भी ले डाली.’’

‘‘हां यार, और कल उस ने रिपोर्ट भी दे दी.’’ ‘‘रिपोर्ट? हाहाहाहा, तुम भी खूब आदमी हो. जरा यह तो बताओ कि उस ने यह सब किया कैसे था?’’

‘‘उस ने मुझे एक पलंग पर लिटा दिया. मेरी बांहों में किसी दवा का एक इंजैक्शन लगाया और बोली कि मैं जो शब्द कहूं, उस से फौरन कोई न कोई वाक्य बना देना. जल्दी बनाना और उस में वह शब्द जरूर होना चाहिए.’’ ‘‘सब से पहले उस ने क्या शब्द कहा?’’ राधेश्याम ने पूछा.

रामलाल ने कहा, ‘‘दही.’’ राधेश्याम ने पूछा, ‘‘तुम ने क्या वाक्य बनाया?’’

रामलाल बोला, ‘‘क्योंजी, मध्य प्रदेश में दही तो क्या मिलता होगा?’’ राधेश्याम ने पूछा, ‘‘फिर?’’

रामलाल बोला, ‘‘फिर वह बोली, ‘बरतन.’ ‘‘मैं ने कहा कि मुरादाबाद में पीतल के बरतन बनते हैं.

‘‘बस ऐसे ही बहुत से शब्द कहे थे. देखो जरा रिपोर्ट तो देखो,’’ यह कह कर उस ने अपनी जेब से कागज का एक टुकड़ा निकाला. यह एक लैटरपैड था, जो इस तरह लिखा हुआ था, सुमित्रा गोयनका, एमए साइकोलौजी.

मरीज का नाम, रामलाल गोयनका. बाप का नाम, हरिलाल गोयनका. पेशा, अध्यापन. उम्र, 58 साल.

ब्योरा, हीन भावना से पीडि़त. आत्मविश्वास की कमी. अपने विचारों पर दृढ़ न रहने के चलते निराशावादी बूढ़ा. ‘‘अबे, किस ने कहा था बुढ़ापे में शादी करने के लिए और वह भी अपने से 10-15 साल छोटी उम्र की लड़की से? जवानी में तो तू वैसे ही मजे लेता रहा है. तेरा ब्याह क्या हुआ, तेरे घर में तो एक अच्छाखासा तमाशा आ गया. तुझे तो इस में मजा आना चाहिए, बेकार में ही शोर मचा रहा है.’’

‘‘तू नहीं समझेगा. वह मेरी बहन को घर से निकालने पर उतारू हो गई है. दोनों में रोज लड़ाई होती है. अब मेरी बड़ी विधवा बहन इस उम्र में कहां जाएंगी? ‘‘अगर मैं उन्हें घर से जाने को कहता हूं, तो समाज कह देगा कि पत्नी के आते ही, जिस ने पाला, उसे निकाल दिया. मेरी जिंदगी नरक हो गई है.’’

इतनी बातें स्टेशन पर खड़ेखड़े ही हो गईं. फिर सामान को कार में रख कर रामलाल राधेश्याम को एक होटल में ले गया. वहां एक कमरा बुक कराया. उस कमरे में दोनों ने बैठ कर चायनाश्ता किया. तब रामलाल ने उसे बताया, ‘‘इस समय घर में रहने में तुम्हें बहुत दिक्कत होगी. कहीं ऐसा न हो, वह तुम्हारे भी मन की थाह ले ले, इसलिए तुम्हारा होटल में ठहरना ही सही है.’’

इस पर राधेश्याम ने हंसते हुए कहा, ‘‘मुझे तो कोई एतराज नहीं है. मुझे तो और मजा ही आएगा. यह तो बता कि वह दिखने में कैसी लगती है?’’ रामलाल ठंडी आह लेते हुए बोला, ‘‘बहुत खूबसूरत हैं. बिलकुल कालेज की लड़कियों जैसी. तभी तो उस पर दिल आ गया.’’

राधेश्याम ने उस को छेड़ने की नीयत से पूछा, ‘‘अच्छा एक बात तो बता, जब तुम ने उस का चुंबन लिया होगा तो उस के चेहरे पर कैसे भाव थे?’’ ‘‘वह इस तरह मुसकराई थी, जैसे उस ने मेरे ऊपर दया की हो. उस ने कहा था कि आप में अभी बच्चों जैसी सस्ती भावुकता है,’’ रामलाल झेंपता हुआ बोला. चाय पीने के बाद राधेश्याम ने जल्दी से कपड़े बदल कर होटल के कमरे का ताला लगाया और रामलाल के साथ उस के घर की ओर चल दिया.

राधेश्याम मन ही मन उस मनोवैज्ञानिक से मिलने के लिए बहुत बेचैन था. होटल से घर बहुत दूर नहीं था. जैसे ही घर पहुंचे, घर का दरवाजा खुला हुआ था, इसलिए घर के अंदर से जोर से बोलने की आवाजें बाहर साफ सुनाई दे रही थीं. वे दोनों वहीं ठिठक गए. रामलाल की बहन चीखचीख कर कह रही थीं, ‘‘मैं आज तुझे घर से निकाल कर छोड़ूंगी. तू ने इस घर का क्या हाल बना रखा है? तू मुझे समझती क्या है?’’

रामलाल की नईनवेली बीवी कह रही थी, ‘‘तुम तो न्यूरोटिक हो, न्यूरोटिक.’’ इस पर रामलाल की बहन बोलीं, ‘‘मेरे मन की थाह लेगी. इस घर से चली जा, मेरे ठाकुरजी की बेइज्जती मत कर… समझी?’’

तब रामलाल की पत्नी की आवाज आई, ‘‘तुम्हें तो रिलीजियस फोबिया हो गया है.’’ इस पर बहन बोलीं, ‘‘सारा महल्ला मुझ से घबराता है. तू कल की छोकरी… चल, निकल मेरे घर से.’’

तब रामलाल की पत्नी की आवाज आई, ‘‘तुम में भी बहुत ज्यादा हीन भावना है.’’ रामलाल बेचारा चुपचाप सिर झुकाए खड़ा हुआ था. तब राधेश्याम ने उस के कान में कहा, ‘‘तुम फौरन जा कर अपनी पत्नी को मेरा परिचय एक महान मनोवैज्ञानिक के रूप में देना, फिर देखना सबकुछ ठीक हो जाएगा.’’

रामलाल ने राधेश्याम को अपने ड्राइंगरूम में बिठाया और पत्नी को बुलाने चला गया. उस के जाते ही राधेश्याम ने खुद को आईने में देखा कि क्या वह मनोवैज्ञानिक सा लग भी रहा है या नहीं? उसे लगा कि वह रोब झाड़ सकता है. थोड़ी देर बाद रामलाल अपनी पत्नी के साथ आया. वह गुलाबी रंग की साड़ी बांधे हुई थी. चेहरे पर गंभीर झलक थी. बाल जूड़े से बंधे हुए थे और पैरों में कम हील की चप्पल पहने हुए थी. उस ने बहुत ही आहिस्ता से राधेश्याम से नमस्ते की. नमस्ते के जवाब में राधेश्याम ने केवल सिर हिला दिया और बैठने का संकेत किया.

तब रामलाल ने अपनी पत्नी से कहा, ‘‘आप मेरे गुरुपुत्र हैं. कल ही विदेश से लौटे हैं. मनोवैज्ञानिक जगत में आप बड़े मशहूर हैं. विदेशों में भी. इस पर राधेश्याम बोला, ‘‘रामलाल ने मुझे बताया कि आप साइकोलौजी में बड़ी अच्छी हैं, इसीलिए मैं आप से मिलने चला आया. कुछ सुझाव भी दूंगा. मैं आदमी को देख कर पढ़ लेता हूं, किताब के जैसे. मैं बता सकता हूं कि इस समय आप क्या सोच रही हैं?’’

रामलाल की पत्नी तपाक से बोली, ‘‘क्या…?’’ राधेश्याम ने कहा, ‘‘आप इस समय आप हीन भावना से पीडि़त हैं.’’

रामलाल की पत्नी घबरा गई और बोली, ‘‘आप मुझे अपनी शिष्या बना लीजिए.’’ इस पर राधेश्याम बोला, ‘‘अभी नहीं. अभी मेरी स्टडी चल रही है. अब से कुछ साल बाद मैं अपनी लैबोरेटरी खोलूंगा.’’

‘‘मैं ने तो अपनी लैबोरेटरी अभी से खोल ली है,’’ रामलाल की पत्नी झट से बोली.

‘‘गलती की है. अब से 10 साल बाद खोलना. मैं तुम्हें कुछ किताबें भेजूंगा, उन्हें पढ़ना. अपनी लैबोरेटरी को अभी बंद करो. मुझे मालूम हुआ है कि आप अपनी ननद से भी लड़ती हैं. उन से माफी मांगिए.’’ रामलाल की पत्नी वहां से उठ कर चली गई. रामलाल राधेश्याम से लिपट गया और वे दोनों कुछ इस तरह खिलखिला कर हंसने लगे कि ज्यादा आवाज न हो.

Best Short Story : एक नजर – क्या हुआ था छोटी बहू के साथ ?

Best Short Story : जनाजे की तैयारी हो रही थी. छोटी बहू की लाश रातभर हवेली के अंदर नवाब मियां के कमरे में ही बर्फ पर रखी हुई थी. रातभर जागने से औरतों और मर्दों के चेहरे पर सुस्ती और उदासी छाई हुई थी. रातभर दूरदराज से लोग आतेजाते रहे और दुख जताने का सिलसिला चलता रहा. पूरी हवेली मानो गम में डूबी हुई थी और घर के बच्चेबूढ़ों की आंखें नम थीं. मगर कई साल से खामोश और अलगथलग से रहने वाले बड़े मियां जान यानी नवाब मियां के बरताव में कोई फर्क नहीं पड़ा था. उन की खामोशी अभी भी बरकरार थी.

उन्होंने न तो किसी से दुख जताने की कोशिश की और न ही उन से मिल कर कोई रोना रोया, क्योंकि सभी जानते थे कि पिछले 2-3 सालों से वे खुद ही दुखी थे. नवाब मियां शुरू से ऐसे नहीं थे, बल्कि वे तो बड़े ही खुशमिजाज इनसान थे. इंटर करने के बाद उन्हें अलीगढ़ यूनिवर्सिटी में एलएलबी पढ़ने के लिए भेज दिया गया था. अभी एलएलबी का एक साल ही पूरा हो पाया था कि अचानक नवाब मियां अलीगढ़ से पढ़ाई छोड़ कर हमेशा के लिए वापस आ गए. घर में किसी की हिम्मत नहीं थी कि कोई उन से यह पूछता कि मियां, पढ़ाई अधूरी क्यों छोड़ आए? अब्बाजी यानी मियां कल्बे अली 2 साल पहले ही चल बसे थे और अम्मी जान रातदिन इबादत में लगी रहती थीं. घर में अम्मी जान के अलावा छोटे मियां जावेद रह गए थे, जो पिछले साल ही अलीगढ़ से बीए करने के बाद जायदाद और राइस मिल संभालने लगे थे. वैसे भी जावेद मियां की पढ़ाई में ज्यादा दिलचस्पी नहीं थी. इधर पूरी हवेली की देखरेख नौकर और नौकरानियों के भरोसे चल रही थी.

हवेली में एक बहू की शिद्दत से जरूरत महसूस की जाने लगी थी. नवाब मियां के रिश्ते आने लगे थे. शायद ही कोई दिन ऐसा जाता था कि घर में नवाब मियां के रिश्ते को ले कर कोई दूर या पास का रिश्तेदार न आता हो. लेकिन अपने ही गम में डूबे नवाब मियां ने आखिर में सख्ती से फैसला सुना दिया कि वे अभी शादी करना नहीं चाहते, इसलिए बेहतर होगा कि जावेद मियां की शादी कर दी जाए. हवेली के लोग एक बार फिर सकते में आ गए. कानाफूसी होने लगी कि नवाब मियां अलीगढ़ में किसी हसीना को दिल दे बैठे हैं, मगर इश्क भी ऐसा कि वे हसीना से उस का पताठिकाना भी न पूछ पाए और वह अपने घर वालों के बुलावे पर ऐसी गई कि फिर वापस ही न लौटी. उन्होंने उस का काफी इंतजार किया, मगर बाद में हार कर वे भी हमेशा के लिए घर लौट आए. बरसों बाद हवेली जगमगा उठी. जावेद मियां की शादी इलाहाबाद से हुई. छोटी बहू के आने से हवेली में खुशियां लौट आई थीं.

छोटी बहू बहुत हसीन थीं. वे काफी पढ़ीलिखी भी थीं. नौकरचाकर भी छोटी बहू की तारीफ करते न थकते थे. मगर नवाब मियां हर खुशी से दूर हवेली के एक कोने में अपनी ही दुनिया में खोए रहते. न तो उन्हें अब कोई खुशी खुश करती थी और न ही गम उन्हें अब दुखी करता था. वे रातदिन किताबों में खोए रहते या हवेली के पास बाग में चहलकदमी करते रहते. सालभर होने को आया, मगर किसी की हिम्मत न हुई कि नवाब मियां के रिश्ते की कोई बात भी करे, क्योंकि हर कोई जानता था कि नवाब मियां जिद के पक्के हैं और जब तक उन के दिल में यादों के जख्म हरे हैं, तब तक उन से बात करना बेमानी है. अभी एक साल भी न होने पाया था कि छोटी बहू के पैर भारी होने की खबर से हवेली में एक बार फिर खुशियां छा गईं. सभी खुश थे कि हवेली में बरसों बाद किसी बच्चे की किलकारियां गूंजेंगी.

वह दिन भी आया. हवेली में छोटी बहू की तबीयत काफी बिगड़ गई थी. जैसेतैसे उन्हें शहर के बड़े अस्पताल में दाखिल कराया गया. मगर होनी को कौन टाल सकता है. सो, छोटी बहू नन्हे मियां को पैदा करने के बाद ही चल बसीं. हवेली में कुहराम मच गया. किसी ने सोचा भी नहीं था कि जो छोटी बहू हवेली में खुशियां ले कर आई थी, वे इतनी जल्दी हवेली को वीरान कर जाएंगी. नौकरचाकरों का रोरो कर बुरा हाल था. जावेद मियां तो जैसे जड़ हो गए थे. उन की आंख में आंसू जैसे रहे ही न थे. लाश को नहलाने के बाद जनाजा तैयार किया गया. जनाजा उठाते समय हवेली के बड़े दरवाजे पर नौकरानियां दहाड़ें मारमार कर रो रही थीं. सभी औरतें हवेली के दरवाजे तक आईं और फिर वापस हवेली में चली गईं. छोटी बहू को कब्र में रखने के बाद किसी ने बुलंद आवाज में कहा, ‘‘जिस किसी को छोटी बहू का मुंह आखिरी बार देखना है, वह देख ले.’’

नवाब मियां कब्रिस्तान में लोगों से दूर पीपल के पेड़ के पास खड़े थे. उन के दिल में भी खयाल आया कि आखिरी समय में छोटी बहू का एक बार चेहरा देख लिया जाए. आखिर वे उन के घर की बहू जो थीं. कब्र के सिरहाने जा कर नवाब मियां ने थोड़ा झुक कर छोटी बहू का मुंह देखना चाहा. छोटी बहू का चेहरा बाईं तरफ थोड़ा घूमा हुआ था. नवाब मियां ने जब छोटी बहू के चेहरे पर नजर डाली, तो वे बुरी तरह तड़प उठे. दोनों हाथों से अपना सीना दबाते हुए वे सीधे खड़े हुए. उन की आंखों के आगे अंधेरा छा गया. उन्होंने सोचा कि अगर वे जल्द ही कब्र के पास से नहीं हटे, तो इस कब्र में ही गिर पड़ेंगे.

कब्र पर लकड़ी के तख्ते रखे जाने लगे थे और लोग कब्र पर मुट्ठियों से मिट्टी डालने लगे. नवाब  मियां ने भी दोनों हाथों में मिट्टी उठाई और छोटी बहू की कब्र पर डाल दी. जिस चेहरे की तलाश में वे बरसों से बेकरार थे, आज उसी चेहरे पर वे हमेशा के लिए 2 मुट्ठी मिट्टी डाल चुके थे.

Hindi Story : लव गेम – शीना पोडियम पर क्या लिख रही थी ?

Hindi Story : जिंदगी मौसम की तरह होती है. कभी गरमी की तरह गरम तो कभी सर्दी की तरह सर्द तो कभी बारिश के मौसम की तरह रिमझिमरिमझिम बरसती बूंदों सी सुहानी. जैसे मौसम रंग बदलता है, वैसे ही जिंदगी भी वक्तबेवक्त रंग बदलती रहती है. लेकिन जिंदगी में कभीकभी कुछ सवालों का जवाब देना बड़ा मुश्किल हो जाता है.

यह कहानी भी कुछ ऐसी ही है. बदलते मौसम की तरह रंग बदलती हुई भी और उन रंगों में से चटख रंगों को चुराती हुई भी. आइए देखें, इस कहानी के पलपल बदलते रंगों को, जो खुदबखुद फीके पड़ कर गायब होते जाते हैं.

कंट्री क्लब में एक पार्टी का आयोजन किया गया था, जिस में आयोजकों ने अपने मैंबर्स में से कुछ ऐसे यंग कपल्स के लिए पार्टी रखी थी, जिन की शादी को अभी ज्यादा से ज्यादा 5 साल हुए थे.

इस पार्टी में करीब 50 यंग कपल्स शामिल हुए. सभी बहुत खूबसूरत थे, जो सजधज कर पार्टी में आए थे. उन सभी के छोटेछोटे बच्चे भी थे. लेकिन आर्गनाइजर्स ने बच्चों को पार्टी में लाने की परमिशन नहीं दी थी, इसलिए सब लोग अपने बच्चे घर पर ही छोड़ कर आए थे.

कई यंग कपल्स ऐसे भी थे, जो एकदूसरे को अच्छी तरह जानतेपहचानते थे, इसलिए पार्टी में आते ही वे बड़ी गर्मजोशी के साथ मिले और एकदूसरे से घुलमिल गए. पार्टी के शुरुआती दौर में स्टार्टर, कौकटेल, मौकटेल, वाइन और सौफ्ट ड्रिंक वगैरह का जम कर दौर चला. इस के बाद सब ने खाना खाया. खाना बहुत लजीज था.

खाने के बाद पार्टी में कपल्स के साथ कई तरह के गेम खेले गए. हर गेम के अपने नियम थे. बहुत ही सख्त. गेम का संचालन एक एंकर कर रहा था. जिस हौल में पार्टी चल रही थी, वहीं एक फुट ऊंचा बड़ा सा पोडियम बना था. उसी पोडियम पर गेम खेले जा रहे थे. आखिर में एक गेम और खेला गया.

एंकर ने एक यंग ब्यूटीफुल लेडी को पोडियम पर इनवाइट किया, जिस की शादी को अभी सिर्फ 4 साल हुए थे और उस का 2 साल का एक बेटा भी था. उस लेडी का नाम शीना था.

शीना पोडियम पर जा कर वहां रखी एक चेयर पर बैठ गई. पोडियम पर वाइट कलर का बड़ा सा एक बोर्ड लगा था. एंकर ने शीना से कहा, ‘‘आप बोर्ड पर ऐसे 40 नाम लिखिए, जिन से आप सब से ज्यादा प्यार करती हैं.’’

हौल में जितने भी कपल्स थे, वे सभी पोडियम के आसपास एकत्र हो गए और बड़ी बेचैनी से यह सोच कर एंकर तथा उस महिला की तरफ देखने लगे कि आखिर अब कौन सा गेम होने वाला है. गेम के बारे में किसी को कुछ नहीं मालूम था.

यहां तक कि वह महिला भी नहीं जानती थी कि वह किस तरह के गेम का हिस्सा बनने जा रही है. वह तो मस्तीमस्ती में पोडियम पर आ कर बैठ गई थी.

लेकिन एंकर की बात सुनते ही वह अनईजी हो गई.

‘‘च…चालीस ऐसे लोगों के नाम…’’ शीना कंफ्यूज्ड हो कर बोली, ‘‘जिन से मैं सब से ज्यादा प्यार करती हूं?’’

‘‘यस.’’ एंकर के होठों पर उस समय एक शरारती मुसकराहट खिल रही थी, ‘‘क्या आप की जिंदगी में 40 ऐसे इंसान नहीं हैं, जिन से आप बेहद प्यार करती हों?’’

‘‘नहीं…नहीं.’’ शीना जल्दी से हड़बड़ा कर बोली, ‘‘म…मेरे कहने का मतलब यह नहीं है. 40 क्या, मेरी लाइफ में तो ऐसे बहुत से लोग हैं, जिन से मैं बेहद प्यार करती हूं और वे सब भी मुझ से बहुत प्यार करते हैं.’’

‘‘गुड.’’ एंकर उत्साहित हो कर बोला, ‘‘आप को सब के नाम नहीं लिखने हैं, जो आप की लिस्ट में सब से ऊपर हों, सिर्फ वही नाम लिखिए. इस गेम का नाम लव गेम है.’’

‘‘लव गेम.’’ पोडियम के चारों तरफ एकत्र लोगों के चेहरे पर मुसकराहट दौड़ी, ‘‘इंटरेस्टिंग.’’

शीना भी अब चेयर छोड़ कर खड़ी हो गई थी. उस ने बड़े उत्साह से मार्कर पैन उठा लिया और वाइट बोर्ड के पास जा कर उस पर जल्दीजल्दी नाम लिखने लगी. शीना ने सच कहा था. उस की जिंदगी में वाकई ऐसे काफी लोग थे, जिन से वह बहुत प्यार करती थी. यह बात उस के नाम लिखने की स्पीड से पता चल रही थी. उसे इस बारे में ज्यादा सोचना नहीं पड़ा.

कुछ ही मिनट में उस ने 40 नाम लिख दिए. उस लिस्ट में उस के रिलेटिव, फ्रैंड्स, ब्रदर, सिस्टर, मदर, फादर, हसबैंड और उस का 2 साल का बेटा भी था. नाम लिख कर वह विक्ट्री स्माइल बिखेरती हुई एंकर की तरफ मुड़ी.

‘‘क्यों, लिख दिए न मैं ने 40 नाम.’’ वह इस अंदाज में बोली, जैसे उस ने गेम जीत लिया हो.

‘‘यस.’’ एंकर मुसकराया, ‘‘लेकिन गेम अभी खत्म नहीं हुआ मैम. गेम तो अभी शुरू हुआ है.’’

‘‘मतलब?’’

‘‘मतलब अभी आप को इन में से 20 ऐसे नाम कट करने हैं, जिन से आप कम प्यार करती हैं. मान लीजिए, आप इन 40 लोगों के साथ बीच समुद्र में किसी ऐसी बोट में सवार हों, जो डूबने वाली हो. अगर 40 में से 20 लोगों को बीच समुद्र में फेंक दिया जाए तो बोट बच सकती है. ऐसी हालत में वह 20 लोग कौन होंगे, जिन्हें आप बीच समुद्र में फेंक कर बाकी के 20 लोगों की जान बचाएंगी?’’

शीना अब कंफ्यूज्ड नजर आने लगी.

फिर भी वह दोबारा वाइट बोर्ड के पास पहुंची और उस ने ऐसे 20 लोगों के नाम काट दिए, जिन्हें बीच समुद्र में फेंक कर वह बाकी के अपने 20 लोगों की जान बचा सकती थी. अब वाइट बोर्ड पर जो नाम बचे, उन में उस के बहुत करीबी, रिलेटिव, ब्रदर, सिस्टर, मदर, फादर, हसबैंड और उस का 2 साल का बेटा था.

‘गुड.’’ एंकर मुसकराया, ‘‘अब इन में से 10 नाम और काट दीजिए.’’

‘‘म…मतलब?’’ हक्कीबक्की शीना ने आश्चर्य से पूछा.

‘‘सिंपल है,’’ एंकर बोला, ‘‘अब सिर्फ 10 ऐसे नाम चुनें, जिन्हें आप सब से ज्यादा प्यार करती हों और उन 10 लोगों को बचाने के लिए आप बाकी के 10 को बीच समुद्र में फेंक सकती हैं. याद रहे, आप सब बोट पर सवार हैं और वहां जिंदगी और मौत की फाइट चल रही है.’’

शीना वापस वाइट बोर्ड के पास पहुंची और उस ने 10 और नाम काट दिए. लेकिन वे 10 नाम काटना उस के लिए पहले जितना आसान नहीं था. उस ने बहुत सोचसमझ कर 10 नाम काट दिए. पोडियम के आसपास एकत्र लोग भी अब बड़ी बेचैनी से शीना की तरफ देखने लगे. सब जानना चाहते थे कि शीना अब किस के नाम काटेगी.

वाइट बोर्ड पर जो बाकी 10 नाम बचे थे, उन में उस के कुछ खास रिलेटिव, ब्रदर, सिस्टर, मदर, फादर, हसबैंड और बेटा था.

‘‘हूं.’’ एंकर ने गहरी सांस ली.

शीना 10 नाम काट कर के अभी टर्न भी नहीं हुई थी कि उस से पहले ही एंकर बोल पड़ा, ‘‘अब इन में से 6 नाम और काट दो. सिर्फ 4 रहने दो. बोट इतने लोगों का वजन भी नहीं संभाल पा रही है. अभी तुरंत 6 लोगों को और समुद्र में फेंकना पड़ेगा, वरना बोट डूब जाएगी.’’

शीना ने वाइट बोर्ड पर लिखे नाम देखे. वह अब इमोशनल होने लगी. बहरहाल उस ने 6 नाम और काट दिए. बोर्ड पर अब सिर्फ शीना के मदर, फादर, हसबैंड और उस के 2 साल के बेटे का नाम बचा था. दूसरी ओर उसे अपने ब्रदर, सिस्टर के नाम भी काटने पड़े. पूरे हौल में सन्नाटा पसर गया था. सभी लोग इमोशनल हो गए.

‘‘अब अगर इन में से भी 2 नाम और काटने पड़ें…’’ एंकर बहुत धीमी आवाज में बोला, ‘‘तो वे कौन से नाम होंगे, जो आप काटेंगी. किन 2 लोगों को बचाएंगी आप?’’

अब वाकई शीना की हालत बहुत बुरी हो गई. मस्तीमस्ती में शुरू हुआ गेम अचानक बहुत इमोशनल हो गया था. शीना किसी गहरी सोच में डूब गई.

पोडियम के चारों तरफ जमे कपल्स भी यह जानने के लिए बेचैन हो उठे कि आखिर अब शीना कौन से 2 नाम काटेगी? मदर फादर का या फिर हसबैंड और बेटे का?

हौल में सन्नाटा और गहरा गया. शीना की आंखों में भी आंसू आ गए. पोडियम के नीचे खड़ा शीना का हसबैंड उसी तरफ देख रहा था. उसे खुद भी मालूम नहीं था कि शीना अब कौन से 2 नाम काटने वाली है.

शीना ने कांपते हाथों से अपने मातापिता का नाम बोर्ड से मिटा दिया. देख कर सब सन्न रह गए. किसी को उम्मीद नहीं थी कि शीना अपने मातापिता का नाम बोर्ड से मिटा देगी. मातापिता तो जीवन देने वाले होते हैं, वह उन का नाम कैसे काट सकती थी? अब वाइट बोर्ड पर सिर्फ 2 नाम चमक रहे थे, हसबैंड और उस के बेटे का नाम.

‘‘प्लीज…’’ शीना रो पड़ी, ‘‘अब मुझ से कोई और नाम काटने के लिए मत कहना.’’

‘‘बस अब यह गेम खत्म होने वाला है.’’ एंकर बोला, ‘‘बिलकुल लास्ट है. अगर आप से कहा जाए कि इन दोनों में से भी आप किस से ज्यादा प्यार करती हैं तो आप किसे चुनेंगी? वह एक कौन होगा, जिसे बचाने के लिए आप दूसरे को बीच समुद्र में फेंक देंगी, हसबैंड या बेटा?’’

‘‘मैं खुद समुद्र में कूदना पसंद करूंगी.’’ शीना भावविह्वल हो कर बोली, ‘‘लेकिन इन दोनों में से किसी को भी अपने से अलग नहीं करूंगी.’’

‘‘नहीं…आप नहीं,’’ एंकर बोला, ‘‘आप को इन दोनों में से कोई एक नाम काटना है.’’

अब शीना की हालत बहुत बुरी हो गई थी. हौल में मौजूद हर आंख शीना पर ही टिकी थी. हर कोई यह जानना चाहता था कि अब वह किस का नाम काटेगी? हसबैंड या बेटे में से वह किसे चुनेगी?

शीना ने कांपते हाथों से वाइट बोर्ड पर लिखा अपने बेटे का नाम मिटा दिया. सब सन्न रह गए. हर कोई सोच रहा था कि वह अपने हसबैंड का नाम मिटाएगी, क्योंकि हम दुनिया में सब से ज्यादा अपने बच्चों से ही प्यार करते हैं.

‘‘क्यों?’’ एंकर ने बेचैनी के साथ पूछ ही लिया, ‘‘आप ने अपने हसबैंड को ही क्यों चुना?’’

‘‘जानते हो…’’ शीना पोडियम पर खड़ीखड़ी बहुत इमोशनल हो कर बोली, ‘‘जिस दिन मेरी शादी हुई, उस दिन मम्मीपापा ने मेरे हसबैंड के हाथ में मेरा हाथ देते हुए कहा था, ‘आज से यही आदमी जिंदगी के आखिरी सांस तक तुम्हारा साथ देगा. तुम कभी इस का साथ न छोड़ना. जिस तरह सुखदुख में वह तुम्हारा साथ दे, उसी तरह तुम भी हर सुखदुख में उस का साथ देना.’ मैं ने अपने मम्मीपापा की बात मानी.

‘‘अपने हसबैंड के लिए मैं ने अपने उन्हीं मम्मीपापा तक को त्याग दिया. यहां तक कि जब अपने बेटे और हसबैंड में से भी किसी एक को चुनने का समय आया तो मैं ने अपने हसबैंड को ही चुना. मैं अपने बेटे से बहुत प्यार करती हूं. लेकिन हसबैंड के रहते मुझे बेटा तो दूसरा मिल सकता है, पर हसबैंड दूसरा नहीं मिल सकता. पतिपत्नी का यह रिश्ता अनमोल है, अटूट है. हमें हमेशा इस रिश्ते का सम्मान करना चाहिए.’’

शीना की बातें सुन कर पूरा हौल तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा. सभी की आंखों में आंसू थे. शीना का हसबैंड भी बेहद इमोशनल हो गया था. एकाएक वह शाम बेहद खास हो गई. लव गेम ने सभी हसबैंड वाइफ के रिलेशन को और मजबूत कर दिया था.

Romantic Story : मन बहुत प्यासा है

Romantic Story : शाम बहुत उदास थी. सूरज पहाडि़यों के पीछे छिप गया था और सुरमई अंधेरा अपनी चादर फैला रहा था. घर में सभी लोग टीवी के सामने बैठे समाचार सुन रहे थे. तभी न्यूज ऐंकर ने बताया कि सुबह दिल्ली से चली एक डीलक्स बस अलकनंदा में जा गिरी है. यह खबर सुनते ही सब के चेहरे का रंग उड़ गया और टीवी का स्विच औफ कर दिया गया. मैं नवीन की कमीज थामे सन्न सी खड़ी रह गई. ढेर सारे खयाल दिलोदिमाग में हलचल मचाते रहे. क्या सचमुच नवीन इज नो मोर? मां का विलाप सुन कर आंगन में आसपास की औरतें जुड़ने लगीं. उन में से कुछ रो रही थीं तो कुछ उन्हें सही सूचना आने तक तसल्ली रखने की सलाह दे रही थीं. बाबूजी ने मेरे डैडी को फोन किया और तुरंत घटनास्थल पर चलने को कहा. मेरी समझ में नहीं आ रहा था कि मैं क्या करूं? क्या मैं सचमुच… इस के आगे सोचने से दिल घबराने लगा.

3 दिन तक जीनेमरने जैसी स्थिति रही. चौथे दिन हारे हुए जुआरी की तरह बाबूजी और डैडी वापस लौट आए. अलकनंदा में उफान के कारण लाशें तक निकाली नहीं जा सकी थीं. पता कर के आए मर्दों के चेहरों पर हताशा को पढ़ कर औरतें चीखचीख कर रोने लगीं. कुछ उस घड़ी को कोस रही थीं, जिस घड़ी नवीन ने घर से बाहर कदम निकाला था. एक बूढ़ी औरत मेरे कमरे में आई और मुझे घसीटती हुई बाहर ले आई. कुछ औरतों ने आंखों ही आंखों में सरगोशियां कीं और मेरा चूडि़यों से भरा हाथ फर्श पर दे मारा. चूडि़यां टूटने के साथ खून की कुछ बूंदें मेरी कलाई पर छलक आईं पर इस की परवाह किस को थी. भरी जवानी में मेरे विधवा हो जाने से जैसे सब दुखी थीं और मुझे गले लगा कर रोना चाहती थीं. मैं पत्थर की शिला सी हो गई थी. मेरी आंखों में बूंद भर पानी भी नहीं था.

अपने विफल हो रहे प्रयासों से औरतों में खीज सी पैदा हो गई. कुछ मुझे घूरते हुए एकदूसरे से कुछ कह रही थीं, तो महल्ले की थुलथुली बहुएं, जो मेरी स्मार्टनैस से कुंठित थीं अपनी भड़ास निकालने की कोशिश कर रही थीं. मेरा लंबा कद, स्याह घने बाल, हिरनी जैसी आंखें और शादी में लाया गया ढेर सारा दहेज, जिस के कारण महल्ले की सासें अपनी बहुओं को ताने दिया करती थीं, आज बेमानी बन कर रह गया, तो मेरी सुंदर काया का मूल्य पल भर में कौडि़यों का हो गया. मेरी उड़ती नजर आंगन के कोने में खड़ी मोटरसाइकिल पर गई.इसी मोटरसाइकिल के लिए मझे 4 दिन तक भूखा रखा गया था और 6 महीने तक मैं मायके में पड़ी रही थी. आखिर पापा ने अपने फंड में से पैसा निकाल कर नवीन को मोटरसाइकिल ले दी थी. अब कौन चलाएगा इसे? नवीन की मौत से हट कर मेरा मन हर राउंड में लाई गई चीजों की फेहरिस्त बना रहा था.

कुल 2 साल ही तो हुए थे हमारी शादी को और हमारी बेटी मिनी साल भर की है. खुद को कर्ज में डुबो कर बेटी का घर भर दिया था पापा ने. क्या मैं उस आदमी के लिए रोऊं जो हर वक्त कुछ न कुछ मांगता ही रहता था और हर चौथे दिन रुई की तरह धुन देता था. तभी औरतों की खींचातानी से मिनी रोई तो मेरी तंद्रा टूटी. मैं उसे औरतों की भीड़ से निकाल कर कमरे में ले आई. औरतों का आनाजाना कई दिनों तक लगा रहा. कुछ मुझ कुलच्छनी बहू को घूरघूर कर एकदूसरे से बतियाती हुई आंसू बहातीं तो कुछ मेरे न रोनेधोने के कारण किसी रहस्य को सूंघने की कोशिश करतीं. पर मुझे उन की परवाह नहीं थी.

मां जो शेरनी की तरह दहाड़ती रहती थीं अब भीगी बिल्ली सी आंसू बहाती रहतीं. मेरी ननद गीता और उस के पति रजनीश भी आगए थे. गीता मेरे कमरे के फेरे मारती रहती और एकएक कीमती चीज के दाम पूछती रहती. रजनीश की नजर मोटरसाइकिल पर थी. गीता को वापस जाना था. रजनीश ने खिसियानी सी हंसी हंसते हुए कहा, ‘‘भाभी, अब इस मोटरसाइकिल का यहां क्या होगा? कहो तो मैं ले जाऊं. डीटीसी बसों में आतेजाते मैं तो तंग आ गया हूं. रोज देर हो जाती है तो बौस की डांट खानी पड़ती है.’’ फिर मोटरसाइकिल पर बैठ कर ट्रायल लेने लगा.

गीता भी पीछे नहीं रही, ‘‘भाभी, इस कौस्मैटिक बौक्स का अब आप क्या करेंगी? आप के लिए तो बेकार है. मैं ले जाती हूं इसे. कितने सारे तो परफ्यूम्स हैं. इतनी अच्छी चीजें इंडिया में कहां बनती हैं. आप के पापा का भी जवाब नहीं. हर चीज कीमती दी है आप को.’’

क्या संबंध स्वार्थ की कागजी नींव पर टिके होते हैं? यह सोचते हुए संबंधों पर से मेरी आस्था हटने लगी. यह वही गीता है, जो बारबार गश खा कर गिर रही थी और भाई की मौत को अभी 4 दिन भी नहीं गुजरे इस ने अपना रंग दिखाना शुरू कर दिया. गीता और रजनीश की नजर तो मेरे लैपटौप और महंगे मोबाइलों पर भी थी, क्योंकि बाबूजी ने कह दिया था कि मोटरसाइकिल वगैरह अभी यहीं रहने दो. बाद में देखेंगे. गीता ने एक बार झिझकते हुए कहा, ‘‘भाभी, आप के पास तो 2 मोबाइल हैं. वाऊ, कितने खूबसूरत हैं.’’

मैं ने जब कोई जवाब नहीं दिया तो वह बोली, ‘‘मैं तो ऐसे ही कह रही थी.’’

गीता और रजनीश के जाने के बाद घर में गहरा सन्नाटा छा गया. मां और बाबूजी दोनों ही शंकित थे कि कहीं मैं भी उन्हें छोड़ कर न चली जाऊं. पर अब कहां जाना था मुझे. हालांकि पापा ने मुझे साथ चलने को कहा था पर मैं ने मना कर दिया. बाबूजी का दुलार तो मुझे हमेशा ही मिलता रहा था पर मां और नवीन के सामने उन की चलती ही नहीं थी. पर अब कितना कुछ बदल गया था. थोड़ी भागदौड़ के बाद मुझे नवीन की जगह नौकरी भी मिल गई. रसोईघर जहां मैं दिन भर खटती रहती थी, को मां ने संभाल लिया था. नौकरी पर आतेजाते मुझे लगता था कि कई आंखें मुझे घूर रही हैं. दरअसल, वे औरतें, जिन्हें मुझे ले कर निंदासुख मिलता था अब अजीब नजरों से मुझे देखती थीं. एक अभी हुई विधवा रोज नईनई पोशाकें पहन कर दफ्तर जाए यह बात उन के गले से नहीं उतरती थी. मां का भी अब महल्ले की चौपाल पर बैठना लगभग बंद हो गया था, तो पड़ोसिनों का आनाजाना भी कम हो गया था.

मेरी नौकरी ने जैसे मुझे नया जीवन दे दिया था. ऐसा लगता था जैसे मरुस्थल में बरसाती बादल उमड़नेघुमड़ने लगे हों. इस से बेचैनी और भी बढ़ जाती, तो मैं सोचती कि मैं विधवा हो गई तो इस में मेरा क्या कुसूर? दहेज में मिली कई कीमती साडि़यों की तह अभी तक नहीं खुली थीं. मैं जब उन में से कोई साड़ी निकाल कर पहनती तो मां प्रश्नवाचक नजरों से चुपचाप देखती रहतीं और मैं जानबूझ कर अनजान बनी रहती. कालोनी की जवान लड़कियों को मेरा कलर कौंबिनेशन बहुत पसंद आता. वे प्रशंसनीय नजरों से मुझे देखतीं पर मैं इस सब से तटस्थ रहती.

दफ्तर में मुझे सब से ज्यादा आकर्षित करता था शेखर. वह मेरे काम में मेरी मदद करता. फिर कभीकभी बाहर किसी रेस्तरां में कौफी पीने भी हम चले जाते. गपशप के दौरान कब वह मेरे करीब आता चला गया मुझे पता ही नहीं चला. धीरेधीरे हम दोनों एकदूसरे के इतने करीब आ गए कि साथ जीनेमरने की कसमें खाने लगे. एक दिन इतवार को दोपहर के समय जब मैं मिनी को गोद में लिए बाहर निकली तो मां ने प्रश्नवाचक नजरों से मुझे देखा. मुझे लगा जैसे मैं कोई अपराध करने जा रही हूं. पर अब मैं ने नजरों की भाषा को पढ़ना छोड़ दिया था. मन में एक अजीब सी प्यास थी और मैं मृगतृष्णा के पीछे दौड़ रही थी.

देर शाम को जब घर लौटी तो मां की नजर में कई सवाल थे. वे मिनी को उठा कर बाहर ले गईं और लौटीं तो पूछा, ‘‘यह शेखर अंकल कौन है?’’ मैं सन्न रह गई. मां मुझ से ऐसा सीधा सवाल करेंगी यह तो मैं ने सोचा ही नहीं था. मगर जल्दी ही मैं ने खुद को संभाला ओर बोली, ‘‘शेखर मेरे दफ्तर में काम करता है. मौल में मिल गया था.’’ मां ने हुंकार भरा और अपने कमरे में चली गईं. देर रात तक मां और बाबूजी की आवाजें कटकट कर मेरे कानों में आती रहीं और मैं दमसाधे सुनती रही. साथ में यह भी सोचती रही कि आखिर क्या चाहते हैं ये लोग? क्या मैं सारी उम्र यों ही गुजार दूं?

मुझे अकसर औफिस से आतेआते देर हो जाती. तब बाबूजी मुझे बस स्टौप पर खड़े मिलते. मुझे देखते ही कहते, ‘‘मैं यों ही टहलता हुआ इधर निकल आया था. सोचा, तुम आ रही होगी.’’ फिर सिर झुकाए साथसाथ चलने लगते. मुझे ऐसा लगता जैसे मैं कांच के मकान में रह रही हूं, जरा सी ठोकर लगते ही टूट जाएगा. मैं अपनी जिंदगी में आगे बढ़ना चाहती थी पर बाबूजी और मां का बुढ़ापा कैसे कटेगा यह सवाल मुझे सालता था. मैं शेयर के साथ अपनी तनहाई शेखर करना चाहती पर मां और बाबूजी का बुढ़ापा बीच में आ जाता था उन की आंखों का डर मुझे खुल कर जीने नहीं दे रहा था. शेखर कुछ दिनों की छुट्टी ले कर घर गया था. मैं सोच रही थी कि जब वह वापस आएगा तो उस से खुल कर बात करूंगी. उस ने वादा किया था कि वह अपने मांबाप को मना लेगा इसलिए मैं आश्वस्त थी.

लेकिन एक दिन औफिस में मैं ने अपनी मेज पर एक लंबा लिफाफा रखा देखा. लिफाफा खुला ही था. अंदर से कागज निकाला तो देखा तो लगा छनाक से कुछ टूट गया हो. एक वैडिंग कार्ड था- शेखर विद सरोज. साथ में एक चिट्ठी भी थी जिस में लिखा था- मीरा, एक विधवा के साथ विवाह करने की बात मेरे मम्मीडैडी के गले नहीं उतरी. विधवा, उस पर एक बच्ची की मां. सच मानो मीरा मैं ने मम्मीडैडी को समझाने की बहुत कोशिश की पर अपने अविवाहित बेटे के लिए उन के दिल में बड़ेबड़े अरमान हैं. कैसे तोड़ दूं उन्हें… मुझे क्षमा कर देना, मीरा. अगले दिन मैं ने निगाह घुमा कर देखा, शेखर मोटीमोटी फाइलों में गुम होने का असफल प्रयास कर रहा था. मैं ने खत सहित वैडिंग कार्ड को टुकड़ेटुकड़े कर डस्टबिन में डाला तो उस ने घूर कर मुझे देखा. मैं रोई नहीं. रोना मेरी आदत नहीं है. मैं तेजी से टाइप करती रही और मैं ने चपरासी को पंखा तेज करने को कहा, क्योंकि मन की तपिश और बढ़ गई थी.

शाम को जब औफिस से निकली तो खुली हवा के झोंके मन को सहलाने लगे मेरे कदम अपनेआप ही न्यू औप्टिकल स्टोर की ओर बढ़ गए. बाबूजी के लिए नया चश्मा बनवा कर जब निकली तो याद आया कि मां कई दिन से एक साड़ी लाने को कह रही थीं. एक ही क्षण में दुनिया कितनी बदल गई थी. बाबूजी डेढ़ महीने से नया चश्मा बनवाने को कह रहे थे पर उस ओर मेरा ध्यान ही नहीं जा रहा था. उन्हें पढ़नेलिखने में कितनी परेशानी हो रही थी, आज याद आया तो मन में अपराधबोध सा जागने लगा था. लगता है बाबूजी को शेखर के विवाह की बात पता चल गई थी. वे बस स्टौप पर भी नहीं आए. अगली सुबह देखा तो वे मोटरसाइकिल साफ कर रहे थे. मुझे लगा इसे बेचने की तैयारी है. मन में कसैलापन भर गया. पर तभी बोले, ‘‘बेटा, तुम्हें तो मोटरसाइकिल चलानी आती है न. चलो जरा डाक्टर की दुकान तक ले चलो. बसों में जाने में दिक्कत होती है.’’ मैं मुंह खोले उन्हें देखती रह गई और फिर उन के सीने से जा लगी, ‘‘बाबूजी…’’ मुझ से बोला नहीं जा रहा था.

तभी मां की आवाज आई, ‘‘और हां, लौटते हुए बेकरी से एक केक लेती आना. आज तेरा जन्मदिन है न…’’

Best Hindi Story : कांटा – अपने वैवाहिक जीवन को बचाती पत्नी की कहानी

Best Hindi Story : शिमला में 10 दिन हनीमून मना कर रवि और शिखा शनिवार को दिल्ली लौटे. रविवार की सुबह ही शिखा ने घर के गेट के पास रवि को भावना से बातें करते हुए अपने बैडरूम की खिड़की से देखा.

भावना की आंखों से आंसू बह रहे थे. रवि परेशान और उत्तेजित हो कर उसे कुछ समझ रहा था. शिखा उन की बातें तो नहीं सुन पाई लेकिन पूरा दृश्य उसे अटपटा और बेचैन करने वाला लगा.

करीब 10 मिनट बाद भावना को विदा कर के रवि अपने कमरे में लौट आया. वह तनावग्रस्त था, यह बात शिखा की नजरों से छिप नहीं सकी.

अपने मन की बेचैनी के हाथों मजबूर हो कर शिखा ने उस से पूछ ही लिया, ‘‘बाहर भावना से क्या बातें कर रहे थे.’’

‘‘उसे कुछ समझ रहा था. तुम ने खिड़की से देखा हमें,’’ रवि ने खिड़की में से बाहर झांकते हुए बेचैन स्वर में पूछा.

‘‘हां, वह रो क्यों रही थी?’’ शिखा उस के सामने आ खड़ी हुई.

‘‘अरे, कई समस्याएं हैं उस की जिंदगी में. पिता को गुजरे 5 साल हो गए. मां बीमार रहती हैं. छोटी बहन और छोटे भाई को अपने पैरों पर खड़ा करने की जिम्मेदारी भी उसी के कंधों पर है.’’

‘‘हमारी ही कालोनी में रहते हैं

ये लोग?’’

‘‘हां, हमारी लाइन में कोने का मकान उन्हीं का है. मम्मी की पक्की सहेली हैं भावना की मां.’’

‘‘आप क्या समझ रहे थे उसे?’’

‘‘हौसला बंधा रहा था उस का. शिखा, तुम भी ध्यान रखना कि कभी उस का दिल न दुखे. वह दिल की बहुत अच्छी है,’’ रवि ने शिखा के गाल पर चुंबन अंकित किया और फिर नहाने चला गया.

भावना से संबंधित सवालों का जवाब देते हुए रवि की परेशान मनोदशा को शिखा ने भांप लिया. इसी कारण भावना और रवि के संबंधों के बारे में और ज्यादा जानने के लिए उस की उत्सुकता बढ़ गई.

उस की 20 वर्षीय ननद रीता ने उसे जानकारी दी, ‘‘भाभी, भावना रवि भैया की हमउम्र है और दोनों स्कूल में साथसाथ पढ़े हैं. भैया की अच्छी दोस्त है वह.’’

‘‘शादी नहीं हुई उस की?’’ शिखा

ने पूछा.

‘‘शादी 4 साल पहले हुईर् थी, पिछले साल तलाक हो गया है.’’

‘‘तलाक क्यों हुआ?’’

‘‘पति के साथ तालमेल नहीं बैठा. वह मारपीट भी करता था.’’

‘‘तुम्हारे भैया के साथ कोई चक्कर तो नहीं है भावना का?’’ शिखा के होंठों पर बेचैन मुसकराहट उभरी.

कुछ पल सोच में डूबी रहने के बाद रीता ने गंभीर हो कर जवाब दिया, ‘‘भाभी, कोई गलत हरकत करते कभी नहीं पकड़े गए हैं दोनों. भैया उस की सुनते बहुत हैं. उस की चिंता भी बहुत करते हैं. हम सब तो आदी हो गए हैं भावना के घर के लगभग हर मामले में भैया की दखलंदाजी के. पर आप उसे सहन नहीं कर सकोगी, इस का मुझे एहसास है.’’

‘‘मैं वैसे तो बहुत शांत और सहनशील हूं पर अपना अहित होता देख चुप भी नहीं बैठती. अगर भावना के कारण मेरी विवाहित जिंदगी में कोई समस्या पैदा हुई तो उस कांटे को निकाल फेंकूंगी मैं.’’

शिखा का आत्मविश्वास रीता को मुसकराने पर मजबूर कर गया.

रवि भावना को जरूरत से ज्यादा महत्त्व देता है, यह बात कुछ ही दिनों में शिखा ने समझ ली. अपने यहां या फिर उस के घर जा कर वह लगभग रोज ही उस से मिलता. साथसाथ हंसतेबोलते दोनों खूब प्रसन्न नजर आते.

शिखा मन ही मन उस से जलनेकिलसने लगी. वह भावना के खिलाफ कुछ कह नहीं सकती थी क्योंकि उन के व्यवहार में शिकायत का कोई कारण उसे नहीं मिला.

अपने पति को वह भावना के साथ बांटने को तैयार नहीं थी. उस की रवि से निकटता शिखा को चिंतित और तनावग्रस्त रखती. वह इस चिंता और तनाव से मुक्ति चाहती थी, इसलिए रवि को भावना के प्रभाव से मुक्त करना उसे जरूरी लगने लगा.

एक दिन रवि के औफिस जाने के बाद शिखा ने अपना दिल ननद रीता और सास गायत्री के सामने खोल कर रख दिया. उस की आंखों से बहते आंसुओं को देख कर वे दोनों भी दुखी हो उठीं.

शिखा के सिर पर स्नेहभरा हाथ रख कर गायत्री ने उसे समझाया, ‘‘बहू, तेरे आने के बाद भी भावना का रवि से इस तरह मिलनाजुलना मेरी आंखों में भी चुभने लगा है पर अगर मैं भावना को डांटूं तो यह बात रवि को पता लगेगी और वह बहुत गुस्सा होगा. इसलिए इस समस्या को हल करने के लिए हमें समझदारी से काम लेना होगा.’’

‘‘मैं ने इस बारे में कुछ सोचा है, मम्मी. आप दोनों मेरी मदद करने का वादा करें तो वह समस्या जल्दी हल हो जाएगी,’’ अपने आंसू पोंछते हुए शिखा बोली.

‘‘भावना से कहीं ज्यादा तुम हमारे दिलों के करीब हो, बहू. हर कदम पर हम तुम्हारे साथ हैं,’’ गायत्री ने आत्मीयता से कहा.

सास की तरफ से ऐसा आश्वासन पा कर शिखा मुसकरा उठी.

फिर काफी देर तक शिखा ने उन्हें अपनी योजना समझाई. उसी दिन से योजना पर अमल करने का फैसला कर के ही तीनों वहां से उठीं.

उस शाम रवि के औफिस से लौटने के कुछ देर पहले भावना उन के घर आई. वे तीनों ही उस से बड़े प्यार व अपनेपन से मिलीं लेकिन उन के व्यवहार में एक अंतर जरूर साफ ?ालक रहा था. वे भावना की बातों के जवाब में ज्यादा कुछ कह नहीं रही थीं. एकदो शब्दों में उस की बात का जवाब दे कर मुसकराने लगतीं. अपनी तरफ से उन का वार्त्तालाप में हिस्सा लेना बंद था.

कभीकभी भावना बोल रही होती और कोई सिर झुका कर अपनी उंगलियों से खेलने लगती तो कोई छोटामोटा काम करने में मगन हो जाती. बीचबीच में मुसकरा कर उन का उस की तरफ देखना जरूर जारी रहता.

शिखा चाय बनाने उठी तो रीता ने कहा, ‘‘भाभी, मुझे एसिडिटी हो रही है. मैं चाय नहीं पिऊंगी.’’

गायत्री ने थोड़ी देर पहले ही चाय पीने का कारण बता कर अपने लिए चाय बनाने को मना कर दिया. शिखा कुछ देर बाद लौटी तो ट्रे में एक ही कप रखा था.

‘‘तुम ने अपने लिए चाय क्यों नहीं बनाई?’’ भावना ने शिकायत की.

‘‘दीदी, दिल नहीं कर रहा है. आप लीजिए न,’’ शिखा ने बड़े अपनेपन से कप उस की तरफ बढ़ाया.

‘‘इस तरह अकेले चाय पीना मुझे अच्छा नहीं लगता,’’ भावना का मूड उखड़ गया.

‘‘आज अकेले पी लो. अगली बार हम सब साथ देंगी,’’ गायत्री ने उसे आश्वस्त किया.

भावना रवि के आने तक उन तीनों से बोर होने लगी थी. फिर जब रवि आ गया तो उस के साथसाथ वे तीनों भी चहकने लगीं. उस समय के उन के व्यवहार को देख कर कोई नहीं कह सकता था कि रवि की अनुपस्थिति में उन के मुंह से पूरा वाक्य भी कठिनाई से निकल रहा था.

जब भावना अपने घर जाने लगी तब पहली बार शिखा ने रवि की उपस्थिति में उस के पैर छुए.

‘‘अरे, यह क्या कर रही हो, शिखा. इस की कोई जरूरत नहीं है,’’ वह हैरान हो उठी.

‘‘भावना दीदी, आप मुझ से बड़ी हैं. मेरी शुभचिंतक हैं. मुझे आप का आशीर्वाद इसी तरह लेना चाहिए.’’

उस की बात सुन कर रवि और भावना दोनों ही प्रसन्न हो गए.

रवि की अनुपस्थिति में वे तीनों

भावना से बिलकुल कटीकटी सी

रहतीं पर उन के चेहरों पर नकली मुसकान अवश्य होती. रवि जब घर में होता तब हंसनेबोलने में उन की पूरी भागीदारी रहती.

आखिरकार वही हुआ जिस की इन्हें उम्मीद थी. रवि की अनुपस्थिति में भावना ने उन के यहां आना बंद कर दिया.

भावना एक स्कूल में अध्यापिका थी. उस के सुबह स्कूल जाने के बाद अकसर शिखा उस की मां शांता से मिलने जाने लगी. वह अधिकतर उन के साथ भावना के भविष्य को ले कर बातचीत करती.

‘‘भावना की शादी हो जाए तो मैं निश्चिंत हो जाऊं. मैं खुद तो भागदौड़ कर नहीं सकती, फिर एक तलाकशुदा लड़की के लिए अच्छा रिश्ता आसानी से मिलता भी नहीं,’’ एक दिन शिखा से अपनी परेशानी बयान करते हुए शांता का गला भर आया.

‘‘अपने सब रिश्तेदारों के पास मुझे से चिट्ठियां लिखवा कर भेजिए. कहीं से अच्छा रिश्ता आता तो रवि के साथ आप लड़का देखने चली जाना. इस शुभ काम में हम सब आप के साथ हैं, मौसीजी,’’ इस प्रकार का हौसला दिलाने वाली बातें कह कर शिखा ने शांता का दिल जीत लिया.

शिखा की सलाह पर शांता ने अपनी बेटी को चिट्ठियां भेजने वाली बात नहीं बताई. सप्ताहभर के अंदर शिखा ने बीसियों चिट्ठियां शांता की तरफ से लिख कर उन के रिश्तेदारों को भेज दीं.

इस बार रीता का जन्मदिन रविवार को पड़ा. नेहरू पार्क में जा कर पिकनिक मनाने का कार्यक्रम जब एक दिन पहले तय किया गया तब भावना भी उपस्थित थी.

लंच घर से तैयार कर के ले जाना था. पहले ऐसे मौकों पर भावना रसोई के कामों में बढ़चढ़ कर हिस्सा लेती आई थी लेकिन उस दिन उसे कुछ काम नहीं करने दिया गया.

‘‘भावना बेटी, तू आराम से ड्राइंगरूम में बैठ. बहू कर लेगी सारा काम,’’ गायत्री हाथ पकड़ कर उसे रसोई से बाहर ले जाने लगी.

‘‘दीदी, आप के हाथों के बने आलूगोभी के परांठे खूब खाए हैं हम ने. अब सिर्फ शिखा भाभी के हाथों के बने परांठों का स्वाद चखेंगे हम तो,’’ रीता की आवाज में जिद के भाव उभरे.

‘‘दीदी, एक तो जिस का जन्मदिन है, हमें उस की इच्छा माननी ही पड़ेगी. दूसरे, आप हमारी मेहमान हैं. आप को रसोई के कामों में लगाना गलत होगा,’’ शिखा ने बड़े आदर से अपनी बात कही.

‘‘यह तो तुम गलत कह रही हो, शिखा,’’ भावना नाराज सी नजर आई. फिर उस ने घूम कर गायत्री से बड़े अपनेपन से पूछा, ‘‘मौसीजी, मैं आप के घर में मेहमान हूं या यह घर मेरा भी है.’’

‘‘घर तो तेरा वह होगा बेटी जहां तेरी शादी होगी. हम तो चाहते हैं वह दिन जल्दी आए जब तेरी गृहस्थी फिर से बसे. मेरे और भावना के लिए चाय भिजवा दे, बहू,’’ शिखा को आदेश दे कर गायत्री भावना के साथ रसोई से बाहर निकल गई.

किसी के प्रभुत्व को कम करने का एक तरीका यह भी है कि उसे कोई जिम्मेदारी ही न सौंपी जाए. उस दिन भावना ने अपने को बड़ा अलगथलग सा महसूस किया. वह किसी पर नाराजगी भी नहीं जता सकी क्योंकि सतही तौर पर सब का व्यवहार उस के साथ बिलकुल ठीक था. लेकिन अपने को बेचैन और बुझबुझ सा महसूस करती रही वह. रवि से हंसनाबोलना भी उस का मूड सुधार नहीं सका.

नेहरू पार्क पहुंचने के बाद भी स्थिति नहीं बदली. भावना ने उन तीनों के साथ हंसनेबोलने की कोशिश की लेकिन बदले में उन की बेजान सी मुसकराहटों के अलावा उस के हिस्से में कुछ नहीं आया.

रीता ने शिखा के साथ कुछ देर बैडमिंटन खेला.

जब भावना ने रीता के साथ खेलने की इच्छा प्रकट की तो उस ने टका सा जवाब दिया, ‘‘मैं थक गई हूं, दीदी. आप भाभी के साथ खेलो.’’

‘‘मुझे तो बड़े जोर की भूख लगी है. अब खेलनाकूदना पेटपूजा के बाद होगा,’’ शिखा का यह जवाब सुन कर भावना का मुंह सूजना शुरू हो गया.

पास बैठे रवि ने अपनी पत्नी और बहन को गुस्से से घूरा. फिर भावना का हाथ पकड़ कर उसे उठाते हुए बोला, ‘‘ये दोनों बेकार खिलाड़ी हैं. तुम मेरे साथ खेलो.’’

वे दोनों बैडमिंटन खेलने लगे. शिखा चायनाश्ते की तैयारी में जुट गई. कुछ देर बाद गायत्री ने आवाज दे कर उन्हें बुलाया.

उन के बैठ जाने के बाद रीता ने अपने भैया को चाय का कप पकड़ाया और फिर खुद नाश्ते का आनंद लेने लगी.

‘‘मुझे भी चाय दो,’’ खुद को अपमानित सा महसूस करती भावना झल्ला उठी.

रीता ने थरमस और एक प्लास्टिक का कप उस के सामने बड़ी लापरवाही से रख दिया.

‘‘सब को चाय कप में डाल कर तुम ने ही दी है. मुझ से क्या दुश्मनी है तुम्हारी,’’ भावना का गुस्सा भड़क उठा.

‘‘दुश्मनी वाली क्या बात है इस में, मैं नहीं डाल रही हूं तो आप खुद डाल लो,’’ रीता ने अपनी आवाज की मिठास या मुसकान नहीं खोई.

‘‘रीता,’’ रवि ने अपनी बहन को गुस्से से घूरा, ‘‘तुम्हारी गलत हरकतें मैं बहुत देर से नोट कर रहा हूं. तुम भावना से ठीक ढंग से पेश क्यों नहीं आ रही हो?’’

‘‘मैं ने क्या गलत व्यवहार किया है आप के साथ, दीदी?’’ माथे पर बल डाल कर रीता ने भावना से पूछा तो रवि का गुस्सा और बढ़ गया.

‘‘मेरी जानकारी में है तुम सब की गलत हरकतें. तुम सब भावना के साथ बदतमीजी से पेश आ रही हो. छोटेबड़े का अंतर भूल कर उस का अनादर करती हो.’’

‘‘यह क्या कह रहे हैं, आप. क्या भावना दीदी ने आप से हमारी कुछ शिकायत की है?’’ रीता का हाथ अपने हाथों में ले कर शिखा ने रवि से परेशान लहजे में पूछा.

‘‘शिकायत नहीं की है उस ने पर तुम दोनों के व्यवहार में आए बदलाव को मेरी जानकारी में जरूर लाई है वह. अगर तुम दोनों आइंदा उस के साथ सही ढंग से पेश नहीं आईं तो मुझे से बुरा कोई न होगा,’’ रवि ने धमकी दी.

‘‘भैया, आप बिना बात के हमें डांट रहे हैं,’’ रीता रोंआसी हो उठी.

‘‘शटअप,’’ रवि की आवाज बहुत ऊंची हो गई.

रीता हाथों से मुंह छिपा कर रोने लगी. गायत्री उठ कर अपनी बेटी व बहू के पास आईं और उन दोनों के सिरों पर हाथ रख कर रवि को डांट पिलाई, ‘‘तू शायद भूल गया है कि आज तेरी छोटी बहन का जन्मदिन है. हम यहां पिकनिक मनाने आए हैं या रोनेधोने व लड़ाई झगड़ा करने?’’

भावना घबराए से अंदाज में बोली, ‘‘मौसीजी, गलती मेरी ही है. मुझे छोटी सी बात का बतंगड़ नहीं बनाना चाहिए था.’’

‘‘मुझे तुम से नहीं बल्कि अपने बेटे से शिकायत है, भावना. सुने यह किसी की भी पर काम तो इसे अपनी बुद्धि से ही लेना चाहिए.’’

भावना को लगा, गायत्री ने उसी पर ताना कसा था. उस का चेहरा एकदम से उतर गया.

तभी रीता ने रोना रोक कर रोंआसी आवाज में कहा, ‘‘मेरी तबीयत खराब लग रही है. मुझे घर लौटना है.’’

पहले भावना और फिर रवि ने उसे बहुत मनाया पर रीता ने घर लौटने की अपनी जिद नहीं छोड़ी. शिखा और गायत्री ने मौन रह कर एक तरह से रीता की जिद को समर्थन दिया.

हार कर रवि उन्हें वापस घर लाने को मजबूर हो गया. रास्तेभर सभी खामोश रहे. उस दिन भावना को साफतौर पर यह महसूस हो गया कि रीता, शिखा और गायत्री एक हो कर उस का विरोध कर रही हैं और उन के घर में उस का स्वागत होना बंद हो चुका है.

भावना ने रवि के घर आना बंद कर दिया.

रवि ने समझाया तो बोली, ‘‘बिना कारण तुम्हारे घरवालों ने मेरा अपमान करना शुरू कर दिया. तुम मुझ से मिलने मेरे घर आया करो. जब तक रीता और शिखा मुझ से माफी नहीं मांगतीं, मैं तुम्हारे यहां नहीं आऊंगी.’’

रवि ने यह बात रीता और शिखा को बताई तो उन्होंने माफी मांगने से साफ इनकार कर दिया.

गायत्री ने उन का पक्ष लेते हुए रवि को डांटा, ‘‘आज तक रीता और बहू ने एक भी अपशब्द भावना से नहीं कहा है. उसे अपमानित करने वाली एक भी घटना अगर भावना बता दे तो उस के पैरों पर नाक रगड़ लेंगी ये दोनों. अपने अहं की संतुष्टि के लिए वह अगर इन से माफी मंगवाना चाहती है तो यह नहीं होगा.’’

अपने को अपमानित करने वाली कोई घटना भावना बता नहीं सकी. रवि अपनी पत्नी और बहन पर माफी मांगने के लिए कोई दबाव तो नहीं डाल सका पर उन से नाराज हो कर चुपचुप सा जरूर रहने लगा.

कुछ दिनों बाद शिखा ने गायत्री से भावना की मां से मिलने जाने की इजाजत मांगी तो उन्होंने चौंक कर पूछा, ‘‘उस का आनाजाना हमारे यहां बंद हो चुका है. फिर किसलिए भावना के घरवालों से संबंध रखना चाहती हो?’’

‘‘मम्मी, वह कांटा तो फिलहाल निकाल फेंका है हम ने पर उस का जख्म अभी भी टीस रहा है. मैं नहीं चाहती कि घाव और फैले और हम सब को दुखी करता रहे. इस समस्या को स्थायी रूप से हल करने के लिए मैं मौसी से मिलने जाती रहूंगी.’’

भावना की मां शांता उसे घर आया देख खुश हो कर बोलीं, ‘‘कई दिनों से तेरा इंतजार कर रही थी मैं. तू ने जो चिट्ठियां लिखी थीं उन के जवाब में भावना के लिए 2 रिश्ते आए हैं.’’

यह सुन कर शिखा को खुशी हुई क्योंकि कुछ ऐसा ही समाचार सुनने की कामना ले कर वह उन से मिलने आई थी.

काफी देर तक वे दोनों उन लड़कों के बारे में चर्चा करती रहीं जिन के रिश्ते आए थे.

‘‘आप ने भावना दीदी को इन लड़कों के बारे में बताया?’’ शिखा ने बड़े गौर से शांता के चेहरे की तरफ देखते हुए पूछा.

शांता उदास हो कर बोलीं, ‘‘बताया तो था पर उस ने जरा भी दिलचस्पी नहीं दिखाई. आजकल न जाने क्यों बहुत चिड़चिड़ी और उखड़ीउखड़ी सी नजर आती है भावना.’’

‘‘आप फिक्र न करें. मैं समझऊंगी उसे,’’ शिखा ने दिलासा दिया.

‘‘अगर तुम उसे देखनेदिखाने के लिए राजी कर सको तो तुम्हारा यह एहसान मैं कभी…’’

शांता के मुंह पर हाथ रख कर शिखा ने उन्हें बात पूरी करने से रोका और कोमल लहजे में बोली, ‘‘मौसीजी, भावना दीदी की शादी होने पर सब से ज्यादा खुशी मुझे होगी. आप फिक्र न करें. सब ठीक हो जाएगा.’’

भावना के स्कूल से लौटने तक शिखा वहीं रुकी रही. उसे देख कर भावना के माथे पर बल पड़ गए और वह नाराज नजर आने लगी. उस की नमस्ते का जवाब बेमन से दे कर भावना अपने कमरे में

चली गई.

‘‘मौसीजी, आप मत आना हमारे पास. मैं भावना दीदी को शादी करने के लिए राजी करने की कोशिश करती हूं,’’ शांता को ऐसा समझ कर शिखा भावना के कमरे में चली गई.

‘‘मुझे आप से कुछ जरूरी बातें करनी हैं,’’ भावना के पास बैठ कर शिखा बड़े अपनेपन से मुसकराई.

‘‘कहो, क्या कहना है.’’ भावना ने रुखाई से पूछा.

‘‘पहले तो अगर मेरे व्यवहार से कभी आप का दिल दुखा हो तो मैं आप से माफी मांगती हूं.’’

‘‘यह तरीका बढि़या है. पहले घर आए इंसान की बेइज्जती करो और बाद में आराम से माफी मांग लो,’’ भावना ने ताना कसा.

‘‘भावना दीदी, आप इस तरह नाराज न हों. मैं सचमुच आप का बहुत आदर करती हूं और आप की शुभचिंतक भी हूं. आज आप को एक गोपनीय बात बताने आई हूं मैं.’’

‘‘कैसी गोपनीय बात,’’ भावना की दिलचस्पी जागी.

‘‘मेरी बड़ी बहन सपना की शादी

5 साल पहले हुई थी. तब मेरी उम्र ज्यादा नहीं थी और समझदार भी कम थी मैं. मेरे जीजाजी बड़े हंसमुख और स्मार्ट हैं. उन से प्रेम करने लगी,’’ बोलते हुए शिखा का चेहरा धीरेधीरे लाल हो गया.

‘‘फिर क्या हुआ, तुम्हारी दीदी और तुम्हारे जीजाजी की क्या प्रतिक्रिया रही?’’

‘‘पुरुषों की ऐसे प्रेम में दिलचस्पी रहती ही है, भावना दीदी. जीजाजी को मुझ से प्रेम संबंध बनाए रखने में कोई एतराज न था. एक दिन सपना दीदी ने मुझे जीजाजी की बांहों में देख ही लिया.’’

‘‘खूब गुस्सा हुई होंगी वे तुम पर?’’

‘‘गुस्सा बिलकुल भी नहीं हुईं. न मुझ पर न जीजाजी पर. उन्होंने अकेले में ले जा कर मुझ से एक ही बात कही थी.’’

‘‘वह क्या?’’

‘‘उन्होंने मुझ से प्यारभरे स्वर में कहा, ‘देख शिखा, एक दिन तेरी जिंदगी में भी कोई पुरुष आएगा. वह सिर्फ तेरा होगा, सिर्फ तुझे प्रेम करेगा, सिर्फ तुझ से प्रेम पाएगा. हमें ऐसे पुरुष से दिल का संबंध नहीं बनाना चाहिए जो पिया किसी और पति किसी का हो. ऐसे व्यक्ति से प्रेम करना कभी सुखशांति और संतोष नहीं दे सकता.’

‘‘मैं आप से उम्र में छोटी हूं, भावना दीदी. सपना दीदी की बात उस कम उम्र में भी मेरी समझ में आ गई थी. अगर आप को भी लगे कि हर औरत को ऐसे जीवनसाथी का सान्निध्य पाने की इच्छा रखनी चाहिए जो सिर्फ उस का हो, तब आप अपनी मम्मी की सलाह मान कर शादी के लिए ‘हां’ कह दो. जो रिश्ते आ रहे हैं उन में दिलचस्पी ले कर जल्दी ही अपने जीवनसाथी का चुनाव कर लो. ऐसा कर के आप सुखी भी रहेंगी और समाज में आप का मानसम्मान भी बढ़ेगा,’’ अपने मन की बात शांत व कोमल स्वर में कह कर शिखा खामोश हो गई.

आरंभ में भावना को शिखा की बातों पर गुस्सा आया था. फिर उस ने ध्यान से सुनना शुरू किया. बात खत्म होने के बाद वह देर तक सोचविचार में डूबी बैठी रही.

‘‘तुम ठीक ही कह रही हो, शिखा. कुछ बातों में साझपन चल नहीं सकता,’’ भावना ने गहरी सांस छोड़ी, ‘‘मैं तुम्हारा इशारा समझ गई हूं. अपनी जिंदगी को सही राह पर चलाने की दिल से कोशिश करूंगी मैं.’’

‘‘थैंक्यू, भावना दीदी. अब मैं चलती हूं. अपनी शादी का शुभ समाचार देने आप जल्दी मेरे घर आओ, ऐसी कामना मैं करती रहूंगी.’’

उस से विदा लेते हुए शिखा का मन कह रहा था कि उस की विवाहित जिंदगी का कांटा अब सदा के लिए जल्दी ही दूर हो जाएगा.

World Sleep Day : संभल कर ली जाएं तो इतनी भी नुकसानदेह नहीं नींद की गोलियां

World Sleep Day : आजकल हर कोई नींद न आने की समस्या से ग्रस्त और त्रस्त है जिस की अपनी अलगअलग वजहें भी हैं लेकिन नींद की गोली से सभी बचने की हर मुमकिन कोशिश करते हैं. इस के पीछे पूर्वाग्रह ही हैं नहीं तो नींद की गोली उतनी बुरी भी नहीं.

किस बात को प्राथमिकता में रखेंगे आप, खराब क्वालिटी वाली आधीअधूरी नींद से पैदा होने वाली जिंदगीभर साथ निभाने वाले चिड़चिड़ेपन, डिप्रैशन, ब्लडप्रैशर, डाइबिटीज, दिल की बीमारियों, इनडाइजेशन, एंग्जायटी वगैरह जैसी वक्त के साथ लाइलाज हो जाने वाली बीमारियों को या फिर नींद की एक छोटी सी गोली खा कर सुकून की नींद लेना.

निश्चित रूप से अगर स्लीपिंग पिल्स यानी नींद की गोलियों के प्रति आप के दिलोदिमाग में आयुर्वेदनुमा कोई पूर्वाग्रह नहीं है तो आप दूसरा विकल्प चुनना पसंद करेंगे. लेकिन इस में एहतियात और डाक्टरी मशवरे की उतनी ही जरूरत है जितनी कि ओटीसी पर बिकने वाली किसी भी मैडिसिन के लिए होनी चाहिए.

न जाने क्यों हमारे समाज में नींद के लिए गोलियों का सेवन किसी अपशकुन सा तय कर दिया गया है. जबकि इस के पीछे कोई वजनदार तर्क नहीं है और कोई तर्क है भी तो बस इतना है कि इन से नुकसान होते हैं, इन के साइडइफैक्ट होते हैं. ये बुरी होती हैं और इन की लत लग जाती है यानी एडिक्शन हो जाता है जो नशे सरीखा होता है. बिलाशक ऐसा है पर एक तात्कालिक आशंका के तौर पर ज्यादा है वरना हमारे इर्दगिर्द दर्जनों ऐसे लोग मिल जाएंगे जो सालों से नींद की गोलियां ले रहे हैं और दूसरों से कहीं ज्यादा फिट हैं.

रही बात लत या एडिक्शन की, तो हालत तो यह है कि 80 से 90 फीसदी लोग किसी न किसी दवा के एडिक्ट हैं. पेंटाप्रजोल से ले कर टेलमिस्टाइन मेटमार्फिन, रोसवासटिन, इकोस्प्रिन में से सभी या कोई एक या ऐसी ही कोई दूसरी दवा हो सकती है जिसे लोग बिना नागा ले रहे हैं जो एसिडिटी, शुगर, हार्ट, लिवर या किडनी से जुड़ी बीमारियों के लिए हो सकती है. साइडइफैक्ट तो इन दवाओं के भी होते हैं पर बदनामी नींद की गोली की झोली में डाल दी गई है.

तो फिर कठघरे में स्लीपिंग पिल्स ही क्यों जो 6-8 घंटे की क्वालिटी वाली नींद की गारंटी है. वही नींद जिस के लिए लगभग 70 फीसदी लोग तरसते हैं और इस के लिए कोई भी कीमत अदा करने को तैयार हैं. रातभर करवटें बदलते रहने वाले नींद का इंतजार कितनी शिद्दत से करते हैं.

इस पर इफरात से हिंदी फिल्मी गाने रचे गए हैं और कवियों व शायरों ने भी नींद को जम कर उधेड़ा है. हालांकि, उन के कुछ कलाम पढ़ कर ही समझ आ जाता है कि वे इश्क और रोमांस के दायरे से बाहर नहीं निकलते मसलन फिराक गोरखपुरी फरमाते हैं-
‘रात भी नींद भी कहानी भी, हाय क्या चीज है जवानी भी…’
और बकौल इकबाल अख्तर-
‘आज फिर नींद को आखों से बिछड़ते देखा, आज फिर याद कोई चोट पुरानी आई…’

लेकिन आजकल नींद न आने की वजहें नईपुरानी चोटें कम, जिंदगी की आपाधापी ज्यादा है जिसे लाइफस्टाइल कहा जाता है. दौर प्रतिस्पर्धा का है जिस में सभी ज्यादा से ज्यादा पैसा कमाने और सुखसुविधाएं हासिल करने के लिए नींद गंवाने की शर्त पर अंधाधुंध भाग रहे हैं. उन्हें खानेपीने तक का होश नहीं तो नींद की बात कौन करे कि यह कमबख्त आखिर आती क्यों नहीं. जब लगातार और नियमित नहीं आती नींद तो वह कैसीकैसी दुश्वारियां और बीमारियां दे जाती है. उन में से कुछ जो कौमन हैं, को ऊपर बताया गया है.

आखिरकार इन बीमारियों के इलाज में भी नींद की गोलियां शुमार हो जाती हैं तो लोग सिर पकड़ कर यह सोचने को मजबूर हो जाते हैं कि इस से तो बेहतर था कि पहले ही लेना शुरू कर देते तो शायद यह नौबत न आती. आजकल बीमारियां भी औफर के साथ आती हैं- एक के साथ एकाधदो फ्री. शुरुआत एसिडिटी से हो या ब्लडप्रैशर से, उस का आखिरी चरण नींद की गोलियां ही हैं.

ऐसा नहीं है कि बिना नींद की गोलियां लिए नींद न लाई जा सकती हो लेकिन तमाम उपाय नए साल के पहले दिन की भीष्म प्रतिज्ञाओं, मसलन आज से शराब, सिगरेट, तंबाकू आदि बंद करने की कसम की तरह 8-10 दिन में दम तोड़ देते हैं.

नींद बिना गोली के लिए आ जाए, इस के लिए लोग क्या कुछ नहीं करते. कसरत करते हैं, योग करते हैं, शाम को गुनगुने पानी से नहाते हैं, डिनर में खिचड़ी-दलिया जैसा हलका खाना खाते हैं, बिस्तर पर जाते ही असफल ध्यान लगाते हैं जिस की जगह चिंता और तनाव की शक्ल में 2-4 मिनट बाद ही होमलोन की इंस्टालमैंट ले लेती है तो ये सारे टोटके बेकार हो जाते हैं.

तीन दिन जिम जाने के बाद शरीर दर्द करने लगता है, उतारू हो कर पिज्जा, सैंडविच की जिद करने लगता है. सुबह बौस की जूम मीटिंग है, यह याद आते ही किताब या मैगजीन की जगह लैपटौप की स्क्रीन ले लेती है. ऐसे में नींद आए तो कैसे आए. वह आती है तो सिर्फ नींद की गोली से जो आधा घंटे बाद रंग दिखाने लगती है.

इसलिए नींद की गोली बुरा विकल्प नहीं. पिछले साल इसी मार्च के महीने में वर्ल्ड स्लीप डे (जो इस साल 14 मार्च को मनाया जाएगा) पर लोकल सर्किल्स नाम के प्लेटफौर्म ने अपने सर्वे के आंकड़े पेश करते बताया था कि 61 फीसदी लोग 6 घंटे से कम की नींद ले पा रहे हैं. पिछले 2 सालों से भारतीयों में नींद न आने की समस्या बढ़ रही है.

इसे चेतावनी के तौर पर व्यक्त किया गया था. मारेंगो एशिया हौस्पिटल, फरीदाबाद के कार्डियोलौजी निदेशक डाक्टर गजिंद्र कुमार गोयल ने कहा कि अनिद्रा से लोगों में दिल की समस्या बढ़ रही है. ब्लडप्रैशर की समस्या भी इस से बढ़ रही है. आमतौर पर रात के दौरान ब्लडप्रैशर 10 से 20 फीसदी कम हो जाता है. लेकिन नींद की कमी के साथ ऐसा नहीं होता जिस से रात में ब्लडप्रैशर हाई रहता है जो सीधे हृदय संबंधी घटनाओं से जुड़ा होता है.

बकौल डाक्टर गोयल, नींद से वंचित व्यक्तियों में मधुमेह, हाई कोलैस्ट्रौल और दोषपूर्ण आहार संबंधी आदतें विकसित होने की संभावना ज्यादा होती है. ऐसे में हमारे दिल को स्वस्थ रखने के लिए कम से कम 7 घंटे की पर्याप्त और अच्छी नींद जरूरी है. दुनियाभर के तमाम डाक्टर और विशेषज्ञ नींद की अनिवार्यता पर एकमत हैं तो हमआप क्यों अच्छी और पर्याप्त नींद से महरूम रहें, जबकि नींद की गोलियां आसानी से 2-3 रुपए में हर मैडिकल स्टोर पर मिल जाती हैं.

हां, यह अच्छा है कि इस का दुरुपयोग न हो, इसलिए यह बिना डाक्टर के परचे के नहीं मिलती. डाक्टर को अपनी नींद संबंधी समस्या बता कर यह ली जा सकती है. अच्छी और पर्याप्त नींद इस दौर का वरदान है जो अगर किन्हीं वजहों, मसलन जीवनशैली, चिंता या तनाव के चलते अभिशाप में बदलने लगे तो नींद की गोली लेना उतनी बुरी बात भी नहीं जितनी कि प्रचारित कर दी गई है.

Hindi Story : दूसरा कदम – रिश्तों के बीच जब आ जाएं रुपए-पैसों

Hindi Story : कैसा जमाना आ गया है. यदि कोई प्यार से मिलता है और बारबार मिलना चाहता है तो पता नहीं क्यों हमारी छठी इंद्री हमें यह संकेत देने लगती है कि सामने वाले पर शक किया जाए. यह इंसान क्यों मिलता है? और फिर इतने प्यार से मिलता है कि शक तो होगा ही. वैसे हमारे पास ऐसा है ही क्या जिस पर किसी की नजर हो. एक मध्यमवर्गीय परिवार के पास ऐसी कोई दौलत नहीं हो सकती जिसे कोई चुरा ले जाए. बस, किसी तरह चादर में पैर समेटे अपना जीवन और उस की जरूरतें पूरी कर लेता है एक आम मध्यमवर्गीय मानस. पार्क में सुबह टहलने जाता हूं तो एक 26-27 साल का लड़का हर दिन मिलता है. जौगिंग करता आता है और पास आ कर यों देखने लगता है मानो मेरा ही इंतजार था उसे.

‘‘कैसे हैं आप, कल आप आए नहीं? मैं इंतजार करता रहा.’’

‘‘क्यों?’’ सहसा मुंह से निकल गया और साथ ही अपने शब्दों की कठोरता पर स्वयं ही क्रोध भी आया मुझे.

‘‘नहीं, कोई खास काम भी नहीं था. हां, रोज आप को देखता हूं न. आप अच्छे लगते हैं और सच कहूं तो आप को देख कर दिन अच्छा बीत जाता है.’’

वह भी अपने ही शब्दों पर जरा सा झेंप गया था.

पार्क से आने के बाद पत्नी से बात की तो कहने लगी, ‘‘आप बैंक में ऊंचे पद पर काम करते हैं. कोई कर्जवर्ज उसे लेना होगा इसीलिए जानपहचान बढ़ाना चाहता होगा.’’

‘‘हो सकता है कोई वजह होगी. ऐसा भी होता है क्या कि किसी का चेहरा देख कर दिन अच्छा बीते. अजीब लगता है मुझे उस का व्यवहार. बेकार की चापलूसी.’’

‘‘आप को देख कर कोई खुश होता है तो इस से भला आप को क्या तकलीफ है,’’ पत्नी बोली, ‘‘आप की सूरत देख कर उस का दिन अच्छा निकलता है तो इस का मतलब आप की सूरत किसी की खुशी का कारण है.’’

‘‘हद हो गई, तुम भी ऐसी ही सिरफिरी बातें करने लगी हो.’’

‘‘कई बातें हर तर्कवितर्क से परे होती हैं श्रीमान. बिना वजह आप उसे अच्छे लगते हैं. अगर बिना वजह बुरे लगने लगते तो आप क्या कर लेते. घटना को सकारात्मक दृष्टिकोण से देखना चाहिए. बिना वजह प्यार से कैसा डर. अच्छी बात है. आप भी उस से दोस्ती कर लीजिए… घर बुलाइए उसे. हमारे बच्चे जैसा ही होगा.’’

‘‘इतना भी छोटा नहीं लगता. हमारे बच्चों से तो उम्र में बड़ा ही है. चलो, छोड़ो किस बखेड़े में पड़ गईं तुम भी.’’

मैं ने पत्नी को टालने का उपक्रम किया, लेकिन पत्नी की बातों की गहराई को पूरी तरह नकार कहां पाया. सच कहती है मेरी पत्नी शुभा. मनोविज्ञान की प्राध्यापिका है न, हर बात को मनोविज्ञान की कसौटी पर ही तोलना उस की आदत है. कहीं न कहीं कुछ तो सच होगा जिसे हम सिर्फ महसूस ही कर पाते हैं.

सच में वह लड़का मुझे देख कर इतना खुश होता है कि उस की आंखों में ठहरा पानी हिलने लगता है. मानो पलकपांवड़े बिछाए वह बस मुझे ही देख लेना चाहता हो. ज्यादा बात नहीं करता. बस, हालचाल पूछ कर चुपचाप लौट जाता है, लेकिन उस का आनाजाना भी धीरेधीरे बहुत अच्छा लगने लगा है. मैं भी जैसे ही पार्क में पैर रखता हूं, मेरी नजरें भी उसे ढूंढ़ने लगती हैं. दूर से ही हाथ हिला कर हंस देना मेरी और उस की दोनों की ही आदत सी बन गई है. शब्दों के बिना हमारे हावभाव बात करते हैं, आंखें बात करती हैं, जिन में अनकहा सा स्नेह और अपनत्व महसूस होने लगा है. एक अनकहा संदेश जो सिर्फ इतना सा है कि आप मुझे बहुत अच्छे लगते हैं. शुभा अकसर मुझे समझाती रहती है,

‘‘चिंता करना अच्छी बात है,

क्योंकि अगर हमें हर काम ठीक ढंग से करना है तो जरा सी चिंता करना जरूरी है, इतनी जितनी हम सब्जी में हींग डालते हैं. आप तो इतनी चिंता करते हो जितनी चाय में दूध, पत्ती और चीनी.’’

‘‘तुम्हारे कहने का अर्थ मैं यह निकालूं कि मैं काम कम और चिंता ज्यादा करता हूं. शौक है मुझे चिंता करने का.’’

‘‘जी हां, चिंता को ओढ़ लेना आप को अच्छा लगता है जबकि सच यह है कि जिस काम की आप चिंता कर रहे होते हैं वह चिंता लायक होता ही नहीं. अब कोई प्यार से मिल रहा है तो उस की भी चिंता. जरा सोचिए, इस की कैसी चिंता.’’

मेरी सैर अभी शुरू ही होती थी और उस की समाप्त हो जाती. पार्क के बाहर खड़ी साइकिल उठा कर वह हाथ हिलाता हुआ चला जाता. जहां तक मुझे इंसान की पहचान है, इतना कह सकता हूं कि वह अच्छे घर का लगता है.

मेरे दोनों बेटे बेंगलुरु में पढ़ाई करते हैं. उन के बिना घर खालीखाली लगता है और अकसर उसे देख कर उन की याद आती है. एक सुबह पार्क में सैर करना अभी शुरू ही किया था कि पता नहीं चला कैसे पैर में मोच आ गई. वह मुझे संभालने के लिए बिजली की गति से चला आया था.

‘‘क्या हुआ सर? जरा संभल कर. आइए, यहां बैठ जाइए.’’

उस बच्चे ने मुझे बिठा कर मेरा पैर सीधा किया. थोड़ी देर दबाता रहा.

‘‘आज सैर रहने दीजिए. चलिए, आप को आप के घर छोड़ आऊं.’’

संयोग ऐसा बन जाएगा किस ने सोचा था. पैर में मोच का आना उसे हमारे घर तक ले आया. शुभा हम दोनों को देख कर पहले तो घबराई फिर सदा की तरह सहज भाव में बोली, ‘‘हर पीड़ा के पीछे कोई खुशी होती है. मोच आई तो तुम भी हमारे घर पर आए. रोज तुम्हारी बातें करते हैं हम,’’ मुझे बिठाते हुए शुभा ने बात शुरू की तो वह भी हंस पड़ा.

बातों से पता चला कि वह भी जम्मू का रहने वाला है. हमारे बीच बातों का सिलसिला चला तो दूर तक…हमारे घर तक…हमारे अपने परिवार तक. हमारा परिवार जिस से आज मेरा कोई वास्ता नहीं है. मैं आज दिल्ली में रह रहा हूं.

‘‘जम्मू में आप का घर किस महल्ले में है, सर?’’

मैं बात को टालना चाहता था. मेरी एक दुखती रग है मेरा घर, मेरा जम्मू वाला घर, जिस पर अनायास उस का हाथ जो पड़ गया था. बड़े भाई को लगता था मैं उन का हिस्सा खा जाऊंगा और मुझे लगता था घर में मेरी बातबात पर बेइज्जती होती है. जब भी मैं घर जाता था मेरी मां को भी ऐसा ही लगता था कि शायद मैं अपना हिस्सा ही मांगने चला आया हूं. हम जब भी घर जाते तो मां शुभा पर यों बरस पड़ती थीं मानो सारा दोष उस का ही हो. मेहमान की तरह साल में हमारा 4 दिन जम्मू जाना भी उन्हें भारी लगता. भाईसाहब से मिले सालों बीत चुके हैं. उन का बड़ा लड़का सुना है मुंबई में किसी कंपनी में काम करता है और लड़की की शादी हो गई. किसी ने बुलाया नहीं. हम गए नहीं. जम्मू में है कौन जिस का नाम लूं अब.

‘‘सर, जम्मू में आप का घर कहां है? आप के भाईबहन तो होंगे न? क्या आप उन के पास भी नहीं जाते?’’

‘‘नहीं जाते बेटा, ऐसा है न… कभीकभी कुछ सह लेने की ताकत ही नहीं रहती. जब लगा घर जा कर न घर वालों को सुख दे पाऊंगा न अपनेआप को, तब जाना ही छोड़ दिया. मैं भी खुश और घर वाले भी खुश…

‘‘…अब तो मुझे किसी की सूरत भी याद नहीं. भाईसाहब के बच्चे सड़क पर ही मिल जाएं तो मैं पहचान भी नहीं सकता. उन के नाम तक नहीं मालूम. जम्मू का नाम भी मैं लेना नहीं चाहता. तकलीफ सी होती है. तुम जम्मू से हो शायद इसीलिए अपने से लगते हो. मिट्टी का रिश्ता है इसीलिए तुम्हें मैं अच्छा लगा और मुझे तुम.’’

‘‘आप के बच्चे कहां हैं?’’ वह बोला.

‘‘2 जुड़वां बेटे हैं. दोनों बेंगलुरु में एमबीए कर रहे हैं. इस साल वे पढ़ाई पूरी कर लेंगे. देखते हैं नौकरी कहां मिलती है.’’

‘‘तुम कहां रहते हो बेटा? क्या काम करते हो?’’

‘‘मैं भी एमबीए हूं. अभी कुछ दिन पहले ही मुंबई से ट्रांसफर हो कर दिल्ली आया हूं, राजौरी गार्डन में हमारी कंपनी का गैस्टहाउस है. 3 महीने का प्रोजैक्ट है मेरा.’’

‘‘मेरे बड़े भाई का बेटा भी वहीं है. अब क्या नाम है यह तो पता नहीं पर बचपन में उसे वीनू कहा करते थे.’’

‘‘आप उस की कंपनी का पता और नाम बता दें.’’

‘‘इतना सब पता किसे है. अपना ही बच्चा है पर मैं उसे पहचान भी नहीं सकता. अफसोस होता है मुझे कि हम अपने बच्चों को क्या विरासत दे कर जाएंगे. मेरे दोनों बेटे अपने उस भाई को नहीं पहचानते. बहन की सूरत कैसी है, नहीं पता. आज हम अपने पड़ोसी की परवा नहीं करेंगे तो कल वह भी मेरे काम नहीं आएगा. इस हाथ दे उस हाथ ले की तर्ज पर बड़ा अच्छा निबाह कर लेते हैं क्योंकि हमारी हार्दिक इच्छा होती है उस से निभाने की. दोस्त के साथ भी हमारा साथ लंबा चलता है.

‘‘एक भाई के साथ ही झगड़ा, भाई प्यार भी करे तो दुश्मन लगे. भाई की हमदर्दी भी शक के घेरे में, भाई का ईमान भी धोखा. सिर्फ इसलिए कि वह जमीनजायदाद में हिस्सेदार होता है.’’

‘‘आप फिर से वही सब ले कर बैठ गए,’’ शुभा बोली, ‘‘भाई की बेटी की शादी में न जाने का फैसला तो आप का ही था न.’’

‘‘भाई ने बुलाया नहीं. मैं ने फोन पर बात करनी चाही तो भी जलीकटी सुना दी. क्या करने जाता वहां.’’

‘‘चलो, अब छोड़ो इस किस्से को.’’

‘‘यही तो समस्या है आप लोगों की कि किसी भी समस्या को सुलझा लेना तो आप चाहते ही नहीं हैं. हाथ पकड़ कर भाई से पूछते तो सही कि क्यों नाराज हैं? क्या बिगाड़ा है आप ने उन का? अपनाअपना खानापीना, दूरदूर रहना, न कुछ लेना न कुछ देना फिर भी नाराजगी,’’ इतना कह कर वह लड़का बारीबारी से हम दोनों का चेहरा पढ़ रहा था.

‘‘अब टैंशन ले कर मत बैठ जाना,’’ शुभा बोली थी.

‘‘कोई तमाशा न हो इसीलिए तो जम्मू को छोड़ दिया. मेरी इच्छा तमाशा करने की कभी नहीं रही.’’

शुभा ने किसी तरह बात को टालने का प्रयास किया, ‘‘तुम्हारा नाम क्या है, बेटा?’’

वह लड़का एकटक हमें निहार रहा था. आंखों में झिलमिल करता पानी जैसे लबालब कटोरों में से छलकने ही वाला हो.

‘‘चाची, मेरा नाम आज भी वीनू ही है. मैं सोनूमोनू का बड़ा भाई हूं. मैं आप का अपना ही हूं. आप के घर का झगड़ा सिर्फ आप के घर का झगड़ा नहीं है. मेरे घर का भी है.’’

ऐसा लगा मानो पवन का ठंडा झोंका हमारे घर में चला आया और हर कोने में समा गया.

‘‘आप हार गए चाचू, इतने दिन से मुझे देख रहे हैं, पर अपना खून आप से पहचाना नहीं गया. सच कहा आप ने अभीअभी. यह कैसी विरासत दे कर जा रहे हैं आप सोनूमोनू को और मुझे. मेरी तो यही कामना है कि पापा और आप लाख वर्ष जिएं, लेकिन जिस दिन आप की अरथी उठानी पड़ी सोनूमोनू तो 2 भाई हैं किसी तरह उठा कर श्मशान तक ले ही जाएंगे पर ऐसी स्थिति में मैं अकेला क्या करूंगा, चाचू. कैसे मैं अकेला पापा की अरथी को खींच पाऊंगा. क्या करूंगा? ये कैसे बीज बो दिए हैं हमारे बुजुर्गों ने जिस की फसल हमें काटनी पड़ेगी.’’

फफकफफक कर रोने लगा वह लड़का. शुभा और मैं यों खड़े थे मानो पैरों के नीचे जमीन ही नहीं रही. विश्वास नहीं हो रहा था हमें कि 6 फुट का यह लंबाचौड़ा प्यारा सा नौजवान मेरा ही खून है जिसे मैं पहचान ही नहीं पाया.

बचपन में यह मुझे घोड़ा बना कर मेरी सवारी किया करता था. आज वास्तव में यह दावा कर सकता है कि मेरा खून भी उस के पिता के खून की तरह सफेद हो चुका है. अगर मेरा खून लाल होता तो मैं अपने बच्चे को पहचान नहीं जाता.

शुभा ने हाथ बढ़ाया तो वीनू उस की गोद में समा कर यों रोने लगा मानो अभी भी 4-5 साल का ही हो. हमारे बच्चे तो शादी के 5 साल बाद जन्मे थे, तब तक वीनू ही तो शुभा का खिलौना था.

‘‘चाची, आप ने भी नहीं पहचाना.’’

क्या कहती शुभा. वीनू का माथा बारबार चूमते हुए उस के आंसू पोंछती रही. क्या उत्तर है शुभा के पास और क्या उत्तर है मेरे पास. जम्मू में 4 कमरों का एक छोटा सा हमारा घर है, जिस पर मैं ने अपना अधिकार छोड़ दिया था और भाई ने उसे कस कर पकड़ लिया था. सोचा जाए तो उस के बाद क्या हुआ. क्या मैं सुखी हो पाया? या भाईसाहब खुश रहे. हाथ तो कुछ नहीं आया. हां, बच्चे जरूर दूरदूर हो गए जो आज हम से प्रश्न कर रहे हैं. सच ही तो पूछ रहे हैं. मकान में कुछ हजार का हिस्सा छोड़ कर क्याक्या छोड़ दिया. लाखोंकरोड़ों से भी महंगा हमारा रिश्ता, हमारा पारिवारिक स्नेह.

पास जा कर मैं ने उसे थपथपाया. देर तक हमारे गिलेशिकवों और शिकायतों का दौर चला. ऐसा लगा सारा संताप चला गया. शुभा ने वीनू की पसंद का नाश्ता बनाया. हमारे घर ही नहायाधोया वीनू और मेरा पाजामाकुरता पहना.

‘‘चाचू, देखो, मैं बड़ा हो गया हूं और आप छोटे,’’ कुरतापाजामा पहन वीनू हंसने लगा.

‘‘बच्चे समझदार हो जाएं तो मांबाप को छोटा बन कर भी खुशी होती है. मेरा तो यह सोचना है कि बेटा अगर कपूत है तो क्यों उस के लिए बचाबचा कर रखना और घर जायदाद को भी किसी के साथ न बांटना. अगर भाईसाहब से मैं ने कुछ नहीं मांगा तो क्या आज सड़क पर बैठा हूं? अपना घर है न मेरा. सोनूमोनू भी अपनाअपना घर बना ही लेंगे, जितनी उन की सामर्थ्य होगी. मैं ने उन्हें भी समझा दिया है. पीछे मुड़ कर मत देखना कि पिता के पास क्या है?

‘‘पिता की दो कौडि़यों के लिए अपना रिश्ता कभी कड़वा मत करना. रुपयों का क्या है, आज इस हाथ कल उस हाथ. जो चीज एक जगह कभी टिकती ही नहीं उस के लिए अपने रिश्तों की बलि दे देना कोरी मूर्खता है. अपनों को छोड़ कर भी हम उन्हें छोड़ पाते हैं ऐसा तो कभी नहीं होता. उन की बुराई ही करने के बहाने हम उन का नाम तो दिनरात जपते हैं. कहां भूला जाता है अपना भाई, अपनी बहन और अपना रूठा रिश्ता. रिश्ते को खोना भी कोई नहीं चाहता और रिश्ते को बचाने के लिए मेहनत भी कोई नहीं करता.’’

मेरे पास आ कर बैठ गया था वीनू. अपलक मुझे निहारने लगा. शुभा का हाथ भी कस कर पकड़ रखा था वीनू ने.

‘‘चाची, अगले महीने मेरी शादी है. आप दोनों के बिना तो होगी नहीं. सोनू व मोनू से भी बात कर चुका हूं मैं, अगले महीने उन के फाइनल हो जाएंगे. यह मैं जानता हूं. शादी उस के बाद ही होगी. अपने भाइयों के बिना क्या मैं अधूरा दूल्हा नहीं लगूंगा.’’

एक और सत्य पर से परदा उठाया वीनू ने. खुशी के मारे हम दोनों की आंखों से आंसू निकल आए. वीनू की आंखें भी भीगी थीं. रोतेरोते हंस पड़ा मैं. भाई साहब द्वारा की गई सारी बेरुखी शून्य में कहीं खो सी गई.

वीनू को कस कर गले से लगा लिया मैं ने. रिश्तों को बचाने के लिए और कितनी मेहनत करेगा यह बच्चा. ताली तो दोनों हाथों से बजती है न. बच्चों के साथ हमें भी तो दूसरा कदम उठाना चाहिए.

Hindi Kahani : परफैक्शन – जिंदगी को बेहतर बनाने के लिए क्या करना चाहिए?

Hindi Kahani : अमित अभी सो ही रहा था कि पल्लवी ने एकदम से उस की चादर खींच ली. अमित आंख मलते हुए बोला,”क्या बदतमीजी है यह…” पल्लवी कटाक्ष करते हुए बोली,”तुम्हारे बराबर ही कमाती हूं, तो तुम्हें भी घर के कामों में बराबरी का योगदान देना होगा।”

अमित बोला,” कल कह तो दिया था कि एक मेड लगा लो। मेरा फील्ड का काम रहता है, मैं बहुत थक जाता हूं।”

पल्लवी तमतमाते हुए बोली,”मेरे पास फालतू पैसे नही हैं। तुम कर पाओगे इतना अफोर्ड?”

अमित इस से पहले कुछ बोल पाता पल्लवी ने अमित की मम्मी को लानतसलामत भेजनी शुरू कर दी थी,”अगर तुम्हारी मम्मी ने तुम्हें अच्छे से पाला होता तो मुझे ये दिन न देखने पड़ते।”

उधर नींद में अधखुली आंखें लिए स्नेहा डरीडरी खड़ी थी. अपनी मम्मी पल्लवी के इस चंडी रूप से वह भलीभांति परिचित थी मगर फिर भी उस 7 साल की छोटी सी जान को ऐसी सुबह से रोज डर लगता था. पल्लवी का बड़बड़ाना और अमित के हाथ एकसाथ बड़ी रफ्तार से चल रहे थे. अमित ने फटाफट औमलेट के लिए अंडे फेंटे और जल्दीजल्दी अपना नाश्ता बनाया. उधर पल्लवी अपने लिए अलग से नाश्ता बना रही थी.

जब अमित स्नेहा को तैयार कर रहा था कि अचानक से बाल बनाते हुए उसे सफेद बाल दिखाई दिए। एकाएक उस का हाथ ठिठक गया था. क्या स्नेहा के साथ भी वही कहानी दोहराई जाएगी? अचानक से अमित के अतीत के पन्नों से हंसतीमुसकराती मुनमुन सामने आ कर खड़ी हुई थी…

मुनमुन का औफिस में पहला दिन था। अमित ने उस की जौइनिंग के समय थोड़ीबहुत मदद करी थी. मुनमुन की गुलाब की पंखुड़ियों की तरह खुलती हुई बड़ीबड़ी आंखें, चिड़िया की तरह छोटेछोटे अधखुले गुलाबी होंठ, कंधे तक कटे हुए बाल जिन्हें वह हमेशा बांध कर रखती थी मगर सब से प्यारी थी मुनमुन की बच्चों जैसी भोली हंसी जो किसी को भी 2 मिनट में अपना बना सकती थी.

अमित न चाहते हुए भी मुनमुन की तरफ खींचा जा रहा था मगर मुनमुन अमित से खींचीखींची ही रहती थी. अमित को समझ नहीं आ रहा था की आखिर मुनमुन उस के साथ ऐसा क्यों कर रही है?

अमित बेहद आकर्षक, खातेपीते परिवार का इकलौता बेटा था. आज तक लड़कियां ही उस के पीछे भागती थी मगर मुनमुन न जाने क्यों उसे भाव नहीं दे रही थी. अमित की बहुत कोशिशों के बाद मुनमुन आखिरकार एक दिन डिनर के लिए मान गई थी. अमित इस से पहले बहुत सारी लड़कियों के साथ डिनर कर चुका था मगर आज न जाने क्यों वह बेहद नर्वस हो रहा था. तभी काले सूट में मुनमुन आई। आज उस ने अपने बाल खोल रखे थे जो मुनमुन के चांद जैसे चेहरे को और आकर्षक बना रहे थे.

मुनमुन ने एक झटके से अपने बालों को हाथों से पीछे किया और अमित का दिल अपनी मुट्ठी में कैद कर लिया. अमित को हर चीज में परफैक्शन पसंद था. अपनी बीबी के लिए तो वैसे ही उस ने बड़ेबड़े सपने देख रखे थे. मुनमुन अमित के हर सपने पर खरी उतरती थी.

मुनमुन ने अपने सौंदर्य और अपने व्यवहार से उस रात अमित को चारों खाने चित्त कर दिया था. डिनर समाप्ति के बाद अमित ने मुनमुन का हाथ अपने हाथों में लेते हुए कहा,”अब अगली बार कब मुझ से मिलोगी?”

मुनमुन ने धीरे से हाथ छुड़ाते हुए कहा,”अमित, अगर विवाह के लिए इच्छुक हो तो मेरे मम्मीपापा से आ कर बात कर लेना. वे लोग अगले हफ्ते कोलकाता से आ रहे हैं।”

अमित खिलंदङ किस्म का युवक था, इसलिए हंसते हुए बोला,”अरे बंगाली लड़कियां तो इतनी जल्दी शादी के बंधन में नही बंधती हैं।”

मुनमुन उठते हुए बोली,”मगर मैं अपना समय डेटिंग में वेस्ट नहीं करना चाहती हूं।”

अमित ने फिर आगे कुछ नहीं कहा. पूरे हफ्ते मुनमुन अमित को अवाइड करती रही थी. अमित ने अब ठान लिया था कि जैसे भी हो इस बंगालन को अपनी दुलहन हर हाल में बना कर ही रहूंगा.

रविवार की अलसाई सी दोपहर थी, अमित यों ही टीवी के साथ खिलवाड़ कर रहा था. तभी मुनमुन का फोन आया,”मम्मीपापा तुम से मिलना चाहते हैं।”

अमित फटाफट तैयार हो कर पहुंच गया था. मुनमुन के मम्मीपापा ने अमित से थोड़ीबहुत बातचीत करी और अपनी स्वीकृति की मुहर लगा दी थी.

मुनमुन के पापा ने फिर कहा,”अमित, अपने मम्मीपापा को कोलकाता भेज देना और फिर हम उन से मिलने दिल्ली चले जाएंगे। इस बीच तुम दोनों घूमोफिरो, एकदूसरे को अच्छे से समझ लो।”

फिर तो अमित का दिन सोना और रात चांदी हो गई थी. अमित को मुनमुन के बालों से बड़ा प्यार था. अमित के खुद के बाल थोड़े हलके थे, इसलिए उस ने पहले ही सोच रखा था कि उस की पत्नी के घने व काले बाल होंगे ताकि उस के बच्चे एकदम परफैक्ट हों.

उस दिन रविवार था। रातभर अमित और मुनमुन फोन पर बात करते रहे थे. अचानक से अमित का मन किया कि क्यों नहीं वह मुनमुन के साथ ही नाश्ता करे. वह मुनमुन को सरप्राइज करना चाहता था. जैसे ही अमित ने दरवाजे की घंटी बजाई, मुनमुन ने दरवाजा खोला तो अमित उसे देख कर हक्कबक्का रह गया था. मुनमुन हेयर कलर लगाई हुई थी।

अमित बोला,”यह क्यों लगा रखा है? जल्दी से बाल वाश करो। मुझे तुम्हारे बाल नैचुरल ही पसंद हैं।”

मुनमुन बोली,”अमित मैं तो हमेशा से ही हेयर कलर करती हूं।”

अमित बोला,”मुझे कुछ नहीं सुनना। मैं तुम्हें जैसी हो वैसे ही देखना चाहता हूं. 1-2 सफेद बालों से मुझे कोई फर्क नही पड़ता है.”

मुनमुन जब नहा कर बाहर आई तो उस ने टावेल से अपने बालों को लपेट रखा था। वह इतनी खूबसूरत लग रही थी कि अमित खुद को रोक नहीं पाया. अमित सोफे पर ही मुनमुन को प्यार करने लगा था कि अचानक से मुनमुन के बालों से टावेल निकल गया, अमित ने देखा मुनमुन के 25% बाल सफेद दिखाई पड़ रहे थे। अमित एकाएक उठ गया और मुनमुन को देलते हुए बोला कि तुम ने कभी बताया नहीं कि तुम्हारे इतने सारे बाल सफेद हैं?

मुनमुन हंसते हुए बोली,”अरे तो मैं इसलिए ही तो हर महीने हेयर कलर करती हूं और इस में बताने वाली कौन सी बात है?”

अमित बोला,”यह धोखा है मुनमुन, तुम्हें यह मुझे पहले ही बताना चाहिए था कि तुम्हारे बाल सफेद हैं। मुझे अपने बच्चो में किसी भी तरह का नुक्स नहीं चाहिए और इतनी कम उम्र में सफेद बाल तो जैनेटिक होते हैं।”

मुनमुन को विश्वास नहीं हो रहा था कि यह वही अमित है जो उस से रातदिन प्यार के वादे करता था. मुनमुन बोली,”अमित, तुम यह क्या कह रहे हो, दरअसल, मेरे बाल सफेद तो स्ट्रैस और जगहजगह का पानी बदलने के कारण हुए हैं। यह इतनी बड़ी बात भी नही है।”

अमित गुस्से में बोला,”मुझे किसी खाला से शादी नहीं करनी है। हेयर कलर करोगी तो 10 साल में ही तुम्हारे बाल आधे हो जाएंगे और 5 साल बाद तो शायद गंजी ही हो जाओ और बिना कलर के तो तुम मेरी मां लगोगी।”

अमित फिर वहां नहीं रुका। मुनमुन को लगा शायद अमित को थोड़ा समय चाहिए इसलिए उस ने अमित को फोन नही किया. मगर अमित पूरे हफ्ते औफिस में मुनमुन को इग्नोर करता रहा था. फिर शनिवार की शाम खुद ही पहल कर के मुनमुन ने अमित को कौल किया तो अमित बोला,”देखो मुनमुन, तुम हर तरह से परफैक्ट लड़की हो मगर मैं बालों के साथ समझौता नहीं कर सकता हूं।”

मुनमुन अमित के प्यार में पागल थी, इसलिए बोली,”एक बार आओ तो सही, मैं तुम्हें सब समझा दूंगी।”

अमित लंच पर आया और मुनमुन की सारी बात सुनी मगर समझी नहीं. जैसे ही अमित मुनमुन के करीब आने लगा तो मुनमुन धीरे से बोली,”तुम्हें अब कोई समस्या तो नही हैं न मेरे बालों से अमित, मैं तुम्हें कोई शिकायत का मौका नही दूंगी। कलर के बाद भी मेरे बाल हलके नहीं होंगे, मैं बहुत ध्यान रखूंगी और जरूरी तो नहीं हमारे बच्चों के बाल मुझ पर ही जाएं।”

अमित बोला,”मुनमुन मैं तुम से बहुत प्यार करता हूं मगर मैं यह शादी नहीं कर सकता हूं।”

मुनमुन लगभग गिड़गिड़ाते हुए बोली,”अमित मेरे मम्मीपापा बहुत निराश हो जाएंगे, क्या मेरी पहचान मेरे सौंदर्य तक ही सीमित है? क्या हमारे प्यार की नींव इतनी कमजोर थी अमित?” अमित की चुप्पी में मुनमुन को अमित का जवाब मिल गया था.

जब अमित अगले दिन औफिस पहुंचा तो मुनमुन 15 दिन की छुट्टी पर चली गई थी। लगभग 1 माह पश्चात मुनमुन ने दूसरी कंपनी जौइन कर ली थी और उस का ट्रांसफर मुंबई हो गया था.

अमित को मुनमुन की बहुत याद आती थी. उस की भोलीभोली आंखें, बातें और हंसी सबकुछ उसे तड़पा देता था मगर वह क्या करे, उसे परफैक्ट जीवनसाथी ही चाहिए था. मुनमुन की फेयरवेल पार्टी पर अमित बोला,”मुनमुन मुझे आशा है कि तुम मुझ से नाराज नहीं होगी।”

मुनमुन मुसकराते हुए बोली,”अमित, मुझे तो खुशी है कि शादी से पहले ही तुम्हारी सचाई सामने आ गई है। मैं तो तुम्हारी शुक्रगुजार हूं, शादी के कारण ही मैं मुंबई की कंपनी का औफर ठुकरा रही थी। मम्मीपापा के दबाव में आ कर तुम से प्यार की भीख मांग रही थी मगर बस अब और नहीं। थैंक यू अमित, अगर तुम न होते तो मैं कभी यह जान नहीं पाती कि मैं कितनी स्ट्रौंग हूं।” उस दिन के बाद मुनमुन हमेशा के लिए अमित की जिंदगी से चली गई थी. उस ने कभी भी पीछे मुड़ कर नही देखा था. अमित को इधरउधर से ही खबर मिलती रही थी कि मुनमुन अपने कैरियर में लगातार आगे बढ़ रही है और जल्द ही मुनमुन विवाह के बंधन में भी बंध गई थी. अमित को अंदर से जलन हुई, उसे लग रहा था कि उस ने एक हीरा छोटी सी बात पर खो दिया था. मगर अमित अपनी आदत से मजबूर था. अमित ने मुनमुन को सोशल मीडिया साइट्स पर फौलो करने की कोशिश करी मगर मुनमुन ने न अमित को ब्लौक किया और न ही उस की रिक्वैस्ट स्वीकार करी. अमित को समझ आ गया था कि वह अब मुनमुन की जिंदगी में कोई माने नहीं रखता है.

करीब 2 साल के बाद पल्लवी के लिए अमित ने हामी भर दी थी. पल्लवी के बेहद घने और लंबे बाल थे। गोरा रंग, गहरी काली आंखें और बेदाग त्वचा. अमित को इस जोड़गुना में अपना मुनाफा ही नजर आया था. शादी से पहले भी अमित पल्लवी से 4-5 बार मिला था और अमित को लगा था कि जिंदगी का सफर आराम से कट जाएगा. मगर पल्लवी से विवाह करने के बाद अमित को यह तो समझ आ गया था कि वह कितना नासमझ था। जिंदगी को परफैक्शन से चलाने के लिए बाहरी रूप से नहीं, अंदर से परफैक्ट इंसान चाहिए था. पल्लवी के बाल शादी के 10 साल बाद भी घने और काले थे मगर फिर भी पल्लवी का सौंदर्य अमित के दिल को बांध नहीं पाया था. पल्लवी हवा से भी लड़ने का बहाना ढूंढ़ती थी.

स्नेहा के स्कूल के सामने जब अमित ने कार रोकी तो स्नेहा बोली,”पापा, मैं लगातार आप से बातें कर रही थी और आप न जाने कहां खोए हुए थे?”

शाम को अमित और पल्लवी स्नेहा को डाक्टर के पास ले कर गए थे. डाक्टर ने चिंतित स्वर में कहा,”7-8 साल की उम्र में ऐसे बाल सफेद तो नहीं होने चाहिए। क्या आप के परिवार में यह जैनेटिक है?”

पल्लवी और अमित के मना करने पर डाक्टर बोली,”फिर यह स्ट्रैस के कारण हो सकते हैं। आपलोग बच्चे को एक हैल्दी और पौजिटिव एनवायरनमैंट दीजिए।”

घर आकर फिर से दोषारोपण शुरू हो गया था कि स्नेहा का अमित खयाल नहीं रख पाया था या पल्लवी के व्यवहार की वजह से स्नेहा का यह हाल हो गया है. स्नेहा फिर से एक कोने में घुसी हुई कांप रही थी. उसे लग रहा था कि अब उस के सफेद बालों के कारण मम्मीपापा की लड़ाई हो रही है.

अमित गुस्से में कार उठा कर बाहर निकल गया था. उसे मालूम था कि पल्लवी के साथ किसी भी तरह की बात करना बेवकूफी है। जब अमित वापस घर आया तो पल्लवी और स्नेहा सो चुकी थी. अमित जैसे ही बाथरूम में अपने चेहरा धोने लगा, उसे लगा पीछे चुपके से मुनमुन की परछाई खड़ी हो कर मुसकरा रही है। बारबार उस के कानो में कह रही है कि अब स्नेहा को कैसे घर से निकलोगे? तुम्हारे परफैक्शन के चक्कर में तुम ने तो अपनी पूरी जिंदगी ही इनपरफैक्ट कर ली है।

अमित ने जैसे ही पीछे मुड़ कर देखा तो स्नेहा सहमी हुई पीछे खड़ी हुई थी. अमित को देखते ही बोली,”पापा, क्लास में सब बच्चे मुझे चिढ़ाते हैं।इस में मेरी क्या गलती है?”

अमित को लगा यही समय है स्नेहा को इस सौंदर्य के भंवरजाल से बाहर निकालने का. अमित बोला,”बेटा, तुम्हारी पहचान इन बालों से नहीं, तुम्हारे व्यक्तित्व से है। खुद पर भरोसा करना सीखो, आज बाल हैं तो कल तुम्हारा वजन हो सकता है, कुछ सालों बाद त्वचा भी हो सकती है। हम इस समस्या पर काम कर रहे हैं और देखना बहुत जल्द तुम इस से बाहर निकल जाओगी।”

तभी पीछे से पल्लवी स्नेहा के कंधे पर हाथ रखते हुए बोली,”बेटा, पापा एकदम ठीक कह रहे हैं। हम लोग एकसाथ इस का सामना करेंगे।”

अमित ने देखा कि स्नेहा के चेहरे से तनाव के बादल छंट रहे थे.अमित को लगा जैसे आज उस ने सही माने में अपने अतीत की परछाई को सदैव के लिए धूमिल कर लिया है. उस की स्नेहा किसी अमित से प्यार की भीख नही मांगेगी, वह सदैव अपनी बेटी के साथ ढाल बन कर खडा रहेगा.

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