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5 अगस्त को आएगी अनुपम खेर की आत्मकथा, खुलेंगे कई राज

बौलीवुड अभिनेता अनुपम खेर सिर्फ अभिनेता ही नहीं है. वह एक्टिंग टीचर, मोटीवेशनल लेक्चरर और एक बेहतरीन लेखक भी हैं. उन्होने 2012 में एक किताब ‘‘द बेस्ट थिंग अबाउट यू इज यू’’ लिखी थी, जो कि पिछले छह साल से ‘बेस्ट सेलर’ बनी हुई है. 2018 में इसका 21वां संस्करण प्रकाशित हुआ था. इसका 22वां संस्करण छप रहा है. इसका छह भाषाओं में अनुवाद हो चुका है.

5 अगस्त को आएगी अनुपम की आत्मकथा…

अब अनुपम खेर ने स्वयं अपनी आत्मकथा लिखी है. जिसका नाम है- ‘‘लेसन लाइफ टौट मी अननोइंगली’’. इसके प्रकाशक हैं-पेंग्विन रैंडम हाउस. अनुपम खेर लिखित उनकी यह आत्मकथा वाली किताब 5 अगस्त को बाजार में आएगी. किताब के प्रकाशक ‘‘पेंग्विन रैंडम हाउस’’ के प्रवक्ता ने कहा है- ‘‘यह पुस्तक असाधारण, उत्साहवर्धक और ईमानदारी से बयां किए गए घटनाओं का दस्तावेज है.

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अनुपम ने किए हैं कई खुलासे…

इसमें अनुपम खेर ने कई खुलासे किए है. अनुपम खेर ने अपनी जिंदगी द्वारा सिखाए गए कुछ दुर्लभ तथ्यों को भी इसमें साझा किया है. यह सब किसी भव्य मसाला बाक्स आफिस हिट फिल्म से कम नहीं है.’’

क्लर्क के बेटे हैं अनुपम…

एक फारेस्ट विभाग के क्लर्क के बेटे अनुपम खेर अब तक सौ से अधिक नाटकों, 515 बौलीवुड फिल्मों के अलावा कुछ इंटरनेशनल फिल्मों में अभिनय कर चुके हैं. हाल ही में वह अमरीकन सीरीज ‘‘न्यू अम्सर्टडम’’ की शूटिंग करके लौटे हैं. जबकि उनकी एक इंटरनेशनल फिल्म ‘‘होटल मुंबई’’ जुलाई माह में रिलीज होने वाली है. इसके अलावा 5 जुलाई को उनकी एक ज्वलंत मुद्दे पर आधारित अशोक नंदा निर्देशित फिल्म ‘‘वन डे जस्टिस डिलिवर’’ रिलीज होने वाली है.

एडिट बाय- निशा राय…

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तो अब अद्वैत कोट्टारी ने ‘‘बीचम हाउस’’ के साथ अंतरराष्ट्रीय जगत में दी दस्तक

इन दिनों अंतरराष्ट्रीय सिनेमा में बौलीवुड से जुड़े कलाकारों को अपनी प्रतिभा को प्रदर्शित  करने के लिए बेहतरीन मौके मिलने लगे हैं. अब दस वर्षों तक रंगमंच, फिल्म व टीवी पर कार्यरत रहने के बाद  अभिनेता अद्वैत कोट्टारी ने ब्रिटेन में रह रही फिल्मकार गुरींदर चड्ढा के अंग्रेजी भाषा के ऐतिहासिक सीरियल ‘‘बीचम हाउस’’ में अभिनय कर अंतरराष्ट्रीय पटल पर अपनी उपस्थिति दर्ज कराने वाले कलाकार बन गए हैं. इसमें अद्वैत को टोम बेटमेन, लेसली निकोल जैसी कई ब्रिटिश कलाकारों के साथ काम करन का अवसर मिला है. इससे पहले अद्वैत दुबई में ‘ब्राडवे’’ पद्धति के भारतीय संगीत प्रधान शो ‘‘जान ए जिगर’’ में मुख्य भूमिका निभाने के साथ ही वेब सीरीज ‘‘फोर मोर शौट्स प्लीज’’ व ‘ईरोज नाउ’ पर प्रसारित वेब सीरीज ‘‘डेट गान रांग’’ में अभिनय कर चुके हैं. जबकि 15 अगस्त 2019 को प्रदर्शित होने वाली फिल्म ‘‘मंगल मिशन’’ में वह अक्षय कुमार के साथ नजर आएंगे.

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गुरींदर चड्ढा निर्देशित छह भागों वाले एैतिहासिक सीरियल ‘‘बीचम हाउस’’ का प्रीमियर यूके टीवी पर रवीवार, 23 जून को हुआ. जबकि इसका छठा एपीसोड 21 जुलाई को प्रसारित होगा. इसका फिल्मांकन अगस्त 2018 में शुरू हुआ था. इस सीरियल का फिल्मांकन भारत में दिल्ली व जयपुर में किया गया है.

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इस सीरियल की कहानी 1795 के भारत की है. 1795 में भारत पर कब्जे के लिए ब्रिटिश शासक, फ्रांस और अन्य भारतीय शासकों के बीच चलते सत्ता संघर्ष के बीच पकड़े गए अलानूर के प्रिंस सोहराब का किरदार अद्वैत कोट्टारी ने निभाया है. भारतीय इतिहास का यह अत्याधिक तनावपूर्ण अप्रत्याशित समय था.

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गुरींदर चड्ढा के निर्देशन में अभिनय करने के अनुभवों के बारे में एक अंग्रेजी अखबार से बात करते हुए अद्वैत कोट्टारी ने कहा है- ‘‘सही मायनों में यह अवास्तविक अनुभव था. इस तरह का काम करने का अवसर मिलना हर कलाकार के लिए सौभाग्य की बात होगी. गुरींदर मैम सेट पर कलाकार को खुलकर खेलने की पूरी आजादी देती हैं.’’

पिछले दस वर्षो से भारत में थिएटर /रंगमंच पर सक्रिय अद्वैत हर माध्यम पर अपनी प्रतिभा का प्रदर्षन करने के लिए तत्पर रहते हैं.उनके लिए रंगमंच पहला प्यार है.

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जानें, रितिक रोशन की बहन सुनैना के बायफ्रेंड ने क्या कहा?

रितिक रोशन की बहन सुनैना रोशन को लेकर खबर आ रही है, उनके पिता ने उन्हें एक मुस्लिम लड़के से प्यार करने के कारण शारीरिक रूप से प्रताड़ित किया है और उनके भाई  रितिक  अपना वादा पूरा नहीं कर रहे हैं, जिसमें उन्होंने कहा था कि वो उन्हें एक नया घर देंगे.

सुनैना रोशन के इस बयान के बाद अब उनके बौयफ्रेंड रूहेल अमीन ने मीडिया से बात की है और इस पूरे प्रकरण को दुखद बताया है. रूहेल अमीन के अनुसार, ‘जो चीज सामने आई हैं,  उससे एक बार फिर से हमारी लिबरल सोसायटी से पर्दा उठ गया है. यह बहुत ही दुखद है कि किसी इंसान को उसके धर्म के कारण गलत बता दिया जाता है,  इसकी कड़े शब्दों में आलोचना होनी चाहिए.

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रूहेल और सुनैना की मुलाकात पहली बार तब हुई थी, जब रूहेल एक डिजिटल पोर्टल के लिए काम करते थे. रूहेल के अनुसार, ‘हम लोग एक-दूसरे से अलग हो चुके थे लेकिन सोशल मीडिया के माध्यम से हम दोबारा मिले. सुनैना के घरवालों को हमारी दोस्ती पसंद नहीं है. मुझे सुनने में आया है कि सुनैना के परिवार ने उस पर कड़ी निगरानी रख रखी है.

रूहेल अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए कहते हैं कि, ‘किसी को केवल उसके धर्म के कारण आतंकी करार दे देना बहुत ही गलत है. धर्म और किसी के निवास स्थान के कारण उसके व्यक्तित्व का फैसला नहीं करना चाहिए. हमें इस मानसिकता से आगे बढ़ना होगा. सबसे बड़ी बात यह है कि हमें ऐसे विचारों के खिलाफ खुलकर बात करनी होगी. सुनैना अपनी जिंदगी को दोबारा शुरू करनी है और उसे अपने परिवार के सपोर्ट की जरूरत है.

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पाइलेट प्रोजेक्ट में भारी पड़ा शिक्षा मंत्री की जिला

प्राइमरी और अपर प्राइमरी स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चों को मिलने वाली ड्रेस की सप्लाई के लिये सरकार कोई स्पष्ठ नीति नहीं बना पाई है. हर साल इसको लेकर नीतियां बदलती है. जिनकी वजह से स्कूल की ड्रेस और जाड़ो में पहनने के लिये दी जाने वाली स्वेटर समय पर बच्चों को नहीं मिल पाती है. हर साल स्कूली ड्रेस की खरीद को लेकर नियम बदलते है.

नये सत्र में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की पहल पर नया बदलाव पाइलेट प्रोजेक्ट के रूप में प्रदेश के 4 के 6 ब्लाक में लागू हो रहा है. इनमें लखनऊ का मोहनलालगंज ब्लाक, सीतापुर का सिधौली ब्लाक, मिर्जापुर का छानवे ब्लाक है. उत्तर प्रदेश की बेसिक शिक्षामंत्री अनुपमा जायसवाल के गृह जनपद बहराइच जिले के 3 ब्लाक इसमें शामिल किये गये है. यह ब्लाक मटेरा, महसी और विश्वेश्वर गंज है. उत्तर प्रदेश में प्राइमरी और अपर प्राइमरी स्कूलों में पढने वाले करीब 1.75 करोड़ छात्र है. सरकार इन बच्चों को हर साल 2 सेट स्कूली ड्रेस उपलब्ध कराती है. हर सेट के लिये सरकार 300 रूपये का भुगतान करती है. अभी तक स्कूल के शिक्षक के द्वारा लोकल लेवल पर कोटेशन लेकर बच्चों को यूनिफार्म उपलब्ध कराते हैं. इस बार पाइलेट प्रोजेक्ट के रूप में 4 जिलों में चुने गये. ब्लाक में पढने वाले बच्चों को खादी की स्कूली ड्रेस उपलब्ध कराई जायेगी.

स्कूली ड्रेस के कपड़े में 67 फीसदी कौटन और 33 फीसदी पौलिस्टर मिक्स होगा. सरकार ने कहा है कि खादी के कपड़ों के लिये यूपी हैंडलूम का सहयोग लिया जा सकता है. इससे यूपी हैंडलूम को आर्थिक लाभ होगा. दूसरी तरफ यूपी हैंडलूम और यूपिका को खादी ग्रामोद्योग में विलय करने जा रही है.

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सवाल उठता है कि जब यूपी हैंडलूम को खादी ग्रामोद्योग मे विलय किया जा रहा है. तब वह कैसे स्कूल ड्रेस के लिये कपड़े दे पायेगा. ऐसे में समय से बच्चों को स्कूली ड्रेस नहीं मिल पायेगी. पिछड़े जाड़े के सीजन में स्वेटर वितरण को लेकर यही परेशानी आई थी. बच्चों को जाड़ा बीत जाने के बाद स्वेटर पहनने को मिला था. शिक्षा विभाग का दावा है कि पाइलेट प्रोजेक्ट में 15 हजार लोगों को रोजगार मिलेगा. अगले साल इसको 20 जिलों में लागू किया जायेगा जिससे 1.25 लाख लोगों को रोजगार मिलेगा. सुनने में यह बहुत अच्छा लग रहा है. हकीकत में इस बहाने स्कूली ड्रेस की कीमत बढ़ेगी. बच्चों को देर से स्कूली ड्रेस मिलेगी. स्कूली ड्रेस की सप्लाई में कमीशनबाजी की भी समस्या है.

अगर एक बार स्कूली ड्रेस के मानक तय हो जाये और उसके अनुरूप किसी सरकारी संस्था को स्कूली ड्रेस सप्लाई करने का ठेका दे दिया जाये. जिससे वह समय से बच्चों के लिये स्कूली ड्रेस तैयार कर सकती है. हर साल नये नये मानक बनाने से स्कूली ड्रेस की समय से सप्लाई नहीं हो पाती. बच्चों को पुरानी ड्रेस में ही स्कूल जाना पड़ता है. हर साल मानक बदलने सप्लाई में कमीशनबाजी का खेल बढ़ जाता है.

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मोदी गुफा बनी लग्जरी रूम

लोकसभा चुनाव परिणाम के पहले केदारनाथ धाम की जिस गुफा में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक दिवसीय साधना की थी. इसमे जाकर साधना करने के ख्वाहिशमंद लोगों की तादाद इतनी बढ़ती जा रही है कि उसे एक लग्जरी रूम बना दिया गया है. अब तक हालांकि कोई 25 श्रद्धालु ही इसमे गए हैं  लेकिन बढ़ती भीड़ देखकर गढ़वाल विकास निगम के महाप्रबंधक बीएल राणा ने इसकी आनलाइन बुकिंग शुरू करवा दी है. जिसे खासा रिस्पौंस भी मिल रहा है. बकौल राणा अभी तक कुल 20 लोग ही इस गुफा में रुके हैं लेकिन इस चुनाव को जिताऊ और पीएम बनाऊ गुफा की डिमांड इतनी बढ़ रही है कि हम और मोदी गुफाएं बनाने जा रहे हैं. लेकिन चूंकि यह पूरी तरह कृत्रिम गुफा नहीं है इसलिए दूसरी ऐसी गुफाएं बनाने में वक्त लगेगा.

अगर आप भी मोदी गुफा में रुककर पीएम न सही पार्षद या पंच सरपंच बनने साधना करना चाहते हैं तो इस मनोकामना की पूर्ति के लिए आपको महज 1500 रु अदा करने होंगे लेकिन नंबर कब आएगा यह अभी नहीं बताया जा सकता क्योंकि गुफा एक ही है और एक दिन में एक ही आदमी इसमें ठहर सकता है. 1500 रु देने पर आप एक दिन मोदी की तरह साधना के जरिया भोले को खुश कर सकते हैं. सहूलियत के लिए इस मोदी गुफा में जरूरी बुनियादी सहूलियतें मुहैया करा दी गईं हैं. गुफा के बाहर एक अटेंडेंट तैनात कर दिया गया है अगर आपको शंकर के दर्शन न होने के अलावा और किसी भी किस्म की दिक्कत या शिकायत होती है तो यह अटेंडेंटनुमा बैरा घंटी बजते ही सेवा में हाजिर हो जाएगा. जो आपको आपका पसंदीदा खाना नानवेज छोड़कर देगा और चाय नाश्ता लाकर भी देगा.

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मोदी गुफा वैदिक काल की गुफाओं जैसी दुर्गम न लगे इसलिए इसमें बिजली की व्यवस्था कर दी गई है. इतना ही नहीं आराम फरमाने गुफा में एक कमरा भी बनवा दिया गया है और आराम देह बिस्तर का भी इंतजाम कर दिया गया है. गोया की यह गुफा अब गुफा नहीं रह गई है बल्कि एक कमरे वाली होटल बन गई है. खासियत या शर्त यह भी है कि मोदी गुफा में एक बार में एक श्रद्धालु ही साधना कर सकता है.  यह डर वाजिब है कि एक से ज्यादा लोग होंगे तो साधना वासना में भी तब्दील हो सकती है. गढ़वाल विकास निगम आपके चेक इन और चेक आउट टाइम का निर्धारण करेगा.

लेकिन इस गुफा तक पहुंचना मोदी जी की तरह आसान नहीं है. इसके लिए आपको बुकिंग तारीख के दो दिन पहले गुप्तकाशी पहुंचना होगा जो कि केदारनाथ मंदिर का बेस केंप है. इसके बाद आप पैदल या फिर खीसे में पैसा हो तो हेलिकाप्टर से उड़कर गुफा तक पहुंच सकते हैं. यहां आपकी दूसरी बार चिकित्सीय जांच होगी पहली बेस केंप में हो चुकी होगी. बुकिंग की राशि अग्रिम देना होगी जो बुकिंग केंसिल कराने पर वापिस नहीं होगी. आम लोगों को मीडिया कर्मी ले जाने की इजाजत नहीं होगी.

एडवेंचर टूरिजम के शौकीनों के लिए यह एक बेहतर और हाल फिलहाल सस्ती पेशकश है. इससे दूसरा फायदा यह है कि भोलेनाथ अगर मोदी की तरह आप पर प्रसन्न हो गए तो पीएम न सही छुटभैया सियासी पद दिला ही देगा. गुफा की आन लाइन बुकिंग जारी है और लोग इसमें काफी दिलचस्पी ले रहे हैं जिसे देख कहा जा सकता है कि आपका हो न हो पर गुफा का भविष्य उज्ज्वल है और गढ़वाल विकास निगम की भी बल्ले बल्ले हो रही है.

यह बल्ले बाले और बढ़ेगी क्योंकि हमारे देश में सिद्ध और चमत्कारी स्थलों की भरमार है किसी कुंड या झरने में नहाने से चर्म रोग दूर होते हैं. भले ही उसमे पानी की जगह कीचड़ विराजमान हो लेकिन इससे आस्था डिगती नहीं है. किसी धार्मिक स्थल पर अर्जी देने से पाप को माफी मिलती है तो किसी खास जगह पर जाने से मनोरोगी ठीक हो जाते हैं.

अब एक नई गुफा तैयार है जो 18 मई के बाद हिट हुई है. लोगों को सत्यनारायन कथा की लीलावती और कलावती की तरह लग रहा है कि जैसे मोदी जी की पूरी हुई वैसे ही उनकी भी मनोकामना पूरी होगी. हैरानी नहीं होनी चाहिए अगर जल्द ही कोई विदद्वान ज्ञाता धार्मिक पोथे पत्रियों में से यह सच खंगाल कर ले आए कि दरअसल में मोदी गुफा का अपना अलग महात्म्य है. क्योंकि इसमे सतयुग या त्रेता युग में फलां ऋषि ने घोर तपस्या की थी जिसके फलस्वरूप शंकर को खुश होकर उसे मनचाहा वरदान देना पड़ा था और शंकर ने यह भी कहा था कि कलयुग में नरेंद्र मोदी नाम का एक धार्मिक शासक यहां आकर घनघोर तप करेगा जिसके प्रभाव से राक्षसी प्रवर्ति कांग्रेस 52 सीटों पर सिमट कर रह जाएगी.

दरअसल में गढ़वाल विकास मण्डल मोदी गुफा को लेकर कच्चा खा गया है जो इस रूम रूपी गुफा या गुफा रूपी रूम का किराया 15 हजार रु भी रखता तो और ज्यादा बुकिंग होतीं और फिर गोपनीय तरीके से राहुल गांधी भी धोती और जनेऊ लटकाते हुए यहां आते और पूरे साल भर की बुकिंग करा डालते. हां दिक्कत या फसाद तब खड़े होते जब भाजपा के उम्रदराज नेता यानि मार्गदर्शक या फिर मंत्रिमंडल के ही कुछ सदस्य इस चमत्कारी गुफा की बुकिंग कराते. तब मुमकिन है इस मोदी गुफा को भी भृतहरि की गुफाओं की तरह बंद कर दिया जाता और पांच साल में एक बार ही सिर्फ नरेंद्र मोदी के लिए ही खोला जाता वह भी लोकसभा चुनाव नतीजों के पांच दिन पहले.

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यूरोप, जैसा मैंने देखा…

यूरोप जाने का प्रोग्राम बना तो लगा जैसे एक सपना सच होने जा रहा है. मुंबई से मिलान साढ़े 12 घंटे की फ्लाइट में पहुंचे. 3 घंटे दुबई में रुकना था. यूरोप देखने का उत्साह इतना अधिक था कि लंबी फ्लाइट के बाद भी थकान बहुत ज्यादा महसूस नहीं हुई. यह हमारी 25 दिन की ट्रिप थी. हम ने कोई टूर का पैकेज नहीं लिया था. इंटरनैट की सुविधा का लाभ उठाते हुए सबकुछ खुद ही प्लान किया था. कहीं एयरबीएनबी बुक कर लिए थे, कहीं होटल.

मिलान में हम पहली बार किसी एयरबीएनबी में रुके. यह पर्यटकों के लिए एक अलग ही सुविधाजनक कौन्सैप्ट है. इस में आप को एक पूरा फर्निश्ड घर ही मिल जाता है. उस में आधुनिक सुविधाओं से युक्त किचन होता है जहां आप कुछ बनाना चाहें तो बना सकते हैं. मैं ने इस किचन में सिर्फ टोस्टर का ही प्रयोग किया क्योंकि शाकाहारी होने के कारण मेरे लिए वहां मिलने वाले ब्रेकफास्ट्स में औप्शंस कम ही रास आ रहे थे. एयरबीएनबी में वाशिंग मशीन, प्रैस करने जैसी सब सुविधाएं मिल जाती हैं.

मिलान में हम ने पहली चीज लेक कोमो देखी. बहुत ही खूबसूरत, दूरदूर तक फैली लेक के किनारे लाइन से कई रैस्तरां, खूबसूरत हरियाली से घिरे दृश्य मन को मोहित कर रहे थे. बोटिंग की सुविधा अच्छी थी. किनारेकिनारे बैठने के लिए बैंचें थीं. बेहद आधुनिक कपड़ों में बहुत खूबसूरत स्मार्ट लड़कियों से अलग ही चहलपहल थी. दुनिया से बेखबर, अपने में खोए, पब्लिक प्लेस में एकदूसरे को किस करते हुए कई जोड़े देख कर वहां के कल्चर का रोमांटिक ट्रेलर देखा.

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लेक पर हम ने पता कर लिया था कि हमारे गंतव्य तक जाने वाली आखिरी बस 10 बजे है. लेक घूमतेघूमते थक गए तो डिनर कर के बसस्टौप पर आ गए. भाषा की समस्या महसूस हो रही थी. उन्हें इंग्लिश नहीं आती थी, हमें इटैलियन. बस में बैठ तो गए, अपने स्टौप के बारे में पूछा तो पता नहीं चला. फिर तो परदेस में आज का सब से बड़ा सहारा गूगल मैप औन किया तो देखा अपना स्टौप तो कब का पीछे छूट गया. फौरन बस से उतरे. उस समय ट्रांसपोर्ट की सुविधा नहीं थी. अपने एयरबीएनबी की तरफ पैदल चलना शुरू किया. वहां से 2 किलोमीटर दूर था. थकान से बेहाल रात को चलतेचलते एयरबीएनबी पहुंचे. युवा बच्चों और हम पतिपत्नी ने एकमत से फैसला किया कि अब बसट्रेन में चढ़ते ही गूगल मैप औन कर लिया जाएगा.

फ्लोरैंस की खूबसूरती

अगली सुबह हम फ्लोरैंस चले गए. वहां उक्कीजी गैलरी माइकेल एंजिलो का काम देखा. दोमो कैथेड्रल गए, जिस में 465 सीढि़यां चढ़ कर ऊपर जाओ तो पूरा फ्लोरैंस दिखाई देता है. फ्लोरैंस सुंदर पुराना शहर है जो बहुत ही अच्छी तरह डिजाइन किया गया है. वहां छोटीछोटी गलियों के दोनों तरफ लगभग एकसी बड़ीबड़ी बिल्डिंग्स हैं जो हर कोने से देखने लायक हैं. यह इस शहर की अलग ही सुंदरता है. यहां हम ने अरनो नदी में कुछ देर बोटिंग भी की, पर पानी साफ नहीं था.

फ्लोरैंस में कई जगहें देखने लायक हैं. रात में सड़क के किनारे एक युवा हैंडसम, सूटेडबूटेड लड़का वायलिन बजा रहा था. उस के आगे रखे हैट में लोग कुछ पैसे रख कर चले जा रहे थे. वह बहुत ही अच्छा वायलिन बजा रहा था. हमारे कदम उस के पास आ कर खुद ही रुक गए थे.

फ्लोरैंस में एक रात को मजेदार किस्सा हुआ. मैं अपनी बेटी के साथ शौपिंग कर के लौट रही थी तो एक रैस्तरां का वेटर बाहर रखी टेबल ठीक करता हुआ हिंदी गाना गा रहा था. मेरे मुंह से निकल गया,

‘‘अरे, वाह, हिंदी…’’

वेटर हंस पड़ा, बोला, ‘‘हां, हम भी हिंदियंस.’’ हम हंसते हुए आगे बढ़ गए.

मुझे लग रहा था यहां भिखारी नहीं होंगे, लेकिन ऐसा नहीं है. उन के अंदाज अलग हैं. हम एक लाइन में लगे हुए थे. एक औरत आई जिस ने अपने पूरे शरीर पर सफेद पेंट लगाया हुआ था. वह एक युवा चाइनीज जोड़े के पास जा कर अपने साथ उन की फोटो खिंचवाने लगी.

वह जोड़ा उस के साथ कभी किस करता हुआ फोटो खिंचवाने लगा. उस के बाद वह महिला उन से पैसे मांगने लगी. युवा जोड़े ने मना किया तो वह गुस्सा होने लगी. आखिरकार वह कुछ पैसे ले कर ही वहां से हटी.

फ्लोरैंस से हमें नेपल्स जाना था. वहां हम ने एक दिन बे औफ नेपल्स का बोट ट्रिप लिया जो 6 घंटे का था. इसे पर्सनली हायर कर लिया जाता है जिस में नाश्ता, जूस, कोल्ड डिं्रक्स, लंच सर्व किया जाता है. हमारी यह बोट ट्रिप बहुत अच्छी रही. बोट के मालिक युवा दंपती लूका और ग्रेबिएला बहुत फ्रैंडली थे. दोनों बारीबारी से बोट का इंजन संभाल रहे थे. वे हमारे साथ बैठ कर बातें करते रहे. ये दोनों यूएस से आए हुए थे. उन्हें इंग्लिश आती थी तो सफर रोचक रहा.

लूका अपनी मां के हाथ का बना पास्ता और मसाला पोटैटो बनवा कर लाया था. वह अपनी मां के हाथ के खाने का बहुत प्रशंसक था. हम ने भी होमकुक्ड खाने की तारीफ की तो उस ने फौरन खुश हो कर अपनी मां को फोन पर बताया कि क्लायंट्स को आप का खाना अच्छा लगा. तो उस की मां ने हमें थैंक्स कहा.

इस बोट टूर पर बहुत कुछ देखने को मिला. बहुत सारे सीगल बोट के आसपास तैर रहे थे. लूका ने बताया, ‘‘अगर आप के हाथ में सैंडविच होता तो ये झपट्टा मार कर ले जाते. ये सैंडविच नहीं छोड़ते.’’ यहां बच्चों को बहुत मजा आया, लूका ने समुद्र में जो जगह सेफ बताई, हमारे बच्चे अपने स्विमिंग कौस्ट्यूम्स पहन कर समुद्र में कूद गए. उन्होंने खूब स्विमिंग की, हम ने उन की वीडियो बनाई.

बेहद खूबसूरत व साफ पानी था. वे तैरते हुए थक गए तो फिर बोट पर आए. सुरक्षित जगह, खूबसूरत नजारों के साथ 6 घंटे कब बीत गए, पता ही नहीं चला.

बेमिसाल आइलैंड

अगले दिन हम कैप्री गए. यह एक आइलैंड है. यहां भी बोट से जाना था. यहां की खूबसूरती शब्दों में बयां करना मुश्किल ही है. यहां बोट में हमारे साथ और लोग भी थे.

समुद्र में जगहजगह प्राकृतिक रूप से बनी गुफाएं हैं जिन की बनावट बेहद दिलचस्प है. 3 गुफाओं को फैरागिलियोनी कहा जाता है. इन गुफाओं के निचले हिस्से पर पानी रंगबिरंगा सा दिखता है. क्योंकि यहां लाइमस्टोन फौर्मेशन होता है. कभी यहां चीते, हाइना और जंगली जानवर भी हुआ करते थे. यहां नारंगी, ब्लू कलर का क्रिस्टल फौर्मेशन होता है. ये गुफाएं 200 मिलियन साल पुरानी हैं. यह सब जानकारी बोट का इंजन संभालने वाला देता रहता है.

नेपल्स से हम रोम गए. वैटिकन म्यूजियम का बहुत नाम सुना था. इंटरनैट से पता चल ही गया था कि टिकट के लिए हजारों की लाइन रहती है. ऐसे में हम ने हर जगह ‘स्किप द लाइन’ का औप्शन ही प्रयोग किया था. यह सुविधाजनक रहा.

अद्भुत कला का भंडार

वैटिकन सिटी यूरोप महाद्वीप में स्थित दुनिया का सब से छोटा देश है. यहां वैटिकन म्यूजियम, सिसटीन चैपल, सेंट पीटर्स बेसिलिका सब से लोकप्रिय पर्यटन स्थल हैं. साल में लगभग 40 लाख पर्यटक यहां आते हैं. म्यूजियम में बहुत ही अद्भुत मूर्तियां हैं. सुंदर पेंटिंग्स से सजी दीवारें अद्भुत कला का भंडार हैं. पर्यटक सोचने पर मजबूर हो जाते हैं कि छतों पर इतना सुंदर, महीन, आकर्षक  रंगों से सजा काम कैसे किया गया होगा.

हर तरफ अद्वितीय मूर्तियां हैं. जिन के चेहरों के भाव, शरीर की भावभंगिमा देखते ही बनती है. पुनर्जागरण काल के कलाकारों ने न्यूड फिगर्स बहुत बनाई हैं. चूंकि ड्राइंग ऐंड पेंटिंग मेरा विषय रहा है, इन पेंटिंग्स को अपनी आंखों से देखना मेरे लिए किसी सपने का सच होने जैसा ही था. इन पेंटिंग्स में जानवरों को कई मुद्राओं में चित्रित किया गया है. यहां पूरा दिन ही बीत जाता है, पता ही नहीं चलता.

अगले दिन कोलोसियम का गाइड टूर लिया. इस स्टेडियम को स्पोर्ट्स के लिए डिजाइन किया गया था. यहां लगभग 5,000 दर्शक साथ बैठ कर तलवारबाजों और जंगली जानवरों की लड़ाई देख सकते हैं. यह दुनिया के बेहतरीन अखाड़ों में से एक है. हालांकि भूकंप से इस के काफी भाग को हानि पहुंची है पर अब भी इसे देखने के लिए लोगों की भारी भीड़ रहती है.

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हमारे गाइड फाबियो ने बताया कि वह बैंक में काम करता है. उसे अपनी सभ्यता और अपने शहर के इतिहास पर इतना गर्व है कि वह शौक में गाइड का काम करता है. उसे पर्यटकों को इस स्टेडियम का इतिहास बताना अच्छा लगता है. उस ने बताया कि रोम लजानिया की तरह है क्योंकि जब खुदाई हुई तो एक तह के अंदर शहर की दूसरी तह निकलती चली गई. यहां रोमन फोरम और पैलेटाइन हिल्स हैं, रोमन साम्राज्य के खंडहर हैं. वर्जिन्स सिस्टर्स का एक अलग महल होता था जहां उन की हर सुविधा का ध्यान रखा जाता था. वहां कुछ कुंआरी लड़कियों को रखा जाता था.

अपने में मस्त लोग

अगले दिन हम फ्लाइट से पेरिस चले गए. दिन में कुछ आराम कर के रात को सेन नदी के किनारे घूमने गए. वहां लोग घास पर बैठ कर रिलैक्स कर रहे थे. कोई वायलिन बजा रहा था, कहीं कोई गा रहा था. लोग घेरा बना कर गानेबजाने वालों को प्रोत्साहित कर रहे थे. कुछ खड़ेखड़े डांस कर रहे थे. करीब 70 वर्षीया एक महिला पहले तो एक पत्थर पर बैठेबैठे डांस कर रही थी, फिर वह खड़े हो कर संगीत में डूबी हुई सी डांस करने लगी. हमें गाने के बोल तो समझ नहीं आ रहे थे, पर संगीत बहुत कर्णप्रिय था. वहां से हटने का मन ही नहीं हो रहा था. गातेबजातेनाचते अपने में मस्त लोग, सबकुछ बहुत जादुई था.

हम ने डिनर किया. हर शहर की तरह यहां भी आइसक्रीम खाई. हर जगह लगभग आइसक्रीम 10-12 यूरो की ही थी. थक गए तो टैक्सी से होटल आए.

टैक्सी से आनाजाना वहां काफी महंगा पड़ता है. एयरपोर्ट से पेरिस शहर के लिए लगभग 50 यूरो लग जाते हैं. जहां भी हम घूमते हुए थक जाते थे, टैक्सी ही लेना आरामदायक लग रहा था क्योंकि फिर स्टेशन तक जाने में पैदल चलतेचलते काफी थकान होती थी. वैसे, वहां ट्रेन, बस में सफर करना बहुत अच्छा रहा. इस ट्रिप में पैदल चलना बहुत हुआ. किसीकिसी दिन तो हम लगभग 11 किलोमीटर भी चले.

अगले दिन एफिल टावर देखा. यह 324 मीटर ऊंचा है. इसे गुस्ताव एफिल ने बनवाया था. उस की कंपनी ने ही यह टावर डिजाइन किया था. रात में लाइट में यह बहुत सुंदर दिखता है. पेरिस में लूव्रे म्यूजियम भी देखा. यह विश्व के सब से प्रसिद्ध संग्रहालयों में से एक है. लूवे्र का पिरामिड पेरिस का मशहूर दर्शनीय स्थल है. यहां 35 हजार से ज्यादा पेंटिंग्स, मूर्तियां हैं. यहां लियोनार्दो द विंची की मोनालिसा शायद विश्व की सब से प्रसिद्ध पेंटिंग है. माइकेल एंजिलो का बनाया 2.15 मीटर ऊंचा स्टैच्यू उन की महान कृतियों में से एक है.

दुनिया का सब से बड़ा आर्ट संग्रहालय लूव्रे पेरिस का सैंट्रल लैंडमार्क है. संत मिशेल नौत्रेदाम चर्च देखा, वहां बाहर ही कई संगीतकार फ्रीलांस परफौर्मैंस देते रहते हैं. सर्कल के आसपास बहुत पुराने बने कई बुकस्टोर्स हैं, कैफे हैं जहां लोग बुक खरीद कर आराम से बैठ कर देर तक पढ़ते रहते हैं.

पेरिस से हम बर्न जा कर एक रात रुके. यह स्विट्जरलैंड की राजधानी है. यहां पार्लियामैंट हाउस देखा. बर्न में हमें बेहद स्वादिष्ठ इंडियन खाना मिला. एक इंडियन का ही रैस्तरां था.

यहां करीब 200 साल पुरानी बिल्ंिडग्स अब भी बहुत मजबूत और अच्छी स्थिति में हैं. यहां आरे नदी स्विस एल्प्स से आती है. उस के बाद हम ल्यूसर्न चले गए, बर्न से ल्यूसर्न ट्रेन से एक घंटा लगा. फिर वहां माउंट टिटलिस देखा, जहां ट्रौली से गए.

इस साल काफी सालों बाद यूरोप में गरमी थी. कारण, वही चिंताजनक, ग्लोबल वार्मिंग. वहां काफी प्रयत्नों के साथ बर्फ का इंसुलेशन किया गया है जिस से बर्फ कम पिघले. बर्फ से ढके रहने वाले पहाड़ों पर बर्फ कहींकहीं ही थी. पर जहां भी थी, खूबसूरत नजारे थे. वहां मैं ने देखा कई पतिपत्नी के साथ व्हीलचेयर पर उन के मातापिता भी थे. उन्हें उत्सुकता से आनंद लेते देखना बहुत अच्छा लगा. वहां टौप पर शाहरुख और काजोल का ‘दिल वाले दुलहनिया ले जाएंगे’ मूवी वाला कटआउट भी रखा है. उस के साथ लोग फोटा खिंचवा रहे थे.

हम ने स्विस पास बनवा लिया था. इस से हमें हर जगह आनेजाने में सुविधा रही. इंटरलेकन हम 2 रात रुके. यह जगह मुझे पूरे ट्रिप की सब से खूबसूरत जगह लगी. हर जगह हरियाली और सामने ही पहाड़, सुबह उन पर चमकती चांदी सी धूप, शाम को मनमोहक बादल, बेहद हसीन मौसम, सुंदर गार्डन्स, बैठने की हर जगह पर समुचित व्यवस्था. यहां एक गार्डन में यश चोपड़ा का स्टैच्यू भी है.

यहीं से एक दिन हम हार्डरक्लूम गए. उस के लिए फ्यूनिकुलर ली. यह हम सभी का पहला अनुभव था. वहां ऊपर जा कर बें्रज और थुन नदी का संगम दिखता है. इंटरलेकन में रैस्तरां बहुत अच्छे थे. वहां का खाना बहुत स्वादिष्ठ था.

फिर हम ज्यूरिक चले गए. यह महंगा शहर है. कहीं कोई परेशानी नहीं, अशिष्टता नहीं. यहां भी हम ने डेढ़ घंटे बोटिंग की.

सोच अच्छी

यूरोप में हर जगह एक सिविक सैंस देखने को मिला. बस ट्रेन में चढ़तेउतरते लोगों का शिष्टाचार, चेहरों पर सौम्य मुसकराहट, कोई कुछ भी पहने किसी को मतलब नहीं. और कुछ बातें जिन पर मेरा खास ध्यान गया, वे हैं हर उम्र की महिला के हाथपैरों के नाखून बहुत ही सुंदर, अच्छी तरह मैनीक्योर, पैडिक्योर किए हुए, नेलपेंट्स बहुत आकर्षक. करीब 80 साल की स्त्री को भी साइकिल पर घर का सामान ले जाते देखा. उन की फिटनैस देख कर मन बहुत खुश हुआ.

मैं ने वहां के लोगों को अपने देश से ज्यादा बुक्स पढ़ते हुए देखा. वहां के लोग ट्रेन में, कैफे में, बसों में बुक्स पढ़ते दिखे. गार्डन्स में रखी चेयर्स पर लोग बुक्स पढ़ कर ही रिलैक्स कर रहे थे. हर जगह बुक्स पढ़ते हुए लोगों को देखना मेरे लिए सुखद अनुभव था. वहां साफसुथरे, पैम्पर्ड कुत्ते बहुत देखे, हर जगह लोग उन्हें साथ रखते हैं, ट्रेन, टैक्सी सब जगह. और वे इतने वैलमैनर्ड थे कि न किसी पर झपटना, न भूंकना. इतनी नस्लों के कुत्ते कभी नहीं देखे थे.

यूरोप में नजरें मिलते ही सब स्माइल कर देते हैं. अजनबी भी अपनी भाषा में अभिवादन करते हुए आगे बढ़ जाते हैं. वहां अचानक दिल में खयाल आया कि हमारे देश में अकारण ही किसी को देख कर कोई मुसकरा दे या यों ही ‘हैलो’ बोल दे तो क्याक्या समझ लिया जाएगा, आप अंदाजा लगा ही सकते हैं. सोच का बहुत फर्क  है जो साफसाफ महसूस हुआ.

पूरी ट्रिप में सब से ज्यादा सुविधा गूगल मैप से मिली. टैक्नोलौजी का सब से ज्यादा लाभ इस सुविधा से ही रहा. यूरोप की संस्कृतिसभ्यता के यादगार पलों की, वहां बिताए अविस्मरणीय समय की स्मृतियां लिए हम भारत लौट आए.

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फैसला

रजनी ने थोड़ी सी अनिश्चितता की हालत में फुलवारी रैस्तरां में प्रवेश किया, उन के हाथ पसीने से भीगे हुए थे. उन्हें घबराहट हो रही थी पर फिर भी बिस्कुटी रंग की साड़ी और लाल ब्लाउज में वे बहुत ही संजीदा और गरिमामय लग रही थीं.

राजीव ने कौर्नर वाली टेबल से हाथ हिलाया तो रजनी तेज कदमों से उस दिशा में चली गईं. राजीव हंस कर बोले, ‘‘मुझे लगा था आप नहीं आएंगी, पर फिर भी एक घंटे से यहां बैठ कर चाय का आनंद ले रहा हूं.’’

रजनी ने धीमी आवाज में कहा, ‘‘नहीं, आना तो था पर थोड़ी सी अनिश्चितता थी.’’

वेटर और्डर ले कर चला गया तो राजीव बोले, ‘‘रजनी, मेरे प्रस्ताव के बारे में क्या सोचा.’’

रजनी थोड़ा सा झिझकते हुए बोलीं, ‘‘बहुत दुविधा में हूं.’’

राजीव मुसकराते हुए बोले, ‘‘अपने बारे में कब सोचोगी, हमारी जिंदगी हमारी अपनी है, कब तक दूसरों के बारे में सोचती रहोगी?’’

इस से पहले वे कुछ और बोलते, एक कर्कश महिला की आवाज ने उन की बातचीत को कहीं दबा दिया, ‘‘देखा तुम ने, मम्मी इस उम्र में क्या गुल खिला रही हैं?’’

यह रजनी की बहू वंदना की आवाज थी.

रजनी का पुत्र आलोक अपनी मां को आग्नेय नेत्रों से घूरता हुआ बोला, ‘‘मम्मी, आप को क्या हो गया है, क्यों अपना बुढ़ापा खराब कर रही हो, हमारा नहीं, तो कम से कम दीया के बारे में तो सोचा होता, कौन उस का हाथ थामेगा?’’

इस से पहले वंदना कोई और तीर चुभोती, रजनी किसी अपराधिन की तरह सिर नीचा किए जाने लगी. राजीव बरबस बोल उठे, ‘‘रुको रजनी, तुम क्यों ऐसे जा रही हो?’’

उन्होंने आलोक और वंदना से शांत स्वर में कहा, ‘‘आप दोनों शांति से बैठ कर भी तो बात कर सकते हैं?’’

वंदना फिर तेज स्वर में बोली, ‘‘आप की बहन, बेटी या मां अगर ऐसे काम करेगी तो आप को पता चलेगा.’’

राजीव अपना आपा खो बैठे, ‘‘क्या किया है रजनी ने, सिवा अपना सुखदुख बांटने के?’’

बहुत सारे लोगों की उत्सुक नजरें उन की टेबल की तरफ ही उठ रही थीं.

वंदना फिर भी डटी रही, ‘‘हां, हम तो दुश्मन हैं. आप ही हो सबकुछ. पता नहीं हम क्या जवाब देंगे अपने घरपरिवार को. तभी तो सोचूं, रोज घंटोंघंटों कौन सी वाकिंग हो रही है. सोच कर भी शर्म आती है, अनिता दीदी क्या कहेंगी अपने पति और सासससुर से कि उन की मम्मी इस उम्र में रासलीला रचा रही हैं.’’

रजनी आंखों में आंसू लिए रैस्तरां से बाहर आ गईं. राजीव ने आलोक को गुस्से से देख कर कहा, ‘‘पब्लिक में तमाशा करने से बेहतर था, हम शांति से बात करते. मेरा और रजनी का फैसला अटल है, हम दोनों कुछ ऐसा नहीं कर रहे हैं जिस से किसी को कोई शर्मिंदगी हो.’’

आलोक ने बेशर्मी से कहा, ‘‘मम्मी के नाम शामली में जो जमीन है, वह किस की होगी शादी के बाद?’’

राजीव बोले, ‘‘जैसा रजनी चाहेंगी.’’

वंदना बोली, ‘‘वाह, करोड़ों की संपत्ति हम ऐसे ही नहीं रासलीला में जाने देंगे, हम कोर्ट जाएंगे.’’

रजनी एक झील की तरह शांत 65 वर्षीय महिला थीं. जितना भी जीवन उन्हें मिला था, उसी में संतुष्ट रहती थीं. यह अलग बात है कि इस कारण कभीकभी वे खुद ही विचलित हो जाती थीं. कुछ समय पहले राजीव नामक कंकर ने उन के जीवन में उथलपुथल मचा दी थी. राजीव उन की जिंदगी की शाम को कुछ इंद्रधनुषी रंगों से सजाना चाहते थे, वे एक विशाल सागर की तरह थे.

रजनी अपने बेटे आलोक के पास आने से पहले शामली में रहती थीं जो न तो पूरी तरह कस्बा था न ही वहां पर महानगर की आजादी थी. वहां पर जब वे शादी कर के आई थीं तो 20 वर्ष की थीं. उन्हें पढ़नेलिखने का बहुत शौक था. पर घर की जिम्मेदारियों में वे कभी भी सिर नहीं उठा पाईं. पहले आलोक का जन्म हुआ, फिर अनिता का. फिर तो उन के सारे शौक बच्चों के शौक में ही ढल गए. सासससुर के साथ रहने के कारण घर पर रिश्तेदारों का आनाजाना लगा ही रहता था. पर रजनी ने कभी किसी को शिकायत का मौका नहीं दिया.

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रजनी बहुत ही सुघड़ महिला थीं. अचार, पापड़, बडि़यां सब घर पर ही बनाती थीं. रजनी के पति सुरेश वहीं पर स्थित एक गन्ना मिल में मैनेजर थे. अपना मकान था और रजनी की सुघड़ता के कारण बिना किसी दिक्कत के खर्च चल जाता था. आलोक पढ़लिख कर, शादी के बाद बेंगलुरु में बस गया. एकएक कर के सासससुर अपनी पूरी उम्र कर के चले गए. फिर दोनों मियांबीवी रह गए. फिर अचानक एक दिन सुरेश भी रजनी को रोतेबिलखते छोड़ कर चले गए. आलोक मां को वहां पर अकेले नहीं छोड़ना चाहता था. पर रजनी अपने घर को छोड़ना नहीं चाहती थीं. वहां पर उन के जीवन की खट्टीमीठी यादें बसी हुई थीं.

पासपड़ोस की बहूबेटियों और भाभियों के साथ वे अकेले हो कर भी अकेली नहीं थीं. पर फिर 3 वर्षों बाद उन को अपना घर बेचना पड़ा क्योंकि आलोक बेंगलुरु में अपना फ्लैट लेना चाहता था. घर बेच कर रजनी ने उस राशि के 3 हिस्से कर दिए, एक बेटी को, एक अपने पास रखा और एक हिस्सा आलोक को दे दिया. उस के बाद वे शामली में ही अपने लिए एक छोटा घर देखने लगीं. पर आलोक के कुछ और ही प्लान थे. वह मां को अपने साथ बेंगलुरु ले कर आ गया.

3 कमरों के फ्लैट में रजनी का दम घुटता था. उस का मन अपने शामली के घर के लिए छटपटाने लगा. सबकुछ नया और अनजाना था, या तो लोग इंग्लिश बोलते या वहीं की टूटीफूटी हिंदी, अपने यहां की खड़ी हिंदी के लिए वे तरस गईं. लिफ्ट में आनेजाने से उन को बहुत डर लगता था. वह तो दीया ही थी जिस में उन्हें अपनापन लगता था. उन की दुनिया दीया के कमरे तक सिमट गई. दीया जब तक स्कूल से न आती, वे सहमी, सकुची एक कोने में बैठी रहतीं. दीया भी 2 साल बाद 12वीं पास कर के इंजीनियरिंग के लिए पुणे चली गई. उस के कालेज की ऐडमिशन फीस का आधा खर्च रजनी ने अपनी बचत से ही दिया था.

बहू के साथ रजनी की अनबन नहीं थी, पर रिश्ते में एक ठंडापन था. जब भी उन की पोती दीया अपनी छुट्टियां खत्म कर के वापस होस्टल जाती, उन्हें बहुत अकेलापन लगता था. दीया के आ जाने से उन्हें बड़ा अपनापन लगता था. वह रजनी को ले कर मौल, सिनेमाहौल और न जाने कहांकहां जाती. दोनों दादीपोती दिनदिनभर गायब रहतीं. जब दिन ढले वापस आतीं तो बहुत बार तो बहू वंदना ताना भी दे देती, ‘मांजी, आप के जोड़ों का दर्द कैसा है आजकल?’

आलोक भी कभीकभी झुंझला कर बोल देता, ‘मम्मी, अब तो आप दिन को दिन और रात को रात नहीं समझ रही हो. पर दीया के जाने के बाद यह मुझे और वंदना को बहुत भारी पड़ने वाला है.’ रजनी खूब समझती थी कि उन के बेटे के कान किस ने भरे हैं पर वे क्या करें, उन्हें तो अपने जिंदा होने का एहसास ही दीया की मौजूदगी कराती थी.

ऐसा नहीं था कि रजनी के बेटेबहू उन के साथ बुरा बरताव करते थे या उन को किसी प्रकार की समस्या थी पर रजनी उन की जिंदगी के किसी कोने में फिट नहीं बैठती थीं. रजनी को हर समय यह एहसास होता था कि वे एक फालतू सामान हैं जिन का कोई काम नहीं है. रसोई में भी ऐसेऐसे उपकरण थे जो उन्होंने अपनी कसबाई रसोई में कभी प्रयोग नहीं किए थे.

दीया ने ही पहल कर के उन्हें मोबाइल से परिचित कराया. उस छोटे से यंत्र को सीखने में उन्हें ज्यादा समय नहीं लगा और वे रोज नियम से अपनी पोती और बेटी से बात करने लगीं. मन थोड़ा हलका हो जाता था. फिर वे धीरेधीरे लिफ्ट का भी प्रयोग करना सीख गईं. इस से उन्हें ऐसी स्वतंत्रता का आभास होता था जैसे पिंजरे में कैद पक्षी को थोड़ी देर पिंजरे से बाहर होने पर अनुभव होता है.

अब वे रोज नियम से सुबह और शाम की सैर को जाने लगीं. उन्हें अब अपने शरीर में स्फूर्ति महसूस होने लगी. दिनचर्या बनी तो वे बहू की रोकटोक के बावजूद छोटेछोटे कार्य जैसे डस्ंिटग इत्यादि करने लगीं. इस से उन की बहू को भी मदद मिल जाती और बहू की कार्यशैली में भी खलल नहीं पड़ता था.एक सुबह वे चलतेचलते थोड़ा थकान का अनुभव कर रही थीं,

तो पार्क की बैंच पर बैठ कर सुस्ताने लगीं. तभी उन्हें लगा कोई उन के बराबर में बैठ गया. उन्होंने कनखियों से देखा, एक उन की हमउम्र सज्जन बैठे हैं. रजनी को बातचीत में पहल करने में बहुत दिक्कत होती थी, इसलिए वे थोड़ा सा अचकचा गईं. जैसे ही वे उठने लगीं, वे सज्जन बोले, ‘अरे, आप बैठी रहें, आप को रोज सुबहशाम सैर करते हुए देखता हूं, इसलिए आप को ऐसा बैठा देख कर ठिठक गया.’

रजनी सकुचाती हुई बोली, ‘नहीं, बस यों ही थकान महसूस हो रही थी.’

वे सज्जन बोले, ‘मेरा नाम राजीव है. आप को देख कर ऐसा लगा, आप अपने ही इलाके की हैं. आप क्या मेरठ से हैं?’

रजनी बोली, ‘जी, शामली से हूं. यहां अपने बेटेबहू के साथ रहती हूं.’

राजीव बोले, ‘मैं तो अकेला रहता हूं. मेरे तो बेटा और बेटी दोनों ही विदेश में रहते हैं. आप को मैं बहुत दिनों से घूमते हुए देख रहा था पर आप इतनी खोईखोई रहती हैं कि पूछने की हिम्मत न हुई कि कहीं आप गलत न समझ बैठें.’

रजनी हंस पड़ी और राजीव रजनी की हंसी से अपनी कुछ पुरानी यादों में खो गए. उन की एक पुरानी सहपाठी थी कालेज की जिसे वे मन ही मन बहुत पसंद करते थे. पर इस से पहले वे कुछ कह पाते, उस की शादी हो गई थी. न जाने क्यों रजनी को देख कर उन्हें उस की याद आ जाती थी, इसलिए उन से बात करने से वे खुद को नहीं रोक पाए. वे दोनों 10 मिनट तक बैठे रहे और इधरउधर की बातें करते रहे.

आज जब रजनी वापस घर आईं तो न जाने क्यों उन का मन बड़ा खुश था. ऐसा कुछ भी नहीं था पर अपने हमउम्र साथी के साथ की बात ही कुछ और होती है. फिर तो यह रोज का नियम हो गया. दोनों साथसाथ घूमते और अपनेअपने घर की ओर चल पड़ते. अब रजनी अपने रखरखाव पर पहले से ज्यादा ध्यान रखती थी. स्त्री चाहे 60 वर्ष की हो या 16 साल की, पुरुष की प्रशंसाभरी निगाहों को वह तुरंत पहचान लेती है.

एक दिन घूमते हुए राजीव ने रजनी से मजाक में कहा, ‘रजनीजी, आज मैं आप के घर चलूंगा, आप के बेटे और बहू से मिलने.’

पर रजनी के चेहरे का रंग बदल गया. यह राजीव से छिपा न रह सका, इसलिए उन्होंने दोबारा यह प्रसंग न छेड़ा. राजीव को रजनी का साथ बहुत भाता था. उन्हें वे बेहद ही सुलझी हुई लगती थीं. पर रजनी ने अपने चारों ओर उम्र, समाज और रिवाजों का दायरा बना रखा था जो राजीव पार नहीं कर पा रहे थे.

राजीव ने मेरठ शहर करीब 40 साल पहले छोड़ दिया था. वे बरसों से यहीं रह रहे थे, इसलिए उन की सोच काफी अलग थी. 4 वर्षों पहले पत्नी के देहांत के बाद वे अकेले रह गए थे. उन के बेटेबेटी विदेश में रहते थे. संतानों की इच्छा थी कि वे भी वहीं आ जाएं पर जब राजीव ने मना कर दिया तो उन्होंने राजीव से यह कहा कि दोबारा विवाह कर लें. राजीव ने इसे हंसी में उड़ा दिया, पर रजनी को देख कर उन में दोबारा से यह इच्छा जागृत हो गई.

उन के दिल में रजनी के लिए एक एहसास था जिस में वासना नहीं थी पर था एक ऐसा लगाव और खिंचाव जिस के कारण उन्हें दोबारा से जीने की ललक पैदा हो गई थी. बहुत बार उन्हें अपना ही व्यवहार अनजाना लगता पर वे चाह कर भी खुद को रोक नहीं पा रहे थे. उन का बहुत मन था रजनी को अपने घर लाने का, पर वे जानते थे कि रजनी कोई न कोई बहाना बना लेगी. उन्हें मालूम था, वे दोनों उस पीढ़ी के हैं जहां पर महिलाएं अपनी इच्छाओं को कभी जाहिर नहीं करतीं.

आज दूर से ही उन्होंने रजनी को देखा तो देखते ही रह गए. आज रजनी ने ग्रे और काले रंग का पजामाकुरता पहना हुआ था जो उन के गेहुएं रंग पर बहुत फब रहा था. जैसे ही रजनी करीब आईं तो बरबस उन के मुख से निकल गया, ‘आज उम्र के 10 साल कहां छोड़ आई हो?’

रजनी झेंप गई, बोली, ‘दीया ने जन्मदिन पर तोहफा दिया है, तो बच्ची का दिल रखने के लिए आज पहन लिया.’

राजीव बोले, ‘वाह, पोती आई हुई है. गुडि़या से मिलने मैं आज जरूर आऊंगा.’

इस से पहले रजनी कुछ बोल पातीं, तभी न जाने कहां से दीया आ गई और बोली, ‘जरूर अंकल, शाम को मैं दादी के लिए केक भी ला रही हूं.’

रजनी अजीब धर्मसंकट में थीं. उन्हें समझ नहीं आ रहा था कि वे क्या करें. लिफ्ट में उन्होंने दीया से शिकायती लहजे से बोला, ‘दीया, क्या जरूरत थी, राजीवजी को बुलाने की?’

दीया बेबाक अंदाज में बोली, ‘क्योंकि वे आप के मित्र हैं और आप मम्मीपापा की मां हो, वो आप के मम्मीपापा नहीं हैं.’

शाम को रजनी का दिल बहुत तेजी से धड़क रहा था यह सोचसोच कर कि आलोक और वंदना क्या सोचेंगे. दीया ने जबरदस्ती उन्हें कांजीवरम सिल्क की पिस्ता रंग की साड़ी पहनाई और मोतियों का एक सैट भी पहना दिया. वंदना ने मुसकरा कर कहा, ‘दीया, तू तो दादी को दुलहन की तरह सजा रही है.’ यह सुन कर रजनी कट कर रह गई.

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शाम को 5 बजे घंटी बजी, राजीव जी खड़े थे हाथों में सफेद फूलों का गुलदस्ता लिए हुए, साथ में था एक चौकलेट का बौक्स जो उन्होंने बड़े प्यार से दीया को थमा दिया. सभी लोग कुछ देर तक चुप बैठे रहे. फिर राजीव ने ही बातचीत की पहल की और देखते ही देखते राजीव और आलोक में कार्य संबंधी बहुत सारी बातें मिल गईं. जब राजीव रात का खाना खा कर बाहर की तरफ निकले तो सब से काफी घुलमिल चुके थे.

बहू वंदना ने आलोक से मुखातिब हो कर पूछा, ‘आलोक, तुम तो बोलते थे, मम्मी की शामली में भी कोई मित्र नहीं हैं पर मम्मी तो बेंगलुरु के रंग में बड़ी जल्दी रंग गईं.’

रजनी इस से पहले कुछ बोलती, दीया बोली, ‘मम्मी, इस में क्या गलत है?’ आलोक ने भी अपनी चुप्पी से दीया को मूक समर्थन दिया. पर वंदना की बात के बाद रजनी ने खुद ही अपने घूमने का समय बदल दिया.

एकदो दिनों तक तो राजीव ने कोई ध्यान न दिया पर तीसरे दिन उन का माथा ठनका और उन्होंने रजनी को उन के  मोबाइल पर कौल कर दिया. रजनी ने फोन उठाया तो राजीव चिंतित स्वर में बोले, ‘क्या हुआ, आप की तबीयत तो ठीक है?’

रजनी ने रूखे स्वर में उत्तर दिया, ‘जी, पर आप ऐसा क्यों पूछ रहे हैं, मेरा आप से कोई अनुबंध थोड़े ही है कि मैं और आप एकसाथ सैर करेंगे?’

राजीव ने हंस कर कहा, ‘कृपया अन्यथा न लें, एक मित्र के नाते पूछ रहा हूं.’

दीया उसी कमरे में थी जो रजनी से बोली, ‘दादी, यह गलत बात है. राजीव अंकल बहुत अच्छे हैं.’

रजनी बोली, ‘बिट्टो, समाज के कुछ नियम हैं जो हम औरतों को निभाने ही पड़ते हैं चाहे हम 16 साल के हों या 65 साल के.’

आज दीया फिर से वापस अपने कालेज जा रही थी. जाने से पहले वह बोली, ‘दादी, ये कायदे और नियमरूपी बेडि़यों में आप अपने को कैद मत करो. आप अगर खुश रहोगे तो वह ही खुशी आप हमें दोगे. मम्मी या किसी और के कहने पर अपनी जिंदगी को जीना मत छोड़ो.’ रजनी कुछ न बोली.

कुछ दिनों बाद आलोक का औफिस की तरफ से विदेश जाने का कार्यक्रम बना. औफिस पत्नी का खर्चा भी वहन कर रहा था. पर मां के कारण आलोक का मन नहीं था. उसे समझ नहीं आ रहा था कि उस की मम्मी 2 माह तक सब कैसे अकेले संभालेगी. यह सब सुन कर वंदना का मुंह सूज गया. पर जब रजनी को इस बात का मालूम हुआ तो उन्हें बहुत दुख हुआ. सुबह नाश्ते की टेबल पर वे आलोक से बोलीं, ‘बेटे, मैं तुम दोनों को किसी प्रकार के बंधन में बांधने नहीं आई हूं. तुम जाओ और अपने साथ वंदना को भी ले जाओ.’ वंदना खुश हो गई और आलोक भी अब बिना किसी हिचक के अपनी ट्रिप की तैयारी करने लगा.

जैसे कि हमारे देश की परंपरा है, हम बुजर्गों को आदरणीय समझते हैं. पर उन में कुछ भावनाएं हैं, यह हम नहीं मान सकते. रजनी भी यही मानती थीं, इसलिए अब तक राजीव रजनी के मन की थाह नहीं ले पा रहे थे.

एक दिन सुबहसुबह राजीव के पास

दीया का फोन आया. वह रोंआसी,

हो ?कर बोली, ‘‘अंकल, मैं सुबह से मोबाइल मिला रही हूं, दादी फोन नहीं उठा रही हैं, वे ऐसा कभी नहीं करतीं.’’

राजीव बोले, ‘कल ही तो हम मिले थे, तुम चिंता मत करो, मैं अभी जाता हूं.’

चिंतित राजीव फौरन रजनी के फ्लैट पर पहुंच गए. बहुत देर तक घंटी बजाने के बाद भी जब कोई आहट नहीं मिली तो उन्होंने सोसाइटी के गार्ड की मदद से अंदर से दरवाजा खुलवाया. किसी अनहोनी की आशंका से उन्होंने एक झटके से दरवाजा खोला.

कमरे में बैड पर लेटी बुखार से तपती रजनी बुरी तरह से कंपकंपा रही थीं. राजीव ने बिना कुछ कहे उन्हें उठाया और गार्ड की मदद से अपनी कार में बैठाया. हौस्पिटल पहुंच कर उन्होंने उन्हें दाखिल कराया और फिर दीया को फोन पर सारी स्थिति से अवगत कराया. उन्होंने दीया से कहा कि वह चिंता न करे, अपनी परीक्षा पर पूरा ध्यान लगाए. साथ ही यह ताकीद भी की कि वह अपने मम्मीपापा को इस बात से अवगत न कराए.

पूरे हफ्ते दिन को दिन और रात को रात न मान कर राजीव ने रजनी की सेवा की. अब रजनी पहले से काफी स्वस्थ थीं और कल उन्हें वापस घर जाना था. आलोक के आने में अभी 25 दिन शेष थे. राजीव अब रजनी को अकेले नहीं छोड़ना चाहते थे. हौस्पिटल के बाद वे रजनी को अपने फ्लैट पर ले आए.

रजनी हाथ जोड़ कर बोलीं, ‘आप ने मेरे लिए बहुतकुछ किया है. यह जीवन आप की ही देन है. पर कृपया मुझे मेरे घर पर छोड़ दीजिए. वैसे, आप खुद भी समझदार हैं.’

राजीव संयत स्वर में बोले, ‘आप मुझे बेहद पसंद हो, मैं आप के साथ अपनी जीवन की सांझ बांटना चाहता हूं. पर आप के लिए मैं जो कुछ भी कर रहा हूं या करूंगा, इस में मेरा स्वार्थ निहित नहीं है. यह, बस, इंसानियत के नाते कर रहा हूं. मैं एक मित्र और हितैषी होने के नाते आप को अकेला नहीं छोड़ूंगा.’

तभी घंटी बजी और दीया ने खिलखिलाते हुए प्रवेश किया और रजनी के गले लग कर फफक कर रो पड़ी. राजीव ने उन दोनों के लिए खाना लगाया और खाने के बाद उन्हें सोने के लिए कमरा दिया. शाम को दोनों दादीपोती को राजीव ने उन के फ्लैट पर छोड़ दिया.

दीया पूरे एक हफ्ते रही और इन दिनों में वह राजीव के बहुत करीब आ गई थी. अब वह कालेज के लिए निकली, तो राजीव और रजनी का रिश्ता दोबारा से पुरानी लीक पर चलने लगा. न राजीव ने कभी अपनी बात दोबारा दोहराई, न रजनी अब पहले की तरह हिचकिचाईं.

रजनी को राजीव का साथ पहले भी भाता था पर कुछ दिनों पहले तक वे जिस परिधि में अपने को बांध कर रख रही थीं, उस घटना के बाद उन्होंने अपने को उस कैद से आजाद कर लिया था. उन्हें समझ आ गया था कि जीवनसाथी की सब से ज्यादा जरूरत सांझ की बेला में ही होती है.

आज सवेरे की फ्लाइट से आलोक और वंदना आ गए थे. रजनी ने पिछले दिनों में अपना मन स्थिर कर के एक फैसला ले लिया था, एक ऐसा फैसला शायद जो अपने 65 साल की जिंदगी में उन्होंने पहली बार अपनी खुशी के लिए लिया था और अब वे खुलेदिल से अपनी जिंदगी की शाम को राजीव के साथ बांटना चाहती थीं.

आज रात खाने पर उन्होंने राजीव को बुलाया था और राजीव के सामने ही उन्होंने अपने परिवार को अपने निर्णय से अवगत कराया. आलोक थोड़ा अनमना हो गया और सब से पहले उस ने अपनी बहन को सूचित किया. अनिता, जो अपनी मम्मी के हौस्पिटल में ऐडमिट होने पर अपनी ससुराल की जिम्मेदारियों के कारण बड़ी सफाई से कन्नी काट गई थी, आज अपनी मां के आगे ससुराल वालों की दुहाई दे रही थी. उधर आलोक को भी सबकुछ बहुत अजीब लग रहा था. पर वंदना को सब से ज्यादा चिंता अपनी सास के अकाउंट में जमा धनराशि की हो रही थी. दीया ही इस बात से सब से ज्यादा खुश थी.

रात को खाने की मेज पर तनावभरा माहौल था, खुल कर कोई कुछ नहीं बोल पा रहा था. अनिता ने ही पहल कर के कहा, ‘मम्मी, आप के इस फैसले से मेरी जिंदगी पर असर पड़ेगा और आप अकेली कहां हो, मैं और आलोक भैया हैं न. अगर आप के आगेपीछे कोई न होता तो बात कुछ और थी.’

रजनी बोली, ‘अनिता बेटा, मेरा फैसला अब नहीं बदलेगा. यह मैं ने बहुत सोचसमझ कर लिया है. अगर तुम्हें इतनी शर्म आ रही है तो मैं खुद दामादजी से बात कर लूंगी.’ उस के बाद अनिता पैर पटकते हुए अपने घर वापस चली गई.

वंदना अब हर समय रजनी को शकभरी नजरों से देखती रहती और जैसे ही वे बाहर जाने के लिए कदम उठातीं, एक व्यंग्यबाण जरूर छोड़ती.

रजनी ने सोचा भी कि क्यों वे राजीव के साथ के लिए इतनी आतुर हो रही हैं और इसलिए जब आज राजीव का फोन आया कि वे शादी की तारीख तय करने के लिए रैस्तरां में बात करना चाहते हैं तो उन्होंने यह सोच कर हां कर दी कि वे मना कर देंगी पर रैस्तरां में तो वे इस से पहले कि अपनी बात कर पातीं, यह तमाशा हो गया था. रजनी को मालूम था कि उन के फैसले में उन के साथ कोई नहीं होगा सिवा दीया के. पर उन की बहू ऐसी बातें कहेगी, ऐसा उन्होंने नहीं सोचा था.

राजीव भी गुस्से और दुख में अपने फ्लैट की तरफ चल दिए. तभी मोबाइल की घंटी बजी. दूसरी तरफ से उन की बेटी थी कौल पर, ‘‘पापा, आप लिवइन क्यों कर रहे हो, आप शादी कर लो न रजनी आंटी से.’’

राजीव को समझ आ गया कि किसी हितैषी ने उन के बच्चों तक खबर पहुंचा दी है. उन्होंने बिना कुछ जवाब दिए फोन काट दिया.

फिर अगले दिन उन के बेटे और बहू की वीडियोकौल थी. उन दोनों को भी यह ही शक था और जब उन्होंने शांति से यह कहा, ‘‘तुम ने जैसे भी अपनी जिंदगी गुजारी, मैं ने उस में हमेशा तुम्हारा साथ दिया. अब मैं लिवइन करूं या शादी, तुम्हें कोई समस्या नहीं होनी चाहिए.’’

दीया ने राजीव अंकल और रजनी के फैसले का पूरा समर्थन किया. बस, वही थी जो अडिग चट्टान की तरह उन के साथ खड़ी रही थी.

रजनी पर अब आलोक और वंदना की बातों का कोई फर्क नहीं पड़ता था. उन्हें समझ आ गया था कि उन से ज्यादा आलोक, अनिता और वंदना को उस धनराशि व जमीन की चिंता थी जो उन के नाम थी. अब माह में एक बार गाहेबगाहे फोन करने वाले राजीव के बच्चे भी हर तीसरे दिन उन को फोन करते. दोनों के बच्चों को अब यह लग रहा था, अगर यह शादी हो गई तो उन के मातापिता के नाम पर जो जमीनजायदाद है वह किस को मिलेगी?

यह बात सब से पहले राजीव को समझ आई. फिर राजीव और रजनी ने एक अनोखा फैसला लिया. 10 दिनों बाद एक सादे समारोह में रजनी और राजीव ने पहले फेरे लिए और फिर कोर्ट में जा कर उन्होंने अपने विवाह को रजिस्टर्ड करवा लिया. रजनी को एक अलग सी खुशी थी, खुशी अपनी मरजी से एक फैसला अपने लिए लेने की. पर दुख भी था क्योंकि उन के परिवार से कोई नहीं था सिवा दीया के.

राजीव ने शानदार रिसैप्शन दिया और उस में अपने और रजनी के परिवार को भी बुलाया था. उन्हें बुलाने के लिए उन्होंने वसीयत का जाल बिछाया था.

वसीयत जानने को बेताब और उत्सुक उन के बच्चे आए थे और जब वकील ने वसीयत पढ़ कर सुनाई, तो वे सब, बस, बैठे ही रह गए.

वसीयत के अनुसार, रजनी और राजीव ने अपनी 50 प्रतिशत जमापूंजी एक वृद्धाश्रम में दान कर दी थी. वहीं पर वे दोनों अपनी जिंदगी की सांझ बिताएंगे. बाकी की जमापूंजी उन्होंने अपने नाम पर ही रखी थी और उन के मरने के बाद अगर कुछ धनराशि बचती है, तो वह एक अनाथ आश्रम में दान दी जाएगी. कल रात की फ्लाइट से वे दोनों पहले पेरिस और फिर स्विट्जरलैंड जा रहे थे.

दोनों के बच्चे एकदूसरे पर दोषारोपण कर रहे थे कि उन के मातापिता ने एकदूसरे के बहकावे में आ कर यह वसीयत लिखवाई है.

वंदना बहुत तीखे स्वर में बोल रही थी, ‘‘अब हनीमून मन रहा है, यह भी नहीं सोचा मम्मी ने कि दीया की पढ़ाई और शादी के लिए कुछ नाम कर देतीं.’’

‘‘अरे, हम से दुश्मनी थी पर अपने नातीपोतों से भी कुछ लगाव नहीं था,’’ अनिता बोल रही थी.

दीया ने कड़वे स्वर में कहा, ‘‘मम्मी, मैं आप और पापा की जिम्मेदारी हूं, दादी की नहीं.’’

वहीं, आलोक को लगा उस का अपनी मम्मी को बेंगलुरु लाने का प्लान फेल हो गया है.

राजीव के बच्चे हालांकि नाखुश थे पर कुछ कह न पाए. बस, राजीव की बेटी चलते हुए यह बोली, ‘‘पापा, उम्मीद करते हैं कि आप की नई पत्नी आप का पूरा खयाल रखेंगी. आप को विदेश में आ कर स्वास्थ्य लाभ की जरूरत नहीं पड़ेगी.’’

संकेतों से ही सही, रजनी और राजीव को यह बता दिया गया था कि अब उन के बच्चे उन के लिए कुछ भी नहीं करेंगे, आगे के जीवन में वे ही एकदूसरे के साथ हैं.

नीचे राजीव अपनी कार लिए खड़े थे. रजनी ने अपना सूटकेस कार में रखा. आंखों के कोनों से खुशी की नमी को पोंछा और दोनों चल पड़े जिंदगी की खुशनुमा शाम की शुरुआत करने. शायद फिर से जीवनसंध्या में गुनगुनी धूप ने दस्तक दी थी.

वाट्सएप ग्रुप में अश्लील वीडियो

उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में मीडिया के लोगों का एक वाट्सएप ग्रुप बना है. जिसमें तमाम बड़े नेता, अफसर, मीडिया के लोग मेम्बर हैं. मेम्बर में महिलायें भी है. एक दिन किसी ने एक अश्लील वीडियो ग्रुप में भेज दी. कुछ लोगों ने आपत्ति की तो वाट्सएप ग्रुप के एडमिन ने उस मेम्बर को ग्रुप से रिमूव कर दिया. यह कोई अकेली घटना नहीं है. महिलाओं की पत्रिका का एक वाट्सएप ग्रुप है. जिसमें पत्रिका के कार्यालय के लोगों को छोड़ कर सभी महिला सदस्य ही है.

एक महिला सदस्य द्वारा एक अश्लील वीडियो ग्रुप में भेज दिया गया. बहुत सारे सदस्यों के आपत्ति के पहले ही ग्रुप एडमिन के द्वारा उस सदस्य को रिमूव कर दिया गया. एक ग्रुप में ऐसा वीडियो भेजने वाले के खिलाफ कुछ लोगों ने पुलिस में आईटी एक्ट की धारा में मुकदमा भी लिख दिया.

ऐसी ही एक घटना लेखकों के एक वाट्सएप ग्रुप में हुई जहां पत्रिका के कार्यालय सहयोगी के द्वारा अश्लील वीडियो को ग्रुप में भेज दिया गया. केवल औफिशियल वाट्सएप ग्रुप में ही नहीं. कई बार फैमीली ग्रुप में भी ऐसी घटनायें घट जाती है. जहां हालत और भी खराब हो जाते है. वाट्सएप के सदस्य को रिमूव करने के बाद भी गलती की संभावनायें बनी रहती है.

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क्या करें जब आ जाये अश्लील वीडियो:

अगर किसी सदस्य के द्वारा अनजाने में यह भेजा गया है तो सबसे पहले उसे कहे कि वह वीडियों को डिलीट कर दें. अगर वीडियों भेजने के पहले 7 मिनट में वीडियो को भेजने वाला डिलीट कर दें तो वह वीडियो वाट्सएप ग्रुप से हट जाता है. अगर किसी ने वीडियो को डाउनलोड कर लिया है तो अलग बात है. 7 मिनट के बाद वीडियो को ग्रुप से हटाने का कोई लाभ नहीं है.

ऐसे में ग्रुप के दूसरे मेम्बरों के गुस्से को शांत करने के लिये उस सदस्य को रिमूव करना जरूरी होता है. ऐसे में ग्रुप में अनुशासन भी बना रहता है.

कैसे होती है यह गलतियां:

सामान्य तौर पर किसी दोस्त को ऐसे वीडियो भेजते समय गलती से दूसरा नम्बर सलेक्ट हो जाता है. भेजने वाले को काफी देर तक यह पता ही नहीं चलता कि अश्लील वीडियो किसी दूसरे को भेज दिया गया है. कई बार तो जब आपत्ति करने वाले लोगों के फोन या मैसेज आते है. तब गलती का अहसास होता है. तब तक ग्रुप से वीडियो डिलीट होने की समय सीमा खत्म हो चुकी होती है. ऐसे में अश्लील वीडियो भेजने वाले के सामने कोई रास्ता नहीं रहता है.

जब उसे अपनी गलती का पता चलता है तब उसे बहुत अपमानजनक लगता है. औफिशियल ग्रुप में ऐसी गलती होने से कई बार विभागीय काररवाई होने का खतरा भी होता है. अपमान का सामना: सामान्यतौर पर जानबूझ कर वाट्सग्रुप में ऐसे वीडियो नहीं भेजे जाते है. यह गलती से भेज दिये जाते है. औफिशियल ग्रुप में ऐसा ही वीडियो भेजने वाले रामकुमार कहते है.

हम अपने साथी को वीडियो भेज रहे थे. ग्रुप और मित्र का नाम उपर नीचे था. ऐसे में गलती से मित्र के नाम की जगह पर औफिशियल वाट्सग्रुप में वीडियों भेज दिया. रात में सो गये सुबह जब औफिस पहुंचे तो लोग हमें अजीब नजरों से देख रहे थे. पहले तो हमें कुछ समझ ही नहीं आया. कुछ देर के बाद एक साथी ने बताया तो पहले तो हमें विश्वास ही नहीं हुआ कि ऐसा हो गया है. जब हमने अपने मोबाइल में चेक किया तो पता चला. मैंने सबसे पहले अपने बौस से माफी मांगी उसके बाद ग्रुप में सभी से क्षमा मांगी. इसके बाद भी खुद से ही अपमानजनक लगता है कि हमसे यह गलती हो गई.

अश्लील वीडियो भेजने वाली महिला ने बताया कि ग्रुप में जितने दोस्त थे वह सभी मजाक करने लगे. उनको यह लगने लगा कि मैं हमेशा ऐसे वीडियो देखती हूं. मेरे सफाई देने से कोई हल नहीं होने वाला था. इसलिये हमने सफाई देने की कोशिश नहीं की. कई बार खामोश रहना ही ऐसे मामलों में बेहतर होता है. इस तरह की घटनाओं के लिये सोशल मीडिया पर आने वाले अश्लील वीडियो भी काफी हद तक जिम्मेदार होते है.

ऐसा ही एक वीडियो अपने फेमली ग्रुप में भेजने वाली राखी बताती है ‘मुझे सोशल मीडिया पर एक वीडियो मिला. 10 मिनट के इस वीडियो में पहले के 2 मिनट तक एक आरती का गाना चल रहा था. हमें लगा कि यह पूजापाठ से जुड़ा वीडियो है. मैंने उसको आगे नहीं देखा और फैमली ग्रुप में भेज दिया.’

‘फैमली ग्रुप’ में जब किसी ने पूरा वीडियो देखा तो वह लोग अवाक रह गये. मेरे से उनको ऐसी उम्मीद नहीं थी. ऐसे में मुझे फोन करके यह बताया गया. मुझे खुद पहले विश्वास नहीं हुआ. जब हमने दोबारा से वीडियो को देखा तो लगा कि गलती हो गई है. मुझे वह वीडियो देखकर अपने फैमली मेम्बर के चेहरे याद आने लगे. मै कई दिन तक ऐसे लोगों के सामने आने से बचती रही. उस दिन से हमने किसी भी ग्रुप में वीडियो भेजना बंद कर दिया.

अगर कोई वीडियों भेजना भी होता है तो उसे पहले पूरी तरह से देख लेती हूं. मैंने बाद में अपनी सफाई दी तो लोगों ने मान लिया कि सच बोल रही हूं. पर मुझे जीवन भर के लिये एक सबक मिल गया.

कैसे बचें अश्लील वीडियों भेजने की गलती से:

  • सबसे पहले तो ऐसे वीडियो अपने फोन में रखे ही नहीं. इसके अलावा जब वीडियो या फोटो भेज रहे हो तो सही से देख लें कि किसको भेज रहे है. इससे गलती की संभावना खत्म हो जायेगी.
  • अगर वीडियो भेजते ही पता चल जाये तो उसको डिलीट कर दे. डिलीट करते समय वाट्सएप पर एक औप्शन आता है कि वीडियो अपने पास से डिलीट कर रहे है या सभी के पास से तो सभी के पास वाले औप्शन को चुनें. जिससे वीडियो सभी के पास से डिलीट हो जायेगा.
  • डिलीट करने की सुविधा पहले 7 मिनट तक ही रहती है. इसके बाद सभी के पास से वीडियो डिलीट करना संभव नहीं रहता.
  • जब किसी वाट्सएप ग्रुप में ऐसी अश्लील वीडियो चली जाये और डिलीट करनालसंभव ना हो तो ग्रुप के लोगों के सामने खेद प्रकट करने से बात संभल जाती है.

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तकनीक के बहाने निजी जिंदगी में दखल

अमेरिकन कस्टम्स और बौर्डर प्रोटेक्शन देश के 20 टौप एयरपोर्टस पर फेशियल रिकौग्निशन सिस्टम शुरू करने वाली है और अक्टूबर 2020 तक लगभग सभी एयरपोर्ट्स पर ऐसा करने का इरादा है. उन का मानना है कि इस से एयरपोर्ट पर आवश्यक स्टाफ की संख्या और बोर्डिंग टाइम में कमी लाई जा सकेगी. फैसियल रिकौग्निशन सिस्टम की वजह से अटलांटा में जेट्स के लिए बोर्डिंग टाइम घट कर 9 मिनट तक हो गया है.

कई देशों में है यह तकनीक

अमेरिका, ब्रिटेन, कनाडा, औस्ट्रेलिया, संयुक्त अरब अमीरात, जापान, चीन, जर्मनी, रूस, आयरलैंड, स्काटलैंड, स्विट्जरलैंड, फ्रांस, न्यूजीलैंड, फिनलैंड, हांगकांग, नीदरलैंड, सिंगापुर, रोमानिया, कतर, पनामा जैसे देशों में पहले से यह तकनीक काम कर रही है.

चीन में सब से पहले इसतरह की व्यवस्था की शुरुआत हुई थी वहीं जर्मनी इस तकनीक का इस्तेमाल आतंकियों की पहचान के लिए कर रहा है और अब भारत सरकार भी तकनीकी विकास और समय की बचत के नाम पर बायोमैट्रिक स्क्रीनिंग सिस्टम की इस व्यवस्था को भारत के एयरपोर्टों पर लागू करने का मन बना चुकी है.

बीआईएएल (बेंगलुरु इंटरनेशनल एयरपोर्ट लिमिटेड ) ने हाल ही में अपने एक ट्वीट में कहा, ‘अब आप का चेहरा ही आप का बोर्डिंग पास होगा. बेंगलुरु को भारत का पहला पेपरलेस एयरपोर्ट बनाने के लिए बीआईएएल ने बोर्डिंग टेक्नौलजी हेतु विजनबॉक्स से अग्रीमेंट साइन किया है.’

बीआईएएल की ओर से जारी एक स्टेटमेंट में कहा गया है कि बोर्डिंग के लिए रजिस्ट्रेशन को पेपरलेस बना कर हवाई यात्रा को आसान करने का प्रयास किया जा रहा है और इसी मकसद से यह सुविधा शुरू की गई है. बायोमेट्रिक टेक्नौलजी द्वारा पैसेंजर्स के चेहरे से उन की पहचान होगी और वे एयरपोर्ट पर बिना किसी झंझट जा सकेंगे. इस के लिए उन्हें बारबार बोर्डिंग पास, पासपोर्ट या अन्य आइडेंटिटी डॉक्युमेंट्स नहीं दिखाने पड़ेंगे.

सब से पहले अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डों पर यह व्यवस्था लागू होगी. अपना पासपोर्ट और बोर्डिंग पास दिखाने के बजाय पैसेंजर्स को एक कैमरे के आगे खड़ा किया जाएगा. उन की एक फोटो ली जाएगी और उसे गवर्नमेंट डाटाबेस में फाइल किए गए दूसरे फोटोज से कंपेयर किया जाएगा. इस तरह फोटोज के इस कंपैरिजन के आधार पर उस शख्स की पहचान पुख्ता की जाएगी.

भले ही इस बायोमैट्रिक स्क्रीनिंग से कई तरह के फायदे नजर आ रहे हो मगर कहीं न कहीं यह हमारी प्राइवेसी पर सीधा अटैक करेगी. यह एक तरीका है जिस से हमारी ट्रैकिंग की जा सकेगी. यानी एक तरीके का ट्रैकिंग सिस्टम विकसित किया जा रहा है जो बहुत बड़े पैमाने पर काम करेगा.

प्राइवेसी इनवेडिंग टेक्नोलौजी एक तरह से हमारी निजी जिंदगी में घुसने का रास्ता है. यह एक तरह का जाल है जिस के जरिये हमारे चेहरे को डाटा के रूप में इस्तेमाल किया जाएगा. ऐसा डाटा जिसे स्टोर किया जा सकता है, ट्रैक किया जा सकता है या फिर चोरी भी किया जा सकता है.

जनता भी इसे ले कर असमंजस की स्थिति में है. 2018 में करीब 2,000 एडल्ट इंटरनेट यूजर्स पर किए गए सर्वे के मुताबिक 44% लोगों ने इस तरह के सिस्टम को अनफेवरेबल बताया जब कि 27% ने इसे फेवरेबल करार दिया.

भारत में सरकार कांग्रेस की हो या भाजपा की वैसी तकनीकों को जल्दी से जल्दी अप्लाई करने का प्रयास किया जाता है जिन के जरिये सरकार आप की प्राइवेसी ख़त्म कर सके , आप की हर एक्टिविटी पर नजर रख सके. आप को पता भी नहीं चलेगा और आप का फेस स्कैन कर लिया जाएगा. वह सालों सर्कुलेट होता रहेगा. कभी भी आप हैकिंग के शिकार बन जाएंगे और अनचाही दखल के खौफ में जीने को विवश रहेंगे.

बौक्स मैटर

पेपरलेस वर्क पर जोर

मुंबई एयरपोर्ट देश का पहला ऐसा एयरपोर्ट है जहां बोर्डिंग पास पर स्टैंप की जरुरत नहीं. इस सुविधा से मुंबई हवाई अड्डा “डिजि यात्रा” सुविधा शुरू करने वाला देश का पहला हवाई अड्डा बना है. यह सुविधा नागर विमानन सुरक्षा ब्यूरो (बीसीएएस) और नागर विमानन मंत्रालय और नागरविमान सुरक्षा ब्यूरो की पहल का नतीजा है. इस पहल का मकसद हवाई अड्डों पर यात्रियों के लिए कागजी कार्रवाई कम करना है. अब घरेलू उड़ान भरने वाले यात्री अब अपने मोबाइल फोन के माध्यम से ई-गेट रीडर पर बोर्डिंग पास बारकोड या क्यूआर कोड को स्कैन कर के अपने बोर्डिंग पास को प्रमाणित कर सकते हैं.

रेलवे पहले ही हो चुका है पेपरलेस

भारतीय रेलवे पहला सरकारी उपक्रम बना जिस ने अपना कामकाज पेपरलेस किया. अक्टूबर 2011 में आइआरसीटीसी (भारतीय रेलवे खानपान एवं पर्यटन निगम) ने सुविधा देते हुए कहा कि यात्रियों को अपने साथ काउंटर टिकट रखना जरूरी नहीं होगा. लोग मोबाइल पर एसएमएस या ई-टिकट के जरिए यात्रा कर सकते हैं.

इस तरह के पहचान प्रमाण हेतु मोबाइल का प्रयोग प्राइवेसी या फ्रौड इम्प्लीमेशन का जरिया नहीं बन सकता मगर जब बात फेस रिकग्निशन की आती है तो सवाल खड़े होने वाजिब हैं.

समर ड्रिंक: स्पाइस्ड टैंगो

यह एक समर स्पेशल ड्रिंक है. इसे पीने से गर्मी में आपको काफी रहात मिलेगी. नींबू और आम के रस के मिश्रण से बना यह एक बेहतरीन ड्रिंक है.

सामग्री

मैंगो जूस (150 मिली.)

टबैस्को (4 बूंदें)

नींबू का रस (10 ml मिली.)

काला नमक (एक चुटकी)

अदरक का रस (कम मात्रा में)

बर्फ के टुकड़े (5-6)

गार्निशिंग के लिए- पुदीने की टहनी या हरीमिर्च

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बनाने की वि​धि

एक गिलास में सारी सामग्री डालें.

फिर गिलास में बर्फ डालें.

इसे अच्छे से शेक करें और दोबार छानकर एक पिल्सनर गिलास में डाले.

4.6 आइस क्यूब्स डालें.

हरी मिर्च और रेड बेल पेपरमिंट की टहनी से गार्निश करें.

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