भैया जी को देखते ही मुझे ऐसा लगा जैसे किसी ने काले धागे की दुकान खोल ली हो. उन के गले, दोनों हाथों और दोनों पैरों में काले धागे बंधे हुए थे जैसे काली कमली वाले बाबा हों.
मैं ने पूछा, ‘’भैया जी, क्या बात है, इतने सारे काले धागे शरीर पर बांध लिए क्या चक्कर है?‘’
भैया जी बोले, ‘’बंधु, बात को समझा करो, आजकल जमाना बहुत खराब है. कब, किस को, किस की नजर लग जाए, कुछ पता नहीं. इसलिए, काला धागा बांधना फैशन भी है, पैशन और जरूरत भी है
“तुम्हारी भाभी का कहना है कि तुम लोगों की नजर में जल्दी चढ़ जाते हो, इसलिए तुम्हें लोगों की नजर भी बहुत जल्दी लग जाती है. प्राचीन काल में तो बंगले को नजर लगने पर गाते थे- ’नज़र लगी राजा तोरे बंगले पर...’ आधुनिक काल में कंप्यूटर में वायरस अटैक हो जाता है. उस से बचने के लिए एंटी वायरस का उपयोग करते हैं. उसी प्रकार सदियों से इंसानों पर नजर अटैक होता रहा है, उस की काट के लिए काला धागा बांधना बहुत जरूरी है.
“जब इंसान की बनाई मशीन को नज़र लग सकती है, बंगले को नज़र लग सकती है तो कुदरत के बनाए हुए इंसान, जोकि बहुते ही संवेदनशील होता है, को नजर कैसे नहीं लग सकती. वह उस से कैसे बच सकता है. और बंधु, तुम्हारी भाभी का तो यह कहना है कि आप जाने कहांकहां जाते हो, पता नहीं किसकिस से मिलते हो, आप को कभी भी किसी की भी नजर लग सकती है.‘’
भैया जी थोड़ा सकुचाते, थोड़ा शरमाते हुए दबी हुई मुसकान से एक आंख दबा कर आगे कहने लगे, ‘’बंधु, तुम्हारी भाभी का मानना है कि मैं बहुत स्मार्ट हूं, नजर का टीका उतना असर नहीं करेगा, इसलिए काला धागा आदि हथियार से लैस कर के ही वे मुझे घर से बाहर निकलने देती हैं. उन का बस चलता तो जैसे ट्रक के सामने पुराना जूता लटका देते है वैसे ही कुछ न कुछ धतकरम जरूर करतीं.‘’
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