Kota Coaching Centers : स्टूडैंट्स के सुसाइड करने की घटनाओं के कारण बदनाम हो रहे कोटा ने अब अपने पूरे कोचिंग शहर की पब्लिसिटी शुरू की है. कुछ कोचिंग सैंटरों ने मिल कर कोचिंग के गिरते नाम को बचाने की कोशिश की है. एक एडवरटाइजमैंट में कोचिंग इंस्टिट्यूट्स को केयरिंग इंस्टिट्यूट्स कहा गया है. इन के द्वारा 10 लाख से अधिक डाक्टर्स व इंजीनियर्स देने का बखान किया गया है. उन के इमोशनल वैलबीइंग सैंटरों की बात की गई है.
रेगिस्तान व धूलभरे राजस्थान का कोटा शहर कोचिंग सैंटर बन गया, यह अजबगजब बात है. ऐसे शहर अब कई हो गए हैं. सीकर हो गया है. हिसार होने लगा है. इस बाबत अब तो शहरों में आपस में कंपीटिशन होने लगा है. हर बड़ी कोचिंग कंपनी अपनी ब्रांचें हर शहर में खोलने लगी हैं. फिर भी कोटा की यूएसपी अभी बरकरार है और उसे बचाए रखने के लिए बड़ी कंपनियों ने पैसे जमा कर के अपना पीआर शुरू किया है ताकि पेरैंट्स इसे सुसाइडों का शहर मान कर बच्चों को भेजना बंद न कर दें.
कोचिंग सिटीज या बड़े शहरों में कोचिंग कंपनियां असल में रैगुलर स्कूलों और कालेजों की कैपेसिटी व इंट्रेस्ट की पोल खोलती हैं. रैगुलर स्कूलकालेजों में खर्च तो बराबर का होता है पर वहां उतनी तेजी से पढ़ने और एग्जाम में बैठ कर पेपर सौल्व करने की तकनीक नहीं सम झाई जाती, जो एग्जाम पैटर्न की जरूरत है.
कोटा एजुकेशनल मैन्युफैक्चरिंग इंडस्ट्री ने तो अब जानबू झ कर एग्जाम लेने वालों को ब्राइब दे कर ऐसे पेपर भी बनवाने शुरू कर दिए हैं जिन को सौल्व करने की स्किल रैगुलर स्कूलकालेज सिखा ही नहीं सकते. जब वे एग्जाम सिस्टम को बदलवा सकते हैं तो उन के लिए शहर की इमेज सुधारना मुश्किल नहीं है, क्योंकि इस पूरे धंधे में पैसा बहुत है. पेरैंट्स सूटकेस भरभर कर पैसा ला रहे हैं और अपने लाड़लों के फ्यूचर के लिए आज के नए एजुकेशन इंडस्ट्रियलिस्टों को दे रहे हैं जो सपने बेचते हैं, नौलेज नहीं.
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